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( ११७ ) अविभक्त (वि०)[न० त०] 1. न बंटा हुआ, अविभाजित,। चार-अविवेकः परमापदां पदम्-कि० २।३० 2.
संयुक्त (जैसे कि पारिवारिक सम्पत्ति) 2. जो टूटा | 'जल्दबाजी, उतावलापन । न हो, समस्त ।
अविशङ्क (वि.) [न० ब०] भयरहित, संदेहशून्य, निडर अविभाग (वि.) [न० ब०] जो बांटा न गया हो, अवि- -का संदेह या भय का प्रभाव, भरोसा,-कम्, अविशं
भक्त--गः [न० त०] 1. बंटवारा न होना 2 बिना | केन (अव्य.) निस्संदेह, निस्संकोच। बंटा दायभाग।
अविशति (वि०नि० त०] 1.निःशंक, निडर 2. निस्संअविभाज्य (वि.) [न० त०] जो बाँटा न जा सके। देह, विश्वासी,-गृध्रवाक्यात्कथं मूढास्त्यजध्वमविशं
-ज्यम् 1. न बाँटा जाना, 2. जो बंटवारे के योग्य न किता... काव्य० । हो (कुछ ऐसी वस्तुएँ होती है जो बँटवारे के समय | अविशेष (वि.) [न० ब०] बिना किसी अन्तर या भेद के, भी बाँटी नहीं जाती)-उदा० वस्त्रं पात्रमलंकार बराबर, समान,-षः,-धम् 1. अन्तर का अभाव, समाकृतान्नमुदकं स्त्रियः, योगक्षेमं प्रचारं च म विभाज्यं नता 2. एकता, समता। सम-शचीजों के अन्तर प्रचक्षते- मन० ९।२१९, ता न बाँटा जाना, बँटवारे को न समझने वाला, अविभदक । की अयोग्यता।
अविष (वि.) [न० ब०] 1. जो जहरीला न हो,-ब: 1. अविरत (वि०) [न० त०] विरामशून्य, न रुकने वाला, | । समुद्र 2. राजा-बी 1. नदी 2. पृथ्वी 3. आकाश । सतत, निरन्तर अविरतोत्कण्ठमुत्कण्ठितेन-मेघ०।
अविषय (वि.) [न० ब०] अगोचर, अदृश्य -यः [न. १०२, लो० मन्दोऽ यविरतोद्योगः सदैव विजयो भवेत्
त०] 1. अभाव 2. अविद्यमानता-रवेरविषये कि न 'करत२ अभ्यास के जड़मति होत सुजान'-तम्
दीपस्य प्रकाशनम्-हि० २१७९, 3. निविषय, जो पहुंच (अव्य०) नित्यतापूर्वक, लगातार–अविरतं परकार्य
के अन्दर न हो, परे, बढ़चढ़कर-न कश्चिद्धीमतामकृतां सताम्-भामि० १।११३।
विषयो नाम . श. ४, सकल वचनानामविषय:-मा. अविरति (वि.) [न० ब०] निरन्तर --तिः (स्त्री०) ११३०, शब्दों की शक्ति से बाहर, 3. इन्द्रियार्थों की
[न० त० | 1. सातत्य, निरन्तरता 2. कामातुरता। उपेक्षा। अविरल (वि.) [न० त०] 1. घना, सघन,-वारिधारा | अवी [अवत्यात्मानं लज्जया इति-अव+ई] रजस्वला
- उत्तर०६, तेज बौछार 2. सटा हुआ 3. स्थूल, | स्त्री। मोटा, ठोस 4. निधि, लगातार, - लम् (अव्य०) | अवीचि (वि०) [न० ब०] तरंगशून्य--चिः नरक-विशेष । 1. घनिष्ठतापूर्वक-- अविरलमालिङ्गितुं पवनः--श० | अवीर (वि.) [न० ब०] 1. जो वीर न हो, कायर 2. ३१७, 2. निर्बाधरूप से; लगातार ।
जिसके कोई पुत्र न हो,–रा वह स्त्री जिसके न कोई अविरोधः [न० त०] सुसंगतता, अनुकूलता सामान्यास्तु । पुत्र हो, न पति हो (विप० 'वीरा' जिसकी परिभाषा
परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये-भर्तृ० २०७४, यह है: पतिपुत्रवती नारी वीरा प्रोक्ता मनीषिभिः) अपने स्वार्थ के अनुकल।।
अनचितं वृथा पांसमवीरायाश्च योषितः-मनु०४। अविलम्ब (वि०)[न० ब० ] आशुकारी--बः [न० त०]
२१३ । विलंब का अभाव, आशुकारिता--- बम्, अविलम्बेन ।
अवृत्ति (वि०) [न० ब०] 1. जिसकी सत्ता न हो, जो (अव्य०) बिना देर किये, शीघ्र ही।
विद्यमान न हो 2. जिसकी कोई जीविका न हो,--सिः अविलंबित (वि.) न० त०] बिना देर किये, शीघ्रकारी,
(स्त्री०) [न० त०] 1. वृत्तिका अभाव, जीविका का क्षिप्र, आशुकारी, तम् (अव्य०) शीघ्रतापूर्वक, विना
कोई साधन न होना, अपर्याप्त आश्रय-अवृत्तिदेर किये।
कर्षिता हि स्त्री प्रदुष्येत् स्थितिमत्यपि---मनु० ९।७४, अविला [अव्+इलच्] भेड़।
१०।१०१, आददीताममेवास्मादवृत्तावेकरात्रिकम्-४। अविवक्षित (वि.) [न० त०] 1. अनभिप्रेत, अनुद्दिष्ट २२३, 2. पारिश्रमिक का अभाव, त्वं अनस्तित्व ।
-भ्रातरः इत्यत्र एकशेपग्रहणमविवक्षितम् 2, जो | अवथा (अव्य०) [न० त०] व्यर्थ नहीं, सफलता पूर्वक । बोलने या कहने के लिए न हो।
सम-अर्थ (वि०) सफल। अविविक्त (वि.) [नत०] 1. जिसकी छानबीन न की | अवृष्टि (वि.) [न० ब०] बारिश न करने वाला,—ष्टिः गई हो, जो भली-भांति विचारा न गया हो 2. | (स्त्री०) न० त०] वृष्टि का अभाव, अनावृष्टि । जो विशेषता या भेद न जानता हो, विस्मित 3. अवेक्षक (वि०) [अत+ ई-- ल] निरीक्षण करने सार्वजनिक ।
वाला, देखरेख करने वाला, अबोक्षक । अविवेक (वि.) [न० ब०] विचारशून्य, विवेकशून्य---कः | अवेक्षणम् [अव-- ईक्ष् --ल्युट 1. किसी ओर देखना, नजर
[न० त०] 1. भेदक ज्ञान या विचार का अभाव, अवि- डालना 2. रखवाली करना, देखरेख रखना, सेवा
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