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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३४६ ) कंकड़, कोई छोटा गोला या पिंड - लोष्टगुटिका: क्षिपति मुच्छ० ५ 3. रेशम के कीड़े का कोया 4. मोती - निधैति हारगुटिकाविशदं हिमाम्भः रघु ० ५।७० । सम० - अञ्जनम् एक प्रकार का सुर्मा । गुटी [गुटि + ङीप् ] दे० 'गुटिका' । गुड: [ गुड् + क] 1. शीरा, राब, ईख के रस से तैयार किया हुआ गुड - गुडधानाः - सिद्धा०, गुडीदन:- याज्ञ० १।३०३, गुडद्वितीयां हरीतकी भक्षयेत्- सुश्रु० 2. भेली, frण्ड 3. खेलने की गेंद 4. मुंहभर, ग्रास 5. हाथी का जिरहबख्तर, कवच गुड का शरबत, उद्धवा शक्कर, कर उबाले हुए मीठे चावल, तृणम्, – दायः, द ( नपुं०) गन्ना ईख, धेनुः (स्त्री०) दूध देने वाली गाय, जो प्रतीक रूप से गुड की बना कर ब्राह्मणों को उपहार में दी जाय - पिष्टन् गुड के लड्डू, - फल: पीलू का पेड़, शर्करा खांड, शृङ्गम् - गुड द्रावणी कलश, - हरीतकी गुड में रक्खी हुई हरें, मुरब्बे की हरं । | सम० --- उदकम् ओदनन् गुड डाल गुड [ गुड + कन् ] 1. पिण्ड, भेली 2. ग्रास 3. तैयार की हुई औषधि । गुड से गुडलम् [गुड + ला+क] गुड़ से तैयार की हुई शराब । गुडा [ गुड +टाप् ] 1. कपास का पौधा 2. बटो, गोली । jarat [safaintaयति देहेन्द्रियादीनि इति गुडः तमा कति प्रकाशयति गुड + आ + कै + क + टाप् ] 1. तन्द्रा 2. निद्रा । सम० ईश: 1. अर्जुन का विशेषण, - मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमर्हसि - ११७, ( गीता में और कई स्थानों पर ) 2. शिव का विशेषण । - भग० गुडगुडायनम् [गुडगुड इत्येवमयनं यस्य -- ब० स०] खांसी आदि के कारण कण्ठ से गुडगुड की आवाज निकलना । गुडेर: [ गड् + रक् ] 1. पिण्ड, भेली 2. कौर, टुकड़ा 1 गुण ( चुरा० उभ० – गुणयति - ते, गुणित ) 1. गुणा करना 2. उपदेश देना 3. निमंत्रित करना । गुणः [ गुण् + अच्] 1 धर्म, स्वभाव ( बुरा या अच्छा ) दुर्गुण, सुगुण 2. (क) अच्छी विशेषता, विशिष्टता उत्कर्ष, श्रेष्ठता कतने ते गुणाः या० १, रघु० १९, २२, साधुत्वे तस्य को गुणः पंच० ४ १०८, (ख) गौरव 3. उपयोग, लाभ, भलाई ( करण० के साथ) मुद्रा० १1१५4. प्रभाव, परिणाम. फल, शुभ परिणाम 5. धागा, डोरी, रस्सी, डोर मेखलागुणैः - कु०४/८, ५।१०, यतः परेषां गुणग्रहीतासि - भामि० १९१९ ( यहाँ 'गुण' का अर्थ विशिष्टता भी है) 6. धनुष की डोरी - गुणकृत्ये धनुषो नियोजिता कु० ४०१५, २९, कनकपिङ्गतडिद्गुणसंयुतम् - रघु०९/५४ 7. वाद्ययंत्र के तार शि० ४।५७ 8. स्नायु 9. खूबी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेषण, धर्म- मनु० ९।२२ 10 विशेषता, सब पदार्थों का धर्म या लक्षण, वैशेषिक के सात पदार्थों में से एक ( गुणों की संख्या २४ है ) 11. प्रकृति का अवयव या उपादान, समस्त रचित वस्तुओं से संबद्ध तीन गुणों में से कोई एक ( यह हैं - सत्व, रजस् और तमस् ) -- गुणत्रयविभागाय - कु० २/४, भग० १४1५, रघु० ३।२७ 12. बत्ती, सूत का धागा 13. इन्द्रियजन्य विषय ( यह पाँच रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द ) 14. आवृत्ति, गुणा (संख्याओं के बाद समास के अन्त में लगकर प्राय: 'तह' या 'गुणा या वार' को प्रकट करता है ) --माहारो द्विगुणः स्त्रीणां बुद्धिस्तासां चतुर्गुणा, षड्गुणो व्यवसायश्च कामश्चाष्टगुणः स्मृतः - चाण० ७८, इसी प्रकार त्रिगुण, – शतगुणी भवति - सोगुना हो जाता है 15. गौण तत्त्व, आश्रित अंश ( विप० मुख्य ) 16. आधिक्य, बहुतायत, बहुलता 17. विशेषण, वाक्य में अन्याश्रित शब्द 18. इ, उ, ऋ तथा ल के स्थान में ए, , ओ, अर और अल्, अथवा अ, ए, ओ, अर् और अल स्वर का आदेश 19. (अलं० शा ० में) रस का अन्तर्निहितगुण, मम्मट के अनुसार---ये रसस्याङ्गिनो धर्माः शौर्यादय इवात्मनः, उत्कर्ष हेतवस्ते स्युरचलस्थितयो गुणाः -- काव्य ०.८, (अलं० शा ० के प्रणेता वामन पंडित जगन्नाथ, दण्डी तथा अन्य विद्वान् गुणों को शब्द और अर्थ दोनों का धर्म समझते हैं तथा प्रत्येक के दस दस प्रकार बतलाते हैं। परन्तु मम्मट केवल तीन गुण मानता है और दूसरों के विचारों की समालोचना करने के पश्चात् कहता है: - माधुयोजः प्रसादाख्यास्त्रयस्ते न पुनर्दश - काव्य० ८ ) 20. ( व्या० ओर मी० में) शब्द समूह का अर्थ, धर्म या गुण माना जाता है, उदा० वैयाकरण शब्दार्थ के चार प्रकार मानते हैं:--जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य, इन अर्थों को समझाने के लिए क्रमश. प्रत्येक का गौः, शुक्लः, चल: और डित्थ:-- उदाहरण देते हैं 21. ( राजनीतिशास्त्र में ) कार्य करने का समुचित प्रक्रम, सही रीति (विदेशराजनीति विषयक छः रीतियाँ राजाओं के द्वारा व्यवहायं बतलाई गई हैं--- 1. संधि, शान्ति, सुलह 2. विग्रह, युद्ध 3 यान, चढ़ाई करना 4. स्थान या आसन अर्थात् पड़ाव 5. संश्रयं अर्थात् शरणस्थल ढूंढना 6. द्वैध या द्वैधीभाव संधिर्ना विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः अमर० दे० याज्ञ० १ ३४६ मनु० ७।१६०, शि० २।२६, रघु०८।२१ 22. तीन गुणों से व्युत्पन्न तीन की संख्या 23. ( ज्या० में) सम्पर्क जोवा 24. ज्ञानेन्द्रिय 25. निचले दर्जे का विशिष्ट भोजन - मनु० ३१२२४, २३३ 26. रसोइया 27. भीम का विशेषण 28. परित्याग, उत्सर्ग | सम० - अतीत (वि०) सब प्रकार के गुणों से मुक्त, गुणों For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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