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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०० ) प्रिय थी (तु. जयदेव के गी० की)। कृष्ण ने कंस, । कृष्णलः [कृष्ण+ला+क] धुंधची का पौधा, गुंजा-पौधा, नरक, केशि, अरिष्ट तथा अन्य अनेक राक्षसों को मार । -लम् धुंघची, चहुंटली। गिराया। यह अर्जुन का घनिष्ठ मित्र था, महाभारत | कृष्णा [कृष्ण+टाप्] 1. द्रौपदी का नाम, पांडवों की के युद्ध में उसने अर्जुन का रथ हाँका, पांडवों के । पत्नी-कि० १२२६ 2. दक्षिण भारत की एक नदी हितार्थ दी गई कृष्ण की सहायता ही कौरवों के नाश जो मसुलीपट्टम् में समुद्र में गिरती है। का मुख्य कारण थी। संकट के कई अवसर आये, कृष्णिका [कृष्ण+ठन्+टाप] काली सरसों। परन्तु कृष्ण की सहायता और उनकी कल्पनाप्रवण कृष्णिमन् (पुं०) [कृष्ण+इमनिच ] कालिमा, कालापन। मति ने पांडवों को कोई आंच न आने दी । यादवों का | कृष्णी [कृष्ण+ङीष् ] अँधेरी रात । प्रभासक्षेत्र में सर्वनाश हो जाने के पश्चात् वह जरस | कi (तूदा० पर०--किरति, कीर्ण) 1. बखेरना, इधरनामक शिकारी के बाण का, मग के धोखे में, शिकार उधर फेंकना, उडेलना, डालना, तितर-बितर करना हो गये। कहते हैं कृष्ण के १६००० स्त्रियाँ थीं, परन्तु --समरशिरसि चञ्चत्पञ्चचूडश्चमनामपरि शरतुषारं रुक्मिणी, सत्यभामा (राधा भी) उनको विशेष प्रिय कोऽप्ययं वीरपोत:, किरति--उत्तर० ५।२, ६६१, दिशि थी। कहते है उसका रंग सांवला या बादल की भांति दिशि किरति सजलकणजालम् -- गीत०४, श० १७, काला था-तु० बहिरिव मलिनतरं तव कृष्ण मनोऽपि अमरु ११ 2. छितराना, ढंकना, भरना-भट्टि० ३।५, भविष्यति नूनम्-गीत०८, उसका पुत्र प्रद्युम्न था)। १७४४२। अप--, 1. बखेरना, इधर-उधर डालना, 8. महाभारत का विख्यात प्रणेता व्यास 9. अर्जुन —अपकिरति कुसुमम-सिद्धा० 2. पैरों से खुरचना 10. अगर की लकड़ी,-ष्णम 1. कालिमा, कालापन (भोजन या आवास आदि के लिए), पूरा हर्ष, 2. लोहा 3. अंजन 4. काली पूतली 5. काली मिर्च (चौपायों और पक्षियों में) (इस अर्थ में क्रिया का 6. सीसा । सम-अगुरु (नपुं०) एक प्रकार के चंदन रूप अपस्किरते बनता है)- अपस्किरते वृषो हृष्टः, की लकड़ी,-अचल: रैवतक पर्वत का विशेषण,-अजिनम कुक्कूटो भक्षार्थी श्वा आश्रयार्थी च-सिद्धा, अपा-, काले हरिण का चर्म,--अयस् (नपुं०)-अयसम्,-आमि- उतार फेंकना, अस्वीकार करना, निराकरण करना, षम् लोहा, कच्चा या काला लोहा,-अध्वन,-अचिस् अव-, बखेरना, फेंकना .-अवाकिरम्बाललताः प्रसून: (पुं०) आग,-अष्टमी भाद्रपद कृष्णपक्ष का आठवां ---रघु० २११०, आ--, 1. चारों ओर फैलाना दिन, यही कृष्ण का जन्म दिन है, इसे गोकुलाष्टमी 2. खोदना, उद्--, 1. ऊपर को बखेरना, ऊपर को भी कहते हैं, --आवासः अश्वत्थ वृक्ष,-उबरः एक प्रकार फेंकना-रघु० ११४२ 2. खोदना, खोदकर खोखला का साप,-कन्दम् लाल कमल,-कर्मन् (वि०)काली करतूत करना 3. उत्कीर्ण करना, खुदाई करना, मूर्ति बनाना वाला, मजरिम, दृष्ट, दुश्चरित्र, दोषी, काकः पहाड़ी -उत्कीर्णा इव वासयष्टिषु निशानिद्रालसा बहिणः कोआ,-कायः भैंसा,-काष्ठम् एकः प्रकार की चंदन -~~-विक्रम० ३।२, रघु० ४१५९, उप-, (उपस्किरति) की लकड़ी, काला अगर,-कोहल: जुआरी,-गतिः आग, काटना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, परि , -आयोधने कृष्णगति सहायम्-रघु० ६।४२, प्रीवः 1. घेरना-परिकीर्णा परिवादिनी मुनेः----रघु० ८) शिव का नाम,-तारः काले हरिणों की एक जाति,-वेहः ३५ 2. सोपना, देना, बाँटना-महीं महेच्छ: परिकीर्य मधुमक्खी,-धनम् बुरे तरीकों से कमाया हुआ धन, पाप सूनी-रघु० १८५३३, प्र- 1. बखेरना, फेंकना उडेकी कमाई,-वैपायनः व्यास का नाम, तमहमरागम- लना-प्रकीर्णः पुष्पाणां हरिचरणयोरञ्जलिरयम कृष्णं कृष्णद्वैपायनं वन्दे-वेणी० २३,-पक्षः चांद्रमास --वेणी० १२ 2. (वीज आदि) बोना, -प्रति----, का अवेरा पक्ष, मृगः काला हरिण-शृङ्गे कृष्णमृगस्य (प्रतिस्किरति) चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, फाड़ना वामनयनं कण्डूयमानां मृगीम्-श०६।१६,-मुखः,-वक्त्रः, -उरोविदारं प्रतिचस्करे नख:- शि० ११४७, वि.--, पदनः काले मुंह का बन्दर, यजुर्वेदः तैत्तिरीय या बखेरना, इधर-उधर फेंकना, छितराना, फैलाना कृष्ण यजुर्वेद,-लोहः चुम्बक पत्थर,-वर्णः 1. कालारंग -कु० ३।६१, कि० २।५९, भट्टि० १३११४, २५, 2. राहु 3. शूद्र, वमन् (पु.) 1. आग,-रघु० ११॥ विनि-, फकना, छोड़ना, उतार फेंकना-कु. ४१६, ४२, मनु० २।९४ 2. राहु का नाम 3. नीच पुरुष, सम्-, मिलाना, सम्मिश्रण करना, एक स्थान पर दुराचारी, लुच्चा,-वेणा नदी का नाम,-शकुनिः कौवा, गड्डमड्ड करना, समुद्-छेदना, मुराख करना, शारः, सारः चितकबरा कालामृग-कृष्णसारे ददच्चक्षुः बींधना-रघु० ११४।। त्वयि चाधिज्यकार्मुके-श० १२६,-शृङ्गः भैसा,-सखः, _ii (कथा० उभ०-कृणाति, कृणीते) क्षति पहुँचाना, -सारथिः अर्जुन का विशेषण । चोट पहुँचाना, मार डालना। कृष्णकम् [कृष्ण-+-कन् ] काले मृग का चमड़ा। | कत (चुरा० उभ०-कीर्तयति-ते, कीर्तित) 1. उल्लेख EFFEEPE EFFE For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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