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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 920 ) (यहाँ दोनों अर्थ अभिप्रेत हैं) कु० 4 / 12 / वार्धकम् [वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा वुञ ] 3. शतभिषज् नामक नक्षत्र 4. एक प्रकार का घास, 1. बढ़ापा-किमित्यपास्याभरणानि यौवने धतं त्वया दूब / सम्० बल्लभः वरुण का विशेषण / वार्द्धकशोभि वल्कलम-कु० 5 / 44, रघु०, 128 न० वारंडः [व-णिच् + उँड] नाग जाति का प्रधान, डः, 177 2. बुढ़ापे की दुर्बलता 3. बूढ़ों का समुदाय / ...उम् 1. आँख का मैल या ढीड 2. कान का मैल | वार्धक्यम् [वार्द्धक+व्यञ] 1. बुढ़ापा 2. बुढ़ापे की 3 नाव में से पानी उलीच कर बाहर निकालने का दुर्बलता। बर्तन / वाधुषिः, वाधु षिकः, वार्धषिन् [पुं०) [=वा षिक वारेन्द्री बंगाल के एक भाग का नाम, वर्तमान राजशाही। पृषो० कलोपः, वृद्ध्यर्थ द्रव्यं वृद्धिः, तां प्रयच्छति पार्म (वि.) (स्त्री०-क्षी) [वृक्ष-+अण्| वृक्षों से युक्त वृद्धिठक वृषि आदेशः, वार्धष- इनि] सूदखोर, क्षम् जंगल। ब्याज पर रुपया देने वाला। वाणिकः [वर्ण+ठ लिपिकार, लेखक / वार्षुष्यम् [वावुषि+ध्या सूद, अत्यन्त ऊँचा सूद, वार्ताकः, वार्ताकिः (स्त्री०) वार्ताकिन् (पुं०) हद से ज्यादह ब्याज / वार्ताकी (स्त्री०) वार्ताकुः (पुं०, स्त्री०) +काकु वार्धम्, वाध्री [वाधं -|-अण्, डीप वा] चमड़े का तस्मा / अत्वं वृद्धिश्च, वार्ताक-इन इनि वा, वृत्+काकु, | वाोणसः [वाव नासिका अस्य ब० स०, नासिकाया ईत्वं वृद्धिश्च, वृत्-+काकु, वृद्धिः] बैंगन का पौधा / नसा देशः, णत्वम्] गैंडा, दे० 'वाध्रीणस' भी। वातिका (स्त्री०) बटेर, लवा। वार्मणम् [वर्मन्+अण्] कवच से सुसज्जित पुरुषों का वार्त (वि.) [वृत्ति+अण] 1. स्वस्थ, नीरोग, तन्दुरुस्त समूह। 2. हलका, कमजोर, सारहीन 3. व्यवसायी, -तम् वार्यम वियत] आशीर्वाद, वरदान (ब० व०) सम्पत्ति, 1. कल्याण, अच्छा स्वस्थ्य-सर्वत्र नो वार्तमवेहि जायदाद / राजन्--रघु० 5 / 13, 13171, स पुष्टः सर्वतो वार्त- | वार्वणा [वर्वणा+अण+टाप] नीले रंग की मक्खी। माख्यद्राज्ञे न संततिम्--१५।४१, शि० 3 / 68 2. | वार्य (वि.) (स्त्री०ी ) [वर्ष+अण्] 1. वर्षा से कुशलता, दक्षता-अनुयुक्त इव स्ववातमुन्चैः-कि० संबंध रखने वाला 2. वार्षिक / 13 / 34 3. भूसी, बूरा। वार्षिक (वि०) (स्त्री०-की) [वर्ष+ठक] 1. वर्षा वार्सा [वार्त+टाप्] 1. ठहरना, डटे रहना 2. समाचार संबंधी वार्षिक संजहारेन्द्रो धनज॑त्र रघर्दधौ---रघु० खबर, गुप्त बात, सागरिकायाः का वार्ता-रत्न० 4 / 16 2. सालाना, प्रतिवर्ष घटित होने वाला 3. 4 3. आजीविका, वृत्ति 4. खेती, वैश्य का व्यवसाय एक वर्ष तक रहने वाला--मानुषाणां प्रमाणं स्याद्भुरघु० 16 / 2, मनु० 1080, याज्ञ. 11310 5. क्तिर्वै दशवार्षिकी, इसी प्रकार वार्षिकमन्नम्-याज्ञ० बैगन का पौधा / सम०-आरंभः व्यापारिक उपक्रम, १११२४,-कम् जड़ी बूटी। या व्यवसाय--वहः, -हरः 1. दूत 2. अंगराग, मोम वार्षिला [वार्जाता शिला, पृषो० शस्य षः] ओला।। बत्ती आदि पदार्थ बेचने वाला, पत्तिः जो खेती के वाष्र्णेयः [वृष्णि+ढक] 1. वृष्णि की सन्तान 2. विशेष व्यवसाय से निर्वाह करे,--व्यतिकरः सामान्य रूप से कृष्ण 3. नल के सारथि का नाम / विवरण / | वाह, वाहद्रय, वाहतथि, ) दे० बाह, बार्हद्रथ, बार्हद्रथि, वार्तायनः [वार्तानामयनमनेन] समाचारवाहक, दूत, वार्हस्पत, वार्हस्पत्य, बार्हस्पत, बार्हस्पत्य, बाहिण, भेदिया, जासूस। | वाहिण, वाल, वालक बाल, बालक / वात्तिक (वि०) (स्त्री०-की) [वृत्ति-+ठक] 1. समा- | बालखिल्य दे० 'बालखिल्य'। चार संबन्धी 2. समाचार लाने वाला 3. व्याख्यात्मक, वालिः [वाले केशे जाते वाल+इञ] प्रसिद्ध वानरराज कोष सम्बन्धी,--क: 1. दूत, भेदिया 2. किसान बालि जो उसके छोटे भाई सुग्रीव की इच्छानुसार (वैश्यवर्ण का व्यक्ति),-कम् एक व्याख्यापरक राम के द्वारा मारा गया। अतिरिक्त नियम जो उक्त, अनुक्त, या किसी अधूरी (वर्णन ऐसा मिलता है कि वानरराज वा., अत्यन्त बात की व्याख्या करता है अथवा किसी छूटी हुई बलवान् था, कहते हैं कि उनसे रावण को जब वह बात को जोड़ देता है--उक्तानुदुरुक्तार्थव्यक्ति उससे लड़ने गया, पकड़ कर अपनी काख में रख (चिंता) कारि तु वात्तिकम् (यह शब्द पाणिनि के लिया। जब वालि दुंदुभि के भाई को मारने के सूत्रों पर कात्यायन द्वारा निर्मित व्याख्यापरक नियमों लिए किष्किघापुरी से बाहर गया तो उसके भाई के लिए विशेषरूप से प्रयुक्त होता है)। सुग्रीव ने वालि को युद्ध में मरा जान, उसका सिंहाबार्बघ्नः [वृत्रहन्+अण्] अर्जुन का नाम-कु० 15 / 1 / / सन हथिया लिया। जिस समय वालि वापिस आया For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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