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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 766 ) - अद्यापि मे हृदयमन्मयन्ति हन्त ---भामि०२५, / -उल्लापिन् (पुं०) कोयल, कर (वि०) मादक, प्र , 1. नशे में चूर होना, मस्त होना 2. उपेक्षक नशे में चूर करने वाला,---कारिन् (पुं०) मदवाला होना, लापरवाह या अवधान रहित होना (अधि० हाथी,-कल (वि०) मदुभाषी, अव्यक्तभाषी, अस्पष्टके साथ) अतोऽर्थान्न प्रमाद्यन्ति प्रमदासु विपश्चितः भाषी ... रघु० 9 / 37, प्रेम की मंदध्वनि उच्चारण मनु० 2 / 213 3. भूलचूक होना, भटक जाना, विच. करने वाला 3. जोश से भरा हुआ- उत्तर० 1131, लित होना यथा स्वाधिकारात्प्रमत्तः- - मेघ०१ में, मा० 9 / 14 4. अस्पष्ट परन्तु मधुर--मदकलं कूजितं 4. गलती करना, भूल करना राह भूल जाना-भट्टि० सारसानाम् ---- मेघ० 31, 5. मदवाला, प्रचण्ड, 5 / 8,17139, 1818, सम्-,1. नशे में चूर चूर होना, मदोन्मत्त विक्रम० 4 / 24, (-ल:) मदवाला हाथी 2. हर्षयुक्त होना, प्रसन्न होना। --कोहलः (स्वेच्छा से भ्रमण करने के लिए) मुक्त ii (चुरा० आ० मादयते) प्रसन्न करना, खुश साँड, खेल (वि०) प्रणयोन्माद के कारण केलिप्रिय करना। -विक्रप० ४।१६,-गन्धा 1. मादकपेय 2. पटसन, मवः [ मद्-+-अच् ] 1. मादकता, मस्ती, मदोन्मत्तता ---गमनः भैसा,-च्युत् (वि.) 1. (हाथी की भांति) -मदेनास्पश्ये-दश०, मदविकाराणां दर्शक:-का० 45, मद चुवाने वाला 2. कामुक, स्वेच्छाचारी, पीकर धुत्त दे. नी. समस्त पद 2. पागलपन, विक्षिप्तता 3. उग्र 3. आनन्ददायक, उल्लासमय (पु०) इन्द्र का विशेषण. प्रणयोन्माद, लालसापूर्ण उत्कण्ठा, गाढाभिलाषा, ..-जालम्,--वारि (नपु०) मदरस, मदवाले हाथी कामुकता, मैथुनेच्छा ---इति मदमदनाभ्यां रागिणः के गण्डस्थल से चूने वाला मद,- ज्वरः पमण्ड या स्पष्टरागान ..शि० 10.91 4. मदमत्त हाथी के जोश का बुखार--- भर्त० ३१२३,-द्विपः उन्मत्त हाथी, मस्तक से चूने वाला मद मदेन भाति कलभः प्रतापेन मदमस्त हाथी,-- प्रयोगः,-प्रसेकः,-प्रस्रवणम्- सावः, महीपतिः चन्द्र० 5 / 45, इसी प्रकार दे० मदकल, --स्रुतिः (स्त्री०) हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना, मदोत्मत्त, मेघ० 20, रघु० 2 / 7, 12 / 102 5. प्रेम, ......मुच (वि.) 'मद टपकाने वाला' मदोन्मत्त, नशे में इच्छा, उत्कंठा 6. घमण्ड, अहंकार, अभिमान पंच० चूर-उत्तर० ३.१५,रक्त (वि०) जोशीला,-रागः 1 / 240 7. उल्लास, आनन्दातिरेक 8. खीची हई 1. कामदेव 2. मुर्गा 3. पीकर धुत,-विक्षिप्त (वि०) शराब 9. मधु, शहद 10. कस्तूरी 11. वीर्य, शुक्र / 1. मदमस्त, मदोन्मत्त 2. कामलालसा से विक्षुब्ध सम० ... अत्ययः,- आतङ्कः सुरापान के परिणामस्वरूप .....विह्वल (वि.) 1. घमण्ड या काम लालसा से होने वाला विकार (सिरदर्द आदि),---अन्ध (वि०) पागल 2. नशे के कारण निश्चेष्ट,- वृन्दः एक हाथी, 1. मद से अन्धा, पीकर बेहोश, ती उत्कण्ठा से पीते ---शौंण्डकम् जायफल,-सारः बाड़ी,-स्थलम,-स्थानम् हुए . अधरमिव मदान्धा पातुमेषा प्रवृत्ता विक्रम मदिरालय, शराबघर, मधुशाला / 4 / 13, 2. अभिमान से अंधा, घमंडी, ....अपनयनम् | मदन (वि.) (स्त्री-नो) माद्यति अनेन . मद करणे नशा दुर करना,-अम्बरः 1. मदवाला हाथी 2. इन्द्र ल्युट] 1. मादक, पागलपन लाने वाला 2. आनन्दका हाथी ऐरावत,-अलस (वि०) नशे या जोश से दायक, उल्लासमय, नः 1. कामदेव .. व्यापाररोधि निढाल, अवस्था 1. पीकर मदहोशी की हालत मदनस्य निषेवितव्यम् / 0127, हतमपि निहन्त्येव 2. स्वेच्छाचारिता, कामासक्ति 3. मद चने की स्थिति मदनः--भर्तृ० 3 / 18 2. प्रेम, प्रणयोन्माद, उत्कण्ठा, --- रघु० 217, --आकुल (वि.) मदोन्मत्त, -आढ्य कामकुता विनयवारितवृत्तिरतस्तया न विवृतो मदनो (वि०) पीकर मस्त, नशे में चूर (ढ्यः) ताड का न च संवृतः-श० 2 / 11, सतन्त्रिगीतं मदनस्य पेड,...आम्नातः हाथी की पीठ पर बजाया जाने दीपकम् ---ऋतु० 1 / 3, रघु० 5 / 63, इसी प्रकार वाला ढोल या नगाडा, .. आलापिन (५०)कोयल, 'मदनातुर' 'मदनपीडित' आदि 3. वसन्त ऋतु —आह.वः कस्तुरी, - उत्कट (लि०) 1. नशे में चूर, 4. मधुमक्खी, भौंरा 5. मोम 6. एक प्रकार का मद्यपान से उत्तेजित 2. तीव्र प्रणयोन्मत्त, कामक आलिंगन 7. धतूरे का पौधा 8. वकुल का वृक्ष, खैर, 3. अभिमानी, घमंडी, दर्पयक्त 4. मदवाला, मदमस्त -ना, नी 1. खींची हुई शराब 2. कस्तूरी 3. अतिमुक्त रघु० 67, (ट:) 1. मदवाला हाथी 2. पेंड की, लता (---नी केवल इन दो अर्थों में), नम 1. मादक (टा) खीची हुई शराब, उग्र, उन्मत्त (वि०) 2. प्रसन्न करने वाला, 3. आनन्ददायक। सभ० 1. पीकर मस्त, नशे में चूर 2. भयंकर, जोश से भरा -अग्रकः एक धान्यविशेष, कोदों,- अकुशः 1. पुरुष हुआ-मदोदग्राः ककूद्मन्तः सरितां कलमद्रजा:-रघ० 4 / का लिंग 2. नाखून या नखक्षत (सम्भोग के समय 22, 3,आभमानी, घमंडी, अहंकारी, उद्धत (वि०)जोश हुआ).-अन्तकः,-अरिः, दमनः, दहनः, नाशनः, से भरा हुआ-कु० 3 / 31 2. घमण्ड से फूला हुआ, / --रिपुः शिव के विशेषण,--अवस्थ (वि०) प्रेमासक्त, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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