________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 860 ) दच्च-भट्टि० 17 / 40, मामुहो मा रुषोऽधुना / 5. क्रूर, निर्दय, कठोर नितान्तरुक्षाभिनिवेशमीशम् -15 / 16, 9 / 20 / / - रघु० 14143, 20 7132, पंच० 4 / 91 ii (भ्वा० पर० रोषति) 1. चोट पहुंचाना, क्षति 6. नीरस, भुना हुआ, सूखा, वीरान स्निग्धश्यामाः पहुँचाना, मार डालना 2. नाराज करना, सताना। क्वचिदपरतों भीषणाभोगरूक्षाः--उत्तर० 2 / 14, एष, षा (स्त्री०) [रुष्+क्विप्, रुष्+टाप्] क्रोध, रोष, (रूक्षीकृ-, ऊबड़-खाबड़ करना, मैला करना, मिट्टी गुस्सा,--निर्बन्धसंजातरुषा रघु० 5 / 21, प्रह्वेष्व- लथेड़ना)। निर्बन्धरुषा हि सन्तः -16380, 19 / 20 / रूक्षणम् [रूक्ष् + ल्युट्] 1. सुखाना, पतला करना बह. (भ्वा० पर० रोहति, रूढ) 1. उगना, फूटना, अंकुरित 2. (आयु० में) (शरीर की) मेद को घटाने की होना, उपजना---रूढरागप्रवाल:-मालवि० 4.1, चिकित्सा। केसरररूरैः-मेघ० 23, छिन्नोऽपि रोहति तरुः | रूढ (भू० क० कृ०) [रुह क्ति] 1. उगा हुआ, अंकुरित, -भर्त० 2087 2. उपजना, विकसित होना, बढ़ना फूटा हुआ, उपजा हुआ 2. जन्मा हुआ, उत्पन्न 3. उठना, ऊपर चढ़ना, उन्नत होना 4. पकना, (व्रण 3. बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, विकसित 4. उठा हुआ, आदि को) स्वस्थ होना-प्रेर० (रोपयति-ते, चढ़ा हुआ 5. विस्तृत बड़ा, स्थलकाय 6. विकीर्ण, रोहयति-ते) 1. उगाना, पौधा लगाना, भूमि में इधर उधर फैला हुआ 7. विदित, ज्ञात, व्यापक (बीज) बखेरना 2. उठाना, उन्नत करना 3. सौंपना, -क्षतात्किल त्रायत इत्युदनः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः सुपूर्द करना, देखरेख में देना,--गुणवत्सुतरोपितश्रियः - - रघु० 2 / 53, (यहाँ क्षत्र का अर्थ योगरूट है) -~~-रघु०८१११ 4. स्थिर करना, निदेशित करना, 8. सर्वजनस्वीकृत, परंपराप्राप्त, प्रचलित, सर्वप्रिय जमाना---रघु० 9 / 22, इच्छा० (रुरुक्षति) उगाने (शब्द या अर्थ, विप० यौगिक या निर्वचनमलक अर्थ) की इच्छा करना, - अधि-, चढ़ना, सवार होना, ---व्युत्पत्तिरहिताः शब्दा रूढ़ा आखण्डलादयः, नाम सवारी करना --रघु० 7 / 37, कु० 7 / 52 (प्रेर०) रूढमपि च व्युदपादि शि० 10 / 23 9. निश्चित, उन्नत होना, ऊपर उठाना, बिठाना---रघु 19644, निश्चित किया हुआ। अव-, नीचे जाना, उतरना---श० 7 / 8, आ--, रुढिः (स्त्री०) रुह --क्तिन ] 1. उगना, उपजना, चढ़ना, सवार होना, पकड़ लेना, सवारी करना, 2. जन्म, पैदायश 3. वृद्धि, विकास, वर्धन, प्रवृद्धता (मा पूर्वक रुह, धातु के अर्थ प्रयुक्त संज्ञा के अनुसार 4. ऊपर उठना, चढ़ना 5. प्रसिद्धि, ख्याति, बदनामी विभिन्न प्रकार के होते हैं-उदा० प्रतिज्ञाम् आरह. -शि०१५।२६ 6. परम्परा, प्रथा, परंपरागत रिवाज, वचन देना, प्रतिज्ञा करना, तुलाम् आरुह, समानता के -शास्त्राद् रूढिर्बलीयसी, विधि से प्रथा अधिक बलस्तर पर होना, संशयं आरह, जोखिम उठाना, वती है' 7. सामान्य प्रचार, साधारण व्यापकता या सन्दिग्धावस्था में होना आदि), (प्रेर०) 1. उन्नत प्रचलन 8. सर्वमान्य अर्थ, शब्द का प्रचलित अर्थ होना, उठाना 2. रखना, जमाना, निदेशित करना --मुख्यार्थबाघे तद्योगे रूढितोऽथ प्रयोजनात्-काव्य. 3. मढ़ना, थोपना, आरोपित करना 4. (धनुष पर) प्रत्यंचा चढ़ाना 5. नियुक्त करना, कार्य भार सौंपना, रूप (चरा० उभ०-- रूपयति-ते, रूपित) 1. रूप बनाना, प्र-, उगना, अंकुरित होना-न पर्वताने नलिनी गढ़ना 2. रूप धर कर रंगमंच पर आना, अभिनय प्ररोहति-मच्छ० 4 / 17, वि--, उगना, अंकुर करना, हावभाव प्रदर्शित करना--रथवेगं निरूप्य-श० फूटना - रघु० 2 / 26, मृच्छ० 119 (प्रेर०) (व्रण 13. चिह्न लगाना, ध्यान पूर्वक पालन करना, आदि का) स्वस्थ होना, सम् , उगना, रघु० . देखना, नजर डालना 4. मालूम करना, ढूंढना 6.47 / 5. खयाल करना, विचार करना 6. तय करना, निश्चय वह, कह (वि.) (समास के अन्त में) [रुह-+क्विप, क करना 7. परीक्षा करना, अन्वेषण करना 8. नियक्त 'वा उगा हुआ या उत्पन्न, जैसा कि 'महीरुह ' और। करना,---वि-, विरूपित करना, रूप बिगाड़ना। 'पकेरुह,' में। रूपम् [ रूप-1-क, भावे अच् वा ] 1. शक्ल, आकृति, रहा [रुह +टाप्] दूर्वा घास, दूबड़ा / सरत विरूपं रूपवन्तं वा पुमानित्येव भुञ्जते-पंच० रूक्ष (वि.) [रूक्ष-+अच्] 1. खुरदरा, कठोर, (स्पर्श या 14143, इसी प्रकार 'कुरूप' 'सुरूप' 2. रूग या रंग का शब्द आदि) जो मृदु न हो, रूखा--रूक्षस्वरं वाशति प्रकार (वैशेषिकों के चौबीस गुणों में एक)-चक्षुर्मात्र. वायसोऽयम् - मृच्छ 9 / 10, कु० 7 / 17 2. कसला ग्राह्यजातिमान् गुणो रूपम् -- तर्क० (यह छः प्रकार (स्वाद) 3. ऊबड़-खाबड़, असम, कठिन, कर्कश का है:... शुक्ल, कृष्ण, पीत, रक्त, हरित और कपिल, 4. दूषित, मलिन, मैला -- रघु० 770, मुद्रा० 415 / यदि 'चित्र' को जोड़ दिया जाय तो सात हो जाते 2 / For Private and Personal Use Only