________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1067 ) सन्तः [सन्+त-] दोनों हाथ जुड़े हुए, अंजलि, संहततल।। झाग 2. मलाई 3. मकड़ी का जाला 4. चाकू या सन्तक्षणम् [सम्+तक्ष् + ल्युट्] ताना, व्यंग्य, लगने की। तलवार का फल / बात। सन्तापः [सम्+तप्+घञ्] 1. गर्मी,प्रदाह, जलन-मा० सन्तत (भू० क० कु०)[सम्+तन्+क्त] 1. फैलाया हुआ, 314 2. दुःख, सताना, भुगतना, पीडा, वेदना, व्यथा विस्तारित 2. विनरहित, अनवरत, अनवच्छिन्न, ---सन्तापसन्ततिमहाव्यसनाय तस्यामासक्तमेतदननियमित 3. टिकाऊ, नित्य 4. बहुत, अनेक,-तम् पेक्षित हेतु चेतः- मा० 1123 श० 3 3. आवेश, रोष (अव्य०) सदव, लगातार, नित्य, निरंतर, शाश्वत / 4. पश्चात्ताप, पछतावा- पंच० 1 / 109 5. तपस्या, सन्ततिः (स्त्री०) [सम्+तन्+क्तिन्] 1. बिछाना, तप की थकान, शरीर की साधना-सन्तापे दिशतु फलाना 2. फासला, प्रसार, विस्तार-० 7 / 8 शिवः शिवां प्रसक्तिम् - कि० 5 / 50 / 3. अनवच्छिन्न पंक्ति, अविराम प्रवाह, श्रेणी, परास, | सन्तापनम् (स्त्री... नी) [सम्+त+णिच-+ल्युट, परम्परा, निरन्तरता-चितासन्ततितन्तुजालनिबिड- जलन, दाह, नः कामदेव के पाँच बाणों में से एक, स्यू तेव लग्ना प्रिया--- मा०५।१०, कुसुमसन्ततिसन्तत- -नम् 1. जलाना, झुलसना 2. पीडा देना, कष्ट सङ्गिभि:--शि० 6 / 36 4. नित्यता, अविच्छिन्न देना 3. आवेश उत्तेजित करना, जोश भरना।। निरन्तरता--रघु० 3.1 5. कुल, वंश, परिवार | सन्तापित (भ० क. कृ०) सम-तप-णिच+क्त] 6. सन्तान, प्रजा-सन्ततिः शुद्धवंश्या हि परत्रेह च | गरम किया हुआ, कष्टग्रस्त, पीडित / शर्मणे - रघु० 1 / 69 7. ढेर, राशि (अलम्) सहसा | सन्तिः [सन्+क्तिन्] 1. अन्त, विनाश 2. उपहार-तु० सन्ततिमहसां विहन्तुम् -कि० 5 / 17 / सति। सन्तपनम् [सम्+त+ल्युट्] 1. गरम करना, प्रज्वलित सन्तुष्टिः (स्त्री) [सम्+तुष्+क्तिन् पूर्ण संतोष। करना 2. पीडित करना। सन्तोषः [सम्+तुष्+घञ] 1. शान्ति, परितुष्टि, सबर, सन्तप्त (भू० क० कृ०) [सम्+तप्+क्त] 1. गर्म किया सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम्-सुभा० 2. प्रसन्नता, हुआ, प्रज्वलित, लाल-गरम, चमकता हुआ 2. दुःखी खुशी, हर्ष 3. अंगूठा या तर्जनी अंगुली / कष्टग्रस्त, पीडित मेघ०७ / सम... अयस् (नपुं०) | सन्तोषणम् [सम्+तुष+णिच् + ल्युट] प्रसन्न करना, लाल-गरम लोहा,-बक्षस् (नपुं०) जिसे सांस लेने परितृप्त करना, आराम पहुँचाना। में कठिनाई हो। सन्त्यजनम् [सम् +त्य+ल्यट] छोड़ना, त्याग देना। सन्तमस् (नपुं०) सन्तमसम् [सन्ततं तमर प्रा० स०, पक्षे सन्त्रासः [सम्+त्रस्+घञ] डर, भय, आतंक / अच] सर्वव्यापी या विश्वव्यापी अंधकार, घोर अंध- सन्वंशः सम् +दंश्+अच] 1. चिमटा, सन्डासी 2. स्वरों कार--निमज्जयन्संतमसे पराशयम - 0 9498, शि० (या वर्णों) के उच्चारण में दांतों को भींचना 3. एक 9 / 22, भट्टि० 5 / 2 / नरक का नाम / सन्तर्जनम् [समु+तर्ज + ल्युट्] धमकाना, डांटना- | सन्दर्शकः [संदृश+कन्] चिमटा, सिंडासी। डपटना / सन्दर्भः [सम् + +घञ] 1. मिलाकर नत्थी करना, सन्तर्पणम् [सम् +तृप्+ल्युट] 1. सन्तुष्ट करना, संतृप्त ग्रथन करना, क्रम में रखना 2. संग्रह, मिलाप, मिश्रण करना 2. खुश करना, प्रसन्न करना 3. जो खुशी 3. संगति, निरन्तरता, नियमित संबंध, संलग्नता का देने वाला हो 4. एक प्रकार का मिष्टान्न / .--सन्दर्भशद्धि गिराम्-गीत०१ 4. संरचना 5. निबंध, सन्तानः, नम् [सम्+तनु+घञ] 1. बिछाना, विस्तृत साहित्यिक कृति .. रसगंगाधरनामा संदर्भोऽयं चिरं करना, विस्तार, प्रसार, फैलाव 2. नैरन्तयं, अनव- जयतु -- रस०, उत्तर० 4 / च्छिन्न पंक्ति या प्रवाह, परम्परा, अनवच्छिन्नता सन्दर्शनम् [सम् + दृश् + ल्युट] 1. देखना, अवलोकन, अच्छिन्नामलसन्ताना -कु० 6 / 69, संतानवाहीनि नजर डालना 2. ताकना, टकटकी लगा कर देखना दुःखानि . उत्तर० 418 3. परिवार, बंश 4. प्रजा, 3. मिलना, एक दूसरे को देखना 4. दृष्टि, दर्शन, औलाद, बाल-बच्चा-सन्तानार्थाय विधये रघु. निगाह 5. खयाल, ध्यान / श२४, संतानकामाय राज्ञे--२६५, 1852 5. इन्द्र सन्दानम् [सम्+दो+ल्यूट] 1. रस्सी, डोरी 2. श्रृंखला, के स्वर्गस्थित पाँच वृक्षों में से एक / बेड़ी, नः हाथी का गंडस्थल जहां से मद बहता है। सन्तानकः [सन्तान+कन इन्द्र के स्वर्गीय पाँच वृक्षों में | सन्दानित (वि०) [सन्दान+इतच्] 1. बद्ध, कसा हआ से एक वृक्ष या उसका फूल-कु० 6 / 46, 7 / 3, 1 2. बेड़ी में जकड़ा हुआ, शृंखलित। शि०६।६। सन्दानिनी [सन्दानं बन्धनं गवाम् अत्र-सन्दान+इनि-+-डीप्] सन्तानिका [सम्+तन्+ण्वुल+टाप, इत्वम्] 1. फेन गोष्ठ, गोशाला। *. FREERIEEEEEEEEEEEEE For Private and Personal Use Only