SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३४८ गुष्ठ (चुरा० उभ० गुण्ठयति-ते, गुण्ठित) 1. परिवृत्त करना, 'घेरना, लपेटना, परिवेष्टित करना 2. छिपाना, ठक लेना, अव, ढकना, परदा डालना, छिपाना, अवगुण्ठित करना । गुण्ठनम् [ गुण्ठ् + ल्युट् ] 1. छिपाना, ढकना, गोपन 2. मलना — यथा भस्मगुण्ठनम् । गुष्ठित ( वि० ) [ गुण्ठ् + क्त ] 1. घिरा हुआ, ढका हुआ 2. चूर्ण किया हुआ, पीसा हुआ, चुरा किया हुआ । गुण्ड (चुरा० उभ० गुण्डयति, गुण्डित) 1. ढकना, छिपना पीसना, चूरा करना । गुण्डकः [ गुण्ड्+अच् +कन् ] 1. धूल, चूर्ण 2. तेल का बर्तन 3. मन्द मधुर स्वर । गुण्डिकः [ गुण्ड+ठन् ] आटा, भोजन, चूर्ण । गुडित (वि० ) [ गुण्ड + क्त ] 1. चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ 2. धूल से ढका हुआ । गुष्य (वि० ) [ गुण् + यत् ] 1. गुणों से युक्त 2. गिने जाने के योग्य 3. वर्णन किये जाने के योग्य, प्रशस्य 4. गुणा करने के योग्य, वह राशि जिसे गुणा किया जाय । गुस्सः गुच्छः । गुत्सक: [ गुघ्+स+कन् ] 1. गट्ठर, गुच्छ 2. गुलदस्ता 3. चैवर 4. पुस्तक का अनुभाग या अध्याय । गुब् (स्वा० आ० - गोदते, गुदित) क्रीड़ा करना, खेलना । गुवम् [ गुद् +क ] गुदा याज्ञ० ९३ ९ मनु० ५।१३६, ८।२८२ । सम० अङकुर: बवासीर - आवर्त कोष्ठ बद्धता, उद्भषः बवासीर, ओष्ठः गुदा का मुख, - कील:, - कीलकः बवासीर, ग्रहः कब्ज, मलावरोध -पाक: गुदा की सूजन, ( मलद्वार का पक जाना ), - भ्रंश: कांच निकलना, वर्त्मन् ( नपुं०) गुदा, मलद्वार, स्तम्भः कब्ज । गुष् i ( दिवro पर० – गुध्यति, गुधित) लपेटना, ढकना, आवेष्टित करना, ढांपना, ii ( क्या० पर०- गृध्नाति) क्रुद्ध होना; iii (भ्वा० आ० - गोधते ) क्रीड़ा करना, खेलना । गुम्बलः [ गुन् इति शब्देन दल्यतेऽसौ - गुन्+दल् + णिच् + अच् एक छोटे आयताकार ढोल का शब्द । गुन्बा (ब्रा) ल: [ पुं० ] चातक पक्षी । गुप् i ( भ्वा० पर० - गोपायति, गोपायित या गुप्त ) 1. रक्षा करना, बचाना, आत्मरक्षा करना. रखवाली करना - गोपायन्ति कुलस्त्रिय आत्मानम् महा०, जुगोपात्मानमत्रस्तः - रघु० १।२१, जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम् - २१३ भट्टि० १७/८० 2. छिपाना, ढकना - कि वक्षश्चरणानतिव्यतिकरव्याजेन गोपायते - अमरु २२, दे 'गुप्त' | ii ( वा० आ०~- जुगुप्सते - गुप् का सन्नन्त रूप ) 1. तुच्छ समझना, कतराना, घिन करना, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) अरुचि करना, निन्दा करना ( अपा० के साथ, कभी कभी कर्म० के साथ भी) पापाज्जुगुप्से सिद्धा०, किं त्वं मामजुगुप्सिष्ठाः भट्टि० १५११९, याज्ञ० ३।२९६ 2. छिपाना, ढकना ( इस अर्थ में गोपते) iii ( दिवा० पर० - गुप्यति) घबराना, विह्वल हो जाना, iv ( चुरा० उभ० गोपायति - ते ) 1. चमकना 2. बोलना 3. छिपाना (कविरहस्य से उद्धृत निम्नांकित श्लोक धातु के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालता है - गोपायति क्षितिमिमां चतुरब्धि सीमां, पापाज्जुगुप्सत उदारमतिः सदैव, वित्तं न गोपयति यस्तु aritreat वीरो न गुप्यति महत्यपि कार्यंजाते । गुलिः [ गुप् + इलच् ] 1. राजा 2. रक्षक । गुप्त (भू० क० कृ० ) [ गुप् +क्त] 1. प्ररक्षित, संघृत, रक्षित - रघु० १०1६० 2. छिपाया हुआ, ढका हुआ, रहस्यमय - मनु० २।१६०, ७७६८ ३७४ 3. अदृश्य, आँख से ओझल 4. संयुक्त प्तः वैश्यों के नाम के साथ जुड़ने वाली वर्ण : सूचक उपाधि - चन्द्रगुप्तः, समुद्रगुप्तः आदि ( ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रायः 'देव' या 'शर्मन' क्षत्रियों के नामों के साथ 'वर्मन् ' या 'त्रा', वैश्यों के नामों के साथ 'गुप्त', 'भूति' अथवा 'दत्त' और शूद्रों के नामों के साथ 'दास' जोड़ा जाता हे तु०, शर्मा देवश्च विप्रस्य वर्मा त्राता च भूभुजः, भूतित्तरच वैश्यस्य दासः शूद्रश्य कारयेत् ), प्लम् ( अव्य० ) गुप्त रूप से, निजी तौर पर, अपने ढंग परे --प्ता काव्यग्रंथों में वर्णित मुख्य स्त्रीपात्रों में से एक, परकीया नायिका, सुरति छिपाने वाली नायिका- वृत्तसुरतगोपना वर्तिष्यमाणसुरतगोपना और वर्तमानसुरतगोपना दे० रसमं० - २४ । सम० – कथा गुप्त या गोपनीय समाचार, रहस्य, -- गतिः गुप्तचर, जासूस, --चर जासूस, छिप कर घूमने वाला (र) 1. बलराम का विशेषण 2. गुप्तचर, जासूस, दानम् छिपा कर दिया जाने वाला दान, गुप्त उपहार, वेशः बदला हुआ भेस । गुप्तिः (स्त्री० ) [ गुप्+ क्तिन् ] 1. संधारण, प्ररक्षा, गुप्तक: [ गुप्त + कन् ] संधारक, प्ररक्षक । - सर्वस्यास्य तु सर्गस्य गुप्त्यर्थम् - मनु० ११८७, ९४, ९९, याज्ञ० १।१९८२. छिपाना, लुकाना 3. ढकना, म्यान में रखना - असिधारासु कोषगुप्तिः - का० ११ 4. बिल, कन्दरा, कुण्ड, भूगर्भगृह 5. भूमि में बिल खोदना 6. प्ररक्षा का उपाय, दुर्ग, दुर्गप्राचीर 7. कारागार, जेल – सरभस इव गप्तिस्फोटमर्क: करोमि शि० ११।६० 8. नाव का निचला तल 9. रोक, थाम । गुरु, गुम्फ़ (तुदा० पर०- गुफति, गुम्फति, गुफित) गुंथना, गुंफन करना, बांघना, लपेटना- भट्टि० ७११०५ 2. (आलं) लिखना, रचना करना । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy