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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३९ ) (स्त्री०) गर्भवती होना,--स्थ (वि०) 1. गर्भाशय में | गा (वि०) गह+ण्यत् ] निन्दनीय, निन्दा के योग्य, विद्यमान 2. अभ्यन्तर, आन्तरिक, खायः गर्भ गिर | कलंक दिये जाने के योग्य-गीं कुर्यादुभे कुले-मनु० जाना, गर्भ का कच्ची अवस्था में बह जाना-वरं गर्भ- ५।१४९ । सम०-वादिन (वि.) अपशब्द कहने स्राव:--पंच० १, याज्ञ० ३।२० मनु० ५।६६ । वाला, दुर्वचन बोलने वाला। गर्भक: [ गर्भ-कन् ] बालों के बीच धारण की हुई पुष्प- | गल (भ्वा० पर०-गलति, गलित) 1. टपकाना, चुआना, माला,-कम दो रातों और उनके बीच के दिन का | पसीजना,-चूना-जलमिव गलत्युपदिष्टम् ...का० १०३, समय। अच्छकपोलमलगलितैः (अश्रुभिः)-अमरु० २६९१, गर्भग्डः [गर्भस्य अण्ड इव ष० त०] नाभि का बढ़ जाना। भामि० २।२१, रघु० १९।२२ 2. टपकना, या गिरना गर्भवती [गर्भ+मतुप+डीप, बत्वम् ] गभिणी स्त्री। -- शरदमच्छगलद्वसनोपमा-शि० ६४२, ९।७५, गर्भिणी [ गर्भ+इनि+डीप ] गर्भवती स्त्री (चाहे मनुष्य प्रतोदा जगलुः-भट्टि०१४।९९, १७१८७, गलद्धम्मिल्ल की हो या पशु की)--गोगभिणीप्रियनवोलपमालभारि- - गीत० २, रघु०७।१०, मेघ० ४४ 3. ओझल होना, सेव्योपकण्ठविपिनावलयो भवन्ति-मा० ९।२, याज्ञ० अन्तर्धान होना, गुजर जाना, हट जाना---शैशवेन सह १६१०५, मनु० ३।११४ । सम०- अवेक्षणम् दाईपना, गलति गुरुजनस्नेहः- का० २८९, विद्यां प्रमादगलिगर्भवती स्त्री और नवजात बच्चे की सेवा और परि- तामिव चिन्तयामि-चौर०, भत० २१४४, भट्टि. चर्या,-दोहवम् गर्भवती स्त्री की प्रबल इच्छाएँ या रुचि, ५।४३, रघु० ३१७० 4. खाना, निगलना (ग से -व्याकरणम्,-व्याकृतिः (स्त्री०) (आयुर्वेद शास्त्र का संबद्ध)-प्रेर० या चुरा० उभ० (भू० क. कृ० एक विशेष अङ्ग ] गर्भ के विकास का विज्ञान । -गलित)--1. उड़ेलना 2. निथारना, निचोड़ना गभित (वि.) गर्भ+इतच ] गर्भयक्त, भरा हुआ। 3. बहना (आ०), निस्-, टपकना, रिसना, चूना-रघु० गर्भतप्त (वि.) [अलक स० त०] 1. बालक को भांति ५।१७, पर्या-, टपकाना, भट्टि० २१४, वि-1. टप गर्भ में ही संतुष्ट 2. आहार और सन्तान के विषय में काना- विक्रम० ४।१० 2. टपकना, चूना 3. ओझल __ संतुष्ट 3. आलसी। होना, अन्तर्धान होना। गर्मुत् (स्त्री०) [ग--उति, मट ] 1. एक प्रकार का घास | गल: [ गल+अच् ] 1. कंठ, गर्दन-न गरलं गले कस्तू2. एक प्रकार का नरकुल 3. सोना । रीयं- तु० अजागलस्तन:-भर्त० ११६४, अमरु ८८ गर्व (म्वा० पर०-गर्वति, गर्वित) घमंडी या अहंकारी 2. साल वृक्ष की लाख 3. एक प्रकार का वाद्ययन्त्र । होना, (केवल भू० क० कृ० के रूप में प्रयुक्त, जो कि सम० --- अङ्कुरः गले का एक विशेष रोग (सूजन), विशेषण ही समझा जाता है और गर्व से बना है) --उजुवः घोड़े की गर्दन के बाल, अयाल,--ओघः कोऽर्थान्प्राप्य न गवित:--- पंच० १११४६ ।। गले की रसौली,-कम्बल: गाय बैल की गर्दन का नीचे पर्वः [गर्व+घञ 11. घमंड, अहंकार—मा कुरु धनजन- लटकने वाला चमड़ा, झालर,--गण्डः गंडमाला, गले का यौवनगवं हरति निमेषात्काल: सर्वम् - मोह. ४, मुधे- एक रोग जिसमें गांठ सी निकल आती है,—प्रहः, दानी यौवनगर्व वहसि- मालवि०४ 2. अलं० शास्त्र —ग्रहणम्, 1. गला पकड़ना, गला घोटना, श्वासावरोध म ३३ व्यभिचारिभावों में से एक- रूपधनविद्यादि- करना 2. एक प्रकार का रोग 3. मास में कृष्णपक्ष के प्रयुक्तात्मोत्कर्षज्ञानाधोनपरावहेलनं गर्व:-रस०, या कुछ दिन---अर्थात् चौथ, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, सा० द. के अनुसार-गो मदः प्रभावश्रीविद्यासत्कू- त्रयोदशी और तीन इससे आगे के,-चर्मन् (नपुं०) लतादिजः, अवज्ञासविलासाङ्गदर्शनाविनयादिकृत् । अन्ननाली, गला,--- द्वारम् मुंह,--मेखला हार,-वार्त गर्वार: [ गर्व+अट् + अच् ] चौकीदार, द्वारपाल । (वि०) 1. गले की क्रिया में निपुण, खूब खाने और गई (म्वा०, चुरा० आ० (कभी कभी पर० भी)-गर्हते, हजम करने वाला, तन्दुरुस्त, स्वस्थ-दृश्यन्ते चैव तीर्थेषु गर्हयते, गहित 1. कलंक लगाना, निन्दा करना, झिड़की गलवास्तिपस्विन:-पच० ३, अने० पा० 2. पिछलग्ग, देना - विषमां हि दशां प्राप्य देवं गर्ह यते नरः-हि. चाटुकार,--व्रतः मोर,---शुण्डिका उपजिह्वा, ४।३, मनु० ४११९९ 2. दोषी ठहराना, आरोप लगाना --शुण्डी गर्दन की ग्रन्थियों की सूजन,-स्तनी ('गले 3. खेद प्रकट करना, वि--, कलंकित करना, निन्दा स्तनी' भी) बकरी, हस्तः 1. गले से पकड़ना, गला - करना, झिड़की देना-तं विगर्हन्ति साधवः-मनु० ९४६८, घोटना, अर्धचन्द्र या गरदनिया 2. अर्धचन्द्राकार ३।४६, १११५२ ।। बाण, तु० अर्धचन्द्र,--हस्तित (वि०) गले से पकड़ा गहणम्, -णा [ गई + ल्युट्, गह+युच्+टाप् ] निन्दा, | हआ, गर्दनिया देकर निकाला हुआ, गला घोटा हुआ। कलंक, झिड़की, दुर्वचन । गलक: [ गल+बुन् ] 1. कण्ठ, गर्दन 2. एक प्रकार की महाँ [ गर्ह+अ+टाप् ] दुर्वचन, निन्दा। मछली। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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