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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , भुजंगावात मान्यमहिमा / परि० वस्वी / 1195 ) गण. म,म, त,न, न, न, त,ग उदा. क्रौञ्चपदालीचित्रिततीरा या (म, म, त, न, न, न, स, ग) (8.14) मदकलखगकुलकलकल रुचिरा उदा० साधं कान्तेनैकान्तेऽसौ विकचकमलमधु सुरभि पिबन्ती फुल्लसरोजश्रेणिविलासा कामक्रीडाकृतस्फीतप्रमदसरसतरमलघु रसन्ती।। _ मधुमुदितमधुपरदरभसकरी। कालिन्दीये पधारण्ये पवनपतनपरितरलपरागे / फेनविलासप्रोज्ज्वलहासा कंसाराते पश्य स्वेच्छं सरभसगतिरिह विलसति हंसी॥ ललितलहरिभरपुलकितसुतनुः तेइस वर्णों के चरण वाले वृत्त पश्य हरेऽसौ कस्य न चेतो हरति तरलगतिरहिमकिरणजा / / (विकृति) अद्वितनया छब्बीस वर्गों के चरण वाले वृत्त परि० नजभजभाजभौ लघुगरू बधस्तू गदितेयमद्रितनया। (उत्कृति) गण. न, ज, भ, ज, भ, ज, भ, ल, ग (11.12) उदा० खातरशौर्यपावकशिखापतङ्गनिभमग्नदृप्तदनुजो परि० वस्वीशाश्वश्छेदोपेतं ममतननयुगरसलगर्भुजङ्ग जलधिसुताविलासवसतिः सतां गतिरशेषमान्यमहिमा। विजृम्भितम् / भुवनहितावतारचतुरश्चराचरधरोऽवतीर्ण इह हि गण० म, म, त, न, न, न, र, स, ल, ग (8, 11.7) क्षितिवलयेऽस्ति कंसशमनस्तवेति तमवोचदद्रितनया / / उदा० हेलोदञ्चन्यञ्चत्पादप्रकटविकटचौबीस वर्गों के चरण वाले वृत्त नटनभरो रणकरतालक(संकृति) श्चारुप्रेन्चूडाबर्हः श्रुतितरलनव किसलयस्तरङ्गितहारधृक् / परि० भूतमुनीनर्यतिरिह भतनाः त्रस्यन्नागस्त्रीभिर्भक्त्या मुकुस्भो भनयाश्च यदि भवति तन्वी। लितकरकमलयुगं कृतस्तुतिरच्युतः गण. म, त, न, स, भ, भ, न, य (5.7.12) पायाद्वश्छिन्दन् कालिन्दीलदकृतउदा. माधव मुग्धर्मधुकरविरुतः निजवसतिबृहद्भुजङ्गविजृम्भितम् // कोकिलकूजितमलयसमीरः कम्पमुपेता मलयजसलिल: जिन वृत्तों के प्रत्येक चरण में सताईस या प्लावनतोऽप्यविगततनुदाहा। इससे अधिक वर्ण होते हैं उनका एक सामान्य नाम पापलाशविरचितशयना दंडक है। इस वृत्त की जाति के चरण में वर्णों देहजसंज्वरभरपरिदून की संख्या अधिक से अधिक 999 बताई जाती निश्वसती सा मुहुरतिपरुष है। प्रत्येक चरण में सबसे पहले दो नगण या "ध्यानलये तव निवसति तन्वी॥ छः लघु अक्षर होते हैं, शेष या तो रगण होते पच्चीस वर्षों के चरण वाले वृत्त है या यगण या सभी चरण सगण होते हैं। दणक (अतिकृति) की जिन श्रेणियों का बहुधा उल्लेख मिलता है क्रौञ्चपदा वे हैं---चण्डवृष्टिप्रयात, प्रचितक, मत्तमातंगपरि० कौञ्चपदा म्मो स्भो ननना लीलाकर, सिंहविक्रान्त, कुसुमस्तवक, अनङ्गशेखर, गाविषुशरवसुभुनिविरतिरिह भवेत् / / और संग्राम आदि / अन्तिम प्रकार के दण्डक का गण. भ, म, स, भ, न, न, न, न, ग (5.5.8.7) उदाहरण मा० 5 / 23 है। तन्वी भनुभाग (6) अर्घसमवृत्त गण. न, न, र, ल, ग (विषम चरण) (1) अपरवक्त्र ('वैतालीय' भी कभी कभी) न, ज, ज, र, (सम चरण) परि० अयुजि ननरला गुरुः समे उदा० स्फुटसुमधुरवेणुगीतिभितबपरवात्रमिदं मजो जरो। स्तमपरवक्त्रमवेत्य माधवम् / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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