________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व) रत्या सं ति सरल विभातम [ विभा--क्त | प्रभात, पौ फटना। विभीषक (वि.)। विशेषेण भीषयते-वि-भी+णिच विभावः | विभू+घञ | मन या शरीर को किसी +ण्वल एक आगमः ] डरावना, त्रास या भय देने विशेष स्थिति में विकसित करने वाली दशा, रस- वाला। भाव की उदबोधक स्थिति, तीन मुख्य भावों में से एक | विभीषिका [ वि+भी+णिच् + वल+टाप, षुकागमः, (दूसरे दो है-अनुभाव तथा व्यभिचारीभाव) रत्या- इत्वं च] 1. त्रास 2. डराने के साधन, हौवा द्युबोधका लोके विभावाः काव्यनाट्ययो:--सा०६० (चिड़ियों को डराने के लिए फूस का पुतला, जु जू) 61, (इसके मुख्य अवान्तर भेद हे-आलंबन और -यदि ते संति संत्वेव केयमन्या विभीषिका-उत्तर० उद्दीपक-दे० आलंबन) 2. मित्र, परिचित / 4129 / विभावनम्, ना [वि+भू+-णिच् + ल्युट,] 1. स्पष्ट | विभु (बि०) (स्त्री०-भु,-म्बो) [ वि+भू+हु] 1. प्रत्यक्षज्ञान, या निश्चय, विवेक, निर्णय 2. विचार ताकतवर, शक्तिशाली 2. प्रमुख, सर्वोपरि 3. योग्य, विमर्श, गवेषण, परीक्षा 3. प्रत्यय, कल्पना,-ना समर्थ (तुमुन्नत के साथ)--(धनुः) पूरयितुं भवति आलं में) एक अलंकार जिसमें बिना कारण के कार्यों विभवः शिखरमणिरुचः-कि० 5 / 43 4. आत्मसंयमी, का होना वणित होता है—क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि धीर, जितेन्द्रिय-कमपरमवशं न विप्रकुर्य विभफलव्यक्तिविभावना-काव्य० 10 / मपि तं यदमी स्पृशंति भावा:-कु० 6 / 95 5. विभावरी [ विभा -|-वनिप् + डीप्, र आदेशः] 1. रात (न्या० में) नित्य, सर्वव्यापक, सर्वगत,-भुः 1. अपर्वणि ग्रहकलदुमंडला विभावरी कथय कथं भवि- अन्तरिक्ष 2. आकाश 3. काल 4. आत्मा 5.स्वामी, ष्यति--मालवि० 4115, 5 / 7, कु० 5 / 44 2. हल्दी शासक, प्रभ, राजा 6. सर्वोपरि शासक-भग० 3. कुटनी 4. वेश्या 5. वामाचारिणी स्त्री 6. मुखरा 5 / 14, 10 // 12 7. सेवक 8. ब्रह्मा 1. शिव-कु० स्त्री, बातुनी। 7 / 31 10 विष्णु / विभावित (भू० क. कृ०) [ विभूणिच + क्त ]] विभुग्न (वि.) [वि+भुज्+क्त] वक्र, झुका हुआ, टेढ़ा, 1. प्रकटीकृत, स्पष्ट रूप से दर्शनीय किया हुआ 2. कुटिल। ज्ञात, जाना हुआ, निश्चित किया हआ 3. देखा हुआ, | विभूतिः (स्त्री०) [वि+भू+क्तिन्] 1. ताकत, शक्ति, सोचा हुआ 4. निर्णीत, विवेचन किया हुआ 5. अनु- बड़प्पन--शि०१४।५, कु० 2 / 61 2. समृद्धि, कल्याण मित, संकेतित 6. सिद्ध, सर्वसम्मत / सम० --एकदेश 3. प्रतिष्ठा, उच्च पद 4. घन, प्राचर्य, महिमा, (वि०) 'जिसके साथ एक भाग का पता लगाया गया कान्ति अहो राजाधिराजमंत्रिणो विभूतिः- मुद्रा अर्थात् जो (विवादास्पद विषय के) एक भाग के 3, रघु० 8 / 36 5. दौलत, धन--- रघु० 4 / 19, संबंध में अपराधी पाया गया-विभावितैकदेशेन देयं 676, 17 / 43 6. अतिमानव शक्ति (इसमें आठ यदभियज्यते--- विक्रम० 4 / 17 / / शक्तियां सम्मिलित है अणिमन, लघिमन, प्राप्ति, विभाषा [ वि-भाष+अ+टाप | 1. ईप्सित बस्तु, प्राकाम्यम्, महिमन्, ईशिता, वशिता और कामाविकल्प 2. नियम की वैकल्पिकता। वसायिता)-कु०२।११ 7. कंडों की राख / विभासा [वि. भास्+अ+टाप् / प्रकाश, कान्ति, विभूषणम् [वि+भूष--ल्युट्] अलंकार, सजावट,-विशेषतः आभा। सर्वविदा समाजे विभूषणं मोनमपण्डितानाम् -- भर्त० विभिन्न (भू० के० कृ०) [ वि--भिद्+क्त ] 1. तोड़ा 17, रघु० 16180 / हुआ, विभक्त किया हुआ, खण्ड खण्ड किया हुआ | विभूषा विभूष-+अ+टाप अलंकार, सजावट,-संपेदे बींधा हुआ, घायल 3. दूर हटाया हुआ, भगाया हुआ, ! श्रमसलिलोद्गमो विभूषा-कि० 7.5, रघु० 4 / 54 तितर बितर किया हैरान, परेशान, व्याकुल, 2. प्रकाश, कान्ति 3. सौंदर्य, आभा / 5. इधर उधर डोला हुआ 6. निराश किया हुआ | विभूषित (भू० क. कृ.) [वि भूष+णिच्+क्त] 7. विविध, नानाप्रकार के 8. मिश्रित, मिलाया हुआ, | अलंकृत, सुशोभित, सुभूषित। चितकबरा, रंगबिरंगा - विभिन्नवर्णा गरुडाग्रजेन | विभत (भू० क० कृ०) [वि- भक्तसंभाला गया, सूर्यस्य रथ्या: परितः स्फुरत्या-शि० 4114, (दे० सहारा दिया गया, संधारित या संपोषित / वि पूर्वक भिद),-जः शिव का नाम / विभ्रंशः [वि+भ्रश्+घञ] 1. गिरना, टूट पड़ना 2. विभीतः, तम्, विभीतकः, कम,। [विशेषेण भीतः, | ह्रास, क्षय, बर्बादी 3. चट्टान / विभीतको विभीता विभीत-- कन्, विभी- विभ्रंशित (भू० क० कृ०) [वि+ भ्रंश्+क्त] 1. बहकाया तक+डीप, विभीत+टाप् ] एक वृक्ष का नाम, गया, फुसलाया गया 2. वंचित, विरहित / बहेडा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़। / विभ्रमः [ विभ्रम् +घञ्] 1. इधर उधर टहलना, 119 For Private and Personal Use Only