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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चचिण् (चि)+3] 1. चन्द्रमा 2. कछआ 3. चोर | चकास्ति नीलनलिनश्रीमोचनं लोचनम-गीत०१०, (अध्य०) निम्नांकित,अर्थो को बतलाने वाला अव्यय . चकासतं चारुचमूरुचर्मणा-शि० ११८, भट्टि० ३.१७ -1. संयोजन (और, भी, तथा, इसके अतिरिक्त) 2. (आलं.) प्रसन्न होना, समझ होना-वितन्वति -शब्द या उक्तियों को जोड़ने के लिए प्रयुक्त किया क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन करवश्चकासते-कि. जाता है। (इस अर्थ में यह उस प्रत्येक शब्द या उक्ति १।१७, प्रेर० चमकाना, प्रकाशित करना-शि० ३१६, के साथ प्रयुक्त होता है जिसे मिलाता है या इस प्रकार वि० चमकना, उज्ज्वल होना। मिले हुए अन्तिम शब्द या उक्ति के पश्चात् रक्खा चकित (वि.)[चक्-+-क्त] डर के कारण)1. थरथराता हुआ, जाता है, परन्तु यह वाक्य के आरम्भ में कभी प्रयक्त कांपता हुआ, भय, साध्वस-मेघ० २७ 2. डराया नहीं किया जाता है) • मनो निष्ठाशून्यं भ्रमति च हुआ, प्रकम्पित, भौचक्का--व्याधानुसारचकिता किमप्यालिखति च--मा० १३१, तो गुरुगुरुपत्नी च हरिणीव यासि--मृच्छ० १११७ अमरु ४६, मेष०१३ ---रघु० ११५७, मनु० ११६४, ३५. कुलेन कान्त्या | 3. भयभीत, भीरु, सशंक-चकितविलोकितसकल वयसा नवेन गर्णश्च तैस्तैविनयप्रधानः-रघु० दिशा---गीत० २, पौलस्त्यचकितेश्वराः (दिशः) ६।७९, मनु० १२१०५, ३।११६ 2. वियोजन (परन्तु, -~-रघु० १०७३, - तम् (अव्य०) भय से, भौचक्का तथापि, तो भी)-शान्तमिदमाश्रमपदं स्फरति च बाहः होकर, संत्रस्त होकर, विस्मय के साथ-चकितमुपैति -श० १११६ 3. निश्चय, निर्धारण (निस्सन्देह, निश्चय तथापि पार्श्वमस्य -- मालवि० ११११, सभयचकितम् ही, ठीक, बिलकुल, सर्वथा)-- अतीतः पन्थानं तव च --गीत० ५, शा०४।४। महिमा वाजमनसयो: -गण, ते तु यावंत एवाजीचकोरः[चक+ओरन] पक्षीविशेष, तीतर की जाति का तावांश्च ददृशे स तै:- रघु० १२१४५ 4. शर्त (यदि पक्षी (कहते हैं कि चन्द्रमा की किरणें ही इसका -चेत्) जीवितुं वेच्छसे (= इच्छसे चेत्) मूढ हेतुं मे आहार है)-ज्योत्स्नापानमदालसेन वपुषा मत्ताश्चकोरांगदतः शृणु-महा०, लोभश्चास्ति (अस्ति चेत् ) गुणेन । गना:---विद्धशा०, ११११, इतश्चकोराक्षि विलोकयेति किम्-भ० २१४५, अने० पा० 5. यह प्रायः पादपूर्ति --रघु० ६५९, ७४२५, स्फुरदधरसीधवे तव वदनके लिए भी प्रयुक्त होता है-भीमः पार्थस्तथैव च चन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरम्-गीत० १०।। -~ण. (कोशकार उपर्य क्त अर्थों के साथ 'च' के चक्रम् क्रियते अनेन, कृ धार्थे क नि० द्वित्वम्-ताराम निम्नांकित अर्थ और बतलाते हैं जो कि संयोजन या -गाड़ी का पहिया-चक्रवत्परिवर्तन्ते दूःखानि च समुच्चय के सामान्य अर्थों के अन्तर्गत है:-1. अन्वाचय सुखानि च हि०१।१७३ 2. कुम्हार का चाक 3. एक -अर्थात् मुख्य तथ्य को किसी गौण तथ्य से मिलाना तीक्ष्ण गोल अस्त्र, चक्र (विष्णु का) 4. तेल पेरने का -भो भिक्षामट गां चानय, दे०, अन्वाचय 2. समाहार कोल्ह 5. वृत्त, मण्डल-कलापचक्रे निवेक्षिताननम अर्थात् समुच्चयार्थक संबंध- यथा पाणी च पादौ च ----ऋतु० २।१४ 6. दल, समुच्चय, संग्रह-शि० पाणिपादम् 3. इतरेतरयोग - अर्थात पारस्परिक २०११६ 7. राज्य, एकाधिपत्य 8.प्रांत, जिला, ग्रामसंयोग-यथा प्लक्षश्च न्यग्रोधश्च प्लक्षन्यग्रोधी समूह 9. वर्तुलाकार सैनिक व्यूह 10. देह के भीतर के 4. समुच्चय---- अर्थात् सब मिलाकर यथा पचति च 'षट्चक्र', मूलाधार आदि 11. कालचक्र, वर्ष समह पठति च); दो उक्तियों के साथ च की बार२ आवृत्ति 12. क्षितिज 13. सेना, समूह 14. ग्रन्थ का अध्याय होती है 1. 'एक ओर-दूसरी ओर' 'यद्यपि तथापि या अनुभाग 15. भँवर 16. नदी का मोड़,---: अर्थ -विरोध को प्रकट करने के लिए न सुलभा 1. हंस, चकवा 2. समूह, दल, वर्ग। सम----अङ्गः सकलेन्दुमुखी च सा किमपि चेदमनङ्ग विचेष्टितम् 1. टेढ़ी गर्दन वाला हंस 2. गाड़ी 3. चकवा, -विक्रम० २१९, ४।३, रघु० १६७ या 2. दो बातों ---अट: 1. बाजीगर, सपेरा 2. दुष्ट, धूर्त, ठग का एक साथ होना या अव्यवहित घटना को प्रकट 3. स्वर्णमुद्रा, दीनार,-आकार,--आकृति (वि०) करने के लिए (ज्योंही-त्योंही)- ते च प्रापुरुदन्वन्तं वर्तुलाकार, गोल,---आयुधः विष्णु का विशेषण, बुबुधे चादिपूरुषः-रघु०-१०१६, ३।४०, कु. ३।५८, - आवर्तः भवर वालो या चक्करदार गति,---आखः, ६६, श०६७, मा०९।३९ । --आह्वयः चकवा-चक्राह्व ग्रामकुक्कुटम्-मनु० ५। चक (भ्वा० उभ०-चकति--ते, चकित) 1: तृप्त होना, -१२,-ईश्वर: 1. 'चक्रस्वामी' विष्णु का नाम 2. जिले सन्तुष्ट होना 2. प्रतिरोध करना, मुकाबला करना। का सर्वोच्च अधिकारी, उपजीविन् (पुं०) तेलो, घकास् (अदा० पर० (बिरलतः-आ०) चकास्ति--स्ते, -----कारकम् 1. नाखन, 2. एक प्रकार का सुगन्ध चकासित) 1. चमकना, उज्ज्वल होना --- गण्डश्चण्डि | द्रव्य,-गण्डुः गावदुम तक्रिया,-गतिः (स्त्री०) चक्रा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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