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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a ( 1027 ) शूवा [ शूद्र+टाप् ] शूद्र वर्ण की स्त्री। सम.--भार्यः तिरस्करणीय योद्धा, महावीर. ६।३२,-मानम् जिसकी पत्नी शूद्रवर्ण की हो,-बेबनम् शुद्रस्त्री से अभिमान, अहंकार, ..सेन (10 ब० ब०) मथुरा के विवाह करना,-सुतः (किसी भी जाति के पिता द्वारा) | निकट एक देश या उस देश के अधिवासी रघु० शूद्र माता का पुत्र / 6 / 45 / शूद्राणी, शूद्री [शूद्र+डीप पक्षे आनुक ] शूद्र की पत्नी। शूरणः [ शूर्+ल्युट ] सूरन नामक एक खाद्यमूल, कंद / शून (भू० क० कृ०) [श्वि+क्त] 1. सूजा हुआ 2. वर्धित | शूरंमन्य (वि.) [आत्मानं शूरं मन्यते-शुर+मन+खश्, उगा हुआ, समृद्ध / मुम् ] जो व्यक्ति अपने आपको पराक्रमी समझता है / शूना [शिव अधिकरणे क्त, संप्र० दीर्घश्च ] 1. मदु ताल, पम् [श+पः ऊश्च नित् ] छाज,-पः दो द्रोण का घंटी, उपजिह्विका 2. बूचड़खाना 3. कोई भी वस्तु तोल / सम-कर्णः हाथी,-णखा, खो (नखा (जैसे कि घर गृहस्थो का कुछ सामान) जिससे जीव के स्थान पर) जिसके नख छाज जैसे लंबे चौड़े हों, हिंसा होती हो (यह गिनती में पांच हैं-चूल्हा, चक्को रावण की बहन का नाम (वह राम के सौन्दर्य पर बुहारी, ओखली और जलपात्र)-पञ्च शूना गृहस्थस्य मुग्ध होकर उनसे विवाह करने की प्रार्थना करने चुल्लो पेषण्युपस्करः / कण्डणी चोदकुम्भश्च वध्यते लगी। परन्तु राम ने कहा कि मेरे साथ तो मेरी यास्तु वाहयन् -मनु० 3 / 68 / पत्नी है, अच्छा हो कि तुम लक्ष्मण के पास जाओ। शून्य (वि०) [शूनार्य प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् परन्तु जब लक्ष्मण ने भी उसकी प्रार्थना न मानी यत्] 1. रिक्त, खाली 2. सूना (हृदय, तथा चितवन तो वह वापिस राम के पास आई। इस बात पर आदि के लिए भी प्रयुक्त) गमनमलसं शून्या दृष्टि: सीता को हंसी आ गई। फलत: शूर्पणखा ने अपने ...मा० 1217 दे. नी० शुन्यहृदय 3. अविद्यमान आपको अत्यधिक अपमानित समझकर बदला लेने की 4. एकान्त, निर्जन, विविक्त, वीरान-शून्येषु शरा न के इच्छा सेभीषण रूप धारण किया और सीता को खाने काव्य० 7, भट्टि० 69, उत्तर० 3 / 38, मा०, के लिए दौड़ी। परन्तु उसी समय लक्ष्मण ने उसके 9 / 20 5. खिन्न, उदास, उत्साहहीन -शन्या जगाम कान और नाक काटली और उसका रूप विगाड़ दिया भवनाभिमुखी कथंचित् ---कु० 3 / 75, कि० 17139 --रघु०१२।३२ .-४०),---वातः छाज को हिलाने 6. नितान्त रहित, वञ्चित, विहीन, अभावयुक्त | से उत्पन्न हवा ---श्रुतिः, हाथी। (करण के साथ या समास में) -अंगुलीयकशून्या मे | शी [शपं+कीष] 1. छोटा छाज या पहा 2. शूर्पणखा / अंगलि:-श. 5, दया ज्ञान आदि 7. तटस्थ शर्मः, --शूमिः (पुं०, स्त्री०) मिका, शर्मों [ सुष्ठ मिः 8. निदोष 9. अर्थहीन, निरर्थक शि० 11 / 4 अस्ति अस्याः , पक्षे अच्; शूमि+कन्+टाप, शूमि 10. विवस्त्र, नंगा,-पम् 1. निर्वातता, रिक्त, खोख- | ङीष् ] 1. लोहे की बनी प्रतिमा 2. धन, निहाई। लापन 2. आकाश, अन्तरिक्ष 3. सिफर, बिन्दु 4. अस्ति- शूल (म्वा० पर० शूलति) 1. बीमार होना 2. कोलाहल त्वहीनता, (पूर्ण, असीम) अविद्यमानता-दूषण - करना 3. गड़बड़ करना, विगाड़ना / शुन्य बिन्दवः नं० 121 1. सम० मध्यः खोखला शूल:,-लम् [ शूल क] 1. पैना या नोकदार हथियार, नरकुल,-मनस्-मनस्क (वि.) अन्यमनस्क, भग्नचेता नुकीला कांटा, नेजा, बर्ची, भाला 2. शिव का त्रिशूल -मुख, बदन (वि०) हक्का-बक्का, उदास, किंकर्तव्य 3. लोहे की सलाख (जिस पर मांस भूना जाता है) विमढ़, वादः वह दार्शनिक सिद्धांत जो (जीव ईश्वर शूले संस्कृतं शूल्यम्-तु० अयः शूल 4.एक स्थूण जिसके आदि) किसी भी पदार्थ को सत्ता स्वीकार नहीं करता, महारे अपराधियों को सूली दी जाती थी-(बिभ्रत्) वौद्ध दर्शन, वादिन् (पुं०) 1. नास्तिक 2. बौद्ध, स्कन्धेन शूलं हृदयेन शोकम् -मृच्छ० 10 / 21, कु. -हृदय (वि.) 1. अन्यमनस्क विक्रम०२, श०४ 5 / 73 5. तीव्र पीड़ा 6. उदरशूल 7. गठिया, जोड़ों 2. खुले दिल वाला, जो दूसरों पर किसी प्रकार का में दर्द 8. मृत्यु 1. झण्डा, ध्वज (शूलाकृ लोहे की संदेह न करें। सलाख पर रख कर भूनना)। सम० - अपम् सलाख शम्या [शून्य +टाप् ] 1. खोखला नरकुल 2. बांश स्त्री। की नोक, प्रन्थिः (स्त्री०) एक प्रकार का घास, शूर (चुरा० उभ० शूरयति-ते) 1. शौर्य के कार्य करना, / दूब, घातनम् लोहे का बुरादा, लोहे का चूरा जो शक्तिशाली होना 2. प्रबल उद्योग करना। लोहे को रेतने से निकलता है, न (वि०) शामक शूर (वि०) [ शूर अच् ] बहादुर, वीर, पराक्रमी, ताक- औषधि, वेदनाहर, - धन्वन्, -धर, -पारिन्,-धक, तवर-शून्येषु शूरा न के - काव्य०७, रः 1. मूरमा, पाणि, भूत् (पुं०) शिव के विशेषण :-अधिगतयोद्धा, पराक्रमी 2. सिंह 3. सूअर 4. सूर्य 5. साल धवलिम्नः शूलपाणेरभिख्याम्-शि० 4 / 65, रघु० का पेड़ 6. कृष्ण का दादा, एक यादव / सम०-फीटः 2238, शत्रुः एरण्ड का पौधा,--स्थ (वि०) सूली For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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