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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निम्नांकित पद्य धातु के विभिन्न रूपों का चित्रण करता है वणक्ति वृजिनः संग वृक्ते च वृषलैः सह, वर्जत्यनार्जवोपेतैः स वर्जयति दुर्जनः, अप... 1. नष्ट करना 2. समाप्त करना 3. छोड़ना, त्याग देना रघु० 17 / 19, कि० 1129 4. उडेलना, फेंकना --- शि०१३।३७ आ -, 1. झुकना, मुड़ना, - आवयं शाखाः सदयं च यासां-रघु० 1619, 13 / 17, आवयं दृष्टी:-- मेघ० 46 2. प्रस्तुत करना, देना रघु० 1162, 67, 8 / 26, कु० 5 / 34 3. परास्त करना, जीतना, परि--, टाल जाना, कतराना, वि --1. कतराना, टाल जाना 2. विरहित करना, वञ्चित करना। वृजनः [वजे: क्य:] 1. बाल 2. धुंधराले बाल,--नम 1. पाप 2. संकट 3. आकाश 4. घेर, बाड़ा, विशेषतः एक गोचरभूमि। वृजिन [वजेः इनज कित् च] 1. कुटिल, झुका हुआ, वक्र 2. दुष्ट, पापी, न: 1. बाल, धुंघराले बाल 2. दुष्ट पुरुष–वणक्ति वजिनः संगम--कवि०,--नम् 1. पाप, सर्व ज्ञानप्लवेनैव वजिनं संतरिष्यसि -भग० 4136, रघु० 14157 2. पीडा, दुःख (इस अर्थ __ में पुं० भी माना जाता है)। वृण् (तना० उभ० वृणोति, वृणुते) खाना, उपभोग करना वृत् / (दिवा० आ० वृत्यते) 1. चुनना, पसंद करना---तु. वावृत 2. वितरण करना, बाँटना। ii (चुरा० उभ० बर्तयति--ते) चमकना। iii (भ्वा० आ० वर्तते, परन्तु लुङ्, लट्, लुट तथा लुङ् लकार में एवं सन्नंत में पर० भी, वृत्त) 1. होना, विद्यमान होना, डटे रहना, मौजूद होना, जीते रहना, टिके रहना इदं में मनसि वर्तते,-श, 1, अत्र विषयेऽस्माकं महत्कृतहलं वर्तते --पंच० 1, मरालकुलनायकः कथय रे कथं वर्तताम---भामि० 13, केवल संयोजक के रूप में बहुधा प्रयुक्त, अतीत्य हरितो हरीश्च वर्तन्ते वाजिनः-श०१ 2. किसी विशेष दशा या परिस्थिति में होना-पश्चिमे वयसि वर्तमानस्य-का०, इसी प्रकार दुःखे, हर्षे, विषादे-वर्तते 3. होना, घटित होना, आ पड़ना, सामने आना-सीता देव्याः किं वृत्तमित्यस्ति काचित्प्रवृत्तिः-उत्तर० 2, सायं संप्रति वर्तते पथिक रे स्थानान्तरं गम्यताम् सुभा०, 'अब सायंकाल हो गया है" ' शृङ्गार०६, भग 5 / 26 4. चलते रहना, प्रगतिशील रहना--सर्वथा वर्तते यज्ञः-मनु० 2 / 15, निर्व्याजमिज्या ववृते-भट्टि. 2137, रघु० 12 / 56 5. संधारित या संपोषित होना, जीवित रहना, जीते रहना (आलं. से भी) --फलमूलवारिभिर्वर्तमाना-का० 172, मनु० 3177 6. मुड़ना, लुढकते रहना, चक्कर खाना-यावदियं / 122 लोकयात्रा वर्तते-वेणी०३ 7. अपने आप को कार्य में लगाना, काम में लगना, आरम्भ करना (अधिक के साथ)-- भगवान् काश्यपः शाश्वते ब्रह्मणि वर्तते -श०१, इतरो दहने स्वकर्मणां बवृते ज्ञानमयेन वह्निना -- रघु० 8 / 20, मनु०८।३४६, भग० 3 / 22: 8. कर्तव्य निभाना, व्यवहार करना, आचरण करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास करना (प्रायः अधि० के साथ या स्वतंत्र रूप से)-- आर्योऽस्मिन् विनयेन वर्तताम् - उत्तर० 6, कविनिसर्गसौहृदेन भरतेषु वर्तमानः -- मा० 1, औदासीन्येन वर्तितुम्-रघु० 10 // 25, मनु० 7 / 104, 8 / 173, 11130 1. कार्य करना, विशेष प्रकार का आचरण करना-साध्वीं वृत्ति वर्तते- 'वह सत्कार्य में प्रवृत्त होता है' 10. अर्थ रखना, अभिप्राय बतलाना, अर्थ में प्रयुक्त होना -पुष्यसमीपस्थे चन्द्रमसि पुष्यशब्दो वर्तते-पा०४। 2 / 3 पर महाभाष्य (प्रायः कोशों में इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है) 11. प्रवृत्त करना, प्रेरित करना ----(संप्र० के साथ)-पूत्रेण किं फलं यो वै पितदुःखाय वर्तते 12. सहारा लेना, आश्रित होना-प्रेर० (वर्तयति--ते 1. प्रवृत्त कराना 2. घुमाना, चक्कर दिलाना श० 7 / 6 3. (अस्त्र-शस्त्र) घुमाना, पैतरे बदलना, घुमा कर फेंकना-भट्टि० 15 / 37 4. कार्य करना, अभ्यास करना, प्रदर्शित करना--मा० 9 / 33 5. संपन्न करना, निबटाना, ध्यान देना, नज़र डालना सोऽधिकारमभिकः कुलोचितं काश्चन स्वयमवर्तयत्समा:--रघु० 19 / 4, महावी० 3123 6. बिताना, (समय आदि) गजारना 7. जीवन निर्वाह करना जीते रहना - कि० 2018, रघु० 12020 8. वर्णन करना, बयान करना-इच्छा. (विवृत्सति, दिवतिषते), अति---, 1. परे जाना, आगे बढ़ जाना, मा० 126 2. आगे निकल जाना, सर्वोत्कृष्ट होना कि० 3 / 40, शि० 14159 3. उल्लंघन करता, बाहर कदम रखना, अतिक्रमण करना-शि०६।१९ 4. उपेक्षा करना, अवहेलना करना--मनु० 5 / 16 5. चोट पहुंचाना, क्षतिग्रस्त करना, नाराज करना 6. पराजित करना, वशीभूत करना 7. (समय का) बिताना 8. विलंब करना, देरी करना-मनु० 2 / 38, अनु-, 1. अनुसरण करना, अनुरूप होना, अनुकूल कार्य करना -प्रभुचित्तमेव हि जनोऽनुवर्तते-शि० 15 / 41, मा० 32 2. अनुरंजन करना, दूसरे की इच्छा के अनुसार अपने आपको बनाना, दूसरे के द्वारा पथप्रदर्शन प्राप्त किया जाना 3. आज्ञा मानना + मिलना-जुलना, नकल करना 5. प्रसन्न करना, खुश करना 6. (व्या० में) किसी पूर्ववर्ती सूत्र से आवृत्ति प्राप्त करना (प्रेर०) 1, मुड़ना 2. अनुगमन For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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