________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिवेन्दुबिंब दूरीकरोति न कथं विदुषां वरेण्यः-भामि० वर्चस्कः [ वर्चस्+कन् ] 1. उजाला, कान्ति 2. वीर्य 2 / 158, तत्सवितुर्वरेण्यं भगों देवस्य धीमहि ऋक् ऊ विष्ठा। 3 / 32 / 10, रघु० 6 / 84, मट्टि० 1 // 4, कु० 7 / 90, वर्चस्मिन् (वि.) [ वर्चस्+विनि ] 1. शक्तिशाली, -ज्यम् जाफ़रान, केसर / __ओजस्वी, सक्रिय 2. देदीप्यमान, उज्ज्वल, तेजस्वी। बरोटः |वराणि श्रेष्ठानि उटानि दलानि यस्य ब० स०] वर्जः [ वृज्+घ ] छोड़ देना, परित्याग / मरुवे का पौधा,-टम् मरुए का फूल / वर्जनम् [व+ल्युट् ] 1. छोड़ना, त्याग, तिलांजलि वरोलः [वृ+ओलच्] बर्र, भिड़। 2. वैराग्य 3. अपवाद, बहिष्करण 4. चोट, क्षति, वर्करः [वृक्+अरन्] 1. भेड़ यो बकरी का बच्चा मेमना हत्या। 2. बकरा 3. कोई पालतू जानवर का बच्चा 4. वर्जम् (अव्य०) निकाल कर, बाहर करके, सिवाय आमोद, क्रीडाविहार, मनोरंजन / सभ० कर्करः (समास के अन्त में) गौतमीवर्जमितरा निष्कांताः चमड़े की रस्सी या तस्मा जिससे बकरी या भेड़ श० 4, कु. 7172 / / बांधी जाय / | वजित (भू० क. कृ.) [ वृज+क्त ] 1. छोड़ा हुमा, वर्कराटः [वकर परिहासम् अटति गच्छति - वर्कर+अट् / अलगाया हुआ 2. परियत्यक्त, उत्सष्ट 3. बहिकत +अण] 1. तिरछी नजर, कटाक्ष 2. स्त्री के कुचों। . वंचित, विरहित, हीन जैसा कि 'गुणवजित' में। पर उसके प्रेमी के नखक्षतों के चिह्न। वज्यं (वि.) विज+ण्यत् 1 1. टाले जाने के योग्य, विदवर्कुटः (पु०) कोल, अर्गला, चटखनी / काये जाने के योग्य 2. बहिष्कृत किये जाने के योग्य वर्गः विज्+घञ्] 1. श्रेणी, प्रभाग, समूह, दल, समाज, या छोड़े जाने के योग्य 3. छोड़कर, सिवाय के,। जाति, संग्रह (एक समान वस्तुओं का), न्यषेधि वर्ण (चुरा० उभ० वर्णयति-ते, वर्णित) 1. रंग करना, शेषोऽप्यनुयायिवर्ग:- रघु० 2 / 4, 1117, इसी प्रकार रोगन करना, रंगना -- यथा हि भरता वर्णेर्वर्णयन्त्यापौरवर्गः, नक्षत्रवर्ग: आदि 2. टोली, पक्ष, कु० 7173 त्मनस्तनुम् --सुभा० 2. बयान करना, वर्णन करना, 3. प्रवर्ग 4. एक स्थान पर वर्गीकृत शब्दसमूह यथा व्याख्या करना, लिखना, चित्रित करना, अंकित मनुष्यवर्गः, वनस्पतिवर्गः आदि 5. वर्णमाला में व्यंजनों करना, निरूपण करना-- यणितं जयदेवेन हरेरिवं का समूह 6. अनुभाग, अध्याय, या पुस्तक का परि- प्रणतेन - गीत. 3, कि० 5 / 103. प्रशंसा करना, च्छेद 7. विशेषरूप से ऋग्वेद के अध्यायान्तर्गत अव- स्तुति करना 4. फैलाना, विस्तृत करना 5. रोशनी माग, सुक्त 8. घात-दो समान अंकों का गुणनफल करना, उप-बयान करना, वर्णन करना निस्9. सामर्थ्य / सम०--अन्त्यम, - उत्तमम् पांचों वगों में 1. ध्यान से देखना, सावधानता पूर्वक अंकित करना से प्रत्येक का अन्तिम वर्ण अर्थात् अनुनासिक अक्षर, 2. देखना, निहारना। -घनः वर्ग का धनफल,-पदम्, - मूलम् वर्गमूल, वर्णः [ वर्ण +घञ्] 1. रंग, रोगन-अतः शुबस्त्वमपि वह अंक जिसके घात से को वर्गीक बने,-वर्गः वर्ग | भविता वर्णमात्रेण कृष्णः-मेघ० 49 2. रोगन, रंग, का वर्ग। दे० वर्ण (1), 3. रंग, रूप, सौन्दर्य, वर्गणा (स्त्री०) गुणन, घात / त्वय्यादातुं जलमवनते शाङ्गिणो वर्णचौरे-मेष. 46, वर्गशस (अव्य०) [वर्ग---शस समूहों में श्रेणीवार / रघु० 8 / 42 4. मनुष्य श्रेणी, जनजाति या कबीला, वर्गीय (वि.) [वर्ग+छ] किसो श्रेणी या प्रवर्ग से संबद्ध, / जाति (मुख्य रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शव ___ ---यः सहपाठी। वर्ण के लोग) वर्णानामानुपूर्येण-वाति न कश्चिवर्य (वि.) [वर्गे भवः यत् एक ही श्रेणी का,-ग्यः द्वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि मजते--श० 5 / 10, रघु. एक ही श्रेणी या दल से संबद्ध, सहयोगी, सहपाठी, 5 / 19 5. श्रेणी, वंश, जनजाति, प्रकार, जाति जैसा सहाध्यायी (शिक्षा में) या यस्य युज्यते भूमिका तो कि 'सवर्णम् अक्षरम्' में 6. (क) अक्षर, वर्ण, ध्वनि खलु भावेन तथैव सर्वे वर्याः पाठिताः मा०१, शि. में वर्णविचारक्षमादृष्टिः - विक्रम० 5, (ख) शब्द, मात्रा-सा. द. 9 7. ख्याति, कीर्ति, प्रसिद्धि, वर्च (भ्वा० आ० वर्चते) चमकना, उज्ज्वल या आभा- विश्रुति-राजा प्रजारंजनलब्धवर्ण:---रघु० 621 युक्त होना। 8. प्रशंसा 9. वेशभूषा, सजावट 10. बाहरी छवि, वर्चस् (नपुं०) [वर्च+असुन ] 1. वीर्य, बल, शक्ति रूप, आकृति 11. चादर, दुपट्टा 12. ढकने के लिए 2. प्रकाश, कान्ति, उजाला, आभा 3. रूपः, आकृति, ढक्कन, चपनी 13. किसी विषय का क्रमगीत में, शकल 4. विष्ठा, मल / सम-प्रहः कोष्ठ बद्धता, गीतक्रम-उपात्तवर्णे चरिते पिनाकिनेः कु० 5 / 56, कब्ज। - 'गीतिख्यात' अर्थात् गान का विषय बना हुआ For Private and Personal Use Only