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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५० ) दर्वरीकः [दु+या+ईकन्] 1. मेढक 2. बादल 3. एक | दर्शक (वि०) [ दृश् +ण्वुल ] 1. देखने वाला, अनुष्ठान प्रकार का वाद्ययन्त्र,-कम एक वाद्ययन्त्र । करने वाला 2. दिखलाने वाला, बतलाने वाला-कु० बर्दुरः [द+यङ्+उरच्] 1. मेंढक-पङ्कक्लिन्नमुखाः पिवन्ति ६।५२,--कः 1. प्रदर्शन करने वाला 2. द्वारपाल, पहरे सलिलं धाराहताः दर्दुरा:-मृच्छ० ५।१४ 2. बादल दार 3. कुशल व्यक्ति, किसी कला में प्रवीण व्यक्ति । 3. बन्सरी जैसा एक वाद्ययन्त्र 4. पहाड़ 5. दक्षिण में दर्शनम् [दृश् + ल्युट्] देखना, दर्शन करना, निरीक्षण करना स्थित एक पहाड़ का नाम ('मलय' सम्मिलित)-स्त रघु० ३६४, 2. जानना, समझना, प्रत्यक्ष जानना, नाविव दिशस्तस्याः शैलौ मलयदर्दरौ-रघु० ४१५१ । . परिदर्शन करना-रघु० ८७२ 3. दृष्टि, दर्शन वर्तुः (ः) (स्त्री०) [दरिद्रा+उ नि० साधुः] दाद, एक -चिन्ताजडं दर्शनम्-श० ४५ 4. आँख 5. निरीक्षण, प्रकार का चर्मरोग। परीक्षा 6. दिखलाना, प्रदर्शन करना, प्रदर्शनी अर्पः [दुप्+घ, अच् वा] 1. घमण्ड, अहङ्कार, घृष्टता, 7. दिखलाई देना 8. भेंट करना, दर्शन करना, दर्शन अभिमान---मनु०८।२१३, भग०१६।४. 2. उतावला- -देवदर्शनम् 9. (अतः) किसी के सम्मुख जाना, पन 3. गर्व, दम्भ 4. रोष, विक्षोभ 5. गर्मी 6. कस्तुरी। श्रोता-मारीचस्ते दर्शनं वितरति श०७---राजदर्शनं सम-आध्मात (वि.) अभिमान से फूला हुआ, मे कारय-आदि 10, रंग, पहल, दर्शन-भग० ११।१०, -छिद्,-हर (वि०) घमण्ड तोड़ने वाला, नीचा रघु० ३१५७ 11. दर्शन देना (न्यायालय में) उपदिखाने वाला। स्थित होना---मनु० ८।१५८, १६०, 12. स्वप्न, वर्पकः [दृप्+णिच्+ण्वुल्] प्रम के देवता, कामदेव । ख्वाब 13. विवेक, समझ, बुद्धि 14. निर्णय, अवबोध वर्पणः दिप-णिच+ल्यट] मंह देखने का शीशा, आयना 15. धार्मिक ज्ञान 16. शास्त्र में व्याख्यात कोई नियम --लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति--छं० या सिद्धान्त 17. दर्शनशास्त्र-जैसा कि 'सर्वदर्शनसंग्रह' १०९, कु०७।२६, रघु० १०॥१०, १६॥३७,—णम् में 18. दर्पण 19. गुण, व्यवहार की खूबी 20. यज्ञ । 1. आँख 2. जलना, प्रज्वलित करना। सम०--ईप्सु (वि०) दर्शन करने का अभिलाषी,-पथ वपित, बपिन् (वि.) (स्त्री०-णी) [ दृप्+क्त, दृप्+ दृष्टि या दर्शन का परास, क्षितिज,-प्रतिभूः उपस्थित णिनि] घमण्डी, अहंकारी, अभिमानी। होने के लिए ज़मानत या जामिन ।। वर्भः [+भ] एक प्रकार का पवित्र (कुशा) घास जो दर्शनीय (वि.) [दश-अनीयर 1 1. देखन के योग्य, यज्ञानुष्ठानों के अवसर पर प्रयुक्त किया जाता है निरीक्षण के योग्य, प्रत्यक्षज्ञान प्राप्त करने के योग्य --श० ११७, रघु० १९।३१, मनु० २।४३, ३।२०८, 2. देखने के लिये उचित, सुहावना, मनोहर, सुन्दर ४१३६ । सम०-अड्कुरः कुश घास का नुकीला पत्ता 3. न्यायालय में उपस्थित होने के योग्य । --श० २।१२,-----अनूपः दर्भ घास से परिपूर्ण दलदली दर्शयित (पुं०) [दृश्+णिच् +तृच ] 1. दौवारिक, प्रवेभूमि,-आह्वयः मुंज घास । शक, द्वारपाल 2. मार्ग प्रदर्शक । वर्भटम [ + अटन् ] निजी कमरा, आराम करने का दर्शित (वि.) [दश+णिचक्त | 1. दिखाया गया, प्रदएकान्त कमरा। शित, प्रकटीकृत, प्रदर्शित की गई 2. देखा गया, समझ वर्वः [+] 1. एक उत्पातकारी अनिष्टकर जन्तु लिया गया 3. व्याख्यात, सिद्ध 4. प्रतीयमान । 2. राक्षस, पिशाच 3. चमचा । दल (भ्वा० पर०-दलति, दलित) 1. फट पड़ना, टुकड़ें२ दवंट: [ दर्व+अट् + अच् शक० पररूपम् ] 1. गाँव का होता, फट जाना, तरेड़ आजांना-दलति हृदयं गाढोद्वेगं पहरेदार, पुलिस अधिकारी 2. द्वारपाल । द्विधा न तु भिद्यते-उत्तर० ३।३१, अपि ग्रावा रोदिति पर्वरीकः [ दुईकन्, नि० साधुः ] 1. इन्द्र का विशेषण अपि दलति वजस्य हृदयम्-१२२८, मा० ९।१२, २०, 2. एक प्रकार का वाद्य यन्त्र 3. हवा, वायु । दलति न सा हृदि विरहभरेण...गीत०७, अमरु ३८ दविका [दर्वि+क+टाप् कड़छी, चमचा । 2. प्रसार करना, विकसित होना, (पुष्प की भांति) दी (वि०) (स्त्री०) [द+विन्, वा ङीष् ] 1. कड़छी, खिलना-दलन्नवनीलोत्पल-उत्तर० १, स्वच्छंन्दं दल चम्मच 2. साँप का फैलाया हुआ फण-शि० २०१४२ । दरविन्द ते मरन्दं विन्दन्तो विदधतु गुञ्जितं मिलिन्दाः सम-करः साँप, सर्प। -भामि० १११५, शि०६।२३, कि० १०३९,-प्रेर० द दर्शः [दृश्+घञ्] 1. दृष्टि, दृश्य, दर्शन (प्रायः समास (दा) लयति 1. फोड़ना, फाड़ना 2. काटना, बांटना, में) दुर्दर्शः, प्रियदर्शः 2. अमावस्या 3. पाक्षिक यज्ञ, टुकड़ २ करना,-उद्,-(प्रेर०) फाड़ डालना, (वि) अमावस्या के दिन होने वाला यज्ञीय कृत्य । सम० 1. तोड़ना, खण्ड-खण्ड करना, तरेड़ आ जाना-त्वदि---पः देवता, यामिनी अमावस्या की रात्रि,-विपद् | पुभिर्व्यदलिष्यदसावपि-नै० ४।८८ 2. खोदना । (पुं०) चाँद । | दलः, लम् [ दल+अच् ] 1. टुकड़ा, अंश, भाग, खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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