________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्वः [पार्षद महति अण्.] 1. साथी, सहचर 2. टहलुआ। --भामि० 2 / 3 4. हद, सीमा 5. श्रेणी, पंक्ति, अनुचरवर्ग 3. सभा में उपस्थित, दर्शक, सभासद् / -~-विपुल पुलकपाली-गीत० 6, शि० 3151 6. पार्वचः [ पर्षद्+ज्य ] सभासद्, सदस्य / धब्बा, चिह्न 7. बांध, पुल 8. गोद, अंक 9. आयतापाणिः (0, स्त्री०) [पृष्+नि, नि० वृद्धिः ] 1. एड़ी | कार तालाब 10. अध्ययनकाल में गुरु द्वारा छात्र का ---उजयत्वंगुलि पाष्णिभागान् --कु० 1111, पाष्णि भरण-पोषण 11. जूं 12. प्रशंसा, स्तुति 13. वह स्त्री प्रहार--का० 119 2. सेना की पिछाड़ी 3. पिछाड़ी, / जिसके दाढ़ी-मूंछे हों। पिछला भाग-शुद्धपाष्णिरयान्वितः रघु० 4 / 26, | पालिका [ पालि-|-कन्+टाप् ] 1. कान का सिरा 2. तल'जिसकी पिछाड़ी शत्ररहित हो गई हैं' 4. ठोकर वार या किसी छुरी आदि काटने वाले उपकरण की (स्त्री.) 1. व्यभिचारिणी स्त्री 2. कुन्ती का विशे- तेज धार 3. पनीर या मक्खन आदि काटने की छुरी / षण। सम०--ग्रहः अनुयायी,- पहणम् शत्रु की पीठ पालित (भू० क. कृ.) पाल- क्त 1.प्ररक्षित, संरक्षित, पर आक्रमण करना,--ग्राहः पृष्ठवर्ती शत्रु 2. पृष्ठवर्ती आरक्षित 2. पालन किया हुआ, पूरा किया हुआ। सेना का सेनापति 3. मित्रराजा जो किसी राजा की | पालित्यम [पलित+व्या ] वद्धावस्था के कारण बालों सहायता करे-मनु०७।२०७,--घातः ठोकर---कि० | की सफेदी, घवलता। १७४५०,-त्रम् पृष्ठरक्षक, पीछे रहने वाली सेना की | पाल्वल (वि.) (स्त्री-लो) पल्वल-!- अण ] पोखर में टुकड़ी, प्रारक्षित,-बाहः बाह्यवर्ती घोड़ा। उत्पन्न, तलैया से प्रात्त / पालः [पाल+अच् ] 1. प्ररक्षक, अभिभावक, संरक्षक | पावकः [पू+ण्वुल ] 1. आग-... पावकस्य महिमा स गण्यते -यथा गोपाल, वृष्णिपाल आदि 2. ग्वाला---विवादः कक्षवज्ज्वलति सागरेऽपि यः--रघ० 11175, 3 / 9, स्वामिपालयोः -- मनु० 8 / 5, 229, 240 3. राजा 16687 2. अग्नि देवता 3. बिजली की आग 4. पीकदान / सम०-धनः कुकुरमुत्ता, साँप की 4. चित्रक वृक्ष 5. तीन की संख्या / सम० ---आत्मजः छतरी। कार्तिकेय का विशेषण 2. सुदर्शन नामक ऋषि / पालक: [ पाल+वल ] 1. अभिभावक, प्ररक्षक 2. राज | पावकिः [ पावक-इन ] कार्तिकेय का विशेषण / कुमार, राजा, शासक, प्रभु 3. साईस, घोड़े का रख | पावन (वि.) (स्त्री०--नी) [पू-+-णिच् - ल्युट / वाला 4. घोड़ा 5. चित्रक वक्ष 6. पालक पिता। 1 निर्मल करने वाला, पाप से मुक्त करने वाला, शुद्ध पालकाप्यः (0) 1. एक ऋषि करेण का पुत्र, (इन्होंने ही करने वाला, पवित्र बनाने वाला-पादास्तामभितो सर्वप्रथम हस्तिविज्ञान की शिक्षा दी) 2. हस्तिविज्ञान / निषण्णहरिणा गौरीगुरोः पावना:-- श० 6 / 17, रघु० पालंकः [पाल+किप्=पाल+अंक+घञ ] 1. पालक 15 / 101 19 / 53, भग० 1815, मनु० 2 / 26, याज्ञ. का साग 2. बाजपक्षी, की एक गंधद्रव्य / 3 / 307 2. पवित्र, पुनीत, विशुद्ध, परिष्कृत-कु० पालंक्यः,---क्या [ पालंक+व्यञ, स्त्रियाँ टाप् च ] एक ५।१७,-न: 1. आग 2. गंध द्रव्य 3. सिद्ध 4. व्यास सुगंध द्रव्य / कवि,--1. नम पवित्री करण, विशुद्धीकरण--पदनखपालन (वि०) [पाल+ल्यूट ] रक्षा करने वाला, संरक्षण नीरजनितजनपावन-गीत०१ 2. तप 3. जल देने वाला, कि० ११९,-नम् 1. प्ररक्षण, संरक्षण, 4. गोबर 5. संप्रदायसूचक तिलक / सम०-ध्वनि: पालना, पोसना, लालन-पालन करना-लब्ध रघु० शंखनाद / 19 / 3, इसी प्रकार प्रजा क्षिति° आदि 2. बनाये | पावनी [पावन+डीप् ] 1. पवित्र तुलसी 2. गाय 3. गंगा रखना, अनुपालन करना, (वत, प्रतिज्ञा, आदि को) | नदी। पूरा करना 3. ताजी ब्याई हुई गौ का दूध, खीस। | पाबमानी [पचमानम् अधिकृत्य प्रवृत्तम्-पवमान+अण पालयित (पु.) [पाल+णिच्+तृच ] प्ररक्षक, संरक्षक, डोप | विशिष्ट वैदिक ऋचाओं का विशेषण / परवरिश करने वाला-रघु० 2069 / पावरः (.) पासे का वह पहल जिस पर 'दो' की संख्या पालाश (वि.) (स्त्री०-शी) [ पलाश+अण्] 1. ठाक अंकित हो; पासे को विशेष ढंग से फेकना,- पावर का, डाक से उत्पन्न 2. ढाक को लकड़ी का बना पतनाच्च शोषित शरीर:----मृच्छ० 2 / 8 / / हुमा, भनु० 2 / 45 3. हरा,-शः हरा रंग। सम० पाशः [ पश्यते बध्यतेऽनेन, पश करणे घा | 1. डोरी, -- ---वणः मगध देश का विशेषण / श्रृंखला, बेड़ी फंदा-पादाकृष्टव्रततिवलयासंगसंजातपालिः, -को (स्त्री०) [पाल+इन् ] कान का सिरा / पाशः - श० 1132, बाहुपाशेन व्यापादिता... मृच्छ. पालि:-ली [स्त्री.] [पाल इन् | 1. कान का सिरा 9, रघु०६।८४ 2. जाल, खटकेदार पिंजड़ा, या फंदा --श्रवणपालि:-गीत. 3 2. किनारा, गोट, मगजी 3. बन्धन जो (वरुण के द्वारा) शस्त्र की भांति -भर्तृ. 3255 3. तेज सिरा, पार या नोक | प्रयुक्त होता है-कु. 221 4. पांसा-रघु० For Private and Personal Use Only