________________ प्रथम प्रजापनापद ] [ 89 - [100 प्र.] ऋद्धिप्राप्त आर्य कौन-कौन से हैं ? [100 उ.] ऋद्धिप्राप्त आर्य छह प्रकार के हैं। वे इस प्रकार हैं-१. अर्हन्त (तीर्थकर), 2. चक्रवर्ती, 3. बलदेव, 4. वासुदेव, 5. चारण और 6. विद्याधर / यह हुई ऋद्धिप्राप्त पार्यों की प्ररूपणा। 101. से किं तं प्रणिढिपत्तारिया ? प्रणिढिपत्तारिया णवविहा पण्णत्ता। तं जहा-खेत्तारिया 1 जातिमारिया 2 कुलारिया 3 कम्मारिया 4 सिप्पारिया 5 भासारिया 6 णाणारिया 7 दंसणारिया 8 चरितारिया है। [101 प्र. ऋद्धि-अप्राप्त आर्य किस प्रकार के हैं ? [101 उ.] ऋद्धि-अप्राप्त आर्य नौ प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-(१) क्षेत्रार्य, (2) जात्यार्य, (3) कुलार्य, (4) कार्य, (5) शिल्पार्य, (6) भाषार्य, (7) ज्ञानार्य, (8) दर्शनार्य और (9) चारित्रार्य / 102. से कि तं खेत्तारिया ? खेत्तारिया श्रद्धछन्वीसतिविहा पण्णत्ता / तं जहा रायगिह मगह 1, चंपा अंगा 2, तह तामलित्ति' वंगा य 3 / कंचणपुरं कलिगा 4, बाणारसि चेव कासी य 5 // 112 // साएय कोसला 6, गयपुरं च कुरु 7, सोरियं कुसट्टा य 8 / कंपिल्लं पंचाला 6, अहिछत्ता जंगला चेव 10 // 113 // बारवती य सुरट्ठा 11, मिहिल विदेहा य 12, वच्छ कोसंबी 13 / गंदिपुरं संडिल्ला 14, भद्दिलपुरमेव मलया य 15 // 114 // वइराड मच्छ 16, वरणा अच्छा 17, तह मत्तियावइ दसण्णा 18 / 1. 'तालित्ती' शब्द के संस्कृत में दो रूपान्तर होते हैं--तामलिप्ती और ताम्रलिप्ती। प्रज्ञापना मलय. वत्ति, तथा प्रवचनसारोद्धार में प्रथम रूपान्तर माना गया है, जब कि भगवती आदि की टीकाओं में 'ताम्रलिप्ती' शब्द को ही प्रचलित माना है। जो हो, वर्तमान में यह 'तामलक' नाम से पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है।-सं. प्रवचनसारोद्वार की गाथा 1589 से 1592 तक की वृत्ति 13 में प्रार्यक्षेत्र से पाठक्रम तथा इसी के समान वृत्ति मिलती है—'वत्सदेशः कोशाम्बी नगरी 13 नन्दिपुरं नगरं शाण्डिल्यो शाण्डिल्या वा देशः 14 भदिलपुर नगरं मलयादेशः 15 वैराटो देशः वत्सा राजधानी, अन्ये तु 'वत्सादेशो बैराटं पुरं नगरम्' इत्याहुः 16 वरुणानगरं अच्छादेशः, अन्ये तु 'वरुणेषु अच्छापुरी' इत्याहुः 17 तथा मृत्तिकावती नगरी दशार्णो देशः 18 शुक्तिमती नगरी चेदयो देशः 19 वीतभयं नगरं सिन्धुसौवीरा जनपदः 20 मथुरा नगरी सूरसेनाख्यो देशः 21 पापा नगरी भङ्गयो देशः 22 मासपुरी नगरी वदेशः 23 तथा श्रावस्ती नगरी कुणाला देशः 24 / ' –पत्रांक 446 / 2 वैराट् नगर (वर्तमान में वैराठ) अलवर के पास है, जहाँ प्राचीनकाल में पाण्डवों का अज्ञातवास रहा है। यह वत्सदेश में न होकर मत्स्यदेश में है। क्योंकि वच्छ कोसांबी पाठ पहले पा चुका है। अतः मूलपाठ में यह 'वच्छ' न होकर मच्छ शब्द होना चाहिए। अन्यथा 'बहराड वच्छ पाठ होने से वत्सदेश नाम के दो देश होने का भ्रम हो जाएगा।-सं.। --देखिये, जैन साहित्य का बहद् इतिहास, भा-२, पृ. 91 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org