Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [ 87 गंगोलिया 4 हयकण्णा 5 गयकण्णा 6 गोकण्णा 7 सक्कुलिकण्णा 8 प्रायंसमुहा 6 मेंढमहा 10 प्रयोमुहा 11 गोमुहा 12 पासमुहा 13 हस्थिमुहा 14 सीहमुहा 15 वग्घमुहा 16 आसकण्णा 17 सोहकण्णा 18 प्रकण्णा 16 कण्णपाउरणा 20 उक्कामुहा 21 मेहमुहा 22 विज्जुमुहा 23 विज्जुदंता 24 घणदंता 25 लट्ठदंता 26 गूढदंता 27 सुद्धदंता 28 / से तं अंतरदीवगा। [65 प्र.] अन्तरद्वीपक किस प्रकार के होते हैं ? [65 उ.] अन्तरद्वीपक अट्ठाईस प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-(१) एकोरुक, (2) प्राभासिक, (3) वैषाणिक, (3) नांगोलिक, (5) हयकर्ण, (6) गजकर्ण, (7) गोकर्ण, (8) शकुलिकर्ण, (E) आदर्शमुख, (10) मेण्ढमुख, (11) अयोमुख, (12) गोमुख, (13) अश्वमुख, (14) हस्तिमुख, (15) सिंहमुख, (16) व्याघ्रमुख, (17) अश्वकर्ण, (18) सिंहकर्ण (हरिकर्ण), (16) अकर्ण, (20) कर्णप्रावरण, (21) उल्कामुख, (22) मेघमुख, (23) विद्युन्मुख, (24) विद्युदन्त, (25) घनदन्त, (26) लष्टदन्त, (27) गूढ़दन्त और (28) शुद्धदन्त / यह अन्तरद्वीपकों की प्ररूपणा हुई। 66. से कि तं प्रकम्मभूमगा? अकम्मभूमगा तीसतिविहा पन्नत्ता / तं जहा-पंचहि हेमवहिं पंचहिं हिरण्णवहि पंचहि हरिवाहि पंचहि रम्मगवासेहिं पंचहिं देवकुरूहि पंचहि उत्तरकुरूहि / से तं अकम्मभूमगा। [66 प्र.] अकर्मभूमक मनुष्य कौन-से हैं ? [66 उ.] अकर्मभूमक मनुष्य तीस प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-पांच हैमवत क्षेत्रों में, पांच हैरग्यवत क्षेत्रों में, पांच हरिवर्ष क्षेत्रों में, पांच रम्यकवर्ष क्षेत्रों में, पांच देवकुरुक्षेत्रों में और पांच उत्तरकुरुक्षेत्रों में / इस प्रकार यह प्रकर्मभूमक मनुष्य की प्ररूपणा हुई / 67. [1] से कि तं कम्मभूमया ? कम्मभूमया पण्णरसविहा पण्णत्ता। तं जहा---पंचहि भरहेहि पंचहि एरवतेहिं पंचहि महाविदेहेहि। [97-1 प्र.] कर्मभूमक मनुष्य किस प्रकार के हैं ? [97-1 उ.] कर्मभूमक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं--पांच भरत क्षेत्रों में, पांच ऐरवतक्षेत्रों में और पांच महाविदेहक्षेत्रों में। [2] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता तं जहा---प्रारिया य मिलक्खू य / [67-2] वे (पन्द्रह प्रकार के कर्मभूमक मनुष्य) संक्षेप में दो प्रकार के हैं-आर्य और म्लेच्छ / 68. से कि तं मिलक्खू ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org