________________ 86] / प्रज्ञापनासूत्र [92 प्र.] मनुष्य किस (कितने) प्रकार के होते हैं ? [62 उ.] मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार सम्मूच्छिम मनुष्य और गर्भज मनुष्य / 63. से कि तं सम्मुच्छिममणुस्सा ? कहि णं भंते ! सम्मच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति ? गोयमा! अंतोमणुस्सखेत्ते पणुतालीसाए जोयणसयसहस्सेसु अड्डाइज्जेसु दीव-समुद्देस पन्नरससु कम्मभूमोसु तोसाए प्रकम्मभूमीसु छप्पण्णाए अंतरदीवएसु गम्भवक्कंतियमणुस्साणं चेव उच्चारेसु वा 1 पासवणेसु वा 2 खेलेसु वा 3 सिंघाणेसु वा 4 वतेसु वा 5 पित्तेसु वा 6 पूएसु वा 7 सोणिएसु वा 8 सुक्केसु वा 6 सुक्कपोग्गलपरिसाडेसु वा 10 विगतजीवकलेवरेसु वा 11 थी-पुरिससंजोएसु वा 12 '[गोमणिद्धमणेमु वा 13] णगरणिद्धमणेसु वा 14 सव्वेसु चेव असुइएसु ठाणेसु, एत्थ णं समुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति / अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेतीए प्रोगाहणाए असण्णी मिच्छट्ठिी सव्वाहि पज्जत्तोहि अपज्जत्तगा अंतोमुत्ताउया चेव कालं करेंति / से तं सम्मुच्छिममणुस्सा। [63 प्र.] सम्मूच्छिम मनुष्य कैसे होते हैं ?, भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? [63 उ.] गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर, पैंतालीस लाख योजन विस्तृत द्वीप-समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तीपों में गर्भज मनुष्यों के--(१) उच्चारों (विष्ठानों-मलों) में, (2) पेशाबों (मूत्रों) में, (3) कफों में, (4) सिंधाण-नाक के मैलों (लीट) में, (5) वमनों में, (6) पित्तों में, (7) मवादों में, (8) रक्तों में, (9) शुक्रों-वीर्यों में, (10) पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में, (11) मरे हुए जीवों के कलेवरों (लाशों) में, (12) स्त्री-पुरुष के संयोगों में या (13) ग्राम की गटरों या मोरियों में अथवा (14) नगर की गटरों-मोरियों में, अथवा सभी अशुचि (अपवित्र-गंदे) स्थानों में इन सभी स्थानों में सम्मूच्छिम मनुष्य (माता-पिता के संयोग के बिना स्वतः) उत्पन्न होते हैं / इन सम्मूच्छिम मनुष्यों की अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है। ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि एवं सभी पर्याप्तियों से अपर्याप्त होते हैं / ये अन्तमुहूर्त की आयु भोग कर मर जाते हैं / यह सम्मूच्छिम मनुष्यों की प्ररूपणा हुई। 64. से कि तं गम्भवक्कंतियमणुस्सा ? गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता। तं जहा-कम्मभूमगा 1 अकम्मभूमगा 2 अंतरदीवगा। [14 प्र.] गर्भज मनुष्य किस प्रकार के होते हैं ? [64 उ.] गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार-१. कर्मभूमिक, 9. अकर्मभूमिक और 3. अन्तरद्वीपक / 65. से कि तं अंतरदीवगा ? अंतरदीवया अट्ठावीसतिविहा पण्णत्ता। तं जहा-एगोरुया 1 आभासिया 2 वेसाणिया 3 1. “गामणिद्धमणेसु वा 13" पाठ मलगिरि नन्दी टीका के उद्धरण में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org