Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद [85 ध्वनित हो जाता है कि तीस अकर्मभूमियों में प्रासालिका की उत्पत्ति नहीं होती तथा 15 कर्मभूमियों एवं महाविदेहों में भी इसकी सर्वत्र उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु चक्रवर्ती, बलदेव आदि के स्कन्धावारों (सैनिक छावनियों) में वह उत्पन्न होता है / इनके अतिरिक्त ग्राम-निवेश से लेकर राजधानी-निवेश तक में से किसी में भी इसकी उत्पत्ति होती है; और वह भी जब चक्रवर्ती आदि के स्कन्धावारों या ग्रामादि-निवेशों का विनाश होने वाला हो। स्कन्धावारों या निवेशों के विनाशकाल में उनके नीचे की भूमि को फाड़कर उसमें से वह प्रासालिका निकलती है। यही प्रासालिका की उत्पत्ति की प्ररूपणा है / प्रासालिका की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट बारह योजन की होती है / उसका विस्तार और मोटाई अवगाहना के अनुरूप होती है / प्रासालिका असंज्ञी, मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी होता है / इसकी आयु सिर्फ अन्तर्मुहूर्त भर की होती है।' महोरगों का स्वरूप और स्थान-महोरग एक अंगुल को अवगाहना से लेकर एक हजार योजन तक की अवगाहना वाले होते हैं। ये स्थल में उत्पन्न होकर भी जल में भी संचार करते हैं, स्थल में भी: क्योंकि इनका स्वभाव ही ऐसा है। महोरग इस मनुष्यक्षेत्र में नहीं होते, किन्तु इससे बाहर के द्वीपों और समुद्रों में, तथा समुद्रों में भी पर्वत, देवनगरी आदि स्थलों में उत्पन्न होते हैं। अत्यन्त स्थूल होने के कारण ये जल में उत्पन्न नहीं होते। इसी कारण ये मनुष्यक्षेत्र में नहीं दिखाई देते। मूलपाठ में उक्त लक्षण वाले दस अंगुल आदि की अवगाहना वाले जो उरःपरिसर्प हों, उन्हें महोरग समझना चाहिए / 'दर्वोकर' और 'मकली' शब्दों का अर्थ-दर्वी कहते हैं-कडधी या चाट को. उसकी तरह दर्वी यानी फणा करने वाला दर्वीकर है / मुकुली अर्थात्-फन उठाने की शक्ति से विकल, जो बिना फन का हो। ग्राम प्रादि के विशेष अर्थ-ग्राम-बाड़ से घिरी हुई बस्ती / नगर-जहाँ अठारह प्रकार के कर न लगते हों। निगम-बहुत-से वणिजनों के निवास वाली बस्ती / खेट-खेड़ा, धूल के परकोटे से घिरी हुई बस्ती / कर्बट-छोटे-से प्राकार से वेष्टित बस्ती / मडम्ब-जिसके आसपास ढाई कोस तक दूसरी बस्ती न हो। द्रोणमुख-जिसमें प्रायः जलमार्ग से ही आवागमन हो या बन्दरगाह / पट्टणजहाँ घोड़ा, गाड़ी या नौका से पहुँचा जाए अथवा व्यापार की मंडी, व्यापारिक केन्द्र / प्राकरस्वर्णादि की खान / आश्रम-तापसजनों का निवासस्थान / संबाध-धान्यसुरक्षा के लिए कृषकों द्वारा निमित दुर्गम भूमिगत स्थान या यात्रिकों के पड़ाव का स्थान / राजधानी-राज्य का शासक जहाँ रहता हो। समग्र मनुष्य जीवों की प्रज्ञापना 62. से कि तं मणुस्सा? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता / तं जहा–सम्मुच्छिममणुस्सा य गम्भवक्कंतियमणुस्सा य / 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 47-48 2. वही मलय. वृत्ति, पत्रांक 48 3. वही मलय. वृत्ति, पत्रांक 47 4. वही मलय, वृत्ति, पत्रांक 47-48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org