Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ŚRĪ NEMICANDRA SŪRI'S ANANTANĀHA JINA CARIYAM Jain I L.D. Series 119 General Editor Jitendra B. Shah nslo Edited By: Pt. Rupendra Kumar Pagariya L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY, AHMEDABAD Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिनेमिचंदसूरि विरड्यं सिरिअनंतनाहजिणचरियं सम्पादक रूपेन्द्रकुमार पगारिया भारतीय लपन विवि CASH हमदाबाद प्रकाशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद- ३८० ००९ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ŚRĪ NEMICANDRA SŪRI'S ANANTANĀHA JINA CARIYAM L. D. Series 119 General Editor Jitendra B. Shah Edited by : Pt. Rupendra Kumar Pagariya into Nurule L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY, AHMEDABAD ME CHETOTT Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANANTANĀHA JIŅA CARIYAM Editor Pt. Rupendra Kumar Pagariya Published by L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY, AHMEDABAD. First Edition : APRIL, 1998 ISBN 81-85857-00-8 Price : Rs. 400-00 Typesetting MAC GRAPHIC AHMEDABAD. Printer CHANDRICA PRINTERY AHMEDABAD. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE The life of the Tirthankaras enjoys a considerable reverence and has great importance in Jainism. It is said that just as holy waters are capable of cleansing all the impurities of the body, in the same way the reading of the life of Tirthankaras washes away all the sins accumulated since long time. The Anantanatha-Jina-Carita is a biographical work narrating such a holy life-story of Jina Anantanatha, the 14th Tirthankara. It is composed in Prakrit. This work has been edited on the basis of the only available single manuscript stored by the Samvegi Upāśraya Jñana Bhandara in Ahmedabad. Acarya Nemicandrasuri who is the author of this work, flourished in the 13th century. He has made the work interesting by delineating many incidental stories, which are essentially meant to exemplify lucidly as well as elegantly various tenets of Jainism. This work also vividly reflects the contemporary socio-religious and cultural life. Pt. Rupendrakumar Pagariya has taken great pains and in editing this work. He is a scholar with a long standing in the field on editing and research in Prakrit Literature. He has penned an exhaustive introduction in Hindi to enable the reader to have glimpses of the various facets of the work. We are thankful to Pt. Rupendrakumar Pagariya for the efforts he has put up in bringing to light this unpublished work. We believe that this publication will prove useful for the students and scholars interested in the field of Prakrit literature. Jitendra B. Shah Director Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिपरिचय अनन्तनाथ जिन चरित की केवल एक ही हस्तलिखित कागज की प्रति मिलती । यह प्रति संवेगी उपाश्रयज्ञानभण्डार अहमदाबाद में है । इसका क्रमांक १८० । इस प्रति में कुलपत्र २०६ हैं । इसकी लम्बाई ३३ सें. मी. एवं चौड़ाई १२ .मी. है । प्रत्येक पत्र में १५ लाईने हैं । ग्रंथ प्रमाण १२००० श्लोक है । प्रति के अन्त में ग्रन्थकार की एवं ग्रन्थ लिखाने वाले की प्रशस्ति है । ग्रन्थ लिखानेवाले महानुभाव की प्रशस्ति इस प्रकार है “श्री अनन्तजिनचरितं समाप्तमिति ॥ छ ॥ संवत १४९७ वर्षे कार्तिक सुद रवौ मंत्रि कूपा लेखि ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्री ॥ कर्णावती पुरवरपुरी वासी दारिद्यदूरवित्रासी । श्रीमालिज्ञातिमणिर्बभूवनाथाभिधः साधुः ॥ १ ॥ ज्यायो गोधावर्द्धनबांधवसहितस्य धर्मनिरतस्य । तस्य जयंति विनीता नामकदेवी भवाः पुत्राः || २ || केशव - लाइय-मूंमण नामानः पुण्यपुण्यधामानः । तेषु च केशवनामं जिह्मब्रह्मादिगुणगरिमा ॥ ३ ॥ श्री बालादिपुण्यकरनिजकुटुम्बसहितो हितोपदेशगिरः । आकर्ण्य तपागच्छेशानां श्रीसोमसुन्दरगुरुणाम् ॥ ४ ॥ आराधयितुं ज्ञानं लक्षग्रन्थं च लक्षपुण्ययशाः । न्याय्येन लेखयन् निजधनेन चित्तकोशयोग्यं सः ॥ ५ ॥ साल्हादमली लिखदमलीमसमुच्चैरनंतजिनचरितं । शशिवेदनिधि हयाब्दे १४९७ सुचिरमिदं वाचयंतु बुधाः || प्रशस्तिरियं ॥ कल्याणमभितो भूयात् श्री श्रमण संघस्य ॥ श्री ॥ यह प्रति अति जीर्ण है । बीच बीच में अक्षर टूटे हुए हैं । पन्ने इतने घीसे हुए हैं कि उन्हें पढ़ना भी मुष्किल है । इस प्रति में जहाँ जहाँ शब्द या अक्षर खण्डित हैं या लिपिकार की गलती से शब्द के बीच के अक्षर छूट गये हैं उनकी पूर्ति योग्य कल्पना करके ऐसे कोष्ठक में कर दी गई है । लुप्त पाठ के स्थान पर (....) इस प्रकार का रिक्त स्थान रखा गया है । रिक्त स्थानों के पाठ के लिए जहाँ अनुमान हो सकता है वहाँ कोष्टक में संभावित पाठ का निर्देश किया है। जो पाठ लिपिकार के दोष से अशुद्ध ही प्रतीत होते हैं उन अशुद्ध पाठ के स्थान पर शुद्ध पाठ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देने का प्रयत्न किया है। इसके अतिरिक्त व-ब, च--व, त्थ-च्छ, प-ए, एप, द्द-दृ, दृ-द्द, ट्ठ-द्ध, द्ध-ट्ठ, उ-ओ, ओ-उ, य-इ, इ-य, ई-इ, इन अक्षरों के बीच के भेद को न समझने कारण लिपिक ने एक अक्षर के स्थान पर दूसरा अक्षर लिख दिया है । क्ख, ण्ण, म्म, च्छ, त्थ, जैसे संयुक्त, अक्षरों के स्थान पर ख, ण, म, ठ, छ, थ भी कई स्थान पर लिखे हुए मिलते हैं । निरर्थक अनुस्वार भी कई जगह लिखे हुए मिलते हैं और कई जगह लिपिकार अनुस्वार ही लिखना भूल गया है । कहीं कहीं लिपिकार ने एक ही अक्षर या शब्द दुबारा भी लिखन दिया है और कहीं कहीं एक जैसे अक्षर दो बार आते हैं तो लिपिकार उन्हें लिखना ही भूल गया है । पृष्ठपडिमात्रा को समझने में भी लिपिक ने भूलें की हैं । एक ही प्रति के होने के कारण इन्हें सुधारने में बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा । अपनी बुद्धि और विवेक से जो पाठ या अक्षर उचित लगे, उन्हें यथास्थान सुधार कर रखा गया है । जो पाठ समझ में नहीं आया उसे प्रति के पाठ के अनुसार यथावत् ही रखा है । कथा वस्तु : चरित्र के आरंभ में कवि आदि मंगल में दान, शील, तप और भावना रूप चार प्रकार के धर्म का समवसरण में चार रूप धारण कर प्रतिपादन करने वाले ऐसे युगादि जिनेन्द्र को, स्वर्ण आभा वाले भगवान वर्द्धमान को, तथा सद्देशना देने वाले शेष २२ तीर्थंकरों को तथा मुक्ताफल जैसी श्वेत कान्तिवाली, लोगों के मोहरूपी अन्धकार को नाश करने वाली, ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाली सरस्वती देवी को स्मरण करते हैं । तत् पश्चात् पूर्ववर्ती ग्रन्थकार श्री हरिभद्रसूरि, पादलिप्तसूरि, बप्पहट्टिसूरि, श्री विजयसिंहसूरि, नवाङ्गीटीकाकार श्री अभयदेवसूरि, गुरु नेमिचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, हेमचन्द्रसूरि गुरु देवसूरि श्री हेमचन्द्रसूरि, कवि कालिदास, धनपाल, बाण आदि महाकविओं को हृदयपूर्वक स्मरण कर श्री अनन्तजिन चरित का ग्रन्थकार प्रारंभ करते हैं । " ग्रंथारम्भ में सज्जन और दुर्जन का विश्लेषण करते हुए कवि कहता है । सज्जन दुर्जन नहीं हो सकता और न ही दुर्जन सज्जन हो सकता है । दिवस रात्रि नहीं हो सकता और रात्रि दिवस नहीं हो सकती । सज्जन तो सज्जन ही होते हैं वे तो दोष युक्त काव्य में भी गुण ही देखते हैं । जो स्वभाव से ही वक्र होते हैं उनसे तो प्रार्थना करना निरर्थक ही है । मैं सरल स्वभावी सज्जनों से प्रार्थना करता हूँ कि वे मेरे पर अनुग्रह कर मेरे ग्रन्थ का संशोधन करें । ग्रन्थकार आगे कहते हैं मनुष्यभव की दुर्भलता बताने वाले चुल्लग आदि दस दृष्टान्त शास्त्र प्रसिद्ध हैं । दुर्लभ मानवभव आर्य क्षेत्र एवं उत्तमकुल प्राप्त कर मनुष्य Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को अपनी योग्यता के अनुसार गुरु का उपदेश सुनकर धर्मबुद्धि से उसका आचरण करना चाहिए । संसार में श्रेष्ठ धर्म यदि कोई है तो वह है ज्ञानदान । जैसे पदार्थ को देखने में आँखे, तिमिरावृतगृह को प्रकाशित करने में दीपक, एवं लोक के अन्धकार को दूर करने में सूर्य मुख्य है वैसे ही अज्ञानरूप अन्धकार को दूर करने में ज्ञान प्रधान है । इसी ज्ञानदान की महत्ता प्रकट करने वाला मंगलकारी अनन्तजिन चरित्र पांच प्रस्तावों में कह रहा हूँ । हे भव्यों ! आप उसे मनोयोगपूर्वक सूनें (गा. : १-३५)। भगवान अनन्तजिन का प्रथम और द्वितीय भव - (गाथा : ३५-१२३६) __ धातकी खण्डद्वीप के पूर्वविदेह में ऐरावत विजय में अरिष्टपुर नामक रमणीय नगर था । वहाँ पद्मरथ नामका पराक्रमी राजा राज्य करता था । उसकी पद्मावती नाम की रानी थी । वह अत्यन्त रूपवती तथा सर्वगुण सम्पन्न थी । उसने एक भाग्यशाली पुत्र को जन्म दिया । राजा ने पुत्र जन्म की खुशी में सम्पूर्ण राज्य में जीवों को अभयदान की घोषणा की। दीन भिक्षकों को अन्न दान, गरीबों को धन दान, तथा अपराधियों को क्षमा दान प्रदान कर बड़े ही सांस्कृतिक ढंग से पुत्र का जन्मोत्सव मनाया । बालक के देह की स्वर्णिम कान्ति इतनी दिव्य भव्य और मनोहर थी कि जो भी कोई देखता उसकी आँखें वही स्थिर हो जाती जैसे जादू कर दिया हो । उसके सौंदर्य से प्रभावित हो राजा ने बालक का नाम प्रतापरथ रखा । प्रतापरथ युवा हुआ। उसने सभी कलाओं में निपुणता प्राप्त की । एक बार प्रतापरथ अपने मित्रों के साथ वनश्री देखने के लिए बन में गया । वहाँ एक वृक्ष पर बैठे हुए शुक की दृष्टि कुमार पर पड़ी । कुमार के सौंदर्य से वह बड़ा प्रभावित हुआ । शुक ने अपने घोंसले में आकर सारिका से कहा - प्रिये ! मैने अरिष्टपुर नगर के राजा पद्मरथ के पुत्र प्रतापरथ के अद्भुत सौंदर्य को देखा । मानो साक्षात् कामदेव ही उपवन में उतर आया हो । ऐसा सुन्दर पराक्रमी राजकुमार जिस कन्या को प्राप्त हो वह सचमुच ही धन्य होगी । उस समय कमलपुर के राजा कमलकेशर की रानी कमलश्री से उत्पन्न राजकुमारी कमलावली अपनी सखियों के साथ उद्यानश्री को देख रही थी । उसने शुक सारिका का यह संवाद सुना । प्रतापरथ राजकुमार का सौंदर्य वर्णन सुनकर वह उस पर मुग्ध हो गई । उसने मन ही मन में उसे पति के रूप में स्वीकार कर लिया । घर आकर वह उसके वियोग में संतप्त रहने लगी । यहाँ तक की उसने खान, पान एवं शंगार भी छोड़ दिया । सखियों को इस बात का पता चला तो वे राजमाता के पास गई और बोली - आपकी पुत्री अरिष्टपुर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगर के राजपुत्र प्रतापरथ के रूप पर मुग्ध है और वह उससे विवाह करना चाहती है। रानी ने यह बात राजा से कही । राजा ने सोचा - राजकुमारी ने अपने लिए योग्य वर का चुनाव किया है । राजा ने तुरंत एक कुशल अवसरज्ञ दूत को बुलाया और आदेश दिया-भद्र ! तुम अरिष्टपुर नगर के राजा पद्मरथ के पास जाओ और हमारा परिचय देकर कहो कि मेरी पुत्री आपके पुत्र कुमार प्रतापरथ के साथ विवाह करना चाहती है । चतुरदूत अपने स्वामी की इच्छा को समझ गया । महाराज को प्रणाम कर बोला - जैसी आपकी आज्ञा । तुरंत ही वह अरिष्टपुर की ओर चला । अल्प समय में ही वह अरिष्टपुर पहुँच गया । पद्मरथ राजा के पास आकर दूत ने कहा - "मै कमल पुर के राजा कमलकेशर का दूत हूँ । राजा ने दूत का स्वागत करते हुए कहा - हम कमलकेशर राजा का अभिनन्दन करते हैं । हमारे लिए क्या समाचार लाये हो ? दूत ने कहा - महाराजा कमलकेशर ने आपको अपनी शुभकामनाएँ भेजी हैं और कहा है कि-मेरी पुत्री का विवाह आपके पुत्र प्रतापरथ के साथ हो । आप अपनी स्वीकृति देकर हमें कृतार्थ करें । राजा ने कहा - दूत ! आपके राजा का प्रस्ताव हमें स्वीकार्य हैं । हम शीघ्र ही विवाह के लिए राजकुमार को भेज रहे हैं । यह शुभ सन्देश आप अपने राजा तक पहुँचा देना । दूत का सन्मान कर राजा ने उसे विदा किया । इधर पिता की आज्ञा प्राप्त कर राजकुमार प्रतापरथ अपनी विशाल सेना, मंत्री एवं सामन्तों के साथ कमलकेशर पहुँचा । राजा ने राजकुमार का भव्य स्वागत किया । नगर प्रवेश के बाद राजकुमार ने देखा - राजा और प्रजाजन अत्यन्त शोकाकुल है अन्तःपुर से रुदन की आवाज आ रही है । राजकुमारने राजा से पूछा - आप लोग इतने चिन्तातुर क्यों हो ? राजा ने कहा - राजकुमार ! आप जिस राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए यहाँ आये हैं उसका तो एक दुष्ट विद्याधर ने अपहरण कर लिया है । हमने राजकुमारी की बहुत खोज की किन्तु कहीं भी उसका पता नहीं लगा । उसकी खोज के सारे प्रयत्न निष्फल गये । इसी कारण हम सब लोग दुखी हैं । यह सुनकर राजकुमारने राजा से कहा - 'आप चिन्ता न करें । मैं अवश्य ही राजकुमारी का पता लगाकर उसके साथ विवाह करूंगा। यदि में राजकुमारी को आपके पास नहीं ला सका तो अवश्य अग्नि में प्रवेश कर अपने आप को भस्म कर दूँगा। ऐसा कहकर राजकुमार एक तेजस्वी घोड़े पर चढ़ा और विजयपथपुर की ओर चला । अल्प समय में ही वह विजयपथपुर पहुंचा और वहाँ के राजा विजयसेहर से मिला । उसने राजकुमारी विषयक पुछताछ की। विजयसेहर ने कहा - हम किसी केवली से ही राजकुमारी का पता लगा सकते हैं । वे केवली Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के पास पहुँचे । केवली ने अपने ज्ञान के बल से राजकुमारी का तथा उसके अपहरण कर्ता विद्याधर का नाम और स्थान बताया । पता मिलते ही राजकुमार रात्रि के समय अकेला ही राजकुमारी की खोज में निकला । घूमते घूमते वह वैतादय पर्वत की तलहटी में पहुँचा । वहाँ विद्याधर विजयध्वज के पुत्र विजयकेतु ने विद्या के बल से राजकुमारी को हिरनी बनाकर रखी थी । राजकुमार ने हिरनी को राजकुमारी के रूप में देखा । मंत्रबल से उसने हिरनी को पुनः राजकुमारी बना दिया । इतने में दुष्ट विद्याधर विजयकेतु वहाँ पहुँचा । दोनों में घमासान युद्ध हुआ। विजयकेतु युद्ध में हार गया और घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा । राजकुमार ने घायलशत्रु का उपचार किया और उसे स्वस्थ्य बना दिया । राजकुमार की इस उदारता से विजयकेतु बहुत प्रभावित हुआ । उसने राजकुमार से अपने अपराध की क्षमा मांगी । राजकुमार ने उसे माफ कर दिया । दोनों प्रगाढ़ मित्र बन गये । प्रतापरथ राजकुमारी के साथ विजयकेतु के विमान में बैठकर कमलपुर पहुँचा । राजा और प्रजा ने राजकुमार का भव्य स्वागत किया । राजा ने बड़े उत्सव के साथ प्रतापरथ का राजकुमारी के साथ विवाह कर दिया । कुछ दिन कमलपुर में रह कर प्रतापरथ अपनी सेना, मित्रों एवं सामन्तों के साथ अरिष्टपुर पहुँचा । पिता ने उत्सवपूर्वक पुत्र का नगर में प्रवेश करवाया । पिता पुत्र दोनों ही सुखपूर्वक प्रजा का पालन करते हुए राज्य का संचालन करने लगे । - एक बार राजा पद्मरथ अपने सामन्तों के साथ सिंहासन पर बैठा हुआ मंत्रियों के साथ विचार विमर्श कर रहा था । उस समय कुसुमपाल नामक उद्यानपालक ने आकर सूचना दी कि कलकोकिल नामक उद्यान में चित्ररक्ष नामके आचार्य अपने शिष्य परिवार के साथ पधारे हुए हैं । आचार्य का आगमन सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ । आचार्य के आगमन का समाचार लानेवाले उद्यानपालक को राजा ने सन्मानित किया और उसे योग्य पुरस्कार दे कर विदा किया । दूसरे दिन राजा विशाल परिवार के साथ उद्यान में धर्मोपदेश सुनने गया । आचार्यश्री ने अपने उपदेश में कहा - राजन् ! नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चारों गतियाँ दुःख रूप हैं । जो निरपराध जीवों को मारते हैं, शिकार करते हैं, परस्त्री गमन करते हैं, महारंभ और परिग्रह को धारण करते हैं वे जीव मरकर नरक में जाते हैं । वहाँ चिरकाल तक असह्य पीड़ा को सहन करते हैं । वहाँ से निकलकर वे जीव तिर्यंच आदि योनियों में अनन्तकाल तक परीभ्रमण करते हैं । मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र, आर्यकुल और सद्धर्म की प्राप्ति अति दुर्लभ है । संसार में जो सुख दिख रहे हैं वे आभास मात्र हैं और भविष्य में दुःख के कारण हैं । जैसे शहद से लिपटी तलवार को चाटने में मधुरता का अनुभव Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो होता है, किन्तु साथ में थोड़ी सी भूल हुई नहीं कि, जीभ कटने का खतरा भी रहता है । वैसे ही संसार के ये भोग हैं, भोग में क्षणिक आनन्द का अनुभव तो होता है किन्तु कुछ समय के बाद वही भोग रोग का रूप धारण कर लेता है । जीवन का अन्त मरण है । अतः रोग, बुढ़ापा और मृत्यु का आक्रमण होने से पूर्व ही मनुष्य को धर्म का आचरण कर लेना चाहिए क्योंकि धर्माचरण से ही मनुष्य भव के, दुःख का अन्त कर सकता है । मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है । __ धर्म दो प्रकार का है । एक यति धर्म और दूसरा गृहस्थ धर्म । क्षमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति, तप संयम, सत्य, शौच,. आकिंचण्य और ब्रह्मचर्य रूप यति धर्म के दस प्रकार हैं । इस के आचरण से यति जन्म, जरा मृत्यु आदि दुःखों का अन्त करता है । देव वीतराग होने चाहिए और गुरु निर्ग्रन्थ । तत्त्व नौ हैं - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बन्ध और निर्जरा । देव, गुरु और तत्त्व की परीक्षा करके ही जीव सद्धर्म की प्राप्ति कर सकता है और सद्धर्म की प्राप्ति से ही जीव शिवपद को प्राप्त करता है । जो व्यक्ति यति धर्म का सम्पूर्ण पालन नहीं कर सकता वह गृहस्थ धर्म का पालन कर शिवपद को प्राप्त कर सकता है । गृहस्थ धर्म बारह प्रकार का है - पाँच अनुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत, रूप । इन बारह व्रतों का पालन करनेवाला गृहस्थ अवश्य अमर पद को प्राप्त करता है । चन्द्रसेन नामक राजा ने गृहस्थ धर्म का पालन कर अपने जीवन को जिस प्रकार से सफल किया वह कथा तुम्हें सुनाता हूँ। तुम उसे ध्यानपूर्वक सुनो । आचार्य श्री ने चन्द्रसेन की कथा कही (गाथा - २६२-१२३६) - आचार्य के उपदेश का राजा पर गहरा असर पड़ा । उसने आचार्य से कहा - भगवन् ! आपका कथन सत्य है । मैं भवों का अन्त करने वाली प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता हूँ । मुनि ने कहा - जैसी इच्छा । राजा मुनि को वन्दन कर घर आया । उसने अपने पुत्र के सामने दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की । पिता की उत्कट भावना देखकर पुत्र ने दीक्षा का भव्य उत्सव किया । संघ और जिनबिंबों की पूजा की । दीन अनाथों को दान दिया । प्रजाजनों को करमुक्त कर संतुष्ट किया । राजा उत्सवपूर्वक शिबिका में बैठकर आचार्य श्री के समीप उद्यान में पहुँचा । आचार्यश्री ने राजा की संयम भावना को पहचाना और उसे दीक्षा दे दी । दीक्षित होकर मुनि पद्मरथ ने अनेक प्रकार की कठोर तपस्या की । तीर्थंकर गोत्र उपार्जन करनेवाले बीस स्थानको में से कई स्थानकों की आराधना कर उस निर्मलमना मुनि ने तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन किया । संयम Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और तप से अपनी शेष आयु को पूरा कर समाधिपूर्वक मरा और प्राणतकल्प के पुष्पोत्तर विमान में महर्द्धिक देवरूप में उत्पन्न हुआ । तृतीय भव : (गाथा : १२३७ -) - जम्बद्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में अयोध्या नामकी सन्दर नगरी थी । इसकी वापिकाएँ पार्श्वस्थित रत्नजड़ित सोपान पंक्तियों की प्रभा से अत्यन्त सुन्दर प्रतिभासित होती थी । जिनमंदिरों सहित इसके स्वर्णमय गृह, प्रतिसोपान स्थित दर्पण के कारण मानो धर्म, अर्थ और कामरूप संसार की त्रिविध वस्तुओं की उद्घोषणा करते हो ऐसा प्रतीत होते थे । मरकतमणी जड़ित इसका राजपथ रात्रि में नक्षत्रों द्वारा प्रतिबिम्बित होकर लगता था मानो वहाँ मुक्ताओं से स्वस्तिक . की रचना की गई हो । नगरी की स्त्रियों द्वारा दीवारों की खुटियों पर लटकाई गई पुष्पमालाएं रत्नहारों का भ्रम उत्पन्न करती थी । उद्यान नायिकाओं के शीत से, अट्टालिका स्थित पाक शालाओं की उष्णता से और हाथियों के मदक्षरण से वहाँ मानों शीत, ग्रीष्म और वर्षा, ये तीनो ऋतुएँ सर्वदा रहती थी ।। - वहाँ के राजा का नाम था सिंहसेन । वह सिंह की तरह पराक्रमी था । उसके शत्रुगण मृग की तरह भयभीत होकर गिरिकंदराओं में छिपे रहते थे । वह राजा प्रकृति से सौम्य और प्रताप में सूर्य के समान तेजस्वी था । उसके तेज के सामने उसके शत्रुगण निष्प्रभ थे । उसकी रानी का नाम था, सजसा । वह आनन्दरूपा स्नेहमयी और सौंदर्य की प्रतिमा, और कुलरूप सरिता की हंसिनी थी । अपने रूप, लावण्य और सौंदर्य से पति को आनन्दित करती हुई महारानी सुजसा का समय सुख पूर्वक व्यतीत होने लगा । प्राणतकल्प के पुष्पोत्तर विमान में पद्मरथ देव के जीव ने सुखपूर्वक देवायुष्य पूर्णकर देवी सुजसा के गर्भ में प्रवेश किया । सुखशय्या में सोई हुई सुजसा देवी ने तीर्थंकर के जन्म सूचक चतुर्दश महास्वप्न देखे । रानी इन महान दिव्य स्वप्नों को देखकर जागृत हुई । उठकर राजा के पास आई और स्वप्नों की चर्चा करते हुए बोली - महाराज ! मैंने ऐसे दिव्य स्वप्न आज पहली बार देखे हैं । इनका क्या फल होगा ? प्रसन्न होकर महाराज ने कहा - तुम महान् भाग्यशाली रानी हो । ऐसे स्वप्न संसार में शायद ही कभी कोई पुण्यवती स्त्री देखती है । स्वप्नशाम्र के अनुसार इन स्वप्नों का फल है किसी त्रिभुवन-विजयी पुत्र का जन्म ! तुम अवश्य किसी महापुरुष की माता बनोगी । (गा. : १२७४-) राजा का कथन सुनकर रानी हर्ष विभोर हो उठी । वह अपने शयन कक्ष में लोट आई और प्रभु का स्मरण करने लगी । इन्द्रादि देवों ने आकर रत्नगर्भा सुजसा की प्रणाम पूर्वक स्तुति की । गर्भकाल के पूर्ण होने पर वैशाख शुक्ला Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रयोदशी को जब चन्द्र मीन राशि में था तब रेवती नक्षत्र के योग में रानी ने स्वर्णवर्णीय एक पुत्र रत्न को जन्म दिया । ६४ इन्द्रों और देवों ने मेरुपर्वत पर जाकर भगवान का स्नानाभिषेक किया । जन्मोत्सव के पश्चात् भगवान को इन्द्र ने उनकी माता के पास रख दिया और वे भगवान को वन्दन कर स्व स्थान लौटे गए । (गा. : १५५०-) प्रातः राजा सिंहसेन ने पुत्र का बड़े उत्साह के साथ जन्मोत्सव मनाया । बन्दियों को बन्धन से मुक्त किया । गरीबों को दान दिया और मन्त्री और सामन्तों का सन्मान किया । जब यह पुत्र गर्भ में था तब उनकी माता सुयशा ने स्वप्न में मणिरत्नों की अनन्त मालाएँ देखी थी अतः शुभ दिन में बालक का नाम अनन्त रखा गया । शक्र द्वारा नियुक्त पांच धात्रियों द्वारा पालित होकर एवं अंगुष्ट का अमृतपान कर भगवान अभिवर्द्धित होने लगे । यद्यपि वे तीन ज्ञान के धारक थे फिर भी उन्होंने शिशु सुलभ सरलता धारण कर रखी थी । वे देव, असुर और मनुष्य के साथ क्रीड़ा करते हुए युवा अवस्था को प्राप्त हुए । उस समय उनकी उँचाई ५० धनुष थी । अपने भोग कर्मों को अवशेष समझकर माता पिता के आग्रह से उन्होंने मदनावली, सुकंता, मृगांकलक्ष्मी, जया, विलासवती चन्द्रश्री, कामलता, जयावली आदि सुन्दर राजकुमारियों के साथ विवाह किया । इन राजकन्याओं में मदनावली उनकी प्रधान रानी बनी । संसार सुख भोगते हुए उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । उसका नाम अनन्तबल रखा । साढ़े सात लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर पिता की आज्ञा से उन्होंने राज्यभार ग्रहण किया । पंद्रह लाख वर्ष तक राज्य शासन करने के बाद उनके मन में संसार परित्याग की भावना जाग्रत हुई । उसी समय ब्रह्मलोक से सारस्वत आदि आठ लोकान्तिक देव उनके पास आये और प्रार्थना कर बोले -- हे लोकनाथ ! अब आप दीक्षाग्रहण करें । कुबेर द्वारा प्रेरित और भगदेवों द्वारा लाये गए धन से प्रभु ने एक वर्ष तक दान दिया । वर्षी दान की समाप्ति पर देव, असुर और राजाओं ने दीक्षार्थी भगवान का स्नानाभिषेक किया । उसके बाद भगवान चन्दन, वस्त्र-भूषण और मालादि धारण कर सागरदत्ता नामक उत्तम शिबिका पर विराजमान हुए । छत्र और चामरधारी अन्यान्य इन्द्रों द्वारा परिवृत्त हो कर भगवान सहस्त्राम्र उद्यान में पहुँचे । वहाँ शिबिका से उतरकर समस्त अलंकारों का त्याग कर दिया । स्कन्ध पर इन्द्र द्वारा प्रदत्त देवदूष्य वस्त्र धारण कर वैशाख कृष्ण चतुर्दशी को मध्यान्ह के समय में चन्द्र जब रेवती नक्षत्र में था तब दो दिनों के उपवासी प्रभु ने एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की । प्रभु को वन्दना कर शकादि इन्द्र तथा अनंतबल आदि राजा गण अपने अपने निवास स्थान को लौट आये । दूसरे दिन प्रातः भगवान अनन्तनाथ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने वर्द्धमानपुर के राजा विजय के घर खीरान्न से पारणा किया । उसी समय रत्नवृष्टि आदि पंच दिव्य प्रगट हुए। प्रभु जहाँ खड़े थे उस स्थान पर राजा विजय ने एक रत्नमय वेदी का निर्माण करवाया। (गा. : १५५१-२०२४). विविध परिषहों को सहते हुए और कठोर तप साधना करते हुए भगवान अनन्तनाथ तीन वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में मलय, बंग, कुंतल, कलिंग, मालवा, केरल आदि देशों में विचरण करते रहे । ध्यान और उत्कृष्ट तप करते हुए और अनेक परिषह को सहते हुए भगवान अयोध्या नगर के सहस्त्राम्र उद्यान में पधारे । वहाँ अशोक वृक्ष के नीचे ध्यान की उत्कट अवस्था में चार घातिकर्मों का क्षय किया । वैशाख कृष्णा चतुर्दशी के दिन जब चन्द्र रेवती नक्षत्र में था तब दो दिनों के उपवासी प्रभु को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ । इन्द्रों के आसन चलायमान हुए । अपने अवधिज्ञान से भगवान को केवलज्ञान प्राप्त हुआ जानकर अपने अपने विमान में बैठकर वे भगवान के समीप पहुँचे । भगवान को वन्दन कर देवों और इन्द्रों ने भगवान का केवलज्ञान उत्सव किया । चतुर्निकाय देवों ने रत्नजड़ित समवसरण की रचना की। समवसरण के बीच ईशान कोन में प्रभु के विश्राम के लिए देवछंद बनाया । व्यन्तरों ने समवसरण के मध्य में चैत्य वृक्ष का निर्माण किया । उस चैत्यवृक्ष के नीचे एक रत्नपीठिका बनाई । उसके मध्य पूर्व दिशा में विकसित कमलकोश के मध्य कर्णिका से युक्त पादपीठ के साथ एक रत्नसिंहासन लगाया । उस सिंहासन पर छत्रत्रय का निर्माण किया । ___ भगवान अनन्तनाथ ने पूर्वद्वार से समवसरण में प्रवेश किया । नमो तित्थाय कह कर भगवान कमलसिंहासन पर विराजमान हुए । (गा. २०२५-२०९०) अनन्तबल राजा को भगवान के आगमन और केवलज्ञान का समाचार मिला तो वह भी अपने विशाल परिवार के साथ समवसरण में भगवान की देशना सुनने के लिए गया । मनुष्य, देव एवं तिर्यंच की विशाल परिषद् की उपस्थिति में भगवान ने मेघगम्भीर वाणी में अपनी देशना में धर्म की महिमा समझाते हुए कहा - संसार में धर्म ही सर्वोत्कृष्ट है तथा सभी दुःखों की सर्वोत्तम औषधि है । धर्म एक बहुत बड़ा बल है और धर्म ही त्राण और शरण है । अधिक क्या कहा जाय । सम्पूर्ण जीवलोक में इन्द्रिय और मन को अच्छे लगनेवाले जो भी पदार्थ दिखाई देते हैं वे सभी धर्म के ही फल हैं । इसमें दान धर्म सर्वोत्कृष्ट धर्म है । वह तीन प्रकार का है । प्रथम ज्ञानदान, दूसरा अभयदान और तीसरा धर्मोपग्रहदान । इन तीन प्रकार के दान से जीव सम्पूर्ण कर्म का क्षय कर सिद्धि सुख को प्राप्त करता है । दान के प्रभाव से रणविक्रम राजा ने किस प्रकार ऋद्धि प्राप्त की और अन्त में शिवपद का अधिकारी बना । इस पर उन्होंने रणविक्रम Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कथा गणधर यश के आग्रह से कही (गा. : २४९१-३२८१) दान की महिमा बताकर आपने शीलधर्म की व्याख्या करते हुए कहा - शील सतरह प्रकार का है - प्राणिवध आदि पांच आश्रवों का त्याग, पांच इन्द्रियों का संयम, चार कषायों का निग्रह तथा मन, वचन, काययोग का निरोध । इन सत्तरह प्रकार के शील पालन से व्यक्ति देवगति प्राप्त कर देवऋद्धि का भोग करता है। उसके पश्चात् वह मनष्य भव प्राप्त कर परम सिद्धि को पाता है । शील के प्रताप से रत्नावली ने विपुल सुख को प्राप्त कर अन्त में मोक्षगति में जाकर परमानन्द को प्राप्त किया । वह कथा कह रहा हूँ (गा. : इड५८२-४७४०) धर्म का तीसरा प्रकार तप है । वह बाह्य और आन्तरिक भेद से बारह प्रकार का है । तप से व्यक्ति कर्मों को जीर्ण करता है, और तीर्थकरत्व, सर्वज्ञत्व को प्राप्त कर परम मोक्ष को पाता है । तप से चन्द्रकान्त राजा ने कैसे भव का अन्त किया वह वर्णन सुनाता हूँ (गा. : ४७४१-५८३८) भावधर्म भी चार प्रकार का है । आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान । आर्त और रौदध्यान से जीव नरक तिर्यंचादि गति में परिभ्रमण करता हुआ महान् दुःखों का भागी बनता है | धर्मध्यान और शुक्लध्यान से जीव भवों का अन्त कर अन्त में मोक्ष सुख को प्राप्त करता है । भावना धर्म की आराधना से श्रृंगार-मुकुट राजा ने किस प्रकार संसार परिभ्रमण का अन्त किया और जन्म, जरा, मृत्यु से मुक्त होकर कैसे सुखी बना उस पर में श्रृंगारमुकुट राजा की कथा सुनाता हूँ । (गा. : ५८३९-७४६६) इसके पश्चात् भगवानने साधुओं के पांच महाव्रत रूप एवं क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दस यति धर्मों का विवेचन कर पाँच अनुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार के श्राक्क धर्म और सम्यकत्व का स्वरूप समझाया। . भगवान के प्रवचन का उपस्थित श्रोताजनों पर बड़ा प्रभाव पड़ा । जस आदि पचास राजाओंने एवं पद्मावती के साथ पचास अन्तपुर की स्त्रीयोंने एवं अनेक नरनारियोंने भगवान के समीप दीक्षा ग्रहण की । अनेकोने सम्यक्त्व पूर्वक श्रावक धर्म ग्रहण किये । अनन्तबल राजा ने भी श्रावक धर्म ग्रहण कर प्रभु के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की । भ. ने जस मुनि आदि पचास गणधरों की नियुक्ति की । गणधरों ने ग्यारह अंगसूत्र और चौदह पूर्व की रचना की । गणधरों में जस मुख्य गणधर बने । और साध्वी प्रमुखा पद्मावती बनी । इन्द्रादि देवों ने भक्ति भाव पूर्वक भगवान की वन्दना व स्तुति की । देशना समाप्ति के बाद राजा अनन्तबल और इन्दादि देवगण अपने अपने स्थान लौट आये । कुछ समय तक भगवान अयोध्या नगरी ही में ठहरे । उसके पश्चात् भगवान Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनन्तनाथ ने अपने पचास गणधरों और विशाल श्रमण श्रमणियों के परिवार के साथ विहार कर दिया । अनेक ग्राम नगर के भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुए भगवान अपने विशाल परिवार के साथ विमलगिरि अपरनाम शत्रुंजयगिरि पर पधारे । यहाँ देवों ने समवसरण की रचना की । देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं श्रमण श्रमणियों का परिवार समवसरण में उपस्थित हुआ । भगवान का आगमन सुन राजा कदंबपरिमल अपने मंत्री, सामन्त, सेठ, सेनापति एवं अन्तःपुर की रानियों के साथ भगवान के दर्शन एवं उनकी देशना सुननेके लिए शत्रुंजय पर्वत पर लगे समवसरण में पहुँचे । भगवान ने महति परिषद के सामने अपना धर्मोपदेश प्रारंभ किया । भगवान ने अपने धर्मोपदेश में दस प्रकार के यति धर्म, सम्यकत्व पूर्वक श्रावक के बारह व्रतरूप धर्म एवं देव, गुरु तथा तत्त्वं का सार निरूपण किया । धर्मदेशना की समाप्ति के बाद राजा कदंब परिमल ने भगवान को वन्दन कर पूछा भगवन् ! साधु धर्म और श्रावक धर्म का सम्पूर्ण पालन सभी जीवों के लिए संभव नहीं है और मुझ जैसा पामर जीव तो पालन नहीं करना सकता । अतः आप मुझे ऐसा सरल मार्ग बताएं जिससे में इस भवसमुद्र को पार कर सकूँ ? | भगवान ने कहा राजन् ! एक ऐसा भी मार्ग है जिससे तुम सरलता से भवों का अन्त कर सकते हो वह है जिनपूजा । भक्तिपूर्वक की गई त्रिकाल जिनपूजा पापों का नाश करती है और भव का अन्त करती है । लक्ष्मी वियोग, सब प्रकार के कष्ट एवं दारिद्र्य का नाश होता है । जिनपूजा आठ प्रकार की कही गई है । १. कुसुम, २. अक्षत, ३. फल, ४. जल, ५. धूप, ६. दीप, ७. नैवेद्य तथा सुभवास । इन आठ प्रकार के पदार्थों से जो जिनपूजन करता है वह शिव सुख को पाता है । राजा की प्रार्थना पर भगवान ने प्रत्येक पूजा पर एक-एक द्रष्टान्त दिये । उन्होंने कहा 1 १. दुर्गदेव, पुष्पपूजा से कुसुमशेखर राजा बना । (गा. ७५६८-७७१९) २. दुर्गपताका, अक्षतपूजा से अक्षयकीर्ति राजा बना । (गा. : ७७२०-७८७३) ३. वानर, फलपूजा से फलसार राजा बना । (गा. : ७८७४-८००९) ४. चन्द्रतेज, जलपूजा से जलसार राजा बना । (गा. : ८०१० - ८१४८) ५. साहससार, धूपपूजा से धूपसार राजा बना । (गा. : ८१४९-८३४१) अकिंचन, दीपपूजा से भुवनप्रदीप राजा बना । (गा. : ८३४२-८८३९) ७. रणशूर, नैवेद्यपूजा से भुवनप्रमोद राजा बना । (गा. : ८८४०-८८८१) ८. धनावह, वासपूजा से गंधबन्धुर नामक राजा बना । (गा. : ८८८२ - ९०७८) ६. - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्होंने भक्तिपूर्वक अष्ट प्रकार की पूजा में से एक वस्तु से पूजन कर महान् ऋद्धि प्राप्त की और अन्त में प्रव्रज्या ग्रहण करके शिवपद को प्राप्त हुए ।। पूजा की महिमा और उन पर दिये गये दृष्टान्त को सुनकर राजा कदंबपरिमल ने त्रिकाल जिनपूजन कर अपने जीवन को सफल बनाया ।। विशाल परिवार के साथ भगवान ने वहाँ से विहार कर दिया और ग्रामानुग्राम विचरते हुए प्रभु द्वारिका पधारे वहाँ सहकारसार नामके उद्यान में ठहरे । भ्रमरसुन्दर नामके उद्यान पालक ने वासुदेव पुरुषोत्तम और बलदेव सुप्रभ को भगवान के आगमन की सूचना दी । वासुदेव और बलदेव तथा नगरी की प्रजा भगवान के समवसरण में पहुँची । भगवान ने विशाल परिषद् के सामने सम्यक्त्वपूर्वक बारह गृहस्थ धर्म का विवेचन किया । पश्चात् पुरुषोत्तम वासुदेव के सम्यक्दर्शन विषयक प्रश्न पूछने पर भगवान ने प्रतापसुन्दर राजा का दृष्टान्त देकर सम्यक्दर्शन की महिमा बताई। सम्यक्दर्शन की महिमा सुनकर वासुदेव पुरुषोत्तम ने भगवान से सम्यक्त्व ग्रहण किया और सुप्रभ ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये । कुछ काल तक भगवान द्वारिका नगरी में ही ठहरे । उसके पश्चात् भगवान ने अपने विशाल परिवार के साथ विहार कर दिया । प्रताप यक्ष और भिका यक्षणी आप के शासन में आनेवाले विघ्नों को दूर कर रही थी । भगवान मगध, अंग, बंग, कुंतल, केरल, कन्या लाड़, द्रविड़, राड़, चोड़, मेवाड़, मलय, पंचाल आदि देशों में धर्मोपदेश देते रहे । आपके संघ में ६६००० साधु, ६२००० साध्वियाँ ९१४ पूर्वधर, ४३०० अवधिज्ञानी ५००० मनःपर्यवज्ञानी, ५००० केवलज्ञानी, ८००० वैक्रियलब्धिधारी, ३२०० वादी, २,०६,००० श्रावक, एवं ४,१४००० श्राविकाएँ थी । केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् भगवान तीन वर्ष कम साढ़े सात लाख वर्ष तक सयोगी केवली अवस्था में विचरण करते रहे । __ अपना निर्वाण का समय निकट जानकर भगवान साधुओं के साथ सम्मेतशैल शिखर पर पधारे और वहाँ एक महिने का अनशन ग्रहण किया । चैत्र शुक्ला पंचमी को जब चन्द्र पुष्प नक्षत्र में था तब ७००० मुनिओं के साथ प्रभु मोक्ष को प्राप्त हुए । शक्रादि इन्द्रों और देवों ने भगवान अनन्तनाथ और अन्य मुनियों का यथोचित अग्नि संस्कार किया । भगवान साढ़े सात लाख वर्ष तक कुमारावस्था में रहें । १५ लाख वर्ष तक राज्याधिपति के रूप में और साढ़े सात लाख वर्ष तक संयमपर्याय में रहे । उनकी कुल आयु ३० लाख पूर्व की थी। विमलनाथ स्वामी के निर्वाण से अनन्तनाथ प्रभु के निर्वाण पर्यन्त नौ सागरोपम व्यतीत हुए थे। (गाथा ९०७९-९५४६) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ प्रशस्ति इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सरि विषयक परिचय नहीं मिलता किन्तु इन्होंने ग्रन्थ अन्त में दी गई प्रशस्ति में अपनी गुरु परम्परा और ग्रन्थ विषयक जानकारी इस प्रकार दी है -(गाथा ९ड५४७ - ९६०९) (शाखा प्रशाखा से युक्त विशाल वटवृक्ष की तरह बड़गच्छ नामक गच्छ है। इस गच्छ में अनेक विद्वान और उच्च कोटि के कवि हो गये हैं । इसी गच्छ में श्री देवसूरि नाम के महान् प्रभावशाली आचार्य हुए । उनके शिष्य निर्ग्रन्थ शिरोमणी आ. अजितदेवसूरि थे । उनके शिष्य जनमन को आनन्दित करनेवाले जग प्रसिद्ध आ. आनन्दसूरि थे । उनके तीन शिष्यों में प्रथम शिष्य आचार्य नेमिचन्द्रसूरि । ये अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान थे । इन्होंने लघुवीरचरित्र, उत्तराध्ययन पर वृत्ति, अख्यानकमणिकोष, और रत्नचूड़नामक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की । दूसरे शिष्य थे आ. उद्योतनसूरि । ये कठोर तपस्वी और उच्च कोटि का आचार पालने वाले महान् सन्त थे । तीसरे शिष्य थे, आ. जिनचन्द्रसूरि । ये अपने समय के प्रसिद्ध वक्ता थे इनके प्रवचन से जनता बड़ी प्रभावित होती थी, आ. जिनचन्द्रसूरि ने अपने पट्टपर दो शिष्यों को प्रतिष्ठित किया । एक आम्रदेवसूरि और दूसरे श्रीचन्द्रसूरि । आचार्य आम्रदेवसूरिने आख्यानकमणिकोश पर वृत्ति की रचना की थी । श्री आम्रदेवसूरि ने अपनेपट्ट पर चार प्रकाण्ड पण्डित मुनियों को स्थापित किये उनमेंसे प्रथम शिष्य शीघ्र कवि आचार्य हरिभद्र को एवं द्वितीय पट्टधर के रूप में तर्क अलंकार तथा शास्त्रज्ञ एवं एकान्तर उपवासी आ. विजयसेन को स्थापित किया । उनके कनिष्ट शिष्य आ. नेमिचन्द्रसूरि थे । उनके तृतीय पट्टधर लक्षण, छंद, अलंकार तर्क, साहित्य और शास्त्र के जानकार विद्वान आ. यशोदेवसूरि थे । आचार्य विजयसेनसूरि के पद पर आ. नेमिचन्द्रसूरि ने समन्तभद्र नामके आचार्य को स्थापित किया । एक बार आचार्य विहार करते हुए जिनघरों (मंदिरों) से अलंकृत कुड़कच्छलपुर पधारे । वहाँ न्याय नीति से व्यापार करनेवाला गुर्जरवंशोत्पन्न संवहरि नामक श्रेष्ठी रहता था । उसकी पति भक्ता जिनदेवी नामकी पत्नी थी । उसके चार पुत्र थे । प्रथम कुमार, द्वितीय साउ, तीसरा सर्वदेव और चौथे पुत्र का नाम जेउअ था । शील से समलंकृत मल्हुआ नाम की कुमार की बहन थी । कुमार की पत्नी का नाम संपुन्ना था, उसके ठक्कुर और वोसरि नामके दो पुत्र हुए । साउ की दो पत्नियां थी । एक का नाम जिनमती और दूसरी का नाम देवमती था । उनके चार पुत्र थे । प्रथम नेमिकुमार, द्वितीय वीर, तृतीय मत्त और चतुर्थ पुत्र Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का नाम वर्द्धन था । सर्वदेव की पत्नी का नाम सुन्दरी थी । सुन्दरी ने जसनाग और सड्ढ नामके दो पुत्र को जन्म दीया । जेठ की पत्नी का नाम श्रीदेवी था । उसके नन्दिकुमार और संभीत नामक दो पुत्र हुए । नेमिकुमार की पत्नी का नाम यशोदेवी था । उसने पउमसिरि और अभयसिरि नामकी दो सुन्दर पुत्रियों को जन्म दिया । नेमिकुमार की दूसरी पत्नी का नाम धनसिरि था । उसके पुत्र का नाम उसहदत्त था । उसने अपने पिता नेमिकुमार द्वारा निर्मित ऋषभजिन मन्दिर में देवकुलिकाओं को बनवाकर उसमें जिनबिम्ब की स्थापना की और अनेक पुस्तक लिखवायें ।। __ ऋषभदत्त श्रेष्ठी की चार बहने थीं । एक का नाम जेइया दूसरी का नाम सिवदेवी तीसरी का नाम जिनदेवी और चौथी का नाम रुप्पिणी था । वीर श्रेष्ठी की भी दो पुत्रियां थीं । एक का नाम विमलसिरि और दूसरी का नाम देवसिरि । विमलसिरि के कोई सन्तान नहीं थी । देवसिरि ने दो पुत्र रत्न और एक पुत्री को जन्म दिया। प्रथम पुत्र का नाम कबड्डी और दूसरे का नाम पुण्डरीक और पुत्री का नाम देवमती था । श्री ऋषभ श्रेष्ठी की पत्नी अइहव देवी ने चार पुत्रों को जन्म दिया । प्रथम पुत्र का नाम श्रीकुमार द्वितीय का नाम देवकुमार तृतीय का नाम कुमारपाल और चोथे पुत्र का नाम जसकुमार था और सज्जनीराणी नाम की एक पुत्री थी। सेठ कबड्डी की पत्नी का नाम आमिनी और पण्डरीक सेठ की पत्नी का नाम पदमनी था । आमनी के तीन पुत्र थे । एक का नाम पदुमकुमार दूसरे का नाम माईकुमार और तीसरे का नाम सामिकुमार था | पुण्डरीक श्रेष्ठी की एक पुत्री थी जिसका नाम सीलुया था । देवकुमार की पत्नी जसमती ने जेतलदेवी नामकी पुत्री और पासकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया । कुमारपाल की पत्नी जयसिरि ने भी जयदेवी नामकी पुत्री और जसकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया । श्रेष्ठी कवड्डी और देवकुमार आदि ने भक्ति पूर्वक आ. नेमिचन्द्रसूरि से अनन्त जिनचरित्र की रचना करने की प्रार्थना की । इन श्रेष्ठियों के अनुरोध से आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि ने वि.सं. १२१६ में वैशाख वदि बारस के दिन सोमवार को पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में इंद्रयोग में कुमारपाल राजा के राज्यकाल में वर्द्धमान (वढ़वाण) नगर में विशिट्ठवरणग श्रेष्ठी की वसति में रहकर इस ग्रन्थ का आरंभ कर एक वर्ष की अवधि में धवलक्क (धोलका) नगर के एक मन्दिर में भ. पार्श्वनाथ की कृपा से १२००० श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ को समाप्त किया । इसका प्रथमादर्श गुर्जरवंशोत्पन्न मेघकुमार नाम के विद्वान ने लिखा । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य जसदेवसूरि ने तथा आ. समंतभद्रसूरि ने इस चरित ग्रन्थ का संशोधन किया ।) ग्रन्थ और ग्रन्थकार __इस चरित काव्य के रचयिता विद्वान आचार्य नेमिचन्द्रसूरि है । ये वड़गच्छीय आचार्य आम्रदेवसूरि (आख्यानकमणिकोषवृत्ति के कर्ता) के शिष्य एवं (आख्यानक मणिकोष मूल के कर्ता) आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के प्रशिष्य है । इन्होंने वि.सं. १२१६ में वैशाख वदी बारस के दिन सोमवार को वर्द्धमान नगर में वरणग श्रेष्ठी को वसति से इस ग्रन्थ का प्रारंभ कर धवलक्क नगर के मंदिर में रहकर कुमारपाल के राज्यकाल में एक वर्ष की अवधि में १२००० श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ को पूरा किया । इस ग्रन्थ की रचना कवड्डी श्रेष्ठी की प्रार्थना पर की थी । इनकी गुरु परम्परा में बताया है कि बृहद् गच्छीय देवसूरि के वंश में अजितदेवसूरि थे । उनके पट्टधर आनन्दसूरि हुए । आनन्दसूरि के प्रथम पट्टधर नेमिचन्द्रसूरि, दूसरे प्रद्योतनसूरि और तीसरे जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर) थे । जिनचन्द्रसूरि के दो प्रधान शिष्य थे । एक आम्रदेवसूरि (आख्यानक मणिकोश के वृत्तिकार) और दूसरे शिष्य श्री चन्द्रसूरि थे। श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि थे । आम्रदेवसूरि के भी छः विद्वान शिष्य थे - हरिभद्रसूरि (ये आम्रदेवसूरि के गुरुभाई श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य है ।) मुख्य पट्टधर, दूसरे विजयसेनसूरि (पट्टधर), तीसरे नेमिचन्द्रसूरि (अनन्तजिन चरित के कर्ता), चोथे यशोदेवसूरि (पट्टधर), पांचवे गुणाकरसूरि (शिष्य) और छठे पार्श्वदेवसूरि । ___आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने छोटी बड़ी पांच रचनाएँ की - १. आख्यानकमणिकोश (मूल गाथा ५२), २. आत्मबोधकुलक अथवा धर्मोपदेशकुलक (गाथा २२), उत्तराध्ययनवृत्ति (श्लोक १२०००), रत्नचूड़ कथा (श्लोक सं. ३०८१), और महावीर चरित्र । तथा आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य आम्रदेवसूरि ने आख्यानकमणिकोश पर वृत्ति की रचना की। इसका ग्रन्थ परिमाण १४००० श्लोक हैं । आचार्य हरिभद्रसरि ने अन्य साहित्य निर्माण के साथ साथ प्राकृत में चौबीस तीर्थंकरों के चरित की भी रचना की थी । इन चौबीस तीर्थंकर चरितों में से इस समय मल्लिनाथ, चंदप्पह, अजितनाथ (अप्रकाशित) और नेमिनाथ (प्रकाशित) ये चार चरित्र उपलब्ध हैं । इस महान् अंबदेवसूरि के शिष्य नेमीचन्द्रसूरि ने प्रस्तुत अनन्तजिन चरित्र के अतिरिक्त माणुसजम्म कुलय गाथा २२, की भी रचना की थी । अनन्तजिन चरित्र के अन्तर्गत आनेवाला पूजाष्ट अंश एक स्वतंत्र कृति के रूप में आ. विजय क्षमाभद्रसूरि ने ई.स. १९४० में गांव अच्छारी से प्रकाशित किया है । प्रस्तुत अनन्तजिन चरित्र विद्वत् परम्परा में हुए आचार्य Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिचन्द्र की प्राकृत साहित्य की एक अनुपम कृति है । भाव, भाषा, अलंकार एवं रस निष्पत्ति के दृष्टि से यह एक उत्कृष्ट काव्य है । इस में प्रेम, आश्चर्य, राग-द्वेष एवं अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति यो के बीच नाना प्रकार के भावों की व्यंजना की गयी है । इसमें मूल कथा नायक से कहीं अधिक अवान्तर कथा के नायकों का चरित्र विकसित है । प्रायः सभी अवान्तर कथाएँ धर्मतत्त्व के उपदेश हेतु निर्मित हैं । एक प्रकार के वातावरण में एक-सी ही कथाएँ जिन में प्रभावोत्पादकता प्रायः नगण्य ही है, वर्णनों की बाहुलता रहने से घटनाओं की संख्या अत्यल्प है । इसमें नगर, गाँव, बन, उद्यान, पर्वत, चैत्य, प्रातः संध्या, ऋतु आदि का एवं नरमुण्ड की माला धारण किये हुए कापालिक, योगिनियाँ एव उपकथाओं के साहसी नायकों का सजीव वर्णन है । कापालिक स्मशान में मण्डल बनाकर साधना करता है । उत्तर साधक के साहस से उसकी विद्यासिद्धि की प्रक्रिया रोचक शब्दों में वर्णित है । इस चरित काव्य पर प्रौढ़ संस्कृत काव्य का पूरा प्रभाव है । संस्कृत की शब्दावली भी अपनाई गई है । भगवान अनन्तनाथ का जन्म वर्णन सरल अपभ्रंश भाषा में वर्णित है । सारा ग्रन्थ आर्याछंद में निबद्ध है । अपभ्रंश भाषा में रड्डा छंद का प्रयोग अधिकतर किया है । अनुष्टुप छंद का भी विपलुमात्रा में प्रयोग किया है । बीच बीच में संस्कृत सुभाषित भी अन्यान्य ग्रंथों से उद्धृत किये हैं । कवि ने अपने सारे ग्रन्थ को सुभाषित मय ही बना दिया है । इस ग्रन्थ के सुभाषित इतने प्रभावोत्पादक है कि वाचक स्वयं इस ग्रन्थ को पढ़ने की धन्यता का अनुभव करता है । कवि कहीं कहीं प्रथम पाद में चरित्र की घटना का वर्णन करता है तो द्वितीय पाद में एक सुन्दर, सुभाषित देकर उस घटना को और भी रोचक बना देता है । कवि ने उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक आदि अलंकारो की कई स्थलों पर सुन्दर योजना की है । वर्णनों की सजीवता चरितों को अधिक रसप्रद बनाया है । अलंकृत वर्णन काव्यतत्व का समावेश करते हैं । सुक्ति, धर्म, नीति, एवं सांस्कृतिक तत्त्वों द्वारा चरित को मर्मस्पर्शी बनाने का उनका प्रयास प्रशंसनीय है 1 इस चरित काव्य के मुख्य नायक चौदहवें तीर्थंकर भगवान अनन्तनाथ हैं । बारह हजार गाथाओं में इस ग्रन्थ की समाप्ति की गई है । सम्पूर्ण ग्रन्थ पद्यमय है । भगवान के जन्म वर्णन के अतिरिक्त इसकी भाषा प्रौढ़ महाराष्ट्री प्राकृत है । समस्त काव्य पांच प्रस्तावों में विभक्त है । प्रथम प्रस्ताव में भगवान अनन्तनाथ के पूर्व भव मनुष्य का तथा द्वितीय भव देव का एवं उनके गर्भ में अवतरित होने का विस्तार से वर्णन किया है। इस में बताया गया है कि सम्यकत्व और संयम के प्रभाव से ही व्यक्ति अपने जीवन को कल्याणप्रद बना Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता है एवं चारित्रिक विकास से ही मोक्ष पथ की ओर अग्रसर होता है । भगवान अनन्तनाथ ने अनेक जन्मों में संयम और सदाचार का पालन कर संस्कारों का अर्जन किया और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर चौदहवें तीर्थंकर पद को प्राप्त किया । द्वितीय प्रस्ताव में भगवान के इन्द्रों एवं देवों द्वारा किये गये जन्मोत्सव का विस्तार से वर्णन है । तृतीय अवसर में भगवान का राजा द्वारा किया गया जन्मोत्सव, नामकरण, राज्यारोहण, विवाह, पुत्र प्राप्ति, महानिष्क्रमण, प्रथम पारणा, छद्मस्थ अवस्था में विविध देशों में परिभ्रमण, केवलज्ञान की प्राप्ति, प्रथम समवरण में धर्म देशना, संघ की स्थापना, गण और गणधरों की रचना का विस्तार से वर्णन है । चतुर्थ प्रस्ताव में विविध देशों में विहार एवं समवसरण में बैठ कर धर्मदेशना देने का वर्णन है । पंचम प्रस्ताव में धर्म देशना में अष्टविध पूजा की महिमा एवं उन पर दिये गये आठ दृष्टान्तों का विवेचन है । अन्त में सम्मेतशिखर पर भगवान के आगमन एवं उनके निर्वाण का भी विस्तृत वर्णन है । मूल चरित्र के साथ कुल कथाएँ भी एस में आई हैं । तीर्थंकरचरित्र का मूलस्त्रोत विश्व के वाङ्मय में कथा साहित्य अपनी सरसता और सरलता के कारण प्रभावक और लोकप्रिय रहा है । भारतीय साहित्य में भी कथाओं का विशालतम साहित्य एक विशिष्ट निधि है । भारतीय कथा साहित्य में जैन एवं बौद्ध कथा साहित्य का अपना एक विशिष्ट महत्व है । श्रमण परम्परा ने भारतीय कथा साहित्य की न केवल श्रीवृद्धि की है अपितु उसको एक नई दिशा भी दी है । जैन कथा साहित्य का तो मूल लक्ष्य ही रहा है कि कथा के माध्यम से त्याग, सदाचार, नैतिकता आदि की सत्प्रेरणा देना । आगमों से लेकर पुराण, चरित्र, काव्य, रास एवं लोककथाओं के रूप में जैनधर्म की हजारों कथाएँ विख्यात हैं । ये कथाएँ मानव जीवन को सुखी, स्वस्थ और शान्त बनाने के लिए एक वरदान लेकर पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं, मानव में घुसी हुई दानवीय वृत्ति को निकालती हैं और मानवता की पुण्य प्रतिष्ठा करती हैं । जैनकथाओं के पीछे एक पवित्र प्रयोजन समाविष्ट है कि श्रोताओं और पाठकों की शुभ प्रवृत्तियों को जागृत कर सके और अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर शुभकर्म प्रवृत्ति की प्रेरणा प्राप्त हो सके । जैनचार्यों की कथा रचना में ऐसा उच्च एवं उदात्त आदर्श जैन कथा वाङ्मय की अपनी विशिष्टता है । इसी आदर्श को लक्ष्य में रख कर जैनाचार्यों ने सैकड़ों चरित काव्यों की एवं Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा ग्रन्थों की रचना कर मानव समाज के उत्थान में अपना महत्व पूर्ण योगदान दिया है । प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश से होती हुई जैन कथाओं की विकास यात्रा उन्नीसवीं सदी तक गुजराती और हिन्दी साहित्य की परिधि में समाप्त होती है । कथाओं की लंबी यात्रा के कारण परम्पराओं की भिन्नता अनुश्रुतियों का अन्तर एवं समय के दीर्घ व्यवधान के कारण कथा सूत्रों में चरित्रों में परस्पर भिन्नता और घटनाओं का जोड़ तोड़ भी काफी भिन्न हो गया है । अनेक कथाएँ तो ऐसी है जो बड़ी प्रसिद्ध होते हुए भी कथा कथा ग्रन्थों में बड़ी भिन्नता से वर्णित हैं । तीर्थंकर चरित्रों के लिए भी ऐसा ही हुआ है । चरित्रकारों ने आगमों में उपलब्ध तीर्थकर चरित्र को ग्रहण कर उनके अवान्तर कथाओं की घटनाओं को जोड़कर उनका विस्तृत रूप तैयार कर एक स्वतंत्र रूप से ग्रन्थ का निर्माण किया है । इन चरित्रों के या कथा ग्रन्थों के मूल स्त्रोत की खोज करना या उनकी ऐतिहासिकता की परीक्षा करना जलमंथन जैसा ही है । __ अवान्तर कथाओं में भी विविध कथानकों के प्रभावोत्पादक, आश्चर्यजनक या कुतुहल उत्पन्न करनेवाले पूर्वार्ध घटकों को उत्तरार्द्ध में और उत्तरार्ध घटकों को पूर्वार्ध में रखकर नाम और स्थल के परिवर्तन के साथ स्वतंत्र कथानक तैयार कर उन्हें अपनी भावभाषा में वर्णित किया है । अतः इनमें ऐतिहासिकता या सच्चाई की कसोटी पर कसने के बजाय उनमें निहित कल्याणतत्त्वों को अनेक व्यवहारिक यथार्थ स्वरूप को, प्रेरकतत्त्वों को ही, हमें देखना है । कथा के माध्यम से ही व्यक्ति तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान सरलता से प्राप्त कर सकता है । उनमें रहे हुए हार्द को समझकर उन पर विश्वास करता है और उनको आचरण में लाकर अपने जीवन को कल्याणप्रद व उन्नत बनाता है । अनन्तजिन चरित भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करता है । भगवान अनन्तजिन के अस्तित्व को सिद्ध करनेवाले मूल स्त्रोत जैन आगम है और आगमों की घटनाओं का उत्तरोत्तर विकास उन पर लिखी गई नियुक्तियों, चूर्णियों, भाष्यों, टीकाओं में एवं परवर्ती चरित्र ग्रंथों में पाया जाता है । आगम ग्रन्थों में भ. मल्लिनाथ भ. अरिष्ट नेमि भ. पार्श्वनाथ और भ. महावीर को छोड़कर अन्य तीर्थंकर विषयक जानकारी अत्यल्प मात्रा में मिलती है । ग्यारह अंग सूत्रों में तीसरा और चौथा अंग सूत्र स्थानाङ्ग व समवायांग है । समवायांगके सूत्र १५७ में भगवान अनन्तजिन विषयक निम्र जानकारी मिलती है - भगवान अनन्तजिन १४ वें तीर्थकर थे । उनका जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके पिता का नाम सिंहसेन और माता का नाम सुजसा था । अनन्तजिन Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का च्यवन, जन्म, प्रव्रज्या, केवलज्ञान और निर्वाण रेवती नक्षत्र में हुआ (स्थान ५ वाँ) । उन्होंने सुप्रभा नाम की शिबिका में बैठकर हजार पुरुषों के साथ अयोध्या नगरी के बाहर देवदृष्य धारण कर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपने दो उपवास किये थे । आपने प्रथम पारणा वर्द्धमान नगर में विजयराजा के घर परमान्न से किया । उस समय पांच दिव्य प्रकट हुए । आपके प्रथम शिष्य जस और प्रथम शिष्या पद्मावती थी । पीपलवृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान हुआ (सम. १५७) आपके पूर्व भव का नाम महिन्द्र था (आ. नेमिचन्द्र सूरि के अनुसार पूर्व भव का नाम पद्मरथ था) आवश्यक सूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में भ. अनन्तजिन का केवल नामोल्लेख ही मिलता है । आगम के पश्चात् आवश्यक नियुक्ति में एवं उनके टीकाकार आ. हरिभद्रसूरि आ. मलयगिरि ने एवं प्रवचनसारोद्धार में भगवान अनन्तजिन विषयक निम्र सारिणी प्रस्तुत की हैं - भगवान अनन्तजिन-सारिणी १. च्यवनतिथि श्रावनवदी ७ २. विमान प्राणतकल्प ३. जन्म नगरी अयोध्या ४. जन्म तिथि वैशाखवदी १.३ ५. माता का नाम सुयशा पिता का नाम सिंहसेन लांछन श्येन शरीरमान ५० धनुष कंवरपद ७.५ लाख राज्यकाल १५ लाख दीक्षातिथि वैशाखवदी १४ पारणे का स्थान वर्धमानपुर १३. दाता का नाम विजय छद्मस्थ काल ३ वर्ष ज्ञानोत्पत्ति वैशाखवदी १४ गणधर संख्या ५० प्रथम गणधर यश साधु संख्या ६६ हजार Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०. साध्वी संख्या प्रथम आर्या श्रावक संख्या श्राविका संख्या दीक्षा पर्याय निर्वाण तिथि मोक्ष परिवार आयुमान अन्तरमान ६२ हजार पद्मा २ लाख ६ हजार ४ लाख १४ हजार ७.५ लाख वर्ष चैत्रसुदि ५ ७००० ३० लाख वर्ष ९ सागर . आगमेतर साहित्य में भगवान अनन्तनाथ विषयक विपुल सामग्री मिलती है । १. चउपन्न महापुरिस चरियं (कर्ता शीलंकाचार्य र. सं. ९२५) २. कहावली (कर्ता भद्रेश्वरसूरि र. १२ वीं सदी) ३. चउप्पन्न महापुरिसचरियं (र. १२ वीं सदी) ४. बृ.ग. हरिभद्रसूरि (र. १२ वीं सदी अप्राप्य) ५. चतुर्विशतिजिनेन्द्रसंक्षिप्तचरितानि) क. अमरचन्द्रसूरि (र. सं. १२३८ से पूर्व) ६. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरितं (र. १२१६ - १२२८ कर्ता क.स. हेमचन्द्राचार्य ७. लखु त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (र. सं. १७०९) कर्ता मेघविजय ८. अनन्तनाथचरित्र (संस्कृत अज्ञतकर्तुक) इसके अतिरिक्त भगवान अनन्तजिन पर संस्कृत में स्वतंत्र काव्य की भी रचना हुई है । दिगम्बरजैन साहित्यकारों ने भी भ. अनन्तजिन पर अनन्तनाथ पुराण (वासवसेन) आदि ने स्वतंत्र काव्यों की रचना की है । तीर्थंकर विषयक जानकारी देने वाले दिगम्बर जैन ग्रन्थों में तिलोयपण्णत्ति तथा जिनसेनाचार्य एवं गुणभद्राचार्य द्वारा रचित महापुराण और उत्तर पुराण मुख्य हैं । उत्तर पुराण में भगवान अनन्तनाथ विषयक जो वर्णन आया है वह इस प्रकार है - Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान अनन्तनाथ अयोध्यानगर के ईक्ष्वाकुवंशी काश्यप गोत्रीय महाराजा सिंहसेन राजा के पुत्र थे । आप की माता का नाम जयश्यामा था । कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा के दिन अच्युतेन्द्र देवलोक से चवकर जयश्यामा के गर्भ में अवतरित हुए । माता ने १६ स्वप्न देखे । जेठ कृष्णा द्वादशी के दिन पूषा योग में आपका जन्म हुआ। इन्द्रों, देवों और मनुष्यों ने जन्मोत्सव किया । आपका नाम अनन्तजित् रखा । आपका शरीर ५० धनुष उँचा था । आपका रंग स्वर्ण जैसा देदीप्यमान था । सात लाख पचास हजार वर्ष बीतने पर आपका राज्याभिषेक हुआ । राज्य करते हुए पन्द्रह लाख वर्ष बीत गये तब आपने अपने पुत्र अनन्तविजय को राज्य देकर जेष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन सायंकाल में एक हजार राजाओं के साथ सागरदत्त नामकी पालकी में बैठकर बन में गये और दीक्षा धारण की । दूसरे दिन आपने विशालराजा के घर पारणा किया। दो वर्ष तक छद्मस्थ काल में विचरण कर पीपल वृक्ष के नीचे चैत्रकृष्ण अमावस्या के दिन सायंकाल के समय रेवती नक्षत्र के योग में केवलज्ञान प्राप्त किया। देवों ने केवलज्ञान उत्सव किया। जय आदि ५० गणधर, एक हजार पूर्वधर तीन हजार दो सौ वादि, उन्तालीस हजार पाँचसौ उपाध्याय, चार हजार तीन सौ अवधिज्ञानी, पाँच हजार मनःपर्यवज्ञानी, कुल छियासठ हजार मुनि, एक लाख आठ हजार साध्वियाँ, दो लाख श्रावक एवं चार लाख श्राविकाओं की सम्पदा आपके शासन में थी । अन्त में सम्मेतशिखर पर जाकर वहाँ एक माह तक योगनिरोध कर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ आपने चैत्र शुक्ला अमावस्या के दिन रात्रि के प्रथम प्रहर में निर्वाणपद प्राप्त किया। अब तक के प्रकाशित अप्रकाशित अनन्तजिन चरित्रों में यह सब से बड़ा चरित ग्रन्थ है । - अपने कार्य में अत्यंत व्यस्त होते हुए भी भाषा विवेचक डॉ. एच. चू. भायानी साहब ने इस ग्रन्थ के अपभ्रंश भाग को देखा और उसे शुद्ध किया । अतः में उनका आभारी हूँ । ___ साथ ही संवेगी उपाश्रय के ट्रस्टी श्री भरताभाई शाह का भी आभार मानता हूँ जिन्होंने अपने अधीन ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध अनन्तजिन चरित्र की प्रती की जरोक्स करवाकर मुझे दी । ला.द.भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर का भी मैं आभारी हैं जिन्होंने इस ग्रन्थको प्रकाशित कर प्राकृत साहित्य की अनुपम सेवा की है । - स्पेन्द्रकुमार पगारिया Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका ९७ १०४ १०४ १२३ १५८ १७८ (प्रथम प्रस्ताव) मंगलाचरण, पूर्वग्रन्थकारस्मरण, सज्जनदुर्जन, अनन्तजिन का प्रथम भव गृहस्थधर्म पर चन्द्रसेन की कथा अनन्तजिन का द्वितीय देव भव अनन्तजिन का तृतीय भव गर्भावतरण (द्वितीय प्रस्ताव) अनन्तजिन का जन्म (तृतीय प्रस्ताव) अनन्तजिन का विवाह, राज्याभिषेक एवं दीक्षा (चतुर्थ प्रस्ताव) केवलज्ञान चतुर्विधसंघस्थापना और धर्मदेशना दानधर्म पर रणविक्रम की कथा शीलधर्म पर रत्नावली की कथा तपधर्म पर चन्द्रकान्त की कथा भावनाधर्म पर श्रृगारमुकुट की कथा कर्मफल पर रत्नसुन्दर कथा (चतुर्थ प्रस्ताव) १. पुष्पपूजा पर कुसुमशेखरकी कथा २. अक्षयपूजा पर अक्षयकीर्तिराजा की कथा ३. फलपूजा पर फलसारराजा की कथा ४. जलपूजा पर जलसार की कथा ५. धूपपूजा पर धूपसुन्दर की कथा ६. दीपपूजा पर भुवनप्रदीप राजा की कथा ७. नैवद्यपूजा पर भुवनप्रमोद की कथा ८. वासपूजा पर गन्धबन्धुर की कथा धर्मदेशना सम्यक्त्व पर प्रतापसुन्दर की कथा अनन्तजिन का निर्वाण ग्रन्थकार प्रशस्ति २५७ ३७० ४५५ ४७३ ५८४ ६०२ ६१३ ६२४ ६३५ ६५० ६८१ ६९१ ७०८ ७३१ ७७१ ७४३ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ णमोऽत्थु णं महइ महावीर-वद्धमाणसामिस्स ॥ सिरिअम्मएवसूरिविणेयसिरिनेमिचंदसूरिविरईयं सिरिअणंतसामिजिणचरियं (पढमपत्थावो) मंगलं जयइ जुगाइजिणिंदो, परिविलसिर-समवसरण-चउ-रूवो । वागरिडं पिव सुह-दाण-सील-तव-भावणाधम्मे ॥ १ ॥ सो जयइ जिणोऽणंतो, देसण-दसणंसुणो सया जस्स । केवलरविकिरणा इव, तममवर्णिता वियंभंति ॥ २ ॥ सिरिवद्धमाणसामि, नमामि कणयाभदेहदित्तीए । कुणमाणं पिव भुवणं, सव्वं पि हु अत्तणो तुल्लं ॥ ३ ॥ सेसा वि जयंतु जिणा, सद्देसणअमयपसरसेएण । कयपसमा भुवणस्स वि, अप्पसमत्तं कुणंता वि ॥ ४ ॥ चरिएक्कउत्तमंगे, विलसंतदुवालसुत्तमंगे वि । वंदामि गणहरिंदे, अविग्गहे मणहरंगे वि ॥ ५ ॥ जयइ सरस्सइदेवी, मुत्ताहल-सिय-सरीर-कंतीए । जणमोहतमोहरणं, नाणालोयं पिव कुणंती ॥ ६ ॥ रयणायर व्व गुरुणो, जयंतु सुपसिद्ध-सुर-सुहाहारा । जेसि नरा पयसेवाए हुंति परमत्थसत्थकरा ॥ ७ ॥ इय थोअव्वत्थुइजायसुकयसंभारविद्दवियविग्यो ।। पारद्धसत्थनिप्फत्तिमंगलं लहुं लहिस्सामि ॥ ८ ॥ (पुव्वगंथकारपरियाणं सुमरणं) सो जयइ गोयमो, गोयमो व्व गुरुपव्वयाहियनिवासो । जस्स सुरयणाहारो, भंडागारो व्व सिद्धंतो ॥ ९ ॥ सिरिहरिभद्दमुणिंदो, रिउ-पयरणकरणविजयजायजसो । सुहडो व्व सया सोहइ, सव्वुत्तमवीरपयलीणो ॥ १० ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं पहुणो पालित्तय-बप्पहट्टि-सिरिविजयसीहनामाणो । जणयंति महच्छरियं, जं ता गुरुणो वि सुकइत्तं ॥ ११ ॥ दूरं करुणारसिओ, विरइयनव-समय-सत्थ-वित्ती वि । सिरिअभयदेवसूरी, दूरीकयमच्छरो सहइ ॥ १२ ॥ गुरुनेमिचंद-मुणिचंद-हेमचंदाभिहाणमुणिवइणो । निग्गंथसिरोमणिणो, बहुगंथकरा वि रेहति ॥ १३ ॥ अक्खाणयमणिकोसत्थ-सत्थकरणेण जेसिमिस्सरियं । उल्लसइ सया सिरिअम्मएवसूरीण ताण नमो ॥ १४ ॥ गुरुदेवसूरि-सिरिहेमसूरिणो, पसमिणो सुसमया वि । कयतक्क-व्वायरणा, जिणिंदतित्थं पभाविंति ॥ १५ ॥ कित्तिं वस्तु कइकालिदास-धणपाल-बाण-कइराया । जाण गिरीण व जाया, सरस्सईओ नव-रसाओ ॥ १६ ॥ एरिस करायपबंधदंसणा कायरो व्व कंपंतो । रइडं पयं पि न तरामि, सत्थ-रयणम्मि का वत्ता ? ॥ १७ ॥ तह जं अणंतगुणजिणचरियं रइडं रूई वि मइणो वि । तं मे अणंतकाइयसत्ताणिक्केक्कगणणं व ॥ १८ ॥ अहवा गुरुप्पभावा वसिही वाईसरी वयणकमले । ता तव्वसयस्स मणोऽभिवंछिए मज्झ का चिंता ? ॥ १९ ॥ (सुजणदुज्जणा) सोजनं सुयणम्मि, अवट्ठियं दुज्जणम्मि दोजन्नं । सीयत्तं सिसिरम्मि, दाहो दहणे सया वसइ ॥ २० ॥ सिक्खविओ वि हु दूरं, न दुज्जणो सज्जणत्तमणुसरइ । परिकम्मिओ वि उवलो, नूनं न रयणसिरिं धरइ ? ॥ २१ ॥ सुयणे न दुज्जणत्तं, संकमइ न दुज्जणम्मि सुयणतं । न दिणे रयणी रयणीए नो दिणं जायए जइ वा ॥ २२ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो संता वि तिरोहिज्जंति, दुज्जणा सज्जणुज्जलगुणेहिं । भुवणम्मि तारया इव, विप्फुरिएहिं रवि-करेहिं ॥ २३ ॥ कव्वं दोसालिद्धं पि, सज्जणा सोहिउं पयासंति । अवहरिय रयणि-तिमिरं, भुवणं छणचंदकिरण व्व ॥ २४ ॥ सोवन्निय व्व नंदंतु सज्जणा जे परत्थसत्थेसु ।। दिन्नसुवण्णवि रयणा, जणं व कव्वं विभूसंति ॥ २५ ॥ किं दुज्जणेहिं ? जं ते वंका, पत्थेमि सज्जणे सरले । तुब्मे सोहह काउं, अणुग्गहं मह इमं गंथं ॥ २६ ॥ इह समयदिट्ठचुल्लगपमुहदिटुंतदसगदुल्लंभं । लद्रूण माणुसत्तं, आयरिय-खित्ताइ-गुण-जुत्तं ॥ २७ ॥ नियजोग्गयाणुरूवं, नाऊण गुरुवएसओ किंचि । कज्जो परोवयारम्मि, उज्जमो धम्म-बुद्धीहिं ॥ २८ ॥ सो जइ वि बहुविहो, परमणोरहाऊरणे मह तहा वि धन्मुवयारे सेसोवयारमूलम्मि रमइ मणं ॥ २९ ॥ जओ (धम्मो नाण-दाणं च) धम्मो मणवंछियवत्थुवियरणप्पवणपरमकप्पतरू । अट्ठोत्तरसयरोयावहारधन्नंतरी धम्मो ॥ ३० ॥ धम्मो महल्लकल्लाणकमलिणीवणविकासदिवसयरो । उत्तमचक्केसर-सक्क-सिद्धि-सुहसाहओ धम्मो ॥ ३१ ॥ जइ वि हु चउहा सुहदाण-सील-तव-भावणाहिं भणिओ सो । तह वि मुहुल्लसइ मई, सव्वुत्तमनाण-दाणम्मि ॥ ३२ ॥ नयणं व गोयरगयं, दीवो विव तमतिरोहियं गेहं । तरणि व्व भुवणगभं, पयडइ नाणं तिहुयणं पि ॥ ३३ ॥ ज़ह पहपब्भट्ठो कोइ, एइ सम्मग्गिकुसलकम्मेण । तह मोहविमूढमणा, नाणेणमुर्विति सम्मग्गं ॥ ३४ ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं ता नाण-दाणरूवं, जगगुरूणो अणंतस्गमिणो चरियं । पत्थावपंचएणं भव्वाऽऽयन्नह कहिज्जंतं ॥ ३५ ॥ (अणंतजिणस्स पढम भवो) अत्थि प्फुरंतबहुतेयरासिदंसियपयत्थपरमत्थो । धाअइसंडो दीवो मंगलदीवो विव पवित्तो ॥ ३६ ॥ तत्थ महाभोगपओहराए सुवयाए रामगत्तं व । पुव्वविदेहं खितं, विलसइ सीयाए परिसत्तं ॥ ३७ ॥ एरवयविजयरयणं तस्सालंकारकरणिमुव्वहइ । जम्मिं जच्चतुरंगो व्व सव्वया सहइ वेयड्ढो ॥ ३८ ॥ (रिट्ठउरीनयरी) - तम्मि घणमणिविणिम्मियसालप्पासायविवणिसुरभवणा । अत्थि जयालंकरणं, नयरी नामेण रिट्ठउरी ॥ ३९ ॥ माणिक्कमयजिणालयमालानिलचलसियद्धयालीए । जीए तरंगिज्जंतो व्व नज्जए धम्मदुर्द्ध-दही ॥ ४० ॥ लीलाए वि सयं चिय, मणि-भवण-पहा-पणासियतमा जा । निज्जिणइ रविं सकरप्पयासदिणमेत्तहय-तिमिरं ॥ ४१ ॥ पडिमंदिरचंदोदयमणिज्झरणजलभरियकुंभा । सोहत्थं चिय जा वहइ कूव-वावी-सरसमूहं ॥ ४२ ॥ जीए सत्थियकयपउमरायरयणाई नव-वहू दर्छ । अग्गि-फुलिंग त्ति जलेण सिंचए चरणदाहभया ॥ ४३ ॥ एगोऽत्थि तीए दोसो, जं कंचण-मंदिरेसु रयणीसु ।। उडुपडिफलणट्ठियमणिमएसु भुल्लंति पाहुणया ॥ ४४ ॥ (पउमरहराया) धणवित्तसारचक्को, पिहुलक्खो कलसराइओ सुहओ । तीए पयं परिपालइ रहो व्व सिरिपउमरहराया ॥ ४५ ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो जो नियगुणेहिं सुयणे, रंजइ कलुसइ य दुट्ठ-चित्ताई । बोहइ कुमुआई ससीकरेहिं मउलइ य कमलाइं ॥ ४६ ॥ जस्स पयावो सुहयइ, सुयणे निद्दहइ दुज्जणे दूरं । सोहेइ अग्गिसोयं, अग्गी अवरं दहइ वत्थं ॥ ४७ ॥ धवलं करेइ वि जयं, जस्स जसो रिउमुहाई सामाई । आलोयं देइ रवी, जणाण घूयाणमंधत्तं ॥ ४८ ॥ (पउमावई देवी) तस्सऽस्थि हत्थिकुललीलगामिणीकामिणीसिरोरयणं । कंता पहुत्तनिज्जियपउमा पउमावई नाम ॥ ४९ ॥ कुंकुमरसच्छडासेयअरुणमणिभवणकुट्टिमे जीए । संचरणरंजिया इव, सहावसोणा सहति कमा ॥ ५० ॥ जइ हुतं सुकरिणो, करजुयलं कुंकुमारुणच्छायं । ता हुंतं जीए जंघजुत्तऊरुणमुवमाणं ॥ ५१ ॥ लायण्णरसो जीसे, विलसइ नाहिदहे गहीरम्मि । नयणंजलीहिं कहमन्नहा निवो पियइ तं सययं ? ॥ ५२ ॥ जीए घणत्थणलायन्ननीरउरधरणकारणेण सयं । पालित्तयं व विहिणावलित्तयं णिम्मियं मज्झे ॥ ५३ ॥ जीए कंकेल्लिलय व्व रत्तकरकिसलयाओ बाहाओ ।। कहमन्नहा निवइणो, तच्छाया तावमवहरइ ? ॥ ५४ ॥ अमयावासो जीसे, वयणं कहमन्नहा पहसिरी सा । । सियदंतपंतिकंति, पीऊसं पिव समुग्गिरइ ? |॥ ५५ ॥ सियसरलतरललोयणकडक्खनिक्खेवओऽणुवेलं पि । जा विरयइ सयवत्तोवहारमिव कुट्टिमतलम्मि ॥ ५६ ॥ सिरकयसियचूडामणिकिरणावलिरंजियं चिहुरभारं । .. मुत्ताहलमालावलिसमलंकरियं व जा वहइ ॥ ५७ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं इय सव्वंगीणविसिट्ठरूवरम्माए तीए सह राया । अद्दिट्ठविप्पियाई माणइ संसारियसुहाइं ॥ ५८ ॥ (पयावरहो कुमारो) तीयऽत्थि सुओ पुरपरिहसमभुओ चंदचारुकित्तिजुओ । नामेण पयावरहो, पयावभरविजियतरणिरहो || ५९ ॥ पसरती सियकित्ती, मुउलावइ जस्स सत्तुवयणाई । अहव अमयकरजोण्हा, सम्मीलइ कमलसंडाइं ॥ ६० ॥ जस्स गुणाभिहयाणं मुयंति अंसुं रिऊण नयणाई ।। किं ससिपायप्पहया, न चंदकंता किरंति जलं ? || ६१ ॥ नयरायरायहाणी, लीलालीलावईण कुलभवणं । विउलकमलायरो, जो विलसिरगुणरायहंसाण ॥ ६२ ॥ समधूलिकीलणप्पमुहबहुविणोयप्पवुड्ढनेहेहिं । सह समवएहिं कुमेरहिं कीलिरो गमइ कालं सो ॥ ६३ ॥ जणिय सुमित्ताणंदो, वच्छं लच्छीहरो व्व रेहंतो । गंतुं सहाए निच्चं पि नमिय जणयं समुवविसइ ॥ ६४ ॥ बंधुरबुद्धिप्पमुहाण नीइनिउणाण मंतिवुड्ढाणं । रज्जसिरिभारमप्पिय विलसइ सच्छंदमवणिवई ॥ ६५ ॥ (पउमरहरायकेली रायसासणं च) तहाहि - कइया वि सच्छफालिहनरवाहिविमाणचंदसालाए । घणरायरयणरइयाए, संठिओ भमइ सक्को व्व ॥ ६६ ॥ कइया वि पियालावप्पबंधकहणुज्जओ सह सहीहिं । पविसइ सिसिरारामे विरहारूढो विओइ व्व ॥ ६७ ॥ कइया वि विलासिनर व्व कामिणीसलील व्व कुंभम्मि । दिन्नकरो कीलावइ घणथणमुत्तुंगकरिराए ॥ ६८ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो कइया वि पकामपियासु रइपसंगा वि हरियमणवित्ती । कामि व्व वाहियालिए वाहए वाहविंदाइं ॥ ६९ ॥ कइया वि रायमंडलकलिओ पसरइ सुतारआभरणो । विप्फुरियगुरुपहारो, दुहा जए धवलपक्खो व्व ॥ ७० ॥ सोरज्जरंजियजए, पालंते तम्मि रज्जमणवज्जं ।। कंपइ पवणेण तणं, न उण मणं कस्सइ भएण ॥ ७१ ॥ उज्झित्ताण पहारा, दिज्जति सया वि तरुणि-सहिणाण ।. सुविणे वि सुवित्ताणं, न उणो नयनिट्ठलोयाण ॥ ७२ ॥ दीसइ सुवण्णदंडो, पडिहारकरे इ निवदुवारेसु । परलोयभीरुयाणं, अकयविणासाण सो कत्तो ? ॥ ७३ ॥ परदारासेवा सेवयाण न उणो सुसीलपुरिसाण । न नरा आराम च्चिय संजायकलिप्पियालवणा ॥ ७४ ॥ दूरे महिलासु पइव्वयासु तत्ते वि नत्थि असइत्तं नऽन्नस्स मुणीण पुणो, समत्थि परलोयभीरुत्तं ॥ ७५ ॥ अह अन्नया य राया, रयणाहरणप्पहादुरवलोओ । कणयासणे सह ठिए, निविसइ सक्को व्व मेरुम्मि ॥ ७६ ॥ सेविज्जंतो नरनाह-मंति-सामंत-मंडलवईहिं । जा चिट्ठइ रणनिव्वडियभडकहासवणवक्खित्तो ॥ ७७ ॥ ता वज्जावलिविलसिरमुत्तावलइय-पिसंडिदंडकरो । पडिहारो पणयपहू, कयंजली विन्नवेइ इमं ॥ ७८ ॥ (जुयल) देव ! दुवारे दूओ, समागओ कमलकेसरनिवस्स ।। पहुदंसणं समीहइ इह अत्थे देह मह आणं ॥ ७९ ॥ आह पहू मुंचसु वेत्तवर ! तयं तयणु तेण सो मुक्को । पेच्छइ निवविंदारयविंदाहियसेवमवणिवइं ॥ ८० ॥ गंतुं नियडे विणइं मणिकुट्टिमघडियभालमभिनमइ । दिण्णासणे निविट्ठो विन्नवइ य रइयकरकोसो || ८१ ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (कमलपुरनयरवण्णणं) देव! ऽत्थि भूरिपत्तं पयासियं रायहंसकयसोहं । विलसिरसिरीनिवासं, नयरं कमलं व्व कमलपुरं ॥ ८२ ॥ पेरंतभमरभरपूरियं व परिभमिरतिमिरपसरं व्व । कालोयजलहिपरिवेढियं व गुलियाविलइयं व ॥ ८३ ॥ घणपडलावरियं पिव मयनाहिरसोवलित्तअंतं व । चउदिसि - तमालतरुसंडमंडलीमंडियघरं व ॥ ८४ ॥ सव्वत्तो कालिंदीजलकलियं विव विरायए जं च । सामलरयणसिलासालपिहुपहाजालकयवेढं ॥ ८५ ॥ (कुलयं) (कमलकेसरो राया) सिरिअणंतजिणचरियं तं परिपालइ सिरिकमलकेसरो कमलकेसरामोओ । रायारायामलकित्तिवित्थरुज्जोइयदियंतो ॥ ८६ ॥ अवसारिज्जइ जस्स प्पयाववुड्ढिए सत्तुनिवकित्ती । सूरप्पयारपसेरण चंदजोन्ह व्व भुवणाओ ॥ ८७ ॥ धणओ अत्थीण जमो रिऊण सूरो पयावपसरस्स । कामो कंताण नरो वि भूरिदेवावयारो जो ॥ ८८ ॥ ( कमलसिरी राणी) तस्सऽत्थि सव्वसुद्धंतकामिणीसामिणी - सुगयगमणी । विलसिरकमकमलसिरी कमलसिरी नामिया दइया ॥ ८९ ॥ जा गुरुगुणरूवयचित्तसालिया सीलहंसपुक्खरिणी । कित्तिसुहासिंधुसिरी, कप्पलया जायगजणस्स ॥ ९० ॥ ( कमलावली रायकन्ना) तीयत्थि समग्गकलाकलावकलणिक्कपव्वचंदसिरी । कन्ना वयणविणिज्जियकमला कमलावली नामा ॥ ९९ ।। जा सविलासुल्लसमाणतत्तदित्तीए मुहमयंकस्स । वित्थारइ जोन्हभरं, पाणत्थं पिव चओराण ॥ ९२ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो समलंकियतारुन्ना, कंचणवन्ना ललामलायन्ना । सुवियड्ढपोढसहिविंदसंगया कीलए बाला ॥ ९३ ॥ सव्वुत्तमसोहग्गं, असरिसरूवं विराइसिंगारं । तं दट्टुं पुरतरुणा, पहुणो न हवंति समणस्स ॥ ९४ ॥ नियमणनिजंतणपरा निग्गहियसमग्गइंदियप्पसरा । ईसीसिपरायत्ता जं दटुं हुंति मुणिणो वि ॥ ९५ ॥ मन्ने कहिं पि कुमरिं दट्टुं देवा विओयजायदुहा । पावंति नेव निई, अस्सुवणा तेण भण्णंति ॥ ९६ ॥ (कमलावलीरायकन्नाए बहियाविहारो पुक्खरिणीआरोहणं च) कइया वि सा सुहासणमारुहिय सहियणेण परियरिया । लंबंतमोत्तिओऊलछत्तअंतरियरवितावा ॥ ९७ ॥ चलिरकर-कणिरकंकणरमणीदोधुव्वमाणसियचमरा । नीहरिया पुरपरिसरधराविहारं समणुभविउं ॥ ९८ ॥ परिमियपरिवारा सरिय-सर-पवाराम-मढ-विहारेसु । भमिरी पत्ता पुक्खरिणिमेगमच्चंतरमणीयं ॥ ९९ ॥ जा मुत्तासेलसिलाबंधपहाधवलियं जलं वहइ । खीरोयमहणसंभूयअमरसंगहियअमयं व्व ॥ १०० ॥ जीए पविसिररमणियणरयणभित्तिब्भमंतपडिमाओ ।। लक्खिज्जति जणेणं, सक्खं जलदेवयाओ व्व ॥ १०१ ॥ सारसचंक्कमणा सगडि व्व पियवजा सुहरिसहिया परमारविंदउम्मत्तिसुंदरा अब्बुयमहि व्व ॥ १०२ ॥ चउदाररयणतोरणचलधयरणझणिरकिंकिणिगणाए । मुत्तुं सुहासणं रायकन्नया तीए आरूढा ॥ १०३ ॥ समवयसिंगारविरायमाणससिणेहसहिभुयालग्गा । अवलोयइ पुक्खरिणीए रामणीयगमणुक्करिसं ॥ १०४ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं तयणु मणिमत्तवारणयठवियरयणासणे समुवविट्ठा । सियछत्तालंकरिया चलचामरवीइयसरीरा || १०५ ॥ तत्थ वियड्ढवयस्सीविसरसमारद्धबहुविणोएहिं । वक्खित्तचित्तवित्ती रायसुया चिट्ठए जाव ॥ १०६ ॥ ता वावीमणिवलहीविडंगअग्गट्ठियाए तं दटुं । सालहियाए एगाए जंपिओ नियपई एवं ॥ १०७ ॥ (सालहय-सालहियाण आलावो) पिय ! पेच्छसु रमणीरयणमइसयसरूवविजियरइरंभं । सिंगारगारवाहरियरखीरसागरसुयागव्वं ॥ १०८ ॥ लीलावलोयणुल्लसियलोयणप्फुरियजोण्हपसरेण ।। उल्लासइ दुद्धोदहिवेलाकल्लोलमालं व्व || १०९ ॥ आलवणवणप्पसरमाणसियदंतपंतिकंतीए । मुंचइ सिरि व्व खीरोयवासपीयं व पीऊसं ॥ ११० ॥ सोउं सालहियाए पयंपियं जंपए पई तीसे । रूववइ च्चिय एसा गुणेसु को मच्छरी दइए ? ॥ १११ ॥ अवरं पि जयाभरणं व इह जए इक्कमत्थि नररयणं । विहिविन्नाणपयरिसो कुमरो कमणीयरूवधरो ॥ ११२ ॥ सोहग्गं तं कं पि हु तस्स कुमारस्स जेण रमणियणो । चिट्ठइ रवितवियपहे, तग्गमणागमणकालं जा ॥ ११३ ॥ सामन्नं पि हु जस्सप्पसायदाणं हरेइ दारिदं । जायगजणस्स किं पुण, परिओसुक्करिसदाणाई ? || ११४ ॥ सोरियभावं पयडेइ, जस्स अहरीकयन्नलंकारो । रणरंगलग्गबाणव्वणगणकिणसेणिसिंगारो ॥ ११५ ॥ सोमत्तणेण चंदं तरणिं तिव्वप्पयावपसरेण । गंभीरयाए जलहिं, थिरयाए जिणइ सो मेरुं ॥ ११६ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो एरिसरूवो जुत्तो पिए ! पई एस रूवकुमरीए । को न सलाहए नलिणीए रायहंसस्स संबंधं ? || ११७ ॥ तो जंपइ सालहिया “बहुरयणा वसुमई त्ति सच्चमिणं ।। कहमन्नहा इय गुणो, तुमए दिट्ठो निवकुमारो ? || ११८ ॥ सोउं सालहिया पइपयंपियं रायकन्नयाए सा । तं मलयसुंदरिसही पुच्छइ मंजुस्सरेणेवं ॥ ११९ ॥ सालहिय ! किमभिहाणो सो कुमरो ? कस्स राइणो व सुओ ? कत्थ व तुमए दिट्ठो, जं नियदइयाए साहेसि ? || १२० ॥ सालहएणं भणियं एत्तो ठाणाओ विउलगिरिसिहरे । चुणिउं चलिओ जा हं रिट्ठउरी नियडगयणेण ॥ १२१ ॥ ता पेच्छामि घणडुमपरंपराहरि-तरणितावपहे । विप्पालंबइयच्छत्तसिक्किरीरायमाणबलं ॥ १२२ ॥ को एय पहु ? त्ति विचिंतिऊण हं तन्निरिक्खणनिमित्तं । अल्लीणो सहयारदुमस्स साहाए सिसिराए ॥ १२३ ॥ मग्गडुपाससंठियचउरंगचमूचयस्स मज्झ ठियं । पेच्छामि रायकुमरं एगं तुरगं पकीलिंतं ॥ १२४ ॥ भमिचारिक्कपुलाहिं टंपा झंपाविसिट्ठवेगेहिं ।। वाहतस्स हयं से बंदिवई पढिउमाढत्तो ॥ १२५ ॥ रिट्ठउरिनयरिनायगपउमरहनरिंदकुलतिलय कुमर ! पावसु विमलपसिद्धिं पयावरह केवलि व्व तुमं ॥ १२६ ॥ इय पढिए सो बंदी कुमरेणाभरण-दविण-वत्थेहिं । सम्माणिओ तहा जह जाओ ईसरसिरोरयणं ॥ १२७ ॥ तो तम्मि रायतणए वलिए कीलाविउं तुरयनियरं । अहमेत्थ समणुपत्तो निययावासम्मि उड्डेउं ॥ १२८ ॥ दीसंती पभूया वि हु कुमरा नवरं न तारिसो कोइ । जोइसिया पउरा वि हु संति न ससिणो समो अवरो ॥ १२९ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ता सुब्भु ! मए कहिओ पियाए रिट्ठउरिराय अंगरुहो । रूवेण न जस्स समा अमरासुर - खेय वि धुवं ॥ १३० ॥ तीए च्चिय रमणीयणमज्झे होही धुवं जयपडाया । जा तस्स पियासद्दं उव्वहिही असमसोहग्गा ।। १३१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं दासितं पि हु पुन्नेहिं लब्भए नूण तस्स नरमणिणो । किं पुण सलाहणिज्जं भुवणस्स वि सहचरितयं ॥ १३२ ॥ ( कमलावलीए उम्मायावत्था) इय कुमरवन्नणस्सवणजायपोढाणुरायरसियाए । कुमरीए सहिमुहेणं वाहरियं पक्खिमिहुणं तं ॥ १३३ ॥ कंचणमुद्दाओ कमेसु रयणरम्माओ तस्स निहियाओ । कंठेसु कंठियाओ वि मुत्तासेणीहिं विहियाओ ॥ १३४ ॥ तो तं विसज्जिऊणं नरिंदतणया सुहासणासीणा । संपत्ता नियभवणे उम्मीलियविरहवेयल्ला ॥ १३५ ॥ अद्दिट्ठेणं वि कुमरेण तीए सहस त्ति हिययमवहरियं । वियसियवणराईए परिमलपसरो व्व पवणेण ॥ १३६ ॥ सन्निहियं पि मममिमा मोत्तमपुव्वम्मि निवसुए रत्ता । इय अवमाणवसेण व समुज्झिया सा विवेण ।। १३७ | सहचारियं विवेयं अणुसरिय गया रई वितं मुत्तुं । अहव पवित्ति - निव्वित्ती उ हुंति सममेगजोगीण ॥ १३८ ॥ नाउं विवेयमुक्का गहिया सा असुह - अरइ-अवेईहिं । अहवा छिड्डसएसुं भूयसयाई पि पविसंति ॥ १३९ ॥ रायसुयअदंसणपवणपसरपज्जालिओ व्व वित्थरिओ । तीए मणोवणगहणे सुदुस्सहो विरहदावग्गी ॥ १४० ॥ तो तत्तावुत्तत्ताए तीए चंदणरसच्छडासारो । सच्चंकारं पडिडज्झिरो स समुग्गिरइ सोरंभं ॥ १४१ ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो विरहानलतत्तंगुव्वत्तण-परियत्तणेहिं बालाए । उल्लसइ मम्मररवो नवकमलदलालिसत्थरए ॥ १४२ ॥ सिसिरोवयारपरपासवत्तिणं सहियणं दहइ दूरं । गिम्हसिरि व्व पसरिया लूयानलउण्हसासेहिं ॥ १४३ ॥ देहुण्हाए तीए तड त्ति फुटुंति मोत्तियाईणि । रयणाई फलाई पिव एरंडदुमस्स तावेण ॥ १४४ ॥ निद्दा-छुहामई-धिइ-लज्जा-लीलाओ सइ ठियाओ वि । दाहभयुत्तत्थाउ व न तीए देहे निलीयंती ॥ १४५ ॥ एयमवत्थं तं पेच्छिऊण कमलस्सिरीए देवीए । कहिओ सहीहि गंतुं कुमरी वेयल्लवुत्तंतो ॥ १४६ ॥ तं सोउमाह देवी किमजुत्तं ? जं महानिवसुओ सो । कुमरी वि कुमारी ता वीवाहिज्जंतु एयाइं ॥ १४७ ॥ इय जंपिय देवीए वुत्तंतो साहिओ महीवइणो । तेणावि अमच्चाणं ते वि पयंपंति जुतं ति ॥ १४८ ॥ तो देव ! अहं तुम्हक्कमंतिए पेसिओ नियनिवेण । तुम्ह तणयस्स कन्नं दाउं परिवज्जिय विलंबं ॥ १४९ ॥ ता कयमहापसाया पेसह कुमरं नरिंदतणयाए । परिणयणत्थं ति पयंपिऊण दूओ ठिओ मोणे ॥ १५० ॥ तो सजलजलहरागज्जियजयणासद्देण जंपए राया । जुत्तो च्चिय दूय ! इमो कुमार-कुमरीण संबंधो ॥ १५१ ॥ इय जंपिऊण नियवामपासठियकुमरमाह नरनाहो । गंतुं वच्छ ! नरेसरकन्नं वीवाहिउँ एहि ॥ १५२ ॥ इय जणयाणं सीसे समुव्वहंतेण तेण कुमरेण ।। पणमिय भणियं मह ताय ! तुम्ह आणा पमाणंति ॥ १५३ ॥ तुट्टेण तओ रन्ना रयणाभरणेहिं अंगलग्गेहिं । वत्थेहि य विविहेहिं विहिओ दूयस्स सम्माणो || १५४ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं सामंत-मंडलेसर-सेणावइ-मंतिपुत्तपरियरिओ । चउरंगबलो दूएण सह सुओ पेसिओ रन्ना ॥ १५५ ॥ सुहमुहुत्ते संचलिओ कुमरो नमिऊण देवगुरुचरणे । कज्जमवरं पि कीरइ धम्माइं किं न मंगल्लं ? ॥ १५६ ॥ कइया वि रुइरमाणिक्कमणिमयाभरणरइयसिंगारो । राया रयणसिहासणकयट्ठिई चिट्ठए जाव || १५७ ॥ ता रयणखंडमंडियपिसंडिमयदंडरायमाणकरो । पविसेउं पडिहारो पणमिय विन्नवइ अवणिवइं ॥ १५८ ॥ देव ! दुवारे उज्जाणपालओ कुसुमपरिमलो नाम वंछइ पहुपयदंसणमेस्थत्थे देह मह आणं ॥ १५९ ॥ रायाह सिग्घमेव य मुंचसु तं तयणु तेण मुक्को सो । पविसिय सहाए निवई नमिउं विन्नवइ विणयपरो ॥ १६० ॥ (चित्तरक्खसूरिआगमणं) देव ! कलकोइलम्मि उज्जाणे अज्ज वज्जियावज्जो । नामेण चित्तरक्खो सूरी पत्तो सपरिवारो ॥ १६१ ॥ . पयरिक्कज्झाणठिओ वि जो सयायरियलोयकायव्वो । वज्जियविसयग्गामो कयविसयग्गामगमणो वि ॥ १६२ ॥ दाहिणपासा वामं चालंतो गुरुनईए रयहरणं । ढालइ जो चमरं पि व हिययट्ठियवीयरायस्स ॥ १६३ ॥ सहइ करकमलकलिया अनिलचला जस्स धवलमुहपोत्ती । भुवणेक्कवीररइवइविजय(महा)जयपडाय व्व ॥ १६४ ॥ ता तस्स दंसणं पहु ! इह परभवसव्वसोक्खसंजणणं । एयत्थे विन्नत्तं तस्साऽऽगमणं मए पहुणो ॥ १६५ ॥ तं सोऊण निवेणं पहरिसरोमंचअंचियंगेण ।। वत्थाऽऽभरण-धणाई दिन्नाइं पीइदाणे से ॥ १६६ ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो । ( पउमरहरण्णो मुणिवंदणत्थं नीहरणं) तो रयणाभरणालंकियम्मि गिरिगुरुकरेणुरायम्मि । आरूढो परिविलसिरसिंगारविरायमाणतणू ॥ १६७ ॥ सिरिछत्तअंतलंबंतमोत्तियोऊलजुण्हपसरेण । गुरुवंदणचलणुसूयभूरिपुत्तेण वाणुगओ ॥ १६८ ॥ धवलिज्जतो रमणीकरसियचलचमरकंतिपसरेण । निम्मलनयनिव्वत्तियससिकरसियजस भरेणेव ।। १६९ ।। गंडयलगलिरमयसलिलगयघडारूढरायकयवेढो । वग्गरउत्तुंगतुरंगसंगिमंडलियमंडलिओ ॥ १७० ॥ चलिरद्वयालिखलहलिर-घरघरारणिरकिंकिणि - रहेहिं सामंतजुएहिं जुओ चक्कारयकणिरकंसीहिं ॥ १७९ ॥ बहुभेयपहरणग्गहणवग्गपाइक्कचक्कलल्लक्को । सहिओ सुहासणासीणवत्थपच्छाइयपियाहिं ॥ समकालचारुचारणचक्कुच्चारियथुईहिं थुव्वंतो । नहयलमलंकरंतो चलचिंधालंबछत्तेहिं ॥ १७३ ॥ वज्जंतमंगलाउज्जमंजुसरपसरपूरियदियंतो । सिरिपउमरहनरिंदो नीहरिओ सूरिनमणत्थं ॥ १७४ ॥ पत्थिज्जंतो पुरितिय - चउक्क - चच्चरठियाहिं रमणीहिं । गुरुरिद्धिवित्थरेणं पत्तो कलकोइलज्जाणे ॥ १७५ ॥ सरलसियमुभयहा वि हु दुहा वि सव्वाइनयविहियसोहं । विलसिरसोहं जणसंकुलं व जं सव्वओ सहइ || १७६ ।। रंभासोय - तमालप्पबुद्धसयवत्तहसियवन्नेहिं । चउवन्नपुरिं जेउं व पंचवन्ने जमुव्वहइ ॥ १७७ ॥ तम्मि विसंतो पेच्छइ सूरिं तवतेयदित्तसाहूहिं । सत्तरिसीहिं परिगयं गहियव्वयममरनाहं व्व ॥ १७८ ॥ १७२ ॥ १५ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं कंचणकमलासीणं सुचउरवयणप्पवत्तियविवेयं ।। कमलासणं व सावित्तिमुत्तिउल्लसियतेयभरं ॥ १७९ ॥ (जुयलं) तं दटुं परिहरिउं करेणुरायं सपंचनिवककुहं ।' रइऊण उत्तरासंगमुत्तमं उत्तरीएणं ॥ १८० ॥ अमरासुर-नर-नहयरसहाए पविसित्तु रायविंदजुओ । दाउं पयाहिणतिगं गुरुक्कमे नमइ भत्तीए ॥ १८१ ॥ तो से चिंतामणि-कामधेणु-कप्पदुमाहिओ दिन्नो । सद्धम्मलाहआसीवाओ गुरुणा नरिंदस्स || १८२ ॥ सेसे वि हु नीसेसे निस्सेयससोक्खदायगे मुणिणो । अभिवंदिय उवविट्ठो राया पुणरुत्तगुरुपणओ ॥ १८३ ॥ गुरुणा वि जलहरज्झुणिजइणा सद्देण देसणा तीए । सुर-असुर-नरसहाए पारद्धा पारभवहरणी ॥ १८४ ॥ (धम्मदेसणा-चउगइसंसारसस्वं) भो भो ! भव्वा ! एसो नारय-तिरि-नर-सुरप्पभेएहिं । होइ भवो चउभेओ पायं दुक्खस्सरूवो सो || १८५ ॥ जे निरवराहजीवे हणंति आहेडयाइकरणेण । मंसं भक्खंति महुँ पियंति जंपति य असच्चं ॥ १८६ ॥ चोरंति परधणाई सीलं खंडंति परकलत्ताणं । कुव्वंति महारभे गिण्हंति परिग्गहे पउरे ॥ १८७ ॥ रोद्दज्झाणाईहिं य पभूयपावेहिं पेरिया संता । सत्ता सत्तसु वि पडंति घोरनरएसु ते झत्ति ॥ १८८ ॥ खेत्तसहावसमुत्थं अइदुस्सहताव-सीयभररूवं ।। परमाहम्मियजणियं अन्नोन्नुद्दीरणभवं च ॥ १८९ ॥ कुंभीपागं करवत्तदारणं वज्जकंटयाहणणं । अइतत्ततउप्पाणं वेयरणीतारणं च बहुं ॥ १९० ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ पढमपत्थावो इच्चाइवेयणं सहिय वेइयासुहविवागकम्मभरा । थोवठियअसायवसा सत्ता तिरियत्तणमुर्विति ॥ १९१ ॥ मित्ताइवंचणेणं माया-पेसुन्नपयडणेणं च । धण-गिह-सयणाईणं मोहेणय य जंति तिरियत्ते ॥ १९२ ॥ तत्थ वि दहणंकण-दोह-वाह-मंसासिवह-विरोहेहिं । जंति क्खयं वराया दव-सीय-महायवेहिं च ॥ १९३ ॥ तत्थ ट्ठिया वि के वि हु रोद्दज्झाणज्जिएहिं पावेहिं । पुणरुतं सव्वासु वि भमंति नेरइयपुढवीसु ॥ १९४ ॥ अवरे उ कुकम्मभरं निज्जरिउमकामनिज्जराए बहुं । सच्छा अप्पकसाया समभावा इंति मणुयत्ते ॥ १९५ ॥ तत्थ वि गुरुतरदारिद्ददूमिया दुसहरोगअक्कंता । दुत्थावत्थं पत्ता सत्ता कटं चिय सहति ॥ १९६ ॥ अभिहम्मंति रिऊहिं पराहविज्जति ईसरनरेहिं । संगणेहि परिहरिजंति माणिणो वि हु अकयसुकया ॥ १९७ ॥ नारय-तिरियगईसुं के वि हु रोद्दऽट्टज्झाणपत्तासु । उप्पज्जति वराया दुकम्मगलत्थिया संता ॥ १९८ ॥ अवरे पुणोणुकंपा-बालतव-च्चरण-दाणपत्तेण । संजायंते जीवा सामन्नसुरेसु पुन्नेण ॥ १९९ ॥ तत्थ वि पररमणीरायजायतयलाभविरहविहुरंगा पावंति महादाहं, उल्लसियविसायवेयल्ला || २०० ॥ पररयणरासिलुद्धा तह असहंता परप्पहुत्तस्स । कुव्वंति महाईसं दटुं च पियं परासत्तं ॥ २०१ ॥ आणाखंडणपरिकुवियसक्कपम्मुक्कवज्जघायहया । भाडगया चणगा इव दाहं विसहंति छम्मासे || २०२ ॥ ईसाणंता मोहेण के वि एगिदियत्तणं जंति । अट्टज्झाणेणऽन्ने उ इंति तेरिच्छिगब्भम्मि ॥ २०३ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं के वि पुणो सुकयोदयसमस्सिया इंति उत्तमनरत्ते । आरियखिक्तुत्तमगोत्तपमुहसामग्गिसहियम्मि ॥ २०४ ॥ एवं चउव्विहम्मि वि भवे न पायं समत्थिसत्ताण । सोक्खं सद्धम्मविवज्जियाण गुरुकम्मकलियाण ॥ २०५ ॥ (धम्मे देव-गुरु-धम्मतत्तपरिक्खा य) धम्मो भुवणत्तयविवरवत्तिवंछियपयाणकप्पतरू । धम्मो समग्गकल्लाणवणवियासेक्कमहुसमओ || २०६ ॥ धम्मो दुग्गइमग्गदुवारपरिरुंभणग्गलादंडो । धम्मो दुग्गमसग्गापवग्गसम्मग्गसत्थाहो ॥ २०७ ॥ निययं निययं निययं तं सिवदं बिंति लिंगिणो सव्वे । ता गज्झो धम्मत्थीहिं सो परिक्खिय सुवन्नं व ॥ २०८ ॥ जह कस-ताव-च्छेएहिं सुद्धकणयं न विहडइ कयाइ । तह विहडइ न कयाइ वि धम्मो वि परिक्खिउं महिओ ॥ २०९ ॥ जं कित्तिमं सुवन्नं पभूयकाले वि विहडइ जहा तं । तह कीरंतो धम्मो वि विहडए जस्स न परिक्खा ॥ २१० ॥ ता आयन्नह तह भो ! जहा परिक्खा विहिज्जए तस्स ।। देवो गुरू य तत्ताई जाणियव्वाइं सम्ममिहं ॥ २११ ॥ नीरागो निद्दोसो अणंतनाणावलोइयतिजओ । उवसंतो उवयारी पवज्जियव्वो जिणो देवो ॥ २१२ ॥ जे पुण रागद्दोसाइएहिं दोसेहिं दूसिया दूरं । ते भवकूवनिवडिया अन्नं कहमुद्धरिस्संति ? ॥ २१३ ॥ निग्गंथो गीयत्थो पंचविहायारपालणुज्जुत्तो । पंचसमिओ तिगुत्तो संतो दंतो गुरू गज्झो ॥ २१४ ॥ नाणी जाणइ सयमवि जाणावइ अवरमवि गुरू कहिउं । पावइ न वंछिय पुरं अंधो अंधेण निज्जंतो ॥ २१५ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमपत्थावो जे एयगुणविहीणा नूण कुगुरुणो भवोयहिम्मिं ते । लोहतरंड व्व समस्सिए वि के लिंति बुडुंता ? || २१६ ॥ नवतत्ताई जीवाऽजीवा पुन्नं च तह य पावं च । आसव-संवर-बंधा, मोक्खो तह निज्जरा चेव ॥ २१७ ॥ इग-बि-ति-चउर-पणिंदियरूवा चित्ताइलक्खणा जीवा । हुंति अजीवा धम्माऽधम्माऽऽगासाइबहुभेया ॥ २१८ ॥ सुहकम्मपोग्गलेहिं पुन्नं पावं तु तेहिं असुहेहिं । पुन्नं जोगविसुद्धी पावं आसवइ तदसुद्धी ॥ २१९ ॥ मण-वय-कायनिरोहो निरासवो संवरो समक्खाओ । बंधो कम्माण समज्जणम्मि तम्मोयणे मुक्खो ॥ २२० ॥ निज्जरणं कम्माणं तवकिरियाकरणसुद्धिसब्भावे । इय तत्तं तुम्हाणं नवहा सिवसाहयं कहियं ॥ २२१ ॥ ता एय परिक्खाए देव य गुरु-तत्तसंगहे विहिए । उप्पज्जइ सद्धम्मो अविसंवाई सिवेक्कफलो ॥ २२२ ॥ सम्मं जीवदया जम्मि कीरए मुच्चए मुसावयणं । घिप्पइ य दंतसोहणमेत्तं पि तणं पि नऽन्नेसिं ॥ २२३ ॥ पालिज्जइ बंभं बंभचेरगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । बज्झऽब्भंतरगंथच्चाया कीरइ अगंथत्तं ॥ २२४ ॥ पुव्वावराविरुद्धो एसो धम्मो न विहडइ कयाइ । कुगइगमणं निवारइ पणामए मोक्खमक्खेवा ॥ २२५ ॥ पुव्वं दयाए कहिउं जीववहेण वि कहति जे धम्मं । ते विप्पयारया तो तद्धम्मो नेव कायव्वो ॥ २२६ ॥ . सो सद्धम्मो दुविहो जइ-सावयभेयओ जिणक्खाओ । पढमो जइधम्मो दसप्पयारो बारसभेओ भवइ बीओ ॥ २२७ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० सिरिअणंतजिणचरियं (जइधम्मो) खंती य मद्दवऽज्जवमुत्ती-तव-संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ २२८ ॥ कज्जम्मि अकज्जम्मि व रोसस्स विणिग्गहे हवइ खंती । विणयम्मि कीरमाणम्मि मद्दवो होइ माणजया ॥ २२९ ॥ सो अज्जवो त्ति मायाजयम्मि परवंचणाइपरिहारो । सिलियाए वि निरीहस्स होइ मुत्ती गए लोहे ॥ २३० ॥ अणसणपमुहो बज्झऽब्भंतरभेओ तवो दुवालसहा । तह संजममवगच्छह सतरसविह-आसवनिरोहे ॥ २३१ ॥ अविसंवायणजोगप्पमुहं चउहा पयंपियं सच्चं । सोयं तु सुद्धभत्ताइएहिं देहोवगारित्ता ॥ २३२ ॥ आकिंचन्नं इंदिय-धण-सयण-सुहाण चायओ होइ । बंभं नव नव भेयं कज्जं दिव्वं उरालं च ॥ २३३ ॥ काउं दसप्पयारं पि समणधम्म इमं महासत्ता । पावंति सिद्धिसोक्खं इण्हि गिहिधम्ममक्खेमो ॥ २३४ ॥ (गिहिधम्मो) पाणिवह-मुसावाए-अदत्त-मेहुण-परिग्गहो पंचेव ।। दिसि-भोग-दंड-समइय-देसे-तह पोसह-विभागे ॥ २३५ ॥ जाजीवं थूलाणं जीवाणं रक्खणे हवइ पढमं । बीयव्वयं तु जायइ थूलं अलियं अभणिरस्स ॥ २३६ ॥ तइए अणुव्वए चयइ खत्तखणणाइ थूलधणहरणं । दिव्वोरालियपररमणिवज्जणे थूलं बंभवयं ॥ २३७ ॥ संखेवियम्मि नवविहपरिग्गहे होइ तप्परीमाणं । जोयणसंखा अह-उड्ढ-तिरियदिसिमंडले कज्जा ॥ २३८ ॥ परिमाणं उवभोगे परिभोगे चिय सया विहेयव्वं । मोत्तूणं धरणाई निसाए न कयाइ भोत्तव्वं ॥ २३९ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ पढमपत्थावो चइयव्वो चउहा अणत्थदंडो सया अणत्थकरो । साहूहिं व होयव्वं घेत्तुं सामाइयं बहुहा ॥ २४० ॥ निच्चंपि नियमसंखेवणेण देसावगासियं कज्जं ।। आहाराइच्चाएण चउब्विहं पोसहं बिंति ॥ २४१ ॥ साहूण सुद्धदाणेण भन्नए अतिहिसंविभागो त्ति । बारसविहो वि सावयधम्मो तुम्हाण परिकहिओ ॥ २४२ ॥ । एसो वि देइ मोक्खं भवंतरे नेव तम्मि चेव भवे । कहिया दुन्नि वि एए धम्मा तुम्हाण भवहरणा ॥ २४३ ॥ देव-गुरु-तत्तविसए जा निच्चलया तमेव सम्मत्तं । संकाइयाइयारा तम्मि सया परिहरेयव्वा ॥ २४४ ॥ विसलहरीउ जहा अवसरंति अमयाभिसित्तसत्तस्स । तह पावप्पयईओ सम्मत्तजुयस्स भव्वस्स ॥ २४५ ॥ एक्कं पि हु सम्मत्तं नारय-तेरिच्छगइदुगं हरइ । . वियरइ य सुदेवत्तं सुमाणुसत्तं च सिद्धिं च ॥ २४६ ॥ किं पुण विसुद्धसम्मत्तपुव्वया साहु-सावयजणस्स ? । धम्मा सम्मं विहिया भवभयभीरूहिं भव्वेहिं ॥ २४७ ॥ इय चित्तरक्खगम्मि मुणिराए देसणं कुणंतम्मि । धम्माभिमुही जाया परिसा सनराऽमरा दूरं ॥ २४८ ॥ गिहिति सव्वविरई के वि हु अवरे उ देसविरई पि । अन्ने पुण सम्मत्तं के वि नरा भद्दया जाया ॥ २४९ ॥ तयणु मणुम्मीलियअप्पमाणबहुमाणजायरोमंचो । आणंदवसपवन्नंसुधोरणीधोयगंडयलो ॥ २५० ॥ उन्भूयभत्तिपब्भारभावपाउब्भवंतपरिओसो । कयकरकोसो नमिउं नरेसरो विन्नवेइ गुरुं ॥ २५१ ॥ (जुयलं) पहु ! तुम्ह देसणावयणमंदरुम्महियहिययजलनिहिणो । उल्लसिओ अमयकरो अमयकरो विव मह विवेओ ॥ २५२ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं रयणीतिमिरं पिव तेणमवहियं मज्झ मोहतमजालं । पवियसियं विव सहसा सुहपरिणइकुमुयसंडंपि ॥ २५३ ।। परिपीणियं च पुन्नप्पयईए जलं चओरचक्कं व । तस्सुल्लासेण अहं अलंकिओ गयणमग्गो व्व ॥ २५४ ॥ नीओ य पवित्थारं मह बंधुरधम्मदुद्धसिंधुवई । मउलीकयं च तेणं तह पावप्पयइकमलवणं ॥ २५५ ॥ पत्ते वि साहुधम्मे अंगीकाउं तरामि गिहिधम्मं । सिरबुक्कं वि उक्खिवइ दुग्गओ रोहणे वि गओ ॥ २५६ ॥ ता काऊण पसायं इण्हिमसत्तस्स सव्वविरईए । मह देह देसविरई सत्तिसमो धिप्पए भारो ॥ २५७ ॥ तो गुरुणासंवेगावेगवसुल्लसियसुद्धभावस्स । दिन्नो रन्नो सावयधम्मो सम्मत्तसंजुत्तो ॥ २५८ ॥ सुस्सावयवयविंदं पीऊसं पिव तिसाभिभूएण ।। गहियं बहुमाणेणं रयणनिहाणं व रोरेण ॥ २५९ ॥ तग्गहणाओ नरिंदो दूरं परिओसपूरिओ जाओ । लाहो सामन्नो वि हु सो य न किं सिवेक्कफलो ? || २६० ॥ धम्मफललाहलालसचित्तो विणएण पुच्छए गुरुणो । पहु । जस्स देसविरई जाया मोक्खाय तं कहह ॥ २६१ ॥ अह आह साहुनाहो नरिंद ! एक्कग्गमाणसो होउं । गिहिधम्मपालणफले सुणसु कहं चंदसेणस्स ॥ २६२ ॥ ॥ छ । (गिहिधम्मे चंदसेणकहा) दिसि दिसि निसिससिपहभरिय वरमणिभवणसलिलसमियरयं । चंदउरं नाम पुरं समत्थिरन्नसुदेसरमणियं ॥ २६३ ॥ चउपासघुसिणरसरंजियं व सिंदूरपूरभरियं व । परिभमियअसोयवणं व फुरियथिरसंज्झरायं व ॥ २६४ ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिथम्मे चंदसेणकहा सोयामणिप्पहावेढियं व अरुणोरुकंतिकलियं व ।। जं सव्वत्तो तवणीयसालपहसरपरिक्खित्तं ॥ २६५ ॥ . एगोऽत्थि महादोसो तम्मि पुरे सव्वगुणगरिठे वि ।। जं अट्ठावयकलिओ दुव्वन्नजुओ य वसइ जणो || २६६ ॥ तं परिपालइ राया नाया नीसेसनीइसत्थस्स । चंदावयंसओ नाम कामरूवो कणयगोरो ॥ २६७ ॥ जो जंपतो रत्ताहरप्पहं धवलदंतकंतिं च । पयडइ जणाणुरायं जसपब्भारं च अणवरयं ॥ २६८ ॥ जस्स करक्कंतारोसमंतठाणट्ठिय च्चिय विवक्खा । अग्गि मुयंति रविकरपहया अचला वि रविकंता ॥ २६९ ॥ तस्संतेउरसारा हारावलि रइयरम्मसिंगारा । वयणविणिज्जयचंदा समत्थि चंदावली कंता ॥ २७० ॥ सामा वि सुतारा वि य सयलकलाकलियरायकंता वि । अखरकरा वि अदोसा जं देवी तं महच्छरियं ॥ २७१ ॥ जीए परोप्परपरवुड्ढिपेच्छणुच्छलियमच्छरभर व्व । अन्नोन्नपीडणपरा सिहिणो सामाणणा जाया ॥ २७२ ॥ पंचविहं विसयसुहं उव जंतस्स तीए सह जंति । रन्नो अन्नाया एव दिवसा दिवसाहिवमहस्स ॥ २७३ ॥ धणयसमरिद्धिबंधुरजणजणवयनिवहसंकुलं रज्जं । कंचण-रयणाभरणेहिं पूरिया भूरिभंडारा || २७४ ॥ निस्सेसधन्नपुन्ना कोट्ठागारा य गयवरा मत्ता । उत्तुंगा य तुरंगा रहा य रणझणिरकिंकिणिया ॥ २७५ ॥ उन्भूयभत्तिसारा सामंता मंतिणो य मंडलिया । अच्चंतं अणुरत्तो अंतेउरतरुणिनियरो य ॥ २७६ ॥ निव्वंसत्तं नीओ सत्तुगणो सुहिजणो समुद्धरिओ । सयणा वि समग्गा वि हु पडिपुन्नमणोरहा विहिया ॥ २७७ ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૪ सिरिअणंतजिणचरियं भुत्तं च विसयसोक्खं बहुकालं ता समत्थि नो तस्स । किं पि हु खूणं मोत्तूणमेगमणवच्चयादुक्खं ॥ २७८ ॥ तत्थ वि अत्थे उवजाइयाई दिन्नाइं भूरिदेवाण । विहिया य मंत-मूलिय-न्हाणाइउवक्कमाऽणेगे ॥ २७९ ॥ किं बहुणा ? जं जं जाणगेहिमइदुक्करं पि उवइडें । तं तं सकलत्तेण वि सव्वं पि कयं नरिंदेण ॥ २८० ॥ नवरं नेगो वि सुओ जाओ जइ वा परम्मुहे दिव्वे । सव्वं पि होइ विहलं (सहलं) पुण सम्मुहे तम्मि ॥ २८१ ॥ (महालच्छी दंसणं) अह अन्नया नरिंदो निसीहसमयम्मि जग्गए जाव । ता नियइ दुरालोयं तेयप्पसरं परिप्फुरियं ॥ २८२ ॥ तह तम्मज्झे जोव्वणरमणीयं तारतरलसरलच्छि । पउमासणोवविठं मुहजियवियसियसहस्सदलं ॥ २८३ ॥ सिंचिज्जति सियगुरुकरिंदकरकलियकणयकलसेहिं । करजुयलट्ठियवियसियकमलरूणुज्झुणिरछच्चरणं ॥ २८४ ॥ पावरियदेवदूसं दिव्वालंकाररइयसिंगारं । अच्चन्भुयख्वधरं समीवपत्तं महालच्छि ॥ २८५ ॥ (कुलय) अवलोइऊण नियगोत्तदेवयं मुक्करयणपल्लंको । पणमिय कयंजली विन्नवेइ राया तयं देविं ॥ २८६ ॥ तं देवि ! जणमणोवंछियत्थवित्थारदाणकप्पलया । तं चेव खीरनीरहितणए ! भुवणाहिलसणीया ॥ २८७ ॥ सो चेव पुन्नपत्तं सामिणि ! सिविणा वि जेण दिट्ठा सि । किं पुण सक्खं चिय निययदंसणं देसि जस्स तुमं ? || २८८ ॥ ता कयमहापसाया निओयदाणेण मं अणुग्गहसु । इय कयकरकोसे विन्नवित्तु मोणट्ठियम्मि निवे ॥ २८९ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो सा सुइसुहयरसरअहरीकयकिन्नरीनियरकंठा । आइसइ वच्छ ! किं नियकुलुन्नई पइ पमायपरो ? || २९० ॥ तुम्हारिसा वि जइ असमसाहसुत्तासया जमस्सावि । अवहीरिय धीरिममिय पमायओ वोलयति कुला ॥ २९१ ॥ ता नूण पउत्था पुरिसयारवत्ता वि भुवणगब्भम्मि । न समीहियसिद्धीओ संपज्जंति प्पमाईणं ॥ २९२ ॥ ता साहसमवलंबिय कं पि हु तह वच्छ ! उज्जम कुणसु । जह होइ तुह कुलुन्नइकरो सुओ पूयए य ममं ॥ २९३ ॥ रायाऽऽह देवि ! साहसमहमवलंबामि जत्थ तं कहसु । देवी जंपइ कीए वि देवयाए पुरो राया ॥ २९४ ॥ भणइ निवो किं तुज्झ वि सयासओ का वि देवया अवरा । पवरा समत्थि जमहं पसायइस्सामि साहसओ ? ॥ २९५ ॥ किमियरदेवीहिं मह पत्ताए उत्तमाए देवी ! तए ? । किमवररसेहिं कज्जं पत्ते अमए मरणहरणे ? ॥ २९६ ॥ भग्गो मग्गो वि तए भूनाह ! हिओवएसदाणस्स । जं पुत्तुप्पत्तिकए उवरोहसि ममिय तीयुत्तं ॥ २९७ ॥ तो भणइ निवो पुत्तं वियरसु गिन्हसु व देवि ! मह पाणे । वित्थरउ अज्ज तोसो सोओ वा भुवणगब्मम्मि ॥ २९८ ॥ उल्लवइ महालच्छी अणहुंतमहं सुयं कहं देमि ? | जा तुज्झ रक्खिगा हं सा तं कह राय! मारेमि ? ॥ २९९ ॥ रायाऽऽह देवि ! निययप्पइन्नभंगं न चेव काहमहं । पुत्तो तुज्झायत्तो मरणं पुण मज्झयाऽऽयत्तं ॥ ३०० ॥ इय जंपिरेण जमजीहसच्छहं छुरियमुक्खिविय तेण । वामकरधरियकेसं पारद्धं छिंदिउं ससिरं ॥ ३०१ ॥ तो छिज्जंतनसाजालगलिरकीलालसंवलियदेहो । राया सारुणकिरणो कणयाभो भाइ मेरु व्व ॥ ३०२ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं . न पयत्तवाहिओ वि हु रायकरो वहइ अद्धछिन्नसिरे । तो संजाओ राया मसिकसिणमुहच्छवी झत्ति ॥ ३०३ ॥ मा साहसं ति मा साहसं ति देवीए जंपमाणाए । धरिउं भुयाए भणिओ वरसु वरं जेण तुट्ठम्हि ॥ ३०४ ॥ भणियं भूमीवइणा वरेण मह कुणसु करयलं पउणं । छित्तुं सिरकमलं तुज्झ पयजुयं जेण पूएमि ॥ ३०५ ॥ देवीए जंपियं वच्छ ! तुह करो करिवियारणपडू वि । छिंदंतो गलनालं थंभिय अचलो मए विहिओ ॥ ३०६ ॥ तुह सत्तपरिक्खत्थं कयाई पच्चुत्तराइ पुत्त ! मए । दिन्नो य तुज्झ पुत्तो निवलक्खणजायसंजुत्तो ॥ ३०७ ॥ भावियभविस्सनियपूयविरमणुप्पन्नसोयविवसाए । नमिय मए तुह पुत्तुप्पत्तिं पुट्ठो विमलनाणी ॥ ३०८ ॥ सो आह सहस्सारामरलोयाओ अणंततेयसुरो । होही पुत्तो चंदावयंसयप्पिययमवराए || ३०९ ॥ तं सोउमहं वद्धाविउं तुमं आगय त्ति तो रन्ना । पणमिय भणियं तं चेव मह हिया सामिणि । न अन्ना ॥ ३१० ॥ इय जंपिऊण कुंकुम-कप्पूरा-गरु-सुयंधकुसुमेहिं । निवकयपूया सहसा तिरोहिया सा महालच्छी ॥ ३११ । तो सामपक्खमेहंधयाररयणीए विज्जविरमम्मि । भुवणं व भवणमंधारियं तयं देवयावगमे || ३१२ ॥ तयणु नरिंदो देवी विइन्नपुत्तप्पसायसंतुट्ठो । माणइ निदं संजायसुहसुहासारसंसित्तो ॥ ३१३ ॥ तो महुरवाणिमागहमंडलउग्गीयजयसरुम्मिस्सं । सोऊण गोसतूरारवं निवो झत्ति पडिबुद्धो ॥ ३१४ ॥ उट्ठइ पल्लंकाओ नमोऽरहंताणमिय पयंपतो । कयपाहाउअ-किच्चो मणिभूसणजणियसिंगारो ॥ ३१५ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा रायत्थाणट्ठावियमणिमयसीहासणे समुवविट्ठो । कयरज्जकज्जचिंतो सहं विसज्जिय निवो भुत्तो एवंरूवाणेगविहवाससब्भूयकिच्चकरणेण । अइवाहइ नरनाहो दिवसं उदयाओ जावऽत्थं ।। ३१७ | एत्थंतरम्मि अत्थगिरिमत्थए संज्झरायवरतरणी । तुंगसुरालयसिहरे विरायए कणयकलसो व्व ॥ ३१८ ॥ संज्झाणुरायवरगयणमंडले सहइ थूलतारोहो । कुंकुमरसच्छडारुणमहीए कुसुमोवहारो व्व ॥ ३१९ ॥ दूरं सूरत्थमणे वियंभियं भूरि भेरवतमेण । लहइ च्चिय अवयासं कम्मि वि समए असत्तो वि ॥ ३२० ॥ विमला वि मइलियाओ दिसाओ सच्छं पि कलुसियं गयणं । तिमिरेणं-मलिणाणं लद्धप्पसराण किमक्किच्चं ? ।। ३२१ ।। काउं उदयं ससिणा हरियं भुवणाओ सव्वमवि तिमिरं । सुहभावेणं मुणिमाणसाओ गुरुपावपडलं व ॥ ३२२ ॥ तो संज्झावसराराहियजिणिंदपयपूयणविहाणो । सुमरियगुरुपयपउमो परियत्तियपंचपरमेट्ठी ॥ ३२३ ॥ विरइयअसरिससिंगारसारवाहरियसुरवइविलासो । पत्तो सुद्धंते तप्पवेससमुचियजणेण समं ॥ ३२४ ॥ उवविट्ठो वासहरब्भंतरपल्लंके ललियतूलीए । सव्वंपि परीवारं विसज्जए विहिय सम्माणं ॥ ३२५ ॥ मणिघडियपायपीढोवविट्ठदेवीए देवया दिन्नं । सुयलाहं संसाहइ तं सोउं सा वि संतुट्ठा ।। ३२६ ।। ता तीए सह सलीलं कीलं काऊण विसयसंभूयं । हरिसाऊरियहियओ माणइ निद्दासुहं राया ॥ ३२७ पडिपुन्नचंदबिंबं मुहं पविठ्ठे पलोइउं सिविणे । देवी महुरसरेणं पडिबोहिय भणइ नरनाहं ॥ ३२८ ॥ ३१६ ॥ २७ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं पहु ! एक्कपविं हरिमिव पवित्तयालंकियं पराजेउं । मयराइयगयं पिव नहसोहं पाणिपउमं व ॥ ३२९ ॥ महिहरसिरठवियपयं तुमं व तमनासयं पसंतं व ।। केवलनाणं व महानंदकरं कुवियमिव दिन्नं ॥ ३३० ॥ संतावहरं व कामउद्दीवयं कलत्तं व । निस्ससलोहवल्लहमसरिससोहम्मिय नरं व ॥ ३३१ ॥ ता एयस्सिविणयफलवागरणेणं मणप्पमोयं मे ।। उप्पायसु पहु ! इय जंपिऊण सा मोणमल्लीणा || ३३२ ॥ विन्नायसिविणयत्थो राया नाया समत्थसत्थाण । उल्लवइ पिए ! सव्वुत्तमो इमो सिविणओ तुज्झ ॥ ३३३ ॥ देवि ! जहा चंदो ईसरेण धरिओ नियम्मि सिरकमले । तह तुह सुयं पि धरिही सिरम्मि निवमंडलं सयलं ॥ ३३४ ॥ विण्णायसिविणयत्था हरिसवियासेण पूरिया देवी । पुन्निमनिसि व्व निम्मलपसरियजोण्हप्पवाहेण || ३३५ ॥ जंपइ पहु ! तुम्ह पयप्पसायओ कहियगुणवरो पुत्तो । होउ जओ पसिद्धी अवितहवयणा सया गरुया || ३३६ ॥ ससिसिविणसूइयसुहो संभूओ तीए उत्तमो गब्भो । वड्ढई सद्धिं पुन्नोदएण रन्नो अणुदिणं पि ॥ ३३७ ॥ दोहलया देवीए जाया संपूरिया य ते रन्ना । वल्लहदइयांभिमयं पूरइ इयरो वि, किन्न निवो ? ॥ ३३८ ॥ पसवावसरे पत्ते पुत्तं सव्वुत्तमं पसूया सा । कोमलकरप्पयारं सियबीया बालचंदं व ॥ ३३९ ॥ तयणु महाणंदाए दासीए सहागओ महीनाहो । सुयजम्ममहाणंदेण झत्ति वद्धाविओ गंतुं ॥ ३४० ॥ ता कोडी रयणाणं कोडीरयवज्जियं च आसरणं । देइ महाणंदाए निवो महाणंदपरिवितो || ३४१ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा तह पडिहारमुहेणं वद्धावणयं पुरे समाइसइ । पारद्धं च तयं पइगिहं पि लोएण पहिट्ठेण ॥ ३४२ ॥ घुसिणरसारुणियघरंगणेसु रंगावलीउ रइयाओ । विहिया य हट्टसोहा पुरम्मि तह संचिया मंचा || ३४३ ॥ दाडं उवायणाइं निवई वद्धावयंति निवपउरा । गिण्हंति य निवदिन्नं गय - तुरयाऽऽभरण - वत्थाई ॥ ३४४ ॥ गिज्जंति रायचरियाई वज्जिराउज्जमंजुलारावे । नच्चंति य नट्टवसत्थरहरियथणीओ तरुणीओ ॥ ३४५ ।। इय कयवद्धावणओ सुहतिहि - नक्खत्तवासरे राया । पुत्तस्स देइ नामं सिविणसमं चंदसेणो ति ॥ ३४६ पालिज्जतो पंचहि धाईहिं पवद्धिओ वरिसपणगं । पाढत्थं निम्मलकलनामुज्झायस्स उवणीओ ॥ ३४७ ॥ सहपाढयुज्जमेणं कुसंगचागेण वरमईए य । थोवदिणेहिं वि कुमरो पत्तो पारे कलोयहिणो ॥ ३४८ ॥ नाउं कलासु कुसलं जायं जायं पहिट्ठभूवइणा । अज्झावओ कयत्थो कओ धणाऽऽभरणवत्थेहिं ॥ ३४९ ॥ फलरिद्धीए अंबयतरु व्व सुतवस्सिरीए साहु व्व । समलंकिओ कुमारो सव्वत्तमजोव्वणसिरीए ॥ ३५० ॥ तो सो नवजोव्वणनिव्विवेयसिंगारिमित्तजुत्तो वि । सुवियड्ढपोढपन्नंगणागणेहि य पहासो वि ॥ ३५१ ॥ पयईए वि धम्मपरो अवज्जभीरु अकज्जचाई य । करुणापरो सलज्जो पसंतवेसो उदारो य ।। ३५२ ॥ देव - गुरुदंसणेणं सया वि उव्वहइ पहरिसुक्करिसं । मन्नइ असमसुहकरिं गुणिगोठि अमयवुट्ठि व ॥ ३५३ ॥ समहिगयाओ वि कलाओ तस्स पुणरुत्तमब्भसंतस्स । वच्चति वासरा तायपायसेवागयमणस्स ॥ ३५४ ॥ २९ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अह अन्नया सहामणिसीहासणसंठिए महीनाहे । उच्छंगियपिउपाए पायवीढठिए कुमारम्मि ॥ ३५५ ॥ मंद मंद दोपासनरकरालंबविहियसंचारो । मंती वियारचउराभिहाणओ तत्थ संपत्तो ॥ ३५६ ॥ दठुमवट्ठियबावत्तरीकलं सोलसकलो चंदो । सेवइ सियभमुहकलाहिं जं समत्तं व मग्गेउं ॥ ३५७ ॥ सहइ सियावणिदंडो नट्ठो पिट्ठीए जस्स सेसो व्व । न सहइ एसो परमहिहराण इय जाय संतासो ॥ ३५८ ॥ पासट्टियाए वि मए विलसइ नीईए एस अणुरतो । इय ईसावसयाए व तणूए जो सिढिलिओ बाढं ॥ ३५९ ॥ सणियं पणमिय निवपायपंकयं मंदमंदमुवविट्ठो । गूढयररज्जकज्जाई मंतिउं राइणा सद्धिं ॥ ३६० ॥ तो निययरूवरमणीयतणुलयाहरियरइवइविलासं । रायगरुहं अवलोइऊण मंती इमं भणइ ॥ ३६१ ॥ निस्सेससत्थपरमत्थवित्थराऽऽयरणविमलमइणो वि । दाउ वियक्खणस्स वि सिक्खं वच्छस्स इच्छामि ॥ ३६२ ॥ दाउं तुह जणयस्स वि सिक्खं सइ वच्छ ! मज्झ अहियारो । किं पुण तज्जायाणं भवारिसाणं विणीयाणं ? ॥ ३६३ || सिरिअणंतजिणचरियं तो नमिरसिरेणुत्तं कुमरेणं मंतिओ सम्मुहमेव । इय जंपता तुज्झे ताय ! पसायं कुणह मज्झ ॥ ३६४ ॥ उस्सिखलया जायइ ताण न जे सिक्खवंति नियगुरुणो । ता मज्झ देह सिक्खं ति, भणइ मंती वि सुसु' त्ति ॥ ३६५ ॥ (वुड्ढमंतिदिन्नारायकुमारस्स सिक्खा) सत्ताण असतो वि हु कत्तो वि समेइ जोव्वणे राओ । पूयप्फल-चुण्णय- नागवल्लिदलचव्वणे व्व धुवं ॥ ३६६ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा ३१ होइ अहंकारो वि हु जिम्हस्स वि जोव्वणे समुल्लसिए । जायइ य जलाहिणो वि हु विसमट्ठमि-चउदसि तिहीसु ।। ३६७ ॥ सुविवेइणो वि पायं होइ वियारो य जोव्वणारंभे । कंजियजोए जाए विणस्सए निद्धमवि दुद्धं ॥ ३६८ ॥ ता वच्छ ! जुव्वणम्मि वि वट्टेज्जसु वुड्ढसरिसचरियम्मि । जत्तो हवंति गुरुयत्त-दीहदरिसित्त-कित्तीओ ॥ ३६९ ॥ रूवाइगव्वमुज्झिय जत्तो जुत्तो सया गुणग्गहणे ।। जलमिस्सिए वि दुद्धे दुद्धं चिय पियइ कलहंसो ॥ ३७० ॥ विगुणो कमणीओ वि हु हरियणुमिव झत्ति पावइ विणासं । विलसइ वंसग्गठिओ सुचिरं पि धओ व्व गुणवंतो ॥ ३७१ ॥ गुणरयणालंकरियं सिंगारिणमिव पलोयए लोगो । अकयगुणे धणुहम्मि व न कोइ दिठि पि संठवइ ॥ ३७२ ॥ ता वच्छ ! अज्जिऊणं गुणनियरं तं करेज्ज गुणगोटिंछ । जेण कयाइ कुबुद्धी विद्धिं न लहइ सुयणमिलणे ॥ ३७३ ॥ तह दुस्सीलपियाए व लच्छीए मा करेज्ज पडिबंधं । पुरिसंतरेसु जं सा तीरइ न निलंभिडं जंती ॥ ३७४ ॥ खणमेत्तमलंकरिडं जयं पि जह जाइ झत्ति विज्जुपहा । तह लच्छी वि हु पुरिसं ता तीए चलाए को मोहो ? ॥ ३७५ ॥ .. खीरोयसुया वि हरिप्पिया वि पविसइ घरेसु अविरामं । लच्छी नीयाणं पि हु कत्तो महिलाण मज्जाया? || ३७६ ॥ ता वच्छ ! अलच्छि चिय लच्छि चिंतेज्ज, जेणिमाए कए । मारिजति सिणिद्धा वि बंधुणो सामिणो य सयं ॥ ३७७ ॥ तह वच्छ ! मयच्छीओ विहिणा विहियाओ कालकूडेण । कहमन्नहा नराणं तज्जोए होइ सम्मोहो ? || ३७८ ॥ पाउससरियाओ विव रोद्दरसुव्वेयकारिणीओ धुवं । परमत्थवज्जियाणं रिउसेणाओ व्व दिति भयं ॥ ३७९ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं उण्हालइ लूयाओ व दहति देहीण देहलइयाओ । धत्तूरयभुत्तीउ व वेयल्लं दिति सहसत्ति ॥ ३८० ॥ तक्करधाडीओ विव सव्वस्सं पि हु झड त्ति गिण्हंति । किं बहुणा मारंति य जममुत्तीओ व्व पावाओ ॥ ३८१ ॥ बाहिं चेव मिऊणं अंतो तिव्वाणकत्तियाओ व ।। आसत्ता महिलाणं हवंति जे ते खयं जंति ॥ ३८२ ॥ ता बज्झवित्तिसरलासु हिययकुडिलासु वच्छ ! महिलासु । मा वीससेज्ज कइया वि, वंछसे जइ सया वि सुहं ॥ ३८३ ॥ निवडति नूण नरयम्मि निवइणो जाय ! विहियअन्नाया । सिरधरियमउडमिसरज्जगुरुभरक्कंतगत्त व्व ॥ ३८४ ॥ सपहुत्तमहाहंकारतिमिरपच्छाइयच्छिजुयल व्व । किच्चाकिच्च-हियाहियकहयं कइया वि न नियंति ॥ ३८५ ॥ सत्तंगरज्जवज्जप्पहारउप्पन्नघोरमुच्छ स्व । नाऽऽयन्नंति नरिंदा हिओवएसाण लेसं पि ॥ ३८६ ॥ पमयायत्ता तणमिव गणयंता सव्वहा वि परलोयं । इहलोय-पारलोइयसुहाण चुक्कंति नूण निवा || ३८७ ॥ ता जाय ! कमागयरायलच्छिपत्तं तुमं धुवं भवसि । ता तह जएज्ज न जहा तुज्झ कुले एइ वयणिज्जं ॥ ३८८ ॥ सेयं वा किण्हं वा गुरूण वयणं पमाणयं नेयं । ते च्चिय सया वि कुसला जं जुत्ताऽजुत्तवत्तव्वे ॥ ३८९ ॥ एसो हिओवएसो जं तुह सिक्खावियक्खणस्सावि । दिन्नो तं नियकप्पो त्ति भणिय मंती ठिओ मोणे ॥ ३९० ॥ तं सोउं विणयप्पणइपुव्वयं कयकरंजली कुमरो । जंपइ मह ताय ! कओ तए पसाओ हियं भणिउं ॥ ३९१ ॥ अवरं पि समुचियं मह सिक्खं निच्चं पि दिज्ज ताय ! तुमं । जेण ठवेमि सिरम्मिं चूडारयणं व तं निच्चं ॥ ३९२ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ गिहिधम्मे चंदसेणकहा सोऊण विणयपडिवत्तिपुव्वयं कुमरवयणविन्नासं । जंपइ मंती किं वच्छ ! भण्णए तुह विवेयस्स ॥ ३९३ ॥ एत्थंतरम्मि घडियाघरम्मि पहरदुगुब्भवं भेरिं । ताडिज्जतिं सोउं सहं विसज्जइ महीनाहो ॥ ३९४ ॥ तो कुमर-मंति-सामंतपमुहलोगो गओ सठाणेसु । सव्वेसि पि हु तेसिं सुहेण कालो वइक्कमइ ॥ ३९५ ॥ समयंतरम्मि कम्मऽवि निवइम्मि सहामहासणासीणे । पत्ते वियारचउराभिहमंतिप्पमुहमंतिगणे ॥ ३९६ ॥ सामंत-मंडलेसरपमुहपहाणेसु सन्निविट्ठेसु । निववामपासे उचियासणे निविढे कुमारे वि ॥ ३९७ ॥ रायाएसा दंडिप्पवेसिया नहयराण संघाडी । पविसिय सहाए पणमिय निवपयपउमे समुवविट्ठा ॥ ३९८ ॥ तम्मज्झाओ एगो निवई विन्नवइ पावियाएसो । विजयासिओ निवो इव अस्थि गिरी देव ! वेयड्ढो ॥ ३९९ ॥ रुप्पमयम्मिं जम्मि रत्तासोयुट्ठमालिपरिवेढो । आभाइ पीयपट्टओ य तत्थ परिहाणबंधो व्व ॥ ४०० ॥ तम्मि निव ! रायहाणी रहनेउरचक्कवालपुरमत्थि । खेयरहियं सुचित्तं समयत्थधरं मुणिमणं व ॥ ४०१ ॥ परमहिमालयजुत्ता वसंति गंधव्विया जणा जम्मि । सुरयणतारसुवन्नाहियहियया ईसरगण व्व ॥ ४०२ ॥ तत्थुव जइ रज्जं नहयरनाहो लसंतमणिमउडो । मणिमउडो नामेणं खेयरनिवपणय(पय)पउमो ॥ ४०३ ॥ जस्स जसप्फुरिएणं ससिजोण्हाए व पूरियं भुवणं । तम्मग्गो तरणी वि हु ससि व्व जाओ सुहालोओ ॥ ४०४ ॥ तस्संतेउरतरुणी पहुत्तसंपत्तकित्तिपब्भारा । सिरिरयणमंजरी नामिया पिया विप्पियविउत्ता ॥ ४०५ ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ रयणायरलच्छी विव सिणिद्धबहुभंगभासियपवाला । सुरयणपवित्तवयणा जहा सहइ महाकइकइ व्व ॥ ४०६ ॥ संह परा सुवित्ता जणेण हियए सया धरिज्जति । इय चिंतिउं व देवी तग्गुणसिहिणे वहइ हियए ।। ४०७ ॥ तीयऽत्थि हत्थिमंथरगइगमणा अत्तया गुरुयरमणा । नामेण चंदमाला अरुणाहरनिज्जियपवाला ॥ ४०८ ॥ रूवेण जीए विजिया रई ससिंगारगारवेण सिरी । निययपहुत्तेण सई सोहग्गेणं पुणो गोरी ॥ ४०९ ।। निम्मणस त्ति न रज्जंति तीए रूवेण नूण केवलिणो । अवरे उ मोहिउमलं मोहणवेल्लि व्व सा बाला ॥ ४१० ॥ आगरिसिणि व्व विज्जा नियपासे नेइ तरुणनयणाई | गुरुवेरिणि व्व नज्जइ सा कामिजणं कयत्थंती ॥ ४११ ।। उत्तमरूवं उम्मत्त जोव्वणं पेच्छिऊण तं कन्नं । रन्ना केवलनाणी नमिद्धं पुट्ठो वरं तीसे ॥ ४१२ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तो केवलिणा कहिओ पहु ! तुह तणओ वरो वरो तीए । तो हं तव्वरणत्थं पहूण पासम्मि पट्ठविओ ॥ ४१३ ॥ ता पहु ! पभणह कुमरं खेयरतणयाविवाहनिमित्तं । इयरा वि आयरिज्जइ नरिंदकन्ना, न किं खयरी? || ४१४ ॥ तो भूवइणा भणियं, खेयर ! जुत्तं पयंपियं तुम । जं काउं अहिलसिओ कुमार - खयरीण संबंधो ॥ ४१५ ॥ इय तं पयंपिउं भणइ नरवई कुमरसम्मुहं एवं । तुम खेयरकुमरीपरिणयणं वच्छ ! कज्जं ति ॥ ४१६ ॥ सो आह ताय ! मा मा मं उवरोहह विसायविसयम्मि एत्थ न परमत्थेणं थेवं पि समत्थि जेण हियं ॥ ४९७ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ गिहिधम्मे चंदसेणकहा (परिणयणसामग्गीए भावस्सस्वं) तहाहि - अन्नोन्नग्गहियकरं नवपरिणियमिहुणगं पयडइ व्व । एत्थं चेव धरिस्सं हढेण जंतं सिवपुरे तं ॥ ४१८ ॥ तारामेलयमिलमाणनयणजोण्हाभरेण अणुराओ । उल्लासिज्जइ ससहरकतीए अंबुरासि व्व ॥ ४१९ ॥ अवरोप्परवहुया-वरवत्थंचलगंठिबंधणच्छलओ । निव्वत्तिज्जइ गठि व्व निठुरो मोहकम्मस्स || ४२० ॥ वेईचउक्ककलसा तुच्छा उवरिक्कमा कहति व्व । धम्म-गुणऽत्थ-जसाणं विसया सत्ताण तुच्छत्तं ॥ ४२१ ॥ हुयघयपरिणयणानलधूमो गयणंगणम्मि गच्छंतो । उल्लासं व पयासइ विसयुब्भवभाविपावस्स ॥ ४२२ ॥ आसन्नजणं जलणो जलंतजालावलीहिं तावतो । दंसइ भविस्सदुस्सहविरहानलजालतावं व ॥ ४२३ ॥ मंगलतूरनिनाओ मंगलगीयज्झुणीहिं मासलिओ । पसरइ वित्थारंतो व्व भवनिवासं विलासीण ॥ ४२४ ॥ (नारीनिंदा) ता ताय ! मह न कज्जं भज्जाए नरयनयरपयवीए । असरिसअणप्पकुवियप्पकप्पणुप्पत्तिभूमीए ॥ ४२५ ॥ नियडिनडीरंगमहिए मोहमेहोहपाउसठिईए । विमलगुणकमलिणीवणनिद्दहणमहाहिमाणीए ॥ ४२६ ॥ असरिसजसससिमंडलपरिब्भवणपडुविडप्पदाढाए । संसारखीरसायरउल्लासणचंदजोण्हाए ॥ ४२७ ॥ सुरलोय-सिद्धिपुरदारअग्गलाए तमोहरयणीए । विणयतरुपरसुधाराए नायकेरवरविपहाए || ४२८ ॥ कुलयं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं परिहरिऊणमसारं संसारं गिण्हिऊण पव्वज्जं । जत्तं करे निउत्तो तुह आणाए सिवसुहत्थं ॥ ४२९ ।। इय भवविरत्तचित्तं पुत्तं नाउं पयंपए राया । जइ न जुज्जइ वोत्तुं पि तुह इमं, किं पुणो काउं ? ॥ ४३० ॥ नियजीवियक्कएणं तमज्जिउ ता विमुंच रइ जइ तं । ता सपियस्स वि मह जीवियम्मि सलिलंजलिं देसु ॥ ४३१ ॥ तो सो सचिवेणुत्तो वच्छ ! न आणं गुरूण कुलजाया । नियपाणच्चायम्मि वि नूणं कइया वि लंघंति ॥ ४३२ ॥ जइ तुह समा वि सच्छा वच्छय ! सच्छंदचारिणो हुंति । ता नियमेण पउत्था सुपुरिसउप्पत्तिवत्ता वि ॥ ४३३ ॥ जइ न खयरिं विवाहसि आणा ता तुज्झ तायपायाण । इय भणिओ सो जंपइ तुम्हाएसो पमाणं मे ॥ ४३४ ॥ कायव्वो सद्धम्मो, गुरुआणालंघणम्मि सो कत्तो ? । जाणह जेण हियाऽहियविसए तुब्भे च्चिय विहेयं ॥ ४३५ ॥ तो साहु! साहु! साहु! ति जंपिउं रायमंतिपमुहेण । कुमरो सलाहिओ हरिसिएण अत्थाणलोएण ॥ ४३६ ॥ तो रन्ना खयरजुयं वत्थाभरणेहिं विहियसम्माणं । विन्नवइ पहु ! विवाहोवक्कमपवणा भवह तुब्भे ॥ ४३७ ॥ जाव अहं जामाउयलाहं साहेमि नहयरनिवस्स । लग्गं पि गणावेउं समेमि कुमराहवणकज्जे ॥ ४३८ ॥ इय जंपिय उप्पइयं तमालकाले नहे खयरजुयलं । उप्पायंतमणब्भं विज्जु मणिभूसणपहाहिं ॥ ४३९ ॥ रिद्धीए समारद्धो वीवाहोवक्कमो निवेणावि । पउणिज्जंति सुवत्थाई भूमिमणिभूसणाई पि ॥ ४४० ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ गिहिधम्मे चंदसेणकहा (पट्टहत्थिपलायणं) अवरावसरम्मि निवे सहागए ससुयमंतिमंडलिए । नरनाहपट्टहत्थी भग्गालाणो विणिक्खंतो ॥ ४४१ ॥ सुन्नासणो अघंटो निरंकुसो पसरिओ करी तुरियं । करुडु व रडंतकरहे भिंदंतो दंतघाएहिं ॥ ४४२ ॥ भयनट्ठतुरयथट्टं सुंडाए ताडिऊण पाडतो ।। तडयडतुटूंतजडं मोडतो वियडविडविगणं ॥ ४४३ ॥ तो तब्भयभरविहुरो पकंपिरो झत्ति नारिनरनियरो । हट्टऽट्टालयघरपुरपायारसिरेसु आरूढो ॥ ४४४ ॥ ताडिज्जंतो पडिकारपाणिपम्मुक्कजट्ठि-लेठूहिं । सभयजणरोलरुट्ठो करी गओ रायपासाए ॥ ४४५ ॥ तस्सावलोयणत्थं राया पासायसत्तममहीए । चडिओ कुमार-मंडलिय-मंति-सामंतसंजुत्तो ॥ ४४६ ॥ सच्चविओ रायाईहिं सो गओ उड्ढकयकरंगुलिओ । अहमेविक्को सूरो नन्नो त्ति पयासयंतो व्व ॥ ४४७ ॥ थीओ बाले वुड्ढे य हणइ महुलिहविरावकुविओ जो । अहवा मायंगाणं महुपाइजुआण किमकज्जं ? || ४४८ ॥ पुक्कारमुक्कसिक्करछडाकडप्पेण सिंचए अप्पं ।। जो जायमयवसुप्पन्नदप्पसंतावमिव समिउं ॥ ४४९ ॥ चलकन्नतालतियकणयकिंकिणीरणझणारवच्छलओ । ताले वायइ जो गज्जिवज्जिराउज्जछंदेण ॥ ४५० ॥ बालेण तेण बाला एक्का भयकंपिरा पणस्संती । जोव्वणभरालसगई दटुं वेगेण संगहिया ॥ ४५१ ॥ तो उच्चट्ठाणे ठियजणेण हाहारवं विहिय भणियं । रक्खह रक्खह नारिं हणिज्जमाणं गएण त्ति ॥ ४५२ ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं तो कुमरो करुणारसपरिपूरिज्जंतअंतकरणजुओ । वारिज्जंतो वि निवाइएहिं वेगेणमुत्तिन्नो ॥ ४५३ ॥ गाढीकयपरिहाणो दढबंधनिबद्धसुद्धमुद्धरूहो । छुरियालंकरियकडी वेगेण गओ गयस्सऽग्गे ॥ ४५४ ॥ रे रे निग्घिण ! मायंग ! कम्मचंडाल ! पावपुंज ! तुमं । मुत्तुं महिलं मह सम्मुहमेहि, कुमरेण इय भणिओ ॥ ४५५ ॥ तढुव्वयणस्सवणा दुगुणतरीहूअकोवउक्करिसो । उद्धाविओ करी सो कुमारमग्गेण वेगेण ॥ ४५६ ॥ पुरओ गच्छइ कुमरो रएण पेच्छइ तं गयं इंतं । निच्वंपि अप्पमत्ता हवंति गुरुणो, न किमवाए ? ॥ ४५७ ॥ धावइ धणियं हत्थी वि कुमरमग्गम्मि मारणासाए । को वा कुणइ पमायं रिउम्मि परिभवकरे नियडे ? ॥ ४५८ ॥ नियडे गयमवलोइय वलिओ कुमरो रएण वामंगं । हत्थी वि तहा सिस्सो व्व न मुयए गुरुकमाण पहं ॥ ४५९ ॥ करिमक्कमिउं करणेण निवसुओ दाहिणंगमणुपत्तो । चलिओ गओ वि कुमराणुपह, कम्मं व जीवस्स ॥ ४६० ॥ अच्चंतपरिस्संतं नाऊण करि नरिंदतणएण । खित्तं नियुत्तरीयं, रिउ त्ति कोवेण तं गहिडं ॥ ४६१ ॥ जा करिणा निययकरो पक्खित्तो ताव निवडिया बाला । ईसि पमत्तो जाओ कुमरो करुणाए तं दऔं ॥ ४६२ ॥ तो गहियं निवतणओ झड त्ति रुद्रुण हत्थिणा तयणु । हाहारवमुहलमुहो जाओ लोगो वि सव्वत्तो ॥ ४६३ ॥ तं दटुं भणइ निवो धावह धावह झड त्ति पडिकारा ! । धरह करिं मारह वा मोयावह कुमरमिहि ति || ४६४ ॥ तणतुलियजीवियव्वा ता पडिकारा पमुक्कगुरुहक्का । तिव्वयरआरियाहिं पहणेउं हत्थिमारद्धा ॥ ४६५ ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा धणुगुणठावियबाणा रायाणावत्तिणोऽवरे वि भडा । परिवेढंति समंता तं दुट्ठगयं चउप्पासं ॥ ४६६ ॥ आयड्ढिय असिधेणुं रुभिज्जंतो वि मंडलीएहिं । वेगेण नरिंदो वि हु जा चलिओ हत्थिहणणत्थं ॥ ४६७ ॥ तो उल्लालिय खित्तो कुमरो करिणा झड त्ति गयणयले । भडभीएण व तस्स वि भडघायनिवारणत्थं व ॥ ४६८ ॥ जायइ य सो तह च्चिय उड्ढदिसाए गएण जहुखित्तो । न वलइ सुमत्तगुरुदंतिदंतनिब्भयभीओ व्व ॥ ४६९ ॥ तो उड्ढं चिय जंतं दळूणं निवइमाइओ लोगो । ‘एसो कुमरो एसो कुमरो जाई त्ति जंपेइ ॥ ४७० ॥ तो उग्गीवाणुत्ताणियच्छिजुयलाण नयरलोयाण । पेच्छंताण वि जाओ नयणाणमगोयरो कुमरो ॥ ४७१ ॥ अनियंतो नियपुत्तं राया मुच्छाए कुट्टिमे पडिओ । पुत्तवियोगदुहत्तो नज्जइ पाणेहिं मुक्को व्व ॥ ४७२ ॥ निवडंतो उत्ताणो पडिओ नज्जइ नरेसरो निययं । करिनिहियनिययपुत्तयनहमग्गं पिव पलोएडं ॥ ४७३ ॥ दिव्ववसघडियकरपुडकोसो रइयंजली निवो भाइ । अवहारकरमदिस्सं पेच्छिउकामो व्व नियतणयं ॥ ४७४ ॥ अह मंडलीय-सामंत-मंतिलोएण सिसिरकिरियाहिं । संपाविय-चेयन्नो सहस त्ति महीवई विहिओ ॥ ४७५ ॥ तो पागयपुरिसो विव सोयमहाभल्लिसल्लियसरीरो । पलवइ बहुदुक्खभरो कयकारुन्नो पसूणं पि ॥ ४७६ ॥ (रायाईणं सुयविओगे विलवणं) हा वच्छ ! गरुयमाणस ! माणससरसच्छ ! तुच्छयारहिय ! मह देसु दंसणं जा सहस्सहा फुडइ नो हिययं ॥ ४७७ ॥ हा अन्नायनिवारण ! हा दारुण ! दारुणारिसत्थस्स । हा निक्कारणवच्छल ! हा पच्चल रज्जकज्जेसु ॥ ४७८ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं जइ हुंती हरणेच्छा तुह मह ता देव्व ! किं सुओ दिन्नो ? । दिज्जइ किं पढमं पि हु ? जं पच्छा वि हु हरेयव्वं ॥ ४७९ ॥ कुमरावहारदुहिया रुयंति सामंत मंति-मंडलिया । हाहारावाऊरियनह - महिमंडलमहाविवरा ॥ ४८० ॥ विन्नायजायहरणा मरणावत्थ व्व होइ मुच्छाए । वारं वारं देवी परिदेवणगब्भम्मियरुइरी ॥। ४८१ ।। हा हा ! अहं अहन्ना किं न विवन्ना पसूइपीडाए ? 1 जह न सहंती एवं वल्लहपुत्तावहारदुहं ॥ ४८२ ॥ वंझाओ वराईओ वराओ, दुहियाओ जा न सुयहरणे । किं मज्झप्पसवेणं एरिस असुहेक्कमूलेण ? ॥ ४८३ ॥ जइ फुट्टिऊण हिययं सहस त्ति अहं मरामि निहयासा । ता पुत्तविओयहुयासदुसहदाहस्स छुट्टामि ॥ ४८४ ॥ थइयावह - पडिहारंगरक्खसहिसो विदल्लपमुहजणो । अक्कंदसद्दपूरियदियंतरो रूयइ इय भणिरो ॥ ४८५ ॥ सिंगारो आणंदो लीलाओ मंगलीयतूररवे । कुमरपहमुवगया इव जमिमाणेगं पि इह नत्थि ॥ ४८६ ॥ इय दूरं विप्फुरिए सोयम्मि कुमारहरणसंभूए । भणिओ वियारचउरेण मंतिणा एवमवणिवां ॥ ४८७ 11 होऊण देव ! दढमाणसो तुमं सुयनिरिक्खणोवायं । चिंतसु, निरुज्जमाणं रुइराणं किं सुओ वलइ ? ॥ ४८८ || रायाऽऽह मंति ! जं किं, पि मुणसि तं कुणसु, वालसु सुयं मे । जेण मह रज्जचिंता सव्वा वि सया तुहाऽऽयत्ता ।। ४८९ ॥ ॥ तो मंतिणा निउत्ता कुमरनिरिक्खणकए गुरुजवेहिं । तुरएहिं भडा भणिउं निरिक्खिउं कुमरमेहति ॥ ४९० ॥ (रायकुमारस्स मीलणं) तो तेसु गएसु दिणम्मि पंचमे सोयनिरसणम्मि निवे । संतेउरे सव्वेऽऽलावित्ते य विमुक्कसिंगारे ।। ४९९ ।। ४० Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा सव्वम्मि वि नयरम्मिं निरूसवे पिहियविवणिविंदम्मि | अपमज्जियंगणगिहे उव्वासिय निव्विसेसम्म ॥ ४९२ ॥ सुरुग्गमाओ जायम्मि जाममेत्तम्मि वासरे सहसा । गयणयले उम्मिड्ढो मणिकणयविमाणसंघट्टो || ४९३ ॥ अनिलचलद्धयझणझणिरकिंकिणीखलहलंतघरघरओ । घणकंचणघंटागणटंकाराऊरियदियंतो ॥ ४९४ ॥ अन्नोन्नविमाणमिलंतकिरणउल्लसियइंदधणुनियरो | गय-तुरय- रहवरव्वूहसंकुलो झत्ति संपत्तो ॥ ४९५ ॥ ( कुलयं ) तम्मज्झाओ विप्फुरियमणिमयाभरणकिरणपसरेण । तरणी विव तेएणं अलंकरंतो नहुच्छंगं ॥ ४९६ ॥ सिंगारियंगनहयरनरिंदसंदोहविहियपरिवेढो । वज्जालंकरियकरो सुरपरियरिओ सुरिंदो व्व ॥ ४९७ ॥ मुत्तावचूलविलसिरछत्तच्छाइयसहस्सकरकिरणो । खेयरतरुणीकरचलिरचमरचयवीइयसरीरो ॥ ४९८ ॥ चारणचक्कुचारियचारुगुणत्थुइपवड्ढियाणंदो । खेयरभुयलग्गो चंदसेणकुमरो समणुपत्तो ॥ ४९९ ॥ (कुलयं) निस्सिंगारं अच्चंतदुब्बलं पेच्छए नियं जणयं । कसिणचउद्दसिचंदं व गलियतेयं कलासेसं ॥ ५०० ॥ तो भूवि लुलियगत्तो चलिओ पिउपायपणमणनिमित्तं । उक्खित्तो य नरिंदा सेण झड त्ति सचिवेण ॥ ५०९ ॥ मुक्को य रायपायंतियम्मि विणएण नमइ पिउपाए । उक्खिविय निवइणा वि हु नियपुत्तो गाढमुवगूढो || ५०२ ॥ जणणीपणओ पिउवामपासभद्दासणे समुवविट्ठो । पुट्ठो पिउणा तं वच्छ ! आगओ एत्थ कुसलेण ? || ५०३ ॥ पुण पणइपुव्वयं पाणिकमलजुयकोसविलसिरसिरग्गो । विन्नवइ ताय ! मह तुह पसायसुहियस्स सइ कुसलं ॥ ५०४ ॥ ४१ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं तो सव्वे वि हु खेयर-नरेसरा नमियरायपयपउमा । कयसम्माणा रयणासणेसु जहजोग्गमुवविट्ठा ॥ ५०५ ॥ (कुमारपत्ती विज्जाहररायकुमारी) इत्थंतरम्मि सिंगारियंगखयरंगणागणाणुगया । नवरंगयनीरंगी ईसीसिद्दिस्समुहकमला ॥ ५०६ ॥ नियदेहाओ सोणाभरणमणिप्पहभरं परिकिरती । बाहिं परिक्खिवंती पेच्छइ लोयाणुरायं व ॥ ५०७ ॥ .. कणयाभरणपरिप्फुरियकतिपब्भारपूरियदियंता । दिसि दिसि झंपसमुट्ठियनिरब्भविज्जु व विरयंती ॥ ५०८ ॥ मुत्ताहारावलिदित्तिसंतइफुरणधवलियदियंता । निस्सेसजणहियकरं विवेयमुल्लासयंति व्व ॥ ५०९ ॥ मंद मंदं कलहंसमंथरक्कमगईए संपत्ता । खयराहिरायतणया पणमइ नरनाहपयपउमं ॥ ५१० ॥ (कुलयं) कहियं नियडेहिं जहा देवेसा कुमरभारिया नमइ ।। तो से रन्ना दिन्ना भव पुत्तवईत्ति आसीसा || ५११ ॥ ससुरासीसं तुट्ठा नमिऊणं सासुयं सयासेसे । वामंगे उवविट्ठा नियचेडीचक्कपरियरिया ॥ ५१२ ॥ भणिओ कुमरो रन्ना, वच्छ ! गयुल्लालिए तए अम्हं । सव्वस्स वि लोयस्स य जायं मरणंतमइदुक्खं ॥ ५१३ ॥ ता वच्छ ! जेण हरिउं णीओ जत्थ ट्ठिओ सिरीए वा । तं सव्वं चिय साहसु सकोउगो जेणिमो लोगो ॥ ५१४ ॥ तो कुमराएसेणं कुमरकहं वज्जसारखयरवई । साहइ निवस्स नमिउं आभोइणिविज्जाय विन्नायं ॥ ५१५ ॥ पहु ! वेयड्ढे उत्तरसेणीवरगयणवल्लहपुरम्मि । अमुणियदिणरयणिम्मि मणिभवणपहासयालोया ॥ ५१६ ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ गिहिधम्मे चंदसेणकहा सूरो व्व गुरुपयावो, पुन्नकलो पुन्निमामयंको व्व । नामेण नयणवेगो विज्जाहरनरवई अस्थि ॥ ५१७ ॥ नियभुयबलाबलेवावगन्नियासेससत्तुसंघाओ । समरंगणसंपत्तं, जमनिवमवि जिणइ लीलाए ॥ ५१८ ॥ तेणम्ह नाहमणिमउडखयररायस्स कन्नया नाया । नामेण चंदमाला रइरूवा असमसोहग्गा ॥ ५१९ ॥ पट्ठाविउं विसिढे पुरिसे मग्गाविया विणयपुव्वं । तं सोउमम्ह पहुणा ते पइ परिजंपियं एयं ॥ ५२० ॥ जुत्तमिणं किं तु इमा दिन्ना चंदउररायतणयस्स । कुमरस्स चंदसेणस्स आगयं लग्गमवि नियडं ॥ ५२१ ॥ ता दाऊण सयं चिय एक्कस्सन्नस्स तं कहं देमि ? । तुब्भे वि नायनिउणा जुत्ताजुत्तं विभावेह ॥ ५२२ ॥ ते बिंति कायर च्चिय जुत्ताजुत्ताई राय । चिंतंति । सूरा उ नियाभिप्पेयमसिबलेणेव कुव्वंति ॥ ५२३ ॥ तो आह पहू पिउणो वि तस्स पडिहाइ जं तयं तेण । कज्जं ति भणिय देवो सम्माणिय ते विसज्जेइ ॥ ५२४ ॥ तो तेसु गएसु अहं कुमराणयणे विमाणविंदेण ।। देवेण समाइट्ठो, जा चलिओ गयणमग्गेण ॥ ५२५ ॥ तो खयरेणेक्केणं अभिमुहमेंतेण पणइ पुव्वमहं । कत्थ चलिय ? त्ति पुट्ठो, कहियं च मए गमणकज्जं ॥ ५२६ ॥ तेणुत्तं तं कज्जं सिद्धं, मा जाह, ता वलिय तुब्भे । वरमवरं अवलोइय वीवाहह कन्नयं रन्नो ॥ ५२७ ॥ भणियं मए किमेयं पयंपसि भद्द ! तं असंबद्धं ? । तेणुत्तमसंबद्धं न मए मन्नइ जुगते वि ॥ ५२८ ॥ तो सो मए पउत्तो, किं कज्जं सिद्धमह कहइ सो वि । चलिओ हं नंदीसर-सासयदेवेऽभिवंदेउं ॥ ५२९ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ सिरिअणंतजिणचरियं जा चंदउरपुरनहं लंघेमि अहं अहोनिहियदिट्ठी । तावायन्नेमि बहुं तन्नरनारीणमक्कंदं ॥ ५३० ॥ तं सोउं कन्नजुयं फुडइ व दलइ व्व मह मणं सहसा । तो ओयरिय मएक्का रुयणत्थं पुच्छिया रमणी ॥ ५३१ ॥ तीयुत्तमज्ज ! मत्तेण हत्थिणा चंदसेणनिवपुत्तो । उल्लालिऊण खित्तो गयणे उड्ढं चिय गओ सो ॥ ५३२ ॥ केणइ अद्दिस्सेणं सुरेण असुरेण खेयरेणऽहवा । नीओ जोइणिचक्केण वा, जओ न वलिओ कह वि ॥ ५३३ ॥ रज्जं पि निराहारं जेणेक्को चेव सो सुओ रण्णो । तेणऽक्कंदइ लोओ सबालवुड्ढो वि निवपमुहो ॥ ५३४ ॥ तो हं सविसायमणो चलिओ तुज्झे वि इह मए दिट्ठा । एयत्थं चिय भणियं सिद्धं कज्जं ति नरनाह ! || ५३५ ॥ तयमग्गागयनहयरवयणेणं वज्जपहरसरिसेण । आगय मुच्छो व्व खणं देवाहमचेयणो व्व ठिओ ॥ ५३६ ॥ तो तं गंतूण मए कहियं मणिमउडखयररायस्स । तं सोउं सो वि ठिओ खणमेत्तं चत्तपाणो व्व ॥ ५३७ ॥ होउं दढचित्तो सो सरेइ आभोइणिं महाविज्ज । विज्जुभरपिंजरपहा तो सा पत्ता नरिंदपुरो ॥ ५३८ ॥ दिन्नासणे निविट्ठा पुट्ठा कुमरावहारवुत्तंतं । नाणेण जाणिउं सा कहिउं लग्गा खयरपहुणो || ५३९ ॥ उत्तरसेणीपहुनयणवेगदूओऽवमाणिओ (संतो) । पत्तो नियपहुपासे, विन्नत्तं तेण तत्थ इमं ॥ ५४० ॥ दाहिणसेणीरन्ना दिन्ना कन्ना न देव ! तुह तेण । विणयप्पणइपुरस्सरमइबहुमब्भत्थिएणावि ॥ ५४१ ॥ विन्नाय भूमिगोयरनरिंदचंदावयंसयसुयस्स । असमीहतस्स वि चंदसेणकुमरस्स आयरओ ॥ ५४२ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ गिहिधम्मे चंदसेणकहा भणियाई अवज्जाई तुह संमुहं सामि ! अकहणिज्जाइं । एवं ठियम्मि देवो जं जुत्तं तं समायरउ ॥ ५४३ ॥ तेणंऽतो कलुसेणं बाहिं पुण पउमवियसियमुहेण । भणियं जइ नियकन्नं न देइ ता तस्स किमजुत्तं ? || ५४४ ॥ परिभावियं च चित्ते निवपुत्ते नूण जीवमाणम्मि ।। सा मह न चेव होही ता तं मारेमि पच्छन्नं ॥ ५४५ ॥ चित्तम्मिं कलुसो वि हु करेइ हासाइयं सह सुहीहिं । अंकारोवियहरिणो किन्न महिं धवलए चंदो ? || ५४६ ॥ दुइयदिवसम्मि सो नयणमोहणीविज्जसुमरणअदिस्सो । कुमरं हरिउं चलिओ, को पयडमकज्जमायरइ ? ॥ ५४७ ॥ जम्मि समयम्मि कुमरो करिणा उल्लालिओ नहे खित्तो । तम्मि समयम्मि पत्तो कयसंकेउ व्व खयरिंदो || ५४८ ॥ तयणु अदिस्सो च्चिय सो तं गहिउं उड्ढमेव उप्पइओ । पुन्नोदओ व्व जीवं संगहिउं सग्गमग्गम्मि ॥ ५४९ ॥ पवणजइणा जवेणं तो सो चलिओ दिसाए पुवाए । पेच्छइ लवणसमुदं उल्लसिरं निययपावं व ॥ ५५० ॥ भुवणगुरू जो पसरंतधीवरो भूरिसंखसत्थकरो । सययं पि जडप्पयई वि कोऽहवा मुणइ गुरुचरियं ? ॥ ५५१ ॥ सद्दलनीलो डिंडीरपंडुरो विद्दुमारूणो सामो । ठाणे ठाणे रेहइ जो वन्नयविहियचित्तो व्व ॥ ५५२ ॥ जो सामलपक्खनिसातममिलणालक्खसलिलसंठाणो । नज्जइ न वि निउणेहिं विलुक्कणकीला अदिस्सो व्व ॥ ५५३ ॥ जो घोरगज्जिएहिं कुविओ व्व निवारए खयरनाहं । मा निरवराहकुमरं खिविउं पावं करेज्ज त्ति ॥ ५५४ ॥ तम्मि गुरुतरकरिमयरमयरबहुमच्छ-कच्छवाइन्ने । निक्खित्तो रायसुओ तुह तणयालुद्धखयरेण ॥ ५५५ ॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ सिरिअणंतजिणचरियं निवडिय कुमरो देहप्पहारओ सिंधुसलिलमुच्छलिओ । कोवेण खयरखेडं आयड्ढेउं पिव हढेण ।। ५५६ ॥ बुड्डेडं उच्छलिओ जलाओ खयराहमं निएउं व । तो तं अदिट्ठपारं भुयाहिं तरिउं समारद्धो ॥ ५५७ ॥ जा कित्तियं पि सलिलं तरमाणो सो गओ समुदस्स । ता मच्छएण गुरुणा गिलिओ वयणं विआरेउं ॥ ५५८ ॥ अवलोइऊण तं मच्छएण गिलिउं पहरिसिओ खयरो । राहुगिलियम्मि सूरे हरिसिज्जइ किन्न घूयगणो ? || ५५९ ॥ तो सो खयराहिवई वलिऊण समागओ निए नयरे ।। सट्ठाणमणुसरिज्जइ किन्नो सिद्धे सकज्जम्मि ? ॥ ५६० ॥ कुमरं गिलिऊण तओ सो मच्छओ रिउं रयणसेलतडे । तो उयरं पवियारिय छुरियाए विणिग्गओ कुमरो || ५६१ ॥ गिरिनिज्झरणजलेणं सुसाउणा सीयलेण धोयतणू ।। महुरफलकयाहारो पीयजलो सो ठिओ सत्थो ॥ ५६२ ॥ करिकीलावण-जलतरण-मच्छयवियारणस्समावगमं । काऊण खणं एक्कं अवलोयइ गरूयगिरिरायं ॥ ५६३ ॥ सव्वत्तो च्चिय जो पज्जरंत-निज्झरण-नीरधाराहिं । विकिरइ सहस्सकरवासभवं सेयवरिसं वं ॥ ५६४ ॥ जत्थऽन्भंलिहतरुदलपरंपरं सरपविट्ठससिकिरणा । लुंबिज्जति भमरेहिं महिमया कुसुमपयरनमा ॥ ५६५ ॥ हेलुल्लसंतजलकलणजोगओ अवसरंतसोयणओ । कुणइ य जो कीलं सलिलमज्जणुं मयणेहिं सया ॥ ५६६ ॥ सव्वत्तो कल्लोलाहणणुट्ठियफेणपंडुरनियंबो । रेहइ जो मिउनिम्मलयजद्दरपरिहाणसहिओ व्व ॥ ५६७ ॥ दुमसन्नाहा वरिउ घणमणिकिरणुल्लसंतवणुहकरो । जलदुग्गग्गओ मेरू व रक्खए अप्पमपमत्तो ॥ ५६८ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा माणिक्कमए तम्मि अवरावररामणीयगं कुमरो । अवलोयंतो चडिओ कट्टेण सुदुग्गसिंगग्गे ॥ ५६९ ॥ तम्मि घणसार-चंदण-एलागुरु-नाग-जाइसरलाण । कंक्कोल-लवंग-तया-तमाल-किम्मीरि-तगराण ॥ ५७० ॥ अंबय-जंबुय-जंबीर-कयली-नारंगि-नालिएरीण । विज्जउरी-खज्जूरी-दाडिम-अक्खोड-दक्खाण ॥ ५७१ ॥ बहुपत्तपुप्फफलभरअवणमिरसमग्गगरुयसाहाहिं ।। सुरकिन्नर-विज्जाहर-मिहुणाऽऽसीयसीयछाएहिं ॥ ५७२ ॥ सुय-रायहंस-सारस-चओर-सिहि-सारियाइपक्खीहिं । रमणीएहिं बहुविहआरामेहिं विलसमाणे ॥ ५७३ ॥ वियसंतकमल-कुवलय-कल्हारुल्लसियसुरहिगंधसरो । हरिसिज्जंतो गच्छइ कुमरो विच्छिन्नभूमीए ॥ ५७४ ॥ (कुलयं) मचकुंद-कुंद-सयवत्त-जाइ-बउलाइमलयमज्झम्मि । अवलोयइ सच्छफलिहमणिसिलामयजिणाययणं ॥ ५७५ ॥ जं उदयरायधरतरणिकिरणपसरेण पिंजरिज्जंतं । रेहइ परिविलसिरपुस्सरायरयणोहरइयं व ॥ ५७६ ॥ जं संज्झागयपभावजायचउपाससोणसब्भावं । सहइ समंतामसिणियघुसिणरसासारसित्तं व ॥ ५७७ ॥ जं पुन्निमरयणीयरजोण्हाभरमिस्सियं समग्गं पि । मुत्तासेल-मणिसिला-सहस्सनिम्मियमिवाभाइ ॥ ५७८ ॥ जं चउदिसि परिसंठियमाणिक्कमयाहिं देवउलियाहिं । अनिलचलद्धयरणरणिरकिंकिणीयाहिं परियरियं ॥ ५७९ ॥ दारपएसपरिट्ठियमणितोरणसेणिजणियसोहाए । पुक्खरिणीए चउजलपवेसदाराए रेहं व ॥ ५८० ।। तं दटुं हरिसुक्करिसभरपरायत्तमाणसो कुमरो । वावीजलपक्खालियगत्तो पविसइ जिणाययणे ॥ ५८१ ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ सिरिअणंतजिणचरियं आलोयगयं दलु कणयमयं पंचधणुसयुच्चतणुं । जय इत्ति जंपिय कयकरकोसो नमइ रिसहं ॥ ५८२ ॥ पेच्छिज्जंतो विम्हियवियसियनयणाहिं अमरतरुणीहिं । अवलोइज्जतो आयरेण खेयरपुरंधीहिं ॥ ५८३ ॥ असरिसउदारदेहेण देव-दाणवसिरि विडंबंतो । को एसो ? त्ति सकोउगमिक्खिज्जंतो नहयरेहिं ॥ ५८४ ॥ लीलागमणविडंबियकलहंस-करेणुमंथरगईए । गंतुं जिणपयपउमंतिए पहुं नमइ भत्तीए ॥ ५८५ ॥ पहुमुहकमलनिवेसियनियनयणब्भमरमिहुणओ कुमरो । आबद्धपाणिपंकयकोसो थोउं समारद्धो ॥ ५८६ ॥ जय नवसायरतारणकारणसग्गापवग्गसोक्खाण । जय दुरियदारुदारणदारुणकरवत्तपत्तसम ! || ५८७ ॥ निवनाहिरायकुलजाय ! जायरूवाण नेह ! गुणगेह ! ।। सिरिरिसहसामि । सामी भवेज्ज आभवनिवासं मे ॥ ५८८ ॥ इय थोऊणं उल्लसियभत्तिपन्भारपुलयकलियंगो । आणंदअंसुजलजुयकवोलफलओ पुणो नमइ ॥ ५८९ ॥ निस्सेसदेवउलियाजिणेसरे वंदिउं सबहुमाणं । जिणभवणरामणीयगसमं कुमरो निरिक्खेउं ॥ ५९० ॥ उवविट्ठो पेच्छामंडवम्मि जिणमुहमयंकगयदिट्ठी । पुव्वंपि मए दिटुं जिणभवणमिणं ति कइया वि ॥ ५९१ ॥ इय ईहापोहपरस्स तस्स सहस त्ति आगया मुच्छा । तो सो माणिक्कमयम्मि कुट्टिमे निवडिओ झत्ति ॥ ५९२ ॥ तो झत्ति ससत्तीए विहिओ अमरेहिं सो सचेयन्नो । मुच्छावगमे उट्ठइ निब्भरनिद्दो व पडिबोहो ॥ ५९३ ॥ परिपुच्छिओ य खयरामरहिं नररयण ! मुच्छिओ किमिह ? | कुमरेणुत्तं निसुणह तुब्भे मुच्छाए हेडं मे ॥ ५९४ ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा एयम्मि पव्वयम्मि बहलद्दुममंडमंडलीकलिए । आसी वानरजुयलं कालमुहं कयअवज्जं व ॥ ५९५ ॥ परिपक्कफलमंजरिपरमाणुविणम्मियं व पिंगंगं । संकंतचावलं पिव पवणुद्धयवणदलोहाओ ।। ५९६ ॥ साहाओ साहासुं दुमाओ नियडद्दुमेसु झंपाहि । परियडइ पक्कफलभक्खणत्थमच्चतवेगेण ।। ५९७ ।। अह अन्नया य आयावणत्थमुप्पइय नहयलेणेगो । चारणमुणी महप्पा संपत्तो एय गिरिसिहरे ॥ ५९८ ॥ सुहसीलवयकलिओ जाजीवं बंभचेरधारी वि । अजडासुओ वि बहुसंखसुत्तिउप्पत्तिविक्खाओ ॥ ५९९ ॥ काउस्सग्गम्मि ठिओ आकुंचियजंघठवियबीयपओ । पायद्दुगचंकमणे बहुजीववहे त्ति कलिउं व ॥ ६०० ॥ रविबिंबनिवेसियदिट्ठिवसमुप्पन्नतिवलिलाभेण । कहइ व्व नाण- दंसण - चरणाइं सदेहवासीणी ॥ ६०१ || मेरु व्व निप्पकंपो सज्झाणं जाव ज्झायइ महप्पा खेयरमुणी तिणीकयइहभवियसुहो सिवसुहत्थी ।। ६०२ ॥ ता सहसा गुंजारुणयनयणुच्छलियप्पहापरिप्फुरणा । रुहिरं व उव्वसंतो करिहणणाकंठपरिपीयं ॥ ६०३ ॥ उद्धूलकेसरसटाच्छडाकडारुल्लसंतकंती । नियदेह अमायंतं बहिखिवंतो व्व तेयभरं ॥ ६०४ || करिकुंभवियारणलग्गचरणवित्तासगलिरमुत्ताहिं । भूसणमिव वियरंतो लीलाए पराए राउ व्व ॥ ६०५ ॥ अइघोर - घुरुहुररेवपरिपूरियगुरुयगिरिमुहाविवरो । मुणिदारणामणमागओ उछुहियहरणिंदो || ६०६ ॥ पव्वयसुरप्पभावा अंतरंतोवग्गहम्मि पविसेडं । परियडइ न उ वाहिं पयाहिणं तो सुसद्दो व्व ॥ ६०७ || ४९ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं एत्थंतरम्मि सो दुमपरपरादिन्नभद्दसीमाहिं । अणुरायमाणेवुत्तो कलो वि हु वानरो तत्थ ॥ ६०८ ॥ तं दळु तेण वि चिंतियं इमं एस को वि हु महप्पा । निच्चं पि वियसियच्छी पेच्छंतो उग्गए तरणिं ॥ ६०९ ॥ जलणजालादुस्सहलूयानिलडज्झिरंगजट्ठी वि । तरलइ निद्धच्छायं पि नीरन्हाणस्स का वत्ता ॥ ६१० ॥ अम्हेहिं निदाहुब्भवं संतावं सिसिरनीरण्हाया वि । बहलढुमगुम्मगया वि न तरामो सहिउं मणागं पि ॥ ६११ ॥ एसो हु पावपयई सीहो एयं पि मारिडं महइ । निवडइ उवेहउ वि हु नरए नेगो वि पावकरो ॥ ६१२ ॥ जायाण अवस्सभावी मच्चू पच्छा वि ता मरेयव्वं । तं जइ परोवयारे जायइ ता किं न पज्जतं ॥ ६१३ ॥ देहो असासओ च्चिय परोवयारज्जिओ जसो हु थिरो । ता अप्पं पि हणाविय हरिणो रक्खेमि एय मुणिं ॥ ६१४ ॥ मारिज्जंतम्मि अपरिचिए वि सुयणस्स वड्ढए करुणा । किं पुण बहुदिणपरिचयपरम्मि एयम्मि कट्ठसहे ॥ ६१५ ॥ इय चिंतिऊण साहामएण तणगणियनियसरीरेण । मुणिपासपरिब्भमिरो नहरेहिं वियारीओ सीहो ॥ ६१६ ॥ तन्नहरवियारियवियडकडितडो तम्मुहो हरी चलिओ । साहामओ वि उच्छलिय नियडसाहिं समारूढो ॥ ६१७ ॥ मुणिसमुहं चलमानं सीहं उत्तरिय दारइ पुणो वि । चलिरे हरिम्मि सिग्धं पि तरुसिरे चडइ सो गंतुं ॥ ६१८ ॥ तो वानरीए दटुं पियजुझं तीए निययभासाए । वाहिरियाई मिलियाई भूरिवानरमिहुणगाइं ॥ ६१९ ॥ नियजाइपक्खवाएण तेहिं सव्वेहिं वेढिउं सीहो । चमढेउं पारद्धो खरनहरवियारणपरेहिं ॥ ६२० ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेसिं संमुहो धावइ ते उच्छलिउं चडंति रुक्खेसु । पवियारिज्जइ पच्छा धाविय अवरावरकईहिं ।। ६२१ ।। तो कइकुलखरनहरप्पहरपवियारिओ हरी जाओ । सव्वंगं पि हु परिगलिररूहिरधारारुणो दूरं ॥ ६२२ ॥ नट्ठो एक्कदिसाए पिट्ठीए तयणुकइकुलं चलियं । मंदानिलअंदोलियसुपक्कगुरुकुलसुखेत्तं व ॥ ६२३ ॥ निब्भयधाविरवानरविंदकयच्छिज्जमाणसव्वंगो । वेगेण पविसिय दूरगिरिगुहाकंदरे लुक्को | ६२४ || चलियाई कइकुलाई विजिओ वेरित्ति वियसियमुहाई । अहवा न कस्स तोसाय होइ अहिमाणसंसिद्धी ।। ६२५ ॥ सट्ठाणमुवगए कइकुलम्मि पढमो कई भज्जो वि । पत्तो मुणिपयपासे तं पणमइ रम्मरोमंचो ॥ ६२६ ॥ आणंदसंदिरच्छो सपिओ वि हु नियइ मुणिमुहाभिमुहं । वारं वारं पणमइ तं महिमंडलमिलियभालो ॥ ६२७ ॥ एत्थंतरम्मि तग्गिरिसमहिट्ठायगसुरो सपरिवारो । पणमिय मुणिमुवविट्ठो पसंसिउं वानरं लग्गो || ६२८ ॥ भो वानरनरिंद ! तिरिओ वि तं पसंसिज्जसे सुरेहिं पि । जस्स तुह पक्खवाओ एवं रूवो गुणिमुणिम्मि ।। ६२९ || इय तं पसंसिऊणं काराविय पेच्छणाई विविहाई । झाणट्ठियमुणिपुरओ तिरोहिओ पणयसाहू सो ॥ ६३० ॥ वानरजुयं तहा चेव संठियं साहुरयणगयनयणं । तं दठ्ठे पारेउं झाणं साहू समुवविट्ठो ॥ ६३१ ॥ नाउं मुणिणो सद्धम्मजोग्गयं देसणा कया तस्स । तीए एयारियाई सुदेव - गुरु- धम्मतत्ताई ॥ ६३२ ॥ सम्मत्तजुओ थूलप्पाणिवहाईण विरमणाईओ । कहिओ गिहित्थधम्मो तस्सातिहिसंविभागंतो || ६३३ ॥ ५१ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं भणिओ य भद्द ! तुह सव्वविरइवयजोग्गया जओ नत्थि । ता एयं गिहिधम्मं गिण्हसु कमदिन्नसिवसोक्खं ॥ ६३४ ॥ तो तेण सव्वकल्लाणपत्तमत्ताणयं मुणंतेण । गहियसावयधम्मो सपिएण वि वानरिंदेण ॥ ६३५ ॥ वानरराय ! समच्चिय दूमम्मि धम्मे थिरेण होयव्वं । तुमए जमिमो तुह मोक्खसोक्खमक्खेवउ दाही ॥ ६३६ ॥ इय तस्स थिरीकरणं काउं सुस्सावय(नियम)धम्मम्मि । मासक्खमणे पुन्ने नहेण साहू समुप्पईओ || ६३७ ॥ साहुविहारे जाओ उव्वेओ वानरस्स सपियस्स । दूरे गुरुप्पवासो देइ तुहं परिचियस्सावि ॥ ६३८ ॥ होऊण दढमणंतं सुक्खमणंतं समीहिडं मिहुणं । साहामयाणमणिसंलग्गं सद्धम्म(सु)कम्मम्मि ॥ ६३९ ॥ हिययावहारियजिणे वंदइ सुमरई य सुगुरुचरणेण । वाउयजीवपएसे परिपत्तइ पंचपरमेट्ठि ॥ ६४० ॥ अप्पं च थूलजीवे रक्खइ जंपइ न बायरमलीअं । थूलमदत्तं वज्जइ परमहिलं वानरे मुयइ ॥ ६४१ ॥ परपुरिसं वानरिया मेहुन्नं थूलमिय दुगस्स विसे । थूलपरिग्गहविरई तं खंडइ नेव कईया वि ॥ ६४२ ॥ परिहरइ न दिसिसंखं लंघइ माणं न भोग-परिभोगे । न कुणइ अणत्थदंडं गिण्हइ सामाईयं बहुओ ॥ ६४३ ॥ देसावगासियं कुणइ पव्वदिवसेसु होइ पोसहियं । पोसहपारणयम्मि सुमरइ अतिहीण दाणत्थं ॥ ६४४ ॥ चिंतइ य चउप्पासं गिरिणो जलही न लंघिउं सक्को । एत्थ पुण नत्थि देवो न गुरु साहम्मिओ वि हु नो ॥ ६४५ ॥ सुकओदएण केणइ गुरुणा सह मह समागओ जाओ । तस्स सयासे धम्मो पत्तो सिवसोक्खसंजाओ || ६४६ ॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा एवं सद्धम्माणुगयभावणुब्भूयभूरिपुन्नस्स । निरवज्जअप्पसावज्जभोज्जमवि भुंजमाणस्स ॥ ६४७ ॥ नवनिग्गयनिज्झरनीरमापियं तस्स पूयरयरहियं । अकुणंतस्स य रागद्दोसे सह सव्वसत्तेहिं ॥ ६४८ ॥ इय वदि॒तस्स एवं पवंगस्स कालो बहुवइक्कंतो । सपियस्स वि कइया वि हु संपत्तो आउयस्संतो ॥ ६४९ ॥ आलोयणा-वयुच्चरण-खामणाणसणकरणकिच्चो । जिण-सिद्ध-सूरि-उज्झाय-साहुसुमरणविसुद्धमणो ॥ ६५० ॥ अरिहंत-सिद्ध-साहुस्सुयकयसरणो कलत्तकलिओ सो । मरिण समुप्पन्नो सहसारेऽणंततेयसुरो ॥ ६५१ ॥ पवंगी वि तस्स मित्तो जाओ बहुतेयनामगो देवो । दोन्नि वि हु च्छतं दिति पेच्छयच्छीण तेएण || ६५२ ॥ दठूण अमरलोयं रयणविमाणं च फुरियमणिकिरणं । अवहीए अवलोयंति दो वि एवंगुब्भवं जम्मं ॥ ६५३ ॥ सुमरंति य खवगमुणिप्पसायसंजायदेसविरईए । संपत्तं अमरत्तं अट्ठमकप्पम्मि सक्कसमं ॥ ६५४ ॥ नियइ विमलओहिनाणोवलंभसंजायखवगबहुमाणा । काउं सिद्धप्पडिमाण पूयणं नियविमाणम्मि ॥ ६५५ ॥ सूरिपयालंकरिओ खवगं नाऊण जंति वेयड्ढे । पेच्छंति वेजयंती पुरीए परिवारजुत्तं तं ॥ ६५६ ॥ तो भत्तिनिब्भरंगा तं वंदिय बिंति पहुपसाएण । तिरियाण वि अम्हाणं जाया एसा अमररिद्धी || ६५७ ॥ ता निक्कारणबंधवपरोवयारेक्ककरणनिम्मायं । सासयसिवसुहदायगकेवलसिरिकुलहरं होज्ज ॥ ६५८ ॥ ता चलह रयणसेले पडिबोहो जत्थ अम्ह संजाओ । कायव्वो तत्थ जहा जिणालयं रयणरमणीयं ॥ ६५९ ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ तो उप्पइय नहेणं गुरुणा सद्धिं गिरिम्मि तम्मि गया । पडिबोहमहीए कयं जिणालयं फलिहमणिघडियं ॥ ६६० ॥ जोयणमाणसोहं कंचणकलसोहमोहसंजुत्तं । नवपउमरायमणिमय अमलामलसारयसमूहं ॥ ६६१ ॥ उरसिहरनियरमणिदंडमंडली अनिलतरलकेऊसु । रणझणिरकिंकिणीखलहलंतघरघरयरवरम्मं ॥ ६६२ ॥ चउपासपरिट्ठियपंचरायमणिजणियदेवउलियाहिं । कयपरिवेढं माणिक्कतोरणं रयणवाविजुयं ॥ ६६३ ॥ तम्मि जुयाइजिणिंदो पइट्ठिओ सूरिणा सुवन्नमओ । सेसाई बिंबाई समयविहाणेण तव्वेलं ॥ ६६४ ॥ काऊण विभूईए दसाहियाओ पइट्ठियं नामं । जिणमंदिरस्स अमरासुरेहिं वानरविहारो त्ति ॥ ६६५ ॥ कय - कायव्व त्ति सुरा मुत्तुं वेयड्ढपव्वयम्मि गुरुं । पत्ता सुरालए गणयंति सुरलोयसोक्खाई ॥ ६६६ ॥ मंदर - नंदीसर - रयणसेल - जिणमंदिरेसु पडिमाओ । पूयंति तहा विरहंततित्थनाहे य भत्तीए ॥ ६६७ ॥ इय अमरलोयसुक्खं अट्ठारससागराइमाणेउं । चविऊण अणंततेओ अमरो नियआउस्सते ॥ ६६८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं चंदउररायचंदावयंसचंदावलीए भज्जाए । जाओ पुतो नामं विहियं से चंदसेण त्ति ॥ ६६९ ॥ सो अज्ज गयग्गहियं महिलं मोयाविऊण जा जाओ । ईसिपमत्तो गहिउं ता खित्तो हत्थिणा गयणे ॥ ६७० || केणावि अदिस्सेणं हरिडं खित्तो इमम्मि मयरहरे । गिलिओ य मच्छरणं दारिय तं गिरिसिरे चडिओ ॥ ६७१ ॥ सो हं देवं च दट्ठूणमह मे जाइसरणमुप्पन्नं । कारावियममरत्ते सए इमं देवभवणं ति ॥ ६७२ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा नवरं वानरिजीवो मह मित्तसुरो कहिं पि उप्पन्नो । न मुणेमि जं तमिहि असुहं मं दूमए दूरं ॥ ६७३ तो भो अमरा ! तुझे निम्मलअवहिवियाणियजयत्था । तं जाणिऊण साहह सुब्भमुही जत्थ उप्पन्नो ॥ ६७४ || तो इक्केण सुरेणं भणियं दट्ठूण नाणनयणेण । वेयड्ढम्म गिरिंदै रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ६७५ ॥ मणिमउरखयरवई समत्थि से रयणमंजरी भज्जा । नामेण चंदमाला तुह मित्तो तस्सुया जाया ।। ६७६ || स च्चिय जीए कज्जे वरिडं तं खेयरेहिं आगंतुं । संभविही तुह भज्जा एत्थत्थे नत्थि संदहो । ६७७ ॥ नवरं उत्तरसेणीवइणा सह तुह भविस्सए कलहो । साहम्मिओ तमम्हं कारावियं जिणहरं जेण ॥ ६७८ ॥ ता गिण्हसु विज्जाओ अम्ह पभावेण पढियसिद्धाओ । जह न कइया वि जायइ पराभवो तुज्झ कत्तो वि ॥ ६७९ ॥ इय भणिय गयणगमणपमुहाओ तस्स तेण विज्जाओ । दिन्नाओ तहा सो दुज्जओ कओ सत्तुवग्गस्स ॥ ६८० ॥ इय कुमरं सम्माणिय अमरो पत्तो सपरियणो सग्गे । पुव्वप्पियाणुरत्तो कुमरो चिट्ठइ रयणसेले ॥ ६८१ ॥ ता राय ! तए जमहं पुट्ठा कुमरावहारवुत्तंतं । सो तुह कहिओ त्ति पयंपिडं ठिया देवया मोणे ॥ ६८२ | कुमरीए सुयं सव्वं पि रायपासम्मि सन्निविट्ठाए । तीए वि जाइस्सरणेण जाणिया दो वि पुव्वभवा ॥ ६८३ ॥ तो दढयरमणुयन्नं कुमरिं नाऊण पुव्वभवदईअं । रन्ना वाहरिय अहं आइट्ठो कुमरआणयणे ॥ ६८४ ॥ तो मणिविमाणविंदारूढेहिं खयरेहिं सहिओ हं । पत्तो कुमारपासे नमिय जिणिदं सबहुमानं ॥ ६८५ ॥ ५५ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ सिरिअणंतजिणचरियं आरोविउं विमाणे रहनेउरचक्कवालनयरम्मि । नेउं समप्पिओ तुम्ह नंदणो नियनरिंदस्स ॥ ६८६ ॥ तं दटुं अच्चब्भुयरूवं निस्सेसगुणगणावासं । वीवाहाणुट्ठाणं पारद्धं कुमर-कुमरीणं ॥ ६८७ ॥ कुमरेणुत्तं गंधव्वमेव परिणयणमायरिस्सामि । कट्टेण जीविही जं जणया जइणो मए हरिए ॥ ६८८ ॥ एवं ति भणिय खयराहिवेण गोधूलिगम्मि लग्गम्मि । विहिओ विभूइसरिसो वीवाहो कुमर-कुमरीणं ॥ ६८९ ॥ करमोयणम्मि कुमरस्स मणिविमाणाइ-करि-तुरंग-रहा । दिन्ना तह वत्थाभरण-रयण-कोडीओ बहुयाओ ॥ ६९० ॥ गिज्जंते कुमरम्मि दिज्जते मागहाण दाणम्मि । वज्जंते आउज्जे पणरमणिगणम्मि नच्चंतो ॥ ६९१ ॥ वोलीणाए निसाए दुइज्जदिणे जाममित्तए जाए । . आगंतुं खयरा दुन्नि निवं विन्नवंति इमं ॥ ६९२ ॥ देवेण नयणवेगस्स निवइणो नियसुयं अदितेण । . वरकज्जम्मि निउत्ता अम्हे एत्तो गया तत्थ ॥ ६९३ ॥ तो नयणमोहणीए विज्जाए अदिस्समुत्तिणा दो वि । अइवाहो मा दिवसे जा ता वोलीणरयणीए ॥ ६९४ ॥ तं निवचरेहिं रन्नो विन्नत्तं कुमर-कुमरिपरिणयणं । तेणुत्तमलीयमिणं जं सो कुमरो मओ नियमा ॥ ६९५ ॥ सयमेव मए खित्तो नइनाहे मच्छएण गिलिओ य । तो कत्तो परिणयणं तस्स अओ न घडए किं पि ॥ ६९६ ॥ ते हुत्तं पहु सो च्चिय कुमरो सायरनगाओ आणीओ । परिणाविओ य नूणं ता जं जुत्तं तयं मुणसु ॥ ६९७ ॥ तो सो साहंकारं कोवुक्करिसेण विहिय संनाहे । पउणिय चउरंगचमूचक्को गोसम्मि संजाए || ६९८ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा ५७ दावियपयाणढक्कानिनायपडिसद्दबहिरियदियंतो । जा संचलिओ जायाइं दुन्निमित्ताई ता तस्स ॥ ६९९ ॥ धवलहर-अमरमंदिर-पुत्तलियामुक्कअंसुविसरेण ।। निवडइ निरब्भवुट्ठि व्व सव्वनयरे निवपयाणे ॥ ७०० ॥ सुगुणसलायाहारो भग्गो छत्तस्स सम्मुहपवणेण । दंडो उवदंसंतो तस्स राइणो वंसभंगं व ॥ ७०१ ॥ तत्तो सुवन्नकलसं सियं पि पडियं दंडत्तिछत्तं से । इय गुणमेवं पडिही तुह गोत्तमिमं व पयडतं ॥ ७०२ ॥ जाया रयस्सलाओ विच्छायाओ दिसाओ सव्वाओ । दंसंति व्व निवइणो वियंभियं भावि सोयस्स ॥ ७०३ ॥ कहइ व्व निरब्भनहा निवडिओ पज्जलंतविज्जुभरो । एवं चिय चियजलणो जलिही नरनाह ! तुह मरणे ॥ ७०४ ॥ आबद्धमंडलीया मंडलया गुरुसरेणं रोयंति । एवं तुह सयणा वि हु अक्कंदिस्संति भणिर व्व ॥ ७०५ ॥ दछृणमेरिसं दुन्निमित्तविंदेहिं एहिं मंतीहिं । न वलइ वारिज्जंतो विकालकलिओ व्व खयरवई ॥ ७०६ ॥ तं विहिय निच्छयं पेच्छिऊण समराय एत्थ संपत्ता । अम्हे कहणत्थं तुम्ह झत्ति ता कुणह जं जुत्तं ॥ ७०७ ॥ सोउं वरविन्नत्तिं रोसरयारत्तनेत्तसयवत्तो । सन्नज्झह त्ति आणवइ मंडलीयाइणो राया ॥ ७०८ ॥ तो ते कयसन्नाहा पक्खरियतुरंगमागुडियकरिणो । उब्भडभडरहजुत्ता पत्ता खयराहिरायपुरो ॥ ७०९ ॥ एत्थंतरम्मि पहु ! तुह सुएण पणमिओ नयरनरिंदो । आयरपुव्वं अब्भत्थिओ बहुं समरगमणत्थं ॥ ७१० ॥ वारंतस्स वि रन्नो हठेण चउरंगबलनरावरिओ । कुमरो विणिग्गओ नरवई वि कुमराणुमग्गेण ॥ ७११ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं तो दुन्नि वि सेणाउरएण मिलियाओ मुक्कबाणाओ । पुव्वावरवाएणं घणमालाओ व सवरिसाओ ॥ ७१२ ॥ एत्थंतरम्मि गयणंगणम्मि कोऊहलुक्कलियकलिया । नाणाजाणारूढा पत्ता अमरासुरा झत्ति ॥ ७१३ ॥ लग्गम्मि अग्गिमबले जुज्झेयं अदयसत्थघाएहिं । तो दंडाहिवईहिं जुज्झारयणा समारद्धा ॥ ७१४ ॥ करि-तुरय-हत्थिएहिं रुद्धा करि-तुरय-रहवरारूढा । . साउहसुहडेहिं पुणो खलिया सरिसाउहा सुहडा ॥ ७१५ ॥ झुझंति मच्छरुच्छाहसाहसुल्लासतणुतुलियदेहा । (सुहडा आयड्ढि)यकोदंडं मुक्कनाराया ॥ ७१६ ॥ अदयासिप्पहरेहिं दढत्ति निवडंति सुहडसीसाइं । भिंदिज्जति करिणो तिव्वतरं तेहिं कुंतेहिं ॥ ७१७ ।। मुसुमूरिज्जंति रहा सहस त्ति पडंति सत्तिपहरेण । वाहिं निति भडे तुरया असितोडयंति खुरा वि ॥ ७१८ ॥ करिहरितरछेउंछलियसहिरसरियाए वाहवीभच्छे । भडभंडमुंडमंडलदुस्संचारे रणखेत्ते ॥ ७१९ ।। अभिट्ठा पहु ! तुह तणयनयणवेगाभिहा गयारूढा । सियछत्तालंकरिया रमणीधुवंतचमरचया ॥ ७२० ॥ पुव्वं ता खेयर-चारणेहिं जय जय थुईहिं सव्वत्तो । वज्जत ढक्कबुक्का तं च कप्पमुहआउज्जा | ७२१ ॥ जुझंति दो वि गयदंतदंडसंघट्टउट्ठियग्गिकणे । उड्डावंता खज्जोयपव्वसरपत्तपवणेहिं ॥ ७२२ ॥ हण हण त्ति भणिरा हंकारहुंकारकायभत्ता सा ।। अवरावरतिव्वतरग्गसत्थविसारं विमुंचंति ॥ ७२३ ॥ तो दो वि सुवन्नमहत्थविसरसंकप्पिया सुकव्वेहिं । कुव्वंति महाकइणो व्व सव्वसउणाण संतोसं ॥ ७२४ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ गिहिधम्मे चंदसेणकहा तह पोढवाइणो विव बहुसत्थवियारणज्जियजसोहा । जुज्झेउं पारद्धा असरिसविज्जापहरणेहिं ॥ ७२५ ॥ तथाहि - मुक्कं रिउणा कुमरस्स मंतमुच्चरियतामसं बाणं । तो सामसघणरयणि व्व पसरए तिमिररिंछोली ॥ ७२६ ॥ पारद्धियस्स पावं व अयसपसरो व्व विहिय अनयस्स । सव्वत्तो वित्थरिडं तिमिरभरो तक्खणच्चेव ॥ ७२७ ॥ गयघडविमुक्कफुक्कारसिक्करासारजलकणा तिमिरो । रेहति वि फुरंता तारयनियर व्व गयणम्मि ॥ ७२८ ॥ धवलाण वि कसिणतं जायं छत्ताण तिमिरसंगेण । अहवा खलमिलणे होइ सज्जणाणं पि कालुस्सं ॥ ७२९ ॥ विहडंति रहंगा घुग्घुयंति घूया भमंति वेयाला ।। फेक्कारंति सिवाओ वियंभिए भूरितिमिरम्मि ॥ ७३० ॥ दठूण तिमिरसमरं सूरत्थं सरियमुयइ कुमरो वि । तो परियडंति पउरा सूरा पलए व्व समरनहे ॥ ७३१ ॥ सव्वंपि तिमिरपडलं विणासियं भूरिसूरकिरणेहिं । सुद्धब्भवसाएहिं वित्थरियं मोहजालं व ॥ ७३२ ॥ हरिए तिमिररिउणा पम्मुक्कं पव्वयस्थममरिसओ । दीसंति परिब्भमिरा गिरिणो गयणे सपक्ख व्व ॥ ७३३ ॥ गेरुयसिहरा सामा मुंचंता भूरिनिज्झरणनीरं । नजति नहे गिरिणो तडिजुयवरिसनवघण व्व ॥ ७३४ ॥ निवडंतसेलसंचयचुण्णिज्जंते चलम्मि चतुरंगे । मुक्कं कुमरेण पविप्पहरणमुग्गिरियअग्गिकणं ॥ ७३५ ॥ निवडइ निठुरतरघायपहयपव्वयसमुब्भवो चुन्नो । गयणाओ असिवसंभूयगा महीपंसुवुट्ठि व्व ॥ ७३६ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं संचुन्निए गिरिगणे मुयइ रिऊजलणठाणमइनिच्चं । तो कुमरबलं जलणो लग्गो दहिउं समग्गं पि ॥ ७३७ ॥ गुडपक्खरकवयाई जलंति गय-हय-भडाण कडयम्मि । अइविरसमारसंताण ताणमुल्लसइ कडुयरवो ॥ ७३८ ॥ सासियसिंधूवडवानलो व्व भुवणं व दहइ बलमनलो । तो तप्पडिवक्खं वारिवाहबाणं मुयइ कुमरो ॥ ७३९ ॥ विज्जुच्छडारुणच्छो गज्जंतो गरुयसक्कचावधरो । जलधारासरवरिसं विकरइ सुहडो व्व तयणु घणो ॥ ७४० ॥ आसारनीरधाराभरेण विज्झाविओऽनलो सयलो । रोसो वसो व्व समसाहुवयणं व सरेण कुवियस्स ॥ ७४१ ॥ इय पवणपव्वएहिं जलहिअगच्छीहिं सीहसरहेहिं । जुज्झंतेहिं तेहिं नहगणे रंजिया अमरा ॥ ७४२ ॥ मुत्तुं विज्जाजुज्झं लग्गा पुणरवि य सत्थजुज्झम्मि । सत्थप्पहएसु गएसु उरयमारुहिय जुज्झंति ॥ ७४३ ॥ बाणहएसु हएसु वि पयचारेणेव जुज्झिओ लग्गा । वंचंति छलप्पहरे कयकरणा दो वि अन्नोन्नं ॥ ७४४ ॥ लग्गो अरिअसिघाओ कंठे कुमरस्स अमुणिओ झत्ति । जायं रयणाभरणं सुरदिन्नवरप्पभावा सो ॥ ७४५ ॥ तं दलृ संखुद्धो वेरी एसो महप्पभावो त्ति ।। तव्वत्तयाए तेणावि न कलिओ कुमरअसिघाओ || ७४६ ॥ तले हलं पिव पक्कं मिक्खमलंतस्स निवडियं तेण । खेडमविलियडंतस्से व निवडिउं तं महेउं व ॥ ७४७ ॥ तो तुह सुयसिरकमले सुरमुक्का अलिजुया कुसुमवुट्ठी । पडिया रिरुस्सिरीए सकज्जला अंसुवुट्ठि व्व ॥ ७४८ ॥ अह भयभीया तप्पक्खनिवइणो कुमरसरणमल्लीणा । मंतीसिया य तेणं तप्पिट्ठीए करं दाउं || ७४९ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ गिहिधम्मे चंदसेणकहा जय जय जय त्ति नियसेन्निएहिं उग्घोसिओ कुमरविजओ । आउज्जाइं विजयसूयगाइं परिवाईयाई दुयं ॥ ७५० ॥ जयलच्छिसमुवगूढो कुमरो समरंगणस्स मज्झम्मि । कारवइ जयक्खंभं नियविजयपसत्थिनामंकं ॥ ७५१ ॥ तो मंडिलियकलिओ रणरंगे सत्थसल्लियभडाण । कारवइ वणकम्मं मयाण पुण ठावए अग्गिं ॥ ७५२ ॥ भमिरो मरमाणाणं काण वि जलपाणपुव्वयं देइ । कप्पूरमिस्सतंबोलबीडए सल्लियंगाण || ७५३ ॥ उप्पाडाविय अवरे सुहासणेहिं गलंतरुहिरगणे । पेसइ नियए कडए तप्परिपालणकरपयत्तो ॥ ७५४ ॥ कत्थइ रिउरायं पेच्छइ उच्छलियभूसणकरेहिं । विकिरतं पिव रोसुक्करिसा तिव्वयरसरवरिसं ॥ ७५५ ॥ तद्भूलसंठिसंतुलअंगावयवं अईवबीभच्छं । कुमरो सायरसामंतविंदमुद्दिसिय इय भणइ ॥ ७५६ ॥ पिच्छह रोसरयवसा सत्ता अत्ताणयं महाणत्थे । इय निक्खिवंति पररमणिगहणसंकप्पपावहया || ७५७ ॥ परिभावह अणुरायं जो दितो एस तरुणरमणीण । एयावत्थं पत्तो ताण वि सो देइ उव्वेयं ॥ ७५८ ॥ मिउहंसरोमनिम्मियतूलीसयणे सया वि जो सुत्तो । सो तिव्वयरसरसिज्जमुवगओ दूमए सयणे ॥ ७५९ ॥ मुत्तावचूलविलसिरच्छत्तच्छायाए जो सया नमिओ । सो दीसइ आमिसलुद्धगिद्धमंडलकयच्छाओ ॥ ७६० ॥ मसिणियघणघुसिणरसारुणियतणू जो सुहं पयच्छंतो । सो उव्वेयं वियरइ खरंटिओ रुहिरधाराहिं ॥ ७६१ ।। वीइज्जतो तरुणीहिं जो सया सेयचामरेहिं सो । वीइज्जइ नियबलरेणुपवणचलसीसकेसेहिं ॥ ७६२ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं आणंदं जणयंतो जो सयसामंत-मंतिकयसेवो । सो वियरइ भूरिभयं भडधडसिरसेणिमज्झगओ ॥ ७६३ ॥ अविरलरयणालंकियमंगजंगमस्स आसि कमणीयं । तं बीभच्छं विहियं सरुहिरबाणवणगणेण ॥ ७६४ ॥ जो महुरकिन्नरीकंठलट्ठमायण्णमणाण गिज्जतो । रोइज्जइ सो सकरुणमियपरियणकयपलावेहिं ॥ ७६५ ॥ जच्चन्भुयसिरिठाणं गुणरयणालंकियं विहेऊण । हणिरस्स पुरिसरयणं धिद्धि हयविहिविलासस्स ॥ ७६६ ॥ इय जंपिरं कुमारं सोउं मंडलिय-मंति-सामंता । खेयरचक्कप्पमुहा धुणियसिरा बिंति एवं ति ॥ ७६७ ॥ कुमरेणुत्तं एसो उत्तरसेणीपहू खयरचक्की ।। ता पूयापुव्वमिमस्स देह चंदणचियाजलणं ॥ ७६८ ॥ इय जंपिऊण कुमरो पणओ मुसुरयनिवक्कमंबुरुहं । तेणुत्तं गंतूणं गिण्हामो वच्छ ! रिउरज्जं ॥ ७६९ ॥ एवं ति कुमरभणिए खेयरचक्की समग्गबलकलिओ । सिरिगयणवल्लहपुरे पत्तो रिद्धिप्पबंधेण ॥ ७७० ॥ तत्तो रायपुरिसा य मणिमए मंडवम्मि गंतूण । अहिसित्तो रिउरज्जे कुमरो मणिमउडसमुरेण ॥ ७७१ ॥ सिरिकरणव्वयकरणट्ठाणाइसुं ठाविउं निउइगणं । परिवित्तिं काऊणं ठावियदेसेसु निवइणो ॥ ७७२ ॥ दिवसदुगेण सुत्थयमुप्पाएऊण तस्स रज्जस्स । मिलिया विसमणुपत्ता रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ७७३ ॥ ससुरंगो पावेउं गहियं पिउ उभयसेणिरज्जजुओ । रयणविमाणगणेणं इह पंचमवासरे पत्तो ॥ ७७४ ॥ ता पहु ! कुमराएसाहरणागमणंतरालवुत्तंतो । तुह सुयतणओ कहिओ त्ति भणिय सो मोणमल्लीणो ॥ ७७५ ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा इय निसुयनियसुयहो दूरं राया वि दुक्खिओ जाओ । सुयणो परवसणम्मि वि होइ दुही किं न तणयस्स ? || ७७६ ॥ जंपइ सुयं पुत्तय ! दुक्खं पाविय तए सुहं पत्तं । तवचरणं काऊणं भव्वो भुंजइ सिवसुहं पि ॥ ७७७ ॥ बहुआ वि आवया जायं तुज्झ पभविंसु नेव थेवं पि । घणघणनिग्घायो किं कुणंति राई धिइवज्जस्स ॥ ७७८ ॥ सव्वाहिं वि पुत्तरिउस्सिरीहिं समलंकिओ तमागंतुं निसिसमयनहपहो इव परिविलसिरभूरिताराहिं ।। ७७९ ।। इय सुयं पिउप्पसंसो लज्जोणयवयणपंकओ कुमरो । जंप तायपसाओ तुज्झ इमो नेह मह सत्ती ॥ ७८० ॥ तुज्झ पया खणं वि अमए जिओ दुज्जओ वि ताय ! रिऊ । रविसंगप्फुरियं तं जं कुमरो हरइ घणतिमिरं ॥ ७८१ ।। इय पुत्तविणयवयणाइं निसुणिउं निवइणा नहयरिंदा । भणिया कुमरनिरक्खणभमिरभडे झत्ति वालेह || ७८२ | ता नहयरेहिं विज्जं पेसिय सव्वे वि वालिया सुहडा । दिन्नावासेसु गया य नहयरा रायआणाए ॥ ७८३ || कुमरो वि निवासेणं पत्तो नियए वि वासपासाए । संज्झा दुगे वि खयरेहि संगओ कुणए पिउसेवं ॥ ७८४ ॥ अवरम्मि वासरे रायवाडियाचलियराइणा दिट्ठो । सिरिमयणमहणसूरी कुसुमामोयाभिहुज्जाणे ॥ ७८५ ॥ आयरियं अचित्तो वि हु अंगीकयसुमणपत्तसंदोहो । सरलप्पयई सययं विरायए जो अरुक्खो वि ॥ ७८६ ॥ चत्तनिवालंकारो सहाए पविसिय सपरियणो राया । तिपयाहिणापुरस्सरमभिवंदइ सूरिणो चलणे ॥ ७८७ ॥ पत्तगुरुधम्मलाहो भत्तिवसुल्लसियनयनजुयवाहो । उवविट्ठो गुरुपुरओ सकुमरखेयरपरीवारो ॥ ७८८ ॥ ६३ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ गुरुणा वि हु वागरिओ पढमं दसहा वि समणवग्गो सो । पंचाणुव्वयप हो धम्मो सड्ढाण य दुछक्को ॥ ७८९ ॥ मूलं दंसणमेसिं कहियं तह निंदियं नरयदुक्खं । तिरियगईए चिय दुहाई दंसियाई अणेगाई ।। ७९० ।। मणुयगईए वि कट्ठ उवइट्टं पाणिणं असुहकयाणं । देवगईए वि पयडियं दुहं ईसा विसायाई ॥ ७९९ ।। इय असुहेक्कनिवासो पयासिओ चउव्विहो वि भववासो । उब्भाविया य अक्खयसुहरिद्धिसासयासिद्धी ॥ ७९२ ॥ तं तिव्वतवेणऽज्जिय थोवदिणेहिं पि पसमिणो भव्वा । उवभुंजंति सुहं सइ अणन्नतुल्लं ति वागरियं ॥ ७९३ ॥ तं सोउं विरत्तमंतचारुचारित्तपरिणई परमो । सिरिअणंतजिणचरियं नमिय गुरुं जंपर पहु ! गिहिस्सामो कयं तुम्हं ॥ ७९४ || नवरं कुमरं रज्जे ठवेमि इय भग्यि पणयगुरुचरणो । पत्तो परिवारजुओ पासायवडिंसए राया ॥ ७९५ ।। काऊण भोयणं मणिसीहासणं तइय भूवई भाइ । कुमरं जणपच्चक्खं वच्छालंकरसु रज्जं ति ॥ ७९६ ॥ तो कुमरमुहं पिउवयणसवणसोएण झत्ति सामलियं । पुन्निमससिमंडलमिव तिरोहियं राहुबिंबेण ॥ ७९७ ॥ भणिओ कुमरेण पिया पायमुवलग्गिउं सदी गिरं । किं ताय ! मं अणाहं दीणं व करेसि इहि पि ॥ ७९८ ॥ रायाह खयरचक्कित्तपयपइट्ठो तुमं चिय जयस्स । नाहो ता कह जंपसि मा मं मुंचसु अणाहं ति ॥ ७९९ ॥ सव्वुत्तमनिवलक्खणलंछियदुद्धरिसनियसरीरेण । संतावय सत्तूणं दीणया कहसु कहं तुज्झं ॥ ८०० ॥ तुह रज्जसिरी संजमसिरी पुणो जाय ! जुज्जए मज्झ । कज्जं कज्जं तं तेण जं अवत्थोच्चियं जस्स ॥ ८०१ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा जइ वयविग्घकरो भवसि वच्छ ! ता तुज्झ मज्झ एय आणा । तं सोउं पिउआणाभंगभया सो ठिओ मोणे ॥ ८०२ ॥ रायाणाए खयरा अहिसेओवक्कमं पओयणंति । कुव्वंति पडिहाराएसा पउरा नयरसोहं ॥। ८०३ || वाहरिओ मणिमउडो खयरवरं तेण सह नरिंदेण । कुमरस्स सुमुहत्ते विहिओ रज्जाहिसेयमहो ॥ ८०४ ॥ तो आरूढो रणिज्झणिरकिंकिणीजालरयणसिबियाए । गुरुरिद्धीए राया खयरनट्टाइं पेच्छंतो ॥ ८०५ ॥ पत्तो उज्जाणे नमिय गुरुकमे जायए जिणिंदवयं । तो सो सपिओ कइवयरायजुओ दिक्खिओ गुरुणा || ८०६ || संगहिअदुविहसिक्खो गुरुणा सह विहरिडं तवे सत्तो । संजायविमलकेवलनाणो सिद्धिं समणुपत्तो ॥ ८०७ ॥ सिरिचंद सेणरन्ना सम्माणेऊण खेयरनरिंदा | वेयड्ढगमणा दिन्नाणुन्ना ता तत्थ संपत्ता ॥ ८०८ ॥ राया वि नायमग्गेण पालए जणयदिन्नरज्जसिरिं । ताडइ चोरे दूरं उच्चाइ चरडचक्काई ॥ ८०९ ॥ सम्माणइ सयणगणं मन्नइ मित्ते य महइ महणिज्जे । आयरइ सज्जणे सइ वज्जइ दुज्जणसमागमणं ।। ८१० ॥ वंदइ गुरूण चरणे तिसंज्झमच्चइ जिणे भुवणसरणे । निच्चं पि परावत्तइ संतमणो पंचपरमेट्ठि ॥ ८११ कइया वि गयणमग्गेण गयणवल्लहपुरम्मि गंतूण । उत्तरसेणीरज्जम्मि निरवज्जं पालइ पहिट्ठो ॥ ८१२ ॥ कइया वि ससुरयाहियमाणसम्माणफ्त्तपरिओसो । चिट्ठइ दाहिणसेणीए कइ वि दिवसाई सोक्खेण ॥ ८१३ ॥ इय रज्जसिरिसमुब्भव अच्चन्भुयसंभवंतसोक्खस्स । वच्चति वासरा वासराहिवसमप्पयावस्स ॥ ८१४ ॥ { Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ सिरिअणंतजिणचरियं कइया वि चंदमाला सुहसुविणयसूईयं सुयं देवी । पसवइ सव्वोत्तमरायलक्खणं कियमहापुन्नं ॥ ८१५ ॥ तो असरिसवद्धावणयकरणपुव्वं पइट्ठियं नाम । पुत्तस्स चंदकित्ति त्ति राइणा रंजियमणेण ॥ ८१६ ॥ परिवद्धिओ पवत्तो बालो बालढुमो व्व निरवाओ । पढणत्थमुवज्झायस्स अप्पिओ वच्छरे छठे ॥ ८१७ ॥ अहिगयकलाकलावो नवजोवणजणियजुवइसंतावो । परिणाविओ निवेणं नवजोवणरायकन्नाओ ॥ ८१८ ॥ ताहं सह विसयसोक्खं माणइ अब्भसइ अहिगयकलाओ । सेवइ य सया वि हु उभयकालमवि जणयमत्थाणे ॥ ८१९ ॥ एत्थंतरे घणगज्जियराओ उम्मत्तओ गयघडाओ व्व । पसरंति मेहमालाओ गयणगब्भम्मि विज्जु व्व ॥ ८२० ॥ उभिदिय घणडंबरमंबरओ पडइ ससिकरतरो व्व । खीरोयपीयपाऊसजलभरासारपसरो व्व ॥ ८२१ ॥ आसवइ सग्गउसग्गिवग्गसंगहि अमयवुट्ठि व्व । परिविलसइ जयगब्भे फलिहसलायाकलावो व्व ॥ ८२२ ॥ दिसि दिसि निसिउपुच्छलियविक्कप्पसरेण पायडिज्जंतो । अहिणवघणघणनिवडिरजलधारासारसंघाओ ॥ ८२३ ॥ कुलयं ॥ पसरियसिंदूरारुणविज्जुप्फुरियप्पहारुणं गयणं । आभाई पइक्खणजायमाणसंज्झाणुरायं व ॥ ८२४ ॥ फुल्लियपंडुरदुल्लीवेल्लिप्पच्छाइयावईओ जहिं ।। मोत्तियमिस्सियमरगयपायारा इव विरायंति ॥ ८२५ ॥ कमलविसाहारम्मि हरिए मेहेण पवसिया हंसा । आहारविरहियाणं कत्तो वासो सदेसम्मि ? ॥ ८२६ ॥ सह सरियासलिलेहिं पउत्थवईयाण वित्थओ विरहो । जम्मिं जाईहिं समं अविउत्तपियाओ वियसंति ॥ ८२७ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ गिहिधम्मे चंदसेणकहा पसरंति बलायाओ जम्मि समं सुरधणूहिं जलयतले । वियसंति कयंबदुमा सद्धिं पामरकुडुंबेहिं ॥ ८२८ ॥ सोहइ सइंदगोवा सजलकणा नीलतणभरा धरणी । सपउमराय व्व समोत्तिय व्व जत्थिंदनीलमही ॥ ८२९ ॥ जंबुद्दुमावली पक्कफलहभराधरियदलगणा जत्थ । आभाइ जलभरेणं महीए पडिया घणालि व्व ॥ ८३० ॥ एवंविहे समंता वरिसायाले विरायमाणम्मि । आसारनीरधाराधोयपुरीपेच्छणनिमित्तं ॥ ८३१ ॥ पासायसिरे राया आरूढो मंतिमंडलियकलिओ । अवलोइय गयणयलं सामलियं मेहमालाहिं ॥ ८३२ ॥ पेच्छइ बलाहयालिं नवघणमंडलतालपरिचलंति । गिम्हनिवविजयपत्तं पाउसनिवजयपडायं व ॥ ८३३ ॥ आयन्नइ गज्जंतं मेहं भोइयमुइंगविंदं व । . तच्छंदेण नडे विव नच्चंते नियइ बहुसिहिणो || ८३४ ॥ एत्थंतरम्मि दुस्सत्थतडयडारावभीमभयजणया । पडिया झड त्ति विज्जू निवनियडट्ठियभडस्सुवरि ॥ ८३५ ॥ तज्जालोलिपलित्तो सो संपत्तो झडत्ति पंचत्तं । रायाईण वि जाओ सबाहिरब्भतरो तावो || ८३६ ॥ गोसीसचंदणालेवणाइणा सत्थया कया रन्ना । दिन्नो भडस्स अग्गी नेउं पच्छिमदुवारेण ॥ ८३७ ॥ तो चिंतियं निवइणा मरणं तो एस आगओणत्थो । उव्वरिओ हं केणावि कुसलकम्मेण जीवंतो || ८३८ ॥ एसो जहा वराओ मओ तहा हमवि जइ विवज्जंतो । तो रज्जमहापावक्कंतो नरयम्मि निवडतो ॥ ८३९ ॥ एवंरूवअतक्कियअणत्थपत्थारियुत्थदुत्थत्तं ।। नाऊण नूण जाया विवेइणो चित्तसामन्ना ॥ ८४० ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं अहमच्चंतविवेई वि नायनिस्सेससमयकारो वि ।। परभवविमुहो जाओ लच्छी लुद्धो नडनरो व्व ॥ ८४१ ॥ रज्ज-पिया-पुत्ताइसिणेहबंधणनिबद्धमुत्तीण ।। अम्हारिसाण ठाणं कत्तो सग्गापवग्गेसु ॥ ८४२ ॥ एयव्वमणुच्चरियस्स पडणधम्मस्स नियमसरीरस्स । सारं तं चिय कीरइ भवभयहरणं जमप्पहियं ॥ ८४३ ॥ ता जीवियस्स गिण्हामि फलमहं चरियचारुतवचरणं । इय चिंतिय उत्तिन्नो पासायग्गाओ अवणिवई ॥ ८४४ ॥ उवविसिय सहासीहासणम्मि वाहरिय पुत्तमिय भणइ । वच्छ ! पवज्जसु रज्जं पव्वज्जमहं जओ काहं ॥ ८४५ ॥ इय जंपिऊण पुत्तं अणिच्छमाणंपि ठविय नियरज्जे । निस्सेसजिणिंदाणं काऊणट्ठाहियामहिमं ॥ ८४६ ॥ दाउं दीणाईणं दानं सम्माणिऊण समणसंघं । आरूढो सिबियाए फुरंतघणरयणकिरणाए ॥ ८४७ ॥ पेच्छणए पेच्छंतो वज्जिरतूररवपूरियदियंतो । तित्थं पभावयतो नर-खेयररिद्धिचाएण ॥ ८४८ ।। तत्थ कयवरिसयालाणुवस्सए समयसारसूरीण ।। पत्तो मुत्तुं सिबियं नमिय गुरुं जायए दिक्खं ॥ ८४९ ॥ तो सपिओ कइवयरायसंगओ दिक्खिओ गुरूहि सयं । . संगहियदुविहसिक्खो जाओ सिग्धं पि गीयत्थो ॥ ८५० ॥ निम्मलमइणा तेणं अंगोवंगप्पइन्नयाईयं । पढियमसेसं पि सुयं सुओ य सव्वो वि हु तयत्थो ॥ ८५१ ॥ निस्सेसदेसभासाविसेसनाया नयज्जियजसोहा । सूरिपए संठविओ गुरूहिं जोगो त्ति रायरिसी ॥ ८५२ ॥ तो मुणिमंडलकलिओ विहरइ गयणंगणेण देसेसु । जइधम्म गिहिधम्मं च देइ पडिबोहिउं भव्वे ॥ ८५३ ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा गंतुं वेयड्ढम्मिं ससुरयपमुहा नरेसरा बहुया । पव्वाविया तहा ठाविया य अवरे उ गिहिधम्मे ॥ ८५४ ॥ आरोवियमन्नेसिं सम्मत्तं केवि भद्दगा विहिया । इय बहुवरिसाई तेण भव्वलोयस्स उवयरियं ॥ ८५५ ॥ नाउं नियाऊयं तं विहियाणसणो वियंभियसमाही | रईयपरमंतकिरिओ अंतगडो केवली जाओ ॥ ८५६ ॥ भज्जा वि चंदमाला संपावियकेवला गया मोक्खं । नियजोग्गयाए जायं सेसाण वि सग्गसिद्धिसुहं ॥ ८५७ ता राय ! देसविरई जह जाया चंदसेणनरवइणो । सुहया तह अवरस्स वि जायइ ता तीए उज्जमह ॥ ८५८ ॥ जो देसविरइधम्मे दिट्ठतो पुच्छिओ तए राय ! सो तुह कहिओ त्ति पयंपिडं ठिओ मुणिवई मोणे ।। ८५९ ।। पहु ! जह कहियं तुब्भेहिं तह वयं सव्वमवि करिस्सामो । अवरो वि उवेहिज्जइ न सुहत्थो किं पुणो धम्मो ? || ८६० ॥ इय भणिय सह सहाए उट्ठेउं नयगुरुक्कमो राया 1 आरुहिय गयं परिवारसंगओ भवणमणुपत्तो ॥ ८६१ ॥ कयकिच्चं अत्ताणं मन्नइ सद्धम्मलाहजोएण । संज्झासु तिसु वि जिणनाहमच्चए भत्तिसंत्तो ॥ ८६२ ॥ निच्चं पि नमइ गुरुपायपंकयं सरइ पंचपरमिठि । साहम्मियाण गोठि अणुट्ठए देइ दाणाई ॥ ८६३ ॥ नयरीए परिब्भमइ जिणरहरयणाई कयपयब्भमणो । बिंबाई पइट्ठावर सूरीहिं जिणालए काउं ॥ ८६४ ॥ एवंविह सव्वमायरणज्जियपरमपुन्नपब्भारो । अइवाहइ दिवसाई राया रायप्पहाकित्ती ॥ ८६५ ॥ अह अन्नया नरिंदो माणिक्कसहामहासणासीणो । विन्नत्तो पडिहारेण पणमिउं रईयकरकोसं ॥ ८६६ ॥ ६९ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० सिरिअणंतजिणचरियं देव ! दुवारे दूओ नहेण पत्तो कुमारकडयाओ । तुम्ह पयदंसणत्थी ता आणं देह तव्विसए ॥ ८६७ ॥ रायाह तं विमुंचसु झड त्ति जह कहइ मह सुयपउत्तिं । तो पडिहारविमुक्को दूओ रायंतियं पत्तो ॥ ८६८ ॥ महिमिलियमउलिमंडलमभिनमिय पहुक्कमे समुवविट्ठो । कुसली कुमरो त्ति निवेण जंपिए नमिय विन्नवइ ॥ ८६९ ॥ देव ! तुह पायपंकयपरायपभवप्पसायफुरिएण ।। कुसलं तस्स सया वि हु चउविहसेणासमेयस्स ॥ ८७० ॥ रायाह कहसु ता एय ठाणाओ निग्गमाइवुत्तंतं । निययागमणं तं तो सो पुहुणो साहिउं लग्गो ॥ ८७१ ॥ पत्तो देवाएसा कमलपुरमहम्मि पत्थिओ कुमरो । निवकमलकेसरसुयाकमलावलिपरिणयणकज्जो ॥ ८७२ ॥ अणवरयपयाणेहिं कासीदेसावयंससंकासे । अप्पमिव सिरिविजयावहम्मि नयरम्मि संपत्तो ॥ ८७३ ॥ तन्नयरविजयसेहरनरिंदगोरव्वं विइन्नआवासो ।। आवासिओ कुमारो गुड्डरपडमंडवविचित्तो ॥ ८७४ ॥ संज्झाए सहासीणे कुमरे पडिहारसूइओ पत्तो । कमलपुराओ दूओ नमिउं विन्नवइ कुमरमिमं ॥ ८७५ ॥ देवाहं कमलपुराओ पेसिओ कमलकेसरनिवेण । तुम्ह सयासे कज्जेण जेण आयन्नह तमिहि ॥ ८७६ ॥ तुम्हाणं जा विइन्ना कन्ना कमलावली विवाहत्थं । सा दिवसपंचगोवरि पकीलिउं भवणमारूढा ॥ ८७७ ॥ सद्धिं सहीयणेणं जा चिट्ठइ बहुविणोयवक्खित्ता । ता नहयलाओ पडिया एगा नवजुव्वणा रमणी ॥ ८७८ ॥ निठुरमणिकुट्टिमघायजायमुच्छा विमीलियच्छिजुया । लक्खिज्जइ दूरनहागमणस्समजायनिंद व्व ॥ ८७९ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ गिहिधम्मे चंदसेणकहा वेरूलियरयणभूसणकंतिब्भारसंपरिक्खित्ता ॥ नज्जइ मुच्छावणयणनिमित्तनीरयविट्ठ व्व ॥ ८८० ॥ तं निच्चेटुं दटुं झडत्ति कुमरी सहीयणसमेया । मुच्छावणयणकज्जे काउं लग्गा सिसिरिकिरियं ॥ ८८१ ॥ काउं वि तद्देहं हिमविमिस्सचंदणजलेण सिंचंति । अवराओ सिहंडि सिहंडतालयंटेण वीयंति ॥ ८८२ ॥ अवराओ सिरोयरकरकमाण संवाहणाई कुव्वंति । दुक्खाओ सिक्कारं पि हु खिवंति काउं वि तव्वयणे ॥ ८८३ ॥ जंपंति य नहयलगमणविज्जविम्हरेण खयरतरुणी ।। का वि इमा इह पडिया नन्नो हेऊ घडइ पडणे ॥ ८८४ ॥ इय जंपिरीहिं ताहिं असरिससिसिरोवयारकिरियाहिं । आयरपुरस्सरं सा विहिया संपत्तचेयन्ना ॥ ८८५ ॥ तो उठ्ठिया विसंठुलदेहं वत्थेहिं आवरंती सा । उववेसिया य अद्धासणम्मि कुमरीए निययम्मि ॥ ८८६ ॥ तत्तो य पुच्छिया सुयणु ! का तुम किमिह निवडिया गयणा ? | तीयुत्तं उवयारिणि त्ति साहिस्सं मे वुत्तंते ॥ ८८७ ॥ तो उट्ठिऊण ठिओ दूरयरे कुमरिपरियणो सव्वो । अवरुंडिय कुमरिं तयणु झत्ति सा गयणमुप्पइया ॥ ८८८ ॥ तं निज्जतिं दद्दु कुमरीए सहीयणेण पुक्करियं । भो भो ! धावह धावह निज्जइ कीए वि कुमरि त्ति ॥ ८८९ ॥ तं सोउं निवसुहडा वि कोसउक्खित्तखग्गवग्गकरा । हण हण हण त्ति जंपिरा पासायस्सिहरमारूढा ॥ ८९० ॥ आरोवियधणुगुणमुक्कबाणगणपूरियंबरविभागा । उग्गीवा पसरेउं पारद्धा धिट्ठधाणुक्का ॥ ८९१ ॥ साहंकारं हुंकारपुव्वमुक्खायखग्गवेणुकरो । वद्धाविडं नरिंदो निडालतडघडियभडभिउडी ॥ ८९२ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ सिरिअणंतजिणचरियं पेच्छंताण वि ताणं नहेण वेगेण गहिय कुमरी सा । तक्खणमेत्तेणं चिय नयणाणमगोयरा जाया । ८९३ ॥ तो रायप्पमुहाणं सुयावहारे वियंभिओ सोओ । पलवेउं पारद्धो पागयपुरिसो व्व नरनाहो ॥ ८९४ ॥ हा हा ! तणए तणए ! हा जिणवर-देवसुगुरुपणपयए ! । हा सहियणसुहजणए ! कत्थ गया तं ममिह मुत्तुं ॥ ८९५ ॥ पारद्धो वीवाहो वाहरिओ इह वरो पयावरहो । अन्नह पारद्धमिमं संजायं अन्नहा वच्छे ! ॥ ८९६ ॥ देवी कमलसिरी चिय पलवइ सोयं सदंतुरियनयणी । हा पुत्ति ! तुज्झ जुत्तं किं तं जं मं गया मुत्तुं ॥ ८९७ ॥ वच्छे ! इण्हि तुज्झावहारवज्जप्पहारपहयम्मे । ता देसु दंसणं जा सहस्सहा फुडइ तो हिययं ॥ ८९८ ॥ रोयंति समग्गाओ वि सहीओ कुमरी गुणत्थइअ मुहीओ । चिहुरे तोडंतीओ ताडंतीओ य हिययाइं ॥ ८९९ ॥ तो मंतीहिं निवारिय नरेसरं सोयरोइयव्वाओ । कुमरीनिरक्खणत्थं हएहिं पट्ठाविया सुहडा ॥ ९०० ॥ एयत्थं चिय पहुणा पट्ठविओ हं पयासिउं तुम्हे | तह य कहावियमेयं जइ तं कुमरि लहिस्सामो ॥ ९०१ ॥ ता तुह सयंवरं चिय पेसिस्सामो समं सुमंतीहिं । तुब्भेहिं न कायव्वं ता एत्थ निरत्थयागमणं ॥ ९०२ ॥ तम्मि सुए सव्वो वि हु कुमरस्स जणो ठिओ कसिणवयणो । कमलायरो व्व मउलियकमलवणो तरणिअत्थमणे ॥ ९०३ ॥ कुमरीहरणदुहासियमणो वि कुमरो अभित्तमुहराओ । अंतो सकालकूडो विमुहरसो खीरनीरनिही ॥ ९०४ ॥ कुमरेणुत्तं सत्तो वि दूय ! किमहं करेमि दोब्बलं व । अवयारकारयम्मि अगोयरे सव्वहा जाए ॥ ९०५ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ गिहिधम्मे चंदसेणकहा नूणं मुच्छियरमणिच्छलेण देवाण खेयराणं वा ॥ अन्नयरेणं हरिया होही सा रूवलुद्धेण ॥ ९०६ ॥ जइ हं को वि मणुस्सो जइ जाओ पउमरहनरिदेण । ता कत्तो वि हु तं आणिऊण नूणं विवाहिस्सं ॥ ९०७ ॥ ते भूभारकर च्चिय नराहमा जे न जाणिऊण रिउं । कंटुप्पाडेण हणंति तस्स नासइ जह कुलं पि ॥ ९०८ ॥ इय जंपिरेण काउं सम्माणं सो विसज्जिओ दूओ । तह अत्थाणजणो वि हु कुमरेण सठाणगमणत्थं ॥ ९०९ ॥ रयणीए गुडुरब्भंतरम्मि दोलाचलंतपल्लंकं । अल्लीणम्मि कुमारम्मि जामइल्ला ठिया दारं ॥ ९१० ॥ ता गोससमयसूयगगहीरवज्जंतमंगलाउज्जे । पढमाणम्मि य मंगलथुईओ बहुवंदिविंदम्मि ॥ ९११ ॥ सेज्जावालनिउइयपुरिसो कणयालुयं करे कलिउं । जा गुडुरे पविट्ठो कुमारमुहसोयदाणत्थं ॥ ९१२ ॥ ता सेज्जाए न कुमरो पेच्छइ पेच्छइ य भुज्जपत्तम्मि ॥ तंबोलरसालिहियं गाहाजुयलं फुडत्थमिमं ॥ ९१३ ॥ तुब्भेहिं समग्गेहिं वि अवसेरी मज्झ नेव कायव्वा । तह जाणावेयव्वो न चेव ताओ वि दिणदसगं ॥ ९१४ ॥ निवकमलकेसरसुयं गहिडं कमलावलिं न आणेमि । हणिऊण रिडं जइ ता पविसामि चियाए जलिरीए ॥ ९१५ ॥ तं वाइऊण तेणं समप्पियं मंतिमंडलीयाणं । अवगयतज्झावत्था तो ते अच्चंतमाउलिया ॥ ९१६ ॥ काऊण कडयरक्खं गुरुवेगतुरंगवग्गमारूढा । विजयावहपुरपरिसरवरायलं भमिउमारद्धा ॥ ९१७ ॥ गिरिसिहरगुहासिरिकंदराइदुमगुम्मक्कवविवराई । निउणं पि निरक्खंता नवरं न नियंति कुमरं ते ॥ ९१८ ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ नाउं कुमारगमणं राया वि हु विजयसेहरो झति । परियतरलतुरंगो अवलोयंतो भमइ कुमरं ॥ ९९९ ॥ दिवसत्तिगे भमेउं वलिया मंडलिय - मंति- सामंता । सह विजयसेहरेण रन्नो अन्नायकुमरपहा ।। ९२० ।। नियकडयनियडवडविडवितडसुरारइयकणयकमलठियं । पेच्छंति केवलिं धवलछत्तअंतरियरवितावं ॥ ९२९ ॥ अमरासुर-नर-खेर - पमुहसहाए विसुद्धधम्मकहं । वागरमाणं माणावमाणपरिहीणजइजुत्तं ॥ ९२२ ॥ तो विजयसेहरेणं निवेण भणियं कुमारपरिवारो । चलह नमंसिय केवलिमापुच्छामो कुमरगमणं ॥ ९२३ ॥ एवं ति भणिय तो ते निवेण सह वंदिउं विमलनाणि । उवविसिय पहुं पुच्छंति पवसिओ कत्थ कुमरोति ? ॥ ९२४ ॥ तो भइ केवली भो ! आयन्नह कुमरगमणवृत्तंतं । दूयं विसज्जिऊणं कुमरो गुडरगिहे सुत्तो ॥ ९२५ ॥ तो तस्स तट्ठभल्लि व्व सल्लियमणा समयंकमुही । निवकमलकेसरसुया कुमरी कमलावली नाम ॥ ९२६ ॥ नूण न तरामि चलिउं अहमेयट्ठाणओ अकयकज्जो जमणुप्पज्जइही सो खलणे सुयणाण संतावो ॥ ९२७ ॥ पारंभंति न गरुया अह पारद्धं न ता वि मुंचति । साहसियस्सुज्जमिणो संकइ देव्वो वि जेणुत्तं ॥ ९२८ ॥ देवस्स मत्थर पाडिऊण सव्वं सहंति काउरिसा । देव्वो वि माणसंकइ जाणंतेउ परिप्फुरइ ।। ९२९ ॥ तहा - सिरिअणंतजिणचरियं साहससत्तिधणाणं दो चेव गईओ हुंति धीराण । तणतुलियजीवियाणं मरणं च सकज्जकरणं वा ॥ ९३० ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ गिहिधम्मे चंदसेणकहा जा मज्झ कए वरिया सा भज्जा चेव मे न संदेहो । किं नाम नावरद्धं ता केणइ [नरो] हरंतेण ॥ ९३१ ॥ जीवंता वि मया ते जाण पिया हरिय निज्जइ परेहिं । नूणं नराहमाणं ताण स जणणी मया सेया ॥ ९३२ ॥ इय चिंतिय कुमरेणं तंबोलरसेण भुज्जखंडम्मि । नियगमणसूयगाओ गाहाओ दोन्नि लिहियाओ ॥ ९३३ ॥ तत्तो निसीहसमए सुन्ने दठूण सव्वपाहरिए । रइऊण वंठवेसं धणुभत्थयछुरियअसिकलिओ ॥ ९३४ ॥ नीहरिओ पाहरिए वंचंतो तह भमंतभामरिए । ठाणे ठाणे ठाणंतरिए वि हु दूरमुब्भंतो ॥ ९३५ ॥ कडयवहिमहियलम्मि पत्तो निस्संककयपयक्खेवो । गुरुतरजवेण जंतो पत्तो एगं महारन्नं ॥ ९३६ ॥ साल-प्पियाल-हिंताल-ताल-सरलाइदुमसमूहसियं । हरि-सरह-वराह-करेणु-विरुय-रूरू-रोज्झभयजणयं ॥ ९३७ ॥ गुरुभीमनउलकलियं विलसिरसहदेवसउणिसंजुत्तं । अज्जुणसोहंजणसंकुलं च जं पंडुगेहं व ॥ ९३८ ॥ तम्मि भमंतो बहलदुमगुम्मन्मंतरे नियइ कुमरो । अइसरलतरलधवलच्छिपेच्छणारईयकमलवणं ॥ ९३९ ॥ एसं उव्विग्गमणं हरणिघोरंसुदंतुरियनयणिं । कंठपरिट्ठियसुसिलिट्ठकंडयं पंडुरसरीरं ॥ ९४० ॥ तं पेच्छिऊण उच्छलियकोउगो चिंतए निवंगरुहो । रन्नमईए कंठम्मि कंडयं जं तमच्छरियं ॥ ९४१ ॥ अहवा कस्सइ पारद्धियस्स भुल्ला वराईया एसा । जमह नासइ न य मानज्जइ अंसूहिं उव्विग्गा ॥ ९४२ ॥ अवियण्डं च पलोयइ उग्गीवा मज्झ समुहमविरामं । ता जामि समासन्ने इमाए इय चिंतिउं कुमरो ॥ ९४३ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो तप्पासे कंठकंडए मूलिउं पलोएउं । चिंतइ किमिमा कंठम्मि मूलियाए य हरिणीए ॥ ९४४ ॥ बद्धंति तिरिच्छाणं कंठे किंकिणियघरघराईणि । ता कंडयमुच्छोडिय मूलियमेयं निरक्खेमि ॥ ९४५ ॥ तो तहविहिए कुमरेण हरिणिया सा ठिया तरुणरमणी । घणसिहिणी ससिवयणी गयगमणी सरलचलनयणी ॥ ९४६ ॥ तं दटुं संजाओ कुमारचित्तम्मि विम्हओ दूरं । तो सो चिंतइ रन्ने विहीसिया का वि किं एसा ? || ९४७ ॥ इय चिंतंतं कुमरं सकायरच्छं पलोयमाणा सा । सेयपुलयप्पकंपेहिं पारवस्सं समणुहवइ ॥ ९४८ ॥ परिपेच्छितं तं साहिलासमेवं विभावए कुमरो । न विनीसिया धुवमिमा जमिमाए साणुराइत्तं ॥ ९४९ ॥ मा विहिविलासवसओ जायं कमलावलीए तिरियत्तं । ता पुच्छामि इमं चिय इय चिंतिय भणइ तं कुमरो ॥ ९५० ॥ सुयणु ! बहुरूविणी तं जं हरिणी माणुसत्तमाक्त्ता । अहवा इत्थीचरियं अगोयरं अमरगुरुणो वि ॥ ९५१ ॥ ता जइ मह साहंती न सम्मिज्जसि तह समा वि कहणिज्जं । ता कहसु हरिणनयणे ! निययहरिणत्तवुत्तंतं ॥ ९५२ ॥ तं सोउं तीउत्तं जइ तुज्झ वि पुरिसरयण ! न कहिस्सं । को नाम कहणजोग्गो ता होही भुवणगब्भे वि ॥ ९५३ ॥ हुंती हं कमलपुरे नरिंदसिरिकमलकेसरस्स सुया । कमलावलिनामा सह सहीहिं भवणग्गमारूढा ॥ ९५४ ॥ कीए वि नहनिवडणपुच्छियाए कयचेयणाए रमणीए । सिसिरकिरियाहि नियकहकहणच्छलओ रहे हरिया ॥ ९५५ ॥ आणेऊणं मुक्का य एत्थ तो सा ठिओ नरो तरुणो । रइयकरकमलकोसं पयंपिया तेण महमेवं ॥ ९५६ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ও' गिहिधम्मे चंदसेणकहा सुयण-सुतारे नयणे, व्व सरलयालंकिए अरन्ने व्व । सइअव्वए वि गुरुपव्वयम्मि वेयड्ढनामम्मि || ९५७ ॥ निरुवम-नियनयरीगुण-पावियपुरविजयसंपया अस्थि । नामेण वेजयंती पुरी, परिप्फुरियमणिभवणा ॥ ९५८ ॥ तं परिपालइ मालइ-मालासमलंकितकित्तिपन्भारो । विजयद्धयाभिहाणो, बहुविज्जो खयरनरनाहो ॥ ९५९ ॥ साहिय अणेगविज्जो, तस्स सुओ विजयकेउ नामो हं । सच्चविया भवणग्गे मए तुम बहुसही सहिया ॥ ९६० ॥ तो निवडिय रमणीरूवधारिणा तं मए इहाणीया । ता मन्नसु मं कंतं, अणुरत्तं कुवलयदलच्छिं ! || ९६१ ॥ तं सोउं सो वुत्तो, मए तुमं खयरकुमर ! मह भाया । नाया वि हु नीईणं, किमसंबद्धाइं उल्लवसि ? || ९६२ ॥ जस्स विइन्ना पिउणा, सो मज्झ वरो वि न हु अवरो । ता बंधव ! पुणरुत्तं, भणिज्ज भइणी समुचियं जं ॥ ९६३ ॥ सो मह लुद्धो दूरं, निरवेक्खा हं पुण अईवहियो । तो तेण मज्झ कंठे, बद्धा तरुमूलिया कावि ॥ ९६४ ॥ तीए पभावेणा हं नारित्तं उज्झिउं ठिया हरिणी । जं न घडइ सिविणम्मि, वि तं पि घडावइ विहिविलासो ॥ ९६५ ॥ अणुदिणमवि आगंतुं, मूलियमुल्लोडिओ विहियनारिं । मं मन्नावइ अवमन्निओ, पुणो ठवइ हरिणित्ते ॥ ९६६ ॥ ता कहिओ वुत्तंतो, निओ मए तुम्ह पुच्छमाणाणं । तुब्भे वि कहह कत्तो, समागया इह अरन्नम्मि ? ॥ ९६७ ॥ तो कुमरेण वि कहिओ, वुत्तंतो तीए दूयकहणाई ।। तइंसणावसाणो, तं सोउं सा ठिया हिट्ठा ॥ ९६८ ॥ भणइ य पहु ! अवहरणं रन्ननिवासो तहा सइत्तं च । मह सहलाई जायाई मेलिया जेहिं इह तुब्भे ॥ ९६९ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ सिरिअणंतजिणचरियं नवरं संपइ पावो दुज्जेओ खेयराहिवो एही । ता निलुक्कह तुब्भे, कत्थइ मह बंधिउं मूलिं ॥ ९७० ॥ तं सोउमाह कुमरो, मा बीहसु सुयणु ! तं दुराचारं । मारेऊणं संपइ, तुह पिउणो तं समप्पिस्सं ॥ ९७१ ।। इय जंपिरस्स कुमरस्स, झत्ति कत्तो वि सो दुराचारो । करवालछुरियधरो, समागओ खेयरकुमरो || ९७२ ॥ दटुं नारीरूवं, कुमरी कुमरं च तीए पासठियं । घयसित्तपावओ विव तो सो कोवग्गिणा जलिओ ।। ९७३ ॥ कोवेण भणइ कुमरं, रे रे ! को तमिह मह पियापासे । मह कोवानलजालासु लहसि सलहत्तणं नूणं ॥ ९७४ ।। कुमरेणुत्तं कह तुह पिया ? इमा परदारिया अणज्ज ! । अज्जेव जासि जममंदिरम्मि महखग्गघायहओ ॥ ९७५ ॥ ता आयड्ढसु खग्गं इण्हि, चिय अहम ! होसु मह संमुहो । तेणुत्तमहो मुड्ढा उत्ताला चोरपासाओ ॥ ९७६ ॥ इय जंपिरेण खग्गो खयरेण विक्कोसिउं समुक्खित्तो । खित्तो य तप्पहारो, कंधरमणुसरिय कुमरस्स ॥ ९७७ ।। तो नमिय वंचिउं तं मुन्नई कुमरेण पेरिया तस्स । अवसक्कणेण वंचिय, तं सो से देइ पयघायं ॥ ९७८ ॥ करणक्कमेण भुल्लविय, तं कुमरो वि मुयइ से घायं । वंचियमतरतेणं, खलिओ खयरेण सो असिणा ॥ ९७९ ॥ अवरुप्परघायावडणउट्ठियाऽनलकणं असिदुगं पि । चारंगाओ भग्गंतो ते जुज्झति छुरियाहिं ॥ ९८० ॥ तो दो वि छलछुरियापहारपरिवंचणाहिं अन्नोन्नं । रंजिज्जंता वग्गं, निवग्गसमरंगणुच्छंगे ॥ ९८१ ॥ रायसुयवामअवहत्थपहयनहयरकराओ सहस त्ति । पडिया छुरिया तो सो कुमारनिठुरपयप्पहरा ॥ ९८२ ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा अच्चंतजायपीडावसमुच्छामीलयच्छिसयक्त्तो । पडिओ दढ त्ति भूमीए, मुग्गिरिय रुहिरोहो ॥ ९८३ ॥ तं निच्चेजें दटुं करुणारसपूरिओ निवंगरुहो । गिरिसरिजलेण सिंचिय, परिवीयइ वत्थअंतेण ॥ ९८४ ॥ तो सो किच्छ समुवलद्धचेयणुम्मीलमाणनयणजुओ । पेच्छइ परिचेट्ठपरं, बंधवमिव अत्तणो कुमरं ॥ ९८५ ॥ दुव्वयणभणणहणणारिहो वि बंधु व्व पालिओ इमिणा । ता एस उत्तमो हं पुणोऽहमो जो कयाऽनीई ॥ ९८६ ॥ जह मुच्छियं मममिमो, मारइ छुरियाए छिंदिऊण सिरं । ता कत्तो मे खेयररज्जं सयणा य सुहिणो य ॥ ९८७ ॥ ता एस पाणदाय त्ति सेविउं सव्वहा वि मे जुत्तो । ईय चिंतंतो वुत्तो कुमरेणं कुणसु जुज्झं ति || ९८८ ॥ तो सो पणामपुव्वं कुमरं विन्नवइ रइयकरकोसो । खमसु महायस ! जं दूमिओ मए भणिय दुव्वयणं ॥ ९८९ ॥ तुह संतिय च्चिय इमे पाणा करुणापरेण जं तुमए । मह दिन्ना ता नियसेवयस्स करणिज्जमाइससु ॥ ९९० ॥ कुमरेणुत्तं खेयरकुमार ! तं चेव नूण नररयणं । जो दूरं कुविओ वि हु भवसि समी झत्ति भणियं च ॥ ९९१ ।। दोहिं चिय पज्जत्तं बहुएहिं किं गुणेहिं सुयणस्स । विज्जुप्फुरियं व कोवो मेत्ती पाहाणरेह व्व ॥ ९९२ ॥ दुल्लहलंभं लहूं, खयरनरत्तं तमेव कायव्वं । जेणुल्लसइ जसो तह संपज्जइ परभवो वि सुहो ॥ ९९३ ।। एवं काहंति पयंपिरेण खयरेण खामिया कुमरी । मह खमसु भइणि ! अवहरिय आणिया जमिह इय भणिउं ॥ ९९४ ॥ भणिओ कुमरो मह कहसु जत्थ ठाणम्मि तं विमुंचामि । तह अप्पेमि इमं रायकन्नयं जणयजणणीण ॥ ९९५ ॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० कुमरेणुत्तं विजयावहे पुरे मुयसु मज्झ कडए मं । कुमरिं पितओ मिलिया वि कुमरि नयरे गमिस्सामो ॥ ९९६ ॥ तो खयरेण विज्जाबलेण पसरंतरयणकरनियरं । विहियं विमाणमनियद्धयारणिरकिंकिणियं ॥ ९९७ ॥ आरुहिउं तम्मि कुमारनहयरा कुमरिसंगया चलिया । लंघंता गयणयलं सिग्घं पि इहागम्मिस्संति ॥ ९९८ ॥ तं सोउं नरनाहो कुमारपरियणजुओ ठिओ दिट्ठो । उट्ठेउं वंदियकेवलिं गओ कुमरकडयम्मि ॥ ९९९ ॥ विलसंतहट्टसोहं संचिय मंचाइमंचरमणीयं । सोहियरच्छं हच्छं, कडयं कारावियं रन्ना ।। १००० ।। कुमरागमणुस्सुयमाणसो निवो सव्वकडयलोओ वि । उग्गीवो उत्ताणियनयणो गयणे खिवइ दिट्ठि ॥ १००१ ॥ एत्यंतरे अनिलचलद्धयरणझणिरकिंकिणीजालं । पत्तं कुमारखेयरकुमरीजुत्तं मणिविमाणं ॥ १००२ ॥ दट्ठूण निवं कुमरो विमाणओ खयरभुयलयालग्गो । कुमरीकलिओ उत्तरिय, नमइ नरनाह - पयपउमं ॥ १००३ ॥ खेयरजुओ वि कुसलं पुच्छिउं जंपिउं महीवइणा । सव्वो वि वइयरो तुम्ह सामिओ अम्ह केवलिणा ।। १००४ ॥ कुमरी विनया तं पि हु संभासेऊण निवइणा विहिओ | कुमराइयाण तिह वि, वत्थाभरणेहिं सम्माणो || १००५ || तो पणया सव्वे वि हु नियया सामंतमंतिमंडलिया । संभाविया कुमरेण वत्थ- आभरणाइदाणेण ।। १००६ ।। तो विजयसेहरनिवं, मोयाविऊण खयरविज्जाए । कुमरो कमलपुरं पइ चलिओ गयणेण सबलो वि ।। १००७ ॥ वज्जंतविजयढक्का, बुक्कानीसाणसरभरियभुवणो । गच्छंतो संपत्तो, कमेण नयरम्मि कमलपुरिं ॥ १००८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा पिहिय दुवारहट्टे, अपमज्जिय मंदिर(वारम्मि । कुमरीहरणनिरुस्सवमोणट्ठियसयललोयम्मि ॥ १००९ ॥ किमिमं ति कयवियक्कम्मि कमलकेसरनरेसरा जइणे । रायंगणम्मि सेणा अवइन्ना गयणगब्भाओ ॥ १०१० ॥ दहुँ विमाणमज्झाओ निग्गयं निवसुयं पडीहारो । वद्धावइ नरनाहं कुसलागमणेण कुमरीए ॥ १०११ ॥ पढमं पि पविसेउ सहाए कमलावली नमिय जणयं । साहइ हरणाईयं आगमणं तं सवुत्तंतं ॥ १०१२ ॥ सोउं कुमारवइयराण रणभरं मित्तयं च अच्चंतं । नहमग्गेण गमणं रंजिओ दूरमवणिवइं ॥ १०१३ ॥ एत्थंतरम्मि अत्थाणमागओ खयरसंगओ कुमरो । नमिय नरिंदं विलवइ नहयरो पहु ! सुही मज्झ ॥ १०१४ ॥ खामइ निययमविणयं न एसु रोसं कुणंति नो गुरूआ । ता देह अभयहत्थं पट्ठीए इमस्स पसिऊण || १०१५ ॥ तो भत्तिपयप्पणयस्स राइणा पाणिपल्लवो दिन्नो । पट्ठीए तस्स भणियं च भई भद्दो भविज्जासु ॥ १०१६ ॥ चुक्कक्खलियाइ उविंति कम्मवसयाण नूण पाणीण । नवरं तच्चिय भव्वा पुणो वि जे इंति नयमग्गं ॥ १०१७ ॥ इय जंपिय नरवइणा कुमरस्स सखेयरस्स पासाओ । आवासो य विचित्तो समप्पिओ कणयकलसग्गो || १०१८ ॥ उट्ठिओ कुमारो नहयरसहिओ विरायसिंगारो । आवासिया य तप्परिसरम्मि सविवाइणो सव्वे ॥ १०१९ ॥ अग्गलिया मत्तगया आबद्धाओ तुरंगराईओ । भोयणतंबोलाई सव्वं पि हु पेसियं रन्ना ॥ १०२० ॥ पारद्धो सुद्धदिणे वीवाहोवक्कमो विभूईए । सम्मज्जिऊण गंधोदएण सित्ता पहा सव्वे ॥ १०२१ ॥ . Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं खित्तो य पुप्फपयरो पुरम्मि परिभमिरभमररवरम्मो । पडिजद्दराइवत्थेहिं हट्टसोहा उ विहियाओ || १०२२ ॥ कणयमयदप्पणस्सेणिसुंदरा संचिया पहे मंचा । अनिलचलालवद्धयचिंधरणझणिरकिंकिणिया ॥ १०२३ ॥ हल्लप्फलउत्तालब्भमंतलीलावई विहियसोहं । पत्तं वीवाहदिणं विलाससिंगारगारवियं ॥ १०२४ ॥ परिणयट्ठाणत्थं कुमरो वाहरिओ रायमंतिवग्गेण । ण्हाओ दहिदुद्धक्खयगोरोयणलसिरसीमंतो ॥ १०२५ ॥ रयणाभरण-विराईय-सरीर-करिरायखंधमारूढो । मुत्तावचूलविलसंत-छत्त-अंतरियरवितावो ॥ १०२६ ॥ पणरमणीकरयलचलिरचारुचमरोहसोहियसरीरो । उच्छलियरयणभूसण-करहरि-धणु-गण-विराइतणू ॥ १०२७ ॥ उम्मत्तवारणस्सेणिचडियगंडलियमंडलाणुगओ । हयचडियचारुसामंतचक्कचंकमणकयसोहो ॥ १०२८ ॥ रहरयणासीणमहीअसव्वसंचरणजणियसिंगारो ।। तिव्वाउहगहणव्वग्गसुहडसंघडियपरिवेढो || १०२९ ॥ विज्जाहरकुमराणीयखेयराणीयमणिविमाणेहिं । पूरंतो गयणयलं रणंतकिंकिणि-कलावेहिं ॥ १०३० ॥ वज्जंतमंगलाउज्जसद्दपरिपूरियंबरदियंतो ।। परिणयणत्थं चलिओ कुमरो रिद्धिप्पबंधेण ॥ १०३१ ॥ अवलोयंतो खेयरविलासणीविहियविविहनट्टाई । आयन्नंतो अविहवविलयाउग्गीयगीयाई ॥ १०३२ ॥ बंदीहिं पढिज्जंतो, पत्तो वीवाहमंदिरद्दारे । उत्तरिय गइंदाओ अणुहविउं मंगलायारो ॥ १०३३ ॥ पविसिय माइहरम्मिं, उवविट्ठा जत्थ चिट्ठए कुमरी । जणचक्खुहरणकज्जे व नज्जए वत्थआवरिया ॥ १०३४ ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा वत्थावगुंडियंगो निवसइ कुमरो वि तीए संनिज्झे । तं चेव वसीयरणं परच्छंदस्साणुवित्ती जा ॥ १०३५ ॥ तं मुहमुग्घाडावइ, सहीण दाऊण मग्गियं दाणं । गणिओ तणं व अप्पा, वितक्कए का धणे वत्ता ? || १०३६ ॥ तारामेलयकज्जे मिलिया दिट्ठी उ ताण दिट्ठीण । कसिणसुतारगुणाणं होइ च्चिय अहव संमिलणं ॥ १०३७ ॥ हत्थालेवयपक्खेवपुव्वयं मेलिया करा तेसिं । लग्गे दिएण मा होउ एसिं विरहो त्ति कलिउं व ॥ १०३८ । वेइए भूरिधम्मो, दोहिं पि पयाहिणी कओ अग्गी । अहवा गुरुप्पयावो, सेविज्जइ को न कलुसो वि ॥ १०३९ ॥ कुमरिकरमोयणत्थं दिन्नं रन्ना नरिंदतणयस्स ।। बहुमणिभूसणकंचणकरेणुरहतुरयवत्थाई ॥ १०४० ॥ रायकुमारेहिं दोहि वि परुप्परं वत्थ-भूसणसएहिं । सम्माणिओ तह जणो, जह नळं रोरनाम पि ॥ १०४१ ॥ गोट्ठीबंधो विव गोरवमणउप्पत्ति विव विलासाण । जाओ वीवाहमहो, सिंगाराणं व सिंगारो ॥ १०४२ ॥ आणीया परिणेउं कंता कुमरेण गरुयरिद्धीए । अंबतरुपत्ततोरणतियरमणीए नियावासे ॥ १०४३ ॥ तीए सहाणेयविणोयवग्गया अमुणिय वइक्कंतं । कुमरस्स दिवसदसगं ससुरयसम्माणतुट्ठस्स ॥ १०४४ ॥ तो विणयपणयपणई काउं कुमरो वि मोइउं अप्पं । ससुरयसयासउ तयणु तस्स आणाए संचलिओ ॥ १०४५ ॥ तो सो गोसे गयणेण मणिविमाणेहिं वाहिणीसहिओ । एही खेयरकुमरेण संगओ गरुयरिद्धीए ॥ १०४६ ॥ नियवुत्तंतं कहिऊण देव ! कुमरेण पेसिओ हमिह । वद्धावणयं तुम्हं ति जंपिउं सो ठिओ मोणे ॥ १०४७ ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं सुयनियसुय-अच्चब्भुयचरिओ रोमंचिओ महीनाहो । सव्वंगं पि विरायइ वियसियधाराकयंबो व्व ॥ १०४८ ॥ खेयरदूयस्स निवो वत्थाभरणेहिं कुणइ सम्माणं । आइसई य पुरिसोहं पडिहारमुहेण सव्वत्तो ॥ १०४९ ॥ सम्मज्जिऊण गंधोदएण सित्ता पुरी समग्गा वि । रंगावलीओ रइयाओ पइ-गिहं तोरणतलेसु ॥ १०५० ॥ विहियाओ हट्टसोहाओ हारि-हारालिचारुवत्थेहिं । नेत्तद्धयालिखलहलिरघग्घरा संठिया मंचा ॥ १०५१ ॥ दुइयदिवसम्मि गोसे वज्जंताउज्जगहिरघोसेण । उम्मीलिया नहे कुमरवाहिणी बहिरियदियंता ॥ १०५२ ॥ चिंधालं बद्धयछत्त-सिक्करीसयपणट्ठ-रवि-तावा । पणिचत्तमणिविमाणस्सेणीसिंगारियनहं वा ॥ १०५३ ॥ गयघड-हयघट्टरहो, जोहरूवारएण अइगुरुणा । रिट्ठउरी नयरी परिसरम्मि, अचिरेणमवइन्ना || १०५४ ॥ तो मंति-मंडलेसर-सामंत-महायणाइओ लोगो । पत्तो पच्चोणीए कुमरस्सं नरेसराएसा ॥ १०५५ ॥ जह जोग्गं सम्माणो विहिओ पणयाण ताण कुमरेण ॥ तंबोल-वत्थ-भूसण-करि-तुरय-पमुहदाणेण ॥ १०५६ ॥ तो आरूढो सिंगारिगए छत्तअंतरियतरणी । तरुणरमणीकरुद्धूयचामरो रईय सिंगारो ॥ १०५७ ॥ चउरंगवाहिणीविंदपरिगओ वंदिजणियजयसद्दो । पविसइ पुरीए मज्झे नवदइयालंकिओ कुमरो ॥ १०५८ ॥ अवलोयइ पेच्छणयाई नाडयाई निरिक्खइ सलीलं । रायपहम्मि पेच्छइ लउडा-रस-रासयसमूहं ॥ १०५९ ॥ निज्झायइ पेरणिए दिदिठ संठवइ मल्लजुज्झेसु । संठवइयमंचेसु छुरिया विज्जाहरविणोआए || १०६० ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ गिहिधम्मे चंदसेणकहा ठाणे ठाणे गिण्हइ अग्घं ईसरघरदुवारेसु । मंगलमालापाढे सोउं बंदीण देइ धणं ॥ १०६१ ॥ एवमणेगव्वइयरनियरनिरिक्खणसमुच्छुयहरिसो । पत्तो पिउपासायदुवारदेसे नरिंदसुओ ॥ १०६२ ॥ मुत्तुं करेणुरायं खेयरकुमरस्स भुयलयालग्यो । पविसइ अत्थाणे मंतिमंडलाहिवविमुक्कपहो ॥ १०६३ ॥ गंतूण तायपायासन्ने दंडाययप्पणामेण । पणमइ पिउपयपउमं मणिकुट्टिमघडियभालयलो ॥ १०६४ ॥ तो नियकुमारो रन्ना गाढं आलिंगिओ समुक्खिविउं । कुसलं पुट्ठो साहइ तुम्ह पसाएण कुसलं ति ॥ १०६५ ॥ पहु ! नमइ खयरकुमरो, त्ति कुमरकहिए निवं नमइ सो वि । तो तस्स वि नियसुयसमपडिवत्ती पयडिया रन्ना ॥ १०६६ ॥ कुमरेणुत्तं मह ताय ! एस अवयारओ वि उवयारी । जाओ अभिन्नचित्तो, मित्तो आजम्मनेहपरो ॥ १०६७ ॥ रायाह मह असेसो वि साहिओ दूयएण वुत्तंतो । जह वित्तो तुम्हाणं दोण्ह वि तह चेव कल्लदिणे ॥ १०६८ ॥ उत्तमपयइ च्चिय वच्छ ! सो धुवं जो सदोसपडिवत्तिं । कुणइ अहम्माण पुणो, दोसे च्चिय उज्जमो होइ ॥ १०६९ ॥ ता वच्छ ! इमेण समं, वट्टेज्जसु निच्चमेव नेहेण ।। तुज्झ वयंसो त्ति इमो, पढमयरो चेव मह पुत्तो ॥ १०७० ॥ ता वच्छा ! मणिजणिए दोन्नि वि भद्दासणे समुविसह । तो ते जणणिं पणमिय, उवविट्ठा आसने तम्मि ॥ १०७१ ॥ इत्थंतरम्मि सिंगारियंग-दासी-वयंसिया सहिया । कुमरबहू संपत्ता, नवरंगयरईअ अंगुट्ठी ॥ १०७२ ॥ चंकमणचरणरणझणिरनेउरारवसरंतकलहंसा । नमइ निवक्कमकमलं तस्सासी-पत्त-संतोसा ॥ १०७३ ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ . सिरिअणंतजिणचरियं कुमरजणणीए पणमिय उवविट्ठा तीए वामपासम्मि । तह सेसमंडलेसर-सामंतेहिं नओ राया ॥ १०७४ ॥ तो खेयरकुमराईण, रयणभूसणविसिट्ठवत्थेहिं । विहिओ सम्माणो, अप्पमाणतोसेण नरवइणो ॥ १०७५ ॥ सव्वे वि तओ निययावासेसु विसज्जिया महीवइणा । संपत्ता सट्ठाणे नमिय नरिंदस्स कमकमलं ॥ १०७६ ॥ सह खेयरेण नमिउं, निवक्कमे नियपियाजुओ कुमरो । संपत्तो पासाए विचित्तचित्ताभिरामम्मि ॥ १०७७ ॥ गुरुगोरवेण दिवसाई, कइ वि धरिउं विसज्जिओ खयरो । निवकुमरनओ वेयड्ढमुवगओ सो स-परिवारो ॥ १०७८ ॥ नवकंता संजुत्तस्स, रायपुत्तस्स बहुविणोएहिं । वच्चंति वासरा जणयपायसेवापसत्तस्स ॥ १०७९ ॥ अह अन्नया नरिंदो, अमच्च-सामंत-मंडलियकलिए । उवविट्ठो अत्थाणे, कुमरुच्छंगियकमंबुरुहो || १०८० ॥ मणि-कणय-दंडमंडियकरेण पणमिय दुवारपालेण । विन्नत्तो सीमंत-ग्ग-संगि-करकमलकोसे ॥ १०८१ ॥ आरामपालओ पहु ! पत्तो बउलावयंसओ नाम । मुच्चउ नव त्ति ? तो सो राइणा वुइए तयं मुयइ ॥ १०८२ ॥ तो सो पविसिय अत्थाणमंडवट्ठियमहासणनिसन्नं । नमिय नरिंदं विणइं एवं विन्नविउमारद्धो ॥ १०८३ ॥ देव ! कलहंसविलसियनामारामे मणोभिरामम्मि । सिरिचित्तरक्खपहुणो, गुरुणो तुम्हाण संपत्ता ।। १०८४ ॥ तन्नाम पि हु सामीण ति-जयरज्जाहिसेय-सुह-जणयं । ता तक्कमनमणं पइ कयायरा सामिणो हुंतु ॥ १०८५ ॥ तं सोउं अवणिवइणा पमुईयचित्तेण झत्ति सम्माणो । तह विहिओ जह नट्ठदारिदं तस्स सिविणे वि ॥ १०८६ ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा तो विरइयसिंगारो आरूढो पोढपट्टदोघट्टे । छत्तालंकरियसिरो रमणिकरुल्लसियसियचमरो || १०८७ ॥ नानाजाणारूढेहिं, मंति- सामंत मंडलीएहिं । परियरिओ अंतेउरिकुमारपउरेहि य सहेलं | १०८८ ॥ गुरुकमनमणनिमित्तं चलिओ पत्तो य तम्मि आरामे । तद्दंसणसरसवणप्पमुक्ककरिजुत्त - निवककुहो ॥ १०८९ ॥ पविसंतो पेच्छइ छत्तलंकियं कणयपंकयासीणं । तिव्वतवतेयालुनिरिक्खदरिसणं सरयतरणिं व ॥ १०९० ॥ आयरियासाढो वि हु जोऽवहरइ सव्वसत्तसंतावं । अंगीकयसिद्धंतो वि सव्वया भवभयुब्भंतो ॥ १०९१ ॥ पविसिय सहाए कयतप्पयाहिणो महिमिलंतलाभो तं । वंदइ भत्तिपुलईओ आणंदपवत्तनयणंसू ।। १०९२ ॥ अवरं पि साहुविंदं वंदिय पुणरुत्तपणयगुरुचरणे । उवविट्ठो सुरखेयरसहाए, पहुवयणगयनयणो ।। १०९३ ।। तो गुरुणा वि नरिंदं, उद्दिसिउं देसणा समारा । इह विसयासत्ताणं कत्तो सत्ताण वेरग्गं ? || १०९४ ॥ जह वडिसामिसलुद्धा निव ! मीणा पाउणंति मरणाई | तह विसयसुहासत्ता, सत्ता वि लहंति दुखाई ।। १०९५ ।। हरिणाण जह मायाहिं तत्तिसाए होइ वोच्छेओ । तह सत्ताण वि कत्तो तित्ती विसयाहिट्ठियमणाण ।। १०९६ ।। कूडेसु जहा निवडंति पक्खिणो पक्खमिक्खिरं झति । निवडंति तहा नरए सत्ता विहु सेविउं विसए । १०९७ ॥ जह मणहरो वि पडिउं जाइ कलावो सिहीण वरिसंते । कंतो वि तहा देहो देहीण वि आउअंतम्मि ।। १०९८ ॥ पसरंतसूर - करोपरि विलसिरचंदभूसणधरा वि । न हवइ थिरस्सरूवा, सया वि रयणि व्व रायसिरी ।। १०९९ ॥ ८७ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ सबलाहियं पि उन्नइगयं पि उदयाहियाहिलासं पि । सरयब्भं पिव जीवाण जोव्वणं तस्सरूवं च ॥ ११०० ॥ ता एरिसे नरेसर ! भवसंभविवत्थुवित्थरे अथिरे । रज्जति विमूढ च्चिय खणरमणीएसु विससु ।। ११०९ ॥ जे पुण परियाणियभव-भवंतबहुवत्थगणअणिच्चत्ता । ते विसयच्चायपरा, होउमणुट्ठति सामन्नं ॥ ११०२ ॥ ता राय ! नायनिस्सेसधम्ममग्गस्स जुज्जइ न तुझं । एवं पमायकरणं, विसयपिवासापरवसस्स ॥ ११०३ ॥ उवभुत्ता रज्जसिरी, जाओ बहुपुन्नपगरिसो पत्तो । ता इय कयकायव्वस्स, तुज्झं करणुज्जमो जुत्तो ॥ ११०४ ॥ इय निसुयसूरिसद्देसणो निवो संभवंतसंवेगो । विन्नवइ गुरुं विणएण, विहिय-कर-कमलजुयकोसो ॥ ११०५ ॥ पहु ! तुब्भेहिं विइन्नो, उवएसो उभयभवहिओ मज्झ । ता सुयविइन्नरज्जो, पव्वज्जमहं पवज्जिसं । १९०६ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं मा पडिबंधं काहिसि, निव । त्ति भणिओ गुरुहिं भणइ निवो । पहु ! मह तुम्हाणं चिय, सयावि आणा पमाणं ति ।। १९०७ ॥ तो कुमरपमुहपरिवारपरिगओ वंदिऊण गुरुचरणे । राया भवउव्विग्गो निययप्पासायमणुपत्तो ॥ ११०८ ॥ विहियसिणाणो, विरईयविलेवणो जणियसारसिंगारो । कयभोयणोऽवरण्हे, सहाए गंतुं समुवविट्ठो ॥ ११०९ ॥ सेवावसरसमागयसामंता (इ) सव्वमंडलियपणओ । भणइ कुमारमलंकरसु, वच्छ ! रज्जं कमप्पत्तं ॥ १११० ॥ तं सोउं आह कुमरो, न ताय ! एत्तिय भरस्स जोग्गोहं । ता कइय वि वरिसाई तुज्झे च्चिय तब्भरं वहह ।। ९९९९ ॥ रायाह वच्छ ! समयोचियाइं कज्जाइं कीरमाणाइं । धम्मजसकारयाई, हवंति अन्नह पहासाय ॥ १११२ ॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ गिहिधम्मे चंदसेणकहा ता जावज्ज वि दिट्ठी मह सुहुमयरे वि कुंथुआइजिए । पेच्छइ गच्छइ य न माणस्सउ संवेगभावो वि ॥ १११३ ॥ जाव न जज्जरजरा सव्वंगं पि हु सरीरयमसारं । तिव्वयरतवच्चरणायरणे जा विज्जए सत्ती ॥ १११४ ॥ अनिययविहारकरणक्खमा कमा जाऽणुवाहणा वि हु मे । नावसरइ सामत्थं, जा वेयावच्चकरेज्जो ॥ १११५ ॥ जा देहघरे पविसिय, न मच्चुचोरो हरेइ पाणधणं । ता विग्घकरो तो मा होसु मह वयग्गहणरसियस्स ॥ १११६ ॥ जं जणइ सुहुप्पाणयमेस च्चिय पुत्तयाण पिउभत्ती । तं पुण सासयरूवं जायइ सिद्धाण सिद्धीए ॥ १११७ ॥ सव्वविरइव्वयाओ नन्नो तप्पावणे वरो हेऊ । ता तल्लाहायरयं वारिय संकहसुहं देसि ॥ १११८ ॥ सव्वविरइव्वयाचरणपवणचित्तस्स कुणसि जइ विग्धं । ता वच्छ ! विहियविणयस्स मज्झ पायाण तुह आणा ॥ १११९ ॥ तं सोऊण कुमारो जणयाणाभंगभीरुमणवित्ती । अतरंतो वोत्तुं किंपि सव्वहा मोणमल्लीणो ॥ ११२० ॥ एत्थंतरम्मि पत्तो, घणरयणविमाणविंदरुद्धनहो । सिरिविजयकेउखेयरकुमरो रायंगरुहमित्तो || ११२१ ॥ रायकुमराण पणओ, कुसलं परिपुच्छिउं समुवविट्ठो । तो से कहिओ रन्ना, निय-वय-सुयरज्ज-अहिसेउं ॥ ११२२ ॥ भणियं च वच्छ ! इण्हि, अहिसेओवक्कम कुणसु पउणं । तो तेण समाइट्ठा, तक्कज्जे सेवया खयरा ॥ ११२३ ॥ सायरजलं कसाया महानईमट्टियाओ कुसुमाइं । मणिकलसा भिंगारा य तेहिं रन्नो समुवणीया ॥ ११२४ ॥ विज्जासामत्थेणं, खयरेण कया समग्गनयरीए । उल्लोया पडिजद्दरदेवंगप्पमुहवत्थेहिं ॥ ११२५ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं उल्लोयतलेसु कया, मोत्तियरयणावलीहिं पालंबा । डझंतागरुकप्पूर-परिमलो पसरइ पुरीए ॥ ११२६ ॥ पुव्वाभिमुहं रयणासणम्मि उववेसिउं सुयं रन्ना । खयरेण य उक्खित्ता, मोत्तियजलपूरिया कलसा ॥ ११२७ ॥ तो मंडलीयसामंतमंतिपमुहेहिं ते समुवक्खित्ता । पल्हत्थिया य लग्गे, सव्वेहिं वि कुमरसिरकमले ॥ ११२८ ॥ समलंकरिओ कुमरो, सचुन्न-सवत्थ-भूसणगणेहिं । वज्जिरजयआउज्जे, गिज्जते मंगलीयम्मि ॥ ११२९ ॥ मणिमउडो नियउ भूमिसामिणा नवनरेसरसिरम्मि । आरोविओ सहत्थेहिं, तित्थनाहो व्व तुट्टेण ॥ ११३० ॥ कल्लाणकोडिवित्तो, उत्तमरयणासउ समयरो य । विलसंतपुंडरीयप्पत्ता, गयरायहंसजुओ || ११३१ ॥ बहुमुत्तावलिकलिओ, निम्मलगुणगणहरो सुतारसिओ । सुहलोयतोसकारी, परिविरईय उत्तमंगपओ || ११३२ ॥ उल्लसियधम्मकेऊ, विसालुउसुमणसंसिओ सुमओ । भूरिवरालयसोहो, सुरयणपसरियपहापडलो ॥ ११३३ ॥ (कुलयं) तो भूमितलंतभालं, सपरियणो नवनिवं नमिय राया ।। उवविट्ठो भूवढे, विन्नवइ य रइयकरकोसो ॥ ११३४ ॥ देव ! इमो सव्वो वि हु अम्ह कुलक्कमसमागओ लोगो । अप्पं व पालियव्वो, सया वि सव्वावयाहिंतो ॥ ११३५ ॥ परनारी परितो गुव्वइ दुन्नओ निच्चमेव चइयव्वो । देयं कयाइ चित्तं, अयसस्स व न परदव्वस्स ॥ ११३६ ॥ नो अवयासो देओ, दुबुद्धीए व असब्भवित्तीए । पारावारेणं पिव, होयव्वमलद्धमज्झेण ॥ ११३७ ॥ सगुणो सिरे धरिज्जइ, वियसियकुसुमं व सव्वलोएण । लहइ विगुणो विणासं हरिधणुमिव बहुसुवन्नो वि ॥ ११३८ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणस्स पढमभवो ता देव ! गुणे च्चिय आयरिज्ज, तह निग्गहेज्ज रिउछक्कं । सह वज्जारीहिं अणिग्गहो, दुगस्स वि अणत्थयरो ॥ ११३९ ॥ अच्चंततेयस्सी मा होज्ज, जओ असेवणिज्जो सो । दिट्टिं पि को वि न ववइ, सारयमज्झण्हरविबिंबे ॥ ११४० ॥ अच्चंतं सीओ वि हु, नाणुसरिज्जइ कयाइ वि जणेण । कुणइ न को वि निवासं, हिमगिरिसिहरं समारुहिडं ॥ ११४१ ॥ एगंततेय-सीयत्तवज्जिओ ता सया वि लोएण । सव्वेण वि सेविज्जसि, सययं बहुमाणजुत्तेण ॥ ११४२ ॥ इय जणयदिन्नसिक्खं तं चित्तिपडिवज्जए नवनरिंदो । तो आसणम्मि ठाउं, महायणं भणइ नरनाहो ॥ ११४३ ॥ भो ! एस नवनरिंदो, तुब्भेहिं सया अहं व दट्ठव्वो । कप्पडुमो व्व दाही, जमिमो मणवंछियं तुम्ह ॥ ११४४ ॥ परचक्कसचक्कुब्भवउवद्दवे, सव्वया वि रक्खेही । तह साहुपालणं, दुट्ठनिग्गरं पि हु धुवं काही ॥ ११४५ ॥ अब्भुद्धरिही एसो, धम्मट्ठाणाई तुम्ह सव्वाइं । सयमेव वियारेउं, पालेही नयववत्थाओ ॥ ११४६ ॥ इय निवमहायणाणं, सिक्खं दाउं नरेसरो झत्ति । पव्वज्जकज्जसज्जो, धणियं धम्मे व णंदेइ ॥ ११४७ ॥ काराविऊण जिणमंदिराई, मणिकणयरयणरम्माई । समयुत्तविहाणेणं, तेसु पइट्ठाविउं बिंबे ॥ ११४८ ॥ काऊण संघपूर्य,देसे घोसाविउं अभयघोसं । खामणपुव्वं मोयाविऊण चारगनिरुद्धनरे ॥ ११४९ ॥ घणराय-रयण-थंभय-तोरण-सेणीविरायमाणाए । चलिरद्धयरणझणमाणकिंकिणीजालकलियाए || ११५० ॥ आरूढो सिबियाए, मोत्तियहारालिकलियसियछत्तो । लीलावईकरुल्लसिरचमरचयं वीइयसरीरो ॥ ११५१ ॥ - Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं गयतुरयरहारूढेहिं राय-सामंत-मंडलीएहिं । परिवारिज्जतो, मणिविमाण वि य खेयरेहिं च ॥ ११५२ ॥ मणिमयसुहासणट्ठियसुद्धंतबहूहिं अणुसरिज्जंतो ।। सिबियादुपासगयसुयरकुमरनवरायकयसेवो || ११५३ ॥ रज्जमहूसवविरईयचेलुक्खेवाभिरामविवणीए । चलिओ दिक्खागहणाय, नरवई गुरुयरिद्धीए ॥ ११५४ ॥ पणमिज्जंतो घर-पुर-सिहरारूढेहिं नायरनरेहिं । कयअवयारणयाहिं, सलहिज्जतो य रमणीहिं ॥ ११५५ ॥ अवलोयंतो खयरंगणागणारद्धमुद्धनडाइं । पेच्छंतो नायरनारिनियरनिम्मियबहुविणोए ॥ ११५६ ॥ दाहिंतो किवण-वणीमग-जायगलोयाणवंछियं दाणं । आयन्नंतो नियमंगलावलिं मागहुग्गीयं ॥ ११५७ ॥ बंदीहिं पढिज्जतो, वज्जंताउज्जपूरियदियंतो । संपत्तो उज्जाणे, राया वउलावयंसुत्ते ॥ ११५८ ॥ सिबियाए समं मुत्तूण खग्गपमुहाई रायककुहाई । गंतुं कुमरो पासे, तिपयाहिणिऊण तं नमइ || ११५९ ॥ रइयकरकमलकोसो, जंपइ पहु ! देह मह नियं दिक्खं । तो सो स-कइवयनियमो निवो सकलत्तो दिक्खिओ गुरुणा ॥ ११६० ॥ गहणासेवणसिक्खाओ, तस्स कहियाओ विणयवंतस्स । अज्जाओ अज्जियाणं, समप्पियाओ सुसीलाणं ॥ ११६१ ॥ नवरन्ना गिहिधम्मो, गहिओ नहयरकुमारकलिएण । सम्मइंसणसारो, बारसभेओ वि भत्तीए ॥ ११६२ ॥ . तो राया जणणीजणयजुत्तगुरुपायपंकयं नमिउं । पिउवयगहणुव्विग्गो सखेयरो आगओ भवणे ॥ ११६३ ॥ नवरायरिसी गुरुणा, सद्धिं अनिययविहारमायरइ । अंगोवंग-पयन्न-पयरणपमुहं च पढइ सुयं ॥ ११६४ ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणस्स पढमभवो कुणइ चउत्थप्पमुहं, तव-चरणं अट्ठमासपज्जंतं । सुत्तत्थोभयधारी, जाओ एक्कारसंगेसु ॥ ११६५ ॥ खरतरणिठवियदिट्ठी गिम्हे उन्हानिलाभिहयदेहो । उस्सग्गठिओ चिट्ठइ, सव्वं पि दिणं पि सुहासत्तो ॥ ११६६ ॥ वासासु चउम्मासोववाससोसियतणू गुहागन्भे । धम्मजलसुढियदेहो, धम्मज्झाणं समारुहइ ॥ ११६७ ॥ सिसिरे निज्झरिणीनीरतीरउस्सग्गसंठिओ सहइ । अप्पावरणो हिमकणविमिस्सवाए समग्गनिसं ॥ ११६८ ॥ इय निठुरयरनिय(णा)णाणुट्ठाणविणट्ठदुट्ठकम्मस्स । वच्चंति रायरिसिणो दिवसा, समसत्तुमित्तस्स ॥ ११६९ ॥ अच्चंतसंतयाए भविस्सकल्लाणभायणत्तेण । लहुकम्मयाए, असरिससुहकम्मोदयपभावेण ॥ ११७० ॥ तित्थयरनामगोत्तं, समुवज्जइ सो वि वज्जियावज्जं । आराहतो वीसइ, अरहंताईणि ठाणाणि || ११७१ ॥ जुयलं ॥ तहाहि - जगगुरुणो भुवणहिया पूयापत्तं जिणा सिवं दिति । एवं पसंसमाणो, तेसिं वच्छल्लयं कुणइ ॥ ११७२ ॥ नि(वत्त)माणो सिवपुरपइट्ठिया विमलनाणिणो सिद्धा । इय जंपंतो तेसिं, वच्छल्लं कुणइ समहप्पा ॥ ११७३ ॥ संघस्स चउविहस्स वि, गुरुणो सद्धम्मदायगस्स सया । सद्धम्मथिरीकरणोवएसयाणं च थेराणं ॥ ११७४ ॥ . आगमपारगयाणं, गीयत्थाणं बहुस्सुयाणं च । छट्ठट्ठमाइनिठुरतवनिरयाण तवस्सीणं ॥ ११७५ ॥ सव्वाण वि एयाणं, वर्सेतो समुचियम्मि करणिज्जे । जणयंतो बहुमाणं वच्छल्लं पयडइ सया वि ॥ ११७६ ॥ एक्कारसण्हमंगाण, सुत्तमत्थं च चिंतए सययं । पालइ जिण-गुरु-नवतत्त-निच्चलत्तेण सम्मत्तं ॥ ११७७ ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ विणयारिहाण जिण - सिद्ध-सूरि - पमुहाण जस्स जं किं पि । उचियं तं कुव्वंतो, विणयं उब्भावए तेसिं ॥ ११७८ ॥ कुणइ किरियाकलावं, अवस्सकरणिज्जमसमसद्धाए । सीलंगाणं पालइ, सम्मं अट्ठारससहस्सं ॥ ११७९ ॥ पालइ महव्वयाई, अइयारविवज्जियाई निच्चं पि । कुणइ सुहज्झवसाणं, खणलवमेत्तं पि कालं सो ॥। ११८० ॥ तवइ तवं भत्तीए, चायं पि करेइ दव्वभावेसु । दव्वे अकप्पपिंडाइवेयइ भावे पुणऽकसाए ।। १९८१ ।। आयरियप्पमुहाणं, वेयावच्चं दसहमायर | असणाइआसणाईहिं, ताण जणयइ समाहाणं ।। ११८२ ॥ कालियमुक्का लियसुयमपुव्वं पढइ फुरियसंवेगो । पीइए कुणए भत्तिं सुयस्स तह सुयहराणं च ॥ ११८३ ॥ जिणपवयणं पभावेइ, सारसंवेगदेसणाईहिं । मन्नंतो अत्ताणं, सकयत्थं एय-आयरणा ।। १९८४ ॥ इय सो तइज्जभववेयणिज्जतित्थयरनामकम्मेण । समलंकरिओ वसुहाए, विहरए गुरुकयाणुन्नो ॥ ११८५ ॥ अह अन्नया कयाई, गुणिमुणिमंडलविराइपरिवारो । आयावणानिमित्तं, पत्तो कम्मि वि कयंतारे ।। ११८६ | सुविभत्त- सउण- सावय- सहियमहासत्तनघकयावासे । जिणपवयणे व्व विलसंतबोहिपत्ताभिरामम्मि ||| १९८७ ॥ अच्चंतकूरसत्तम्मि, तम्मि आयावणा समारद्धा । कम्मविणिज्जरणं कए, नरिंदरिसिणा सह मुणीहिं ।। ११८८ ॥ वीरासणिया के वि हु जाया गोदोहियासणा अवरे । के वि लगंडासणिया उक्कुडुगासणधरा अवरे ॥ ११८९ ॥ विहिएकक्कसुस्सग्गा एगे, अवरे मऊरआसणिणो । इकवालीकरणा के वि हु वज्जासणा अवरे ॥ ११९० ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणस्स पढमभवो इय कायकिलेसतवोविसेससंगयसुसाहुमज्झठिओ । रायरिसी वक्खाणं कुणइ पसूणं पसंताणं ॥ ११९९ ॥ निठुरतवचरणुज्जयजइजणपभवप्पभावओ जायं । कंतारं सव्वं पि हु, पसंतवइरब्भसिरसत्तं ॥। १९९२ ॥ करि - हरि - हरिण - वराहय - वग्घप्पमुहा वि पसमिणो संता । पणमियमुणिविंदपया, रायरिसिं 'पज्जुवासंति ॥ ११९३ ॥ एत्थंतरम्मि एगो, गुरुवेगागमणमासलेस्सासो । संपत्तो तत्थ नरो, पणओ निवरिसि - चरणकमलं ।। ११९४ ।। दठ्ठे उव्विग्गमणो, मुणिणा सो पुच्छिओ तुमं भद्द ! । कत्तो ठाणाओ इहागओऽसि ? तो सो वि तं कहइ ॥ ११९५ ।। तो कंताराओ अदूरदेसे समत्थि वित्थिन्नो । सालिकलियाभिहाणो, गामो आरामरमणीओ ॥ ११९६ ।। तम्मि अहं हुंतो, वीरतिलयनामो पसिद्धकुलपुत्तो । वीरवईनामेणं, मह भज्जा वज्जियावज्जा ।। ११९७ ।। दोह वि अप्पाणं, पोढपेम्मवसयाण वासरा जंति । नियजोग्गयाए, दीणाइयाण दाणाई दिंताणं ।। ११९८ ।। किंतु मह माणसम्मि, रिउणो सल्लंति तट्ठसल्लं व । जं बहुकालाओ कुलक्कमागयं तेहिं सह वेरं ॥ ११९९ ॥ तो तब्भयनरविहुरो, सासंको हं सया विचिट्ठामि । साहु व्व परिहरंतो, पमत्तयं थोवकालं पि ॥ १२०० ॥ समइक्कंतनिसाए, जाव अहं सह पियाए कीलंतो । अच्छामि ताव पत्ता, रिउणो धणु - भत्थयविहत्था ॥ ९२०९ ॥ ता तेहिं घरदुवारं रुद्धं, पम्मुक्कपुक्कहक्केहिं । असहाओ त्ति वरंडयमक्कमिडं करणदाणेण ।। १२०२ ॥ कंतारयउब्भंतो, कंतारयमुज्झिऊण नासंतो । कंतारयम्मि पत्तो, कंतारयमहमणुसरामि ॥ १२०३ ॥ ९५ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं इय चिंतंतो पत्तो तुम्ह समीवम्मि गरुयवेगेण । ता पहु जं काउं मह जुज्जइ तं झत्ति आइसह ॥ १२०४ ॥ तं सोउं निवरिसिणा, भणियं भो भद्द ! भीमभवरन्ने । सत्ताण नत्थि सरणं, एक्कं मुत्तूण जिणधम्मं ॥ १२०५५ ॥ रिउणो वि हुंति मित्ता, सया वि सत्ताण धम्मवंताण ।। कल्लाणेहिं कलिज्जइ, धम्मी आगरिसिएहिं च ॥ १२०६ ॥ सोहग्गरूवरिद्धीओ, हुति धम्मेण नूण सत्ताणं । किं बहुणा सिद्धिं पि हु, सत्ता पावंति धम्मेणं ॥ १२०७ ॥ सो धम्मो जइ-गिहिभेयओ, दुहा तत्थ आइमो दसहा । खंतिप्पमुहो बीओ, अणुव्वयाईओ बारसहा ॥ १२०८ ॥ तप्पढमो कीरंतो, अविलंबं पि हु पयच्छए मोक्खं । बीओ पुणो कमेणं, जत्थेच्छा तं समायरसु ॥ १२०९ ॥ तेणुत्तं सेविज्जइ, जम्मि तुह पायपंकयं निच्चं । तं चेव गहिस्सं ता, नियदिक्खं देहि इण्हि पि ॥ १२१० ॥ तो तस्स रायरिसिणा, दिन्ना धम्मुज्जयस्स पव्वज्जा । गहणासेवणसिक्खा वियक्खणो सो लहुं विहिओ ॥ १२११ ॥ तो रायरिसी कंतारतिरियनियरं विलोडियं बहुयं । विहरेउं पारद्धो, साहुहिं समं महीवट्टे ॥ १२१२ ॥ देसेसु विहरमाणो, पडिबोहिय रायपमुहमव्वाणं केसि पि देइ दिक्खं, अन्नेसिं देसविरई पि ॥ १२१३ ॥ काण वि वियरइ दंसणमन्नेसि मंसचायनियमाई केसि पि पुणो भद्दगभावं उप्पायइ महप्पा || १२१४ ॥ इय विहरिऊण बहुकालमाउअंतं नियं विभावेउं । आलोयणं पयच्छइ, गुरुण विप्फुरियसंवेगो ॥ १२१५ ॥ उच्चरइ य रोमंचंचियंगओ साहुवयचउक्कं पि । खामइ निएऽवराहे, सत्ते ते खमइ तेसिं पि ॥ १२१६ ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणस्स बीइय देवभवो कुणइ य आहारचउक्कचायओ अणसणं विसुद्धमणो । अरिहंतसिद्धसाहुस्सुयाण सरणम्मि अणुसरइ ॥ १२१७ || विहिय गुरुपुन्नपुट्ठि विलसिर - कल्लाणवणअमयवुट्ठि । सुमरेउं पारद्धो, पुणरुत्तं पंच परमेठि ॥ १२९८ ॥ तहाहि जे भुवणत्तयकल्लाणकारि - तित्थप्पवत्तया पहुणो । अरिहंताणं ताणं नमो नमो भवभयहरणं ।। १२९९ ॥ तिहुयणचूडामणिणो, जे जाया पाविऊण सिद्धिपयं । निक्कम्माणं ताणं, नमो नमो सव्वसिद्धाणं ।। १२२० ॥ पंचप्पयार आयारमणिमयाभरणभूसियंगा जे । तित्थप्पभावगाणं, नमो नमो ताण सूरीणं ॥ १२२१ ॥ सुविणीयविणेयाणं, जे सई सिद्धंतवायणं दिति । ताणमुवज्झायाणं नमो नमो समयसाराणं ॥ १२२२ ॥ तित्थयरतवच्चरणायरणज्जियपरमपुन्नपसरा जे । निज्जिणियकसायाणं, नमो नमो ताण साहूणं ।। १२२३ ।। (सिरिअणंतजिणस्स बीइय देवभवो ) इय रायरिसी सुमरिय परमेट्ठि आउअंतमणुपत्तो । पाणयकप्पे पुप्फोत्तरे, विमाणे सुरो जाओ ।। १२२४ ॥ माणिक्कमयमणोहरपल्लंके देवदूतअंतरिओ । पज्जत्तीपज्जत्तो, जाओ अंतोमुहत्तेण ॥। १२२५ ॥ पडयं उप्पाडेऊण, उट्ठिओ भूरिसूरदुन्निरिक्खो । अमराहिवो व्व निस्सीमरूवरमणीयसव्वंगो ।। १२२६ ॥ परिहियसुररयणाभरणभासुरो देवदूसपावरणो । दिट्ठो विमाणवासीहिं, सेवयामरसमूहेहिं ॥ १२२७ ।। तो ते नियनाहुप्पत्तिरंजिया उठिऊण सहसति । पणमंति रयणकुट्टिममिलंतमाणिक्कमयमउडा ।। १२२८ ॥ ९७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं जंपति य मणिमउडग्गघडियकरकमलकोसकमणीया । जय जय नंदा जय जय भद्दा, जाओ तमम्हए पहू ! ॥ १२२९ ॥ अम्हे सव्वे वि हु तुज्झ किंकरा, मणिविमाणमेयं ते । एयाओ रयणससीओ, सामि ! विलससु समग्गं पि || १२३० ॥ तो नरभवसमुवज्जियपुन्नप्पसरुब्भवं अमररिद्धिं । मण्णेइ अमाणमाणसपरिपसरियसुहरसुक्करिसो ॥ १२३१ ॥ पूयइ सिद्धाययणपडिमाओ, उसहाणणजिणपमुहाओ । कारवइ मणहराई, पेच्छणयाइं पुरो ताण ॥ १२३२ ॥ कइया वि कुणइ गिरि-सरि-जिणजम्मणमज्जणूसवे नियइ । कइया वि कुणइ नंदीसरम्मि जिणनाहजत्ताओ ॥ १२३३ ॥ कइया वि समायरइ, जंगमजिणनाहविहियवक्खाणं । कइया वि कुणइ तित्थप्पभावणं पहयविग्घयरो ॥ १२३४ ॥ रमणीयरूवसुरतरुणिसुमरणप्पत्तविसयभवसोक्खो । सो विमलमइसुयावहिनाणी. अइवाहए कालं ॥ १२३५ ॥ भणिया पढमदुइज्जा, चरियम्मि भवा अणंतजिणरन्नो । सासयसिवसुहहेडं, इह तइयभवं पयासेमि ॥ १२३६ ॥ (अणंतजिणिंदस्स तइयभवो) सायरपरिहा सहिओ जगई-पायार-वलय-दुल्लंघो । बत्तीसविजय विव णिस्सेणिसिओ वणमुहारामो ॥ १२३७ ॥ पसरियसरिरच्छोहो, कंचणगिरिनियरगुरुसुराययणो । कुलगिरिवरंडयावरियखेत्तपासायलंकरिओ ॥ १२३८ ॥ नइपडणकुंडवावीविराईओ भूरिजणवयाइन्नो । जंबुद्दीवो दीवो, समत्थि गुरुपुरनिवेसो वा ॥ १२३९ ॥ (कुलयं) तत्थत्थि चक्किभुत्तं पि, सासयं भरहनामयं खित्तं । सुहवासमवसणं पि हु, सयलत्तपयं पि छक्खंडं ॥ १२४० ॥ तमलंकरेइ माणिक्कमयमहासालसंपरिक्खित्ता । नामेण अउज्झपुरी, विहार-वावी-सराइन्ना ॥ १२४१ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं जीए फुरंतरयणप्पासायपहापयट्टियालोओ । लोओ रविउदयस्स वि, न समीहइ तावकारि त्ति ॥ १२४२ ॥ जीए विरायइ मरगयकुट्टिममुल्लसियमोत्तियचउक्कं । घणनिग्घायनिवडियं, सतारयं गयणखंडं व ॥ १२४३ ॥ पसरंतरयणमयमंदिरप्पहाहरियतिमिरपसराए । अमरपुरीए व जीए, नज्जइ न रयणिदिणविसेसे ॥ १२४४ ॥ अमरपुरि व्व सुहम्मा, सियसेवा सुरमणीजणियसोहा । दीसंतगुरुविमाणा, जा सोहइ भूरितियसहिया ॥ १२४५ ॥ उव्वहइ तप्पहत्तं, रिउवारणवारदारणुड्डमरो । बहुवणविहारचित्तो, सीहो विव सीहसेणनिवो ॥ १२४६ ॥ सोमो सूरो सुगओ महेसरो सयमहो सयाणंदो । महसेणो बलभद्दो, य जो नरो वि हु सुरसुरूवो ॥ १२४७ ॥ नजति न अन्ननिवा फुरियप्पयावम्मि जम्मि संता वि । गयणम्मि तारया इव, परिप्फुरंते सहस्सकरे || १२४८ ॥ दित्ततरवारिधारा, निवायनिम्महिय तांबिलरिऊ जे । मेहो व्व रायहंसा-सत्तपओ जं तमच्छरियं ॥ १२४९ ॥ आणंदइ तस्स मणं, समग्गदुइंतपत्तसामित्ता । विमलगुणजायसुजसा सुजसा नामेण पियभज्जा ॥ १२५० ।। संपत्तपियद्धंगं गोरिं सोहग्गगब्वियं हसइ । देवी पावियवल्लहनियपियसव्वंगसंगसुहा ॥ १२५१ ॥ सावित्ती वि समत्तं न जीए पयडइ पइव्वयाए समं । जं सा जाया जाया पिया सहस्सफुरियराया ॥ १२५२ ॥ सरलासओ अरोगी, जीए पई तीए कह समा लच्छी । जं विरईयबहुमाउगयाहरो तीए भत्तारो ॥ १२५३ ॥ रायपियाए पुरो कंपहुत्तगव्वं सई वि उव्वहिही । जा लज्जइ भज्जा कोसियस्स एस त्ति सोऊण ॥ १२५४ ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सिरिअणंतजिणचरियं जीए दईओ सव्वंगसुंदरो नरवई समं तीए । न रईए विसमसीसीहरेण दद्धो पिउ जं से ॥ १२५५ ॥ खंडियसकलंकससंकभारिया वि रोहीणी नो जीए । धरइ समत्तमगंजिय अकलंकअसंकदइयाए ॥ १२५६ ॥ रन्ना वि पिअवन्नाए नियइ जं से विरोयणो भत्ता । देवीए पुणो कंतो सया वि हरिसं समुव्वहइ ॥ १२५७ ॥ .. तीए सह भवसमुन्भवसुहसव्वस्स य सत्तचित्तस्स । गच्छंति भूमिवइणो दिवसा बहुविहविणोएहिं ॥ १२५८ ॥ सुकुलक्कमपत्ताणं नीइपराणं हियाण मंतीणं । रज्जसिरीभरसप्पियविलसइ सच्छंदमवणिवई ॥ १२५९ ॥ तहाहि - कइया वि करेणुवई कीलावइ रइयरम्मसिंगारो । कइया वि हए वाहइ टंपाझंपा भमिरएहिं ॥ १२६० ॥ कइया वि मणिरहारोहसोहिओ रायवाडियं कुणइ । कइया वि नरविमाणारूढो नयरस्सिरिं नियइ ॥ १२६१ ॥ लंघणिय-सुहासण-वहिल-सिबिय-वरसेज्ज-वालयाईणि । जाणाइ जहाभिमयं किं पि कयाइ वि अलंकरइ ॥ १२६२ ॥ निरवज्जरज्जलच्छि परिपालंतस्स तस्स नरवइणो । भीमत्तं संभुम्मिं कामे मारो वहो वसहे ॥ १२६३ ॥ नित्तिंसया असिम्मि भीरुत्तं कामिणीए नामम्मि । निग्गुणया हरिधणुहे विसदाणं रायहंसम्मि ॥ १२६४ ॥ अस्सच्छत्तं पिप्पलदुमम्मि तं हढयणम्मि कूरत्तं । चवलत्तं धन्नम्मिं विमणत्तमणंतनाणिम्मि ॥ १२६५ ॥ अपवत्तिया जईसुं नयभंगवियारणं समयसत्थे ।। संदत्तं सूरसुए, बंधो कुंतलकलावेसु ॥ १२६६ ।। एयाणं मज्झाओ एगयरं पि हु समत्थि न जणस्स । नरनाहपाय-पउमप्पसायसंजायसोक्खस्स ॥ १२६७ ॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ अणंतजिणजम्मवण्णणं अह अन्नया य सावण-सामलसत्तमि तिहीए रयणीए । रेवइनक्खत्तम्मि संकंते अमयकिरणम्मि || १२६८ ॥ रिउसमयकयसिणाणो विरइयसिंगार-सुंदरा देवी । खणमेक्कं कीलासुहमणुहविय समं महीवइणो ॥ १२६९ ॥ पत्ता नियवासगिहे मणिप्पहाजालहरियतिमिरम्मि । वीयणयदप्पणासणनिद्दाकलसाभिरामम्मि ॥ १२७० ॥ तत्थ ट्ठिए पल्लंके ऊसीसयउन्नए नए मज्झे । पायंतऊसियम्मिं तडट्ठियमाणिक्कपयवीढे ॥ १२७१ ॥ नवरायहंसमिउरोमजुत्तपट्ठउयतूलियाकलिए । उहाणयगल्लमसूरियादुगालिंगिणिसणाहो || १२७२ ॥ निम्मोयमऊयजद्दरअच्छरणच्छाइए विसालम्मि । सुत्ता निब्भरनिदा पच्छाइयनेत्तसयवत्ता ॥ १२७३ ॥ (अनंतजिणस्स गब्भावतरणं) एत्थंतरम्मि पाणयकप्पे पुप्फुत्तरे विमाणम्मि । वी(स)सायराण अंतो जाओ पउमरहअमरस्स ॥ १२७४ ॥ तो नाणत्तयजुत्तो, मुत्तुं पुप्फोत्तरं मणिविमाणं । अवयरइ सुकयकलिओ, सुजसादेवीए गब्भम्मि ॥ १२७५ ॥ रयणीविरामसमए, देवी सा सुत्तजागरा नियइ । गब्भाहाणप्पयडणरूवं, सिविणावलिं एयं ॥ १२७६ ॥ तहाहि - होही देवि ! तुह सुओ, गयराओहमिव भूरिदाणो य । इय कहिउं पिव पत्तं, पेच्छइ एरावणं देवी ॥ १२७७ ॥ मह खंधसमं होही, तुह तणयस्सावि देवि ! खंधजुयं । इय विन्नविडं पिव पत्तम्मिक्खए धवलवसहं सा ॥ १२७८ ॥ तुह तणओ वि मयारीकिसोयरोहमिव होहिही देवि ! । इय साहिउं व पत्तं पेच्छइ सा केसरिकिसोरं ॥ १२७९ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ सिरिअणंतजिणचरियं होही जिणो तुह सुओ, होहमहं तस्स सहयरी नूणं । इय कहिउं पिव इंति अवलोयइ सा महालच्छि ॥ १२८० ॥ उत्तमजाईसु गुणो, विलसिरवन्नो अहं व तुह पुत्तो । होहि त्ति भणिउमिव पवरमिक्खए कुसुममालं सा ॥ १२८१ ॥ सपुन्नकलो सुमया सिओ य तुह नंदणोहमिव देवि ! । । होहि त्ति समक्खाउं व पेक्खए पुण्णससिमितं ॥ १२८२ ॥ .. हरिडं मोहतमोहं अहं व सम्मग्गदेसओ होही । तुह तणओ त्ति पयासिउमिव पत्तं सव्ववइ सूरं ॥ १२८३ ॥ अहमिव गुरुकुलकेऊ गुणन्निओ देवि ! तुह सुओ होही । इय वज्जरिठं पिव सा सच्चवइ धयं गिहं इंतं ॥ १२८४ ॥ परमोदयाहिवासो चित्तो हं पिव भविस्सइ सुओ ते । इय भणिउं पिव इंतं सा निज्झायइ कणयकुंभं ॥ १२८५ ॥ देवि ! तुम पि व सहस्सपत्तसेवियपयं सुयं लहसि । इय दंसिउं व सा पासमस्सियं नियइ कमलसरं ॥ १२८६ ॥ देवि ! सिणिद्धपवालं सुत्तिसियमंब ! जणिहिसि सुयं तं । इय कहिउं उवविंतं सायरमवलोयए देवी ॥ १२८७ ॥ नियनाहो तुह उयरे पत्तो अवलग्गिउं व तं देवि । अहमागयं व दंसइ व अप्पयं मणिविमाणं से || १२८८ ॥ तुह भवणे मज्झ समो वसुहरो निवडिही नहा देवि ! । सुयजम्मे त्ति पयासिउमिव मणिगणमिक्खए पत्तं ॥ १२८९ ॥ अहमिव तुह तणओ वि हु निद्धहिही कम्मकयवरं देवि ! । इय साहिउं व इंतं सा निद्भूमानलं नियइ ॥ १२९० ॥ सिविणचउद्दसगमिमं पविसंतं पेच्छए समुहकमले । निवपट्टमहादेवी समकालभमरजालं व ॥ १२९१ ॥ एत्थंतरम्मि बत्तीससंखअमरेसराण समकालं । निय-निय-ठाण-ट्ठियाण सिंहासणयाई चलियाई ॥ १२९२ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ सिरिअणंतजिनजम्मवण्णणं तो ओहिनाणजाणियजिणिंदगब्भावयारसमयमहा । समकालं पि सव्वे वि उठ्ठिया आसणेहिंतो ॥ १२९३ ॥ सत्तट्ठकमे चंकमिय जिणपुराभिमुहमसमभत्तीए । . पंचंगपणइपुव्वं थोउं सक्कत्थएण जिणं ॥ १२९४ ॥ परिवारजुया आरुहिय मणिविमाणाई झत्ति संपत्ता । सव्वे वि अओज्झाए भवणे निवसीहसेणस्स ॥ १२९५ ॥ सविमाणा वि हु देवीभवणस्स पयाहिणतिगं दाउं । मुत्तूण विमाणाई वासहरभंतरे पत्ता || १२९६ ॥ कयपंचंग-पणामा निबद्धकर-कमल-कोस-कमणीया । . देविं थोउं लग्गा भत्तिभरुभिन्नरोमंचा ॥ १२९७ ॥ जय देवि ! तिजयनायग ! गब्माहाणप्पभावजयपुज्जे । जय विमलसीलकलहंसवासनवकमलि नमो ते ॥ १२९८ ॥ तिहुयणहियकरसमयं गब्भगयं देवि ! उव्वहंती तं । भुवणेगदेसहियअसयकारिणि जिणसघणमालं ॥ १२९९ ॥ इय थोउं जिणजणणिं, गब्भगयं तित्थनाहममरिंदा । कयपंचंगपणामा, भत्तीए थोउमारद्धा ॥ १३०० ॥ तिजयपहुत्ताय तए चत्ता पुप्फोत्तरस्सिरी सामि । । अहवुप्पज्जइ लोहो, गरुए लाहे गुरुणं पि ॥ १३०१ ॥ अद्दिट्ठो वि तुमं पहु ! पावं अवहरसि सुमरिओ संतो । झाइज्जतोवस्सविसं वमंतोअहिदट्ठाणं ॥ १३०२ ॥ मइ-सुय-ओहिनाणाई तिन्नि उव्वहसि सामि ! विमलाई । पायालमच्चलोयामरलोयनिरिक्खणत्थं च ॥ १३०३ ॥ इय थोऊणं अपमाणमाणसुप्पन्न भत्तिपब्भारा । भूमिलियभालफलया, नमंति इंदा जिणवरिंदं ॥ १३०४ ॥ देविउयरंतराओ, हरिऊणं असुहपुग्गलसमूहं । अइसुरहिपरिमले तम्मि पुग्गले पक्खिवंति सुरा ॥ १३०५ ॥ . Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ इय काउं जिणगब्भावयारपरमूसवं सबहुमाणं । संपत्ता सव्वे विहु इंदा नंदीसरे दीवे ॥ १३०६ ॥ काऊण तम्मि अट्ठाहियाओ, सासयजिणिदपडिमाणं । सव्वे वि य हरिसुक्करिसिया गया निययठाणेसु ॥ १३०७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं सिरिअम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । भणिओ अनंतचरिए चवणंतो पढमपत्थावो ॥। १३०८ ॥ ( जिणजम्मनाम बीइयपत्थावो) तो गोससमयसूयग - मागहजण - मंगलावलिथुईओ । जयतूरसरसियाओ सोउं निदं मुयइ देवी ॥ १३०९ ॥ जिंभायंती निद्दालसंगभंगुल्लसंतघणसिहिणी । तंबिरनयणी पल्लंकमुज्झिउं उट्ठिया देवी ॥ १३१० ॥ लीलाचलणरणज्झणिरमंजुमंजीरसिंजियसरेण । वायालंती भवणं रायसमीवं समल्लीणा १३११ ॥ पहु ! अज्जउत्त ! सामि ! त्ति पेसलं जंपिरी महीनाहं । कुणइ अवहरियनिद्दं, समुट्ठिओ तयणु सो झति ॥ १३१२ ॥ उवविसिय देवि ! इह आसणम्मि, विन्नवसु इय निवासं । ठविऊणमुत्तमंगे, उवविट्ठा रयणपयवीढे ॥ १३१३ ॥ विन्नवइ य कर- पंकय-कर-कोसा कोइलाकलरवेणं । पहु ! मह मुहे पविट्ठ गयाइयं सिविणचउदसगं ॥ १३१४ ॥ तद्दंसणंतरपावियपडिबोहा तुम्ह पासमल्लीणा । ता एय सिविणयावलि - फलवागरणं कुणह पहुणो ॥ १३१५ ॥ आयन्निय सिविणयविंदमुत्तमं रंजिओ महीनाहो । को नाम (नो) हरसिज्जइ इय अब्भुदयस्स सवणेण ।। १३१६ ॥ जंपर पिए । भविस्सइ तुह तणओ तिहुयणस्स वि पहाणो । सुकणिमाणमेक्कं पि दीसए किमु समग्गाई ? ।। १३१७ || सव्वं पि रायमंडलमुव्वहिही देवि ! तुह सयाएसं । अच्चन्भुयपुन्नभरावज्जियचित्तं वि य पणयं ॥ १३१८ ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं सुयअसमसिविणयत्था अमंदआणंदजायअंसुभरा ।। जंपइ देवी ! देवप्पसायओ होउ एवं ति ॥ १३१९ ॥ बंधइ य सउणगंठिं, रायाणुन्नाए जाइ वासगिहं । उव्वहमाणी गब्भावयारसंभावणाए सुहं ॥ १३२० ॥ काउं पभायकिच्चं, सिंगारं उत्तमं रईय राया । उवविट्ठो रयणसहा, संठियसीहासणे गंतुं ॥ १३२१ ॥ पणओ य सहेलुट्ठिय नरिंदसामंतमंडलीएहिं । तो तेसु समग्गेसु वि नियनियठाणोवविढेसु ॥ १३२२ ॥ अट्ठविहनिमित्तवियार-सत्थ-परमत्थ-जाणया पुरिसा । वाहरिया नरवइणा, पडिहारमुहेण पत्ता य ॥ १३२३ ॥ न्हाया विलित्तदेहा, दहि-दुद्धक्खय-विरायमाणसिरा । निम्मोयमउयनिम्मलदुकूलकयउत्तरासंगा ॥ १३२४ ॥ सिय-कुसुम-फल-कलिय-करयला वरनिमित्तसत्थकरा । दंडिप्पवेसिया कयउवायणा सफलपुप्फेहिं ॥ १३२५ ॥ आसीसदाणपुव्वं पक्खिविउं अक्खए नरिंदसिरे । पुव्वामुहा निविट्ठा निव-दाविय आसणेसुं ते ॥ १३२६ ॥ तंबोलदाण-पुप्फाइ-पूयणं काउमवणिनाहेण । तेसिं गयाइयाइं चउदससिविणाई कहियाइं ॥ १३२७ ॥ तो ते निमित्तसत्थेण निच्छिउं ताण सिविणयाण फलं । विन्नविउं पारद्धा पहि(ट्ठ)हियया नरिंदपुरो || १३२८ ॥ दव्वसुहा सिविणाणं, भन्नइ बावत्तरी य सत्थम्मि । गिज्जति महासिविणा तीस च्चिय तीए मज्झम्मि ॥ १३२९ ॥ तीए वि मज्झे अइसुंदराई, चउदस इमाई सिविणाई । देवप्पियाए सुजसाए, जाइं दिट्ठाई निसिविरमे ॥ १३३० ॥ एक्केक्कं पि इमाणं नियंति जणणीओ पुन्नपुरिसाणं । देवाणं चक्कीण य जिणजणणी पुणो चउदस वि ॥ १३३१ ॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ सिरिअणंतजिणचरियं ता देव ! चक्कवट्टी तिजयुत्तमदेवयासरूवो वा । होही देवीए सुओ, गयाइसिविणोहदरिसणओ ॥ १३३२ ॥ छक्खंडभरहरज्जं, अहवा तिहुयणपहुत्तमणवज्जं । उवभुंजिही सुओ तुह, असरिसपुव्वकम्मुक्करिसा ॥ १३३३ ॥ धरिहिंति सिरे आणं, रायाणो तस्स तिजयपहुणो वा । अच्चब्भुयसपरक्कममाहप्पावज्जिया संता || १३३४ ॥ केत्तियमेत्तं तीरइ कहिउं अम्हेहिं मंदबुद्धीहिं । माहप्पमणप्पं तस्स भाविणो तुम्ह तणयस्स ॥ १३३५ ॥ सव्वुत्तमसुय-संपत्ति-सूयग-स्सिविणसवणओ राया । नेमित्तियाण वियरइ, वत्थाभरणाई रम्माई ॥ १३३६ ॥ तह देइ दविणजायं, तेसिं जहा पुत्तयाइसंताणे । सिविणे वि समागच्छइ, न चेव दारिद्दवत्ता वि ॥ १३३७ ॥ इय कयनिवसम्माणा, गया निमित्तण्णुणो सठाणेसु । राया वि उठ्ठिऊणं पत्तो देवीए वासगिहे || १३३८ ॥ दटुं दइयं देवी सत्तट्ठपयाई समुहमणुपत्ता । जंपइ कयप्पसाया, पहुणो पुण पल्लंकमल्लियह ॥ १३३९ ॥ तत्थुवविट्ठम्मि निवे पयवीढे ठाइ सा तया एसा । सच्छंदा नन्नत्थ वि इत्थी पुण पइसमीवे ॥ १३४० ॥ जह निसुओ नेमित्तियमुहेहिं, भूसामिणा सिविणयत्थो । .. तह चेव तीए कहिओ, कहति अलियं न जं गुरुणो ॥ १३४१ ॥ भणियं च नंदणो तुह, तिजयजणाणंदणो पिए ! होही । ता तुह तुल्ला नत्थेत्थ कावि जणणी जओ भणियं ॥ १३४२ ॥ . निरतिशयं गरिमाणं तेन जनन्याः स्मरन्ति विद्वांसः । तं कमपि वहति गर्भ, महतामपि यो गुरुर्भवति ॥ १३४३ ॥ इय रायमुहायन्निय, उत्तमसुयसंभवाविया दिट्ठा । देवी सव्वंगुल्लसियरम्मरोमंचकंचुईया ॥ १३४४ ॥ . Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं १०७ जंपइ पहु ! तुम्ह पयप्पसायओ इयगुणो सुओ हुज्जा । तो निवइ तट्ठाणाओ उठ्ठिठं मणिसहं पत्तो ॥ १३४५ ॥ गब्भागयतित्थयराणुभावभय-रोग-सोगप्पम्मुक्का । उव्वहइ गब्भमब्भुय-पाउब्भूयप्पभावा वा ॥ १३४६ ॥ गब्माणुभावपभवं, तद्देहे पंडुरत्तमुल्लसियं ।। सुरलोयाओ समागय-तित्थेसरओहिनाणं च ॥ १३४७ ॥ तो वाउकुमारसुरंगणाओ, सम्मज्जयंति तब्भवणं । मेहकुमारपियाओ, खिवंति गंधोदयं तत्थ ॥ १३४८ ॥ रिउछक्कसुरपुरंधीओ सुरहिकुसुमुक्करं किरंति सया । दंसंति दप्पणं जोइसाण देवीउ देवीए ॥ १३४९ ।। कावि कुणइ अब्मंगं, तीसे उव्वट्टए तणुं अन्ना । काओ वि भिंगारकरा तं ण्हवणविहिं अणुट्ठति ।। १३५० ॥ गोसीसचंदणेणं विलिंपए तीए तणुलयं कावि । - परिहार्वति तमवराओ अमरवत्थाभरणनियरं ॥ १३५१ ॥ देवकुरुसमुन्भूयं, आहारं देइ का वि आणेउं । अन्ना कप्पूरपरायमिस्सं तंबोलमवित्तीए ॥ १३५२ ॥ धवलायवत्तधरणं सिज्जारयणं च चमरवीयणयं ।। - केसुव्वेलणपरिवट्टणाइ कुव्वंति काओ वि ॥ १३५३ ॥ . इय किंकरत्तमुव्वहइ, तीए सव्वो वि वंतरीविसरो । अहवा तित्थंकरगब्भजोगओ किन्न कल्लाणं ॥ १३५४ ॥ दोहलया देवीए तीसे मासे तइज्जए जाया । . .. मंदरगिरिसिहरारोहणम्मि वंछा समुच्छलिया ॥ १३५५ ॥ चिंतइ मह कमकमलं, नमंतु अमरेसरा समग्गा वि । दारिदं भुवणस्स वि, हरामि मणवंछिअं दाउं ॥ १३५६ ॥ देमि अभयप्पयाणं, निस्सेसाणं पि एत्थ सत्ताण ।। इह दोहलया सव्वे वि, पूरिया तीए सक्केण ॥ १३५७ ॥ . Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ सिरिअणंतजिणचरियं आइसिऊण य धणयं, भंडाराई भरेइ नरवइणो । धण-कण-कप्पड-चोप्पड-मणि-रयणाभरणविसरेण ॥ १३५८ ॥ तो सा अंतो केवल-गुणसारा फलिहअक्खमाल व्व । मुत्तावलि व्व मज्झप्पविट्ठनायगमहाणंदा ॥ १३५९ ॥ पाउससिरि व्व विलसिर-अब्भंतररायहंस-विप्फुरणा । केवलनाणसमिद्धि व्व गब्भगयतिहुयणालोगा ॥ १३६० ॥ तित्थयरेणं गब्भट्ठिएण, एवं विरायमाणी सा ।। तह कारिज्जंती पंच, सामियप्पमुहकिरियाओ ॥ १३६१ ॥ अइसीयं अइउन्हं, अइतित्तं अइकडं अइकसायं । अइअंबं अइलवणं, अइमहुरं भुंजइ न भोज्जं ॥ १३६२ ॥ जेमइ हियं जं च मियं जं पुण बल-ओय-कंति-वुढिकरं । देवोवणीयमवि तं, आहारइ विज्जउवइनें ॥ १३६३ ॥ गब्भाहाणदिणाओं गए सवायम्मि मासनवगम्मि । वइसाहसामतेरसितिहीए पउणड्ढरत्तम्मि ॥ १३६४ ॥ रेवइरिक्खुवभोगं, पत्ते चंदम्मि मीणरासिम्मि । उच्चठाणट्ठियसुग्गहम्मि सुहलग्गम्मि वरयरे ॥ १३६५ ॥ खीरोदयस्सिरी विव, भवणालंकारकारयं चंदं । विलसंतनवसुवन्नच्छविरविं उदयसंज्झ व्व ॥ १३६६ ॥ उवओगं दिट्ठी विव, गोयरगयवत्थुकयपरिच्छेयं । तिहुयणउज्जोयकरं, जसपसरं सुद्धबुद्धि व्व ॥ १३६७ ॥ दीवयसिहि व्व तेयं, विद्धंसियतम-पयासियपयत्थं । वाईसरि व्व सत्थं, पयडीकयसयलपरमत्थं ॥ १३६८ ॥ मेहावलि व्व उदयं, समग्गसत्ताण विहिय आहारं । नंदणवणधरणी विव, कप्पतरूं वंछियत्थफलं ॥ १३६९ ॥ वाडी विव कुसुमभरं, अमरासुरमणुयसिरिकयावासं । सव्वंगलक्खणधरं, देवी पुत्तं पसूया सा ॥ १३७० ॥ (कुलय) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं १०९ तक्कालं चिय निच्चंधयारभरियासु नरयपुढवीसु । खणमेक्कं उज्जोओ, जाओ नारयकयपमोओ ॥ १३७१ ॥ तव्वेलं संजाओ, सुही समग्गो वि सत्तसंघाओ । अहवा भुवणब्भुदयाय होइ जम्मो जयपहूण || १३७२ ॥ मुंचंतो मिऊसुयंधो, जाओ वाउ य दाहिणावत्तो । दिसिसु वियासो फुरिओ वज्जति सयं च दुंदुहितो ॥ १३७३ ।। एत्थंतरे अहोलोगवासिणिप्पमुहदिसिकुमारीण । कंची-किरीड-कुंडल-केऊरालंकियंगीण ॥ १३७४ ॥ कुमुन्नयक्कमाणं, पीवरऊरूण पिहुनियंबाणं । खामोयरीण पीणत्थणीण सुकुमालबाहाण ॥ १३७५ ॥ बिंबाहरीण छणससिमुहीण उत्तट्ठहरिणनयणीण । छप्पन्नाण वि सीहासणाई चलियाई समकालं ॥ १३७६ ॥ (कुलयं) तो ओहिनाणनयणालोइयजिणजम्ममज्जणमहाओ । मुक्कासणाओ गंतुं, सत्तट्ठपयाई जिणसम्मुहं ॥ १३७७ ॥ कयपंचंगपणामाओ, भत्तिसंथुणियतित्थनाहाओ । वेउव्विय विमाणाई, झणिरमणिकिंकिणिगणाई ॥ १३७८ ॥ सुहसुहुमरयणपोग्गलविउव्वियंगीओ तेसु वडियाओ । सत्तहि अणिएहिं समं, सत्तहिं अणियाहिवेहिं च ॥ १३७९ ॥ चउहिं मयहरियाहिं, चउहिं सामाणियाण सहसेहिं । सोलसहिं अंगरक्खयसहसेहिं जुयाओ पत्तेयं ॥ १३८० ॥ अवरेहि य वंतरमिहुणेहिं जुत्ताओ सूइकम्मकए । सव्वाओ वि चलियाओ, भूरिविभूइप्पबंधेण ॥ १३८१ ॥ तहाहि - अट्ठ अहोलोगाओ, पभाओ जिणिंदजणणिसूइगिहे । सिद्धंतपउत्तेहिं, नामेहिमिमेहिं गीयाओ ॥ १३८२ ॥ भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी । तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिया ॥ १३८३ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सिरिअणंतजिणचरियं मुत्तूण विमाणाई, तिपयाहिणिउं नमंति जिणजणणिं । रइयकरकमलकोसा, तं संथुणिउं पवत्ताओ || १३८४ ॥ भुवणच्चणीयचरणे, तिहुयणजणजणियदुरियदरहरणे । कलहंसगमणितित्थयरजणणि जयसामिणि ! नमो ते ॥ १३८५ ॥ तुमए च्चिय संजणिओ, तित्थयरो देविनन्नरमणीए । बीय च्चिय जणइ ससिं, जणनमणिज्जं न अन्नतिही ॥ १३८६ ॥ देवि ! न महिलाणं चिय, जाया तं उत्तमा नराणं पि । सचराचरतिजयगुरुं, उप्पायंती जिणं पुत्तं ॥ १३८७ ॥ इय थोऊण पयंपंति, देवि ! नो भाइयव्वमम्हाणं । वयमट्ठदिसिकुमरीओ, तुम्ह भवणम्मि पत्ताओ ॥ १३८८ ॥ तिहुयणपहुणो परमेसरस्स जम्मणमहे करिस्सामो । भत्तिं नियाहिगारप्पयडणरूवं ति जंपेउं ॥ १३८९ ॥ तित्थंकरजम्मणघरचउदिसिजोयणपमाणधरणियलं । वेउव्वियसंवट्टगवायाहिं अट्ठहिं वि ताहिं ॥ १३९० ॥ विहियमवहरियकक्कर-तणकयवर-रेणुअसुइसंघायं । तो चिट्ठति अदूरे गायंतीओ जिणिंदगुणे ॥ १३९१ ॥ एवं चिय उड्ढदिसा, वत्थव्वाओ वि अट्ठ देवीओ । इंति महाविभूईए एरिसनामप्पसिद्धाओ || १३९२ ॥ मेघंकरा मेघवई, सुमेहा मेहमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहया || १३९३ ॥ नमिउं जिणजणणिं, काउमब्भवद्दलयमंबरे धरणिं । गंधसलिलेण सिंचिय, कुसुमभरं तत्थ विकिरंति ॥ १३९४ ॥ ठाऊण नाइदूरे, गायंति जिणिंदचारुचरियाई । पत्ताओ पुव्वरुयगाओ, तयणु देवीओ अट्ठ इमा ॥ १३९५ ॥ नंदुत्तरा य नंदा, आणंदा नंदिवद्धणा चेवा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया तह य ॥ १३९६ ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ अणंतजिणजम्मवण्णणं जिणजणणीपुव्वदिसं, समलंकुव्वंति दप्पणकराओ । अह दाहिणरुयगाओ, पत्ताओ इमाओ देवीओ ॥ १३९७ ॥ समाहारा सुपइन्ना य, सुप्पबुद्धा जसोहरा । लच्छिमई सेसवई, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥ १३९८ ॥ सेवंति दाहिणदिसं, भिंगारकराओ जिणगुणरयाओ । तो पच्छिमरुयगाओ, पत्ताओ इमाओ देवीओ || १३९९ ॥ इलादेवी सुरादेवी, पुहई पउमावई इय ।। एगनासा नवमिया, भद्दा सीया य अट्ठमा || १४०० ॥ संगहियतालविंटाओ, ताओ चिट्ठति पच्छिमासाए । तो उत्तररुयगाओ, इंति अट्ठ एयाओ देवीओ || १४०१ ॥ अलंबुसा मिस्सकेसी य, पुंडरिकी य वारुणी । हासा सव्वपहा चेव, हिरी देवी सिरी तहा ॥ १४०२ ॥ चामरकराओ उत्तरदिसाए ठाउं जिणं परिथुणंति । देवीओ वि दिसिरुयगाओ इंति चत्तारि एयाओ ॥ १४०३ ॥ चित्ता य चित्तकणया सुतेर-सोयामणि त्ति नामाओ । दीवयकराओ ईसाणपमुहविदिसासु चिट्ठति ॥ १४०४ ॥ अह मज्झिमरुयगनिवासिणीओ चत्तारिदिसिकुमरीओ । देवी रुया-रुयंसा-सुरूय-रूयगावईओ त्ति ॥ १४०५ ॥ काउं पयाहिणतिगं, थोउं च जिणिंदसंजुयं जणणिं । । कप्पंति नाहिनालं चउरंगुलवज्जियं पहुणो ॥ १४०६ ॥ खणिऊण वियरयं तत्थ, निहिय तं पूरयंति रयणेहिं । विरयंति रयणपीढं, तत्थ सहरियालियं रम्मं ॥ १४०७ ॥ तयणु कयलीवणाई कयाई तिन्नेव ताहिं सिसिराई । परिपक्कफलभरोन्नयसाहाई पिहुलपत्ताई ॥ १४०८ ॥ तम्मज्झे कंचणमयमंगलकलसाभिरामदाराई । घणपंचवन्नमाणिक्कभित्तिकयचारुचित्ताई ॥ १४०९ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ सिरिअणंतजिणचरियं थूलामलमुत्ताहलचउक्कजुयरयणकुट्टिमतलाई । मणिमयथंभयठियसालिहंजियाजणियसोहाइं ॥ १४१० ॥ पवणुल्लासियधयकणिरकिंकिणीजणियसवणसोक्खाई । पुप्फभरपयरपरिमलमिलंतअलिरोलमुहलाई ॥ १४११ ॥ दाहिणपुवुत्तरदिसि, तिगम्मि वेउब्वियाई सत्तीए । विहियाई चाउसालाई, तिन्नि भवणाहिं देवीहिं ॥ १४१२ ॥ तेसिं च मज्झभाए, नाणामणिखंडमंडियंताई । सीहासणाई कंचणमयाई तिन्नेव रइयाइं ॥ १४१३ ॥ तो घुसिणरसुव्वट्टियकरकोसे तित्थनायगं ठविउं । गहिडं भुयाए परमायरेण तित्थयरजणणिं च ॥ १४१४ ॥ गंतुं दाहिणदिसि चाउसालसीहासणम्मि ठावंति ॥ अभंगति य दुगमवि, सयप्पागप्पमुहतेल्लेहिं ॥ १४१५ ॥ गंधुव्वट्टणएणं उव्वट्टेउं जिणं सजणगीयं । तो पुवट्ठिईए निति, तुडुंगं पुव्वचउसाले ॥ १४१६ ॥ आरोविऊण सीहासणम्मि, गंधोदएण मज्जणयं । काराविऊण गोसीसचंदणेण य विलिंपेउं ॥ १४१७ ॥ समलंकिऊण मणिभूसणेहिं, परिहाविउं सुवत्थाई । उत्तरचउसालठिए, ठवंति सीहासणे गंतुं ॥ १४१८ ॥ आणाविऊण नियकिंकरहिं, हिमवंतगिरिनिगुंजाओ । गोसीसचंदणदुमसमिहीओ य अरणिकट्टुं च ॥ १४१९ ॥ तणियमहणुच्छलियानलेण कुव्वंति संतिकम्मकए । होमं धूमधारियनहंगणं दिसिकुमारीओ || १४२० ॥ निययप्पभावरक्खिय तणुणो वि हु सामिओ सबहुमाणं । बंधंति ताओ रक्खापोट्टलियं बाहुलइयाए ॥ १४२१ ॥ ताडंतीओ तित्थयरकन्नमूलम्मि रयणपाहाणे । जंपति सत्तकुलगिरिसमा आअउन्नओ होसु ॥ १४२२ ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ अणंतजिणजम्मवण्णणं तो पमुइयाओ मुंचंति, सूइगेहे जिणं सजणणीयं । गायंतीओ जिणगुणे, चिट्ठति समीवट्ठाणम्मि ॥ १४२३ ॥ एवं छप्पन्नदिसाकुमारिदेवीहिं भत्तिजुत्ताहिं ।। निव्वत्तियं समग्गं, तित्थंकरजम्मकरणिज्जं ॥ १४२४ ॥ एत्थंतरम्मि सोहम्मदेवलोगाहिवस्स सक्कस्स । सुरकीलाहिं ललंतस्स, झत्ति सीहासणं चलइ ॥ १४२५ ॥ तो ओहिनाणजाणियजिणजम्मो आसणाओ उठेउं । गंतुं सत्तट्ठपयाई, पणमिउं थुणिय जिणनाहं ॥ १४२६ ॥ सीहासणम्मि ठाउं, पायत्ताणीयनामाइसइ । हरिणेगवेसि ! जंबुद्दीवे, भरहे जिणो जाओ ॥ १४२७ ॥ ता उभयहा सुघोसं, जोयणपरिमंडलं महाघंटं । तिक्खुत्तो वाएउं, घोससु जिणजम्मगमणमहं ॥ १४२८ ॥ सव्वे वि जहा अमरा इंति सभज्जा महाविभूईए । आएसो त्ति भणित्ता तो सो पत्तो सुहम्मसहं ॥ १४२९ ।। हत्थ-दुगुल्लालियलालियाए, तं हणइ तिन्नि वाराओ । तो उठ्ठिओ महंतो, घंटाए रणझणो रावो || १४३० ॥ अह एक्कगूणबत्तीस-लक्ख-घंटासुघोसो पडिप्फलिओ । तेण रणज्झणियाओ, ताओ वि सुरपुर-विमाणेसुं ॥ १४३१ ॥ बहिरंतो दिसियक्कं, उत्तासंतो नवामरसमूहं । वित्थरिओ सुरलोए, घंटागणथणरणक्कारो || १४३२ ॥ पंचप्पयारविसयासत्ता, बहुविहविणोयवक्खित्ता । तं सोउं सव्वसुरा किमिमंति ठिया वियक्कपरा ॥ १४३३ ॥ एय उवठ्ठियं विड्डरं ति भयवेविरीओ अमरीओ । परिरंभंत-नियपिए रक्खह नाह ! त्ति भणिरीओ ॥ १४३४ ॥ किब्बिसियसुरा हत्थं, मुच्छं गच्छंति भयभरुभंता । निवडंति कायरा, निब्भया पुणो हुंति सन्नद्धा ॥ १४३५ ॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ सिरिअणंतजिणचरियं एवं देवनिकाए, सव्वम्मि वि आउले भवंतम्मि ।। विरओ समग्गकप्पे, विमाणघंटारणक्कारो || १४३६ ॥ तयणु हरिणेगमेसी, साहइ अवहियमणाण देवाण । हे अमरा ! सक्को , आणवेइ, तुब्भे लहुं एह ॥ १४३७ ॥ जेण जिण-जम्म-मज्जण-महकरणकए अहं चलिस्सामि । इय सोउं पहुआणं, पमुईय-हियया सुरा जाया ॥ १४३८ ॥ . दूरुज्झियविसयरसा, पमुक्कपेच्छणा य पेच्छणारंभा । पउणा हवंति अमरा, जिणजम्मऽच्चणगमणकज्जे ॥ १४३९ ॥ कयमज्जणपुक्खरिणीण्हाणा गोसीसचंदणविलित्ता । नियसियदेवदुकूला, कंठट्ठावियकुसुममाला ॥ १४४० ॥ केयूरकडयकुंडलकिरीडकंची-कलावकयसोहा । इय रइयचंगसिंगारसुंदरा हरिसहयहियया ॥ १४४१ ॥ तो सुरचित्तनिहियजिणमज्जण अच्छरउच्छाहहिं मणरंजण । चल्लिर चलकुवलयदलनयणिय चंदलेहचंदोवमवयणिय ॥ १४४२ ॥ कुवलयमालि झडत्ति, पहुच्चइ मणवंछियजनअप्पडं मोच्चइ । हे सिंगारदेवि ! घोरच्छणि मोणु म करि मंदर-पहपत्थणि ॥ १४४३ ॥ ( तुह लीलावइ ! मअसणवल्लहि, आलसु मेल्लि हेल्लि किं न चल्लहि हलि वलि चंपयमालि मणोहरि, कुंभिकुंभजुयपीणपउहरि || १४४४ ॥ चंदप्पहि चंदस्सिरि, चंदणि लच्छि महच्छि वरच्छि सुनंदणि । लग्गहु मग्गि सिग्घु ईय जंपिर, पत्त अमर हरि पासि अकंपिर ॥ १४४५ ॥ अह झत्ति सुरेसरु, नवजलहरसरु, पालय अमरु समाइसइ । वेउव्वियसत्तिएवर विच्छित्तिए, करि विमाणु जं जगि लसइ ॥ १४४६ तयणु निप्फाइयं तेण सुविमाणयं, जंबुदीवप्पमाणं रमाठाणयं । पंचजोयणसहस्साई उव्विद्धयं, वज्जमयवेईया वलयपरिणद्धयं ॥ १४४७ ॥ नीलमणिकिरणभरइयघणडंबरं, पउमरायप्पहापिंजरियअंबरं । अनिलरिखोलणारणियकिंकिणिधयं मोत्तिउकुलविच्छित्तिआविद्धयं ॥ १४४८ ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ अणंतजिणजम्मवण्णणं पुप्फपब्भारउवहार-सुहकरणयं, तरणिमणिकिरणविप्फुरियतमहरणयं । मणिमयत्थंभयस्सेणिपविभत्तयं, रयणकयसालहंजीहिं संजुत्तयं ॥ १४४९ ॥ मत्तवारणयरेहंतमणिभत्तियं, मणिकरुल्लसियहरिचावचयचित्तियं । कणयकलकालिकंतीहिं दिपंतयं कणिरघंटाचउक्केण सोहंतयं ॥ १४५० ॥ (२) भुवणतयसुंदरु नियवि पुरंदर, तं विमाणु भासियगयणु । जिणपयजुयभत्तउ, सुरयणजुत्तउ, ठिओ पहरिसवियसियनयणु ॥ १४५१ ॥ तो वावीजलविरइयमज्जणु, सुरहिविलेवणकयतणुरंजणु । मउडकडयकेऊरालंकिङ, कुंडलहारकिरणचच्चंकिउ ॥ १४५२ ॥ अमरतरुणि वीयइ सियचामरु, वज्जप्पहरणु तिहुयणडामरु । तत्थारुहिवि भेयविजियासणि, निविसइ सक्कु रयणसीहासणि ॥ १४५३ ॥ (३) तह आरुहइ इंदअवरोहणु, निरुवमरूव कामिमणमोहणु । तह आरूढ इंद-सामाणिय, जे अणवरउ इंदि सम्माणिय ॥ १४५४ ॥ आयरक्खसुरवडिय महाबल करकयखग्गु धणुहसरसंबल । कयबत्तीसबद्धनाडयसुर, तत्थठ्ठिय मणिभूसणभासुर ॥ १४५५ ॥ सह सुरसमदि, गरुयविसर्पि, चलिउं सुरिंदु अउज्झउरि । जहिं अच्छइ जायउ जिणु विक्खायउ वंदिदाणलालसपउरि ॥ १४५६ ॥ तो चलिय केवि सुर ठिय विमाणि करिराए केवि गरुयप्पमाणि । मयराइ केवि केवि गुरुतुरंगि, जंपाणि केवि केवि हु कुरंगि || १४५७ ॥ सद्दलि केवि केवि गरुयसरहि, केवि हु वराहि अन्ने किंकरहि । अवरेक्कसुहासणि रयणजडिए, रहरयणि केवि मणिकणयघडिए || १४५८ ॥ इय जाणचडिय गच्छंति अमर, सियछत्तालंकिय चलिरचमर । धयविजयचिंध-चुंबियनहंत, अच्चब्भुयसिरिवित्थरमहंत ॥ १४५९ ॥ (४) सुरचारणजयजय रव सुणंत, अणवरउ जिणेसरगुण थुणंत । अच्छरगण पेच्छणय इंति इंत, जयतूरसद्दपूरियदियंत ।। १४६० ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ सिरिअणंतजिणचरियं इय अमरेहिं जुत्तउ, वेगि पहुत्तउ, नंदीसरु निय हिययइ धरि । दाहिण पुव्विल्लइ, सिरि सोहिल्लइ, हरि रइकरि अवयरिउ घरि ॥ १४६१ ॥ संहरि सिरिवित्थरू अप्पमाणु, संकोइवि तं गुरुतरु विमाणु । तो चल्लिड जंबुद्दीवु सरिवि, दाहिणउ भरहु नियहियइ धरिवि ॥ १४६२ ॥ लंघंतु गयणुमाणु पवणजवणि, हरि पत्तु सीहसेणस्स भवणि । सविमाणु पयाहिण तिन्नि देवि, भत्तीए सुरेसरु नमइ देवि ॥ १४६३ ॥ ईसाणकोणहि मिल्लिवि विमाणु, जिणु नमइ सपरियणु सबहुमाणु । जिणजणणि थुणइ तो सहसनयणु, गंभीरसरेण पूरंतु गयणु ॥ १४६४ ॥ जयजय चिंतामणिकुच्छिधरणि, जय -भवणदीवउप्पत्तिकरणि । जय महिलवग्ग संपत्तरेहि, जय पणयचरणि दाणवसुरेहिं ॥ १४६५ ॥ (५) जयजय मयगलगामिणि, तिहुयणसामिणि, इय थुणेवि दससयनयणु । देविणु अवसोयणि दुहदरमोयणि, नियगुरुत्त-निज्जय-गयणु ॥ १४६६ ॥ पडिबिंबु ठवइ तित्थयरतणउ, जणणीसमीवि वामोहजणउ । तो पंचरूवु ठिउ झत्ति सक्कु, कयमिच्छदिट्ठिसुरमणधसक्कु ॥ १४६७ ॥ उव्वट्टिवि हरियंदणरसेण, नियपाणिजुयलु नं सियजसेण । तो एक्कि रूवें सामिसालु, करकोसिकरइ हरि सिरिविसालु ॥ १४६८ ॥ छत्तत्तउ वीइई सिरि धरेइ, विहि चमरजुयल चालणु करेइ । पंचमउ वज्जकरु पुरुउ सरइ, जो जिण अभत्तु तसु पाण हरइ ।। १४६९ ॥ (६) तो चलिउ सुरेसरु मेरुमग्गि, गुरुतारइ भरसोहिएसमग्गि । परिवज्जमाण जयतूरविसरु, चलवेगविणिज्जयपवणपसरु ॥ १४७० ॥ लंघतउ दीहरुउव्व-महीहरु, जोयणलक्खु संमूसियउ । गच्छंतु पुरंदरु, पेच्छइ मंदरु, विप्फुरंतमणिभूसियउ ॥ १४७१ ॥ जो सहइ चारुतलभद्दसालु, वणसंडु व बहुमणसुविसालु । दिसि वित्थरंत पहमंडलेण, जिणसंमुहु चलइ जु नियबलेण ॥ १४७२ ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं जो वेढिउ नीलिवणजुएण, नं नठु अइणभंजणभएण । जो कणयकूडविलसंतरयणु, भंडारु व सक्कह रुद्धगयणु ॥ १४७३ ॥ (७) जो कहिं वि भाइ ससिकिरणधवलु, नं जिणसिणाणखीरोयसबलु । जो कत्थइ घणपडिबिंबु वहइ, नं रिट्ठरयणतडजत्तु सहइ ॥ १४७४ ॥ पडिफलिय जस्स तडिचंदतरणि, नं राहुभीय अणुसरियसरणि । वालु व्व जु सिरचूडाभिरामु, रुरु व्व जु तमभरकयविरामु ॥ १४७५ ॥ जोहयहरिसरहिहि, रुरुकरिकरहिहि, संबरसदूलिहिं कलिउ । वरतरुकयवासिहिं, सिहं वयहंसिहिं कोइलपक्खिहिं संचलिड ॥ १४७६ ॥ तहिं एरिसि मंदरि तियसराउ, आरुहइ सबलु गयणसराउ । संपत्तु फलिह-हिमनिम्मलाए, अइपंडुपुव्वकंबलसिलाए ॥ १४७७ ॥ तत्थ ट्ठियम्मि सीहासणम्मि, मणिकिरणजालतमनासणम्मि । पुव्वामुहु तहिं सुरसामिसालु, निवसइ अच्चब्भुयसिरिविसालु ॥ १४७८ ।। (८) उच्छंगि धरइ तित्थयरबालु, करचरणकंतिनिज्जियपवालु । एत्थंतरि ईसाणिदिपमुह सुरवइचलियासणचारुभमुह ॥ १४७९ ॥ नियनाणनायजिणन्हवणसमय, ताडावहिं नियनियघंटसमय । तसु सद्दि सुरट्ठिय अप्पमत्त, जाणिय जिणमज्जण पमयमत्त ॥ १४८० ॥ तहिं जुत्त सुरेसरू, जलहरसमसुर, कप्पवासि नव संचलिय । भवणवइहिं वीसिय, ससि-रविमीसिय, मंदरसिरि सव्व वि मिलिय ॥ १४८१ ॥ एगतीस विनयसिरि तित्थनाह, उवविट्ठ जहक्कमु सिरिसणाह । तो वंतरजोइसईद पत्त, जिणदंसणि वियसियनेत्तपत्त ॥ १४८२ ॥ अह अच्चुइंदि आइट्ठ अमर, जिणनाहचरणतामरसभमर । जिणन्हाणोवक्कमु पउणयंति, हासइ उरि वडु परिव्वयंति ॥ १४८३ ॥ अट्ठत्तरुसहसु सुवन्नमयह, कलसहं कुणंति तह तारक्रयह । एवं चिय रयणविणिम्मियाहं, तह कणयरुप्पपरिकम्मियाहं ॥ १४८४ ॥ (९) Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ सिरिअणंतजिणचरियं घणकंचणमणिनिप्फाइयाहं, रुप्पयमाणिक्कविराइयाहं । भुवणपवित्तमिउकप्पियाहं, चंदणकयाहं गंधप्पियाहं ॥ १४८५ ॥ जह कलसहं सारहं, तह भिंगारहं, अट्ठसहसचउसट्ठ कय । तो ते परमायरि, खीरह सायरि, पत्त अमर सज्जिय सुकय ॥ १४८६ ॥ तहिं भरवि कलसखीरोदयस्स, पूरिवि तहन्ननीरहि पयस्स । जलहीसु जाइं कमलुप्पलाइं, गिण्हंति ताई घणपरिमलाइं ॥ १४८७ ॥ मागह-वरदाम-पहास-सलिल, तह सासयसरिजलविगयकलिल । कुलगिरिवक्खारमहीहरेसु, नइ-कुंड-वण-द्दह-मंदरेसु ॥ १४८८ ॥ कुसुमोसहि-मट्टिय चंदणाई, गिण्हति चित्तआणंदणाई । तो पत्त झत्ति मंदरसिरम्मि, मेल्लंति कलसमणिपट्टिरम्मि ॥ १४८९ ॥ (१०) परिवट्टिवि चंदणविहिय मसिण, कलसेहिं खिवंति सोहंत मुसिण । कलसमुहेसु अमरेहिं कयाई, गंधुद्धरकंचणपंकयाइं ॥ १४९० ॥ विलसिरसिरियक्कमु, न्हवणोवक्कमु, कहिउ अच्चुयइंदह सुरेहिं । जं तुब्भेहिं जंपिउ, भुवणत्तयपिउ, तं अम्हेहिं किउ आयरिहिं || १४९१ ॥ अह अट्ठइ अच्चुयनामधेउ, सुरवइ भुवणुत्तमभागधेउ । तो दस सहस्स सामाणियाण, तेत्तीस वि तायत्तिसयाण ॥ १४९२ ॥ चत्तारि लोगपालप्पहाण, सत्त य अणीयपहु गुणनिहाण । सत्त य अणीयमंदिरुमहस्स, चालीस अंगरक्खह सहस्स ॥ १४९३ ॥ (११) परिसायउ तिन्नि गुरुभत्तिकलिय, ए सव्व वि जिणन्हवणत्थ चलिय ।। जिणपासह पासि जाएवि पणय, नियदेहदित्तिपरिभवियकणय ।। १४९४ ॥ मट्टिय-सव्वोसहि-वरकसाय, कलसिहिं खिवंति उज्झियकसाय ।। देवंसुयकयमुहकोस सव्वि, ठिय जिणह पासि अवसव्वि सव्वि ॥ १४९५ ॥ घणसारि विमीसियउ, अयरि भूसियउ, धूव जिणह उक्खिवहि सुर । बहुमाणुक्कंठिय, चउदिसि संठिय, थुणहिं जोइवंतरअसुर ॥ १४९६ ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ अणंतजिणजम्मवण्णणं एत्थंतरि परिपसरियपराय, कुसुमंजलि सज्जहिं भत्तिराय । केयइ-दलदंतुरबउलकलिय, उज्जिभिय जूहियलालललिय ॥ १४९७ ॥ सयक्त्तपत्तपरिमलपरीय, नवमालइचुंबिरचंचरीय । रत्तुप्पल-कुवलय-पुंडरीय-मचकुंद-कुंद-दलसस्सिरीय ॥ १४९८ ॥ (१२) पफुल्लियमल्लियमहमहंत, नवपारियायमंजरि महंत ।। मंदारपरायविरायमाण, सतूलिदलमीलिय अप्पमाण || १४९९ ॥ दरदलियकलियपाडलपहाण, नवचंपयचयरयभरनिहाण । पक्खित्तससिण घणसारघुसिण आसित्तसुरहिसिरिखंडरसिण || १५०० ॥ अच्चुयसुरसामिउ, मयगलगामिउ, कुसुमंजलि मेल्लइ विमलि । अंगुलिदलकलियंइ, नहसिरललियइ, सिरितित्थेसरकमकमलि ॥ १५०१ ॥ उक्खिविय अट्ठ चउसट्ठि अहिय, कलसहं सहस्स भिंगारसहिय । कित्तिमसाहावियभूरिभेय, उच्चल्लिय अन्निवि विगयभेय ॥ १५०२ ॥ ता तेहिं सिंचिउ भुवणपणउ, जिणु सयलसत्तसिवसोक्खजणंउ । जिणु कणयवन्नु खीरेण सहइ, नं हेमकमलु डिंडीरु वहइ ॥ १५०३ ॥ (१३) वित्थरइ न्हाणपउ मेरुमग्गि, नं जिण जसो हु तिहुयणि समग्गि । नियरिद्धिसरिसु मज्जणु करंति, जिणभत्तिए नियदुरियई हरंति ॥ १५०४ ॥ बहुसंख-अमर-अवरे वि ण्हवंति, जिणु भत्तिभरोग्णय संथवंति । इय पहु अहिसेइ पयट्टमाणि, जायइ सुर पहरिसि अप्पमाणि ॥ १५०५ ॥ तो सोहिय रंगह, भूसण चंगहं, दुरूज्झिय मत्थयवच्छरहं । तित्थयरह अग्गइ, हरइ जु दुग्गइ नटु पयट्टउं अच्छरहं ॥ १५०६ ॥ वज्जंति मंजुगुजंतपडह, नच्चहिं सुरकामिणि रूवलडह । वंसा-रवुम्मिसिय रणहिं वीण, गायंति अमर जिणगुणपवीण ॥ १५०७ ॥ नाडयलउडारसरासएहिं, केवि भत्ति कुणहि पेच्छणसएहिं । केवि वायहिं दुंदुहिढक्कपमुह, आउज्ज पमयवीसंतसमुह ॥ १५०८ ॥ (१४) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सिरिअणंतजिणचरियं तो केवि इंद चालंति चमर, केवि सूलवज्जकर हरहिं डमर । उक्खिवहिं अगरु केवि सघणसारु, केवि धरहिं जिणह सियछतु सारु ।। १५०९ ।। केवि भत्तिजुत्त जय जय करंति, केवि सामिसालगुणमणि धरंति । मणि-कणय-वासकुसुमक्करेण, वरिसंति केवि परमायरेण ॥ १५१० ॥ पेच्छवि गयगामिड, सुरपुरसामिउ, जिणमज्जणजणियायर । अवरे वि अमयासण, विलसिरवासण, नच्चहिं गुणमणिसायर ॥ १५११ । तहाहि - गजंति केवि जि स्वमत्तहत्थि हिंसंति अवर जि स्वहरि सुहत्थि । तड्डुति केवि जि स्व पुट्ठधवल, उल्ललिंहिं केवि जि स्व पवय चवल ॥ १५१२ ।।। धडहडहिं केवि जिम सजलजलय, भमि फिरहि केवि विलुलंतअलय । घणघणहिं केवि जिम रह सचक्क, कूयंति केवि जि सहसचक्क || १५१३ ।। केवि पोक्कहक्क मेल्लहि महंत, केवि दीसहिं हासिं कहकहंत । केवि पाणिचवेडइ महि हणंति, केवि सीहनाय भेरव कुणंति ॥ १५१४ ॥ (१५ केवि उप्पयंति केवि निप्पयंति, केवि पयपहारिगिरि कंपयंति । जिणमज्जणदंसणमयमत्त, इय जाय समग्ग वि सुर पमत्त ॥ १५१५ ॥ इय विरइयमज्जणु, रंजियसज्जणु, अच्चुयइंदु पूएवि पहु । पणमिवि जयसामिड, सिवपुरगामिउ, थुणवि कयत्थउ ठिउ सपहु ॥ १५१६ ॥ तो पाणयइंदाइ सुरिदिहिं, तीसहिं ण्हविउ सतिय सुरविंदिहिं । अह ईसाणइंद निव्वत्तिय, पंचरूवविलसिरतणुकंतिय ॥ १५१७ ॥ एगि उच्छंगइ जिणु भत्तउ, बीइ पहुहु धरइ छत्तत्तउ । दुहुं रूविहिं सियचामर चालइ, अवरि समूलिं दुट्ठ निहालइ ।। १५१८ ॥ (१६) एत्थंतरि सोहम्मु समुट्ठिउ, जगगुरुण्हवणकज्जि उक्कंठिउ । तिण चत्तारि वसह कय मणहर, चउदिसि धवलिमगुण जिय ससहर ॥ १५१९ । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं . १२१ तयणु ताहं सिंगग्गविणिग्गय, खीरह अट्ठ धार नहि संगय । एक्कक्कालु निवडहिं जयसारह, सामिहि सिरि संसारुत्तारह ॥ १५२० ॥ तो हरि परिवारि संजुत्तउ, जिणु अहिसिंचइ ठिउ उवउत्तउ । जिम अच्चुयइंदि अहिसित्तउ, तिम जलि जिणु सक्केण वि सित्तउ ॥ १५२१ ॥ अइगुरु विच्छित्तिए, निम्मलभत्तिए, विरइवि तिहुयणपहु ण्हवणु । पुन्नेक्कनिबंधणु, सुहसिरिवद्धणु, दुरियरेणुनासणपवणु ॥ १५२२ ।। तो गंधकसाईए सामिसालु, लूहिउ सव्वंगिउ गुणविसालु । आलिंपिउ हरिचंदणरसेण, भूसणेहिं विभूसिउ पहरिसेण ॥ १५२३ ॥ पूर्वउ पणवन्नेहिं सुमणसेहिं, परिहाविउ वत्थहिं सुमणसेहिं । तो सक्के अप्फुडियक्खएहिं, अक्खंडिहिं सालिहिं चोक्खएहिं ॥ १५२४ ।। (१७) दप्पण-भद्दासण-वद्धमाण-मच्छय-सिरिवच्छ गुरुप्पमाण सुहसत्थिय-नंदावत्त सहिय, कलसिं जुय मंगल अट्ठ लिहिय ॥ १५२५ ॥ पेच्छवि सामि तिहुयणसलोणु, उत्तारिवि सक्कु सनीरु लोणु । असमाणु भत्तिभरु चित्ति धरिवि, मंगलपईवु पूयत्थुकरिवि ॥ १५२६ ॥ नियपरियणि सहियउ, सुरयणि, सहियउ, न्हविय जिणेसरनररयणु । पणमिवि पहुचरणहं, भवभयहरहं, थुणइ भत्तिवियसियनयणु ॥ १५२७ ॥ जय सिरिसीहसेणनिवनंदण, जय सिवमग्गलग्गजणसंहण ! जय पहु सुजसादेवितणुब्भव, जय तिहुयणपुहु ,जिण अपुणब्भव ! || १५२८ ॥ जय संसारसिंधुसंतारण, जय पयपणयमोक्खसुहकारण । जय नाणत्तयनायजयत्तय, जय कुवलयदलदीहरनेत्तय ॥ १५२९ ॥ (१८) जय निरुवमलायन्नसमन्निय, जय उत्तम रूविं जयवन्निय । जय अकलंकपुन्नचंदाणण, जय पहु पावहत्थिपंचाणण ॥ १५३० ॥ जय नियदंसणतिहुयणरंजण, जय दुग्गइसमुत्थभयभंजण । जय नयपुन्नपयइपरिवद्धण, जय सासयसुक्खेक्कनिबंधण ॥ १५३१ ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ सिरिअणंतजिणचरियं जय मयगलगामिय, तिहुयणसामिय, सयलसत्तहियसंजणय । जिण भवभयनासणु, जणियसुवासणु, होज्ज मज्झ तिहुयणपणय ॥ १५३२ ॥ इय थोऊण जिणिंदं भत्तिवसुल्लसियपुलयकलियंगो । करजाणुभालसंमिलियमहियलो सामिणो पयओ ॥ १५३३ ॥ इय काउं जिणमज्जणमसमपमोएण नियपहुत्तस्स । सहलत्तं कलयंता सपरियणा उठ्ठिया इंदा ॥ १५३४ ॥ नच्चेउं पारद्धा भुयसाहासहसरुद्धदिसियक्का । करयलपल्लवियनट्ठा, नहप्पहा कुसुमभरकलिया ॥ १५३५ ॥ गुरुयबहुमाणवियसियनयणब्भमरउलसोहिया दूरं । पवणुल्लासिय, कप्पडुमोहलच्छि विडंबंता ॥ १५३६ ॥ (कुलय) इय करणंगहारब्भमि-भमुहाभंगसंगयं नटें ।। सव्वे वि नयजिणिंदा इंदा नंदीसरं पत्ता ॥ १५३७ ॥ रईऊण पंच रूवे, सक्को एक्केण धरइ जिणनाहं । चमरे छत्तं वज्जं, दोहिं एक्केणमेक्केणं ॥ १५३८ ॥ तो नियपरिवारविमाणविंदपच्छाइयंबरो पत्तो ।। नयरि अउज्झाए, सूइमंदिरे गुरुयवेगेणं ॥ १५३९ ॥ पुहुपडिरूवगमवसारिऊण, मोत्तुं जिणं जणणिपासे । अवसारिय अवसोयणिविज्जं तं पणमए सक्को ॥ १५४० ॥ खोमजुयम्मि फासं, जिणस्स ऊसीसयम्मि संठवइ । कुंडलदुगं च मोत्तिय, हीरयराइं विहियसोहं ॥ १५४१ ॥ नहलंबूसगमेगं, रयणमयं लंबिमोत्तिउ ऊलं । नयणालोयट्ठाणे, अवलंबइ पहुविणोयत्थं ॥ १५४२ ॥ आणवइ ये वेसमणं, बत्तीसं मणि-हिरन्नकणयाणं । पत्तेयं कोडीओ, जिणजणयगिहम्मि पक्खिवसु ॥ १५४३ ॥ नंदाणं भद्दाणं बत्तीसा आसणाण वियरेहि । तह वत्थघुसिणघणसारचंदणाणि य समुवणेहिं ॥ १५४४ ॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ अणंतजिणजम्मवण्णणं आएसो त्ति भणित्ता, जंभगदेवेहिं सो समगं पि । तं काराविय सक्कस्स, सव्वमवि नमिय विन्नवइ ॥ १५४५ ॥ नियअहिओगियदेवे, सक्को आणवइ घोसह पुरीए । अमरा चउव्विहा वि हु, कलत्तजुत्ता निसामेह ॥ १५४६ ॥ जिणजणणीए जिणस्स ववरिही नियमाणसे वि जो असुहं । होऊण सत्तहा से सीसं, फुडिही न संदेहो ॥ १५४७ ॥ तो तं नयरं तिय-चचराइट्ठाणेसु घोसिउं तेहिं । आगंतुं विन्नत्तं, पुरओ अमराहिरायस्स ॥ १५४८ ॥ जिणजम्मूसवकरणा, पवित्तमत्ताणयं परिकलंतो । नंदीसरम्मि पत्तो, सक्को सद्धिं नियसुरेहिं ॥ १५४९ ॥ सासयजिणपडिमाणं, काउं अट्ठाहियामहं तस्स । सक्काइया सुरिंदा, सव्वे वि गया सट्ठाणेसु ॥ १५५० ॥ छ । सिरिअम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । भणिओ अणंतचरिए, दुइज्जओ जम्मपत्थावो ॥ १५५१ ॥ (अनंतजिणचरियम्मि तइअपत्थावो) । तो पाहाइय-वज्जंतमंगलाउज्जजाय-पडिबोहा । वियसंतदीहिदिट्ठी, देवी अवलोयए पुत्तं ॥ १५५२ ॥ नवपारियाय-मंजरिपसरंतामोयचलिरअलिजालं । तणुतेयभयुब्भंतब्भमंतरयणीभवतमं व ॥ १५५३ ॥ अइनिद्धमुद्धदीहच्छि-पेच्छणुच्छलियधवल-जोण्हाए । पूरंतं वासहरं, भुवणं केवलसिरीए व्व ॥ १५५४ ॥ अच्चंतसोणसामलमणिभूसणकिरणनिग्गमच्छलओ । भाविअवायभएणं, व रागद्दोसेहिं मुच्चंतं ॥ १५५५ ॥ उव्वहमाणं सव्वंगसंगयं, थूलमोत्तियाभरणं । सुरगिरिसिणाणलग्गं, दुद्धोदयबिंदुजालं व ॥ १५५६ ॥ (कुलयं) संजायमणिमिसत्तं, परिपेच्छंतीए पुत्तयं तीए । जिणजोगे सिद्धत्तं, पि होइ दूरे अणिमिसत्तं ॥ १५५७ ।। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ सिरिअणंतजिणचरियं विन्नायपुत्तजम्मा, दासी-दासंगरक्ख-कंचुइणो । जंति निवं वद्धाविउमन्नोन्नजया य वरएण ॥ १५५८ ॥ वद्धाविओ निवो तेहिं, पुत्तजम्मेण मणिसहासीणो । तो अच्चंतं तुट्ठो, कस्स न तोसाय कुलवुड्ढी ॥ १५५९ ॥ तो मउड़वज्जवज्जावणद्धआभरणवत्थरित्थाई । दिन्नं निवेण तह ताण ईसरा ते वि जह जाया ॥ १५६० ॥ आइट्ठो य पुरीए पडिहारमुहेण पुत्तजम्ममहो । पारद्धो य जणेणं, को वा न कुणइ निवाएसं ॥ १५६१ ॥ संमज्जिऊण रत्थासु, दिज्जए कुंकुमोदयच्छडओ । रुणझुणिरब्भमरभरो, खिप्पइ कुसुमुक्करो तासु ॥ १५६२ ॥ पइमंदिरं पि किसलयतोरणसेणीहिं पवणतरलाहिं । लोयाणुरागसिंधु व्व, नज्जए गुरुतरंगिल्लो ॥ १५६३ ॥ घणदाररइयरंगावलीए, रेहति ठाविया कलसा । भाविजिणदिक्खदाणाय सज्जिया कणयनिहिणो व्व ॥ १५६४ ॥ उल्लोयलंबिहारा सकणयकलसा य संचिया मंचा । पवणचलद्धयखलहलिरघग्घरारणियकिंकिणिया ॥ १५६५ ॥ चिंधलयालंबछत्तसिक्करीतोरणावली कलिओ । विहिओ सव्वत्तो च्चिय, पायारो गोउरेहिं समं ॥ १५६६ ॥ चीणंसुय-जद्दर-देवदूस-पडिरवम्म-नम्मनेत्तेहिं । नयरीए समग्गाए, विरइयाओ हट्टसोहाओ ॥ १५६७ ॥ देसो वि कओ रन्ना, उस्सुको उक्कुरो तणयजम्मे । गिण्हिज्जए पक्खीयं, कह मह वा दाणसमयम्मि ॥ १५६८ ॥ कारविया सव्वाण वि, माणुम्माणाण निवइणा वुड्ढी । केत्तियमित्ता अहवा, कुलवुड्ढीए इयरवुड्ढी ॥ १५६९ ॥ रुयाईयं पढंता, छत्ता गच्छंति निवइणो भवणे । निग्गच्छंति य तंबोल-धणकरा तेल्लसित्तसिरा ॥ १५७० ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ अणंतजिणजम्मवण्णणं तुब्भे वद्धावेज्जह, निव-पुत्तुप्पत्तिऊसवेणं ति । जंपता रायभडा, गिण्हंति जणुत्तरीयाइं ॥ १५७१ ॥ पडिमंदिरं पि गज्जंति रायचरियाई वज्जिराउज्जे । दीवूसवे व्व (सव्वे वि भमइ) सिंगारिओ लोगो ॥ १५७२ ॥ पसरंतकिरणभरदूरवलोयभूसणविराईओ राया । उवविट्ठो रयणसिहासणम्मि परमूसवं नियइ ॥ १५७३ ॥ उत्तत्थहरिणनयणीओ, चंदवयणीओ पीणसिहिणीओ । कलहंसगमणाओ, जुवजणसंजणियमयणाओ ॥ १५७४ ॥ वज्जिरवद्धावणयच्छंदपयट्टत-चारुनट्टाई । समरड्ढरईयसिंगारसारया हरियलच्छीओ ॥ १५७५ ॥ मणसम्मयरायाणुगयगीयसरिविजयकिन्नरसराओ । चच्चर-चउक्क-गोउर-तियठाणाहियविलंबाओ || १५७६ ॥ पयचारिणीओ अंतेउरीओ सामंतमंडलीयाण । नियनियनाहेहिं समं, निवइं वद्धाविउमुर्विति ॥ १५७७ ॥ (कुलयं) सामंतमंडलीयातो, ते निव-पाय-पंकयं नमिउं । उवणिंति करि-तुरंगम-रह-वत्थाभरण-कोसल्लं ॥ १५७८ ॥ जंपंति य पहु ! तुन्भे, वद्धाविज्जह महापभावस्स । जम्मेण दिणयरस्स व, सुयस्स सुहयाहियगयस्स ॥ १५७९ ॥ अच्चन्भुओ भविस्सइ, उदओ तुह सामिसाल ! रज्जस्स । कहमन्नहाअमरीहिं देवी सुस्सूसिया देव ! ॥ १५८० ॥ राया वि ताण करि-तुरय-वत्थालंकार-देसदाणेण । अंतेउरजुत्ताण वि, सम्माणं कुणइ संतुट्ठो ॥ १५८१ ॥ अक्खयवत्तट्ठियवस्थभूसणा इंति सेट्टिकंताओ । वद्धाविय निवई जंति, पत्तआभरणवत्थाओ ॥ १५८२ ॥ कंकणसरलुत्तरिया, कुंडल-केऊर-हारलंकारा । वरवत्थाई विविहाइं, पउरलोयस्स दिज्जंति ॥ १५८३ ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ नियगोत्तगुणुक्कित्तणथुइपाढस्सवणजाय आणंदो । राया नियंगलग्गं वियरइ बंदीण सिंगारं ।। १५८४ | वीणा - वेणु - सरुम्मिस्समंजुगुंजंतमद्दलाउज्जं । आइन्नइ गिज्जंतं, नियवंसं सुसरवेसाहिं ॥। १५८५ ॥ करणक्कमभमुहाभंगदिट्ठिसंचार अंगहारेहिं । पेच्छइ पण्णंगणाणं णट्टगोफुरणरमणीयं ॥ १५८६ ।। कित्तिमकुरुवदेहे, फरले उद्दंतुरे य दप्परए । नच्चंते पेरणिए पेच्छइ विडवयणहासकरे ॥। १५८७ ॥ कयमज्झिमुत्तिमाहमपत्तपयट्टंत नट्ट - निवचरिए । नियइ नडे नच्चंते, विलसिर - सिंगारगुरुगव्वे ॥। १५८८ ॥ — वन्नब्भमिभिंगविराइमल्लियाभरणभूसियसरीरे । विलसिरवसंतरायाणुविद्धनियगीयगणे अपरे पडुपडहतालछंदप्पयट्टलउडयपहारकयकमणे । निज्झायइ लउडारसदाणरए तरुणि नवतरुणे ॥ १५९० ॥ ( जयलं) सिरिअणंतजिणचरियं ।। १५८९ ।। छुरियाविज्जाहरमल्लजुज्झतालारसप्पवित्ती । दिट्ठि संठवइ निवो, अवरेसु वि बहुविणो ॥ १५९९ ॥ एवं स्वव्वइयरनिरयवग्गे जणे महीनाहो । सुयदंसणूसुयमणो, सूइगिहं झत्ति संपत्तो ॥ १५९२ ॥ कीरंतसंतिकम्मं, मंत(जं) पिज्जंतपियरसंदोहं । पूइज्जमाणगुरुगुत्तदेवयं रईयबहुरक्खं ॥ १५९३ ॥ कुंकुमविलिंपियंगणमविद्धमोत्तियचउक्ककमणीयं । अंबय-दलकलियमुहट्ठाविय संपन्नमणिकलसं ।। १५९४ ।। दारदुपासनिवेसियसुवन्नमयजू अमुसलसंदोहं । कोसुंभवत्थपावरियउत्तरंगप्पएसं व ॥ १५९५ ॥ तम्मि पविट्ठो अब्भुट्ठियं, पियं भणइ देवि ! उवविससु । अपडुम्मि सरीरे, गोरवस्स करणम्मि कोऽवसरो ॥ १५९६ ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं तीयुत्तं देव ! पयप्पसायओ ता पडुत्तमंगे मे । ता उवविसह त्ति तओ, उवविट्ठो आसणे राया ।। १५९७ । तो दिव्वाभरणालंकियं सुयं अप्पर पिया रन्नो । दोहि वि करेहिं तं धरिय नियइ सव्वंगमवणिवई ॥ १५९८ ॥ गंभीरस्स वि रन्नो, तोसो सुयदंसणा न माइ मणे । उल्लसइ सहेलं किं न जलनिही ससिसुयं छं ॥ १५९९ ॥ उववेसिउं तयं आसणम्मि जंपइ महीवई देवि ! । सव्वंगलक्खणो तुह, तणओ तिहुयणप्फूडो होही ।। १६०० ।। निस्सेसदिसिविसप्पिर अरुणारुणनियसरीरदित्तीए । दीवयपहं हरंतो, न सहइ तेयस्सियाणं व ।। १६०१ ।। पूरंतो दिसिचक्कं कणयमयाभरणफुरियकंतीए । भुवणस्स विईयदाहं कणयं ति पयासइ व्व इमो || १६०२ ॥ वज्जं वसुहाचक्कं पयलग्गाहं कहंति वयमस्स । अम्हे धरंति जे ते वि इव तुमं सेवइस्सं ति ।। १६०३ || ता ससिमुहि ! न दुइज्जा, तिजए वि समत्थि तुह समा रमणी । जा सिविणचउद्दसगं, दठ्ठे एरिस सुयं जणिही || १६०४ || अहमेव पुन्नपत्तं, तिहुयणमज्झम्मि सुयणु ! नऽन्ननिवो । भुवणाभरणं सव्वंगलक्खणो जस्स एस सुओ ॥। १६०५ ।। तीयुत्तं सुकयसमस्सियाण सव्वं पि सामि । संभवइ । दुक्कयकडक्खियाणं, न करे चिंतामणी चडइ || १६०६ || सोऊण पिया जंपिय- सव्वं तप्पमुईओ महाराओ । कारविय पढमवासरसमुचियकिरियाओ बालस्स ।। १६०७ ।। सुयदंसणपरमाणंदरसवसुल्लसियरम्मरोमंचो । गंतुं सहाए उवविसिय लोयसम्माणमायरइ || १६०८ || (जुयलं) सुरवइसंकामियनिययकरयलंगुट्ठयामयरसेणं । मुहनिहिणं नाही पावइ तित्तिं बलो य करिं । १६०९ ॥ १२७ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ सिरिअणंतजिणचरियं तईय दिणे जगगुरुणो गोसपउसेसु तरणिरयणियरा । मंगलगाणपराहिं, पयासिया गोत्तवुड्ढाहिं ॥ १६१० ॥ छट्ठम्मि दिणे नवजोव्वणाहिं नियरूवनिज्जियरईहिं । लायन्नवन्नणिज्जाहिं, सारसिंगारसहियाहिं ॥ १६११ ॥ तठेणीनयणीहिं पंकयवयणीहिं पीणसिहणीहिं । वज्जिरवद्धावणयच्छंदयपयमुतनट्टाहिं ॥ १६१२ ॥ मंगलगाणपराहिं, पेच्छइ लोयच्छिओच्छवकरीहिं । विहिओ छट्ठीजागरमहूसवो पुत्तरमणीहिं ॥ १६१३ ॥ (कुलयं) पत्ते एक्कारसमे दिणम्मि संहरिय असुइकम्मं सो ।। विहियं सुइकम्मं, पहाणपमुहकिरियाहि देवीए ॥ १६१४ ॥ पत्ते दुवालस दिणे, पउणीकाऊण भक्ख-भोज्जाई । भुंजाविऊण मंडलिय-मंति-सामंत-पमुहजणोहो ॥ १६१५ ॥ उत्तमवत्थाभरणेहिं, ताण सम्माणमायरेऊण ।. सव्वाए वि पुरीए, कारवियं महूसवुक्करिसं ॥ १६१६ ॥ मणिदाममणंतं पेच्छिऊण सिविणे इमम्मि गब्भगए । एय जणणी विबुद्धा, जं तमणंतो इमो होउ ॥ १६१७ ॥ इय चिंतिय नरवइणा, दिन्नं नामं सुयस्स अणंतो त्ति । वारातिगमुच्चरिउं, वज्जते मंगलाउज्जे ॥ १६१८ ॥ परिवद्धिउं पवत्तो बालो नयरं व कित्तिपसरो व्व । लालिज्जतो पंचहिं हियाहि धाईहि अणुदिवसं ॥ १६१९ ॥ धरिऊणमभिमुहो, चाडुवयणरयणाहि आलविज्जतो । संचारिय रायंतेउरीहिं, हत्थाओ हत्थम्मि || १६२० ॥ कीलाविज्जंतो मंडलिय-सामंत-मंतिपुत्तेहिं । भत्तीए नमिज्जंतो, चउव्विहामरसमूहेहिं ।। १६२१ ॥ लल्लुरउल्लावपहिट्ठजणणि-जणएहि सव्वविज्जंतो । अंकेसु(स)रिज्जंतो नरिंदसामंतमंतीहिं ॥ १६२२ ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९ अणंतजिणकुमारभाववण्णणं किरियं कारिज्जतो, वोट्टण-चंकमण-चूलकरणेसु । दाविज्जतो य पयाई राइणा अंगुलीलग्गो ॥ १६२३ ॥ वरिसट्ठगप्पमाणो कयाइ नियमित्तमंडलीकलिओ । दिट्ठो रन्ना तो चिंतियं इमो पाढजोगो त्ति ॥ १६२४ ॥ भणियं पहुणा तुब्भे तायमिमं पाढिउं विभावेह । विज्जा विन्नाणाइसु, किंचि अहं सयमवि मुणेमि ॥ १६२५ ॥ राएणुत्तं तुमए, विन्नाया वच्छ ! मह कहं चिंता । आह पहू निम्मलमइ-सुय-ओहीनाणओ नायं ॥ १६२६ ॥ जमइक्कंतं पुव्वं, जमिण्हि वट्टइ भविस्सइ जमग्गे । पेच्छंति दिट्ठिगोयरगयं व तं नाणिणो णूणं ॥ १६२७ ॥ तं सोऊण सहासीण-मंति-सामंत-मंडलीएहिं । जा जा चिंता विहिया, सा सा पयडीकया पहुणा ॥ १६२८ ॥ तयणु नरनाहपमुहो सव्वो वि हु विम्हिओ सहालोगो । लग्गो पहुप्पसंसं काउं कंपंतसिरकमलो ॥ १६२९ ॥ अहह अहो अच्छेरयकरचरिओ सामिसाल ! तुह तणओ । बंभ-विहप्पइ-वाईसरीण, जाओ धुवं पढमो || १६३० ॥ जो चिंतियमित्तं पि हु सुयं व सव्वं पि साहए सक्कं । किं बहुणा अत्थि न तिहुयणे वि एयारिसो अन्नो ॥ १६३१ ॥ जणओ जणणी नयरी, देसो भुवणम्मि नूण सकयत्थं । कल्लाणरयणनिहिणा, जमिमेणमलंकियं सामि ॥ १६३२ ॥ एवं सामी ! अच्छरियकारओ कमपवड्ढमाणतणू । निस्सीमरूवनिज्जियरइरमणो असमसोहग्गो ॥ १६३३ ॥ एसो उच्चधएणं वसंतमासो व्व वियसियवणेण । केवलनाणेण जिणो व्व गयणमग्गो व्व सूरेण ॥ १६३४ ।। सक्केण व सुरलोओ उदारपुरिसो व्व विलसिरजसेण । सप्पुरिसेण व वंसो सद्धम्मेणेव मणुयभवो || १६३५ ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० सिरिअणंतजिणचरियं मोक्खो विव सिद्धेणं सियपक्खछणो व्व पुन्नचंदेण । तिजयजणमणहरेणं अलंकिओ जुव्वणेण पडू || १६३६ ॥ तहाहि - जस्सारुण-चरण-नहुल्लसिरपहा नमिरमहिहरिंदाण । .मसिणियधुसिणरसेण व रंजइ निच्चं पि हु सिराइं ॥ १६३७ ॥ परिवद्धमाणचित्तं, सुकुमारं भूरिविलसिरच्छायं । बहुपुन्नपुरिसविंद, व सामिणो महइ जंघजुयं ॥ १६३८ ॥ सीहस्स व सुसिलिट्ठं, कडीतडं वित्थडं भुवणगुरुणो । सोहइ अईव तुच्छो, मझो पहु भवविलासो व्व || १६३९ ॥ परिविलसिरसिरिवच्छं, वच्छत्थलं भाइ भुवणनाइस्स । भवभमणरीणभविययणदिन्नघणनिव्वुइच्छायं ॥ १६४० ॥ कप्पलयाओ व बाहाओ, जस्स मणिभूसणाभिरामाओ । जायगजणस्स सययं, वंछियफलयाओ जायंति ॥ १६४९ ॥ बहुरयणउम्मियाभा, जस्स करा सायर व्व सोहंति । संख-करि-मयर-मीणुल्लसंतसिरिवच्छसच्छाया || १६४२ ॥ लद्धाउ व्व स्वाहरियअसुर-नर-अमर-लोयलोयणओ । सोहंति सामिणो, कंठ-कंदले तिन्नि रेहाओ || १६४३ ॥ नवपउमगयरयणप्पहाभिरामा विराइ अहरदले । रायकयपत्थाणो व्व नज्जए सामिहिययाओ || १६४४ ॥ आभाइ कुंदकलियावलिसमपहुदंत-पंति-कंतिभरो । हिययुल्लसिरविवेय-खीरोयहिनीरपसरो व्व || १६४५ ॥ पहुणो सरलसहावा, नासा सप्पुरिसचित्तवित्ति व्व । कन्नजुयलं सुवन्नालंकारं सहइ सत्थं व ॥ १६४६ ॥ मुत्ताहलच्छडासारसच्छहो नाहनयणजोण्हभरो । लीलावलोयणम्मि पसरह करुणारसोहो व्व ॥ १६४७ ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ अणंतजिणवण्णणं सइसंपुन्नं पहु-मुहमयंकमो लग्गिउं व संपत्तो । भालच्छलेण अद्धक्खीणतणू सामपक्खससी ॥ १६४८ ॥ सहइ तमालदलालि व्व थूलघणसलिलबिंदुदंतुरिया । मुत्ताजालयकबरा जयबंधवचिहुरकुरवाली ॥ १६४९ ॥ एवं समग्गसोहाधरंग-चंगत्तविजियतिजयजणो । तिहुयणपहू सलीलं कीलइ सह बहुवयंसेहिं ॥ १६५० ॥ दटुं अच्चब्भुयरूवरमणमुल्लसियअसमसोहागं । नरनाह-मंति-सामंत-मंडलीया वि चिंतंति ॥ १६५१ ॥ अम्ह सुयाणं नवजोव्वणाण सव्वंगसुंदरंगीण । जुत्तोऽणंतकुमारो वरो वरो नूण न उणऽन्नो ॥ १६५२ ॥ इय चिंतिऊण नियरूवरामणीयंगविडंबियरइओ । सोहगुवग्गअंगाओ गुरुगुणुल्लासचंगाओ ॥ १६५३ ॥ मयणावली-सुकंता-मयंकलच्छी-जया-विलासवई । चंदसिरी-कामलया-जयावली-पमुहकन्नाओ ॥ १६५४ ॥ . गुरुरिद्धिवित्थरेणं आणेऊणं सयंवराउ सयं । जणयाईहिमणंतो कुमरो वीवाहिओ तत्थ ॥ १६५५ ॥ मज्झम्मि ताण रमणीरयणं मयणावली गुणेक्करिहं ।। सीलसमलंकियंगी अंगीकयरमणिजोग्गकला ॥ १६५६ ॥ वियसियपंकयपरिमलपरिमिलियब्भमरमालपंति व्व । जीसे घणसामलकुंतलेसु कुरुलावली सहइ ॥ १६५७ ॥ जीए मुहे छणचंद व्व जणपियत्तं व लसयलायन्नं । जोण्ह व्व ववयणकंती मउ व्व मयमय-मउतिलओ ॥ १६५८ ॥ रेहति जीए घणसंगया भुयाविचित्ततुंबया विहिया । रइपीइविणोयकए वीणादंड व्व मयणेण ॥ १६५९ ॥ उल्लसिर-सेय-नहसुत्तिकरभरं जीए सहइ करजुयलं । हिययट्ठियपियवीयणचालियसियचामरजुयं व ॥ १६६० ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ सिरिअणंतजिणचरियं पीवरपओहरुच्छंगसंगया मोत्तियावली जीए । मयणगयकुंभजुयले नज्जइ नक्खत्तमाल व्व ॥ १६६१ ॥ हारड्ढियनायगपउमरायपहपूरिया सहइ नाही । रायरसकूवियाई व रंजइ पेच्छइ जणं जीए || १६६२ ॥ जइ हुँतं कयलीणं खंभदुगं कुंकुमारुणं ता से । उवमिज्जंतं वित्ताणुपुव्वकणयाभऊरूणं ॥ १६६३ ॥ नूणं महासईए परागुवरायं पयप्पहारेहिं । पहणंतीए जीए जाओ राओ रयतलेसु ॥ १६६४ ॥ सा सव्वाण वि अंतेउरीणसामित्तपत्तजसवाया । तीए सह विविहकीलारसप्पसत्तो लसइ सामी ॥ १६६५ ॥ नाणुवभुत्तं खिज्जइ, कम्मं जिन्नं ति चिंतिउं नाहो ! ताहिं सह विसयसोखं उवभुंजइ नेव गिद्धीए ॥ १६६६ ॥ कुणइ य कयाइ दाणावगाढ-अइपोढहत्थिकीलाओ । गुरुवेगरंजियमणो कइया वि हु वाहए वाहे ॥ १६६७ ॥ कइया वि हु अमराणीयमणिविमाणेहिं नहयले भमइ । कइया वि पुणोऽलंकियसुवसणो पुरसिरिं नियइ ॥ १६६८ ॥ इय असरिसकोलारसविरायमाणं सुरोहकयसेवं । नियबाहुदंडिचंडिमतणतुलियतिलोयसुहडोहं ॥ १६६९ ।। वसिरं कुमारवासे, अट्ठट्ठमवरिसलक्खदेसीयं । दठूण भुवणनाहं विचिंतए सीहसेणनिवो ॥ १६७० ॥ (जुयल) अच्चंतभत्तसुगुणाणुरत्तसुररायपूयणिज्जपयं । रज्जेण तं कुमारं निवेसिउं जुज्जए मज्झ ॥ १६७१ ॥ इय चिंतिय रज्जोवक्कम निवो कारवेइ जा पउणं । ता सक्काएसेणं अमरा रन्नो तमुवणिति ॥ १६७२ ॥ नियइ निवो मणिकलसे, खीरोयहितित्थदहसलिलकलिए । नंदणकुसुमकसाए महानईणं च मट्टीओ ॥ १६७३ ।। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणवण्णणं १३३ हरियालियहरिचंदणगोरोयणपमुहवत्थुजायं च । तह सव्वुत्तमवत्थाहरणभवं सक्कसिंगारं ॥ १६७४ ॥ सव्वाए वि पुरीए, सुरेहिं देवंगदेवदूसेहिं । लंबंतहाररयणावलीहिं विहिया विविहसोहा ॥ १६७५ ॥ कुंकुमकप्पूरजलेहिं, सिंचिउं गयरया कया नयरी । रइओ य पुप्फपयरो, नवसुरतरुमंजरिभरेण ॥ १६७६ ॥ ठाणट्ठाणे नहट्ठिय, कंचणमयपत्तकलियजलणेण । डझंतागरुकप्पूर-परिमलो पसरइ पुरीए ॥ १६७७ ॥ अंतमुहत्तंतो वि हु, जायमिमं सव्वमवि निवो दर्छ । से पउरपरिवारजुओ अच्वंतं विम्हयं पत्तो ॥ १६७८ ॥ तो रयणमए सीहासणम्मि पुव्वाभिमुहोवविट्ठस्स । दोसु वि पासेसु ठिया पहुणो जणयाइरायाणो ॥ १६७९ ॥ करयलकयवियसियसहसपत्तविलसिरमुहे कणयकलसे । पल्हत्थंति पहुसिरे इठं से वज्जिराउज्जे ॥ १६८० ॥ (जुयल) सोहइ हरिचंदणकयविलेवणो कंचणप्पहो सामी । मंदरगिरि व्व ससहरजोण्हाभरधवलिओ दूरं ॥ १६८१ ॥ सुरवइसंपेसियदेवदूसमणिभूसणेहिं सिंगारो । रइओ तिहुयणपहुणो तो तेण हरि व्व सो सहइ ॥ १६८२ ॥ तो नरवइ-महीवइ-अमच्च-सामंत-मंडलियकलिओ । भूमिलियभालवट्ठो पणओ पहुपायसयवत्तं ॥ १६८३ ॥ तो उवविट्ठो भूमीए, भूवई पत्तिवित्तिमणुसरिडं । कयपाणिकमलकोसो एवं विन्नवइ नवनिवइं ॥ १६८४ ॥ होज्ज जणावज्जणउज्जओ त्ति जंपेमि कह तुमं देव ! । आजम्मं पि नरामर-सुरिंदसेविज्जमाणपयं ॥ १६८५ ॥ सत्थत्थेसु दुहा वि हु गुणिजणसंदेहमवयणंतस्स । कह जंपेमि गुणज्जणपरो भविज्ज ति तुह समुहं ॥ १६८६ ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ पेसिज्ज चरे परमंडलेसु एवं पि असरिसं तुज्झ । तिहुयणभवंत अत्थावबोहखमनाणजुत्तस्स ॥ १६८७ ।। होज्ज नयज्जणजुत्तो त्ति जंपिडं जुज्जए न एयं पि । तुह समुहं सिविणम्मि वि अनायअनयप्पवित्तिस्स ।। १६८८ ॥ ता देव ! तुज्झ सिक्खाविसए णे पावनीयमिव वयणं । निउणं वि भावियं पि हु, न लहइ अवयासमेत्तं पि ॥ १६८९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तह वि हु अम्हाणेक्कं, जगगुरु ! अब्भत्थणं कुणसु सहलं । एय नयपरं करेज्जसु अप्पसमं सव्वमवि लोगं ॥। १६९० ॥ इय भुवणवदं विन्नविय रयणसीहासणे ठिओ राया । भणइ महायणसमुहं आयन्नह मह समाएसं ॥ १६९१ ॥ एक्कग्गमणा एवं आहारेज्जह मणोभिमयफलयं । आराहणे बहूणं तूसइ नेगो वि जेणुत्तं ॥ १६९२ ॥ एगो देवो एगो य सामिओ जाण ताण कल्लाणं दो पक्खे सेवंतस्स होइ चंदस्स व न रिद्धी ।। १६९३ ॥ इहपरभवहियकारी एस पहू तुम्ह सेविओ होही । दाही सिरिमिह लोए भवंतरे सग्ग- अपवग्गे ॥ १६९४ ॥ इय जंपिय कयकिच्चो त्ति नवरई परमतोसमावन्नो | सिद्धी साभिप्पेयस्स, कस्स तोसं न संजण || १६९५ ॥ सव्वाए वि पुरीए जम्मि दिणे देवनिम्मियं विविहं । पेच्छणय - नाडयाइं निवाइलोगो निरिक्खेइ ।। १६९६ ।। इय कारविडं रज्जाहिसेयममरा जएक्कपहुपणया । पुरि- सजणणियच्छरिया, पत्ता सोहम्मसुरलोए ।। १६९७ ।। अम्मा-पिऊणो कईया वि आउअंतम्मि सामिसालस्स । सुहपरिणामवसेणं, सणकुमारेगयाइं जउ ॥ १६९८ ॥ नागेसुं उसभपिया, सेसाणं सत्त हुंति ईसाणे । अट्ठ य सणकुमारे, माहिंदे अट्ठ बोहव्वा ॥ १६९९ ॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणवण्णणं अट्ठण्हं जणणीओ, तित्थयराणं तु हुंति सिद्धाओ । अट्ठ य सणकुमारे, माहिंदे अट्ठ बोधव्वा ॥ १७०० ॥ दुप्पडियाराई हवंति, जणणि-जणयाई इय भुवणसामी । ईसीसि सोयवसओ, जाओ सुविवेयजुत्तो वि ।। १७०१ ।। अह भुवणपट्टू पालइ निरवज्जं रज्जमुज्जमुज्जृन्तो । उवसंतडमरडिंबं जणओ व्व जणस्स हियकारी ।। १७०२ ।। सव्वो वि हु नरनारीनियरो दट्ठूण विलसिरं सामि । अत्ताणं मन्नतो कयत्थमुव्वहइ आणंद ॥ १७०३ ॥ वंसे वि जेहिं न कया, आणा दप्पुद्धरेहिं कस्सा वि । ते वि निवा गुणरागेणमागया सामिसेवत्थं । १७०४ ॥ किंकरकरणि उव्वहरू, जस्स सक्खं सया सुरवरं वि । कीडय - कप्पनरिंदेसु, तस्स अवरेसु का वत्ता ? ।। १७०५ ॥ एत्यंतरे वसंतो संपतो कामि - मिहुणयसएहिं । उग्गीवेणु - वीणा वसंतराएण रमणीओ ॥ १७०६ ॥ कुसुमोहेण वणाई छाइयपत्ताइं जत्थ सोहंति । हिमगिरिपक्खपुडाई व हरिवज्जपहारपडियाई ।। १७०७ ॥ पडलाई पि व फेणस्स अमरनिम्महियखीरजलनिहिणो । सरयसमयुब्भवाइं अब्भाई व निवडियाइं नहा ।। १७०८ ।। (जुयलं) अनिलचल - चयमंजरिरयपसरो मल्लियाकलियकलिओ । चंदोदओ व्व दीसइ विलसिरमुत्ताहलो जम्मि ॥ १७०९ ॥ पवणुप्पाडियसियसामकुसुममिलमाणरेणुपंतिदुगं । गंगा-जउणीवेणी संगममिव पयडए जत्थ ॥ १७१० ॥ वियसिय अंबयरयपिंजराओ भमरावलीओ विलसंति । जत्थुज्जाणसिरीणं कंचणमयभूसणाई व ॥ १७११ ॥ अलिरवगुंजिरपडहो कोइलकलरावमंगलुग्गारो । आयन्निज्जइ जम्मि, वम्महरज्जाहिसेय व्व ॥ १७१२ ॥ १३५ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ सिरिअणंतजिणचरियं रंजंति दिसाओ जम्मि किंसुया कुसुमरेणुपसरेण । रत्ता रंजंति परं पि अहव पुरिस व्व महिलाओ || १७१३ ॥ कयकुसुमवणससंगा वि हु महुलिहसंगं पि कुणइ वणलच्छी । अहव न जडासयाणं महिलाणेक्केण संतोसो ॥ १७१४ ॥ से पाविय मुहुमासा वणराई वियसिया न उण जाइं । महुमासपसंगे होइ नेव तोसो सुजाईणं ॥ १७१५ ॥ चिरचुंबियं पि जाई चइय अली चूयमंजरिं सरइ । मलिणसहावाणऽहवा कत्तो पडिवन्ननिव्वहणं ? || १७१६ ॥ बउलवणाई वियसियकुसुमप्पन्भारपिंगछायाई । कंचणविणिम्मियाई व जत्थ य सोहंति सव्वत्तो ॥ १७१७ ॥ एवंविहे वसंते वियंभिए भुवणजणमणाणंदे । भुवणपहू सक्काभरणरईयसिंगाररमणीओ ॥ १७१८ ॥ सिंगारियंगनरनाह-मंति-मंडलियकलियअत्थाणे । उवविट्ठो सीहासणमलंकरेउं फुरियरयणं ॥ १७१९ ॥ एत्थंतरम्मि मोत्तियवज्जावलिकलियकणयदंडकरो । पडिहारो हारोहालंकियदेहो नमइ नाहं || १७२० ॥ विन्नवइ य भालयलग्ग-करकमलकोसकमणीओ । उज्जाणपालओ पहु ! बउलो तुह दंसणं महइ ॥ १७२१ ॥ मुंचसु तमिय पहुत्ते मुक्को सो तेण पविसइ सहाए । सीमंतचुंबिमणिकुट्टिमो, पहुं नमइ भत्तीए ॥ १७२२ ॥ एक्केक्कं तुरियपियंगु-बउल-वियइल्लकलियपरिकलियं । पुरओ मुत्तुं मरगयकंचणमुत्तामणिमयं च ॥ १७२३ ॥ कंकणकिरीडकुंडलकंठे केऊरहाररमणीयं । चारुवसंताभरणं तो सो, विन्नविउमारतो ॥ १७२४ ॥ (जुयलं) विलसंतपया वियसंतअंबया फणसफलथणी सुहया । पुहु ! तुह संगममिच्छइ उज्जाणसिरी पिययम व ॥ १७२५ ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणवण्णणं १३७ विहसियरत्तासोया, कलकंठरवा पकामकलिया य । सामि ! वसंतसिरी वि हु पिय व्व तुह संगमहिलसइ ॥ १७२६ ॥ ता देव ! ताओ माणह माणह रुवाओ मुंचह मुहेव । न सयंवराउ कन्नाउ जं विमुंचंति जगगुरुणो ॥ १७२७ ॥ आयन्निऊण उज्जाणपालविन्नत्तियं पणयपहुणो ।। निव-मंति-मंडलेसर-सामंता विन्नवंति इमं ॥ १७२८ ॥ काऊण पसायपरं चित्तं आरामपालविन्नत्तिं । सहलं कुणंतु पहुणो गमणेण वसंतकेलिकए || १७२९ ॥ कोऊहलावलोयणविमुहो वि सहाजणोवरोहेण । मन्नइ तमकामा वि हु कुणंति गुरुवो परुत्तं पि || १७३० ॥ काउं कयत्थमुज्जाणपालयं बहुपसायदाणेण । रइडं वसंतकुसुमाभरणेण समग्गसिंगारं ॥ १७३१ ॥ तो भूवइ-सेणावइ-मंडलि-महाअमच्च-सामंता । थइयावहंगरक्खपडिहारप्पमुहपहुणो य ॥ १७३२ ॥ तह सेट्ठि-सत्थवाहेसरा वि सिंगारगारवग्घविया । संतेउरी सपउरा सपरियणा गरुयरिद्धीण ॥ १७३३ ॥ करि-तुरय-रह-सुहासण-लंघिणिया-बहिल-नरविमाणाई । आरुहिउं संपत्ता सव्वे वि नरिंदपासाए ॥ १७३४ ॥ तो जगगुरुणो मणिभूसणेहिं समलंकिओ विजयहत्थी । उवणीओ करिपहुणा भणिओ आरुहह पहुणो ति ॥ १७३५ ॥ एत्थंतरम्मि चुन्नियमुत्ताहलदलविणम्मियंगो व्व ॥ अणवरयगयणगंगाजलण्हाणसेयदेहो व्व ॥ १७३६ ॥ बहुकालखीरनीरहिनिवाससंजायधवलियमगुणो व्व । सव्वंगसमालिंगियनियबंध व्व अमयमिस्सो व्व ॥ १७३७ ॥ रणविजियसमग्गकरेणुरायसंजायकित्तिकलिओ व्व । गोसीसचारुचंदण-रसरईयविलेवणसिओ व्व ॥ १७३८ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ सिरिअणंतजिणचरियं वरअमरकहियजयपहुवसंतकीलागइप्पहिछेण । एरावणहत्थी पहुचडणत्थं पेसिओ हरिणा ॥ १७३९ ॥ (कुलयं) रंभुव्वसी-सुकेसी-तिलुत्तमा-मंजुघोस-पमुहाओ । अच्छरसाउ वि असरिससुरयणं समलंकियाउ तिहा ॥ १७४० ॥ गंधव्वनट्टरूवाणीयदुगं पि हु महाविभूईए । पेसवियं पहु-पासे सिंगारविरायमाणंगं ॥ १७४१ ॥ इय सुरसेणाहिवई नमिउं विन्नवइ तिहुयणेक्कपहुं । जगगुरु ! अम्हे तुम्हाण पेसिया भत्तिकरणत्थं ॥ १७४२ ॥ ता निययारुहणेणं, एरावयगयवरं अलंकरह ।। इय भणिय कणयघंटारवरम्मं सो तमप्पेइ ॥ १७४३ ॥ आरुहइ पहू नक्खत्तमालियालंकियं नहं व तयं । विलसंतपुक्खरकरं खीरोयसुधं सरीरं व ॥ १७४४ ॥ परिविलसिरआरोहं सलीलगमणं वरमणिनियरं व । कुंदुज्जलचउदंतं, सिंगारिभुयंगवयणं व ॥ १७४५ ॥ तो तम्मि समासीणो, सामी चामीयरप्पहो धवले । सहइ सरयब्भयग्गे, थिरट्ठिओ विज्जुपुंजो व्व ॥ १७४६ ॥ चलियमधरियं पि सयछत्तं मुत्तावच्चूलसिरंतं । सारयछणरयणीयरबिंबं किरणोलिकलियं व ॥ १७४७ ।। रंभा-तिलुत्तमाकरचालियचमरा सिया सुवन्नपहं । मंदरमिव पहुदेहं छणचंदकर व्व धवलंति ॥ १७४८ ॥ चलिओ जएक्कनाहो, गयघडगयरायविंद-कयवेढो । वरतुरंगमारूढो पाढयमंडलियमंडलिओ ॥ १७४९ ॥ सामंताहिट्ठियरहचलंतहयगीवघग्घरालिरवं । निसुणतो चक्कारयकंसियवयाकिंकिणिसणं व ॥ १७५० ॥ चावल्लभल्लभल्लीसव्वलकुंतासिसत्तिहत्थेहिं । सेविज्जंतो पुरओ, चलंतपाइक्कचक्केहिं ॥ १७५१ ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ अणंतजिणवण्णणं भूमीए बलं गयणम्मि खेयरा तदुवरिम्मि अमरयणो । . तिहुयणमिव संचलियं, भत्तीए समं भुवणपहुणो ॥ १७५२ ॥ माऊरमेहडंबरनवरंगयासयछत्तविंदेहिं ।। चिंधालमवलंबिवएहि य अलंकरितो गयणगब्भं ॥ १७५३ ।। सुरविज्जाहरचारणगणेहिं जय जय थुईहिं थुव्वंतो । उववूहिज्जंतो जय जीव चिरं इय जणासीहिं ॥ १७५४ ॥ अवलोयंतो तुंबुरुगंधव्वाणीयजणियमइरम्मं । बत्तीसबद्धपत्तप्पयट्टनटें सुरिंदस्स ॥ १७५५ ॥ सिंगारसारघणसिहिणखेयरीनियरनिम्मियं सामी । पेच्छंतो पेच्छणयं, च नच्चणी नट्टरमणीयं ॥ १७५६ ॥ छुरिया विज्जाहरनट्टनच्चणासत्तरम्मरमणियणं । तरलियच्छरियानियरं पुरिविवणिपहम्मि पेक्खंतो ॥ १७५७ ॥ घर-पुर-पायारावणसेणीसिरसंठिएहिं पुरिसेहिं । पणमिज्जंतो भामियवत्थं नारीहिं थुव्वंतो ॥ १७५८ ॥ .. ढक्का-दुक्का-तंबक्क-दुडुडुडीडउंडि-डमरु-संखेहिं । वज्जतेहिं सामंता, पूरितो सव्वबंभंडं ॥ १७५९ ॥ पुरतियचउक्कचच्चररच्छापेच्छणयविरईयविलंबो । पत्तो तिहुयणसामी वियसियबउलम्मि उज्जाणे ॥ १७६० ॥ घणतरुरविरुद्धकरप्पसरे वियइल्लकोरयुक्केरो । तारयभरो व्व दुग्गे व्व, जम्मि दिवसे वि विप्फुरइ ॥ १७६१ ॥ जम्मि य कुसमियकिंसुयरत्तासोउब्भवो रयप्पसरो । राओ व्व समुल्लसिओ नियमित्तवसंतमिलणेण ॥ १७६२ ॥ जम्मि बहुकुसुमियदुमचुंबणकज्जम्मि भमइ भमरउलं । तिणगणियसूरकरभयमुभि निय तिमिरपडलं व ॥ १७६३ ॥ तम्मि प्पविसइ सामी तिहुयणजणजणियजयजयारावो । पच्चक्खाहिं वणदेवयाहिं कयमंगलायारो ॥ १७६४ ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० इत्थंतरम्मि तत्थुज्जाणे रिउछक्कसविसेसमवइन्नं । जयपहुसेवणकज्जे तप्पहूदेवाणुभावेण ॥। १७६५ ॥ तो भूमितलंतभालो बउलो आरामिओ नमिय सामि । विन्नवइ देवरिउछक्कमेवमवलोयह कमेण । १७६६ ॥ ताहि - सिरिअणंतजिणचरियं पहु ! सहयारदुमसंडमंडली मंजरी रयप्पसरो । वित्थरइ भुवणगब्भे तुह विसयजणाणुराओ व्व ॥ १७६७ ॥ अंबवणट्ठिअ कोइलकुलकलकलयलरवच्छलेण तुमं । से थुणइ तिजयनायग ! भत्तीए वसंतरिउराओ ।। १७६८ ॥ तो य देव ! तुज्झप्पयावविजिओ व्व गिम्हरिउराओ । पहु-पयसेवणपत्तो, उवयाणं दंसए एवं | १७६९ ॥ वियसावियं इमेणं तुह सेज्जत्थं सिरीसदुमविंदं । सिंगारकए पाडलतरुणो वि वियासियाणेण ॥ १७७० ॥ एत्तो य रईय अहिणवघणविंद गज्जिनच्चिरमऊरं । हरिधणुगणरमणीयं वलायमाला लसंततलं ॥ १७७१ ॥ भुवणाहिव ! तुज्झ पविसिरस्स हरिखरखुरक्खयं धूलिं । गंधजलच्छडएणं, उवसमेइ पाउसो एसो ॥ १७७२ ॥ एत्तो य पुणो सरओ, उवायणे कुणइ पहु ! कमलकोसं । धवलईय तुह जसेण व, दिसिचक्कं सरवियासेण || १७७३ ॥ वित्थारइ तुह सियदंतपंतिकंतिं व चंदजोण्हाए । वियरइ तुमं व तोस, एसो वि हु रायहंसाण || १७७४ | एतो पुण हेमंतं, पहु ! पसस्सोवसोहियं पेच्छ । अप्पाणं पिव परिपुट्ठलट्ठवसहासियुल्लासं ॥ १७७५ ॥ पीवरसुपक्कनारंगि-वण- फलारुणियवणपएसेण । पयडी करेइ एसो, पहुणो नियभत्तिरायं व ॥ १७७६ ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणवण्णणं १४१ एत्तो य सामि सिसिरो, पहु ! वणपत्तभत्तिउक्करिसा । उल्लसिरकुंदकलियावलिछडाल पयडए पुलयं ॥ १७७७ । विलसिरफलिहदलोवमहिमखंडेहिं अईवविमलेहिं । पहुणो मणस्स दंसइ व एस अच्चंतसच्छत्तं ॥ १७७८ ॥ इय सामिसालसेवं, कुणंति मित्त व्व तुज्झ रिउणो वि । अहव “जयबंधवाणं, अमित्तया नत्थि ति जए वि" ॥ १७७९ ॥ एत्तो य दाडिमी देव ! फुट्टफलदिस्सबीयपंतिदुगा ।। हसइ व्व पहिट्ठा तुम्ह दंसणे दंतपंतीहिं ॥ १७८० ॥ एत्तो सुपक्कलुंबी, नालियरी सामि ! सग्गसाहाहिं । दइएण पीणसिहिणी पिय व्व बाहाहिं पस्सित्ता ॥ १७८१ ॥ एत्तो य दाडिमी-दक्ख-कयलि-खज्जूरि-नालिएरीओ । दिति जणाण फलाई, सिरी सुपत्ताण परकज्जे ॥ १७८२ ॥ एत्तो वि हु कंकोलय-एला-कप्पूर-कुसुमतरलणओ । पवणो वि ट्ठिओ सुरही, सुमणसुसंगे न कस्स गुणो ॥ १७८३ ॥ एत्तो पुप्फवईओ, विरमंति लईयाओ सामि ! छच्चरणा । अहवा “महुपाईणं, कज्जाकज्जे कओ बुद्धी” ॥ १७८४ ॥ एत्तो य देव ! कुसुमावचयं कुव्वंति कुसुमियलयासु । लीलावईओ लीला चलक्कमा रणिरमंजीरा ॥ १७८५ ॥ एयाणं गुणजोगो होही ताहं इमाई गिण्हिस्सं । इय भाविऊण गुणअत्थिणि व्व कुसुमाई लेइ इमा ॥ १७८६ ॥ हरइ अहरस्सिरि मे, एयं ति पवत्तमच्छरभर व्व । उच्चिणइ सहत्थेणं, बाला बंधूय-कुसुममिमा ॥ १७८७ ॥ एयाई सुवन्नाई कज्जं, मज्ज वि सया सुवन्नेण । इय चिंतिउं व गिण्हइ पहु ! एसा वन्नकुसुमाइं ॥ १७८८ ।। उत्तमजाई एसा, तामह जुज्जइ इमं परिग्गहिउं । . इय भावेउं व इमा, तं नियकरगोयरे कुणइ ॥ १७८९ ॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ सिरिअणंतजिणचरियं एत्तो पहु ! दक्खामंडवम्मि, कयलीहरंतरम्मि ठिया । मज्जं पियंति सह पिययमाहि सिंगारिणो केइ ॥ १७९० ॥ गायंता वि सदुक्खं रुयंति कुव्वंति न च्चिराचिरणं । खामंति य पयलग्गा, पीयमहूणऽहव न विवेओ ॥ १७९१ ॥ पत्तो य विलसिरपया, कुवलयनयणा वियासिकमलमुही । चक्कमिहुणत्थणी कामिणि व्व सरसी तरंगभुया ॥ १७९२ ॥ तीरट्ठिय एगंतरिय-हंस-जलवायसावली वलया । वणस्सिरी कयमोत्तियरिट्ठालंकारकलिय व्व ॥ १७९३ ॥ भुवणाहिडें एसा कणयपंकयासीणभमरविंदेहिं । कणयट्ठियनीलमणीहिं, रेहए भूसियंगि व्व ॥ १७९४ ॥ तडनियडप्पडिबिंबिय, वडसाहा पक्कफलभरं धरिउं । एसा आमिसलुद्धं मीणउलं सामि ! वेलवई ॥ १७९५ ॥ (कुलयं) इय दंसंतो बउलो, पहुणो उज्जाणवइयरे विविहे । सह जगगुरुसुरकरिणा, सो सरसीपालिमारूढो ॥ १७९६ ॥ एत्थंतरम्मि सक्काएसागयपालयाभिह सुरेण । रइयं ति भूमियं रयणमंदिरं पालिसिहरम्मि ॥ १७९७ ॥ जं सच्छफलिहतलगिहसिहरट्ठिय पंचवन्नमणिभवणं । पहु पुव्वपरिचएण व पतं पुप्फोत्तरं विमाणं ॥ १७९८ ॥ जं चउपासप्पसरंतरयणकिरणालिफुरणदुनिरिक्खं । नज्जइ संखाइक्कंतसूरपरमाणुघडियं व्व ॥ १७९९ ।। मणिथंभयग्गठियसालिहंजियाविजियपोढरमणियणं । उल्लोयपलंबिरमोत्तियावलीचंदकिरणिल्लं ॥ १८०० ॥ मणिभित्तिभायभासंतमत्तवारणयनयणनियरेणं । अवलोयंतं व वसंतऊसवुक्करिसमइहरिसा || १८०१ ॥ जं डज्झिरकप्पूरागरुब्भवं धूमपडलमुग्गिरइ । ठाणट्ठाणरइयारिट्ठरयण-भवणकंतिजालं व ॥ १८०२ ॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३ अणंतजिणवण्णणं जं कणय-कलसमंडलअलंकियं रयणजणियगयसीहं । रणज्झणिरकिंकिणी-खलहलंतघरघरयधयमालं || १८०३ ॥ तस्संतो वज्जावलिमुत्तालीकलियकणयचउदंडा । कलहंस-रोममयतूलिया जुया विरइया सिज्जा ॥ १८०४ ॥ मझे विणयाऊसीसयूसिया उन्नया य पायंते । सरिपुलिणपवित्थारा, विलसिरगंडोवहाणा य ॥ १८०५ ॥ तो सो नहेण गंतुं, पणमिय जयबंधवं भणइ सामि ! । इह चंदसालिया कयदोला सिज्जाए वीसमह ॥ १८०६ ॥ तो सुरवइ-सेणावइ-भुयाविलग्गो नहेण भुवणगुरू । देवाणुभावओ तं सेज्जुच्छंगं समारूढो || १८०७ ॥ जगगुरुपत्ताएसा कीलं कुव्वंति निवइणो हिट्ठा ।। सामंतमंडलेसर-पउराईया वि सकलत्ता ॥ १८०८ ॥ एक्कं मणि-पयवीढे, बीयं तज्जाणए ठविय पायं । करकलियकेलिकमलो जणकीलं नियइ जयनाहो ॥ १८०९ ॥ तहाहि - के वि सहयारसीहा निबद्धमणिदंडदोलयारूढा । दुग्गयमणोरहा इव, कुणंति आरोहअवरोहे ॥ १८१० ॥ दोलावेगेण असोय-पल्लवे हणइ का वि पाएहिं । नियचरणअरुणया,तुलणगव्विए जायकोउ व्व ॥ १८११ ॥ वलियारएण पाडइ, पट्ठीए पहणिऊण तत्तरुणो । निग्गंथकुसुमथवए वरिएहिं किं इमेहिं ति ॥ १८१२ ॥ भूइकयधवलदेहा विडभासा हासकारिणो फरला । कित्तिमयकयटुडंगा, कत्थइ नच्चंति पेरणिया ॥ १८१३ ॥ वन्नब्भमि अब्भयभासिमल्लियाभरणरईयसिंगारा । वीणा-वेणुस्सरसियवसंतराएण गायंता |॥ १८१४ ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ सिरिअणंतजिणचरियं तालच्छंदाहयलउडयकमन्नासरणिरघग्घरया । रमणीहिं समं तरुणा, कत्थइ लउडारसं दिति ॥ १८१५ ॥ (जुयल) भमिभमिरीओ सिंगारिणीओ लीलावईओ अवरत्थ । करतालदाणरणज्झणिरकंकणया रासयं दिति ॥ १८१६ ॥ पयबाहुबंधढोक्करकत्तरिकरघायजज्जरसरीरा । मुंडियसिरया जुझं कत्थइ पयडंति मल्लभडा || १८१७ ॥ अहमुत्तममज्झिमपत्तविरयणा (कहिति) रायचरियाई । कत्थ वि य नडा नच्चंति नाडयुत्तप्पयारेहिं ॥ १८१८ ॥ सरसीए पविट्ठाओ विलासिणीओ समं विलासीहिं । विरइयवसंतकुसुमाभरणविराइयसरीराओ ॥ १८१९ ॥ कणयमयसिंगयागयजलाभिघाएहिमदयमन्नोन्नं । पहरंति गायमाणा वसंतराएण पहुचरियं ॥ १८२० ॥ कप्पूर-चंदणुम्मिस्ससिंगियारसहया पिएण पिया । जाया सियानिलुड्डियसियपंकयरयधरगि व्व ॥ १८२१ ॥ दइया दइएणन्ना सिंगीगयम(य)मयोदयाभिहया । जं सामलियंगी बहुरत्ता जाया तमच्छरियं ॥ १८२२ ॥ केणइ पियाए खित्तो, लग्गो कुंकुमरसो सवत्तीए । तेणाणुरंजियं पि हु, तीए मुहं सामलं जायं ॥ १८२३ ॥ पररमणिसंगमासयमएण विमलं पि कलुसियं सलिलं । परनारीपरिभोगा, पावइ सत्थो वि कलुसत्तं ॥ १८२४ ॥ रमणीनयणेसु जलेण कज्जलं हरियं विरईओ राओ । सरलाण दोसमवणीय दिति सच्छा गुणं अहवा ॥ १८२५ ॥ गहियं जलेण कुसुमाभरणं रमणीयणस्स सव्वं पि । सवसीकयाओ अहवा, सुरसा सव्वस्समविलिंति ॥ १८२६ ॥ गंधव्वाणीएणं पेच्छणयं पहुपुरो समारद्धं । बत्तीसबद्धनाडयविरईयपत्तप्पयारेण ॥ १८२७ ॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ . अणंतजिणवण्णणं वज्जइ पडहो गुंजइ य तिउलिया मद्दलावली सद्दो । गंभीरो दिसिचक्कं बहिरइ तालाणुसारेण ॥ १८२८ ॥ तुंबुरुकरगयतालाणुसारिसरसाममुच्छणाणुगयं । हुंपिय-कंपिय-मुद्दिय-कागलिकयरायरमणीयं ॥ १८२९ ॥ रायंतराणुवेहाइयसोहं सामिसालगुणगीयं । गायइ सलीणसरं, कलकंठो अमररमणियणो ॥ १८३० ॥ (जुयल) वेणुसरमणुसरंती, अणुवत्तंती य गीयरायरवं । वज्जइ सज्जियसयसंख-तंतिया वल्लई मुहुरं ॥ १८३१ ॥ तालाणुसारिचलचारुनच्चणीचरणघरग्घरालिरवो । पसरइ रसणा किंकिणि-कर-कंकणरणं रवुम्मिस्सो || १८३२ ॥ उल्लसिरभुयलयुन्नमियघणथणं चलणकरणकमणीयं । विलसंतअंगहारं दुहा वि नटुं कुणइ रंभा ॥ १८३३ ॥ सेरह-सरह-मरालय-वराह-सुय-हंस-सारससुहीओ । पीणत्थणीओ अमरीओ विविहरूवेहि नच्चंति ॥ १८३४ ॥ नरभासाए गायंति, नच्चिरीओ, करालकायाओ । अय-एलिगा-विराली-वानरिरूवेहिं काओ वि ॥ १८३५ ।। खुज्जाओ वामणाओ, कविलाओ सलवलंतदंताओ । कालकरालंगीओ, पिसाइयाओ पणच्चंति ॥ १८३६ ॥ इय बहुअच्छरियकर, नर्से अमराण पेच्छिऊण पहू । सव्वुत्तमलोगंगेहि, ताण सम्माणमायरई ॥ १८३७ ॥ भूगोयराण भूमंडलम्मि विज्जाहराण गयणम्मि । अच्छरियकारयाई, पेच्छणयाई पयति ॥ १८३८ ॥ खयरामराण गयणंगणढिओ मणिविमाणसंघहो । सुरलोओ ब्व वसंतच्छणपेच्छणकारणे पत्ते ॥ १८३९ ॥ तिहुयणविलासनिव्वत्तियं, सिंगार-गारवमयं च । कोउय-निकेयणं पि व उज्जाणं सव्वओ जायं ॥ १८४० ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ सिरिअणंतजिणचरियं गीएहिं चच्चरीहिं, रासेहि य मंगलेहिं धवलेहिं । चारणगणत्थुईहिं य गिज्जइ चरियं भुवण-गुरुणो ॥ १८४१ ॥ पेच्छणयाइसु गच्छंति पेच्छयत्थीणि जत्थ जत्थ वणे । चिठेति तत्थ तत्थ य, कोऊहलकीलियाई व ॥ १८४२ ॥ जस्सावलोयणत्थं, सयमेव समेइ तिहुयणिक्कपहू । को तरइ वन्निउं तं, वसंतमासूसवं दिणं पि ? || १८४३ ॥ रंजिज्जंतो सामी वियरइ सुर-असुर-नहयर-नराण । भोगंग-रयण-भूसणदेवंगाईणि वत्थाणि ॥ १८४४ ॥ आयासे वि हु सामी गहणत्थं खिवइ जत्थ जत्थ करं । देवाण भावओ तत्थ तत्थ मणवंछियं लहइ ॥ १८४५ ॥ इय भुवणच्छरियकरं, कीलं अवलोइऊण भुवणगुरू । अट्ठइ दोलासिज्जाओ, तिजय-कय-जय-जयारावो ॥ १८४६ ॥ तयणु सुरेसरसेणाहिवस्स विलसंतभुयलयालग्गो । गंतूण नहयलेणं, सुरकरिणो खंधमारुहइ ॥ १८४७ ॥ छत्तालंकरियसिरो, सुरतरुणी-पाणि-चालिर-चमर-जुओ । मणिमय-विमाणट्ठियऽमर-खयर-पहु-विहिय-परिवेढो ॥ १८४८ ॥ तो रायमंडलेसर-सामंताऽऽमच्च-ईसराईया ।। करि-हरि-रह-बहिल–सुहासणाइ-जाणट्ठिया चलिया ॥ १८४९ ॥ चलिओ सलीलसुररायहत्थि-मंथरगईए गयणेण । सुर-खयर-परिगओ भूचलंतचउरंग-निवचक्को ॥ १८५० ॥ सुरदुंदुहीओ गयणे वजंति महीयले य रायाण । ढक्का-दुक्का-नीसाणपमुहआउज्जसंदोहो ॥ १८५१ ॥ पेच्छणयाई नियंतो, नर-नहयर-सुर-विलासिणि-जणस्स । रिद्धीए पहू पत्तो, नियपासायावयंसम्मि ॥ १८५२ ॥ एरावणाओ उत्तरिय फुरियमणि-रयण-किरणकलियम्मि । सीहासणे निविट्ठो, रयणसहागब्भठवियम्मि ॥ १८५३ ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणवण्णणं तो पहुणा सम्माणिय, विसज्जिया अमर - खयर - नरवइणो । पणमिय पहु पय- पउमा, पत्ता सव्वे वि सट्ठाणे ॥। १८५४ ॥ तिहुयणनाहो निययप्पभाव - उवसंत - डमर - डिंब - भयं । परिपालइ निरवज्जं, रज्जसिरिं पसरियपयावो ।। १८५५ ।। पहुपट्टमहादेवी, कयाइ रयणीकयविरामसमयम्मि । सिविणे नियइ अणतं, करि - हरि - रह - सुहड - रूवबलं ॥ १८५६ ॥ तं दठ्ठे पडिबुद्धा, मुत्तुं सरि- पुलिणपिहुलपल्लंकं । चलिया कंचणमंजीरजायझंकारकमणीया ॥ १८५७ ।। पत्ता सामिसमीवे, उवविट्ठा मणिमयम्मि पयवीढे । विन्नवइ ! देव दिट्ठ, बलं अणंतं मए सिविणे ।। १८५८ ॥ ता सामिसाल ! किमिमस्स होहिही मज्झ सिविणयस्स फलं ? | तो भुवण - पहू पभणइ, पुत्तो तुह होहिही सुयणु ! ॥ १८५९ ॥ आयन्निडं पहुत्तं, तो सा परिओसपूरिया दूरं । तुम्ह पसाया एवं होउ त्ति पयंपिरी चलिया ।। १८६० ।। अंतेउरम्मि पत्ता, सुहेणमुव्वहइ गब्भपब्भारं । जगगुरुपसाय - संपज्जमाणमणवंछियपयत्था ॥ १८६१ ॥ पसवसमए पसूया, सव्वुत्तमलक्खणं सुयं देवी । कोमलकरं सुतारं, सिय- बीया बालचंदं व्व ॥ १८६२ ॥ पुत्तुप्पत्तिपहिठ्ठेण, सामिणा ऊसवुक्करिसपुव्वं । नाममणंतबलों' त्ति पइट्ठियं सिविणमणुसरियं ॥ १८६३ ॥ परिवड्ढइ सोऽणुदिणं, कित्तिप्पसरो व्व निययजणयस्स । सव्वकलाकुसलअज्झावयाण पढणत्थमुवणीओ ॥ १८६४ ॥ परमायरेण तेण वि, पाढिडं सो कओ कलाकुसलो । तो से असरिसलच्छी, दिन्ना पहुणा पहिट्ठेण ॥ १८६५ ॥ तरुणियण-नयण-निव्वुइकारणनवजुव्वणोवलंकरिओ । कुमरो अमरो व्व विभाइ, भासुराभरणदुनिरिक्खो ।। १८६६ ॥ १४७ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ नरनाह - मंडलेसर - सामंत - सुयाओ रम्मरूवाओ । नवजुव्वणुव्वणाओ, कुमरो परिणाविओ पिउणा ॥ १८६७ ॥ ताहिं सह विविहकीलाविणोयवक्खित्तमणपवित्तिस्स । वच्वंति अमुणियाई, तस्स जयंतस्स व दिणाई || १८६८ ॥ समवयसिंगारिवयस्स, विसरपरिवारपरिगओ कुमरो । उवविसइ जणयपासे, अत्थाणे उभयकालं पि ।। १८६९ ॥ निरवज्जं रज्जसिरिं, परिपालंतस्स तिजयपुज्जस्स । न कयाइ कोइ आणं, हासेण वि से अइक्कमइ || १८७० ॥ भवणवइ - वाण - मंतर - जोइसिय- विमाणवासिणो अमरा । आगंतुं कइयाइ वि, के वि हु पणमित्तु भत्ती || १८७१ ॥ गायंति निम्मलगुणे, नट्टाइं पयट्टयंति परमाई । गच्छंति य सट्ठाणे, काउणमपावमंताणं ॥ १८७२ ॥ (जुयलं ) अह - अन्नया य इंदोवणीयमणिभूसणाभिरामतणू । पावरियनायनिम्मोयमउयदेवंगवत्थदुगो ।। १८७३ ॥ सुरतरुमंजरिसेहरपरिमलपरिभमिरभमरमालाहिं । पावप्पयईहिं पिव, जो नज्जइ बहिं भमंतीहिं ॥। १८७४ ॥ मुहसोहा जियससिणा - उवायणीकयसुतारयालि व्व । जस्स विरायइ वच्छे, थूलामलमोत्तियस्सेणी ॥ १८७५ ॥ नवइंदनील - चूडामणि - किरणा सेहरासिया जस्स । सोहंति मंगलियखित्ता दुव्वादलोहु व्व ॥ १८७६ ॥ जो सव्वंगाभरणप्पहा - परिप्फुरणदुरवलोयतणू । सोहइ कयसन्नेज्जो व्व सव्वतेयस्सिनियरेण ॥ १८७७ ॥ दो पासट्ठियचलकर - कणंतकंकणकराहिं अमरीहं । जो वीइज्जइ ससहरकिरणेहिं व चारुचमरेहिं ।। १८७८ ॥ तस्स जयन्त्तयपहुणो, माणिक्कमहासीहासणगयस्स । सेविज्जंतस्सामर-निव - सामंताइलोएहिं ।। १८७९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ अणंतजिणदिक्खावण्णणं बहुभव्वसत्तपुन्नाण बंधे पुण्णप्पबंधभवणत्थं । गुरुचारित्ताचारयकम्मक्खओवसमजोगेण || १८८० ॥ हिययंतो उल्लसिओ, पहुणो सहस त्ति चरणपरिणामो । तो भुवणभाणुणा इय विभावियं सयमणिच्चत्तं ॥ १८८१ ॥ पडुपवणसमुल्लासियधयवत्थंचलचलाचलं आउं । वरिसाणंतरगिरिसरिरया व सा जोव्वणारंभा ॥ १८८२ ।। नवमेहमंडलप्फुरियविज्जूउज्जोयसच्छहा लच्छी । रमणीयणजोव्वणं पिव लायन्नं पि हु ल्हसणधम्मं ॥ १८८३ ॥ खणरमणीयं रमणीपेम्मं, संझाणुरायफुरियं व । तक्खणविणस्सरं चिय, हरिधणुमिव रम्ममवि रूवं ॥ १८८४ ॥ रयणीसु रहंगाण व, विहडणसीलाओ इट्ठगोट्ठीओ । धुवमिति अवाया इव सत्ताण अणिट्ठजणजोगा || १८८५ ॥ पेच्छंता वि परेसिं, बहुसो सयमवि य अणुहवंता वि । सत्ता तत्तालोयं विणा वराया कहं हुंतु ॥ १८८६ ॥ किच्चं भक्खं पेयं, हेयं एयाई सपडिवक्खाई । जाणइ जणो वराओ, न किं पि गुरुदेसणविहूणो ॥ १८८७ ॥ रागद्दोसवसत्ता, कामायत्ता य मोह-संमूढा । नोऽम्हारिसाण जुत्ता, सत्ता एए उवेहेडं ॥ १८८८ ॥ पावेडं मणुयत्तं परोवयारेक्करसियचित्तेहिं । नो गयनिमीलियाए, हारेयव्वं सुपुरिसेहिं ॥ १८८९ ॥ घेत्तूण सव्वविरई, ता नरयपडंतजंतुसंताणं । अब्भुद्धरेमि केवलदेसणहत्थावलंबेण ॥ १८९० ॥ एत्थंतरम्मि सिरिबंभलोयकप्पट्ठियाण देवाण । अट्ठण्हं कण्हराईणं, तो सुविमाणवासीणा || १८९१ ॥ सारस्सयमाइच्चा वह्नी-वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥ १८९२ ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० सिरिअणंतजिणचरियं इयनामाणं सीहासणाई, चलियाई भोयविवसाण । तो ते नाणवियाणियजिणिंददिक्खागहणसमया ॥ १८९३ ॥ रयणाभरणालंकरियमुत्तिणो देवदूसपावरणा । रणज्झणिरकिंकिणीगणविमाणविंदं समारूढा ॥ १८९४ ॥ पवणमणनयणजइणा जवेण पत्ता अउज्झपुरि गयणं । पेच्छिज्जंताओग्गीवुत्ताणिअनयणलोएण ॥ १८९५ ॥ उत्तिन्ना अच्छीणे, नहलंबावियविमाणसंघट्टा । ते भूरिसूरिकरदुरवलोयतणुतेयभरियनहा ॥ १८९६ ॥ पेच्छंति पहुं तिहुयणअच्चब्भुयपुन्नपयरिसावासं । असरिससिंगारसिरीअहरीकयसक्कचक्कहरं ॥ १८९७ ॥ तो तियसा पयपउमं, नमिउं भूपुट्ठभालवट्ठा ते । रइयकरकमलकोसा, भत्तीए थुणंति भुवणगुरुं ॥ १८९८ ॥ जय पुन्निमरयणीरमणवयण ! गुणगयण ! कमलदलनयण ! । जय अमयमहुरनियसरउप्पाईयतिजयपरिओस ! ॥ १८९९ ॥ तित्थाहिवत्तमाणणकाणण ! वरमइसुयावधितरुण । मेरुगिरिजायमज्जण ! भवभंजण ! सामिय ! नमो ते ॥ १९०० ॥ इय थोऊणं पुणरवि मणिकुट्टिमपुट्ठभालवट्ठा ते । पणमित्तु मउडतडघडियकरपुडा विन्नवंति पहुं ॥ १९०१ ॥ पहु ! मोहमहन्नवमज्जमाणजंतूण जाणवत्तं व ।। अब्भुद्धरणसमत्थं, तित्थं संपइ पयट्टेसु ॥ १९०२ ॥ अइनिम्मलनाणत्तयविन्नायजयत्तयुच्छवत्थस्स । अम्हाण नावरज्जइ जगगुरुजीयंति विन्नत्ती ॥ १९०३ ॥ सव्वेसि पि हु जायइ, सुहावहा देव ! सुपुरिसुप्पत्ती । उदयाचंद-रवीणं आणंदं देंति भुवणस्स ॥ १९०४ ॥ करुणारसेक्कसिंधुम्मि भुवणबंधुम्मि सामिए संते ।। जइ अंतरारिविसरो, उल्लसिओ ता जयं नळं ॥ १९०५ ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ अणंतजिणदिक्खावण्णणं ता सव्वविरइसेन्नं, समलंकिय केवलच्छसच्छेहिं । . हणिऊण भावरिऊणो, तिजयं पि. हु सुत्थियं कुणसु ॥ १९०६ ॥ इय सारस्सयपमुहा विन्नविय सुरा अणंतजिणरायं । पणमेउं संपत्ता सुरालए मणिविमाणेहिं ॥ १९०७ ॥ आयन्निय लोगंतियसुरविन्नत्तिं तिलोयकयसेवो । जणमणवंछियवरिसप्पमाणदाणुज्जुओ जाओ ॥ १९०८ ॥ एत्थंतरम्मि सोहम्मदेवलोयाहिवस्स सक्कस्स । चलियं महासणं ओहिणा तओ नायजिणदिक्खो ॥ १९०९ ॥ परिभावइ तित्थयरा भुवणजणस्सावि हरिय दारिदं । कुव्वंति वयग्गहणं ता तेसि धणं मए देयं ॥ १९१० ॥ एय चिंतिय आइट्ठो धणओ जह सामिसालभवणम्मि । निहिणो पूरेसु धणेण तह जहा अक्खया हुंति ॥ १९१९ ॥ तो धणयनिउत्तेहिं जंभगदेवेहि सामिणो भवणं । नदे॒हिं भठेहिं रायसामीहि य निहीहिं तहा || १९१२ ॥ आऊरियं समग्गं पि, कणयमणिमोत्तियजएहिं । । ते वि हु विजिया सव्वे वि अक्खया दीयमाणा वि ॥ १९१३ ॥ मंदिर-पुरतिय-चच्चर-रत्था-सुह-गोउराइठाणेसु । दिति निउत्ता पहुणा निउइणो जणमणोभिमयं ॥ १९१४ ॥ वज्ज-प्पवाल-मोत्तिय-नील-महानील-पउमरायंका । कक्केयणाइया वि हु मणिणो लोयाण दिज्जति ॥ १९१५ ॥ केऊर-कडय-कुंडल-किरीड-कडिसुत्त-कंकणाईणि । वियरिज्जंति जणाणं, रयणाभरणाणि विहिहाणि ॥ १९१६ ॥ चीणंसुय-जद्दर-देवदूस-पडिनेत्त-नम्मखोम्माइं । निच्वं पि जायमाणं, निउइणो दिति वत्थाइं ॥ १९१७ ॥ कंचण-रुप्पय-तंबय-पित्तल-अय-दारु-मट्टि-अमयाइं । रत्थाई लिंति लोया, निउयपासाओ सेच्छाए ॥ १९१८ ॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ करि - हरि - वसह - सुहासण - संदण - लंघिणिय-वहिलपमुहाई । गिण्हंति जायगा दायगाण पासाओ जाणा ॥। १९९९ ।। नवसालि-सूय- वंजण - पाणय-पक्कण- पमुहभोज्जेहिं । भोइज्जइ सव्वत्थ वि भोयणसालासु छुहियजणो || १९२० ॥ जाइफलेला-किम्मीरि-पत्तकप्पूर-तय- लवंगजुओ । भुतत्तरम्मि दिज्जइ, तंबोलो सव्वलोयाण ॥ १९२१ ॥ कुंकुम - मयमय - घणसार- अगरु - गोसीसचंदणाईणि । सुरहीणि लहंति विलेवणाणि निच्चं पि जायंता ॥। १९२२ ॥ इय केत्तियं च भन्नइ जो जं मग्गइ महग्घमवि वत्युं । दिज्जइ तं तस्स धुवं, अंकेडं कणय-मुल्लेण ॥। १९२३ ॥ निच्चं पि तरणिउदया, ता दिज्जइ जा दिणस्स दोपहरी । वरसु वरं वरसु वरं ति भन्नइ पडहएण जणो || १९२४ ॥ कणयस्सेक्का कोडी, अहिया लक्खढगेण निच्चपि । जायगजणस्स दिज्जइ, वरिसस्स भवा तम्मिमा संखा तिन्नि सयाई कोडीण इट्ठासी संखकोडिअहियाई । असीइ होइ लक्खाण वच्छराण दाणमाणमिणं ।। १९२६ ॥ सव्वे वि जिणा एत्तिय मित्तं चिय दिति वच्छरे कणयं । तित्थेसराणुभावा नाहियगाही भवइ को वि ॥ १९२७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तह तिहुयणेक्कपहुणा, सव्वस्स वि दिन्नमत्थि लोयस्स । न जहा जए वि नज्जइ नामं पि हु जायगजणस्स || १९२८ ॥ तो तिजयसामिणा नाणनायसव्वुत्तमम्मि लग्गम्मि | अहिसित्तोऽणंतबलो कुमरो रिद्धीए नियरज्जे ॥ १९२९ ॥ दिज्जंत भूरिदाणो, सुहि- सज्जण-सयण - जणियसम्माणो । सयलजणाणंदयरो जाओ रज्जाहिसेयमहो । १९३० ॥ तयणु भुवणाहिनाहे, दिक्खाग्गहणुस्सुयम्मि सहसति । जाओ आसणकंपो बत्तीसाए वि सुरिंदाणं ।। १९३१ ।। १९२५ ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ अणंतजिणदिक्खावण्णणं तो ओहिनाणजाणिय-जिणिंददिक्खामहा महाइंदा । कुंडल-किरीड-केउर-कडय-कंकण-कयाभरणा ॥ १९३२ ॥ सुरतरुमंजरिसेहरवणमालालंकिया चलिरचमरा । रणज्झणिरकिंकिणीगणविमाणविंदं समारूढा ॥ १९३३ ॥ वज्जंत-दुंदुहिरवाउरियगयणंगणा समणुपत्ता । बत्तीस वि सुरवइणो, भवणम्मि भुवणनाहस्स ॥ १९३४ ॥ तो तेहि जलहि-दह-नइ-जलाई गिरि-सिरि-तडाण मट्टीओ । कुसुम-जलरुह-कसाया आणीया पहुसिणाणत्थं ॥ १९३५ ॥ पुव्वाभिमुहं उववेसिऊण, सीहासणे भुवणनाहं । अहिसिंचंति सुरिंदा, सुरगिरिसिहरे व्व भत्तीए ॥ १९३६ ॥ परिवज्जिरेसु सुरदुंदुहीसु, जिणगुणगणम्मि गिज्जंते । निव्वत्तिओऽहिसेओ, पहुणो नच्चंतअमरीसु ॥ १९३७ ।। तो गंधकसाईए, लूहित्तु जलाविलं तणुं पहुणो ।। गोसीसचंदणेणं, सव्वंगं पि हु विलिंपंति ॥ १९३८ ॥ तयणु तियसेहि सामी, रयणाभरणेहिं फुरियकिरणेहिं । समलंकरिओ परिहाविओ य देवंगवत्थाई ॥ १९३९ ॥ तो सक्कसमाएसा, पालयनामामरेण निम्मविया ।। माणिक्कमया सिबिया, सागरदत्त त्ति नामेण ॥ १९४० ॥ पवणुल्लसंतधयरणज्झणंतकिंकिणिकलावकमणीया ।। खलहलिरघरघरावलिविमिस्सचउघंटटंकारा || १९४१ ॥ उल्लोयलंबिमुत्ताहलावलीविफुरंतकंतिभरो ।। केवलनाणालोय व्व सामिणो आगओ जीए ॥ १९४२ ॥ कणयघडिडज्झिरागरुधूमो जीए विणिस्सरइ बाहिं । जगगुरुणो संभविकेवलस्स भीयं व अन्नाणं ॥ १९४३ ॥ जीएऽनिलचलनवपउमराय-रयणावलीपहाए सरो । भुवणपहुणो व कंपइ भएण राउ व्व निक्खंतो ॥ १९४४ ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ . सिरिअणंतजिणचरियं कणयकलसोहसोहाए, तीए मणितोरणाए भुवणपहू । आरूढो लीलाए, हरिसियहरिभुयलयालग्गो ॥ १९४५ ॥ उवविट्ठो मणिसीहासणम्मि, कयतिजयजणजयारावो । कओ लवणुत्तारणओ, पासट्ठियगोत्तवुड्ढाहिं ॥ १९४६ ॥ उवविट्ठो पयवीढे, उच्छंगियसामिसालकमकमलो । भूमीसअणंतबलो, भविस्सपियविरहउब्विग्गो ॥ १९४७ ॥ मुत्तावचूलकलियं, मणिमयकलसं पिसंडिदंडयरं । धरियं सियायवत्तं, अच्चुयइंदेण जयपहुणो ॥ १९४८ ॥ सोहम्मीसाणसुरेसरा पहुं वीययंति भत्तीए । चंदकरचारुचामरजुएण मणि-कणयदंडेण ॥ १९४९ ॥ माहिंदसुरिंदेणं धइआ अंसावलंबिया धरिया । करकलियकणयदंडो, सणंकुमारो ठिओ डंडी ॥ १९५० ॥ पहपयडणाइचाडूणि बिंति सिरिबंभलंतया हरिणो । तं हत्थसाडएहिं, वीयंति य सुक्कसहसारा ॥ १९५१ ॥ जाओ आणय-पाणय-कप्पदुग-सुरवई अलंबधरो । मणिदप्पणे गहेडं, ठिया पुरो तरणि-रयणियरा ॥ १९५२ ॥ भवणवइणो सुरिंदा, सव्वे वि हु अंगरक्खया जाया । करवाल-फलय-वावल्ल-भल्ल-सिल्लाइसत्थकरा ॥ १९५३ ॥ इय सव्वेहि वि इंदेहिं, सामिणो सेवगत्तमणुसरियं । अहव न किं किं कीरइ, भत्तिपरायत्तचित्तेहिं ॥ १९५४ ॥ तो ओखित्ता सिविया, पढमं मणुएहिं तयणु अमरेहिं । सिंगारियअंगेहिं, सहस्ससंखेहिं सहस त्ति ॥ १९५५ ॥ दुंदुहि-डुडुदुडि-डक्का-ढक्का-नीसाण-भूरिभेरीण । सद्देण. समग्गं पि हु पूरिज्जइ नह-महीविवरं ॥ १९५६ ॥ तो सह पहुणा वयगहणलालसा मउडबद्धरायाणो । सुयदिन्नपया सिबियाहिं, आगया सहस संखयरा ॥ १९५७ ॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ अणंतजिणदिक्खावण्णणं अणुगम्मतो तेहिं, पूरंतो महियलं निवबलेहिं । हय-गय-रह-भडरूवेहिं तह नहं पि हु विमाणेहिं ॥ १९५८ ॥ रयणाभरणालंकियउ कड्ढिज्जंतहरि-करि-रहाण । अट्ठोत्तरस्सएणं, पत्तेयं अणुसरिज्जंतो ॥ १९५९ ॥ हट्टटालय-पासायसालसुरमंदिरग्गचडियाहिं ।। अच्चिज्जंतो कुलबालियाहिं कुसुमक्खए खिविउं ॥ १९६० ॥ काउमवयारणाई, नेत्ताइसुवत्थभूसणसएहि । रायगिहदुवारपत्तो, पणमिज्जंतो य पउरेहिं ॥ १९६१ ॥ इहलोगाओ सारं, परलोयं निच्छएण मन्नामो । परलोयत्थे कहमन्नहा, पहू चयइ रज्जसिरिं ॥ १९६२ ॥ जो गच्छंतो निदं, जद्दरतूलीसु सुहयफासासु । सो कठें लहिही निई, सक्करिले थंडिले सुत्तो ॥ १९६३ ॥ निद्धण्हमुहुररसरसवईए जो विहियभोयणो निच्चं । सो भिक्खाभमणपत्तविरसभत्तं कहं जिमिही ? ॥ १९६४ ॥ जो हत्थि-हय-सुहासण-रहाइजाणेहिं सव्वया जंतो । कह सो भमिही भिक्खं, रवितविय-पहेऽणुवाहणओ ॥ १९६५ ॥ मयणाहि-चंदणाईहिं जो सया कयविलेवणो हुँतो । कह वहिही सो गिम्हुम्हसेयजललग्गमलपंकं ॥ १९६६ ॥ धवलायवत्तच्छाया सुहमणुभूयं सया पहे जेण । आयावंतो सो गिम्हभवरविं कह निरिक्खेही ॥ १९६७ ॥ जो न मुणंतो सीयं, पासाया-वरयगब्भसेज्जठिओ । सो कहं सहिही सिसिरे, नइनियडो सजलकणवाए ॥ १९६८ ॥ जो पाउसम्मि नवहेमवायसंजायसुहरसुक्करिसो । कहं सहिही सो घम्मं, कयठिई गिरिगुहागन्भे ॥ १९६९ ॥ इय तिय-चउक्क-चच्चरठाणे, ठियजुवइजुवजणालावो । निसुणंतो पेच्छंतो, य हट्टसोहाओ विहियाओ ॥ १९७० ॥ Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ आयन्नंतो खेयरसुरचारणमंगलावलीपाढे । अवलोयंतो गयणे, सुरंगणाजणियनट्टाई || १९७१ ॥ ताण अहोभागम्मिं, खेयरतरुणीयणं पणच्वंतं । करणंगहारपेच्छय,जणच्छिसुहयं निरूवेंतो ॥ १९७२ ॥ नरनारीनियरारद्धसुद्धअसरिसविणोयसंघायं । ठाणे ठाणे नियनयणगोयरप्पत्तमिक्खंतो ॥ १९७३ ॥ जय जीव नंद पावसु, मणच्छियं ईय जणुत्तआसीहिं । वहिरंतो बंभंड, चउपासं उल्लसंतीहिं ॥ १९७४ ॥ . वियरंतो दाणाई, जणयंतो माणणीयसम्माणं । दितो दिट्ठि सनरामरासुरचलिरतिजयजणे ॥। १९७५ ॥ पुरतिय- चउक्कचच्चररच्छानट्टेसु विरईयविलंबो । पत्तो पुव्वुत्तरदिसि, सहसंबवणम्मि उज्जाणे ॥। १९७६ ।। जं पवणसमुल्लासियसाहानिवडंतकुसुमनियरेण । तिहुयणपहुणो पूयं, व कुणइ गुरुभत्तिभावेण ॥ १९७७ ॥ जं कलकंठीकुलकलरवेण पढइ व्व सामिसालगुणे । भमररुणिज्झुणिएहिं, गायइ पहुणो गुणोहं व ।। १९७८ ।। तम्मि पविट्ठो नाहो, तिहुयणजणजणियजयजयारावो । हरिकरकयावलंबो, सिवियाए सलीलमुत्तिन्नो ।। १९७९ ।। रज्जाहिसेयउ वरिसलक्खपन्नरसगे वइक्कंते । वइसाहासियचउदिसि, तिहीए अवरन्हसमयम्मि ।। १९८० । रेवनक्खत्तमुवागयम्मि, चंदम्मि विहियछट्ठतवो । पच्छिमवयदेसीओ, पुव्वाभिमुही ठिओ सामी ॥। १९८१ ॥ तो अनंतबलनरिंदस्स उत्तरीयंचलम्मि निक्खिवइ । मणिभूसणारं उत्तारिऊण वरवत्थजुत्ताइं ॥ १९८२ ॥ तो भमरकारकुंतल कलावमुक्खवर पंचमुट्ठीहिं । भासइ य हरी वज्जंतस्स जहा होइ नो वुड्ढी || १९८३ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ अणंतजिणदिक्खावण्णणं पक्खिवइ कुंतले सक्कउत्तरीयम्मि तिहुणेक्कपहू । तो ते सक्को वि हु खीरनीरनाहिम्मि निक्खिवइ || १९८४ ॥ एत्थंतरम्मि सक्काएसा मोणट्ठियम्मि तिजयजणे । पहु-पिट्ठ-ठिए दिक्खागहणुज्जयनरवइसहस्से ॥ १९८५ ॥ सिद्धाण नमोक्कारं, काउं सामी महापइन्नभरं । सव्वं पि पावकम्मं, मज्झमकरणिज्जमिय लेइ ॥ १९८६ ॥ तयणु हरिणा जिणेसरखंधम्मि देवदूसमइसुहुमं । निम्मोयमउय एक्कं मुक्कं देहावरणकज्जे ॥ १९८७ ॥ इत्थंतरे सुरासुर-नहयर-नरनियरपाणिप्पम्मुक्का । वज्जतदुंदुहीसुं, पडंति वासा सिरे पहुणो ॥ १९८८ ॥ वयराहणाणंतरमेव, सामिणो तुरियमुभयहा नाणं । मणपज्जवाभिहाणं, जायं किं नो हवइ गुरुणो ॥ १९८९ ॥ नरनाहसहस्सेण वि, वत्थाहरणाई उज्झिउं झत्ति । पहुणो अणुमग्गेणं दिक्खा अंगीकया तत्थ ।। १९९० ॥ तयणु चउब्भेया वि हु, अमरा खयरेसरा नरिंदा य । भुवणगुरुं भत्तिब्भरभरियमणा पणमिय थुणंति ॥ १९९१ ॥ जय सामि ! संजमसिरिसिंगारविरायमाण सिग्धं पि । लोयालोय-पयासय-केवलकमलालओ होसु ॥ १९९२ ॥ इय थोऊण जिणिदं, नहयरनाहा गया सट्ठाणेसु । पिउवयगहणुब्विग्गोऽणंतबलनिवो वि नियभवणे ॥ १९९३ ॥ सक्काईया सुरिंदा पुणरुत्तप्पणयसामि-कम-कमला । नंदीसरे जिणेसरपूयं काउं गया सग्गे ॥ १९९४ ॥ सिरिअम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । विहिओ वय-पत्थावो तइज्जओऽणंतजिणचरिए ॥ १९९५ ॥ छ । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ सिरिअणंतजिणचरियं (चउत्थ-पत्थाओ) तयणु भुवणेक्कनाहो, काउसग्गे ठिओ निसमसेसं । मण-वयण-काय-करणव्वावार-निरोह-सुद्धप्पा || १९९६ ॥ अब्भुग्गए दिणयरे, कहिऊणाऽऽरामियाण सविहारं । निक्खंतो नवदिक्खियरायरिसिसहस्सपरियरिओ ॥ १९९७ ॥ गयवर-वसह-रायहंसत्थिरगइकयचारूचरणसंचारो । नियदंसणेण दिंतो, आणंदं पहियविंदाणं ॥ १९९८ ॥ संपत्तो सिसिराए, सराइतल-वीसमंतपहियजणे । सिरिवद्धमाणनामगनयरे नयनिट्ठजणवासे ॥ १९९९ ॥ छव्विहजीवाणाबाहठाणुस्सारिय नयरउज्जाणे । काउसग्गम्मि ठीओ, भुवणगुरू धिज्जजियमेरू || २००० ॥ भिक्खागहणावसरे, जाए छट्ठस्स पारणयकज्जे । पारियकाउस्सग्गो पहू पविट्ठो पुरस्संतो || २००१ ॥ अतुरियअचवलं विक्खेववज्जियं गयगई पहू पत्तो । नयरप्पहाणविजयाभिहाणधणिणो घरंगणए || २००२ ॥ सच्छप्पयई सोमो, उदारचित्तो थिरो गहीरमणो । विजओ वि जओ व्व सया, वि कुणइ लोयाणमाणंदं ॥ २००३ ॥ सो उवविट्ठो भोयणनिमित्तमतिहिं पलोयए जाव । ता नियइ तिजयकल्लाणकुलहरं तिहुयणाहिवइं ॥ २००४ ॥ तो से तोसेण मुहेण पहसियं माणसेणमुल्लसियं । नयणेहिं वियसियं पुलईयं व सव्वंगचंगेहिं ॥ २००५ ॥ चिंतइ न मंदपुन्नाणमेयसमयम्मि एरिसो अतिही । एइ सुकल्लाणलया वियाणउल्लासछणसमओ ॥ २००६ ॥ कइया वि एइ पत्तं, नो वित्तं तं कयाइ नो पत्तं । ताई कया वि न चित्तं, इण्हि तु तिगं पि मिलियं मे ॥ २००७ ॥ अहमेव पुन्नपत्तं जंगमकप्पडुमो इमो जस्स । भवणंगणम्मि पत्तो देवरिसी मह महारूवो || २००८ ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजम्मवण्णणं १५९ इय चिंतंतो अंतो, उल्लसिउद्दामभत्तिपब्भारो । आणंदवसपसत्तं सविसरदंतुरियदिदिलो ॥ २००९ ॥ अइमहुरसक्करालित्तानिमिसा परमन्नथालमुक्खिविउं । पत्तो पहुणो पासे बहुमाणा नमिरसिरकमलो ॥ २०१० ॥ जंपइ पहु ! मह परमप्पसायभरनिब्भरं मणं काउं । गिण्हह इममाहारं अवसरपत्ता जओ तुब्भे ॥ २०११ ॥ अज्जं चिय मह जायं, सहलं अनूणनयणनिम्माणं । जेण भुवणेक्कपुज्जो, भोयणसमए तुमं दिट्ठो ॥ २०१२ ॥ तं दह्णं पहुणा दव्वाइविसुद्धिमिक्खिउं चउहा । तग्गहणकारणम्मि पसारिओ दाहिणो पाणी ॥ २०१३ ॥ तो तेण परमपहरिसवसेण नियजम्मजीवियव्वाण । सहलत्तं कलयंतेण पायसं तत्थ पक्खित्तं ॥ २०१४ ॥ करनिहियाहारसिहा जइ लग्गइ सहसकरविमाणे वि । तह वि न महीए निवडइ, महापभावा जिणा जइ वा || २०१५ ॥ तत्थेव तयं भुत्तं पहुणा केणइ अदिस्समाणेण । जमदिस्सा तित्थयराण हुंति आहारनीहारा ॥ २०१६ ॥ पाराविऊण तिहुयणपुज्जं, विजओ महीमिलियमउली । पणमइ पणयपुरस्सरमुल्लसियासमजसप्पसरो ॥ २०१७ ॥ पहुपारणयं दटुं, उच्छलियामंद-पहरिसपरेहिं । पहयाओ दुंदुहीओ, गयणुच्छंगम्मि अमरेहिं ॥ २०१८ ॥ कप्पूर-मयमयाहियसुयंधगंधोदएण सिंचेउं । भवणंगणम्मि खित्ता दसद्धवन्ना कुसुमवुट्ठी || २०१९ ॥ घुटुं च सुरेहिं नहे “अहो सुदाणं अहो सुदाणं” ति । खित्ता य अद्धतेरसकंचणकोडीओ विजयगिहे ॥ २०२० ॥ विहिओ चेलुक्खेवो, तं दठुमुवागओ सयललोगो । अच्छरियहरियहियओ, विजयं इय सलहिउं लग्गो । २०२१ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० धन्नो सि तुममहो, विजय ! पत्तं तए जए पत्तं । जयजणमज्झे दाणं दाउं एयस्स सुररिसिणो ॥ २०२२ ॥ न तुमाहिंतो अन्नो, पुन्नपयं को वि इह पुरे जाओ । चिंतामणी अहन्नं न चेव जइ वा समल्लिया || २०२३ ॥ एवं अमरासुरमाणवेहिं विजओ सलाहिओ दूरं । जाओ य पहुपभावा, भवोयही गोपयसमाणो ॥ २०२४ ।। भयवं पि भुवणनाहो, मंथरतररइयचरणसंचरणो । गंतूण पुरुज्जाणे पइट्ठिओ काउसग्गम्मि ॥ २०२५ ॥ जह लाहं अवरेहिं वि रायरिसीहिं पुरे गहिय भिक्खं । विहियं पारणयं तयणु ते वि पहुपासमणुपत्ता || २०२६ ॥ गोससमयम्मि चलिओ, पणमिज्जंतो सुरासुरनरेहिं । गामनगरा गराइसु विहरइ अब्भुज्जयविहारो ॥ २०२७ ॥ उप्पायंतो तोसं जणस्स उवसंतकंतमुत्तीए । अवहरमाणो पावं पहु पणमिरपहियलोयाण || २०२८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं सक्काइचउव्विहसुरनिकायवंदिज्जमाणकमकमलो । पूइज्जतो य समीवं, देसनिवईहिं निच्चं पि ॥। २०२९ ॥ छट्ठट्ठमदसमदुवालसद्धमासाइ अट्ठमासंतं । निच्चयरतवच्चरणं कुव्वंतो देहनिरवेक्खं ॥। २०३० ॥ मलयंग-वंग - कुंतल - कलिंग - मालवय- केरलाईसुं । विसएसु विहरमाणो, अवहरमाणो जणदुहाई || २०३१ || गिण्हम्मि रविकरुत्तत्तवालुयापुलिणविहियउस्सग्गो । रविबिंबनिहियनयणो, आयावंतो दिणंतं जा || २०३२ || वासासु गिरिंदगुहाकुहरंतररइयकाउसग्गठिओ । चउमासकयुववासो विसहंतो दुस्सहं धम्मं ॥। २०३३ || सीयसमयम्मि हिमकणविमिस्सवाएहिमभिभविज्जंतो । रयणीसु निरावरणो, निज्जरणीनीरतीरम्मि || २०३४ ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६१ अणंतजिणसमवसरणवण्णणं एवं उग्गविहारं काउं, वरिसतिगं भुवणनाहो । पुणरवि अउज्झनयरी, सहसंबवणे वणे पत्तो ॥ २०३५ ॥ तं मज्झे अस्सत्थस्स हेट्ठओ महिठियस्स वि दुमस्स । निस्सेसजीवसुहओ, ठिओ पहू काउसग्गम्मि ॥ २०३६ ॥ वइसाहा सियचउदिसि, तिहीए छठे तवे परिणमंतो । रेवइनक्खत्तम्मि संकंते रोहिणीरमणे ॥ २०३७ ॥ आरूढो सज्झाणे सामी तम्मि विसुज्झमाणम्मि । अणुसमयं पि हु उरलाई कुणइ घणघाइकम्माइं ॥ २०३८ ॥ दुद्धोदहिम्मि अमयुग्गरो इव धम्मज्झाणमज्झम्मि । सुक्कज्झाणुल्लासा जायंति खणे खणे पहुणो ॥ २०३९ ॥ केवल-रवि-अरुणोदय-कप्पो परमावही समुप्पन्नो । जेण पहू अवलोयइ, असंखजोयणमलोयं पि ॥ २०४० ॥ तो सुक्कज्झाणहुयासडड्ढघणघाइकम्ममलपडलं 1 पयडीहूयं कणयं, व सामिणो केवलं नाणं ॥ २०४१ ॥ संजाए जगगुरुणो, लोयालोयप्पयासए नाणे । समकालं पि हु सीहासणाई चलियाई इंदाण ॥ २०४२ ॥ तो ओहिनाणजाणियजिणनाणुप्पत्तिसमयकायव्वा । बत्तीस वि अमरिंदा, समागया मणिविमाणेहिं ॥ २०४३ ॥ पणमिय भत्तिभरेण य, सिरकमला सामिसालकम-कमलं । पारद्धा विरएउं, भत्तीए ते समोसरणं ॥ २०४४ ॥ तहाहि - संवट्टगवाएणं, वाउकुमारेहिं जोयणपमाणं । हरिय-तण-कयवराइसुइ-कक्करियरयं कयं खित्तं ॥ २०४५ ॥ तो मेहकुमारेहिं रइडं, गयणम्मि अब्भवद्दलयं । मयणाहि-घुसिण-चंदण-घणसारजलेण तं सित्तं ॥ २०४६ ॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ सिरिअणंतजिणचरियं नवपउमरायमाणिक्क-मयसिलाकुट्टिमम्मि रइयम्मि । रिउअमरेहिं मुक्का, दसद्धवन्ना कुसुमवुट्ठी ॥ २०४७ ॥ वेमाणिएहिं जणिओ, पायारो पंचवन्नरयणेहिं । दिसिपसरियकर-मणिमय-कविसीसय-सेणि-कमणीओ ॥ २०४८ ॥ तयणु कओ जोइसिएहिं, तलतवणीयमणहरो सालो । सिय-पीय-नील-सामल-सोणमणी-जणिय-कविसीसो ॥ २०४९ ॥ भवणवईहिं विरईओ, पायारो नहपहो व्व तारसिओ । घणमाणिक्कविणिम्मियकविसीसयमंडलीकलिओ ॥ २०५० ॥ पत्तेयं पायारे पोलिचउक्कं कयं रयणजणियं ।। मंदानिलचलचंदणमालाझणहणिरकिंकणियं ॥ २०५१ ॥ दो पासगयट्ठियकणय-कमलमुहपिहियहेमकलसदुगं । विप्फुरियकिरणमणिजणियतोरणस्सेणिससिरीयं ॥ २०५२ ॥ नवजोव्वणरमणीरूवरम्ममणिसालिहंजियाजुत्तं । खंभट्ठियकंचणघडिडज्झिरकप्पूरगंधड्ढं ॥ २०५३ ॥ पडिनेत्तमेहडंबरविलसिरउल्लोयलंबिहारलयं । अनिलचलिरद्धयालंबचिंधसियछत्त-चमरचयं ॥ २०५४ ॥ (कुलय) कलहोयप्पायारहवारदेसेसु सत्थसलिलाओ । पुक्खरणीओ कयाओ मणितोरणकमलकलियाओ ॥ २०५५ ॥ पुव्वुत्तरदिसीभाए मणिकंचणसालअंतरालम्मि । पहुवीसामत्थं देवच्छंदओ विरईओ रम्मो ॥ २०५६ ॥ जोयणपमाणमणिसालमज्झभायम्मि मणिमयं पीढं । चउदिसि मणिसीहासणपयवीढजुयं विणिम्मवियं ॥ २०५७ ॥ चेईयतरुछत्तत्तयसीहासणचमरदेवच्छंदाइं । सव्वं पि सामिभत्ता वंतरदेवा विउव्वंति ॥ २०५८ ॥ विप्फुरियरयणकिरणप्पसरावहरिया निसा तिमिरहरणा । कयतिहुयणजससरणा इय संजायए समोसरणे ॥ २०५९ ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ अणंतजिणसमवसरणवण्णणं सुरवइ-पणामपुव्वामंतणचलिओ अणंतजिणराओ ।। नवसंखकणयमहयसहसपत्तकयचरणविन्नासो ॥ २०६० ॥ पविसिय पुव्वपउलीए आगओ गयगईए मणिपीढे । दाउं पयाहिणं तो, तित्थस्स नमोत्ति जंपेइ ॥ २०६१ ॥ उवविसइ य पुव्वाभिमुहरयणसीहासणे फुरियकिरणे । कयपउमासणबंधो, अंककयुत्ताणकरजुयलो || २०६२ ॥ तो दोन्नि कणयकमलाई, पायपीढे तह च्चिय ठियाइं । . उठेंतो जेसुं पहू, काही कमकमलविन्नासं ॥ २०६३ ॥ तह तिन्नि तिन्नि पासदुगे वि पुव्वामुहाइं जगगुरुणो । परिसंठियाई एक्कं तु, पिट्ठओ सामि सिरकमले || २०६४ ॥ पहुनिस्साए सेसासणेसु वंतरसुरेहिं निम्मवियं । दाहिणदिसाइदिसितिगसमुहं जिणबिंबितिगं ॥ २०६५ ।। एत्थंतरंमि तिहुयणपहुणो गुरुभत्तिनिब्भरंगेहिं । अमरेहि विरयाई, अट्ठमहापाडिहेराइं ॥ २०६६ ॥ जिणतणुदुवालसगुणो जाओ रत्तच्छओ असोयतरू । अहवुत्तमसत्ताणं गुणवुड्ढीए किमच्छरियं ॥ २०६७ ॥ आभाइ जाणुमाणा पणवन्ना उम्मुहा कुसुमवुट्ठी । जिणचउसीहासणघणवन्नप्पसियमणिपह व्व ॥ २०६८ ॥ सव्वसहासाणुगओ जिणिंददिव्वज्झुणी सदंतपहो । पीऊसप्पसरो इव न कस्स अवहरइ मोहविसं ॥ २०६९ ॥ अमरिंदपाणिचालियचमरा चवलंति सामिणो देहं । कणयाभरयणीरमणकिरणनियरा सुरगिरि व ॥ २०७० ॥ हरिसहियं समणिगणसुजायरूवं समुन्नयं सुगयं । जगगुरुणो सीहासणमाभाइ जिणप्पवयणं व ॥ २०७१ ॥ कंचणचुन्नकडारं पसरइ भामंडलं भुवणगुरुणो । दारिदं पिव हरिउं कणकमयं जयमवि कुणंतं ॥ २०७२ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ सिरिअणंतजिणचरियं एस पहू एयारिसगंभीरसरेण देसणं काही । इय तिजयस्स वि कहिलं व वज्जिया झत्ति दुंदुहिणो ॥ २०७३ ॥ निम्मलगुणगणजुत्तं, सुवन्नकलसं सियं सुहच्छायं । कयसुकयपुरिसविंदं व सहइ छत्तत्तयं पहुणो ॥ २०७४ ॥ एवं अट्ठमहापाडिहेरलच्छीहिं तिहुयणेक्कगुरू । अणुसरिओ सरियाहिवसमंतओ खीरनीरनिही ॥ २०७५ ॥ कल्लाणमयं सारं सुपवित्तं नाहिमाणसहियं च । आभाइ धम्मचक्कं, पहुणो पुरओ जिणकुलं व ॥ २०७६ ॥ तिजयजणजगडणुब्भडमयणजयपत्तजयपडाय व्व । धम्मद्धओ विरायइ, पहुणो पुरओ कणिरघंटो | २०७७ ॥ एत्थंतरे चउव्विहसुरखेयरनरतिरिच्छपरिसाओ । पत्ताओ विविहजाणेहिं, तह य पायप्पयारेहिं ॥ २०७८ ॥ वेमाणियदेवीओ, पुव्वपउलीए पविसिउं पहुणो । पंचंगपणइपुव्वं, दाऊण पयाहिणाण तिगं ॥ २०७९ ॥ नमिडं थोऊण य सामिसालमह पुव्वदाहिणदिसाए । गंतूणुड्ढट्ठाणेणं, संठियाओ नियंति पहुं ॥ २०८० ॥ भवणाहिव-वंतर-जोइसाण देवीओ दाहिणिल्लेण । दारेण पविसेउं काऊण पयाहिणाईयं ॥ २०८१ ॥ पणिहाणप्पज्जत्तं नेरइयदिसाए उद्धट्ठाणेण । ठाउं कमेण सामि पलोयमाणाओ चिट्ठति ॥ २०८२ ॥ भवणाहिव-वंतर-जोइसा सुरा पच्छिमप्पउलीए । पविसिय जिणनमणाई, काउं वायवदिसाए ठिया || २०८३ ॥ वेमाणिया सुरा माणवा य नारीओ उत्तरिल्लेण । दारेण पविसिय जिणं पणमिय चिटुंति ईसाणे || २०८४ ॥ सासयविरोहिणो वि हु संजायअसमस्सिणेहसंबंधा । मयपहुणो तिरिया मणिकंचणसालंतरम्मि ठिया ॥ २०८५ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ अणंतजिणसमवसरणवण्णणं मूसय-मज्जाराणं मज्जार-साणरयाण संजाओ । मित्तीभावो तह करि-हरीण हरि-सरहयाणं च ॥ २०८६ ॥ महिसय-तुरंगमाणं विरुय-उरब्माण नउल-सप्पाणं । सेणाधरपक्खीणं च पणयभावो समुप्पन्नो ॥ २०८७ ॥ सासयविरोहिणो वि हु संजाया जत्थ असरिससिणेहा । चत्ता वि पउत्था तत्थ नियमओ अहिणववेरस्स ॥ २०८८ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ कुसुमपरिमलो नाम । गंतुं पडिहारपवेसिउं निवं नमइ अत्थाणे ॥ २०८९ ॥ विन्नवइ य पहु ! देविंदविंदवंदिज्जमाणकमकमलो । सहसंबवणुज्जाणे संपत्तोऽणंतजिणराया ॥ २०९० ॥ तस्सुप्पन्नमणंतं नाणं तव्वंदणस्थममरिंदा । बत्तीस वि संपत्ता तेहि विरइयं समोसरणं ॥ २०९१ ॥ तत्थुवविट्ठो सामी चामीयरसच्छहत्थविच्छाओ । तन्नाम पि पहूणं सुहयं इय विन्नवेमि अहं ॥ २०९२ ॥ सुयनियजणयागमणो, राया रोमंचअंचिओ तस्स । वियरइ पीइपयाणे, धणद्धतेरससयसहस्से ॥ २०९३ ॥ तयणुसिणाणं काउं, परिहेउं देवदूसवत्थाई । विप्फुरियकिरणभररयणभूसणालंकियसरीरो ॥ २०९४ ॥ मयगंधलुद्धमुद्धालिजालकलिए करेणुरायम्मि । आरूढो पोढपुरंधिविंदगुंजंतविमलगुणो || २०९५ ॥ मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियतिव्वरवितावो । वीइज्जंतो कमणीयकामिणीचारुचमरेहिं ॥ २०९६ ॥ मंडलियाहिट्ठियगरुयगयघडाघडियगाढपरिवेढो । रायारुहणालंकरियसंदणस्सेणिसंजुत्तो ॥ २०९७ ॥ सामंतसणाहतुरगराइरायंतचारुचउपासो । तिव्वयरपहरणग्गहणवग्गपाइक्कपरियरिओ ॥ २०९८ ॥ .For Private &Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ सिरिअणंतजिणचरियं जंपाण-सुहासण-नरविमाण-लंघिणिय-वहिलचडिएहिं । सत्थाह-सेठि-ईसर-पउरेहि य अणुसरिज्जतो ॥ २०९९ ॥ बंदीहिं पढिज्जंतो, वज्जिरजयतूरपूरियदियंतो । नरनाहअणंतबलो, संपत्तो समवसरणं तं ॥ २१०० ॥ तह नहपह-भमिरामर-कहण-परिण्णायनाहनाणमहा । बहुदेस-महीवइणो, महरिह-रिद्धीए संचलिया ॥ २१०१ ॥ तं मज्झे नवजोव्वणउव्वणदेहा कुसग्गसममेहा । रूवविणिज्जियसयणा, सवणंतक्खलियपिहुनयणा ॥ २१०२ ॥ निस्सेसकलाकुसला, करि-हरि-रह-जोह-रूवभूरिबला | पन्नाससंखजलपमुहनिवइणो झत्ति संपत्ता ॥ २१०३ ॥ तो वावीजलण्हाया चत्तछत्ताइनिवअलंकारा । सव्वे वि पढमपायारमज्झसंठवियनियजाणा ॥ २१०४ ॥ नरवइअणंतबलपमुहराइणो उत्तरहुवारेण । पविसंता दिट्ठजिणा, भणंति जय जय पहु त्ति ॥ २१०५ ॥ दळु देवाईए पयाहिणते जिणं नरिंदो वि । दाउं पयाहिणतिगं, थुणंति पणमिय कयंजलिणो ॥ २१०६ ॥ . जय ससुरासुरतिहुयणजणपणमियपाय ! तिजयजणराय । जय अच्चब्भुयपुन्नप्पयरिससंपत्तमाहप्प ! ॥ २१०७ ॥ जय पुन्निमरयणीरमणवयण ! नररयण ! कमलदलनयण ! । जावज्जीवं पि भवेज्ज सामि ! अम्हाण तं सरणं ॥ २१०८ ॥ एवं थोऊण बलं पहुं अणंतबलरायपमुहनरवइणो । इंदसहाए पिट्ठिप्पएसमणुसरिय उवविट्ठा ॥ २१०९ ॥ पूरिज्जई गयणयलं इंतामरखयरमणिविमाणेहिं । .. भूमंडलं पि परिचलियरायचउरंगचक्केहिं ॥ २११० ॥ तिहुयणअच्चब्भुयरिद्धिवित्थरं पेच्छिउं समवसरणं । अमरा पमोयमइरामएण जाया पराइत्ता ॥ २१११ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ अणंतजिणसमवसरणवण्णणं के वि गयगज्जियाई, कुणंति हयहेसियाई पुण अवरे । रहघणहणज्झुणिमत्ते के वि पुणो करहकडरडियं ॥ २११२ ॥ फोडिंति के वि तिवई, कुलालचक्कं व के वि हु भमंति । निठुरपयदद्दरएण, के वि धरणिं पकंपति ॥ २११३ ॥ वज्जिरआउज्जाणं पाडे पयडंति के वि हु सुहेण ।। अवरे य हंस-सारस-पारावइ-कूइय-सारयं ॥ २११४ ॥ नहसुप्पयंति वेगेणेगे अन्ने उ निप्पयंति महिं ।। मुंचंति सीहनाए एगे अवरे तु हक्कंति ॥ २११५ ॥ के वि विरइयकुरूवा विडाइभासाहिं हासयंति जणं । एयमणेगविहाओ जायाओ सुराण चिट्ठाओ ॥ २११६ ॥ एत्थंतरम्मि सोहम्मसक्कआणाए सव्वओ वि सहा । जाया निच्चलदेहा, सहाजणो चित्तलिहिय व्व ॥ २११७ ॥ तिहुयणगुरुतित्थेसरमुहपंकयनिहियनियनयणभमरा । रइयकरकमलकोसा दूरुज्झियसव्ववावारा ॥ २११८ ॥ तो तिहुयणिक्कगुरुणा, नवनीरयगज्जिविजियसद्देण । भव्वसमूहावहरियछुहा-पिवासाइदोसेण ॥ २११९ ॥ सुर-नर-तिरच्छपरिसा नियनियभासाणुगमणसीलेण । जोयणमित्तखेत्तट्ठियजनकयसवणसोक्खेण ॥ २१२० ॥ निस्सेससत्तसंदोहमोहविसहरणअमयपूरेण । पारद्धा धम्मकहा, संसारमहारिनिम्महणी ॥ २१२१ ॥ तहाहि - धम्मो समग्गकल्लाणकुवलयावलिवियासरयणियरो । धम्मो भवपारावारतारणुत्तरलतरकंडं ॥ २१२२ ॥ धम्मो मणवंछियअत्थसत्थसंपत्तिकरणकप्पतरू । किं बहुणा ? धम्मो च्चिय वियरइ सुरलोयसिद्धीओ ॥ २१२३ ॥ तं दाण-सील-तव-भावणाहिं जाणह चउव्विहं भव्वा । तत्थाइममायन्नह भेयं तिविहं कहिज्जंतं ॥ २१२४ ॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ पढममिहनाणदाणं बीयं सत्ताणमभयदाणं ति । धम्मोवग्गहदाणं तइयं तत्था इमं मुणह ।। २१२५ ।। जाणिज्जइ जेण हियं, भक्खं पेयं च तह उवादेयं । नज्जंति पाडिवक्खा, वि तह इमाणं चउन्हं पि ।। २१२६ ।। नाएण हियाईणं, आयरणं कीरए सुहाण सया । अहियाइं णच्चा उ य सुहवत्थूण निच्चं पि ॥ नवभत्तपरिन्नाणं, च होइ उल्लसइ निम्मलविवेओ तद्दाणं पुण जाय जह मोक्खकरं तह कहेमि ॥ अहिज्जइ सिद्धंतो, पाढिज्जंति य विणीयवरसिस्सा | देसिज्जइ तयत्थो, कीरंति य पट्टियाईणि ॥ २१२९ ॥ जेण विइन्नं नाणं, सत्ताणं तेण सव्वमवि दिन्नं । जे नाउं ते धम्मं, काऊणं सिवपयमुविंति ॥ २१३० ॥ बियं तु अभयदाणं, तं पुढवि- दगग्गि- वाऊ - रुक्खाण । बि-ति- चउ-पंचिंदीणं च रक्खणे होइ सत्ताण || २१३१ ॥ तण्हाछुहारुयाहिं, सयमेव किलिस्समाण सत्ताण । जो देइ अभदाणं, तेण न किं तिहुयणे दिन्नं ॥ २१३२ ॥ अच्चंतदुत्थया वि हु, विसमावडिया वि वाहि - विहुरा वि । जीविउमेव य वंछंति, पाणिणो नूण नो मरिउं ॥ २१३३ ॥ ता अप्पं पिव सव्वे वि, पालणिज्जा सया पयत्तेण । जेण न लाभो वि मुहा य, ताण मरणे जओ भणियं ॥ २१३४ ॥ कणयगिरिं दिज्जंतं, रज्जं वा सयलमंडलाणुगयं । मारिज्जतो सव्वं, चईऊणं जीवियं महइ ॥ २१३५ ॥ नीरोगतं दीहं च जीवियं देहबलपरिप्फुरणं । जीवदयाए जायइ, जीवाणं असमसोहग्गं ॥ २१३६ ॥ तइयं च धम्मोवग्गहदाणं तं पंचहा विणिद्दिठं । सुद्धं दायग-गाहग- देएहिं सकाल - भावेहिं ॥ २१३७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं २१२७ ।। । २१२८ ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६९ अणंतजिणदेसणा दायगसुद्धं तं चेव होई, जो दायगो विसुद्धमई । नाओवज्जियवित्तो उदारपयई पसंतप्पा ॥ २१३८ ॥ विगयमओ निम्माओ, लोहविहूणो थिरो गहीरमणो । कप्पाकप्पविहिन्नू, हियकारी देवगुरुभत्तो ॥ २१३९ ॥ सत्थासओ सया वि हु, असेसकम्मक्खयत्थमुज्जुत्तो । दिन्नि वि निरणुतावी, सुगम्मो तु सयललोयस्स ॥ २१४० ॥ गाहगसुद्धं तं चेव, गाहगो जो तिगुत्तिसंजुत्तो । पंचसमिओवउत्तो संधारओ समयविन्नाया ॥ २१४१ ॥ उग्गम-उप्पायण-एसणा, विसुद्धऽन्नपाणकयवित्ती । सुहसीलंगट्ठारससहस्सलंकारधरमुत्ती ॥ २१४२ ॥ विकहारिउ तव-संजमुज्जओ सच्च-सोयसंपन्नो । निग्गंथो गीयत्थो, दयापरो समतिणमणी य ॥ २१४३ ॥ नीरागो निद्दोसो, चत्तममत्तो नियम्मि वि सरीरे । सज्झायज्झाणरओ, निरीहचित्तो य सुस्समणो || २१४४ ॥ देयविसुद्धं तं चिय, जं देयं कप्पए सुसाहूणं । नवकोडीसु विसुद्ध, धम्मसरीरस्स वुड्ढिकरं ॥ २१४५ ॥ असणाई आसणाई, अवस्सयाई उ वत्थपत्ताई । नाउवज्जियमुग्गम-उप्पायण-एसणासुद्धं ॥ २१४६ ॥ कालविसुद्धं तं चिय, उवभोगे जस्स होइ जो कालो । दायव्वं तईय च्चिय, तयं जओ एरिसं भणियं ॥ २१४७ ॥ काले दिन्नस्स पहेणयस्स अग्घो न तीरए काउं । तस्सेव अथक्कपणामियस्स गिण्हतया नत्थि ॥ २१४८ ॥ भावविसुद्धं तं जं दिज्जइ मुणिणो इमं सुपत्तं ति । आयाणुग्गहबुद्धीए, वद्धमाणाए सद्धाए ॥ २१४९ ॥ पडिवत्तीए परमाए, उल्लसंतीए भूरिभत्तीए । .. अन्नाई य सासंसा रहियं धम्मत्थिसद्देहिं ॥ २१५० ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० सिरिअणंतजिणचरियं नाणाभयदाणेणं, सयासओ अन्नदाणमइसारं । जं सइ देहे नाणाई वद्धए सो हु अन्नेणं ॥ २१५१ ॥ भव्वेहिं साहियव्वा, सिद्धी तस्साहयं पुण सरीरं । न वहइ तमन्नरहियं, तद्दाणं सिद्धिअंगं ता ।। २१५२ ।। जिणपवयणं पभावइ, दितो भत्तीए असणपाणाई । पावरं य पुन्नपसरं, कमेण भव्वो सिवपुरं पि ॥ २१५३ || भणियं दाणं जंपेमि, संपयं सत्तरसविहं सीलं । पाणिवहपमुहा तम्मि, आसवा पंच-भेय इमो ॥ २१५४ ॥ पाणिवहो अलियवयणं, अदत्तगहणं च मेहुणं तुरियं । एयाणं पंचमओ परिग्गहो होइ विन्नेओ ॥ २१५५ ॥ एगिंदियाइ - पंचिदियंत - जीवाण सुहुमथूलाणं । पढमं तिविहं तिविहेण, रक्खणे होइ सीलंगं ॥ २१५६ ॥ जो सुहुम- बायरालीयवज्जओ तस्स बीयसीलंगं । सिलियं पि अदत्तं वज्जिरस्स जायइ तइज्जं से || २१५७ ॥ तिविहं तिविहेणामर - नर - तिरि-इत्थीओ वज्जमाणस्स । होइ चउत्थं तह पंचमं तु संतोसजुत्तस्स ॥ २१५८ ॥ फरिसण- रसणा घाणं चक्खू - सोयं च इंदियप्पणगं । निग्गहियं संपज्जइ, सीलंगत्तेण पणगं पि ॥ २१५९ ।। मिउ - कक्कसेसु फासेसु, तोस - रोसे सया न जो कुणइ । तस्स फासिंदिय - निग्गहुब्भवं होइ सीलंगं ॥ २१६० ॥ अइमहुर - कडुरसेसुं पसंस- निंदाओ उज्जइ सया जो । रसणिदियसंजमणुब्भयं से होइ सीलंगं ॥ २१६१ ॥ जो अइसुयं च दुग्गधं वत्थुविसयम्मि राय - उव्वेए । न पयासइ घाणिंदियजएण से लसइ सीलंगं ॥ २१६२ ॥ उब्भडरूवे कुरूवे रूवे, नो जस्स पहरिस-विसाया । अब्भुल्लसंति तं तस्स, चक्खुविसयम्मि सीलंगं ॥ २१६३ ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ अणंतजिणदेसणा मंजुलखलस्सरेसुं, पसंस-निंदं च कुणइ जो नेव । सो चेव सोयनिग्गहसीलंगसमस्सिओ होइ ॥ २१६४ ॥ कोहो माणो माया लोभो चत्तारि जे इह कसाया । तन्निग्गहणसरूवं, सीलंगं चउक्कमक्खेमि. ॥ २१६५ ॥ कोवा गुरुरोगो विव, सुकयसरीरं खवेउमुल्लसिउं । पसमेण ओसहेण व जोऽवहरइ तस्स सीलंग ॥ २१६६ ॥ माणो मत्तगओ इव, अट्ठमयट्ठाणमयपरायत्तो । तं मद्दवंकुसवसं करेइ जो तस्स सीलंगं ॥ २१६७ ॥ माया गुरुखित्तं, मही अच्चंतपवंचवंचणेहिऽखिला । जो पवियारइ अज्जवहलेण तं तस्स सीलंगं ॥ २१६८ ॥ लोहमहामयरहरं, बहुआसापसरवारिपडहत्थं । सुत्तीए घडसुएण व, जो सोसइ तस्स सोलंगं ॥ २१६९ ॥ मण-वचण-कायजोगा, निजंतिया जस्स हुंति अप्पवसा । तं से सीलंगतिगं, साहिप्पंतं निसामेह ॥ २१७० ॥ रोद्दट्टज्झाणेहिं पाणी, पावाई पावइ मणेण ।। धम्मज्झाणेणं तन्निरोहओ होइ सीलंगं ॥ २१७१ ॥ अब्भक्खाणाईहिं, दुव्वयणेहिं जमज्जियं कम्मं । वयसंजमेण तम्मि, निज्जरिए होइ सीलंगं || २१७२ ॥ गमणचलणाइएहिं, पमायओ पाणिवहपरो काओ । जो संलीणं तं धरइ जायए तस्स सीलंगं ॥ २१७३ ॥ इय सतरसविहसीलं पालिंति पमायवज्जिया जइणो । नवबंभचेरगुत्ता, पसंतचित्ता महासत्ता ॥ २१७४ ॥ एयं पुणो गिहत्थाण होइ देसेण सव्वओ नेव । जं तेसिं एगिदियरक्खाए नत्थि नित्थारो ॥ २१७५ ॥ नवरं परनारीवज्जणेण सघण जायए सीलं । तह परनरपरिहारेण भन्नए तं सुसड्ढीण ॥ २१७६ ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ २१७९ ॥ परनारिवज्जिय नरा परपुरिसविवज्जियाओ नारीओ । पूएज्जति सूरेहिं वि परमं च पवित्तयं जंति ॥ २१७७ ॥ जे पालयंति सीलं, विलसंते सुरनिरुत्तमे भोए । भोत्तूण णंतरं चिय, लहंति लहु सिद्धिसंबंधं ॥ २१७८ ॥ भणियं सीलं इण्हि, तवोविहाणं भणामि बारसहा । अब्भंतरं छभेयं, बज्झं पि हु छव्विहं होइ ॥ अणसणमूणोयरिया वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ । कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ २१८० ॥ पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य, अब्भितरओ तवो होइ ।। २९८१ ॥ इत्तरियं जावज्जीवियं च भेया भवंति दोऽणसणे । पढमं चउत्थ-छट्ठाई, तदियरं होइ मरणंतं ॥ २९८२ ॥ ऊणोयरिया ऊणयदत्तिकवलाण भोयणे भवइ । पच्चयघरसंखेवेण भोयणे वित्तिसंखेवो ॥ २९८३ ॥ दुद्ध - दहि- तेल्ल - घय - गुल - एक्कन्नाणेक्कगाइपरिहरणे । मोहोदयपसमत्थं, जइहिं कीरइ रसच्चाओ ॥ २९८४ ॥ कीरइ कायकिलेसे, भूसयणऽन्हाण लोयकरणाई । संलीणया अकज्जं अचलंऽगोवंगयाकरणा ।। २१८५ ।। छव्विहमवि तुम्हाणं बज्झमिमं साहियं तवच्चरणं । अब्भंतरं पि इहि, छव्विहमायन्नह कहेमि ॥ २९८६ ॥ सन्नाणचरणदंसणआसेवणे समयविहिअकहणे य । अवरम्मि वि पावम्मि, पायच्छित्तं जिणा बिंति ॥ २९८७ ॥ मोक्खत्थीहि विहेओ, विणओ गुरु- बाल - खवगपमुहाणं । कज्जं वेयावच्चं, इमाण असणाइणा जेण ॥ २९८८ ॥ पडिभग्गस्स मयस्स व नासइ चरणं सुयं अगुणणाए । साहुवेयावच्चकयं, सुहोदयं नासए कम्मं ॥ २९८९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ अणंतजिणदेसणा वायण-पुच्छण-चिंतण-परियत्तण-धम्मकहण-सब्भावा । सज्झाओ रिद्धिकरो, मोक्खफलो होइ भणियं च ॥ २१९० ॥ एत्तो तित्थयरत्तं, सव्वन्नुत्तं च जायइ कमेण । जं परमं सोक्खंगं, सज्झाओ तत्थ निद्दिट्ठो ॥ २१९१ ॥ सुत्तत्थथिरीकरणं, नवसंवेगो महंतवेरग्गं । सेहसिक्खावण सज्झायवावडाणं गुणा हुंति ॥ २१९२ ॥ रोई अढें धम्म सुक्कं झाणाई हुंति चत्तारि । नारय-तिरिय-नरा-मर-सिवगइसंसाहणाई कमा ॥ २१९३ ॥ गब्भत्थे वि हु रिउणो, हणेमि. इच्चाई चिंतणे रोइं । अटुं तु पयट्टइ-गेह-सयण-दविणाइभावणओ || २१९४ ॥ खित्तवलयदीवसायरजिणगुरुसरणाइणा भवइ धम्मं । सुक्कं तु केवलुप्पत्तिसमयसंसूयगं होई ॥ २१९५ ॥ अभितरे तवम्मिं पयम्मिं धम्मसुक्कज्झाणाई । दोन्नि वि कायव्वाई, भव्वेहिं विसुद्धसद्धाए ॥ २१९६ ॥ कीरइ काउस्सग्गो, कुसिविण-अवसउण-दुन्निमित्तेसु । तह देवयाइआराहणम्मि, कम्मक्खयाइसु य ॥ २१९७ ॥ सहसकरमंडलं जह, जयाओ अवहरइ तिमिरपब्भारं । तह बारसहा वि तवच्चरणं जीवाउ पावभरं ॥ २१९८ ॥ जाई निकाइयाइं ताई वि कम्माई तिव्वतवचरणा । नासंति धुवं बद्धपुट्ठनिहत्ताण का गणणा ? ॥ २१९९ ॥ भणिओ तवो इयाणिं भव्वा ! साहेमि भावणं तुम्ह । अक्खेवेण वि मोक्खो, जायइ जीए सयासाओ || २२०० ॥ रोद्द-ट्टज्झाणविवज्जियाण सद्धम्मज्झाणजुत्ताण । पायं कल्लाणकरी संभविभदाण सा होइ ॥ २२०१ ॥ तित्थयरचरियसारणा सुविहियगुरुगुरुयगुणगणग्गहणा । सत्ताण सा समुल्लसइ सव्वयाऽवज्जभीरूणं ॥ २२०२ ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ सिरिअणंतजिणचरियं अणुकलमवि जीवाणं, गच्छइ वाउ व्व जीवियं निच्चं । सरयसमुब्भवअब्भावलि व्व नासइ सिरी तुरियं ॥ २२०३ ॥ रमणीयं पि हु परिगलइ जोव्वणं सक्कचावचक्कं व । अचिररइप्फुरियं पिव, खणिगं चिय पिययमा पेम्मं ॥ २२०४ ॥ पुन्नोदेउ व्व दुलहो, पायं पाणीण इट्ठजणजोगो । सुलहाओ आवयाओ वमियमेणमणिट्ठगोट्ठीओ ॥ २२०५ ॥ एवं भवसंभविवत्थुवित्थराणिच्चयत्तचिंता वि । केसि पि होइ भव्वाण कारणं सुद्धभावस्स ॥ २२०६ ॥ दाणं अवदाणं पि हु, सीलं विमलं पि दुक्करो वि तवो । सव्वं पि न फलइ धुवं, भावेण विणा जओ भणियं ॥ २२०७ ॥ सुचिरं पि तवो तवियं, चिन्नं चरणं सुयं च बहुपढियं । जइ नो संवेगरसो, ता तंतु-सखंडणं सव्वं ॥ २२०८ ॥ तहाहि - रूवे चक्खू, मिहुणे हियालिया रसवईए जह लवणं । तह परलोगविहीए, सारो संवेग-रस-फंसो ॥ २२०९ ॥ किविणा वि सीलरहिया वि तवविहूणा वि अकयनियमा वि । सुहभावेणमणेगे केवलनाणस्सिरिं पत्ता ॥ २२१० ॥ इय दाण-सील-तव-भावणाओ कहियाओ अम्ह इण्हि तु । आयन्नह मुणिधम्मं दसप्पयारं तयं एयं ॥ २२११ ॥ खंती-मद्दवऽज्जव-मुत्ती-तव-संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ २२१२ ॥ बीयं तु सावयाणं धम्मं, निसुणह दुवालसं वि भेयं । तत्थाणुव्वयपणगं, सिक्खावयसत्तगं तमिमं ॥ २२१३ ॥ पाणिवह-मुसावाए-अदत्तमेहुण-परिग्गहे चेव ।। दिसिभोगदंड-सामाइय देसे, तह पोसहविभागो ॥ २२१४ ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतजिणदेसणा १७५ दुण्ह वि इमाण धम्माण मूलमणुसरह सुद्धसम्मत्तं । तम्मि अरागरोसो, देवो अरिहाणुसरियव्वो ॥ २२१५ ॥ निग्गंथो गीयत्थो, सुबंभयारी मुणी गुरू मज्झो । जीवाजीवाण नवण्हं, तत्ताण य सुमरणं कज्जं ॥ २२१६ ॥ संमत्तलंकिएणं, धम्मेणमिमेण भूरिभव्वजणो । सिद्धो पुव्वं सिज्झइ, य संपयं सिज्झिही य पुरो || २२१७ ॥ वागरमाणे सद्धम्मदेसणं इय अणंतजिणराए । जसपमुहा पन्नासं, नरेसरा फुरियबहुमाणा || २२१८ ॥ तह विहु रंतर संजायपुलयपरिकलियमुत्तिणो दूरं । आणंदयंसुजलपूरपवहपक्खालियकवोला ॥ २२१९ ॥ भालयलमिलियभूपुट्ठमभिनया सामिपायपउमजुयं । सिरउवरिधरियकरकमलकोरया विन्नवंति पहुं ॥ २२२० ॥ पहु ! तुम्ह देसणा-मंत-सवणओ जायगुरूयतासो व्व । अम्हाण कत्थई गओ, मोहपिसाओ पणासेउं ॥ २२२१ ॥ तो अम्हे आजम्मं सेविस्सामो सया वि तुम्ह कमे । मुत्तूणं कमलसरं हंसा गच्छंति नऽन्नत्थ ॥ २२२२ ॥ ता सामिसाल ! दिक्खं, दाउं नियसेवए कुणसु अम्हे । अब्भत्थिया न गुरुणो, विणयप्पणयं परिहरंति ॥ २२२३ ॥ तो उट्ठिऊण पहुणा, तेसिं पन्नाससंखनिवईणं । कयरज्जसुत्तयाणं, दिन्ना दिक्खा नियकरेण ॥ २२२४ ॥ तह मंडलीयसामंत-मंतिसेणाहिवा वि लिंति वयं । सहिया सत्थाहिव-सेट्ठि-इब्भकुल-पुत्तयाईहिं ॥ २२२५ ॥ तोऽणंतपयप्पणया, जिणप्पिया परिलसंतकरकमला । पउम व्व सायरसुया, पउमा पत्थइ पहुं दिक्खं ॥ २२२६ ॥ तो सा विहिणा पन्नासरायअंतेउरीहिं सह पहुणा । पव्वाविया तहऽन्नाओ, दिक्खियाओ पुरंधीओ ॥ २२२७ ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ लोओ सिरेसु विहिओ, सव्वेहिं वि साहु- साहुणिजणेहिं । ताण सिरेसु नर - सुरा, खिवंति वासे सुतूर - सरे । २२२८ ॥ तोऽणंतबलनिवाईहिं, मंति- सामंत- सेट्ठिलोएहिं । सपिएहिं वि गहियाई सदंसणारं गिहिवयाई ।। २२२९ ॥ तिरियाण वि जायाओ, काण वि सम्मत्तदेसविरईओ । सम्मत्तं चिय पत्तं, केहिं वि सुर-नर- तिरिच्छेहिं ॥ २२३० ॥ केहि वि पत्ता बोही, जाओ अवराण भद्दगो भावो । नियजोग्गयाणुरूवो, लाहो भव्वाण संजाओ ॥ २२३१ || एवं चउविहो वि हु, संघो पढमे वि समवसरणम्मि | जाओऽणंतजिणिंदस्स, केवलुज्जोयदिणमणिणो ॥ २२३२ ॥ तो रायरिसीण जसाईयाण पणमित्तु पुच्छमाणाण । कहइ जिणो उप्पन्ने, विगमे व धुवे वईयतत्तं ॥ २२३३ ॥ तं माउयापयतिगं, निस्संकाऊण ते तदुवउत्ता । पुव्वभवाराहियनाणवससमुल्लसियबहुपत्ता || २२३४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तह निकाईय - गणहर-पय- पयवी-पत्त - पयरिसत्तेण । एक्कारस अंगाई, चउदसपुव्वाइं विरयंति ।। २२३५ ॥ जुयलं भिन्नं भिन्नं नाउं, दुवालसंगिं कयं निव - रिसीहिं । चउवि हु- सुरवइ - पमुहजण - जुओ उट्ठिओ सक्को ।। २२३६ ॥ सिय- उत्तरीयविरइयमुहकोसो भत्तिनिब्भरसरीरो । अइसुराहिवासपूरियथालकरो ठाइ पहु-पुरओ ॥ २२३७ ॥ तयणु अणुक्कमसंठिय जसाइसाहूण अणंतजिणराया । गणहरपयं पयच्छइ, भत्तिभरानमिरमुत्तीण ॥ २२३८ ॥ सुत्तेणं अत्थेणं उभएणं दव्वपज्जवेहिं च । नयगुणजुएहिं दितोऽणुन्नं सगणाणुओगस्स ॥ २२३९ ॥ तेसि सिरेसु सनरामर - सुरो खिवइ वासमुट्ठीओ । गिज्जंतमंगलालीसु वज्जिरे दुंदुहीतूरे ॥ २२४० ॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ अणंतजिणसंघवण्णणं ते वि हु बहु मन्नंति पहुवयणं, विणयविणयसिरकमला । तह पउमा संठविया, अज्जा वि पवत्तिणि-पयम्मि ॥ २२४१ ॥ तो पुव्वमुहसीहासणंमि, उवविसइ जिणवरो अणंतो । अह अग्गेयदिसाए, गणहरमुणिणो समुवविट्ठा ॥ २२४२ ॥ तप्पच्छा वेमाणियदेवीणुड्ढट्ठियाण अज्जाओ । पिट्ठीए संठियाओ, उड्ढट्ठाणट्ठिइधराओ ॥ २२४३ ॥ सम्मुहमवलोयंतो, गणहरविंदं समुद्दिसिय सामी । देसइ सिक्खागब्भं, पसत्थवयणेहि हियकारी ॥ २२४४ ॥ आयन्नह मुणिवइणो ! पयमेयं तिजयपत्तभूयाण । सच्छासयाण दिज्जइ छत्तीसगुणाण जेणुत्तं ॥ २२४५ ॥ बूढो गणहरसद्दो, भरहसुयाईहिं धीरपुरिसेहिं ।। जो तं ठवइ अपत्ते, जाणतो सो महापावो ॥ २२४६ ॥ तो तं पाविय तुब्भेहिं, पसमपीऊसवरिससुहिएहिं । भव्वाणमायरेणं, सया वि सद्देसणा कज्जा ॥ २२४७ ॥ सुत्तत्थपोरिसीसुं, सुत्तत्था विणय-पणयसिस्साण । वागरियव्वा निज्जरफलं ति सव्वायरेण सया ॥ २२४८ ॥ तह चरणकरणकिरियाकलावमणुसरियसीयमाणाण । सिस्साण चोयणा सइ कज्जा उवयारनिरएहिं ॥ २२४९ ॥ असमाणनाणसपहुत्त-गव्वमुज्झिय सया वि तुब्भेहिं । अप्पा वि रक्खियव्वो, पमायपंकम्मि खुप्पंतो ॥ २२५० ॥ इय निसुयजिणिंदअणंतसिक्खणोदारदेसणावयणा । इच्छामो अणुसट्ठि ति, बिंति गणहारिणो नमिउं ॥ २२५१ ॥ (दाणाइसु कहाओ) मइ-सुय-ओही-मण-पज्जवेहिं, नाणेहिं ताय नेउ वि । तयणु जसगणहरो, सव्वभव्वलोयावबोहत्थं ॥ २२५२ ॥ पुच्छइ पणामपुव्वं, पहुणो जे दाण-सील-तव-भावा । तुब्मेहिं साहिया ताण कहइ अम्हाण दिळेंते ॥ २२५३ ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ सिरिअणंतजिणचरियं आयन्निऊण गणहरपुच्छं सव्वा वि चिंतए परिसा ।। नाऊण व अम्ह मणं, पुट्ठमिमं गणहरिदेण ॥ २२५४ ॥ आह जिणिंदो जसगणहरिंद ! निसुणेसु पुट्ठदिद्रुते । एगग्गमणो होउं साहिप्पंते सहासहिओ ॥ २२५५ ॥ रणविक्कमस्स दाणं, सीलं रयणावलीए सुतवो अ । सिरिचंदकंतरन्नो भावो सिंगारमउडस्स ॥ २२५६ ॥ (दाणोवरि रणविक्कम-निवकहा) एए सिवेक्कफलया, जह जाया तह पयासिमो तुम्ह । तत्थ रणविक्कमकहं, आयन्नसु दाणधम्मम्मि ॥ २२५७ ॥ अब्मलिहसुब्भअदब्भपरमपायारसपरिक्खित्ता । चउदिसि रम्मारामा, अत्थि पुरी विउलसाल त्ति ॥ २२५८ ॥ गुरुरायपहा रेहइ, पुन्निमरयणि व्व जा विगयभद्दा । गुरुप्पमाणवाइप्पयप्पयारा वुहसह व्व ॥ २२५९ ॥ करिसयवत्ती अगओ वि नायरहिओ वि सप्पचित्तो जो । विक्खायखत्तिओ वि हु पडुतरपंचिंदियपवित्ती ॥ २२६० ॥ तीए पुरीए कुडुंबी सो निवसइ. सीहविक्कमो नाम । सीहो व्व करचवेडाहयबहुमयजायजसपसरो ॥ २२६१ ॥ (जुयल) तस्सस्थि विक्कमवइ, जहत्थनामा पिया पियालावा । गोरी देहेण सई सहावओ देवयाओ व सा ॥ २२६२ ॥ तीए पुत्ता चत्तारि संति, ससि-कंति-कंतदंतपहा । केसवभुय व्व गय-संख-चक्क-सारंगकयसोहा ॥ २२६३ ॥ तप्पढमो दिट्ठभुयदंडचंडिमाडंबरुड्डमरमुत्ती ।। रणविक्कमो त्ति सुहजायलक्खणक्खायरायपओ ॥ २२६४ ॥ बिइय-तइज्ज-तुरीया पुत्ता नयरग्गलापलंबभुया । रिउविक्कम-हरिविक्कम-सुरविक्कमनामविक्खाया ॥ २२६५ ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा १७९ नवजुव्वणदढदेहा गेहाओ, विणिग्गया कयाइ समं । चत्तारि वि गहिय हला, बल व्व पत्ता य खेत्तम्मि || २२६६ ॥ खेडिय हलाई सोहिय तणाई वविऊण विविहधन्नाइं । सम-वस-मल-कलिय-गलंत-सेय-सलिलाविलावलिया ॥ २२६७ ॥ मुत्तुं हलाई पत्ता, झड त्ति गंतुं तले तमालस्स । निवसंति सीयलानिलजायसुहम्मुक्कसिक्कारा ॥ २२६८ ॥ अन्नोन्नं जपंताण, ताण पुत्तो पिया गहियभत्तं । किं बिंति इमे ति ठिओ, उसप्पिणिए मुणि व झाणगउ ॥ २२६९ ॥ तरुअंतरिए जणए, जंपइ रणविक्कमो अहो भाया । पेच्छह जह अइरुदं, दारिदं दूमए अम्हे || २२७० ॥ बालत्ताओ वि अच्चंतअरसविरसन्नपाण-भोयणओ । समणाण व अम्हाणं, देहे दोबल्लमुल्लसइ || २२७१ ॥ अमइललहुअबहुच्छिड्दंडियाहरियरुक्ख-किसदेहा । रंकालंकारधर व्व सव्वया दुहपयं जाया ॥ २२७२ ॥ इहलोयपारलोइयसुहाण पत्तं कहं भविस्सामो । जेणम्हाण न एगो वि, अत्थे धम्मत्थकामाणं ॥ २२७३ ॥ एमेव परियडामो, अम्हे भोगोवभोगपरिहीणा । मलपडलसामलंगा, छायापुरिस व्व सव्वत्तो ॥ २२७४ ॥ पत्तं पि न पत्तं चिय, नरत्तमुवगरइ जं न कस्सावि ।। मडयं पि वरं जं सावयाई भक्खंति आतित्तिं ॥ २२७५ ॥ नूणं निरज्जमाणं रज्जं पि हु जाइ जणयदिन्नं पि । पररज्जसिरिं पहढेणाऽऽयट्ठइ उज्जमुज्जुत्तो ॥ २२७६ ॥ जइ भवह मह सहाया, तुब्भे ताहं धुवं अवंतीए । गंतुमवंतीवइनिवकन्नं, परिणेमि मयणसिरिं ॥ २२७७ ॥ अजिणमए तिमिरतिरोहिएण रयणीए भेरवाययणे । निसुओ निमित्तनाया एवं सिस्सस्स साहंतो || २२७८ ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० सिरिअणंतजिणचरियं सव्वंगलक्खणं जो, मयणसिरिकन्नयं विवाहेही । रन्नो अवंतिवइणो सो नरनाहो धुवं होही ॥ २२७९ ॥ तं सोउमाह सिस्सो को सो तो साहए निमित्तन्नू । सामण्णनरो रणविकमो त्ति तो हं ठिओ हिट्ठो ॥ २२८० ॥ चिंतेमि मज्झ नाम कहियं एएणमहव कत्तो मे । एवंविहपुत्ताई समनामाणो जओ बहुया ॥ २२८१ ॥ अहवेत्थ भवे कस्सइ कयाइ केणावि कुसलकम्मेण । संघडइ अघडमाणं पि जेणं कम्मे वि विन्नत्तं ॥ २२८२ ॥ इय परिभाविय तत्तो निग्गंतुं नियघरे पसुत्तो हं । कहियं च तुम्हमेयं, गच्छिस्समहं अवंतीए ॥ २२८३ ॥ जइ अणुकूलो दिव्वो, ता थोवदिणेहिं परिणिऊण तयं । रायसुयं इहयं तं आणिऊण हं करिस्समावासं ॥ २२८४ ॥ इह कंचणकलसावलिसमलंकियपंडुगुडुरघरेसु । आवासिस्सामि अहं, समंतिसामंतमंडलिओ ॥ २२८५ ॥ इह पुण चंकमिररणज्झणंतमंजीरमुहलियदियंता । अत्थाणं वारविलासिणीओ समलंकरिस्संति ॥ २२८६ ॥ इह चउखंडय-गुड्डर-गुणलयणि-विमाणियाइट्ठाणेसु । विहियट्ठिई पहिट्ठो, चिट्ठिस्सइ सव्वकडयजणो || २२८७ ॥ पच्छानिलउव्वोल्लिरपल्लचक्कं केलिदुमसमूहम्मि । कीलिस्संति समं सहयरीहिं सिंगारिणो तरुणा ।। २२८८ ॥ इह सम्मुहवडवणसंडमंडलीसिसिरतलपएसम्मि । पेच्छिस्सह करि-करिणी-कलह-कुलं अग्गलिज्जंतं ॥ २२८९ ॥ एत्थानिलपरिलोलियधयालिज्झणहणिरकणयकिंकिणिया । पसरिस्संति समंता रहनिवहा नायगसणाहा ॥ २२९० ॥ जव-जवस-गासलालसा मुहाओ, इह तुरयमालियाओ वि । होहिंति गीवा-गय-चल-चामर-विलसिरंगीओ ॥ २२९१ ॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा एत्थ धणुद्धरफारक्क- चक्कलल्लक्ककुंतकरसुहडा । सव्वत्तो संतासं सत्तूण मणे जणिस्संति ॥ २२९२ ॥ इह पुण कवलीकयनिंब - कुहरकसरक्कए कुणंताई । संदाणियक्कमाइं, अरिहंति कमेण य कुलाई ॥ २२९३ ॥ इह कवलियनवदुव्वादल - पूलय - पडल - पत्ततित्तिमुहा । उवविसिय वसहविसरा रोमंथं वत्तइस्संति ।। २२९४ ॥ इह सव्वत्तो वज्जंत- भूरि-तंबक्क-बुक्क ढक्काहिं । बहिरिज्जिही जयं पि हु, पउस - मज्झण्ह - गोसेसु ॥ २२९५ ।। पच्छालंबद्धयछत्तसिक्किरीभरतिरोहियनहंता । कडयस्स चउप्पासं सामंता संचरिस्संति ।। २२९६ ॥ ता सव्वा वि सव्वे वि चलह जह थोवदिवसमज्झमि । ठावेमि समग्गे विहु अहं महामंडलीयते ॥ २२९७ ॥ इय जंपिरं तमायन्निउं पिया जायअसरिस अणक्खो । साहिखेवं फरुसक्खरेहिं परिजंपिउं लग्गो ।। २२९८ ॥ रे रे भूयाविट्ठो व्व पीतमज्जो व्व सन्निवाइ व्व । जमसंवद्धाइं तुमं जंपसि इय आलजालाई ॥ २२९९ ॥ तुह गोत्ते वि हु जाया, सव्वे वि नरेसरा महिड्ढीया । तेण तुमं पि हुं होहिसि, महीवई इह न संदेहो || २३०० || नूणं न देइ देव्वो रुट्ठो वि हु कस्सइ करचवेडं । किंतु कुबुद्धीओ देइ, दुसहदुक्खावसाणाओ ।। २३०१ ॥ फिट्टो पाविट्ठ ! सयं तहावराए इमे वि फेडेसि । अहवा सई विणट्ठा, दुट्ठा नासिंति अन्ने वि ॥ २३०२ ॥ रणविक्कमेण भणियं, किं ताय ! तुमं मुहा पकुप्पेसि । तुज्झाभिमुहं न मए जंपियं जंपियं किं पि हु निरुद्धं ॥ २३०३ ॥ विहलं जंतं न तरामि पेच्छिउं चंदणं व नियजम्मं होउ व मा वा लच्छी तयज्जणे उज्जमिस्सामि ॥ २३०४ ॥ १८१ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ बलभद्दो वि अभद्दो जो धरइ करे हलं न संदेहो । अहवा कुओ विवेओ, संजाइ रोहिणीतणए । २३०५ ॥ करफंसं पि न काहं अत्थेक्कस्स व हलस्स नियमेण । कम्मेण जेण जणिओ, तस्सेव य वित्ति चिंतामो || २३०६ ॥ तं सोउमाह जणओ, जइ न करसि पाव ! महग्घरे कम्मं । ता निग्गंतु रे दुट्ठ ! जत्थ पडिहाइ जाहि तहिं ॥ २३०७ ॥ तं सोउं अहिमाणी तिणीकयासेसजणयजणो झत्ति । एसो जामि त्ति पयंपिऊण चलिओ गुरुरएण ।। २३०८ ॥ वारंतस्स वि पिउणा, लग्गा लहुभाउणो वि तम्मग्गे । जा विप्फुरइ न माणो, पामिज्जइ ताव गुरु आणा || २३०९ ॥ तायं तणं व सायरमहिं व देसं विसं व उज्झंति । तिहुयणमहग्घमाणालंकारालंकियप्पाणा ॥ २३१० ॥ सिरिअणंतजिणचरियं जणणि - जणएसु नेहो, हुंतो वि तिरोहिओऽहिमाणेण । तरणिरयणीयराण व, किरणुक्केरो विडप्पेणा ।। २३११ ।। हियए हिओवएसा, न रमंति पसरिएऽ हिमाणम्मि । किं परियडंति पसुणो चलिखेत्तम्मि हरिणिंदे ॥ २३१२ ॥ गुरुआ हि माणबहुपाणपरवसीहूयहिययवावारा | अन्नाय - तिस-च्छुह-पहपरिस्समं जंति चउरो वि ॥ २३१३ ॥ भोयणट्ठाणे न सुयंति नेव भुंजेति सयणठाणंमि । एवं अक्खंडपयाणएहिं पत्ता अवंतीए ।। २३१४ ॥ कलहोयमया कविसीसयावली सच्छफलिहसालसिरे । आभाइ जीए सरयब्भमालिया इव नहुच्छंगे || २३१५ ॥ अडवि व्व पयासियपुंडरीयरयविगयपत्तरहवाहा । सीहासणासिया वि य, जा पमयाहिय बहुविलासा ।। २३१६ ॥ तीए दरियारिवारणिवारवियारणविढत्तजसपसरो । नामेण अवंतिवई, रईसरो इव समत्थि निवो || २३१७ ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ रणविक्कमकहा अकलंकाकत्तेण ससिं, थिरप्पयावत्तणे तरणिं पि । दितो कणयं जो हसइ, धरियकणयं सुरगिरि पि ॥ २३१८ ॥ सव्वंतेउरकंताहिवत्तसंपत्तउत्तमजसोहा । सोहावइ त्ति तस्सत्थि हत्थिकुंभत्थणी दईया ॥ २३१९ ॥ गोट्ठीगुणाण पुट्ठी जसाण वुट्ठी गरिठ्ठपुन्नाण । दिट्ठी विसिट्ठसत्थाण कणयवुट्ठी वि जा दीणो ॥ २३२० ॥ तेसिं निज्जियनियरूवरम्मया वम्महपिया गव्वा ।। कन्ना चंपयवन्ना, समत्थि नामेण मयणसिरी ॥ २३२१ ॥ कोइलकलरवजणसवणसुहयरा जा वसंतलच्छि व्व । गिम्हसिरि व्व जुवजणमणवणकयमयणदवतावा ॥ २३२२ ॥ सुमहत्थभूसणुन्नयपओहरा पाउसप्पवित्ति व्व । नवसयवत्तासियरायहंसिया सरयसोह व्व ॥ २३२३ ॥ हेमंतरिउसिरी व्व, उत्तमजणवयपसस्स सीमंता । सिसिरट्ठिय व्व दिप्पंतकुंदकलियावली रयणा ॥ २३२४ ॥ इय रिउमई पवित्ता वि रायहंसी वि चारुसिहिणी सा । अइवाहइ दियहाई, लीला-कीला-रस-पसत्ता ॥ २३२५ ॥ एत्तो य तत्थ वणिवग्ग-अग्गणी, गुणमणी-निही अत्थि । सेठी-सिणिद्धदिट्ठी, नामेण धणाहिवो सुधणो ॥ २३२६ ॥ दूरन्नओ वि सुनओ, विइन्नदाणो सयावदाणो वि । मज्झत्थो वि हु जो, धुरिपरिट्ठिओ सयलसुयणाण ॥ २३२७ ॥ तस्सत्थि रम्मपेम्माणुबंधपरिवद्धमाणपरिओसा । भज्जा निरवज्जतणू तणूयराऽमरसिरी नाम ॥ २३२८ ॥ लीला सीले कीला कलासु हीला कलंककारीसु । धम्मम्मि धिई नीईए सम्मई जीए संजाया ॥ २३२९ ॥ आणंदइ ताण मणो, अणोयचरिएहिं चारुचारित्ता । तणया पणया जणया-इयाण नामेण कणयसिरी ॥ २३३० ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ सिंगाररंगसाला, विलासकलहंसविमलकमलाली । गुणकुसुमावलिमाला, लीलामयदुद्धसिंधुसिरी ।। २३३१ ॥ सद्धिं समाणविन्नाणजाणजोव्वणमणोहरसहीहिं । कीलंती हेलाए, हरइ मणोनयरितरुणाणं ।। २३३२ ॥ अह अन्नया सहीयणमज्झगयाए नहाओ तीए पुरो । पडिओ दड त्ति दीहो, सामलसप्पो फुरियदप्पो || २३३३ || सिरिअणंतजिणचरियं अट्ठट्ठियनियदेहदंडफारप्फणग्गमणिकिरणा । जस्सुल्लसंति रविकिरणमच्छरेणं व जुज्झेउं ॥ २३३४ ॥ निल्लालंतो अच्चंतरत्तमुत्तरलजीहियाजुयलं । कइइव्व दुन्ह इत्थीरयणाणं सरणमणुप्पत्तं ॥ २३३५ ॥ सप्पो सप्पो त्ति पयंपिरीओ नट्ठाओ से वयंसीओ । ईयरम्म वि बीहिज्जर किन्न अवाए सरणरूवे ॥ २३३६ ॥ नासंती सेट्ठिसुया, दट्ठा अंगुट्ठयम्मि पायस्स । जणमज्झम्मि वि जायइ, जमज्जियं जेण तं तस्स ॥ २३३७ ॥ दट्ठा दट्ठा अहिण त्ति जंपिरी भयभरब्भसिरमुत्ती । पडिया दड त्ति मुच्छा, पच्छाइयअच्छिसयवत्ता || २३३८ ॥ वेणीदंडो भमरउलसामलो कंठकंदले तीए । परिभमिओ लक्खिज्जइ, सक्खं चिय कालपासो व्व ॥ २३३९ ॥ मुत्ताहरणगणफुरियकिरणपब्भारधवलियंगी सा । विसहरविसहरणत्थं, नज्जइ अमयाहिसित्त व्व २३४० ॥ जीए विरलट्ठियउट्ठ- पुडविणिस्सरियदंतपहपवहो । जीवो व्व विणिग्गच्छइ, विस-जलणुत्तावभीओ व्व ॥ २३४१ ॥ तो झत्ति जणयजणणीजणेण मणि- मंत-तंत- जंतेहिं । उवयरिहाए वंमये होइ गुणो थेवमेत्तो वि ।। २३४२ ॥ पाउससरि व्व अविरयविसरयलहरीहिं पूरिया दूरं । सउणाण नियंताण वि पत्ता अव्वाहियं तो सा || २३४३ ॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा तो सोयभरपरवसदेहा हाहा हह त्ति जंपता । जणणिजणयाइसयणा सकरुणमक्कंदिउं लग्गा || २३४४ ॥ हा पुत्ति ! हा पुत्ति ! हा सुप्पवित्ति ! हा, फलिहसच्छमणवित्ति । हा ! धवलकित्ति ! हा ! जयपवित्ति ! हा ! कंततणुदित्ति ! || २३४५ ॥ हा ! दीहदिट्ठि ! हा! पसमपुट्ठि ! हा ! दाणवुट्ठि ! कयतुट्ठि । हा सुद्धबुद्धि ! हा हा विसुद्धि ! हा जायगुरुरिद्धि ! ॥ २३४६ ॥ जावज्जवि अम्हाणं, हियं हयासाण फुट्टइ न जाए । ता इहि चिय वियरसु, पडुत्तरमसमदुक्खाण ।। २३४७ ।। एवं भूरिपलावे काउं, दिवसावसाणसमयम्मि । आरोवियसिबियाए, नीयं मडयं मसाणम्मि || २३४८ ॥ जलणायत्ते मडयम्मि, कीरमाणम्मि जायए रयणी । तो जोइणीभएणं न कोइ ठाउं तरइ तत्थ ।। २३४९ ।। मडयस्स रक्खणत्थं पुरीए ते पडहएण पयडिंति । जो रक्खइ निसि मडयं, सो लहइ सुवन्नयसयं ति ॥ २३५० ॥ एत्थंतरम्मि रणविक्कमाईपुरिसतिगम्मि आरामे । उवविट्ठम्मि पविट्ठो, ताण कणिट्ठो पुरीमज्झे ॥ २३५१ ॥ जो असिधें मुत्तूणमावणे भोयणं करावे । ता सुणइ पडहयसराणंतरमेयं कहिज्जंतं ॥ २३५२ ॥ जो रक्खइ रयणीए मडयं गंतुं मसाणमज्झम्मि । दिज्जइ तस्स सुवन्नस्स, गोससमयम्मि सयमेगं ॥ २३५३ ।। तं सोउं सो चिंतइ कज्जे, थोवे वि भूरिधणलाहो । ता गिहिज्जउ जुज्झइ, न पमाओ जमिय कल्लाणे ॥ २३५४ ॥ इय चिंतिय मोयावइ कणयं, मज्झत्थनरकरे सहसा । अहवा सिद्धे कज्जे न नज्जए लब्भए नो वा ॥ २३५५ ।। गहिऊण भोयणं सोइऊण ते भाउणो कहइ सव्वं । साहेयव्वं पच्छा वि जेसि तेसिं न किं पुव्वं ॥ २३५६ ॥ १८५ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ तं सोउं परितुट्ठा ते वि हु मन्नंति झत्ति तव्वयणं । धणिणो वि लच्छिलाहो तोसाय न किं दरिद्दाण || २३५७ ॥ तव्वेलं रणविक्कमपमुह हव्वरवीअत्थरायपुरो । संजाओ तो पत्ता ते चत्तारि वि मसाणम्मि || २३५८ ॥ जं भूरिभूयभीमं बीभच्छं नरकरंकनियरेण । सिवफेक्कारकराणं, दुग्गंधडज्झिरसवेहि ॥ २३५९ ॥ सिरिअणंतज़िणचरियं ताण समप्पियमडयं रएण चलिओ जणो असेसो वि । भयमवरं पि मसाणं जणइ न किं जोइणीपीठे || २३६० ॥ पविसित्तु पुरीमज्झे झत्ति पउलीओ तेण पिहियाओ । भूयाइअहिट्ठियमडयपुरिउवद्दवभएणं च ॥ २३६१ ॥ दट्ठं मसाणदेसा वेगेण जणं गयं पुरीमज्झे । सूरो वि पविट्ठो सायरम्मि भीओ व्व तस्स दुयं ।। २३६२ || रविपियनासे कुंकुमरसारुणा उल्लसंततमविहुरा । संझावहू अमंगलमंडणमंडिअ तणु व्व ठिया || २३६३ || वित्थरियं सव्वत्थ वि तिमिरं भमपउलसामलच्छायं । दिसि दिसि पज्जलियचिया चक्कुब्भवधूमपडलं व ॥ २३६४ ॥ पयडीहवंति पउरा, समंतओ तारया गयणगब्भे । ठाणट्ठाणच्चियानलजालुच्छलिया फुलिंग व्व ॥ २३६५ ॥ एत्थंतरम्मि रणविक्कमेण लहुभाइणो इमं भणिया । भो भायरो ! भवंतो भणामि भूरीणिहभयाणि ॥ २३६६ || एक्कं निसा बीयं तु उव्वसा तइयगं पुण मसाणं । मडयाओ तं चउत्थं, पंचमयं जोइणीवीढं ॥ २३६७ ॥ ता साहासिकरसियाण जग्गमाणाण पभवए न भओ । पायं पमत्तचित्तो छलिज्जए नेव अपमत्तो ॥ २३६८ ॥ ता सुरविक्कम ! पढमे जामे जग्गसु तमेव उवविसिउं । वाहिज्जंसि बालतेण जेण तं सेसपहरेसु ॥ २३६९ ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ रणविक्कमकहा तो तंमि जामइल्ले जाए सुत्तं तिगं पि निच्चितं । विगया वक्खाणऽहवा सुहनिदाए किमच्छरियं ॥ २३७० ॥ विहियवरवीरवेसो, निविडनिबद्धनिद्धनियकेसो । कोसायड्ढियखग्गो, चिट्ठइ जा मडयगयदिट्ठी ॥ २३७१ ॥ ता सहसा परिमुक्कट्टहास-भेसियमसाणसत्तोहं । मडयं समुट्ठियं, उद्धनियसरीरद्धमुक्कधरं ॥ २३७२ ॥ दठूण उठ्ठियं तं, घेत्तुं केसेसु मुक्कहुंकारो । पहणइ कवोलफलए, निद्दयदढकरचवेडाहिं ॥ २३७३ ॥ मडएणुत्तं किं तुह मए कयं जमभिहणसि निक्कमणं । सो आह उट्ठीया किं न सरूवत्थं चलइ मडयं ॥ २३७४ ॥ तीउत्तं अम्हाणं कीलाठाणं इमं ति कीलेमो । सो जंपइ न पयच्छामि कीलिउं कीलियानिट्ठा ॥ २३७५ ॥ सा आह अहो मा एवमेव वारेसु किं तु जुत्तीए । तेणुत्तं का जुत्ती ? सा जंपइ सुणसु साहेमि ॥ २३७६ ॥ खेल्लसु सारीहिं मए समं तुमं जइ जिणेसि ता तुज्झ । कणयमयफलयपासयवज्जावलिकलियसारीओ ॥ २३७७ ॥ अह कह वि जिणामि तुमं ता मह पिउकंचणं न चित्तव्वं । अम्हाणं तुम्हाण य पमाणो एस च्चिय पइण्णा ॥ २३७८ ॥ सुरविक्कमेण भणियं आणसु फलयाइयं तओ झत्ति । गयणंगणाओ पडियं तं मणिगणकिरणकब्बुरियं ॥ २३७९ ॥ तं दटुं विम्हईओ, कीलइ सुरविक्कमो समं तीए । पासयपाडणसारी-संचारणरणज्झणिरफलयं ॥ २३८० ॥ वह-बंध-मरणभावं पत्ताओ तीए सयलसारीओ । तो सा विजिया पहरो वि वज्जिओ घडियगेहम्मि ॥ २३८१ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा, मडयं पडियं दड त्ति भूमीए । हारीए जायाए किं को वि हु अभिमुहो होइ ? || २३८२ ॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ सिरिअणंतजिणचरियं तं निच्चेठें दटुं गोवइ सुरविक्कमो फलयपमुहं । न नियाविओ वेहिज्जइ, किं पुण जूयऽज्जिया लच्छी ॥ २३८३ ॥ उट्ठविउं ठविऊण य पहरे हरिविक्कम सयं सुत्तो । निव्बूढनियपइन्नो, सुहनिदं पावए पुरिसो ॥ २३८४ ॥ खणमवि न नियइ अन्नं पेच्छइ हरिविक्कमो मडयमेव । परिहरइ अवरकज्जं, सुमई विसमे समारुद्धो ॥ २३८५ ॥ पुणरवि विमुक्कमहिमंडलं, तयं झत्ति उट्ठिउं मडयं । सो एसो अहवन्नो, पाहरिए इय निएसुं वा ॥ २३८६ ॥ तं दट्टुं अक्खुहिओ आयड्ढइ तिव्वधारकरवालं । तम्मि पडिबिंबियं तं मरणं व तया तमल्लीणं ॥ २३८७ ॥ तो से असिप्पहारं जा वियरइ मुक्कपिक्कहक्कोसो । ता मडयपायघायाहओ गओ भूतले खग्गो ॥ २३८८ ॥ नक्खत्ताई पडिबिंबियाई दीसंति तस्स फलयम्मि । जउणाजलकल्लोले थूलामलमोत्तियाइ व्व ॥ २३८९ ।। हरिविक्कमेण विक्कमपहरं दाउं निवाडिअं मडयं ।। गहियक्कमेसु ताडइ तं जाव मसाणसूलम्मि ॥ २३९० ॥ ता पुक्करियं तेणं मयाई भूयाई धाह धाह त्ति । तो चलिया रएणं आगच्छामो त्ति भणिराइं ॥ २३९१ ॥ गहीर-ज्जलिरचियानलं जालाजडिलग्गकट्ठसंघायं । इंति मडयाई करकयदीवूसव व्व दीवियाई व ॥ २३९२ ॥ इंतं पिच्छिउं व फेक्कारजलणजालाओ । भूयाई पभूयाइं तं पइ धावंति चउपासं ॥ २३९३ ॥ रयजायसियड्ढिक्खडखडाई घोरप्पसारियमुहाई । धावंति करंकाई चउद्दिसं तं गिलेलं व ॥ २३९४ ॥ निठुरयरप्पहारे दाउं बंभंडस्स तिव्वअंताउ । उच्छलिओ रएणं ति सव्वओ नरकरोडीओ ॥ २३९५ ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ रणविक्कमकहा परिवेढिज्जंति अत्तणो तणुं तेहिं पेच्छिउमभीओ । तेणेव ताई ताडयं मडएण लउडेणं च ॥ २३९६ ॥ तग्घाया हणण पडंत मडयकरजलिरकट्ठखंडेहिं । निवडइ भूयाइण सिवगुयगंगारवुठ्ठि व्व ॥ २३९७ ॥ उच्चाडणमंतस्स व तक्कयमडयप्पहारनियरस्स । भीयाई व पणट्ठाई सव्वओ भूयविंदाइं ॥ २३९८ ॥ तम्मडयघायसंजायभूरिखंडेहिं नरकरकेहिं । सहइ चियादद्धमही सरयन्भेहिं व नववीही ॥ २३९९ ॥ तेणाऽऽहयाई निवडंति महियले नरकरोडिखंडाई । जूययरपाडीयाओ वराडियाओ कडि त्ति व्व ॥ २४०० ॥ इय मडयकरंककोडिभूयविंदे विणट्ठनट्ठम्मि । रुद्रुण दड त्ति नियं निहियं मडयं महीवढे ॥ २४०१ ॥ दाऊण तस्स हियए पायं धरिऊण चारुचिहुरचयं । गहिऊण असिं छिंदइ जा सो रोसेण सिरकमलं ॥ २४०२ ॥ ता तेणुत्तं मा मा हणसु मं जोइणिं नियट्ठाणे । कोलंति अच्चब्भुय सत्तपरिरक्खियसरीरा || २४०३ ॥ के के न इह नरिंदा रणरंगम्मि व मसाणमझमि । भुत्ता हणिऊणं जोइणिहिं भाए विभइऊण ॥ २४०४ ॥ ता गिण्हसु मह दंडे पिसंडिमणिमोत्तियाभरणनियरं । जइ चुक्केमि अहं तुह ता मह हरिहीरविहिवाया ॥ २४०५ ॥ इय जंपिरम्मि मडए झड त्ति गयणंगणाओ तप्पुरओ । पडियं रयणाभरणं दिप्पंतं विज्जुफुरियं व ॥ २४०६ ॥ तो मडयं मोत्तूणं रयणाभरणं धरेइ नियपासे । दूरम्मि ठवइ को वा तारिसकट्ठज्जियं लच्छि ॥ २४०७ ॥ एत्थंतरंमि घडिया, घडंमि दोवहरसूयगं भेरिं । आयन्निय उट्ठाविय रिउविक्कममप्पणा सुत्तो ॥ २४०८ ॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० सिरिअणंतजिणचरियं रिउविक्कमो करालं, करवालं कलिय करयले चलिओ । पत्तो य तस्स पासे तद्दिट्ठी चिट्ठए जाव ॥ २४०९ ॥ ता नियइ तयासन्नं फुरंतमणिकिरणहयतमं एगं । .. गयणंगणेण पत्तं रविरहरयणं पिव विमाणं ॥ २४१० ॥ पडुपवणपसरतरलियनत्तद्धयरणझणंतर्किकिणियं । पुप्फोवहारपरिमलचल-अलिलोलरोलरमणीयं ॥ २४१९ ॥ मणिमत्तवारणावलिडज्झिरकप्पूरअगरुधूमेण । बहलं पि वहलयं तं बहलनिसाभवतमिस्सं व ॥ २४१२ ॥ किंकिणिसणमणुसरिडं निहियच्छी पेच्छए मणिविमाणं । निसुणइ य कोइलाकलरवेण इय जंपिरं रमणिं ॥ २४१३ ॥ जा एत्थ अत्थि छुहिओ सो आगच्छउ जहा पयच्छामि । महुरं निद्धं भोज्जं, तं सोउं चिंतियं तेणं ॥ २४१४ ॥ एयंमि विमाणे का वि देवया अहव खेयरी भविही । भोयणवेलाए न इमा ममं तु आमं निमंतेइ ॥ २४१५ ॥ ता जम्मि अहव नो गम्मए जाओ एत्थ जोइणीविंदं । कीलइ मसाणमज्जे, अहवा मह को भओ तत्तो ॥ २४१६ ॥ अवरं च लोयणाई, हवंति दट्ठव्वदरसणफलाई । तो पेच्छिज्जउ एयं, गंतुं जं कोउयं मज्झ ॥ २४१७ ॥ इय चिंतिय चउपासं, असिणा मडयस्स कड्ढिउं रेहं । मुत्तुं तदुवरि खग्गं, सयमारूढो विमाणम्मि || २४१८ ॥ तत्तो चलंतदिप्पंतवज्जमणिकणयदंडपल्लंकं । मुत्तुं गंतुं समुहं, सा तस्स अब्भुक्खणं देइ ॥ २४१९ ॥ उववेसिऊण दोलापल्लंके पायसोयणं काउं । रयणासणम्मि रम्मे, निवेसए भोयणत्थं तं ॥ २४२० ॥ दिन्नाई मणिपडिग्गहपरियलकच्चोलयाई सिप्पी य । सूवोयणरसवंजणथालीओ वि ठावियाओ पुरो ॥ २४२१ ॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा दाऊण हत्थसोयं, मोहं जणिरीए रूवविणएहिं । रसवंजणाए कच्चोलए मुत्तीए निहित्ताइं ॥ २४२२ ॥ पसरंतसुरहिपरिमल-बंधुरतरउसिणकलमकूरस्स । भरिऊण रयणदव्वी निक्खित्ता जाव थालम्मि ।। २४२३ ॥ तावप्पसारियमुहं करालनयणं विकिन्नलहुकेसं । रुहिरारुणं नरसिरं, सो पेच्छइ मच्छियाचरियं ॥ २४२४ ॥ किमिमं ति विम्हियमणो, अवलोयइ जा न ता विमाणाई । न य रमणिं किंतु पुरो, नियइ बिडालिं महिसिमेत्तं ।। २४२५ ॥ निच्छिद्दप्पसरियकालकायपह-पसरपूरियदियंतं । वेढिज्जंति कवडुब्भवेण पावेण व समंता ।। २४२६ || वित्थरिया किरणा इव, जीए दीसंति कालमुहकेसा । भयमुप्पायर केसं पिंगं नयणजयं केउजुयलं व ।। २४२७ ॥ कालं सलवलिरं से, पुच्छं कलुसत्तकुडिलभावे व्व । दंसइ पसारियं पुण वयणं गिलिउं व भुवणं पि ॥ २४२८ ॥ करणक्कमे कुणंती, पयंपए माणुसीए भासाए । रे ! दुट्ठ ! विणट्ठं तं मन्नसु अप्पं मह सयासा ।। २४२९ ॥ तं सोडं सो चिंतइ तमिमं जं जोईणीजणो कुणइ । ता निग्गहेमि एयं जा न कुणइ किं पि हु अणिट्ठे ॥ २४३० ॥ इय चिंतिय कयकरणो दुहा वि आरुहिय तीए खंधम्मि । गाढीकयजंघाहिं निरुंभए झत्ति गलसरणिं ॥ २४३१ ॥ पडिया दड त्ति महिमंडलम्मि संरुद्धसाससंचारा । उत्तरिऊणायट्ठियछुरियं जा तं विणासेइ ॥ २४३२ ॥ तो सा पयडीकयजोइणीतणू भणइ दीणवयणेहिं । मा सुहड ! मं विणाससु सिद्धा हं वंछियं वरसु ॥ २४३३ ॥ तेणुत्तं जइ एवं ता वियरसु अणुदिणं सुवन्नसयं । तीउत्तं गोसे च्चिय सरियं पडिही नहाओ तयं ॥ २४३४ ॥ १९१ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ सिरिअणंतजिणचरियं एयत्थे वायाओ दाऊणं सा गया सठाणम्मि । मडयंते सो पत्तो सुया य भेरी वि पहरीए ॥ २४३५ ॥ गहिऊण असिं उट्ठाविऊण रणविक्कमं पसुत्तो सो । करयलकरतरवारी इयरो वि हु मडयमल्लीणो ॥ २४३६ ॥ एत्थंतरंमि चडुमरडमरुयारावभरियबंभंडो ।। पट्टउ य जोगवट्टय परिविरईय उत्तरासंगो ॥ २४३७ ।। कुलघोसप्पच्छाईयदेहो, मणिकणयपाउयारूढो । पत्तो एगो जोगी दोप्पयपरिवेढियसिरग्गो ॥ २४३८ ॥ घुसिणेण व रुहिरेणं मसाणमज्झमि रईयमंडलयं । खणियं च तिकोणं तम्मि कुंडयं होम्मकम्मकए ॥ २४३९ ॥ अवयारिऊण दिसिपाल-जोइणी-वेडय-ग्गहे तत्थ । रत्तकणवीरकुसुमेहिं भूइडं गुग्गुलं दहइ ॥ २४४० ॥ काऊण बलिविहाणं ठाउं पउमासणे थिमियमुत्ती । नासग्गनिहियनयणो जोई जा झाणमल्लीणो || २४४१ ॥ ताव गयणंगणाओ पडिया नवजोव्वणोव्वणा बाला । तमरउलकालवाला अट्ठमि-ससिखंडसमभाला ॥ २४४२ ॥ छणरयणिरमणमंडल-समाणणा तारतरलसरलच्छी । अंसावलंबिसवणा बिंबुट्ठी कंबुसमकंती ॥ २४४३ ॥ सुकुमालदीहवाहा, अरुणकरा, कुंभिकुंभजयसिहिणी । तणुमज्झा वियडकडी, थोरोरू, कमलतुलियकमा ॥ २४४४ ॥ चंदुज्जलमुत्ताहलकिरणविद्धंसियंधयारतरा ।। विलसंतकसिणतरा पच्चक्खा पुन्निमनिसि व्व ॥ २४४५ ॥ गय-रायहंसगमणा आयंबिरअंबरायदोसा य । पत्तरहवासजोग्गा अमावसा अत्थसंझ व्व ॥ २४४६ ॥ (कुलयं) पच्छामुहबद्धकरं तं मरणदरप्पकंपिरं दटुं । पूरइ अंगारेहिं कुंडं उठ्ठिन्तु जोइंदो ॥ २४४७ ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा रत्तकुसुमेहिं पूईय, तद्देहं रत्तचंदणविलितं । उवविसिय तयं मंताभिमंतियं अग्गओ ठविओ ॥। २४४८ ॥ रक्खवइ कत्तियं सो मारिउकामो कुमारियं पावो । नत्थियवाईणऽहवा किमकज्जं निग्विणमणाणं ।। २४४९ ।। मरणभयुब्भंतच्छीहच्छमतुत्थस्सरेण पोक्करइ । भो धाह धाह, धावह पावो संहणइ जोइ त्ति ।। २४५० ॥ तं सोऊणं रणविक्कमस्स करुणाए पूरियं हिययं । दुहिए अवरे वि दया गुरूण किं पुण न नारीए ।। २४५१ ॥ तो कोवकड्ढियासी, हक्कंतो जाइ जोईयाभिमुहं । अन्नो वि हु अनईणं, न सहइ किं खत्तियस्स सुओ ।। २४५२ ॥ जंपतो रे रे दुट्ठ ! धिट्ठ ! अविसिट्ठ ! कम्मचंडाल ! । मुंचसु इत्थि अह तो, मह खग्गहओ धुवं मरसि ॥ २४५३ ॥ इय जंपतो उक्खित्तखग्ग- जट्ठी वि थंभिओ तेण । न चलइ तिलमत्तं पि हु, संखमपाहाणघडिओ व्व ॥ २४५४ ॥ भणिओ य जोइएणं, तमंतरायं करेसि किं मज्झ । भुवणत्तयपक्खोहणिविज्जासंसिद्धिसमयम्मि ।। २४५५ ।। जेण दुवालसवरिसाइं उद्धसेवज्जियं महाकठ्ठे । मह विहलं चियं जायइ उत्तरसेवं विणा अज्ज ॥ २४५६ ॥ सा पुण जायइ बत्तीसलक्खणुत्तमकुमारिहोमेण । सा एसा एत्थ च्चिय पत्ता भमिरेण देसेसु ॥ २४५७ ॥ ता अवलंबिय मोणो चिट्ठसु तमहं करेमि मंतस्स । होमं जं पारद्धं गुरू न तं चयइ मरणे वि ।। २४५८ ॥ रणविक्कमो विचिंतइ महप्पभावो इमो धुवं को वि । जेण इह थंभिओ हमवि निच्चलो कीलिओ व्व ठिओ ॥ २४५९ ॥ ता एस पुरिसयरो, सज्झो बज्झो वि मारिउमसक्को । ता सोमो च्चिय कीरओ को वा दंडो पयंडम्मि ॥ २४६० ॥ १९३ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ इय परिभाविय भणियं भो भो तं जोइराय ! वयणं मे । आयन्निऊण मन्नसु अवगन्नसु वा सइच्छाए ॥ २४६१ || भीमभवे भमिराणं, सत्ताणं उंबरस्स कुसुमं व । दुलहं चिय मणुयत्तं, जमजोग्गाणं न कल्लाणं ॥ २४६२ ॥ दुलहं पितयं लद्धं, निद्धम्मत्तेण कुणसु मा विहलं । कट्ठज्जियमियरं पि हु, वत्थुमुवेहिंति न सयन्ना ॥ २४६३ || जोई जंपर कहमह विहलत्तं कहसु माणुसभवस्स । सो आह तस्स का नाम सहलया जीववहकरणे ॥ २४६४ ॥ जीववहो सामन्नो वि दुग्गइं देइ नरयतिरिरूवं । किं पुण इत्थीण वहो तम्मि वहणं कुमारीण ॥ २४६५ ॥ नहर - क्खय- मित्तेणावि अत्तणो होइ जइ दुहं देहे । ता किं न तयं जायइ परस्स मारिज्जए जं सो ॥ २४६६ ॥ कडियमेत्तस्स वि अन्तणो व्व रक्खं कुणंति सप्पुरिसा । अवहत्थिय परलोया हणंति पावा पुणित्थीओ ॥ २४६७ ॥ एक्कम्मि वि पमाया जीवम्मि विणासिए हवइ पावं । तेसिं तु किं भविस्सर हयबहुजीवा तुमं पिव जे ।। २४६८ ॥ नियजीवयं पि दाउं एगे रक्खंति सावराहे वि । अवरे उ नरा ते च्चिय हणंति विगयावराहे वि ॥ २४६९ ॥ ते च्चिय भुवणे नंदंतुं, दुक्खए ससहरे व्व सव्वविए । करुणारसो पवड्ढइ जेसिं जलहिम्मि व जलोहो । २४७० ॥ एक्कं महिला बीयं तु बालिया तइययं पुण असरणा । तं कि जोइंद ! मणं, निक्करुणं जेण जायं ! ते ।। २४७१ ॥ दुब्बिलसियाई इयरे कुणंतु जं ते वि खेयपरिहीणा । तुम्हारिसा वि विउसा कुणंति जं ताइं तं चित्तं ॥ २४७२ ॥ तुह हियमिमं ति कहियं न अन्नपावाइं भुंजए अत्तो । तं कुणसु जमभिरुइयं खमसु अजुत्तं जमुत्तं मे || २४७३ || सिरिअणंतजिणचरियं Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा एवं तव्वयणेणं सलिलं व मणं कुजोयकलुसं पि । कुंभसुयस्सुदएण व सच्छत्तं जोइणो पत्तं ॥ २४७४ ॥ तस्सिक्खाए सहस त्ति अवगयं तिव्वमोहपडलं से । भवपरिभमणुब्भूयं, पावं व जिणिंददिक्खाए ॥ २४७५ ॥ उच्छलियविवेओ, अन्नाणं हरिय सूइयसुधम्मो । अरुणोदओ व्व तिमिरं, विद्धंसिय रविउदयहेऊ ॥ २४७६ ॥ तो जोइओ पयंपइ, विणई रणविक्कमपई पहिट्ठो । भो पुरिसरयण ! भुवणे वि तुह समा सज्जणा विरला || २४७७ ॥ तं चिय महोवयारी, मह जाओ जेण नरयकुहराओ । आयड्ढिओ हढेणं इत्थी-वहपाव-पडिओ हं ॥ २४७८ ॥ तुम्हारिसाण जम्मो, जयोवयाराय जायए नियमा । अमयकराणुग्गमणं, भुवणस्स सुहाय वा भवइ ॥ २४७९ ॥ सुयणाण घणाणं पिव, जणोवयारा य होइ अब्भुदओ । सो च्चिय लोयविणासाय धूमकेऊण व खलाण ॥ २४८० ॥ नूणमणुप्पत्ति च्चिय सया वि अम्हारिसाण सेयकरी । जेसिं जम्मो जायइ एवंविहपावभरपत्तं ॥ २४८१ ॥ भूरिभवब्भमणज्जिययपावेण वि किं पि सुचरियं पि कयं । जेण मए तं पत्तो धम्मगुरू एरिसेऽवसरे ॥ २४८२ ॥ ता जावज्जीवं पि हु नियपाणा इव समग्गजीवा मे । • जं मण-वय-काएहिं काहं न कयाइ ताण वहं ॥ २४८३ ॥ एयं नरिंदतणयं अप्पिज्जसु तं निवस्स गोसम्मि ।। पुव्वं पि हु तुह कहियं, कज्जमिमाए जमाणयाण ॥ २४८४ ॥ समइक्कंते दिवसे मयणसिरी पव्वयाओ गयणेण । इंतेण सिट्ठिसुया दिट्ठा सुहलक्खणसमेया ॥ २४८५ ॥ तो मा तं बलिनिमित्तं चेडयसप्पेण हरियचेयन्ना । विहिया इह जा चिट्ठइ मडयं ति मसाणमज्झम्मि ॥ २४८६ ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ सिरिअणंतजिणचरियं होमेणमिमाए किर साहिस्सं सव्वसिद्धिकरमंतं । तस्स वि पावस्स अहं पुरिसुत्तम ! मोइओ तुमए ॥ २४८७ ॥ ता गिण्हसु विसनासणमंतं एयं करेज्ज विसरहियं । गंतुमहं पावाणं, पायच्छित्तं चरिस्सामि ॥ २४८८ ॥ इय जंपिऊण जोईसरेण उत्थंभिऊण तं तस्स । दिन्नो थावरजंगमउग्गविसविणासणो मंतो ॥ २४८९ ॥ तो गहिडं तं मंतं पभणइ रणविक्कमो महासत्त ! । तं चिय सकयत्थो, नूण जेणमंगीकया सिक्खा ॥ २४९० ॥ चुक्कखलियाई न इंति, कस्स संसारमहिवसंतस्स । ता तह सया जइज्जसु, कयाइ मइलिज्जसे न जहा ॥ २४९१ ॥ इय तब्मणिए गयणंगणेण उप्पइय जोइंदम्मि गए । कस्स सुया सुयणु ! तुमं, ति पुच्छिया कन्नया तेण ॥ २४९२ ॥ सा आह-अहं मयणस्सिरि त्ति उज्जेणिनयरिनाहसुया । सुत्ता संती सत्तिए झत्ति इह आणियाणेण || २४९३ ॥ नररयण ! इह न जइ तं इंतो जंतीहमेत्तियं वेलं । ता सलहत्तं जलिरे कुंडहुयासे हयासहुया ॥ २४९४ ॥ ता मह जीवियदायग ! रायगरिठ्ठो भवेज्ज अज्जेव । नंदाचंदक्कंतं कंतं कित्तिं समज्जितो ॥ २४९५ ॥ विरल च्चिय तुह सरिसा, पुरिसा उवयारकारया भुवणे । जच्छंति वंछियं जे दुमा न ते हंति सव्वत्थ ॥ २४९६ ॥ इय जंपिरि कुमारिं जंपइ रणविक्कमो कुरंगच्छि ! । तं नियपुन्नेणं चेय जीविया न मह साहेज्जा ॥ २४९७ ॥ इय भणिरो तीयुत्तो सो सेट्ठिसुयाए हरसु विसवेयं । लब्भइ मतपरिक्खा परोवयारो य होइ कओ ॥ २४९८ ॥ तो तव्वयणाणंतरमुठेउमणुट्ठियं तयं तेण । सुत्तविबुद्ध व्व झत्ति उठ्ठिया सेट्ठितणया वि ॥ २४९९ ॥ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ रणविक्कमकहा एत्थंतरंमि घडियाघरम्मि चउपहरिसूयया भेरी । पच्चुज्जीवियकन्ना वद्धावणयं व वज्जेइ ॥ २५०० ॥ कन्नाए विसावेगो व्व अवगओ झत्ति तिमिरपब्भारो । उम्मीलियाई तीए नयणाई पिव दिसिमुहाइं ॥ २५०१ ॥ अरुणोदयच्छलेणं पुव्वदिसा पयडए फुडंतस्स । जुवईजुयजीवावणभविस्सलोयाणुरायं व ॥ २५०२ ॥ हणिया न व त्ति जोइणिजणेण रचणाए गुरुमसाणंम्मि । आरूढो तं दटुं दिणयरो उदयगिरिसिहरे ॥ २५०३ ॥ तव्वेलं सेट्ठिसुया ससयणा जणयाइया गुरुसरेणं । अक्कंदंता पत्ता जाव मसाणम्मि मिलिऊण ॥ २५०४ ॥ ता ते नियंति तं भडसिरोमणिं जुवईजुयजुयं तत्थ । रइपीइपियापरिगयमणंगनिवई व विजयंतं ॥ २५०५ ॥ तं दटुं अन्नोन्नं बिंति समग्गा वि पेच्छहऽच्छरियं । जं जीवइ अम्ह सुया तह इह दीसइ निवसुया वि ॥ २५०६ ॥ तो ताहिं तेसिं सव्वो वि साहिओ जोइयस्स वुत्तो । तं सोऊणं रणविक्कम पसंसंति ते सव्वे ॥ २५०७ ॥ सप्पुरिस ! तमेवम्हाण नूणमुवयारकारओ जेण । पाणहराओ जमाउ व्व जोइणो रक्खिया इमा ॥ २५०८ ॥ भुवणं पि ताण भरियं जे नियकज्जे हरंति परपाणे । नियपाणेहिं वि रक्खंति जे परं सो तुमं चेव ॥ २५०९ ॥ एयाओ रक्खियाओ मरणा अप्पा वि पालिओ अणत्था । पडिबोहिओ य जोई, अहो महच्छरियचरिओ सि ॥ २५१० ॥ किं तेहिं किलीवेहिं वसिमे वि दिणे वि जे पकंपति । नंदसु तमेव जो निसिमसाणमज्झे वि निक्कंपो ॥ २५११ ॥ सोउं जणप्पसंसं लज्जाए अहोमुहो हवइ सुहडो । लोयारोवियगुरुगुणपसंसभरनमिरमुत्ति व्व ॥ २५१२ ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ सो साह इमाणं निययपुन्नपरिरक्खियाण कन्नाणं । जाओ निमित्तमित्तं, अहं जओ एरिसं भणियं ।। २५१३ ।। सव्वो पुव्वकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमित्तं परो होइ ॥ २५१४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं एत्थंतरम्मि से लहुसहोयरा रयणिपहरवुत्तंते । साहंति अहव गुरुणो किमत्थि किं पि हु अकहणिज्जं ॥ २५१५ ।। निवई वि तत्थ सोऊण नियसुया वइयरं दुयं पत्तो । वसणगयंमि परंमि वि पहुणो तुरियंति किं न निए || २५१६ || दट्ठूण नियं कन्नं तयवत्थं निवइणो दुहं जायं । जे परदुहेण दुहिया हुंति न ते किं नियदुहेण ।। २५१७ ॥ दठ्ठे जणयं पणया, रुइरी मयणस्सिरी वि तव्वेलं । वसणगया वि कुलीणा विणयप्पणयं किमुज्झति ? ।। २५९८ ॥ भणिया निवेण वच्छे ! सुहिया वि हु वसणमसरिसं पत्ता । अहवेक्कदसाए किं कस्सइ कालो वइक्कम ।। २५१९ ॥ कन्नाए आयरेणं कहिओ रायस्स रयणिवृत्तंतो । सव्वो वि जाव रणविक्कमेण पाणावइन्न त्ति ।। २५२० ॥ तयणु रणविक्कमो सह सहोयरेहिं तओ नरिंदस्स । तेवि सलाहिओ सो सुयणा न गुणीसु मच्छरिणो ।। २५२१ ॥ सम्माणिओ य ससहोयरो वि वरवत्थभूसणसएहिं । दिज्जंतं रज्जं पि हु कयोवयारेऽहवा थोवं ॥ २५२२ ॥ आरोविया य चउरो वि निवइणा गुरुकरेणुखंधेसु । उच्चट्ठाणम्मि ट्ठिई कीरइ अहवोवयारीण ॥ २५२३ ।। गुरुरिद्धिवित्थरेणं नीया नियमंदिरे नरिंदेण । को नाम नायरपरो परोवयारपसत्तम्मि ।। २५२४ ॥ भोयाविया य निद्धाहारेहिं सहप्पणा महीवइणा । इयरम्मि वि संविभइय भोत्तव्वं किमुवयारीसु ? ॥ २५२५ ॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ रणविक्कमकहा जायइ सहीसुहेणं कन्ना रणविक्कम वरं पियरं ।। पोढंगणा वि लज्जइ इय भणिरी किं पुण कुमारी ॥ २५२६ ॥ पडिवन्नं रन्ना वि हु, वच्छाए हवउ वंछियमिमं ति । संतम्मि मणोभिमए, कन्नमणिलैंमि को देइ ॥ २५२७ ॥ परिणीया सा रणविक्कमेण सव्वुत्तमम्मि लग्गम्मि । खणिगं पि सुहमुहत्ते कीरइ कज्जं किमाभवियं ॥ २५२८ ॥ परिणयणाणंतरमेव राइणा तस्स रज्जसिरिअद्धं । दिन्नमदेयं वा किं किं पिउदारस्सरूवेण ॥ २५२९ ॥ गय-तुरय-रह-वरट्ठियसामंतावेढविलसिरसिरी वि । जं सो सहलारंभो, करिसयवित्ती य तं चित्तं ॥ २५३० ॥ सेट्ठिसुया वि हु पत्ता सयंवरा सा वि तेण परिणीया । अंगीकयसुरसरिओ सिंधू किं चयइ गिरिसरियं ॥ २५३१ ॥ अवरेहि वि मंडलियाइएहिं दिन्नाओ तस्स कन्नाओ । अवरो विवणीपावइ सव्वं पि हु किं पुण वराया ॥ २५३२ ॥ रणविक्कमेण ठविया मंडलियपए सहोयरा सव्वे । लच्छी स च्चिय सहला उपभुज्जइ जा सबंधूहिं ॥ २५३३ ॥ मोयाविऊण ससुरं गय-हय-रह-सुहड-कयदढावेढो । सयप्पसायदिन्ने, सेसे संतेउरो चलिओ ॥ २५३४ ॥ चिंधलंबद्धयछत्तसिक्किरीनियरचुंबिओ नहंतो । चउरंगचमूचक्काऊरियधरणीयलुच्छंगो ॥ २५३५ ॥ जय जीव नंद सुचिरं ति चारणुच्चरियचारुथुइवाओ । पत्तो सो अखंडपयाणएहिं पंचालदेसम्मि ॥ २५३६ ॥ तद्देसरायहाणीए भूरिअच्छरियचरियपउराए । फलिहुज्जलसालाए रम्मा रामाभिहाणाए ॥ २५३७ ॥ कयवंदणमालाए विविहं वरविहियहट्टसोहाए । संठियमंचाए पुरीए नरवई पविसइ सलीलं ॥ २५३८ ॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० सिरिअणंतजिणचरियं पेच्छणए पेच्छंतो दितो दीणाईयाण दाणाइं । महईए विभूईए पासायसहाए संपत्तो ॥ २५३९ ॥ घणरायरयणकरभासुरम्मि सीहासणे समुवविठ्ठो । पणओ य समसमागय महायणीएहिं विणएण ॥ २५४० ॥ ते सम्माणिय नियए निउइए उचियसव्वठाणेसु । चलिओ जणणीजणयाण, दंसणुस्सुयमणो सपुरं ॥ २५४१ ॥ कयगुरुतरप्पयाणयलंघियमहिमंडलो सह बलेण । तन्नयरिपरिसरट्ठियखेत्तम्मि नियम्मि संपत्तो ॥ २५४२ ॥ पुव्वुत्तक्कममणुसरिय तम्मि खेत्तम्मि विरईओ रन्ना ।। आवासो गुरुगुडुरकंचणकलसालिकमणीओ ॥ २५४३ ॥ नाऊण नियं खित्तं, विणासियं सीहविक्कमो पत्तो । रायंतियम्मि दाऊणुवायणं तयणु विन्नवइ ॥ २५४४ ॥ नीईनय व्व नरवइ निग्गच्छइ गुरुमहीहराहिंतो । ता तप्पवत्तया जे ते हंति न तव्विणासाय || २५४५ ॥ . अन्नं पि य नयवंतं तं निग्गहिउं नयं पवत्तेसि । तुह पुण अन्नाय परस्स तरइ को कहसु किं काउं ॥ २५४६ ॥ नियमज्जायाए च्चिय धरिज्जए सायरो महीनाह ! । तं लंघतो पलयम्मि केण सो तीरए धरिउं ॥ २५४७ ॥ मह एस च्चिय नरनाह ! जीविया खेत्तधन्नउप्पत्ती । पुत्तेहिं परिचत्तस्स गुरुजराभरअसत्तस्स ॥ २५४८ ॥ तुह सेन्नावासविणासियम्मि खेत्तम्मि मम्मयं सुणसु । तरुणा वि छुहाए मरंति किं न भुक्खालुया वुड्ढा ॥ २५४९ ॥ तं सोऊण नरिंदो विणिवेसिय आसणम्मि तं भणइ । सप्पुरिस ! मज्झ साहसु कत्थ सुया जेहिं तं चत्तो ? || २५५० ॥ . राया तच्छणसंभरियसुयपवासस्स तस्स सहस ति । वाहप्पसरेणाऊरियाई सरलाइं नयणाइं ॥ २५५१ ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा मन्नुभरगग्गयाए गिराए भणियं नरिंद ! चत्तारि । हुंता पत्ता हं तेहिं आसि निच्चितओ विहिओ ।। २५५२ ॥ नवरं कयाइ किं पि हु सिक्खविया तं मणम्मि अवमाणं । धरिडं तव्वेसं चिय कत्थ वि य गया न याणामि ॥ २५५३ ॥ सयणाईणं गामेसु, सोहिया सव्वओ सयं गंतुं । कत्थ वियस्समुवलद्धा न देव ! पुत्तप्पउत्ती वि ॥। २५५४ ॥ अह आह महीनाहो, परियाणेसि किं सुए न वा सोम ! । तेत्तं परियाणामि सामि ! नवरं न पेच्छामि ॥। २५५५ ॥ दाडं फलाई उद्दालियाई, कस्सइ भवंतरम्मि मए । दाऊण तेण मज्झ वि विहिणा उद्दालिया तणया ।। २५५६ ॥ पुत्तविउत्तस्स वि जं न फुट्टए मह हियं हयासस्स । तं नूणं वज्जसिलादलेण निम्मावियं मन्ने ॥ २५५७ ॥ अंधो व्व विगयजट्ठी पंगू विव वाहणेण परिहीणो । पुत्तपरिवज्जिओ हं, जाओ सज्जणदयाठाणं ॥ २५५८ ॥ तच्चिय पुन्नेक्कपयं नंदंतु चिरं नरुत्तमा इह जे । मूढत्ते पालिज्जंति भत्तिजुत्तेहिं पुत्तेहिं ॥ २५५९ ॥ राया कहस्स समरूवधारिणो किं वयाय ते हुंता । सो आह नाह ! तुह रूववयधरो आसि जेट्ठसुओ ॥ २५६० ॥ सेसा तिन्नि वि तुह वामपास-ठियमंडलीयरूवतया । हुंता ववसायज्जिय अत्थ-वय- कयसनित्थारा ॥ २५६१ ।। रायाह वयं ते च्चिय जे ताय ! तुहंगया गया हुंता । तुह पायपसाएणं, परिसररज्जं सिरिं पत्ता ॥ २५६२ ॥ इय जंपिरो नरिंदो, सभाइविंदो नओ पिउपयाणं । देवगुरुण प्पणई चयंति, न कयाइ वि हु कुलीणा ।। २५६३ ॥ नाऊण नियंगरुहे, नेहेणालिंगए पिया गाढं । नियदेहेण समाणं, तेउ विउत्ते कुणंतो व्व ॥ २५६४ ॥ २०१ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ सिरिअणंतजिणचरियं तो रयणमए भद्दासणम्मि जणओ निवेसिओ रन्ना । सम्माणिओ य रयणाभरणुत्तमवत्थदाणेण ॥ २५६५ ॥ पट्ठविउं रयणरहं ति, जणणी आणाविया महीवइणा । पणया य पणयपुव्वं अंसुजलुल्लियकवोलेण ॥ २५६६ ॥ एत्थंतरम्मि नियचारुचरणसंचाररमणिमंजीरं । नवरंगयनीरंगीपच्छाइयवयणरयणियरं ॥ २५६७ ॥ सोणमणिभूसणफुरुयकिरणभरइयपिंगपरिवेसं । उल्लसियरायसायरपसरभरावेढजुत्तं च ॥ २५६८ ॥ थूलामलमुत्ताहलहारपहाजालकलियचउपासं । निम्मलगुणसमुवज्जियजसभरपरिपूरियदिसं व ॥ २५६९ ॥ सिंगारगारनववयदासीविसरेण अणुसरिज्जंतं । अंतेउरं निवइणा ससुरयपयसयदलं नमइ ॥ २५७० ॥ (कुलयं) ससुरो वि भणइ वच्छाउ ! भवह जय वित्त-पुत्त-जणणीओ । तो से आसीवाएण ताण तोसो समुल्लसिओ || २५७१ ॥ गंतूण सासुयाए पाए पणमिय समीवदेसे सा ।। उवविट्ठा उवरिट्ठमि विट्ठरे रयणरमणीए ॥ २५७२ ॥ रणविक्कमावणिवई विणएण नमिय भणइ ताय ! तुमं । रज्जमलंकरसु इमं अहं तु पत्ती तुह भविस्सं ॥ २५७३ ॥ एसो च्चिय सिंगारो सुयाण जं देवगुरुपयाण पुरो । अणुसरिय पत्तिवित्तिं कुव्वंति पवित्तमत्ताणं ॥ २५७४ ॥ जे पुण साहंकारा होउ सवनं कुणंति तेसिं ते । नूणं निवडंति च्चिय, पहु पडणीया न तं देति ॥ २५७५ ॥ जे पुण गुरुआणाए कुणंति कज्जाई होइ ताण सिरी । अहव नियं हयं व राया किन्न फलइ देव-गुरुभत्ती ? ॥ २५७६ ॥ इय निसुय रायवयणो पिया पियालावमणहरं भणइ । जाय अहं राओ च्चिय रायगुरू जं जए पुज्जो ॥ २५७७ ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ रणविक्कमकहा आसयमाणेणं चिय उग्गारा जाय तुह तहा जाया । खीरोयहिप्पमाणं, कल्लोल च्चिय पयासंति ॥ २५७८ ॥ पयडीहूयमवसरे पुत्तय ! तुमए जमज्जियं सुकयं । घणमंडलावसाणे पुन्निमरयणियरबिंबं व ॥ २५७९ ॥ ता वच्छ ! पुव्वभववित्तपुन्नपब्भारपत्तरज्जस्स ।। परिपालणं तुह च्चेव, जुज्जए नेव अवरस्स ॥ २५८० ॥ तो भणइ नरिंदो चलह संपयं ताय ! रायहाणीए । रम्मारामा परिहह तीए गंतुं जहिच्छाए ॥ २५८१ ॥ इय जंपिऊण जणणी-जणयजुओ जाइ सुहमुहुत्तम्मि । नियठाणेहिं कयं सिद्धे कज्जे पवासेणं ॥ २५८२ ॥ मयजसधारासारासित्तमही पुरिपहे करेणुघडा । गयणंगणे व्व नवघणपडलाली चलइ लीलाए ॥ २५८३ ॥ गुरुरयटंपाझंपाचारक्कपुलब्भमीहिं गच्छंता ।। उत्तरलतरातुरया हरंति हिययाई सुहडाण ॥ २५८४ ॥ चक्कारयकंसियखलहलारवो तुरयघरघरालिसरो । चलमणिरहाण बहिरइ दिसाओ धयकिंकिणिसणो य ॥ २५८५ ॥ वग्गंता धावंता दिता करणाई उच्छलंता य । तिव्वयप्पहरणवग्गपाणिणो जंति सुहडा वि ॥ २५८६ ॥ इय चउरंगचमूचयकयदढपरिवेढसत्तुदुद्धरिसो । मंडलियमंतिसामंततंतवालाइबलकलिओ ॥ २५८७ ॥ चिंधद्धयसिक्करिसय-सियछत्त-अलंबचुंबियंबरओ । मागहमंडलवज्जरिय-चरियथुइबहिरियदियंतो ॥ २५८८ ॥ दुडुदुडिडमरुयढक्काहक्कानीसाण-सण-भरिय भुवणो । वच्चंतो संपत्तो, कमेणमेगं महाअडविं ॥ २५८९ ॥ जा तल-तमाल-हिंताल-साल-सरल-प्पियाल-वलकलिया । कयली-पलास-कुवली-लवंग-एलालवलललिया ॥ २५९० ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ खज्जूरी - सज्जऽज्जुण - करंज- वंजूल - अरंजकुज्जवरा । उंबर - जंबीर- कयंब-निबंब - दाडिम - जंबुधरा ।। २५९१ ।। पसरिय गोरहर - वराह - सरह-संबर- करेणु - सारंगा | रत्तच्छतरच्छ-मयच्छभल्ल - भल्लुंकदुल्लंघा ॥ २५९२ ॥ ( कुलयं ) सिरिअणंतजिणचरियं (गिम्हवण्णणं) तम्मज्झे गच्छंतस्स राइणो आगओ रिऊ गिम्हो । हरियावयोदयो वि हु दूरं संतावकारी जो ॥। २५९३ ॥ हेट्ठा नरयावासज्जलंतवज्जग्गिजालतविय व्व । दहइ परिब्भमिराणं, चरणे धरणी दिणंते वि || २५९४ ॥ मंद मंद मंदो व्व तावजोएण जम्मि जाइ रवी । तेणेव कारणेणं, दियहा दीहत्तणमुविंति ॥ २५९५ ।। नियवेरिसूरगुरुतरपयाववुड्ढिविभाविडं जम्मि । नूणं मच्छरिणीओ व्व झत्ति गच्छंति रयणीओ ॥ २५९६ ॥ वंसीघंसुब्भवदवजालाओ सिहरिसिहरकुहरेसु नवघणपडलंमि जम्मि उल्लसंति व्व विज्जुओ ।। २५९७ ॥ दिसि दिसि दवदव्ववहप्पयावतत्त व्व दुस्सहा दूरं । जत्थानिला निसाए वि दहंति देहीण देहाई ।। २५९८ ॥ खरतरणिताव-परितत्तमुत्तिणो पंथिया पहे जम्मि । लंघंता जरिणो विव, पियंति कढियं व तत्तजलं ॥ २५९९ ॥ चोरीचयचिक्कारा दिति दुहं पविसिरा वि सवणेसु । जयजणमुव्वेयंता दुज्जणदुव्वयणविसर व्व ॥ २६०० ॥ नवरं हरंति हिययं तम्मिं नीहारहारहरिणका । सिसिरे विद्देसकरा वि दुहयरं सव्वया किं वा ।। २६०१ ॥ एवंविहम्मि गिम्हे गच्छंतो पेच्छए निवो तीए । अडवी मज्झभाए कमलसरं सिसिरजलकलियं ॥ २६०२ ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ रणविक्कमकहा वाइनिवमंदिरं पिव सउणुवभुज्जंतकमलकोसं जं । गुरुरायहंसमंडलविरायमाणं नहयलं वा ॥ २६०३ ॥ रयणीए रयणीयरजोण्हापहाभरसंगयं जमाभाइ । दुद्धोयहिबंधुरनिद्ध-दुद्धरसपूरभरियं वा || २६०४ ॥ जम्मि दिणे पडिबिंबियदिणयरदुनिरिक्खकरभरो भाइ । वडवानलजालोहो उल्लसिओ इव नईनाहे ॥ २६०५ ॥ कमलालयत्तसंपत्तएक्करेहं पि विलसिरदुरेहं । महियरसहियं पि जं सहइ अमयरसहियं समग्गं पि ॥ २६०६ ॥ तं सव्वत्तो परिवेढिऊण आवासिओ महीनाहो । पडिपडमंडवगुडरविमाणयाईसु सबलो वि ॥ २६०७ ॥ अग्गलिया तरुसु गया, वद्धावलीसु तुरयराईओ । मुक्का चरणनिमित्तं वसहा महिसा य करहा य ॥ २६०८ ॥ परितरलियसरसलिला, खोलियकमलवणरया भणिया । रमणीयणा सयहरा सेवंति सरानिला निवई ॥ २६०९ ॥ भोयणकरणाणंतरमवणिवई बउलमल्लियाभरणं । कंचणमुत्ताभूसणससरीरे सो निवेसेइ ॥ २६१० ॥ चंदनरसधवलतणूसव्वंगालिंगिओ व्व सजसेणं । भमराभिरामसियकुसुमकचवरकबरीए रेहंतो ॥ २६११ ॥ (निवजलकीला सयणाण कंदणं च) वियइल्ल-बउल-पाडलवन्नालंकरणधरसरीराहिं । समवयविलासिलीलावईहि समलंकरिज्जतो ॥ २६१२ ॥ जलकेलिकरणकज्जे करेणुकलहंसमंथरगईए । अवयरिओ कमलसरे परिवज्जिरमंजुलाउज्जो ॥ २६१३ ॥ गंधजलाऊरियकणयसिंगयामुक्कजलपहारेहिं । हसंति कामिणो कामिणीहिं ताओ पुणो तेहिं ॥ २६१४ ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ निद्दयसिंगीजलघायजाय अच्चंतजायरायाई । घुसिणरसरंजियाई व देहाई सहंति सव्वेसिं ॥ २६१५ ।। पियजलहयाए कीयवि रत्तं सिसिरं च जायमच्छिजुयं । इयरीए तं विणा वि हु रत्तं जायं पि दज्झेइ || २६१६ || मयणाहिसिंगियाजलहयाए कीयवि मुहं ठियं सामं । तप्पडिवक्खाए पुणो एमेव य तारिसं जायं ॥ २६१७ ॥ काविं पियचंदणोदयसित्ता धवलत्तसीयलसीयलाई । धरइ तदियरा देहे रायं दाहं च समकालं ।। २६१८ ॥ कीयवि पियकुंकुमरसहयाए परिसरिओ गुरूराओ । तम्मच्छरिणीए पुणो अकुंकुमो सो समुल्लसिओ ॥ २६१९ ॥ खुहिया पिययमालिंगइ कल्लोलभूयाहिं कामिणीओ जलं । दूरे जडासया ताहिं नूण खोहिज्जइ विऊ वि ॥ २६२० ॥ दट्ठूण वियंभंतं रमणियणं उड्डिउं गया हंसा । सुद्धोभयपक्खा परिहरंति पररमणिसंवासं ॥ २६२१ ॥ आकंठमुग्गरमणीमुहेसु, कमलब्भमेण भमरउलं । भमइ महुपाइमलिणाणमहव कत्तो विवेयमई ॥ २६२२ ।। सलिलाविलदेहविलग्गकमलदलपडलसवलिओ लोगो । कीलइ बहुरूवो, सहस्सनयणो व्व सरसलिले ॥ २६२३ ॥ सच्छस्स वि कालुस्सं जायं सलिलस्स रमणिसंचरणा । इत्थीजणप्पसंगो कलुसइ सूरिं पि किन्न जडं ॥ २६२४ ॥ वज्जंति वेणु-वीणा मुरया गिज्जंति रायचरियाई । कीलिज्जए सलीलं सिंगीसलिलसप्पहारेहिं ।। २६२५ ।। एत्थंतरम्मि वियसियकमलवणछन्नसलिलमज्झाओ । जलहत्थिकरो सप्पो व्व निग्गओ मुक्कफक्कारो ॥ २६२६ ।। नइणु व्व कुंभकूडो गुरुदंतो पव्वयप्पिलगत्तो । नीहरिओ जलहत्थी हेलुच्छलियसरजलोहो ।। २६२७ ।। सिरिअणंतजिणचरियं Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा २०७ उत्तासंतो वेगेण जलयरे गुरुजवेण धावेइ । तं दुटुं दह्णं नटं तं जुवइ जुवविंदं ॥ २६२८ ॥ हक्कंतो तं पइ धाविओ निवो जाव गुरुतरजवेण । ता तं चित्तुं वेगा गओ गओ सरजलस्संतो || २६२९ ॥ तो सव्वेण वि लोएण तत्थ हाहारवो कओ घोरो । तिणगणियजीवियव्वा भडा पविट्ठा सलिलमज्झे ।। २६३० ॥ अवगाहंति समंता सरोवरं जा तलं अगाहं पि ।। नवरं निसनिवइंते न नियंति कत्थ वि य जलहत्थि ॥ २६३१ ॥ अनिरिक्खियं न मुक्कं तेहिं सरं ससयपयपमाणं पि । तो ते निवमनियंता अकंदंता समुत्तिन्ना ॥ २६३२ ॥ आयन्निऊण नियसुयनिमज्जणं मुक्कपोक्क बहुधाहो । रुयइ सकरुणं जणओ भज्जासुयबहूयजणजुत्तो ॥ २६३३ ।। हा पुत्त पुत्त हा कंतिजुत्त ! हा कमलनालमिउमत्त ! । हा निययसत्तनिज्जियअमित्त ! हा पसइ पिहुनेत्त ! ॥ २६३४ ॥ हा हा नरिंद ! हा सुगुणविंद ! हा नियपहुत्तजियइंद ! । हा हा गंभीरिमगुणसमुद्द ! हा चरियगुरुमुद्द ! || २६३५ ॥ इह तुमए जलकेली कुटुंबसंहारकारणम्मि कया । जं तुमह विरहे नूणं चियानलो सरणमम्हाणं ॥ २६३६ ॥ आजम्मदरिदत्तं तयणु चउण्ह वि सुयाण विच्छोहो । तुह पुण एवमवत्था ईय जाओ हं सया वि दुहं ॥ २६३७ ॥ बहुदुहदूसियहियया, जणणी अक्कंदए गुरुसरेण ।। हा पुत्त ! पउत्थो वि हु तमागओ एय दुहं दाउं ॥ २६३८ ॥ हा जाय ! जाम तुह विरहविहुरया वज्जपहरजज्जरियं । फुडइ न सयहा होउं हिययं ता दंसणं देसु ॥ २६३९ ॥ रोयंति गुरुदुहत्ता सहोयरा मुक्कपोक्कपुक्करवा । हा बंधव ! कत्थ गओ तं दीणेसु तुमिह अम्हो ॥ २६४० ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ सिरिअणंतजिणचरियं दारिद्ददूमिया वि हु तुहप्पसाएण राइणो जाया । तुज्झोक्यारिणो वि हु विहिओ विणओ वि न अम्हेहिं ॥ २६४१ ॥ हा हा सिणिद्धबंधव ! हा बंधुपबुद्धिपत्तनिवरिद्धि ! । हा कलिकप्पद्रुम ! देव ! दंसणं देसु अम्हाणं ॥ २६४२ ॥ तह दइयजलनिमज्जणदुहिणओ दो वि रायकंताओ पुणरुत्तं मुच्छिज्जंति इय पलावे य कुव्वंति ॥ २६४३ ॥ हा दइय दइय हा विमलमइय ! हा सयललोयमणरइय ! । हा रायहंस ! हा सुद्धवंस ! हा पत्तसुपसंस ॥ २६४४ ॥ तं नाह ! तया अम्हे मारिज्जंतीओ जोइणा जइ नो । रक्खंतो ता हुँतं न अम्ह तुह विरहदुहमसमं ॥ २६४५ ॥ काऊण सहचरीओ अम्हे तं पहु जमेगगो वि गओ । पडिवन्नअनिव्वहणं तमिमं किं जुज्जए तुम्हा ॥ २६४६ ॥ किं गुरुसिंगारेणं, अम्हाणं सामि ! किं व स्वेण । जाओ मुत्तूण तुमं अमरीओ रमास सुरलोए ॥ २६४७ ॥ मंडलियमंतिसामंततंतवालाइएहिं तह रुन्न । जह आरन्नयपसुणो, वि सकरुणं कंदिउं लग्गा ॥ २६४८ ॥ साएण समुल्लसियं, वियंभियं सव्वओ विलावेहिं । भळं भोएहिं गयं, सिंगारेणं निवविओए ॥ २६४९ ॥ तो निवअम्मापियरो, सहोयरा सहयरीओ कारेउं । चंदणदारुचियाओ, चडंति जा तासु मरणत्थं ॥ २६५० ॥ ताव गयणंगयम्मि, सुव्वइ वयणं अमाणुसं सहसा । मा साहसं ति मा साहसं ति मा मरसु निवजणया || २६५१ ॥ जेण रणविक्कमो तुह पुत्तो राया दिणदुगस्संते । कुसलेण इह समेही ता जीवं तस्स कल्लाणं ॥ २६५२ ॥ सोउं अमाणुसिं भासमाह पुत्तत्तिगं पि तुह जणयं । ताय ! विलंबिज्जउ ताव जा दिणदुगमइक्कमइ ॥ २६५३ ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा जेणमिमो कोइ सुरो, साहइ दट्ठूण नाणनयण | इंदियअगोयरं पि हु, करगयमिव नियइ जं नाणी || २५५४ | अवरेहि वि लोएहिं चरणेसु विलग्गिऊण मरणाओ । विणिवत्तिओ निव - पिया सामि-हियासेवया अहवा || २६५५ ॥ जणवयणाओ सो वि हु वि विलंबिडं दिणदुगं अकामो वि । पारद्धं पि हु गरुया जणोवरोहा विलंबंति ॥ २६५६ || तईया सव्वो वि जणो अइवाहइ दिणदुगं विणाहारं । इयरजणस्स वि सोए न भुज्जए किं पुण निवस्स ? || २६५७ ॥ दुइयदिवसावराण्हजणयाईया कणंतकिंकिणियं । २०९ अनिलुल्लासियवयखलहलंतघग्घरारवरम्मं ॥। २६५८ ॥ पुप्फोवयारपरिमलमिलंतभमरजलरोलमुहल - दिसं । 1 फुरियमणिकिरणमितं नियंति गयणे विमाणगणं || २६५९ ।। पेच्छंताणं सिरिसीहविक्कमाईणि झत्ति सो पत्तो । अवइन्नो य नहाओ नियगुड्डरदारदेसम्मि || २६६० ॥ तं मज्जाओ अवयरिय, मोत्तियाऊलछत्तलंकरिओ । वीइज्जतो विज्जाहरीहिं करुल्लसिरचमरेहिं ॥। २६६१ || उववूहिज्जतो खयरचारणुच्चरियजयजयत्थुईहिं । अणुगम्मतो सिंगारसारनयणहरनरिंदेहिं | २६६२ ॥ रणविक्कमनरनाहो, वाहोहा उत्तलोयणो पिउणो । पणमइ सिंचंतो थूलअंसुविसरेण कमकमलं ॥ २६६३ ॥ सव्वंगं पि समालिंगिऊण जणएण जंपिओ राया । जाय ! महावसणमिणं जायं तुह दारुणं किमिह || २६६४ ॥ सो भणइ ताय ! भववासमहिवसंताण वसणविंदाई । हुति सया विहु जं पुण न हुंति ताइं तमच्छरियं ।। २६६५ ॥ जणएणुत्तं ता कहसु, जत्थ गंतूणमिहसमणुफ्तो । सो आह कहिस्सं ताय ! पणमिऊण जणणिपयपउमं ॥ २६६६ ॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० सिरिअणंतजिणचरियं इय जंपिऊण जणणी, एसो तओ अंसुपुन्ननयणाए । आलिंगिऊणमाभासिउं च भाइपमुहहलोयं ॥ २६६७ ॥ सीहासणे निविट्ठो, तो निवजणयं नमित्तु खयरिंदा । निवपासउचियरयणासणेसु ते वि हु समुवविट्ठा ॥ २६६८ ॥ एत्थंतरम्मि सिंगारिनहयरीनियररइयअणुगमणा । सियछत्तालंकरिया चलचामरचारुसोहधरा || २६६९ ॥ अच्चब्भुयरिद्धिभरा हरियसिरीरूवविजियरइरमणी । रायपिया नहयरी पत्ता आणंदसिरि नामा ॥ २६७० ॥ अंगुट्ठीअवगुंठियवयणा पणमित्तु नियपइगुरुणं । ताणासीसं तुट्ठा उवविट्ठा सासुयसमीवे ॥ २६७१ ॥ तयणुनरिंदाइट्ठो, खयरो नहसेयरो वि य गुरुणं । साहइ जलहत्थिनिमज्जणाइय राइणो चरियं ॥ २६७२ ॥ इह अत्थि महत्थिसयत्थदाणसंजणियमग्गणाणंदं । आणंदपुरं नामेण गुरुवरं परमपायारं ॥ २६७३ ॥ उल्लोयविहियसोहा सुनायदंता पयासियपयत्था । रयहरणसोहिया संति जम्मि जइणो व्व पासाया ॥ २६७४ ॥ तत्थत्थि हथिहयरहजोहचमूचक्कअक्कमियसत्तू । आणंदसुंदरो नाम नरवई जणमणाणंदो ॥ २६७५ ॥ जस्सुल्लसियपयावो रिउणो निद्दहइ सुहयए सुहिणो । दहणो दहइ जयं पि हु सुहयइ अंगारभक्खजिए ॥ २६७६ ॥ तस्सावसोहघणरयणाभरणरइयसिंगारा । आणंदमई नामेण पणइणी राइणो अस्थि ॥ २६७७ ॥ जा कंकेल्लिलया इव पवालसुमणो विराईया सहइ । सारंगसंगसहया य सम्मयद्धासियसमीवा ॥ २६७८ ॥ तीए समं पंचविहं विसयसुहं सेवियस्स नरवइणो । वच्चइ कालो तो सो कयाइ अत्थाणमणुपत्तो || २६७९ ॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११ रणविक्कमकहा विन्नत्तो प्पडिहारप्पवेसिएणेक्कनहयरनरेण । पणमणपुव्वं दिन्नासणम्मि उवविसिय विणएण ॥ २६८० ॥ देव ! इह भरहखेत्ते एरावयकुंजरो व्व चउरयणो । उन्नइपत्तं तारुज्जलो गिरी अत्थि वेयड्ढो ॥ २६८१ ॥ जो रुप्पमओ चउपासभमियवणराइसंगओ सहइ । नीलमणिमेहला इव घणमालावेढजुत्तो व्व ॥ २६८२ ॥ केसरिगुहासु जत्थ फुरंति अइथूलमोत्तियुक्केरा । तार व्व सूरपायप्पहारभया नासिय पविट्ठा ॥ २६८३ ॥ तत्थुत्तरसेणीए अत्थि पुरं गयणवल्लहं नाम । रयणप्पहासियं पि हुं, जं सइसुत्थियजणावासं ॥ २६८४ ॥ परिभमिरा अवरावरमणिमंदिरकंतिसंचलियदेहा । जत्थ न परियाणिज्जंति, नियनरा वि हु निएहिं पि ॥ २६८५ ॥ एगो स्थि तत्थ दोसो समग्गगुणविंदसुंदरे वि पुरे । निवसंति सया जं ईसरो वि दुव्वन्नभवणेसु ॥ २६८६ ॥ तम्मि नहयरनरेसरसिररयणकिरीडकोडिकिरणेहिं । कब्बुरियपायपउमो पउमरहो अस्थि नरनाहो || २६८७ ॥ उदयासियस्स सययं पयावपसरो समुल्लसइ जस्स । परसत्तुतासकरो दूरं वडवानलस्सेव ॥ २६८८ ॥ धवला वि हु जस्स गुणा सत्तुमुहाई कुणंति सामाई । हयतिमिरा तरणिकरा दिति उलुयाण तिमिरभरं ॥ २६८९ ॥ . तस्सत्थि अग्गमहिसीपयप्पइट्ठा पगिट्ठमाहप्पा । पउमस्सिरि त्ति वरपउमिणि व्व हंसगयविहियसोहा ॥ २६९० ॥ विब्भमरसिया नीरयविराइया सव्वया सिरिट्ठाणं । . नवरं तं अच्छरियं न कयाइ जडासिया जं सा ॥ २६९१ ॥ (जुयलं)। असरिससिणेहसाराए तीए सह विविहविसयसत्तस्स । वच्चंति वासरा अमुणिय व्व खयराहिरायस्स ॥ २६९२ ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ सिरिअणंतजिणचरियं तेसिं समत्थि तणया, कणयाभा कणयकंदीली नाम । कामगिहं हंसगई कलाकलावप्पसत्तमई ॥ २६९३ ॥ उम्मीलियनवजोव्वणजुवजणमणवणचिइत्तमयणग्गी । अइवाहइ दिवसाई सलीलकीलारसपसत्ता ॥ २६९४ ॥ नववयवयंसियावग्गसंगया मणिसुहासणासीणा । आरामाइट्ठाणेसु, कोउए पेच्छिरी भमइ ॥ २६९५ ॥ सिंगारिणो जुवाणा, भमंति सेवयनरग्गतम्मग्गे । मयणपराहीणमणा अगणियमग्गस्समासययं ॥ २६९६ ॥ लीलुल्लासियभमुहं जं जं अवलोयए हरिणनयणं । अभिदंसियं व तं तं, मयणो सरगोयरे कुणइ ॥ २६९७ ॥ चिट्ठतिए चिट्ठति इंति इंतीए जंति जंतीए । अणुकूलंतिव्वतयं निरंतरं खयरतरुणनरा ॥ २६९८ ॥ केसि पि मणुम्माया जायए सा पुराणमईर व्व । तह अन्नेसिं अवहरइ चेयणं झत्ति मुच्छ व्व ॥ २६९९ ॥ अवराण मणोवित्तिं निन्नासइ गिम्हसमयनिंद व्व । उल्लासइ वेयल्लं काण विय कुजोगजुत्ति व्व ॥ २७०० ॥ एवंविहबहुभावे उब्भावइ इंदजालविज्जु व्व ।। सव्वुत्तमरूवअभग्गचंगसोहग्गसंगवसा || २७०१ ॥ कईया वि पलोएउं तं कन्नं चिंतए खयरराया । कस्सेसा दायव्वा कुमरस्स निवस्स वा कुमरी ॥ २७०२ ॥ जइ न पडिहाइ वरो मए विइन्नो इमाए सुगुणो वि । ता आभवं वराई विडंबिया भवइ निब्भंतं ॥ २७०३ ।। ता नायस्स निमित्तन्नुयाओ एयं वरस्स वियरेमि । इय चिंतिऊण पुच्छइ कन्नाए वरं निमित्तनुं ॥ २७०४ ॥ तो नाउं तेणुतं आणंदपुराहिवस्स देसु इमं । भूगोयरनरवइणो अह होइ इमा सुहट्ठाणं ॥ २७०५ ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१३ रणविक्कमकहा तो रन्ना सम्माणिय विसज्जिङ तमहमेत्थपट्टविओ । ता कयगुरुप्पसाया पहुणो परिणह खयरतणयं ॥ २७०६ ॥ तम्हाणुत्तररूवाणुपणइणी होउ सा परमरूवा । लीलाए ललउ लच्छी हत्थं लच्छीहरुच्छंगे ॥ २७०७ ॥ होउ सया संबंधो तीए समं गुरुगुणस्स तुह देव ! । अणुसरउ तिहुयणसिरी देहं देवाहिदेवस्स ॥ २७०८ ॥ तं सोऊण नरिंदो जंपइ किमसंगयं इहत्थम्मि । परिणिस्सामि निवसुयं कल्लाणे को विरोहो त्ति ॥ २७०९ ॥ नयरे रक्खं काउं, चलइ निवो खेयरी विवाहत्थं ।। पुव्वसिरिं रक्खेडं, अवरसिरी अज्जणं कज्जं ॥ २७१० ॥ वेयड्ढपुरे गंतुं चउरंगचमुं निवो कुणइ पउणं । सामन्नो वि न गच्छइ एगागी किं पुण नरिंदो ? ॥ २७११ ॥ ते विज्जाहरविज्जाणुभावओवाहिणी गया गयणे । महिवइ किं वा देवाणुभावओ सुकयकम्माण ॥ २७१२ ॥ नज्जति समुहमिंता, गिरिसरियदुमाइणो रयगईए । ठाणट्ठिया वि अहवा भंतित्ताणे न सव्वत्तं ॥ २७१३ ॥ संपत्तो वेयड्ढे, जंतो मण-पवण-नयणवेगेण । रोवइ चलिरो ठाणं, पंगू वि हु किं न गुरुवेगो ॥ २७१४ ॥ रिद्धिए पुरपवेसो, रइओ रायस्स पउमरहरन्ना । अच्चायरआहूए किं चोज्जं गोरविज्जते ॥ २७१५ ॥ पडिवत्तिकरणपुव्वं दिन्ना कन्ना विवाहिया तेण ।। परिहरिओ पारद्धं, न कुणइ कज्जंतरं कोइ ॥ २७१६ ॥ भूरिसिरी दिन्ना से कन्नाकरमोयणे खयरवइणा । जे दिति अवच्चं पि हु का वन्ना ताण धणदाणे ॥ २७१७ ॥ . ठाऊण दिवसदसगं, चलिओ वीवाहियं पियं घेत्तुं । देसंतरो तरिज्जइ, जीए कए मुयइ तं को वा ॥ २७१८ ॥ HHHHHI Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૪ सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो नहेण नियए पुरम्मि परिपालए सरज्जसिरिं । . उवभुंजतो भोए तीए समं गमइ कालं से || २७१९ ॥ गच्छंतेहिं दिणेहिं तीए निवभारियाए उप्पन्ना । कन्ना सुवन्नवन्ना आणंदसिरि त्ति नामेण ॥ २७२० ॥ पत्ता परिवद्धती अइविमलकलाकलावकमलपरा । तरुणत्ते आणंदइ जणं छणे चंदमुत्ति व्व ॥ २७२१ ॥ जे संठवंति सिबिया सनयण-कमलाई तीए देहम्मि । देवयमुत्तीए इव हवंति ते अणमिसा नूणं ॥ २७२२ ॥ अच्चब्भूयरूवधरा निरुवमलायन्नपुन्नसव्वंगी । अंगीकयमणिभूसणसिंगारविराईया दूरं || २७२३ ॥ कईया वि वयंसी-दासि-संगयाछत्तअंतरियतरणी । तरुणीकरकमलुल्लसिरचमरचूयवीइयसरीरा ॥ २७२४ ॥ गंतूण कुसुमियदुमसमूहपरिमलमिलंतअलिजाले । अलिविलसियाभिहाणे, उज्जाणे कीलिउं लग्गा ॥ २७२५ ॥ अंदोलयम्मि चडिया, वेगेण गयागयाइं कुणमाणी । पेच्छइ सणा इंदा रइकूरक्त्तलय व्व दारूणि ॥ २७२६ ॥ तत्तो उत्तरिऊणं हल्लीसुल्लासिकररइयताला । ससही भमिरी भामइ काममणे पित्तवुड्ढि व्व ॥ २७२७ ॥ तयणु अवयंसकज्जे कोमलकंकेल्लिपल्लवसमूहं । सहकरसिरिहरमेयं ति तोडए सत्थरेणेव ॥ २७२८ ॥ एयाई सुमणसाइं धरिडं जुज्जति अत्तणो पासे । इय परिभाविय सुमणस्थिणि व्व परिगिहिए ताई ॥ २७२९ ॥ थवयग्गालइयक्कगभिंगं नवमालियं पलोएइ । पयडियसामलचुच्चुयपयोहरं वारविलय व्व ॥ २७३० ॥ तक्कुसुमथवयमभिगिण्हिरी तया मोयमत्तसप्पेण । तदेहासियकुसुमग्गहरुट्ठाणेव दट्ठा सा ॥ २७३१ ॥ । २७२६ ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा - २१५ दट्ठा दट्ठा अहिण त्ति जंपिरी कंपिरी महीए गया । इयरो त्ति भवइ भोई भयाय किमुभक्खिया जेण ॥ २७३२ ॥ धाहावियम्मि दासीदासाईहिं निवाइणो मिलिया । आयरपरा पराण वि वसणे गुरुणो न किं नियए ॥ २७३३ ॥ . मणिमंतओसहीसुं पउंजियासु वि न से गुणो जाओ। . अच्चंतं थोवो वि हु तो आदत्तो निवाइ जणो ॥ २७३४ ॥ किं कायव्वविमूढे निवाइलोए समुल्लसियसोए । विन्नत्तमागएणं केणावि अवंतिपुरिसेण ॥ २७३५ ॥ देव ! रणविक्कमाभिहराया नियपुन्नपत्तरज्जभरो । लीलाए वि हरइ विसं केवलनाणि व्व न संदेहं ॥ २७३६ ॥ उज्जेणीए पुरीए सेट्ठिस्स धणाहिवस्स कणयसिरी । कन्ना मह पच्चक्खं हरियविसा तेण झत्ति कया ॥ २७३७ ॥ सोऊण तमाह निवो राया सो वसइ दूरदेसम्मि । कंठगयप्पाणापणएसा ता जीविही कत्तो ? || २७३८ ॥ तो वसियरणुच्चाडणविद्देसागरिसणप्पविण्णेण । वसविहियचेडएणं पुरोहिएण विसइहिएणं ॥ २७३९ ॥ भणियं पहु ! इण्हि च्चिय, तस्साणयणम्मि में समाइससु । एवं ति निव्वुत्ते चेडएण आणावइ निवं सो || २७४० ।। सरजलकेलिपसत्तो जलकरिरूवेण चेडएणावि । रणविक्कमो हरेडं, समप्पिओ तस्स निवपुरओ ॥ २७४१ ॥ सम्माणिय कहिओ से रन्ना कन्नाहि वइयरो वि तो सो । भणिओ य कुणसु पउणं मह कन्नफुरियगुरुकरुणा ॥ २७४२ ॥ रणविक्कमेण भणियं, राय ! करिस्सामि सव्वमवि किंतु । जणयाइणो न पाणे धरंति मएऽवहरियम्मि || २७४३ ॥ तं सोउं निवभणिओ, पुरोहिओ चेडएण कडयस्स । रायागमणं दिणदुगमज्झे, जाणावए झत्ति ॥ २७४४ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ सिरिअणंतजिणचरियं रणविक्कमेण मंताभिसित्तसलिलेण पंउणिया कुमरी । सुत्तविउद्ध व्व झत्ति उठ्ठिया जणकयच्छरिया || २७४५ ॥ तो तज्जणयाईणं नट्ठो सोओ पवढिओ हरिसो । कुमरीए जीवणेणं न कस्स तोसाय अब्भुदओ ॥ २७४६ ॥ सा वि हु कन्ना दिन्ना रन्ना रणविक्कमस्स नरवइणो । अवरम्मि वि उवयारो, कज्जो किं नोवयारपरे ? || २७४७ ॥ आहूया वीवाहे, वेयड्ढपुराओ आगया खयरा । अवरे वि वाहरिज्जइ, छणे निओ किं न वीवाहे ? ॥ २७४८ ॥ रणविक्कमरन्ना वि हु, विवाहिया सा वि रायरत्तमणा । न निव्वत्ती इयरस्स वि थीबाहुल्ले किमु निवस्स ? ॥ २७४९ ॥ वियरइ सिरीपभूयं, कन्नाकरमोयणे वरस्स निवो । अच्चंतमुदाराणं दाणम्मि न अत्थि परिमाणं ॥ २७५० ॥ सह खेयरेहि धणमणिविमाणविंदेण पणइणीसहिओ । इण्हि इह संपत्तो इय पुहुहरणस्स वुत्तंतो || २७५१ ॥ सोउं निवावहाराइ वइयरं सीहविक्कमाइजणो । जंपइ सिरे धुणंतो, किं पि असज्झं न पुन्नाण ? ॥ २७५२ ॥ देसंतरप्पवासो, नयरिमसाणं अणत्थबहुलं पि । सुकएणिमस्स असरिसरज्जसिरी कारणं जायं ॥ २७५३ ॥ अव्वाहियहेउम्मि सरनीरणिमज्जणम्मि वि इमेण । पत्ता सव्वुत्तमरायकन्नया सुकयकम्मवसा ॥ २७५४ ॥ पूइज्जति सदेसे व्व पुन्नवंता गया वि हु विदेसे । किंचि न निययं न परत्तयं व सुकईण जेणुत्तं ॥ २७५५ ॥ वच्चइ जत्थ सउन्नो विदेसमडविं समुद्दमज्झे वा । नंदइ तहिं तहिं चिय ता भो ! पुन्नं समज्जिणह ॥ २७५६ ॥ उत्तमकुलप्पसूई निरुवमरूवं अभग्गसोहग्गं । गुणजोगो निरुयत्तं कित्ती वि य होति पुन्नेण ॥ २७५७ ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ रणविक्कमकहा असमाणा तणुसत्ती चउरंगबलं रणंगणे विजओ । बुद्धी परोवयारो य पुन्नविप्फुरियमखिलं पि ॥ २७५८ ॥ ता मुत्तुमन्नकिरियापरं परं कुणह पुन्नप्पउत्तिं । सामन्नाण वि जीए प्पभावओ होइ इयरिद्धिं ॥ २७५९ ॥ तयणु रणविक्कमेणं नरेसरेणं समग्गखयरिंदा । सम्माणिऊण वत्थाभरणेहिं विसज्जिया झत्ति ॥ २७६० ॥ वेयड्ढपव्वयं पड़ गएसु विज्जाहरेसु सव्वेसु । राया वि नियपुरं पइ चलिओ पत्तो य तीए कमा ॥ २७६१ ॥ नाऊण निवागमणं, पउरेहिं पुरिसमज्जिङ सयलं ।। घुसिणरसेणासिंचिय, तीए कया कुसुमभरवुट्ठी ॥ २७६२ ॥ सिंघाडय-चच्चर-तिय-चउक्क-गोउर-दुवारदेसेसु । रइया सकणयकलसा, धयमालामालिया मंचा ॥ २७६३ ॥ अनिलुक्कलिया चंचलधयचिंधालंबरणिरकिंकिणिओ । अंबयदलतोरणरम्मगोउरो विरइओ सालो ॥ २७६४ ॥ सव्वुत्तमम्मि दिवसे सिंगारियगुरुगइंदमारूढो । मुत्तालंकियधवलायवत्तविरईयवररत्थाओ ॥ २७६५ ॥ रमणीयस्वरमणी,करचालियचारुचमरकयसोहो । गयचडियसहोयरमंडलीयमंडलकयावेढो ॥ २७६६ ॥ सामंतारोहसणाहतुंगतुरयोहरुद्धचउपासो ।। समरंगणरिउगणहणणपत्तजसपसरभडसहिओ || २७६७ ॥ रह-रयणसेज्ज-वालय-लंघिणिय-सुहासणाइजाणेसु । आरूढेहिं अमच्चाइएहिं सममणुसरिज्जते ॥ २७६८ ॥ पडिजद्दरंबरच्छाइयाहिं, कंचणसुहासणगयाहिं । अणुगम्मतो अंतेउरीहिं सजुत्तचमराहिं ॥ २७६९ ॥ पविसइ पडिजद्दरमेहडंबरारइयहट्टसोहाए । नयरीए निवो परिवज्जमाणअणवज्जआभज्जो ॥ २७७० ॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ सिरिअणंतजिणचरियं रायप्पवेसपेच्छणसमुस्सुओ नयरिनारिनरनियरो । आरूढो अट्टालयहट्टपायारसिहरेसु ॥ २७७१ ॥ आसीए आणपुव्वं, मग्गंमि महासईहिं वुच्चंतो । अभिहम्मतो उद्दामकामरमणीकडक्खेहिं ॥ २७७२ ॥ घुसिणोवलित्तमोत्तियचउक्कजुयनिययघरदुवारेसु । कयउयारणएहिं पणमिज्जंतो य पउरेहिं ॥ २७७३ ।। बंदीहिं पढिज्जतो गिज्जतो कुलवहूहिं सव्वत्तो । उववूहिज्जतो जय जीव चिरं इय जणुत्ताहिं ॥ २७७४ ॥ सम्माणतो मित्तेहिं, तो बंदीयणदीणदाणाई । पेच्छंतो पेच्छणयाई मंचसंठीयमयच्छीणं ।। २७७५ ॥ अवलोयंतो नियरूवदंसणुप्पन्नमयणमत्ताहिं । रमणीहिं परवसाहिं निययप्पासायमणुप्पत्तो ॥ २७७६ ।। उत्तरिय गइंदाओ उवविसिऊणं सहाए सव्वजणं । सम्माणिउं विसज्जइ महायणप्पमुहमायरओ ॥ २७७७ ॥ उवभुंजइ रज्जसिर सुयणे पालइ विणिग्गहइ दुढे । आयरइ विउसविंदं खत्तायारं न परिहरइ ॥ २७७८ ॥ एवमणवज्जरज्जं परिपालंतस्स गुणसिरोमणिणो । अच्चतरत्तअंतेउरीहिं सह विसयसत्तस्स ॥ २७७९ ॥ असरिसविणोयवक्खित्तचित्तवित्तस्स तस्स वच्चंति । दिवसा दिवसाहिवसरिसप्फुरियपोढप्पयावस्स ॥ २७८० ॥ मयणस्सिरीए, कणयस्सिरीए आणंदसिरिसुनामाए । मयणरहो कणयरहो आणंदरहो सुया जाया ॥ २७८१ ॥ परिवद्धिया य तिन्नि वि कलाकलावं पि पाढिया पिउणा । संपत्ता य कमेणं मणुन्नलायन्नतारुन्नं ॥ २७८२ ॥ परिणाविया य उत्तमनरिंदसामंतकंतकन्नाओ । विलसिरलायन्नाओ चंपयकलियालिवन्नाओ || २७८३ ॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा २१९ ताहिं सह विसयसोक्खं उवभुजंता गर्मिति कालं ते । सेवंति य ति संज्झं सेवावसरे नरिंदपए || २७८४ ॥ अह अन्नया य राया मणिरयणाभरणभूसियसरीरो । मयपाणलुद्धसुद्धालिबंधुरे सिंधुरे व चडिओ ॥ २७८५ ॥ मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियतीव्वरवितावो । तरुणरमणीकरुल्लसिरचारुचमरोहससिरीओ ॥ २७८६ ॥ उम्मत्तगयघडावीढदिढयरावेढसमुदुद्धरिसो । वग्गंततुंगउत्तमतुरंगसंदोहकयसोहो ॥ २७८७ ॥ रयझणहणंतधयकणयकिंकिणीजालसंदणसणाहो । समरंगणमुग्गराणणघणव्वणालंकियभडोहो ॥ २७८८ ॥ मुहुरस्सरचारणगणउच्चारियचारुगुणगणत्थवणो । मंडलियमंतिसामंतचक्कअक्कंतचउपासो ॥ २७८९ ॥ चिंधद्धयछत्तअलंबसिक्करीनियरभरियनहरंधो । वज्जिरविविहाउज्जो नीहरिओ रायवाडीए ॥ २७९० ॥ गच्छंतो संपत्तो कलकोइलनामगम्मि आरामे । कीलवियमत्तकरिं समहरणत्थं विसइ तत्थ ॥ २७९१ ।। नीरयसुहयविसालं पाउसगयं व अमरनयरं व । मुणिमणमिव निवगिहमिव पुन्नायविरायमाणं जं । २७९२ ॥ पेच्छइ कंकेल्लिद्दुमतलसुरकयकणयपंकयासीणं । तं पुव्वदिट्ठा जोइयसूरिं नाणत्तयसणाहं ॥ २७९३ ॥ उप्पाइयकुसुयं पि हु अजडं निग्गंथमवि सुवन्नधरं । सोयासियं असोयं पि बंभचारिं पि सप्पमयं ॥ २७९४ ॥ दठूण तयं पाउब्भवंत गुरुभत्तिनिब्भरो राया । उत्तरिय कंधाओ वंदइ महिमिलियभालयलो || २७९५ ॥ गुरुणा वि गुरुभवन्नवसंतारणसारतरतरीतुल्ला । सद्धम्मलाहआसी रन्नो दिन्ना नयपयस्स ॥ २७९६ ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० सिरिअणंतजिणचरियं उवविट्ठो तप्पुरओ जोडियपाणी निवो सपरिवारो । भणिओ गुरुणा मं निव ! परियाणसि वा नवा जोई ॥ २७९७ ॥ जो तुमए अवंतीए पुरीए पडिबोहिओ समाणम्मि । रायाह पहुं जाणामि, कहसु ता नियवयग्गहणं ॥ २७९८ ॥ सूरी जंपइ तईया नहेण हं तुह सयासओ चलिओ । नवरं गमणक्खलणे जाया बहुजोयणंतो मे ॥ २७९९ ॥ बहिपहगमणस्संतो व्व जाव गंतुं पयं पि न तरामि । ताव अहो पेच्छंतो निएमि मुणिनायगं एगं ॥ २८०० ॥ बहुऽमयमवि सप्पभयं अरायसहियं पि रायकयसेवं । नववयमविय वउव्वयमगव्वधरमवि समयसहियं ॥ २८०१ ॥ समिइपरं पि हु सइविहियउवसमं सुहदयं पि अजडसियं । संतावयं पि सुहयं अपावयं रइयरक्खं पि ॥ २८०२ ॥ दठूणं तं परिचिंतियं, मए जं इमेणं हं खलिओ । तम्मन्ने मह नियमंतसत्तिमेसो पयासेइ ॥ २८०३ ॥ तो अवयरिउं पुच्छामि कारणं इय विचिंतिउं झत्ति । उत्तरियनहयलाओ अहं मुणिंदं समल्लीणो ॥ २८०४ ॥ पावित्तु तमुवसंतं चिंतेमि इमस्स देहदेसे वि ।। निवसइ नाहंकारो सुइरं लवणं व जलमज्झे ॥ २८०५ ॥ मुत्तिमओ च्चिय धम्मो एसो जम्मिमस्स दंसणेणावि । धम्ममई हमवि ठिओ गुणिजोगो कस्स न गुणाय ॥ २८०६ ॥ इय चिंतिउं गुरुक्कमकमलं अवयंसयं नयंतेण । पणओ मए पहू बहुयभत्तिपब्भारभरिएणं ॥ २८०७ ॥ उवविसिय पुच्छिओ पहु ! किं मह गयणे गई तए खलिया । भयवं ! जं न कयाइ वि मुणिणो कुव्वंति मंताई ॥ २८०८ ॥ भणइ मुणिंदो जोइंद ! नेय लंघंति खयरविज्जाओ । चरमसरीरं कइया वि जिण एसो च्चिय सहावो ॥ २८०९ ॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ रणविक्कमकहा इय मज्झ हियं पुणरवि गुरुणो पभणंति सुणसु जोइंद ! । एयं दुलहं लद्धं मा विहलसु माणुसं जम्मं ॥ २८१० ॥ भणियं मए वि कह जम्मविहलया मज्झ ? तयणु भणइ गुरु । जीवदयापरिहीणं, विहलं चिय मुणसु मणुयत्तं ।। २८११ ॥ मंसं भक्खंति महुँ पियंति सेवंति परकलत्ताई । इय पावप्पहयाणं, कत्तो सहलं मणुस्सत्तं ॥ २८१२ ॥ जंपेमि अहं सग्गापवग्गसंसाहओम्ह एस विही । भणइ पहू मह साहसु जोईय ता नरयगमणविहिं ॥ २८१३ ॥ पुणरवि भणामि किं भो ! मुणिंद ! तुह अम्ह मयवियारेण । गुरुणा भणियं सुजुत्तं मा एवं भणसु जोइंद ! ॥ २८१४ ॥ इह चोल्लगाइदिळंतदसगदुल्लहे नरत्तणे पत्ते । आरियखेत्तुत्तमगोत्तए सुहसामग्गिसहियम्मि ॥ २८१५ ॥ कज्जमणवज्जकज्जं उज्जमसज्जेहिं सज्जणेहिं तयं । जमुभयभवहियजणयं सियकित्तिकरं च सुहयं च ॥ २८१६ ॥ ता भो जोइंद ! महाणुभावजुत्तो न मंसउवभोगो । जेण महापावकर, जीववहसमुब्भवं मंसं ॥ २८१७ ॥ जइ पाणपरित्ताणं जायइ केणावि अवरभक्खेण । खणतित्तिकए ता को जीववहं कुणइ, भणियं च ॥ २८१८ ॥ एक्कस्स कए नियजीवियस्स बहुयाओ जीवकोडीओ ।। जे मारयंति पावा ताणं किं ? सासयं जीयं ॥ २८१९ ॥ तहा - एक्कस्स खणं तित्ती अन्नस्स य तिहुयणं पि अत्थमइ । एवं कह मारिज्जिइ खणसोक्खकएण पाणिगणो || २८२० ॥ मज्जं पि महापावस्स कारणं सव्वहा विवेयहरं । अकलियकज्जाकज्जं अणज्जजणसेवियमजुत्तं ॥ २८२१ ॥ परनारीपरिभोगो, भवबीयंकुरो य अकित्तिकरो । वेराण बंधहेऊ पावप्पासायगुरुक्खेउ ॥ २८२२ ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ सिरिअणंतजिणचरियं अवरं च-जाई अच्चब्भुयाई तुह कोउयाई दीसंति । पंचंदियजीववहेण ताई सव्वाइं वि हवंति ॥ २८२३ ॥ ता एवंविहगुरुयरपावपब्भारभारिओ नरए । तिव्वयरवेयणे जोइराय ! सा निवडसु मुहे व ॥ २८२४ ॥ किरंति सुहेणेव य पावाई पमोयवियसियमुहेहिं । अइविरस्समारसंतेहिं ताई पुण अणुहविजंति ॥ २८२५ ॥ जायइ जइ थिरमाऊ, जइ वा परिगलइ जोव्वणंते व । तावज्जियमज्जायं किज्जंतु सया सुकज्जाइं ॥ २८२६ ॥ ता जोईसर ! तं किं पि कुणसु न पुणब्भवो भवइ जेण । संपज्जइ परमाणंदनिब्भरं सिद्धिसोक्खं व ॥ २८२७ ॥ इय पत्तसूरिवयणारविंदसद्देसणागओ अहयं । अवगय अविवेयविसो संवेगपरो पयंपेमि ॥ २८२८ ॥ तुह निक्कित्तिमसिक्खावयणुम्मीलियमहाविवेयस्स । मज्झ मणे संजायं, परमप्पा तं चिय न अन्नो ॥ २८२९ ॥ ता सामिसाल ! तुह पायपउमवणवासलालसा दूरं । नन्नत्तो जाइमणप्पवित्तिं कलहंसिया मज्झ ॥ २८३० ॥ ताहं पहु जाजीवं तुम्ह कमसेवणेक्ककयचित्तो । गिहिस्सामि वयभरं नवरं पुच्छं कमवि काहं ॥ २८३१ ॥ कुणसु त्ति गुरुत्ते भणइ जोइओ तुम्ह वयभरो पढमो । तह इस्सिरियं सूयइ लक्खणजायं सुहं देहो ॥ २८३२ ॥ सोहग्गसमग्गं गुणगणो गुरूरूवरम्मया असमा । वेरग्गकारणं किं जं तुब्भेहिं वयं गहियं ॥ २८३३ ॥ निक्कारणा पवित्ती न हवइ जं का वि उत्तमनराणं । ता साहह मह तो भणइ मुणिवई सोम ! निसुणेसु ॥ २८३४ ॥ तरणिरहरयणगमणक्खलणक्खमसालवलयकलियं तं । सरसलिलं व विसालयमत्थि पुरं सिरिविसालं ति || २८३५ ॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा बहुमयगयकयकीलं विलसंतरहं गरिट्ठविहयसरं । सरहसवररमणीयं रेहइ जं गुरु अरत्तं व ॥ २८३६ ॥ तत्थत्थि सयलविज्जाठाणट्ठावियमईसु नीइरई । वेयवियखणनामा परवामावज्जिओ विप्पो ॥ २८३७ ॥ कुसलवसुहओ भामंडलासिओ निक्कलंककयवेढो । अवराई हिययहरो जो रेहइ रामदेवो व्व ॥ २८३८ ॥ सोमो थिरो गहीरो परोवयारी कयव्वओ वीरो । निमच्छरो उदारो मुणी पसंतो पियालावो ॥ २८३९ ॥ नवजोव्वणुव्वणंगो कयाइ कमणीयजणियसिंगारो । आरूढो सव्वुत्तमलक्खणधरगुरुतुरंगम्मि || २८४० ॥ मंदानिलतरलसिहंडिचंदयछत्तहरियरवितावो । समवयतुरयट्ठियमित्तमंडलीकलीयचउपासो ॥ २८४१ ॥ रह-तुरय-सुहासण-सिबिय-लंघिणी-वहिल-सेज्जवालेहिं । सज्जीकएहिं सिंगारिएहिं समणुसरिज्जंतो ॥ २८४२ ॥ वग्गणवरेक्कपुला-टपा-झंपा-भमीहिं हयरयणं । लीलाए कीलंतो, संपत्तो विवणिवीहीए ॥ २८४३ ॥ तयणु पुरो सच्चविया तेणुत्तमरूवरम्मतणुजट्ठी । चंदकलासियमुत्ती, सप्पाभरणा हरतणु व्व ॥ २८४४ ॥ चलसरलधवलपम्हलसिणिद्धमुद्धच्छिपेच्छिएहिं लहुं । विकिरती वियसियसियसयवत्तप्पयरमिव नयरे ॥ २८४५ ॥ सव्वंगसमुल्लसमाणललियलायन्नरसभरुक्करिसा ।। ससिसंगतरंगिज्जंतखीरजलरासिवेल व्व ॥ २८४६ ॥ सिरसंठियपयघडया कोमलपावरियपट्टए उ पडया । नवजोव्वणरमणीया रमणी एगा समुहमिंती ॥ २८४७ ॥ (कुलयं) तं दटुं सो चिंतइ पेच्छ दुरज्जवसियं इमं विहिणो । जं एरिस-थी-रयणं विडंबियं एरिसायरणो ? || २८४८ ॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ सिरिअणंतजिणचरियं जेणेरिसपत्ताणं वासोजुत्तो नरिंदभवणेसु ।। कप्पलयाणं ठाणं नूणं नंदणवणो चेव ॥ २८४९ ॥ आभवमवि निव्वत्तिय समुचियसट्ठी वि एत्थ परमेट्ठी । चुल्लो जइ वा सुविवेययणो वि चुल्लंति जेणुत्तं ॥ २८५० ॥ अच्चंतविवेएण वि गुरुयाण विसंवयंति बुद्धीओ । विज्जुज्जोओ अइवहलिमाए अंधेइ अच्छीणि ॥ २८५१ ॥ इय तग्गए वियप्पे संकप्पंतस्स तस्स सहस त्ति । नासंतहयाणुपहं संपत्तो रायमत्तकरी ॥ २८५२ ॥ वेढिज्जंतो मयग्गंधलुद्धरुणझुणिरभमिरभमरेहिं । दाणपवित्तिसंगयमग्गणनियरेहिं दाणि व्व ॥ २८५३ ॥ जो बहुपुक्करहिं रयसु सुवइ महिं निएउं च । सज्जावजज्जरावा सहिही नो वा मह भरो त्ति ॥ २८५४ ॥ अणवरयं चालंतो तरलतरं कन्नतालजुयलं जो । रयपसरमिवोसारइ संतबलावलोयणत्थं ॥ २८५५ ॥ पाडतो पडिकारे भिंदंतो चोइए हए हणिरो । भंजंतो जाणाई गओ गओ गुरूयवेगेण ॥ २८५६ ॥ तत्तासवसासा वि हु पणस्समाणे जणे सघयघडया । जलवाहिणीए कीय वि अन्भिडिया दो वि पडियाओ ॥ २८५७ ॥ दोण्ह वि घयजलघडया झड त्ति पडिया दड त्ति फुडिया य । पाहाणमयं पि हु फुडइ निवडियं मिम्मयं किं नो ? || २८५८ ॥ घयहाणीए वि सहस त्ति उठ्ठिया अभिन्नमुहराया । वज्जइ अहव विसेसो, गुरुयाण महाणिवुट्ठिसु ॥ २८५९ ॥ रुयइ सकरुणं जलवाहिणी पुणो गुरुसरेण तं दर्छ । जंपइ विप्पो जलघडयमित्तभंगे वि किं रुयसि ? ॥ २८६० ॥ सा आह सासुया मं ताडेही भोयणं पि हु न दाही । कुविया भणिही तुह भोयणेण घडयं गहिस्सं ति ॥ २८६१ ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ रणविक्कमकहा जंपइ विप्पो बीयं पि तं पि किं नो वरोरु ! रोएसि ।। जं तुह घयघडभंगो, जाओ दव्वक्खओ बहूओ ॥ २८६२ ।। तीयुत्तं किं एक्कं रुएमि नररयण ! रोइयव्वाओ । किं न सुया ? लोगुत्ती बहुदुक्खमदुक्खमज्झे त्ति ॥ २८६३ ॥ सुयं तव्वयणो सो भणइ सुब्भु ! जं जंपियं तए एयं । बहुदुक्खमदुक्खं इय मह साहसु कोउयं जेण ॥ २८६४ ॥ तो सा तं पइ जंपइ संपइ उवविसिय कत्थई सुणसु । तं सोउं सो पत्तो तीए समं नयरउज्जाणे ॥ २८६५ ॥ सप्पासणसंगयमवि पउरासणसोहियं पुरवरं व । जं अनवमालियं पि हु वियसियनवमालियं सहइ ॥ २८६६ ॥ उल्लसिय-सुतार-सुवन्न-रयणसालत्तयासियप्पमयं । पत्तालिविहयविसरं जं सोहइ समवसरणं व ॥ २८६७ ॥ तत्थ निरंतरवणसंडं-मंडलीसीयालकयलिसंडे ।। अविरलदलदक्खामंडवम्मि गंतुं समुवविट्ठो ॥ २८६८ ॥ मित्तेसु निविद्रुसु उवविट्ठा विट्ठरे विइन्ने सा । न चयंति वियट्ठाउ जइ वा समुचियसमायरणं ॥ २८६९ ।। पत्तदियाएसा सा साहिउमुवचक्कमे नियं चरियं । अंगीकयं पि काउं जुत्तं गुरूआण आणाए ॥ २८७० ॥ नामेण लच्छितिलयं पुरमत्थि महत्थवित्थरं जत्थ ।। मझे तरुणा पमयागया सयासाहिणो उवहिं ॥ २८७१ ।। अंतो बहिं च रेहइ, जं विरहारूढपोढकइरायं । तह बहिमंतो य सया, रत्तासोयप्पियालसियं ॥ २८७२ ॥ मज्झमि गिहा बहिया जलासया अमियसंखसउणसिया । गुरुपायवसे पत्ता मज्झे मुणिणो मही उवहिं ॥ २८७३ ॥ तप्पुरपहुत्तमुव्वहइ तिव्वदावग्गिदुस्सहपयावो । लच्छीविलासनामा रामा मणहरतणू राया ॥ २८७४ ॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ सिरिअणंतजिणचरियं जो अंगीकयकित्तीहरो व्व पमायासओ समीरो व्व । निस्सेसमंडलकरो विभाइ पुन्निममयंको व्व ॥ २८७५ ॥ अवरोहकामिणीवग्गअग्गणी अत्थि राइणो दइया । नामेण विलाससिरी, सिरि व्व सिरिवच्छहिययहरा ॥ २८७६ ॥ उत्तमकन्ना वि सुवन्नजायउल्लसियगुरुतराणंदा । लोयप्पिया सई वि हु सुहया वि हु अहयसोहा जा ॥ २८७७ ॥ पोढाणुरायरत्ताए तीए सह विविहविसयसत्तस्स । नयनिट्ठस्स निवइणो सुहेण कालो वइक्कमइ || २८७८ ॥ तत्थेव वसइ चउदसवरविज्जाठाणजाणओ विप्पो । नामेण वेयसारो हारो व्व पवित्तमुत्तमगुणो ॥ २८७९ ॥ गुणिवग्गअग्गणी वि हु उदारचित्तो वि तुच्छवित्तो सो । ईसालुय व्व न सिरी, ससरस्सइयं तमणुसरइ ॥ २८८० ॥ नियरूवे होमियकामिणीयणा कामिकामसंजणणी ।। नामेण कामलच्छी, कमलच्छी अत्थि कंता से ॥ २८८१ ॥ नयणनिमेसुम्मेसे न कुणंति सुरा वि विरहनिहुरंगा । तब्भो उब्भवचिंतासंताणपणट्ठचित्त व्व ॥ २८८२ ॥ अवलोयणं पि तीए सुचरियसुकयप्फलं व कलइ जणो । सविलासालावं पुण तिहुयणरज्जाहिसेयं व ॥ २८८३ ॥ तेसिं विसयासत्ताण जाइ कालो महासुहपराण । नेहजुयाणं अमयं निन्नेहाणं विसं विसया ॥ २८८४ ॥ पढमे वि जोव्वणम्मि जाओ पुत्तो गुणुत्तमो तेसिं । नाम से वेयवियक्खणो त्ति विहियूसवं विहियं ॥ २८८५ ॥ सलिलनिमित्तं कइया वि कामलच्छी गया पुरद्दारे । नियगेहकज्जकरणे का वा लज्जाकुलवहूण ? || २८८६ ॥ पत्ता उत्तमवणसंडमंडलीकलियपालिसरसलिले । जा तस्स सिसिरसत्थस्सुसाउणो पूरए कुंभं ॥ २८८७ ॥ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ रणविक्कमकहा एत्थंतरे रयभरो पूरंतो पसरिओ गयणगभं । अवइयण-अयसपसरो व्व सामि निसितिमिरपूरो व्व ॥ २८८८ ॥ तो कंचणच्छविगूडा गुडिया उम्मीलिया करेणुघडा ।। झंपुच्छलियतडिच्छडकडारिया मेहमाल व्व ॥ २८८९ ॥ रुप्पयपंडुरपक्खररक्खियदेहाओ तुरयराईओ। दीसंति कुसुमधवलाऽनिलवलिरमावलीओ व्व ॥ २८९० ॥ सेणाए कुंतसंकंतकंतिणा विरईअं व साहिज्जं । संपत्तं सूरेण गुरुतमरिउं दारणनिमित्तं ॥ २८९१ ॥ रावुक्कडसुहडपमुक्कहक्कहुंकारसीहनाएहिं । साहिज्जइ व्व रिउणा रणरंगारयणसंरंभो ॥ २८९२ ।। तंबक्कबुक्कढक्कारवसुरपासायपडिरवप्पसरा । उल्लसइ दरियपडिरायरणभराउज्जसद्दो व्व ॥ २८९३ ॥ तं दटुं परचक्कावगमुब्भवभयवसा पणट्ठा सा । दिढेसु रिउसु पायं न थिरो पुरिसो वि किमु नारी ? || २८९४ ॥ पायारं तं पत्ता पेच्छियपिहियं पओलिदारं सा । भयभरओ च्चिय मणा हियसव्वस्स व्व संजाया ॥ २८९५ ॥ एत्थंतरम्मि वम्मिय भडगुडियगइंदपक्खरियतुरया । परियरमावेढेइ पुरं चउप्पासमरिसेन्नं ॥ २८९६ ॥ सालग्गसंगिभडहढक्कड्ढियकोदंडमुक्कबाणेहिं । अभिहम्मइ रिउसेणा महि व्व घणनीरधाराहिं ॥ २८९७ ॥ निबिडघणगुडियउब्भडकरडिघडाकोट्ठयट्ठिया सुहडा । मोत्तुं सरासणिसालमहिहरे झत्ति भिदंति ॥ २८९८ ॥ पाडंति पहणिऊणं दड त्ति मोत्तूण जंतपाहाणो । एगे गुडियगइंदे अन्ने कविसीसयसमूहं ॥ २८९९ ॥ बलदुगभडफुडियअग्गितेल्लजालावलीजलियजीवा । उल्लसइ कुवियमुणिमुहविणिग्गया तेउलेस व्व ॥ २९०० ।। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ सिरिअणंतजिणचरियं सवणंतायड्ढियकढिणघणुमुक्ककंकपत्तेहिं । भिंदिज्जइ भडविंदं परोप्परं रोसवसएहिं ॥ २९०१ ॥ बाणनिवारणसिरकयफरयाणप्पविसिराण सुहडाण । गुरुगोउरग्गसुहडा खिवंति सायरसयधणीओ || २९०२ ॥ दप्पुब्भडसुहडपमुक्कपेक्कहुंकारहक्कलल्लक्के । मयरद्धयरिउराया रणंगणे झत्ति संपत्तो ॥ २९०३ ॥ वीइज्जंतो रमणीयरमणिकरचलिरचमरनियरेण । मुत्तावचूलविलसिरसियछत्तरियरवितावो ॥ २९०४ ॥ चउपासचउरचारणउच्चारियचारुथुइपयपहिट्ठो । गयघडरह-वूह-हयोह-जोह-संदोह-संसोहो ॥ २९०५ ॥ सेवयनरिंदआभरणकिरणभररइयहरिधणुगणेण । रणरंगागयरिउगणहणणाणीयत्थसव्वोत्थ ॥ २९०६ ॥ धवलायवत्तपंतीए गच्छत्तत्थसिक्किरिस्सेणी । बलजलपाणनिमित्तं गंगाजउणा उवाणितो ॥ २९०७ ॥ कुलयं तं दटुं तीए को वि पुच्छिओ एस को निवो भद्द ! । कत्तो पत्तो किं वा वि वेरमेयस्स इय कहसु ॥ २९०८ ॥ सो आह एस वइराडदेसरायानिरुद्धआणंदो । मयरद्धयओ व्व मयरइयाभिहो जणमणावासो || २९०९ ॥ अणुवच्छरं पि करमेस नरवई अम्ह सामिणो दितो । संपइ न देइ तमिमो तो विक्खेवो कओ पहुणा ॥ २९१० ॥ सच्चविया सा रामा रन्ना विईओ तओ नियंतेण । नियरूवरेहअहरिय दूरं भाविब्भमा रंभा ॥ २९११ ॥ सो चिंतइ एयाए भूयंडवडंबरेण विजियाहिं । पडिवन्नो वणवासो हरिणीहिं लज्जिरीहिं व ॥ २९१२ ॥ एयाए वयणरयणीयरेण विजिओ व्व पव्वहरिणंको । हरिणच्छलेण हियए मच्छरओ धरइ कालुस्सं ॥ २९१३ ॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२९ रणविक्कमकहा नियतेयसमहियपहं दठूणमिमं लज्जिरि व विज्जू वि । वासासु समागंतुं खणेमेत्तं चलइ वेगेण ॥ २९१४ ॥ आगरिसिणि व्व विज्जा एसा जमिमाए जाइ जणदिट्ठी । संमोहणि व्व मोहइ समग्गपेच्छयजणमणाइं ॥ २९१५ ॥ मज्झावरोहमज्झमि नत्थि थीरयणमेरिसं नूणं । ता गिन्हामि इमं जं ठाणं रयणेण नरवइणो ॥ २९१६ ॥ इय चिंतिय आवासे नेउं अंतेउरम्मि तं खिवइ । पररमणिं पि हु अहवा किं पि अकिच्चं न लुद्धाण ॥ २९१७ ॥ सा आह-राय ! माहण-पिया अहं बालओ सुओ मज्झ । ता मं मुयसु न गरुया असमंजसकारया हुंति ॥ २९१८ ॥ तुम्हारिसा वि जइ पहु एवमनायं कुणंति चत्तनया । ता परिपत्ती जाया सुहाए हालाहलत्तेण ? || २९१९ ॥ अवरस्स तुमं वियरसि सिक्खं सक्खं न तं सयं कुणसि । हरइ जए तममरुणो तेणेव गसिज्जइ सयं तु ॥ २९२० ॥ अन्नं अकज्जनिरयं निग्गहसि नरं नरिंद ! तं नृणं । कुणसि सयं तु अकज्जं को वा पहुनि निग्गहम्मि पहू ? || २९२१ ॥ अवरं च बंभदव्वा पहु ! तुह मह विरहिदइयसरणेण । होही बालवहो वि हु जमजणणीओ मरइ बालो ॥ २९२२ ॥ मा अयसमसीकुच्चयमप्पकुले देसु पुव्वजसधवले । मा मज्जायकुलबहुं अदिट्ठदोसं विणासेसु ॥ २९२३ ॥ आह नरिंदो सुंदरि ! एयं सव्वं पि अहमवि मुणंतो । नवरं तं दठूणं पम्हुट्ठमिमं समग्गं पि ॥ २९२४ ॥ सरलीहवंति सासा डज्झइ हिययं पकंपए अंगं । अंसूणि मुयइ दिट्ठी तुह परिहरणे पिए ! मज्झ ॥ २९२५ ॥ जं होयव्वं तं होउं बंभहच्चाइ तं न मुंचामि । तुह संगसुहं पच्चक्खमवरजम्मो परोक्खो जं ॥ २९२६ ॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० सिरिअणंतजिणचरियं नाऊण निवनिबंध, अप्पं मोयाविउं अपारंती ।। उवरोहेण वि जाया निवआणा पालिया बाला ॥ २९२७ ॥ अच्चासत्तो राया जाओ न तरइ खणं पि तं मोत्तुं । अहवा सुरूवरमणीए को न मोहिज्जए कामी ॥ २९२८ ॥ रयणाभरणविलेवणमणहरवत्थाई देइ राया से ।। दिज्जंति जाणपाणा वि ताण दइयाण किमदेयं ॥ २९२९ ॥ आलवणं पि न रन्नो अवरपियाणं कुओ परीभोगो ? । भाणइ नडे विमुंचइ जमणिठं भुज्जएऽभिमयं ॥ २९३० ॥ लच्छीविलासरन्ना समरासत्तेण रिउनरिंदस्स । विहिया आणा अहवा समयन्नुत्तं सिरीमूलं ॥ २९३१ ॥ चलियमयरद्धयनिवो गओ सदेससपुरे महासाले । कयकिच्चो नत्तो वि हु वसइ विएसम्मि किमु राया ? ॥ २९३२ ॥ नवदईयाए पयच्छइ मणिभवणप्पमुहलच्छिविच्छडं । किरियादारेणं चियं नेहो नज्जइ न वयणेहिं ॥ २९३३ ॥ हियएण नियपइं सा देहेण पुणो नरिंदमणुसरह । पाएणप्पमयाओ न हुंति एगप्पसत्ताओ ॥ २९३४ ॥ चिंतइ सा काराओ व छुट्टिस्समहं कया निवनिरोहा । कइया नयणाणंदं दइयं चंदं व दच्छीहं ॥ २९३५ ॥ सव्वुत्तमनिवभोगो, रोगो व्व जणेइ गुरुमणुव्वेयं । जस्सप्पभावओ मे, निवारियं बहिपरिब्भमणं ॥ २९३६ ॥ मज्झ सरीरं दूरं अंगारभरो व्व दहइ सिंगारो । इट्ठजणनयणतोसो जं दटुं जायए नेय ॥ २९३७ ॥ रोरत्तं च पहुत्तं मज्झमणि सा समाहिं संजणणं । जाइ न जं उवओगं पुत्त-पइप्पमुहसयणाण ॥ २९३८ ।। जइ तइया रणभडमुक्कबाणजज्जरतणू विवज्जंती । पियपुत्तविरहदुक्खं ता नूणं नेव पावंती ॥ २९३९ ॥ * Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ रणविक्कमकहा इय चिंता संतत्ताए तीए वरिसाण वीसई जाया । उवरोहविलासिएहिं नरिंदमवरिं जयंतीए ॥ २९४० ॥ समयंतरम्मि चिंतइ देसियविप्पाण देमि कणयमहं । एइ जह मह पई वि हु सपुत्तओ दव्वलोहेण ॥ २९४१ ॥ इय चिंतिऊण कणयं कयपडिवत्ती पयच्छइ दियाण । तो दूरदेसिया वि हु विप्पा चलिया तयं सोउं ॥ २९४२ ॥ एवंरूवपसिद्धिं, आयन्निय वेयसारविप्पो वि । संपत्तो पुत्तजुओ तम्मि पुरे तीए भवणम्मि ॥ २९४३ ॥ कारिय न्हाणो विरईयविलेवणो दिन्नभोयणो विप्पो । देवीए देइ आसिं सपुत्तओ मंतमुच्चरिओ ॥ २९४४ ॥ उवविट्ठो परियाणिय पुट्ठो देवीए विप्प ! कत्तो तं । कत्थ पिया तुह किं होइ एस बालो ? त्ति सो आह ॥ २९४५ ॥ मह वुत्तंतं निसुणसु देवि ! दिउ अस्थि लच्छितिलयपुरे । नामेण वेयसारो त्ति कामलच्छी पिया तस्स ॥ २९४६ ॥ वेयवियक्खणनामे जाए पुत्तम्मि वरिसदेसीए ।। मयरद्धएण रन्ना आगंतुं वेढिउं नयरं ॥ २९४७ ॥ सलिलाणयणाय गया न कामलच्छी गिहं पुणो पत्ता ।। समरंगणे वि णट्ठा नट्ठा वा नज्जए नेयं ॥ २९४८ ॥ पाणप्पियं पियं तं अनियंतो सो अईव उव्विग्गो । किं कायव्वविमूढो, हियसव्वस्सो व्व संजाओ ॥ २९४९ ॥ जणणीविओयरोयंतबालपालणदुहत्तमणवित्ती । उप्पाइय जणकरुणं रोयइ हाहारवरउदं ॥ २९५० ॥ हा हा कंते कंते ! ह हा पसंते ! ह हा विमलदंते ! । हा जणियपरमविणए दइए ! तं कत्थ पेच्छिस्सं ? ॥ २९५१ ॥ हा विलसिरवयणस्सिरी हहा वामोयरि ! हहा अरुणअहरि ! । सव्वंगसुंदरि ! तुमं, पालसु नियपुत्तमागंतुं ॥ २९५२ ॥ उव्वेयणिज्जा सेज्जा, मह जाया अज्ज वज्जियस्स तए । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ भवणं पेयवणं पिव, रणरणयकरं कुरंगच्छि ॥ २९५३ ॥ अइदुग्गगहगहिओ व्व भीमभूयाभिभूयमुत्ति व्व । जंपेइ एगगो विहु पेच्छइय अबद्धलक्खं सो ॥ २९५४ ॥ इय तेण वल्लहपिया - विओयविदुरेण नयरउव्वेढे । जाए बाहिं पि गवेसिया न वत्ता व से पत्ता ॥ २९५५ ॥ तत्तो एत्तियकालो जाओ पालंतयस्स वालं से । सयणेहिं जंपिएण वि तेण न थी का वि उव्वूढा ।। २९५६ ॥ मुंजी बंधाईया किरिया पुत्तस्स कारिबया पिउणा । इयरो वि कुलायारं न चयइ किं तारसो सगुणी ॥ २९५७ ॥ विज्जागहणावसरे उज्जमिणा पाढिओ सुओ तेण । समयम्मि फलइ किरिया कीरंती नो असमयम्मि ।। २९५८ ।। सिरिअणंतजिणचरियं सो हं संपइ तुह कणयदाणमायन्निऊणमिह पत्तो । ससुओ वि देवि ! तुह पुच्छियं मए सव्वमवि कहीयं ।। २९५९ ।। तं सोउं देवीए वि चिंतियं पेच्छ कह महासत्तो । एसो अईवअसुहट्ठाणं जाओ मह विओगे ॥ २९६० ॥ ता केणावि पओगेण जामि सह वल्लहेण सट्ठाणे । जमभिप्पेयपवित्ती तं चिय नियजीवियव्व फलं ।। २९६१ ॥ इय चिंतिय नियवइयरमसेसमवि कहइ तस्स पइरिक्के | जह रन्ना आणीया अणिच्छमाणी वि अहमेत्थ || २९६२ ॥ भाइ य मए इय धणव्वओ कओ सामि ! तुज्झ मिलणत्थं । धणमज्जिज्जइ मणुयत्थमेत्थ जं तेण तं पत्तो ।। २९६३ ।। तुज्झ पयच्छिस्समहं महंतरयणाणि लक्खलब्भाई । सलहिज्जइ सा लच्छी भोज्जा जा होइ सयणाण || २९६४ ॥ कीए वि मईए मज्झ वि जं तीए समं समाहाणं । चिरविरहियपियाजोगो निवुइहेऊ जममय व्व ॥ २९६५ ॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ रणविक्कमकहा पेसेज्ज सुयं संकेइऊण रज्जंतरे दविणजुत्तं ।। तं तस्स जत्थ गंतूण मिलसि सद्धिं मए सामि ! || २९६६ ॥ तुमए एय पुरा बहिं तिलउज्जाणम्मि चंडियाययणे । रयणीए तईयदिवसे ठायव्वं जाव एमि अहं ॥ २९६७ ॥ पच्छा गच्छिस्सामो त्ति भणिय से देइ भूरि रयणाई । अप्पित्तु वाउवेगं च वाहणं पुत्तगमणत्थं ॥ २९६८ ॥ तइयम्मि दिणे रयणीए कहियठाणे ठिओ दिओ गंतुं । तीय वि तीए निसाए विन्नत्तो नरवइं एवं ॥ २९६९ ॥ . देव ! जया तं सूलेण पीडिओ आसि ओसहअसज्झो । तईया चंडीए मए भणियं उवजाइयं एयं ॥ २९७० ॥ सामिणि ! राया निरुओ होइ तओ तुमए सह एगागी । रयणीए समागंतुं पूइस्सइ तुज्झ कमकमलं ॥ २९७१ ॥ तं सोउं तव्वसएण राइणा जंपियं चलसु जामो । अहवित्थीवसपुरिसा किं किं तं जं न कुव्वंति ? ॥ २९७२ ॥ जाए रयणीपहरे देवीए समं तुरंगमारुहिओ । एगागी खग्गकरो गओ निवो चंडियाभवणे ॥ २९७३ ॥ उत्तरियतुरंगाओ सच्छुरियं खग्गमप्पियपियाए । पूओवगरणहत्थे पूयइए चंडीए पयपउमं ॥ २९७४ ॥ परिपूइऊण देविं नमिरनरिदं पलोइडं पावा । अकुलीणसंगयं पिव कुलक्कम संपरिच्चइडं ॥ २९७५ ॥ नियमज्जायं दूरं अवसारेउं अणिट्ठगोटिंठ च । सुयणसमायारं पि हु वज्जित्तु अकज्जकरणं च ॥ २९७६ ॥ अवणीया लवणं पिव उज्झितु झडत्ति चारुकारुन्नं । निसितिमरं पिव कालं काऊणं नियजसप्पसरं ॥ २९७७ ॥ निययाभिप्पेयं पिव अंगीकाऊण नरयगइगमणं । मयनिट्ठवंचगस्स व सुकयस्स जलंजलिं दाउं ॥ २९७८ ॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ सा कड्ढियुग्गखग्गप्पहरणनिवाडए सिरं रन्नो । वीसत्थघाइणीओ हवंति जुवईओ पाएण || २९७९ ॥ पाविट्ठाए मा होउ मज्झ विग्घो पहे त्ति कलिऊण । दिन्नो बलि व्व चंडीदेवीए तीए हणिय निवं ॥ २९८० ॥ जव्वसएहिं तणं पिव जणणी जणयाइणो गणिज्जंति । पावाण ताण दुम्महिलियाणमवसाणमेरिसयं ॥ २९८१ ॥ धूमावलि व्व महिला मइलेइ महाणसं व निययकुलं । वाओली धूली इव कलुसई य जयं अकित्तीए ॥ २९८२ ॥ लोहासियासरती दारइ करवत्तदंतपंति व्व । भूकंपभेसियजया महिला उप्पायजाइ व्व ॥ २९८३ ॥ गुणमुक्का बाणस्सेणिय व्व लक्खं पि दारए महिला । पत्तविणासपसत्ता महिलाफग्गुणपवित्ति व्व ॥ २९८४ ॥ तमनासिय संमग्गा महिला विप्फुरियचारुतारनहा । कस्स न भयमुप्पायइ अमावसभूयरत्ति व्व ॥ २९८५ ॥ संजायरसुल्लासा सहंसया लक्खणासिया कुडिला । उव्वेयगोत्तभेए कुणइ महेला गिरिनइ व्व ॥ २९८६ ॥ उवयारी विस्ससिओ गुरुनेहपरो उदारचित्तो वि । पावाए हओ राया धिद्धी महिलाणमायरणं ।। २९८७ ॥ तो तीए चंडियारंगमंडवद्दारमत्तवारणओ । उट्ठाविय नियदईओ पयंपिओ चलसु जामो ति ॥ २९८८ ॥ अहं सहसा उट्ठेउं ठविओ भूमीए तेण जा पाओ । तो चंपिएण दुट्ठेण झत्ति दट्ठो भुयंगेण ॥ २९८९ ॥ अहिणा दट्ठो दट्ठो त्ति जंपिरो सो दडत्ति महिवट्ठे । पडिओ विसभीएहिं व मुक्को सहस त्ति पाणेहिं ।। २९९० ॥ गयपाणपियं दद्धुं निच्चेट्ठा सा वि निवडिया झति । गयजीविय व्व नज्जइ निप्फंदठियंगुचंगतणू ॥ २९९१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ रणविक्कमकहा उववणसिसिरानिलपत्तचेयणा सा समुट्ठिया सहसा । वीसत्थघाइणि ति य नज्जइ न हया जमेणावि ॥ २९९२ ॥ रायाहिओ सयं चिय विणासिओ विसहरेण दइओ सो । अहव महापावाणं पावाई फलंति सहस त्ति ॥ २९९३ ॥ नरवइणो पइणो विय सावुक्का निययनिद्दयत्ताए । इह परभवसोक्खाणं पावप्पयईए जीवो व्व ॥ २९९४ ।। देवी गिहदीवेणं निच्छईयमयं पई विभावेइ । ना होमि कज्जसज्जा विणट्ठवत्थुम्मि को सोओ ? || २९९५ ॥ भयभरेण कंपिरा वि हु रयणाभरणाई गिण्हइ निवस्स । न नियत्तइ वसणे वि हु लोहो पाणीण पाएण ॥ २९९६ ॥ काऊण नवं वेसं तुरयं आरुहिय झत्ति नट्ठा सा । अन्नं पि काउमनयं नासिज्जइ किं न हणिय निवं ॥ २९९६ ॥ अक्खंडपयाणएहिं लंघियनिवदेसमवरविसयम्मि । पत्ताऽवस्संभावी समभयट्ठाणेऽहवाणत्थो ॥ २९९७ ॥ तम्मि निवरायहाणी सप्पासाया मऊरमुत्ति व्व । नवचंदमालिया सियबीया रयणी विव समत्थि ॥ २९९८ ॥ जीए सया वणवासा लसंति वणिया पुलिंदपुरिस व्व । समुदयजयप्पसिद्धा सहति सुयण व्व सुहडा वि ॥ २९९९ ।। गंतूण भुवणसोहाभिहाए नयरीए तीए रम्माए । पूइयहढे ठविडं तुरयाई रईयसिंगारा ॥ ३००० ॥ विवणिस्सेणिनिरिक्खणनिमित्तनिक्खित्तनेत्तसयक्त्ता । पत्ता कम्मि वि सुरमंदिरम्मि सोऊण संगीयं ॥ ३००१ ॥ उम्मत्तहत्थिमंथरकमगमणरणज्झणंतमंजीरा । कयर्थभावटेंभा पेच्छणयं पेच्छिउं लग्गा ॥ ३००२ ॥ सविलासलोयणुल्लासलच्छिपेच्छयजणच्छिसुहजणणी । सा सच्चविया मयणस्सिरीए वूढाए वेसाए ॥ ३००३ ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ परिभावियं च तीए पईए रूवरेहसंपत्ती । रईरंभाण वि अहिया ता गणणा मणुयरमणीसु || ३००४ || एग्गागिणी जमेसा जणमज्झे नन्न एत्थ वत्थव्वा । जं ईसररमणीओ न हुंति दासाइएहिं विणा ॥ ३००५ ॥ जइ एवंविह रमणीरयणं भवणम्मि भवइ अम्हाणं । ता सक्खं अवयरिओ सुवन्न अक्खयनिही नूणं ॥ ३००६ ॥ इय चिंतिऊण गणिया सा सहसा तीए पासमणुपत्ता । कयपडिवत्ती पुच्छइ सुयणु ! तुमं इह कुओ पत्ता ? || ३००७ ॥ तीयत्तं दूराओ वेसा जंपइ कहिं समुत्तिन्ना ? | सा आह देसियाणं ठाणं किं पूइउं मोत्तुं ॥ ३००८ ॥ भणइ गणिया न तुच्छे ठाणे चिट्ठेति रायपत्ताई । किं विहलिओ विहत्थी छुब्भइ कोडुंबियगिहम्मि || ३००९ || देसंतरागयाए वि वासो जुज्जइ महुत्तमे ठाणे । खीरोयनिग्गयाए ठाणं लच्छीए सिरिवत्थो ॥ ३०१० ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तुह दंसणमित्तेण वि वियस दिट्ठी सिणिज्झइ मणो मे । ता कावि मह तइ सह भविही जम्मंतरसिणेहो ॥ ३०११ ॥ तुह जित्तिया समाही तेत्तियकालं समेहि मे गेहे । वच्छि ! जमिट्ठगोट्ठी निमेसमेत्तं पि दुल्लंभा ॥ ३०९२ ॥ सहस त्ति चss चित्तम्मि माणुसं किं पि कस्स कयाए । जं नेहलोहकीलयकीलियमिव नेव अवयरइ || ३०१३ || ता सव्वा वि मह पत्थणाए भंगो न चैव कायव्वो । दक्खिन्नं पिहुरतासाय नेहरहियाण वि गुरूण ॥ ३०१४ ॥ तुह दंसणसंदाणयनद्ध व्व एमि तं न मोत्तमहं । ता हंसगमणि ! आयरपुरस्सरं वाहरेमि बहुं ॥ ३०९५ ॥ इय चाटुवयणविन्नासविरयणायत्तचित्तवित्ती सा । सा तब्भवगमणमणुसरइ कं न आवज्जए वेसा ॥ ३०९६ ॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ रणविक्कमकहा पूयइ गिहाओ आणेइ तुरयतरवारिछुरियरयणाई । न उवेहिज्जइ अवरं पि किं पुणो रायरत्थाई ॥ ३०१७ ॥ न्हाणविलेवणभूसणभोयणवत्थेहिं तं नियायत्तं । कुणइ गणिया सुरा वि हु होति वसे उवयाररज्जंता ॥ ३०१८ ॥ साराइकोलणेहिं कामाइकराहिं तम्मया जाया । को वा नावज्जिज्जइ अणुकूलायरणकरणेण ॥ ३०१९ ॥ सव्वं पि वेणुवीणातालाउज्जाण वायाणाईयं । सिक्खइ नट्ट पि हु बहुभमिकरणंगहाराई ॥ ३०२० ॥ नायं च मुयंगावज्जणाइ वेसाण विलसियंतीए । भव्वं पि कुसंसग्गो विणासए किं न दुस्सीलं ॥ ३०२१ ॥ हुंफिय-कंपिय-कुरलिय-मुद्दियराएहिं गायए गीयं । धरइ समविसमताले मुहुरसरं वायए वंसं ॥ ३०२२ ॥ अनिबद्धलक्खनयणं तंतीचलकरपकंपमाणवणं । वायइ सम्मयरायाणुविद्धमंजुस्सरं वीणं ॥ ३०२३ ॥ तालाणुसारिचलचरणकणयघरघरयरावरमणीयं । उव्विल्लभुयलयुल्लसिय घणघणं कुणइ नर्से पि ॥ ३०२४ ॥ इय विविहकलाकोसल्लवेल्लउल्लासिणी घणालि व्व । रंजइ कामियणकलाविमंडलं विहियनहसोहा ॥ ३०२५ ॥ इय विलसिरीए कालो केत्तियमेत्तो वि तीए व इक्कंतो । कइया वि तीए नयरीए को वि कामी समणुपत्तो ॥ ३०२६ ॥ आयन्नियसव्वुत्तमविन्नाणवियक्खणं तयं वेसं । तुरयारूढो सिरधरियसिक्किरी तग्गिहे पत्तो || ३०२७ ॥ दिसि दिसि परिसप्पिर-हरिण-नाहि-कप्पूर-कुसुमगंधेण । भुवणं पि सुयंधितो जोइज्जतो य जुवईहिं ॥ ३०२८ ॥ वत्थत्थलरिंखोलिरमोत्तियएगावलीए पहभरेण । वित्थारितो दाणाई अज्जियं निम्मलजस व्व ॥ ३०२९ ॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ मयणं व मुत्तिमंतं सा तं नवजोव्वणुव्वणं दद्धं । अब्भुव्वइय थूणपीवरपओहरा पाओससिरि व्व ॥ ३०३० ॥ कंचणहंसय सद्देणं मिस्सयंती चलंतहंससरं । लीलाए सा गंतूण देइ अब्भुक्खणं तस्स ॥ ३०३९ ॥ न्हाणविलेवणभोयणपडिवत्तिसेसयं समायरइ । अहव परदव्वलुद्धाण पाणिणं किं अकरणिज्जं ॥ ३०३२ ॥ आवज्जिओ तहा सो तीए विन्नाणगुणवियड्ढाए । जह न खणं पि हु मोत्तुं तरइ तयं रइधणनिहाणं || ३०३३ ॥ दुहि वि घणस्सिणेहो संजाओ ताण विसयसत्ताण । वूढा वि हु विसएसुं सज्जंति न किं पुणो तरुणा || ३०३४ ॥ नियनयरे गंतुमणो पयंपए कामलच्छिमेवं सो । सुयणु ! तए सह मह होहिही धुवं विरहविरतं ॥ ३०३५ ॥ जमहं गुरुकज्जेणं गच्छिस्सं नियपुरे कुरंगच्छि ! | देहेण मुंच मं महमणो पुणो तुह घरे ठाही ॥ ३०३६ || सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं ससंकमुही सा जंपइ सामि ! झत्ति जइ चलिओ । ता किं एत्तियमित्तो पणओ आरोविओ मज्झ ॥ ३०३७ ॥ जइ गंतव्वमवस्सं विम्हरणीओ न ता जणो एसो । तह साहिय पुरगोत्ताइं अत्तणो कुणह तो विजयं ॥ ३०३८ ॥ सो आह सुणसु सुंदरि ! लच्छीतिलए पुरे समत्थि दिओ । नामेण वेयसारो अत्थि पिया कामलच्छी से ॥ ३०३९ ॥ वट्टतम्मि पढमे वि जोव्वणे ताण हं सुओ जाओ । विहियं मे वेयवियक्खणो त्ति नामं सुहे दियहे ॥ ३०४० ॥ वट्टंतम्मि सए बालयम्मि जाए पुरेऽरिपरिवेढो । तइया मया गया व मह माया न नज्जए एवं ।। ३०४१ ।। दुच्छत्तमत्तणोसहिय पालिउं वद्धिओ महं पिउणा । सोऊण कणयदाणं दोन्नि वि पत्ता महासाले || ३०४२ ॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ रणविक्कमकहा तम्मिं मयरद्धयरायपट्टदेवीए दिन्नमम्हाण । बहुमुल्लरयणदविणं वाहणमवि मणपवणवेगं ॥ ३०४३ ॥ मह जणएणं सद्धिं पइरिक्के किं पि जंपिऊण तओ । पट्ठविओ हं पिउणा कयसंकेएण दूर पुरे ॥ ३०४४ ॥ एत्तियकालो जाओ दइए न समागओ पिया मज्झ । तम्मि पुरम्मि पहे वा जायं जं से मुणामि न तं ॥ ३०४५ ॥ पासे च्चिय पाणीणं संपत्तीओ तहा विवत्तीओ ।। जं सुकयदुक्कयाई सेवयविंदा इव समीवे ॥ ३०४६ ॥ नवरं जइ जीवंतो ता चिट्ठतो न मं विणा जणओ । संभाविज्जइ अच्चाहियं पि से मह कुकम्मेण ॥ ३०४७ ॥ जणणिविओगो पिउगइअजाणणं जम्मभूमिविच्छोहो ।। अग्गितिगमिव पज्जलइ मह मणे कुंडतियगं व ॥ ३०४८ ॥ एसा पुण पज्जलिरे हुयासाण घणघयाहूई सुब्भु ! । जं मह नवनेहाए तुमए सह झत्ति विच्छोहो ॥ ३०४९ ॥ सुयणु ! तए मह ट्ठियए कयप्पवेसाए भारिओ व्व अहं । दुव्वहसिणेहनियवेगं तु न पयंपिउं पि सक्केमि ॥ ३०५० ।। तह वि अवस्सं गमणं भविस्सए मज्झ कज्जवसयस्स । खामोयरि ! खमियव्वं ता सव्वं मे जमवरद्धं ॥ ३०५१ ॥ तच्चरियं सोऊणं तं नाउं नियसुओ त्ति सा वेसा । चिंतइ अहो अकज्जं कहमह जायं सह सुएणं ॥ ३०५२ ॥ विहिणा विणम्मिया हं पभूयपावाण मंदिरं जं मे । दुस्सीलत्थवीसत्थमारणं च सपुत्तभोगो य ॥ ३०५३ ॥ जत्थुप्पज्जइ महिला सवरं गब्भो वि जाओ गलिऊण । अहव सिसुत्ते वि हु सा झत्ति गिलिज्जओ विडालीए || ३०५४ ॥ उग्गविसविसहरेणं खज्जउ वा दवउ व्व जलणेण । मरउ व सत्थप्पहया बुड्डउ व अगाहसलिलम्मि ॥ ३०५५ ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० सिरिअणंतजिणचरियं कवलउ व कालकूडं खंडियजीहं च जाओ पंचत्तं । लहइ न जहा महेला विडंबणं जह मए लद्धा ॥ ३०५६ ॥ नारी निद्दयचित्ता लज्जामज्जायवज्जिया नारी । नारी कलंकहेऊ नारी पच्चक्खिया मारी ॥ ३०५७ ॥ आवासो दोसाणं मायाए मंदिरं अनयनिलओ । कोवस्स कुलहरं तह अणत्थपत्थारिया नारी ॥ ३०५८ ॥ एगेण वि पावेणं पडंति सत्ता दुरुत्तरे नरए । मह पुण पावपरंपरपुन्नाए ठिई कहिं होही ? || ३०५९ ॥ सद्दहइ जं न को वि हु पायं सत्थे वि सुव्वए जं नो । तं पि मह वेरिविहिणा दिन्नं सुयविसयमालिन्नं ॥ ३०६० ॥ विम्हरि हीने खणं पि हु एयं मे सव्वहा महापावं । ता मह मरणं सरणं जेण समप्पंति दुक्खाई ॥ ३०६१ ॥ इय चिंतंती भणिया तेण जहा जाषि सुयणु ! सावासे । इण्हं पि सदेसं पइ पयाणयं दुयमवि करेमि || ३०६२ ॥ अह चिंतइ सा एसो न कहिज्जइ वइयरो वरायस्स । एयस्स जमाजम्मं संपज्जिस्सइ असममसुहं ॥ ३०६३ ॥ इय चिंतिय सम्माणिय विसज्जिओ सो गओ सदेसम्मि । मरणेक्कमणा पच्छा मग्गइ अग्गि कयुववासो ॥ ३०६४ ॥ मिलिओ वेसावग्गो धसक्किया पुच्छए तमक्का वि । वच्छे ! जमग्गिसाहणकारणमम्हं तयं कहसु ॥ ३०६५ ॥ सा आह मह न कज्जं विडकोडिविडंबणापएणिमिणा । वेसाभावेण मओ अग्गि मग्गेमि तं देहि ॥ ३०६६ ॥ उववासाए तीए कया सत्त न वत्तं पि कुणइ भोज्जस्स । निवभणिया वि न मन्नइ तो से अग्गी अणुन्नाओ ॥ ३०६७ ॥ दिती दीणाईणं दाणे दविणं सुहासणासीणा । गंतुं गंगा तीरे चीयाए चडिया गहिय अग्गि ॥ ३०६८ ॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा २४१ पज्जालियम्मि तम्मि संझासमओ घणंधयारो त्ति । वलिऊण गओ लोगो सव्वा वि निए निए ठाणे ॥ ३०६९ ॥ तम्मि समयम्मि गयणं दिसि दिसि सामलघणेहिमावरियं । बहुपावेहिं व तीए रुद्धो सग्गापवग्गपहो ॥ ३०७० ॥ हरिधणुगणधरगयणा निवडइ आसारवारिधाराली । सरधोरणि व्व हरिणा पम्मुक्का तीए खलणत्थं ॥ ३०७१ ॥ उज्जोइयजयगब्भा दिसि दिसि झंपाहिं पसरए विज्जू । नासइ वियग्गिजालावलि व्व तद्दाहपावभया ॥ ३०७२ ॥ सव्वत्तो च्चिय मत्ता सिहिणो केक्कारवेहिं अणवरयं । मरणाणंतरमेव य तीए कहंति व नरयगई ॥ ३०७३ ॥ गज्जतो गंभीरस्सरेण नवजलहरो नहे भमइ । तीए अकज्जदुम्मरणकारणे पयडपडहो व्व ॥ ३०७४ ॥ सपयावो वि हुयासोवसारिओ वारिवाहसलिलेण दिसि रोही तीएऽजसो व्व असरिसाकज्जकरणेण ॥ ३०७५ ॥ तीईए सिबियानलपलित्तदेहे पवढिओ दाहो । अकज्जज्जियनारयवज्जानलसंचकारो व्व ॥ ३०७६ ॥ पसरंतेणं गंगाजलेण दाहिणदिसाए कुट्ठविया । निज्जइ य जीवंती वि हु जमरायउवायणत्थं वा ।। ३०७७ ॥ खित्ता तीरे नेऊण दूरे देसम्मि नीरपूरेण । मा मे पावासंगेण होउ पावं ति कलिउं व ॥ ३०७८ ॥ नइतीरवासि गोउलियं गामणी गोवई निहाणो जो ।। नियकज्जेणं तत्थागएण सा तेण सच्चविया ॥ ३०७९ ॥ जलसुट्ठियसमग्गंगा गंगासरितीरवालुआपुलिणे । कट्ठत्तपत्तपाणे पाणासणवज्जिया वेसा ॥ ३०८० ॥ (जुयलं) तो उप्पाडिय सगडे चडाविडं नेइ तं नियावासे । पासेइ पयत्तेणं दुत्थेसु दयालुया गुरुणो ॥ ३०८१ ॥ ॥ ३०७५ ॥ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ सिरिअणंतजिणचरियं जाया पुण्णनवंगी ओसहभेसज्जदाणपासणओ । सव्वंगावयविसुद्धरूवरेहा निरूवमाणा || ३०८२ ॥ नियजोग्गयाहियाभरणवत्थदाणेण जणियसम्माणा । भणिया गोवइणा बद्धपाणिकमलेण सा एवं ॥ ३०८३ ।। सामिणि ! तुह भवणमिणं अहं तुहाएसकारओ वस्सं ।। तुह पाणिपउमदिन्नं सया वि भोज्जं पि भुंजिस्सं ॥ ३०८४ ॥ आएसकरम्मि मए मह लोगो तुज्झ किंकरो होही । जो पहुणो गोरवो सो पूइज्जइ जणेणावि ॥ ३०८५ ॥ अह इह चिट्ठिसि न तुमं ता साहसु जत्थ तं विमुंचामि । न मरणमहं तुह विरहे न निए पाणे धरिस्सामि ॥ ३०८६ ॥ तं सोउं सा चिंतइ किं कायव्वं इमम्मि इय भणिरे । एसो उवयारी मे दहइ इकज्जं तु कीरंतं ॥ ३०८७ ॥ जो देइ जीवियव्वं उवयारो तस्स तीरइ न काउं । दासत्तं जावज्जीवियं पि अंगीकरतेहिं ॥ ३०८८ ॥ एत्तिय पावपसत्ताए मज्झ नियमा न होहिही सुगइ । कुगइ उवज्जिय च्चिय आजम्ममकज्जकरणेण ॥ ३०८९ ॥ पावेण सत्त नरया जाया ते मह न अट्ठमो नत्थि । बहुया वि देहवियणा गच्छिस्सइ कत्थ सिरउवरिं ॥ ३०९० ॥ पुरओ वि महापावं संजायं संपयं पि तं होउं । बुड्डाए नासियाए बुडउ हत्थस्सयं पि हु वा ॥ ३०९१ ॥ पावेण पुरा नरओ समज्जिओ होउ संपयं पि हु सो । देए सए वि धरणं ता भवड तयं सहस्से वि || ३०९२ ॥ एस मह पाणदाया अत्थि तमेते इमस्स जं देमि । ता उवयारयमेयं नियदेहेण वि उवयरामि ॥ ३०९३ ॥ इय परिभाविय भणियं तीए करिस्सामि तुम्हमाएसं । तो सो तुट्ठो कस्स न हरिसो थीरयणलाहेण ॥ ३०९४ ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ रणविक्कमकहा तो पोढपिम्मपन्भाररम्मभोगोवभोगसत्ताण । वच्चंति खणं पिव ताण वासरा बहुविणोएहिं ॥ ३०९५ ॥ तो कामलच्छिरमणी गोठेंगणठवियविट्ठरनिविट्ठा । दुट्ठाण सेरहिणं सुरहीणं य गहियदुव्वाइं ॥ ३०९६ ॥ काराविय दहियाई महिऊणं ताई मक्खणं घेत्तुं । परितवियतरघयं पट्टणेसु नेऊण विक्किणइ ॥ ३०९७ ॥ ता सुहय ! सा अहं गहियघयघडविक्कयत्थमिह पत्ता । जलवाहिणीए घडिउं पडिया घडओ वि फुडिओ मे ॥ ३०९८ ॥ घयहाणीए वि दिट्ठा जमहं तुमए अभिन्नमुहराया । तं तुह मए वि कहियं न विणठं वलइ खेएण ॥ ३०९९ ॥ रोएमि किमिह पइ-पुत्त-विरहमह रायमारणं अहवा । . वेसाविडंबणं अहव पुत्तपरिभोगपरिभवं च ॥ ३१०० ॥ जह बहुपरिणं अ-रिणं तह मह बहु दुक्खमवि अदुक्खं ति । संजाय धीरिमाए न मए खेओ कओ सुहय ! ॥ ३१०१ ॥ आयन्निय तच्चरियं पावकरं जसहरं नरयहेऊ । वेयवियक्खणविप्पो विसायविवसो विभावेइ ॥ ३१०२ ॥ पेच्छ मह न तिजयस्स वि मज्जायावत्तिणो सुगुरुणो वि । सिंधुस्स व वडवग्गी अकज्जमइदाहयं जायं ॥ ३१०३ ॥ गुरुगोत्तसमुत्थजसुज्जलं पि गंगाजलं च चित्तं मे । कलुसीकयं अकज्जेण झत्ति जउणाजलेणेव ॥ ३१०४ ॥ पुन्नेकपयं ते उत्तमा नरा जे सदारसंतुट्ठा ।। संपत्ता नरतणं पि हु बहुपावविडंबणमहं च ॥ ३१०५ ॥ परमेसरसिरिधरिया निच्चं नंदंतु ते नरा भुवणे ।। बीया चंद व्व कलंककलुसिया जे न कईया वि ॥ ३१०६ ॥ हयविहिविलासवसओ जीवो जमसंभवं लहइ तं पि । जं' कहिउं पि न तीरइ कस्सइ लज्जाए जेणुत्तं ॥ ३१०७ ॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ सिरिअणंतजिणचरियं जं न कयाइ वि सुव्वइ साहिप्पंतं च जणइ जं अलियं । हीलाए विही तं चिय अकज्जनिरओ कुणइ कज्जं ॥ ३१०८ ॥ तहा - नयमग्गसंठियस्स वि दिव्ववसा विविहकयपयत्तस्स । कस्स न जायइ भुवणे विसमदसा खुंटपक्खलणं ॥ ३१०९ ॥ जे दुद्धरबंभव्वयधरणेण पवित्तयंति अत्ताणं । बालत्ताओ वि पत्ता तवोवणं तच्चिय जियंति ॥ ३११० ॥ जइ हं बालत्ताओ वि तवंतवितेसु दुच्चरं नृणं । ता न करतो आजम्मचित्तसंतावयमकज्जं ॥ ३१११ ॥ मा जीवउ मह सरिसो नराहमो कोइ कत्थइ कयाइ । जो इहलोए अयसं पावेइ नरयं तु परलोए ॥ ३११२ ॥ ता संपइ एयमहापावुच्छेयणकए तवच्चरणं ।। काहामि किं पि न विवेयणो उवेहिति दुच्चरियं ॥ ३११३ ॥ जणणीयं विप्पयासिय एयसरूवं करेमि पडिबोहं । इयरस्स वि धम्मपहो पयडिज्जइ किं न पियराण ॥ ३११४ ॥ इय परिभाविय जणणीकमेसु निहिडं निउत्तमंगं सो । मन्नुभरगग्गरगिरं कत्तो जणजणिय कारुन्नो || ३११५ ॥ नियपरियणेण तीए वि निवारिओ सोयकारणं पुट्ठो । साहेइ तीए छत्तं बहुकत्तमकज्जमुल्लसइ ॥ ३११६ ॥ सा वि वराई सो एसो मह सुओ इय विभाविरी दूरं । गुरुदुक्खं कंदंती पुत्तेण निवारिया नमिउं ॥ ३११७ ॥ भणिया य अंब ! किं सोइएण दुक्कम्महेउणा इमिणा । इण्हि कीरइ तं जेण न भवए एरिसपरिभवो वि ॥ ३११८ ॥ आवइबहुलेण अकज्जकारिणा नस्सरेण देहेण ।। कीरउ सोअं च तवो जायइ न विडंबणा जेण ॥ ३११९ ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा एत्थंतरम्मि उत्तमकुलपव्वयगुरुविदेहसियवासो । तत्थागओ गुणायरमुणीसरो जंबुदीवो व्व ॥ ३१२० ॥ कयबंभव्वयचाओ बंभव्वयधरपवित्तमुत्ती वि । संगहियसमयसत्थो दूरुज्झियसमयसत्थो वि ॥ ३१२९ ।। बहुरायहंसगुरुतारसत्तरिसिसंसिओ नहपहो व्व । अइपंडुकंबलाहियसोहो मंदरगिरिंदो व्व ॥ ३१२२ ।। ता फासुए पएसे उवविट्ठो सुरकए कणयकमले । सियउत्तरियपावरणधवलिओ रायहंसो व्व ॥ ३१२३ ।। जंप जणणीसमुहं भावे य वियक्खणो चलसु अंब ! । नमिउं मुणिंदपासे निसुणेमो धम्ममप्पहियं ॥ ३१२४ ॥ तव्वयणाणंतरमेव ताइं दोन्नि वि गयाइं गुरुपासे । तिपयाहिणापुरस्सरमभिवंदिय तम्मि चिट्ठेइ ॥ ३१२५ ॥ तयणु पणामपुरस्सरनिविट्ठसुर असुरनरवइसहाए । पारद्धा धम्मका तेण महामोहनिम्महणी ॥ ३१२६ ॥ तहाहि भे I भो ! भो ! भव्वा! दूरं भेरवभवभमणभीरुणो जइ ता आयन्नह सव्वे चउव्विहं पि हु भवं असुहं ।। ३१२७ ।। - मंसाहारा महुपायिणो महारंभिया य रोद्दमणा । पावभरक्कंता इव सत्ता निवडंति नरएसु || ३१२८ ॥ तम्मि परमाहम्मियनिम्मियदुक्खाइं भूरिभेयाइं । जंतनिवीडण - करवत्तदारणाईणि पावंति ॥ ३१२९ ॥ तिरियनरभवंतरियासु तम्मियसत्तसु वि नरयपुढवीसु । मायाइदोसपत्ते तिरियत्ते हुंति दुक्खत्ता ॥ ३१३० ॥ दवदाहछुहाभिहयातिसाभिभूया य वेरवहविहुरा । अवरुप्परभक्खणवाहदोहवियणाओ वि सहति ॥ ३१३१ ॥ समयाभावसमज्जिय नरत्तमासाइडं असुहवसया । दारिद्दरोयपरपेसजोयवेरेहिं जंति खयं ॥ ३१३२ ॥ २४५ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ वेश्य अकामनिज्जरकम्मा धम्माहिवासिया ईसि । पावंति देवभावं किब्बिसियाईसु देवेसु ॥ ३१३३ ॥ तम्मि वि परच्छराओ पररयणाइं च पेच्छिय अतुच्छं । असरिसविसायविवसा वहंति वेयल्लमणुवेलं ॥ ३१३४ ॥ एवं चउव्विहम्मि वि संसारे अविरयं भमंताणं । सत्ताण सुहलवो वि हु दुलहो सद्धम्मरहियाणं ॥ ३१३५ ॥ सो सद्धम्मो दुविहो जइ - गिहिभेएण हवइ विन्नेओ । पढमं दसप्पयारं सुणह दुइज्जं दुवालसहा ॥ ३१३६ ।। खंती य मद्दवज्जव - मुत्ती - तव संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो || ३१३७ ॥ पाणिवहमुसावाए अदत्त- मेहुण- परिग्गहे चेव । दिसि - भोग- दंडसमईय - देसे तह पोसहविभागे || ३१३८ । दोन्नि वि सिवेक्कफलया पढमो तं देइ नवरमविलंबं । बीओ य पुण कमेणं जत्थेच्छा तं समायरह ।। ३१३९ ॥ सोउं सद्धम्मकहं सो वेयवियक्खणो सजणणीओ । पावइ सिवकप्पहुममूलं सुविसुद्धसम्मत्तं ॥ ३१४० ॥ जंपर गिहिस्समहं पढमं चिय किं विलंब विइएण । पक्कफले मूलम्मि वि तरुसिरमारुहइ न फलच्छी ।। ३१४१ ॥ तुह पयपउमा सद्धम्ममहुरसासाय लालसा दूरं । निग्गंतुं न समीहइ पहु ! मह मइमहुयरी नूणं ॥ ३१४२ ॥ सट्ठाण निओगेणं चालेमि वणं सहप्पणा सव्वं । अथिरम्मि वि वीसासो कीरइ मुक्केक्किमु चलम्मि ॥ ३१४३ ॥ गहिऊण जिणिंदवयं तुह चरणाराहओ भविस्सामि । पाविज्जइ निवसेवा जइ ता को सेवए अवरं ॥ ३१४४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउमाह सूरी मा पडिबंधं करेज्ज गिहवासे । उज्जमसु सकज्जे तुह पुव्व उ सवणवंछियं वच्छ ! ॥ ३१४५ ॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ FEMANTRA रणविक्कमकहा तो पणमिय गुरुचरणे चरणेक्करई रईसनिम्महणो । संवेगरंगियप्पा जणणीजुत्तो गिहे पत्तो ॥ ३१४६ ॥ उत्तुंगतोरणाई गिरिंदरुंदाई देवभवणाई । कारविय पइट्ठावइ तिसु मुणिंदेहिं जिणचंदे ॥ ३१४७ ॥ . पडिलाभिऊण संघं सम्माणेऊण सुहिसयणविंदं । मग्गणदीणाईणं दाणं वंछाहियं दाउं ॥ ३१४८ ॥ काराविऊण जिणमंदिरेसु अट्ठाहिया महामहिमं । मोयाविय गुत्तिनरे पुरम्मि उग्घोसिय अमारिं ॥ ३१४९ ॥ आरुहिय कणयमयकणिरकिंकिणीजालरयणसिबियाए । वज्जिरजयआउज्जो मागहकयजयजयारावो ॥ ३१५० ॥ पेच्छणए पेच्छंतो गिज्जंतो तरुणरमणिनियरेण । तित्थं पभावयतो गुरुचरणं तं समणुपत्तो ॥ ३१५१ ॥ सिबियाओ समुत्तरिडं नमिय गुरुं जायए सजणणीओ । दिक्खं देहि त्ति तओ गुरुणा सो दिक्खिओ तत्थ ॥ ३१५२ ॥ जाणाविओ य गहणासेवणसिक्खाओ जणणिसंजुत्तो । अज्जा समप्पिया अज्जियाण सुविसुद्धसीलाण ॥ ३१५३ ॥ सुमरिय नियदुच्चरियं चरियतवं नियसरीरनिरवेक्खं । उप्पन्नविमलकेवलनाणा सा सिद्धिमणुपत्ता ॥ ३१५४ ॥ पढइ सुयं तवइ तवं सज्झायं कुणइ सुणइ वक्खाणं । वेयवियक्खणसाहू संजाओ झत्ति गीयत्थो ॥ ३१५५ ॥ छत्तीससूरिगुणसंगओ ति गुरुणो कओ पए नियए । पडिबोहंतो भविए कुणइ विहारं सपरिवारो ॥ ३१५६ ॥ सो हं इह संपत्तो जोइंदापुच्छिओ तए जं च ।। वेरग्गकारणं तस्स एस मग्गं पि तुह कहियं ॥ ३१५७ ॥ ता भो ते च्चिय धन्ना वसंति अकलंकिया इह भवे जो । न कयाइ गुरू अवज्जायरणेण विडंबियाहमिव ॥ ३१५८ ॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ सिरिअणंतजिणचरियं नंदंतु ते च्चिय चिरं जेसिं जम्मो वि जाइ अकलंको । जाया जे सकलंका तेसिं पढमो अहं चेव ॥ ३१५९ ॥ तं सोउं राय मए भणियं भववासमावसंतस्स ।। कस्स न संपज्जइ पुहु विडंबणा पावसंजणिया ? || ३१६० ॥ नयमग्गसंठियाण वि असुहेण समागयं पि मालिन् । अवसरइ सुचित्ताणं तमबिंबं ससिरवीणं व ॥ ३१६१ ॥ नवरं मइलियमवि जे पावेणप्पं झडत्ति सोहिंति । ते हुति च्चिय सासयसिवसुहसंपत्तिवरपत्तं ॥ ३१६२ ॥ नवरं सुमरंतस्स वि मह बहु आबालकालियं पावं । उप्पज्जइ परिकंपो भवइ भवो होइ निव्वेओ ॥ ३१६३ ॥ गहियाए वि दिक्खाए तं साहह जेण विरइएण महं । छुट्टामि महापावाण तयणु सूरी पयंपेइ ॥ ३१६४ ॥ गिम्हायवो व्व सलिलं तरणि व्व तमं ससि व्व संतावं । सुहभावो व्व दुकम्मं चिंतारयणं व दालिदं ॥ ३१६५ ॥ जलणो व्व जडुमनिलो व्व रयभरं उवसमो व्व रोसरयं । सुविवेओ घूअकिच्चं पीयूसरसो व्व विसवेगं ॥ ३१६६ ॥ उत्तमकुलाहिमाणो व्व अविणयं उज्जमो विव पमायं । केवलनाणुल्लासो व्व भवमगत्थि व्व जलहिजलं ॥ ३१६७ ॥ गरुडो व्व विसहरकुलं गुरूवएसो व्व मोहविप्फुरियं । तिव्वतवो कीरंतो हरेइ पावं पभूयं पि ॥ ३१६८ ॥ (कुलयं) नूणं निकाइयाइं वि नासंति तवेण सव्वकम्माई । जेणुत्तं सिद्धते तवसाओ निकाईयायं पि || ३१६९ ॥ तं सोउं संवेगावेगवसुल्लसियचरणपरिणइणा । गहिया गुरूण पासे दिक्खा सिक्खा य राय ! मए ॥ ३१७० ॥ अंगोवंगपइन्नगपयरणपमुहं समग्गसुयनाणं । समहिज्जियं तओ हं सूरिपए ठाविओ गुरूणा ॥ ३१७१ ॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ रणविक्कमकहा विहरंतो गामपुरागराइठाणेसु गोससमयम्मि । अज्जेव आगओ इह तुमए अभिवंदिउं राया ॥ ३१७२ ॥ परियाणिओ मए तं तुह पुच्छंतस्स नियवयग्गहणं । सव्वं पि साहियं इय तं मह जाओ वए हेऊ ॥ ३१७३ ॥ सह तुह सिक्खा थेवा वि राय ! बहुधम्मकारणं जाया ।। थोवं पि सुखेत्तोत्तं किं न हवइ भूरिफलमहवा ॥ ३१७४ ॥ भणइ निवो सव्वाई वि पहु ! कल्लाणाई हुंति पुन्नेहिं । अकयसुकयस्स जायइ न चेव चिंतामणीजोगो ॥ ३१७५ ॥ पहु ! अत्थि तन्न भुवणे वि जन्न तुम्हाण नाणनयणाण । मग्गम्मि समागच्छइ ता पुच्छं किं पि काहामि ॥ ३१७६ ॥ परिपुच्छसु त्ति गुरुणा भणिए वज्जरइ नरवई भयवं । । किं मह सुकयं जमहं जाओ राया दरिदो वि ॥ ३१७७ ॥ अह आह साहुनाहो महीस ! साहेमि तुह. अहं सुणसु । अत्थि सुसीमा नयरी नयरीण जणासिया य दुहा ॥ ३१७८ ॥ भोइनरलसिरगेहा अमरपुरि उव्वसीकया वासं । सियकविसीसयमिसदिस्सदंतपंति व्व जह मज्झ ॥ ३१७९ ॥ तीए पुरीए चत्तारि संति तारुन्नदिढयरा पुरिसा । अन्नोन्नं मेत्तीभावसंगया तुच्छलच्छीया ॥ ३१८० ॥ पढमो तेसिं लच्छीहरो त्ति लच्छीहरो व्व चारुगओ । पुहईधरो त्ति पुहइधरो व्व उत्तइनिही बीओ ॥ ३१८१ ॥ पन्नाधरो त्ति पन्नाधरो व्व परमक्खराईओ तईओ । विज्जाहरो त्ति विज्जाहरो व्व नहपहवहो तुरिओ ॥ ३१८२ ॥ लच्छीहरस्स जयलच्छि-लच्छि-महलच्छि नाम-भज्जाओ । ताहिं सह विसयसोक्खं भुंजतो गमइ कालं सो ॥ ३१८३ ॥ कुव्वंति किसीओ चडंति पवहणे वाहयंति सगडीओ । चउरो वि ववसाए कुणंति अत्थत्थमच्चत्थं ॥ ३१८४ ॥ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० सिरिअणंतजिणचरियं ३१८७ ॥ रोगद्दियं व निद्दाकुवियं व मइरइविउत्तं व । सालस्सं पिव विज्जा कित्ती अन्नायनिरयं व ॥ ३१८५ ॥ अनिवित्तमणं बंधेई सड्ढं च तईअहंजुमिव पीई । निद्धम्मं पिव विरई अनयपवित्ती कुलीणं व ॥ ३१८६ ॥ कायरमिव जयलच्छी तरुणी थेरं व परनरं वसई । अणुसरइ न एगं पि हु सिरी चउन्हं पि मज्झाओ ॥ ३१८७ ॥ गोट्ठिनिविट्ठा भणिया कइया लच्छीहरेण ते मित्ता । भो विहला णे जाया आरंभा पुत्तरहियाण ॥ ३१८८ ॥ ऊसरववियं व कलंतरम्मि जं दिज्जए तई जाइ । खज्जति निएहिं पिव संगहधन्नाई कीडेहिं ॥ ३१८९ ॥ चोर व्व वंतरा वि हु नियकरनिहियं व निति निहिदविणं । लब्भं वग्गे वि मग्गइ जाइज्जंतो स तासं पि ॥ ३१९० ॥ ता हं दव्वज्जणउज्जओ धुवं जत्थ तत्थ गमिस्सं । न तरामि एत्थ ठाउं तं सोउं ते वि जंपंति ॥ ३१९१ ॥ सामन्नधणा अम्हे वि ता कयाणाई गहिया मिलिया वि । दविणज्जणम्मि जामो लाहं विभईय गमिस्सामो || ३१९२ ।। एवं ति भणिय सव्वाण सम्मए गहिय बहुकयाणाई । चेडे विसयम्मि चलिया कस्सइ सत्थस्स मिलिऊण ॥ ३१९३ ॥ बहुभंडभारअक्कंतचिक्कारमुहुरसगडाई । बहिरत्तं पिव दिंताई जंति जणसवणविवराण ॥ ३९९४ ।। गुड्डरपडमंडव-चरुकडाहि पक्खरभराहरसरीरा । गच्छति गुरुगईए करहा कडुरावडुस्सच्छा ॥ ३१९५ ॥ अइगुरुतरगोणी-भाराक्कंतगच्छति-मंथरं वसहा । निल्लालियजीहा संचरंति महिसा य भरविहुरा ॥ ३१९६ ॥ भारासमत्थपुणरुत्तपडणसपहाररइयउट्ठवणा । अइविरसमारसंता पसरंति पहे खरा पवरा || ३९९७ ॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ रणविक्कमकहा इय दिस्समाणवइयरनियराइन्नो अरन्नमज्झमि । आवासिओ अमोसो वि दिवसपहरदुगेसत्थो ॥ ३१९८ ॥ तरणाय विमुक्केसुं तुरंगवसहुट्टमहिसयखरेसु । काउडिकुडयदीयडकरे जलत्थं गए लोगो || ३१९९ ॥ खंडण-रंधण-भोयण-वग्गंमि समग्गसत्थियजणम्मि । पुलिया पुलिंदयाणं धाडी भिडियुब्भडब्भडोहा ॥ ३२०० ॥ जे सम्मुहा संजाया सुहडा ते भल्लिसल्लिए काउं । लुंटेउं पारद्धा भिल्लभडा सव्वमविसत्थं ॥ ३२०१ ॥ नासंतवणियविसरो कंपिरथिरो रुयंतडिंभोहो । विलवंतविलयविसरो जाओ सत्थो वि अस्सत्थो ॥ ३२०२ ।। सव्वो वि जणो नट्ठो निय निय पाणे पुरो विहेऊण । पाणेहिं रक्खिएहिं कयाइ कल्लाणमवि भवइ ॥ ३२०३ ॥ लच्छीहरो कलत्तजुत्तो य नासिउं दूरे । संपत्तो मारीए नियडे को वा थिरो होइ ? ॥ ३२०४ ॥ नियमित्तकलत्ताइमासंतेणं न तेण चत्ताई । न मुयंति नूण गुरुणो नियए पत्ते वि मरणंते ॥ ३२०५ ॥ गहिऊण रत्तधन्नं लच्छीहरभारियाहि उवक्खडियं । आवइफ्त्ताओ वि कुलवहूओ कुव्वंति करणिज्जं ॥ ३२०६ ॥ सव्वेसु वि भुत्तेसुं पच्छा लच्छीहरो समुवविट्ठो । छुहिया वि उत्तमा किं कयाइ मज्जायमुज्जति ? || ३२०७ ॥ परिवेसियम्मि धन्ने रन्ने वि मुणी कुओ वि ठाणाओ । जुगमेत्तमही महीयच्छिकंपउपसमसिरिपत्तं ॥ ३२०८ ॥ जो तिव्वतवच्चरणाचरणट्ठिय अट्ठि चम्ममेत्ततणू । खुहसहणाभत्तेणं नज्जइ मुक्को व्व मंसेण ॥ ३२०९ ॥ जस्संगे मलपडलं सयजलुल्लम्मि लग्गमाभाइ । तिव्वतवभवविणिग्गयवहिसंठियदुकयकम्मं च ॥ ३२१० ॥ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ सिरिअणंतजिणचरियं जा सव्वसत्तसंताण रक्खणायरियथिरयरागमणो । तवचरणजायगेलन्नचरणसंचारअखमो व्व ॥ ३२११ ॥ भिक्खागहणनिमित्तं चरित्तपत्तं समागओ तत्थ । दमसुंदराभिहाणो अच्छइ लच्छीहरो जत्थ ॥ ३२१२ ॥ (कुलयं) अच्छरियं अच्छरियं ति चिंतए विम्हयुल्लसियहियो । सो लच्छीहरपुरिसो दठुमरन्ने तयं साहुं ॥ ३२१३ ॥ तयणुमणब्भंतरसंभवंतगुरुभत्तिनिब्भरसरीरो । आणंदअमंदपवत्तयं सुजलकलियगंडयलो ॥ ३२१४ ॥ गरुयप्पमाणबहुमाणवसपसप्पंतकंतरोमंचो । मुणिवरदंसणउप्पन्नतोसवियसंतमुहचंदो || ३२१५ ॥ चिंतइ रन्नं पि हु अज्ज वसिमनयराओ समहियं जायं । जं जंगमकप्पदुम इमं अहं एत्थ पावेमि ॥ ३२१६ ॥ नूणमहं कल्लाणट्ठाणं होहं महंतमज्जेव । देवयरूवो जमिमो अतक्किओ इह मुणी पत्तो ॥ ३२१७ ॥ इय भाविंतो उक्खिविय पत्तलिं रत्तधन्नसंपुन्नं ।। जंपइ पहु ? धन्नो हं गिण्हसु ता कयबहुपसाओ ॥ ३२१८ ॥ जइ वि न निद्धो विरसो य सीयलो सामि ! एस आहारो । तह वि हु करुणं काउं गिण्हसु अणुचियमवि इमं ति ॥ ३२१९ ॥ एत्थंतरम्मि नहमंडलम्मि सुरअसुरखयरसंघाओ । संपत्तोऽनिलचलधयकणंतकिंकिणिविमाणेहिं ॥ ३२२० ॥ तव्वेलं मुणिणो वि हु धरिओ नियओ पडिग्गहो तम्मि । लच्छीहरेण खित्तो आहारो भत्तिजुत्तेण ॥ ३२२१ ॥ तयणु तवस्सी अप्पइ मट्टियमयगोलयं करे तस्स । भणइ य विहाडिउमिमं वीस इह जा मह पइन्ना ॥ ३२२२ ॥ तं सोउं तेण विहाडिउं तयं वाइया पइन्ना सा । पत्ता लिहिया पारणयकारणे जा कया तेण ॥ ३२२३ ॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणविक्कमकहा २५३ तहाहि - ता पारणयं कज्जं जइ इह रन्ने सुसीमनयरीओ । एही नरो सभज्जातिगो तहा सुहितिगसमेओ ॥ ३२२४ ॥ जइ भिल्लभडुल्लंटियसत्थाहो भासिऊण इह वाही । भत्तासु मित्तपत्तीसु सड्ढपरहदुगदिणम्मि || ३२२५ ॥ नियभोयणगहियारत्तधन्नपडिपुन्नपत्तलीहत्थो । मिलिएसु सुरासुरखेयरेसु भत्तीए जइ दाही ॥ ३२२६ ॥ गहियविसुद्ध अन्नं अह नो इममेव अणसणं मज्झ । इय वाइए पइन्ना पुन्ना मुणिणो त्ति नाऊणं ॥ ३२२७ ॥ अमरेंहिं जयजयारवपुरस्सरं विरइया कुसुमवुट्ठी । दाणपसंसापुव्वं वुटुंमणिकणयकोडीहिं ॥ ३२२८ ॥ चेलुक्खेवं काऊण जंपियं पुरिसरयण ! धन्नो तं । पाराविओ तवस्सी जेणेस दुमासणाऽहारो ॥ ३२२९ ।। संपुन्ननियपइन्नो पणओ लच्छीहरेण सो साहू । तम्मित्तकलत्तेहिं य भावेणऽणुमोयणा विहिया ॥ ३२३० ॥ पुन्ननिययप्पइन्ने मुणंमि पत्तम्मि पारणयट्ठाणे । सट्ठाणे संपत्ता अमरासुरखेयरा सव्वे ॥ ३२३१ ॥ मुणिदाणेणं लच्छीहरो वि नियजम्मजीवियव्वाण । सहलतं कलयंतो सलाहिओ मित्तकंताहिं ॥ ३२३२ ॥ तं चिय धन्नो तं पुन्नभायणं तं समज्जियजसो य । तं चिय भुवणभंतरपवित्तपुरिसाण पढमो त्ति ॥ ३२३३ ॥ बहुदिणनिरसणमुणिवरपारणसुपुन्नपरमतोसवसा । पयडीहोउं सासणदेवी लच्छीहरं भणइ ॥ ३२३४ ॥ लच्छीहर ! वच्छ ! अतुच्छ ! लच्छिविच्छड्डमेयमायरसु । जेणामरेहि दिन्नं तुह मुणिदाणेण हिट्ठेहिं ॥ ३२३५ ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ सिरिअणंतजिणचरियं लच्छीहरो पयंपइ सामिणि ! तं कहसु दविणमेयमहं । कह नेमि ? नियपुरीए पह च्चिय चरडाइभयभीओ ॥ ३२३६ ॥ तो सासणदेवीए रइऊणं रयणकंचणविमाणं । आरोविय तम्मि तयं सुहिकंता कणयमणिजुत्तं ॥ ३२३७ ॥ मणपवणनयणजइणा जवेण झणहणिरकिंकिणिकणंतं । नीयंकत्ति सुसीमानयरीमज्झट्ठियगिहे सो ॥ ३२३८ ॥ चलिया सासणदेवी तं मुत्तुं तम्मि धणसयणसहियं । तेण वि दविणेण कलत्तमित्तसयणा समुद्धरिया ॥ ३२३९ ॥ लच्छीहरभज्जाओ तिन्नि वि दळूण दाणमाहप्पं । दीणाईणं तं दिति अविरयं आयरपराओ || ३२४० ॥ लच्छीहराइयाणं तेसिं धम्मत्थकामनिरयाणं ।। समइक्कंतो बहूओ कालो कालुस्सरहियाण ॥ ३९४१ ॥ कइया विअड्ढयंते मेत्तलच्छीहराइणो मरिडं । दाणाणुमोयणेहिं पत्ता सग्गम्मि सुकरण ॥ ३२४२ ॥ तो चविउं लच्छीहरजीवो नयरीए विउलसालाए । . सिरिसीहविक्कमाभिहभडस्स पुत्तो तुम जाओ ॥ ३२४३ ॥ पुहईधरपत्ता वरविज्जाहरनामया चुया सग्गा । तुह लहु सहोयरत्तेण राय ! जाया इमे ते य ॥ ३२४४ ॥ नयरीए अवंतीए अवंतिवइणो निवस्स अंगरुहा । जाया जयलच्छीसयओ सुया मयणसिरि नामा ॥ ३२४५ ॥ तीए चेव पुरीए सिट्ठस्स धणाहिवस्स संजाया ।। सग्गाओ चविय लच्छी कणयसिरी नामिया कन्ना ॥ ३२४६ ॥ आणंदपुरे जाया नरिंदआणंदसुंदरस्स सुया । महलच्छीसग्गाओ चविडं आणंदसिरिनामा ॥ ३२४७ ॥ पुव्वभवुब्भवअसरिससिणेहसंताण जायरायाओ । तुह जायाओ जाया ताओ तिन्नि वि य जेणुत्तं ॥ ३२४८ ॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ रणविक्कमकहा जं जस्स पुव्वविहियं धणधन्नं कंचणं कलत्तं च ।। तं तस्स मग्गलग्गं एइ घरं अप्पणा चेव ॥ ३२४९ ॥ राय ! तए जं पुच्छियं तयं साहुदाणपभवस्स । पुन्नडुमस्स तुह रज्जलच्छिरूवं फलं कहियं ॥ ३२५० ॥ पत्ते दिन्नं थोवं वि कारणं होइ गरूयरिद्धीणं ।। एक्कफलसंभवो किं न तरू वियरइ बहुफलाइं ॥ ३२५१ ॥ अणुमवि सुपत्तनिहियं न खयं वच्चइ कयाइ नियमेण । मयरहरम्मि निहित्तो जलबिंदू सासओ होइ ॥ ३२५२ ॥ दाणं थोवं पि सुपत्तजोगओ हवइ भूरि भोगाय । लहुया वि दीवयसिहा वित्थारइ भूरि उज्जोयं ॥ ३२५३ ॥ जइ थोवेण वि धम्मेण राय ! तं दिठ्ठपच्चओ जाओ । ता तं कुणसु बहुं पि हु न दिट्ठलाहा पमायपरा ॥ ३२५४ ॥ सोउं नियपुव्वभवं राया ससहोयरो सभज्जो वि । जाइस्सरणेण तयं सक्खं व परोक्खमवि नियइ ॥ ३२५५ ॥ भणइ य पणामपुव्वं भयवं ! जह साहियं तए अम्ह । सव्वं पि तहम्हेहिं वि जाइस्सरणेण सव्व वियं ॥ ३२५६ ॥ ता रइय रज्जचिंतो अहं महापहु ! तुहक्कमारामे । निव्वुयमणो रमिस्सं सया वि हरिणो व्व हेलाए ॥ ३२५७ ॥ इय विन्नविय नयगुरू समंडलीओ स-मंति-सामंतो । संतेउरो स-पउरो सपरियणो जाइ पासाए ॥ ३२५८ ॥ भोयणकरणाणंतरउवविसियसहाए मेलिउं सयाणे । जंपइ पणइपुरस्सरमम्म-पिओ पमुहसहलोयं ॥ ३२५९ ॥ तायं च भाई-भज्जा सुहिसु सुया सेवयजणा निसामेह । गिहिस्समहं दिक्खं तहा तविस्सं तवं तिक्खं ॥ ३२६० ॥ ता मूलाओ विसवणे. तुम्ह मण-वयण-काय-जोगेहिं । तं किं पि समुप्पाईयमसुहं तं मह खमह सव्वं ॥ ३२६१ ॥ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ सिरिअणंतजिणचरियं भणियं जणयाईहिं अम्हे वि हु जायए य अत्थम्मि । उज्जुत्ता पुत्ताणं ता आरोवसु निवसिरिं तं ॥ ३२६२ ॥ सव्वाण सम्मएणं पमोयपसरेण पूरिओ राया । अहिसिंचइ मयणरहं कुमरं रज्जम्मि निययम्मि ॥ ३२६३ ॥ जुवरायपयम्मि कओ नरवइणो तयणु कणयरहकुमरो । विहिओ आणंदरहो वि कुमरभुत्तीए देसपहू ॥ ३२६४ ॥ रिउविक्कम-हरिविक्कम-सुरविक्कम-मंडलेसरेहिं पि । निय निय पएसु ठविया पुत्ता सव्वुत्तमे लग्गे ॥ ३२६५ ॥ ण्हाया कयबलिकम्मा रयणाभरणोह-रईयसिंगारा । झणहणिरकिंकिणीए आरूढा रयणसिबियाए ॥ ३२६६ ॥ पूयंता जिणचंदे सम्माणंता चउव्विहं संघं । आयन्नंता गीए पेच्छंता तरुणिपेच्छणए ॥ ३२६७ ॥ दिता किविण-वणीमग-जच्चंधजणाईयाण दाणाई । निसुणंता चारणगणउच्चारियजयजयारावे ॥ ३२६८ ॥ वज्जंतमंजुलाउज्जमणहरं थिरयरं परिचलंता । तित्थं पभावयंता गुरुकमकमलं तमणुपत्ता ॥ ३२६९ ॥ सिबियाओ समुत्तरिडं रायाईया नमित्तु गुरुचरणे । दिक्खं जायंति तओ सुमुहुत्ते दिक्खिया गुरुणा ॥ ३२७० ॥ दाऊण दुविहसिक्खं, अप्पइ अज्जाण अज्जियाओ गुरू । उवहाणकरणपुव्वं, जाया समहीयसमया ते ॥ ३२७१ ॥ तिव्वयरतवच्चरणायरणा जायाउ ताण लद्धीओ । आमोसहि-विप्पोसहि-गयणंगणगमणपमुहाओ ॥ ३२७२ ॥ छत्तीसगुणो रणविक्कमु त्ति ठविओ निय पए गुरुणा । विहरइ पडिबोहितो भव्वजणं जणवयपुरेसु ॥ ३२७३ ॥ नाणचउक्कवियाणियभुवणत्तयगब्भसंभविपयत्थो । आपुच्छिओ पयासइ पुच्छगजम्मे असंखे वि ॥ ३२७४ ॥ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका मंदरनंदीसररुयगपमुहदीवेसु गयणगमणेण । अभिवंदंतो सिद्धप्पडिमाओ विहरइ जयम्मि ।। ३२७५ ।। कइया वि महासुक्कज्झाणानलदद्धघाइकम्मवणो । उप्पाडए अणंतनाणमणंतत्थविसयं सो || ३२७६ ॥ तो लाड-चोड - वइराडयाइदेसेसु विरईयविहारो । पडिबोहियभव्वजणो पत्तो सिवं बहुविलासपयं ।। ३२७७ ।। केसि पि सीहविक्कमपमुहाणमणंतनाणमुप्पन्नं । तो ते पत्ता मोक्खे अवरे उ अणुत्तरेसु गया ।। ३२७८ ॥ पायाले असुराहिवत्तमसमं भुंजंति जं जंतुणो । जं वा चक्कवई वि भारहमहीसामित्तमुब्भास ॥ जं सक्को सुररज्जरिद्धिमणहरे सग्गे सया पालए । तं सव्वं पिसुपत्तदाणजणियं पुन्नं समुम्मीलए || ३२७९ ॥ रूवं वरं तुहिणसेलसिया य कित्ती । सोहग्गमुग्गमसमागुणसंपयाई ॥ पाणीण होइ पवरं अवरं पि नूणं । दाणेण पत्तनिहिएण सिवस्सिरी वि ॥ ३२८० ॥ जह जायं सिवफलयं दाणं बहुमाणदिन्नमेयस्स । अवरस्स वि तह जायइ ता तम्मि सया वि जइयव्वं ॥। ३२८१ ।। ( सीलविसए रयणावलीकहा ) दाणोदाहरणम्मि भणिओ रणविक्कमो इयाणि तु । रयणावलीकहाणयमायन्नह सीलविसयम्मि ॥ ३२८२ ॥ परिविप्फुरंतधणरयणकरनियररईयहरिधणुहं । कयमणितोरणमिव रयणतोरणं नाम पुरमत्थि || ३२८३ ॥ वियइल्लकलिय विय अलिवुलतारियतरुणिनयणनियरेण । जं सइ दंसइ कोइलकलरमणिरवेहि य वसंतं ।। ३२८४ ॥ २५७ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ सिरिअणंतजिणचरियं बंदीकय-रिउ-रमणी-विओयतावुण्हसरलसासेहिं । उप्पाइयजणदाहं जं गिम्हरिउं सया वहइ ॥ ३२८५ ॥ निसिससिसंगमसंदिरससिमणिगिहनीरधारहरियरयं । चलगयघडघणमालं दंसइ सइ पाउसरिउं जं ॥ ३२८६ ॥ उत्तंगगयघडाचडियचलिरनरनाहसेयछत्तेहिं । भमिरसियअब्भपडलं सरयरिउं पयडइ सया जं ॥ ३२८७ ॥ पुरपरिसरबहुअरहट्टसेयनिप्पज्जमाणधन्नेहिं । विलसिरहेमंतं जं निच्चं चिय नज्जइ जणेण ॥ ३२८८ ॥ अंदोलियबहलढुमगोसावस्सायजलकणवहेहिं ।। जं जणियजणए कंपं पवणेहिं कहइ सइ सिसिरं ॥ ३२८९ ॥ इय दिसि दिसि पइपसरियरिउछक्कक्कमणमवि सया कालं । सुत्थियजणवणसिद्धिप्पवद्धियणंदसंदोहं ॥ ३२९० ॥ पसरंतकिरणगणरयणसेहरो रयणसेहरो राया ।। तत्थत्थि सुहत्थिसुहत्थिगमणनिवनियरनयचरणो ॥ ३२९१ ॥ एक्केक्ककरि-तुरंगो बहुकरि-तुरयस्स न वहइ हरी वि । सुरसायजायगव्वो वज्जियमज्जस्स जस्स सिरिं ॥ ३२९२ ।। कयपसुवइसंसग्गे विरइयगुणिगुट्ठिणो कलइ न तुलं । सरलस्स जस्स कुडिलो जणनमणिज्जो वि नवचंदो ॥ ३२९३ ॥ हरियस्सो भूरितुरंगमस्स कोमलकरस्स तिव्वकरो । सुथिरस्स जस्स अथिरो सरिसो न कयाइ सूरो वि ॥ ३२९६४ ॥ दद्धंगो निव्वणनिट्ठमुत्तिणो तिजयजणियसंतावो । जणहियकरस्स सरिसो न जस्स कामो निकाइया वि ॥ ३२९५ ॥ विरईय बहुपयवेउविलसंतगयाइवाहणगयणस्स । दिन्नकमलस्स न समो विही वि संगहियकमलो से || ३२९६ ॥ स गओ अरोयतणुणो संखकरो जस्स सतुरहिययस्स । जयमित्तस्स अरिकरो न धरइ करणिं सिरिवरो वि ॥ ३२९७ ॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा २५९ रईयमसाणनिवासो मणिमंदिरवासिणो हरो विसमो । नग्गो नालंकरियस्स विसहरो अमयमुत्तिस्स ॥ ३२९८ ॥ इय अहरियसव्वसुरस्स जस्स केणावि नत्थि उवमाणं । निज्जियतेयस्सिगणो तरणी उवमिज्जए केण ॥ ३२९९ ॥ तस्सत्थि सव्वसुद्धंतसामिणी हंसगामिणी कंता । रमणीरयणं सिरिरयणमंजरी नाम कामगिहं ॥ ३३०० ॥ बहुमाओ महसरलो इमाए ताहमवि पयदईयसमं । काहं पियं ति कलिउं तमइ अज्ज वि निवेसु सिरी ॥ ३३०१ ॥ जीए सरीरसुंदेरनिज्जिया लज्जिय व्व गोरी वि । नट्ठा हरंगमज्झे अप्पं पयडिऊमपारंती ॥ ३३०२ ॥ निच्चं पि निकलंकाए जीए सीया वि पावइ न उवमं । जं सा महासई वि हु कलंकिया आसि कइ वि दिणे ॥ ३३०३ ॥ अच्चब्भुयरूवनियप्पिययमजुत्तजमिक्खियरइं वि । हरइ दद्धदईयसरणा अरई सोयाउरा वहइ ॥ ३३०४ ॥ तीए सह रम्मपिम्माणुबंधवट्ठियपमोयपसराए । विसयसुहासत्तमणस्स राइणो जंति दिवसाइं ॥ ३३०५ ॥ तस्सत्थि समग्गअमच्चनायगो नायगोयरपवीणो । नामेणं चउरमई चउरमई गूढकज्जेसु ॥ ३३०६ ॥ ठाणट्ठिओ वि पेच्छइ चरेहिं जो सव्वनिवइवावारे । गयणट्ठिओ वि तरणी किरणेहिं पयासए भवणं ॥ ३३०७ ॥ सट्ठाणत्थो वि मई पउंजिउं जो विणासए अहिए । मेहो व्व विज्जुपुंजं निवाडिउं सत्तसंपायं ॥ ३३०८ ॥ अपयासियपरिओसो वियरइ केसि पि लच्छिविच्छड्डे । विडविडवि व्व अदंसिय कुसुमक्केरो फलप्पयरं ॥ ३३०९ ॥ तस्साइहियस्स कमागयस्स नीएक्कनट्ठबुद्धिस्स । रज्जसिरिभारमप्पियविलसइ सच्छंदमवणिवई ॥ ३३१० ॥ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० तहाहि कइया वि महच्छुल्लसियरायसरगाममुच्छणाणुगयं । समरंगणमत्तं पिव आयन्नइ सुस्सरं गीयं ॥ ३३११ ॥ उल्लसियतरणकरणप्पभावसंपत्तकेवलपसिद्धिं । पणरमणीनट्टविहिं कइयाइ अवलोयइ जिणं व ।। ३३१२ ।। रहगयहयराओ विहररहगयहयरायकयदढावेढो । आरुहिय गुरुगयं रायवाडियं कुणइ कइया वि ॥ ३३१३ कइया वि हु चित्तसहा कइरायविराईए नहयले व्व । अत्थाणे कुणइ रई महत्थसत्थेहिं सुहडो व्व ॥ ३३१४ ॥ इय विविहविणोयवूहवग्गया संगए महीनाहो । परिपालंते सो रज्जरंजियं भूरिभूवीढं ॥ ३३१५ ॥ कंचणदंडो पडिहारकरयले वल्लहाण संबधो । पक्खिसु चेव विओगो हउ त्ति उत्ती तुरंगेसु ।। ३३१६ || करपीडणं कुमारीसु चेव गीएसु रायदीहत्तं । 1 सुव्वंति अव्वसुं दोन्नि वि उवसग्गअवसद्दा ।। ३३१८ || करिणो चेव पमत्ता संतावकरा सहस्सकरजलणा । माइत्तं जणइत्तसु न संति लोए पुण इमाई ॥ ३३१८ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि मणिभूसणपहपिसंगियदियंतो । आरूढो करिए घणविंदे विज्जुपुंजो व्व ॥ ३३१९ ॥ उत्तंगगयघडारूढपोढमंडलियकलियचउपासो । खणहणिरकवियहयनिवहचडियसामंतसंजुत्तो ॥ ३३२० ॥ ―― रणज्झणिरकिंकिणीगणरहरयणट्ठियनरिंदपरियरिओ । तिव्वतरप्पहरणकरपोढभडावेढदुद्धरिसो || ३३२१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं विलसंतथूलमुत्तावचूलसियछत्तअंतरियतरणी । तरुणीकरचांलियचंदचारुचमरोहरमणीओ ॥ ३३२२ ॥ चिंधालंबद्धयछत्तसिक्किरीसयविराईयनहंतो । उज्जयंतो गयणं निवघणमणिमउडकिरणेहिं ।। ३३२३ || Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ रयणावलिकहा वज्जंतभूरिभेरीढक्कानीसाणमणुसरियभुवणो । सिरिरयणसेहरनिवो नीहरिओ रायवाडीए ॥ ३३२४ ॥ तालाणुसारिवज्जंतपडहगुंजंतमद्दलुद्दामं । पेच्छंतो वीणावेणुरणझणं रमणिपेच्छणयं ॥ ३३२५ ॥ अवलोयंतो उल्लसियभुयलयुत्तंभियघणघणाभोगं । सिंगारियपणरमणीमणहरनमु पयट्टतं ॥ ३३२६ ॥ जय जीव, चिरं इच्चाइ चारुचारणथुईहिं थुव्वंतो । मंथरतरसंचरणो पुरपरिसरधरणिमणुपत्तो ॥ ३३२७ ॥ मग्गडुपासट्ठियरायमंतिसामंतमंडलीएसु । कोलावइ लीलाए जा तत्थ करेणुमवणिवई ॥ ३३२८ ।। ता हक्काहुंकारे आयन्निय नहयले खिवइ दिठिं । सरलियगलमुत्ताणियनयणं वलिकलियभालयलं ॥ ३३२९ ॥ आयड्ढियासिपडिप्फलियरविकरप्फुरियतेयदुनिरिक्खो । चित्तब्मंतरनिग्गयकोवानलजालकलिओ व्व ॥ ३३३० ॥ वग्गणविछुट्टधम्मेल्लअनिलउल्लसियकेससामलिए । पज्जलिरकोवदवहव्ववाहभवधूमकलुसे व्व ॥ ३३३१ ॥ रयउन्भामियअसिजायमंडलायारतेयसंजुत्ते । चक्काहिवे व्व रणकरणकज्जकरधरियगुरुचक्के ॥ ३३३२ ॥ मणिभूसणकरसुरचाववित्तिए गलिरसेयसलिलक्खणे । नीलंबरपरिहाणे मेहे सतुसारचरिमे व्व ॥ ३३३३ ॥ नवजुव्वणदढदेहे कयपरिगरबंधबंधुरे धणियं । पेच्छइ खेयरपुरिसे जुज्झा रयणाए दुद्धरिसे ॥ ३३३४ ॥ थिरधरियनियकरिंदो समग्गपरिवारपरिगओ राया । ते जुझंते दठूण सायरं वारए खयरे ॥ ३३३५ ॥ नवरं रणकरणासत्तमाणसा निवसरं सुगंति न ते । . नट्ठमणो नासन्नो वि सुणइ दूरम्मि दूरठिओ ॥ ३३३६ ॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ सिरिअणंतजिणचरियं पसरंति अवसरंति य घडंति करणेहिं झत्ति विहडंति । रणकयकरणा वंचंति दो वि ते छलपहारे वि ॥ ३३३७ ॥ ता णंगलाहयकयप्पवंचपवंचियपरप्पहाराण । जाया महईवेला अनायघायस्थ वियणाण ॥ ३३३८ ॥ अवरोप्परउग्गप्पहारभग्गखग्गुगयग्गिकणसेणी । निज्जइ निम्मलनहमंडलम्मि नक्खत्तपंति व्व ॥ ३३३९ ॥ चत्तासिणो कडीतडकरकयअसिधेणुणा पुणो भिडिया । पडिया ताओ वि वामावहत्थहयदाहिणकरेहिं ॥ ३३४० ॥ तो मल्ल व्व परोप्परमभिडिया बाहुबंधकरणेण । घडिय विहडंति सिग्धं नियबाहुबलेण सहस त्ति ॥ ३३४१ ॥ नियलद्धलक्खयाए एक्केणन्नो पयप्पहारेण । पहओ दड त्ति पडिओ सो सहसा रायबलमज्झे ॥ ३३४२ ॥ तम्मारणाय वेगेणमागओ जाव नहयरो बीओ । ता रायाएसेणं खलिओ सो अंगरक्खेहिं ॥ ३३४३ ।। तारं तारं मग्गइ रिडं न से अप्पए नरिंदो वि । सो आह न वरिओ मे धरमाणो तं पि मह वेरी ॥ ३३४४ ॥ रायाऽह न एग्रस्स वि वेरीहिं किं तु दोण्ह वि वयस्सो । इमममुणियपरमत्थो सुररायस्स वि न अप्पिस्सं ॥ ३३४५ ॥ तेणुत्तमिमो धरिओ नूणं तुह असुहकारणं होही । राएणुत्तं जं होइ होउ तं तो गओ सो वि ॥ ३३४६ ॥ रना मुच्छापच्छाइयच्छिणो नहयरस्स कारविया । सिसिरधरकिरिया समुवलद्धचेयणो उट्ठिओ सो वि ॥ ३३४७ ॥ दिट्ठो य निवेण रवि व मणिमयाभरणकिरणदुनिरिक्खो । पसरंतसत्तसत्ती पवित्तमुत्ती गयंणगमणो || ३३४८ ॥ असमाणरज्जफ्तं सव्वुत्तमलक्खणो इमो कोइ । इय चिंतिऊण रन्ना सम्माणिय पुच्छिओ एवं ॥ ३३४९ ॥ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा सप्पुरिस ! को तुमं कोवएसहेऊ व तुम्ह को वेरे ? | जइ कहणिज्जं कहसु अह न ता कुणसु जमभिमयं । ३३५० ॥ सो जंपइ साहिज्जइ अन्नस्स वि नेहयं पुच्छणपरस्स । किन्नो कये वेराण तुम्ह ता निसुणह नरिंद वर ! ।। ३३५१ ॥ रायाह तुमं समिओ ता आरुहिउं सुहासणं एयं । चलसु जहा निसुणेमो तुह कयमुंचविसियउज्जाणे ॥ ३३५२ ॥ तो तम्मि निवसुहासणमासीणे बलजुओ महीनाहो । अलिउलविलासनामं उज्जाणं झत्ति संपत्तो ॥ ३३५३ ॥ विलसंतघणच्छायं गुरुवणमालं व पत्तरहभवणं । लच्छीहरं व सिरिवच्छसंगमागयपकामसुहं ॥ ३३५४ ॥ कयलीलवलीवद्दलब्भमंत अरहट्ठसजलकणपवणं । कयली - लवली - कुवली - ताली - एलावलीकलियं । ३३५५ ॥ विसितुं तम्मि अंबयवणमज्झे त्ति लवले कयलिखंडे । दक्खामंडवसिसिरे निविसइ सीहासणे राया ।। ३३५६ ।। निवदावियम्मि भद्दासम्म विज्जाहरो वि उवविट्ठो । अवरो वि हु जहजोग्गं निवपरिवारो समुवविट्ठो ॥। ३३५७ ॥ कहसु नियवेरकारणमियनिववृत्तो सो आह निसुणेह । इह भरहमज्झभाए वेयड्ढो नाम अत्थि गिरी ॥। ३३५८ ॥ तारमउहं रयणाउरो इमो हमवि होमि रयणमओ । इय भाविउं व जो सहइ सव्वया सिंधुपयलग्गो ।। ३३५९ ॥ अइनिम्मलम्मि जम्मिं विहाइ पडिबिंबियं तमालवणं । सूरकयत्थणभीयं सरणगयं रयणितिमिरं व ॥ ३३६० ॥ उत्तरदाहिणनामाओ तम्मि सेणीओ दुन्नि निवसंति । गंगासिंधुउवगमु पयासियरायहंसाओ ।। ३३६१ ॥ दाहिणसेढीसारं रहनेउरचक्कवालपुरमत्थि । देवकुरुखेत्तं पिव जंबूणयभद्दसालसियं ॥ ३३६२ || २६३ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ सिरिअणंतजिणचरियं धणिणो नरवइणो इव सियायवत्तप्पसंतसंतावा । तह निम्मलप्पइन्नागयसोहा जम्मि विलसंति ॥ ३३६३ ॥ तम्मि गुरुरायमंडलपहावहारक्खमप्पयावभरो । विज्जाहरचक्कवई समत्थि सूरो व्व सूरप्पहो ॥ ३३६४ ॥ कंदो कित्तिलयाए पयावमणिरोहणो नयत्थनिही । गुरुगुणकुसुमारामो सोहग्गामयमहाजलही ॥ ३३६५ ॥ सूरप्पह व्व सूरप्पह त्ति तरोवहारिणी वि तमा । अत्थि पिया से नवरं जं तावहरा तमच्छरियं ॥ ३३६६ ॥ जा उभयहा सुहसिया सुवन्नवयणासया दुहासु कमा । विलसिरमहा उभयहा दुहा समुल्लसिरसरलच्छी ॥ ३३६७ ।। तीए सह विविहविसयासत्तो मइरामयप्पमत्तो व्व । राया निब्मरनिद्दो व्व न मुणए जंतमवि कालं ॥ ३३६८ ॥ कइया वि हु रयणावलिसिविणयसंसूईया जाया । तीसे सुवन्नवन्नाओ दारया पुव्वगुरुकित्ती || ३३६९ ॥ काउं वद्धावणयं सम्माणियसयलसयणसुहिविंदं । रयणावलि त्ति नाम देइ निवो से सिविणसरिसं ॥ ३३७० ॥ पालिज्जंती पंचहिं हियाहिं धाईहिं वद्धए बाला । पंचमहव्वयपालणरईहिं मुणिपुन्नपयइ व्व ॥ ३३७१ ॥ नाऊण कलागहणावसरं सा पाढिया महीवइणा । इत्थीजणजोग्गाओ कलाओ तीए अहीयाओ ॥ ३३७२ ॥ पुन्निमनिसि व्व मयलंछणेण सरसि व्व कमलसंडेण । तवलच्छि व्व पसमेण मणुयजाइ व्व धम्मेण । ३३७३ ॥ मेहा इव पाढेणं कुसुमसमिद्धि व्व सुरहिगंधेण ।। बुद्धि व्व विवेएणं नाएणं रज्जलच्छि व्व ॥ ३३७४ ॥ केरविणि व्व वियासेण पत्तदाणेण दव्वरिद्धि व्व । आभरणेणं तणू दिणमणिणा वासरसिरि व्व ॥ ३३७५ ॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा २६५ तरुणि व्व विलासेणं सयत्थकव्वेण सुकइवाणि व्व । सा जुव्वणेण जुवजणमणोहरेणं अलंकरिया ॥ ३३७६ ॥ (कुलयं) लीलासु लालसत्तं भूतंडवडंबरे महारंभो । आसत्ती सिंगारे वियड्ढया वयणविन्नासे ॥ ३३७७ ॥ पागब्भं परिहासे पवीणया वीणवेणुगीएसु । नट्टम्मि नेउणत्तं जुव्वणजोएण जायं से ॥ ३३७८ ॥ (जुयल) नवरमइनिम्वियारा निक्कामा साहुचित्तवित्ति व्व । अइवाहइ दियहाई कोलंती सह वयस्सीहिं ॥ ३३७९ ॥ तं अच्चब्भुयरूवं समग्गसोहग्गमुत्तमगुणोहं । मग्गंति नहयरनिवा को न समीहइ रमणिरयणं ? || ३३८० ॥ भणिया पिउणा तं कहसु जो वरो पुत्ति ! तुज्झ पडिहाइ । जं मरणं तो दूरे सुहओ थेवो वि उवरोहो ॥ ३३८१ ॥ तं सोउं तीउत्तं ताय ! न रुच्चइ वरो वि हु वरो मे । “किं को वि कुणइ भोयणमविज्जमाण छुहलवे वि" ॥ ३३८२ ॥ जणयजणणीसहीहिं बहुओ भणिया वि मन्नए न वरं । दूरम्मि कुरूवे से नरे सुरूवे वि विद्देसो ॥ ३३८३ ॥ पावेण व नामेण वि नरस्स निसुएण सासमुच्चियइ । चित्तलिहिय नरं पि हु थिरं निरक्खइ न तरणिं व ॥ ३३८४ ॥ सिविणम्मि वि सच्चविए कंपइ पुरिसम्मि कालसप्पे व्व । जलणज्जालाए व नरकहाए संतावमुव्वहइ ॥ ३३८५ ॥ चित्तठियाए एयस्सरूवतणयाए भारिओ व्व निवो । उच्छहइ न चिंतिउं पि रज्जकज्जाइं किमु काउं ॥ ३३८६ ॥ चिंतइ चलचित्ताओ हवंति पयईय पुरंधीउ । किं पुण नवजोव्वणजायकोउउक्कलियकलियाउ ॥ ३३८७ ॥ ता जइ दुइंतुद्दामसेरसंचारिसिरियगणाओ । विसयापसत्तअसई सहीसमुभवकुसंगाओ ॥ ३३८८ ॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ सिरिअणंतजिणचरियं उब्भडभोयसमुब्भूयरायवसजायमयणउम्माया । कस्सइ निट्ठागयनिबिडनेहनट्ठस्स उवरोहा ? || ३३८९ ॥ जायइ सीलविणासो इमीए ता मज्झ निम्मलं पि कुलं । कलुसिज्जइ अयसेणं दीवसिहा कज्जलेणं व ॥ ३३९० ॥ ता गंतूणं पुच्छामि कत्थइ केवलिं सुयाए वरं । सो निच्छएण कहिही जमत्थि नाणस्स न परोक्खं ॥ ३३९१ ।। इय चिंतिऊण मणिमयविमाणपूरियनहो गओ ससुओ । पुव्वविदेहे विजयावहे पुरे अलिकुलुज्जाणे ॥ ३३९२ ॥ पेच्छइ सुवन्नपंकयउवविठं चउरवयणवररयणं । विलसंतबंभसुत्तप्पयडीकयउत्तरासंगं ॥ ३३९३ ॥ विमलगुणअक्खमालाकलियं सच्चरणकरणपत्तजसं । नवामरवरुत्तमंगं अरायहंसं व संभुं व ॥ ३३९४ ॥ निम्मलनाणं नामेण केवलिं पेच्छिउं तयं राया । भूमियनिविट्ठो निसुणइ धम्मकहं विहियकरकोसो ॥ ३३९५ ॥ पाविय पत्थावं पणमिऊण पुच्छइ वरं नियसुयाए । "उज्जमिणो परकज्जे वि किं न गुरुणो न नियकज्जे ॥ ३३९६ ॥ आह पहु ! नहयलनिवडियस्स रिउणा हणिज्जमाणस्स । जो तुह काही रक्खं सो जामाऊ महाराय ! ॥ ३३९७ ॥ तं सोउं अभिवंदिय केवलिपयसयदलं खयरराया । पत्तो परियणजुत्तो रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ३३९८ ॥ चिंतइ किं को वि बली समस्थि मज्झ विसयासओ भुवणे । जेण हणिज्जं तं मं रक्खेही जो स जामाऊ ॥ ३३३९ ॥ अविकंपइ कणयगिरी चलइ मही सायरा वि हु सुसंति । तह वि न अणंतनाणिप्पउत्तमिह अन्नहा होइ ॥ ३४०० ॥ अवि पायालं सग्गम्मि जाइ सग्गो वि जाइ पायाले । तह वि न अणंतनाणिप्पउत्तमिह अन्नहा होइ ॥ ३४०१ ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ रयणावलिकहा अवि वज्ज पि दलिज्जइ ससएण रणम्मि जिप्पइ हरी वि । तह वि न अणंतनाणिप्पउत्तमिह अन्नहा होइ ॥ ३४०२ ॥ ता मोऽवस्संभविभावभावणुभावणम्मि का चिंता ? । होयव्वं चियं भविहि त्ति कालमइवाहए राया ॥ ३४०३ ॥ अह अन्नया य घणपउमरायआभरणपहपिसंगपहो । चउपासप्पसरियमुत्तिमंतलोयाणुराओ व्व ॥ ३४०४ ॥ थूलामलमुत्ताहलहारावलिकंतचारुपरिवेसो । सरयच्छणहरिणको व्व जायजोण्हाभरप्फुरणो ॥ ३४०५ ॥ उवविट्ठो अत्थाणे भडकोडि वि संकडे खयरचक्की । पणओ सामंतामच्चमंडलीएहिं विणएण ॥ ३४०६ कुलयं ॥ एत्थंतरम्मि वज्जालिकलियमणिरम्मकणयदंडकरो । पणमिय विन्नवइ निवं पडिहारो हारिहारउरो ॥ ४४०७ ॥ देव ! दुवारे दूओ विज्जुप्पहखयरचक्किणो पत्तो । सो संरुद्धो चिट्ठइ मुच्चउ मा वत्ति आइसह ॥ ४४०८ ॥ रायाह सिग्घमेव य तं मुंचसु तयणु दंडिणा तेण । दिन्नपवेसाएसो दूओ पविसइ निवसहाए ॥ ३४०९ ॥ जीएऽरुणमणिकुट्टिमतलम्मि विलसंति मोत्तियचउक्का । घुसिणरसरंजियाए मल्लिमकलियोवहार व्व ॥ ४४१० ॥ जा इंदनीलमणिभित्तिदित्तिसंताणसामला सहइ । मसिणीकयमयणाहीपंकविलित्तच्चए मत्तो ॥ ३४११ ॥ फलिहत्थंभपहा जीए रिट्ठथंभप्पहाहिं संचलिया । गंगा-जउणा-वेणी-संगमसोहं समुव्वहइ ॥ ३४१२ ॥ नीए नियइमणिकरदुरवलोयसीहासणं समक्कमिउं । उवचिठं तेयस्सीणमसहमाणं व निवइ सो ॥ ३४१३ ॥ दुनिरिक्खो रयणाभरणपहभरो जस्स रेहए पुरओ । पत्तो रविप्पयावो निवप्पयावं व पेच्छउं ॥ ३४१४ ॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ सिरिअणंतजिणचरियं गंगा-जउणाहिं पिव रमणीहिं गोरसामलंगीहिं । जो वीइज्जइ ससि-सियचमरेहिं चक्कवट्टि व्व ॥ ३४१५ ॥ विज्जाहरे सरंतं दटुं दूओ महीमिलियभालो ।। पणमिय निवसइ दिन्नासणम्मि आबद्धकरकोसो ॥ ३४१६ ॥ नरवइभमुहाओन्नमणनायविन्नत्तिकरणपत्थावो । पुणरवि कयप्पणामो दूओ विन्नविउमारतो ॥ ३४१७ ॥ देवत्थि उत्तरस्सेणिकामिणीजणियसोहसीमंतं । सिरिगयणवल्लहपुरं चूडारयणं व समुवनं ॥ ३४१८ ॥ रयणीसु रयणभवणंगणेसु दठूण पुण्णससिबिंबं ।। जम्मि पुडंरियवणब्भंतीए भमंति अलिहंसा ॥ ३४१९ ॥ तम्मि नियपोढपयावदावसलहीकयारिसंदोहो । अत्थि खयराहिराया विज्जप्पहनामगो बलवं ॥ ३४२० ॥ सिग्घ कइस्स वि रूसइ जो सत्थकरणस्स रणरसव्वसणी । बाणासणधरणपरे रन्नम्मि वि रोसमुव्वहइ ॥ ३४२१ ॥ जस्स वसंताईसु वि रिउसद्दो सुइगओ कुणइ कोवं । रायसिरे चंदम्मि वि मुयम्मि जो वहइ संतावं ॥ ३४२२ ॥ एसो सूरो त्ति रवी वि जस्स विद्देसकारओ होइ । पुहवीधरसदं जो न सहइ कंचणगिरिस्सा वि ॥ ३४२३ ॥ उब्भावियस्स वि विलसिरछत्तस्स न जो कयाइ तूसेइ । चमराहियसोहेणं पायालेण वि वहइ दाहं ॥ ३४२४ ॥ जस्स विही वि हु वेरी उव्वहमाणो पयावईसई । पुरिसोत्तमो त्ति कन्हो वि कुणइ कालुस्सयं जस्स ॥ ३४२५ ॥ गोरीपुत्तो वि महासेणो त्ति सया वि जस्स रोसाय । उग्गो त्ति हरो वि हु होइ कोवउक्करिसकरणाय ॥ ३४२६ ॥ नियबाहुदंडचंडत्ततणतुलातुलियतिजयसुहडस्स । जस्स भयुभंता इव न सेस सक्का वि इंति महिं ॥ ३४२७ ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा ३४२८ ॥ ३४३० ॥ । कल्लदिणे सो नंदीसरम्मि सासयजिणिंदनमणत्थं । चलिओ रयणविमाणेहिं तुह पुरोवरि सगयणेण गच्छंतेणं मयरंदसुंदरे काणणम्मि कीलंती । सच्चविया तुह तणया नवजोव्वणकंततणुजट्ठी ॥ ३४२९ ॥ असरिससरीरसोहा अहरियरइरंभविब्भमं कुमरिं । द अकिच्चभीयं व झत्ति नठं मणं रन्नो || खलिऊण गईरहिओ तदेक्कदिट्ठीसु निच्चलो होउं हिययप्पविट्ठकुमरी भरेण गमणासमत्थो व्व ॥ ३४३१ ॥ आपुच्छियं च एसा कस्स सुया किमभिहा य तो तस्स । केणइ कहियं रन्नो कन्ना रयणावली नाम || ३४३२ ॥ जत्तो जत्तो सा मेहडंबरछत्ततलट्ठिया भमइ । अणुकूलिउं व चूतं चलइ तत्थ तत्थेव निवदिट्ठी || ३४३३ ॥ दोलंदोलणहल्ली सद्दाणजलकेलिकुसुमियदुमेसु । छंदाणुवत्तिणी विव तीए समं रमइ निवदिट्ठी || ३४३४ || कीलारसवसयाए दट्ठूण सलीलमंगविन्नासं । ती मइराए इव हियहियओ सो सुहि जणइ || ३४३५ ॥ सो च्चिय पुण्णेक्कदसो वित्थरियगुणो लसंतअणुराओ । जो लग्गिही इमीए देहे कोसुंभखडओ व्व ॥ ३४३६ || आणंद उवहिही सो च्चिय चललोयणा इमा जस्स । भविही सया वि समुही दप्पणपडिबिंबमुत्ति व्व ॥ ३४३७ || तण्हुच्छेयं न कुणइ हरिणच्छी दिट्ठिगोयरगया वि । मायहियव्वं एसा हरिणस्स व मज्झ हिययस्स || ३४३८ ॥ कारणसरिसं कज्जं ति जापए सिद्धी ठियापयलीया सा । जमिमीए चंदुज्जलगुणेहिं मह रंजियं हिययं । ३४३९ ॥ इय नियमित्ताभिमुहं परिजंपंतम्मि नहयरनरिंदे । सा बाला वलिऊणं स गिहम्मि गया सहसहीहिं ॥ ३४४० ॥ २६९ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० सिरिअणंतजिणचरियं वलिओ नहयरनाहो न गओ नंदीसरे विरहविहुरो । न कुणइ भोयणपमुहं पि धम्मकरणम्मि का वत्ता ? ॥ ३४४१ ॥ नियनयरमागओ वि हु नयरं नरय व्व पावइ खणं पि । राया वज्जानलसममयणानलजालजलिरंगो ॥ ३४४२ ॥ कुमरीनिबद्धरायं नरेसरं पेच्छिऊण मच्छरिणी । ईसालुय व्व निंदा न ठाइ मग्गे वि नयणाण ॥ ३४४३ ॥ कुमरीनिरक्खणपीऊसरसभरासायजायतित्ति व्व । आहारं पइ राया न कुणइ मणयं पि मणवित्तिं ॥ ३४४४ ॥ अमयकरं पाणहरं नलिणीनालं दवग्गिजालं व । मरणं पिववरभवणं विरायरूवं जयं जायं ॥ ३४४५ ॥ जो हुंतो सुदिढलुयावलेवतणतुसियसयलसुंडोहो । अबलाए वि लीलाए कायराण वि कओ लहूओ || ३४४५ - A || तं तयवत्थं परिपेच्छिऊण मित्तेहिं पेसिओ हमिह । नियपहुहियकरणरया हवंति भव्वा वि किमु सुहिणो || ३४४६ ॥ ता अज्ज वि तह कुमरी कुमारिया नववओ य अम्ह पहू । कारिज्जउ वीवाहो सुरसरिया मिलओ जलहिस्स || ३४४७ ॥ अवरस्स वि दायव्वा ता पत्थितस्स देहि मह पहुणो । जं वल्लहा वि न हवइ सा नियभोगाई जेणुत्तं ॥ ३४४८ ॥ "सगुणा वि सुजाई विय विविहाहरिया वि विविहवन्ना वि । धूया परस्स होही माला इव मालकारस्स" ॥ ३४४९ ॥ तहा - “निय अंगुप्पन्ना वि हु खंधपवुड्ढा वि अइसुपत्ता वि । सहयारस्स व साहा फलकाले होइ परकीया ॥ ३४५० ॥ अपरं च - "बहु विहवपूरिआ वि हु अणेयकम्मयरदाससंजुत्ता । नावच्च नूण धूया सुचिरेण वि परउलं जाइ ॥ ३४५१ ॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा २७१ उत्तमकुलो सरूवो खयरिंदो नयपरो विणीओ य । एक्कगुणो वि हु दुलहो ता सव्वगुणं इमं वरसु ॥ ३४५२ ॥ पाएसु वि लग्गेउं उवरोहेडं च दव्वमवि दाउं । दिज्जइ जेसिं सुआ तं ते वि हु पत्थिति अच्छरियं ॥ ३४५३ ॥ कन्नाए विइन्नाए तुह पहु ! मह सामि सह सिणहे । नेगा दाहिणसेणी उत्तरसेणी वि सायत्ता ॥ ३४५४ ॥ ता रयणविमाणकरेणुतुरयरहकोसभूसणाईसु । जत्थेच्छा तं पहु ! तुह देवो दासी न संदेहो || ३४५५ ॥ ता कुणसु तस्स करगोयरे सुयं मुद्दियं व ससुवन् । तुम्हाण वि आजम्मं होउ नरिंदाण पीइभरो ॥ ३४५६ ॥ एयं चिय कीरंतं सुसंगयं सामि ! आयइ हियं च । जं सो अम्हाण पहू अहिमाणी अइबलिट्ठो य ॥ ३४५७ ॥ तिव्वतरवारिहत्थो जममवि निज्जिणइ समरसंरंभे । का गणणा तस्सावरनरेसु वीराय रायस्स ॥ ३४५८ ॥ रणरंगुच्छंगगओ जोहणिचेव दीसए विरलं । खयवरिसे मीणगओ न विणासइ किंसणीसन्ने ॥ ३४५९ ॥ जो पोढिगाए चमढियहढेण सुदिढे वि गिण्हएऽभिमयं । सो विणएण पत्थइ नरिंद ! तं ता कयत्थो सि ॥ ३४६० ॥ इय दूय भणियसवणा कोवो उम्मूलिओ निवमणम्मि । अग्गी विव निम्महियम्मि अरिणकट्ठम्मि सहस त्ति ॥ ३४६१ ॥ गोरं पि रायभालं भिउडीभंगेण सामलं जायं । वालुयमयपुलिणं पिव जउणा-नइजलपवाहेण ॥ ३४६२ ॥ अरुणत्तं संपत्तं तत्तजुयं धवलमवि महीवइणो । दुद्धोदहिसलिलं पिव नवरविकरजालसंवलियं ॥ ३४६३ ॥ जंपइ रे दूय ! तुम मुहुरं भणिऊण तिव्वमवि भणसि रे ! । गुडमिस्सियनायरओसहस्स आसायमणुहरसि ॥ ३४६४ ॥ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ जई दिंतो तुह पहुणो तणयं इण्हि तहा वि नो दाहं । तब्भुयबलावलेवावलोयणे कोउयं जं मे ॥ ३४६५ || दूत्तं नियगिहठिआण उल्लसइ कोउउक्कलिया । मिलियाण पुण रणे से नज्जइ कोउयभयविसेसो || ३४६६ | आजम्मं पि न जाओ समरारंभो वि केणइ समं से । जेणट्ठाणट्ठियस्स वि उवायणाई निवा दिति ॥ ३४६७ ॥ रायाऽऽह - भीरुयाणं नमिराण य भण कुओ रणारंभो । जमुवायणं तमहमवि दाहं से खग्गाहिघाएहिं ॥ ३४६८ ॥ दूएणुत्तं नरवर ! जह जीहा वहइ कायरस्सावि । तह जइ हत्था वि हु ता जयस्सिरी तस्स करकमले ॥ ३४६९ || रायाह न मह जीहा जंपइ भणइ जो न सो कुणइ । हत्थे उ निरूवेज्जमुवेहमाणे समरसंरंभे ॥ ३४७० ।। ता नियनाहं घेत्तुं समेहिं समरे ममावि दूओ तं । इय भणिऊण सम्माणिय विसज्जए तं गओ सो वि ॥ ३४७१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तो गंतुं नियनयरं दूएण समित्तु नियनरिंदस्स । कहिओ तव्वुत्तंतो तं सोउं भणइ सो रुट्ठो ॥ ३४७२ ॥ जं सो सामेण वि मग्गिओ न मे वियरए नियं कन्नं । मन्नामि होउकामा तं सा मह सह पिउसिरीए ॥ ३४७३ ॥ एगे दाऊण नियस्सिरिं पि समुवज्जयंति सोजन्नं । अन्ने परकीएण वि न तं सुया जेण परकीया ॥ ३४७४ || ता ताडेह रणढक्कं पठणह करि तुरय-रह - भडव्वूहं । मंडलिअ - मंति- सामंत-तंतवालाय संचलह ॥ ३४७५ ।। इय ते पत्ताएसा सिरे धरेउं निवस्स तं आणं । सन्नहिउं पारद्धा निउत्तनियनियनिओएहिं ॥ ३४७६ ।। हाओ कयबलिकम्मो पणमिय नियगोत्तदेवयगुरूणं । सुहदिवसे संचलिओ नरेसरो समरकरणाय || ३४७७ ॥ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७३ रयणावलिकहा नहपत्तकुंभकूडा कंचणवित्थरिय गुरुगुडागुडिया । करिणो कंचणगिरिणो व्व जंगमा जंति सह रन्ना ॥ ३४७८ ॥ कलहोयपक्खराओ तुरंगराईओ जंति बहुयाओ ।। खीरोयसंभवाओ कल्लोलपरंपराउ व्व ॥ ३४७९ ॥ रणझणिरकणयकिंकिणिमुहलियदिसिमंडलाओ पसरति । सेणीओ संदणाणं रयणविमाणावलीउ व्व ॥ ३४८० ॥ मणिकणयजडियसन्नाहदित्तिसंताणदुरवलोयंगा । हरिवरतेयभरा सूरा सूर व्व संचलिया ॥ ३४८१ ॥ दिसि दिसि मिलंतनियनियसेणासंभारभरियभूवीढा । नरनाहवाहिणीए नरिंदसामंत-मंडलिया ॥ ३४८२ ॥ धवलायवत्तसिक्किरिअलंबधयचुंबियंबरविभागा । घलिया नरेसरसेणा नहेण घणमंडलालि व्व ॥ ३४८३ ॥ विज्जाहरचारणगणउच्चारियजयजयारवसमूहा । वज्जंतविजयढक्कानीसाणनिनायरुद्धनहा ॥ ३४८४ ॥ नाउं विज्जप्पहखेयरेसरं समरकरणनिक्खंतं । नीहरिओ सूरप्पहराया वि हु सम्मुहो तस्स ॥ ३४८५ ॥ मत्ता करिणो तुंगा तुरंगमा साऊहा रहब्बूहा । तेण समं संचलिया सुहडा वि हु समरपत्तजया ॥ ३४८६ ॥ नियनियसेणीसीमासु तेहिं दोहिं वि निवेसिया सेणा । पत्ता य दो वि सबला रणंगणे रइयसन्नाहा ॥ ३४८७ ।। करि-हरि-रहट्ठिएहिं करि-हरि-रहरयणसंठिया रुद्धा । रणनिव्वडियभडेहिं सत्थकरेहिं तु समसत्था ॥ ३४८८ ॥ पावंतिज्जति लक्खं सुमहत्थगुणुल्लसंतसारसरा । वगुणा पावंति वराडियं पि नो कयपइन्ना वि ॥ ३४८९ ॥ सेणा दुगे वि पसरंति मग्गणा सुमुह दुम्मुहा दो वि । रगे पत्तमहत्था अवरं अत्थेहिं पमक्का ॥ ३४९० ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ सिरिअणंतजिणचरियं पढमा तो संजणयंति तदियरा मम्मवेहिणो दूरं । पढमा गुणेहिं सहिया बीया पुण उज्झिया तेहिं ॥ ३४९१ ॥ (जुयलं) सत्थेहिं वियारिता परलोयं साहयंति जे धीरा ।। उज्जमपरा पसंता मुणिणो व्व रणंगणे सुहडा ॥ ३४९२ ॥ जुझंतसुहडउडाण कंडभरमंडवेण अंतरिया । कोऊहलमिलिया वि हु अमरा न नियंति समरभरं ॥ ३४९३ ॥ असिघायुच्छलियपडंतसुहडसीसेण वेरिणो तासा ।। दंतेहिं तोडिया किं मरणे वि रिऊमुयइ रोसा ॥ ३४९४ ॥ रिउभग्गधवलछत्तं विसमट्ठियं उवरिसामछत्तस्स । राहुग्गसिज्जमाणं पिच्छंति ससिं व भूमि ठिया ॥ ३४९५ ॥ नहसंठियसरनिन्भिन्नगयघडा मुयइ रुहिरधाराओ । जयपलयसंगिणी असिवसंभवा मेहमाल व्व ॥ ३४९६ ॥ अन्नोन्नलुयसिराई समरंमि भिडंति भडकबंधाई । कलहंति य कोवेणं परोप्परं ताण सीसाइं ॥ ३४९७ ॥ खग्गाहयगयकुंभुच्छलंतमुत्ताहलाई गयणयला । असिधारछिन्ननक्खत्तमालमणिणो व्व निवडंति ॥ ३४९८ ॥ निवडंतरायहंसं दीसइ वित्थरियभूरिकीलालं । समरंगणं सरं पिव सिलीमुहप्पत्तसिरकमलं ॥ ३४९९ ॥ एवंविहवइयरसंकुलम्मि समरम्मि गुरुगयारूढा । मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियरवितावा ॥ ३५०० ॥ सव्वुत्तमरयणाभरकिरणपब्भारपूरियदियंता । तरुणरमणीकरुल्लसिरचारुचमरोहसोहधरा ॥ ३५०१ ॥ बहुबंदिविंदवज्जरियचरियपसरंतभूरिपरिओसा । उत्तमनिययाबद्धं भवणतुलातुलियभुवणभडा ॥ ३५०२ ॥ अवरावरतिव्वभरप्पहरणगणग्गहेण वग्गकरकमला । वज्जंतसमरभेरीभेरवभकारभरियनहा ॥ ३५०३ ॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७५ रयणावलिकहा पत्ता नहंगणुच्छंगरइयरणरंगगब्भदेसम्मि । सूरप्पहविज्जुप्पहरायाणो दो वि भिडियाय ॥ ३५०४ ॥ (कुलयं) अन्नोन्नं संकता दुव्वयणावसरदिस्सदंतेसु । वयणेसु पविट्ठा छिंदिउं व दुब्भासियं जीहं ॥ ३५०५ ॥ चूडामणिपडिबिंबियउद्धसरीरा दुवे वि दीसंति ।। साहंकारं अन्नोन्नमत्थयट्ठवियपाय व्व ॥ ३५०६ ॥ दुन्नि वि गुरुगयकोट्ठइवइसाहठाणठवियनिययंगा । करकयदढकोदंडा मुंचंति परोप्परं बाणा ॥ ३५०७ ॥ तो सूरप्पहो नियएण बाणजालेण खलिय तस्स सरे । समकालं चियं मयणो व्व मुग्गइ दुव्वारपंचसरो ॥ ३५०८ ॥ तम्मज्झाओ एगेण गुरुखुरुप्पेण पाडियं छत्तं । . रिउरज्जं व पवित्तं वरवंसं निम्मलगुणं व ॥ ३५०९ ॥ बीयसरेणं वाडित्तु पाडिया मउडसंठिया मणिणो । थूलंसुबिंदुणो विव विज्जुप्पहरायलच्छीण ॥ ३५१० ॥ तईएण पुणो सह कोट्ठएण परिकीलिओ महासत्तो । मा मह भएण नासउ झडत्ति एसो त्ति कलिउं व ॥ ३५११ ॥ तयणु तुरीएणं अद्धचंदबाणेण कयलिया करिणो । रिउरन्नो वंसग्गाओ पडिया विमलकित्ति व्व ॥ ३५१२ ॥ पंचमबाणेण पुणो निवाडिओ झत्ति तु गयराओ । गयराओ होउणं मन्नइ जह रिउनिवो सेवं ॥ ३५१३ ॥ तो विज्जुप्पहराया सूरप्पहगयवरे रइयकरणो । चडिऊण वरुंडिऊणं जामियछुरियाए तं हणइ ॥ ३५१४ ॥ ता कोट्ठयाओ नीहरिय पायघाएण पाडिउं तं से । सूररहेण वि गहिया सत्थरिया तस्स हणणत्थं ॥ ३५१५ ॥ ता आमोडिय हत्थं निवाडिया विज्जुप्पहनरिंदेण । तो सो धरिओ केसेसु तेण ईयरो वि ईयरेण ॥ ३५१६ ॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ सूरपहेणुक्खित्तो बीयकरेणक्कमोऽरिनरवइणो । तेण वि तस्स वि सो तो करिणो ते जाव निवडंति ।। ३५१७ ।। सिरिअणंतजिणचरियं तो दुन्नि वि संगहिया खिविऊण करं करेणुराएण । एत्थंतरम्मि खयरामरेहिं हाहारवो विहिओ ।। ३५९८ ॥ तो सदएण व खित्ता उल्लालिय तेण ते गयणगब्भे । विच्छुट्टेउं दुन्नि वि दडत्ति पडिया महीवट्ठे ॥ ३५९९ ॥ तो सूरप्पहराया जा छुरियं गहिय हणइ तं झति । तो सेयपहुप्पंतो नासेउं सो गओ खयसे ॥ ३५२० ।। तं नट्ठे दट्ठूणं तुट्ठेहिं नहट्ठिएहिं सहस त्ति । सूरप्पहस्स उ सिरे सुरेहिं मुक्का कुसुमवुट्ठी ॥ ३५२१ ॥ नट्ठस्स न पट्ठीए लग्गो विज्जुप्पहस्स सूरपहो । पुरिसुत्तमा वि न अनयं कुणंति सव्वस्सला वि ॥ ३५२२ ॥ जयलच्छि समुवगूढो चलिओ मणिमयविमाणमारूढो । विहिऊसवे पविट्ठो नियनयरे गरुयरिद्धीए ॥ ३५२३ ॥ निरवज्जं नियरज्जं परिपालंतस्स नहयरनिवस्स । वच्चइ कालो न वरं न वरं पावइ नियसुयाए || ३५२४ ।। निद्दनिसाए न लहइ न भोयणं काउमिच्छइ छुहाए । नियकन्नयावराभवणभावणानलपलित्ततणू ।। ३५२५ ।। जह जह वरं न पावइ तह तह तहलायदुसहदुक्खेण । गुरुरोएण व राया दूरयरं दुब्बलो जाओ ।। ३५२६ ।। मंसलसरला विरला उसिणालयाऽनिल व्व से सासो । दूरं दहंति देहे दूरठियाण विसह जगणं ॥ ३५२७ ।। इय वरचिंताभरपरवसस्स अहियाहिपुव्वहंतस्स । नहयरनिवस्स कालो केत्तियमेत्तो वइक्कंतो ॥ ३५२८ ॥ अज्जं तु गोससमए वि जाव केवलिसयासमुच्चलिओ । एय पुरपरिसरोवर सगयणगब्भंमि संपत्तो ।। ३५२९ ॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा २७७ अवितक्कियाऽऽगएणं ताव जमेणेव वेरिणा इमिणा । दुहिया अदाएण विजयजायरोसेण रुद्घोहं ॥ ३५३० ॥ तप्पायपहरपीडा पडिओ पावेण हणिउमारद्धो । संरक्खिओ तए नरवरिंद ! जो सो अहं एसो || ३५३१ ॥ ता तुह सरिसा पुरिसा विरला लोगोवयारिणो भुवणे । पंचविहे वि हु जोइसचक्के एक्को ससी सुहओ ॥ ३५३२ ॥ ता राय ! तए जं पुच्छियं तयं वेरकारणं कहियं । दिन्ना न सुया जमिमस्स मच्छरी तेणिमो जाओ ॥ ३५३३ ॥ जं पुण वज्जरियमणंतनाणिना जो तुमं हणिज्जतं । रक्खेही जामाऊ होही स तुह त्ति तं मिलियं ॥ ३५३४ ॥ ता निव ! मह वरविसया चिंता नट्ठा झडत्ति तं दट्टुं । पेच्छित्तु नागदमणि भुयंगी किं चिट्ठइ खणं पि ॥ ३५३५ ॥ तुह सरिसो जामाऊ लब्भइ न नरिंद ! मंदपुन्नेहिं । पावति अकयसुकया कयाइ कि अक्खयनिहाणं ॥ ३५३६ ॥ ता राय ! तए संपइ परिणयणप्पउणया विहेयव्वा । सेयाई कज्जाइं निरंतरायाइं दुलहाई ॥ ३५३७ ॥ इय आयन्निय खयरिंदचरियमच्छरियपूरिओ राया । निम्मच्छरो वि धुणिऊण नियसिरं जंपए एवं ॥ ३५३८ ॥ खयराहिरायविन्नायनायमग्गो तमेव नेवन्नो । नट्ठस्स न पिट्ठीए लग्गो जोऽरिस्स सत्तो वि ॥ ३५३९ ॥ बुद्धी वि बंधुरच्चियं जं नियदुहियाहिएक्कहियएण । पुट्ठो अणंतनाणी निउणो किं भुल्लइ कयाइं ॥ ३५४० ॥ जं पुण . भणियं तुब्भेहिं तं वरो मह सुयाए नेवन्नो । तम्मह तव्विसयम्मि गुरुआणा चेव य पमाणं ॥ ३५४१ ॥ विज्जाहराहिवेणं भणियमहं जामि निययनयरम्मि । तुह वीवाहोऽवक्कम्मकज्जाई पि हु करावेमि ॥ ३५४२ ॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ सिरिअणंतजिणचरियं इय भणिय नरवइणा सव्वुत्तमवत्थभूसणगणेण ।। सम्माणिय खयरिंदो विसज्जिओ गुरुसिणेहेण ॥ ३५४३ ।। करवाललयासामं नहमुप्पइउं गए खयरनाहे । गयमारुहिउं पत्तो निवो वि सबलो सपासाए ॥ ३५४४ ॥ रयणावली वि रयणावलि व्व पाउससिरि व्व सुपयासा । हिययहरा संजाया रन्नो आयन्निया वि धुवं ।। ३५४५ ॥ तव्वसचित्तो तग्गयमणोरहो तग्गुणग्गहणपवणो । तइंसणं सुयमई संजाओ तम्मओ व्व निवो || ३५४६ ॥ तव्विसयविविहविसयाहिलासवसखणविलंबिए विरयं । मुंचइ नच्चाविय अंबरंचले मासले सासे ॥ ३५४७ ॥ अंगे भंगो वयणम्मि दीणया माणसम्मि उम्माओ । सूरस्स वि संजायं विचेट्ठियं कायराणं व ॥ ३५४८ ॥ तव्विरहविहुरयाहरियहिययवावारवरवसीहूओ ।। चिंतइ बलिणी अबला वि कायरो हमवि जीए कओ ॥ ३५४९ ॥ सा समहिया विसाओ न सुयं दिळं च मोहइ विसं जं । सुयमित्ताए वि पुणो सम्मोहो तीए मह दिन्नो ॥ ३५५० ॥ निसुया वि मह जीए हरिया सव्वे वि हिययवावारा । सा सच्चविया काही किं पि हु जं तं न याणामि ॥ ३५५१ ॥ अमुगो इत्थीए वसो त्ति सव्वया जो परं हसंतो हं । सो जाओ बालाण वि हसणिज्जो जेणिमं भणियं ॥ ३५५२ ॥ ताव परो वि हसिज्जइ कीरइ लज्जा थिरत्तणं माणो । जाव सयं न पडिज्जइ अत्थाहे पेम्मकूवम्मि ॥ ३५५३ ।। ता लज्जा ता माणो ता इह परलोयचिंतणे बुद्धी । जाव न विवेयजियहरा मयणस्स सरा पुहुप्पंति ॥ ३५५४ ॥ विज्जाहराहियस्स वि जाया न जाणुरत्तस्स । सा पुरिसवेसिणी मह कह भविही भूपइट्ठस्स ॥ ३५५५ ॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७९ रयणावलिकहा अहव इमा का चिंता खयरीपरिणयणविसइणी मज्झ । जम्हा न जुगते वि हु केवलिवयणं विसंवयइ ॥ ३५५६ ॥ नियरज्जलच्छिभवबहुविलसेसु हरिसवसो अहं हुंतो । केणई कम्मे तयाणुरायदुहमागयं मह जं ॥ ३५५७ ॥ पेरिज्जतो पुव्वक्कएहिं कम्मेहि केहिं वि वराओ । सुयमच्छंतो दुल्लहजणाणुराए जणो पडइ ॥ ३५५८ ॥ अणुराइणीओ तरुणीओ रूववंतीओ संति कंताओ । निसुयाए वि तीए जहा न मोहिओ हं तह इमाहिं ॥ ३५५९ ॥ एयमवज्झाणज्झीणदेहजट्ठिस्स तस्स कट्टेण । कालोक्कमइ विवाहकज्जमविचिंतयंतस्स ॥ ३५६० ॥ इअ वरम्मि वासरम्मि रहनेउरचक्कवालनयराओ । गयणेण विमाण-करेणु-तुरय-रह-सुहडबलकलिओ ॥ ३५६१ ॥ सूरप्पहखेयरपहुपुत्तो रयणप्पहाभिहो पत्तो । ओयरइ विमाणाओ नहयरनिवविहियअणुगमणो ॥ ३५६२ ॥ नहपविसणसत्तो वि हु पडिहारपवेसिओ सहं विसइ । सुसमत्था वि हु गरूआ नरिंदनीइं न उज्झंति ॥ ३५६३ ॥ पणमई य रयणकुट्टिममिलंतचूडामणी निवपयाण । विणओ कुलग्गयाणं पयई य वि होई जेणुत्तं ॥ ३५६४ ॥ को कुवलयाण गंधं करेइ मुहुरत्तणं च उच्छृणं । वरहत्थीण य लीलं विणयं च कुलप्पसूयाणं ॥ ३५६५ ॥ अन्नोनं आलिंगिय परिपुच्छियकुसलवत्तपत्तसुहा । राजकुमारा जाया, किमिट्ठगोट्ठी असुहहेऊ ? || ३५६६ ॥ तम्मि निविठे अन्ने वि निवइणो निवन्ना तयाणाए । रयणासणेसु निवसंति हुंति कुलजा न सच्छंदा ॥ ३५६७ ॥ पुणरवि पणामपुव्वं विन्नत्तं नहयरिंदतणएण । देव ! तया तुम्ह सयासगओ मह पिया सपुरे ॥ ३५६८ ॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० सिरिअणंतजिणचरियं गच्छंतेण नहेण सच्चविओ सच्चसेहरो साहू । उत्तुंगसिंगनामगइंदगिरिंदम्मि चउनाणी ॥ ३५६९ ॥ तं दटुं मणमज्झुम्मीलियगुरुयप्पमाणभत्तिभरो । आणंदसंदिरच्छो पणओ तक्कमसहस्सदलं ॥ ३५७० ॥ वियरइ सो वि हु संसारसायरुत्तारणेक्कतरकंडं । सद्धम्मलाहआसीवायं पणयस्स तायस्स ॥ ३५७१ ॥ मुणिवयणनिहियनयणो जोडियपाणी तयग्गओ होउं ।। उवविसिऊण य भत्तीए इय तयं थोउमारद्धो ॥ ३५७२ ॥ पहु ! अन्न च्चिय ते जे सया वि तुह पायपायवच्छायं । हरिण व्व समासेवंति नासए ताण भवतावो ॥ ३५७३ ॥ पुणरवि पणमिय पुच्छइ पहु ! तुम्म विमलनाणनयणाण । मग्गंमि समेइ समग्गमवि अओ किं पि पुच्छामि ॥ ३५७४ ॥ परिपुच्छसु त्ति मुणिणा जंपियम्मि तारण पुच्छियं एयं । किं मह सुयाए जाओ विद्देसो पुरिसविसयम्मि ॥ ३५७५ ॥ भणइ मुणी सव्वाण वि सत्ताण सुहासुहाई कम्माइं । पुव्वभवसंभवाइं फलाई पायं पयच्छंति ॥ ३५७६ ॥ एयाए विद्देसो पुरिसं पइ पुव्वभवभवो जाओ । जह संजाओ मणिमंजरीए नरनाह कन्नाए ॥ ३५७७ ॥ ताणुत्तं भयवं ! का सा मणिमंजरी नरिंदसुया । जा पुरिसवेसिणी तो भणइ मुणी राय ! निसुणेसु ॥ ३५७८ ॥ सारहरं पि अचोरं अजडासयसगयं बहुसरं पि । पुरमत्थि विउलसालं विसालमवि मणिपुरं नाम ॥ ३५७९ ॥ तं परिपालइ मालइमालामलजसभरावरियभुवणो । मणिसेहरो नरिंदो इंदो व्व पुहुत्तरूवेहिं ॥ ३५८० ॥ तिव्वो जस्स पयावो रिउणो निद्दहइ जं न तं चित्तं । ससिसुहओ वि हु निद्दहइ तेजसो जं तमच्छरियं ॥ ३५८१ ॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका निस्सेसपणइणीजणपहुत्तमुव्वहइ तस्स सियसीला । लीलायमाणदेहा मणिप्पहा नामिया देवी ॥ ३५८२ ॥ सव्वुत्तमकलकंठी वि सुहयसिहिणी वि रायहंसी वि । विलसंतदुपक्खा वि हु जं न विरूवा तमच्छरियं ।। ३५८३ ॥ तीए सह भूरिभोयउवभोयसत्तस्स तस्स भूवइणो । लोगंतियदेवस्स व सुहेण कालो वइक्कमइ ॥ ३५८४ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि निसावसाणम्मि नरवई नियs । अवसोउं अस्संतो सिविणयमयं समप्पयई । ३५८५ ॥ तहाहि जत्थ रएण वि संता तिरियनरामेच्छफलिहसालम्मि | अभिडिय झड त्ति पडंति तं पुरं पेच्छए परमं तप्परिसरगहिमहिलाचंदणरसरईयतिलयसंकासं । अवलोयइ चित्तसरं सियायवत्तं व सेसस्स ।। ३५८७ ।। पायालभवणजद्दरसुंदरचंदोदयउ व्व जं सहइ । पणवन्नपउमभमरउलसउणमंडणविहियसोहं ॥ ३५८८ ॥ जं निसिससिकंतिसियं पडिबिंबियचंदमंडलं सहइ । खीरोयहि व्व सुरमहणमच्छरारईय अवरससी ॥ ३५८९ ॥ तम्मझे अइदीहं थूलं पाहाणखंभमिक्खेइ । घग्घेउमगाहजलं विहिणा दंडं व निक्खित्तं ।। ३५९० ॥ तस्सग्गे रविमणिगणकिरणावलिकलियसयलगयणयलं । आहारदिन्नथंभं रविरहमिव नियइ मणिभवणं ।। ३५९१ ।। ३५८६ ॥ कुसुमोवहारपरिभमिरभमरभरभूरिरोलमुहलदिसं । अनिलुल्लसिरद्धयरणज्झणंतमणिकिंकिणीजालं ॥ ३५९२ ॥ कणयकलसोहसोहं वज्जावलिपुरियकिरणदुनिरिक्खं । माणिक्कमत्तवारणयसेणिरमणीयचउपासं ॥ ३५९३ ॥ २८१ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ सिरिअणंतजिणचरियं . तम्मि मणिमत्तवारणविइन्नरयणासणे समुवावी । सच्चवइ जच्चकंचणवन्नं नवजोव्वणं कन्नं ॥ ३५९४ ॥ जीए सरलच्छिकंतिच्छडाओ परिनिवडिरीओ सरसलिले । जेण सुकयाओ निरब्भामयवुट्ठीओ व्व विलसंति ॥ ३५९५ ॥ वीणावायणचलकरवसदरपरहरियथूलथणजुयला । नज्जइ जा जलकणयद्धसीयानिलजायकंपं व्व ॥ ३५९६ ॥ करयलकयकोणाहयतंतीवसकणयकंकणसणेण । गायंती जा वियरइ तालट्ठाणं च सयमेव ॥ ३५९७ ॥ अनिलुल्लसंतसियउत्तरीयमुव्वहइ जा नियंसवियं । नियरूवविणिज्जियतिजयकामिणीजयपडाय व्व ॥ ३५९८ ॥ तं अच्चब्भयरूवं वरलायन्नं अभयसोहागं । दठूण महीनाहो सिविणे वि विचिंतिउं लग्गो ॥ ३५९९ ॥ किमिमा सरजलदेवी ? किं वा लच्छी ? उयाहु रइरमणी ? । अहव विमाणारूढा सुरंगणा ? का वि वीसमइ ॥ ३६०० ॥ धवलुज्जलपम्हलसरलतलनियनयणपेच्छिएहिं इमा । गयणारविंदवणमिव समुक्खमुप्पायए बाला ॥ ३६०१ ।। मन्ने केणइ ईसालुएण मुक्का अगाहजलदुग्गे । रक्खिउमतरतेणं कहऽन्नहा वसइ इह एसा ॥ ३६०२ ॥ किं मज्झ-जीविएणं ? किं वा रिद्धीए ? किं पहुत्तेण ? । जं एसा न रमिज्जइ मए समुल्लसियमयणेण ॥ ३६०३ ॥ इय कामुक्कलियाकलियमाणसो विज्जुखित्तकरणेण । खयरो व्व विमाणम्मि भवणे सो तम्मि आरूढो || ३६०४ ॥ महुरालावपुरस्सरमावज्जियपरिणिउं व रमिया सा । सिविणे वि हु विसयरई नावसरइ नूण कामीणं ॥ ३६०५ ॥ पासट्ठियाए वि मए अवरमिमो कीलइ त्ति कोवेण । ईसालुय व्व निद्दा रन्नो तव्वेलमवसरिया ॥ ३६०६ ॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका जा पेच्छइ ता न पुरं न सरं थंभं पि नो न मणिभवणं । न तरुणरमणिं पहु किंतु अप्पयं केवलं नियइ ।। ३६०७ ।। चिंतइ य अहो अद्दिट्ठपुव्वमसुयं च एयमच्छरियं । जं सिविणयम्मि कमणीयकामिणीकीलणं जायं ॥ ३६०८ ॥ नो मह धाउखोहो न मणोभंती न इंदजालं पि । किंतु इमं मह होही असुहाय सुहाय वा दूरं ॥ ३६०९ ॥ जाणामि न तन्नयरस्स नाममवि दंसणं कुतो तीए । असरिसमसरीरसिरी अहरीकयकामकंताए । ३६१० ॥ तम्मिलणसमुस्सुयमाणसो वि अन्नायतप्पुरपहो हं । ठाउं कहं तरिस्सं तव्विरहज्जरविहुरियंगो ॥ ३६११ ॥ इय चिंततो राया जाओ सव्वप्पणा परायत्तो । सुहलेसं पि न पावइ पक्खित्तो मच्छउ व्व थले || ३६१२ ॥ सयलोसहिईसेण वि न मए निवदुहलवो वि अवहरिओ । इय निव्वेया परिलज्जिरो व्व चंदो गओ अत्थं || ३६१३ ॥ अइविसमदसावडियं निवमुवयरिउं अपारयंति व्व । झीणा रयणी जणणि व्व गलिरतारंसुसंदोहा ।। ३६१४ ।। सूरस्स वि कायरया करो यस्स त्ति तन्निवेडं च । अवसारियरिउ तिमिरो सूरो उदयद्दिमारुढो । ३६१५ ॥ राया सिविणयसच्चवियकामिणीभोयभूयहियहियओ । वेयल्लसमुल्लासा अपहू किच्चेसु संजाओ ।। ३६१६ ।। संतावसमणकारं ण कयपंकयसत्थरे पसुत्तस्स । परियत्तिरस्स तणुतावसुक्कदल - मम्मरो होइ ॥ ३६१७ ॥ सरला विरला सासा पसरंति संनिहिगतावया तस्स । हिययज्जलंतमयणानलजालालोयतत्त व्व ॥ ३६१८ ॥ निद्दानासं लज्जाविवज्जणं भोयणम्मि वि विद्देसं । दट्ठूण नयवियक्खणमंती रायस्स चिंतेइ ॥ ३६१९ ॥ २८३ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૮૪ सिरिअणंतजिणचरियं अवितक्कियं किमेयं जायमकम्हा वि सामिणो असुहं । अच्चंतदुस्सहं ता किं संभाविज्जइ इहत्थे ॥ ३६२० ॥ भूयाभिभवो गहसंगहो व्व उम्मत्तकरणमहवा वि । किं वा साइणिदोसो इय वियलत्तं निवस्स जओ ॥ ३६२१ ॥ जइ कह वि देव्वदुविल्लसिएण अच्चाहियं हवइ पहुणो । ता नूण निरावराहा पया वराई कहं होही ॥ ३६२२ ॥ सिविणयसच्चविएण वि हुँतो सत्तूण जेण तासो ते । सुरू व्व भीरूणो वि हु तद्देसमुवद्दविस्संति ॥ ३६१३ ॥ ता मंत-जंत-तंतोवयारकरणेण सामिणो देहं ।। निरवायं काहामी न पमाओ जुज्जए एत्थ ॥ ३६२४ ॥ इय चिंतिऊण मंता पउंजिया दंसियाई जंताई । उग्घोसियाओ संतीओ पूईया देवयाओ य ॥ ३६२५ ॥ जाणइ जणोवइहें अवरं पि हु सव्वमवि समायरियं । नवरं लवमेत्तो वि हु न गुणो जाओ नरिंदस्स ॥ ३६२६ ॥ दोसो पुणो पवद्धइ पहसइ गायइ पणच्चईय जं सो । वियरइ करतालाओ पेच्छइ य बद्धलक्खं पि ॥ ३६२७ ॥ तो मंतिणा विचिंतियमिमस्स न समत्थि भूयदोसाइं । संभाविज्जइ कामग्गहो जओ सो बली जेण ॥ ३६२८ ॥ सव्वगहाणं पभवो महागहो सव्वदोसपायड्ढी । कामग्गहो दुरप्पा जेणभिभूयं जगं सयलं ॥ ३६२९ ॥ तथा - विकलयति कलाकुसलं हसति कविं पंडितं विडंबयति । अधरयति धीरपुरुषं क्षणेन मकरध्वजो देवः ॥ ३६३० ॥ उद्दामजोव्वणाए कीय वि नवनेहनिद्धनयणाए । बालाए हिययं हरियं जइ घडइ ता एयं ॥ ३६३१ ॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा ता पइरिक्के ठाउं नाउं पहुणो सयासओ एयं । नियबुद्धिपगरिसेणं काहं सव्वं पि भव्वमहं ।। ३६३२ || इय चिंतिऊण मंती पत्तो रायंऽतिए कएगंतो । विणयप्पणयपुरस्सरमाउच्छइ मंजुवयणो तं ॥ ३६३३ ॥ पहु ! हियकरो अहं तुह गूढेसु वि सव्वरज्जकज्जेस्सु । मंती मित्तो य न ता तमत्थि जं मह अकहणिज्जं ॥ ३६३४ ॥ ता सामिसाल ! का नाम कामिणीकुंभिकुंभसमसिहिणी जीए तमिममवत्थं नीओ अइवीरचित्तो वि ॥ ३६३५ ॥ लच्छीहरवच्छाओ लच्छिपि सई पि सक्कअंकाओ । गोरिं पि हरद्धंगाओ आणिउं तुह समप्पेमि ॥ ३६३६ ॥ ता तं साहसु सिग्घं पि तुह जहा पायपउमसरहंसिं । नियमेण करेमि न जइ ता जलणे चेव पविसामि ॥ ३६३७ ॥ समरंगणघणमग्गणनिहयाहियवारवारणगणस्स । अबला विसए पहुणो किन्न कलंका य कायरया ।। ३६३८ ॥ इस सोऊण पगब्भं मंतिपउत्तं निवो वि ईसीति । होऊण दढो मंतिस्स साहए सिविणवत्तंतं ॥ ३६३९ तं सोऊमाह मंती पहु ! एवं दुग्घडं पि संघडिही । जेण कयाइ वि सव्वाई हुंति सिविणाई सुकण ॥ ३६४० ॥ किंतु न तन्नयरस्स वि नज्जइ नामं पि कुलस्स वि न तीए । अहिनाणं पुण पयडं जं सरजलखंभधवलहरं ।। ३६४१ ॥ ता देव ! दढो होउं चिंतसु निरवज्जरज्जकज्जाई । एयत्थम्मि जइस्सं तह जह सा तुह पिया होही ॥ ३६४२ ॥ कारिय अणिवारियसत्ते पत्तदेसंतरागए पुरिसे । पुच्छिस्समहिनाणं सरजलखंभग्गगिहरूवं ॥ ३६४३ ॥ इय जुत्तिजुत्तमंतिप्पउत्तमायन्निरं महीनाहो । किच्छेण धरइ पाणे तम्मिलणासाए जेणुत्तं ॥ ३६४४ ॥ २८५ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૬ सिरिअणंतजिणचरियं दूरयरदेसपरिसंचियस्स पियसंगमं महंतस्स । आसाबंधो च्चिय माणुसस्स एरिसकए जीयं ॥ ३६४५ ॥ तं मंतिमइप्पयरिसपसंसणं काउमवणिनाहेण । विमणेण वि पारद्धाई चिंतिउं रज्जकज्जाइं ॥ ३६४६ ॥ काराविठं अवारियसत्ते मंती वि दावए दाणं ।। पुच्छिज्जति य पहिया सरजलखंभग्गघरवत्तं ॥ ३६४७ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि दूरमहीकमणखीणसयलतणुं । वेयज्झणप्पसन्नं समागयं दियवराण दुगं ॥ ३६४८ ॥ भोयणकरणानंतरमवणीवइसिविणसरिसकहणा तं । नीयं सिग्धं पि हु सत्तमंतिणा रायपासम्मि ॥ ३६४९ ॥ निवआसीवयणपयाणपुव्वमुवविसिय विट्ठरे जिट्ठो । विन्नविडं पारद्धो निवपसिणाणंतरं विप्पो ॥ ३६५० ॥ पहु ! नीसेसनरेसरचूडामणिचक्कचुंबिपयपउम ! । आयन्नसु एक्कमणो तं चिय जं पुच्छिउं तुमए ॥ ३६५१ ॥ आराम-पवा-वावी-सर-सरिय-विहारसंकुलो अत्थि । कइलासो व्व महेसरकयवासो कुंतलो देसो || ३६५२ ॥ सरयसरं व विसालयमुल्लोलगयप्पयासियप्पमयं । तद्देसरायहाणी कुंतलनिलयं पुरं अस्थि ॥ ३६५३ ॥ पमयासिओ उभयहा दुहा पवित्तो तहा तिहा सुहओ । कुंतलनाहो नामेण नरवई पालइ पुरं तं ॥ ३६५४ ॥ तस्सत्थि सयलसुद्धंतसामिणी हंसगामिणी कंता । कुंतलसिरि व्व कुंतलसिरि तिसु मणोहसोहसिया ॥ ३६५५ ॥ तेसिं विलाससुहरसपसत्तचित्ताण वच्चए कालो । अमराण व पुव्वभवुब्भवसुकयसमस्सियाण सया ॥ ३६५६ ॥ तेसिं समत्थि कन्ना सुवन्नवन्ना मणुन्नलायन्ना । मणिमंजिरि त्ति नामा रामारयणं गुणावासो ॥ ३६५७ ॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ रयणावलिकहा नववयविरायमाणा अमाणमाणिक्कमयकया भरणा । कलिरी कलाकलावं अइवाहइ बालिया कालं ॥ ३६५८ ॥ केणावि कारणेणं सरजलखंभयमंदिरे वसइ । एगागिणी न चेव य अम्हे तं सामि ! जाणामो || ३६५९ ॥ दूरे नरसंचारो पायं गच्छइ न तत्थ महिला वि । धम्मकिरियत्थमेगा तत्थ पुण तवस्सिणी चडइ ॥ ३६६० ॥ तं सोउं तुट्टेणं दोन्नि वि सम्माणिया महीवइणा । पाहुणया गोरव्वा इयरे वि न किं पियाकहया ॥ ३६६१ ॥ विप्पे विसज्जिऊणं मंतइ राया समं अमच्चेण ।। गुत्तं कज्जं काउं किं मंतइ कोइ जणमज्झे ॥ ३६६२ ।। भणइ निवो मंति । अहं गच्छिस्सं तत्थ तं पि आगच्छ । सिज्झइ दुसज्झं पि हु सुसहायाणं जओ भणियं ॥ ३६६३ ॥ असहायाण न सिद्धी सुठु वि माणुन्नयाण पुरिसाण । अग्गी वि तेयरासी पवणेण विणा न पज्जलइ ॥ ३६६४ ॥ साहिस्समहं पोरुससज्जं साहेज्ज बुद्धिसज्झं तं ।। अवरस्स विस्ससिज्झइ न जओ तं नेमि तेणाहं ॥ ३६६५ ॥ इय मंतिऊण राया मेलिय सामंत-मंडलेसाई । भणइ महालच्छीमंतमहमहो साहइस्सामि ॥ ३६६६ ॥ तम्मि उत्तरसाहयसाहेज्जं मह करिस्सइ अमच्चो । ता तुब्भेहिं न कज्जा अवसेरी मह अदंसणओ || ३६६७ ॥ रज्जसिरीकज्जाइं चिंतिस्सइ मह महन्नवो मंती । खलिही जो एयाणं तमहं चिय सिक्खविस्सामि ॥ ३६६८ ॥ इय भणिय जणसमक्खं मंतिसुयं ठविय रज्जकज्जेसु । छन्नो निसीहसंमए सामच्चो निग्गओ राया ॥ ३६६९ ॥ दो वि कयवंठवेसा गोदुद्धनिबद्धसुद्धमिउकेसा । धणुतूणीरविहत्था विगयगरुया जंति मग्गम्मि || ३६७० ॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ सिरिअणंतजिणचरियं वामस्सरतारगइस्सा मासंसियसरीरकुसलसुहा । दाहिणदिसि दिन्नसरतित्तिरसाहियरमणिलाहा ॥ ३६७१ ॥ गामागर-गिरि-सरिया-रन्नाइन्नं महिं समक्कमिउं । अणवरयपयाणेहिं कुंतलतिलयं पुरं पत्ता ॥ ३६७२ ॥ तं नयरपरिसरम्मिं पेच्छंति सरं अदिट्ठपज्जंतं । सुरनिम्महणभएणं नासियपत्तं जलनिहिं वा ॥ ३६७३ ॥ ठाणे ठाणे दीसंति जत्थ डिंडीरपिंडपडलाइं । सरयब्भाई व अइउच्चखंभअभिडणपडियाइं ॥ ३६७४ ॥ तडअभिडंतकल्लोलथूलउच्छलियसलिलबिंदूहिं । नरवइ उवायणम्मि जं वियरइ मोत्तियाइं व ॥ ३६७५ ॥ उल्लसियपुंडरीयं परिविलसिररायहंसकयसेवं । जं सहइ सारसहियं सकमलकोसं निवकुलं व ॥ ३६७६ ॥ तम्मज्झे अवलोयंतिक्खंभभवणट्ठियं तयं तरुणिं । कित्तित्थंभनिवेसियपरिविलसिरकित्तिपडिमं व ॥ ३६७७ ॥ जीए अबद्धलक्खावलोयणे नयणकंतिवित्थारं । ससिजोण्हपाणलोला चुंबति चिरं चउरवया ॥ ३६७८ ॥ जा नियकरयलकयकुसुमकुडयालग्गभमरमंडलयं । भद्दक्खमालियं पिव धरइ करे मंतमिव जविओ ॥ ३६७९ ॥ सव्वंगसोणरयणाभरणपहापडलपाडलियगयणा । कंकेल्लिवणावास व्व जा थिरा रइयसंझ व्व ॥ ३६८० ॥ अच्चंतअगाहसरोजलम्मि पडिबिंबमागया सहइ ।। नेही मा कोइ ममिति पवेसिउं तत्थ लुक्कं व ॥ ३६८१ ॥ तं दठुमाह मंती जह दिळं सामिणा सिविणयम्मि । तह सव्वं चिय मिलियं सिविणे वि न उत्तमा अलिया ॥ ३६८२ ॥ ता निच्छएण सच्चिय खंभग्गठिया इमा पिया तुज्झ । परिणयणं पि हु भविही जायं जह दंसणमिमीए ॥ ३६८३ ॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८९ रयणावलिकहा एवं महल्लकंकेल्लितलट्ठिओ जाव चिट्ठए राया । सचिवाओ सुणंतो कुमरिपेच्छणुत्ताणियच्छिजुओ ॥ ३६८४ ।। एत्थंतरम्मि परिपक्ककलममंजरिकडारजडमउडा ।। होमत्थं पज्जलिरं जलणं व सिरेण धरमाणी ॥ ३६८५ ॥ अच्छतरगेरुयारसरंगपिसंगंबरावरियदेहा । गयबिंदुसोणपरिहियभुज्जडुमवक्कलजुय व्व ॥ ३६८६ ॥ भूइभरूदूलियधवलविग्गहा चंदणुज्जल व्व तहिं ।। पूओवगरणहत्था संपत्ता तावसी एगा ॥ ३६८७ ॥ (कुलयं) नरनाहअमच्चाणं परिपेच्छंताण जलगयतलेण । सुसिरक्खंभेण तयग्गमंदिरे सा समारूढा ॥ ३६८८ ॥ तत्थारूढं तं पेच्छिऊण मंती नरेसरं भणइ । पहु ! तावसी इमा सा धम्मं जा कीरए कुमरिं ॥ ३६८९ ॥ ता एत्तो उत्तिन्नाए वयमिमाए समं पि गच्छामो । एयसयासा कुमरिस्सरूवमम्हे मुणिस्सामो ॥ ३६९० ॥ एवं ति निवुत्तम्मि तत्थ ठिया ताव तावसी जाव । सट्ठाणे संचलिया तो निवमंतीहिं पणया सा ॥ ३६९१ ॥ नियठाणगयाए तीए पुच्छिया वच्छया ! कुओ तुब्भे । इह पत्तति तओ ते पणामपुव्वं पयंपंति ॥ ३६९२ ॥ भयवइ ! साहिस्सामो सव्वं पि हु तुम्ह किं तु उस्सूरं । संझावसरे पुणरवि तुम्हाण कमे नमिस्सामो ॥ ३६९३ ॥ इय जंपिय नयरब्भंतरम्मि कुल्लूरियाऽऽवणे भुत्ता । दुत्ति वि संझासमए तवस्सिणीठाणमणुपत्ता ॥ ३६९४ ॥ पणमणपुव्वं दाऊण दाणमावज्जियं मणं तीए । दूरं मणुया, देवा वि नूण दाणेण वसमिति ॥ ३६९५ ॥ तीउत्तं वच्छा ! मज्झ कहह दुस्सज्झमवि नियं कज्जं । साहेमि जहा सव्वं पि मंतजंताइजुत्तीए ॥ ३६९६ ॥ Jain Edocation International Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० तो मंतिणा पउत्तं चिट्ठइ किं खंभभवणगब्भम्मि । तीयुत्तं कुंतलनाहरायकन्ना वसई एत्थ || ३६९७ ॥ किं कारणं ति मंतिप्पयंपिए भणइ सा निसामेसु । संजाओ एयाए विद्देसो पुरिसविसयम्मि ॥ ३६९८ । उविज्जइ अयसेण व नामेण वि सा सुएण पुरिसस्स । पुरिसं चित्तालिहियं चयइ दूरेण सप्पं व ॥ ३६९९ ॥ पिसुणेण व दूमिज्जा दिट्ठेणं सिविणए वि पुरिसेण । दवजालोलि व्व वणं तावइ तं पुरिसचिंता वि ।। ३७०० ॥ किं बहुणा तद्दिट्ठी उज्झइ जलणं पाविडं पुरिसं । न सहइ सहीयणस्स वि सा पुरिसपसंसणपरस्स ॥ ३७०१ ॥ जणय - जणणी-सहीहिं पयंपियाऽणेगसो वि वरविसए । नामं पि कन्नसूलाय तीए कत्तो वरग्गहणं ॥ ३७०२ ॥ तं पुरिसदरिसणेण वि झिज्झंति पि किं ऊण जणएण । कारियमगाहमेयं सरोवरं खंभठियभवणं ॥ ३७०३ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं संचारपहो विहिओ जलगयपाहाणमयतलेनेत्थ । भवणारोहो वि हु सुसिरथंभसोवाणएहिं काउं ॥ ३७०४ ॥ पूयं कारावेउं देवीई णं अहं सया जामि | गिहामि न नामं पि हु पुरिसाण अओ पिया हं से || ३७०५ ॥ सा तत्थ ठिया चिट्ठइ सुहेण एगागिणी विणोएहिं । आलवणीवीणावेणुवायणाईहिं अणुदिवसं ॥ ३७०६ ॥ ता वच्छ ! तए जं पुच्छियं तयं तुज्झ साहियं एयं । मणिमंजरीए कुमरीए कारणं इह निवासस्स ।। ३७०७ ।। भणियं सचिवेणं अंब ! गुरुनिबंधेण पुरिसवेसस्स । जं कारणं तमापुच्छियं तयं मह कहेयव्वं ॥ ३७०८ ॥ तो तव्वयणं पडिवज्जिउं गया निवसुयासयासे सा । आपुच्छियं निबंधेणमागया कहइ मंतिस्स ॥ ३७०९ ॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा वच्छ ! मए उवविसिउं तीए समं पत्थुया कहा विहिया । सप्पणयं हियभावं पयासिउं जंपियं एयं ॥ ३७१० ॥ मह पुत्ति ! अइमहंतं असमाहाणं मणं ववइ दूरं । तेण न छुहा न निद्दा न रई नरए व्व पडियाए ॥ ३७११ ॥ तुह जोव्वणमइउव्वणमसमं रूवं समुज्जला कंती । सोहागं पि अभयं कित्ती विमला सरो मुहुरो ॥ ३७१२ ॥ कुलमकलंकं जाई जयुत्तमा सव्वया मई सुहुमा । लज्जा मज्जा पिसुणाण वज्जणं दुक्खियम्मि दया ॥ ३७१३ ॥ पावस्स परिच्चाओ दाणं दीणेसु सज्जणेसु रई ।। विणओ गुरूसु धम्मे समुज्जमो अचलया सीले ॥ ३७१४ ॥ एयाणं एक्केक्को वि दुल्लहो होइ मंदपुन्नाण । ते पुण गोट्ठीए इव सव्वे वि गुणा तमणुपत्ता || ३७१५ ॥ वच्छे ! तमहं वंछामि पुच्छियं किं पि किं तु बीहेमि । तीयुत्तं निस्संकं पुच्छसु जं अंब ! पट्ठव्वं ॥ ३७१६ ॥ तो जंपियं मए तं एयगुणा हरसि मुणिवइमणं पि । लीलावलोईएण विवसमाणसि तिहुयणजणं पि ॥ ३७१७ ॥ ता कुमरि ! तुज्झ पुरिस-द्देसे हेडं सुणेउमिच्छामि ।। न निवत्तिपवित्तीओ गुरुण कज्जं विणा हुंति ॥ ३७१८ ॥ ता जइ मह कहणिज्जं. न किलेसं वहसि तं पि हु कहती । ता कहसु जहा जायइ सुयणु ! समाही सया मज्झ ॥ ३७१९ ॥ तं सोउमाह कुमरी न अंब ! पुरिसाणमत्थि पडिवन्नं । न सिणेहो नो लज्जा न दया न भओ न दक्खिन्नं ॥ ३७२० ॥ पुरिसत्तेण पसिद्धं वीसामत्थं दुमम्मि न सरामि । दम्मगयं पि हु पुरिसं न करेण वि छिविउमेच्छामि || ३७२१ ॥ किंतु तमलंघवयणतो पुरिसद्देसकारणं सुणसु । अत्थि इह दाहिणाए दिसाए लवणाभिहो जलही ॥ ३७२२ ॥ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ भूरिप्पवालवणउच्छलंतपहपडलपाडलजलोहो । मलयगिरिंगरुयासिहरगलिररसपूरभरिओ व्व ॥ ३७२३ ॥ सामलनहं सुतारं सामलजलही वि मोत्तियाईन्नो । नज्जइ जलहिम्मि नहं जलही व नहम्मि संकंतो ॥ ३७२३ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं अंगीकयसत्तनओ वयधारी भूरिसंखसुत्तिपरो । विलसंतजाणवत्तो सदओ जो सहइ साहु व्व ॥ ३७२४ ॥ अब्भुल्लसियरसाओ सुवयपराओ पवाहसोहाओ । सुत्तियसहियाओ नईओ कामिणीओ व्व कलयंतो ।। ३७२५ ॥ तन्नीरतीरदेसे समत्थि वेलावणं विसालतरुं । गुरुतरपत्तभरंतरियतरणिकरनियरसंचारं ।। ३७२७ ॥ सहलारंभंविलसंतसिरिफलं सुप्पबालकलियं च । दीहं वयं सुवंसं जं सोहइ सुयणविंद व ॥ ३७२८ ॥ मयणाहिसहियचंदणघणसारसियं सुअंधहट्टं व । नरनाहमंदिरं पिव विलसिरपुन्नायनायं जं ॥ ३७२९ ॥ जं पसरियसिहिजालं पि सीयलं विस्सरं पि सुसरसुहं । कुज्जयसमस्सियं पि हु जं सरलविराइयं सययं ॥ ३७३० ॥ विउसठाणं पिव वाइकव्वसंजायमाणबहुकलहं । बहुबाणासणसरहयमारं समरं व जं सहइ ।। ३७३१ ।। (कुलयं ) तम्मि कविंजलवंजुलवयवरिहिणसारसाइसउणसिए । परिवसइ रायहंसो सपिओ कंकेल्लिकयनीडे ॥ ३७३२ ॥ जो सइ वि रत्तवयणो मुणि व्व कुलजो व्व सुक्खदुगो । नवतरणिव्वायंबिरपाओ मंजीरमिव सुसरो ॥ ३७३३ ॥ कमलावासो बंभो व्व रमणिनियरो व्व कयसलीलमई । साहु व्व दयाणंदो विरहि व्व मुणालियाहारो || ३७३४ ।। (जुयलं) हंसीए समं असरिससिणेहसब्भावमुव्वहंतस्स । कालो तस्स अइक्कमइ असरिसं रायहंसस्स ।। ३७३५ ॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९३ रयणावलिकहा समगं भमंति समगं रमंति समगं पि दो वि भुंजंति ।। अन्नोन्नं अविउत्ताई ताई न मुणंति विरहदुहं ॥ ३७३६ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि नियपइपरिभोगसुहपसत्ताए । पाउब्भूओ गब्भो तीए कलहंसकंताए ॥ ३७३७ ॥ अणुवासरं पि परिवद्धमाणगब्भाणुभावविवसाए । मंदं मंदं गयणेण गम्मए रायहंसीए ॥ ३७३८ ॥ गब्भभरनीसहंगी परिचलणे वि हु किलेसमुव्वहइ । का वत्ताऽणवलंबणगयणंगणगमणविसयम्मि ॥ ३७३९ ॥ कइया वि रायहंसो तीए पगन्भाए भयहा भणिउ । मह नाह ! पसवसमओ निरुज्जमो तं पुणो दूरं ॥ ३७४० ॥ जइ कहवि देव्वदुव्विलसिएण दवपावओ इहुल्लसइ । ता नासिउं तरिज्जइ न मए नवपसवपीडाए ॥ ३७४१ ।। अवलोईय वेला वणदूरतरे दज्जवच्छु रहियम्मि । कम्मि वि तरुम्मि नीडं रयसु जहा तत्थ अच्छामो ॥ ३७४२ ॥ निव्विग्धं जह मह पसवियाए डिंभाइं जंति परिवुड्ढिं । इय तीए जंपिएणं पडिभणियं रायहंसेण ॥ ३७४३ ॥ का नाम तुज्झ दईए ! अणिट्ठचिंता इमा समुप्पन्ना । जइया जं संभविही तइय च्चिय तं करिस्सामो ॥ ३७४४ ॥ बहुसहससंखपक्खिसु एत्थ वसंतेसु को भओ तुज्झ । जं होयव्वं दूरं वि होइ तं ता दढा होसु ॥ ३७४५ ॥ इय रायहंसवयणा उ हंसिया सा ठिया दढा होउं । तत्थेवयप्पसूया अइपंडूरअंडयाण दुगं ॥ ३७४६ ॥ हंसो आणेऊणं नलिणीनालाई देइ कंताए । सा वि पसवुत्थपीडा विहुरा तं चुणइ ईसीसि ॥ ३७४७ ॥ एत्थंतरम्मि पडुपवणपसरवसवंसघससंभूओ । उच्छलिओ दावग्गी पज्जालियवणतणोहो ॥ ३७४८ ॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ सिरिअणंतजिणचरियं सतडक्कारं फुटुंति वंसगंठीओ दढयराओ वि ।। अग्गिफुलिंगनियरो खज्जोओहो व्व उल्लसइ ॥ ३७४९ ॥ उच्छलियबहलधूमावलीए अंधारिओ गयणमग्गो । लक्खिज्जइ नवतरघणपडलावरिओ व्व सव्वत्तो || ३७५० ॥ संजायमूलदाहा निबिडा वि दुमा दढ ति निवडंति । निरवटुंभाण ठिई वरपत्ताण वि कुओ अहवा ॥ ३७५१ ॥ . साहुच्छेओ पत्ताण पाडणं सुमणसाण संहारो । दावेण दुज्जणेण व रईओ सउणाण वि विणासो ॥ ३७५२ ॥ नीलं सुक्कं च समग्गमवि दवो दहइ जलिरजालाहिं । सयणं परं व पिसुणो दुव्वयणेहिं व सव्वत्तो ॥ ३७५३ ॥ नासंति अद्धदद्धा पसुणो अइविस्सरारवरउद्दा । सत्तीए संतीए चिट्ठइ सावायठाणे को ॥ ३७५४ ॥ वेगेण उड्डिऊणं डज्झिरदेहा वि पक्खिणो नट्ठा । नव्वसणे वि विणासो पायं जोयइ सपक्खाण ॥ ३७५५ ॥ परिपसरते धूमे जालोलीसु पसप्पमाणासु । समुहपवत्ते उन्हानिलम्मि उड्डिय गओ हंसो || ३७५६ ॥ दठूणं गयं हंसं सा हंसी पसवपीडा विहुरा वि । चिंतइ कहंडयाई रक्खेयव्वाइं एयाइं ॥ ३७५७ ॥ आबालकालमसरिसपोढिप्पत्तस्स पेम्मपसरस्स । हंसेण लज्जियमिमं जमहं चत्ता वसणपडिया ॥ ३७५८ ॥ ता अत्थि निच्छएणं नेहो निक्कित्तिमो न पुरिसाण । एयावत्थं जमिमो पियं पि मं उज्झिऊण गओ ॥ ३७५९ ॥ नेहा हुत्तो जइ तस्स ता सुयं तो न मं बहु दुहत्तं । पसवुब्भवअंडयबहलनियतणुदवजलणदाहेहिं ।। ३७६० ॥ नीरुयदेहाए मह कज्जत्थं चाडुयाई कुव्वंतो । इण्हिमकिंचिकरी हं ति मं समुज्झिय पणट्ठो सो ॥ ३७६१ ॥ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका जइ न पणस्संतो सो ता निंतो अंडयाई अन्नत्थ । मह पुण जं होयव्वं तं हुतं रोयविहुराए ॥ ३७६२ ॥ रक्खेमि कहमिमाई दावआवयाओ अंडयाई अहं । जेणच्चतमसत्ता एइ दवो वि हु गुरुरएण ।। ३७६३ ।। परकीयं पि हु रक्खंति दुक्खियं जे हवंति गुरुकरुणा । मच्चुमुहमुवगयाई सावच्चाई चएमि कहं ॥ ३७६४ ॥ पुव्वं वा पच्छा वा मरणम्मि धुवे इमाण जइरक्खा । खणमवि तीरइ काउं ता उवयारो कओ होइ ।। ३७६५ ॥ नियतणयविणासमपेच्छिरी मरणं पि ऊसवो मज्झ । तणए उवेहिरीए जीवियमवि मे मरणअहियं ।। ३७६६ ॥ एएण मह सरीरेण रोयविहुरेण पडणधम्मेण । जीवंति अवच्चाइं जइ किर ता किं न पज्जत्तं ॥ ३७६७ ॥ अन्नेसिं पि हु पोए पक्खीणं दज्झिरे पलोएउं । तेसिं रक्खणकज्जे तस्संती फुरियगुरुकरुणा ॥ ३७६८ ॥ तह दठुमद्धदद्धे पसुणो विरसारवेण कंदते । तेसिं पि रक्खणत्थं भूरिवियप्पेहिं झूरती ॥ ३७६९ ॥ इय आउलिया हंसी जा चिट्ठा ताव नियडमणुपत्तो । दावानलो दहंतो तस - थावरसत्तसंघायं ॥ ३७७० ॥ तो नियसरीरपीडं अवगण्णिय फुरियपरमकरुणा । वित्थारियपक्खदुगेण अंडए छाइऊण ठिया ॥ ३७७१ ॥ तयणुसमुल्लसियाओ दवजालाओ असोयतरुमज्झे । अरुणत्तं तप्पत्ताणमत्तणो वि य निएडं व ॥ ३७७२ ॥ तज्जालाजोयज्जलिरसाहिं साहाहिं सह सनीडा वि । भासीभूया सह अंडएहिं सा रायहंसपिया ॥ ३७७३ ॥ असरिसकरुणाभरजायसुकयसंभारभावओ जाया । रायसुया हं दयधम्मकरणओ किं न कल्लाणं ॥ ३७७४ ॥ २९५ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ सिरिअणंतजिणचरियं मणिमंजिरि त्ति नामा रामाजणजोग्गनायसयलकला । संपत्ता य कमेणं तारुन्नं लसिरलायन्नं ॥ ३७७५ ॥ कइया वि कणयमणिगणविणिम्मियं नरविमाणमारुहिउं । आराम-पवा-वावी-सरो विहारेसु विहरेउं ॥ ३७७६ ॥ चलिया वयंसिया वग्गसंगया जाव ता पलोएउं । पलिवणयं धूम्मज्जलणजालमालियनहुच्छंगं ॥ ३७७७ ॥ डज्झिरतरुसंठियबहुकुलायगयपक्खिमंडलंतो मे । जायं जाईसरणं सच्चविओ रायहंसभवो ॥ ३७७८ ॥ सावच्चं वि मरंतिं मं मुत्तुं नासिउं गओ हंसो । तं समरिय विद्देसो मह जाओ पुरिसविसयम्मि || ३७७९ ॥ ता अंब ! पुव्वभव-भवनियपियकलहंसचायमरणाणं । अभिहाणं पि हु पुरिसस्स मह महादाहयं जायं ॥ ३७८० ॥ तं सोऊणं तच्छंदवत्तिणीए मए वि पडिभणियं ।' जं निन्नेहे पुरिसे विदेसो तमुच्चियं तुज्झ ॥ ३७८१ ॥ जुत्तो च्चिय परिहारो तेसिं जेसिं सरूवमेरिसयं । निन्नेहाणं संगे विडंबणा जेण जा जीवं ॥ ३७८२ ॥ इय तं पसंसिऊणं वच्छा ! तुम्हंतिए अहं पत्ता । कहिओ य तम्मुहेणं जह निसुओ पुव्वविद्देसो ॥ ३७८३ ॥ इय तावसी सयासा सोउं सहस त्ति मुच्छिओ राया । सुपुरिसदूणवयणं सोउं पि अणीहयंतो व्व ॥ ३७८४ ॥ तो झत्ति मंतिकयसिसिरकिरियसंपत्तचेयणो भणइ । मित्त ! अहं कलहंसो सो च्चिअ जो आसि तीए पिओ ॥ ३७८५ ॥ तन्नियडदेसपत्तं दवमवलोइयमहासिणेहपरो । सिंचेमि पिया-पुत्ते जलेण ता जा न दज्झते ॥ ३७८६ ॥ इय चिंतिऊण गंतूण सायरे गहिय हसियकमलाई । जलवोलियाई वुड्ढियसयं च पिहिउं ससुयहंसिं ॥ ३७८७ ॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९७ . रयणावलिकहा जा पत्तो ता जलिरं तं दटुं विहुयपक्खसलिलेण । सिंचेउं तं कमलावलीहिं छाएमि सव्वंग ॥ ३७८८ ॥ सजलकमलाई पुणरवि घेत्तुं जावागओ मया ता सा । तव्विरहविहुरिओ तयणु चिंतिउं एरिसं लग्गो ॥ ३७८९ ॥ हा हा कह मह जाओ कुलक्खओ पुत्त-पिययमामरणे । कोइ मए उवयारो न कओ सत्तेण वि इमाण ॥ ३७९० ॥ भणिओ दईयाए दीहदरिसिणीए अहं पसवपुव्वं । कुणसु कुलाई दूरदुमम्मि पिय ! दज्झदाणम्मि ॥ ३७९१ ॥ दोन्नि महापावाई जायाई मह तदुत्तपरिहरणा । एक्कं इत्थीहणणं बीयं पुण बालयाण वहो ॥ ३७९२ ॥ दझं दवानलेणं कुडुंबमहयं तु एय पावेण । दज्झिस्सम्मि निवडिओ नरए वज्जानलेण धुवं ॥ ३७९३ ॥ गब्भाओ विगलिओ किन्न किन्न खद्धो सिसूविसप्पेण । जाओ जमहं ठाणं पावाण दुगुंछणीयाण ॥ ३७९४ ॥ मन्नामि वरतरमहं मरणं चिय जीवियाओ निययाओ । जम्मि मया पियपुत्ता सल्लंति न नट्ठसल्लं व ॥ ३७९५ ॥ ता इण्हि चिय जुत्तं मज्झ मए तं पि संपयं मरणं । सव्वाणं पि समत्ती संपज्जइ जेण दुक्खाण ॥ ३७९६ ॥ इय चिंतिय जा चिट्ठामि पणइणिं छाइऊण पक्खेहिं । डझंतो तेण पियानलजालाजालजोएण ॥ ३७९७ ॥ ता गयणग्गसमागयचारणसमणेण केणइ मज्झं । दिन्नो जिणनवकारो तिहुयणकल्लाणसंजणओ ॥ ३७९८ ॥ मरिऊण तन्नवकारप्पभावउप्पन्नपुन्नपसरेण । राया अहं महामंति ! संपयं एस संजाओ ॥ ३७९९ ॥ ता मंति जयसु तह तं एसा जह कन्नया पिया मज्झ । संपज्जइ अविउत्ता जाजीवं जायअणुराया ॥ ३८०० ॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सा तुहमा पुरिसे am a दल २९८ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं भणियं तावसीए सुंदरतरं इमं वत्थु । जं सा तुह पुव्वभवुब्भवा पिया तं पि तीए पई ॥ ३८०१ ॥ तुह पुव्वभवं सोउं पुरिसे इसोवगच्छिही तीए । विसहरमंतस्स व णागगरलावेगो व्व दट्ठस्स ॥ ३८०२ ॥ ताहं इण्हि पि कहेमि गंतूण जाइसरणाई । तुह वुत्तंतं सव्वं पि तो अमच्चो पयंपेइ ॥ ३८०३ ॥ साहिप्पंतं तुमए अंब ! इमं धुत्तविलसियं होइ । जं ताए तुहक्खायं तं से अपच्चयुल्लासा ॥ ३८०४ ॥ ता इण्हि तच्चरियं रइऊणं रासयम्मि रमणीए । चित्तं पि चित्तफलयम्मि लेहिउं हं समरणंतं ॥ ३८०५ ।। सुसरित्थि-नरपेडयं ठाणट्ठाणाणुरूवराएण । तियचच्चराइठाणेसु भणेइस्सामि जणमज्झे ॥ ३८०६ ॥ तो तं तीए सयासे कयाइ गच्छेज्ज अंब ! उस्सूरे । होऊण सामवयणा पुट्ठा साहेज्ज सव्वं पि ॥ ३८०७ ॥ एयत्थे अंब ! तुमं चउरजणसिरोमणी सयं चेव । जमुवइसामो अम्हे तं सिक्खा भारई एसा ॥ ३८०८ ॥ इय जंपिऊण विहियं रायामच्चेहिं चं जहुद्दिढें । हुति च्चिय सप्पुरिसा सवयणनिव्वाहया निच्चं ॥ ३८०९ ॥ कइया वि तावसी सा पत्ता कुमरीसयासमुस्सूरे । साममुही उव्विग्गा थोरंसुयदंतुरियनयणा ॥ ३८१० ॥ तं दळु कुमरीए भणियं तं अंब ! अज्ज उव्विग्गा । तह उस्सूरे पत्ता ता कहसु न जइ अकहणिज्जं ॥ ३८११ ॥ सा आह अज्ज वच्छे ! मग्गंमि नरित्थिपेडयं दिळं । अइमहुरसरं देसंतरागयं जणकयावेढं ॥ ३८१२ ॥ गायंतं मणिसेहरनिवचरियठाणे उचियराएहिं । तो तं सव्वं पि मए निसुयं आमूलपज्जंतं ॥ ३८१३ ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९९ रयणावलिकहा जह सायरवेलावणअसोयसाहिम्मि हंसहंसिदुगं । जह रायहंसियाए संजायं अंडया दुग्गं || ३८१४ ॥ जह दवमागच्छंतं दटुं हंसो गओ समुद्दम्मि । जह दवजलिरिं हंसिं छायइ सो सजलकमलेहिं ॥ ३८१५ ॥ जह मयहसिं दटुं पसरियतव्विरहविहुरियसरीरो । नियपक्खेहिं छाइय तयं मओ रायहंसो वि ॥ ३८१६ ॥ तह तं सोउं सव्वं पि मज्झ सोओ तहा समुप्पन्नो । न जहा अज्ज वि परिसंदिराई थक्कंति नयणाई ॥ ३८१७ ॥ रासयनरेण परिपुच्छिएण मह साहियं इमं वच्छे । । नयरम्मि मणिपुरम्मि निवसइ मणिसेहरो राया ॥ ३८१८ ॥ तेणायं नियचरियं सरियं सव्वं पि जाइसरणेण । जइ हुँतो हं हंसो मओ य नियभारिया विरहे ॥ ३८१९ ॥ संजाओ इह राया ता जइ हंसिं पि देव्वजोएण । पत्तनरतं पावेमि होइ ता मह समाहाणं ॥ ३८२० ॥ इय चिंताए तव्विरहविहुरिओ दुब्बलो ठिओ दूरं । तं चेव रायहंसिं ज्झायंतो विज्जुमिव जोइं ॥ ३८२१ ॥ कुणइ न सो सिंगारं न मयच्छीपेच्छयणाइं पेच्छेइ । चिट्ठइ य सुन्नहियओ चय सव्वसहावावारो ॥ ३८२२ ॥ मन्नइ य रायहंसीरहिओ रज्जं पि रज्जुबंधो व्व । भोए विभोइणो इव वसिमं पि पुरं मसाणं व ॥ ३८२३ ॥ एवमवत्थं सच्चविय सामियं पुच्छिऊण सचिवेण । हंसीनाणनिमित्तं रासम्मि रयावियं चरियं ॥ ३८२४ ॥ तो अम्हे पट्ठविया तन्नाणत्थं समग्गदेसेसु । पाढाइचित्तरूवे दंसंता इह पुरे पत्ता ॥ ३८२५ ॥ ता रासय नरपयडियनिवचरिएणं अहं वियप्पेमि । वच्छे । सो च्चिय राया जो पुव्वं तुह पई हंसो ॥ ३८२६ ॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० सिरिअणंतजिणचरियं ता पुत्ति ! रायहंसे को रोसो पुव्वभवपिए तुज्झ । जेणोवयारविहलेण तुज्झ विरहे हओ अप्पा || ३८२७ ॥ जीवंताण छंदाणुवत्तिणं कुणइ सव्वया वि जणो । जो पक्खी वि हु नियपयमणुसरइ स एस एवेक्को || ३८२८ ॥ पायं पुरिसेहिं समं महिलाओ मरंति भूरितरयाओ । सो एक्को चिय हंसो जो सह नियपिययमाए मओ ॥ ३८२९ ॥ ता पुत्ति ! समुज्झिय पुरिसद्देसमेयं नियं पियं सरसु । जेण जियइ सो राया तुज्झ वि जम्मो हवइ सहलो ॥ ३८३० ॥ इय तावसीमुहेणं सोऊणं रायहंसनियचरियं । मुंचइ पुरिसद्देसं गुरूवएसा अकिंचणं व ॥ ३८३१ ॥ अणहुँतो वि हु तीए अणुराओ रायचरियओ जाओ । राओ व्व वुन्नयाओ वुन्नियजलजुयइलिद्दाए || ३८३२ ॥ रायाणुरायवसजायदुसहअरईए सा परिग्गहिया । पुरिसप्पउत्तिचारियचिरविरहिवयंसियाए व्व ॥ ३८३३ ॥ तिहुअणमवि मह आणं धरइ सिरे नो इम त्ति कलिऊण । रुडेण व मयणेणं बाला विद्धा सरभरेण ॥ ३८३४ ॥ कत्तो तं पाविस्सं ति झत्तिईणज्झाणखणविलंबवसा । थरहरिय थूलथणं सरंति से मासला मासा ॥ ३८३५ ॥ अणुरायरसाविद्धा विराइणी वि हुविया नरिंदसुया । अब्भुययग्गिअरुणे झडत्ति गयणंगणसिरि व्व ॥ ३८३६ ॥ दळूण तस्सरूवं तवस्सिणी तं फुरंतपरिओसा । पभणइ पुत्ति ! सरीरं किं तुह अपडुत्तमुव्वहइ ॥ ३८३७ ॥ तीयुत्तमंब ! मणिसेहरं निवं जई न अज्ज पावेमि । ता झंपावेमि अगाहसरजले मरणकरणाय ॥ ३८३८ ॥ एमेव य मरियव्वं समकालुच्छलियअसुहवसयाए । जेण विएसेस निवो अहं तु इह ता कुओ जीयं ॥ ३८३९ ॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका मसिणियकरीर अंकुरवित्तिमिव दज्झए सरीरं मे । दाहज्जरदुद्दामयकलंबपरिसुसइ वयणं पि ॥ ३८४० ॥ ता सव्वा विन पहू खणं पि अहमत्तणो सरीरस्स । मह एरिसे सरूवे जं जुत्तं तं तमायरसु ॥ ३८४१ ॥ आयन्निरं तयं तावसीए भणियं थिरा भवसु वच्छे ! ता हं तहा जइस्सं तुह जह मिलिही निसाए निवो || ३८४२ ॥ जेणत्थि मह नरागरसिणम्मि सत्ती वि सिद्धमंतभवा । सन्नेज्झा जीए तमज्जमेवाणिय तुहऽप्पिस्सं ॥ ३८४३ ॥ । ता होसु थिरा जा पुत्ति ! एइ रयणि त्ति संठविय कुमरिं । पत्ता तवस्सिणी रायमंतिपासम्मि सहसति ॥ ३८४४ ॥ कहिओ नवुत्तंतो तेसिं ता जा दढाणुराया सा । जइ न लहइ राय ! तुमं रयणीए मरइ ता नियमा ।। ३८४५ ॥ भणियं च मए अज्जागरिसिय निसिवल्लहं तुहऽप्पिस्सं । ता कयगुरुसिंगारा चिट्ठिज्जं गिहेगदेसे तं ।। ३८४६ ।। ताहं गंतुं तं तुह विरहज्जरविहुरियं विणोएमि । जं एगागीण दुहं हवइ अणज्जयं पि थोवं पि ॥ ३८४७ ॥ इय तं पयंपिउं तावसी गया झत्ति कुमरिभवणम्मि । तल्लाहेण निवो विहु सहलं मन्नइ विएस पि ।। ३८४८ || अहमवसरामि जइ ता विरहीणमिणाण संगमो होइ । इय चिंतिउं व मित्तो मज्झिमभवणाओ निक्खतो ।। ३८४९ ॥ मयणानलाइभावा नरिंदकुमरीण हिययकुंभीओ । उप्फिणिउं वित्थरिओ संझाराओ व्व अणुराओ ॥ ३८५० ॥ विरलतरसंझराओ उल्लसिओ तमभरो फुरियतारो । पुव्वभवदावधूमो व्व सप्फुलिंगो सजालो य ॥ ३८५१ ॥ गंधव्वविवाहं पिव कारविउं झत्ति रायकुमरीण | दिपि संपत्तो दियराओ उदयगिरिसिहरे ।। ३८५२ ॥ ३०१ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ एत्थंतरम्मि वज्जालिविलसिराभरणभूसियसरीरो । मयणाहिमिस्सचंदणविलित्तगत्तो सचिवसहिओ ॥ ३८५३ || गंतूण कुमरिमंदिरमेगंते संठिओ महीनाहो । एत्थंतरम्मि लग्गा तवस्सिणी ज्झाणमारुहिउं ॥ ३८५४ ॥ वारं वारं तीए पहुं फुडसाह त्ति जंपमाणीए । पयडीहूओ राया तो तीए विसज्जियं झाणं तो कुमरीए रइए व दिट्ठो मयरद्धओ व्व नरनाहो । पयडंतीए पुलयस्सेयए कंपाईए भावे ॥ ३८५६ ॥ ३८५५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं भणिया निवेण पणमिय तवस्सिणी आगओ कह गिहे हं । तो से कहियं तीए कुमरिवरत्थं तमाणीओ ॥ ३८५७ ॥ तं सोउमाह मंती ता जाणावह निवं वरागमणं । जंपिओ दिन्ना कन्ना परिणिज्जइ अन्नह अजुत्तं ॥ ३८५८ ॥ गंतुं तवस्सिणीए तं कुंतलनाहराइणो कहीयं । वद्धाविज्जसि तं निव ! कन्नाए वराणुराएण || ३८५९ ॥ तं सो नरनाहो अमयनिमग्गो व अइसुही जाओ । तो हंसाइवरंतं तच्चरियं कहइ सा रन्नो ।। ३८६० ॥ तं सोउं संतुट्ठो राया दाऊण तुट्ठिदाणं से । आणावइ मणिसेहरनिवई कुमरिं च रिद्धीए ॥ ३८६१ ॥ कारईय ताण महरिहविच्छड्डेणं विवाहमंगल्लं । करमोयणम्मि वियरइ वरस्स गय - हय - रहसिरीओ ॥ ३८६२ ॥ नवकंतासंजुत्तो राया पंचविहविसयहसत्तो । ठाऊण दिवसदसगं ससुरं मोयाविउं चलिओ ॥ ३८६३ ॥ सपिउचउरंगचमूचयपच्छाईयमहीयो पत्तो । अक्खंडपयाणेहिं मणिपुरपुरिपरिसरंदेसे ॥ ३८६४ ॥ विहिऊणूसवम्मि तम्मि संचियमंचेसु हरिणनयणीणं । पेच्छणए पेच्छंतो पत्तो निययम्मि पासाए || ३८६५ || Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा तत्थ ठियस्स रन्नो रज्जं नीईए पालयंतस्स । वच्चइ कालो अंतेउरीहिं सह विसयसत्तस्स || ३८६६ ॥ ता खयरेसर ! जह रायहंसभज्जाए रायहंसीए । अविवेयबहुलयाए जाओ पुरिसम्मि विद्देसो || ३८६७ || मणिमंजरीभवम्मि वि सो च्चिय उम्मीलिओ जहा तीए । तह तुह तणयाए वि हु जह जाओ तह निसामेसु || ३८६८ ॥ तो पुणरवि पणमेउं ताओ पुच्छइ मुणिं जहा भयवं ! । मणिसेहररन्नो सिविणयस्स किं कारणं कहह || ३८६९ ॥ तो भाइ मुणी नहयरनरिंद ! एयं पि सुणसु सा हंसी । संजाया कुंतलनाहरायमणिमंजरीकन्ना ॥ ३८७० ।। वणयदंसणुप्पन्न पुरिसविद्देसदोसओ जं सा । इनरं कंपि हु तो आदन्नो निवाइजणो ॥ ३८७१ ॥ जाणइ जणोवइट्ठ सव्वं पि अणुट्ठए कुणइ संतिं । पूयइ देवे कुलदेवयं च आराहिउं भणइ ॥ ३८७२ ॥ देवि ! नियगोत्तचिंता तुह एसा ताओवेहसे किमिमं ? | अवहरिउं विद्देसं पुरिसे रायं रयसु झति ॥ ३८७३ ॥ कइया वि सोवओगाए तीए देवीए ओहिनाणेणं । नाउं पुव्वभवपियं हंसं मणिसेहरं निवइ ।। ३८७४ || खंभग्गठियगिहरमणि सिविणयम्मि देसेउं । तो वलिय वरं कुंतलनाहनरिंदस्स जा कहइ ।। ३८७५ ।। ता सहसति चुया सा देवाउयकम्मस्स खए जाए । नहयरनरिंद ! एयं तुह सिविणयकारणं कहियं ।। ३८७६ ॥ तो तं सोउं ताओ परिजंपर पत्थुयं कहसु भयवं ! । भणइ मुणी एगग्गो होउं निव ! सुणसु साहेमि ३८७७ ॥ अक्खंडमहीमंडलमंडणभूयं विभूइआवासं । सिरिधरणिभूसणं नाम गुरुपुरं अत्थि अत्थिपियं ॥ ३८७८ ॥ ३०३ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ सिरिअणंतजिणचरियं एगोत्थि तत्थ दोसो जं बहुहारावसंगया उ सया । रामाओ मारपरिपीडियाओ दइए अणुसरंति ॥ ३८७९ ॥ तं परिपालइ दुव्वारवेरिवारणवियारणगइंदो । नयणाणंदो नामेण कामिणीमणहरो राया ॥ ३८८० ॥ गुणनक्खत्तनहपहो जसजोण्हापूरकोमुइमयंको । पोढप्पयावसारयतरणी नयनीरनइनाहो ॥ ३८८१ ॥ सव्वावरोहकमणीयकामिणीसामिणी समत्थि पिया । रन्नो कुरंगनयणी कुरंगनयण त्ति नामेणं ॥ ३८८२ ॥ लीलाकुवलयसरसी सुसीलकलहंसकेलिपुक्खरिणी । नयरयणरोहणधरा विब्भमभमरउलकमलाली ॥ ३८८३ ॥ तीए सह विविहविसयव्वामोहविमोहियस्स नरवइणो । अन्नाओ विव कालो वच्चइ सुरो व्व सक्कस्स ॥ ३८८४ ॥ तस्सत्थि रज्जसिरिभारचिंतओ नयनिही महामंती । नामेण निम्मलमई रईसररुइरो गुणगरिठ्ठो ॥ ३८८५ ॥ ठाणट्ठिओ वि जाणइ वरेहिं निस्सेसदेसवावारे । अहवा सुहुममईणं अन्नायं नत्थि कत्थ वि य ॥ ३८८६ ॥ असरिसरूवा सोहयसुंदरी गुरुगुणा विमलसीला । नयसुंदर त्ति नामेण मंतिणो पणइणी अत्थि ॥ ३८८७ ॥ तह कह वि गुरुसिणेहो पवद्धिओ मंति-मंतिपत्तीण । जह खणमवि विच्छोहो गच्छइ कट्टेण वरिसो व्व ॥ ३८८८ ॥ दइयस्स सम्मयं जं तं दइयाए वि असमतोसा य । जं पुण इह्र कंताए तं पियस्सावि हरिसाय ॥ ३८८९ ॥ एक्कम्मि भोयणपरे बीयं पि हु कुणइ भोयणं हेळं । रोएणेक्कम्मि लंघिरम्म लंघेइ बीयं पि ॥ ३८९० ॥ कयसिंगारे एगम्मि कुणइ बीयं पि सारसिंगारं । एगम्मि तं वयंते मुंचइ तं बीययं पि धुवं ॥ ३८९१ ॥ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा ३०५ एक्कस्स पहरिसेणं बीयस्स वि होइ पहरिसुक्करिसो । एक्कस्स वेमणस्सेण वेमणस्सं तदियरस्स ॥ ३८९२ ॥ तं माणुसाण दोण्ह वि न कयाइ वि होइ पणयकलहो वि । तेणेक्कचित्तयाइं इमाइं इय ताण विक्खायं ॥ ३८९३ ॥ तन्नेहमई वत्ता कयाइ जाया नरिंदअत्थाणे । चिट्ठइ दिणमेत्तं पि हु न विउत्तं मंतिमिहुणम्मि ॥ ३८९४ ॥ रायाह पंचदियहा नेहा नो जाव जीविया हुंति । ते वि हु पायं कत्थइ तओ कुओ एगचित्तत्तं ॥ ३८९५ ॥ केसि पि होइ नेहो अविओगे जाइ सो विओगम्मि । जं से जीवियमणवरयदंसणं तं विणा मरणं ॥ ३८९६ ॥ कीरतम्मि एवं च विसिलेसो मिहुणयाण होइ तहा । जह विहडिओ सिणेहो न कयाइ समेइ संघडणं ॥ ३८९७ ॥ सो च्चिय नेहो अणुवासरं पि जम्मिं पवड्ढमाणम्मि । मूढेहिं न धम्माइं गणिज्जए जेणिमं भणियं ॥ ३८९८ ॥ धम्मत्थदेहजसजीवियाई न वडंति संसए जम्मि । पेम्मतं पि भणंता वयंसलोया न लज्जति ॥ ३८९९ ॥ . सो वि हु जइ होइ समो परोप्परं वद्धमाणरसपसरो । ता सुंदरं इहरहा विडंबणा जेणिमं भणियं ॥ ३९०० ॥ एक्कदिसा रम्मेण वि अलाहि नेहेण सिहिदलच्छविणा । थुणिमो सम दो पासिं पिंगयपिच्छोवमं पेम्मं ॥ ३९०१ ॥ भणियं सहाजणेणं संभवइ इमं पि नवरमेयाई । अइनिबिडसिणेहाइं ता विसिलेसो कहं भविही ॥ ३९०२ ॥ रायाह तह जइस्सं इमाण जह भिन्नचित्तया भवइ । तुम्हाण पूरइस्सं कोउयमेयं समग्गाण || ३९०३ ॥ इय मंतिविहूणसहाजणेण सह जंपियं महीवइणा । समइक्कंते काले केत्तियमित्ते वि ताण तओ ॥ ३९०४ ॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ कइया वि अत्थाणसंठिओ मंतिपमुहजणजुत्तो । जा चिट्ठइ ता दूओ नरिंदसंकेईओ पत्तो ॥ ३९०५ ॥ पणमिय निवमुवविट्ठो आएसं पाविऊण विन्नवइ । पहु ! तुह सामंतेणं पट्ठविओ हं मणिरहेण ॥ ३९०६ ॥ विन्नत्ती कारविया तुम्ह जहा केरलेसरो राया । सव्वं पि मज्झ देसं निल्लूडइ देव ! दुद्दतो ।। न निवारिओ वि अविणयमुज्झइ जुज्झइ य संमुहो तस्सग्गओ मह बलं सत्तूयमुट्ठि व्व सिंधुम्मि जइ कुणसि सामि ! सारं पच्छा वि हु ता करेसु इण्हि पि । मज्झ विणासे जाए पयावहाणी धुवं तुज्झ ॥ ३९०९ ॥ सव्वं पि सेवएहिं हियाहियं विन्नविज्जइ पहूण । सप्पsिहासं कुव्वंतु ते तयं जमिह अप्पहियं ।। ३९१० ।। इय तव्विन्नत्ती तुम्ह साहिया सामिसाल ! तुम्हे वि । वियरह पच्चाएसं ति जंपिउं सो ठिओ मोणो ।। ३९११ || तं सोऊण नरिंदो उब्भडभडभिउडिघडियनिडालो । जंपइ अप्पविणासाय चमढिओ तेण मह देसो || ३९९२ ॥ नूणं निकिंतिय तस्स सीसमुच्छलियरुहिरवरिसेण । विज्झाविस्सं नियमणवणपज्जलमाणकोवदवं ।। ३९१३ ।। ता ताडवेह रे रे रणपहपत्थाणसूयगं ढक्कं । सन्नज्जह सव्वे वि हु नरिंदमंडलियसामंता ॥ ३९९४ ॥ जेण सयं गंतूणं तव्वंसजयस्सिरिं सुगुणनद्धं । विमलं समुल्लसंतिं गिण्हामि जयप्पडायं च ।। ३९९५ ॥ तं सोउं निम्मलमइमंती विन्नवइ देव ! विक्खेवो । किमिमो एद्दहमेत्ते वि तम्मिरिओ कीडकप्पम्मि || ३९९६ ॥ तत्थ सयं गच्छंतेण सामिणा वेरिणो लहुस्सावि । दिज्जइ तस्स गरुत्तं ता सामि ! इमा धुवं कुमई ॥ ३९१७ ।। सिरिअणंतजिणचरियं ३९०७ ॥ होउं । ३९०८ ॥ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ रयणावलिकहा एक्केण वि तुह दंडाहिवेण गिण्हिज्जिही सिरं तस्स । जइ पुण सत्तू सक्खं सक्को ता चलसु सयमेव ॥ ३९१८ ॥ तइ पहुकयविक्खेवे नूणं न जमो वि जिणइ रणरंगे । इयराण व रायाणं का वत्ता कायकप्पाणं ? ॥ ३९१९ ॥ अवरस्स कस्सई ता वियरसु आणं तओ भणइ राया । मंति ! मए तुमएवाएसो जिप्पइ नेव अन्नेणं ॥ ३९२० ॥ तं सोउमाह मंती देवाएसेण जामि हं किं तु ।। मह दईया रोएणं संपइ परिपीडिया देव ! ॥ ३९२१ ॥ तेण न गच्छामि अहं रोयत्ता सा वि मुंचए नो मं । याह निरुयदेहं तमहं काहं ति गच्छ तुमं ॥ ३९२२ ॥ माया वि उ बलिट्ठो केरलराया सया वि भेयन्नू । निच्चमविस्ससणिज्जो अओ तुमं तत्थ पेसेमि ॥ ३९२३ ॥ धुवमवरे भेइज्जति तेण दव्वेण राइणो सव्वे । तेणाहमप्पणा जामि अहवा पेसेमि तं मंति ! ॥ ३९२४ ॥ मा कुणसु कमवि चिंतं कंता विसए जओ चिगिच्छं से । सव्वं पि कारयिस्सामि तह जहा जायए निरुया ॥ ३९२५ ॥ असमाहिमाणसो वि हु रायाणाभंगभीरुओ मंती । मन्निय तस्साएसं पणामपुव्वं गओ सगिहे ॥ ३९२६ ।। रोयभरविहुरियाए पासम्मि पियाए गंतुमुवविट्ठो । सव्वं पि निवाएसं पयासए साममुहच्छाओ ॥ ३९२७ ॥ संपइ य सुयणु ! आणं वसेमणं मज्झ तं चिय न अन्ना । किं तु विरुद्धो व्वं विही न सहइ तुह दंसणसुहं पि || ३९२८ ।। जइ जामि पिए ! ता तुह विओयवज्जाहयं फुडइ हिययं । अच्छामि ता नरिंदो रुट्ठो पाणे वि से हरइ ॥ ३९२९ ॥ वससि तुमं मह हियए न कावि अन्ना कयाइ कमलच्छि !। ता तं मोत्तुं न तरामि जामि जं तं निवभएण ॥ ३९३० ॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ सिरिअणंतजिणचरियं जत्तियवेलं तं नयणगोचरे भवसि सुयणु ! नो मज्झ । तत्तियवेलं पसरंति ताव उव्वेयउम्माया ॥ ३९३१ ॥ चंदस्सिरिं व तं पिच्छिऊण वियसंति नयणकुमुयाई । तह संतोसामयमयरहरो दूरसमुल्लसइ ।। ३९३२ ॥ सच्चवइ जं सिद्धंते सुथोवसोक्खं जयम्मि बहुदुक्खं । तं पच्चक्खं भविही मह तुह संभावि विरहम्मि || ३९३३ || खुद्दाएसो एसो निवस्स मह तुज्झ दारुणावत्था । एवं ठिए न गंतुं तरामि नो चिट्ठिउं सुयणु !|| ३९३४ ॥ आबालकाल अद्दिट्ठपियविओगस्स सुत्थियजणस्स । पत्तम्मि दुसहविरहे मरणं सरणं जओ भणियं ।। ३९३५ ॥ जहा वरि मरणं मा विरहो विरहो दूमेइ अंगुवंगाई । एक्कं चिय वरि मरणं जेण समप्पंति दुक्खाई ।। ३९३६ ॥ इय गरुयसोयगग्गरगिराए परिजंपिरं पियं दछं । नयसुंदरी दढमणा होऊण पयंपिडं लग्गा ॥ ३९३७ ॥ किं अज्जउत्त ! तं होसि कायरो धरसु धीरिमं धणियं । सहियव्वो विरहो वि हु थोवो आभवसुहत्थीहिं ॥ ३९३८ ॥ गिहिज्जइ वित्ती जस्स संतिया तस्स कीरए कज्जं । सामन्नस्स वि किं नो निवस्स गुरुसत्तिमंतस्स ॥ ३९३९ ॥ जइ विरहो अम्हाणं न भविउकामो कम्मवसयाण । तो किमिमो मह रोगो अह रोगो किं तुह पवासो ।। ३९४० ॥ जइ मह सरीरकारणमयं हुतं न तस्सेमं चेव । कडए गच्छंताई विरहो सिविणे वि नो हुंतो || ३९४१ ॥ इह तु दोन्ह महाअसुहं होही विओयवसयाण । नवरं पुण मिलणासा जीवियपरिरक्खणं काही ।। ३९४२ ॥ ता अज्जउत्त ! गंतुं कडए काऊण सत्तुसंहारं । हारुज्जलं जसहरं घेत्तुं सिग्षं समागच्छ ॥ ३९४३ ॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा एवं परिजंपति सम्माणेउं मणं च तप्पासे । मोत्तुं तं पालेउं च सुहृदिणे पत्थिओ मंती ॥ ३९४४ ॥ मंडलिया सामंता सेणावइणो य तंतवाला य । चलिया चउरंगदला निम्मलमइमंतिणा सद्धिं ।। ३९४५ ॥ अणवरयं विरयंतो भूरिपयाणाई वज्जिराउज्जो । तह भूरिपयाणाई वियरंतो मागहाण पहे || ३९४६ ॥ पत्तो कमेण केरलविसयासत्ताए समतलमहीए । सुलहिंधणजवसजलासयाए आवासिओ मंती ।। ३९४७ ॥ पडमंडवचउखंडय गुड्डरगुणिणी विमाणयाईसु । आवासिओ असेसो वि कडयलोगो जहाजोगं ।। ३९४८ ॥ अन्नाय समागच्छिररिउबलखलणखमे चउप्पासं । कडयस्स रक्खणट्ठा संठावइ पोढमंडलिए ।। ३९४९ ।। गुरुरयतुरए पेसिय आवासविसयं करावए सययं । नीइत्ति करिहरिनरे सन्नद्धे धरइ अभओ वि || ३९५० ॥ पाहरिए भामरिए वाणंतरिए निसासु तोरवइ । परिभावई य समंता गमचरभेए महामंती ॥ ३९५१ ॥ इय नयमग्गाणुगयं समयमवि कुणइ उज्जमुज्जुत्तो । रक्खतो सव्वस्स वि कडयस्स अवायलेसं पि ।। ३९५२ ॥ दूयं पट्ठावेडं पयंपिउं केरलेसरो एवं' | अविणयमुज्झसु अहवा रणसज्जो होउ मा गच्छ || ३९५३ || सो आह मए न कयाइ कस्सई कोइ अविणओ विहिओ । एमेव य संपइ को वि किं पि जइ भइ ता भणउ ॥ ३९५४ मुंचामि न पुव्वठिइं करेमि नो तीए समहियं किंपि । ता वच्चह सट्ठाणे मा कुणह धणक्खयं तुब्भे ॥ ३९५५ ॥ इय जंपिय सो दूओ सम्माणिय पेसिओ अमच्चस्स । दुग्गगिरिं दुत्थंगे सयं तुं गंतुं समासिट्ठो ॥ ३९५६ ॥ ३०९ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० सिरिअणंतजिणचरियं गंतूण मंतिपासं दूएण पयासियं तयं सव्वं । तेणा वि हु एवंविह विन्नत्ती पेसिया रन्नो ॥ ३९५७ ॥ पच्चाएसो मंतिस्स पेसिओ राइणा जहा तुमए । आजेठं तं ठाऊण तत्थ इहं आगई कुज्जा || ३९५८ ॥ इय पत्तनिवाएसो आगमणसमुस्सुओ वि तत्थ ठिओ । चित्तम्मि पुणो कंतं झायइ मंतं व जोइंदो ॥ ३९५९ ॥ विणयप्पणया पोढाणुराइणी रूवरेहरइरमणी । अइकीलकीलिया इव ओयरइ पिया न मह हियया || ३९६० ॥ दारिदियो वि पसुणो वि पक्खिणो वि पियाहिं अविउत्ता । विलसंति चिरं जे ते न हंतुं सया वि सच्छंदा ॥ ३९६१ ॥ इस्सरियसंगओ वि हु धुवमहमेयाण हीणतरओ जं । निच्चं पि परायत्तो वल्लहदइयाविरहविहुरो ॥ ३९६२ ।। एक्कं असरिसरोगो बीयं से दुस्सहो मह विओगो । इय दुहदुगं न सहिउं तरिही सा सिरिससुकुमाला || ३९६३ ॥ जइ कह वि देव्वदुव्विलसिएण अच्चाहियं मयच्छीए । तीए होही अहमवि ता नियपाणे परिहरिस्सं ॥ ३९६४ ॥ एवमणुवासरं पि हु चिंतासंतावनट्ठमणवित्ती । अच्चंतदुब्बलतणू मंती अइवाहए दियहे ॥ ३९६५ ॥ पत्तो य दईयविरहे देहे मंतिप्पियाए बहुसंखं । रोगो वुडिंढ पत्तो अयसो व्व अकज्जकरणेणं ॥ ३९६६ ॥ अणुदिणमवि सेवंति जमहं मुक्काए तीए बहुदिवसा । ता सा रुट्ठा होहि त्ति संकिरी नेइ निद्दा तं ॥ ३९६७ ॥ संतीए मए निदं विणा ने आहारजीरणं होही । एयाए अणत्थकरं ति चिंतिउं पि व छुहा वि गया ॥ ३९६८ ॥ दठूण पियविउत्तं पडियमवत्थाए अबलमइदीणं । तं वेरिणि व्व अरई कयत्थिउं दूरमारद्धा ॥ ३९६९ ॥ . Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११ रयणावलिकहा वल्लहपियगमणदिणा संनिहिया अंगरक्खयनर व्व । न मुयंति तं खणं पि हु कलमलयुम्मायरणरणया ॥ ३९७० ॥ इय तं दुत्थावत्थं नाऊण निवेण पेसिउं विज्जे । काराविया विगिच्छा तह जह सा नीरुया जाया ॥ ३९७१ ॥ कडयट्ठिओ वि मंती पेसिउं गुरुवेगकरहपुरिसेहिं । कारवइ सया सारं अप्पिय नियकरलिहियलेहे ॥ ३९७२ ॥ तं नाउं निरुयंगि निवो वि कइया वि पुच्छिउं वत्तं । तीए सयासे पत्तो सहस त्ति सुहासणासीणो || ३९७३ ॥ , नाऊण निवागमणं कारविया तीए असमपडिवत्ती । अवरो वि घरे पत्तो पुज्जो किं पुण न नरनाहो ॥ ३९७४ ।। सवणंतपत्तनयणिं पुन्निमरयणियरबिंबसमवयणिं । उत्तंगपीणसिहिणिं कलहंसकरेणुगइगमणिं ॥ ३९७५ ॥ संपत्तरूवरेहं मिउदेहं परिलसंतगुणगेहं । तं दटुं नरनाहो सकामचित्तो वि चिंतेइ ॥ ३९७६ ॥ सा कावि रूवरिद्धी इमाए निस्सेसभुवणअब्महिया । मझे त्ति हरइ गव्वं हरिहरसुरवइसहयरीण ॥ ३९७७ ॥ मन्नामि पुन्नपत्तं मंतिं च्चिय जस्स पणइणी एसा । दळूण जीए रूवं रई वि अरई समुव्वहइ ॥ ३९७८ ॥ सव्वाण वि मह अंतेउरीण पासम्मि होइ जइ एसा । ता दासीओ व ताओ नजंति इमाए तणयाओ ॥ ३९७९ ॥ इय चिंतंतो अवियहलोयणो तं पलोइरो दूरं । सूरो वि कायरत्तं संपत्तो झत्ति अवणिवई ॥ ३९८० ॥ सा रई मह पिया ता किमिमं नेहनिब्भरो नियइ । इय भंतीए हओ सो सरेहिं राया अणंगेण ॥ ३९८१ ॥ अविइन्हपेच्छिरं तं दळु नयसुंदरी नयनिहाणं । पूयापुव्वं जंपइ पहु ! अपसाओ इमो मज्झ ॥ ३९८२ ॥ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ सिरिअणंतजिणचरियं जं जयपहुणो तुन्भे महिलामेत्तस्स पासमणुपत्ता ।। जो तुम्हाण वि पुज्जो तं पइ तम्हारिसा जंति ॥ ३९८३ ॥ दासीमेत्तेण वि होइ देव ! मह देहसंतिया सारा । सेवयसज्झे कज्जे न पसंसिज्जइ पहु ! पवित्ती ॥ ३९८४ ॥ ता सामिसाल ! सेवयलवेहिं समईए समुचिया कज्जा । विन्नत्ती पहुणो च्चिय जुत्ताजुत्तं वियाणंति ॥ ३९८५ ॥ साराकरणे निययाणु सुयणु ! को नाम जायए दोसो । इय जंपिय सो वियरइ तीए आभरणवत्थाइं ॥ ३९८६ ॥ तग्गयचित्तो राया काऊणागारसंवरं झत्ति । उठ्ठिन्तु नियप्पासायमागओ चिंतिउं लग्गो ॥ ३९८७ ॥ उप्पाइय विदेसं दइए पच्छा नियम्मि विसयम्मि । जणिया सामाणुरायं इमं खिविस्सामि सुद्धते ॥ ३९८८ ॥ ईय चिंतिय अत्थाणे ठाऊणुप्पाईया नरिंदेण । कित्तिमकडयागयनरहेण एयारिसी वत्ता ॥ ३९८९ ॥ कडयनिवासो फलिओ देव ! अमच्चस्स चेव नन्नस्स । संपत्ता जेण पिया नवजोव्वणकेरलीरमणी ॥ ३९९० ॥ जारिसयं से रूवं न तारिसं नूणमवरनारीण । किं जंपेमि असच्चवियदंसणामरपुरंधीसु ॥ ३९९१ ॥ तीए सहाणेयविणोयवग्गयासंगओ गमइ दियहे । अन्नाए च्चिय अहवा वेयल्लसमज्जमित्थीओ ॥ ३९९२ ॥ ठाणम्मि जम्मि जम्मिं मंती परियडइ वाहणारूढो । अद्धासणं न मुंचइ केरलिया तत्थ तत्थेव ॥ ३९९३ ॥ अन्नोन्नविउत्ताइं दिट्ठाई ताई जन्न केणावि । तेणं चिय तन्नेहो सारसमिहुणस्स व पसिद्धो ॥ ३९९४ ॥ किं बहुणा पहु ! मंती झंखइ सुत्तो वि केरलि त्ति पयं । नट्ठमणो पुरिसंतरमवि न नामेण वाहरइ ॥ ३९९५ ॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा ३१३ किं बहुणा सो तत्तणुघडणुच्चरिएण दलभरेण कओ ।। मंती तदेकचित्तो कहन्नहा तस्स उव्वविओ ॥ ३९९६ ॥ इय समइपरकप्पियकूडवत्तमुल्लासिउं नरिदेण । तह विहियं जह वत्ता निसुया नयसुंदरीए वि ॥ ३९९७ ।। तं सोउं से जायं अच्चंतं दुस्सहं महादुक्खं । अहवा सावक्काउ नन्नं दुहमत्थि इत्थीण ॥ ३९९८ ॥ अइतिव्वमुम्मुरानलसेज्जगयाए व्व डज्झइ तणू से । कलकलओ उल्लसिओ हिययगयणे चेव वालेण ॥ ३९९९ ॥ अरइअसुहत्थीकल्लिमाहिं कलिङ पिसाईयाहिं व । वेयल्लं उल्लासिय अणप्पवसया कया दूरं ॥ ४००० ॥ अस्सुयपुव्वं सोउं पइस्सरूवं विभाविउं लग्गा । जइ कयमेयं दइएण ता न पडिमत्थि जए ॥ ४००१ ॥ तं चिय मह हिययम्मि निवससि नन्नत्ति जंपियं जमिमं । तस्सावसाणमेयं अहवा मायाविणो पुरिसा ॥ ४००२ ॥ वीसंभजंपियाणं सहरिसमसिणेहविलसियाणं च । एरिसओ पज्जतो जाओ जेणेरिसं भणियं ॥ ४००३ ॥ ताण गुणग्गहणाणं ताणुक्कंठाण ताण भणियाण । ताण रमियाण पिययम अवसाणं एरिसं जायं ॥ ४००४ ॥ पच्चक्खं तह कह वि हु कुणंति चाडूणि जह महेलाओ । हुंति वराईओ तम्मयाओ नियसत्थया जोग्गा ॥ ४००५ ॥ जे दोसा महिलाणं हवंति ते समहिया नराणं पि । निदिज्जति वराईओ ताओ एमेव य कईहिं ॥ ४००६ ॥ नूणं नराण अन्नं वयणे अन्नं तु होइ हिययम्मि । कहमन्नहा तदुत्ते वि होइ दूरं विसंवाओ ॥ ४००७ ॥ कोमलतणुजोगाओ व महिलाण मणं पि कोमलं होइ । धुत्तपउत्तीहिं कहन्नहा तयं नमइ सहस त्ति ॥ ४००८ ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ . सिरिअणंतजिणचरियं मायाविणो असच्चा परकज्जपरम्मुहा सकज्जपरा । नूणं हवंति पुरिसा तो को किर तेसु पडिबंधो ? ॥ ४००९ ॥ इह चिठेंतो मं चेव देवयं पिव सया वि मन्नंतो । तत्थ गओ कीय वि केरलिए वामोहिओ दूरं ॥ ४०१० ॥ महचित्तरक्खणत्थं पेसिय पुरिसे करावए सारं । अवरा संतो जं सो तं महइ नेहेण पन्भट्ठो ॥ ४०११ ॥ . एवं पयट्टअट्टज्झाणपरिखिज्जमाणसव्वंगी । पुरिसं पइ विद्देसं पत्ता नयसुंदरी दूरं ॥ ४०१२ ॥ तप्पासट्ठियपरिवारपुच्छणा जाणिउं नरिंदेण । नयसुंदरी विराओ सचिवे कहिओ जणसहाए ॥ ४०१३ ॥ भणियं च अहो सा एगचित्तया मंति-मंतिपत्तीण । कत्थ गया जा तुब्भेहिं वन्निआ आसि मह पुरओ ॥ ४०१४ ॥ भणियं मए पुणो जं आमरणंतो न कस्सई नेहो । अह होइ कह वि कत्थइ सो विरलो तं इमं मिलियं ॥ ४०१५ ॥ तो अत्थाणजणेणं भणियं देवस्स मिसियं वयणं । सच्चं चिय संजायं पहुवयणं किंचि संवयइ ॥ ४०१६ ॥ अहह पवंचो पहुणो अगोयरो नूण अमरगुरुणो वि । अहवा सुहुममईणं अन्नायं नत्थि भुवणो वि ॥ ४०१७ ॥ एत्थंतरम्मि राया अस्थाणजणं विसज्जिङ झत्ति । कयभोयणाइकिरिओ निसाए सुत्तो विचिंतेइ ॥ ४०१८ ॥ संपय चंपयवनं अप्पायत्तं करेमि मंति-पियं । जं तीए रूवरेहं न लहइ मह सहयरी का वि || ४०१९ ॥ ईय चिंतिऊण रन्ना दुई संपेसिउं पउत्ता सा । साणुणयं सप्पणयं च सोवलोहं पगब्भगिरं ॥ ४०२० ॥ अच्चंतदुही राया सोउं दुव्विलसिअं अमच्चस्स । जं तेण तुज्झ हियए सवत्तिसल्लं विणिक्खित्तं ॥ ४०२१ ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ रयणावलिकहा . तुह तारिस जयचित्तफुरंतअसमाणपेम्मपसरस्स । जह लज्जियं अमच्चेण पेच्छ तुच्छयरचित्तेण ॥ ४०२२ ॥ नूणं न कोइ नेहो नराण नियकज्जनिट्ठचित्ताण ।। वज्जियमज्जायाणं निल्लज्जाणं अणज्जाणं ॥ ४०२३ ॥ जइ अत्थि अमरिसो तुह ता तं पि हु कुणसु जं कयं तेण । हम्मइ वेहे वंकम्मि कीलिया वंकिया अहवा ॥ ४०२४ ॥ जो निरभिमाणचित्तो वाहिज्जइ सो सदा सवित्तीए । खडभारवहो कीरइ किं न करी तेयपरिहीणो ॥ ४०२५ ॥ नित्तेयसतेयाणं पयर्ड चिय अंतरं जए नियह । पूइज्जइ जलिरग्गी पाएण वि छिप्पइ न छारो ॥ ४०२६ ॥ ता सरसु पइ निवई तुह सवसे तम्मि जयजणो सवसो । चंदबले वि जयंते बलिणो सेसग्गहा अहवा ॥ ४०२७ ॥ . संति पभूया पुरिसा परमिह तुल्लो न कोइ नरवइणो । अहवा सव्वे वि रसा पीयूस-रसस्स सरिसा किं ?॥ ४०२८ ॥ निवसत्ताए जायाए सेवओ जयजणो वि तुह होही । तह माणमद्दणा वि हु होइ कया परिहवकरस्स ॥ ४०२९ ॥ दूरं जस्सालवणं पाविज्जइ दंसणं पि पुन्नेहिं । सो पुहइवई सयमवि तं पत्थइ ता कयत्थासि ॥ ४०३० ॥ इय जंपिरं निसामिय दूई नयसुंदरी पयंपेइ । किमिह मुहेव किलम्मसि दुहा वि अन्नायपरचित्ता ॥ ४०३१ ॥ जंतेहिं वि पाणेहिं नाहमकज्जं कयाइ वि करिस्सं । एमेव महापावं अज्जइ जइ अज्जओ निवो ता ॥ ४०३२ ॥ रुट्ठस्स जमस्स वि नो बीहेमि निवस्स का पुणो वत्ता । काहामि न तमकज्जं सुयं मए नियकुले वि न जं ॥ ४०३३ ॥ दारिदं पि हु रज्जं व मज्झ अइविमलसीलकलियाए । रोरत्ताओ वि अहियं चक्कित्तं पि हु सीले नठे ॥ ४०३४ ॥ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ सिरिअणंतजिणचरियं लच्छी गच्छउ पाणा वि जंतु सयणा वि वेरिणो हुंतु । जइ मह विमलं सीलं न विणस्सइ किं पि न गयं ता ॥ ४०३५ ॥ जो होइ पयापालो न तस्स चिंता वि एरिसी जुत्ता । किं पुण घडणारंभं काउं दूईण पट्ठवणं ॥ ४०३६ ॥ वीसत्थघायगाणं पढमो राया जओऽहमेयस्स । पासे मुक्का ता पेसइय कुणंतो कहं तम्मइ ॥ ४०३७ ॥ ता तं गंतुं साहसु जह किंचि न मन्नए अमच्चपिया । तं सोउं माह दुई बला वि समयं निवो काही ॥ ४०३८ ॥ जंपइ सई न सरिसा दूइ अहं नूणं पवरमहिलाण । जं नियहिययाभिमयं काही निवईबलेणावि ॥ ४०३९ ॥ इय सव्वमहेलाणं अवण्णवायं पजंपिउं तीए । दुस्सीलयाकलंको समज्जिओ दारुणविवागो ॥ ४०४० ।। इय सुणिय तीए गंतुं निवस्स कहिओ सईए वुत्तंतो । तमपावंतो राया अहिययरं असुहमणुपत्तो ॥ ४०४१ ॥ मंतिप्पिया वि चिंतइ पडिकूलो मज्झ कम्मपरिणामो । जमिमो जाओ रोगो पियविरहो तह सवक्किदुहं ॥ ४०४२ ॥ इह दुहपरंपराए तूसइ नज्जइ विही तओ एयं । पारद्धं नरवइसीलखंडणाहियतरं असुहं ॥ ४०४३ ॥ सव्वाइं वि एयाइं सहेमि इह जम्मदिन्नदुक्खाइं । नो आभवपावकरं सक्कमि कुसीलयं सहिउं ४०४४ ॥ तो जावज्जवि राया राहु व्व न चंदमंडलं सीलं । कलुसं करेइ मह ता मरणं सरणं नवरमेक्कं ॥ ४०४५ ॥ होहि त्ति नूण पाणा पाणीण सुहासुहाभवावत्ते । जं निक्कलंकसीलं तं पुण दुलहं चएमि न ता ॥ ४०४६ ॥ इय चिंतिऊण उब्बंधेऊण अत्ताणयं अमच्चपिया । नियसिलभंगभीया पंचत्तं झत्ति संपत्ता ॥ ४०४७ ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिकहा ३१७ नाऊण निवो मंतिप्पियं मयं सरिय निययदुच्चरियं । दूरं झूरइ हियए थीहच्चा पावकारि त्ति ॥ ४०४८ ॥ कडयागओ अमच्चो नाऊण नियं पियं कहासेसं । जणयंतो जणसोयं रोयइ हाहारवरउदं ॥ ४०४९ ॥ हा हा सिणेहसारे ! हा सिहिणुच्छंगसंगिवरहारे ।। हा अमियवयणिदईए ! मणरइए देसु पडिवयणं ॥ ४०५० ॥ हा सुद्धनिययवंसे ! हा निम्मलसीलपावियपसंसे ।। देसु देसु दयारसिए दइए नियदंसणं मज्झ ॥ ४०५१ ॥ आसंघएण वि तए सिविणम्मि वि खंडिया न मह आणा । तं ते दीहरनेत्त ! दारइ चित्तं सरिज्जंतं ॥ ४०५२ ॥ जं सुयणु ! तुह विवत्तिस्सवणावसरे वि नो विवन्नोहं । तं उवयारिओ कित्तिमो य नेहो मम पसिद्धं ॥ ४०५३ ॥ ईय उप्पाइयजणमणकरुणं अक्कंदिउं महामंती । लोगोवरोहओ कुणइ भोयणप्पमुहकरणिज्जं ॥ ४०५४ ॥ अह अन्नया य सुहसीलसायरो सीलसायरो नाम । पत्तो सूरी चूरीयअट्ठमयट्ठाणसुरसेलो ॥ ४०५५ ॥ निग्गंथो वि पवित्तो सामरओ सव्वया वि दंडकरो । अंगीकयपावरणो पावरणविवज्जिओ वि सया ॥ ४०५६ ॥ कलहंसकलियनामे आरामे सुरहिकुसुमअभिरामे । फासुयदेसे सुरकयसुवन्नकमले समासीणो ॥ ४०५७ ॥ नाऊणमागयं तं मंती विप्फुरियगरुयभत्तिभरो । संपत्तो आरामे वंदइ गुरुपायसयवत्तं ॥ ४०५८ ॥ गुरुणा वि सयलकल्लाणकंदकंदलणघणजलासारो । सग्गापवग्गहेऊ दिन्नो सद्धम्मलाहो से ॥ ४०५९ ॥ आसी वि जेसि निस्सेसतिजयकल्लाणकारणमणप्पं । तेसिं सेवा दाही जं सिवसोक्खं न तं चित्तं ॥ ४०६० ॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ इय चिंतिऊण तेणं पणामपुव्वं पयंपियं पहु ! मे । साहसु धम्मं जेणं न होइ पुण वल्लहविओगो ॥ ४०६१ ।। भाइ गुरु एयं चिय सरूवमेयस्स भवविलासस्स । जं होइ पियविओगो अणिट्ठजोगो य उल्लसइ ।। ४०६२ ॥ सयणेहिं सह विरोहो जायइ संपज्जइ सिरीनासो । पसरइ जरा सरीरे हरंति रोयावलोयाई ॥ ४०६३ || तारुन्नं अवगच्छइ विचईओ इंति ल्हसइ लायन्नं । पासं न चयइ मच्चू निच्चं पि इमाई जं नूणं ॥ ४०६४ ता एरिसे दुरंते भववासे सव्वहा अंसारम्मि | बहुसो सयमणुभूए को मोहो मंति ! पियसि ॥ ४०६५ ॥ जणणी जणओ तणया दइया दुहियाओ बंधुणो सुहिणो । नियकज्जकयसिणेहा ता कीरइ तेसु को मोहो ? || ४०६६ ॥ निद्द व्व हरइ फुरणं चेयन्नं नासवेइ मुच्छ व्व । जलणो व्व दहइ देहं गरलं पिव मारए मोहो || ४०६७ ॥ तित्थंकरे वि रईओ जइ केवलनाणमावरइ मोहो । इयरनरे कीरंतो ता कह न भवब्भमं देइ ॥ ४०६८ | ताणत्थयरं मोहं मोत्तुं चित्तम्मि पयडिय समाहिं । देवगुरुधम्मतत्ताइं भवहराई मुणसु मंति ! ॥ ४०६९ ॥ रागोसाईया अट्ठारस संति जस्स नो दोसा । सो भुवणगुरू देवो जे उ सदोसा न ते देवा ॥ ४०७० समयन्नुणो पसंता बहिरंतरगंथवज्जिया मुणिणो । गुरुणो नेय जे पुण इयगुणहीणा न ते गुरुणो ॥ ४०७१ ।। तं चेव सुणह धम्मं जीवदया जम्मि कीरए सम्मं । तीए रहिओ अहम्मो कट्ठे वि कए किलेसफलो ॥ ४०७२ ॥ जीवाजीवाईयं नवगं तत्ताण केवलिपउत्तं । विन्नेयमनाणीहिं जं कहियं तं पुण अत्तं ॥ ४०७३ || सिरिअणंतजिणचरियं Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१९ रयणावलिकहा देवगुरुधम्मतत्ताई धरसु जइ मोहरायमभिहणसि । . गयहयरहजोहचउधरिज्जपरिओ जयाय न किं ॥ ४०७४ ॥ भमिराण भवावत्ते सुलहाओ चक्किसक्कलच्छीओ । देवगुरुधम्मतत्ताई दुल्लहाई तु सत्ताणं ॥ ४०७५ ॥ इय निसुणियमुणीसरदेसणस्स सहस ति मंतिणो तस्स । सिवकप्पडुमबीयं उल्लसियं सुद्धसम्मत्तं ॥ ४०७६ ॥ तो भालतलनिवेसियजोडियकरसंपुडो महामंती । सामंतसेहरीकयपंकयकोसो व्व विन्नवइ ॥ ४०७७ ॥ पहु ! तुज्झ देसणादुद्धपाणओ महमणाओ अवसरिया । मिच्छा बुद्धी विवरियदरिसणी पित्तभंति व्व ॥ ४०७८ ॥ तह सारासारवियारचउरया पहु पसायओ जाया । सुचरियकम्माणु न किं जायइ जइ वा गुरुराया सा ॥ ४०७९ ॥ मह देह सव्वविरई न सामि गिण्हामि देसविरइमहं । पाविज्जते चिंतामणिम्मि को लेइ कायमणिं ॥ ४०८० ॥ गुरुणा भणियं निव्विग्घमत्थु तुह वंछियस्थकरणम्मि । तं सोउं सो पणमिय गुरूण पत्तो निययभवणे ॥ ४०८१ ॥ रन्नो सयासओ मोइऊण अप्पाणयं पसंतप्पा । धम्मम्मि धणं दाउं काउं तित्थुन्नई परमं ॥ ४०८२ ॥ पहाणविलेवणसिंगारसुंदरो सिबियमारुहेऊण । पत्तो गुरुपयपासे सुमहुत्ते दिक्खिओ तेहिं ॥ ४०८३ ॥ उवहाणुकरणपुव्वं अंगोवंगाइयं सुयं पढिउं । नियतणुनिरवेक्खं तिव्वतरतवं विरइउं बहुसो ॥ ४०८४ ॥ आलोयणाईरईयंतकिरियसुविसुद्धमणपरीणामो । मंतिमुणी संपत्तो मरिडं नवमम्मि गेवज्जे ॥ ४०८५ ॥ अहमिंदसुरसमद्धिं भोत्तुं तत्तो चुओ परप्पवरे । सिरिरयणतोरणरयणसेहरो नरवई जाओ ॥ ४०८६ ॥ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० सिरिअणंतजिणचरियं नयणाणंदो राया रज्जे ठविउं सुयं जयाणंदं । काऊण किं पि अन्नाणकट्ठममरत्तणं पत्तो ॥ ४०८७ ॥ तत्तो चविउं भमिउं भवम्मि सिरिगयणवल्लहे नयरे । जाओ नहयरनाहो विज्जुप्पहनामविक्खाओ || ४०८८ ॥ उब्बंधणेण नयसुंदरी मया भमिय भीमभववासे । कयसुकया तुज्झ सुया जाया रयणावली नाम ॥ ४०८९ ॥ नयसुंदरी भवम्मि पुरिसे जाओ जमासि विद्देसो । तं सा तुह दुहियत्ते वि पुरिसविद्देसिणी जाया ॥ ४०९० ॥ तह कह विवद्धिओ से विद्देसो असरिओ पुरिसविसए । जह पुरिसपवित्ती वि हु दहइ तयं जलणजाल व्व ॥ ४०९१ ॥ कईया वि हु विज्जुप्पहरन्ना नंदीसरम्मि जंतेण । उज्जाणे कीलंती दिट्ठा रयणावली बाला ॥ ४०९२ ॥ नयणाणंदनिवत्ते जा मंतिपियाए आसि अणुराओ । सो च्चिय पाउब्भूओ तं दटुं तस्स सहस त्ति ॥ ४०९३ ॥ ता नहयरिंद ! नियकम्मविलसियं पुव्वभवभवं पायं । पावइ जीवो पत्ता जह कन्ना पुरिसद्देसं ते ॥ ४०९४ ॥ जं पुच्छियं तए नहयरिंद ! कुमरीए पुरिसविसयम्मि । विद्देसकारणं तं सव्वं पि हु तुह समक्खायं ॥ ४०९५ ॥ तं सोऊणं ताओ पसंसपुव्वं तमवि तं साहुं ।। गयणंगणाण पत्तो रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ४०९६ ॥ रयणावलीए कुमरीए साहए तं तहा असेसं पि । जह सव्वसेहराओ मुणिणो वयणाओ विन्नायं ॥ ४०९७ ॥ तं सोऊणं रयणावलीए सहस त्ति आगया मुच्छा । निद्द व्व सिविणयं पिव तप्पुव्वभवं पयासेउं ॥ ४०९८ ॥ रइय सिसिरोवयारे निएहिं सा पत्तचेयणा विहिया । न परोवि उवेहिज्जइ वसणगओ किं पुणो नियया ? ॥ ४०९९ ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका तो मुच्छाए विगमे तीए उम्मीलियाइं नयणाई | रयणीविरामसमए मउलीकयपंकयाइं व ॥ ४१०० ॥ तो ती जंपियं ताय ! तुह जहा साहुणा समक्खाओ । तह पुव्वभवो जाइसरणेण मए वि सच्चविओ ॥ ४१०१ || साऽऽह नहगणेण नायं जं नयणाणंदराइणा रइयं । कवडं जेणुप्पन्नो मह विद्देसो सिणिद्धपि ॥ ४१०२ ॥ अन्नोन्ननेहनिब्भरमणाणमुप्पाइऊण विद्देसं । लुद्रेण परपियाए पावं चिय पावियं तेण ॥ ४१०३ ॥ निक्कित्तिमसिणेहो सच्छप्पयई मए महामच्चो | अमुणियनिवप्पवंचाए चिंतियं अलियवाइ ति ॥ ४१०४ ॥ अपरिक्खियं न कज्जं सिद्धं पि न सज्जणा पसंसंति । सुपरिक्खिययं पुणो विहडियं पि न जणेइ वयणिज्जं ॥ ४१०५ ॥ ता अज्ज वि न विणट्ठे किं पि जओ पुव्वभवपिओ मंती | जाओ या सिरिरयणसेहरो अहमवि कुमारी ॥ ४९०६ ॥ ता ताय ! मह निमित्तं पुव्वब्भवुभवपियं निवं वसु । जं सो च्चिय मह सरणं मरणं वा तव्वराभावे ॥ ४१०७ ॥ नाऊं पुव्वभवुब्भवपयम्मि सिरिरयणसेहरे रायं । नियकन्नयाए जाओ नहयरनाहो फुरियहरिसो ॥ ४१०८ ॥ आलोचिऊण सामंतमंतिअंतेउरीहिं सह रन्ना । तुम्हाणयणनिमित्तं पट्ठविओ सामि ! अहमत्थि ।। ४९०९ ॥ ता कयबहुप्पसाया पहुणो वेयड्ढपव्बए वयह । वीवाहह मह भइणिं पुव्वभवप्पिययमं तत्थ ।। ४११० ।। तं आयन्निय निवरयणसेहरो जायजाइसरणेण । अवलोयइ सव्वं पि हु पुव्वभवं तेण जह कहियं ।। ४१११ ।। तो तव्विस जाया समाणाणुराओ नरेसरो भाइ । कुमर ! तमलंघवयणो ता तुह वृत्तं करिस्सामि ४११२ ॥ ३२१ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ । सिरिअणंतजिणचरियं इय जंपिय रयणप्पहकुमरस्स सपरियणस्स नरनाहो । विरइय सम्माणं वज्जविलसिराभरणवत्थेहिं ॥ ४११३ ॥ नहयरपुरगमणमणो सामंते मुयइ रज्जरक्खत्थं । न थिरम्मि वि विस्सासो कीरइ किमु चलनिवसिरीए ॥ ४११४ ॥ पउणं करेइ राया गय-हय-रह-जोहसोहियंतेणं ।। विज्जाहरविज्जाबलपभावओ सो गओ गयणे ॥ ४११५ ॥ उत्तरदिसाए गच्छइ भूरिबलो धणयमभिहणिउकामो । मज्झ वि बीओ अवरो वि रायराओ त्ति कुविओ व्व ॥ ४११६ ॥ अनिलचलकयलिओहा करिणो गच्छंति मयजलप्पवहा । उड्डुति विहियपक्खा गिरिणो व्व पुणो सनिज्झरणा || ४११७ ॥ चलतुरयभालतवणीयजणियदिप्पंतदप्पणालीओ । रेहति भासुराओ रविबिंबपरंपराओ व्व ॥ ४११८ ॥ सोहइ गयणुच्छंगो संदणगणकणयकलसकमणीओ । दिवसम्मि वि परिपसरियतारयसमलंकिओ व्व धुवं ॥ ४११९ ॥ माऊरमेहडंबरनवरं गयधवलछत्तविंदाइं । नीलासियसोणस्सेयपंकयाइं व नहनईए ॥ ४१२० ॥ अनिलचला धवलद्धयचिंधालंबा सहति सव्वत्तो । सारयरिऊसंभविभमिरसुब्भअब्भावलीओ व्व ॥ ४१२१ ॥ घणवन्नमणिविमाणप्पहाभरो पसरिओ गयणगब्भे । पट्टउयवत्थपडमंडवो व्व वित्थारिओ भाइ ॥ ४१२२ ॥ इय भूरितरव्वइयरविरायमाणो नरेसरबलोहो । गच्छंतो संपत्तो रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ४१२३ ॥ . वज्जिरमहुराउज्जं नच्चिरविलयं पढंतमग्गणयं । विहिओ पुरे पवेसो सूरप्पहराइणा रन्नो ॥ ४१२४ ॥ आवासिओ य आरामरम्ममाणिक्कमंदिरे रूंदे । अमरवइ व्व सुहम्मावयंसनामे विमाणम्मि ॥ ४१२५ ॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२३ रयणावलिकहा भोयणदाणाईया पडिवत्ती कारिया खयरपहुणा । अहव नयनिउणमइणो कुणंति नायारपरिहरणं ॥ ४१२६ ॥ आगंतुं विन्नत्तो कुमाररयणप्पहेण नरनाहो । देवाऽऽगच्छह परिणह कुमरिं लग्गं जमासन्नं ॥ ४१२७ ॥ एवं ति निवुत्ते नहयरीहिं न्हविउं विलेविओ राया । सिंगारिओ य हीरयविराईयाभरणविसरेण ॥ ४१२८ ॥ परिहाविओ य निम्मोयसुहुमसियसदसमिउदुकूलाई । कयकोउयमंगल्लो मंगलमुहलाहिं खयरीहिं ॥ ४१२९ ॥ आरूढो मयभरमत्तमहुयरारावरम्मकरिराए । पुन्निमरयणीयरबिंबसच्छहछत्तसच्छाओ ॥ ४१३० ॥ पणरमणिपाणीचालियचंदुज्जलचारुचमरकयसोहो । उम्मत्तकरेणुघडाचडियुब्भडरायकयवेढो ॥ ४१३१ ॥ उत्तरलतरतुरंगस्सणिवियमंडलीयमंडलिओ । झणहणिरकिंकिणीगणसंदणसामंतसंजुत्तो ॥ ४१३२ ॥ उच्चरियचारुचारणजयजयरवथवणजायउक्करिसो । वज्जंतमंगलाउज्जमंजुलारावरुद्धनहो ॥ ४१३३ ॥ जंपाणसुहासणमणिविमाणगयखयररायअणुसरिओ । मंथरगईए पविसइ पुणविवणिपहेण नरनाहो ॥ ४१३४ ॥ ठाणट्ठाणसमारद्धमुद्धपेच्छणयविरईयविलंबो । पत्तो विवाहमंडवकयतोरणदारदेसम्मि ॥ ४१३५ ॥ उत्तिन्नो य गयाओ मणिनिम्मियरम्मसालगणियाए । कयकुमरकरालंबो चंदणमालातलम्मि ठिओ ॥ ४१३६ ॥ जीवंतसजणणीजणयसासुयाससुरदईयसुहयाहिं । भिउडीभंगायारो रईओ रन्नो नहयरीहिं ॥ ४१३७ ॥ तयणु पविट्ठो गुरुहत्थिमंथरं कयगई निवो तत्थ । वत्थावरियसरीरा चिट्ठइ रयणावली जत्थ ॥ ४१३८ ॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ सिरिअणंतजिणचरियं दाऊण मग्गणकहियकणयमवलोयए मुहं तीए । दुलहत्त ईसराणं तं जं लब्भइ धणेणावि ॥ ४१३९ ॥ तारामेलयकाले अन्नोन्नं ताई दोन्नि वि नियंति । कयदंसणंतराए मोत्तुं कोवेण व निमेसे ॥ ४१४० ॥ पुन्नाक्खरवुच्चरेण पुव्वं विप्पेण पन्नइठं से । लोयणमिलणेसा पईव ताण करा वि मेलविया ॥ ४१४१ ॥ मंडलयचउक्केणं जलणस्स पयाहिणाओ दिताई । चउगइपरियडणं पिव भवस्स विसएहिं दंसंति ॥ ४१४२ ॥ खेयरवइणा दिन्ना कुमरीकरमोयणे सिरी पउरा ।। न हि माणुसाओ अवरं वरमत्थि न दिज्जए जं से ॥ ४१४३ ॥ नियपरपक्खे नराणं वत्थाभरणाई दो वि वियरंति । अच्चंतमुदाराणं न नियम्मि परम्मि व विसेसो || ४१४४ ॥ वज्जिरवद्धावणयच्छंदपणच्चंतकुलबहूविसरो । उग्गीयमंगलावलिविलया गिज्जंतनिवगोत्तो ॥ ४१४५ ॥ अक्खयवत्तविहत्थप्पविसरसिंगारितरुणरमणियणे । दिज्जंत भूरिदाणो विवाहमहूसवो जाओ ॥ ४१४६ ॥ (जुयल) नवनवसम्माणपवद्धमाणअपमाणपत्तपरिओसो । दिवसाइं दस नरिंदो अइवाहइ अमुणियाई व ॥ ४१४७ ॥ तो मोयविय ससुरं सुरंगणारूवपणइणिं महिउं ।। चलिओ नहेण नियनहयरिंदवलवलईओ राया ॥ ४१४८ ॥ रयणप्पहकुमरविमाणसत्तवारणयआसणासीणो । चलइ अवलोयमाणो विमाण-करि-हरि-रह-भडोहं ॥ ४१४९ ॥ पंतिट्ठियपवणुच्छलिरभूरिसियचिंधधयअलंबेहिं । उल्लासंतो नहयलसुरसरिकल्लोलमालं व ॥ ४१५० ॥ गयघडपमुक्कफुक्कारसिक्करासरे वरिसपसरमिसा । जणयंतो मुत्तावरिसदंतुरं सयलगयणयलं ॥ ४१५१ ॥ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२५ रयणावलिकहा कंचणविमाणसंकंतसूरविप्फुरियपहभरप्पसरा । पयडतो अच्चुब्भडतडिच्छडाडोयमिव गयणे ॥ ४१५२ ॥ मणपवणनयणजइणा जवेण जंतो झडत्ति संपत्तो । सिरिरयणतोरणाभिहनियगुरुपुरपरिसरूद्देसे ॥ ४१५३ ॥ विज्जाहरविज्जाबलनिम्मियमाणिक्कमंदिरे नयरे । आवासिओ नरिंदो सबलो सक्को व्व सुरलोए । ४१५४ ॥ नाऊण नियं नाहं समागयं पमुईएहिं पउरेहिं । सम्मज्जियाओ रत्थाओ हट्टसोहाओ विहियाओ ॥ ४१५५. ॥ घुसिणरसासित्तघरंगणेसु घणसारसारचुन्नेण । रंगावलीओ रइयाओ तोरणस्सेणितलदेसे ॥ ४१५६ ॥ गोउरचउक्कतियचच्चरेसु बहुभूमिया कया मंचा । __मंदानिलरिंखोलियचलधयरणझणिरकिंकिणिया ॥ ४१५७ ॥ तो निवपच्चाणीए नायरया निग्गया नियंति पुरं । पाहुणयं पिव पत्तं नहयरनयरं निवपुरस्स ॥ ४१५८ ॥ तं अच्चब्भुयमणिगणभवणं अवलोइऊण चिंतंति । किं सक्खं सुरलोओ एसो पायालपुरमहवा ॥ ४१५९ ॥ एवं वियक्कवसया पविसित्तु निवं नमंति पासाए । सम्माणिया य लीलावलंतनेत्तेण ते तेण ॥ ४१६० ।। परिपुच्छिया य कुसलं कहंति ते सामि ! तुह पसाएण । सक्कारिया तओ ते वत्थाभरणेहिं नरवइणा । ४१६१ ॥ दिव्वम्मि दिणे वारे वरम्मि चंगम्मि लग्गसमयम्मि । न्हाओ कयबलिकम्मो परिविलसिरसारसिंगारो ॥ ४१६२ ॥ मुत्ताविभूसणुच्छलियतेयधवलियकरेणुरायम्मि । आरूढो जसधवलो सपिओ हीरो व्व हिमवंते ॥ ४१६३ ॥ धरियं सियायवत्तं निवस्स लंबंतमोत्तिआऊलं । पुन्निमरयणीयरमंडलं व किरणावली कलियं ॥ ४१६४ ॥ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ सिरिअणंतजिणचरियं धवलिज्जइ तरुणविलासिणीकरुल्लसिरसेयचमरेहिं । चलगयवसरिंखोलियमुत्ताहारप्पहाहिं व ॥ ४१६५ ॥ गयहयरहेसु चडिउं चलिया निवमंडलियसामंता । परिवेढिज्जंतो तेहिं पविसए नयरमवणिवई ॥ ४१६६|| तो मणिविमाणचडिया चलिया खयरेसरा नहयलेण । अमरा नरेसरपुरपवेसमवलोइडं च पत्ता ॥ ४१६७ ॥ दुडुदुडिडमरुयढुक्काढक्कातंबक्कबुक्करावेण । बहिरंतो बंभंडं पासाय-पडिरवेहिं च || ४१६८ ॥ आयन्नंतो वीणावेणुरवुम्मिस्सकामिणी गीयं । अवलोयंतो करणक्कमरमणीयं रमणिनढें ॥ ४१६९ ॥ पविसंतम्मि नरिंदे खुहिओ सव्वो वि पुरजणो झत्ति । छणहरिणलंछणम्मि उदिए सायरजलोहो व्व ॥ ४१७० ।। रायमंदिरहट्टालएसु कोऊहलुक्कलियकलिओ । आरूढो रायनिरिक्खणाय लीलावईवग्गो ॥ ४१७१ ॥ अंजियएगच्छि निवपवेसपरवसमणा गया वीहिं । दट्टुं सकया लुड्ढा जणेण पहसिज्जए का वि ॥ ४१७२ ।। कन्नेसु कंकणाई तइंसणऊसुयाए खित्ताइ । कीए वि अवराए पुण रसणा कंठम्मि निक्खित्ता ॥ ४१७३ ॥ उव्वेलिंती केसे मुक्कलबाला गया निवपवेसे । का वि असंवुयदेहा नज्जइ भूयाभिभूय व्व ॥ ४१७४ ॥ निवदंसणूसुयमणा घुसिणं मुत्तूण जावयरसेण । का वि कयअंगराया रुहिरसिणाय व्व चामुंडा ॥ ४१७५ ॥ का वि पयंपई पियसहि ! एस अणंगो वि पत्तपवरंगो । नियरूवविजियअमरी एसा हु धुवं रईरामा || ४१७६ ॥ अवरा जंपइ पुरिसोत्तमो इमो संख चक्कगयपाणी । एसा कमलधरकरा नूणं पयप्पिया लच्छी ॥ ४१७७ ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलिका अवरा वज्जरइ उमावई इमो सव्वया नयावासो । एयं महीहरसुयं गोरिं पच्चक्खमिक्खेह ॥ ४१७८ ॥ अन्ना उल्लवइ इमो हु सयं महो वज्जविलसिरकरो य । एसा एय सयासे समस्सिया निच्छएण सई ॥ ४१७९ ॥ एवं पयंपिरीओ नरवइरूवावहरियहिययाओ । रमणीओ मयणमग्गणगणप्पहारेहिं भिज्जति ॥ ४१८० ॥ निवतणुगयनयणाओ अन्नायसमविसमभूमिभागाओ । रायपहे खलणावडणविहुरयं जंति जुवईओ ॥ ४१८१ ॥ भालयलकयाहो सुहकरपल्लवहरियनयणरवितावा । दूरट्ठियाओ काउ वि नरवइमवलोययंति चिरं ॥ ४१८२ ॥ इय मयणनडिज्जंतं नववयरमणीयणं निरिक्खंतो । कय अक्खयनिक्खेवं थुव्वंतो नयरथेरीहिं ॥ ४१८३ ॥ अभिगिण्हंतो अग्घे ईसरघरदारकुलवहू विहिए । अवलोयंतो तरलयातोरणमालाओ मंचेसु ॥ ४१८४ ॥ सम्माणितो मित्ते हिंजो दाणाई दीणबंदीणं । गुरुरिन्द्विवित्थरेणं नियपासायं ति संपत्तो ॥ ४९८५ ॥ उत्तरिय सयं उत्तारिउं च कंतं करेणुरायाओ । अणुहविय मंगलायारमुत्तमं पविसइ सहाए । ४९८६ ।। आइसिय कंतमंतेउरम्मि निविसइ सयं सहा मज्झे । फुरियमणिकिरणनियरे राया सीहासणुच्छंगे ॥ ४१८७ ॥ उवविट्ठा मणिभद्दासणेसु अवरे वि नहयरनरिंदा । सम्माणिया य उत्तमवत्थाहरणप्पयाणेण ॥ ४९८८ ॥ कित्तियमित्ताइं वि वासराइं धरिडं विसज्जिया संता । पत्ता खेयरवइणो वेयड्ढे तयणु नरनाहो ॥। ४९८९ ॥ रक्खइ रज्जं पालइ पयाओ जसमज्जए महइ अहिए । वज्जेइ दुज्जणे गुणिजणस्स गोठि अणुट्ठेइ ।। ४९९० ।। ३२७ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ सिरिअणंतजिणचरियं कम्मि वि समए सिंगारसुंदरो विहियभोयणो राया । अंतेउरम्मि गंतुं पविसइ रयणावली भवणे ॥ ४१९१ ॥ उवविसइ चंदमणिचंदसालियामणिमयासणुच्छंगे । कीलेडं पारद्धो सारीहिं समं नवपियाए || ४१९२ ॥ एत्थंतरम्मि गयणेण गरुयवेगेण गरुडउन्नइयं । नरवयणं पक्खिमिहुणं सहस त्ति निवंतियं पत्तं ॥ ४१९३ ॥ पणमिय निवपयसयदलमुवविट्ठो निवइणो पुरो पक्खी । तह पक्खिणी वि देवी संनिज्झे पढइ तो पक्खी ॥ ४१९४ ॥ कमलाहरे विराईयसुद्धोभयपक्खमहुरसरसहिया । असमए य माणसा वा सजयतु मं रायहंससया || ४१९५ ॥ तं सोउं नरवइणा भणियं पक्खिद ! पाडवमपुव्वं । तुह पढियस्स अपुव्वा छेउत्ती चिय मणो हरइ ॥ ४१९६ ॥ मुत्ती वि तुह अउव्वा जं पक्खिसरीरए मणुयवयणं । अच्छेरयाई अहवा दीसंति जए असरिसाइं ॥ ४१९७ ॥ ता कहसु किमत्थं इह कत्तो वा आगओ सि सो आह । नरनाह ! तमायन्नसु जो तुमए पुच्छिओ अत्थो ॥ ४१९८ ।। उत्तरदिसाए बहुं पहुं हिम-सिहरस्सेणि-रुद्ध-नह-रंधो से । अत्थि गुरुनयरसोहो वेयड्ढगिरि व्व हिमसेलो ॥ ४१९९ ॥ बहुसाहसिओ चोरग्गामो व्व समत्थि तस्स आसन्नो । आरामो बहुपत्तप्पसवसिओ पुन्नपुरिसो व्व ॥ ४२०० ॥ तं मज्झे नीलदलो रत्तफलो अत्थि गुरुयनग्गोहो । मरगयमणिपुंजो विव करंबिओ पउमराएहिं ॥ ४२०१ ॥ जो अक्खओ विसक्खओ उत्तमपत्तासिओ वि जडसहिओ । बहुपाओ वि अचलणो, विलसिरसालो विसालो वि ॥ ४२०२ ॥ सुयणे व्व तावहरए तम्मि कुलायम्मि विरईया वासो । नवनेहनिब्भराए एय पियाए सहच्छामि ॥ ४२०३ ॥ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा ३२९ अप्पो वि न संजाओ अम्हाण कयाइ पेम्मकलहो वि । एत्तियमित्तो कालोऽइक्कंतो सामिय ! सुहेण ॥ ४२०४ ॥ थोवदिवसाण मज्झे जाओ अम्हाण गुरु विसंवाओ । जेणत्थो एयाए पसंसिओ गुणगणो उ मए ॥ ४२०५ ।। भणियमिमाए मुक्खो वि पंडिओ निग्गुणो वि गुणवंतो । गयरूवो वि सुरूवो सो जस्स घरे सिरी पउरा ॥ ४२०६ ॥ लक्खणतक्कालंकारकव्वसिद्धंतछंदनिउणा वि । गासत्थिणो धणड्ढं मुक्खं पि सया वि सेवंति ॥ ४२०७ ॥ उत्तमकुलग्गयाण वि समहीय-समग्ग-गंथ-सत्थाण । धणवज्जियाण न गुणे वि जंति वुड्ढि जओ भणियं ॥ ४२०८ ॥ जाई कुलं कलाओ तिन्नि वि पविसंतु कंदरे विवरे । अत्थो च्चिय परिवड्ढउ, जेण गुणा पायडा हुंति ॥ ४२०९ ॥ चाडु-थुईहिं गुणीहिं वि धणिणो मुक्का वि संथुणिज्जति । ते पुण नियधणगव्वेण गुणिजणं तिणमिव गणंति ॥ ४२१० ॥ रन्नम्मि वि मुक्खस्स वि धणिणो निद्धो समेइ आहारो । वसिमे वि सुभिक्खे वि हु मरइ छुहाए गुणी अधणो ॥ ४२११ ॥ धणिणो जयं पि मित्तं धणिणो पयडइ जयं पि सयणत्तं । धणिणो वयणमलीयं पि सच्चयं निति गुणिणो वि ॥ ४२१२ ॥ ता सव्वहा वि तुल्लं न अस्थि अत्थस्स किं पि भुवणे वि । जेण सणाहा सिविणे वि माणभंगं न पावंति ॥ ४२१३ ॥ इय अत्थकयपसंसा, पयंपिया पहु ! मए पिया एवं । मिच्छाभिमाणिणी तं, जं सुयणु ! पसंससे अत्थं ॥ ४२१४ ॥ पुरिसेणं बुद्धिमया गुणज्जणा चेव उज्जमेयव्वं । नियदेसे व्व विएसे वि जं गुणी पावए पूयं ॥ ४२१५ ॥ वित्तं मुत्तूण घरम्मि निग्गया निग्गुणो गुणी दो वि । सव्वत्थ वि सहइ छुहं विगुणो नित्थरइ पुण सगुणो ॥ ४२१६ ॥ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० नियगुणगरिमत्तेणं साहइ गुणिणो जयं पि कज्जाई । धणगव्विय विगुणाणं, न कोइ किं पि हु करेइ जओ ॥ ४२१७ ॥ गुणिणो नियगुणगरुयत्तणेण पसंतभुवणं पि साहेज्जा । सव्वस्सुवेक्खणीया इयरे पुण कत्थ वच्चंतु ॥ ४२९८ ॥ पूइज्जति जणेणं मन्निज्जंति य नरेसरेहिं पि । किं बहुणा अमरा वि हु वड्ढंति वसे गुणिजणाणं ।। ४२१९ ॥ जायइ जणाणुराओ उप्पज्जइ चंदनिम्मला कित्ती । नूणं परजम्मो वि हु गुणवंताणं सुहो होइ ॥ ४२२० ॥ सारासारविवेगो धम्माधम्मफलम्मि विन्नाणं । जुत्ताजुत्तायरणं गुणीण नवरं परिप्फुरइ ॥ ४२२१ ॥ जायं पि धणं नासइ कस्सइ उप्पज्जए विट्ठपि । जे पुण गुणा न तेसिं नासो वुड्ढि च्चिय विसिट्ठा ॥ ४२२२ ॥ ता सुयणु ! असग्गाहं मुंचसु अत्थप्पसंसणसरूवं । जं जाणिय परमत्थाण मूढया होइ न कयाइ || ४२२३ || जाइय वुत्ता विन सामिसाल ! मुंचइ इमा असग्गाहं । ता वुज्झावेमि इमं केणइ गुणिण त्ति चिंतेउं ॥ ४२२४ ॥ तुम्ह सयासे पत्तो रायाह अहं गुणी कहं नाओ । तुमए त्ति तो पपई, पक्खी तं पि हु निसामेसु ।। ४२२५ ॥ देव ! जया तं वेयड्ढपव्वया परिणिऊण गयणेण । वलिओ तइया नायं मए जहा एस गुणगरूओ || ४२२६ || जो भूमिगोयरो विहु वीवाहियं नहयरिं सगुणरू । ते गुणहीणा खयरा तो कन्ना ताण नो दिन्ना ॥ ४२२७ || ता देव ! विवायमिमं हरिउं अम्हाण कुणसु संवित्तिं । उवयारमभणिया विहु कुणंति गरूया न किं भणिया ? तं सोउं जाव निवो परिभावइ तव्विवायभंगं ता । पक्खिमिहुणेण कयनररूवेण हिओ स-कंतो वि ॥ ४२२९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं ॥ ४२२८ ॥ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३१ सीलोवरिरयणावलीकहा पुव्वदिसाए नीओ नरेसरो पच्छिमाए पुण दइया । तो दासीदासमहल्लएहिं धाहावियं बहुहा ॥ ४२३० ॥ भो धाह ! धाह ! धावह, निज्जइ निवई नहेण स-पिओ वि । केणय अन्नयरेणं अमरा सुर-खयर-मज्झाओ ॥ ४२३१ ॥ तो धणुठवियसरा, धाणुक्का गुरुरएण धावंति । निसियासि खेडयकरा, विमुक्क हक्का य फारक्का ॥ ४२३२ ॥ वावल्ल-भल्ल-भल्ली-सेल्लाइपहरणग्गहणवग्गा । कक्कसहक्काहुंकारभीसणा पसरिया सुहडा ॥ ४२३३ ॥ जइ जाइ महिपहेणं ता तं पावंति ते तुरंता वि । अतरंता नहजाणे विलक्खवयणा पयंपंति ॥ ४२३४ ॥ नीयाइं दिसद्गम्मि देवो देवी य दो वि किं कुणिमो । आह-अमच्चो तुरए, सुवडियवेगेण परियडह ॥ ४२३५ ॥ मा कत्थइ गिरिकंदरसरितीरा रन्न-वण-निगुंजेसु । मुक्को देवो देवी व होइ जइ लहह ता सिग्धं ॥ ४२३६ ॥ आएसो त्ति भणित्ता सपरियणा मंडलीय-सामंता । तन्नयरचउप्पासं भमंति गुरुरयतुरयवडिया ॥ ४२३७ ॥ अगणियमग्गायासा, अकलियनिद्दा-छुहा-पिवासा य । सपियं निवनियंता सहति दुहमट्टापाहरियं ॥ ४२३८ ॥ दूरज्झियसिंगारा चत्तछत्ताइरायालंकारा । रायाणो वि हु हिंडं विपत्ति-वित्तीए सव्वत्तो ॥ ४२३९ ॥ गिरिदुग्गेसु निवडिया पविसियभमिया य कूवविवरेसु । अइदुप्पवेसवेल्ली पिणद्धगुम्मेसु वि पविट्ठा ॥ ४२४० ॥ न सयपयमेत्तं पि हु पुरबहिमहिमंडलं निवबलेहिं । मुक्कमनिरिक्खियं बहुजोयणमाणं चउप्पासं ॥ ४२४१ ॥ तह वि न वत्तामेत्तं पि तेहिं पत्तं नरिंद-देवीण । वलिया निरासहियया तो ते सव्वे वि दीणमुहा ॥ ४२४२ ॥ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो नरिंदअत्थाण मंडवं मुक्कपेक्कअक्कंदा । सकलत्तसामिअवहरणहियसुहा रोविडं लग्गा ॥ ४२४३ ॥ हा राय ! हा तिजयनायय ! हा विमलनायविक्खाय ! । हा बंदि जाय कय कणयचाय हा सामि ! निम्माय ॥ ४२४४ ॥ हा चंदवयण ! हा अमियनयण ! हा गरिमगयण ! नररयण ! । हा देसदाण ! उद्धरियसयण ! हा रूवजियमयण ! ॥ ४२४५ ॥ रण-रंगुच्छंगसमागएऽरिणो जयपयंडु तं मुत्तुं । का नाम रामदेवो व्व रक्खसे दारिही दरिए ॥ ४२४६ ॥ का नाम बहुमयामोयमिलिय अलि-जालरोलकलियम्मि । आरुहिय वारणे रायवाडियं विलसिरो करिही ॥ ४२४७ ॥ देव व्व पुरिसरयणं भुवणालंकारकारयं कायं । एवं अवहरमाणो कह होसि हयास ! जसपत्तं ॥ ४२४८ ॥ गलियं कलाहिं नहें नएहिं सत्थेहिं पत्थियं दूरे । रुळं सिट्ठायारेण सामिसालम्मि अवहरिए ॥ ४२४९ ।। इय रायहरणरणरणयविहुरया परवसे सहेलाए । भणियममच्चेणमहो मा रोयह होह कज्जपरा ॥ ४२५० ॥ जइ उभयकुलविसुद्धा तह लज्जह भुत्तपहुपसायाण । ता रायरहियरज्जं रक्खह रइयाऽऽयरो होउं ॥ ४२५१ ॥ ते बिंति मंति वियरसु आणं अम्हाण झ ति करणिज्जे । मंती जंपइ परियडह, देसमज्झे दमह हुडे ॥ ४२५२ ॥ इय जंपिऊण सीहासणम्मि करावियाओ कणयमइयाओ । तेण निवपाउयाओ, ताओ जणो नमिय सेवेइ ॥ ४२५३ ॥ नियदेसु विएसेसु सोहिज्जंते नरेसरे स-पिए । रिउ-चोरचरडचक्के सव्वत्थ विणिग्गहिज्जंते ॥ ४२५४ ॥ पणमणपुव्वं नरनाह-पाउया पाससंनिविट्ठम्मि । सामंत-मंति-मंडलियं-मंडले पउरपरियरिए ॥ ४२५५ ॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३३ सीलोवरिरयणावलीकहा एत्थंतरम्मि पत्तो विमाणनियरो जणाण नयणपहे । उग्गयरवि-किरणेहिं व छाईयगयणो मणिकरेहिं ॥ ४२५६ ॥ जत्थ समीराऊरियविमाणमणिकिंकिणीरणक्कारो । घग्घरयखलहलारावमिस्सिओ पसरइ दिसासु ॥ ४२५७ ॥ रुंधइ दिसिचक्कं खयर-चारणुच्चरियजयजयारावो । खेयर-किंकरकयचाडुवयणसयमिलणमासलिओ ॥ ४२५८ ॥ तालाणुविद्धवीणावेणुसरूम्मिस्ससुरयमहुरसरो । वित्थरइ नच्चणीचरणनेउरारावसंवलिओ ॥ ४२५९ ॥ आयन्निज्जइ सुस्सरविलासिणी जणियगीयकलारावो । तालाहणणरणज्झणिरकंकणस्सेणिसणमिस्सो || ४२६० ॥ तो झ त्ति विम्हयुत्ताणलोयणा सव्वपमुहलोयाणं । पेच्छंताणऽवइन्नो रायगिहे सो विमाणगणो || ४२६१ ॥ तम्मज्झाओ धवलायवत्तअंतरियतिव्वरवितावो । वीइज्जंतो तरुणीहिं ससिकरायारचमरेहिं ॥ ४२६२ ॥ असमाणरूवसिंगारगारवाहरियहारिहरिसोहो । सच्चविओ नियराया समग्गअत्थाणलोएण ॥ ४२६३ ॥ सच्चविय नियनरिंदा, जाया ते पत्त-तिजयरज्ज व्व । उवलद्धसिद्धिसोक्ख व्व सुहसुहासारसित्त व्व ॥ ४२६४ ॥ समकालमेव अब्भुट्ठिऊण गंतूणमभिमुहं रन्नो । ते पणिवयंति भत्तिप्पवत्तथोरंसुसित्तधरा || ४२६५ ॥ उवविसिय सहासीहासणम्मि अणुहूयमंगलीएण । सम्माणिया सनामग्गाहममच्चाइणो रन्ना ॥ ४२६६ ॥ आपुच्छिया य कुसलं कहंति ते विणयविरईयपणामा । बहुपायदंसणेणेवं कुसलमम्हाण जायंति ॥ ४२६७ ॥ एत्थंतरे नहयरी-परिवारविराइया पिया रन्नो । सचिवाइजणप्पणया पत्ता अंतेउरस्संतो || ४२६८ ॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ सिरिअणंतजिणचरियं निवदाविएसु भद्दासणेसु नहयरनिवासमुवविट्ठा । रायागमणे जाओ सव्वजणाणं सुहुक्करिसो ॥ ४२६९ ॥ एत्थंतरे निवो नयकमेण सचिवेण पणमिउं पुट्ठो । हरणाइआगमं तं पहुचरियं सोउमिच्छामि ॥ ४२७० ॥ तो नरनाहाऽऽएसा खयरो रविसेहरो कहइ तस्स । आभोइणि-विज्जाबलविन्नायं राइणो चरियं ॥ ४२७१ ॥ तहाहि - मंति तुमं पि हु जाणसि जहा निवो सारिकीलणासत्तो । अवहरिओ सपिओ वि हु गरुडुन्नइयपक्खिमिहुणेण || ४२७२ ॥ निवमवरुंडिय गाढं, जंतो गयणेण गुरुतररएण । पत्तो उवरिमभायं सो दुत्तरलवणजलनिहिणो ॥ ४२७३ ॥ पेच्छइ गुरुनीरनिहिं चलंतअईगरुयकालकल्लोलं । अंतोहुत्त विणिग्गयतरंततिमिरनियरकलियं व ॥ ४२७४ ॥ तो तेण तम्मि राया दड त्ति खित्तो करालमयरहरे । पावेणं पिव जीवो झड त्ति दुहदाइनरयम्मि || ४२७५ ॥ वलिओ वेगेण गओ पक्खिवरो झ त्ति सो सठाणम्मि । चिट्ठइ न परट्ठाणे सउणो सिद्धे सकज्जम्मि ॥ ४२७६ ॥ पडिङ जलम्मि मग्गो रएण राया तओ समुच्छलिओ । विवयाओ संपया इव पयासयंतो व्व पाणीणा ॥ ४२७७ ॥ तेण बहुमज्जणुम्मज्जणेहिं जलतारणक्खसंफलयं ।। पत्तं भवपारकरं भव्वेण जिणिंदवयणं व्व ॥ ४२७८ ॥ आरूढो तम्मि तुरंगमे व्व पयवेगकयपरिब्भमणे । मग्गे व्व समुद्दम्मि बहुविहुमविरईयच्छाए ॥ ४२७९ ॥ तो कत्थइ दढदंडब्भामियगुरुकुंभयरेव कड्ढिओ भमइ । जलावत्ते सो मट्टियपिंडो व्व फलयगओ ॥ ४२८० ॥ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ सीलोवरिरयणावलीकहा सलिलावेगवसेणं अभिडिउं गिरितडे वलइ सिग्छ । अहवा दिट्ठअवाओ पुणरवि को तं समल्लियइ ॥ ४२८१ ।। पावइ जलनिहिपडिओ मच्छयपुच्छच्छडाभिघाए सो । पायमवाया अवरे वि हुंति अहवावयगयाणं ॥ ४२८२ ॥ कत्थइ वियडविडंबियदाढमुहो समेइ समुहो से ।। अइघोरतरो मयरो जमो व्व गिलिउं घुरुहुरंतो ॥ ४२८३ ॥ रायमयरंतरुच्छलियपबलजलहत्थिणा सफलओ वि । मा मज्जिओ य मरउ इह त्ति चिंतिउं पिव नहे खित्तो ॥ ४२८४ ॥ अद्धंतरालए बहिविछुट्टिनिवडियं जले फलियं । सजडप्पयईणहवा कत्तो पडिवन्ननिव्वाहो ॥ ४२८५ ॥ जलकरिकरपेरणओ दूरे गंतुं निवो अहो पडइ । आहारविरहियाणं अहवा कत्तो अवट्ठाणं ॥ ४२८६ ॥ निस्साहारं परिनिवडिरस्स रन्नो झड त्ति संपत्तं । रवितेयसुरविमाणं सुहहेऊ रायपुन्नं च ॥ ४२८७ ॥ पडिओ दड त्ति मणिकुट्टिमे तओ तस्स आगया मुच्छा । निद्द व्व सव्वचेयन्नाहारिणीं मउलियच्छिउडी ॥ ४२८८ ॥ तो नियमाहप्पेणं रवितेयसुरेण सो कओ सत्थो । दूरट्ठियाण वि कज्जो उवयारो किं न नियडाण ? ॥ ४२८९ ॥ दटुं परिचेट्ठपरं अमरं पणमइ नरेसरो विणइं । आयारलंघणं किं कुणंति कईया वि सुकुलीणा ? || ४२९० ॥ आउच्छिएण कहिओ निवेण अमरस्स निययवुत्तंतो । जो अकहियं पि जाणइ गोविज्जइ तस्स किं किंपि ॥ ४२९१ ॥ तं दिव्वनाणनयणो ता पुहु ! मह कहसु केण हरिओ हं । नेऊण कत्थ मुक्का य मह पियाई य निवेणुत्ते ॥ ४२९२ ॥ भणियं सुरेण वेयड्ढपव्वयुत्तरब्भवाए सेढीए । सिरिगयणवल्लहपुराहिवेण विज्जुप्पहनिवेण ॥ ४२९३ ॥ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ सिरिअणंतजिणचरियं रयणावलिलुद्धेणं कुद्धेण य तेण सत्तुरक्खणओ । कयपक्खिमिहुणतणुया हरिओ तं तुज्झ दईया य ॥ ४२९४ ॥ इय दुहमहिसहिऊणं एसो मरउ त्ति रोसवसएण । तं निक्खित्तो कूरयरजलयरे नीरनिहिनीरे ॥ ४२९५ ॥ रयणावली पुणो तेण हरिय नीया गिरिंदगिरिराए । पच्छिमदिसिट्ठियम्मि बहुजोयणसहसमग्गम्मि ॥ ४२९६ ॥ इय जंपतो पत्तो जा सो तियसो गिरिंदगिरिराए । ता दटुं नियवेरि, पहाविओ सो निवं मुत्तुं ॥ ४२९७ ॥ वेगेणितं तं पेच्छिऊण सिग्धं पि सो रिऊ नट्ठो । पोढारिपुरो ठाउं को वा नासवइ अत्ताणं ? ॥ ४२९८ ॥ राया वि तम्मि गिरिरायगुरुनियंबम्मि भमइ भयरहिओ । अवलोयंतो वणसंडमंडलीकलियसिहराइं ॥ ४२९९ ॥ कत्थइ निवडिरनिज्झरणसीयरासारसंगसिसिरेहिं । सेविज्जइ पवणेहिं रिंखोलिय चंदणदुमेहिं ॥ ४३०० ॥ अन्नत्थायन्नइ सुसरवल्लईवंससरससरमिस्सं । कलकंठकिन्नरीनियरनिम्मियं मणहरं गीयं ॥ ४३०१ ॥ अवरत्थ नियइ घणतमतमालतलतरलिउज्जलकलावे । नियचंदयालिरईयायवत्तए नच्चिरे सिहिणो ॥ ४३०२ ॥ एवं रूवाणेयप्पच्चयवईयरपलोयणक्खणिओ । एगम्मि दुरारोहे सिहरे किच्छेणमारूढो ॥ ४३०३ ॥ तम्मि फलकलियअंबयवणमज्झुल्लुसिरकयलियखंडस्स । दक्खामंडवसिसिरस्स नियडदेसम्मि संपत्तो ॥ ४३०४ ।। जा तस्संतो निक्खिवइ निययनयणाई नरवई ताव । पेच्छइ सिणिद्धमिउसुहुमरोममेगं वरतुरंगिं ॥ ४३०५ ॥ अच्चंतसुहुमकलहंसरोममयतूलियातलनिसन्नं । अनिबद्धलक्खनयणं मुंचंति घोरअंसुभरं ॥ ४३०६ ॥ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा तं पेच्छिउं व चिंतइ नरेसरो एयमिह महच्छरियं । जं दुग्गगिरिसिरग्गे उवविट्ठा दीसइ तुरंगी ॥ ४३०७ ॥ कहमिह चडिया एसा किच्छेणारुहइ जत्थ पुरिसो वि । तूलीए सन्निसन्ना घासग्गासाइ वि न अत्थि ॥ ४३०८ ॥ पयईए चंचलतं होइ हयाणं थिरा पुणो एसा । ता होयव्वं केणावि कारणेणेत्थ अत्थम्मि ।। ४३०९ ॥ इय परिभाविय राया अंबयसाहाए देइ दिठि जा । ता पेच्छइ अवलंबिय मुत्ते जिय धारकरवालं ॥ ४३१० ॥ घेत्तूण कोउएणं कड्ढइ कोसाओ तं महत्थं च । मुट्ठीए चेवेगत्थं किविणजणविइन्नदाणं व ॥ ४३११ ॥ परिविलसिरपाणीयं सरं व पुक्खरविरायमाणं व । निम्मलधारासारं समुन्नयं मेहपडलं व ॥ ४३१२ ॥ दिन्नपहाराहियहरसाहियसिंगारतरुणिविंदं व । छत्तं व घणच्छायं, जवसहियं तुरयभोज्जं च ।। ४३१३ || (कुलयं) तो कोसे निहियअसिं तुरंगिरक्खयनरेक्खणा य ठिओ । बहलकयलीदलाली अंतरिओ निच्चलो जाव ॥ ४३१४ ॥ ताव गयणंगणेणं विज्जुप्पहनहयरो समणुपत्तो । पासम्म तुरंगीए जा छोडइ कंठआभरणं ॥ ४३१५ ॥ ता सहसा सव्वुत्तमसिंगारविराईयं नियं दइयं । रयणावलिमवलोयइ जायं तुरंगित्तमुज्झेउं ॥ ४३१६ ॥ वामकरनिहियवयणि थूलंसु य विसरदंतुरियनयणिं । अइदीहरनीसासुल्लासियगिरिसिररयप्पसरं ॥ ४३१७ ॥ दछ्रण तुरंगीए आहरणोयारणे नियपियत्तं । विम्हियमणो नरिंदो लग्गो परिभाविडं एवं ॥ ४३१८ ॥ अच्छरियकारिणीओ जीवाणं कम्मपरिणईओ जओ । एगभवे वि पियाए, जायं नर- तिरय - भवजुयलं ॥ ४३१९ ॥ ३३७ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ सो एसो मह वेरी खेयरखेडो पिया जुओ जेणं । हरिओ हं ता एयं मारेमि दुयं दुरायारं ।। ४३२० ॥ इय चिंतिय तेणासीरोसुक्करिसा विकोसिओ सहसा । परिभावियं च जमिमो कुणइ पियाए तमिक्खेमि ॥। ४३२१ ।। पच्छा वि हु मारिस्सं नियसत्तुं इय विचिंतिउं कोसे । खिविऊणुग्गं खग्गं ठिओ सयं निच्चलो चेव || ४३२२ ॥ खेयरवइणा रयणावली इमं जंपिया पिए ! मुणसु । मं उत्तरसेणीए नाहं विज्जुप्पहनरिंदं ॥ ४३२३ || सिरिअणंतजिणचरियं कन्नत्ते वि मह तए दिट्ठाए वि सुयणु ! चित्तमवहरिडं । मग्गाविउ तुह पिया तुमं विइन्ना न मह तेण ।। ४३२४ ॥ तद्दिवसाओ वि मह दह मणवणं तुह विओयदाउग्गी । थलखित्तमच्छओ विव सुहलवमवि नेव पावेमि ।। ४३२५ ॥ अवलोयणमित्तं पि हु मन्नामि पिए महापसाओ त्ति । आलवणं पुण तुज्झं तिहुयणरज्जाहिसेयं व ॥ ४३२६ ॥ तुज्झाएसकरे मइ साहीणा तुह मयच्छि ! मह लच्छी । तह मह अंतेउरमवि उव्वहिही देवि ! दासितं । ४३२७ ॥ ता सव्वा वि बहुदिणमयणानलजालजलिरदेहं मे । निययंगसंगमामयरसेण निव्वसु पसयच्छी ! ॥। ४३२८ ॥ तं सोउं तीयुत्तं किं भाय ! पयंपसे असंबद्धं । नीइए पवत्तयाणं न हुंति एवं समुल्लावा ।। ४३२९ ।। ज गुरुवंसुप्पन्ना वि नायनिस्सेससत्य - अत्था वि । एवं चिंति अजुत्तं, ता इयरजणस्स को दोसो ? ।। ४३३० ॥ तुम्हारिसा वि सुपहप्पयासयाउ उप्पहेण जई जंति । वज्जियमज्जायाणं का वत्ता ता अणज्जाण ? || ४३३१ ॥ रायाणो वि हु गरूया जइ हुंति अकज्जकरणतल्लिच्छा । ता तिव्वतरंगारे किरइ कराले सिसिरकिरणो ॥ ४३३२ ॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा ३३९ अइररुइप्फुरियं पिव दिट्ठविणठें सिरी विलसियं पि । रोय-जरा भीयं पिव, जाइ ललाम पि लायन्नं ॥ ४३३३ ॥ पायं सन्निहियाओ अणिट्ठगोट्ठीउ आवईड व्व । कल्लाणमालियाओ दुलहाओ इट्ठगोट्ठीओ ॥ ४३३४ ॥ अट्ठोत्तरसयरोय पविभज्जंतस्स कत्थ देहस्स ।। अक्खयया मडयस्स व गिद्धेहिं गसिज्जमाणस्स ॥ ४३३५ ॥ एइ जरा तुरिययरं कडरकए रायकालवत्ती वि ।। परिपालइ पत्थावं पासे परिसंठिउं मच्चू ॥ ४३३६ ॥ एयारिसे असारम्मि भवविलासम्मि किं महासत्त ! । कुणसि न अप्पायत्तं नियचित्तं उप्पहपसत्तं ॥ ४३३७ ॥ अवरं च मह सरीरे किं सच्चवियं नियप्पिया अहियं । जेण अणिवत्तउ तुह मह विसए राय ! उक्करिसो || ४३३८ ॥ मुत्तंत-वसासुइ-मंस-सुक्क-सोणिय-सिर-ट्ठि-पोत्तम्मि । का राय ! मह सरीरम्मि सारया जीए अणुरत्तो ? || ४३३९ ॥ गुज्झ-अवाण-त्थण-वयण-नासिया-सवण-नयण-छिड्डाणि ।। दुग्गंध-मल-चिलीणाणि, जाणिउं कहणु रत्तोऽसि ॥ ४३४० ॥ दंतवणुव्वट्टण-न्हाण-पमुह-परिकम्मणा विहीणा वि । कंत-तणुणो तिरिअ-बीभच्छा हुंति पुण मणुया ॥ ४३४१ ॥ अंगावयवेहिं ठिओ वयरंति तिरिया सया वि लोयाण । जं कीरइ तच्चम्मेण निवसणोवाणहाईयं ॥ ४३४२ ॥ वीइज्जति नरिंदा सुरा य चमरीण पुच्छ-केसेहिं । गयदंतपव्वएसुं खिप्पइ कप्पूर-घुसिणाइं ॥ ४३४३ ॥ करिकुंभमोत्तिएहिं अलंकरिज्जति राय-देवा वि । सिंगारिजंति सया मयणाहीए धणड्ढा वि ॥ ४३४४ ॥ किं बहुणा जेसिं गोमओ वि सुपवित्तयं वहइ तेण । जं गोमुहाई कीरति सुर-पइट्ठाइपव्वेसु ॥ ४३४५ ॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० सिरिअणंतजिणचरियं दूराओ वि दिट्ठाए माणुस-असुईए छाईडं नासं । नासइ सव्वो वि जणो घुक्कंतो गुरुतररएण ॥ ४३४६ ॥ ता किं पि नत्थि रायस्स कारणं राय ! माणुससरीरे । जेण तुमए मह विसए दूरं अणुरायमुव्वहसि ॥ ४३४७ ॥ तुच्छतरसुहनिमित्तं नरिंद ! मा निक्कलंकनिययकुलं । कलुसं कुणसु अकज्जेण जयमिवुच्छलियधूलीए ॥ ४३४८ ॥ सप्पुरिस ! समुचियायाए करणसंजायउज्जलजसोहं । मा कुणसु अयसमलिणं तमकिच्चायरणचिंताए ॥ ४३४९ ॥ (जुयलं) इय असमप्पसममेयरूवं पि सई पयंपियंतस्स । जायमसुहाइ दूरं दुद्धं व विसाय सप्पस्स ॥ ४३५० ॥ नूणं हिओवएसा हवंति असुहा य पावपयईण । महुरतरा आहार व्व सामरोयाभिभूयाण ॥ ४३५१ ॥ तेणुत्तं जाणंतो सुब्भु अहं पि हु इमं समग्गं पि । नवरं विम्हरियं तुह दंसणसंजायवेयल्ला ॥ ४३५२ ।। कलुसिज्जउ मज्झ कुलं मयलिज्जउ उज्जलो वि जसपसरो । जं होउव्वं तं होउ जं न सक्केमि तं मोत्तुं ॥ ४३५३ ॥ जइ कुणसि मज्झ वयणं ता जीवसि अह न ता धुवं मरसि । गुण-दोस-वियारखमा जमभिमयं तं तमायरसु ॥ ४३५४ ॥ नीयसीलसाहिलासा तणतुलिय स जीविया भणइ देवी । न कयाइ करिस्समहं मरणं ते वि हु अकज्जं जं ॥ ४३५५ ॥ इह सीलजीवियाणं सीलं चिय दुल्लहं कुलवहूणं । लब्भइ पुणो वि जीयं सीलं पुण मइलियं कत्तो ? || ४३५६ ॥ तहा - सीलं चिय चारित्तं, सीलं च तवो गुणा य सीलं च । सीलपरिवज्जियाणं, न तवो न गुणो न चारित्तं ॥ ४३५७ ॥ जम्मंतरे वि दुलहं, नाहं सीलं नियं न मइलिस्सं । जं मेवस्संभावी, मरणं तं होउ न भओ मे ॥ ४३५८ ॥ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४१ सीलोवरिरयणावलीकहा रज्जाइणा न कज्जं, पत्तं चिय असारतणणा वि । इण्हि पि सुसीलाए, मरणं पि महूसवो मज्झे ॥ ४३५९ ॥ तं सोउं सो रोसाओ, भडभडभिउडिघडइय-निडालो । गाढीकयपरिहाणो, जाओ अच्चंतदुद्धरिसो ॥ ४३६० ॥ चित्तब्भंतरपसरिय, कोवुक्करिसेण तस्स नरवइणो । कंपइ सरीरजट्ठी, इत्थीवहपावभीय व्व ॥ ४३६१ ॥ करवालकलणकज्जे, तयणुकरो तेण अंबए खित्तो । न निरिक्खइ तत्थ तयं, तक्कोवभया पणठे व ॥ ४३६२ ।। तमपेच्छंतो जंपइ, गहिओ पावेण केणइ असी मे । जइ इह पावेमि तयं, ता पढमं तं चिय हणेमि ॥ ४३६३ ॥ इय जंपिय विज्जाबलविउव्विया वरकरालकरवालो । पत्तो तीए सयासे निठुरपयदलियगिरिसिहरे ॥ ४३६४ ॥ जंपइ किंपि वि न णठें नज्जइ ता माणसु महमणोभिमयं । सा आह न तुह वुत्तं कहं तं कुणसु जमभिमयं ॥ ४३६५ ॥ तो तेणुत्तं तं मरसि सरसु ता इट्ठदेवयं झ त्ति । सा भणइ पईसरिओ एत्थ भवे परभवे उ जिणो ॥ ४३६६ ॥ मयरहरपक्खित्तं मह वेरिं सरसि इय पयंपंतो । जा तीए खग्गघायं, वियरइ ता हक्किओ रन्ना ॥ ४३६७ ॥ रे रे खयराहम ! दुट्ठधिट्ठ ! अविसिट्ठकम्मचंडाल ! । मह पेच्छंतस्स कहं महासई मह पियं हणसि ? || ४३६८ ॥ सा सुय नरिंदहक्को, साहंकारं पमुक्कहुंकारो । वलिओ नरनाहं पइ मुत्तुं रयणावलिं सहसा ॥ ४३६९ ॥ पसरंति अवसरंति य वग्गंति घडंति झ त्ति विहडंति । रणकयकरणा दोन्नि वि पहरंति समच्छरूच्छाहा ॥ ४३७० ॥ दंसिय पायपहारं, मुंचइ घायं निवस्स कंठे सो । उच्छलिउं उवविसिउं, च वंचए त गं पि निवो ॥ ४३७१ ॥ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૪ર सिरिअणंतजिणचरियं सज्जेउ सिरघायं, दिन्ना मुनई निवेण रिउउयरे । उवविसिय वाममवसक्किउं च सो वंचइ दुगं पि | ४३७२ ॥ निययंगलाहवेणं, वंचंति परोप्परं पि घाएण । न छिवइ नो वा छिप्पइ, दोण्ह वि इक्को वि खग्गेहिं ॥ ४३७३ ॥ समरस्समवसपगलंतसेयजलबिंदुजालयच्छलओ । पयघाय-समुड्डियगिरि-रयपसरं सिंचयंते व्व ॥ ४३७४ ॥ अवरोप्परकरवाला वड्डणुट्ठियजलणकणगणो गयणा । जं तो नज्जइ खज्जोयकीडपुंजो व्व तव्वेलं ॥ ४३७५ ॥ धारंगाओ भग्गं, खग्गं खयराहिवो नियं दटुं । . दुज्जेयं तं च वियाणिऊण वेगेण सो नट्ठो ॥ ४३७६ ॥ अहियम्मि गए राया संभासइ पणइणिं पणयपुव्वं । पावेण पाडिया तं दूरं दईए वे रिणा कढे ॥ ४३७७ ॥ सो आह-देवदासो न चेव एवं नावरस्सामि ।। किंतु इमं दुव्विलसियमइदुमुहं मज्झ दुकयाणं ॥ ४३७८ ॥ जं जेण जत्थ जईया पावेयव्वं सुहं व असुहं वा । तत्तो तत्थ तयं चिय, पावइ तं कम्मवसवत्ती ॥ ४३७९ ॥ राया जंपइ जामो सुंदरी ! वसिमम्मि तयणु पुच्छामो । नियनयरगमणसरणिं गच्छामो तयणु तम्मि कमा ॥ ४३८० ॥ आएसो त्ति भणित्ता सा चलिया हत्थिमंथरगईए । आभरणुज्जोयकरी उदयद्दिगया रविसिरि व्व ॥ ४३८१ ॥ आउच्छिया निवइणा तेण तुमं कह कया पिए ! तुरंगी ? । तीयुत्तमिमं जायं आहरण य बद्धीमूलीए ॥ ४३८२ ॥ राया जंपइ किं तं नहेण न गया ? पयंपइ तओ सा । . मह तेण कओ विज्जाछेओ तो कह नहेण गई ॥ ४३८३ ॥ ईय जंपतो राया, केत्तियमेत्तं पि महिमइक्कंतो । पेच्छइ पत्तल-पुप्फय-फलिय-दुम-कमलियवणसंडं ॥ ४३८४ ॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा ३४३ कप्पर-सरल-चंदण-कंकोलय-देवदारुदमरम्मं । एला-गुरु-लवलि-लवंग-जाइ-तय-नायपरिकलियं ॥ ४३८५ ॥ सव्वुत्तमेक्कपयमवि विलसिरछप्पय-विरायमाणं जं । चक्कंगविहियवासं, सारंगसमस्सियं पि सया ॥ ४३८६ ॥ तस्संतो उत्तुंगं कणयमयं देवमंदिरं नियइ । तलभद्दसालकलियं, रुंदं मंदरगिरिंदं व ॥ ४३८७ ॥ जस्स दुवारदेसे, अनिलचलं दीसए तमालवणं । वंदारुलोयपायं व देवभयओ पकंपंतं ॥ ४३८८ ॥ रयणीसु जं चउद्दिसि-पडिबिंबियतारयुक्करं सहइ । गिरिरायमउडआभरणमिव मणीजणियसिंगारं ॥ ४३८९ ॥ जस्स उरसिहरयाई तडुविय-सिहंडि-वलकलावाइं । अनिलचलिरहुमाई, गिरिसिहराई व सोहंति ॥ ४३९० ॥ मज्झम्मि तस्स नवपउमरायमाणिक्कनिम्मियं नियइ । राया तित्थेसर-वासुपुज्ज-पहुबिंबमइरम्मं ॥ ४३९१ ॥ तं दठुमतुच्छसमुच्छलंत-गुरुभत्ति-निब्भरसरीरो । रयणावलीसमेओ, पणमइ महिमिलियभालयले ॥ ४३९२ ॥ भणइ य पिएऽवहारो वि मज्झ हारो व्व गुरुगुणो जाओ । जस्स पभावओ एस नायगो एत्थ सच्चविओ ॥ ४३९३ ॥ वारं वारं पणमियपहु-पय-सयवत्तमुत्तमाणंदो । भूमिगयदिट्ठी सपिओ वि नरवई तत्थ उवविट्ठो ॥ ४३९४ ॥ एत्थंतरम्मि सूरप्पहाइणो नहयरा नहयलेण । विन्नाय रायहरणा संपत्ता तम्मि जिणभवणे ॥ ४३९५ ॥ वंदिय जिणिंदमाभासिउं निवं दुहियरं च उवविट्ठा ॥ पुढेण निवेण नियं कहियं हरणाइखयराण ॥ ४३९६ ॥ जामाओ जलनिहिपडणसवणओ ससुरओ सिरं धुणइ । सीयलजलफरिसायन्नणे वि उप्पन्नकंपो व्व ॥ ४३९७ ॥ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ सिरिअणंतजिणचरियं नरवइमरणं तव्वसणभवेण खणविलंबियुस्सासो ।। लक्खिज्जइ खयरिंदे, आगयमुच्छे व्व निप्पंदो ॥ ४३९८ ॥ जंपइ य रायसुहिओ वि होउ मा दुक्खभायणं जाओ । संपत्ती-विवई विय सह सन्निहियाओ सत्ताण ॥ ४३९९ ।। कय-सुकयं अत्ताणं मन्नते जेण जीविरो पत्तो । निब्भग्गसेहराणं, कत्तो कल्लाणउल्लासो ? || ४४०० ॥ इय जंपतो नहयरनाहो रन्ना पयंपिओ एवं ।। सपियस्स वि अवहारो, कहं जाए तं तए कहसु ॥ ४४०१ ॥ सो आह मज्झ हरिसप्पसरावसरे वि राय ! सहस त्ति । निक्कारणाई जायाई दुन्निमित्ताई देहम्मि ॥ ४४०२ ॥ तो चिंतियं मए एयमसुहसंसूयगं धुवं किं पि ।। इय चिंतिय सव्वत्थ वि सयणाणं कारिया सारा ॥ ४४०३ ॥ नाओ तुह सपियस्स वि अवहारो तयणु केवली पुट्ठो । तक्कहियगिरिम्मि इह परिवारजुओ अहं पत्तो ॥ ४४०४ ॥ दिट्ठो य तुमं तिहुयणगुरुणो पुरओ मए समुवविट्ठो । अक्खयतणू सभज्जो वि नहरिदेण इय कहियं ॥ ४४०५ ॥ एत्थंतरम्मि गयणंगणेण चारणमुणीसरो पत्तो । नामेण मोहमहणो गुरुगुणमणिविंदपरियरिडं ॥ ४४०६ ॥ मइ-सुय-ओही-नाणाई तिन्नि वि जो वहइ निक्कलंकाई । भूय-भवंत-अणागय-कालत्तय-जाणणत्थं च ॥ ४४०७ ॥ काउं निसीहियतिगं तिपयाहिणपुव्वमुत्तम-विहीए । पारद्धो संथुणिउं, भत्तीए वासुपुज्जजिणं ॥ ४४०८ ॥ विदुमसमदेहपहापसरेण दियंतराइं रंजंतो । नीहारतो रायं च जयइ सिरिवासुपुज्जजिणो || ४४०९ ॥ इय थोऊण जिणिंदं, जिणमंदिरभुत्ति-बहिपएसम्मि । सुररईयकणयकमले कंकेल्लितले समुवविट्ठो || ४४१० ॥ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा तो सूरप्पहराया, जंपर कल्लाणखेत्तमेस गिरी । जम्मिं इट्ठ दिट्ठ, नउ य देवो गुरू पत्तो ।। ४४११ ।। थावरतित्थजिणनया जंगमतित्थं मुणिंदमिहि तु । चलह नमिमो त्ति भणिए, समुट्ठिया खयर - नर-नाहा ।। ४४१२ ॥ गुरुचरणं तं पत्ता पणया य सुभत्तिनिब्भरा गुरुणो । संपत्तधम्मलाहा, उवविट्ठा समुचिए ट्ठाणे ॥। ४४१३ ।। धम्मसवणुज्जाए, एरिसाए भत्तिजुत्तचित्ताए । सद्देसणा पहूहिं, पारन्द्रा जलहरसरेण ॥ ४४१४ ॥ जीए कहिज्जइ धम्मो, पयडिज्जइ दुहयरो सइ अहम्मो । दंसिज्जइ अट्ठण्ह वि, कम्माणं दारुणविवागो ॥ ४४१५ ॥ अक्खिज्जइ विसयाणं, विरसत्तं वायरिज्जए तत्तं । वारिज्जए अकज्जं, मोइज्जइ परपरीवाओ || ४४१६ || उवदंसिज्जंति महादुहाई सत्तसु वि नरय- पुढवीसु । तिरियत्तणम्मि भन्नइ कयत्थणा दुस्सहा दूरं ॥ ४४१७ || उब्भाविज्जति नरत्तणम्मि सारीरमाणसदुहाई । ईसाविसायपमुहं, असुहं साहिज्जइ सुरते । ४४१८ ॥ वन्निज्जइ मोक्खो वि हु, सम्मं सम्मत्त - नाण - चरणाओ । ईय तीए सयासाओ, हवंति सत्तावगयतत्ता ॥ ४४१९ ।। तो मिच्छत्तं छडुंति, झ त्ति उज्झंति कोवउक्करिसं । तह निम्मर्हति माणं, माया मुसुमूरिय चयंति || ४४२० || लोहं लुंपंति मयट्ठाणाइं निट्ठवंति अट्ठा वि । मोहं मलंति सोयं छलंति कुमई परिहरम्मि ॥ ४४२१ ॥ जाणंति य भवभावे, जहट्ठिए आयरंति सोजन्नं । दूति य दोजन्नं, इंदियपसरं निरुंभंति ॥ ४४२२ ॥ मारं दारंति दोसं हरंति अविरयनायरंति आलस्सं । मुंचति अट्ट-रोद्दे, धम्मं सुक्कं च झायंति ॥ ४४२३ || ३४५ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩૪૬ सिरिअणंतजिणचरियं ताडंति विसय-चरडे, झड त्ति भवखोडयं विहाडिंति । पयडंति दयं दाणाई दिति उवयारया हुंति ॥ ४४२४ ॥ चिंतंति य चलमाउं, तरलं तारुन्नमत्थिरा लच्छी । खणिगो पियसंजोगो, अणिट्ठगोट्ठी विरसरूवा ॥ ४४२५ ॥ गिहवासो गुत्तिमिहं, सयणा वसणस्स कारणमणप्पं । खणराइणीओ रमणीओ, नस्सरा भोगरिद्धी वि ॥ ४४२६ ॥ एवमणिच्चे नाए, भवस्सरूवम्मि भवभयुव्विग्गा । गिण्हंति के वि दिक्खं, अवरे पुण सावय-वयाइं ॥ ४४२७ ॥ अन्ने पुण सम्मत्तं, अंगीकुव्वंति लिंति तह के वि । बहुबीयणंतकायाइबहुविहं नियमसंदोहं ॥ ४४२८ ॥ तो तुम्ह सामिणा वि हु, अवगयतत्तेण भिंदिउं झ त्ति । निवडयरमोहगंठिगहियं सम्मत्तवररयणं ॥ ४४२९ ॥ महु-मज्ज-मंस-मक्खण-बहुबीय-अणंतकायपमुहाण । नियमविसेसा गहिया, अमाण बहुमाणसहिएण ॥ ४४३० ॥ तो सव्वे वि गुरुक्कमकमलप्पणया नमित्तु जिणनाहं । विज्जानिम्मियनयरे, भोयण-सयणाइकाऊणं ॥ ४४३१ ॥ अवरण्हे अत्थाणे ठियम्मि निस्सेसरायविंदम्मि । रयण-विमाणारूढो, रवितेयसुरो समणुपत्तो ॥ ४४३२ ॥ तं भूरिसूरकर रवलोयमितं नरेसरा सव्वे ।। दठूणं अब्भुट्ठिय, नमति तस्सक्कमंबुरुहं ॥ ४४३३ ॥ तो पविसिय अत्थाणे, अमरो रयणासणे समुवविट्ठो । निवईसु निविठेसुं, सोहइ सक्को व्व सुरमज्झे ॥ ४४३४ ॥ सो रयणसेहरनिवं, पुच्छइ किं राय ! नियपिया पत्ता ? । तो तस्स नमिय तेण वि सव्वं पि सवित्थरं कहियं ॥ ४४३५ ॥ तं सोउं अमरेणं, पयंपियं राय ! सो रिऊ दुट्ठो । सो जुझंतो हारीए अवसरे नासइ रएण ॥ ४४३६ ॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७ सीलोवरिरयणावलीकहा ता तं दुज्जणपयई, पच्छन्नवयारकारयं पावं । निग्गहसु न जसुवेहा कीरइ रोयम्मि व रिउम्मि ॥ ४४३७ ॥ राया जंपइ पयडो, जइ दीसइ सो हणेमि ता तमहं । तम्मिं करेमि किं जो, जमो व्व पच्छन्नमवयरइ ॥ ४४३८ ॥ देवेणुतं सत्तुं निग्गहिय, अहं इहं समणुपत्तो । तुह सारा करणत्थं ता जं किच्चं कहसु तं मे ॥ ४४३९ ॥ आह निवोहं पहु ! भूमिगोयरो निग्गहेमि कहमहियं । सो गयणगई ता तस्स निग्गहं भव पसायपरो || ४४४० ॥ ईय जंपियावसाणे दड त्ति देवाणुभावओ वेरी । माऊरबंधनद्धो नहाओ पडिओ नरिंदपुरे ॥ ४४४१ ॥ कीलाकंदुगो विव उच्छलिय नहे पुणो पुणो पडइ । अणुकलमवि पयडते व्व चडणपडणाइं पाणीए ॥ ४४४२ ॥ गंतुं गयाण वेगेण भमइ सो कुंभयारचक्कं व ।। मुंचइ य रुहिरवरिसं, मुहेण असिवुब्भवघणो व्व ॥ ४४४३ ॥ दळूण तमच्छरियं, सव्वो वि हु विम्हिओ खयरलोगो । उत्ताणियच्छिवत्तो, भमिपरिभमिरंतमिक्खेइ ॥ ४४४४ ॥ तो रयणसेहरेणं निवेणं कारुन्नपुन्नहियएण । मोयाविओ जिणाणा निरयणे न होइ निग्घिणया ॥ ४४४५ ॥ मुक्को सुरेण पीडं, अवहरिओ सो कओ सहावत्थो । सावाणुग्गहदाणक्खमो किमन्नो विणा अमरं ॥ ४४४६ ॥ भणइ सुरो जइ खंडसि रायाणं मरसि फुडियसीमंतो । सव्वं पि तब्भया तेण मन्नियं मह इमो करणं ॥ ४४४७ ॥ पयलग्गो सो निवरयणसेहरं खामए सदुच्चरियं ।। खमइ य सो पणयाणं, वेरीण वि वच्छला सच्छा ॥ ४४४८ ॥ आह-सुरो पुणरवि तं पत्थसु जह देमि भणइ तो राया । वियरसु कामियरूवं, भणइ सुरो होहिही तं पि ॥ ४४४९ ॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ सिरिअणंतजिणचरियं तो सव्वाण वि देवो वत्थाहरणाई देइ दिव्वाइं । मणवंछियसिद्धिपरा, जन्न पयच्छंति तं चित्तं ॥ ४४५० ॥ ते मोयाविय अमरो, तप्पणओ मणिविमाणमारुहिउं । चलिओ चिट्ठइ को वा खणं पि किं कज्जपरिहीणो ? ॥ ४४५१ ॥ अवरम्मि गए खयरेसरेहिं भणियं नरिंद ! गच्छामो । तुह नयरे तं मुत्तुं जामो वयमवि नियपुरेसु ॥ ४४५२ ॥ तं सोउमाह राया जिणस्स अट्ठाहियाओ ता कुणह । तो ते बहुमाणेणं ताओ काऊण संचलिया ॥ ४४५३ ॥ गयणं आऊरंता विमाण-करि-तुरय-रह-भड-बलेहिं । इह पत्ता मंति इमं पहु हरणाई तुहक्खायं ॥ ४४५४ ॥ इयरवि सेहरनहयरमुहनिसुए सामिहरणवुत्तंते । मंतिप्पमुहा सव्वे वि, सेवया जंपिउं लग्गा ॥ ४४५५ ॥ पेच्छह पहुणा बहुणा, कट्टेण विलंघिउं नईनाहो । सिद्धेण व तिव्वेणं तवेण किच्छेण संसारो ॥ ४४५६ ॥ सामी गओ विमाणे जलकरिणा पेरिओ समुद्दाओ । अपुणब्भवं भवाओ, केवलनाणेण जीवो व्व ॥ ४४५७ ॥ तुरई जाया जं माणुसी वि देवी इमं तु अच्छरियं । “अहवा जीवस्स न का विडंबणा भवइ भववासे ?” || ४४५८ ॥ अक्खयसरीरसीला, पत्ता दईयारिउविनिज्जिणिओ । अमरो मित्तो जाओ, पुन्नप्फुरियं अहह पहुणो ॥ ४४५९ ॥ पणओ देवो गुरुणोभिवंदिया पावियं च संमत्तं । अवहरियस्स वि जाया कल्लाणपरंपरा पहुणो ॥ ४४६० ॥ एवं पसंसमाणेसु, मंतिपमुहेसु सयललोएसु । सम्माणिया नहयरा घणरयणाभरणवत्थेहिं ॥ ४४६१ ॥ मोयाविय नरनाहं, गएसु वेयड्ढगुरुगिरितेसु । विज्जुप्पहराया वि हु, विसज्जिओ विहियसम्माणो || ४४६२ ॥ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा - ३४९ पालइ सयाउ चरडे य ताडए अयए य गुणविंदं । देवे वंदइ गुरुणो नमसए कुणइ सज्झायं ॥ ४४६३ ॥ भामइ जिणरहरयणाई, सव्वदेसेसु कयपयब्भमणो । दीणाण देइ दाणं, सम्माणं कुणइ संघस्स ॥ ४४६४ ॥ एवमणवज्जकज्जायरणुज्जमपत्तकंतिकित्तिस्स । वच्चंति वासरा तस्स राइणो गुरुपयावस्स ॥ ४४६५ ॥ अह अन्नया य रयणावलीए देवीए दुकयकम्मवसा । दुस्सीलयाववाओ, उल्लसिओ पुरपुरंधिजणे ॥ ४४६६ ॥ बालाओ तरुणीओ, थेरीओ महिलियाओ मिलिऊण । रयणावली कुसील त्ति बिंति पुरचच्चराईसुं ॥ ४४६७ ॥ भाऊहिं ससाओ सुया-पिऊहिं तह सहयरीओ दइएहिं । जणणीओ सुएहिं, तमेव बिंति वारिज्जमाणा वि ॥ ४४६८ ॥ एत्थंतरम्मि देवी, कुसीलयं जंपिरीओ रामाओ । दटुं पि अणीहंतो व्व झ त्ति मित्तो अवक्कंतो || ४४६९ ॥ सोउं सईए समुहं, अजुत्तमभिजंपिरीओ पावाओ । खणमेत्तं अरुणत्तं पत्ता संझा सरोस व्व ॥ ४४७० ॥ दुम्महिलाजणकुवियप्पकप्पणा कलुसया अमंति व्व । चत्ताओ विणिक्खंता पसरइ तिमिरच्छलेण जए ॥ ४४७१ ॥ सामलचउद्दसिनिसानिसीहसमयम्मि जग्गए जाव । राया ता आयन्नइ, सवंसवीणस्सरं गीयं ॥ ४४७२ ॥ तेणागरसियचित्तो, उट्ठइ पल्लंकतूलियं मुत्तुं । अइसुस्सरतरगीयावहरियहियओ विचिंतेइ ॥ ४४७३ ॥ एवं अमच्चलोइयमसुयपुव्वं च मज्झ पडिहाइ । नायन्नियं मए जमिह एरिसं कत्थइ कया वि ॥ ४४७४ ॥ दूरत्थेहिं वि सवणेहिं पावियं नियफलं सुसरसवणा । नयणाई पि हु दट्ठव्वं दरिसणेणं लहंतु तयं ॥ ४४७५ ॥ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० सिरिअणंतजिणचरियं एवं विभाविउं मेहडंबरं वरविराइसिंगारो । गाढीकयपरिहाणो दढबंधनिबद्धसुद्धरहो ॥ ४४७६ ॥ करयलकयकरवालो कडीतडाबद्धदढयरच्छूरिओ । ईयवीरवेसवियरणदुद्धरिसो निग्गओ राया ॥ ४४७७ ॥ परिवंचिय परिवारो दूरुयरचत्तपुरिससंचारो ।। अणुणुसरियपाहरिओ भुल्लवियब्भमिरभामरिओ ॥ ४४७८ ॥ गीयस्सरमणुसरिडं जंतो पत्तो महिंदवणिगेहे । तब्भित्तिभवगवक्खासन्नो आयन्नए तं सो ॥ ४४७९ ॥ देवाण माणवाण व केसिं एसो सुरो त्ति चिंतेउं । ते पिच्छिउमारूढो, करणेण निवो गवक्खम्मि || ४४८० ॥ तदारसाहनिग्गयवरालिया वाममत्तवारणयं । आरुहिउं उवविट्ठो, गयदिट्ठी गायणदुगम्मि ॥ ४४८१ ॥ हुंफियकंपियकुरलियससण्हफुक्कावसेण चलिरसिरं । परिकंपिरंगुलिदलं वायइ वंसं महिंदधणी ॥ ४४८२ ॥ तंतीवायणबलकरकणंतकंकणगणस्स मणमणुनं । दरघरहरंतथोरत्थणं पिया वायए वीणं ॥ ४४८३ ॥ गायइ सच्चिय नियमहुरतरसरा हरिय किन्नरी कंठा । परिभवियकोइलरवा निज्जियकलहंसकलरावा ॥ ४४८४ ॥ दठूण वेणुवीणा, गीयसरेगत्तमसमसुहकरत्तं । । राया पहिट्ठहियओ वंछइ रयणावली दाउं ॥ ४४८५ ॥ चिंतइ य न जुत्तमिमं, निसि त्ति जमिमो वियप्पिही एवं । चोरो वा जारो वा निसाए एसो ममं दटुं ॥ ४४८६ ॥ ईय चिंतंतस्स नरेसरस्स मुक्का महिंदभज्जाए । वीणा सो वि हु वंसं मुत्तं कंतं इमं भणइ ॥ ४४८७ ॥ दइए दाउं सिक्खं, किं पि पयंपेमि रूससे जइ नो । दिज्जइ हिओवएसो, अवरस्स वि किं पुण पियाए ? || ४४८८ ॥ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ सीलोवरिरयणावलीकहा तीयुत्तं जं जुत्तं तं जंपसु भणसु मा पुण अजुत्तं । “थोवं पि आइरिज्जइ, भव्वमभव्वं न बहुयं पि” ॥ ४४८९ ॥ चलणमणो वि नरिंदो, तस्सिक्खा सवणकारणम्मि ठिओ । उस्सुयमणा वि गरुया, कारणवसओ विलंबंति” ॥ ४४९० ॥ आह महिंददईए दुस्सीलसहीण संगमं चयसु । जेण कुसंसग्गेणं जायइ निल्लज्जया दूरं ॥ ४४९१ ॥ भवइ य धम्मभंसो कुलमकलंकं पि होइ सकलंकं । विमलो वि हु मइलिज्जइ अप्पा अयसो समुल्लसइ ॥ ४४९२ ॥ उप्पज्जइ पावभरो, दुस्सीलत्तं पि हवइ नियमेण । अवसरइ साहुवाओ, सुकयं पि पलायए दूरं ॥ ४४९३ ॥ ता सव्वहा न कज्जो, अज्जदिणाओ तए कुसंसग्गो । तुह हियकरो अहं जंपतो णेगंते पयंपेमि ॥ ४४९४ ।। तं सोउं सकसाया, जंपइ कंत ! कत्थ केण समं ? | दिट्ठाहमकज्जपरा, रयणावलिय व्व महं कहसु ॥ ४४९५ ॥ तं सोउं ईसिसंखुहियमाणसो नरवई विचिंतेइ । केणेयाए रयणावली कुसील त्ति निद्दिट्ठा || ४४९६ ॥ इय चिंतंतम्मि निवे तेणुत्ता सा पयाससु पिए ! तं । रयणावलिं तए जा कया कुसीलत्तदिळं ते ॥ ४४९७ ॥ सा भणइ जयपसिद्धं पि रायकंतं न तं वियाणेसिं ? । विज्जुप्पहखयरेणं हरिऊण गिरिम्मि भुत्ता जा ॥ ४४९८ ॥ भणइ महिंदो संतं पावं पुणरवि भणेज्ज मा एवं । जं सा महासइ च्चिय, निव्वडिया रायपच्चक्खं ॥ ४४९९ ॥ सोउं सुसीलकंता, कलंकणं कोवदट्ठ-अहरदलो । आबद्धभिउडिभेरवभालो आरत्तनयणदुगो ॥ ४५०० ॥ आइड्ढइ कोसाओ, तं हणिउं झ त्ति तिव्वतरवारिं । चिंतइ इमं हणेउं, रायकलंकणफलं देमि ॥ ४५०१ ॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ अहवा किं पयरिक्के, हयाए एयाए ता पहायम्मि । नयणं जणपच्चक्खं विडंबिउं मारइस्समिमं ॥ ४५०२ ॥ इय परिभाविय कोसे खित्तं खग्गं निवेण सिग्घं पि । “ लंघंति न चेव नायं, कुविया विहु उत्तमा अहवा" || ४५०३ ॥ तो तीयुत्तं रन्ना, महासई विहु महासइ व्व पिया । आणीया इह अहवा, दोसं न नियंति पेम्मं से || ४५०४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तो भइ महिंदो, मा राय - विरुद्धं पिए । पयंपेसु । सा आह किं विरुद्धं विक्खायमिमं पुरजणे जं ? ॥ ४५०५ ॥ तयणु नरिंदो नियनिक्कलंककंताकलंकसवणेणं । अच्चंतदूमियमणो वलिओ पत्तो सवासगिहे ।। ४५०६ ।। पल्लंकम्मि पसुत्तो, चिंतइ कह विमलसीलकलियं पि । पावा पियं कलंकइ, सया वि सद्धम्मकम्मरयं । ४५०७ ।। जइ इंति नयपराण वि एरिस असतं जसाई सत्ताण । ता अन्नयरयाणं, का वत्ता इयरमहिलाण ? ।। ४५०८ ।। अवि परिवत्ती जायइ, पीयूसरसस्स वि सहावेण । न तहा वि सिविणयम्मि वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५०९ ॥ अवि उव्वहंति कलिकालकलुसिया सज्जणा वि दोजत्तं । न तहावि सिविणयम्मि वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५१० ॥ अवि पायालं सग्गम्मि जाइ सग्गो वि जाइ पायाले । न तहा वि सिविणयम्मि वि, मइलइ रयणावली सीलं ॥ ५४११ ॥ अवि रविबिंबं अत्थं गयं, पुणो कुणइ नेव इह उदयं । न तहा वि सिविणयम्मि, वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५१२ ॥ एमेव महापावं, जइ को वि समज्जए समज्जउ ता । मह पच्चक्खं चिय, निक्कलंकसीला पुणो देवी || ४५१३ ॥ एयाए निय पियं पइ पयंपियं जं समग्गलोए वि । दुस्सीलत्तं नायं गोसे ता तं निहालेमि ॥ ४५१४ ॥ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५३ सीलोवरिरयणावलीकहा इय चिंताजरभरजज्जरंगजट्ठी महंतकट्टेण । रयणी पच्छिमपहरे, माणइ निद्दासुहं राया ॥ ४५१५ ॥ अम्हमवसरामिसं तीए जं सए मंदिरेसु नरनाहो । भमिही कहमेवं भाविउं च रयणी झड त्ति गया ॥ ४५१६ ॥ असुहावडिओ मित्तो मित्तेणं चेवं उद्धरेयव्वो । इय चिंतिउं व सिग्घं पि दिणयरो आगओ गयणे ॥ ४५१७ ॥ एत्थंतरे पहाउयवज्जिरआउज्जरवहरियनिद्दो । निव्वत्तियगोसुब्भवकिरियायरणो सहं पत्तो ॥ ४५१८ ॥ उवविट्ठो घण-मणि-किरण-जालविलसिरसहासणुच्छंगे । पणओ नरिंद-सामंत-मंति-मंडलियविंदेण ॥ ४५१९ ॥ खणमेत्तमच्छिऊणं, विसज्जिऊण य सहाजणं सव्वं । कयभोयणोवविट्ठो, सयणत्थं वासभवणम्मि ॥ ४५२० ॥ तो पारेवयरूवो, ठिओ निवो पुरघरब्भमणकज्जे । कुव्वंति नप्पमायं, पहुणो पारद्धकज्जम्मि ॥ ४५२१ ।। उडुतो गंतूणं ठिओ, खण-मंति-गिह-गवक्खेसु । तो सामंतीपउरनिज्जूहठाणमल्लीणो || ४५२२ ॥ मंडलमइसुद्धतेसु गंतुमुवविसियमंडवेसु ठिओ । खणमल्लीणो य महायणीयघरनागदंतेसु ॥ ४५२३ ॥ तह य निविट्ठो य खणं पणंगणा घरवरालयग्गेसु । खणमेत्तं वीसंतो सुरमंदिरतोरणालीसु ॥ ४५२४ ॥ सरिया-सर-पुक्खरिणी-कूवय-जलवाहिणी-पहसमूहे । खणमेत्तं चिठेतो तोरणतरु-गोउरग्गेसु ॥ ४५२५ ॥ किं बहुणा ? अवरेसु वि आराम-सहाए पवाइट्ठाणेसु । खणमेत्तं सव्वत्थं वि चिट्ठतो तं पुरं भमिओ || ४५२६ ॥ नवरं नारीनियरो निरग्गलं जंपिरो कुसीलत्तं । रयणावलीए निसुओ, नरोहवारिज्जमाणो वि ॥ ४५२७ ॥ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं सविसाओ वलिऊण समागओ स-वासगिहे । “सिद्धम्मि समारद्धे किं वा कज्जं किलेसेण ?" ॥ ४५२८ ॥ पारेवयत्तमुज्झिय झड त्ति साहाविओ ठिओ राया । पायं परिहरियथिरं, किमत्थिरं को वि आयरइ ? || ४५२९ ॥ चिंतइ सव्वाओ कामिणीओ कंताए वेरिणीओ व्व । गोत्ते वि न संजायं, जमिमाए तयं पयंपंति ॥ ४५३० ॥ एगोवज्झायसमीवपाढं पढंति व्व गब्वियाओ व्व । देवीए कुसीलत्तं पुणरुत्तं वज्जरंति जओ || ४५३१ ॥ मह दइया वि सयावरदोसग्गहविहियदेवकिच्चो व । तेणुल्लवइ कुसीलत्तमेव महिलायणो एक्कं ॥ ४५३२ ॥ मह पच्चक्खं चेव य सीलं रयणावलीए निव्वडियं । ता तीए साहुत्तं वियन्नदोसाण दुट्ठत्तं ॥ ४५३३ ॥ साहुपरिपालणेणं दुट्ठाण विणिग्गहेण निव-धम्मो । ता निग्गहेमि ताओ, महासइं जाओ दूसंति ॥ ४५३४ ॥ जइ वा नयमणुसरियं, सव्वो वि विणिग्गहो विहेयव्वो । हम्मइ एगूणसयं अनईणं नेव संपुन्नं ॥ ४५३५ ॥ दंडिज्जए सहस्सो दुट्ठाणेक्केण होइ जइ ऊणो । परिपुन्नसहस्साई मुच्चइ दंडारिहो जइ वि ॥ ४५३६ ॥ एगत्तो नियदईयं, अदिट्ठदोसं तरामि नो मुत्तुं । अन्नन्नो अइदुसहो, जणाववाओ समुच्छलिओ ॥ ४५३७ ॥ नायपरं मह दइयं सई वयंतस्स फुट्टए हिययं । एस उवेहिज्जतो अयसो वि हु दहइ दावु व्व ॥ ४५३८ ॥ ता किं काउं जुत्तं, मह इण्हि एरिसे विसमकज्जे । अहवा पियाए कहिउं, आलोचियसमुचियं काहं ॥ ४५३९ ॥ इय चिंतिऊण अंतेउरम्मि पत्तो निवो पिया पासे । दटुं पहुमब्भुट्ठइ, सा वि समुल्लसिरघणसिहिणी ।। ४५४० ॥ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५५ सीलोवरिरयणावलीकहा देवी दिने रयणासणम्मि भूमीवई समुवविट्ठो । उचियासणे निविट्ठा, देवी वि हु रायआणाए ॥ -४५४१ ॥ सामाणणं पहु पेच्छिऊण पुच्छइ पिया कहह पहुणो । ससिमंडलमिव दिवसे विच्छायं किं मुहं तुम्ह ? ॥ ४५४२ ॥ रायाह पिए ! अहमिहिमागओ तुज्झ कहणकज्जम्मि । इय भणिय गीयआयन्नणाइ सव्वं पि से कहइ ॥ ४५४३ ॥ दृस्सीलया कलंकं जायं अत्ताणयम्मि सोऊण । तीए सकज्जलवाहसमयससी विव विहाइ मुहं ॥ ४५४४ ॥ कज्जलजुयवाह-पवाह-पट्ठईओ सहति वयणे से । अच्चंतकसिणतारा कंतिस्सेणीओ उवसहति ॥ ४५४५ ॥ चमरानिलउल्लासियमुहचंदे अलयवल्लरीओ व्व । अहवा विहसिय पउमे, विलसिरभमरावलीओ व्व ॥ ४५४६ ॥ भणियं निवेण किं देवि ! रुयसि भवणवासमावसंताण । सत्ताण कलंका इंति आगओ तं तुहे सो वि ? || ४५४७ ॥ तीउत्तं आगच्छड पहु ! सो जो एइ कयविणासाए । अविणासियम्मि एसो समागओ तेण मे दुक्खं ॥ ४५४८ ॥ त च्चिय नंदंतु चिरं, महासईओ महप्पभावाओ । कइया वि हु संपत्तं, जासि न कलंक-कलुसत्तं ॥ ४५४९ ॥ जाओ पुणो सामि ! कलंककलुसियाओ धरंति नियपाणे । जीवंतमयाणं ताण इह जए कहसु का गणणा ? ॥ ४५५० ॥ जइ सच्चं चिय तुह वल्लहा अहं सामिसाल ता मज्झ । दिव्वाइणा पयारेण देसु सुद्धिं जणसमक्खं ॥ ४५५१ ॥ तो साहु साहु साहु त्ति जंपिउं तं पसंसिउं राया । अइवाहिऊण रइणिं गोसम्मि सहाए उवविट्ठो ॥ ४५५२ ॥ आइसिउं पडिहारं, वाहरियमहायणं भणइ एवं । भो भो कावि अउव्व सकिमत्थि वत्ता पुरस्संतो ? ४५५३ ॥ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ विन्नाय रायहिययाभिप्पाया पायपणइपुव्वं ते । साहंति जहा निसुयं नाए गोविज्जए किं वा ? ॥ ४५५४ ॥ जंपंति य पहु ! बहुसो निवारियाओ वि नेव नारीओ । विरमंति अवज्जपयंपणाउ पावाउ किं करिमो ? || ४५५५ ॥ जइ पुण घणंघउ वि हु सामिय ! पुरिसो पयंपिए किं पि । ता कहह जहा तं तुम्ह पायपुरओ वि मारेमो ॥ ४५५६ ॥ भाइ नरिंदो तुब्भे मा बीहह निग्गहेमि नेगं पि । कहह पुणो मह दईया, झत्ति संसोहणोवायं ॥ ४५५७ ॥ जल-घडय-कणय - रुप्पय - गोलय - आगरिसणं घडाहिस्सं । आयट्टणं व फालं व कुंतपयरग्गपडणं वा ॥ ४५५८ ।। चियवडणं वा विसभक्खणं व अहवा गहीरजलबुडणं । धडवडणं वा संतत्ततेल्लगयमासगहणं वा ॥ ४५५९ ॥ तावियतउपाणं वा, गत्तासंगोवणं च कोसे वा । पाणंतकारि अइदुट्ठदेवया भवणवासो वा ॥ ४५६० ॥ अन्नं वा जइ वा किंचि वि दुट्ठयरं फुरइ तुम्ह हिययम्मि । विन्नवह तयं जह निय कंतं सोहेमि तुम्ह पुरो ॥ ४५६१ || जइ सुज्झइ ता तं नियघरम्मि आणेइ गरुयरिद्धिए । अह नो ता पच्चक्खं तुम्हाण तयं विणासेमि || ४५६२ ॥ तं सोऊण निवं विन्नवंति सव्वे पुरप्पहाण - नरा । का नाम देवसुद्धी विसुद्धसीलस्सहावाण ? || ४५६३ || संभवइ जत्थ संका, पच्चक्खं चेव नज्जइ अकज्जं । दिज्जइ तत्थ विसुद्धी, विसुद्धसीलाण किं तीए ? ॥ ४५६४ ॥ राणुत्तं जुत्ता विन्नत्ती तीए संगया तुम्ह । परमेत्थ नप्पईई, उप्पज्जइ दुज्जणजणस्स ॥ ४५६५ ॥ सिरिअणंतजिणचरिय तं मज्झम्मि पुणो होइ नूण महिलाजणो महादुट्ठा । देवी सुद्धिं अदाणे जायइ सच्चं च्चिय तदुत्ती ॥ ४५६६ ॥ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा ३५७ इय जंपिऊण देवी, सुद्धताओ सहीए आहूया । पत्ता यमघरकमगमणरणज्झगिरमंजीरा ॥ ४५६७ ॥ . दासी वयंसिया सो विदल्लियाईहिं अणुसरिज्जंती । अंगुट्ठी अवगुंठियमुही ठिया रायपायपुरो ॥ ४५६८ ॥ सारत्थं संपेसिय खेयरपुरिसाओ नाउमणुपत्ता । सूरप्पहनरनाहाइनहयरा वि हु विमाणेहिं ॥ ४५६९ ॥ सद्धिं नरनाहेणं उचियपडिवत्तिकरणपुव्वं ते । आउच्छिय रयणावलिवुत्तंता दुम्मणा जाया ॥ ४५७० ॥ संभासियं सुयं खेयरेसरो भणइ पुत्ति ! इण्हि पि । अवलंबिऊण साहसमत्ताणं कुणसु जरापत्तं ॥ ४५७१ ॥ रायाह देवि ! जइ तं परिपालिय विमलसीलबलकलिया । ता धिज्जेणं केणावि कुणसु अत्ताणमकलंकं ॥ ४५७२ ॥ सा आह देव ! तं चेव धिज्जमुवइससु जमइदुहँ से । दुज्जणजणाण वयणेसु जेण मसिकुच्चयं देमि ॥ ४५७३ ॥ राइएणुत्तं इह देवि ! दाहिणदिसाए मसाणमज्झम्मि । देवउलठिओ विड्डइ दिट्ठो घोरो कयंत व्व ॥ ४५७४ ॥ मक्कडकराडगंडयल-रोमसमलहुयसीसकेसधरो ।। नरमंसपयणकज्जे सिररईयवियग्गिजालो व्व ॥ ४५७५ ॥ संकिन्नकूवियादुगपडिबिंबियरविदुगं च जो वहइ । अच्चंतनिववद्दुलपिंगलतारं नयणजुयलं च ॥ ४५७६ ॥ निम्मंसपसारियरोद्दवयणनिस्सारियदीहजीहं जो । विमलमज्झभालयलवलिरगोरसप्पं च पयडेइ ॥ ४५७७ ॥ अइसरलसप्पगीवग्गसंगई धरइ जो करालसिरं । सूलग्गनिहियतक्करसीसं पिव भूरिभयजणयं ॥ ४५७८ ॥ निम्मंसट्ठिसमपरसु सेडियखेत्तं व जस्स वच्छलयं । जिन्नायगरजुयं पिव बाहुजुयं सिढिलमइदीहं ॥ ४५७९ ॥ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ सिरिअणंतजिणचरियं वंसयविलग्गमुयरं लोहविणिम्मिय महाकडाहं व । जस्स कडीतडमच्चंतसंकडं किविणचित्तं व ॥ ४५८० ॥ निम्मंसढोराउउट्टस्स व जस्स दो वि जंघाओ । गलियंगुलिनहनिवहं चलणजुयं कोडियस्सेव ॥ ४५८१ ॥ एगम्मि तिसूलं तदियरम्मि गुरुकत्तियं करे धरइ । सो दुट्ठदारणो नाम रक्खसो भीममुत्तिधरो ॥ ४५८२ ॥ (कुलयं) धीराणं वि उप्पज्जइ दिट्ठम्मि वि जं मिज्जति संतासो । दिद्रुण तेण मुच्छा आगच्छइ कायराण न किं ॥ ४५८३ ॥ संकियदोसो मुच्चइ संझासमयम्मि रक्खसस्स पुरो । जाइ जणो सव्वो वि हु गोसे तं पेच्छिउं तत्थ ॥ ४५८४ ॥ जो होइ अदोसो सो, जीवंतो तत्थ दीसए नियमा । नवरं बज्झइ सो रक्खसेण जो देइ दोसं से ॥ ४५८५ ॥ जो पुण होइ सदोसो सो गोसे सव्वलोयपच्चक्खं । माऊरं बद्धनद्धो पडणुच्छलणाई काऊण ॥ ४५८६ ॥ वयणेण रुहिरवरिसं मुंचंतो सव्वजणकयुत्तासं । देवउलग्गठियम्मि उच्छलिउं निवडइ तिसूले ॥ ४५८७ ॥ निन्भिन्नदेहजट्ठी होऊण झडत्ति जाइ पंचत्तं । ता सो च्चिय दईए, दुट्ठरक्खसो आयरेयव्वो ॥ ४५८८ ॥ तस्सायरणा तुहामयजसहरो धवलिही तिहुयणं पि । तह भविही दुट्ठाणं सिक्खा दुक्खाइरेगेण ॥ ४५८९ ॥ एवं ति जंपिउं सणिदिणे ठिया चत्तचउव्विहाहारा । देवी पसंतचित्ता सुमरंती पंचपरमेट्ठि ॥ ४५९० ॥ रविवारगोससमए कलंकपंकं च खालिङ न्हाया । धवलीकयसव्वंगा सजसेण व चंदणरसेण ॥ ४५९१ ॥ मुत्तालंकारेणं सीलेण व निम्मलेण लंकरिया । धम्मेण व धवलेणं पडएर्ण च्छाईयसरीरा ॥ ४५९२ ॥ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५९ सीलोवरिरयणावलीकहा चलिया नेउरझंकारमग्गलग्गेहिं गयणहंसेहिं । अणुगम्मती पच्चक्खहूय निम्मलगुणेहिं च ॥ ४५९३ ॥ निययावटेंभेण व मग्गे गच्छंतनिवइणा जुत्ता । धवलछत्तेणं कयच्छाया पुन्नोदयेणेवं ॥ ४५९४ ॥ हारंतरसंठियपउमरायनायगपहायवाहेण । मुत्तेणं पिव लोयाणुरायपसरेण परियरिया ॥ ४५९५ ॥ पिउ-ससुरकुलेहिं समं चलिरेहिं चामरेहिं रेहंती । हारपरियरियाप्पहाए सविं वित्थारंती नयणजोन्हं ॥ ४५९६ ॥ गय-तुरय-रह-सुहासणलंघिणिया मणिविमाणवडिएहिं । अणुगम्मंती सामंत-मंति-मंडलिय-खयरेहिं ॥ ४५९७ ॥ पत्ताए नयरपरिसरदेसो देवीए पुरपहाणनरा । नमिय नरिंदं सिरकयकरकोसा विन्नवंति इमं ॥ ४५९८ ॥ सामिय ! वालसु देविं जेण सईयणसिरोमणी एसा । नज्जइ तणुसोहाए, न हवइ जं सा कुसीलाण ॥ ४५९९ ॥ जेण अजुत्ताणं सुद्धिअवसरे होइ दीणया वयणे । कंपो काए खलणं, गईए चित्तम्मि वियक्कचया ॥ ४६०० ॥ तणुवन्नविविज्जासो, सामलमुहया भओ य उव्वेओ । विद्दाणत्तं नयणे सुसेयसवणं निरुज्जमया ॥ ४६०१ ॥ देवीए न चिंधाणं मणे मज्झाओ अत्थि एगं पि । ता मा कुणसु उवेहं न उवेहा जुज्जइ सुसीले || ४६०२ ॥ रायाह वलइ जइ ता वालह अहयं तु किं पि न भणामि । वाहाहिं धरिज्जंती वि सायरं सकुलवुड्ढाहिं ॥ ४६०३ ॥ नमिय नियत्तिज्जंती वि मंति-मंडलिय-खयरलोएण । दंतगहियंगुलं सहियणेण वारिज्जमाणा वि ॥ ४६०४ ॥ मग्गं रुंभंतीहिं वि सअंसुनयणाहिं सो विदल्लीहिं । पाएसु धरतीहि वि, आसंघयवसयदासीहिं ॥ ४६०५ ॥ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० सिरिअणंतजिणचरियं पत्ता संझावसरे पज्जलिरचियानले मसाणम्मि । उब्भूय भूयभीमे, भमंतअइघोर-घूयम्मिं ॥ ४६०६ ॥ तम्मज्झे ठावियदेवमंदिरे झ त्ति गंतुमारूढा । आऊरियं असेसं पि, तयणुलोएण देवउलं ॥ ४६०७ ॥ तो देवीए सिरिवीयरायनवकारसुमरणं काउं । भणियं स-बालवुड्ढो महप्पइन्नं जणो सुणउ ॥ ४६०८ ॥ जइ वि जयइ जिणधम्मो जइ वा वि जयइ चउव्विहो संघो । निव्विग्घं जइ विजयं, पावंति महासईओ वि ॥ ४६०९ ॥ ता एय पाय-पउमप्पसायओ मह अवंचियपियाए । तिगरणसुद्धीए वि हु, अजाय-पर-पुरिसभोगाए ॥ ४६१० ॥ सिविणय-वित्तीए वि हु असमीहिय-दईय-रहियपुरिसाए । हासेण वि पुरिसंतरअभणिय उच्चिट्ठवयणाए || ४६११ ॥ मह वेमाणियदेवा जोइसिय-सुरा व वंतरसुरा वा । भवणवइणो व तह पंचलोकपाला वि जे देवा ॥ ४६१२ ॥ आयन्नह सव्वे वि हु महासइपक्खवायकयचित्ता । तुम्हाणं एगो वि हु सईए मह कुणउ सन्नेझं ॥ ४६१३ ॥ वारा विससिय भणिउं उवविट्ठा रक्खसस्स पुरओ सा । तो नरनाहाईओ लोगो पत्तो पुरस्संतो ॥ ४६१४ ॥ झिज्जंतीए निसाए पत्तो राया समागया सचिवा । मिलिया मंडलवइणो संपत्ता झ त्ति सामंता || ४६१५ ॥ उवविट्ठा बंभपुरी कइलासो पासमस्सिओ सहसा । मिलिडं महायणीया समागया अप्फरो फिरिओ ॥ ४६१६ ॥ संघायं आवंता वुद्धा घडिओ झड त्ति आहाडो । सेणीओ वि अट्ठारस मिलियाओ आगओ लोगो || ४६१७ ॥ वेमाणिय-जोइस-भवणवासि-वंतरसुरेहिं गयणयलं । कोऊयसमागएहिं, विमाणवडिएहिं अप्फुन्नं ॥ ४६१८ ॥ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा इय मिलिए उत्तम - मज्झिमाहमे बाल - तरुण - थेरम्मि | लोए लज्जा - दक्खिन्न - नेहभयकोउयायत्ते ॥ ४६१९ ॥ छुट्टति कहं कलुसा, विडंबणं जइ लहेंति विमला वि । इय चिंतिउं व तब्भवण - भीरुया इव गया रयणी ॥ ४६२० ।। अवसरिओ तिमिरभरो ईय दंसे चंदसव्वलोयस्स । देवीए अवसरिही कलंकपंको पि इण्हि पि ।। ४६२१ ।। रयणीए रक्खसालयगयदेवीए निएमि किं जायं । इय कोउयाजणो इव, रवी वि उदयद्दिमारुढो || ४६२२ ॥ एत्यंतरे सईपक्खवायपच्चक्खजायरूवेण । रक्खसराएण कए कंचणकमले समुवविट्ठा ॥ ४६२३ || मुहकंतिनिज्जिएणं चंदेण व दंडदिन्नकिरणेहिं । वीइज्जती पायालकन्नया सेयचमरेहिं ॥ ४६२४ ॥ एसा अखंडसीला अखंडसीलं सया मम वि काही । ईय सेविज्जंती चंदमंडलेणेव छत्तेण ॥ ४६२५ ॥ आभरणी कयमुत्ताजालयमंगट्ठियं परिकलिती । खीरोयहिनिग्गमलग्गखीरबिंदुक्कर व्व सिरी ।। ४६२६ ॥ चूडारयणीकयइंदनीलमणिकिरणकलियसीमंता । सोहं समुव्वहंती मंगलसिरिरइयदुव्वाए || ४६२७ ॥ दिट्ठा नरेसरेणं, विम्यवियसंतनयण-कमलेणं । रयणावलीपियापउरपउरपरिवारसहिएण || ४६२८ ॥ ( कुलयं ) तं दट्ठूणं राया जाओ परिओसपूरिओ दूरं । एयारिसकल्लाणं जायइ नो कस्स तोसाय ॥। ४६२९ ॥ उवणीयं मरणंतं वसणं देवीए जाहिं पावाहिं । तासिं करेमि कंपि हु सिक्खं न पुणो वि बिंति जहा || ४६३० ॥ इय चिंतिऊण रक्खसरन्ना पम्मुक्कपुक्कहुंकारे । दढबद्धनिबद्धाओ नहाओ निवडंति महिलाओ || ४६३१ ॥ ३६१ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ सिरिअणंतजिणचरियं मंडलियमंतिसामंतधणवइप्पमुहपउरलोयाण । । जणणीओ भइणीओ भज्जाओ दुहियगओ वि ॥ ४६३२ ॥ उच्छलिउं उच्छलिउं दड त्ति निवडंति कुट्टिमेताओ । मुंचतीओ रुहिरं रक्खसपरिसोसणत्थं च ॥ ४६३३ ॥ दटुं वेगा गच्छंतगयणनिवडंतनारिसंदोहं । रायाइणो जणो सव्वो वि वाउलत्तं समणुपत्तो || ४६३४ ॥ इय असमंजसमवलोइऊण विप्फुरिय फारकारुन्ना । रयणावली महासइरयणं रक्खसवइ भणइ ॥ ४६३५ ॥ भो रक्खसिंद ! मुंचसु जीवंतवराइयाओ एयाओ । मह पक्खवायकुविओ मा मारिय पावमायरसु ॥ ४६३६ ॥ अज्जिज्जइ नरयदुहं एक्कम्मि वि मारियम्मि जीवम्मि । एत्तियमहिलाओ मारिऊण तं कत्थ वच्चिहसि ? ॥ ४६३७ ॥ नियपाणेहि वि परपाणरक्खणं नणु कुणंति कारुणिया । तं पुण इत्थीण वहं, करेसि हा हा महामोहो ! || ४६३८ ॥ अह भणसि इमाहिं तुमं, कलंकिया तेण निग्गहेमि अहं । सो दोसो न इमाणं, जं मह कम्मप्फुरियमेयं ॥ ४६३९ ॥ अवरकयम्मि विणासे, का नीई निग्गहिज्जइ जमत्तो । मह कम्मकए दोसे किमिमाउ इमं कयत्थेसि ? ॥ ४६४० ॥ तं न कुणंति अजोग्गाई दियवग्गं निजंतिऊण नियं । जेण न भवंतरम्मि हुंति विडंबण एयमहं च ॥ ४६४१ ॥ एगे नियकज्जम्मि वि न कुणंति कयाइ पावलेसं पि । तं पुण परकज्जम्मिं किमुवज्जसि पावपब्भारं ? ॥ ४६४२ ॥ अवरं च भणामि हियं, तह तं निकज्जमज्जसे पावं । जं पसु-महिसोरब्भा पहणइ जणो तुज्झ पयपुरउ ॥ ४६४३ ॥ तं केवलस्स पावस्स भायणं भवसि पाणिवहकरणा । भक्खंति पुणो अन्ने तम्मंसं किं फलं तुज्झ ? ॥ ४६४४ ॥ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा ता सव्वा वि विरमसु जीववहुब्भवपभूयपावाओ । रक्खसराय ! समज्जसु वरजीवदया पुन्नभरं ॥ ४६४५ ॥ तुह हियमिममुवट्ठ नन्नो अन्नस्स पडइ पावेण । तं कुणसु जमभिरुइयं मुंचसु पुण महिलियाओ दुहा || ४६४६ ॥ इय एस अमयगब्भं पगब्भवयणं सईए सोऊण । पडिबुद्धेणं तेणं मुक्काओ दुहाओ महिलाओ || ४६४७ || सो जंपइ देवि ! अहं अन्नाण - महन्नवे निमज्जतो । अब्भुद्धरिओ तुमए नियसिक्खा - निबिडनावाए || ४६४८ ॥ अवियाणियपरमत्था कुणंति पावाई पाणिणो पायं । किं को विजाणिउं नियकंठं खंडइ कुढारेण ॥। ४६४९ || भुवणम्मि समग्गम्मि वि सव्वो वि जणो सकज्जतल्लिच्छो । चत्तसकज्जा परकज्जउज्जया देवि ! तं चैव ॥ ४६५० ॥ अज्जपभिइ न काहं पाणिवहं जं समग्गसत्ता मे । अप्पसम च्चिय जाया अप्पाणं हणइ किं कोइ ? ॥ ४६५१ ॥ दुस्सह दिन्नकलंको रिउ त्ति हणणारिहो वि जं मुक्को । एसो विलयावग्गो तं देवि ! बुहत्तगरुयत्तं ।। ४६५२ || जइ कुणसि कह वि कोवं विद्धंससि ता समग्गभुवणं पि । जेण सईण सइंदो वि किंकरो होइ अमरगणो ॥ ४६५३ ॥ घोरावइ पडियाए वि देवि ! पडिबोहिओ अहं तुमए । डज्झतो वि हु अगरो कुणइ सुयंधं समीवजणं ॥ ४६५४ || इय जंपतो पणओ सईए सो रक्खसो सबहुमाणो । तह नारी नियरो वि हु तं पणमिय खामए एवं ॥ ४६५५ ॥ पावाणम्हाणं तं अवराहं खमसु देवि ! दयरसिए । उस्सिखलभणिरीहिं कलंकिया जं पउट्ठाहिं ॥ ४६५६ ॥ रयणावलीए भणियं न तुम्ह दोसो समच्छिएत्थत्थे । किं तु मह दुक्कयाणं ता रुट्ठा हं न तुम्हाणं ॥ ४६५७ ॥ ३६३ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ सिरिअणंतजिणचरियं एत्थंतरे तमसमं अच्छरियं पेच्छिऊण पम्मुक्का । अमरासुरखयरेहिं देवीए सिरे कुसुमवुट्ठी ॥ ४६५८ ॥ जय जय तुमं महासइ ! ईय पणिभणिरस्स तिहुयणजणस्स । उल्लसिओ हलबोलो तहा जहा सुव्वए नन्नं ॥ ४६५९ ॥ देवेहिं दुंदुहीओ नहम्मि तह ताडियाओ सव्वत्तो । तं जह दिसि बाला वि हु ताडंति पडिरवच्छलओ ॥ ४६६० ॥ एत्थंतरम्मि रवितेय सुरवरो भत्तिनिब्भरो नमिउं । देवीए देइ देव्वंगदेवदूसाइवत्थाई ॥ ४६६१ ॥ कंकण-किरीड-कुंडल-कंचीकेऊर-हारपमुहाई । रयणाभरणाई तयं परिहावइ फुरियकिरणाइं ॥ ४६६२ ॥ उवणीयं च चउद्दिसि-पसरियमणिकिरणभरदुरालोयं । कोणट्ठियमणिघंटा-चउक्कटंकारकमणीयं ॥ ४६६३ ॥ अनिलुक्कलिया तरलद्धयालिझणहणिरकिंकिणीजालं । खलहलिरकणयमणिघग्घरावलीरोलरमणीयं ॥ ४६६४ ॥ पसरंतसुरहिकुसुमोवहाररणझणिरभमिरभमरउलं । चउदिसिमणिनिम्मियमत्तवारणस्सेणिसंजुत्तं ॥ ४६६५ ॥ उल्लोयतलपलंबंतमोत्तिओ झलकंतकिरणिल्लं । अन्नोन्नलग्गमणिकिरणजायसुररायचावचयं ॥ ४६६६ ॥ रयणविमाणं तम्मि आरूढा हत्थिमंथरगईए । रयणावलीसलीलंसुयजयजणजयजयारावा ॥ ४६६७ ॥ तो रयणमयगवक्खट्ठियमणिसीहासणे समुवविट्ठा । वीइज्जंती सिंगारियामरीपाणिचमरेहिं ॥ ४६६८ ॥ चलिओ चउरंगचमूचयकयवेढो निवो पियाणुपहं । पण-रमणीकरचालियचमरो सियछत्तलंकरिओ ॥ ४६६९ ॥ सूरप्पहखयरवई विमाणगणपूरियंबरो चलिओ । तदुवरितहट्ठिया संचरंति असुरामरा सव्वे ॥ ४६७० ॥ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा पेच्छंती सुरनिम्मियनाणारूवाइं नाडयाइं नहे । भूमिसमारद्वाइं पेच्छणयाई पलोयंती ।। ४६७१ ॥ कुलबहुआ पारद्धे, निरूवयंती सहेलहल्लीसे । नहयरनारी निम्मिय नट्टाई नहे निरिक्खंती ।। ४६७२ ॥ जई निक्कलंकसीले महासइ त्ति जयवन्नणिज्जगुणो । आचंदक्कं नंदसु समुवज्झिय सियजसप्पसरे ।। ४६७३ ।। जं देविं अमयवुट्ठि काउं निव्ववइ जलहरो भुवणं । जं अत्थमुवगओ वि हु पुणरवि तरणी कुणइ उदयं ॥ ४६७४ ॥ जं उच्छलियजलोहा य सायरा नो मुयंति मज्जायं । जं धूली निहियं पि हु होउमसंखं फलइ धन्नं ॥ ४६७५ ॥ तं सव्वं पि महासइपसरइ तुह विमलसीलमाहप्पं । इय अमरासुरखेयरनरत्थुईओ निसामंती ॥ ४६७६ ॥ वियरंती दीणजणुद्धरणनिमित्तं सुवन्नमणिवुठि । परिपूयंती पुज्जे पणमंती पणमणिज्जपए ॥ ४६७७ ॥ अभिनंदिज्जंती जय जीवसु सुइरं ति गोत्तवुड्ढाहिं । उब्बूहिज्जती गुणीजणाण गुणगहणनिरएण ॥ ४६७८ ॥ कय अवयारणएहिं पणमिज्जंती पहम्मि पउरेहिं । अच्चिज्जंती निक्खविय अक्खए पुरपुरंधीहिं ॥ ४६७९ ॥ सिंघाडय-चच्चर-तिय- चउक्कठाणेसु विरइय विलंबा । गुरुरिद्धी पत्ता, निवमंदिरदारदेसम्मि ॥ ४६८० ॥ तत्थक्खय-सिद्धत्थय - दहि-दुव्वा मंगलं समणुहविउं । पविसिय पणमिज्जंती, पउरेहिं सहाए उवविट्ठा ॥ ४६८१ ॥ तो निवइणा सुरासुरनरेसरा, रइयअसमसम्माणा । उवलद्धसई आसीवाया पत्ता सा सठाणेसु ॥ ४६८२ ॥ रायाएसा रयणावली विसुद्धंतभवणमल्लीणा । सूरप्पहो वि पत्तो, निय नयरे निवअणुन्नाओ ॥ ४६८३ ॥ ३६५ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ सिरिअणंतजिणचरियं रन्नो सई निय पिया विलासवामोहमोहियमणस्स । वच्चइ कालो धम्मत्थकामफलमणुहवंतस्स ॥ ४६८४ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि देवी रयणावली रयणिविरमे । पेच्छिय मणिपुंजं सिविणयम्मि पडिबोहमणुपत्ता ॥ ४६८५ ॥ कोइलकलस्सरं विगयनिद्दमवणीवई विणयपुव्वं । भणइ मए पहु ! संपइ मणिपुंजो सिविणए दिट्ठो ॥ ४६८६ ॥ तं सोऊणं वज्जरइ नरवई दसणकिरणपंतीए । ससहरजोन्हापइवविद्धंसंतो रयणि-तिमिरं ॥ ४६८७ ॥ देवि ! इमो सव्वुत्तमसिविणो तो तुज्झ भुवणगब्भहिओ । भविही मणि व्व पुत्तो, तेयस्सी गुणकयावासो ॥ ४६८८ ॥ तं सोऊणं देवी पमोयपसरेण पुलईया सहइ । घणमंडलाओ वुट्ठी मेइणीअंकुरेहिं व ॥ ४६८९ ॥ तुम्हप्पसायओ होउ एवमेयं ति जंपिउं पत्ता । अंतेउरे तओ सा सुहेण गब्भं समुव्वहइ ॥ ४६९० ।। रिउसमयसमुचियाहारउसहाईहिं उवचयं पत्तो । गब्भो तओ पसूया समए सा उत्तमं पुत्तं ॥ ४६९१ ॥ सुयजम्माणंदमहं रिद्धीए कारिडं महीवइणा । दिन्नं नामं मणिसुंदरो त्ति सिविणयसमं तस्स ॥ ४६९२ ॥ चाट्टण-रिखण-चंकमण-चूलियाकरणपाटणाईयं ।। किरियं कारिज्जंतो संपत्तो जोव्वणारंभं ॥ ४६९३ ॥ नरवइसेणाहिवमंडलीय-सामंत-मंति-कन्नाओ । नियरूवजियरईओ कुमरो वीवाहिओ रन्ना ॥ ४६९४ ॥ सेवावसरेसु सया विरायपयपउममणुसरंतस्स । वच्चइ कालो कुमरस्स विविहकीलापसत्तस्स ॥ ४६९५ ॥ एत्यंतरम्मि सिरिमोहमहणमुणि-पुंगवो समणुपत्तो । समवसरिओ ससाहू हंसविलासाभिहुज्जाणे ॥ ४६९६ ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६७ सीलोवरिरयणावलीकहा उज्जाणपालपुरिसा, जाणिउं गुरुसमागमं राया । गुरुभत्तिरायसंजायरम्मरोमंचकंचुईओ ॥ ४६९७ ॥ सिंगारसुंदरंगो, गंधगयकंधरं समारूढो । सियछत्तचारुचमराइरायलंकारकमणीओ ॥ ४६९८ ॥ कुमरंतेउर-सामंत-मंति-मंडलियरईयपरिवारो । पत्तो हंसविलासे उज्जाणे गुरुविभूईए ॥ ४६९९ ॥ उत्तरियकरिंदाओ, चत्तछत्ताइं पंचनिवचिंधो । दाउं पयाहिणतिगं, वंदइ गुरुपायसयवत्तं ॥ ४७०० ॥ कुमररयणावलीए, सह परियणेणावि वंदिउं भयवं । संपत्तधम्मलाहा सव्वे वि सट्ठाणमुवविट्ठा ॥ ४७०१ ॥ . सद्धम्मस्सवणुज्जयसहाए सद्धम्मदेसणा पहुणा ।। पारद्धा पारभवंतकारिणी सिद्धिसंजणणी ॥ ४७०२ ॥ भो भो भव्वा ! सव्वायरेण उज्जमह सव्वविरईए । अक्खेवेण वि मोक्खो जायइ जीए सयासाओ ॥ ४७०३ ॥ तीए सुहुमाण सबायराण जीवाण रक्खणं कज्जं । सुहुमं च बायरं वा वज्जेयव्वं मुसावयणं ॥ ४७०४ ॥ सुहुमं च बायरं वा वत्थुमदिन्नं सया चए पुव्वं ।। इत्थीण परिच्चाओ जावज्जीवं विहियव्वो || ४७०५ ॥ थूलो वा सुहुमो वा परिग्गहो नो सया धरेयव्वो । . रयणी-भोयणचाओ जावज्जीवं पि कायव्वो ॥ ४७०६ ॥ एवं महव्वयाई निसिभोयणचायकरणसहियाइं । सव्वविरईए सम्मं, परिपालिज्जंति एयाइं ॥ ४७०७ ॥ एक्का वि सव्वविरई, भूरिब्भवभवाइं हरइ पावाइं । विप्फुरिया सूरपहा, दिसिचक्कं भवाई व तमाई ॥ ४७०८ ॥ उवभुत्ता रज्जसिरी सुइरं सव्वुत्तमो सुओ जाओ । राय ! किमिहि खूणं जं नज्ज वि कुणसि पव्वज्जं ? || ४७०९ ॥ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ राणुत्तं भयवं ! धुवं धरिस्सं तुहक्कमारा । गहीयवयं मोरितुलं निव्वुयहिययाहियसमाही ॥ ४७१० ॥ इय जंपिऊण पणमिय गुरूक्कमे गुरुकरेणुमारुहिउं । पुत्तंतेउरपरियण- परियरिओ आगओ भवणे ॥ ४७११ ॥ सव्वुत्तमम्मि लग्गे काऊण सुयस्स रज्जअभिसेयं । न्हाउं अभिनिव्वत्तियबलिकम्मो रईयसिंगारो ।। ४७१२ ।। आरूढो मणिकंचणविणिम्मियाए विसिट्ठसिबियाए । नवरायधरियछतो रमणी चालियचमरजुयलो ।। ४७१३ ।। जद्दरपडिपच्छाईयसुहासणट्ठियपियाहिं परियरिओ । अणुगम्मंतो मंडलिय - मंति- सामंत - चक्केहिं ॥। ४७१४ ॥ आयन्नंतो लीलावईगणुग्गिज्जमाणनियचरियं । अवलोयंतो नववयविलासिणीवग्गनट्टाई ॥ ४७१५ ॥ पूयंतो जिणइंदे दिंतो दाणाई दीणदुन्थाण । तित्थं पभावयंतो, निसुणंतो मागहत्थुईओ ॥ ४७१६ ।। सव्वस्स परिच्चाया, जणयंतो किविण - जण - महच्छरियं । संवेगं जणयंतो भववासविरत्तचित्ताण ॥ ४७१७ ॥ वज्जंतढक्क-बुक्का - नीसाण - निनाय - पूरियदियंतो । गुरुरिद्धीए पत्तोहं सविलासम्मि आरामे ॥ ४७१८ ॥ सिबियाए समुत्तिन्नो, मुत्तुं छत्ताइरायलंकारे । विहिपुव्वं नमइ गुरुं, राया रयणावलीकलिओ ॥ ४७१९ ॥ भणइ य वियरसु मह पहु ! दिक्खं सिक्खं च नियमयाणुगयं । तो सुमुहत्ते दिन्ना दिक्खा सिक्खा य से दुविहा || ४७२० ॥ अवरेहिं वि तेण समं, अमच्च - सामंत - मंडलीएहिं । संतेउरेहिं गहिया, दिक्खा तग्गुरुसमीवम्मि ॥ ४७२१ ।। रयणावलिपमुहाओ, समप्पिया अज्जियाओ अज्जाण । उवहाणकरणपुव्वं, समयमहिज्जंति सव्वाइं ॥ ४७२२ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीलोवरिरयणावलीकहा नवरायरिसी जाओ अंगोवंगप्पइन्नमाइविऊ । आमोसहिपमुहाओ, लद्धीओ वि तस्स जायाओ || ४७२३ || संठविओ सूरिपए, कुणइ विहारं जणं पबोहंतो । रयणावली वि पत्ता, पारे एक्कारसंगेण ॥ ४७२४ ॥ जंघाचारणलद्धी, एसो गओ रयणसेहरो सूरी । वेयड्ढुच्छंगठिए, रहनेउर - चक्कवालपुरे ॥ ४७२५ ॥ समवसरिओ असोयावयंसनामे मणोहरारामे । तं नाउं सूरप्पहराया रिद्धीए संपत्तो ॥ ४७२६ ॥ अभिवंदिय मुणिइंदं, मुणिणो रयणावलिं च भत्ती उवविट्ठो गुरुपुरओ, तेण वि सद्देसणा कहिया || ४७२७ ॥ भो भव्वा ! भववासं, भावह अच्चंतदुहयरं जेणं । नरय- पुढवीसु सत्तसु वि जायए दुक्खमइतिक्खं ॥ ४७२८ ॥ तिरियगईए वि तं चिय, दंभण-वह-वाह - दोह - दहणाई | मणुयगईए वि न सुहं दरिद्दया रोयसोएहिं ॥। ४७२९ ।। देवगईए विन तं ईसादासत्त - किब्बिसत्तेहिं । । सिद्धी पुण सत्ताणं, सया वि सासयसुहेक्कफला ॥ ४७३० ॥ ता जइ तुब्भे भवभमणभीरुणो अभवसुहसिरिसयन्हा । ता घेत्तुं जिणदिक्खं, सासयसुक्खं समज्जिणह ।। ४७३१ ।। इय निसुय सूरिसद्देसणेण सूरप्पहेण नरवइणा । गंतुं नियपासाए रज्जे रयणप्पहो ठविओ ॥ ४७३२ ॥ रिद्धीए गुरुसयासे, गंतुं संतेउरेण जिणदिक्खा । गहिया तेण तओ सो, तवइ तवं देहनिरवेक्खं || ४७३३ || तो गयणवल्लहपुरं, गंतुं गुरुणा वि बोहिउं तत्थ । विज्जुप्पहस्स दिन्ना, दिक्खा परिहरियवेरस्स ॥ ४७३४ || रयणावलीए दिन्नं, जोग त्ति पवत्तिणी पयं पहुणा । वेयड्ढपुरपहूणं, बहूण दाऊण दिक्खं सो ॥ ४७३५ ॥ ३६ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० सिरिअणंतजिणचरियं तत्तो उत्तिन्नो वसुमईए, संपत्तपवरवरनाणो । केरल-कुंतल-मलयंगवंगविसएसु विहरेउं ॥ ४७३६ ॥ विमलगिरि सिहरमारुहियमासियाणसणपत्तपाणंतो । सासयसुक्खसमिद्धं, सिद्धिपुरंधिं समणुपत्तो ॥ ४७३७ ॥ सूरप्पहविज्जुप्पहमुणिणो वि पहीणपावपन्भारा । उप्पन्नकेवला मुक्खसोक्खमक्खेवओ पत्ता ॥ ४७३८ ॥ रयणावली वि अज्जा समुवज्जियविमलकेवलालोया । पडिबोहइ भविओहं मोहं अवहरइ पणयाण ॥ ४७३९ ॥ नयरपुरग्गामागरसंवाहमडंबकब्बडाईसु । देसइ सद्धम्मकहं, अनिययवित्तीए विहरती ॥ ४७४० ॥ आणंदं जणयंती, भव्वाण पसंतनिययमुत्तीए । उप्पायंती तोसं सत्ताणुवएसदाणेणं ॥ ४७४१ ॥ बहुकालकयविहारा, चडिया गिरिरायसिहरिसिहरम्मि । मासोववासअंते, संपत्ता सासयसुहं सा ॥ ४७४२ ॥ सीलेण सक्कमिहहिं राइसुरेसरा वि, सन्नेज्झकज्जकरणुज्जमिणी हवंति । सीलेण हत्थि-हरि-रक्खस-पन्नगाइ सत्ताई झ त्ति वि समिति महासईणं ।। ४७४ सीलेण अग्गी वि जलत्तमेइ, तेणिंति कुंता विहुयंकयत्तं । दुक्खेक्कहेऊ वि सुहाय होइ, सव्वं पि सीलेण महासईणं ॥ ४७४४ । एयाए जहाजायं, सीलं परिपालियं सिवेक्कफलं । अवरस्स वि तह जायइ तात ! परिपालणं क्रज्जं ॥ ४७४५ ॥ भणिओ सीलाहरणे एसो रयणावलीए दिह्रतो । तवधम्मम्मि इयाणिं आयन्नह चंदकंतकहं ॥ ४७४६ ॥ (तवोवरि चंदकंतकहा) | चंदमणिमय-गिहाली, चंदोदयपब्भरं व सलिलेण । सवरिससरयन्मालि व्व अत्थि चंदउरिया नयरी ॥ ४७४७ ॥ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७१ तवोवरिचंदकंतकहा सुगयपियामहसहसकरईसराणंतअच्चुयकइंदा । देव व्व जीए निवसंति, माणवामाणगुणगरुया ॥ ४७४८ ॥ जीए समुतुंग-जिणिंद-मंदिर-स्सिहर-खलणजीउ व्व । गच्छंतो गयणयले, लहइ ससंको जह च्छन्नं ॥ ४७४९ ॥ पउरगओ वि अरोगो, राया सूरो वि पालइ पुरंतिं । चंदावयंसओ नाम, चंदजोण्हा जसप्पसरो ॥ ४७५० ॥ विप्फुरियचंदहासोवसोहिओ रावणो व्व जो सहइ । समुदयमहियपरोहो सूरो व्व हरो व्व सुकुमारो ॥ ४७५१ ॥ दूएहिं पिव निम्मलगुणेहिं सियवन्नविलसमाणेहिं । अविक्खिया नरिंदा, पयपउमं जस्स सेवंति ॥ ४७५२ ॥ सेहाहियत्थसत्था विलसंतपयाय पाउससिरि व्व । आणंदइ तस्स मणं, कंता नामेण चंदमई ॥ ४७५३ ॥ सुहसारा सस्सोहा सुरयणसंचेयणा पवालहया । सव्वत्थ दुहा नेया, जासु पयासियनया य तहा || ४७५४ ॥ नवनेहनिब्भराए तीए समं निवइणो विणोएहिं । विविहेहिं जाइ कालो, अन्नाओ इव सुहुक्करिसा || ४७५५ ॥ नयरीए तीए निवसइ, नरिंदसम्माणपत्तमाहप्पो । सारयछणचंदजसो चंदजसो नाम पुरसेट्ठी ॥ ४७५६ ॥ रंगो नीइनडीणं मलओ निम्मलकलालिकलियाणं । तरणीगुणकिरणाणं, मयरहरो मुत्ति सुत्तीणं ॥ ४७५७ ॥ नहपहसमस्सिया से, समत्थि चंदस्सिरि व्व चंदसिरी । पमया सिया पवित्ता, कंता कुवलयकयाणंदा ॥ ४७५८ ॥ तिवलीतरंगघणहररहंगसिंगारसारपयपवहा । मुहकमललवलच्छिब्भमरभामिया सहइ सरिय व्व ॥ ४७५९ ॥ नामेण चंदकंतो, पुत्तो ताणत्थि चंदकंतो व्व । गुरुरायपायसंगमपव्वत्तआणंदअंसुजलो ॥ ४७६० ॥ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ सिरिअणंतजिणचरियं निम्मलकलाकलावुल्लसंतचित्तो ससाहिया वासो । संपूरियप्पयासो, रेहइ छणरइणिगमणो व्व ॥ ४७६१ ॥ पुन्नाओ सिरिवच्छो, सरलो दीहं वओ असोओ य । सेट्ठिसुओ तरुरूवो, वि जं मणुस्सो तमच्छरियं ॥ ४७६२ ॥ अच्चंतउज्जलगुणालंकारधरा जणच्छिसुहजणणी । सद्धम्मचारिणी से समत्थि चंदावली नाम || ४७६३ ॥ कन्नजुयला वयंसियएक्केक्कन्भमिरभमरनलिणेहिं । जेउं उवंति णयणं कयनयणचउक्क व्व जा सहइ ॥ ४७६४ ॥ अच्चब्भुयरूवधरा अभग्गसोहग्गसम्मचंगंगी । लायन्नगुणमणुन्ना सिरीससोमणससुकुमाला ॥ ४७६५ ॥ तीए सह विविहविसयाभिसंगवामोहमोहियमणस्स । खणमेत्तं पिव वच्चंति, वासरा सेट्ठितणयस्स || ४७६६ ॥ कप्पूरागरु-मय-णाहि-मिस्स-चंदण-विलेवणासोओ । भमिरस्स तस्स दिसिचक्कवालमावरइ सपियस्स || ४७६७ ॥ चद्दरचीणंसुयदेवपडिपमुहविविहवत्थाई । परिहइ सकलत्तो सो विसहरनिम्मोयमउयाइं ॥ ४७६८ ॥ वज्जावलिविलसिरपउमरायमाणिक्कभूसणसएहिं । समलंकरइ सरीरं सपिओ वि सया ससिंगारी ॥ ४७६९ ॥ अइवाहइ गिम्हुम्हं, मिउं दोलासेज्जतूलियारूढो । धाराहरजलधाराकणवहवाउद्धसियरोमो ॥ ४७७० ॥ कीलागिरिसिरमंदिरघणमणिमयमत्तवारणासीणो । आसारवारिधारावरिसं पेच्छइ वरिसयाले ॥ ४७७१ ॥ सीयसमयम्मि कुंकुमकयंगराओ निगूढगिहगन्भे । चिट्ठइ सगडी-अंगार-डज्झिरागरुसुयंधम्मि ॥ ४७७२ ॥ इय कालोचिय उब्भडभोयाणुभवुब्भवंतभूरिसुहो । विलसइ सो सह नवरम्मपेम्मरसवसइ दईयाए ॥ ४७७३ ॥ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2005 तवोवरिचंदकंतकहा नवरं बहुया विसए विद्देसं वहइ सासुया अहवा । बहुयाण सासुयाणं पुव्वनिबद्धाई वेराई | ४७७४ ॥ चिंतइ य न मह बहुया विणयप्पडिवत्तिमायरइ पावा । पायं न नमइ नारी, पदं गोरवजायगुरुगव्वं ॥ ४७७५ ।। जइ दइओ गोरव्वे, ता तज्जणणी वि होइ गोरव्वा । जइ पूइज्जइ पुज्जो, किमपुज्जइ पुज्ज - पुज्जो तो ? || ४७७६ ॥ पइणो गोरव्वा हुंति न कुणए किं पि गेहकरणिज्जं । साहंकारा रामा, अवरा वि न किं पिया पइणो ? ॥ ४७७७ सोहग्गवाय भग्गं पउणं अंगं न अन्नहा भविही । एयाए पाणपियवल्लहविरहो सहं मोत्तुं ॥ ४७७८ 11 संतीए सत्तीए जे अवयारं परस्स न करंति । नूणं निवडंत च्चिय ते विच्छन्ने अणत्थम्मि || ४७७९ ।। जो न समईए समयम्मि कप्पिउं किं पि नायरइ अहिए । सो तेण व कयाइ वि कयत्थिउं हम्मए नियमा ॥ ४७८० ॥ नेहपरम्मि सिणेहं, वेरं वेरिम्मि जे न कुव्वंति । नियमइदविणदरिद्दा, नियमा नंदंति न चिरं तो ।। ४७८१ ॥ नियबुद्धिपगरिसेणं, ताहं तह कह वि उज्जमिस्सामि । एईए जहा जाय, नियपियविरहुब्भवं दुक्खं ॥ ४७८२ ॥ जेण जुवईण नन्नो जणयाइ जणो तहा पिओ होइ । परिवड्ढमाणनेहो जह भत्ता जेणिमं भणियं ॥ ४७८३ ॥ बालत्तणम्मि पिय- माइ-बंधुसहियायणो पिओ होइ । आरूढजोव्वणाणं, जुवईण पिओ पिओ इक्को ।। ४७८४ ॥ पियसंगे अच्चतं, सोक्खं दुक्खं अईवपियविरहे । नवजोव्वणपाणे जायइ, सयाइ हत्थे जमुत्तं च ॥ ४७८५ ॥ पियसंगमाओ न परं सुहमिह विरसम्म जीवलोगम्मि । तव्विरहाओ दुक्खं न किंचि अन्नं जए गरुयं ॥ ४७८६ ॥ ३७३ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ सिरिअणंतजिणचरियं इय चिंतिय पयरिक्के तीए एवं पयंपिओ सेट्ठी । किं अज्जउत्त ! जुत्तं तुह जमुवेक्खसि नियपुत्तं ? ॥ ४७८७ ॥ तरुणत्तणम्मि पत्ते, जो न मुणइ धणसमज्जणोवायं । वूढत्ते नित्थरिही कहं, तयज्जणविहीणो सो ॥ ४७८८ ॥ खज्जंती परिवद्धइ, पास च्चिय खिज्जए उ वणरिद्धी । वियसइ सेविज्जती, रयस्सिरी छिज्जई य तणू ॥ ४७८९ ॥ पालिस्संति कहम्मा-पिऊण वूढा णिबुद्धिया पुत्ता । जे अमुणियदविणज्जणकलाकलावा महामुक्खा ॥ ४७९० ॥ सो निच्छएण पच्छन्नवेरिओ पुत्तयाण जणओ वि । आबालकालओ वि हु, जो ताण न देइ हियसिक्खं ॥ ४७९१ ॥ वित्थारिज्जइ कित्ती, पिउणो पुत्तेण पसरियकलेण । जलपद्धइ व्व दूरं. चंदेण तरंगिणीवइणो ॥ ४७९२ ।। ते च्चिय पसंसणिज्जा, जाणसु या नियभुयज्जियधणेण । विहलजणब्भुद्धरणं, कुणंति पहरिसवियासिमुहा ॥ ४७९३ ॥ गुणवंता निवईहिं वि, सिरे धरिज्जति आयवत्तं व । निहिउं गिहचिंताए, ता पुत्तं कुणसु गुणवंतं ॥ ४७९४ ॥ नवरं इहट्ठिओ सो, बहुया वसओ न चेव ववहरिही । कज्जंतरप्पवित्ती कत्तो कंताहियहियाणं ? ॥ ४७९५ ॥ ता जलनिहिजत्ताए तहा पेससु मुणइं जह न तं बहुया । जं तीए समं पत्तो, तत्थ वि सो नेव ववहरिही ॥ ४७९६ ॥ पिय ! तुह हियमुवइठं, तं कुणसु तुमं मणोमयं जमिह । अणुजीवीहिं विणस्सर पहु ! कज्जमुवेहणिज्जं किं ? ॥ ४७९७ ॥ तह तीए सो पउत्तो तेण जहा मन्नियं तह त्ति तयं । इत्थीयणप्पवंचो, अगोयरो अमरगुरुणो वि ॥ ४७९८ ॥ बहुया विरोहिणीएऽभिमन्निओ तीए सुयविओगो वि । अहव न पायं महिलाणमत्थि निक्कित्तिमो नेहो || ४७९९ ॥ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७५ तवोवरिचंदकंतकहा अत्तव्ववएसेणं पउणं कारवइ पवहणं सेट्ठी । गोवेयव्वो अप्पाकज्जे छन्नम्मि करणिज्जो ॥ ४८०० ॥ गणिमं धरिमं मेयं पारिच्छिज्जं च गिण्हइ धणं सो । जेणप्पओयणं तं मोत्तुं गिण्हिज्जइ किमन्नं ? || ४८०१ ॥ वाहरिय सुओ बहुया, सयासओ जंपिओ चलसु वच्छ ! । जामो पयोयणेणं तो सो जणएण सह चलिओ ॥ ४८०२ ॥ दोन्नि वि जंता पत्ता, रयणायरनीरतीरदेसम्मि । पिच्छंति य उल्लसिरं अदिट्ठपारं नईनाहं ॥ ४८०३ । सामलसलिलभरम्मिं फेणलवा जम्मि परिविरायंति । नवनीलमणिसिला कुट्टिमम्मि मुत्ताहलभर व्व ॥ ४८०४ ॥ सामलचम्मकडतुच्छगम्मि वराडय व्व वित्थरिया । विगयब्भयगयणंगणगब्भे विप्फुरिय तार व्व ॥ ४८०५ ॥ मसिणियमयमयपंकोवलित्तभूमीए चंदण-छड व्व । आरामच्छायाए पडिया कुसुमोवहार व्व ॥ ४८०६ ॥ (कुलयं) पवहणगणमज्झट्ठियकूवयखंभा जलम्मि सतरंगे । संकेता दिति भयं, सलवलिरा सलिल-सप्प व्व ॥ ४८०७ ॥ तत्थारित्तयजुत्तं, वेरियणविवज्जियं पि जल-जालं । पेच्छंति जडाविद्धं, बहुधा वरपरिगयं पि हु ते ॥ ४८०८ ॥ . अनिलचलद्धयरणझणिरकिंकिणीगणविरायमाणम्मि । आरोविडं सुओ तम्मि पवहणे सेट्ठिणा भणिओ || ४८०९ ॥ वच्छा ! गच्छेज्ज अतुच्छलच्छिविच्छड्डमज्जिऊण लहुं । थोवदिणाणं मज्झे, दीवंतरविहियववहारो ॥ ४८१० ॥ गंतुमणिच्छंतो वि हु, जणयाणाभंग-भीरुओ भणइ । आएसो त्ति कुलीणो, कुणइ अकामो वि गुरु-वयणं ॥ ४८११ ॥ पेराविय जलजाणं, लग्गो सेट्ठी झड त्ति गिह-मग्गे । गमणमणीहंतो मा एसो वलओ त्ति कलिउं व ॥ ४८१२ ॥ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ सिरिअणंतजिणचरियं आगंतूण पियाए, पयासियं पुत्तपवहणारुहणं । तो से तोसो जाओ, अहो महेलाण निठुरया ॥ ४८१३ ॥ कहिओ सुयप्पवासो, न तेहिं बहुयाए तयणुरयणीए । दइयमपेच्छंती सा सवियक्का चिंतिउं लग्गा ॥ ४८१४ ॥ किं अज्ज अज्जउत्तो न दीसए जो सयासि अविउत्तो । नवरं कम्मि वि कज्जम्मि पेसिओ होहिही पिउणा ॥ ४८१५ ।। जणओ तणएण न चेव किं पि कज्जं कयाइ कारिंतो । ववहारा एस करो, जमत्थि वणिउत्तविसरो से ॥ ४८१६ ॥ जेण सह मह विओगो न मुहुत्तं पि हु कयाइ संजाओ । तेण विणा वोलीणो, दिवसो रयणी वि परिगलइ ॥ ४८१७ ॥ पुच्छामि कस्स पासे, पियप्पउत्तिं समुस्सुयमणा वि । जेण गुरूण सयासे पइपुच्छं वारए लज्जा ॥ ४८१८ ॥ कल्लम्मि दाहिणच्छि-फुरणेण विचिंतियं जमासि दुहं ।। तमिमं चिय संपत्तं, वल्लह विरहुब्भवं मन्ने || ४८१९ ॥ एस च्चिय सा रयणी, दइएण समं खणं च जा जंती । इण्हि पियविरहम्मि कियंत अहियव्व न विहाइ ।। ४८२० ॥ इय पियविओयचिंता, जरभरजज्जरसरीरलइया सा । अच्चंतदुब्बलत्तं पत्ता अइवाहइ दिणाइं ॥ ४८२१ ॥ पत्तो य जलपडंतारित्तप्पयारेण भुयगणेणेव । तरमाणं जलजाणं जाई जवेणं जलहि-सलिले ॥ ४८२२ ॥ तव्वेयवियं भणउ, दुहा विहट्टतदूरसलिलभरो । मग्गं व देइ जलही, अरित्त-भर-घाय-भीओ व्व ॥ ४८२३ ॥ पवणमणनयणवेगेण जाइ गरुयं पि पवहणं सलिले । विहिय-जड-संगमो लहइ, नूण गरुओ वि लहुयत्तं ॥ ४८२४ ॥ गुरुपवहणवेगावडणभयवसा जलयरा पणस्संति । सत्तीए संतीए कोवाणत्थं समल्लियइ ? || ४८२५ ॥ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७७ तवोवरिचंदकंतकहा ठाणट्ठिए वि पेच्छइ, गिरि-तरु-दीवाइणो समुहमिते । पायं कट्ठावडिया ण होइ दिट्ठी विवज्जासो ॥ ४८२६ ॥ इय गरुय-वेग-गच्छंतजाणवत्तम्मि सो समारूढो । वल्लहपियाविओगुव्विग्गमणो चिंतिउं लग्गो ॥ ४८२७ ।। किं कज्जं सहसतक्कियजलनिहिजत्ताए पेसिओ पिउणा । । कहियं न किं पि पुव्वं, जाणामि न कारणमिहत्थे ॥ ४८२८ ॥ जणयाएसो चेव य, कायव्वो एत्थ किं वियप्पेण । किं तु न जं दइयाए कहियं तं दूमइ मणो मे ॥ ४८२९ ॥ जाणइ न सा वराई, जमहं कज्ज-च्छलेण वाहरिओ । पट्ठाविओ विएसे, भविही तोसे व रोसे मे ॥ ४८३० ॥ घडिया मित्तं पि जुगं व जीए हुंतं मए विउत्तम्मि । सा कह धरिही पाणे, इण्हि चिरविरहविहुरंगी ॥ ४८३१ ॥ जेसिमविउत्तनियपियपेम्मपसत्ताण जाइ जम्मो वि । ते च्चिय जिवंतु न वयं, विओइणो जे परायत्ता ॥ ४८३२ ॥ एवं वियप्पिही सा विओएण जह मह महासिणेहस्स ।। तह लज्जियं न कहिया जह जं तेणावि वत्ता वि ॥ ४८३३ ॥ जो पवसंतो वि हु वल्लहस्स वत्तं पि साहए न नियं । दूरे समागमो से कत्तो तइंसणाऽऽसा वि ॥ ४८३४ ॥ तमिमं भवस्सरूवं वल्लहजोगो विओयअंतो जं । तं मह दूरंतमसुहं जमहं इंतो न से मिलिओ ॥ ४८३५ ॥ संपइ तज्जाणावणसमस्सुओ वि हु तरामि नो गंतुं । जमगाहं जलहिजलं वाहाहिं न तीरए तरिउं ॥ ४८३६ ॥ अहवा का चिंताए, नत्थि धुवं भाविभवविलासस्स । तासो ता दढहियओ होउं सव्वं पि हु सहेमि ॥ ४८३७ ॥ इय परिभावण उव्विग्गमाणसो माणसो य साम-मुहो । गुरुजलजाणजवेणं जलनिहिमज्झं समणुपत्तो ॥ ४८३८ ॥ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ सिरिअणंतजिणचरियं एत्थंतरम्मि गुरुगयणलंघणस्समविसन्नपक्खपुडो । असमछुहा-पिवासायास-पराहीणमणवित्ती ॥ ४८३९ ॥ गरुयगिरि, गरुयतुंगसिंगभवनिज्झरो व्व तं वप्पउ । धवलपक्खागमभूसियंबरो रयणिरमणो व्व ॥ ४८४० ॥ पक्खी लक्खी काऊण पवहणं गुरुरएण भारुंडो । मुच्छा विच्छाय-तणू दड त्ति पडिओ नहुच्छंगा ॥ ४८४१ ॥ (कुलय) तं निच्चेठं दठूण, उठ्ठिओ झ त्ति चंदकंतो वि । सिंचइ सिसिरेण सुसाउणा तणुं तस्स सलिलेण ॥ ४८४२ ॥ ता उम्मीलियनयणो सुत्तविबुद्धो व्व उठ्ठिओ पक्खी । जंपतो मम तं चिय, उवयारी जीवियं दितो ॥ ४८४३ ॥ जइ न छुहाभिसत्तो, निवडतो तुज्झ जाणवत्तम्मि । ता हुंतो हं नररयण ! नूणं भक्खं जलयराण ॥ ४८४४ ॥ सव्वा जणप्पसिद्धी हुंते आउम्मि हुति हूउवाया । कह मन्नहा निवडिओ, अहमिह तुह जाणवत्तम्मि ॥ ४८४५ ॥ इय जंपिरस्स सउणस्स, उभहया झ त्ति चंदकंतेण । भरिऊण मोयगाणं, कंचणथालं समुवणीयं ॥ ४८४६ ॥ जे मुणिणो व्व पवित्ता, असमसिरोहो कुलीण सुहिणो व्व । घणसारामोयपरा सहति सइ ईसरनर व्व ॥ ४८४७ ॥ एलाचुन्नाविमिस्सिय सुसाउसीयलजलं च अप्पेउं । भणइ इमे भक्खियमोयगे जलं पियसु सउणि ! तुमं ॥ ४८४८ ॥ उच्छलिय छुहा विच्छेयकारिणो तयणु तेण ते भुत्ता । पीयं व सीयसलिलं, तो जाया परमतित्ती से || ४८४९ ॥ भुत्तुत्तरम्मि भणियं, भारुडेण अहो महासत्त ! ।। किं उव्विग्गो विव तं लक्खिज्जसि दुम्मणो दूरं ॥ ४८५० ॥ ता जइ किर मह कहणीयमेयमिण्हि पि कहसु ता झ त्ति । अहव अकहणिज्जं, ता जाति अहं होउ भव्वं ते ॥ ४८५१ ॥ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहा भारुंडपुट्ठणक्खणदईयासंभरणजाय सोयंसू । मुत्तूण भग्गसायरतरंगमइदीहनीसासं ॥। ४८५२ ॥ जंपर पक्खिंद ! भवारिसाण परहु से दुहियहिययाण । किं किं पि अकहणिज्जं, ता हेऊ सुणसु विमणुत्ते ॥ ४८५३ ॥ इय जंपिय निय पुरिपियपमुह सव्वो वि सेसवुत्तंतो । ता कहिओ जा जायं, दंसणमन्नोन्नमुयहिम्मि ॥ ४८५४ ॥ भणइ य वणियाणमिमो सिंगारो जलहिजत्तगमणाई । नवरं तं मं दूमइ, जन्न मुणइ मह पवासं सा ।। ४८५५ ।। सोएयव्वं समं चिय, जमदिट्ठविओग-घण - सिणेहाए । न पयासिओ पवासो, अनायतत्तेण तीए मए ॥ ४८५६ ॥ तं मह पुहणदूरं दुहिओ त्ति खगिंद ! तह समक्खायं । नियमसुहकारणं तो तं सोउं भणइ भारुंडो ॥ ४८५७ ॥ केत्तियमेत्तं एयं कज्जं मह सिग्घगामिणो वच्छ ! | आरुहियं पट्ठीए मिलिउं भज्जाए इह एसु ॥ ४८५८ ॥ जमहमहोरतेण वि बहुजोयणसहससंखमवणितलं । गयणेणमइक्कमिउं, सट्ठाणमुवेमि वेगेण ॥ ४८५९ ॥ सव्वेसि पि पुराणं, जाणामि पहे अणेगसो जेण । भक्खत्तेसणकज्जे, भमामि पायं जओ तेसु ॥ ४८६० ॥ होइ उवयारलेसो, जइ कोइ विणस्सरेण मे तणुणा । तुज्झोवयरिणो होउ, ता तुमं चलसु नररयण ! ॥ ४८६१ ॥ तो धीवराण कहिउं धरियं नंगरियपवहणं तत्थ । आरुहिउं भारुंडो हरि व्व गरुडम्मि सो चलिओ ॥ ४८६२ ॥ लंघंतो गिरिसरियागरनियराइन्नवसुमई वीढं । पत्तो नियनयरीए, खणीए दिवड्ढपहरम्मि || ४८६३ || तो सो उत्तिन्नो पक्खिपट्ठिदेसाओ वासभवणस्स । दारट्ठिओ सनामग्गाहं आभास दईयं ॥ ४८६४ ३७९ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० दईए दुयं दुवारं उग्घाडसु दूरदेसपत्तस्स । गाढुक्कंठाभरनिब्भरस्स में निययदईयस्स ॥ ४८६५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तो तीए नियय पइसमसरसंभवसंभमेण उट्ठेउं । भगिउं भो को सि तुमं ? ति भणइ सो तुज्झ दइओ त्ति ॥ ४८६६ | ती युत्तमहिन्नाणं मह किंपि कह कहसु पच्चयनिमित्तं । तो तेण साहियाइं महइ सहइ जंपियाई दुयं ।। ४८६७ || दइओ त्ति कवाडाइं उग्घाडिय सो पवेसिओ मज्झे । नन्ननरेणेगंते जुज्जइ जाउं कुलवहूणं ॥ ४८६८ ॥ मंगलदीवुज्जोएण नियइ दइयं किसं पि कंतं सो । बीयससंकलेह व्व जा सया सहइ अकलंका ।। ४८६९ ॥ आपुच्छिया पिए ! तं कुसलेण ठिय त्ति आह सा सामि ! । मह संजायं कुसलं, तुह पयजुयदंसणेणेव ॥ ४८७० ॥ एत्तियदिणाणि मह आसि जं सुहं होउ सारिऊण वि तं । केवलुंमणुहवियव्वं जं पावं जीविया तमहं ।। ४८७१ ।। तमसमसिणेहसरिसं हियं च जं मं गओ सि परिहरिउं । देवायत्तस्स पिए ! मह को दोसो ? त्ति तेणुत्तं ॥ ४८७२ ॥ कहिओ य वईयरो से, अमुणिय तत्तो जहा अहं पिउणा । आरोविय जलजाणम्मि पेसिओ जलहिजत्ताए ॥। ४८७३ ॥ ता कह कहेमि कंते ! तुह कहणुस्सुयमणो वि हु पवासं । जेणं सव्वत्तो च्चिय दूरमगाहं जलहिसलिलं ॥ ४८७४ ॥ तुह विरहविहुरयाभर अहरतणू जाव जामि जलहिजले । ता जायनवसिणेहेण पक्खिणा अहमिहाणीओ || ४८७५ ॥ दिट्ठा य तुमं नयणा पभणियं पिय ! जमिह समागओ तं कयं जुत्तं । जं पुण नयणनिमेसोवमो इमो संगमो अजुत्तं तं । इहि जणयायत्ते तुमए किमहं पयंपेमि ॥ ४८७६ ॥ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८१ तवोवरिचंदकंतकहा नवरं रिउस्सिणायाए, संगमो मह तए समं जाओ । अम्मा-पिऊण आमिलसु जह पईई हवइ तेसिं ॥ ४८७७ ॥ जइ कह वि देव्वदुव्विलसिएण मह होइ गब्भसंभूई । ता ससुर-पिइहरेसुं लहेमि नेगस्थ वि पवेसं ॥ ४८७८ ॥ तेणुत्तं तेसिं चिय अप्पं गोवेमि सुब्भुनन्नेसिं । जं भज्जा मिलणत्थे समागओ हं ति लज्जामि ॥ ४८७९ ॥ जइ कह विहेइ तुह गब्भसंभवो तं तुम मह गुरूणं । कहिऊणं वुत्तंतं, दंसिज्जसु अंगुलीयमिमं ॥ ४८८० ॥ इय जंपिय नियकरअंगुलीए वज्जावली वलइयं तं । नवइंदनीलकलियं, अप्पइ से मुद्दिया-रयणं ॥ ४८८१ ॥ भणई य गुरुगुणगेहं देहं तं सुब्भु आवयाहिंतो । पालेज्ज पयत्तेणं, जं जेण हं चेव जीवामि ॥ ४८८२ ॥ जइ अणुकूला मह विहि-मण-पवणा सउणसंगया सुयणु ! । होहिंति सिग्घमेव य ताहं इह आगमिस्सामि ॥ ४८८३ ॥ इय भणिउं सम्माणिय सम्मुहिं सहयरिं समारूढो । तद्दइयाकारियभोयणम्मि भारुडपक्खिम्मि ॥ ४८८४ ॥ पेच्छंतीए तीए गईए गरुईए गयणमग्गेण । उड्डेउं भारुडे, नयणाणमगोयरे जाए || ४८८५ ॥ सहसा पवत्तपियविरहअंसुभरदंतुरच्छिसयवत्ता । न खणं पि रइं पावइ, पावइ जलिरंगजट्ठि व्व ॥ ४८८६ ॥ तिक्खण-विउत्त-पिय-दुहिय-माणसा माणमासलस्सासा । अइकिच्छेण मयच्छी ठिया पहूपाणधरणम्मि ॥ ४८८७ ॥ रणरणयुव्विग्गमणा मणायमवि नेव कुणइ करणिज्जं । संजायसव्वसारावहारसुन्न व्व परिवसइ ॥ ४८८८ ॥ चिटुंतीए तीए ईय असरिसअसुहविहुरियंगीए । पयडीहूओ गब्भो सद्धि दुस्सहकुकम्मेण ॥ ४८८९ ॥ . Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ सस्सिरीयसिरीरंतं उवचयगच्छंतउ यरमिक्खेडं । सिग्घं पि सेट्ठिणो कहइ सासुया वईयरं तीसे ।। ४८९० ।। तो सेट्ठिसमाएसेण पुच्छए सासुया तसेगंते । जेण जणे लज्जिज्जइ, पुच्छिज्जइ तं न जणमज्झे ।। ४८९१ ॥ वच्छे ! तह एसो कुलकलंकणो गब्भसंभवो कत्तो ? | कुलकंताण पउत्थे पिए ! इमो जं अकित्ति - कए ।। ४८९२ ॥ तीयुत्तमत्तं किं कयं मए अंब ! कहसु कईआ वि । किं अग्गीओ गोरिओ कत्थइ सुयमिंदुमुत्ती ॥। ४८९३ ॥ भारुंडारूढो इह समागओ आसि अंब ! तुम्ह सुओ । वसिऊण गओ भणिओ वि तुम्ह मिलिओ न लज्जंतो ॥ ४८९४ ॥ तो' मच्छरिणीए सासुयाए भणियं सुयस्स मे देवा । आएसकरा जे पक्खिरूविणो तं वहति सया ।। ४८९५ ॥ अलियं पि पयंपिज्जइ, जं जुत्तीए समावह घडणं । तं अहियमलीयाओ वि सव्वं पि हु जं न जुत्तिखमं ॥ ४८९६ ॥ संति जए बहुयाओ, बहुयाओ असच्च- जंपण-पराओ । नवरं न तुज्झ सरिसी, अघडंतअसच्चभणणपरा ॥ ४८९७ ॥ एगेहिं माणुसेहिं, धवलिज्जइ नियकुलं सुकित्तीए । अन्नेहिं पुणो तं चिय कलुसिज्जइ धुवमकित्तीए ॥ ४८९८ ॥ जइया भूरिभविब्भवपावपसरस्स होइ अब्भुदओ । तइया तुह सरिसकलंककारियं माणुसं मिलइ ॥ ४८९९ ॥ तो तीयुक्तं मा अंब ! एवमुल्लवसु सुणसु विन्नत्तिं । तुह तणणं जं तेणमप्पियं अंगुलीयमिमं ॥ ४९०० ॥ भणियं च जइ न पत्तियइ, ससुरयप्पमुहसयणवग्गो ते । ता तं मुद्दारयणं, दंसेज्जसु साहिनाणे से ॥ ४९०१ ॥ परपुरिसेहो सिविणे वि नेव जमहं महासई अंब ! । गोत्ते वि असंजायं, सीलब्भंसं कह करिस्सं ॥ ४९०२ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८३ तवोवरिचंदकंतकहा तं सोऊण घयाहुइ-सित्तानिलजालिय व्व जलिया सा । कोवुक्करिसा सामरिसमेवमुल्लविउमारद्धा ॥ ४९०३ ।। अइदुढे ! पाविढे ! सेरिणि सडिऊणं पडसि निब्भंतं । निम्मलसीलसईयणसमत्तमत्ताणयंतिती ॥ ४९०४ ॥ किं एक्कं चिय दंससि, मुद्दारयणं सुयाहिनाणम्मि । संति जओ बहुयाइं वि, तस्साभरणाई तुह पासे ॥ ४९०५ ॥ तीयुत्तं दुट्टेण वि, दिव्वेण पई इमं व तुह देमि । सुद्धं धरिज्ज गेहे समसुद्धं दंडिही राया ॥ ४९०६ ॥ उल्लवइ सासुया किं थोवविगुत्ता ननूससे पावे । । जं सुद्धिं मग्गंती अप्पं पयडसि नरिंदं तं ॥ ४९०७ ॥ ता जाहि जहाभिमयं ठाणमिणं भणियं च ससुरएणं । दुस्सीलाणं ठाणं न जओ भवणम्मि अम्हाणं ॥ ४९०८ ॥ इय जंपिय दुट्ठाए कंठे धरिलं निसाए गेहाओ । निव्वासिया तहा तीए सा जहा निग्गया नयरा ॥ ४९०९ ॥ सुन्नं रन्नं रयणी, सप्पा य सावयुब्भवभयंति ।। परिकंपिरंग-जट्ठी सा जाइ दिसाए एक्काए ॥ ४९१० ॥ जंती चिंतइ देव्वनिद्दओ अरी व दुस्सहे विरहे । . तं जेण नूण दिन्नं, मह दुस्सीलत्तमालिन्नं ॥ ४९११ ।। ता किं दाउं झंपं चएमि पाणे अगाहकूवजले । अहवा न जुत्तमेयं, अप्पवहो जं महापावं ॥ ४९१२ ॥ अवरं च जाववाओ, आवइ ता नेव जुज्जए मरिउं । । तम्मि समुत्तिन्ने जीवियं व मरणं व मे होज्जा ॥ ४९१३ ॥ । ता जामि पियहरम्मि, उयाहु माउलयमंदिरे अहवा ? । * उभयत्थ वि न पवेसं, पाविस्सं साववाय त्ति ॥ ४९१४ ॥ नूणं भवंतरम्मि, कलंकिया सासुया मए जमिमा । अकयं को वि न पावइ, तममीए कलंकिया हमवि ॥ ४९१५ ॥ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ सिरिअणंतजिणचरियं तं न कुगंति अजोग्गा जीवा अम्हारिसा पमायपरा । जेण न हुंति ठाणं, पुणरवि एवं कलंकाणं ॥ ४९१६ ॥ आबालकालतोडियनिठुरघरवासपासदढबंधा । नंदंतु ते चिरं जे, जइणो न कलंकिया हमवि ॥ ४९१७ ॥ पुब्विल्लपुन्नकलिया, के वि हु नंदंति अनयवन्नो वि । सुनया वि अयसमन्ने, अहं व पावंति पावेण ॥ ४९१८ ।। एगदिसाए गच्छइ इय चिंतंती विसायविवसा सा । थोवदिणेहिं पत्ता, अइभीम-महाडई मज्झं ॥ ४९१९ ॥ जं पडिकूलानिलचलतरुदलहत्थेहिं वारइ व्व तयं । मा इह एहिं जमसुहं होही तुह भूरितरगं ति ॥ ४९२० ॥ सूयर-संबर-सद्ल-सीह-सरहस्सरेहिं सव्वत्तो । जं भयमिव उप्पायइ, भावियवायं कहेउं से ॥ ४९२१ ॥ तम्मि पियाल-ताली-तमालतल-माल-सज्ज-संजुत्ते । उंबर-अंबंबिलियाकलिए पविसइ भयुमंता ॥ ४९२२ ॥ तयणु मल्लसमुल्लसिरसत्तसत्ताण संकुले जंती । नियइ गुरुसिंगअग्गुल्लिहियनहं तं गिरिं एगं ॥ ४९२३ जो रत्तासोयडुमसमूहपच्छाइओ विरलकयली ।। गुरुपउमरायपुंजो व्व सोहए नीलमणिसबलो ॥ ४९२४ ॥ दलु तं सेलं सा चिंतइ, चिट्ठामि इह समारुहिडं । सीहाइ-सावयाणं मज्झा जमहं पुरो जंती ॥ ४९२५ ॥ इय परिभाविय सेलम्मि तम्मि सा मंद-मंदमारूढा । एगम्मि गुहागेहे, परिट्ठिया सीह-वहूय व्व ॥ ४९२६ ॥ नियवित्तिं निव्वत्तइ, तरु-कंद-फलेहिं तावसि व्व सिया । सुयइ य दब्मविणिम्मविय सत्थरे साहु-मुत्ति व्व ॥ ४९२७ ॥ तत्थ ठिया वि चिंतइ, जे पुव्वभवे मए कयं पावं । तस्स कुसुमं कलंको नरयनिवाया फलं होही ॥ ४९२८ ॥ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहा आबालकालओ वि हु हुंती हुं जइ पवन्न - सामन्ना । मइलिज्जती इमिणा, तामेव कलंकयं केण ॥। ४९२९ ॥ जाया वि अजाय च्चिय ममेत्थमणुयत्तणाइसामग्गी । पत्तं फलं न जीए सुपत्तदाणाइआयरिउं ॥ ४९३० ॥ कईया वि अजोग्गाणं, जायइ नूणं न किं पि कल्लाणं । इह परभवुब्भवाणं, जमहं चुक्कम्हि सोक्खाणं ॥ ४९३१ || जेण कुओ मह लोइयं सुहं सयणसुयणपइविरहे । तह पारलोईयं पि हु तवसंजमनियमरहियाए ।। ४९३२ ।। जेहिं तणुनिरविक्खो, तविओ न तवो भवम्मि पुव्विल्ले । हुति अहं व महाविडंबनाडंबरट्ठाणं ॥ ४९३३ || नियकम्मनिम्मियम्मिं, फलमियं तम्मि अत्तणो उदयं । रूसंति मंदमइणो, मुहे व अवरस्स किं सत्ता ? ॥ ४९३४ ॥ खलिउं तीरइ केणावि नेवज्जं पुव्वभवभवं कम्मं । सुहमसुहं वा नियमेण जेणमेयारिसं भणियं ॥। ४९३५ ।। धारिज्जइ इंतो जलनिही वि कल्लोलभिन्नकुलसेले । नहु अन्नजम्मजणिओ सुहासुहो कम्मपरिणामो || ४९३६ ॥ ता इह ठिया वि तव - संजमेहिं अज्जेमि किं पि सुह- ह-कम्मं । जम्मंतरे वि जायइ, जेण न मे दुक्कय - विवागो ।। ४९३७ ॥ इयू परिभाविय भावेण सत्ति सरिसं तवं तवइ निच्चं । कुणई य संवेगावेगसंगयासारसज्झायं ॥ ४९३८ ॥ सद्धम्मज्झाणं सज्झायइ, खिइवलयजलहि-दीवाई | कुणई य काउस्सग्गं, कम्मविणिज्जरणकज्जम्मि ॥ ४९३९ ॥ पसमामयरसवसया, वहइ न कम्मि वि पओसलेसं पि । अणवरयं आराहइ उवउत्ता पंच-परमेठि ॥। ४९४० ॥ ३८५ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ सिरिअणंतजिणचरियं तहाहि - संझासु तिसु वि वंदइ, सुरिंदविंदाभिवंदियजिणिंदे । सुमरइ सया वि सिद्धे, विणट्ठ-कम्मट्ठगपबंधे ॥ ४९४१ ॥ पंचप्पयारआयारधारए नमइ निच्चमायरिए । . सुत्तत्थोभयकुसलो, झायइ अज्झावए सययं ॥ ४९४२ ॥ वंदइ सुसाहुणो सइ दुच्चरतव-चरण-करण-किसियंगे । सुविसुद्धाणुट्ठाणेण तीए ईय वच्चए कालो ॥ ४९४३ ॥ कुणई य नियतणुवित्तिं, पारणयदिणे अरन्नपत्तेहिं । एवं वटुंतीए तीए, पत्तो पसवसमओ || ४९४४ ॥ तयणु पसत्थतिहिताररिक्खजोगेहिं उत्तमे लग्गे । विलसंतलक्खणधरं, उत्तमपुत्तं पसूया सा || ४९४५ ॥ दठूण सयं तोसे तोसविया सा समं पि संजाया । पढमो पुत्तो ति कहं, पालिस्समिमं ति बीओ उ ॥ ४९४६ ॥ पुव्विल्लरिद्धिवित्थरसुमरणउप्पन्नमन्नुपुन्नमणा । गग्गयगिराए रुइरी, पुत्तं पइ जंपए एवं ॥ ४९४७ ॥ पुत्तय ! तुह जम्मदिणे, वद्धावणयूसवं विभूईए । काहिंति चिंतियं जं, जायंतं अन्नहा इण्हि || ४९४८ ॥ इय सकरुणमक्कंदियबालो जं बाल-खलणनिमित्तं । तीए असत्तीए वि हु, निउं सलिला सए न्हविओ || ४९४९ ॥ मोत्तुं संवत्तियउत्तरीयउवरिम्मि बालयं बाला । तन्नहिय नियय नयणा जा सा न्हाएउमारद्धा ॥ ४९५० ॥ ता झ त्ति नहानिवडिय नीओ केणावि पक्खिणा बालो । तीए पुरओ वि भोयणभायणमिव नयणहीणस्स || ४९५१ ॥ तो झ त्ति धाविया सा, ल्हसिरकडिल्लं करेण धरमाणी । गलिरजलकेसपासं वीएण करेण कलयंती ॥ ४९५२ ॥ रयगमणगहिब्भल्हसि उत्तरीयमुल्लसिरथूलथणमेगं । अभिदंसंति व्व सयं, धावणकज्जम्मि पुत्तस्स ॥ ४९५३ ॥ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८७ तवोवरिचंदकंतकहा हक्कंती पक्खिपहे, संचलिया जाव ताव सो पक्खी । तीए आसाबंधो व्व अवगओ नयणमग्गाओ ॥ ४९५४ ॥ दटुं सुयावहारं, तीए सहसा समागया मुच्छा । तो झ ति निराहारा भूमीए अचेयणा पडिया ॥ ४९५५ ॥ न्हाणजलतित्तदेहे, लग्गोऽनिलचलिरकयलिदलवाओ । तो सयणेण व संपत्तचेयणा झ त्ति तेण कया ॥ ४९५६ ॥ पुन्नावहारसंजायसोयसंभारविहुरियसरीरा ।। मुंचंती मुत्ताहलसमं सुविसरं रुयइ करुणं ॥ ४९५७ ॥ हा हा बालय ! नवणीय-पिंडसुकुमालयंग ! कह सहसि ।। निच्चयरपक्खि-चंचूपुडप्पहारुब्मवं वियणं ॥ ४९५८ ॥ हा पुत्तय ! मह जायं विज्जुप्फुरियं व दंसणं तुज्झ । ता एहि एक्कवारं. जा न विवज्जामि तुह हरणे ॥ ४९५९ ॥ हा मंदभाइणीए मए मुहुत्तम्मि पालिओ न सुओ । जाया गब्मसमुब्भवपीडाए चेव फ्तमहं ॥ ४९६० ॥ निहिऊण निउच्छंगे, न एक्कवारं पियाइ उप्पन्नं । मणिदप्पणो व्व सम्मुहं, धरिऊण य नेव सच्चविओ ॥ ४९६१ ॥ सुसिणिद्धसुद्धनियदीह-दिट्ठिजोण्हाए धवलिया नाहं । सीहावलोइएणं, बालेणं रिखमाणेणं ॥ ४९६२ ॥ हा हा हयास ! हे विहिविलास ! पसवुब्भवाए पीडाए । एय दुहसहणत्थं न मारिया पाव ! तुमए हं ॥ ४९६३ ॥ वल्लहविस्हो अ कए कलंकणं पुत्तयस्स विच्छोहो । असुहाई असेसाई, विन्निद्दय हे देव्व ! मे देसि ॥ ४९६४ ॥ वीसासट्ठाणम्मि को वि जहा मुयइ धणमसेसं पि । तुह तुमए देह य विहिविहिया अहमेव दुहठाणं ॥ ४९६५ ॥ आजम्मजायनियसुयविओयसुमहल्लमल्लिसल्लेण । पीडिज्जंतीए वरं मरणं, मह दुह-समत्तिकरं ॥ ४९६६ ॥ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ इय चिंतिय - मरणमणावडिया रुंदयर - सेलसिंगग्गे । आलोयणा-वयुच्चरण - खामणाराहणा पुव्वं ॥ ४९६७ ॥ कय सागाराणसणाए, तीए सरिऊण पंचपरमेट्ठि । तत्तो मुक्को अप्पा सझड त्ति झंपाए मरणत्थं । ४९६८ ॥ एत्थंतरम्मि तत्तिरवलंबनिवडणसमुत्थकरुणेण । सद्धम्म - परत्तप्पमुह-तग्गुणावज्जियमणेण ॥ ४९६९ ॥ नियगिरिनिवडिरनारीवहपावुप्पत्तिभीरुएणं च । तग्गिरिसुरेण सहसा, पडिच्छिया पाणिकमलेहिं ॥। ४९७० ।। काउं नियकरकोसे, नेउं मुत्तुं व सिसिरगिरिगहणे । हरिऊण पसवपीडं, पयंपिया तेण सा एवं ।। ४९७१ ।। किं वच्छे ! मरणं तव्वसणं अंगीकयं तए कहसु । मा बीहसु मह जमहं, एयगिरिस्सामिओ अमरो ॥ ४९७२ ।। तुमए कओ पवित्तो, धुवं सुसीले ! सपायफासेण । तह मग्गो व्व समग्गो, सिय-पक्खमयंकमुत्तीए ।। ४९७३ ॥ विज्जुभरप्फुरियं पिव, पेच्छय अच्छीण दुत्थयं दितं । रईयकरकमलकोसं, देवं दट्ठूण सा भणइ ।। ४९७४ || किमहो अमरत्तए मह विहियं मरणंतराईयं हसु । पिय- पुत्तविउत्ताए मरणं मह जीवियाओ वरं ।। ४९७५ ॥ तेणुत्तं वच्छे । निच्छएण मिलिहिंति तुज्झ पिय- पुत्ता । जीवंतीए मयाए उ कत्थ तं मिलणवत्ता वि ॥ ४९७६ ।। सा आह दईयमिलणं संभाविज्जइ जमत्थि कुसलं से । जो पावपक्खिणा भक्खिओ सुओ सो कहं मिलिही ।। ४९७७ ॥ तो नाणेणं नाऊण, भणियममरेण पुत्ति ! पुत्तो ते । नेऊण एय अडईए, पक्खिणा तरुतले मुक्को ।। ४९७८ ॥ • सिरिअणंतजिणचरियं तो मिलिउं पक्खिकुलं, चउपासं तस्स कम्मपडलं व । वेगेण सियालो वि हु जमो व्व तं भक्खिउं पत्तो ॥ ४९७९ ॥ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८९ तवोवरिचंदकंतकहा एत्थंतरम्मि कल्लाण-पुंजराया हएण अवहरिओ । पत्तो तम्मि अरन्ना, भमिरो चरणेहिं तं नियइ ॥ ४९८० ॥ तो हक्कंतो पत्तो, निरुवक्कमबालया उ बंधो व्व । निवई दटुं नटुं, पक्खिकुलं तक्कुकम्मं व ॥ ४९८१ ॥ तह तब्भया पलाणो फेरंडो वि हु गईए सिग्घाए । दुक्करमुणितवचरणा पावप्पसरो व्व सहस त्ति ॥ ४९८२ ॥ नियडो परिट्ठिओ निन्निमेस-वियसिय-विसाल-नयणेहिं । चंदं व कोमलकरं, न तिप्पए तं पलोयंतो ॥ ४९८३ ॥ तो तं गहिउं दोहिं वि करेहिं उवविसिय पेच्छए राया । सव्वाग लक्खणाणं, गोट्ठिट्ठाणं व परमाणं ॥ ४९८४ ॥ सव्वुत्तमायवत्तं, ईसरभवणं व सहइ गत्तं से । सव्वक्कालमलंकरियं, विलसिरकमलं निवगिहं व ॥ ४९८५ ॥ संझाविप्फुरियं पिव, तंब-नहदिणयं व दीहकरं । वणमित्रविसालवच्छं, उद्धयचित्तं व मयरसियं ॥ ४९८६ ॥ सयहारसियं निवसिरिहरं व मिउफासनवणिवीढं व । पुरमिव विलसंतभुवं समयपरं सो गयमयं व ॥ ४९८७ ॥ इय चारुलक्खणंगं बालं दलृ विचिंतए राया । उत्तमगोत्तुप्पन्नो स को वि इमो बालओ एत्थ ॥ ४९८८ ॥ मन्ने नवप्पसूयाए, निवडिओ नहयरीए कीए वि । जमसंभवो अमाणुसरन्ने एयारिस सुयस्स ॥ ४९८९ ॥ मज्झमपुत्तस्स इमो दिन्नो देवेहिं उत्तमो पुत्तो । कहमन्नहा अहं इह हरिणा हरिऊण आणीओ ? || ४९९० ॥ मह सकयत्थो जाओ, अहरावहारो अरन्नपडणं च । जेसिंप्पभावओ रज्जपत्तमेसो सुओ पत्तो ॥ ४९९१ ॥ अगुणो वि गुणत्तेणं, परिणमइ कयाइ सुकयकम्मेण । जम्मह हयहरणं, पुत्तरयणलाभाय संजायं ॥ ४९९२ ॥ Jain Eucation International Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० सिरिअणंतजिणचरियं इय भाविरस्स रन्नो हयपयपंतिप्पहेण पत्ताई । पहुमवलोयंताई, पसरंति बलाई रन्नम्मि ॥ ४९९३ ॥ तो तेहिं पेच्छिऊणं मन्नुवसुम्मुक्कबाहबिंदूहि । पणओ पहू समग्गयगिरमेवं विन्नवंतेहिं ॥ ४९९४ ॥ पहुणो हीरिज्जंते, पेच्छेउं गरुयश्यतुरंगेण ।। पेरियगुरुरयतुरयवेयमविहयपय वि मणुसरिया ॥ ४९९५ ॥ पत्ता य एत्थ तुब्भे, अक्खय-सियकित्ति-भायण-सरीरा । नवरं को पहु ! अंके, देवकुमारोवमो बालो ॥ ४९९६ ॥ ता कहह तुरय-हरणाइबाल-लाहंतमत्तणो चरियं । एयं अलंकरेऊणमासणं रयणरमणीयं ॥ ४९९७ ॥ तो मंतिणो समप्पिय पुत्तं उवविसिय तत्थ नरनाहो । जंपइ आयन्नह तह, जह अहमिह आगओ रन्ने ॥ ४९९८ ॥ नवतुरयगरुयतररयनिरिक्खणत्थं निवारिउं तुन्भे । परिपेरिओ तुरंगो, मए पहे पसरइ जवेण ॥ ४९९९ ।। जा दूरतरे गंतुं, वग्गं खंचामि वालिङ वाहं । ता सो गरुयतरेणं, रएण गच्छइ समुहमग्गे ॥ ५००० ॥ जह जह वग्गागरिसणमहमणवरयं करेमि तह तह सो । एसो मं बालेहिं त्ति साहिमाणो व्व जाइ पुरो ॥ ५००१ ॥ कय अविरयवग्गागरिसणस्स मह करयलेसु संजाया । .. मुत्ताहलप्पकप्पापिडया पीडायरा दूरं ॥ ५००२ ॥ जाओ जहाभिमयमिमो निमुक्कवग्गो झड त्ति तुरओ सो । संपुन्नसप्पइन्नो व्व संठिओ निच्चलो होउं ॥ ५००३ ॥ तयणु मए विन्नायं, हयस्स विवरीय-सिक्खणं तस्स । . तो उत्तरिओ मोयाविओ समं सो समग्गं पि ॥ ५००४ ॥ संतं संतं काउं, हयंतमुत्तिन्नकवियपल्लाणं । न्हविऊण पल्लले बंधिउं दुमे नीरिया चारी ॥ ५००५ ॥ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवोवरिचंदकंतकहा काउं जलावगाहं, पायं सलिलं फलाई भुत्तूण | पुरमग्गसन्निसंतो, पयभमिरो हमिह संपत्तो ॥ ५००६ ॥ दिट्ठो य एत्थ एसो, बालो मंसासिभूरिसत्तेहिं । कय-परिवेढो जीवो व्व, पावपडलेहिं संसारो || ५००७ ॥ तो हक्किया मए ते नट्ठा अहिणो व्व मज्झ गरुडस्स । सिग्घं पि मए गहिओ दट्ठुमिमो अमरकुमरो व्व ॥ ५००८ | हयहरणप्पमुहं मह असुहं कल्लाणकारयं जायं । 'कट्ठे तउब्भवं पिव सासय- सिवसुहकरं जाणो ॥ ५००९ ॥ तुम्हेहिं जमापुच्छियमेयं तुम्हाण तुरयहरणाइं । सुयलाहं तं कहियं ति भणिय मोणे ठिओ राया ।। ५०१० || तं दद्धं सव्वुत्तमलक्खणजुयपाणिपयतलं पुत्तं । मंतिप्पमुहा सव्वे वि विम्या विन्नवंति निवं ॥ ५०११ ।। भ्रूणं केणइ पहुणो तुट्ठेण सुरेण हयमहिठ्ठेउं । काऊणं अवहारं दिन्नो रज्जारिहो कुमरो ॥ ५०१२ | एयस्स हत्थ–पायाइअवयवा जं सुलक्खणोववेया । नमिमो उत्तमगोत्तो हीण - कुले लक्खणाणि कुओ ? || ५०१३ || ता एत्थ न चिट्ठिज्जइ रत्ते सीहाइ- सावयाइने । विज्जाहराइ के वि हु मा एही सुय - पवित्तीए ॥ ५०१४ ॥ सिद्धप्पओयणाणं सावयट्ठाणमुज्झिउं जत्तं । किं जाणंतो को वि हु, अणत्थ - पत्थारिमल्लिया ।। ५०९५ ॥ तो आरूढो राया, सुहासणे छत्त - अंतरियं तरणी तरुणीकरयलचालियचमरानिलं वीईओ चलिओ || ५०१६ || अल्लीणो सेज्जावालयम्मि गहिऊण बालयं मंती । मंडलिया सामंता चलिया गहिओ य निव - तुरओ ॥ ५०९७ ॥ तो गच्छंता सव्वे वि झत्ति कल्लाणपुरपुरे पत्ता । यावहारगुरुसोओ भारसामाणणजणम्मि ॥ ५०१८ ॥ ३९१ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ ५०२० ॥ उवविट्ठो पविसेउं, सहाए सयणासणा महीनाहो । दिंतो नियविरहविसन्नपणइणीणं महाणंदं ।। ५०१९ ।। कल्लाणसिरीदेवीए अप्पर पुत्तयं सयं राया । जंपतो देवि ! इमो दिन्नो देवेहिं तुज्झति ॥ तोसा संतो सावेगसंगया गहिय तं गया सिग्घं । अंतेउरस्स अंतो कस्स न तोसाय सुयलाभो ।। ५०२१ ॥ सव्वम्मि वि नयरम्मिं कारविओ राइणा पहिट्ठेण । संचियमंचाहियहट्टसोहगुरुतोरणेहिं महो । ५०२२ ॥ ता वच्छे ! तुह पुत्तो, संपत्तो उत्तमे नरिंदगिहे । रज्जं पि तस्स भविही, किं कल्लाणं न सुकईणं ॥ ५०२३ ॥ इह चिट्ठतस्स पुणो, पालणमवि तस्स दुल्लहं हुतं । कत्तो सिसूण वुड्ढी उचियाहाराइरहियाण ॥ ५०२४ ॥ ता वच्छे ! उज्झेउं मरणज्झवसायमच्छसु सुहेण । जं मह दुहिय व्व तुमं, ताहं दाहं तुहाभिमयं । ५०२५ ।। एह न समाहाणमिहट्टियाए ता वलससु य समीवम्मि । जेण स नरवइणो, भलाविउं तं विमुंचामि ॥ ५०२६ ॥ मा कुणसु मणे संकं, जं सो निवई असंगओ होही । नयनिट्ठो धम्मिट्ठो, विसिट्ठचिट्ठो य सो नियमा ॥ ५०२७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं सुयदंसणसमस्सुयाए पयंपियं तीए । मुंचसु मं ताय ! तुमं, तस्स सयासे सयं नेउं ॥ ५०२८ ॥ एवं ति भणिय तो गिरि-सुरेण रइयं फुरंतमणिकिरणं । अनिलचलद्धयझणहणिरकणयकिंकिणिगणाइन्नं ॥ ५०२९ ॥ थूलामलपालंबियमुत्ताहलजालयप्पा भरियं । चंदावलिनिव्ववत्तियसुतवुब्भवपुव्वपुन्नं व ॥ ५०३० ॥ निम्मलनहसन्निहफलिहखंभसंभारकंतिपडलेण । निययारोहेण सई पवित्तिही मंतिहसिरं व ॥ ५०३१ ॥ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '३९३ तवोवरिचंदकंतकहा मणि-मत्तवारणावलि-परिविलसिर-सालिहंजिया जुत्तं । सव्वुत्तमं विमाणं कंचण-कलसावलीकलियं ॥ ५०३२ ॥ तम्मि मणिमत्तवारणयरईयरयणासणे महरिहमि । उववेसिउं सुसिग्धं, सयमवि चडिओ सपरिवारो ।। ५०३३ ।। चलियं रविरहरयणं व, तं विमाणं नहपयासंतं । सुरपरियरपारंभियपेच्छणयुग्गीयगीयसरं ॥ ५०३४ ॥ गच्छंतं तं पत्तं झड त्ति कल्लाणपुर-नहुच्छंगे । जाणाविओ य राया सुरेण तत्तणयवुत्तंतं ॥ ५०३५ ॥ भणियं च राय ! तं चेव तीए उवयारकारओ दूरं । भक्खिज्जतो पक्खीहिं रक्खिओ जेण तत्तणओ || ५०३६ ॥ जेण न जइ हयहरिओ, तत्थ तुमं नरवरिंद ! गच्छंतो । ता जीवियमवि हुंतं, न तस्स परिपालणं कत्तो ? ॥ ५०३७ ॥ ता तज्जणणी नियपिओ, समस्स तुह पासमस्सिया राय ! । सीलं परिपालंती, पडिवालेही पियागमणं ॥ ५०३८ ॥ पुत्तो तुम्हाणमिमो, जेणं जो देइ जीवियव्वं सो । सामी ! सव्वस्सवि जीवंताणं जओ सव्वं ॥ ५०३९ ॥ रायाह एउ जं सा वि मह सुया नियसुयाण पढमयरा । तो लोयकयच्छरिउं उत्तिन्ना सा विमाणाओ ॥ ५०४० ॥ मंथरकमसंचारो पविसित्तु सहं तया नरिंदस्स ।। तेणुत्तं वच्छे ! पिइहरे व्व इह निव्वुया चिट्ठ ॥ ५०४१ ॥ कुव्वंती सद्धम्मं, सुहकम्मं इह ठिया समज्जिणसु । एयम्मि निए लोए करेज्ज मा पुत्ति ! परबुद्धिं ॥ ५०४२ ॥ इय भणिऊणाणाविय सयमप्पइ नरवई सुयं तीसे । आणंदसंदिरच्छी, घेत्तुं तं चुंबए भाले ॥ ५०४३ ॥ तो रायपायपणमणपुरस्सरं भणइ ताय ! तुम्हाण । एसो सुओ विइन्नो, पाणा तुब्भेहिं जं दिन्ना ॥ ५०४४ ॥ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ तं सोउं संतुट्ठो राया, परिवारसंगयं जक्खं । कप्पूर - कुसुम-पमुहं पूयं काउं विसज्जेइ ॥ ५०४५ ॥ तो तत्थ संठिया सा, भिन्ने भवणे नरिंदआणाए । चिट्ठेति वुड्ढमहिलाओ, तीए पासे निवाएसा || ५०४६ ॥ पालइ विमलं सीलं तवइ तवं सा सरीरनिरवेक्खं । दीणाईणं दाणं, देइ दयोदारया निरया ।। ५०४७ ।। पूयइ जिणे तिसंझं, गंतूणमुवस्सए नमइ गुरुणो । सज्झाय-ज्झाण-ज्झयणसंगया गमइ दियहाई || ५०४८ ॥ दिन्नं सुयस्स नामं, काऊण महामहं महीवइणा । निय नाममणुसरेऊण, तस्स कल्लाणकलसो त्ति ।। ५०४९ ॥ तो सो वद्धइ बालो, बीया चंदो व्व पंचधाईहिं । पालिज्जतो अंतेउरीहिं, लालिज्जमाणो य ॥ ५०५० ।। एन्तो य चंदकंतो, सेट्ठिसुओ रयणि-विरमणारंभे । मोयाविऊण चंदावलिं गओ चडियभारुंडे ।। ५०५१ ॥ दईया मिलणपहिट्ठो, जं तो नंगरियपवहणे पत्तो । उत्तरिउं भारुंडं, भुंजावइ भक्ख - भोज्जेहिं ।। ५०५२ ।। बंधइ कणयमयाओ, सो घग्घरिओ तस्स चरणेसु । कंठम्म पुणो निम्मलमुत्ताहलकंठियं ठवइ ॥ ५०५३ ॥ पयजुयलग्गणपुव्वं विसज्जिओ सो गओ सठाणम्मि । उक्खित्तनंगरेणं, जाइ पुरो पवहणेण सयं ॥ ५०५४ ॥ वाणानिलच्छिमणजइणजवेण जाणेण थोवदिणमज्झे । पत्तो कडाहदीवे, ववहारे काउमारो || ५०५५ ॥ किम्मीरि- तमालदलाई, लेइ दाऊण निंब-पत्ताइं । कीडमणीहिं मुत्ताहलाई लवणेण कप्पूरं ॥ ५०५६ ॥ दंतीए देवदारुं, सिरिक्खंडाइं चउवलकुट्टेण । उन्नाए पट्टसुत्तं, कंबलएहि च नेत्तारं ॥ ५०५७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९५ तवोवरिचंदकंतकहा तउणारुप्पयखुरए, पत्तिलदाणेण कंतकणयाई । गुंजाहलेहिं वज्जावलीउ कुवलेहिं कचुराई ॥ ५०५८ ॥ इय बहुकयागयाणं तेण कयविक्कया कया तत्य । समुवज्जिया सवंछा, विच्छेयकरी सिरी पउरा ॥ ५०५९ ॥ सव्वंगीणं गहियं, रयणाभरणदुमं जुवइजोग्गं । पउणक्कयाणयाऊरियम्मि चडिओ पवहणम्मि ॥ ५०६० ॥ चलिओ नियनयरं पड़, पगिट्ठलाहुल्लसंतआणंदो । चिंतइ ममाणुकूलं विही जओ झ त्ति वलिओ हं ॥ ५०६१ ॥ कुसलेण गिहे पत्तो, काऊणं विक्कियं कयाणाणं । जणयाणाए लच्छीए तीए काहं जिणहराई ॥ ५०६२ ॥ जह जोग्गं मुणि-समणी-सुस्सावय-सावियाण वियरिस्सं । सिद्धंत-पुत्थयाई, पउराइं लिहावइस्सामि ॥ ५०६३ ॥ सयणाण सज्जणाण य सुहीणमणवरयमवि पयच्छिस्सं । गुत्तीओ मोयइस्सं घोसाविस्सामि य अमारिं ॥ ५०६४ ॥ दाहं किविण-वणीमग-दुत्थियदीणाण य जणमणोभिमयं । जिण-पवयणस्स काहं पभावणाओ पभूयाओ ॥ ५०६५ ॥ रयणाभरणदुर्ग जं तेणेक्केणं अलंकरिस्सामि । जणणिं बीएण पुणो, पिया तणुं जणियसम्माणो ॥ ५०६६ ।। बहुदिवसजायदुस्सहविओयदावग्गिजलिरसव्वंगिं ।। नियसंगमेण सययं सुहइस्सं सरलतरलच्छि ॥ ५०६७ ॥ ईय भूरितरुक्कलियाहिं, सो समुद्दो व परिकलिज्जंतो । संपत्तो य कमेणं रयणायरनीरतीरम्मि ॥ ५०६८ ॥ कुसलेणज्जिय वित्ते. पुत्ते पत्ते पहसिओ सेट्ठी । . पुत्तस्स दुग्गयस्स वि, मिलणो तोसो न किं धणिणो ? ॥ ५०६९ ॥ सयणेहिं समं सेट्ठी, समागओ सम्मुहो सुयस्स सयं । तूरंतम्मि सिणेहे को उचियं गणइ भणियं च ॥ ५०७० ॥ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६ न समूहेण धणं, ९ पाय-सुसरणा सरि सिरिअणंतजिणचरियं . अनुदिनमभ्यासदृढैः सोढुं शक्येत दीर्घजो विरहः । प्रत्यासन्नसमागममुहूर्त्तविरहसुदुर्विषः ॥ ५०७१ ॥ चडिऊण वेडियाए आरूढो पवहणे सुएण नओ । आलिंगिओ य पुत्तो, पिउणा असमस्सिणेहेण ॥ ५०७२ ।। जंपइ य पिया तुह जायसव्वया जायमसरिसं कुसलं । सा आह ताय ! तुह पाय-सुसरणा हं सया कुसली ॥ ५०७३ ॥ सगडसमूहेण धणं, उत्तरिय नेइ नियघरे सेट्ठी । न थिरं पि उवेहिज्जइ, किं पुण जं चंचलं वत्थु ॥ ५०७४ ॥ वद्धावणयपुरस्सरमाणीओ मंदिरम्मि नियपुत्तो । गोरवमरिहइ सयणो, परे वि किं पुण धणी तणओ ? || ५०७५ ॥ भमरकरणिं धरंतो, पणमइ जणणीए पायसयवत्तं ।। आसीसदाणपुव्वं, तीए वि परिपुच्छिउ कुसलं ॥ ५०७६ ॥ जंपइ य अंब ! तुह नाम-मंत-सरणावहरियदुरियस्स । मह सव्वया वि कुसलं, कल्लाणकरो गुरुपसाओ || ५०७७ ॥ वद्धावणयप्पविसंतनिस्सरंतीओ निवइरमणीओ । नवरं निउणं पि न सो, पेच्छइ दईयं नियंतो वि ॥ ५०७८ ॥ चिंतई य किं न दईया दीसइ किं सा गया पिइहरम्मि ।। अहवा अपडुसरीरा, सुत्ता भविही गिहस्संतो ? || ५०७९ ॥ . एवं विभावयतस्स, तस्स वामेण अच्छिणा फुरियं । तो सविसाओ चिंतइ, किं पि अकल्लाणमुल्लसिही ॥ ५०८० ॥ इय चिंतंतस्स पिया, अदंसणुप्पन्नमन्नुभावेण । संचक्कारो व्व कओ भविस्स दुस्सहदुहोहस्स ॥ ५०८१ ।। उव्विग्गमाणसेणं कयं असेसं पि भोयणाईयं । संझावसरे जणणी, पइरिक्के पुच्छिया तेण ॥ ५०८२ || किं अंब ! तुम्ह बहुआ न दीसए किं गया पिइहरम्मि । सा आह वच्छ ! पावाए तीए नामं पि हु अगेज्झं ॥ ५०८३ ॥ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९७ तवोवरिचंदकंतकहा सो भणइ अंब ! कित्तीए नेव नामं पि धिप्पए कहसु । तीयुत्तं असई सा ता तन्नामं पि पावकरं ॥ ५०८४ ॥ पुत्तो जंपइ पढम, पावइ रेहं सइण मज्झे सा । अंबाह सा सई कह जीए गभो पियविओए ? ॥ ५०८५ ॥ तेणुत्तं मा मा अंब ! एवमुल्लवसु पावभरजणयं । जमिह अहं संपत्तो हुँतो सउणाण रयणीए ॥ ५०८६ ॥ तीए च्चिय मिलणत्थं, जं जंतेणं न साहियं किं पि । तो वसिय निसासेसे चलिओ हं तीए इय भणिओ ॥ ५०८७ ॥ गमणुस्सुया वि तुब्भे, गुरूण मिलिऊण जाह इण्हि पि । जेणमहं रिउन्हाया, ता मा मह चडउ असइत्तं ॥ ५०८८ ॥ भणियं मए पिए ! हं, लज्जामि गुरूण दंसणं दितो । . लज्जिज्जइ गुरुपुरओ, ईय कज्जे नायजाए वि ॥ ५०८९ ॥ जइ को वि किं पि जंपइ, ता दंसेज्जसु पिएहिं नामम्मि । मुद्दमिमं ति पयंपिय तं तीए समप्पियगओ हं ॥ ५०९० ॥ मह संतियम्मि गन्भम्मि अंब ! जइ होइ तीए असइत्तं । ता, होउ किं तु तं कहसु, जत्थ ठाणम्मि सा वसइ ॥ ५०९१ ॥ तीयुत्तमसद्धेयं झाउं, तुह पक्खिणा समागमणं । सा अइअलीयपरिभासिणि त्ति कलिया मए जाय ! || ५०९२ ॥ तुह अंगुलीयदरिसणसाहिन्नाणम्मि का किरइ पईई ? ।। जं भत्ताभरणाई न हुति किं भारियाण कए ? || ५०९३ ॥ निवपच्चक्खाए जाए. जाईयए सुद्धीए अयसपसरस्स । भीयाए मए कंठे धरिउं निद्धाडिया गेहा ॥ ५०९४ ॥ कन्नपुडकडुयकीले य पहणणकप्पं निसामिऊण तयं । पडिओ महीए मुच्छाए पच्छाईयलोयणो झ ति ॥ ५०९५ ॥ तो धाह धाह धाह त्ति जंपिए आगओ सेट्ठी । पुत्तं पेच्छइ मुच्छाविच्छायसरीरसंठाणं ॥ ५०९६ ॥ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ सिरिअणंतजिणचरियं जलसेयतालयंटमनिलाइदाणेण सो कओ सत्थो । अकयदइयाकलंका रोवणं दूमिय-मणो रुयइ ॥ ५०९७ ॥ हा दइए ! निम्मलसीलसंगयाए वि दुस्सहं अयसं । दुस्सीलया सरूवं, दाउं तुह किं विही लहिही ? || ५०९८ ॥ हा पोढि ! पत्तपणए हा ! विरईयपूयणिज्जजणविणए । हा हत्थिगमणि! हा रमणरमणि ! तं कत्थ पेच्छिस्सं ? ॥ ५०९९ ॥ सुन्नं सयणं भवणं, भयाणयं विसहरोवमा विसया । सिंगारा अंगार व्व दाहया तं विणा दईए ॥ ५१०० ॥ दीहदरिसत्तणं दीहरच्छि ! तुह चेव नूण निव्वडियं । मिलिउं गुरूण गच्छसु ईय वईया जं पमाणीए ॥ ५१०१ ॥ जइ जह दुस्सह तुह विरहवज्जपहराहओ विवज्जामि । निक्कित्तिमो सिणेहो, निव्वडइ न अन्नहा ता मे ॥ ५१०२ ॥ इय परिदेवणपुव्वं, पलवंतो सेट्ठिणो सुओ भणिओ । समइक्कंतं वत्थु न वच्छ ! सोयंति गुणिणो जं ॥ ५१०३ ॥ गतं मृतमतिक्रान्तं शोचन्ति विपश्चितः । गतं गतमतिक्रान्तमतिक्रान्तं मृतं मृतम् ॥ ५१०४ ॥ ता तीए पिइहराइठाणेसु विसोहिऊण तं वच्छ । । खामिय आणिस्सामो, जमजुत्तं विहियअम्हेहिं ॥ ५१०५ ॥ तुह पक्खिणा इहागमणमघडमाणं ति कलिय अम्हेहिं । निस्सारिया वराई, वहुया रोसारुणच्छीहिं ॥ ५१०६ ॥ ता एक्कमकयपुव्वं, अवराहं खमसु पुत्त ! अम्हमिमं । जं दुप्पडियाराई हवंति अम्मा-पिऊणत्थ ॥ ५१०७ ॥ एवं सो बहुसो वारिओ वि विरमइ न रोईयव्वाओ । न जिमइ न रमइ न सुयइ झायइ मंतं व नियदईयं ॥ ५१०८ ॥ असुहं हियए अरई सरीरए मंदिरम्मि रणरणओ । उव्वेओ नयरीए वि जाओ से पिययमा विरहे ॥ ५१०९ ॥ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहा वल्लहपिया विउत्तस्स, तस्स जामो वि जुगसमो जाइ । चणयस्स व भाडुब्भवसंतावुत्तत्तगत्तस्स ॥ ५११० ॥ कइया वि असमउम्मायदूमिओ तत्थ ठाउमतरंतो । एक्कदिसाए निसाए, धणुबाणकरो विणिक्खंतो ॥ ५१११ ॥ रयणिविरामे जाए जणणी जा पुत्तयं नियइ न नियं । ता पुत्तगमणसंकाए कंपरी जाइ पइ-पासे ॥ ५११२ ॥ जंपइ जं गुणजुत्तो न दीमए अज्जउत्त ! तुह पुत्तो । तं कत्थ वि य पउत्थो मने दाऊण दुहमम्ह ॥ ५११३ ॥ तो झ ति सयण-वणिउत्त-मित्त-कम्मयर-मंदिरेसु सयं । भमिओ नवरं न सुयस्स पावियं वत्तमेत्तं पि ॥ ५११४ ॥ तो आगंतुं उम्मुक्कपेक्कपोक्कारवं पिया जुत्तो ।। रुयइ रुयाविय नियसयण-मित्त-वणिउत्त-परियरिओ ॥ ५११५ ॥ हा जाय जाय ! नो जाइ जाव जरजज्जरस्स हिययं मे । विहडिय तुह विरहासणिघायाहयमेहि ता सिग्धं ॥ ५११६ ॥ हा पुत्त ! जुत्तमेयं किं तुह उत्तमकुलप्पसूयस्स । जं पालणजोग्गाई, गओ तमम्हे परिच्चइउं ॥ ५११७ ॥ हा पुत्त ! तए समुवज्जिएण, सिरिवित्थरेण किं कज्जं ?। जो जाही उवओगं, न चायभोएहिं तुह सययं ॥ ५११८ ॥ रुइरी जंपइ जणणी हा पुत्तय ! निजजणम्मि वि न हुंति । गुरुणो निद्दयहियया अहं तु जणणी वि परिचत्ता || ५११९ ॥ अन्नोन्नसिणेहाणं विच्छोहे विरईए मुहत्तं पि । बहुकालिओ विवागो, भवंतरे होइ ईय समओ ॥ ५१२० ॥ ताहं सुयबहुयाणं घणस्सिणेहाण मेत्तियं कालं । . काऊण विप्पओगं स भवंतरे किं लहिस्सामि ॥ ५१२१ ॥ गन्मभरनीसहाए, जइ से अच्चाहियं कह वि होही । ता कत्थ नित्थरिस्सं, थीवह-भूणवहपावदुगं ? || ५१२२ ॥ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० सिरिअणंतजिणचरियं एवं परिदेवंती, मुच्छाए पइक्खणं पडइ झ त्ति । उवलद्धचेयणा, ताडए सिरं तोडए केसे ॥ ५१२३ ॥ सयणाइएहिं भणिओ, सिट्ठी सपिओ वि न हि रुयंतस्स । एही इह सो ता तन्निरिक्खणे उज्जमं कुणसु ॥ ५१२४ ॥ तो पच्चइए पुरिसे, पेसइ गुरुयर-तुरंगमारूढो । गच्छइ सयं स सिट्ठी, नवरं न नियइ कहिं पि तयं ॥ ५१२५ ॥ ता हियपविट्ठसल्लं व नियसुयं हिययं च. झायंतो । अइवाहइ दिवसाइं सो आगंतुं गिहम्मि ठिओ ॥ ५१२६ ॥ एत्तो य चंदकंतो विउत्तकंतासु दुस्सहदुहत्तो । .. निग्गंतूण निसीहे, पत्तो पुरपरिसरुद्देसे ॥ ५१२७ ॥ चिंतइ जीए दिसाए, मह जायइ वल्लहप्पिया लाहो । तीए हुंतु सुसउण त्ति चिंतउं विहियपणिहाणो || ५१२८ ॥ चलिओ पुव्वदिसाए तो तं गमणाय पेरयंतो व्व । घूओ वामे पासे घुग्घुय झ त्ति संलग्गो ॥ ५१२९ ॥ अह दाहिणकन्नासन्नखीरसिहरम्मि भयरवा दूरं । किलि किलि रवेण मग्गे, जं तस्स कहेइ कुसलं सो ॥ ५१३० ॥ वेगेण विलग्गंतो, पट्ठीए पेरइ व्व पवणो तं । गंतूण सिग्घमेव य वल्लहभज्जाए मिलसु त्ति ॥ ५१३१ ॥ इय जायचारुतरसउणदंसणाणुमियपिययमा लाहो । वच्चइ अतुच्छ-उच्छाहवस-विसप्पंत-गुरुवेगो ॥ ५१३२ ॥ भोयण-ठाणे न सुयइ, सयणठाणम्मि भुंजए नेय । इय अक्खंडपयाणयकयप्पवित्ती पहे जाइ ॥ ५१३३ ॥ गाम-पुरागर-नगराइन्नमइक्कमिय वसुमई वीढं । पत्तो रन्नम्मि भमिरसरह-परिसप्पि-रुरु-वराहम्मि ॥ ५१३४ ॥ धवधम्मेण सोहं, जणवाणंजण-असण-गहणदुपवेसं । कंकेल्लि-बिल्ल-अंकेल्लि-सल्लई-वेल्लि-दुल्लंघं ॥ ५१३५ ॥ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०१ तवोवरिचंदकंतकहाणयं सामलयमुभयहा वि हु दुहा विसालं दुहा सुगयविहयं । सबरालयं दुहा वि हु जं वियसियनयनुभयहा वि ॥ ५१३६ ॥ तम्मज्झे भक्खंतो, गच्छइ दुक्खाइ-साउ-फलनिवहं । अनिलाहयनिज्झर-सिसिरवारिपूरं पियंतो व्व ॥ ५१३७ ॥ तस्संतो पेच्छइ सियवियासिकुसुमुक्करा वरियपत्तं । वणसंडं रविदुपावसदुग्गठ्ठियचंदजोन्हं व ॥ ५१३८ ॥ तम्मज्झे मुत्तासेल-मणिसिलासहसनिम्मियं नियइ । हिमसेलं पिव वेयड्ढसिहरमिव रुंदजिणभवणं ॥ ५१३९ ॥ जम्मि पणवन्नमणितोरणाई रेहति चउदिसिकयाइं । सुरवइधणुविंदाई व विलसिरसरयब्भसिहरम्मि ॥ ५१४० ॥ जं फुरियपहा रयणकणयकलससंदोहसोहिउं व तं । बहुअब्भयसिहरग्गुलसंततडिपुंजकलियं व ॥ ५१४१ ॥ उरसिहरपरंपरपवणतरलसेयद्धयावलीकलियं ।। जं दिसि-दिसिपरिपसरंतकंतबहुतरबलायं व ॥ ५१४२ ॥ जत्तो दिसासु दूरं सेओ किरणुक्करो परिप्फुरइ । सलिलतुसारा सारो व्व पवणपसरेण हीरंतो ॥ ५१४३ ॥ सरयब्भविब्भमधरे जा पत्तो तम्मि ताव गयणयलं । अप्पुन्नं पणवन्नप्पहभरधरमणिविमाणेहिं ॥ ५१४४ ॥ पत्ताई ताई रणज्झणिरकणयमणिकिंकिणीकलावाइं । अनिल-चलद्धय-रवुलहलिर-घग्घरावलिविलासाई ॥ ५१४५ ॥ तम्मज्झाओ बहुसूरकरदूरालोयमुत्तिणो अमरा । नीहरिया घण-रयणाभरणालंकरियसव्वंगा ॥ ५१४६ ॥ तं मज्झे पुन्नभरेक्कपत्तमुत्तमपहत्तपत्तजसो । मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियरवितावो ॥ ५१४७ ॥ निस्सीमरूवसुरसंदरीकरुद्धुव्वमाणचमरचओ । सहस त्ति सहसनेत्तो उत्तिन्नो मणिविमाणाओ ॥ ५१४८ ॥ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ सिरिअणंतजिणचरियं अमरअमरंगणागण-उच्चारिय-चारु-चाडु-थुइवाओ । जय जय जय त्ति भमिरो, जिणभवणमंतरे पत्तो ॥ ५१४९ ॥ अवलोईय सक्कसिरिं, सविम्हओ चंदकंत-सेट्ठि-सुओ । पविसियपउमुप्पलरयसुयंधसरसीजले न्हाओ ॥ ५१५० ॥ तो सुरहिकमलकेरवसहस्सपत्ताई गहिय जिणभवणे । पत्तो पेच्छइ पउमप्पहं, पहुं से णे तणुलच्छि ॥ ५१५१ ॥ उवविढे जिणचंदं वंदिय इंदे सदेवविंदम्मि । जय जय जय त्ति जंपिय, पविसइ सनिसीहीयं काउं ॥ ५१५२ ॥ सिय-उत्तरीय-विरईय-मुहकोसो पूईऊण जिणनाहं । उचियट्ठाणे ठाउं, वंदिय तं थोउमारद्धो ॥ ५१५३ ॥ महिमिलियमउलिपणमणमणोहरं पाणिकमलकयकोसो । पहु पउमप्पह ! काहं. तुहत्थयं मंदबुद्धी वि ॥ ५१५४ ॥ अविरय-नमिरामररायसोणं सिरि-रयण-किरण-कलिओ व्व । उव्वहसि पहु ! तुमं अत्तणो तणुं अतणुरायघरं ॥ ५१५५ ॥ विहिवेगडिय विणिम्मिय-परिकम्मण-पउमराय-रइयं च । धरसि महारायसिरिं, नियदेहसमस्सियं सामि ! ॥ ५१५६ ॥ . आजम्मरम्मकुंकमघणंगरायप्पभिन्नमुत्ति व्व ।। रेहसि तं रत्तुप्पलदलावलीसच्छहच्छाओ ॥ ५१५७ ॥ मुत्तेण व भुवणत्तयभवभव्वजणाणुरायपसरेण । तं सव्वंगालिंगणउप्पन्ना रत्तवन्नो व्व ॥ ५१५८ ॥ कमलग्गाए विमुक्काए रायलच्छीए रोस-रत्तेहिं ।। नयणावलोईएहिं व, संचलिओ तं ठिओ रत्तो ॥ ५१५९ ॥ कयसेवेण वि आभवमिमिणा चत्तो वएहिं नाहमिमं । इय चिंतिय भत्तेण व राएण तुमं समुवगूढो || ५१६० ॥ इय रायघरंगं पि हु घोडं पउमप्पहं विगयरायं । मन्नेमि चंदपहु ! नयसिद्धिवहूकंतमत्ताणं ॥ ५१६१ ॥ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंत कहाणयं एवं थोऊण जिणं, सुभत्तिपब्भारनिब्भरो दूरं । कुणइ पणिहाणमाणंद - अंसुभर-दंतुरच्छिजुओ ॥ ५१६२ ॥ पुणरुत्तपणयजिणपाय- पंकओ सुरसहंसमल्लीणो । अभिवंदियइंदाइतियसो कर - कोसल - सिरसिरो ॥ ५१६३ ॥ सुरराय - सेवयामर - विइन्नउचियासणे समुवविट्ठो । एत्थंतरम्मि अमरीयणेण पेच्छणयमारद्धं ॥ ५१६४ ॥ पडुपडहपाडपयडियसमविसमुत्तालधरणम्मि । लग्गाओ अच्छराओ, मुयंगवायणविहीए वि ॥ ५१६५ ॥ काउ वि मणोगयरायवासणावसविमुक्कफुक्काहिं । गीयट्ठाणगदाणं कुणंति अइससुरवंसेहिं ॥ ५१६६ ॥ अवराकरचालणज्झणहणंतमणिवलयतालरमणीयं । ईसिप्पकंपिरथणी वीणं वायइ विसालच्छी ॥ ५१६७ ॥ महुरस्सरेण काउं वि गायंति जिणिंदगुरुगुणग्गामं । हुफिय-कंपिय-कुरलिय - मुद्दिय - रायाणुसारेण ॥ ५१६८ ॥ अन्नाओ तालच्छंदाणुसारिचलचरणकणिरघग्घरयं । नच्चंति चलणकरणब्भमिनमुहविभंगभावेहिं ॥ ५१६९ ॥ एरिस पेच्छणए पेच्छयच्छिसुहिसुहयरे जिणिंदस्स । न्हवण- - विलेवण - भूसण-पूयाकम्मं सुरेहि कयं ॥ ५१७० ॥ तो लवण - जलारत्तिय - मंगलदीवेसु उत्तरंतेसु । रुंधइ गयणं वज्जिरचडव्विहाउज्जसरपसरो ।। ५१७१ ॥ ईय निव्वत्तियपूओ, सक्को सक्कत्थएण थोऊण । मणिमयकुट्टिमतलमिलियभालफलओ जिणं नमइ ॥ ५१७२ ॥ तो चंदकंतमाभासए सयं वच्छ ! तं कुओ पत्तो । एत्थ त्ति ? तओ सक्क्स्स तेण जहवट्ठियं कहियं ॥ ५१७३ ॥ तो नाणलोयणेणं अवलोईय तप्पियं भणइ सक्को । वत्थामलसीलवई, महासई सहयरी तुज्झ ॥ ५१७४ ॥ ४०३ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ कल्लाणपुरे कल्लाणपुंजनरनाहमंदिरे वसइ । पडिवन्ना पुत्तित्तेण राइणा कुणइ सद्धम्मं ॥ ५१७५ ॥ पुत्तो य तीए रन्ना रन्ने पत्तो जहा तहा सव्वं । निग्गमणप्पमुहं से भज्जाचरियं समक्खायं ॥ ५१७६ ॥ सुयनिरुयससुयसद्धम्मनिरयनियपिययमसमसमायारो । सो अमयसित्तमुत्ति व्व सुहरसुक्करिसमणुपत्तो ॥ ५१७७ ॥ भणिओ सुरवइणा गच्छ वच्छ ! नियपिययमाए पासम्म । आरुहिय मणिविमाणे सद्धिं मह अमरजुयलेण ।। ५१७८ ।। तं सोउं सो जंपर पहु ! मज्झ समत्थ तुह समासो । नवरमरन्ने किमिमं जिणभवणं ? कहह मह पहुणो ।। ५९७९ ।। सक्को जंपइ जईया आसी पउमप्पहो पहू भयवं । उप्पन्नविमलकेवलनाणो वसुहाए विहरतो ।। ५१८० ॥ नवकणयकमलगमणो चलिओ सत्तुंजयम्मि गिरिराए । इह पत्तो तं दठ्ठे, पडिबुद्धो केसरिकिसोरो ॥ ५१८१ ॥ पहुपयपणामपुव्वं सविहियाणसणो समाहिणा मरिउं । भासुरसरीरधारी, जाओ अमरो सहस्सारे ॥ ५१८२ ॥ दट्ठूण मणिविमाणप्पमुहअच्चब्भुयं अमररिद्धिं । किं पुव्वभवम्मि मए, तवाइविहियं ति चिंते ।। ५९८३ ॥ तो ओहिनाणनयणेण नियइ नियपुव्वभवभवं सीहं । प्रहुपउमप्पहपडिबोहविहियअणसणं विगयपाणं ।। ५९८४ ॥ ता सुक्कसमासुरलोयसंपया जप्पहुप्पभावेण । सिरिअणंतजिणचरियं पसुणो वि मज्झ जाया नमामि सामिं तमिन्हिं पि ॥ ५१८५ ।। तह वि सुरलोयकिच्चं, सासयजिणभवणपूयणाईयं । पढमं चिय कायव्वं ति कुणइ ते भत्तिसंजुत्तो ॥ ५१८६ | काऊण तयं कमसो तियसो विमलगिरिसिरे पत्तो । पुव्वं पि समोसरियं तं पिच्छइ तिहुयणेक्कपहुं ॥ ५१८७ ॥ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०५ तवोवरिचंदकंतकहाणयं सीहासणम्मि विद्युमससंगकिरणोलिरंजियदियंतं । उदयगिरिंदुच्छंगम्मि उम्गयं तरणिबिंबं व ॥ ५१८८ ॥ तो भत्तिपहरिसप्पसरपूरिओ विहियविहिजिणप्पणई । सुरनाडयाई नट्टाई, दंसिउं आगओ एत्थ ॥ ५१८९ ॥ इह ठाणे पडिबोहो जाओ मह एय अमरसिरिहेऊ । जस्स पसाया तं पुहुमिह काउं निच्चमच्चिस्सं ॥ ५१९० ॥ इय चिंतिय मुत्तासेलमणिमयं तेण निम्मियं एयं । सीहविहाराभिहदेवमंदिरं मंदरोदारं ॥ ५१९१ ॥ तो बालारुणसच्छहपउमप्पहसामिरम्मबिंबस्स । विहिपुव्वगप्पइट्ठा कारविया तग्गणहरेणं ॥ ५१९२ ॥ अट्ठाहिया महो सामिणो कओ तयणु इंदविंदेण । न्हवण-विलेवण-पूयण-पेच्छणयाइप्पबंधेण ॥ ५१९३ ॥ तो सीहसुरेणुत्तो सोहम्मिदोभिवंदणं दाउं । सुरलोयमच्चलोयाण दाहिणद्धेसु तं सामी ॥ ५१९४ ॥ ता एय देवभवणस्स पूयणं रक्खणं च कायव्वं । तुमए त्ति तओ तेणं पडिवन्नं नेहसारेण ॥ ५१९५ ॥ ता सोहम्मसुरिंदेणं जिणहरा रक्खणे समाइट्ठो । कूरंतकरो नामेण खेत्तवालो करालतणू ॥ ५१९६ ॥ सीहसुरेण जिणिंदो आभवमवि पूईओ सबहुमाणं । सोहम्मसुरिंदेण वि सुभत्तिभरनिब्भरंगेण ॥ ५१९७ ॥ सोहम्मे सुरलोए जो जो उप्पज्जए पहू सो सो । परिवालइ पुव्वठिई पहु ! मिल्हिस्सहं पि पूएमि || ५१९८ ॥ इय चंदकंत ! तुह रन्नमज्झ जिणभवणविरयणं कहियं । साहिज्जइ अवरस्स वि पुढें साहम्मियस्स न किं ? || ५१९९ ॥ इय भणिय सुरिंदेण, दिव्वाभरणाई दिव्ववत्थाई । दिन्नाइं पियाए वि हु, जोग्गाई समप्पियाई से || ५२०० ॥ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ सिरिअणंतजिणचरियं तो रयणविमाणे तं आरोविय सुरदुगेण सहसक्को । कल्लाणपुरे पेसिय सयमणुपत्तो अमरलोए ॥ ५२०१ ॥ सिग्धं पि चंदकतो, पत्तो नयरम्मि तम्मि गयणेण । पेच्छिज्जंतो उग्गीवुत्ताणियनयणलोएण ॥ ५२०२ ।। नरनाहप्पासायासन्नम्मि विमाणमागयं गयणे । पेच्छंताणं निवाईण विम्हिओ फुल्लनयणाण ॥ ५२०३ ॥ तो एगेण सुरेणं पडिहारपवेसिएण नरवइणो । कहियं नरिंद ! एसो पत्तो चंदावलिपियो त्ति ॥ ५२०४ ॥ रायाह समेउ लहुं जामाऊ मज्झ जेणिमो अमर ! । तयणु विमाणा पत्तो निवंतियं चंदकंतो वि ॥ ५२०५ ॥ अमराभरणपहाभरदुनिरिक्खो दिणयर व्व विम्हयइ सहं । नमइ महिमिलियमउली सो नरवइपायसयवत्तं ॥ ५२०६ ॥ सम्माणपुव्वमुववेसिऊण सो पुच्छिओ कुसलवत्तं । तो विणयप्पणओ आह नाह ! कुसलं तुह पसाया ॥ ५२०७ ॥ तयणंतरमवणिवई साहइ से तुरय-हरण-सुयलाहे । चंदावलीए मिलणं च तो इमं सो पयंपेइ ॥ ५२०८ ॥ पहु ! तुब्भे बालयपुन्नपगरिसागरिसियागया तत्थ । दूरत्थं पि हु नियडं जइ जायइ सपुन्नाण ॥ ५२०९ ॥ मुत्तुमुवेहं बालस्स देव ! तुन्भेहिं तत्थ उवयरियं । भुवणोवयारयाणं जइ वा किर केत्तियं एयं ? ॥ ५२१० ।। चंदावली वि पत्ता, पहुणा तणयत्तणेण दिट्ठा सा । किं चोज्जमिमं तेसिं, जयमवि जेसिं कुडुबत्ते ॥ ५२११ ॥ विहिणा अहमवि सामीण मेलिओ नियपियाए मिलणत्थं । संघडइ दुग्घडं पि हु किं वा न विही कयपयत्तो ॥ ५२९२ ॥ ता सामि ! नो गमिस्सामि कत्थइ चईय तुम्ह पयसेवं । पावेउं कप्पद्रुमसमक्तत्तो जाइ तज्जडो वि ? ॥ ५२१३ ॥ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०७ तवोवरिचंदकंतकहाणयं तो नरवइणा भणियं, रज्जमिमं वच्छ ! संतियं तुज्झ । जं तुह सुयस्स होही, सुए निवे किं पिया न निवो ॥ ५२१४ ॥ इय जंपिऊण पूयापुव्वं अमरा विसज्जिया रन्ना । तो ते सग्गम्मि गया ताण मणो न रमइ महीए ॥ ५२१५ ॥ आणाविऊण तस्सप्पिया पिया तोसमुवगओ तो सो । एक्को वि हरिसहेडं च दो किंनावली तेसिं ॥ ५२१६ ॥ तणओ वि अप्पिओ से भणिउं एयं नियं सुयं नियसु । तो तेणालिंगिय सो समप्पिओ राइणो चेव ॥ ५२१७ ॥ जामाओ त्ति रन्ना दिन्ना मंडलवईस्सिरी तस्स । . नियरिद्धिसमं दाणं दाउमुदार च्चिय मुणंति ॥ ५२१८ ॥ एगागी सो असुहेण निग्गओ मंडलेसरो जाओ । अहवा सुहासुहाई फलंति कम्माई समयम्मि ॥ ५२१९ ॥ करिखंधराधिरूढो, पत्तो निवअप्पियम्मि पासाए । नियभारिया समेओ, महरिहरिद्धिप्पबंधेण || ५२२० ॥ तो पइरिक्के पुट्ठाए तीए पइणो समग्गमवि कहियं । सासुरयनिग्गमाई सचरियमन्नोन्नमिलणंतं ॥ ५२२१ ॥ भणियं च नियगुरूणं जइ खणमेक्कं तुमं मिलिय जंतो । ता दुन्हं पि न हुंतं, अम्हाण पवासभवदुक्खं ॥ ५२२२ ॥ मणियं दईएण पिए ! न सलायनरा वि दुकयकम्माण । छिट्टति, कीडकप्पाण अम्ह समाणं तु का गणणा ? || ५२२३ ॥ तीयुत्तमहं जं नियमणोमयं विन्नवेमि तं सामि । । न खलणा का वि जओ पसायपत्ताण भणियव्वे ॥ ५२२४ ॥ तो चंदकंतमंडलवइणा भणियं पिए ! सपडिहासं । । हुमणसु सणियव्वमेयं सोउं सा जंपिउं लग्गा ॥ ५२२५ ॥ महिल त्ति मावमन्नसु मम हं जं तुह सया वि सुहहेऊ । तिमविद्धंसकरी विय पसरंती चंदजोण्ह व्व ॥ ५२२६ ॥ कम्माण । Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ सिरिअणंतजिणचरियं पुरिसा वि न पसंसं पावंति कयाइ जे सया कलुसा । जे सक्करायपरितावकारया पव्वराहु व्व ॥ ५२२७ ॥ ते चिय निंदा पत्तं सइ जं लोयावयारयत्तेण ।। हुंति न कयाइ कस्सइ हियंकरा कूरकाल व्व ॥ ५२२८ ॥ कस्स न अहिलसणिज्जा दिंती महिला वि निम्मलं बुद्धिं । सव्व जगज्जीवहियं अमयं नवमेहमाल व्व ॥ ५२२९ ॥ ता निवपसायदिन्ने देसे गंतूण गम्मए सपुरे । जहमेव सरइ अयसो. पच्छित्तेणेव पावभरो ॥ ५२३० ॥ अम्मा-पिऊसु रोसो कज्जो न जओ कुकम्मफुरियं मे । जायं कलंकहेऊ, दुप्पडियाराई ता इंतु ॥ ५२३१ ॥ आणेऊण सरज्जे, भुंजावसु ताई रज्जसिरिसोक्खं । तं चिय सलहंति बुहा गुरूण जं जाइ उवओगे ॥ ५२३२ ॥ एवं कीरते अज्जउत्त ! उल्लसइ उत्तमा कित्ती । धम्मो वि होइ पुज्जाइं जं जिणाणं पि एयाई ॥ ५२३३ ॥ तुह हियमिममुवइठं, जं जुत्तं अज्जउत्त ! तं कुणसु । पत्तीहिं कहेयव्वं, पहूणमेत्थ तयायरणं ॥ ५२३४ ॥ तं. सोउं. सो चिंतइ, एसा मह हियकरी इय मण्णंती । अब्भुल्लसंति अहियाण नूणमेवं विहुल्लावा ॥ ५२३५ ॥ निज्जइ घणस्सिणेहामइ एसा इय हियं पयंपंती । निन्नेहाणं नूणं, नं हुंति एवंविहुल्लावा ॥ ५२३६ ॥ इय चिंतिय तेणुत्तं पिए ! जयुत्तं तए तयं काहं । जाणइ हियाहियाणं, जो न विसेसं पसू स धुवं ॥ ५२३७ ॥ इय मंतिय तीए समं, सहाए गंतुं निवं नमिय भणइ । . देवप्पसायदिन्नं देसं संठाविउं जामि ॥ ५२३८ ॥ रायाह तहा कज्जं सिग्घं पि जहा इहागई होइ । आएसो त्ति भणित्ता, तो सो पत्तो नियावासे ॥ ५२३९ ॥ . Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०९ तवोवरिचंदकंतकहाणयं. सुपसत्थ-तिहि-मुहुत्ते सेणासंभारसंगओ चलिओ । अन्नो वि न निग्गच्छइ, गिहाओ कुदिणे किमु नरिंदो ? || ५२४० ॥ अणुवासरप्पयाणयपवित्तिसंपत्तदविडनियदेसे । पविसइ कंतीए पुरीए, रईयवरहट्टसोहाए ॥ ५२४१ ॥ कइवयदिणेहिं देसं, संठविउं माणए नरिंदसिरिं । मलयद्दि-चंदणदुम-रम्मारामेसु रममाणो ॥ ५२४२ ॥ चलिओ चंदपुरि पि पियाजुओ जणणि-जणयमिलणत्थं । पत्तो य कमा तन्नयरिपरिसरे देइ आवासं ॥ ५२४३ ॥ तो इंदविइन्नाभरण-वत्थविरईयविराइसिंगारो । गिरिगरुयगंधसिंधुरबंधुरखंधे समारूढो || ५२४४ ॥ वीइज्जतो चमरेहिं कणिरकंकणकराहिं रमणीहिं । मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियरवि-तावो ॥ ५२४५ ॥ गय-तुरय-रहसमारूढपोढसामंतरईयपरिवारो । छत्तच्छाईयमणिमयसुहासणट्ठियपियाजुत्तो ॥ ५२४६ ॥ मुहुरस्सरमागहबंदिविंद-उग्गीयगुरुगुणक्करिसो । वज्जिरढक्कालुक्का, तं चक्कनिनायजायजसो ॥ ५२४७ ॥ विवणिस्सेणी मज्झेणमागओ मंदिरम्मि जणयस्स । तो सो तं दटुं, उट्ठए लहुं संभमुन्भंतो || ५२४८ ॥ रईयकरकमलकोसो कंपंतो भणइ वणिगिहं एयं । तुम्हाण देवठाणं, रायगिहे नेव वणिभवणे ॥ ५२४९ ॥ गयचडिएणं पहुणा भणियं आवासमिह करिस्सामि । तं सोउमाह सेट्ठी देव ! इमं मंदिरं मज्झ ॥ ५२५० ॥ आवाससमुचियाई, पहूण रुंदाई रायभवणाई । आह पहू संकिन्ने, तुह घरे उत्तरिस्सामि ॥ ५२५१ ॥ रुट्ठासिरमज्झेण वि कुव्वंति पहुं निव्वत्ति तेणुत्तं । आह पहू तं चिय मं धरसि इहन्नत्थ गच्छंतं ॥ ५२५२ ॥ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० सिरिअणंतजिणचरियं इय जंपंतो उत्तरियहत्थिणो सेट्ठिणो गओ पासं । भयवसपक्खलियक्खरमनओ अनओ त्ति भणिरस्स ॥ ५२५३ ॥ किं ताय ! तुमं बीहसि, तुह तणओ चंदकंतनामो हं । बहुदिणविओयविहुरो, नमामि ईय भणिय तं नमइ ॥ ५२५४ ॥ निउणनिरूवणविन्नायनियसुओ वाहपवहवहभयणो । जंपइ किं जायइ इमं जुत्तं जं मं गओ मुत्तुं ॥ ५२५५ ॥ इय भणिरेणं उक्खिविय, गाढमालिंगिउं सुयं सेट्ठी । धरइ चिरं मा पुणरवि गच्छउ इण्हि ति कलिउं व ॥ ५२५६ ॥ संसुमुहिं सायरमवि पणमइ, पयकमलमिलियभालयलो । काउं व तदेगत्तं, गाढं तीए वि परिस्सत्तो || ५२५७ ॥ . एत्थंतरम्मि बहुया, सुवत्थविरइयविसालनीरंगी । सक्काभरणपहाहिं, भुवणं विज्जूहिं व भरंती ॥ ५२५८ ॥ सुरहि-विलेवण-परिमल-मिलंत-भमर-उल-रुणझुण-रवेण । गाइज्जति व्व पइव्वत्तपसरंतगुरुगव्वं ॥ ५२५९ ॥ चंकमणचलक्कमरणझणंतमंजीरमग्गलग्गेण । हंसउलेणं निम्मलसीलेण व अणुसरिज्जंती ॥ ५२६० ॥ सिंगारियचेडीचक्कवालचाडुवयणवारणक्खणिया ।। आगंतुं महितलियभालं पणमइ ससुरयस्स ॥ ५२६१ ॥ (कुलय) वच्छे ! सव्वुत्तमपुत्तपसविणी होसु इय सुयतयासी । नियभालं चुंबिचरणं, पणया सा सासुयाए वि ॥ ५२६२ ॥ भणियं च तीए तुह पुत्ति ! दिन्नदुस्सहकलंकपावेण । मह फलियमिह भवे च्चिय सुयनिग्गमदुसहदुक्खेहिं ॥ ५२६३ ॥ जं पुण तुह अकलंकं शीलं तस्सप्पभावओ पुत्ति ! । भत्ता मिलिओ जाया य उत्तमा रज्जरिद्धी ते ॥ ५२६४ ॥ निम्मलसीला वि तुमं, जं पुत्ति ! कलंकिया मए आसि । तं मह खमसु महासइसईण पढमो च्चिय वि हु सा ॥ ५२६५ ॥ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४११ तवोवरिचंदकंतकहाणयं इय भणिरिं सा सासुयमभिजंपइ किमिममंब ! उल्लवह । जं मह कुकम्मविलसियमेयं ता तुम्ह को दोसो ? ॥ ५२६६ ॥ एवमवरुप्परं खामिऊण ता तेहिं कुसलवत्ताओ । .. आउच्छियाओ नवनेहनिब्भरब्भिन्नपुलएहिं ।। ५२६७ ॥ तो न्हाण-भोयणाइप्पडिवत्ती गोरवेण कारविया । परिवारजुयस्स सुयस्स सेट्ठिणा दिट्ठहियएण ॥ ५२६८ ॥ वीसत्थेणं पिउणा तणओ उवविसिय पुच्छिओ एवं । एयट्ठाणाओ वच्छ ! तं गओ कत्थ मह कहसु ॥ ५२६९ ॥ तह कत्थ परिब्भमिओ, कत्थ व बहुया इमा तए पत्ता ? | अच्चब्भुयरज्जसिरी केण व एसा विइन्ना ते ? || ५२७० ॥ एयं सव्वं पि हु जाय ! कहसु जं मज्झ कोउयं गरुयं । तो तेण समक्खायं तं पिउणो विगयगव्वेण ॥ ५२७१ ॥ सोउं सुयबहुयाणं चरियं, अच्छरियकारयं सेट्ठी । जंपइ सिरं धुणंतो, हरिसवसुल्लसियरोमभरो ॥ ५२७२ ॥ माइ-पिइ-पइकुलाई, सियकित्तिसुहारसेण बहुयाए । धवलीकयाई तह जह ससहरजोन्हाए गयणयलं ॥ ५२७३ ॥ तह तिव्वतवो विहिओ, गुरुगिरिगुहगब्भविहियवासाए । जह देवो वि इमाए, किंकरकरणीधरो जाओ ॥ ५२७४ ॥ कहमन्नहा विमाणं, काउं कल्लाणजनिवपासे । नेऊण सुयं दंसिय मुक्का एसा पहिडेण ॥ ५२७५ ॥ तुह वच्छ ! नियपियाविरहियस्स मित्तो व्व पुन्नपन्भारो । चलिओ सममेव झड त्ति दंसिया जेण जिणहरिणो || ५२७६ ॥ जिणवंदणप्पहावप्पहणियभोयंतरायकम्मस्स । हरिणा रयणविमाणेण मेलिया पिययमा तुज्झ ॥ ५२७७ ॥ जो सिंगारो दिन्नो हरिणो साहम्मिओ त्ति तुह जाया । तेण तुमं सकलत्तो वि अ सुररिद्धिं पि विडंबेसि ॥ ५२७८ ॥ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ सिरिअणंतजिणचरियं कल्लाणपुंजरन्ना, जं तं मंडलवइं कओ वच्छ ! । सो संचक्कारु च्चिय, तुह तणयं भविस्सरजस्स ।। ५२७९ ॥ ता पुव्वजम्मनिम्मवियरम्मसद्धम्मकम्मफलमेयं । विप्फुरियं धणिणो वि हु, जं तुह रज्जस्सिरी जाया ।। ५२८० ।। तेत्तं ताय ! तुह प्पसायओ सव्वमेव मह एयं । जं तरुणो नामेणेव अग्घए फलभरो भुवणे ।। ५२८१ ॥ इय अन्नोन्नपसंसापरायणा दिणदुग-तिगं तत्थ | ठाउं मंडलनाहेण, पणमिउं इय पिया वृत्तो ॥ ५२८२ ॥ देसे दविडे कंचीपुरीए नियरज्जलच्छिविच्छ्डुं । उवभुंजसु ताय ! जओ रज्जे पत्ते किमवरेण ? ॥ ५२८३ ॥ अज्जिज्जइ इय खणं, ता ताय ! न जाव लब्भए रज्जं । ता कंजिएण भुज्जइ, पाविज्जइ जा न पीऊसं ॥ ५२८४ ॥ इय जंपिय नियनिसेससयणसुहिसंगओ पिया नीओ । नियरज्जे सा लच्छी, भोज्जा जा होइ सयणाण ।। ५२८५ ॥ काराविओ पवेसो, महरिहरिद्धीए नियपुरीए से । ईयरो वि गोरविज्जइ, आणीओ किं पुणो जणओ ॥ ५२८६ ॥ अत्थाणे उववेसिय, अप्पर सव्वं पि रायलच्छि से । अहवा जणणी-जणयाणा भव्वा भवइ पुत्तसिरी ॥ ५२८७ ॥ जणुत्तं पुत्तय ! रज्जमिणं मज्झ तुह पिया जमहं । ता तं चिय परिपालसु अहं तु धम्मं अणुट्ठेमि ॥ ५२८८ ॥ ईय जंपिऊण अम्मापिऊणि तिक्कालमच्चयंति जिणं । वंदणय - पडिक्कमणाइं गुरुसयासम्मि कुव्वंति ॥ ५२८९ ॥ नीईए चंदकंतो वि पालए निययमंडले सत्तं । चरडे ताडइ दुट्ठे य दंडए महइ नयवंते ॥ ५२९० ॥ कल्लाणपुरे गंतुं जणओ, कल्लाणपुंजनरवइणो । अभिदंसिओ तओ सो, तेण वि सम्माणिओ दूरं ।। ५२९१ ॥ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं भणियं च तुज्झ तणयं, रज्जं जं पुत्त ! पुत्तओ तुह जो । सो मह रज्जस्सामी होही इह नत्थि संदेहो ।। ५२९२ ।। चंदजसेत्तं देवसंतियं सव्वमवि जओ देवो । अन्नायस्स वि वियरइ, रज्जसिरिं मज्झ तणयस्स ॥ ५२९३ ।। केत्तियमेत्ताई वि वासराई तत्थच्छिउं निवाणाए । सो चंदकंतमंडलवई सजणओ गओ सपुरिं ॥ ५२९४ ॥ कइयादि चंदमंडलसुहसिविणयसूइयं सुयं देवी । चंदावली पसूया लग्गे सत्तग्गहबलम्म ॥ ५२९५ ॥ विहियं वद्धावणयं विलसंतविलासिणी, विहियनटं । पविसिरअक्खयपत्तं, परिवज्जिरमंजुलाउज्जं ॥ ५२९६ ॥ पूरऊण जिणिंदे, सयणे सम्माणिउं महियमित् । पुत्तस्स कयं नामं, पिओ पिउणा चंदसेणो त्ति ।। ५२९७ ॥ अणुदिणमवि परिवद्धिउमारो सुनयनिवजसेण समं । परिपाढिओ य पिउणा, सयलं पि कलाकलावं सो ॥ ५२९८ ॥ तो संपत्तो हंकारमंदिरं, विक्कमुक्करिसट्ठाणं । सव्वंगजायसोहं, कुमरो तारुन्नमइरम्मं ॥ ५२९९ ॥ कल्लाणपुरे कईया, वि मंडलेसरस्स चंदकंतस्स । पिइ - माइ - पिया - सुयसंगयस्स वच्चंति दिवसाई ।। ५३०० ।। अह अन्नया य दुंदुहि - निनायमायन्निरं भणइ राया । पडिहार ! कत्थ दिव्वो दुंदुहीसद्दो त्ति मह कहसु ॥ ५३०१ ॥ नाउं विन्नत्तं तेण देव ! इह मयणमहणमुणिवइणो । कुव्वंति महिमममरा उप्पन्न अणंतनाणस्स ॥ ५३०२ ॥ तं सोऊणं कल्लाणपुंजरायाह चंदकंताई । मंडलियमंतिणो चलह केवलिक्कमनमई करिमो || ५३०३ ॥ आएसो त्ति भणित्ता झड त्ति सव्वे वि पउणया होउं । गुरुरिद्धिवित्थरेणं सयसयप्पासायमणुपत्ता ॥ ५३०४ ॥ ४१३ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ सिरिअणंतजिणचरियं । तो नरनाहो मय-चंचलुद्धमुद्धालिवलयकलियकडे । आरूढो सिंगारियगिरिगरुयगइंदरायम्मि ॥ ५३०५ ॥ सियछत्तरियरवीरमणीकरचलिरचमरकयसोहो । करिघडरहवूहहयोहजोहसंदोहसोहघरो ॥ ५३०६ ॥ नियरिद्धिभरविडंबियसक्को रिउचक्ककयमणधसक्को । कुसुमावयंसयम्मि य रम्मुज्जाणम्मि संपत्तो || ५३०७ ॥ पेच्छइ पिसंडिपंकयकयासणं अमरधरियसियछत्तं । कणयाभं आसणपहपिंगं पिव केवलिं तत्थ ॥ ५३०८ ॥ विलसंतकेवलं पि हु सुहयरसाहुरईय परिवारं । संतावयं पि सययं उप्पाईय सव्वजणसोक्खं ॥ ५३०९ ॥ तं दटुं मुंचइ पंचसयचिंधेहिं सहकरेणुवाहाणं । विसइ सहमुवउत्तो राया रइयुत्तरासंगो ॥ ५३१० ॥ सह मंडलीय-सामंत-मंतिअंतेउरीहिं केवलिणो ।। कयतिप्पयाहिणो पणमिऊण पुरओ समुवविट्ठो ॥ ५३११ ॥ पहुणा वि सुरासुरसह ठिएण घणगज्जिरमहुरसद्देण । सद्देसणा नरिंदं उद्दिसिऊणं समारद्धा ॥ ५३१२ ॥ तो नरवइ आयन्नसु, संसारे संसरंतसत्ताणं । कालो अणंताणंतोणंतकाएसु अइक्कमइ ॥ ५३१३ ॥ तत्तो य उव्वट्टाणं पत्तेयं ते असंखकालठिई । एस च्चिय विन्नेया पुढवी-दग-अनल-अनिलेसु ॥ ५३१४ ॥ तत्तो य वेइयासुहकम्माओदियम्मि ईसि सुकयम्मि । पावंति जंगमत्तं, तम्मि य पंचिदियत्तं च ॥ ५३१५ ॥ तम्मि वि मणुस्सभावो दुल्लंभो सो वि आरिए खित्ते । तत्थ वि सुकुलुप्पत्ती, तीए वि निरुया सरीरट्ठिई ॥ ५३१६ ॥ देहारोगत्तम्मि वि, अविप्पयारयगुरूणमागमणं । जायम्मि तम्मि दुलहं, गुरुपयपउमंतिए गमणं ॥ ५३१७ ॥ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ४१५ एवं कल्लामाणं, सामग्गी उत्तरोत्तरा होइ । केसि पि सउन्नाणं, जायासा बुज्झ सव्वा वि ॥ ५३१८ ।। ता सुणह भवविलासो, नारय-तिरि-नर-सुरस्सरूवो वि । निस्सेसदुहट्ठाणं, पायं पावेण पाणीणं ॥ ५३१९ ॥ पारद्धिपरा मुहु-मज्ज-पाइणो मंस-भोइणा कूरा । थी-बाल-लिंगि-वह-कारिणो य घणगहणदित्तदवा ॥ ५३२० ॥ . निक्कुट्टेमि सयं चिय, सबालवुड्ढे विरिओ नरतिरिच्छे । देसे विनिद्दहिस्संति, रोद्दट्टज्झाण-गुरुपावा ॥ ५३२१ ॥ इच्चाइमहापावेण भारिया जंति नरय-पुढवीसुं ।' सत्ता सहति सययं, तासु महाणुब्भवं वियणं ॥ ५३२२ ॥ संकडमहघडियालयपोढंगायट्टणुब्भवं दुक्खं । तो तिव्ववज्जकंटयसिलायलप्फालणदुहं च ॥ ५३२३ ॥ तद्देहुक्कत्तियमंसभोयणं तत्ततउरसप्पाणं । । कुंभीपयणं करवत्तदारणं खंडणं सयहा ॥ ५३२४ ॥ पज्जलिरतंबरससरियतारणं पीलणं च जंतेहिं । धंतग्गि-वन्नपित्तल-पुत्तलियालिंगणं च सया ॥ ५३२५ ॥ असिपत्तवणनिवाडियपत्तच्छिज्जंतगत्तभवपीडं । ईय परमाहम्मिकयमन्नोन्नुद्दीरणभवं च ॥ ५३२६ ॥ पहु ! मा मारह अम्हे दासे निए त्ति जंपिरा दीणं । अइविरसमारसंता वि नेव पावा उ छुट्टति ॥ ५३२७ ॥ तिरिय-नर-भवंतरियासु भमियसत्तसु वि नरय-पुढवीसु । कल्लाणभायणत्तेण के वि पावंति जिणबोहिं ॥ ५३२८ ॥ सेवइ सुहिं सकज्जे, कयकज्जो जो तमुज्झए झ त्ति । पिसुणो माया बहुलो, तिरियगई जाई सो सत्तो ॥ ५३२९ ॥ तत्थेगिदियसत्ताजल-दल-फल-कुसुम-इंधण-कणत्थे । विसहंति वेयणाओ, अनिलानलमद्दियच्छेय ॥ ५३३० ॥ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ सिरिअणंतजिणचरियं हम्मंति वराडयसंख-सुत्तिकज्जे बिइंदिया पायं । किमिगंडोलयपमुहा य ओसहाइप्पयाणेण ॥ ५३३१ ।। तेइंदिया य मंकुण-लिक्खा-जूयाइया अणज्जेहिं । मारिज्जति वराया तावाइसु खिविय खट्टाइं ॥ ५३३२ ॥ जंति खयं चउरिंदियजीवा धूमाईहिं मसगाई । मच्छिय-कुत्तिय-भामर-महुकज्जम्मि य जलणजोगा || ५३३३ ॥ पंचिंदिया उ तिरिया, तिहिं पयारेहिं हुंति विन्नेया । एगे जलुब्भवा, थलभवा चार-नहयरा अन्नो || ५३३४ ॥ जलजंतुणो कुलीरा मयरा कुंभीर-मच्छया-हरिणो । इच्चाइणो परुप्परभक्खणदुक्खाई पावंति ॥ ५३३५ ।। जलगब्भपरिब्भमिरे जालगलाईहिं कड्ढिउं कूरा । मंसासिणो विणासंति, जलयरमंसरसलोले ॥ ५३३६ ॥ थलचारिणो य जीवा, सस-संबर-हरिण-सूयराईया । डज्झिरदेहादवपावएण पावंति पंचत्तं ॥ ५३३७ ॥ अवरुप्परवेरविरुद्धबुद्धिणो माण-कोवकलुसमणा । झिज्जति जुज्झिऊणं, खरयरपयनहरपहरहया ॥ ५३३८ ॥ के वि हु परुप्परं भक्खणेण पारद्धिया हया अन्ने । अवरे उच्छलियछुहा तिसाहिं खीणा खयं जंति ॥ ५३३९ ॥ अवरे पुण दहणंकण-बंधण-वह-वाहयोहदुहहियया । पावंति गुरुकिलेसं दुस्सहबहुवाहिविहुरा य ॥ ५३४० ॥ एवं अकामनिज्जरनिज्जरियअसायभूरिकम्मभरा । सम्मत्ताइगुणाणं, अन्नयरं के वि पावंति ॥ ५३४१ ॥ जे दाणव्वसणपरा अप्पकसाया य सरलया कलिया । नेमत्थत्थाइगुणाहिं संगया जंति मणुयगई ॥ ५३४२ ॥ तत्थ वि य रुंददारिद्ददुग्गदोहग्गदूमिया दूरं । रोगायंकव्वसावडिया य सहति दुहनिवहं ॥ ५३४३ ॥ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१७ तवोवरिचंदकंतकहाणयं एगे परपेसत्तं कुणंति अन्ने उ अवरपहुसेवं । अन्ने पुणो कुकम्मादुहाई. पावंति जा जीवं ॥ ५३४४ ॥ केसि पि पिय-विओगो अन्नेसिमणिठ्ठलोयसंजोगो । केसि पि लच्छिभंगो, अन्नाणं पुणो महारोगो ॥ ५३४५ ॥ सोक्खं न ईसराण वि निवगोत्तिय-चोर-चरडचक्केण । लुटिज्जंता ण सया धणरक्खा बद्धलक्खाण ॥ ५३४६ ॥ कस्स वि अविस्ससंता सयं पि कम्मयरसमुचियं कम्मं । कुव्वंति निसिनिसीहे, वणनिक्खणणुक्खणणपमुहं ॥ ५३४७ ।। वित्थारिय रिद्धीण वि समत्थिसोक्खं नरेसराण वि नो । अवरावररज्जसिरी, संगहलोहट्टचित्ताण ॥ ५३४८ ॥ को वि अभज्जो ति दुही अवरो असुओ त्ति निद्धणो त्ति परो । अवरो नियपरिभूओ त्ति को विमुक्खो त्ति पाएण || ५३४९ ॥ एवं मणुयगईए वि न सुहं जे पुण विवेइणो जीवा । वत्थुस्सरूवपरिभावणेण कुव्वंति ते धम्मं ॥ ५३५० ॥ तव-नियम-व्वय-निरया सामन्नपरा विइन्नदाणा य । अन्नाणकढिणो वि य जीवा वच्चंति परलोयं ॥ ५३५१ ॥ अच्छराणुरत्तामरा परपहुत्तस्स दूरमसहंता । ईसा-विसायविहुरयमसच्चं भजति तत्था वि ॥ ५३५२ ॥ मोढामरं नियंतं नियं पियं साणुरायनयणेहिं । निग्गहिओ असमत्था रोसहुयासेण डझंति ॥ ५३५३ ॥ अकुणंतो हरिआणं ताडिज्जति य पविप्पहारेण । . विसहति महा तावं छम्मासे जलणपडिय व्व ॥ ५३५४ ॥ सुरसामिणो वि न सुहं, समत्थि जं पणय-कुवियकंताए । भावज्जणं कुणंतो, विसहइ अवमाणणं बहुसो ॥ ५३५५ ॥ जण-चवण-जम्म-दिक्खा-केवल-निव्वाण-ऊसवेसु सुरा । उवओगं गच्छंति तेण ते सलहणिज्जंति ॥ ५३५६ ॥ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ सिरिअणंतजिणचरियं इय चउसु वि संसारुब्भवासु न गईसु सोक्खलेसं पि । पावइ पाणी मुत्तुं पंचमगइमीसिपब्भारं ॥ ५३५७ ॥ देव-गुरु-धम्म-तत्तेहिं तं पि पावंति पाणिणो भव्वा । सत्था वि मच्छरावज्ज, भीरुणो दाणचित्ता य ॥ ५३५८ ॥ तत्थ गयरायरोसो अणंतनाणी परोवयारी य ।। देवो पवज्जियव्वो अरिहंतो भव्वभवहारी ॥ ५३५९ ॥ जो एय गुणविहूणो सो सयमवि मज्जिरो भवसमुद्दे । कह तारिही समस्सियसत्ते ता चयह तं देवं ॥ ५३६० ॥ ससमयपरसमयन्नू पंचविहायारविरयमणवित्ती । निग्गंथो गीयत्थो, संतो दंतो गुरूगज्झो ॥ ५३६१ ॥ जे उ महारंभपरिग्गहा य, कोहाइकलुसया कलिया । सिस्साण गुरूण य नत्थि अतरंता न ते गुरुणो ॥ ५३६२ ॥ पाणिवहालिय-अदत्त-मेहुणाणं परिग्गहजुयाणं । परिहारो कारइ जम्मि सो सिवं साहए धम्मो ॥ ५३६३ ॥ जम्मि पुणो एयाणं पालिज्जइ नेगम वि अहम्मे सो । कुगइपहपत्थियाणं, पाणीणं सुत्थसत्थाहो ॥ ५३६४ ॥ तत्तं जीवाजीवाइ, नवविहं केवलीहिमक्खायं । जं पुण कुतित्थियुत्तं तमतत्तमसेसमविसेसं ॥ ५३६५ ॥ देव-गुरु-धम्म-तत्त-स्थिरत्तणे होइ सुद्धसम्मत्तं । बीयं च धम्म-कप्पडुमस्स सुरसिद्धिसुहफलयं ॥ ५३६६ ॥ एयं अपत्तपुव्वं, पायं पाणीण इह भवावत्ते । अप्पभवो भववासो, हुतो जमिमेण पत्तेण ॥ ५३६७ ॥ एयमपुव्वं भव्वा जइ, जइ-धम्मं कुणंति दसहा वि । तं तब्भवे वि मोक्खं, पावंति पणठ्ठट्ठकम्मा ॥ ५३६८ ।। अतरंता सामन्नं, काउं कमदिन्नसिद्धिसंबंधं । गिण्हंति देसविरई, विसुद्धसम्मत्तसंजुत्तं ॥ ५३६९ ॥ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ईय तुम्ह साहु - सावय- धम्मो सिव- साहओ समक्खाओ । सव्वायरेणमायरह, जत्थ इच्छा तयं तुब्भे ॥ ५३७० ॥ गुरुणो खीरोयहिणो व्व पात्रिउं देसणं सुहं व सुहं । पत्ता भव्वा विबुह व्व सव्वदुक्खावहारखमं ।। ५३७१ ।। ता केहिं वि पव्वज्जा गहिया अवरेहिं देसविरइं वि । अन्नेहिं पुणो सम्मत्तमुत्तमं भव्वसत्तेहिं ॥ ५३७२ ॥ कल्लाणपुंजपुहईवइणा, पणमिद पहू इमं भणिओ । भणिओ गिहिस्समहं दिक्खं पहु ! पुत्तं ठविय रज्जम्मि ॥ ५३७३ ॥ तो चंदकंतमंडलवई वि, पिइ - माइ- पणइणीसहिओ । वयगहणलालसो नमिय केवलिं पुच्छए एयं ॥ ५३७४ ।। पहु ! निम्मलसीलाए वि बहुयाए सासुयाए अइदुसहे । दुस्सीलया कलंको दिन्नो किं कारणं कहह ? || ५३७५ ॥ तो केवलिणा भणियं सुहमसुहं वा जमज्जियं जेण । पावइ जीवो सो तं ता सुणसु कलंकहेउं तं ॥ ५३७६ ॥ इह अत्थि अस्थिजणदिन्नदाणसंपत्तजसजणट्ठाणं । गामो विद्दुमरम्मो सिंधु व्व वसंतसोहो वि ॥ ५३७७ ॥ तत्थावसइ वसंतो नामेण वरुत्तरो धणि व्व धणी । एगपविसक्कं पि हु जो हसइ पवित्तया वासो ॥ ५३७८ ॥ तस्सत्थि वसंतसिरी नामेण पिया वसंतलच्छि व्व । सुमणों विलसिरवच्छा, कलकंठविरायमाणा य ॥ ५३७९ ॥ ता णत्थि हत्थि हत्थत्थोरभुओ विस्सओ भुवणगब्भो । पुत्तो वसंतदेवो., वियसंतनओ वसंतो व्व ॥ ५३८० ॥ निवसइ तत्थ वि य वसंतरायनामो अरन्नदेसो व्व । विरायमओ गुरुचित्तो हरिसहिओ सुहसरो य धणी ॥ ५३८१ ॥ संज्झ व्व तंबिरनहा, वरचरणा साहुणि व्व से जाया । जाया वसंतलच्छी, हंसगई पाउसठि व्व ॥ ५३८२ ॥ ४१९ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० सिरिअणंतजिणचरियं तीए वसंतसेणाभिहा सुया अस्थि हत्थिकुंभथणी । . सेणा विव सुहयगया सयत्थ जुत्तो ससुर-हसिया ॥ ५३८३ ॥ नवजोव्वणपक्खोहियजुवाणजगमाणसा सहसहीहिं । कीलंती सच्चविया, वसंतदेवेण उज्जाणे ॥ ५३८४ ॥ तं दठूण रईए वि, नियरूवुप्पाइया रईकन्नं ।। कन्नताइड्ढियकामबाणलक्खम्मि पत्तो सो ॥ ५३८५ ॥ चिंतइ धन्नो सो च्चिय, वररूवा जस्सेसा पिया होही । कप्पलयाए किमन्नोऽलंकिज्जइ मंदरं मुत्तुं ॥ ५३८६ ॥ जो पुव्वजम्मनिम्मवियगुरुतवो तस्सिमा पिया होही । अहवा नन्नो नाहो रवि विणा होइ नलिणीए ॥ ५३८७ ॥ तीए वि बालाए पकीलिरीए सो वि हु वयस्स विसरजुओ । सच्चविओ रइरमणी, रहियतणू कुसुम-बाणो व्व ॥ ५३८८ ॥ नयणनिमेसुम्मेसा विरया तइंसणेण बालाए । तइंसणंतरायं व मन्निउं तीए सुकव्वं ॥ ५३८९ ॥ चिंतइ किमिमो अमरो अह व न सो ते जओ अणिमिसच्छा । एसो उ निमेसुम्मेसअच्छिविच्छोहसच्छाओ ॥ ५३९० ॥ स च्चिय सलाहणिज्जा उल्लसिरपयोहरा अणिमिसच्छी । जा पयस्सुच्छंगरमिही गंगजल व्व हिमसेले ॥ ५३९१ ॥ सा उज्जलगुणकलियासु मणोहरमालिणीसुवन्ना य । विब्भमरसियामाल व्व कंठामयस्स जा लहिही ॥ ५३९२ ॥ सो अवियन्हो तं नियइ सा वि तं पेच्छए स तण्हच्छी । लज्जादसणविग्घो त्ति तेहिं ता नज्जेउमिव मुक्का || ५३९३ ॥ अन्नोन्ननेहनिद्धच्छिपेच्छणुप्पन्नपरमहरिसमणे । जाया महई वेला ताण समुल्लसिय मयणेण ॥ ५३९४ ॥ महई वेलं ठाउं, सवयंससहीयणोवराहेण । चलियच्छिपेच्छिराई दुन्नि वि चलियाई सगिहेसु ॥ ५३९५ ॥ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२१ तवोवरिचंदकंतकहाणयं संजायं अइदुसहं दोण्ह वि वंकावलोईयंताण । अहवा वंका सुहया न हुंति कईया वि कस्सावि ॥ ५३९६ ॥ उव्वेओ उम्माओ रणरणओ ताण से वया जाया । अच्चतमणिट्ठाण वि अवयासो होइ कईया वि ॥ ५३९७ ॥ . नाउं सहीसयासा वसंतराओ वसंतदेवम्मि । अणुरत्तं देइ सुयं घडणा इट्ठाण वा जुत्ता ॥ ५३९८ ॥ पोढाणुराइणी सा परिणीया तेण घणसिमेहेण । नावरमवि लब्भंतं मुच्चं किं पुण पियं कंतं ॥ ५३९९ ॥ तीए सह विविहविसयप्पसत्तचित्तस्स तस्स वच्चति । नवनेहरसपरव्वसमणस्स दिवसा मुहुत्तं व ॥ ५४०० ॥ ईसरसुय त्ति पइवल्लह त्ति रूवस्सिणि त्ति बहुमए । विणयपराए वि ईसीसि सासुया वहइ विद्देसं ॥ ५४०१ ॥ निय जणयाएसेणं गहिऊण कयाणयाई कइया वि । सत्थेण समं चलिओ, वसंतदेवो वणिज्जेण ॥ ५४०२ ॥ पउणीहूया बहुया वि भत्तुणा सह विएसगमणत्थं । तो पुत्तो संलत्तो जणणीए पवाससमयम्मि ॥ ५४०३ ॥ विसमो वच्छ ! विएसो दुग्गो मग्गो ससावया अडवी । सुहिणो वि सकज्जरया, धाडीओ पडंति सबराण ॥ ५४०४ ॥ सत्थियनरा वि कुव्वंति चोरियं धुत्तयंति धुत्तनरा । पासंडिणो वि लुद्धा मुद्धजणं विप्पयारंति ॥ ५४०५ ॥ अवलोयंति निवा वि हु, छिड्डाई सुकचोरियाईणि । गहिऊण धणं भिच्चा वि नासिउं जंति सहस त्ति ॥ ५४०६ ॥ सयणा वि हुति रिउणो अपुन्नमणवंछिया खणद्धे वि । कित्तिमकयाणुराया वेसाओ वि लिंति सव्वस्सं ॥ ५४०७ ॥ अक्खिविउं जूएणं जूययरा निधणं कुणंति नरं । वयणच्छलेण मारंति साइणी-भूय-वेयाला ॥ ५४०८ ॥ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪રર सिरिअणंतजिणचरियं दूरम्मि वच्छ ! एसा बज्झसरूवा अणत्थपत्थारी । नियदेहस्स वि विसए विस्सासा नो विहेयव्वो ॥ ५४०९ ॥ जं एसो वि विणस्सइ, अच्चंतपहस्समुत्थदोसेण । अइमत्ताहारेण य वि णिद्दयाईहिं दोसेहिं ॥ ५४१० ॥ गच्छेज्ज वच्छ ! पच्छा पुरओ वामापहम्मि सत्थस्स। जेणोभयत्थविभओ, तक्कर-सावयभयो भवइ ॥ ५४११ ॥ ता गंतव्वं तुमए जाय ! सया अप्पमत्तचित्तेण । होइ न जहोवहासो, जसो य जह दूरमुल्लसइ ॥ ५४१२ ॥ अवरं च मुंच बहुयं, इहेव जं दुग्गमग्गलग्गेण । विसमम्मि समावडियम्मि, होइ पयबंधणं महिला ॥ ५४१३ ॥ अप्पाणयं सुरक्खं, जायइ पुरिसस्स तविहीणस्स । समयाणुवत्तणं अवसरमाणस्स सहस त्ति ॥ ५४१४ ॥ तं सोउं सा कुविया, पयंपिउं कक्कससमारद्धा । रोसावेसवसाणं कत्तो महुरा समुल्लावा ? ॥ ५४१५ ॥ आपावे ! दुस्सीले ! दुढे ! घरहंजिए ! अणज्जे तं । कुव्वंती महवल्लहविच्छोहं तं लहेज्ज सयं ॥ ५४१६ ॥ दुस्सीलत्तस्सवणेण दूमिया सासुया अईव मणे । तप्पच्चईयं तिव्वं बहुयाए वि अज्जियं पावं ॥ ५४१७ ॥ सा सासुयाए भणिया जइ वच्छे ! जुत्तमवि पउन्ना तं । रूससि ता सममेव य मह तप्पएणं कुणसु गमणं ॥ ५४१८ ॥ सव्वो वि जणो जाणइ, दुव्वयणाई पयंपियं किंतु । नियतणयप्पत्थाणे करेमि कह कलहअवसउणं ॥ ५४१९ ॥ जेसिं दुहलेसम्मि वि सुराणमोवाईयाई दिज्जति । किज्जंति कहमसउणा तेसिं पुत्ताण पत्थाणे ॥ ५४२० ॥ इय जंपिय दहियक्खय-दुव्वा-दल-मंगलाई काऊण । सासीवायं पुत्तो, धणज्जणे तीएऽणुन्नाओ ॥ ५४२१ ॥ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं देवगुरूणं अम्मापिऊणनियगोत्तदेवयाओ य । नमि सपिओ वि गओ सत्थम्मि समुद्ददत्तस्स ।। ५४२२ ॥ माऊऱछत्तअंतरियदिणयरं गुरुतुरंगमारूढं । निययागमणं सत्थाहिवई पणमित्तु विन्नवइ ॥ ५४२३ ॥ सम्माणिय तं जंपइ सत्थाहो वच्छ ! वाहणाईयं । सव्वं पि तुज्झ तणयं तं गिण्हसु जेण कज्जं ति ॥ ५४२४ आएसो त्ति भणित्ता गच्छइ सो सत्थ मज्झभायठिओ | अक्खंडपयाणेहिं पत्तो सत्थो अडइमज्झे ॥ ५४२५ ॥ बहुपत्तसाहिसाहासहस्ससंरुद्धरविकरप्पसरं । उच्छलिय-तरच्छ-मयच्छ-भल्ल - भल्लुंकिदुग्गं जं ॥ ५४२६ ॥ हरिकरयलं व जं वराईयं वरसरं सुकंठं व । विलसिरनयपत्तजुयं विरायपरायनयरं व्व ॥ ५४२७ ॥ तं मज्झं गच्छंतो सुलहिंधण - जव- सजलजुए ठाणे । आवासइ सत्थाहो, भोयणवेलाए जायाए ॥ ५४२८ ॥ खंडण - रंधण-भोयण - करणलग्गे समग्गसत्थम्मि । सहस त्ति पुलिंदाणं, धाडी पडिया चडयरेण ॥ ५४२९ ॥ जा सरभरकिरणपरा सबरा पसरंति सत्थभडसमुहा । ता नरनारी नियरो, सत्था पलायए भइरो || ५४३० || किं कायव्व विमूढे, नट्ठभडे एक्कगम्मि सत्थाहे । इंटिज्जते सत्थे, नाहलनियरेण सव्वत्तो ॥ ५४३१ ॥ तो झत्ति मग्गधूली, अभिमंतेउं वसंतदेवेण । सत्यं लुंटंताणं, खित्ता समुहा पुलिंदाणं ॥ ५४३२ ॥ तम्मंतपभावेणं, सव्वे वि य थंभिया सबर - सुहडा । अचलंगा संजाया, पुत्थविणिम्मविय देह व्व ॥ ५४३३ || बाहरिउं सव्वं पि हु, सत्थजणं भणइ निय-नियं दव्वं । परियाणिऊण गिण्हह, थंभियभिल्लस्सयासाओ || ५४३४ ॥ ४२३ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ सिरिअणंतजिणचरियं तो ते विम्हियहियया, घित्तुं दव्वं नियं नियं बिंति । अच्छरियं अच्छरियं, नियह अहो एय नरमणिणो ॥ ५४३५ ॥ कयरयनिक्खेवेण वि इमेण परिकीलिय व्व निक्कंपा । चोरा कया अचिंतं जं मणिमंतो सहिप्फुरियं ॥ ५४३६ ॥ चोराणमाउहाणि वि गहियाई बंधिऊण ते नीया । निरुवद्दवम्मि ठाणे, मुक्काओ कीलिउं तेण ॥ ५४३७ ॥ सम्माणिऊण सत्थाहिवेण भणियं वसंतदेव ! तए । पाणेहिं समं सत्थियजणस्स वित्तं विइन्नं ति ॥ ५४३८ ॥ तेणुत्तं सत्थाहिव ! सव्वमिमं तुम्ह पुन्नविप्फुरियं । हुंति य लाहालाहा पाणीणं पुन्नपावेहिं ॥ ५४३९ ॥ वच्चइ वसंतदेवो समग्गसत्थेण गोरविज्जतो । पत्तो य सत्थवाहो कमेण सोहग्गपुरनयरे ॥ ५४४० ॥ जं कय नायवियारं कइकुलकलियं विचित्तिया वासं । चारुमहीहरदुग्गं, विरायए रन्नमज्झं व ॥ ५४४१ ॥ जं परिपालइ राया रायामलजोन्हसन्निहजसोहो । . सोहग्गसुंदरो उभयहा वि गुरु नायविक्खाओ ॥ ५४४२ ॥ गुरुगुडरपडमंडवचउखंडयपडकुडीसु सत्थवई । दाउं तत्थावासं, कयभोयणपमुहकरणिज्जो ॥ ५४४३ ॥ रायउवायंणकज्जे गहिऊणं चारुवत्थवित्थारं । पत्तो रायउलं सह, वसंतदेवेण सत्थवई ॥ ५४४४ ॥ पत्तो पडिहारमहिं, पेच्छइ पडिहारमइसयुव्विग्गं । पुच्छई य जमुवेयस्स कारणं कहह तं मज्झ ॥ ५४४५ ॥ तेणुत्तं अवियाणियसरूवरोएण पीडिओ राया । पज्जंतदसं पत्तो दुहेण से दुक्खिओ लोगे ॥ ५४४६ ॥ वेज्जेहिं विचिगिच्छाओ, कयाओ नाणाविहाओ सव्वेहिं । वाहाए मूलियाओ, बद्धाओ माणसणाहाओ ॥ ५४४७ ॥ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२५ . तवोवरिचंदकंतकहाणयं विहियाई मंतजंतोवयारणाई व मंतवाईहिं । रइयाई संतिकम्माई, बलिविहाणं दिसासु कयं ॥ ५४४८ ॥ गहपूया चच्चर-पूयणं च, पियतप्पणं जलपूया । कुलदेवया समाराहणाईयं विहियइ बहुसो ॥ ५४४९ ॥ सप्पाडिहेरदेवाण, भूरि उवजाइयाई भणियाई । जाणगजणोवइटें अणुट्ठियं सव्वमवि सययं ॥ ५४५० ॥ दूरं कुमंतिए.हिं कयत्थिया नियनहेहिं निवनासा । सह करकणिट्ठियाए पक्कवणा पीडइ जहा तं ॥ ५४५१ ॥ रज्जमपुत्तयमेयं न रज्जपत्तं समत्थिगोत्ते वि । एएण कारणेणं सत्थेस ! वयं विसन्न त्ति ॥ ५४५२ ॥ तं सोऊणं सत्थाहिवो वि दूरं विसायमावन्नो । जंपइ वसंतदेवं, जाणसि तं मित्त ! किं किं पि || ५४५३ ।। तेणुत्तं जो पत्तं कयस्थए संभवाईओ सो किं । सो च्चिय मंतन्नू जो दोसं निग्गहइ दूरठिओ ॥ ५४५४ ॥ ता मह दंसह देवं जहा अहं जाणिऊण तद्दोस । काहामि तं अरोगं, जइ विप्फुरिही पयाभग्गं ॥ ५४५५ ॥ तं सोउं दोवारियनरेण नियनायगस्स विन्नत्तं । तेणा वि संतिणो तो नीया ते दो वि पासाए ॥ ५४५६ ॥ पेच्छंति तत्थ सामंत-मंति-मंडलियपमुहजणविंदं । करसन्नाए कज्जाई, कारयंतं न वायाए || ५४५७ ॥ वारंतं च पविसिर निग्गच्छिर लोयपयपयाररवं ।। निवजोग्गओसहाई, सयमेव य पउणयं तं च ॥ ५४५८ ॥ ठाणे ठाणम्मि महायणाइलोयम्मि मंतयंतम्मि । निस्सद्दे बंदियणे, अवज्जिरे मंगलाउज्जो ॥ ५४५९ ॥ आयंबिरनयणाणुमियरोयाण वामकरगयकवोले । अंतेउरे सासाए अविहववलये कलंकारे ॥ ५४६० ॥ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ सिरिअणंतजिणचरियं ५४६१ ॥ मोणट्ठिए महल्लयवग्गे रुइरे य दासदासगणे । कुलवुड्ढा विसरम्मि य दूरे परिदेवयंतम्मि ं ॥ दीणम्मि दूयनियरे, साममुहे मित्तमंडले सयले ! पुच्छिज्जंते आयरपुरस्सरं जाणयजणम्मि ॥ ५४६२ ॥ ते दोन्नि वि पडिहारेण, दंसिया मंतिणो तओ तेहिं । पणओ सो उवविट्ठा, य ते तयाणाए तप्पुरओ || ५४६३ || भणियममच्चेणमहो, जं जाणह तं करेह निवविसए । जीवाविऊण निवइ, तुब्भे जीवावह जयं पि ।। ५४६४ || जंपर वसंतदेवो पहू सपुन्नेण होहिही निरुओ । ता सुरहिकुसुममालं एक्कं मह मह इण्हिमप्पेहा ॥ ५४६५ ॥ तो तस्स अप्पिया सा, तेण वि अभिमंतिउं तमिय भणियं । जह न वियाणइ राया, तह तक्कंठे इमं खिवह ॥ ५४६६ ॥ काराविय तब्भणियं, वसंतदेवस्स मंतिणा कहियं । पत्तो वसंतदेवो ससत्थनाहो निवसयासे ।। ५४६७ ॥ तत्थोवविसिय सिक्खाबंधो विहिओ वसंतदेवण । रईऊण अप्परक्खं, पररक्खं कुणइ मंतत्तं ॥ ५४६८ ॥ वाहरिय मंति - सामंत - मंडलिए निवेसिय समीवे । जंप निवस्स दोसो, लक्खिज्जइ साइणीजणिओ || ५४६९ ॥ तल्लिंगाई इमाई दिठि, नरवइपरस्स दिट्ठीए । पहसइ रोयइ गायइ, पेच्छइ नहं अकयलक्खं ।। ५४७० ॥ आउरयं आवज्जइ, पइक्खणं तह जहा दसा अंतं । जंपइ य असंबद्धं, केसे य समारए विरहं ॥ ५४७९ ।। वारं वारं सीओ देहो, उन्हो य होइ अनिमित्तं । चउपासठियाहिं अहं निज्जामि इमाहिं उक्खिविरं ।। ५४७२ ॥ तोडिज्जंति य अंताई, मज्झ फालिज्जए य देहो वि । खज्जामि कत्तियाहिं, उक्कत्तियमंसखंडेहिं ॥ ५४७३ ॥ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ तवोवरिचंदकंतकहाणयं एवं पयंपणाईणि, भूरिलिंगाणि साइणे दोसे । जइ देह ताणमभयं, करेमि ता नीरु निवई ॥ ५४७४ ॥ भणियं मंतिपमुहेहिं, नरवई कुणसु रे. वरहियंगं । किं भणसि अभयमेत्तं तुहुत्तमवरं पि काहामो || ५४७५ ॥ तो मंडलए लिहिए उ ठिउ राया अणिच्छमाणो वि । जंपतो फेडह लोहसंकलं मज्झ कंठाओ ॥ ५४७६ ॥ पाहणसिलोवरि सेडियाए मंतक्खराइं लिहिऊण । पहरेउं पारद्धो, वामो बाणप्पहारेहिं ॥ ५४७७ ॥ जह जह जंवं ताडइ, वसंतदेवो तहा तहा राया । मा मारह मा मारह, नियदासीओ त्ति जंपेइ ॥ ५४७८ ॥ ता साइणीहिं काहिं विमुक्को हरिहीरबंभवायाओ । दाउं मुयंति तन्नाओ तयणु जंतं नरं रईयं ॥ ५४७९ ॥ बंधेऊणं मुसलुक्खलढुगं वालरईयरासीए । तह ताडिउं पवत्तो, जह दीणं ताओ जंपंति ॥ ५४८० ॥ भो भो महायसनिवं, सलक्खणं विभइऊण भुत्तंगं । मोयाविंतो अम्ह भविस्ससिद्धिविग्घो त्ति होसि रिऊ ॥ ५४८१ ॥ तेणुत्तं भुत्तं पि हु जइ नो उग्गिरह मरह ता नूणं । ईय जंपिय सो लवणं मंतेण खिवइ जलणम्मि ॥ ५४८२ ॥ मुंचंति तओ काओ, वि दज्झिरदेहाओ दिन्नवायाओ । पोढाओ बिंति अज्ज वि, ज९ ता जालह जलणं ॥ ५४८३ ॥ तो रयणमई रइया पुत्तलिया तीए मंतमुच्चरिउं । छित्ता करंगुली भयणुसाइणीए वि पडिया सा || ५४८४ ॥ तो नासाइविकत्तणभएण सव्वेण साइणिजेणेण । दाऊणं वायाओ मुक्को, राया ठिओ निरुओ ॥ ५४८५ ॥ दळूण मंतजंतोवक्कममवणीवई भणइ मंतिं । . किं मंति ! इमं ति तओ सो नमिय निवस्स विन्नवइ ॥ ५४८६ ॥ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ सिरिअणंतजिणचरियं तं पुहु ! अपडुसरीरो तह जाओ जर न केणई नाओ । . दोसो एएण पुणो नाऊण झड त्ति निग्गहिओ ॥ ५४८७ ॥ जा सामि ! तुह अवस्था हुंती सा होउ मारिऊ पि । एसो पुण उवयारी, जेण सरज्जो तमुद्धरिओ ॥ ५४८८ ॥ तो रन्ना दिन्नं से तोसा घणरयणरम्ममाभरणं ।। वत्थाई विविहाई, सिरी य सछत्ता य तुरगा य ॥ ५४८९ ॥ तो अंदेउरमंडलियमंति-सामंत दो विदल्लेहिं । समहायजेहिं वत्थाहरणाई तस्स दिन्नाइं ॥ ५४९० ॥ सम्माणिय सत्थवई मुक्कं सुकं च समत्थसत्थस्स । दिन्नो उ य पासाओ वसंतदेवस्स भूवईणा ॥ ५४९१ ॥ सियछत्त लंकरिओ, वसंतदेवो तुरंगमारुहिउं । रायसहाए गंतुं नमइ सया वि हु महीनाहं ॥ ५४९२ ॥ कारविओ ववहारे वणिउत्तेहिं धणं समज्जेइ । ईय तस्स कत्तिया वि हु मासा सोक्खेण अइक्कंता ॥ ५४९३ ॥ अह अन्नया य सामलचउद्दसीदिणनिसीहसमयम्मि । काउं सरीरचिंतं जायसोयाओ उत्तिन्नो ॥ ५४९४ ॥ तो उट्टिमाणदेहाओ पिंगदिट्ठीओ बुब्बुयंतीओ । लंबिरगुरुकन्नाओ अयाओ पासइ चउपासं ॥ ५४९५ ॥ अच्चंतकालकायाओ महिसिमाणाओ किलिकिलिंतीओ । झंपाहिं भमंतीओ नहे निरिक्खइ बिडालीओ ॥ ५४९६ ॥ अवलोयइ इंतीओ, पासायस्सावि उच्चतरयाओ । करहीओ कन्नपुडकयकडुरडिया खरउद्धाओ ॥ ५४९७ ॥ करिणिसमुस्सेहाओ, धूसरदेहाओ उच्चकन्नाओ । सममारसमाणाओ खरंखरीओ नहे नियइ ॥ ५४९८ ॥ मुक्कलबालाओ पमुक्कपोक्कफेक्कारभेसियजणाओ । पेच्छइ आगच्छंतीओ, साइणीओ अतुच्छाओ ॥ ५४९९ ॥ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं भणिरीओ रे कुमंतिय ! आयड्ढतो मुहाओ अम्हाण । तईया नरिंदभक्खं छुट्टिसि कहमिहि जीवंतो ।। ५५०० || कइया वि दुब्बला वि हु बलवंता हुंति तो वयं मिलिउं । सव्वाओ साइणीओ पत्ताओ तुज्झ छलणत्थं ॥ ५५०१ ॥ दट्ठूण अयाओ बिडालियाओ उट्टीओ गद्दहीओ य । डमडमिओड्डामरडमरुयाओ तह साइणीओ वि ॥ ५५०२ ॥ साहिक्खेवं माणुसभासाए पयंपिरीओ दट्ठूण | चिंतइ वसंतदेवो निसीह समए हमेगागी || ५५०३ || तेरिच्छीरूवतिरोहियाण पच्चक्खमाणवीणं च । एत्तियमित्ताणं साइणीण कहमिहिं छुट्टिस्सं ॥ ५५०४ ॥ य परिभावणभयवसउक्कंपियगत्तजायरोमंचं । छलिऊण गयाओ सट्ठाणे साइणीओ दुयं ॥ ५५०५ ॥ नो तव्वेलं चिय जायगरुयजद्दज्जरुल्लसिरकंपो । रणभवुब्भंतो इव, संपत्तो वासभवणं सो ॥ ५५०६ ॥ वेलपुरिसपेसण पत्तं उववेसिऊण सत्थवई । साहइ साइणीसमुदाय भेसणुप्पन्नछलभावं ॥ ५५०७ ॥ भई य न एत्थ नयरे वि अत्थि नणु के वि मंतजंतन्नु । ता धुवमणुपत्तं मे मरणं को छुट्टइ रिऊणं ॥ ५५०८ ॥ जइ सच्चं तं मित्तो ण मज्झ मयस्स झत्ति सुहकुहरे । अक्खय-उडिल्ल-सिद्धत्थयाणं मुट्ठि खिवेज्जाहि ॥ ५५०९ ॥ कज्जो तहा विलंबो, जह जंपाणं दिणावसाणम्मि । जाइ मसाणे तो हं मुत्तव्वो छाइयचियाए ॥ ५५१० ॥ देउ न चेव अग्गी, ताहं गोसम्मि सव्वमवि भव्वं । काहं मित्तं ! तहा जह भुवणस्स वि होइ अच्छरियं ॥ ५५११ ॥ इय कयसंकेओ सो सद्धिं सत्थाहिवेण रयणीए । वेयल्लसमुल्लासं वच्चइ अणुवेलसवि दूरं ॥ ५५१२ ॥ > ४२९ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० उवयारे कारावइ, सत्थवरं मंत-तंत- जंतेहिं । दोसो च्चिय परिवइ, न गुणो से थोवमेत्तो वि ॥ ५५१३ ॥ जाणाविओ नरिंदो, तुरियतरं सो वि तत्थ संपत्ती | पेच्छइ वसंतदेवं, वियलावत्थाए वेल्लं तं ॥ ५५१४ ॥ तो तत्थ सयं उवविसिय करियं मंत-तंत - जंताई । मणि- मूलियाओ दाहिणभुयम्मि वद्धाओ बहुयाओ || ५५१५ ॥ तोडियपक्खो पक्खि व्व मच्छओ विव थलम्मि पक्खित्तो । ताल्लोविल्लि काउं, सो सिग्घमचेयणो जाओ ।। ५५१६ ॥ तो तप्पायंतपए ससंठिया झत्ति मुच्छिया कंता । नियईयमरणविहुरावडणसमायरियमरण व्व ॥ ५५१७ ॥ सीयलजलकणकिरणानिलदाणायरणजायचेयन्ना । रुयइ सकरुणं पइमरणरुंदरणरणयरुद्धतणू ॥ ५५९८ ॥ हा जाय ! मंत-संनिहि हा विरईयमंत-तंताइ सुविहि ! ॥ हा उत्तमगुणमणिनिहि ! हा दुन्नयदारुदहणसिहि । ॥ ५५१९ ।। किं तं जत्तं अम्हं मोत्तुं पत्तो महापवासे तं । पडिवन्नस्स सरिच्छं, अहव इमं नाह ! मह कहसु ॥ ५५२० ॥ गच्छामि कस्स पासे, कंठामरणं अहं पवज्जामि । जूहब्भट्ठ व्व मई दीणो, जायम्हि पियविरहे ॥ ५५२१ ।। हे देव्व ! निद्दया हं हयास, तहया समं किमेएण । पढमयरं वा न जहा, हुंती एवं दुहट्ठाणं ॥ ५५२२ ॥ सच्चविरं निज्जीवं, वसंतदेवं निवो वि दुक्खत्तो । पम्मुक्कपेक्कपोक्को, अक्कंदइ परियणसमेओ ।। ५५२३ || हा पुरिसरयण ! रज्जं दिन्नं सत्तंगमवि तए मज्झ । दुस्सज्झसाइणीदोसजणियमरणाओ रक्खेडं ॥ ५५२४ ॥ दीसंति पभूया वि हु, सामन्नुवयारकारिणो पुरिसा । सो तं चिय परवेरं, अगणिय जो कुणसि उवयारं ॥ ५५२५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३१ तवोवरिचंदकंतकहाणयं हा निस्सेस गुणायर ! हा परमायरपरोक्यारपरा ! ।। हा सच्छा सयसियजससुमित्त ! तं कत्थ दीसिहसि ? || ५५२६ ॥ सो सत्थवई रोयइ दुस्सहसुहिगुरुविओगउव्विग्गो । हा सप्पुरिससिरोमणि ! कत्थ गओ तं ममं मुत्तुं ? || ५५२७ ॥ तईआ अरण्णमझे, थंभेउं सबरसंतियं धाडि । मह सत्थं रक्खेउं महोवयारो कओ तुमए ॥ ५५२८ ॥ तुह पुण तणमेत्तं पि हु नमए सिरकमलओ वि अवणीयं । ता कयन्नु जणाणं, सुमित्त ! अहमेव पढमयरो ॥ ५५२९ ॥ जइ होइ तुज्झ दुस्सहविओयवज्जाहयस्स सह मरणं । ता निव्वडइ सिणेहो, अकित्ति सो अन्नहा नियडी ॥ ५५३० ॥ ईय पलविय पइरिक्के, रन्नो साहइ वसंतदेवुत्तं । भणइ धरणीवई वि हु, कीरउ इममेत्थ को दोसो ? || ५५३१ ॥ तत्तो य सत्थवइणा जह न जणो मुणइ तह मयमुहं ति । मुट्ठी उडिल्ल-अक्खय-सिद्धत्थाणं परिनिहित्ता ॥ ५५३२ ॥ तो रन्ना जद्दरनेत्तमेहडंबरविराइयं रुंदं ।। कारवियं जंपाणं चलघणरणज्झणिरकिंकिणियं ॥ ५५३३ ॥ आमलयथूलं मुत्तावचूलकलियम्मि तम्मि पक्खत्तो । देहो वसंतदेवस्स, घुसिणमयणाहिरससित्तो ॥ ५५३४ ॥ उक्खित्तं जंपाणं रायाएसा पहाणपुरिसेहिं । वज्जंतभूरितूरप्पडिरवपरिपूरियदियंतं ॥ ५५३५ ॥ कयकमचंकमणो च्चिय राया जंपाण अग्गअग्गठिओ । पत्तो तरंगिणीए तीरम्मि दिणावसाणम्मि ॥ ५५३६ ॥ कसिणागरु-चंदण-चारु-दारपब्भारकयचियाचक्के । आरोवियं सरीरं वसंतदेवस्स कयपूयं ॥ ५५३७ ॥ भणियं रन्ना एसा मसाणभूमी भयावहा दूरं । बहलतमा रयणी वि हु पत्ता तागम्मउ गिहेसु ॥ ५५३८ ॥ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ सिरिअणंतजिणचरियं गोसे आगंतूणं देउ अग्गी इमस्स देहम्मि ।। तं सोउं सत्थवइप्पमुहो लोगो वलइ जाव ॥ ५५३९ ॥ तत्तो वसंतसेणाह मह इमा पियचिया निवासगिहं । ता हं ना गच्छामि त्ति, तो बला तं निवो नेइ ॥ ५५४० ॥ रायाइयम्मि निय निय ठाणम्मि गए समग्गलोगम्मि । बहुलम्मि परिफुरिए तिमिरे रयणी निसीहभवे ।। ५५४१ ॥ डमडमिय-भूरिडमरुय-उद्दामअरसपणासियसिवाओ । नियकज्जसिद्धकयकिलिकिलारवाऊरियनहाओ || ५५४२ ॥ मुक्कलबालाओ पणच्चिरीओ उक्खित्तकरकिवाणीओ । लल्लक्कमुक्कढक्काओ साइणीओ मिलेऊण ॥ ५५४३ ॥ नियडे उवविट्ठाओ चियाए तस्सम्मुहाओ सव्वाओ । तो हुंकारियविहिओ स चेयणो ताहिं सो कत्ति ॥ ५५४४ ॥ तो उद्धसरीरद्धं पमुक्कचिओ समुट्ठिओ सहसा । भणिओ य ताहिं रे पाव ! कालपासेण कलिओ सि ॥ ५५४५ ॥ तह अइकूराए कडिक्खिओ सि तं दुट्ठकालरत्तीए । मन्नसु कप्पियमप्पं उवायणे जेण नरिंदस्स ॥ ५५४६ ॥ नूणं अणज्जविहिओ तए पवासो इमो सदेसाओ । कज्जे महापवासस्स संपयं सोवसंपत्तो ॥ ५५४७ ॥ पडणाय च्चिय पावाण नूण जायइ निरासदुब्बुद्धी । कह मन्नहम्ह तुमए मुहाओ आइड्ढिओ राया ॥ ५५४८ ॥ सामरिसम्मि रिउम्मि अवयारो विरईओ अणत्थाय । होइ जओ ता इण्हि मरसि धुवं सहिय बहुदुक्खं ॥ ५५४९ ॥ इय जंपिरीण जंपइ जेट्ठा अविलंबमिच्छियं कुणह । तह विभयह एयंगावयवे जह गहिय भक्खेमो ॥ ५५५० ॥ तुह हत्थो तुह पाओ तुह मुहमुयरं तुह त्ति भणरितं । आयन्नंतो वग्गो जाओ सो साइणीवग्गो ॥ ५५५१ ॥ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३३ तवोवरिचंदकंतकहाणयं दो निर. मुहासो कड्ढिय वसंतदेवेण सरसवाईहिं । मंतुच्चा पमुख्छ, पहओ सो साइणी विसरो ॥ ५५५२ ॥ दो तं मंतप्पभवप्पभावओ साइणीओ सव्वाओ । रडं मा वि आसे बंधनद्धाओ विहियाओ ॥ ५५५३ ।। तव्वेलं चिय वलिऊणमागओ विज्जुखित्तकरणेण ।। पायारमइक्कमिउं पत्तो सत्थाहिवगिहम्मि ॥ ५५५४ ॥ पेच्छइ तं परियणपरिगयं पि करुणस्सरेण रुयमाणं । सत्थाहिव ! मा रोवसु अहमिह पत्तो त्ति जंपइ य ॥ ५५५५ ॥ अह गुरुअच्छरियकरं तं दळु उल्लसंतपरिओसो । गाढक्कंठो कंठे विलग्गए तस्स सत्थवई ॥ ५५५६ ॥ परिवारेणं सत्थाहिवस्स विमियमाणेण तो सहसा । परिवाइयाई वद्धावणयच्छंदेण तूराई ॥ ५५५७ ॥ आयन्नियाई रन्ना सुहिमरणा सुहअपत्तनिद्देण । भणिओ य पडीहारो मह असुहे को सुही पावो ? ॥ ५५५८ ॥ वद्धावणयं वज्जइ गिज्जइ य मिउस्सरेण रमणीहिं । ता तं सबालवुड्ढं पि धरिय निक्खिवसु गोत्तिगिहे ॥ ५५५९ ॥ आएसो त्ति भणित्ता उब्बडभडचडयरेण पडिहारो । सत्थाहघरे पत्तो, वसंतदेवं नियइ तत्थ ॥ ५५६० ॥ तो रायप्पडिहारो पहरिसवियसंतनेत्तसयवत्तो । तुरियं चलिउं रन्नो तप्पच्चुज्जीवणं कहइ ॥ ५५६१ ॥ अच्चंतं अघडतं तमईवअसंभवं असद्धेयं ।। सोऊण पीइदाणाइ देइ नरिंदो सिरिं तस्स ॥ ५५६२ ।। पेरिज्जंतो चित्तुल्लसंत असमाणसहिमिणेहेण । पत्तो सत्थाहघरे खमइ सिणेहो किमु विलंबं ॥ ५५६३ ॥ दर्छ निवमब्भुट्ठति सत्थनायगवसंतदेवो ते । पणमंति य तप्पयपउमचुंबिणा भालफलएण ॥ ५५६४ ॥ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ सिरिअणंतजिणचरियं उववेसिय तं भद्दासणम्मि विणएण विन्नवंति इमं । जुज्जइ अम्हाण गई, तत्थ न पहुणो इहागमणं ॥ ५५६५ ॥ रायाह मह सुदओ महनन्नो जीविय व्व दाया जं । पच्चुज्जीवइ ठाउं ता किं तीरइ निमेसं पि ॥ ५५६६ ॥ जइ पाणदायगाणं पि अरिहए नेव गोरवं काउं । • ता नूण पउत्थ च्चिय अवयारन्नूण वत्ता वि ॥ ५५६७ ।। पत्ते महावयारिम्मि जे न पडिवत्तिमवि पकुव्वंति । ताणमहंकारविसप्पणट्ठचित्ताण ण विवेगेण ॥ ५५६८ ॥ गरुओ हमिमो लहुओ त्ति जा मई सा हु तुच्छपयईण । गरुयाण पुणो गरिमा वद्धइ गुणिपक्खवाएण ॥ ५५६९ ॥ ता नियमईए मन्ने किं पि अजुत्तं मए कयं नेव । अवरं च न नेहवसा मुणंति उचियाणुचियकच्चं ॥ ५५७० ॥ ते बिंति देव ! सेवयजणोचियं तं जमुत्तमम्हेहिं । तं चिय पहूहिं विहियं नायगधम्मस्स जे जोग्गं ॥ ५५७१ ॥ रायाह कहसु जह जीविओ तुमं तयणु नमिय नरवइणो । साहइ वसंतदेवो सव्वं पि निसीहवुत्तंतं ॥ ५५७२ ॥ ता जाव अदिस्सेहिं बद्धं बंधेहिं साइणीविंदं । चिट्ठइ मसाणमज्झे तो विम्हइओ भणइ निवई ॥ ५५७३ ॥ मयमवि कयाइ ठाही उवविठं जमिह बिंति नो चित्ता । तं मरिउं पच्चुज्जीविएण सव्वं कयं तुमए ॥ ५५७४ ॥ तं नत्थि संविहाणं संसारे जं न संभवइ एसा । सिद्धतुत्ती मिलिया तं मरिउं जीविओ जमिह ॥ ५५७५ ॥ सक्खापेक्खियमवि जं साहिप्पंतं अलीययं देइ । तं पि इह विहिविलासो दंसइ पच्चक्खलक्खेण ॥ ५५७६ ॥ जं सत्थे वि न मुच्चइ दिळं पि न जं पुराणपुरिसेहिं । ... 'तं पि इह विहिविलासो दंसइ पच्चक्खलक्खेण ॥ ५५७७ ॥ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ६. अमरिसअच्य वसअचुकूलकंपंत उत्तमंगेण । तं व देव ! गुरुपुन भरपत्तं ॥ ५५७८ ॥ 2. रतिय उड्डा-३-इणिचक्केण अक्कमिज्जंतो ।। :: निग्गहसिस ८ ताओ ता तुमं व वीरवई ॥ ५५७९ ॥ ३. भपिउं आणाविय वसंतसेणाए दंसिओ दईओ । त.. साउरिज्जमाणमणमंदिरा जाया ॥ ५५८० ॥ अ रिओसभरनिब्भराण अक्खयनिहागलाभे व्व । तंरखं संजायं तेसिं जं ते च्चिय मुणिंति ॥ ५५८१ ॥ तो बंधणो बद्धसाइणी नयणअंसुविसरो व्व । । परिग यादारतारयनियरो गयणंगणुच्छंगा ॥ ५५८२ ॥ सहसः दोज्जणवसंतदेवमारणमिमा.ह पारद्धं । ता में पि मारिही सो त्ति भयवसा इव निसा वि गया || ५५८३ ।। संझाए जो चियाए मुक्को पिहिऊण तस्स किं जायं । ईय व य रवी तं पत्थिउं व उद्दयद्दिमारूढो ॥ ५५८४ ॥ तो को इलउक्कलियकलियं चित्तेण राइणा भणियं । चलह मसाणे गंतुं साइणिविंदं निरिक्खेमो ॥ ५५८५ ॥ तो आरूढो राया करेणुराए गिरिंदरूंदम्मि । चडिया पत्थे सवसंतदेवपमुहा वि तुरएसु ॥ ५५८६ ॥ तो मंति-मंडलेसर-सामंत-महायणी य पउरजणो | कोऊहलकलियमणो चलिओ सह रायलोएण ॥ ५५८७ ॥ तो चउरंगचमूचयकयवेढो नरवई मसाणम्मि ।। पेच्छइ साइणिवग्गं बद्धमदिस्सेहिं बंधेहिं ॥ ५५८८ ॥ भूमितलपत्तत्थं उठें अवलोईउं अपारंतं । विरईय गोहच्चाइप्पभूयपावेक्कपत्तं च ॥ ५५८९ ॥ तिं दटुं अच्चुब्भडुब्भडभिउडीभंगभीमभालयलो । आयंबिरच्छिवत्तो कोवुक्कडमुक्कहुंकारो ॥ ५५९० ॥ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ सिरिअणंतजिणचरियं आइ सइ पडीहारं पावाओ मेलिऊणमेगस्थ । काओ वि पज्जालह इंधगि भालोलिजलणेण ॥ ५५९१ ॥ कने अन्नाण वि कत्तिऊण कसाओ छिंदह छण त्ति । अनासिं अच्छीओ कड्ढह ६ इडह पुणन्नाओ ॥ ५५९२ ॥ अवराउ रासहारोविया उसरबद्धचविल्लाओ । भामेउं नयरम्मिं आरोवह सूलिग्गेसु ॥ ५५९३ ॥ किं बहुणा तह कह वि हु कयत्थिउं जणसमक्खमभिहणह । जह पावप्पयईणं नासइ नाम पि हु इमाणा ।। ५५९४ ॥ इय कोवुक्कडराया एस पयढे निवारिऊण भडे ।। भमिडं वसंतदेवो निवई विन्नदिउमारद्धो ॥ ५५९५ ॥ पाविट्ठाणं पहुमारणम्मि तप्पवेस त्तणो होइ । निवडिस्संति सयं चिय दुक्कम्मगलत्थियाओ धुवं ॥ ५५९६ ॥ नरओवस्संभावी एक्कम्मि वियारियम्मि जीवम्मि । इत्थीओ पुण इमाओ ता थीहच्दा महापावं ॥ ५५९७ ॥ नियदुक्कम्मेणेव य मया तु एयाओ सामिसालधुवं । ता मयमारणमेयं जमिमाओ एत्थ हम्मति ॥ ५५९८ ॥ ता काऊणमिमाओ वामकमंकियनिडालवट्ठाओ । मुच्चंतु वराईओ दीणे न गुरूण निग्घिणया ॥ ५५९९ ॥ एसो महपसाओ कीरउ मह सामिसालपणयस्स । अब्भत्थियमवरस्स वि कुणंति गुरुणो न किं सुहिणो ? ॥ ५६०० ॥ एरिस वसंतदेवुत्ति रंजिओ नरवई मुयइ ताओ । तावियलोहविणिम्मियवामपएणंकिउं भाले ॥ ५६०१ ॥ तो आरोविय नियगुरुकरेणुखंधे वसंतदेवसुहिं । वररिदीए पवेसिय पुरम्मि नियमंदिरे नेइ ॥ ५६०२ ॥ सम्माणिउं महग्घाभरणुत्तमवत्थवियरणेण सयं । संपेसइ सत्थाहिवइसंगयं दिन्नपासाए ॥ ५६०३ ॥ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंत कहाणयं तुं तमो वसंतदेवो विधिः । एवं कह मज्झवि मरणनिमं आग आसि ? ॥ ५६०४ ।। आबालकाल न मए सुकगं कया कयं । माविभवसंभव दुण कंपामि भनि च ।। ५६०५ ।। न कयं सुकयं परीहीणमाऊयं पेच्छऊण संसारं । पसायतुंगसिद्धयउच्चओ धुव्वए हिययं ॥ ५६०६ ॥ प्रणुयत्त - आरिय-खेत्त-सुकुलुप्पत्ति पमुहसा नग्गी । मुकयसमज्जणरहिया सव्वा वि मुहे व मह जाया ॥ ५६०७ ॥ धरणी भारकर च्चिय ते जाण न धम्म - अथकामाण | रक्को वि अस्थि छाया, पुरिसाण व के. गुणो ताण ? ॥ ५६०८ ॥ ने च्चिय पुण्त्रकपयं जे बालत्ते विचिनामन्ना । सेवसिरिकडक्खलक्खं, पत्ता अइतिव्वतव चरणा ।। ५६०९ ॥ अम्हे पुणो महारंभनिब्भरुप्पन्नपुन्न - पावेण । गुरुभारमक्कंता इव निर्वाडिस्सामो नरयकुहरे ॥ ५६१० ॥ जइ साइणी करुक्खित्तकत्तिओक्कत्तिओ मओ हुतो । तो चुक्कंतो इह - भव - परभवियसुहाण हमहन्नो ॥ ५६११ ।। नवरं पुव्विल्लभवे जं जीवदयाइयं कयं किंपि । तेण मह जीवियव्वं जायं नन्नोत्थि इह हेऊ ॥ ५६१२ ॥ ता जावज्जवि न जराए जज्जरं कीरए सरीरं मे । जा नज्जइ उप्पज्जइ वियलत्तं इंदियगणस्स || ५६१३ || जाव न वाहीओ समुल्लसंति अहमहमिगाए मह देहे । तिव्वयरतवच्चरणायरणे जा विज्जए सत्ती ॥ ५६१४ ॥ परिवडइ न जाणिव्वयदंसणवसभवविरत्तिसब्भावो । जाव अवराहकुविया सयणा वि न मं परिभवंति ॥ ५६१५ ॥ जावज्जवि संपज्जइ न सिरीभंगो न होइ अयसो वि । सूलाइच्छिडुपेच्छणच्छेओ न समेइ जा मच्चू ॥ ५६१६ ॥ ४३७ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ सिरिअणंतजिणचरियं ता जुज्जइ उज्जमिउं सासयसिवसुहपसाहर धम्ने । जेणत्तो न भवावडपडंतजणहत्थअवलंबो ।। ५६१७ ।। इय परिभाविय संवेगवसए सप्पंतसुद्धर्भ वित्त । संवरइ क्वहारे लेइ कयाणाइं सपुरत्थं ।। ५६१८ ।। मोयावए निवाओ, पणमित्तु दुहा वि अप्पमायरउ । भणई य तुहप्पसाया सामि ! अहं इह सिरिं पत्तो ॥ ५६१९ ॥ पत्तो पहु ! तुह पाया दुम्मोया असमनेहनद्धस्स । एत्तो य वुड्ढअम्मा-पियराणि वि पालणिज्जागि ॥ ५६२० ॥ इय परिभाविय सामी ! जं जुत्तं तं समाइसउ मज्झ । जं न कयाइ वि अप्पच्छंदा पहु ! सेवया इंति ॥ ५६२१ ॥ तं सोउं नरनाहो भणइ अहं मित्त ! तं न मुंचने । किंतु तुहम्मा-पिउणो ममा वि अच्चंतगोरव्वा ॥ ५६२२ ॥ गुरुलाघवव ज्ज विभावएण पुरिसेण मित्त होयव्वं । नियदंसणामएणं ता गंतुं ताइं निव्ववसु ॥ ५६२३ ॥ इय जंपिउं महग्घाभरणसुवत्थाई देइ से राया । जणणी-जणयनिमित्तं च वियरए ताणि पउराणि ॥ ५६२४ ॥ तो रायाणुन्नाओ मोयाविय सत्थवाहमित्तं सो । सकलत्तो संचलिओ निवपेसिय तंतवालजुओ ॥ ५६२५ ॥ तुरयारूढो हयविंदपरिगओ छत्तअंतरियतरणी । अणुगम्मतो वसहुट्ट-महिस-खर-सगडसत्थेण ॥ ५६२६ ॥ रह-सिविय-सेज्जवालय-लंघिणियसुहासणाइजाणेसु । आरुहइ पहम्मि, कयाइ कत्थई कोउहल्लेण ।। ५६२७ ॥ कयभूरिनरपयाणयसयलंघियपउरभूमिवित्थारो । संपत्तो कुसलेणं सगामपरिसरधरावीढे ॥ ५६२८ ॥ नाऊण नियसुयागमणमसमपरितोसपूरिओ सेट्ठी । गुरुरिद्धीए कारवइ तस्स सगिहप्पवेसमहं ॥ ५६२९ ॥ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३९ तवोवरिचंदकंतकहाणयं जय-..-तामरसे पणओ भमरस्सिरिं पयासंतो । ते. वि उवखवियसिणेहसारमइगाडमुवगूढो ॥ ५६२५ ॥ जागीर ओ तीए दित्तासीवायजायसंतोसो । आइच्छिा य दोहिं वि कुसलं तो नमिय इय भणइ ॥ ५६२६ ॥ तुम्ह पयपउमसुमरणपभावअवहरियदुरियपसरस्स । मह सव्वया वि कुसलं जायं सकलत्तकलियस्स ॥ ५६२७ ॥ विलसिरनीरंगी वि हु अजडप्पयई समागया बहुया । ससुरय-सासुयपयपंकयाण भत्तिब्भरा नमइं ॥ ५६२८ ॥ भव्वं भवेज्ज तं अम्ह गोत्तपासायकेउरुप्पस्स । जणइत्ती चारुसुयस्स इय तया तीए संतुट्ठा ॥ ५६२९ ॥ पिउणो गणिमाइधणं, वसंतदेवेणमप्पियं सव्वं । अम्मा-पिउपच्छन्नं न धरति सिरिं कुलीणा जे ॥ ५६३० ॥ निवपेसिएहिं उत्तमवत्थेहिं रयणभूसणेहिं च । सोलंकरउ सरीराणि जणणि-जणयाण हरिसेण ॥ ५६३१ ॥ तो सेट्ठिणा पउत्तो पुत्तो मह कहसु वच्छ ! गमणाइ । आगमणे तं निययं वुत्तंतं तयणु सो कहइ ॥ ५६३२ ।। ताय ! तया तुम्ह सयासओ अह सत्थवाहसत्थस्स । मिलिउं चलिउं रन्ने समागया भिल्लभडधाडी ॥ ५६३३ ॥ तुम्ह पसायओ ताय ! ते मए थंभिउं भडा बद्धा । नीया य अरन्नं तं मुक्का वलिया विलक्खमुहा ॥ ५६३४ ॥ सोहग्गपुरे सोहग्गसुंदरो साइणीहिं संगहिओ । मरणावत्थो वि निवो तुहप्पभावा कओ भव्वो ॥ ५६३५ ॥ तो तेण कयसुसिरोमाणिणा मित्तेण छत्तपमुहा मे । दिन्ना सिरी तहा तप्पहाणलोएण वि पभूया ॥ ५६३६ ॥ निवमोयावणवेरेण छलियहं साइणीहिं तह विहिओ । निज्जीवो त्ति मसाणे मुत्तुं मं नरवई चलिओ ॥ ५६३७ ॥ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० सिरिअणंतजिणचरियं रयणीए मभं जीवविऊण मंतं ति जविय भयणित्थं । ता मुहबलिप । कीरिया सागीओ मए ॥ ५६३८ ॥ तं दहें सव्वः । वि निवाइलोय. वि- मो जाओ । हम्मंतीओ निकः ताओ वि मोयावियाउ भए ॥ ५६३९ ॥ ताय ! पुणज्जायं पिव अत्ताणं मन्निऊण नरनाहं । मोयाविउं अहं तुम्ह दंसणत्थमिह संपत्तो ।। ५६४० ॥ अम्मा-पिऊण नियसुय अच्चन्भुयचरियर रणको चित्ते । अणुवेलं पि महाभयहरिसुक्करिसा वियंभंति ।। ५६४१ ॥ जंपति य पुत्त ! तुमं ठाणं जाओ अणत्थवत्थाण । रयणायरो व्व असरिसविय पुत्ता पमुहरयणाणं ॥ ५६४२ ॥ तुह पुत्तभवंतरचिन्नचारुसुचरियदुमस्स फुप्फमिः । जमसमरिद्धी सिद्धी तस्स वि विउलं फलं भविही ॥ ५६४३ ॥ आयन्निय पिउवयणो वसंतदेवो पयंपिउं लग्यो । जइ ताय ! तवस्स फलं सिद्धी ता हं तयं काहं ॥ ५६४४ ॥ अइदुट्ठसाइणीहिं खित्तो विकरालकालमुहकुहरा । जमहं विणिग्गओ तारेमि तस्स फलं सुतवं ॥ ५६४५ ॥ तं सोउमाह जणओ कोऽवसरो वच्छ ! तुह तवच्चरणे । एयं जुज्जइ काउं अम्ह जरा जज्जरंगाणा ॥ ५६४६ ॥ आह सुओ परिपालइ पुत्तो अम्मा-पिऊण थेराणि । ताहं तमेव काउं सह तुब्भेहिं वि तवायरणा ॥ ५६४७ ॥ जइ हं तइय च्चिय साइणी महादोसओ मओ हुँतो । चुक्कंतो च्चिय ता इह-परभवसंभवसुहभरस्स ॥ ५६४८ ॥ तह ताय ! इह भवम्मि वि इट्ठविओगो अणिट्ठजोगो य । लच्छिब्भंसो तारुन्नयक्खओ जीवियावगमो ॥ ५६४९ ॥ एयारिसं सरूवं अवगंतुं उत्तमेहिं पुरिसेहिं । चिंतमिह भवियमुज्झिय कज्जा सा पारभविया जं ॥ ५६५० ॥ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ४४१ इहलोयं चिय अहमा इह-परलोयं च मज्झिमा पुरिसा । परलोयमेव वंछंति सव्वहा उत्तमा जे उ ॥ ५६५६ ॥ नो बालत्तं नेवाऊतुट्टया तायं ! एस तव समओ । जं अव्वत्ता बाला थेरा पुण विगयसत्ता जं ॥ ५६५७ ॥ जरा जाव न पीडेइ वाही जाव न वड्ढई । जाविंदिया न हायंति ताव धम्मं समायरे ॥ ५६५८ ॥ जावज्जविप्पबोहो लब्भइ सुत्तेहिं ताय ! पुन्नेहिं । नावुज्जमो विहिज्जउ, कल्लाणकरम्मि सद्धम्मे || ५६५९ ॥ पुत्ता सुरलोयसिरी, अणेगसो माणियाइं रज्जाई ।। तह वि न तिप्पइ जीवो तण्ह च्चिय वद्धए दूरं ॥ ५६६० ॥ सोउं वसंतदेवुत्तममयरसविरससरिसधम्मकहं । आह पिया वच्छ ! तुमं लहुओ वि गुरुईय भणंतो || ५६६१ ॥ पुव्वं पि जाय जो मह मणठाणे वयदुमंकुरो हुँतो । सो तुमए पल्लविओ मेहेण व देसणजलेण ॥ ५६६२ ॥ ता जाय ! जिणिंदवयं वयं पि तुमए समं करिस्सामो । सव्वुत्तमकल्लाणे न जेण जोग्गा पमायति ॥ ५६६३ ॥ तो जाइ तिजयरज्जो व्व अमयसित्तो व्व सिद्धिपत्तो व्व । जाओ सो अइसुहिओ जणयवयुच्छाहसवणेण ॥ ५६६४ ॥ पणमिय जणणिं संभासिउं पियं तयणु दो वि इय भणइ । ताएण समं अहमवि जिणदिक्खं इण्हि गिहिस्सं ॥ ५६६५ ॥ जइ तुम्हाण समाही ता कुणह तयं सिवेक्कसुहजणयं । अह नो ता निहिजोग्गं, दुवालसवयभरं धरह ॥ ५६६६ ॥ तं सोउं जणणीए वइणीहिं संवेगरंगियंगीहिं । भणियं अम्हे वि जिणिंद-दिक्खगहणम्मि सज्जाओ ॥ ५६६७ ॥ तत्तो सो सव्वुत्तमहरिसवियासेण पूरिओ हत्थं । जा उवसंतदवो सहस त्ति वसंतसमओ व्व ॥ ५६६८ ॥ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ सिरिअणंतजिणचरियं नियवयमईए जाओ पिओ वयबुद्धीए कुसुमिव दूरं । तब्भावतरूफलिओ जणणी-भज्जा वयमईए ॥ ५६६९ ॥ जाया तस्स समाही सयलकुडुंबव्वयाहिलासेण । नियमाणुसाणमहवेगचित्तया कस्स न सुहाय ? ॥ ५६७० ॥ कहिओ पणमिय पिउणो जणणी दईयाण वयपरीणामो । तो सो तुट्ठो हरिसाय कस्स नो धम्मि जणबुद्धी ॥ ५६७१ ॥ तो निवइ-तंतवालं वत्थाहरणेहिं पूयए सेट्ठी । सम्माणिज्जइ अन्नो वि किन्न उवयारि रायनरो ? ॥ ५६७२ ॥ रायनिमित्तं दाउं बहुवत्थाभरण-अंगरायाई । तमणुव्वईय विसज्जिय वसंतदेवो गिहे पत्तो ॥ ५६७३ ॥ काउं कयाणगाईण विक्कयं जायभूरिधणलाहो । जा चिट्ठइ ता सूरी समागओ तत्थ मयमहणो ॥ ५६७४ ॥ तीरायरसियहियओ जो अजडासयनिबद्धबुद्धी वि । दूरज्जियपज्जुन्नो संगहियमहत्थसत्थो वि ॥ ५६७५ ॥ समवसरिओ विसाले वियसियबउलाभिहाणउज्जाणे । तं नाऊणं सेट्ठी संतुट्ठो पुत्तसंजुत्तो ॥ ५६७६ ॥ तो विरईय सिंगारो आरुहिय हयं सुयाइजणजुत्तो । पत्तो गुरुनमणत्थं, वसंतराओ वि सकुडुबो || ५६७७ ॥ मोत्तूण वाहणाई पंचविहाभिगमविहिविहाणेण । अभिवंदिउं मुणिंदो, तिपयाहिणपुव्वयं तेहिं ॥ ५६७८ ॥ सूरी वि दुरुत्तरभवसमुद्दनिवडंतजंतुजायस्स । तारणतरितुल्लंताण देइ सद्धम्मलाहासिं ॥ ५६७९ ॥ अभिवंदिय मुणिविंदा मुणिंदचरणारबिंदजुयपुरओ । उवविट्ठा पहुणा वि हु वागरिया देसणा ताण ॥ ५६८० ॥ तीए प्पयासिया नरय-जायणा तिरिय-वेयणा कहिया । पयडीकओ नरत्ते, रोगाइअवायसमवाओ ॥ ५६८१ ॥ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४३ तवोवरिचंदकंतकहाणयं ईसा-विसाय-परपेसयाई, असुहं पयंपियं सग्गे । परमाणंदं सासयसोक्खं मोक्खे समक्खायं ॥ ५६८२ ॥ तं सोउं सेट्ठिवसंतदेवपमुहा सहा भवुव्विग्गा । भीया नरय-दुहाणं पकंपिरा तिरिय-वियणाणं ॥ ५६८३ ॥ अवसंकियाई नरगइसमुत्थगुरुरोयपमुहअसुहाणं । उविग्गा य सुरुब्भवईसाइविडंबणगणस्स || ५६८४ ॥ जाया कयाहिलासा सासय-सुहविहियविद्धि-सिद्धीए । तो परमायरपुव्वं पणमिय ते विन्नवंति इमं ॥ ५६८५ ॥ पहु ! भववासविरत्ता, अणुरत्ता सिद्धिवरपुरंधीए । अम्हे तुहं सयासे जिणपव्वज्जं गहिस्सामो ॥ ५६८६ ॥ तं सोउं आह सूरी, मणोरहो फलउ तुम्हमविलंबं । इच्छंति भणिय तो ते पत्ता सव्वे वि सगिहेसु ॥ ५६८७ ॥ सेट्ठी वसंतदेवो वसंतराओ य तिन्नि वि सभज्जा । वयगहणुस्सुयहियया, कुव्वंति धणव्वयं धम्मे ॥ ५६८८ ॥ काराविऊण जिणमंदिराई सुरसेलतुंगसिंगाइं । सूरिहिं पयट्ठाविंति नवाइं जिणनाहबिंबाइं ॥ ५६८९ ॥ सुयणे सम्माणेउं महिउं मित्ते समुद्धरियसयणे । दाउं दाणं दीणाईणं तित्थुन्नई काउं ॥ ५६९० ॥ तुरएसु समारूढा, थुणिज्जमाणा य बंदिविंदेहिं । वज्जिरजयआउज्जा, गुरुचरणं तं समणुपत्ता ॥ ५६९१ ॥ मोत्तुं तुरए पणमिय गुरुण जायंति दिक्खमुवउत्ता । तो इठं से पत्ते दिन्ना सा सूरिणा तेसिं ॥ ५६९२ ॥ दाऊण दुविहसिक्खं, अज्जाओ समप्पियाओ अज्जाण । साहुत्तिगमवि जायं गीयत्थं नायसमयत्थं ॥ ५६९३ ॥ गुरुपयपउमाराहणपवणा कुव्वंति अनिययविहारं । मुणिचक्कवालसामायारीकरणेक्ककयचित्ता ॥ ५६९४ ॥ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ सिरिअणंतजिणचरियं तिव्वतवच्चरणायरणलालसो नमिय गुरुसयासम्मि । पुच्छइ तवचरणाई, वसंतदेवो गुरू कहइ ॥ ५६९५ ॥ तहाहि - पुरिमड्ढेक्कासण- निव्विगईय-आयंबिलोववासेहिं । एगलयाई य पंचहिं होइ तवो इंदिय जओ त्ति ।। ५६९६ ॥ निव्विगईयमायामं उववासो ईय लयाहिं तिहिं भणिओ । नामेण जोग-सिद्धी नव दिणमाणो तवो एसो || ५६९७ ।। नाणम्मि दंसणम्मि चरणम्मि य तिन्नि तिन्नि पत्तेयं । उववासा तप्पूया - पुव्वं तत्तामगतवंमि ॥ ५६९८ ॥ एक्कासणगं तह निव्विगईयमायंबिलं अभत्तट्ठो । इय होइ लयचउक्कं कसायविजए तवच्चरणे ॥ ५६९९ ॥ खमणं एक्कासणगं, एक्कग्गसित्थं च एगठाणं च । एक्कगदत्तिं नीवियमायंचियमट्ठकवलं च ॥ ५७०० ॥ एसा एगा लईया, अट्ठहिं लइयाहिं दिवसचउसट्ठी । ईय अट्ठकम्मसूडणतवम्मि भणिया जिणिदेहिं ।। ५७०१ ।। इग - दुग - इग-तिग- दुग - चउ-तिग- पण- चउ-छक्क पंच - सत्त - छगं । अट्ठग-सत्तग-नवगं अट्ठग-नवसत्त-अट्ठेव ॥ ५७०२ ॥ छग-सत्तग-पण-छक्कं चउ-पण-तिग- चउर - दुग - तिगं एगं । दुग-एक्कग-उवासा लहु - सीह - निकीलिय - तवम्मि ॥ ५७०३ ॥ चउपन्नं खमणसयं दिणाण तह पारणाणि तेत्तीसं । इह परिवाडिचउक्के वरिसदुगं दिवस अडवीसा ॥ ५७०४ ॥ विगईओ निव्विगइयं, तहा आलंवाडयं च आयामं । परिवाडचउक्कम्मिं पारणएसुं विहेयव्वं ॥ ५७०५ ॥ (लहुसीहनिकीलियतवस्स ठावणा) १.२.१.३.२.४.३.५.४.६.५.७.६.८.७.९.८.९.७.८.६.७.५.६.४.५.३.४.२.३.१.२.१. एग - दुग- इग-तिग- दुग- चउ-तिग- पण - चउ - छक्क - पंच- सत्त - छगं । अडसत्त-नवड - दस - नव - एक्कारस तहेव बारसगं ॥ ५७०६ ॥ Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं इक्कारस - तेर- बारस - चउदस - तेरस - य पनर - चउदसगं । सोलस - पनरस - सोलाई होइ विवरीय एक्कं तं ।। ५७०७ ॥ एए उ अब्भत्तट्ठा, इगसट्ठी पारणाणमिह होइ । एसा एक्का लईया, चउगुणाए पुण इमाए ॥ ५७०८ ॥ वरिस छक्कं मासदुगं च, दिवसाई बारस हवंति । एक्कं महासीहनिकीलियम्मि तिव्वे तवच्चरणे ॥ ५७०९ ॥ एयस्स ठावणा ॥ छ ॥ १.२.१.३.२.४.३.५.४.६.५.७.६.८.७.९.८.१०.९.११.१०.१२.११.१३.१२.१४.१३.१५.१४. १६.१५.१६.१४.१५.१३.१४.१२.१३.११.१२.१०.११.९.१०.८.९.७.८.६.७.५.६. ४.५.३.४.२.३.१.२.१. ॥ छ ॥ एगो दुगाइ एक्कग अंतरिया जाव सोलस हवंति । पुण सोलसाइ एगंतएक्कगंतरिय भत्तट्ठा ॥ ५७१० ॥ पारणयाण सट्ठी परिवाडिचउक्कगम्मि चत्तारि । वरिसाणि होंति मुत्तावलीतवे दिवससंखाए ॥ ५७११ ॥ एयस्स ठावणा ▬▬▬ १|२|१|३|१|४|४|१|५|१|६|१|७|१|८|१|९|१|१०|१|११|१|१२|१|१३|१|१४|१| १५|१|१६|१|१५|१|१४|१|१३|१|१२|१|११|१|१०|१|९|१|८|१२|७|१|६|१|५| ४४५ |४|१|३|१|२|१| ॥ छ ॥ इग-दु-ति काहलियासु दाडिमपुप्फेसु हुति अट्ठ तिगा । एगाइ सोलस वासरिया जयलम्मि उववासा ॥ ५७१२ ॥ अंतम्मि तस्स पयगं तत्थ कच्चाणमिक्क तह पंच | सत्त य सत्त य पण-पणतिन्निक्कं तेसु तिंग - रयणा ॥ ५७१३ ॥ पारणयदिणट्ठासी, परिवाडि चउक्कगे वरिसपणगं । नवमासा अट्ठारसदिणाणि रयणावलितवम्मि ॥ ५७१४ ॥ रयणावलीकमेणं, कीरइ कणगावली तवो नवरं । कज्जा दुग-तिगपए, दाडिमपुप्फेसु पयगे य ॥ ५७१५ ॥ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૪૬ सिरिअणंतजिणचरियं परिवाडिचउक्के, वरिसपंचगं दिणदुगूणमासतिगं । पढमतवुत्तो कज्जो, पारणय विही-तवप्पणगे ॥ ५७१६ ॥ भद्दाइतवेसु तहा इया लया इग-दु-तिन्नि-चउ-पंच । तह ति चउ-पंच-इग-दो तंह पण-इग-दुन्नि-ति-चउक्कं ॥ ५७१७ ॥ तह दु-ति-चउ-पणगेगं तह चउपणगेगदोन्नि तिन्नेव । पणहत्तरि उववासा पारणयाणं तु पणुवीसा ॥ ५७१८ ॥ पभणामि महाभदं इग-दुग-तिग-चउ-पण-छ-सत्तेव । तह चउ-पण-छग-सत्तग-इग-दु-ति-तह सत्त-एक्कं दो || ५७१९ ॥ तिन्नि-चउ-पंच-छक्कं तह तिग-चउ-पण-छ-सत्तगेगं दो । तह छग-सत्तग-इग-दो-तिग-चउ-पण-तह दुग-त्ति चऊ ॥ ५७२० ॥ पण-छग-सत्तेक्कं तह पण-छग-सत्तेक्क-दोन्नि-तिय-चउरो । पारणयाणगुवन्ना छन्नउयसयं चउत्थाण ॥ ५७२१ ॥ भद्दोत्तरपडिमाए पण छग सत्तट्ठ नव तहा सत्त । अड-नव-पंच-छ-तहा नव-पण-छग-सत्त-अठेव ॥ ५७२२ ॥ तह छग-सत्तड-नव-पण-तुहट्ठ-नव-पण-छ-सत्त-भत्तट्ठा । पणहत्तर-सयसंखा पारणगाणं तु पणवीसा ॥ ५७२३ ॥ पडिमाए सव्वभद्दाए पण छ-सत्तट्ठ-नव-दसेक्कारा । तह अड-नव-दस-एक्कार-पण-छ-सत्तय-तहेक्कारा ॥ ५७२४ ॥ पण-छग-सत्तग-अड-नव-दस-तह सत्तट्ठ-नव-दसेक्कारा । पण-छ-तहा दस-एक्कार पण-छ-सत्तट्ठ-नव-य तहा ॥ ५७२५ ॥ छग-सत्तड-नव-दसगं एक्कारस-पंच-तह नवग-दसगं । एक्कारस-पण-छक्कं सत्तट्ठ य इह तवे होति ॥ ५७२६ ॥ तिन्नि सया बाणउया एत्थुववासाण होति संखाए । पारणयाण गुवन्ना भद्दाइ तवा इमे भणिया ॥ ५७२७ ॥ रयणावलिं कणगावलि-भद्द-महाभद्द-भद्दोत्तर-सव्वओभद्दाण ठावणा ॥ छ । पडिवईया एक्क च्चिय दुगं दुइज्जाण जाव पन्नरस । खमणेहमावसाओ होइ तवो सव्वसंपत्ती ॥ ५७२८ ॥ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४७ तवोवरिचंदकंतकहाणयं रोहिणि रिक्खदिणो रोहिणीतवे सत्तमासवरिसाइं । सिरिवासुपुज्जपूयापुव्वं कीरइ अब्भत्तट्ठो ॥ ५७२९ ॥ एक्कारस सुयदेवी, तवम्मि एक्कारसी उ माणेण । कीरति चउत्थेहिं सुयदेवी पूयणापुव्वं ॥ ५७३०. ॥ सव्वंगसुंदरतवे कुणंति जिणपूयखंतिनियमपरा । अदुव वासे एगंतरंबिले धवलपक्खम्मि ॥ ५७३१ ॥ एवं निरुजसि हो वि हु नवरं सोहेइ सामले पक्खे । तह अहिययरो कीरइ गिलाण पडिजागरणनियमो ॥ ५७३२ ॥ सो परमभूसणो होइ जम्मि आइंबिलाणि बत्तीसं । अंतरपारणयाई भूसणदाणं च देवस्स ॥ ५७३३ ॥ आयई जणगो चेवं नवरं सव्वासु धम्मकिरियासु । अणिगूहियबलविरियप्पवित्तिजुत्तेहिं सो कज्जा ॥ ५७३४ ॥ एगंतरोववासा सव्वरसं पारणं च चेत्तम्मि । सोहग्गकप्परुक्खेहिं होति तहा विज्जए दाणं ॥ ५७३५ ॥ तव-चरणसमत्तीए कप्पतरूजिणपुरो समत्तीए । कायव्वो नाणाविहफलविलसिरसाहिया सहिओ ॥ ५७३६ ॥ तित्थयरजणणिपूयापुव्वं एक्कासणाई सत्तेव । तित्थयरजणणि-नामग-तवम्मि कीरति भद्दवए ॥ ५७३७ ॥ एक्कासणाइएहिं भद्दवयचउक्कगम्मि सोलसहिं । होइ समोसरणतवो ते पूया पुव्वविहिएहिं ॥ ५७३८ ॥ नंदीसरपडपूयाए नियसामत्थसरिसतवचरणे । होइ अमावस्सतवो अमावसावसरुद्दिट्ठा ॥ ५७३९ ॥ सिरिपुंडरीय नामतवम्मि एक्कासणाइकायव्वं । चित्तस्स पुन्निमाए पूएयव्वा य तप्पडिमा ॥ ५७४० ॥ देवग्गठवियकलसो जा पुन्नो अक्खयाण मुट्ठीए । जो तत्थ सत्तिसरिसो तवो तमक्खयनिहिं बिंति ॥ ५७४१ ।। Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ सिरिअणंतजिणचरियं पंचमि पणगे अंबा नवम्मि एक्कासणाईओ कज्जो । सत्तीए तवो नेमी पूइज्जइ तम्मि अंबाय ॥ ५७४२ ॥ वीसइ आयामाई दवदंति तवम्मि पइजिणं होति । दिज्जंति कणयतिलया जिणाण विहिए तवे तम्मि ॥ ५७४३ ॥ वद्धए जहा कलाए एक्केक्काएणुवासरे चंदो । संपुन्नो संपुज्जइ जा सयलकलाहिं पव्वम्मि ॥ ५७४४ ॥ तह पडिवयाए एक्को कवलो बिइयाइ पुन्निमा जाव । एक्केक्कवलवुड्ढी जा तेसिं होइ पनरसगं || ५७४५ ॥ एक्केक्कं किन्हम्मिं पक्खम्मि कलं जहा ससी मुयइ । कवलो वि तहा मुच्चइ जामावस्साए सो एक्को ॥ ५७४६ ॥ एसा चंदप्पडिमा जवमज्झा मासमेत्तपरिमाणा । इण्हि तु वज्जमज्झं मासप्पमियं पवक्खमि ॥ ५७४७ ॥ पन्नरस पडिवयाए एक्कगहाणीए जावमावस्स । एक्केणं कवलेणं जाया तह पडिवई वि सिया ॥ ५७४८ ॥ बीयाईयासु एक्कग वुड्ढी जा पुन्निमाए पन्नरसं । जवमज्झ वज्जमज्झाओ दो वि पडिमाओ भणियाओ ॥ ५७४९ ॥ दिवसे दिवसे एगा दत्ती पढमम्मि सत्तगं गेज्झा । वद्धइ दत्तीसहसत्तगेण जा सत्त सत्तमए ॥ ५७५० ॥ अगुवन्नवासरेहिं होइ इमा सत्तमी पडिमा । अट्ठट्ठमिया नवनवमिया य दस दसमिया चेवं ॥ ५७५१ ॥ नवरं वद्धइ दत्ती सह अट्ठग नवग दसग वुड्ढीहिं । चउसट्ठी इक्कासी सयं च दिवसाणिमासु कमा ॥ ५७५२ ॥ एगाइयाणि आयंबिलाणि एक्किक्कवुड्ढिमंताणि । पज्जंतअब्भतट्ठाणि जाव पुन्नं सयं तेसिं ॥ ५७५३ ॥ एयं आयंबिलवद्धमाण नामं महा तवच्चरणं । वरिसाणि एत्थ चउदस मासतिगं वीस दिवसाणि ॥ ४७५४ ॥ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४९ तवोवरिचंदकंतकहाणयं गुणरयणवच्छरम्मि सोलस मासा हवंति तवचरणे । एगंतरोववासा पढमे मासम्मि कायव्वा ॥ ५७५५ ॥ ठायव्वं उक्कुडुयासणेण दिवसे निसाए पुण निच्चं । वीस ऊ मणिएण तहा होयव्वमवाउडेणं च ॥ ५७५६ ॥ बीयाइसु मासेसुं कज्जा एगुत्तराए वुड्ढीए । जा सोलसमे सोलस उववासा हुंति मासम्मि ॥ ५७५७ ॥ जं पढमम्मि मासे तमणुट्ठाणं समग्गमासेसु । पंचसयाई दिणाणं वीसूणाई इमम्मि तवे ॥ ५७५८ ॥ अंगाणमुवंगाण य चिइवंदण पंच मंगलाईण । उवहाणाई जहाविहि हवंति तह तस्स कहियाइं ॥ ५७५९ ॥ तं सोऊण तवस्सी वसंतदेवो विसुद्धसद्धाए । कुणइ तवच्चरणाई गुरुआणा पालणुज्जुत्तो ॥ ५७६० ॥ तो सो तिव्वयरतवायरणाउ य अट्ठि-चम्ममेत्ततणू । पालइ सामन्नमणन्नसरिससमुल्लसिरसंवेगो ॥ ५७६१ ॥ अवरेण वि मुणि-समणीजणेण नियसत्तिसरिसमायरियं । तव-चरणाणुट्ठाणं सिद्धंतत्तप्पयारेणं ॥ ५७६२ ॥ तह गाढयरो विहिओ वसंतराएण साहुणा वि तवो । वइणी वसंतलच्छीए वि सविसेसो तवो विहिओ || ५७६३ ॥ बहुवरिसणलियवओ साहुवसंतो वसंतराओ य । दो वि कय अंतकिरिया मरिय गया अच्चुए कप्पे ॥ ५७६४ अज्जाओ वसंतसिरी वसंतलच्छी उ आउअंतम्मि । अंताराहण पुव्वं तम्मि वि पत्ताओ सुरलोए ॥ ५७६५ ॥ साहू वसंतदेवो गयणंगणगमणलद्धिकयगमणो । सोहागपुरे पत्तो समोसढो अंबयवणम्मि ॥ ५७६६ ॥ नाऊण मित्तसाहुं, पत्तं सोहग्गसुंदरो राया । रिद्धीए समागंतुं तं नमिय पुरो समुवविट्ठो ॥ ५७६७ ॥ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० सिरिअणंतजिणचरियं तद्देसणाए पावियपडिबोहो ठाविऊण नियरज्जे । सोहग्गसारपुत्तं, वयं पक्त्तो समीवे से ॥ ५७६८ ॥ समहीय समग्गागमवसगीयत्थत्तगुरुगुणावासो । विहरइ गुरुणा सद्धिं तव-किरियाकरणकयचित्तो ॥ ५७६९ ॥ समणो वसंतदेवो बहुकालं पालिऊण समणत्तं । आलोयणावयुच्चरणखामणाणसणकयमरणो || ५७७० ॥ पत्तो अच्चुयकप्पे वसंतसेणा वि निययदुव्वयणं । गुरुपुराणालोईय मरिडं कप्पे गया तम्मि ॥ ५७७१ ॥ पडिबोहिय भविओहं तो बहुवरिसेहिं रायरिसिवसहो । मरिउं तत्थुववन्नो सत्त वि जाया सुरा सुहिणो ॥ ५७७२ ॥ नंदीसराइसिद्धालएसु कल्लाणएसु य जिणाण । जंगमजिणेसरा य महिमाहिं पुन्नमज्जिति ॥ ५७७३ ॥ बावीस सागराई भुत्तं सव्वाई सग्गसोक्खाई । सव्वे वि हु चविऊणं उपन्ना मच्चलोगम्मि ॥ ५७७४ ॥ जीवो वसंतसेट्ठिस्स सो सुरो आसि अच्चुए कप्पे । चंदपुरीए पुरीए सो जाओ चंदजससेट्ठी ॥ ५७७५ ॥ जो आसि वसंतसिरी अमरो सो चंदजसपिया जाया । . नामेणं चंदसिरी सिरि व्व करकमलकमणीया ॥ ५७७६ ॥ जीवो वसंतरायामरस्स कल्लाणपुरवरे जाओ । कल्लाणपुंजराया ताया निम्मलनयगणस्स || ५७७७ ॥ हुंतो वसंतलच्छी अमरो जो सो नरेसरस्स पिया । कल्लाणसिरी नामा जाया निम्मलकलाकुसला ॥ ५७७८ ॥ जाओ वसंतदेवो देवो चंदजससेट्ठिणो तणओ । नामेण चंदकंतो चंदुज्जलकित्तिपन्भारो ॥ ५७७९ ॥ जो पुण वसंतसेणा अमरो सो चंदकंतपियभज्जा । चंदावलि त्ति भज्जा जाया चंदुज्जलचारुचारित्ता ॥ ५७८० ॥ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंदकंतकहाणयं सोहग्गसुंदरामरजीवो जो चंदकंतकंताए । चंदावलीए जाओ पुत्तो पव्वयगुहा एसो ॥ ५७८१ ॥ आपावे दुस्सीले दुट्ठे ! घरहंजिय त्ति पुव्वभवे । भणियं वसंतसेणाए सासुया सम्मुहं जमिमं ॥ ५७८२ ॥ तं दुव्वयणवसेणं बहुया विसयम्मि सासुया दूरं । वहइ पओसं जेणं जमज्जियं एइ तं तस्स ।। ५७८३ ॥ तक्कम्मोदयवसओ विणयवई वि हु विसुद्धसीला वि । गहिऊणं गलं एसा सुयाए निद्धाडिया बहुया ।। ५७८४ ॥ जोव्वणमयउम्मत्ता अहिमाणिणो रिद्धिगुरुगहायत्ता | सपहुत्तगव्विया विय कोहाइकसायकलुसमणा ॥ ५७८५ ॥ दुकम्मविलसियं तं किं पि समज्जिति जेणमाजम्मं । कंदता वि न छुट्टति पाणिणो तव्विवागाओ ।। ५७८६ ॥ दुक्कम्मलवा वि समज्जिओ महादुक्खदायगो होइ । विसकणिया वि हु भुत्ता मारइ गरूए करिंदे वि ॥ ५७८७ ॥ विमलो वि हु थोवेण वि अप्पा कलुसिज्जए कुकम्मेण । वीययखंडमणुं पि हु जलममलं पि हु कुणइ नीलं ॥ ५७८८ ॥ दुक्कम्मलवभवं पि हु पावं पसरइ महादुहसएहिं । वडबीयं कूरलवो वि होइ रुद्धंबरो रुक्खो ॥ ५७८९ ॥ अणुमेत्तं पि कुकम्मं विणासए बहुतरं पि पुन्नभरं । न विणासइ गुलभारं किं तुंबी बीयमित्तं पि ॥ ५७९० ।। थोवं पि हु दुकम्मं न धुवमुवेहिज्जए विवेईहिं । जम्हा उवेहियं तं पवद्धए जेणिमं भणियं ॥ ५७९९ ॥ अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च । न हु भे वीससियव्वं थोवं पि हु तं बहुं होइ ॥ ५७९२ ॥ तो जे विवेयवंतो परावराहे वि ते न कुप्पंति । अह कह वि हु कुवियातो खामंति परं पणयपुव्वं ॥ ५७९३ ॥ ४५१ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं ४५२ साहिंति य गुरुपुरओ तक्कहियतवाइयं अणुट्ठति । हुति तओ सुविसुद्धा सत्ता निरुवाहिफलिह व्व ॥ ५७९४ ॥ ता चंदकंत ! तुमए जं पुट्ठे सासुयाए बहुयाए । दुस्सीलया कलंको, किं दिन्नो ईय तमक्खायं ॥ ५७९५ ॥ ता सत्तन्ह वि तुम्हें सासुय - बहुयाण चरियकहणेणं । कहियं चरियं ति पयंपिउं, ठिओ केवली मोणे ॥ ५७९६ ।। सुय नियपुव्वभवाइं सत्त वि संजायजाइ - सरणेण । ताई सच्चविय भवदुगाई नमिउं भणंति गुरुं ॥ ५७९७ ॥ पहुणा जहा पयासियमम्हेहिं वि तह समग्गमविदिट्ठं । जाइस्सरणेणं ता करिमो समणोरहं सहलं ॥ ५७९८ ॥ इय भणिय पणयपहुणो पत्ता सव्वे वि निययभवणेसु । काऊण न्हाण - भोयणकरणिज्जं संजमुज्जमिणो ॥ ५७९९ ।। कल्लाणपुंजरन्नागणमुद्दिट्ठे सुहावहे लग्गे । कल्लाणकलसकुमरो अहिसित्तो निययरज्जम्मि || ५८०० ॥ तो चंदकंतमंडलवइणा तणयस्स चंदसेणस्स । सुहलग्गम्मि स पिउणा रईओ रज्जाहिसेयमहो । ५८०१ ॥ तो कयकिच्च त्ति काराविऊण जिण - मंदिराइं रयणेहिं । तो सुट्ठवंति गणहरमंतपइट्ठियमणिजणिंदे ॥ ५८०२ ॥ मुंचति चारयाओ कयावराहे हेरिरायनरनियरे । घोसाविंति अमारिं नियआणावत्ति - विसएसु || ५८०३ || नाणाइगुणमहग्घं संघं सम्माणयंति भत्तीए । जिणमंदिरेसु रम्मं रयंति अट्ठाहिया महिमं । ५८०४ ॥ विहियसिणाणा विरईयविलेवणा रयणभूसणा रहिया । पावरिय नायनिम्मोयमउयपट्टओ य वत्था य ।। ५८०५ ॥ दहियक्खय-सिद्धत्थय - दुव्वादलविलसमाणसीमंता । उन्निद्दमालईमउलमालिया रईयसेहरया ।। ५८०६ ॥ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवोवरिचंद कंतकहाणयं अनिलचलद्धयझणहणिरकिंकिणीगणविरायमाणासु । मणिथंभग्गट्ठियसालिहंजिया जणियसोहासु ॥ ५८०७ ॥ नेत्तपडिमेहडंबरचंदोदयतलपलंबिहारासु । माणिक्कविणिम्मियमत्तवारणस्सेणिसोहासु ॥ ५८०८ ॥ डज्झतागरुकप्पूर-धूव - धूमंधयारियदिसासु । सिबियासु समारूढा सकलत्ता कणयकलसासु || ५८०९ ॥ दिसि - विप्फुरंतघणरायरयणसयजायसक्कवासासु । ते मणिनिम्मियसीहासणेसु सव्वे वि उवविट्ठा ॥ ५८१० ॥ चलियाणवज्जवज्जंतमंजुलाउज्जसरभरियभुवणा । सिरधरियसियछत्ता रमणीकरचलिरचमरचया ।। ५८११ । दिंता किवण - वणीमग- जायग- दीणाइयाण दाणाई | अइचित्तचमक्कारं कुव्वंता दुक्कहाणं पि ॥ ५८१२ ॥ गय-तुरय-रह- सुहासण - लंघिणिया बहिलसेज्जवालाई । आरुहिय सह चलंतेहिं रायलोएहिं संजुत्ता ॥ ५८१३ ॥ गिज्जेता वारविलासिणीहिं चारणगणेहिं थुव्वंता । तित्थं पभावयंता संपत्ता केवलिसयासे ॥। ५८१४ ॥ सिबियाए समं मुत्तुं सियायवत्ताइ पंच निवककुहे । कियतिप्पयाहिणा नमिय केवलिं जाययंति वयं । ५८१५ ॥ तो केवलिणा नाणोवलद्धइट्टं समणुसरंतेण । प्रतिन्नि वि सकलत्ता दिक्खिया तहा के वि अवरे वि ॥ ५८१६ ॥ गहणं गहियासेवणमिय ते सिक्खा दुगं पि सिक्खविया । अज्जाण अज्जियाओ समप्पियाओ सुसीलाण ॥ ५८१७ ॥ अंगोवंग - पयन्नगपयरणपमुहो समग्गसिद्धंतो । पढिओ सुत्तत्थोभयरूवो विहु चंदकंतेण ॥ ५८१८ ॥ अवरेहिं पुणो नियजोग्गयाई अंगाई किं पि हु अहीयं । सव्वे वि तिव्वतव - चरण-करणाइकयकिरिया ।। ५८१९ ॥ ४५३ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ सिरिअणंतजिणचरियं सिसिरे रिंखोलियसरियनीरकणनिवहवाहिवाएहिं । रोमंचमुव्वहंता कुणंति रयणीसु उस्सग्गे ॥ ५८२० ॥ आयावयंति गिम्हे खरतररवि-बिंबनिहियनियनयणा । अनलज्जालालीतुललूयानिलतत्तसव्वंगा ॥ ५८२१ ॥ वासासु गरुयगिरिरायगुरुगुहागब्भविरईया वासा । चउमासकयुववासा धम्मज्झाणं झियाइंति ॥ ५८२२ ॥ निस्सेसदेसभासावियक्खणो सूरिगुणगणो वेओ । गणहरपयम्मि ठविओ केवलिया चंदकंतमुणी ॥ ५८२३ ॥ विहरइ गुरुआणाए, पडिबोहंतो महीए भव्वोहे । दिक्खई य रायमंडलिय-मंति-सामंतपमुहजणं ॥ ५८२४ ॥ आमोसहि-विप्पोसहि-गयणंगणगमणपमुहलद्धीहिं । समलंकिओ सिरीहिव, सुकयुज्जम्मि भव्वसत्तो व्व ॥ ५८२५ ॥ तो वेयड्ढसुरालयनंदीसररुयगपमुहठाणेसु ।। गंतुं सिद्धप्पडिमाओ पणमए गयणगमणेणं ॥ ५८२६ ॥ बहुवरिसपालियवया मुणिणा कल्लाणपुंजचंदजसा । कल्लाणसिरी चंदस्सिरी य चंदावली तह य ॥ ५८२७ ॥ सव्वाणि वि एयाई कयअंताराहणा अणसणाई । मरिडं सव्वट्ठम्मि पत्ताई अणुत्तरविमाणे ॥ ५८२८ ॥ तेत्तीस सायराइं भुत्तं तत्थामरस्सिरिं परमं । उववज्जिय रायहरेसु माणिउं रायलच्छीओ ॥ ५८२९ ॥ परिहरिउं रज्जाई अंगीकयसव्वविरइकज्जाई । संपत्तकेवलाई ताई गमिस्संति मोक्खम्मि ॥ ५८३० ॥ कइया वि हु सुक्कज्झाणजलणनिद्दड्ढघाइकम्मपुणो । सिरिचंदकंतसूरी, अणंतनाणेण लंकरिओ ॥ ५८३१ ॥ तो अवणिंतों भविययणमाणमुल्लसियं विविहसंदेहे । पयडंतो तत्ताई नव चेव य जिणवरुत्ताइं ॥ ५८३२ ॥ Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५५ तवोवरिचंदकंतकहाणयं विहरेउं नयर-पर-ग्गामागर-खेड-कब्बडाईस । कयमासमेत्तभत्तच्चाओ पत्तो सिवपुरम्मि ॥ ५८३३ ॥ भूयप्पेय-पिसाय-साइणि-जणो संपज्जए निप्पहो । कूरं पि गहमंडलं पभवए नो थेवमेत्तं पि हु ॥ कास-स्सास-जरारसा य विविहा रोगा वि वाहं न से । कुव्वंति प्पसमप्पहाणमिह जो तिव्वं तवो से वए ॥ ५८३४ ॥ भरहकमला तस्सायत्ता सुरिंदसिरी वि पम्महइ । . विहिउं सस्सामित्ते गुणुज्जलराइणी किमिह बहुणा ॥ ५८३५ ॥ होही नूणं ससिद्धिवहूवरो उवसमतवगुणनिरओ ॥ कोह-माण-मयरहिओ जो निच्चं पि मुक्कनियाणओ ॥ ५८३६ ॥ जह चंदकंतरन्ना विहिओ तिव्वो तवो सिवसुहत्थं । अवरेण वि तह कज्जो सिवरमणिविलासलोलेण ॥ ५८३७ ॥ भणियमुदाहरणं चंदकंतमंडलवइस्स तव-चरणे । भावणधम्मे निसुणह करेमि सिंगारमउडकहं ॥ ५८३८ ॥ (भावणाधम्मे सिंगारमउडकहा) चच्चर-चउक्क-रच्छा-गोउर-पायार-रयणरमणीयं ।। रमणीकयसिंगारं सिंगारपुरं समत्थिपुरं ॥ ५८३९ ॥ सम्मग्गसिरिनिवासो पसस्स पोसो लसंतमहेसिओ । सुतवस्स रूवसहिओ जत्थ जणो सीयसमउदं ॥ ५८४० ॥ सुहचेत्तो सज्जेट्ठो वेसाहसिओ विसिट्ठआसाढो । उन्हालओ व्व सययं विरायए जत्थ जइवग्गो ॥ ५८४१ ॥ सावणपत्तसिरीओ भद्दवयासोयजायजणतासो । जत्थुज्जलसमसारा वासारत्तो व्व वणिवग्गो || ५८४२ ॥ तप्पुरपहुत्तमुव्वहइ वाहिणीविसरविहियसंमोहो । सिंगारसायरो सायरो व्व राया सुहारसिओ ॥ ५८४३ ॥ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ जस्सप्पयावदावो, पज्जलइ मणोवणेसु सत्तूणं । तेणेव तम्मुहाई धूमेण व हुंति कलुसाई || ५८४४ ॥ गुणरयणरोहणागिरीपयावपब्भावसरयखरकिरणो । जसजोन्हारयणियरो नयनिज्झरगरुंगिरिराओ ॥ ५८४५ ॥ तस्संतेउरतरुणियणसामिणी हंसगामिणी कंता । कन्ना दीहरनेत्ता समत्थि सिंगारसिरि नामा ॥ ५८४६ ॥ जा सारंगी वि सुहत्थिणी वि सुमईवि अग्गमहिसी वि । तेरिच्छीरूवा वि हु जं सा रमणी तमच्छरियं ॥ ५८४७ ॥ चारित्तंचक्कसरसी निम्मलगुणतारयोहमहवीही । लीलाकलिया लईया सोहयामयसमुद्दसिरी ।। ५८४८ ॥ तीए सह पोढपेम्मप्पसरुब्भवभूरितोयसत्तस्स । खणमेत्तं पि वच्चंति वासरा भूमिनाहस्स ॥ ५८४९ ॥ सुहुमो मईए धूलो जसम्मि वुड्ढो तणू तस्सत्थि । कज्जुज्जमम्मि तरुणो, नामेण महामई मंती ॥ ५८४५० ॥ न सहइ कलुसप्पयईण एस नामं पि मा विणासेही । इय चिंतिउं व धवलत्तमुवगया रोमराई सो ।। ५८५१ ।। सिरिअणंतजिणचरियं न खमइ घट्टाणमिमो ता मज्झ वि मा करिस्सर अणत्थं । इय परिभवेण भीय व्व तस्स मुत्ती ठिया सिढिला ॥ ५८५२ ॥ नयनिउणम्मि हियम्मिं भत्ते सकुलक्कमागए तम्मि । रज्जसिरिभारमप्पिय विलसइ सच्छंदमवणिवई || ५८५३ ॥ तहाहि कइया वि गुरुविभूईए भासिओ रायरईयसंसोहो । अंगीकयकइलासो हरो व्व रेहइ महत्थाणे ॥। ५८५४ ॥ कईया वि वाहियालीए कीलए तक्कवायविउसो व्व । राया रंजिज्जतो पउरपयुल्लासवाईहिं ।। ५८५५ ॥ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा झरिणगुणधरियधम्मो परलोयावायदिन्न अवहाणो । कइया वि महासुहडो व्व गुरुसमीवे सुणइ धम्मं ॥ ५८५६ ॥ तम्मि पयापालम्मिं उवभुंजंतेण वज्जरज्जसिरिं । दंडो साहुकरम्मि व प्पहोयसलिलप्पवाहम्मि ॥ ५८५७ ॥ रायसुए कुमरत्तं परप्पबंधो य चित्तकव्वेसु । अणुराएण पकंपो नवतरुणीपीणसिहणेसु ॥ ५८५८ ॥ पंजरएसु सुयाईण विग्गहो जलरुहे सरोयत्तं । गीएसु रायकरणं, वियारणं विउसगोट्ठीसु ॥ ५८५९ ।। लयेसु विप्पओगो, कालमुहुत्तं च वानरमुहेसु । मोरेसु विचित्तत्तं, न इमाई जणेसु दीसंति ॥ ५८६० ।। निवपट्टमहादेवी सिंगारसिरीकयाइ काऊण । पंचविहविसयकीलं सलीलमवो समणुपत्ता ।। ५८६१ ।। निद्दासुहमणुहविडं पेच्छइ रयणी विरामसमयम्मि | ईसीसिसुत्त जागरमाणी सिविणम्मि मणिमउडं ॥ ५८६२ ॥ बहुकोडिरयणरम्मं भंडारं पिव नहं पिव सुतारं । वज्जहरं सक्कं पिव मुत्तावासं सिवपुरं व ॥ ५८६३ ।। सप्पुरिसं व पवित्तं मयरसियं साहिमाणपुरिसं व । तं दठ्ठे पाभाउयतूरं सोउं विबुद्धा सा ॥ ५८६४ ॥ उट्ठइ पल्लंकाओ 'नमो जिणाणं' ति जंपिरी झत्ति । निद्दालस्सामोडियतणुपीणसमुन्नमंतथणं ॥ ५८६५ ॥ चलिया चरणरणज्झणिरमंजुमंजीरजियसरेण । वायालंती भवणं चलभुयकंकणरवेणा वि ॥ ५८६६ ॥ पत्ता य हत्थिमंथरगईए रायंतियं तयं तयणु । उवविसिय पायपीढे महुरसरं कुणइ गयनिद्दं ॥ ५८६७ ॥ विन्नवइ सविणयं सिविणयं तयं मउडदरिसणसरूवं । तं सोऊण नरिंदो पमोयभरपूरिओ भणइ ॥ ५८६८ ॥ ४५७ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ सिरिअणंतजिणचरियं सुव्वंति देवि ! सिविणा बहुया नवरं न कोइ एय समो । वरिसे पभूय दिवसा न कोइ दीवूसवसरिच्छो ॥ ५८६९ ॥ ता तुह मयच्छि ! एयस्सिविणयं संसूईओ सुओ होही । ससिवयणपवद्धंतो सो भविही भुवणआभरणं ॥ ५८७० ॥ जह मउडो सव्वाभरणउत्तमो उत्तमंगमारुहइ । तह देवि ! तुह सुओ वि हु सगोत्तगिरिहरुमारुहिही ॥ ५८७१ ॥ तं सोऊणं घणजलधारब्भाहयकयंबकुसुमं व । जाया देवी सव्वंगरम्मरोमंचकंचुईया ॥ ५८७२ ॥ अवितहवयणा गरुया ता एय एवमत्थु ईय भणिरी । नियवासगिहे पत्ता, सुहेण सा गब्भमुव्वहइ ॥ ५८७३ ॥ अम्ह पडणाय वद्धइ गब्भो त्ति विदितउं व सिहिणा से । जाया सा समुहा किं सहति परिवुड्ढिमुव्वित्ता ॥ ५८७४ ॥ गब्भो देवीए भओ रिऊण तोसो नरिंदचित्तम्मि । रोसो य सवत्तीणं वद्धति समं समग्गा वि ॥ ५८७५ ॥ हिय-मिय-मिउ-रिउ-समुचियआहारेहिं सिणिद्धमहुरेहिं । गब्भं परिपालंती संपत्ता एस पसवसमयं सा ॥ ५८७६ ॥ तो नवमासद्धट्ठम दिवसोवरि सुहमुहुत्तसमयम्मि । विप्फुरियफारतेयं देवीपुत्तं पसूया सा ॥ ५८७७ ॥ तो विरईयसव्वुत्तमवेयविसिंखलगईहिं दासीहिं । वद्धाविओ नरिंदो सव्वुत्तमपुत्तजम्मेण ॥ ५८७८ ॥ तस्सवणरम्मरोमंचकंचुईज्जंतमुत्तिणा तेण । मुत्तुं मउडं तासिं दिन्नो निययंगसिंगारो ॥ ५८७९ ॥ दव्वं पि तह विइन्नं भूरि जहा सत्त वेणिया उ तयं । दिंतीणं पि हरिस्सइ दोगच्चं जायग-जणस्स ॥ ५८८० ।। अह पडिहारमुहेण सयले वि पुरे निवेण आइलैं । वद्धावणयं अहमिहमिगाए तो तं जणो कुणइ ॥ ५८८१ ॥ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५९ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा रच्छासु सोहियासुं छडयाकुंकुमरसेण दिज्जंति । भमरउलरोलमुहलो पक्खिप्पइ पुप्फपयरो य ॥ ५८८२ ॥ विहिया य हट्टसोहा पडिजद्दरमेहडंबराईहिं ।। वत्थेहिं विचित्तेहिं सव्वासु वि रायरच्छासु ॥ ५८८३ ॥ चच्चर-चउक्कतियचउमुहाइठाणेसु विरईयमेंठा । अनिलुल्लासियधयरणज्झणंतघणकिंकिणिकलावा ॥ ५८८४ ॥ सव्वम्मि वि नयरम्मि सव्वेसु वि मंदिरढुवारेसु । बधाई तोरणाई रईया रंगावलीओ वि ॥ ५८८५ ॥ सव्वत्तो च्चिय सुसरं मंजुलगुंजंतमद्दलुद्दामं । रायचरियाणुविद्धं गिज्जइ गेयं मयच्छीहिं ॥ ५८८६ ॥ अक्खयपत्तट्ठावियसव्वुत्तमपमुहसूराण कराओ । पुररमणीओ गंतुं सहाए वद्धावयंति निवं ॥ ५८८७ ॥ रायप्पसायसंपत्तवत्थ-आभरणभूसियंगीओ । ताओ कुंकमथवयग्गभासिभालाओ गच्छंति ॥ ५८८८ ॥ निव-मंडलीय-सामंत-मंति-अंतेउरीओ सव्वाओ । वज्जिरवद्धावणयच्छंदपयट्टतनट्टाओ ॥ ५८८९ ॥ नियरम्मरूवसिंगारगारवाहरियरइसिरीओ ।। वद्धावति निवई सहाए सह निययनाहेहिं ॥ ५८९० ॥ ते बिंति पणइपणयं काउं संपत्तपुत्तजम्मेण । वद्धाविज्जसि तं पहु ! अम्हासा पूरणपरेण ॥ ५८९१ ॥ इय भणिय रयण-भूसण-वत्थेहिमलंकरंति ते निवई । राया वि तेसि वियरइ हय-गय-वस्थाभरणजायं ॥ ५८९२ ॥ किविण-वणीमग-मागह-चारण-वंदियण-दीण-दुत्थाण । वंछा विच्छयकराई देइ दाणाई परितुट्ठो ॥ ५८९३ ॥ पइमंदिरं पि वज्जिरनिरवज्जाउज्ज-गीयसद्देण । आणंदिज्जइ नच्चिरविलासिणी नट्टमिक्खंतो ॥ ५८९४ ॥ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० सिरिअणंतजिणचरियं निउणनडरईयनाडय-लउडा रसरासएऽवलोयंतो । उव्वहइमसरिसप्पसरपरिगओ पुलयपन्भारं ॥ ५८९५ ॥ ईय मासमेत्तविरईय क्धावणउ पसत्थदिवसम्मि । कुमरस्स देइ राया नामं सिंगारमउडो त्ति ॥ ५८९६ ॥ न्हावण-कीलावण-अंकधरण-थणपाण-मंडणपराहिं । पालिज्जंतो पंचहिं धाईहिं पवद्धए बालो ॥ ५८९७ ॥ ससि-सूरदरिसणे छट्ठि-जागरे मुंडणे य रिखणए । चंकमणे चूडाविरयणे य से ऊसवा विहिया ॥ ५८९८ ॥ परिवद्धिउं पवत्तो बालो सेवय-मणोरहेहिं समं । वरिसे छट्ठम्मि कलागहणावसरं समणुपत्तो ॥ ५८९९ ॥ तो रम्मरयणभूसणसिंगारविरायमाणसव्वंगो । कपूरमिस्सचंदणरईयविलेवणधवलदेहो ॥ ५९०० ॥ सुरहिसियकुसुममाला, विलसिरसिरसेहरो धवलवत्थो । आमलयथूलमोत्तियहारावलिकलियवच्छयलो ॥ ५९०१ ॥ मयगंधलुद्धबंधुरइंदिदिरविंदरोलकलियंमि । आरोविओ निवेणं गिरिगरूयकरेणुरायम्मि ॥ ५९०२ ॥ तरुणीकरचालियसेयचामरो सेयछत्तलंकरिओ । मणिमयसुहासणासीणं मंतिणा अणुसरिज्जंतो ॥ ५९०३ ॥ उत्तमउत्तुंगतुरंगवग्गगयचलिरचारुसामंतो । रणझणिरकिंकिणीरम्मरहधरारूढमंडलिओ ॥ ५९०४ ॥ तंबक्कचुक्कढक्का-नीसाण-निनायपूरियदियंतो । बंदियणजयजयारावपुव्वपरिपढियथुइवाओ ॥ ५९०५ ॥ नालियरदक्खदाडिमखज्जूराऊरियाई थालाई । वहमाणीहिं अविहवरमणीहिं य रइयअणुसरणो ॥ ५९०६ ॥ ईय असरिसरिद्धीए कुमरो पट्ठाविओ पढणकज्जे । रन्ना कलावियक्खण नाम उवज्झायपासम्मि ॥ ५९०७ ॥ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६१ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा पेच्छंतो पेच्छणए ठाणे ठाणे पणंगणा जणिए । कयलवणुत्तारणओ पए पए पुरपुरंधीहिं ॥ ५९०८ ॥ जो पत्तो अज्झावयभवणसमासन्नविवणिवीहीए । ता मयभरावगाढो जाओ सहस त्ति सो हत्थी ॥ ५९०९ ॥ उम्मुक्कफारफुक्कारसिक्करासारसित्तधरणियलो । पारद्धो पसरेउं उक्खित्तकरो करीतुरियं ॥ ५९१० ॥ तं गज्जंतं इंतं दटुं नट्ठो जणो समग्गो वि । अवसे एयप्पयारे नियडेणत्थे थिरो को वा ? ॥ ५९१ ॥ कयखुरदडवडरावे नासतो गिण्हिडं हए हणइ । रसमसकसंतकट्ठे चूरइ सो रहियरहियरहो ॥ ५९१२ ॥ तडयडतुटूंतजडे मोडइ रुक्खे विणासइ नरे वि । पाडइ पासाए तो नयरे असमंजसं जायं ॥ ५९१३ ॥ अह तब्भयभरविहुरो लोओ घरपुरसिरेसु आरूढो । कुव्वंतो नासह नासह त्ति सद्देण हलबोलं ॥ ५९१४ ॥ गंधियहट्टविकुट्टिज्जमाणमइसुरहिओसहीगंधं । घेत्तुं सुमरियविंझो विणिग्गओ गयवरो नयरा ॥ ५९१५ ॥ पवणुप्पाडियमेहो व्व नहयले गुरुरएण जाइ पहे । जह पच्छा धावंता पावंति न तं तुरंगा वि ॥ ५९१६ ॥ झंपाहिं समुत्तिन्ना तो पिट्ठग्गासणासछत्तधरा । नवरं सबालहारो कुमरो च्चिय जाइगयचडिओ ॥ ५९१७ ॥ नाउं मयावगाढेण हत्थिणा अवहियं सुयं राया । अत्थाणमंडवाओ समुट्ठीओ झ त्ति रायजुओ ॥ ५९१८ ॥ गुरुरयतुरयाणीयं जा पउणं काउं समववेगेण । उद्धाविओ रएणं गओ गओ दूरदेसं ता ॥ ५९१९ ॥ गयपयपयवीलग्गा नरिंदमंडलिय-मंति-सामंता । खीणाइवि अक्खीणा इव वहति वेगेण तं दटुं ॥ ५९२० ॥ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬૨ परिअणंतजिणचरियं न छुहं न तिसं न परिसामं न तावं पि खणमवि गणति । कुमरपहुमणुसरंता सुकुमाला वि हु निवाईया ॥ ५९२१ ॥ दिवसे व्व निसाए वि हु करदीवियविहियपहसमालोया । गामविणियग्गयगोवग्गभग्गगयपयपहपयारा ॥ ५९२२ ॥ कुलयं ॥ एमेवयजंतेहिं सच्चविओ तेहिं बालहारनरो । पुरओ इंतो तो ते तोसविसायाउला जाया ॥ ५९२३ ॥ कत्थ कुमारो त्ति निवपुच्छिएण तेणुत्तमेस्थ संझाए । जंते जवेण बालम्मि तम्मि भणिओ मए कुमरो ॥ ५९२४ ॥ जइ वच्छ ! जाइ हत्थी हेह्रण दुमस्स कस्सइ झ त्ति । ता तुमए गहियव्वा तस्साहा दोहिं वि करेहिं ॥ ५९२५ ॥ जइ तं एवं काउं सक्कसि ताहमवि आयरामि इमं । तो वच्छ ! गयम्मि गए दो वि दुमा उत्तरिस्सामो ॥ ५९२६ ।। तेणुत्तमेरिसं चिय काहंतो हं गए वणम्मि गए । लग्गो दुमसाहाए न उण कुमारो सिसुत्तेण ॥ ५९२७ ॥ उत्तरिय दुमाओ दुयं लग्गो मग्गे गयस्स वेगेण । नवरं तप्पयुक्खित्ता धूली वि हु तस्स सच्चविया ॥ ५९२८ ॥ तो देव ! अहं वलिओ सच्चविया इण्हिमेत्थ तुब्भे वि । तं सोऊणं राया सुयविरहे आउलो जाओ ॥ ५९२९ ॥ भणिओ य मंतिणा पहु ! चलह जओ एस सत्तुणो देसो । मा जय अब्भुद्धराण होइ तुम्हाण वि अणत्थो ॥ ५९३० ॥ कुमरनिरिक्षणकज्जे आविंझं सामि ! पेसइस्सामि ।। पच्चइयनरोजस व्व वाइणो सामिणो भत्ता ॥ ५९३१ ॥ इय देसकालसमुचियकरणिज्जवियक्खणेण सचिवेण । राया अणिच्छमाणो वि वालियो नियपुराभिमुहं ॥ ५९३२ ॥ कुमरविसुद्धिनिमित्तं पुरओ पट्ठाविडं नरे निउणे । राया हियसव्वस्सेव्व सुन्नहियओ. पुरे फ्तो ॥ ५९३३ ॥ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा ४६३ उम्मुक्कपेक्कपोक्को सहाए पविसिय महीए उवविट्ठो । रुयइ रुयावियलोगो कयकारुन्नो पसूणं पि ॥ ५९३४ ॥ हा बालय ! सुकुमालय ! हा लच्छीनिलय ! हा कुमरतिलय ! ।। हा विणयकलिय ! हा विउलअलिय ! तं कत्थ दीसहसि ? ॥ ५९३५ ॥ हा सुत्त ! पुत्तजुत्तं किं तं जम्मं गओ परिव्वईओ । ता एहिं जाइ जा तुह विओगओ तो विवज्जामि ॥ ५९३६ ॥ रज्जं पि रज्जुबंधो नयरं नरओ सुहं पि गुरुदुक्खं । तुह विरहियस्स पुत्तय ! परियत्ती मे सुहाण असुहा ।। ५९३७ ॥ कह करिणो उत्तरिही उत्तिन्नो वि हु हणिज्जिही करिणा । अइसुकुमालो बालो छुहा-पिवासाहिं वा मरिही ॥ ५९३८ ॥ परिदेवतम्मि नरेसरम्मि एवं सगग्गयगिराहिं । परिवारम्मि वि मंतिप्पमुहे बहुसोयविहुरम्मि ॥ ५९३९ ॥ सुय नियसुयावहाराहारा वाऊरियंबवरदियंता ।। सिंगारसिरी देवी रुयइ रुयाविय परीवारा ॥ ५९४० ॥ हा पुत्त ! उत्तमस्सिविणसूईओ होउमसमरूवधरो । तं दीहरच्छवच्छय ! कत्थ गओ मं परिच्चईओ ॥ ५९४१ ॥ हा पुत्त ! तए सद्धिं संजाओ चित्तआलवालम्मि । जो मह मणोरहतरू किं तस्स फलं न संभविही ॥ ५९४२ ॥ हा पुत्त ! जा न तुह विरहवज्जपहराहयहयासाए । फुडइ हियं मह सयहा होउं ता दंसणं देसु ॥ ५९४३ ॥ हे देव्व ! अपुत्ताए दाउं मे पुत्तयं तए हरिउं । अइवालविलसियाओ वि अहियरं विरईयमणज्जं ॥ ५९४४ ॥ रोयंति अंगरक्खयथइबहुओ विदल्लयाईया । हिययप्पइट्ठकुमरावहारगुरुसोयभरविहुरा ॥ ५९४५ ॥ एवं ते पलवंता निवाइणो मंतिणा दढमणेण । होउं विबोहिया हियगिराहिं सोयाय णयणाहिं ॥ ५९४६ ॥ . Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ होऊण देव ! दढमाणसो तुमं कुणसु रज्जकज्जाई । धीरा सोयं ति न जं नट्ठविणट्ठेसु वत्थूसु ॥ ५९४७ ।। तं चैव रक्खियव्वो सव्वपयत्तेण सामिसालसया । जं तुमए जयंते जयं पि सुत्थं जओ भणियं ।। ५९४८ ॥ जेण कुलं आयत्तं तं पुरिसं आयरेण रक्खेज्जा । न हु तुंबम्मि विणट्ठे अरया साहारया हुंति ॥ ५९४९ ॥ पहु ! तुह देहे कल्लाणभायणे पुत्तया भविस्संति । वलिही सो वि कुमारो ता उज्झसु सोयसंभारं ॥ ५९५० ॥ इय मंतिविहियविन्नत्तिउ निवो ईसिं ईसिं अवसोओ । चित्तअणुत्तिन्नसुओ रज्जसिरिं पालिडं लग्गो ॥ ५९५१ ॥ नवरं वत्तामेत्तं पि नागयं कत्थई कुमारस्स । एवमइक्कंताई वरिसाई निवस्स चउवीसं ॥ ५९५२ ।। एत्थंतरम्मि मंडलियमंति- सामंतपूरियत्थाणे । उवविट्ठे नरनाहो चिट्ठइ सीहासणे जाव ता वज्जावलिविलसिरमुत्तावलईयपिसंडिदंडकरो । विन्नवइ पडीहारो निबद्धकरकमलजुयकोसो ॥ ५९५४ ॥ देव ! दुवारे उज्जाणपालओ कुसुमसुंदरो नाम । पहुदंसणं समीहइ एत्थत्थे को ममाएसो ? ॥ ५९५५ ॥ रायाह झत्ति मुंचसु समेओ सो विन्नवेउ करणिज्जं । आएसो त्ति भणित्ता तो सोउं मुंचए गंतुं ॥। ५९५६ ।। पडिहारकयपवेसो, पविसित्तु सहाए पणमिऊण पहुं । विन्नवइ देव ! मयरंदसुंदराभिहवरुज्जाणे ॥ ५९५७ ॥ अज्जेव गोससमए समणुत्तविहाण विरइयविहारो । सिरिरयणकुंडलो नाम मुणिवई एत्थ संपत्तो ॥ ५९५८ ॥ केवलसिरी जुओ जो निग्गंथसिरोमणिमणित्तवित्तो वि । समणो वि अमणवित्ती, सरोयवयणो वि नीरोगो ।। ५९५९ ॥ ५९५३ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा ४६५ सो सामीण महब्भुदयकारणं तेण विन्नवेमि अहं । ता पहुणओ तन्नमिउं पवित्तयं अत्तणो कुणह ॥ ५९६० ॥ तं सोऊणं राया जंपइ मंति-अमच्च । गच्छामो । दठूण केवलिक्कमकमलं पावं परिहरामो ॥ ५९६१ ॥ तह पुच्छामो पुत्तप्पउत्तिमेयाण तं न तिजए वि । जं नाणगोयरम्मि नागच्छइ सुहुममेत्तं पि ॥ ५९६२ ॥ भणियं सचिवेण पहु ! इह परभवसंभवा दुवे वि गुणा । एगो वि आयरिज्जइ किं पुण दुगमवि गुरुनईए ॥ ५९६३ ॥ आरामपालयनरं कयत्थमत्थप्पयाणओ काउं । गुरुरिद्धीए केवलिकमनमणत्थं निवो चलिओ || ५९६४ ॥ गयखंधसमारूढो गय-हय-रह-जोह-वूहकयवेढो । सामंत-मंति-मंडलिय-सेट्ठि-सत्थाहसंजुत्तो ॥ ५९६५ ॥ गंतुं तम्मिय मयरंदसुंदरे मणहरम्मि उज्जाणे । सह पंचरायविविहिं सिंदुरं चयई नरनाहो ॥ ५९६६ ॥ पेच्छइ पविसंतो धवलपडयपावरणधवलियसरीरं । कंचणकमलनिविठं हंसं पिव केवलिमुणिदं ॥ ५९६७ ॥ निवई तं दठूणं अंतो वियंभिओद्दामभत्तिपन्भारो । राया तिपयाहिणपुव्वयं पहुं नमिय उवविट्ठो ॥ ५९६८ ॥ एत्थंतरम्मि घणमणिविमाणगणजणियगयणसिंगारा । पत्ता नहयरनाहा नमिय मुर्णिदं समुवविट्ठा ॥ ५९६९ ॥ तो नहयरिंदनरवइसहाए सद्देसणा समारद्धा । केवलिणा केवलभवनिवासविद्धंससंजणणी ॥ ५९७० ॥ भो भो भव्वा ! सव्वं पुण वि एसो विणस्सरसरूवो । संसारो जमिमम्मिं सव्वं पि हु अत्थिरं वत्थू ॥ ५९७१ ॥ तहाहि - नवजोव्वणहरिणच्छी कडक्खविक्खेवचंचला लच्छी । Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ अनिलुल्लसंतसरजलकल्लोलावलिचलं आउं ।। ५९७२ ।। नवजलहरसिहरंतर फुरंततडिदंडविब्भमा भोगा । करिकन्नतालतरला नराण नवजोव्वणारंभा ॥ ५९७३ ।। सारयसमयसमुब्भव अब्भयपडलं व ल्हसइ लायन्नं । अइनेहबद्धमित्तो व्व नो समीवं मुयइ मच्चू ॥ ५९७४ ॥ अणुरत्तभावियाओ वसइ सन्निहियाओ चैव विवसाओ । गोट्ठिकए मिलिया इव न सव्व रोया चयंति तणुं ॥ ५९७५ ।। कुमईओ व सुलहाओ सत्ताण सया अणिट्ठगोट्ठीओ । किंतु अइव दुलहाओ असंसयं इट्ठगोट्ठीओ ॥ ५९७६ ।। ता भो एवं रूवं भवस्सरूवं विभाविउं भवह । तम्मि प्फुरिय वि राया अणुरायपरा पुणो धम्मे ।। ५९७७ | हुति नराण न नूणं नेरइयकयत्थाओ धम्मेण । तिरियत्तुप्पत्ती वि य न हवइ धम्मप्पभावेण ॥ ५९७८ ॥ धम्मो देइ नरत्ते, हरि - चक्कि - जिणेसरस्सिरीओ वि । धम्मो चउव्विहाण वि, वियरइ अमराण सामित्तं ।। ५९७९ ।। धम्माओ होइ सासयसिवपयसुहसंगमो वि अक्खेवा । अत्थि न कत्थइ तं जं न हवइ धम्माओ कल्लाणं ।। ५९८० ।। सिरिअणंतजिणचरियं सो दुविगप्पो जइ गिहि-भेया खंताइदसविहो पढमो । बारसहा बीओ थूलं पाणिवहविरमणा पढमं ।। ५९८१ ॥ तम्मूलं सम्मत्तं तं सुद्धमरायदोसदेवेण । निग्गंथेण गुरुणा, जीवाइयतत्तनवमेण ।। ५९८२ ॥ ता अंगीकरह इमं देव- गुरु तत्त- सद्दहणं सुद्धं । साहूण सावगाण य, धम्मो जह सहलयं जाइ ॥ ५९८३ ॥ एवं केवलिकहियं, सोउं सद्धम्मदेसणं जाया । धम्माभिमुही परिसा, पहरिसओ पुलयकलियंगी ॥ ५९८४ ॥ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६७ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा सिंगारसायरनिवो, संवेगावेगसंगपुलयधरो । जंपइ पहुपयपासे, पढमं धम्मं गहिस्सामि ॥ ५९८५ ॥ किंतु पुहु ! पंचवारिसियपुत्तओ हत्थिणा हिओ मज्झ । तद्दिवसाओ जाया संपइ वरिसाण चउवीसा ॥ ५९८६ ॥ ता भयवं ! सो कत्थइ समत्थि अहवा नव त्ति मे कहह । जं तुम्हमसेसं पि हु पच्चक्खं तेण पुच्छामि ॥ ५९८७ ॥ भणियं केवलिणा सोम ! सुणसु जत्थत्थि तुह सुओ राया । तं सोउं जीवइ पुत्तउ त्ति सेवट्ठिया आसा ॥ ५९८८ ॥ नरवइ ! तया गयाहिवउत्तिन्ने बालहारय नरे वि । कुमरो गच्छइ गयठियसमुग्गिया तूलियारूढो ॥ ५९८९ ॥ बालो वि एक्कगो वि हु अदीणचित्तो तहट्ठिओ जाइ । अहवा कस्सइ भीहइ लहू वि किं केसरिकिसोरो ? || ५९९० ॥ तईय दिणे अच्चंतं छुहा-पिवासाहिं वाहिओ बालो । तरुणा वि हु पीडिज्जंति, छुह-तिसाहिं न किं बाला ? ॥ ५९९१ ॥ गेलन्नवसा सुत्तस्स तस्स तूलीए आगया मुच्छा । बहुमग्गलंघणस्समवसेण निद्दागयासुहहरा ॥ ५९९२ ॥ गच्छइ मुच्छा पच्छाईयच्छिणा तेण संगओ हत्थी । गच्छंतो संपत्तो कमेण विंझाडई मज्झो || ५९९३ ॥ गयणं पिव सुक्कविसाहरोहिणी गुरुअगत्थिमूलसियं । लुद्धय हत्थविकत्तिय मयसिरिमंदप्पयारं व ॥ ५९९४ ॥ अन्नोन्नमिलियबहुसाहिसाहनिच्छिद्दपत्तपन्भारे । न लहंति पवेसं जम्मि रायसूरा वि दुग्गेव ॥ ५९९५ ॥ तस्संतो गच्छंतो संपत्तो गुरुरएण गयराओ । सिरिविंझवासिणी नाम देवया आययणदारम्मि ॥ ५९९६ ॥ रायंगणे व्व तम्मि बहुकलहकरेणुसंकुले पत्तो ।। देवी मंदिरदाराभिमुहो होऊण वीसंतो ॥ ५९९७ ॥ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ सिरिअणंतजिणचरियं विंझो व्व फलिहखंडेहिं गयणमग्गो व्व भूरितारेहिं । आमलयथूलमुत्ताहलेहिं सो लंकिओ सहइ ॥ ५९९८ ॥ मणिभूसणभासुरिओ तो अणुसरिओ सकामकरिणीहिं । अच्चब्भुयसिंगारो, नरो व्व नेहेण रमणीहिं ॥ ५९९९ ॥ तो कामकेलिकज्जे, करिणी कलिओ जलासए चलिओ । पेच्छइ तं उव्वेल्लिरकल्लोलच्छलिरसलिलकणं ॥ ६००० ॥ . जं पत्तपरिब्भमिरब्भमरप्पवियासिपुंडरीएहिं ।। नियइ अपुव्वगयं विप्फारियफारनयणेहिं ॥ ६००१ ॥ जइंतमहल्लुल्लोलवेल्लिउल्लासचलजलच्छलओ । सिंचिउमिच्छंतं पिव मुच्छिय कुमरं समुहमेइ ॥ ६००२ ॥ जम्मि पविसिरनवकरिपक्खुहियजलाओ उड्डिडं हंसा । गयणम्मि गया नवरायहंसअवलोयणत्थं व ॥ ६००३ ॥ करिणी-कुलपरिकलिओ करी पविट्ठो महद्दहे तम्मि । मग्गस्सममवहरिलं लग्गो जलकेलिमणुहविउं ॥ ६००४ ॥ कीय वि करेणुगाए करकयकोमलमुणालनालेण । सुहरसनिमीलियच्छो पहओ कुंभत्थले हत्थी । ६००५ ॥ अवराए पुणो सकरं भरिऊण जलेण सिंचिओ सकरी । तेणच्चंतं सीयलजलेण सित्ता कुमारतणू ॥ ६००६ ॥ कयचाडुयअवक्खरेणुयाए घेत्तुं करेण कयलिदलं । वीयंतीए गइंदं कुमारमुच्छावि अवहरिया ॥ ६००७ ॥ तो उठ्ठिओ कुमारो सुत्तविबुद्धो व्व हत्थिसेज्जाओ । अवलोयइ जलकीलारसप्पसत्तं तयं हत्थिं ॥ ६००८ ॥ जलकीलारसवसओ कलिओ करिणीकुलेण लीलाए । सलिले अगाहगाहे भमिरो पत्तो तडासन्ने ॥ ६००९ ॥ गयपिट्ठसमुस्सेहं दठूणं दहतडं सुहुत्तारं । तो ऊट्ठिऊण कुमरो पत्तो झपाए तम्मि तडे ॥ ६०१० ॥ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६९ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा होऊण लयंतरिओ ताव ट्ठिओ गयकुलं गयं जाव । एगावाया छुट्टो बीय अवाए पडइ को वा ? ॥ ६०११ ॥ काउं जलावगाहं पाउं नीरं फलाई भुत्तं सो । चलिओ भमिरो विंझवासिणीभवणमिक्खेइ ॥ ६०१२ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ देविं अच्चतरूवरमणीयं । कयसाहावियमुत्तिं कुमारपुन्नोदयवसेण ॥ ६०१३ ॥ तो विझवासिणीए देवीए पेच्छिऊण तं कुमरं । परिभावियं किमेसो को वि हु कीलइ सुरकुमारो ? || ६०१४ ॥ अहवा खयरकुमारो जणगाइविवज्जिओ भमइ भूमिं । . भूगोयराण जम्हा, नेवं रूवस्सिरी होइ ॥ ६०१५ ॥ एवं चिंतंतीए देवीए विंझवासिणीए मणे । उम्मीलिओ असरिसो सहस त्ति सिणेहसब्भावो ॥ ६०१६ ॥ तो विज्जुभरा पिंजरतणुतेयाऊरियं वरदियंता । सिंगारं ति व्व जयं मंजुगिरं जंपिउं लग्गा ॥ ६०१७ ॥ इह एहिं एहि वच्छय ! अच्छसु मणवंछियत्थमच्चत्थं । नितो निओवओगे, उल्लासिय अमंदआणंदो ॥ ६०१८ ॥ अंब ! तुहाएसो मे पमाणमिय जंपिउं ठिओ तत्थ । सो वंछियसंपज्जंतवत्थ-मणिभूसणाहारो ॥ ६०१९ ॥ विहिओ तीए सहस त्ति नाण-विन्नाणजाणओ बालो । अहवा सुरसन्नेझेण जायए किं न कल्लाणं ? ॥ ६०२० ॥ आइट्ठा अमरा तस्स सेवया देवयाए नेहेण । जं भणइ कुमारो तं सया वि तुब्भेहिं कज्जं ति ॥ ६०२१ ॥ तो विंझाडइ मज्झे सेरविहारेण तस्स भमिरस्स । कुव्वंति वंतरा तं जं सेवयसमुचियं कज्जं ॥ ६०२२ ॥ तहाहि - को वि अमरो वसीकयगयमप्पइ तम्मि सो समारुहई । Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० सिरिअणंतजिणचरियं अवरो सियायक्त्तं धरइ सया तस्स सिरकमले ॥ ६०२३ ॥ वीयंति य तं चमरेहिं के वि ससिकिरणभरकएहिं व । जय जीव चिरं नंदसु इय के वि कुणंति चाडूणि ॥ ६०२४ ॥ पलिवर्टेति तणुं के वि तस्स पल्लंकतूलियगयस्स । अवरे उव्वेल्लियकुंतलेसु बंधंति कुसुमाइं ॥ ६०२५ ॥ किं बहुणा थईयावहपडिहारपयाई के वि पालंति । रन्ने वि रज्जरिद्धी जाया कुमरस्स नयरं व्व ॥ ६०२६ ॥ सयमवि सया वि सारं देवी से अंतरंतरा कुणइ । न हि अच्चब्भुयपुन्नप्पसराणं किं पि दुल्लंभं ॥ ६०२७ ॥ इय असमसुहरसुक्करिसहरिसवसयस्स तस्स जायाई । सोलससंखाई वच्छराई अवियाणियाइं च ॥ ६०२८ ॥ एत्थंतरम्मि सा विंझवासिणी देवया चुया सहसा । सद्धिं कुमारअसरिसपुव्वभवुप्पन्नपुन्नेण ॥ ६०२९ ॥ तो आभिओगियसुरा नायं व अनायकरणतल्लिच्छा । पसमं व कोवकलिया धम्मं पिव पावकम्मरया ॥ ६०३० ॥ सीलं पिव अकुलीणो सुयणायरणं व पिसुणसब्भावा । कम्मं पिव सिवचलिया सुमई पिव कलुसया कलिया ॥ ६०३१ ॥ विरई पिव अनियत्ता जसं व परदोस-दरिसणा सत्ता । विज्ज व पसायपरा सया तमुज्जियसठाणेसु ॥ ६०३२ ॥ (कुलयं) रज्जब्भहें निवमिव अत्ताणं एक्कगं पलोएउं ।। कुमरो विसन्नचित्तो विचिंतिउं एवमारद्धो ॥ ६०३३ ॥ जा आसि असमसुररायरज्जसिरिविन्भमा सिरी मज्झ । सा सहस त्ति पलाणा खणेण हरिचंदनयरि व्व ॥ ६०३४ ॥ नियजणणि निव्विसेसा कत्थ गया विंझवासिणी देवी । जीए सपाएणमहं वसणगओ वि हु सुही जाओ || ६०३५ ॥ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा ४७१ कालो बहु वि हु गओ नयणनिमेसो व्व मह सुहुक्करिसा । इण्हि कहं भविस्सं सहायरहिओ अडईमज्झे ॥ ६०३६ ॥ जणणी-जणयविओगो गयावहारो तिसा-छुहाउरया । नेगं पि मए नायं एच्चियकालं अरण्णे वि ॥ ६०३७ ॥ पढमं अवहरणदुहं तो असमसुहं पुणो वि अइदुक्खं । दितेण अहं दूरं विडंबिओ विहिविलासेण ॥ ६०३८ ॥ अहवा किं चिंताए जं जईया होहिही तयं तइया । सव्वं पि सहिस्समहं सया वि जेणेरिसं भणियं ॥ ६०३९ ॥ जह जह वाएइ विही विसरिसभंगेहिं निठुरं पडहं । धीरा पसन्नवयणा नचंति तहा तहा चेव ॥ ६०४० ॥ जणणी-जणयाईणं मिलणुस्सुयमाणसो वि न तरामि । तेसिं मिलिउं जमहं तप्पुरपहमवि न याणामि ॥ ६०४१ ॥ नवरं इह चिठेंतो करि-हरि-सद्दूल-सरह-भिल्लभवे । पाविस्सं असहाओ उवद्दवे अप्पमत्तो वि ॥ ६०४२ ॥ ता मुत्तूणमरन्नं वसिमे जामि त्ति चिंतिउं चलिओ । गोवियरयणाभरणो विरईय भूरिप्पयाणगणो ॥ ६०४३ ॥ विंझाडइ मज्झाओ निग्गंतुं गाम-नगर-खेडाइं । लंघतो संपत्तो नयरं नामेण सूरपुरं ॥ ६०४४ ॥ तप्परिसरधरणीरमणिभूसणं धरणिभूसणं नाम । उज्जाणं कयलीवण-दक्खामंडवकयच्छायं ॥ ६०४५ ॥ गंगाजलं व घणसारसंसियबहुसुवन्नसयवत्तं । सायरसलिलं पिव सुप्पवालकलियं जमाभाइ ॥ ६०४६ ॥ तम्मि बहुपहपरिस्समसंता ठावणयणस्थमणुपत्तो । पविसियवहंतअरहट्टजलसिणाओ ठिओ सत्थो ॥ ६०४७ ॥ दाडिमदक्खकयलीफलेहिं काऊण पाणवित्तिं सो । किंकेल्लिपल्लवारईयसत्थरे माणए निदं ॥ ६०४८ ॥ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ६०५३ ॥ अवरन्हे पडिबुद्धो पीयजलो जाव नियइ आरामं । ता फासुए पएसे पेच्छइ मुणिमेगमुवविट्टं ॥ ६०४९ ॥ असमस्सिरी निवासं पसमामयसंगसुहियदेहं पि । विलसिरतारसुवन्नं निग्गंथसिरोमणि पि सया ।। ६०५० ॥ तं दणं कुमरो उच्छलियअतुच्छभत्तिपब्भारो । गंतुं तस्स सयासे नमइ महीमिलियभालयलो ॥ ६०५१ ॥ मूत्तूण सुहज्झाणं वियरइ साहू वि धम्मलाहं से । एत्थतरम्मि पत्तो नायरनरनारिनियरो वि ॥ ६०५२ ॥ तम्मि वि पणइपुरस्सरमुवविट्ठे पत्तधम्मलाहम्मि | मुणिणा वि समारद्धा धम्म हा भव्वभवहरणी ॥ भो भो भव्वा जइ भे भवभूओब्भूयभयभरुब्भंता । सद्धम्ममहामंतं ता नियचित्तम्मि संठवह ॥ ६०५४ ॥ मरणेण जीवियव्वं वाहिज्जइ जोव्वणं पि हु जराए । तह इट्ठाणं गोट्ठी अणिट्ठजणसंगमदुहेण ॥ ६०५५ ॥ रोएहिं देहजट्ठी दोहग्गेणं लसंतसोहग्गं । लच्छीभंगेण सुहं दुहेण सुयणो वि पिसुणेण ॥ ६०५६ || रोसेण समो माणेण मद्दवो अज्जवो य मायाए । मुत्ती लोहेण वयं विलयाहिं तवो नियाणेण ॥। ६०५७ ॥ विणओ य घट्टत्तेणं जसो अकज्जेण गारवेण गुणो । साहुत्तं वयणविवज्जएण सीलं कुसंगेणं च ॥ ६०५८ || पाएण समग्गाणि वि भवत्थवत्थूणि सपडिवक्खाणि । जइ वंछह सिद्धसुहं ता तुब्भे कुणह सद्धम्मं ।। ६०५९ || सव्वाणि वि कल्लाणाणि जेण जीवाण हुंत धम्मेण । नासंति य. दुरियाई दुयं पि धम्मं पि भावेण ॥ ६०६० ॥ इय सोउं मुणिभणियं तप्पुरपुज्जो धणड्ढओ सेट्ठी । जंपर पहु ! कोइ सुही कोई दूही कारणं किमिह ? ॥ ६०६१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा भाइ मुणी कम्माई विचित्तरूवाई ऐट्ठि ! जं तेण । के वि हु अइवसुहिणो अवरे पुण दुक्खिया दूरं ।। ६०६२ ॥ के वि पुणो अच्चतं सुहिया होऊण हुंति अइदुहिया । पुणरवि भुंजंति सुहाई रयणसुंदरकुमारो व्व ॥ ६०६३ ।। पुणरवि पणामपुव्वं पुच्छर सेट्ठी धणड्ढओ भयवं ! । साहह मह एय कहं भणइ मुणी सोम ! निसुणेसु ।। ६०६४ ॥ ( रयणसुंदर कहा) मणिजिणहरानिलचलद्धयालिरणज्झणिरकिंकिणिरवेण । बहिरइ जा दिसिचक्कं समत्थि सा मणिमई नयरी ॥ ६०६५ ॥ जा पउमरायकुट्टिमपहं महानीलभवणकिरणेहिं । अवसारइ संझं पिव पसरंतपओसतिमिरेहिं ॥ ६०६६ || विलसंतगया बहुसत्तिसंगया भूरिचक्कसंकिन्ना । जा सहइ मग्गणजुया आउहसाल व्व नरवइणो ॥ ६०६७ ॥ उव्वह तप्पत्तं मणि व्व मणिसुंदरो महाराया । मज्जायरूवसोहो अकलंको चित्तत्तो य ॥ ६०६८ || संगहियत्थो सज्जियगुणो य वावारियस्सरो रिउसु । समरेसु मुहि कुलेसुं व जोग्गया रयणकयचित्तो ॥ ६०६९ ॥ सल्लक्खणासिओ जो परिविलसिरभूरिउम्मियकरो य । बहुरायहंससेविय पयपउमो सोहइ दहो व्व ॥ ६०७० ॥ तस्सत्थि पिया दईया नामेण मणिप्पहो मणि-पह व्व । विगयतमा पयडीक्यनिस्सेसपयत्थ- सत्थाय ।। ६०७१ ।। परिविलसमाणपत्ता विब्भमरसियाए बालकलिया य । कुंदकलियालिरयणा आरामसिरि व्व जा सहइ || ६०७२ | विगयरया वि सुदंता पइव्वया विहु सया विवरवेसा । सच्चा वि अलियमुही जा घरवाहा अदोसा वि ॥ ६०७३ ।। ४७३ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ सिरिअणंतजिणचरियं तीए सह विविहओहसविणोयवक्खित्तचित्तवित्तिस्स । समइक्कंतो कालो बहुओ रायाहिरायस्स ॥ ६०७४ ।। तं नत्थि तेण रन्ना न जमुवभुत्तं तवुब्भवं सोक्खं । नवरं नेगं चिय नंदणं न आलिंगणुब्भूयं ॥ ६०७५ ॥ तो रज्जसिरिभवं पि हु सुहं दुहं देइ तस्स भूवइणो । भोए भुयगे इव सो मन्नइ भूयं च आभरणं ॥ ६०७६ ॥ निव्वेयं उप्पायइ मयकिच्चं पिव महूसवदिणं पि । गीएण विलवएण व रन्नो अइदीणया होइ ॥ ६०७७ ॥ सुरसो वि हु आहारो अंतो निद्दहइ सन्निवाओ व्व । सिसिरो वि अंगराओ अणुभव्वइ तविरो तरणि व्व ॥ ६०७८ ॥ सुयचिंतावसववगयनिमेसं पि हु वियसियच्छिसयवत्तो । निच्चलतणूनरिंदो नज्जइ पाहाणघडिओ व्व ॥ ६०७९ ॥ पुत्ताणुप्पत्तिमहाहिभावणक्खणविलंबिउस्सासो । मुंचइ निवो समूहेण सासमासन्नकयतावं ॥ ६०८० ॥ न सरीरठिइमणुट्ठइ उवविट्ठो उठ्ठियं न उच्छहइ । चिट्ठई य सुन्नहियओ असुओ अवहरियसारो व्व ॥ ६०८१ ॥ निदं निसाए न लहइ वंछइ न छुहाए भोत्तुमाहारं । जरिओ व्व विरहिओ विव भूवो भूयाभिभूउ व्व ॥ ६०८२ ॥ एवमइक्कट्ठदसं पत्तो जंपइ पियं पुहइनाहो । मन्ने पयामणोरहमाला विहला पिए ! मज्झ ॥ ६०८३ ॥ पसुयत्तं पि कयत्थं दईए तं मह सयासओ मज्झे । जं जीहुल्लिहणाइयनेहं पयडइ अवच्चम्मि ॥ ६०८४ ॥ पसयच्छि पक्खिणो वि उ पत्तेकपयं समासओ मज्झ । जेऽवच्चाणं चूणिं दिति छुहमप्पणा सहिउं ॥ ६०८५ ॥ वरमहमजाईया वि हु पुरिसा सच्चविय पुत्तपडिपुत्ता । उत्तमकुलब्भवेहिं वि निरवच्चेहिं किभम्हेहिं ॥ ६०८६ ॥ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ४७५ मा होउ पिए ! जम्मो निस्संताणाणमम्हसरिसाण । जे नियवंसच्छेयणपरमुप्पाया जए जाया ॥ ६०८७ ॥ तं सोउमाह सा पुहु ! एत्तियफालं अहं पि भावंती । मह कईया गब्भभरालसाए होहिंति दोहलया ॥ ६०८८ ॥ कईया उच्छंगगयं थणं थयं धावमाणमिक्खिस्सं ।। कईया वि पेच्छिस्सं हसिरमकारणमदंतमुहं ॥ ६०८९ ॥ सीहावलोइएणं रिखंतो मं पलोइही कईया । नियकरअंगुलिलग्गो दाविस्समहं पयाइं कया ॥ ६०९० ।। राहाडिं पूरिस्सं कयारुयं तस्स वंछिउं दाउं । पहिणस्स इमं कईया रुट्ठो कोमलकरयलेण ॥ ६०९१ ॥ तह कईया दच्छीहं तं सह डिंभेहिं कीलणासत्तं । पेक्खिस्सं वा कईया हयलीलाकयपयक्कमणं ॥ ६०९२ ॥ विम्हाविस्सइ कइया मं लक्खणकव्वतक्कपुच्छाहिं । उप्पाइस्सइ तोसं कइया वा नववहूसहिओ ॥ ६०९३ ॥ संवाहिस्सइ कईया तुहक्कमे पायवीढउवविट्ठो । संझादुगे वि नमिही कइया मह तुम्हमवि चरणो || ६०९४ ॥ एवं पुहु ! पुत्तगया नियमणठाणे मणोरहवणाली । वविया मए न तीए अंकुरमेत्तं पि सच्चवियं ॥ ६०९५ ॥ आयन्निउं पियाए मणोरहे भणइ भूवई देवि ! । जइ वि विही पडिकूलो तह वि नरेणुज्जमेयव्वं ॥ ६०९६ ॥ इय जंपिऊण सपिओ वि कुणइ मणिमूलियाई न्हाणाई । सप्पाडिहेरदेवाण भणइ उवजाईयसयाइं ॥ ६०९७ ॥ कारवइ संतिगाई, आराहइ गोत्तदेविमुवउत्तो । पियराण कुणइ पूयं गहचक्कं निच्चमच्चेइ ॥ ६०९८ ॥ किं बहुणा ! भणिएणं जं जं जाणगजणेणमुवइहें । तं तं निवेण विहियं न चेव जाया सुउप्पत्ती ॥ ६०९९ ॥ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ सिरिअणंतजिणचरियं तो चिंतइ नरनाहो जायं अंतेउरं महप्पउरं । तेण य सह विसयसुहं उवभुत्तं चिरंतरं कालं || ६१०० ॥ नीरोगत्तं नवजोव्वणं च इंदियपत्तमइभोगो । सुयजम्मकारणाई जायाई मज्झ विहलाई || ६१०१ ॥ साणुसयासीमाला कारविया जे मए हढेणाणं । ते कइया वि जलिस्संति नूण उट्ठहियजलण व्व ॥ ६१०२ ॥ नो रायवीयमेत्तं पि अस्थि गोत्ते वि चिट्ठठ कुले मे । ता कह मज्झ परोक्खे पया वराई सुहं लहिही ॥ ६१०३ ॥ मह पिउपिया महाईहिं पालिउं जा पया कया सुहिया । ता मज्झ वि तदुवेहा न जुज्जए किं तु हियकरणं ॥ ६१०४ ॥ तो जुत्तं मह साहसमवलंबेउं पमायमुज्झेउं । ता कत्थ कज्जसिद्धी जाणत्थे खिप्पइ न अप्पा ? ॥ ६१०५ ॥ इय सुयअलाहचिंतासंताणवसेण नरवई जाओ । दूरं दुब्बलदेहो परिपसरियरायमंदो व्व ॥ ६१०६ ॥ कईया वि पसुत्तो जाव जग्गए जामिणीए जामजुगे । सकरुणसरं रुयंति ता आयन्नइ कमवि रमणि ॥ ६१०७ ॥ तस्सरमणुसरिउं मणो दोला पल्लंकमुज्झिउं जाव । उट्ठइ राया पेच्छइ ता सुत्तं जामइल्लजणं ॥ ६१०८ ॥ चिंतइ पासायोवरि मन्नुसमम्मं सरं रुयइ रमणी । उप्पायंती मज्झ वि दुक्खभरं ता तमिक्खेमि ॥ ६१०९ ॥ इय चिंतिउं कडीतलं निबद्धअसिधेणुओ गहियखग्गो । आरूढो पासायग्गसत्तमं भूमि य भूवो || ६११० ॥ जग्गंति जाव ते जामइल्लया ता नियंति नो निवई । तो हत्थो खालाइट्ठाणेसु वि जा न सो दिट्ठो || ६१११ ॥ ता संखुद्धा सव्वे मूढा कायव्व विसयवावारे । जंपति सो विदल्लं सुद्धं ते नियसु निवई ति ॥ ६११२ ॥ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा तो तेण पत्तेयं अंतेउरकामिणीण भवणेसु । पविसियनिरिक्खिओ सयमवणिवरं नेव सच्चविओ ॥ ६११३ ॥ निवमंगरक्खपडिहारसो विदल्लाणमिक्खमाणाणं । अवलोइउं च तमुदयगिरिसिरिमारुहइ मित्तो वि ॥ ६११४ ॥ तो कहियमंगरक्खेहिं मंति- सामंत-मंडलीयाण । पल्लंकाओ कत्थइ गओ निवो तं निइति ॥ ६११५ ॥ तलभूमीओ जा सत्तमी महिं ता पलोइयं भवणं । निवमित्तमंदिराई वि सच्चवियाई समग्गाई ॥ ६११६ ॥ तो मंतिचउरमइणा तुरयानीयं पुरीए सविसेसं । चेडिय-भडं आइट्ठ निवमवलोइय सा महति ॥ ६११७ ॥ तो गुरुरयतुरयगया नयरी परिसरधराओ सव्वत्तो । परियडिया बारस जोयणाई चउपासणयरीए । ६११८ ।। दूरे निवस्स दंसणाणुवलद्धा तेहिं नेव चत्ता तो ते निरासचित्ता पत्ता वलिऊण नयरीए ।। ६११९ ।। । नरवइअलाहपमुक्कधाहबाहप्पवाहपुन्नत्था | पविसिय सहाए सचिवाइजणजया विलविउं लग्गा ।। ६१२० ॥ हा नाह नाह ! हा दीहबाह ! हास तुहं सजलवाह । दे देसु दंसणं चित्ततोसणं अम्हहियवसणं ॥ ६१२१ ॥ हा नियपयावजिग्घतरणिताव हा बुद्धिनायपरभवे । हा सुहसहाव ! हा चत्तपाव हा ! अनयवणदाव ! ॥ ६१२२ ॥ हा रायहंस ! हा विमलवंस ! हा पत्तउत्तसपसंस । हा सामि सामि हा हा हत्थिगामि ! नियदंसणं देसु ।। ६१२३ ॥ होही को पउराणं, एरिसपयं गयं समारूढो । अप्फालंतो तरुणी, घणत्थणत्थूलकुंभयडं ॥ ६१२४ ॥ को विहलिय रायाणं, दाही सरिहरिसिरिस्सिए देसे । सम्माणिही य को मित्तमंडलं सयणवग्गं च ? ।। ६१२५ ॥ ४७७ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ सिरिअणंतजिणचरियं कंकण-कुंडल-केऊर-सरलहाराइभूसणसमूहं । पडिजद्दरं व राई वि बंदिजणओ पाविही कत्तो ? ॥ ६१२६ ॥ पत्तीणं सुकईण य को सत्थमहत्थजाणओ इण्हि । बुद्धिजियजीवत्थं भे अद्दिस्से सामिसालम्मि ॥ ६१२७ ॥ सिप्पीण सिप्पकम्म, कलजीवीण य कलासु कोसल्लं । जायं निरत्थयं चिय, वियारचउरं विणा देवं ॥ ६१२८ ॥ इय सकरुणं रुयंतेसु, मंति-सामंतमंडलीएसु । करि-हरि-हंसाईया करुणं कंदति तिरिया वि || ६१२९ ॥ नायनरिंदअलहो सव्वं अंतेउरीओ कंदति । देविमणिप्पहपमुहाओ अंसुपव्वालियमुहीओ || ६१३० ॥ हा कोमलंग हा गयकुसंग ! हा जाय चंगसोहग्ग ! । पहु ! सहयरीओ मुत्तुं, अम्हे ते पवसिओ कत्थ ? || ६१३१ ॥ हा राय राय ! हा विहिय नाय ! हा सयलतिजयविक्खाय । । हा कणयजाय ! कयवाय हा, ह हा सामि ! निम्माय ! ॥ ६१३२ ॥ ताण तिणगणियतिहुयणसुहाणुसहरिस ! सिणेहरमियाण । अवसाणमिमं जायं न पवासो वि हु जमक्खाओ || ६१३३ ॥ तुह नाह ! नेहनिब्भरपसायसुमरणपविप्पहारहीयं । फुट्टइ न जमम्ह हिययं तं नृणं वज्जदलघडियं ॥ ६१३४ ॥ इय पलविरीओ मुच्छाए जंति भूमीए भूमिवइविरहे । पाविय चेयन्नाओ रुयंति पुणरुत्तमंसूहिं ॥ ६१३५ ॥ पडिहारअंगरक्खय-थइयावहसो विदल्लदासेहिं । तह रुन्नमंसुधाराहिं जह सहाए जलं वहइ ॥ ६१३६ ॥ अक्कंदिऊण बहुसो पउरा पउरा महायणीया य । सामिगुणग्गहणपरा परिदेविउमेवमारद्धा ॥ ६१३७ ॥ संजाया वयमिण्हि नूणं निभग्गसेहरा सव्वे । जेऽनिस्सरेण मुत्तूण सामिओ कत्थइ पउत्थो ॥ ६१३८ ॥ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरका जे पहुणो नामाओ वि नट्ठा देसे वि उज्झिउं रिउणो । ते साणुसया पत्ताओवद्दविस्संति देसमिमं ॥ ६१३९ ।। लवमेत्तं पिन पत्तं असुहं देवप्पसायओ जीए । परचक्कचमढणं सा पया वराई कहं सहिही ? ॥ ६१४० ॥ देवाण दाणवाणं खयराण य पुव्वभवविरुद्धेण । अन्नयरेणं केणइ हरिउं नीओ धुवं देवो ॥ ६१४१ ।। इय तिय- चउक्क - चच्चर - रच्छा - गोउर - बहिप्पएसेसु । सुव्वंति सामिविरहियजणस्स परिदेवणं एयाई ।। ६१४२ ।। सोएण परिप्फुरियं वियंभियं भूरितरपलावेहिं । दीणत्तेणुल्लसियं तीए पुरीए निवइविरहे || ६१४३ ॥ गीएहिं गयं विसएहिं पवसियं नट्ठसिट्ठगोट्ठीहिं । सिंगारेणवसरियलीलाहिं पलाईयं दूरे ॥ ६१४४ ॥ सत्थहिं संपउत्थं विरइचत्ताहिं गुणि थुईहिं ठियं । पविलीणं च विलासेहिं सामिसाले अदीसंते ॥ ६१४५ ॥ पिहिया वणद्दुवारा निरूसवा अप्पमज्जियघरा य । पविरलजणप्पयारा नयरी सव्वा वि संजाया ।। ६१४६ ॥ अंतेउरीहिं जंपंति मंति ! अम्हाण देहकट्ठाई । जं नाहविरहियाओ खणं पि ठाउं न इच्छामो ॥ ६१४७ ॥ पडिवन्नपालणाहिं य पत्तजसा जेण लहूकयसरीरा । मरणुज्जमिणो जाया वेला चिन्ना वि तव्वेलं ॥ ६१४८ ॥ थइयावह-कंचूइ-अंगरक्खपडिहारचेडचेडीओ । मरणरणरणयमगणियअगिंग मग्गंति पहुविरहे ॥ ६१४९ ॥ रायंतेउरपमुहो जणो समग्गो वि मंतिणो भणिओ । किं भन्नइ तुम्हाणं, निक्कित्तिमभत्तिभावस्स ।। ६१५० ॥ जं नियकुलक्कमसमं पहुप्पसायरस समुचियं जं च । जं गरुयणाणुरूवं तमेव तुब्भेहिं भणियमिणं ॥ ६१५१ ॥ ४७९ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० सिरिअणंतजिणचरियं ता पडिवालह दिवसाइं पंच जह नज्जए पहुपउत्ती । विन्नाय कज्जमज्झा तयणु करेज्जाह जं उचियं ॥ ६१५२ ॥ इय जुत्तिजुत्तमुत्ता बुद्धिसहाएण चउरमइणा ते ।। तो निरसण च्चिय ठिया लोया सोयाउरा दूरं ॥ ६१५३ ॥ दुईय विव सावरन्हे नहेण मणिकिरणनियरदुनिरिक्खं । रविरहरयणं व विमाणमेगमइवेगमणुपत्तं ॥ ६१५४ ॥ तम्मज्झाओ राया, राया य चंकंतदंतपंतिपहो । नयरीजणदिन्नमहो, अवइन्नो सुरभुयालग्गो ॥ ६१५५ ॥ दिव्वाभरणालंकरियविग्गहो दिव्व-वत्थ-पावरणो । अत्थाणम्मि पविट्ठो हरि व्व सुररईयचाटुसओ ॥ ६१५६ ॥ उवविट्ठो सीहासणमलंकेउं फुरंतमणिकिरणं व । पणओ य पमुइएहिं अमच्चमंडलियपमुहेहिं ॥ ६१५७ ॥ अंतेउरं पमुइयं महायणो तो समागओ सव्वो । पउरा वि हरिसविसया जाया रायागमे जाए ॥ ६१५८ ॥ समज्जिऊण गंधोदएण सित्ता सुरा य रच्छासु । खित्तो कुसुमप्पयरो परिमलभरभमिरभमरतुलो ॥ ६१५९ ॥ पउरेहिं तोरणाई वधाई निययभवणदारेसु ।। घुसिणरसगोमुहेसुं रइया मुत्ताहलचउक्का ॥ ६१६० ॥ पडिमंदिरं पि गिज्जइ रायावज्जंतमंगलाउज्जे । मणिभूसणसिंगारियकुलवहुआओ य नच्चंति ॥ ६१६१ ।। तिय चच्चररच्छाइठाणेसु पुरीए संचिया मंचा । नलिया तोरणरम्मा वरवत्थुल्लोयसोहिल्ला || ६१६२ ॥ तालारस-लउडारस-नाडयपेच्छण-चच्चरिसयाई । पारद्धाइं पुरीए पहरिसओ तरुणरमणीहिं ॥ ६१६३ ॥ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८१ रयणसुंदरकहा अत्थाणत्थं निवई मंती विन्नवई तुम्ह विरहम्मि । पहु ! जमसुहमिहजायं तह मा होउ जयं रिऊणं पि ॥ ६१६४ ॥ इय जंपिय अंतेउरपमुहजणेणं जमासि पारद्धं ।, मरणंतसाहसंतं कहियं तेणावणीवइणो ॥ ६१६५ ॥ तं सोउं नरवइणा संभासेऊण सव्वलोयस्स । विहिओ उत्तमवत्थाहरणेहिं विसिट्ठसम्माणो || ६१६६ ॥ भणियं च मा कयाइ वि एवंविह साहसं करिज्जाह । सम्ममनायं कज्ज कीरतं असुहमावहइ ॥ ६१६७ ॥ पुणरवि पुच्छइ मंती नरेसरं नमिय सविणयं सामि ! । नियगमणागमणाणं अम्हाण वइयरं कहह ॥ ६१६८ ॥ तो दाहिणपासट्ठियमणिमयभद्दासणे समुवविठं । आइसइ सुरं तं अमर ! कहसु मम सव्व वुत्तंतं ॥ ६१६९ ॥ भणियं सुरेण तं मंति ! सुणसु गयरयणिपरदिणनिसाए । पहरदुगावसेसाए जग्गियं जाव भूवइणा ॥ ६१७० ॥ ता आयन्नइ अइदीणनयणारुइयरावमसममसुहं । आगरिसं तं व मणं दूरं विप्फुरियकरुणरसं ॥ ६१७१ ॥ तो सहस च्चिय सेज्जं समुज्झिओ झ त्ति उठ्ठिओ नियइ । सव्वे पि जामइल्ले निद्दाभरनिच्चलसरीरे ॥ ६१७२ ॥ तो परिविरइयवरवंठवेसनिबिडयरविद्धसुद्धरहो । करविलसिरकरवालो सरियसरं चडइ पासाए || ६१७३ ॥ तो नियइ सत्तमाए भूमीए वज्जपोत्तियभमीहिं । विलसिरपिसंडिदोलादंडं सेज्जं समारूढं ॥ ६१७४ ॥ इद्दामजोव्वणुल्लसियललियलायन्नपुन्नसव्वंगि । हरयमुत्ताहलभूसणप्पहाहरियनिसि-तिमिरं ॥ ६१७५ ॥ अच्चब्भुयरूवाहरियगोरिरइरंभसिरिसरीरसिरिं । कंचणगोरिं रमणिं अट्ठारस वरिसदेसीयं ॥ ६१७६ ॥ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ सिरिअणंतजिणचरियं वामकरकमलतलगयकवोलमइदुक्खियं तयं रुइरिं । आपुच्छइ नरनाहो तद्दुहदूमियमणो दूरं ॥ ६१७७ ॥ भद्दे ! का नाम तुमं, हिं- मह धवलहरसिहरमारूढा । किं वा दुहं सकरुणं जं रोयसि दीणसंजणिरी ? || ६१७८ ॥ जइ मह कहणीयमिणं तहा कहतीए जइ तुह समाही । ता कहसु अह न ता लहसु भद्दमहमिच्छियं जामि ॥ ६१७९ ॥ तं सोउं सा सहसा ल्हसिरुत्तरियुल्लसंतथोरथणी । मुत्तुं दोलासिज्ज अवणियमाबद्धकरकोसा ॥ ६१८० ॥ महुरगिरं जंपइ साहणारिहो होसि जइ न राय ! तुमं । ता कस्स कहिस्सं नेह पुच्छए किं अकहणिज्जं ? || ६१८१ ॥ (जुयलं तह असमाही का नाम, मज्झ तुज्झोवयारनिरयस्स ।। ता आयन्नसु मह रुयणकारणं न ईय पल्लंकं ॥ ६१८२ ॥ तो राया उवविट्ठो दोलापल्लंकललियतूलीए । सा वि निवाएसेणं उवविट्ठा विट्ठरे तरुणी ॥ ६१८३ ॥ रइयकरजुयलकोसा विणयपरा तं कहेउमारद्धा ।। अत्थि पहु ! महच्छरिया नयरी नामेणमुज्जेणी ॥ ६१८४ ॥ सूरत्थमणे जीए सया वि दिज्जति परिपओलीओ । निसिनिप्पसरपरिब्भमिरजोइणीचक्कछिड्डभया ॥ ६१८५ ॥ तीए पुरीए निस्सेसजोइणी जोइवग्गनयपाया । जोईसर त्ति नामेण जोइणीकन्नया वसइ ॥ ६१८६ ॥ अमरि व्व भमइ गयणे मीण व्व वियंभए समुद्दजले । मज्झ गयं पि न जलणो दहइ तमंगारसोयं व ॥ ६१८७ ॥ अमयं व पियइ गरलं कवलइ पज्जलिरजलणमसणं व । तिव्वमुहाई विवज्जत तं म भिंदंति सत्थाइं ॥ ६१८८ ॥ जन्नामग्गहणे वि हु उसहकरणे व्व जंति वाहीओ । नासइ साइणिदोसो मूलीए तीए आणाए ॥ ६१८९ ॥ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८३ रयणसुंदरकहा जं ताओ व तक्कहणाओ तासिओ झ त्ति जंति भूयाई । संति करणे व्व तीए विट्ठाए वि समइ गहपीडा ॥ ६१९० ॥ वसियरण-जरीकरणुच्चाडण-थंभण-विमोहणाईयं । कप्पलयाए व जीए सरियाए वि सज्झए सव्वं ॥ ६१९१ ॥ वियरइ रिद्धी रोराण देइ असुयाणमुत्तमे पुत्ते । किं बहुणा ? सा चिंतामणि व्व वंछियपयाणेसु ॥ ६१९२ ॥ अणिमा १ महिमा २ गरिमा ३ लघिमा ४ ईसित्त ५ महवसित्तं च ६ तह सव्वकामिय तं पि उ ७ जत्थ तत्थोवाइन्नं ॥ ६१९३ ॥ अट्ठ वि एयाओ महासिद्धीओ फुरंति तीए सह सहस त्ति । अवरं पि कोउयाई, नत्थि तयं जं न सा मुणइ ॥ ६१९४ ॥ चुलसी संखा वि हु चेडया वि आएसा कारयावस्सं । चेड व्व चाडुनिरया कुणंति कज्जाई जीए सया ॥ ६१९५ ॥ किं बहुणा ? भुवणब्भंतरम्मि जं किं पि दुक्करं कज्जं । तं लीलामेत्तेण वि सिज्झइ तीए पसाएण ॥ ६१९६ ॥ (कुलयं) तीए पसायपत्तं अच्चंत जोगसिद्धिनामाहं । पाएण तप्पसाया जाया अहमवि य किंचिन्नू ॥ ६१९७ ॥ विणयाइगुणावज्जियमणाए जोईसरीए मह दिन्नो । अणिमाइअट्ठसिद्धिप्पसाहओ उत्तमो मंतो ॥ ६१९८ ॥ ता एगभत्त-भूसयण-बंभचेराइएहिं तस्स कया । मंतस्स मए बारस वरिसाई पुव्वसेवा वि ॥ ६१९९ ॥ इण्हि तु एगरत्तिय उत्तरसेवाए अवसरो देव ! । साहसियुत्तरसाहयनरसाहिज्जेण सा होइ ॥ ६२०० ॥ निउणं निरूविओ वि हु सच्चविओ देव ! नेव साहसिओ । निस्सेसभुवणगब्भे निब्भयमेगं तुम मुत्तुं ॥ ६२०१ ॥ भवसयसहस्स दुलहं लड़े मणुयत्तमुत्तमं राय ! । कज्जो परोवयारो सया वि जेणेरिसं भणियं ॥ ६२०२ ॥ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૮૪ दो पुरिसे धरउ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी । उवयारे जस्स मई उवयरियं जो न पम्हुस || ६२०३ ॥ तहा उदए पत्ते उत्तम - उवयारं तह करेज्ज सविसेसं । पच्चुवयारमईणं मणोरहा जह विलिज्जति ॥ ६२०४ ॥ ता सामिसाल ! सामलचउद्दसीनिसिनिसीहसमयम्मि । तुह साहिज्जेण झड त्ति सिज्झए पवरमंतो ॥ ६२०५ ॥ अवहीरंतेण पुणो तुमए एयमहमत्तणो मन्ने । विहलं चिय संजायं कट्ठमिमं पुव्वसेवाए ॥ ६२०६ ॥ परमत्थेणं तर च्चिय, दिन्ना सिद्धी तमायरंतेण । ता मह करुणं काउं, साहेज्जेण कुण पसायं ।। ६२०७ ॥ जं न धरंति सपाणे वि पत्थणाभंग - भीरुणो गुरुणो । दक्खिन्नमहोयहिणो, परोवयार - व्वसणरसिया ॥ ६२०८ ॥ ता पहु ! महईए अहं आसाए तुह समीवमल्लीणा । अवसोयणीए विज्जाए, सोविया जामिगिल्ला वि ॥ ६२०९ ॥ भविही तिही - पहाए सच्चिय सामा चउद्दसी देव ! । निद्दायंतो दिट्ठो तुमं मए रयणपल्लंके ॥ ६२१० ॥ ता सुत्तं उट्ठाविउमतरंती भयुब्भरब्भमिरनयणी । आरुहिउं पासाए सेज्जाए ठिया विचिंतेमि ॥ ६२११ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं बीहेमि निवं जग्गावंती गोसम्मि मंतसिद्धिविणं । ता मह कट्टं विहलं ति सोगओ जाव रोएमि ॥ ६२१२ ॥ ता देव ! तए आगंतुमिह अहं रूयणकारणं पुट्ठा । कहियं च तुह पुरो पहु ! ता मह सिद्धी तुहायत्ता ॥ ६२९३ ॥ आयन्निरं तदुत्तं निवई चिंतइ वराइया एसा । अंगीकय बहुकालिय, सकट्ठविहलत्तणुव्विग्गा ॥ ६२१४ ॥ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा इहइ मह साहेज्जं ता काउं किमिह जुज्जए एत्थ । अहवा परोवयारो, जुत्ते देहे पडणधम्मे ॥ ६२१५ ॥ देहो असासओ सासओ जसो ता तमेव मे जुत्तं । किणिउं परोवयारेण संपयं जेणिसं भणियं ॥ ६२१६ ॥ के केन गया महिमंडलम्मि, ढरढुल्लिऊण दहदियहे । विप्फुरइ जा ण कित्ती, गया वि ते न हु गया हुंति ॥ ६२१७ ॥ आचंदक्कं नंदंतु ते सया, जाण सिय-जसप्फुरियं । रविरोसेण व पयडइ, दिणे वि रयणियरजोण्हभरं ॥ ६२१८ ।। इय भाविऊण भणियं निवेण भद्दे ! अभिवंछियं कुणसु । उत्तरसाहयसाहेज्जकरणं सज्जोहमिहि पि ॥ ६२१९ ॥ सोउं सा निययाभिसंधिसंसिद्धिसंभवणतुट्ठा । काऊण मणिविमाणं भणइ पहुं चडह इह झत्ति ॥ ६२२० ॥ तो राया आरूढो विमाणमणिमत्तवारणुच्छंगे । एयणासणे निविट्ठो उवविट्ठा विट्ठरे सा वि ॥ ६२२१ ॥ अह संचलियं तं रणज्झणंतचलकेउरकिंकिणीजालं । पत्तं च मुहुत्तेण वि उज्जेणिपुरीए तीए गिहो ॥ ६२२२ ॥ तो हंसरोमनिम्मविय सेज्जतूलीए सोवहाणाए । एयणीए सो पसुत्तो नरेसरो गोससमयं जा ॥ ६२२३ ॥ पडिबुद्धो य पभाए पुरीनिरिक्खणकुऊहलाउलिओ । कयगोससमयकिच्चो विणिग्गओ वंठवेसेण ॥ ६२२४ ॥ तिय-चच्चर-रच्छा-वण-मंदिर-सुरमंदिराई पेच्छंता । अवलोइज्जइ लीलावईहिं, मयणो व्व ससिणेहं ॥ ६२२५ ॥ दहुँ उदारधारं, तं बिंति परोप्परं पुरिसप्पवरा । सप्पुरिसरूवधारी को वि इमो भमइ सक्को व्व ॥ ६२२६ ॥ नूणं सामन्नाणं सलक्खणा नेवमागिई होइ । ता कोइ इमो राओ त्ति गुणिजणो ईय पयंपेइ ॥ ६२२७ ॥ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ सिरिअणंतजिणचरियं कुवलयदलवेली दीहरेहिं नयणेहिं पेच्छिरो नयरिं । । जा मत्तहत्थिमंथरकयकमगमणो परिब्भमइ ॥ ६२२८ ॥ नारायमंदिरा भूरिदाणमिलमाणमुहरभमरेहिं । बंदीहिं निवो व्व करी, वेढिज्जंतो विणिक्खंतो ॥ ६२२९ ॥ अग्गारोहप्पच्छासयणिया धूणीए पाडिया तेण । मच्छीउवगोफुरणं काउं च महेण व गएण ॥ ६२३० ॥ जोउव्वो अच्चंतं दूरं सिंदूररत्तकुंभदुगो । सोहइ समकालुग्गय नवरवि-जुयलो व्व उदयगिरी ॥ ६२३१ ॥ जो अच्चंतं सामो, मणिभूसणभूरिकिरणचित्तंगो । नवजलहरो व्व सुरचावचक्कसमलंकिओ सहइ ॥ ६२३२ ॥ जो उड्ढीकयकरमुक्कपेक्कपुक्कारसिक्करा सारं । अंतोहुत्त अमायं तमो त्ति ओहं च विक्खिवइ ॥ ६२३३ ॥ भग्गालाणं सुन्नासणं च गुरुवेयपसरभयजणयं । तं दह्णारूढो लोगो घरपुरतरुसिहरेसु ॥ ६२३४ ॥ पासायपउलीओ पाडतो भूरुहे य भंजंतो । सगडाई विहाडिंतो मारतो तरलतुरए वि ॥ ६२३५ ॥ ताडेउं पाडतो तठे करहेयथोरहत्थेणं । चूरंतो चरणेणं भयपडिए कायरे पुरिसे ॥ ६२३६ ॥ तड्डविय कन्नतालं, जत्तो जत्तो निरिक्खइ सधीरं । निवडंति तत्थ तत्थ य नर-तिरिया तस्स नासंता ॥ ६२३७ ॥ तग्गयभयउब्भंता हल्लोहलिया पुरी समग्गा वि । सासंको च्चिय भूमीए भमइ लोओ सकज्जे वि ॥ ६२३८ ॥ एत्थंतरम्मि चउहट्टयम्मि कज्जत्थिलोयपडिपुन्ने । पुरिमिक्खंतो पत्तो, महीवई मत्तहत्थी वि ॥ ६२३९ ॥ बाला रुयंति कंपंति कायरा कामिणीओ कंदति । सूरा वि भीरुयत्तं, भयं ति पत्ते करिकयंते ॥ ६२४० ॥ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ । रयणसुंदरकहा एत्थंतरम्मि गयभव-भयत्तनासंतलोयहलबोलं । सोउं जो जाओ फुरियरोसउक्करिसदुद्धरिसो ॥ ६२४१ ॥ उक्खित्तकरो तुरियं, गज्जंतो नवघणो व्व गंभीरं । नासंतनरतुरंगाणुमग्गमुद्धाविओ हत्थी ॥ ६२४२ ॥ दो पासविवणिसेणी सिरगयजणरोलरोसओ करिणा । वलिऊण हट्टखंभो, वेगेणायड्ढिओ झ त्ति ॥ ६२४३ ॥ तो समकालं पडियं दड त्ति निबिडयरकट्ठघडियं पि । गुरुहट्टपट्टसाला तिगमक्कंदंतजणजुत्तं ॥ ६२४४ ॥ तो तेणिक्का जोव्वणरमणीया रईयरम्मसिंगारा । गब्भमरालसगमणा बाला बालेण सच्चविया ॥ ६२४५ ॥ अइकोवुक्करिसविमुक्कफारफुक्कारविदुरिल्लेण । पक्खिविय करं करिणा संगहिया तयणु सा सहसा ॥ ६२४६ ॥ गुरुकरिकयंतउत्तासकंपिरा सुंदरी भणइ भो भो ।। धावह धावह सिग्धं, मोयावह मं करिजमाओ ॥ ६२४७ ॥ के निवीरा पुहई किमिहत्थि न कोइ सत्तसारनरो । जमुवेक्खह मं करिणा हणिज्जमाणिं नियंता वि ॥ ६२४८ ॥ तो उच्चट्ठाणारूढलोयहाहारवो समुच्छलिओ ।। (क्खह रक्खह करिणो सयासओ रमणिमेयं ति || ६२४९ ॥ पहणतेसु चउद्दिसि पडिकारेसु पमुक्कहक्केसु । . छलकट्टय-पुरिसेसु य नियडीहुंतेसु महिलत्थं ॥ ६२५० ॥ पासायसिरारूढे अवलोयतम्मि तप्पुरि नरिंदे । किं कायव्व विमूढे भडविंदम्मि वि ठिए दूरे ॥ ६२५१ ॥ तो मणिसुंदरराया गयकरगयगुव्विणीरमणिरुयणा । विप्फुरिय करुणभावो तिणगणणागणियनियदेहो ॥ ६२५२ ॥ गाढीकयपरिहाणो दढबंधनिबद्धकुंतलकलावो । करणेण करि पहणइ पयप्पहारेणं कुंभयडे ॥ ६२५३ ॥ Jain Edication International Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ उद्दालिऊण वालं महीए तं मुत्तुमुग्गवेगेण । हक्कंतो संचलिओ राया हत्थी वि निवमग्गे ॥ ६२५४ ॥ बालाए रायपिट्ठीए धाविरं पेच्छिऊण दुट्ठकरिं । भणियं गुरुसद्देणं अहो महासत्त ! निसुणेसु ॥ ६२५५ ॥ मह कीडियकप्पाए कलिकप्पहुमपरोवयारपरो । किमिणत्थे विच्छिन्ने अप्पा तुमए विणिक्खित्तो ॥ ६२५६ ॥ करिदिन्नग्गहणासो पसरइ रायारएण गरुएण । अणुसरइ करी वि तयं संझावसरो व्व रविबिंबं ॥ ६२५७ ॥ गच्छंतम्मि निवम्मि गच्छइ वलिरम्मि वलइ दच्छी वि । अणुरत्तसेवओ विव, पहुचित्तणुवत्तणुक्कत्तो ॥ ६२५८ ॥ पुरओ रएण राया गच्छइ पेच्छई य हत्थिणो समुहं । तह उज्जमं ति गरुया, न हवइ णत्थो जह पराओ ॥ ६२५९ ॥ आसन्नगयम्मि गए तव्वामंगं निवो गओ झति । वलिओ करी वितं पइ गुरु न मंदो समाद्धे ॥ ६२६० ॥ खिन्नो वि धावइ च्चिय न मुयइ मग्गं करी नरिंदस्स । वसणावडिओ वि गुरू न कुणइ पारद्धपरिहरणं ।। ६२६१ ।। करणेण करिं लंघिय दाहिणपासे गयं निवं नाउं । तक्कयवसियरणो विव तप्पहमणुसरइ हत्थी वि ॥ ६२६२ ॥ पुणरवि धावइ राया तहेव हत्थी वि तव्वहासाए । विरमंति न पावाओ जइ वा संता वि मायंगा || ६२६३ ।। खिन्नो करि ति खित्तम्मि उत्तरीए निवेण निवइति । दंतेहिं भिंदइ तयं कत्तो नाणं मयंधाणं ? || ६२६४ ॥ नियउत्तरीयनिब्भयपरिणयं पेच्छिउं गयराया । करणेण खंधमारुहिय मुट्ठिपहारेहिमभिहणइ ॥ ६२६५ ॥ काउं निप्फंदतणुं गइंदसिक्खावियक्खणो तयणु । तं कुणइ पसंतं मिउगिराहिं हरिऊण कोवभरं ॥ ६२६६ || सिरिअणंतजिणचरियं Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८९ रयणसुंदरकहा तो पडिकारकराओ गहिऊणं अंकुसं गइंदो सो । नेउं गयसालाए, खंभम्मि निवेण अग्गलिओ ॥ ६२६७ ॥ सलहिज्जंतो लोएहिं, हत्थिखंधाओ झ त्ति उत्तरिओ । भणिओ य पडिहारेण विणयपुव्वं कयंजलिणा ॥ ६२६८ ॥ भो पुरिसरयणगरुय । मयणउम्मत्तहत्थिकुलदमण । तुह सत्तरंजिओ तं राया वाहरइ ताएहिं || ६२६९ ॥ भणियं भूवइणा भो पडिहारिण्हि समावणयणत्थं । कयन्हाणो निवपासे गोसाम्म समागमिस्सामि ॥ ६२७० ॥ अज्जं पुण कसिणचउद्दसी तिही विट्ठिमंगलेहिं जुया । एक्कं पि वज्जणिज्जं सुहकज्जे किं पुण तिगं पि ॥ ६२७१ ॥ इय जंपिय पडिहारं विसज्जिउं जा जणेण वुच्चंतो । गुरुहत्थिमंथरगई संपत्तो विवणि-वीहीए ॥ ६२७२ ॥ ता गुव्विणिरमणीए नियपइ-पिउ-भाइ-सहिं-समेयाए । पवरंगयवत्थंचलमुब्भामिय भणियं मिउवयणं ॥ ६२७३ ॥ नररयण धम्मबंधव, परोवयारप्पसत्त जसपत्त ! । आचंदक्कं नंदसु, पुत्त-पुत्ताइगोत्तजुओ ॥ ६२७४ ॥ तो तीए सयणवग्गेण पणमिउं पाणिपउमकयकोसं । जंपियमिमं तए च्चिय, अम्ह विइन्ना इमा बाला ॥ ६२७५ ॥ तणतुलियनियसरीरो जइ न तुममिमंगयाओ रक्खंतो । ता सब्भूणा वि धुवं जममुहकुहरम्मि गच्छंती ॥ ६२७६ ॥ ता निययागमणेणं भवणं अम्हाण सुयणमाणिक्क ! । समलंकरसु महायस ! निद्दक्खिन्ना न जं गुरुणो ॥ ६२७७ ॥ रायाह अहं पवासिओ इहं ता विलंबिउं न खमो । गच्छिस्सं कज्जुस्सुयचित्तो देसंतरे दूरे ॥ ६२७८ ॥ तो तेहिं ढोवियाहिं महग्घवत्थाई राय-पाय-पुरो । भणियं च कुणह अम्हं अणुग्गहं एय भोगेण ॥ ६२७९ ॥ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० सिरिअणंतजिणचरियं तो ताई सहत्थेणं रन्नादिन्नाई तीए रमणीए । तुह करिबुद्धाए भइणि ! मंगलीयं ति इय भणियं ॥ ६२८० ॥ तो तस्स निरीहत्तं सोडीरत्तं च वयण-विन्नासं । दहुँ सव्वो वि जणो विम्हयओ एवमुल्लवइ ॥ ६२८१ ॥ दीसंति पभूया वि हु पुरिसाभूभारकारया भुवणे । नवरं न महासत्तो एय समो अस्थि तिजए वि ॥ ६२८२ ॥ चक्की वा राया वा नज्जइ एसो सुलक्खणतणूए । केणावि कारणेणं जामेगगो भमइ तं चित्तं ॥ ६२८३ ।। ईय भणिरजणालावे, आयन्नंतो पुरीए सव्वाए । पत्तो नरेसरो जोगसिद्धिवरजोइणीभवणे ॥ ६२८४ ॥ अब्भुट्ठिऊण तीए, काउं पय-सोहणाइपडिवत्तिं । भणियं मए सुयं सामि रमणिमोयवेणं करिणो ॥ ६२८५ ॥ कीलावणं च मत्तस्स तस्स ता पह ! न तम्ह जत्तमिणं । विसमविहिविलसियवसा जइ हुतं किं पि हु अणिठें ॥ ६२८६ ॥ ता तुह रज्जब्भंसो मह अयसो वंछियत्थविग्यो य ।। जणवयरिउचमढणमिय अणत्थपत्थारिया हुंती ॥ ६२८७ ॥ रायाह मए सत्तं न नारिगन्माण मारणं दर्छ । करुणाए वसे विहिओ हत्थी न बलाबलेवेण ॥ ६२८८ ॥ जे न खणभंगुरेहिं पाणेहिं परोवयारलेसं पि । कुव्वंति ताण छाया पुरिसाण व अंतरं किमिह ? || ६२८९ ॥ विहिए परोवयारे परिपसरइ ससिकरुज्जला-कित्ती । सग्गापवग्गसम्मग्गसाहओ होइ धम्मो वि ॥ ६२९० ॥ तो तीए सत्ताहियनिवसंभावियसकज्जसिद्धीए । परितोसमुव्वहंतीए करिओ नरवई न्हाणं ॥ ६२९१ ॥ मयणाहिमिस्सचंदणरसेण रइऊणमंगरायं से । रइओ य रम्मवत्थाभरणेहिं समग्गसिंगारो ॥ ६२९२ ॥ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरका तो सालि - सूय - वंजण - घय - नव-पक्कन्न - सिहरिणीहिं निवो । भोयाविओ य तीए ससक्करेणं च खीरेणं ॥ ६२९३ ॥ दाऊण हत्थसोयं मुहसोयं चंदणेण कारविओ । कप्पूरचारुचंदण-चुन्नकरवट्टणं च निवो ॥ ६२९४ ॥ कप्पूर - तया - एला - किम्मिरी - पत्त - जाइफलजुत्तो । कंकोलय-फलकलिओ तंबोलो अप्पिओ रन्नो ।। ६२९५ ॥ भुत्तूणं तंबोलं महल्लपल्लंकललियतूलीए । निद्दासुहमवणिवई माणइ मज्झन्हसमयम्मि ॥ ६२९६ ॥ दिणविरमणसमयम्मि निद्दा विगमम्मि मुक्कपल्लंके । विविहाओ कुणइ वत्ताओ, सो समं जोगसिद्धीए ॥ ६२९७ अहमवि सरामि रयणीए जह निवो जोइणीए सन्नेज्झं । काउं वलइ त्ति विभावि व अत्थं गओ तरणी ॥ ६२९८ ॥ नियपइरविविगमम्मि रुड त्ति संझाए उज्झिओ राओ । जीवंते वि विरच्चइ, पइम्मि महिलामयम्मि न किं ? ॥ ६२९९ ॥ सव्वत्तमवसुविलसिरपवित्तनियतरणितणयअत्थवणे । सोएणं व पुव्वदिसा जाया तिमिरेण कालमुही ॥ ६३०० ॥ पलयानिलउल्लसियकालोयहिकालसलिलपूरो व्व । उत्तमपुरिस अकिच्चायरण च्चिय अयसपसरो व्व ॥ ६३०९ ॥ रिसिघायणाइकारयनरवित्थरमाणपावपुंजो व्व । पच्छायंतो भुवणं वित्थरिओ तिमिरपब्भारो || ६३०२ ।। (जुयलं) नहयलतमालवणसंडमंडली कुसमिय व्व आभाइ । सव्वत्तो परिविप्फुरिय फारतारसमूहेण ॥ ६३०३ ॥ एत्थंतरम्मि सा जोगसिद्धिवरजोइणीकयसिणाणा । विरईय विलेवणाधोयपोत्तिपावरियतणुजट्ठी ॥ ६३०४ ॥ समइक्कंते पढमम्मि समहिए जामिणीए जामम्मि । पउणीकाउं पूओवगरणमखिलं पि सयमेव ॥ ६३०५ ॥ ४९१ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ सिरिअणंतजिणचरियं अद्धत्थंगय-रवि-समयपिहियगोउरनिरुद्धसंचारं । नयरिं रयणविमाणेण राइणा सह विलंघेउं ॥ ६३०६ ॥ मत्ता सिप्पनई नियडनहपहप्पत्तकलसकेउस्स । हारे दारुणदाढक्खजक्ख-भवणस्स भीमम्मि || ६३०७ ।। नियइ गुरुतरमसाणं दुसहसिवा विसरविहियफेक्कारं । अइघोरघोसघुग्घुइरघूयसंघायकयकंपं ॥ ६३०८ ॥ जं पज्जलिरचियाचयमज्झं ताणेयमडयसंघायं । वज्जानलपज्जलमाणनारयं नरयठाणं व ॥ ६३०९ ॥ हयचोररुहिरसित्तं, विकिन्ननरदंतमोत्तियचउक्कं । जं सिरकमलप्पयर, जममिव अत्थाणठाणं व ॥ ६३१० ॥ आबद्धमंडलीया, पाउं रुहिरासवं सिरफलाई । भक्खंता वेयाला घोरसरं जत्थ गाइंति ॥ ६३११ ॥ सिंगारिणो पिसाया घुसिणरसेणेव जम्मि रुहिरेण । मंडंति सामथेरी करंकरूवाओ भज्जाओ ॥ ६३१२ ॥ जत्थग्गिदाहसामे विज्झाय चियाण छारपुंजभरो । नज्जइ लवणसमुद्दे, पडलट्ठियफेण बिंदं व ॥ ६३१३ ॥ जं असिवाण निवासो सूणासाला अनायकारीणं । संकेयठाणं साइणीण भूयाण भोयगिहं ॥ ६३१४ ॥ उस्सूण पक्कमयनरकरंकसलवलिरकिमिकुलच्छलओ । जं सयमवि परिकंपइ बहुरक्खसभूयभीयं व ॥ ६३१५ ॥ पूयसडहडियमडयुच्छलंतबहुमच्छियाभरेहिं जहिं । तिमिरं व तरंगिज्जइ जलिरचिया धूममासलियं ॥ ६३१६ ॥ पसरियकवालमालं सिवासियं घोरविसहरं विउलं । तिणयण-सरीरमिव जलखिज्जइ सइ वि भूइसियं ॥ ६३१७ ॥ दुस्संचारे मयनरकरंककरचरणसीसकेसेहिं । तम्मि विमाणं मोत्तुं पविसइ सा रायसंजुत्ता || ६३१८ ॥ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा तीयुक्तो निवई पहु ! पालेज्जसु अप्पयं पयत्तेण । होहिंति भूयसाइणिपमुहाण जमेत्थ उवसग्गा ।। ६३१९ ।। सज्झाणसमारूढं रक्खेज्ज ममं पि चउदिसिभमिरो । आयड्ढियकरवालुत्तारिय उवसग्गकरखुद्दो ॥ ६३२० ॥ एवं ति भणियगया निबद्धवरवीरगं वि परिहाणो । दिढबंधुरबंधनिबद्धमुद्धमुद्दरुहसंदोहो । ६३२१ ॥ तो कड्ढियासि पट्टयसंकंतचियग्गिजायतेएण । दुट्ठे ! दुट्ठं विरईयउज्जोओ विव नमइ निवई ॥ ६३२२ ॥ तो जोइणीए अवसारिऊण नर- तिरिकरंककिमिजालं । सम्मज्जियघुसिणेण व रुहिरेणं विलिप्पिया पुहई || ६३२३ ॥ खित्तो य तीए कणवीररत्तकुसुमाण सव्वओ पयरो | खिविऊण बलिं दससु वि दिसासु मंडलयमालिहियं ॥ ६३२४ ॥ दिसिपाल -खेत्तदेवय-गहपूयाओ य झत्ति विहियाओ । उवयारियं च चउसट्ठिसंखमवि जोइणीवीढं ॥ ६३२५ ॥ पूयफल-पत्तकणिकदीविया कुसुम - मज्ज - मंसेहिं । पत्तेयं तस्स कया पूया चउसट्ठिसंखेहिं ॥ ६३२६ ॥ उग्गाहियो य गुग्गुल - धूवोवसमं समिस्सिओ तस्स । मुक्कं पसारियमुहं मंडलए अक्खयं मडयं ॥ ६३२७ ॥ नररुहिरवसाविलित्तम्मि तम्मि कणवीरकुसुमकयपूए । कयपउमासणेण बंधा उवविट्ठा सत्तिसावि तया ॥ ६३२८ ॥ नासादेसनिवेसियनयणा कणवीररत्तकुसुमाई | मंतं समुच्चरंती मडयमुहे मुयइ धूवेउं ॥ ६३२९ ॥ जह जह झाणं आरुहइ, जोइणी निब्भया अचलचित्ता । तह तह दसदिसि दिट्ठी भमइ निवो चक्कचित्तीए || ६३३० ॥ तो सहसा भूकंपो जाओ खडहडियनरकरंकट्ठी । निग्धाओ वि भयारसियसलिलघणगयणवरसत्तो ।। ६३३१ ॥ ४९३ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ एत्यंतरे नरिंदो मंडलयसमीवकयपरिब्भमणो । पेच्छइ उच्छलिउं जुज्झियाइं नरसिरकरंकाई ॥ ६३३२ ॥ रक्खस-भूय-पेय- पिसाय - वेयालवंदमइघोरं । नियइ दिसाणननहाओ महिं चउब्भिदियं इंतं ।। ६३३३ || मज्जारिण खरीणं करहीणं सेरहीण य अयाणं । रूवेहिं साइणीओ पेच्छइ तरुगुरुसरीराओ ।। ६३३४ ॥ तं दठ्ठे दाहिणकरउब्भामियतिव्वधार करवालो । वामकरुल्लासियखग्गधेणुओ पसरिओ राया ॥ ६३३५ ॥ हणिय विहाss निबिडट्ठिपंजरं नरकरंकविसरस्स । भिंदइ वेयालवणं ताडियफोडयकरोडीओ ॥ ६३३६ ॥ पहणइ पेए दारेइ रक्खसे भेसए य भूओहं । पायपहारेहिं दड त्ति पाइए सो पिसाए वि ।। ६३३७ ॥ काओ वि असिधेणू दारइ काओ वि खग्गघाएहिं । मज्जारीए पमुहाओ काओ वि दरमलइ पाएहिं ॥ ६३३८ ॥ विसहरकुलं व गरुडाउ सीहसावयाउ हरिणजूहं च । सव्वं पिट्ठविंदं तं नठ्ठे नरवइभयाओ ॥ ६३३९ ॥ एत्थंतरम्मि घणगणपडंततडितडयडुब्भडायारं । हसिरो महिमुब्भंदियविणिग्गओ घोरखेत्तवई ॥ ६३४० ॥ भमरउलकालनियकायकंतिभरतिमिरपूरपसरेण । अप्पं व तिरोहंतो अदिस्स उवसग्गकरणत्थं ॥ ६३४९ ॥ सामलसप्पुद्धनिबद्धअइपिंगविहरसंभारो । चउपासधूमवेढियसिररईयज्जलिरजलणो व्व ॥ ६३४२ ॥ एक्केण करेणाहय उड्डामरडमरुयस्सरभरेण । पयडंतो भुवणक्खयहरविरईय अट्टहासं च ॥ ६३४३ ॥ चीएणमुव्वहंतो रुहिरारुणकत्तियं कसिणकाओ । संझारायारुणियं बीया चंदं व नहमग्गो ॥ ६३४४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ४९५ धरमाणो तइएणं सुहडसिरं परिगिलंतकीलालं । लीलाए वि वेरिवहं भुवणस्स पयासयंतो व्व ॥ ६३४५ ॥ हत्थेण चउत्थेणं कलयंतो सारमेयमुग्गीवं । नरसिरमंसेहाए कं वा न विडंबए आसा ? ॥ ६३४६ ॥ हक्कंतो हे दुढे ! जोइणि-चक्काहसे त्ति घोरगिरं । जा संचलिओ वेगेण जोइणीझाणभंगत्थं ॥ ६३४७ ॥ ता गुरुवेगसमागयरन्नारंभियपहं पउत्तो सो । को नाम तुमं चलियो सि कत्थ किं वा वि कयकोवो ? || ६३४८ ॥ तेणुत्तमहो अणिमाइ, अट्ठ संसिद्धि सामि ! अमरस्स । अविणीयभक्खउ नाम, खेत्तवालो अहं दट्ठी ॥ ६३५९ ॥ गच्छामि दुव्विणीयाए जोइणीए विणासणनिमित्तं । जं कोवकारणं तं पि तुज्झ साहिज्जए सुणसु ॥ ६३५० ॥ एसा हु कम्मचंडालजोडणी मज्झ सामिणो मंतं । मह पूयमकाऊणं आराहइ का इमा नीई ? || ६३५१ ॥ अवलग्गिज्जइ राया, मणुएसु वि पूइऊण पडिहारं । किं पुण देवेसु मणवंछियं दिति जे उण तुट्ठा ॥ ६३५२ ॥ ता मज्झमवन्नापयडणुब्भवं लहउ फलमिमा पावा । अवमाणिया मणुस्सा वि झ त्ति कुप्पंति किं न सुरा ? || ६३५३ ॥ ता मह छुहियस्स इमा विहिणा भक्खं पमाणियं सुहय ! । ताहमिमं भक्खिय नियठाणे जामि त्ति कहियंतो ॥ ६३५४ ॥ तं सोउमवणिनाहो जंपइ भो खेत्तवाल ! तं देवो । ना कीडियकप्पाए इमाए को नाम तुह रोसो ? ॥ ६३५५ ॥ एक्कं इत्थी बिइयं व लिंगिणी तइययं च पुण अयाणा । खेत्ताहिव ! तं किं जेण तुज्झ करुणापयं न इमा ? ॥ ६३५६ ॥ दीणे रिसिम्मि विप्पे बालेसु य महिलियासु गावीसु । पहरंति न सप्पुरिसा सुहडेसु विमुक्कसत्थेसु ॥ ६३५७ ॥ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६ सिरिअणंतजिणचरियं देव च्चिय नयमग्गं नराणं दंसंति जुगसमारंभे । तं पुण देवो वि तमुज्झसे ह हा मोहमूढत्तं ॥ ६३५८ ॥ जे सिक्खा दायारो देवा न य मूढमाणवाण सया । ते वि हु सिक्खादाणं अरिहंति अहो महच्छरियं ॥ ६३५९ ॥ अन्नाणं पट्ठीए परिकलिउं नाणमग्गओ काउं । होउं पसंतचित्तो जुत्ताजुत्तं वियारेसु ॥ ६३६० ॥ तुह हियमिममियकहियं जं लहइ न कोइ परकयं पावं । तं कुणसु जमभिरुईयं, खेत्ताहिव ! जं सुनीई तं ॥ ६३६१ ॥ रायाणुसट्ठिवयणं जायं जुत्तं पि तस्स रोसाय ।। मेहविमुक्कं अमयं पि ऊसरे होइ ऊसाया ॥ ६३६२ ॥ खेत्ताहिवेण भणियं सिक्खं नरकीड ! देसि जं मज्झ । तं किं तुमं गुरू अहव कुलपहू अहव जणओ त्ति ? ॥ ६३६३ ॥ जइ तुह वुत्तेण अहं इमं उवेहेमि जोइणिं दर्छ । ता अन्ने वि अवन्नं मह निस्संका करिस्संति ॥ ६३६४ ॥ हुंति ससंका अवरे वि निच्छियं मारियाए एयाए । जेण अहं पावाए कलिओ लहूओ तणाओ वि ॥ ६३६५ ॥ विहियावन्नं एयं पि जोइयं पिइठाणम्मि ज्झाणगयं । मारेउं गहियसिरो अहमेउं मारिउं पत्तो ।। ६३६६ ॥ निकुट्टिय मारिस्सं तह कह वि हु जोइणि इमं पि अहं । जोईण जहा नाम पि नासए भुवणगब्भे वि ॥ ६३६७ ॥ ईय जंपिय जा चलिओ रएण ता राइणा इमं भणिओ । मा गच्छसु खेत्ताहिव ! न देमि मारिउमहमिमं तो ॥ ६३६८ ॥ मह भरवसएणमिमा जेण ज्झाणम्मि इण्हिमारूढा । सामेण व दंडेण व ता तमहं वारइस्सामि ॥ ६३६९ ॥ तो खुदो खेत्तवई जंपइ नरकीड ! मं तुम खलसि ? । राएणुत्तं को तं तुह नाहं पि हु खलेमि अहं ॥ ६३७० ॥ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा तो रोसवसप्पमुक्कापेक्कहक्केण खेत्तवालेण । मुक्को झड त्ति रायस्स दुस्सहो कत्तिया घाओ ।। ६३७१ ।। करणक्कमेण तं वंचिऊण नरनायगेण खेत्तवरं । हणिऊण पायघाएण पाडिओ भूमिवट्ठम्मि ॥ ६३७२ ॥ तो झत्ति उट्ठिऊणं तेणुल्लालियनिवो नहे खित्तो । निवडंतस्साभिमुही भेयत्थं कत्तिया वि कया ।। ६३७३ ।। निवडतेण निवेण वि तस्सम्मुहभुयग्गगहियखग्गेण । तालुतलेणं जा नाहिमंडलं ताव सो भिन्नो ॥ ६३७४ ॥ आमोडिऊण दाहिणभुयाओ सत्ति व्व कत्तिया गहिया । तेणा वि करप्पहरेण धाडिउं पाडिओ राया ।। ६३७५ || आयड्ढि नियंगाओ खग्गमुग्गीरिडं निवं जाव । हणिउं लग्गो खग्गो ता पडिओ निवपयप्पहओ ।। ६३७६ ॥ ता ते निराउह च्चिय दुन्नि वि मल्ल व्व जुज्झिउं लग्गा । कडिबद्धछूरिया वि हु नीइ त्ति निवो न तं हाइ ॥ ६३७७ ॥ अह बद्धिउमारद्धो खेत्तवरं अनइअयसपसरो व्व । भुवणस्स वि भयजणओ, अइकालकरालकाएण ।। ६३७८ ।। तक्केसग्गहणत्थं करणेण निवो वि झ त्ति उच्छलिओ । गिलिओयक्करकवलो व्व तेण वयणं विडंबेउं ॥ ६३७९ ।। तयणु च्छुरियाए वियारिऊण उयरं विणिग्गए तम्मि । अइविरसमारसंतो झड त्ति खेत्ताहिवो नट्ठो ॥ ६३८० ॥ एत्थंतरम्मि संसिद्धमंतउल्लसियपहरिसुक्करिसा । मडगाओ सहस त्ति उट्ठिया जोगसिद्धीवि ॥ ६३८१ ॥ संसिद्धमंतदेवप्पभावओ उल्लसिय तेयपब्भारा । सोहंती सा सूरप्पह व्व तिमिरक्करं हणिउं ॥ ६३८२ ॥ (जुयलं) चलिया लीलारएण झणंतमंजीरसिंजियसरेण । कूईयमुल्लासंती नइतडट्ठिय रायहंसाण ॥ ६३८३ ॥ ४९७ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९८ सिरिअणंतजिणचरियं पत्ता रायसमीवे, भामियवत्थंचलं समुल्लवइ । तुह साहसेण जाया पहु ! मह मंतस्स संसिद्धी ॥ ६३८४ ॥ न कुणंतो जइ तं पुरिसरयण ! मह मंतसाहणसाहेज्जं । ना मारिज्जंती हं कयत्थिर्ड खेत्तवालेण ॥ ६३८५ ॥ मह सामि ! दुवालसवरिसपुव्वसेवाए कट्ठमज्जेव । पडिवन्नपालएणं तुमए च्चिय सहलयं नीयं ॥ ६३८६ ॥ अंगीकयनिव्वहणुच्छूढजसो एत्थ देव ! तं चेव । वीरवरो वि पविसइ जन्न अवंतीमसाणम्मि ॥ ६३८७ ॥ ता नंदाचंदक्कं पावसु तं सव्वभूमिरज्जं पि । नरमाणिक्क ! पवद्धउ पुत्त-पुत्तेहिं तुह वंसो ॥ ६३८८ ॥ मज्झ वि जाया सत्ती वंछियवत्थुप्पयाणविसयम्मि । जाणामि तं अपुत्तं तुह साहससिद्धमंतेण ॥ ६३८९ ॥ पढमं कज्जं कज्जं गुरुणी आणाए होइ देव ! जओ । वद्धावेमो गुरुणिं समंतसिद्धीए ता चलह ॥ ६३९० ॥ खणमित्तं माणेउं निद्दासोक्खं तओ पभायम्मि । जोईसरीए मिलिउं गच्छिज्जह नाह ! नियनयरे ॥ ६३९१ ॥ तो तीए जुओ राया रयणविमाणेण तग्गिहे पत्तो । सुत्तो य जामिणीए सेसे पल्लंकमारुहिडं ॥ ६३९२ ॥ सुरमंदिरवज्जिरगोससूयगाउज्जसद्दसंबुद्धो । पाभाउयकिच्चाई, कारविओ जोगसिद्धीए ॥ ६३९३ ॥ तो सा नियगुरुणीजोग्गवत्थलंकारअक्खवत्ताई । गहिऊण पुरो काउं निवई तम्मंदिरं पत्ता ॥ ६३९४ ॥ दिट्ठा य तम्मि मणि-कणय-दंड-दोलाविसालसेज्जगया । विज्जुपरमाणुगणनिम्मिय व्व नवकणयगोरंगी ॥ ६३९५ ॥ रयणाभरणपहाभरदुनिरिक्खासरयरविकरालि व्व । विप्फुरियसुतारुज्जलचंदमुही कोमुइनिसि व्व ॥ ६३९६ ॥ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरका बालकुमारी वाईसरि व्व लच्छि व्व चारुकरकमला । सेविज्जंती चेडयचक्केण नरिंदकंत व्व ॥ ६३९७ ॥ आराहिज्जेती बहुजोइयजोइणिजणेण विणयपरं । जोईसरीसरन्ना सरणागयसव्वसत्ताण ॥ ६३९८ ॥ ( कुलयं) दट्ठूण निवं सहसा उज्झियदोला चलंतसेज्जं सा । परिवारजुया मंथरगईए पत्ता निवाभिमुहं ॥ ६३९९ ॥ पावेसु सव्वसिद्धीओ राय ! राय त्ति दिन्नआसीसा । जंपइ दोलासिज्जं एयमलंकरह पहुणो त्ति ॥ ६४०० ॥ उचियप्पडिवत्तिकमं राया जोगीसरीए रइऊण । उवविट्ठो आरुहिउं दोलापल्लंकतूलीए ॥ ६४०१ ॥ जोईसरी वि रायाणापरायणासणे समुवविट्ठा । सेसो य जोगसिद्धिप्पमुहजणो वि हु जहाजोग्गं ॥ ६४०२ ॥ जोगीसरीए भणियं भूमीवइ ! भवणगब्भमखिलं पि । सुहण पवित्तेणं तुमए रविण व्व लंकरियं ॥ ६४०३ ॥ को नाम तुमं व परप्पओयणुज्जयमई महासत्तो । उज्झियरज्जं साहेज्जमेवमायरइ मरणं तं ॥ ६४०४ ॥ किमिपुंजइअकप्पेहिं, बहुएहिं वि किं सुएहि जणणीण ? । परउवयारिक्करओ एक्को वि हु होइ तुह तुल्लो || ६४०५ ॥ जइ तं नागच्छंतो सिद्धं तो ता न जोगसिद्धीए । बहुविग्घयरसुरवई मंताहिट्ठायगो अमरो || ६४०६ ॥ तो राय ! जायसु तुमं, नियहिययाभिमयमुत्तमं वत्युं । निस्सेसभुवणगब्भे जमसत्थं नत्थि मे किं पि ॥ ६४०७ ॥ तं सोउमाह राया जोईसरि ! तुज्झ दंसणाओ वि । किं अस्थि किं पि परमं पत्थेमि तुमं जमणुसरिउं ॥ ६४०८ ॥ अवरं च निगुणस्स वि गुणित्तमारोवसे मह तुमं जं । तं परमवि अप्पसमं पेच्छसि जेणेरिसं भणियं ॥ ६४०९ ॥ ४९९ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० सिरिअणंतजिणचरियं सव्वं पि गुणमयं चिय पडिहाइ जयं विसुद्धहिययाण । मलिणहिययाण तं चिय सगुणं पि हु निग्गुणं होइ ॥ ६४१० ॥ जोईसरी पयंपइ दीणमुदीरइ पहू न सिविणे वि । तेण मणोमयमवि तं न पत्थसे राय ! नायमिमं ॥ ६४११ ।। जाणामि सयं चिय सिद्धमंतदेवाणुभावओ सव्वं । जं तुह कुलनहउज्जोयओ सुओ नत्थि तरणि व्व ॥ ६४१२ ॥ ता चउरासमगुरुणो सगिहप्पत्तस्स अतिहिणो तुज्झ । पाहुत्तयं अपुत्तस्स पुन्नदाणेण काहामि ॥ ६४१३ ॥ ईय जंपिय तीए पसारिओ करो नहयले तओ तम्मि । पडियं झड त्ति परिपक्कपिंगअंबयफलं थूलं ॥ ६४१४ ॥ न निरीहेण वि तुमए निराकरेयव्वमेयमवणिंद ! । जं लोयाणुवयारी इमेण तुह होहिही तणओ ॥ ६४१५ ॥ रिउसमयसिणायाए दइयाए देव ! देज्ज तुममेयं ।। इय जंपिय निवपुरओ तं वरियं तीए सकरठियं ॥ ६४१६ ॥ तमलंघणिज्जवयणा जोईसरिई य पयंपिउं रन्ना । गहिऊण तं फलं नियकरेण संगोवियं सहसा ॥ ६४१७ ॥ तो रयणाभरणाई उत्तमवत्थाई जोगसिद्धीए ।। वियरावियाई जोईसरीए नरनाहहत्थेण ॥ ६४१८ ॥ तो ताई विइन्नाइं निवेण जोईसरीए तीए वि । अब्भुट्ठिऊण दोहि वि करेहिं विणएण गहियाई ॥ ६४१९ ॥ तो भणइ निवो दोन्नि वि जोईसरिजोगसिद्धि मं मुयह । जइ वि हु दुम्मोयाओ तुब्भे मह तह वि जामि अहं ॥ ६४२० ॥ जेणमपुत्तं रज्जं मज्झ विओगे जणो समग्गो वि । धरिहीएण किच्छेण ता न मे जुज्जए ठाऊं ॥ ६४२१ ॥ तं सोऊणं जोईसरीए गुरुगोरवेण कारविया । रन्नो न्हाणविलेवण-भोयण-तंबोलपडिवत्ती ॥ ६४२२ ॥ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ५०१ समलंकरिडं राया रयणाभरणेहिं फुरियकिरणेहिं ।। परिहाविओ य देवंगदेवदूसाइवत्थाइं ॥ ६४२३ ॥ आरोविऊणरणज्झणिरकिंकिणीजालमणिविमाणम्मि । दाऊण सहायत्ते सुप्पहअमरं सपरिवारं ॥ ६४२४ ॥ भणियं च पहु ! तए निरुवयारिजणकयकहाए बंधम्मि । अम्हे वि सुमरणिज्जाओ तयणु ताओ निवो भणइ ॥ ६४२५ ॥ जइ निरुवयारिणीओ तुब्भे ता को महोवयारपरो । न सरिज्जिस्सह कह वा गुणनद्धाओ वि मणे मज्झ ॥ ६४२६ ॥ तुम्हाण मणे जम्मि ठाणे निवसामि तन्न अत्तस्स । दायव्वं ति पयंपिय झड ति चलिओ महीनाहो ॥ ६४२७ ॥ मणपवण-नयणजइणा जवेण सिग्घं पि गयणमग्गेण । पत्तो इह सहस च्चिय दितो तुम्हाण संतोसं ॥ ६४२८ ॥ नाम ति तए जो पहुगमणागमणाण वईयरो पुट्ठो । सो तुह कहिओ त्ति पयंपियं सुरो मणे मल्लीणो ॥ ६४२९ ।। तो मंति-मंडलेसरसामंता पुरिपहाणपुरिसा य । सुय पहु-अच्छेरयकर-चरिया विम्हियमणा बिंति ॥ ६४३० ॥ अहह महच्छरियमहो जं रज्जाइं वि उज्झिउं सामी ! । खयरो व्व मणिविमाणेण जोइणीए सह पउत्तो ॥ ६४३१ ॥ जं पुण तिणगणियसजीविएण बलाओ मोइया बाला । सुमरंताण वि तं कायराण परिकंपए हिययं ॥ ६४३२ ॥ वोत्तुं पि तं न तीरइ भएण जं निसिमसाणमज्झम्मि । भूयपिसायाईणं विद्धंसो विरईओ पहुणो ॥ ६४३३ ॥ जं पुण भीसणखेत्ताहिवेण गिलिएण दारिओ उयरं । निक्खंतं तं सोउं न कस्स चित्तं चमक्केइ ॥ ६४३४ ॥ एयं तु तिजयरज्जाहिसेयसमहियसमाहिसंजणयं । जं जोगसिद्धिजोईसरीहिं दिन्नो सुओ पहुणो ॥ ६४३५ ॥ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ सिरिअणंतजिणचरियं जइ होइ तारयाणं गयणे अंतो मणीण व समुद्दे । ता नियपहुचरियाणं पज्जवसाणं वयं मुणिमो ॥ ६४३६ ॥ इय निययनाहअब्भुदयवन्नणुप्पन्नपरमपरिओसा ।। ते सव्वे वि हु जाया सोक्ख-सुहा सिंधुमग्ग व्व ॥ ६४३७ ॥ घुसिणघणसारचंदण-मयणाही-अगरु-सुरहिकुसुमेहिं । परिवारजुओ वि विसज्जिओ सुरो पूईडं पहुणो ॥ ६४३८ ॥ कइया विअरिओ सिणायए पट्टदेवीए अंबयफलं तं । निवपाससमुवलद्धं उवभुत्तं तोसवसयाए ॥ ६४३९ ॥ भूवइणा सह काऊण कामकेलिं सुहेण सुत्ता सा । रयणीविरमणसमयम्मि सिविणयं नियइ समपयई ॥ ६४४० ॥ विप्फुरियफारकरप्पयारहयतमभररयणरासिं । पेच्छिय निय उच्छंगम्मि पाविया झ त्ति पडिबोहं ॥ ६४४१ ॥ तव्वेलं चिय काउं विणिद्दमवणिंदममयमहुरसरं । सिविणयसच्चवियं रयणरासिमाइक्खए तस्स ॥ ६४४२ ॥ तं सोउं सो उल्लसियतोसपोसेण रिओ भणइ । देवि ! सुओ तुह होही नूणं गुरुगुणरयणरासी ॥ ६४४३ ॥ सोऊण सिविणयत्थं तीए नियउत्तरीयअंतम्मि । एवं होउ त्ति पयंपिरीए बद्धो सउणगंठी ॥ ६४४४ ॥ तो रन्नाणुन्नाया मंथरगई रणझणंतमंजीरा । संपत्ता सुद्धते पारद्धा गब्भमुव्वहिउं ॥ ६४४५ ॥ तीए उयरेण सद्धिं वद्धइ असुहं सवत्तिचित्तेसु । मुहं तीए लवणिमाए तो सो पसरइ नरिंदस्स ॥ ६४४६ ॥ तीए सिहिणेहिं सद्धिं सामी हूयं मुहं रिउ-निवणे । उल्लसियं कित्तीए सह तीए तनूए पंडुत्तं ॥ ६४४७ ॥ जे जे दोहलया तीए हुंति पूरइ नरेसरो ते ते । सामन्ना वि हु एवं कुणंति किं नो महीनाहो ॥ ६४४८ ॥ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा इय तीए उव्वहंतीए गब्भपब्भारमसमतोसाए । पत्तम्मि पसवसमए जाओ सव्वुत्तमो पुत्तो ॥ ६४४९ ॥ तो पसवसमयसमणंतरं पि अहमहमिगाए गंतूण । वद्धाविओ नरिंदो दासीहिं सहासणासीणो ।। ६४५० ।। सुणिय सुयजम्मसमयुल्लसंतसंतोसरसवसो सामी । भूरिस्सिरिं पयच्छइ तासिं पीइप्पयाणम्मि ॥ ६४५१ ॥ आइसई य नयरम्मिं पडिहारमुहेण पुत्तजम्ममहं । सो पारद्धो पउरेहिं हिययसमुप्पन्नपुलएहिं ॥ ६४५२ ॥ तो रायमग्गरत्था-गोउर-तिय- चच्चराइठाणेसु । संमज्जिऊण दिन्नो कुंकुममयमयरसच्छडओ ॥ ६४५३ ।। खित्तो य कुंद - मचकुंद - जाइ सयवत्त- सहसपत्तेहिं । पुप्फप्पयरो पउरो परिमलपरिभमिरभमरउलो ॥ ६४५४ ॥ पडिनेत्तमेहडंबरजद्दरदेवंगदेवदूसेहिं । सव्वाए वि नयरीए पइयाओ हट्टसोहाओ ॥ ६४५५ ॥ नलियातोरणकलिया अनिलचउद्धयरणंतकिंकिणिया । विलसंतकणयकलसा भूरितरा संचिया मंचा || ६४५६ || चिंधालंबद्धयछत्तसिक्करीतोरणावलिसएहिं । पायारोलंकरिओ सगोउरो वि हु चउप्पासं ॥। ६४५७ ।। संतेउरा सपउरा नरिंद - सामंत - मंति - मंडलिया । विज्जिरवद्धावणया नच्चिरलीलावई विसरा ॥ ६४५८ ॥ आगंतुं अत्थाणे पणमिय उवणीयहरिकरिसिरीया । तुब्भे वद्धाविज्जह पुत्तुप्पत्तीए इय बिंति ॥ ६४५९ ।। गहिऊण निवो तदुवायणाई वियरइ य नाणदाणम्मि । करि तुरय- देस - उत्तम - वत्थाहरणाइयं बहुयं ॥ ६४६० ॥ अवलोयइ लउड्डारसरासया पेच्छणयनाडयाईए । हरिसिज्जंतो जत्थईय ताण दाणम्मि भूरिधणं ॥ ६४६१ ॥ ५०३ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ सिरिअणंतजिणचरियं हियक्खयवत्ताओ रायउलं इंति पउररमणीओ ।। पत्तवरवत्थभूसणसिंगाराओ पुणो जंति ॥ ६४६२ ॥ गच्छंतइंतनच्चिरजणंतरालम्मि झ त्ति गंतूण । सुयमुहमिक्खियवलिउं निवो निविट्ठो पुण सहाए ॥ ६४६३ ॥ पइमंदिरं पि वज्जंततूरगिज्जंतगीयसद्देहिं । बंभंडमंडवो वि हु वहिरिज्जइ ऊसवे तम्मि ॥ ६४६४ ॥ एवं वद्धावणयं कारविय दुवालसे दिणे पत्ते । सम्माणिऊण सव्वं पुणरवि सुहि-सयण-पउरजणं ॥ ६४६५ ॥ सिविणयनियनामाणं गहिऊणं अक्खराणि काई पि । रन्ना नामं सिरिरयणसेहरो इय सुयस्स कयं ॥ ६४६६ ॥ ससि-रविदंसण-छट्ठीजागरण-चंकमण-मुंडमाईयं । किरियं कारिज्जंतो असरिसरिद्धिप्पबंधेण || ६४६७ ॥ परिवद्धिउमारद्धो नवरंभाखंभगब्भसुकुमालो । बालो बीयाचंदो व्व सव्वजणनयणआणंदो ॥ ६४६८ ॥ विज्जागहणावसरे विउसस्स कलाकलावकुसलस्स । पाढत्थमप्पिओ तेण पाढिओ उज्जमपरेणं ॥ ६४६९ ॥ रयणायरो व्व सरियाहिं पुन्नपुरिसो व्व भूरिरिद्धीहिं । सव्वाई पि कलाहिं सिग्घं पि अलंकिओ कुमरो ॥ ६४७० ॥ सयलकलाकुलभवणं कुमरं जायं वियाणिउं विउसो । अप्पइ नरवइणो पणमिऊण एवं पयंपंतो ॥ ६४७१ ॥ सत्थेसु उभयहा वि हु जे हुंता पहु ! ममा वि संदेहा । ते वि हु अवणीया झ ति सुहुममइणा कुमारेण ॥ ६४७२ ॥ नाऊण महीयकलं कुमरं अज्झावओ तहा रन्ना । परिपूइओ धणेणं जह दाया सो वि संवुत्तो ॥ ६४७३ ॥ नायाण वि अब्भासं न मुयइ कुमरो कयाइ वि कलाणं । नासइ अगुणिज्जंती विज्ज त्ति जओ सुई सत्थे ॥ ६४७४ ॥ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०५ रयणसुंदरकहा सग्गो व्व सुरिंदेणं गयणाभोगो व्व पव्वचंदेण । सीलेण व साहुजणो नीइपरो सियजसेणे वा ॥ ६४७५ ॥ सुहभावेण व धम्मो सयणागयसिरिहरेण व समुद्दो । रमणिमणोहरनवजोव्वणेण समलंकिओ कुमरो || ६४७६ ॥ तो मित्त व्व विलासा जाया पासट्ठिया कुमारस्स । अणवरयं सेविज्जइ सो दासीहिं व लीलाहिं ॥ ६४७७ ॥ अच्चंतपरिचिया से जाया कंदप्पदप्पनयविणया । सहचारिणो सया वि हु विमलगुणा अंगरक्ख व्व ॥ ६४७८ ॥ सोहइ पियाला वप्पया व साहाए कित्तिपन्भारा । तस्सेवया फुरंता कुव्वंति जयं पि तस्स वसे ॥ ६४७९ ॥ नरनाह-दंडनायग-सामंतामच्चमंडलीयाणं । समवयकुमरेहिं समं कीलंतो गमइ कालं सो ॥ ६४८० ॥ सेवइ य सया गंतुं सहाए नियतायपायसयवत्तं । दिन्नमहाणंदो सो लोयस्स भवट्ठियस्सावि ॥ ६४८१ ॥ कइया वि गोससमयम्मि निवसुओ गुरुकरेणुमारूढो । सियछत्तरियरवी रमणीकरयलचलिरचमरो ॥ ६४८२ ॥ उत्तमउत्तुंगतुरंगवग्गठियमित्तमंडलीकलिओ । पत्तो सहाए पिउपायपंकयं पणमियनिविट्ठो || ६४८३ ॥ एत्थंतरम्मि तारच्छविनियसारीरतेयपसरेण । गयणं निरब्भसारयससिजोण्हजुयं व विरयंतो ॥ ६४८४ ॥ गेरुयरसरत्तंबरपावरणो लोयविरईयप्पणई । विलसंतथूलतारो संझावसरो व्व सविवेओ ॥ ६४८५ ॥ मणइट्ठरायवाइयवीणा भावणवसेण चलिरसिरो । पाहाउयसीयलपवणफंसवसजायकंपो व्व ॥ ६४८६ ॥ धरमाणो नियकंठावलंबिफलिहक्खमालियं विमलं । नियमुहससिसेवागयविलसिरनक्खत्तमालं व ॥ ६४८६७ ॥ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ उव्वहमाणो परिपक्कसालिवणपिंगगुरुजडासउडं । हिममहिहरो व्व सिरधरियगेरुयासिहररमणीओ ।। ६४८८ ॥ सहचारिसिस्सकरधरियछत्तिया हरियतरणिसंतावो । नारयरिसीनहेणं अवयरिओ रायअत्थाणे ॥ ६४८९ ॥ (कुलयं) दट्ठूणं तं नरिंदो सरहसयं मुक्कआसणो सहसा कइवयपयाइं सम्मुो आगतुं भणइ विणण || ६४९० ॥ पहु ! एह पहपयं महासणं भयह महक्कयपसाया । तो सो उवविट्ठो रायरयणसीहासणुच्छंगो ॥ ६४९१ ।। तो सो निवमंडलिय-मंति- सामंत - कुमरसंजुत्तो । पणओ पवित्ततप्पायपउमपरिमिलियभालयलो ।। ६४९२ ॥ आउच्छिओ य पहु-पिहू - भुवणोयरगब्भभमणसीलस्स । तुह सव्वया वि कुसलं जणोवयारप्पसत्तस्स ॥ ६४९३ ॥ सो आह राय ! असिघायखुडियभडसिरकबंधनट्टाई । रणरंगुच्छंगो पिच्छरस्स मह सव्वया कुसलं ॥ ६४९४ ॥ असमछुहा- पिवासा गेलन्नुप्पन्नसइविवज्जासे । पत्तम्मि वि परमन्ने घयसक्करचुन्नमिस्सम्मि ॥ ६४९५ ॥ पविसइ जइ मह सवणे समरभरारंभभेरिभंकारो । ता उज्झिऊण भोज्जं पि जामि तक्कोउयं सत्थुल्लूरियकरिहरिनरसिररुहिरोरुधारवरिसेण । उवसामिज्जइ मह मणकोऊहलदावजालोली || ६४९७ ॥ सो पुन्नाह होअह मह महूसवो तं समग्गकल्लाणं । अदयासिघायदोखंडजायसुहडे जमिक्खेमि ॥ ६४९८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं छं || ६४९६ || (जुयलं ) हुंकारिऊणमन्नोन्नदंसणे तोडणपरेसु सीसेसु । जुज्झत-भडधडेसु य नरिंद ! वीसमइ मह दिट्ठी ।। ६४९९ ॥ गीयाओ विसरमल्लियभडकरुणक्कंदियं मह सुयाह । कडयडरवो वि गयपयचंपणभडभज्जिरिट्ठीण ॥ ६५०० || Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा सम्माणो अवमाणो महसक्कारो वि सो तिरक्कारो । पुज्जइ न जत्थ भंडणभिडंत भडकोउयं राय ! ।। ६५०१ ॥ भडसमर भराभावे दोन्हसवत्तीण मच्छरपराण । अप्पाइऊण कलहंतो भज्जजुज्झं निरिक्खेमि ॥ ६५०२ ॥ ताहि तोडंति ताओ दंतेहिं तह वियारिति निच्चनहरेहिं । अन्नोन्नमुट्ठिघाएहिं हणिय पाडंति दंते वि ॥ ६५०३ ॥ उप्पाडयंति केसे कन्ने तोडंति दिंति निस्सावे । ईसीसिपहरिसो होइ मज्झ तेणावि अवणिंद ! ॥ ६५०४ ॥ अह कह वि मह अभग्गाओ जायए तो सवक्किजुज्झं पि । तो कुक्कुडाइपक्खिप्पभवं पि हु जुज्झमिक्खेमि ॥ ६५०५ ॥ इय कहियं राय ! मए कुसलं तुह अत्तणो याणिं तु । तं पि रयणासणम्मिं उवविसिउं कहसु नियकुसलं ॥ ६५०६ | आएसो त्ति भणित्ता राया तत्थासणे समुवविसिउं । जंपर पहु ! तुह पायप्पसायओ मह सया कुसलं ॥ ६५०७ ॥ तमकप्पियकप्पतरूअचिंतचिंतामणी जमल्लियसि । तं चि कल्लाणाणं ठाणं ठाणं न पहु ! अन्नं ॥ ६५०८ ॥ निक्कज्जाओ पवित्तीउ हुंति कईया वि नूण न गुरूण । ता कहह मह सहाए लंकरणपओयणं पहुणो ? || ६५०९ || तो भाइ नारयरिसी निवकज्जं तुज्झ दंसणं पढमं । अवरं पि जमत्थि तयं पि संपयं सुणसु साहेमि ।। ६५१० || इह अत्थि मयभरब्भमिररवरम्मकरिकुलविलासं । करिकुलविलासनामं नयरं नयरसियनायरयं ॥ ६५११ ॥ विलसिरचरिएण समुन्नएण चंदुज्जलेण जयगुरुणा । सालेण हरेण व जं सोहइ परिहाणवज्जेण ॥ ६५१२ ॥ गयचक्कसंखपाणी गुरुबलभद्दो य सउणरायसिओ । लच्छीविलासराया लच्छीनाहो व्वं तत्थत्थि ॥ ६५१ ॥ ५०७ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ विहयाहियस्सिरीओ बहुसुमणसपत्तवित्तसाहसिओ । उन्नयखंधो किसलयकरो य जो रेहइ तरु व्व ॥ ६५१४ ॥ तस्स पिया पियालावमणहराहरियरइसिरी रूवा । नामेण विलासवई, कंता भत्तारभत्तिपरा ॥ ६५१५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं जा असमसुहा वि महासई वि असरिसअलाववयणा वि । तह वि प्पिया निवइणो न नियइ नारी वसो दोसे ॥ ६५१६ तीए सह भूरिभोगोवभोगउब्भूयसुहरसुक्करिसा ! जंतं पि न मुणइ कालं निवो सग्गे सुरवइ व्व ॥ ६५१७ ॥ सुहसिविणसूईया ताण अत्थि कन्ना मणुन्नलायन्ना । नामेण रयणमाला सामलबाला पिहुलभाला ॥ ६५१८ ॥ गोरी वि सई वि वरस्सिरी वि विलसिररई सवित्ती वि । दईया पिया वि हु बाला जं सा कन्ना तमच्छरियं ॥ ६५१९ ॥ दट्ठूण रूवरिद्धिं जीए संभोय- भावणवसेण । विम्हरियच्छिनिमेस व्व अणिमिसत्तं सुरे पत्ता ॥ ६५२० ॥ रमणीरयणं अन्नं पि अस्थि किं वा न एरिसं भुवणे । तप्पिच्छणत्थमिव परियडंतगयणेण ससि - रविणो ॥ ६५२९ ॥ गुरुणा मईए ससिणा कलासु वाईसरीएसु कइत्ते । सा विरईय - सन्नेज्झ व्व एय अत्थेसु पत्तट्ठा ॥ ६५२२ ॥ नवजोव्वणुप्पभावुल्लसंतसोहग्गचंगअंगलया । पेच्छइ जणाण हियया इह रइहेलाए हरिणच्छी ॥ ६५२३ ॥ अह अन्नया कयाइं समसिंगारविरायमाणसव्वंगी । समवयवयस्सिया दासचेडियाचक्कपरिवारा ॥ ६५२४ ॥ आरूढा रयणसुहासणम्मि सियछत्तअंतरियतरणी । तरुणीकरकमलुल्लसिरचारुचमरोहसोहसिया ॥ ६५२५ ॥ मागहबहूया ओग्गीयजयजयारावपुव्वथुइपाढा । वज्जिरजय आउज्जासुहडुब्भडचडियपरिवेढा ॥ ६५२६ ॥ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ५०९ दिती दिदि चच्चर-चउक्क-गोउरपरिब्भमिरलोए । पत्ता पकीलिउं कुसुमपरिमलाभिहमहोज्जाणं ॥ ६५२७ ॥ (कुलय) अवलोयंती अंबयवणाई कलरवे कोइलकुलाई । पेच्छंती पुप्फियलयरुणझुणिरब्भमरविंदाई ॥ ६५२८ ॥ नच्चावंती दोलं दोलिरमिहुणाई गुरुतरुतरूसु । ठाणे ठाणे मइरापाणपरं लोयमिक्खंती ॥ ६५२९ ॥ कयलीहरेसु कोलारसाउलं जुवजणं नियंती सा । एवं भमिरी दुमसंडमंडली मंडिए तम्मि ॥ ६५३० ॥ कत्थविय सुहपएसम्मि कणयपंकयमहासणासीणं । पेच्छइ केवलनाणिं मुणीसरं साहुपरियरियं ॥ ६५३१ ॥ देसंतं तद्देसामरनरनारी सरूवपरिसाए । सद्धम्मं निम्मूलुंमूलिय मोक्खत्थिदुक्कम्मं ॥ ६५३२ ॥ तं दटुं सा बाला परिहरिय सुहासणा सही सहिया । । कोऊहलेण केवलिकमकमलं तं समणुपत्ता ॥ ६५३३ ॥ तो तम्मुणिंदवयणारविंदमभिपेच्छिरी गया मुच्छं । पडिया य महीवढे निम्मीलिया न सयवत्ता ॥ ६५३४ ॥ तो झ त्ति ससंभमधावमाणदासीवियस्सिविसरेण । सिसिरोवयारकिरियाहिं ण ठिया चेयणं कुमरी ॥ ६५३५ ॥ आपुच्छिया य मुच्छाए कारणं भणइ पुच्छह मुणिंदं । इय जंपियभत्तीए तीए पणओ विमलनाणी ॥ ६५३६ ॥ भणियं च पहु ! इमा मह रिद्धी खवगप्पसायओ जाया । अहवा गुरुप्पसाएण पाणिणं किन्न कल्लाणं ? ॥ ६५३७ ॥ ता से वयंसिवग्गो नमिऊणमणंतनाणिपयपउमं ।। पुच्छइ पहु ! अम्ह सहीए कारणं कहह मुच्छाए ? || ६५३८ ॥ आह पहू आयन्नह आरामपरंपरा परिखित्तो । आरामसुंदरो नाम अत्थि गामो समिद्धजणो ॥ ६५३९ ॥ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० सिरिअणंतजिणचरियं जो सव्वणओ सुकुलब्भवो व सुंदरमहो व (सुहयरो) । पवणे व्व चंचलजुओ वरिसो विव जाय बहुमासो ॥ ६५४० ॥ रोगि व्व कलमलसिओ रोहणसिहरि व्व मणिवयाहारो | दंडो व्व सुवीहीओ सुरालओ उड्ढलोओ व्व ॥ ६५४१ ॥ (जुयल) हिरि वसइ तम्मि आबालकालपरघरकुकम्मनित्थारो । नामेण दुत्थिओ दुत्थिओ य कुलपुत्तओ एगो ॥ ६५४२ ॥ सवहेण वि मुज्झइ सो जइ जिज्जिओ नियगिहमि कईया वि । बहुमलविलीणअइजुन्नहंडिया खंडपावरणो || ६५४३ ॥ दीणमुही दीणमुहि त्ति तस्स कालि व्व कालकिसदेहा । पयडहियट्ठीवंसयगयरो अस्थि पियभज्जा ॥ ६५४४ ॥ अन्नोन्नं पविसंता दुव्विहडाविरलदीदंता से । कुव्वंति कुकम्म च्चिय कयसणभोज्जंतरायं च ।। ६५४५ ॥ जावज्जीवियदुव्विसहदुत्थया दूरदूमियमणाई ।। दिवसाई कहकहमवि गर्मिति अइकट्ठओ ताई ॥ ६५४६ ॥ एत्थंतरम्मि सिहियकुलगिज्जंतो गज्जिवज्जिराउज्जो । सुरधणुजलसरवरिसो पत्तो पाउससरियनरिंदो ॥ ६५४७ ॥ हरिधणुगणरयणाभरणभूसिया मेहडंबरावरणा । पाउसपियसंगे विव नहस्सिरी किरइ रससेयं ॥ ६५४८ ॥ सामलमेहो विलसिरबलाहओ सहइ फुरियविज्जुभरो । लवणोयहि व्व डिंडीरपंडुरो जलि-जलिवडवग्गी ॥ ६५४९ ॥ परिफुट्टकेयईवणधूलीपडलं दिसासु वित्थरइ । जत्थामयदाणज्जियजसो व्व जलहरनरिंदस्स ॥ ६५५० ॥ दीसंती पंतिठियमहुयराइं बहुसेयकेयइदलाई । आणा पत्ता ईव मयणनिवइणो जम्मि लिहियाइं ॥ ६५५१ ॥ दिसि-दिसिजलबिंदुजालजुयनीलतणभराधरणी । रेहइ मरगयकुट्टिमतलकयमुत्ताहलभर व्व ॥ ६५५२ ॥ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा आसारनीरधाराधोरणिसंमिलियसलिलपूरेण । एगन्नव व्व जगई नज्जइ निउणेहिं वि नरेहिं ॥ ६५५३ ॥ जम्मि सुहिमेहमालालोइऊण नच्चंति पमुईया सिहिणो । अहवा न कस्स हरिसा य जायए सरससुहिसंगो || ६५५४ ॥ अप्पतिरोहणरोसेण निग्गया तारय व्व भिन्नघणा । मेहंधारनिसाए भमिरा रेहंति खज्जोया ॥ ६५५५ ॥ एयारिसिम्मि वरिसायाले निवडंतनीरधारासु । वायंतम्मि महंते वाए सुक्कारमुहरम्मि ॥ ६५५६ ॥ कोलायड्ढय धूलीपडलं जुन्नं घरं वरायस्स । पडियं दड त्ति बिलजलपवेसनिब्भन्नपायतलं ॥ ६५५७ ।। नवरं दिणम्मि दोह वि परभवणे कम्ममायरंताण । तेणमणत्थो जाओ न ताण घरओ वरायाण । ६५५८ ॥ बलहरणघूणाणयणकारणे वीय वासरे गोसे । दोन्नि वि गयाई रन्ने गहिऊण कुहाडए निच्चे ॥ ६५५९ ॥ गिन्हंताणं ताणं घरकरणोवक्कमा य घूणाई । वरिसेउं पारद्धो घणो घणथूलधाराहिं ॥ ६५६० ॥ जलनित्तकायलग्गं तवा य संजायसीयविहुराई । लीइंति ताइं दोन्नि वि चडिऊणासन्नसेलगुहं ॥ ६५६१ ॥ न पवेसे पढमे तेहिं किं पि दिट्ठ गरिट्ठगुहगब्भे । " अहवा को वि न पेच्छइ उज्जोया पविसिरो तिमिरे” ? तो खणमेत्ताणंतरमच्छीओ पेच्छिउं पवत्ताओ । दढ व्व वत्थजायं ताणमविसओ अरूबीजं ॥ ६५५३ ॥ थिरयरकयनयणाइं ताइं निरिक्खंति खवगमुणिमेगं । निच्चलमुस्सग्गठियं, थिरया गुणविजियसुरसेलं ॥ ६५६४ ॥ दट्ठूण तयं जंपंति दो वि पुन्नेक्कमंदिरं एसो । साहू धम्मज्झाणज्जियाण जो ठाउमेगंते ॥ ६५६५ ॥ ५११ ॥ ६५६२ ॥ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ नूणं कल्लाणकडक्खियाइं जं वुट्ठिसीय भेएहिं । अम्हेहिं बुद्धिमंतो धम्मो विव एस सच्चविओ ॥ ६५६६ ॥ ता एय पयपणामं काऊण किं पि सुकयमज्जेमो । सेवा सप्पुरिसाणं जायइ न कयाइ जं विहला || ६५६७ ॥ इय जंपिराइं गंतूण ताइं पणमंति खवगकमकमलं । जोडियकमकमलाई चिट्ठति तयनियंताई ॥ ६५६८ ॥ तम्मि समयम्मि पारिय उस्सग्गो सो मुणी समुवविट्ठो । पुणरवि पणओ तेहिं भत्तिब्भरभिन्नपुलएहिं ।। ६५६९ ।। तो करुणानीरहिणा मुणिणा सद्धम्मदेसणा ताण । वागरिउं पारद्धा भवसिंधुत्तारणेक्कतरी ॥ ६५७० ॥ एसो भवो असारो विज्जुपरिप्फुरियचंचला लच्छी । अनिलुच्छालियसरजलकल्लोलचलाचलं आउं ॥ ६५७१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं अणवरयचलिरकरिकन्नतालतुलमतुलतारतारुन्नं । लीलावई विलोलच्छिसच्छहं ललिथलायन्नं ॥ ६५७२ ॥ नवजलयपडलतलविलसमाणहरिचावचंचलो देहो । घणनेहनद्धबंधवसमागमावित्तिवित्तिसमा ॥ ६५७३ ॥ सारयसमरयसमुब्भवअब्भयभरभंगुरं पहुत्तं पि । एगो च्चिय अविणस्सरथिरस्सरूवो, धुवं धम्मो ॥ ६५७४ ।। धम्मो अभग्गसोहग्गचंगया संगदाणदुल्ललिओ । धम्मो भीमभवुब्भवपावप्पब्भारवणदाबो | ६५७५ ॥ धम्मो समग्गकल्लाणकंदकंदलणघणजलासारो । धम्मो दुग्गमसग्गापवग्गसमग्गसत्थाहो ॥ ६५७६ ॥ सो साहुसावयुब्भवभेएहिं दुहा पयासिओ समए । पढमो दसप्पयारो बीओ य पुणो दुवालसहा ॥ ६५७७ ॥ खंती य मद्दवो अज्जवो य मुत्ती तवो य नायव्वो । संजमसच्चाकिंचण - सोयाइं बंभचेरं च ॥ ६५७८ ॥ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१३ रयणसुंदरकहा जीवदया अणलीयं परधणचाओ परिस्थिपरिहारो । माणं परिग्गहस्स उ दिसिमाणं भोगमाणं च ॥ ६५७९ ॥ वज्जणमणत्थदंडस्स तह य सामाईयस्स आयरणं । देसावगासमाणं पोसहपालणमनिहिदाणं ॥ ६५८० ॥ दोन्नि वि एए धम्मा पसाहया सग्गमोक्खसोक्खाण । नवरं पढमो सिग्धं कमेण पुण बीयओ भणिओ ॥ ६५८१ ॥ एए उ हुंति फलया विसुद्धसम्मत्तसंगया संता ।। जिणदेव-साहु-गुरुजीवपमुहतत्तेहिं तं सुद्धं ॥ ६५८२ ॥ नीरागो निद्दोसो सद्धम्मपयासओ विमलनाणी । तत्थ जिणिंदो देवो पवज्जियव्वोसि वत्थूहिं ॥ ६५८३ ॥ बज्झन्मंतरगंशेण वज्जिओ जुगपहाण समयधरो । सज्झायज्झाणरओ गज्झो गुरुसु वि उवयारी ॥ ६५८४ ॥ जीवो तहा अजीवो पुन्नं पावं व बंध-मोक्खा य । तह आसव-संवर-निज्जरा य एयाई तत्ताई ॥ ६५८५ ॥ एयं धम्मरहस्सं एयं भवभमणवारणं नूणं । एएण सिवं भव्वा पत्ता जंतिय गमिस्संति ॥ ६५८६ ॥ ता भद्दाई इमे तुम्ह साहिया सग्गसिवफला धम्मा । जइ भवभीरूणिससत्तिसरिसमायरह तं तुब्भे ॥ ६५८७ ॥ तत्तो चित्तस्संतो पाउब्भूयए भूयसत्तीए । पुलयाकलियाई दोन्नि वि आणंदस्संदिरच्छीणि ॥ ६५८८ ॥ महिमिलियजाणुकरभालुफलयमभिनमिय रईयकरकोसं । जंपंति आभवं पि हु पहुविहियं पावमम्हेहिं ॥ ६५८९ ॥ इहि पुण होहामो महल्लकल्लाणभायणाई वयं ।। जमजोग्गहि वि पत्ता तुब्भे कल्लाणपत्तमिह ॥ ६५९० ॥ घरनिवडणं अरन्नागमो य जलतासणं च अम्हाण । पुन्नुप्पत्तिनिमित्तं जायाई दंसणे तुम्हे ॥ ६५९१ ॥ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ सिरिअणंतजिणचरियं ता देह देसविरई न सव्वविरई रुई जओ अम्ह । पत्थं पि हु अरुईए भत्तमणुत्थाय होइ सुवं ॥ ६५९२ ॥ तो खवगेण विइन्नो तेसिं धम्मो दुवालसविहो वि । सम्मत्ताई तेहिं वि गहिओ भोज्जं व छुहिएहिं ॥ ६५९३ ॥ तो पणमिऊण खवगं जलधारा निवडणम्मि विरयम्मि । घूणावलहरणाई गहियगिहे दो वि पत्ताई ॥ ६५९४ ॥ काऊण तणकुडीरयमावसमाणाई अणुदिणं तम्मि । वंदंति तिसंझं चिय जिणचंदममंदभत्तीए ॥ ६५९५ ॥ कलयंति य सहलत्तं सधम्मुवओगओ नरत्तस्स । नंदंति य पावकरं कयं कुकम्मं जमा जस्सं ॥ ६५९६ ॥ धम्माणुभावओवसंतअंतरायाण ताणमीसीमि । जायई सया वि लाहो भोयण-वत्थज्जणाईओ ॥ ६५९७ ॥ तो दिट्ठपच्चयाणं तेसिं धम्मम्मि आयरो जाओ । कुव्वंति य जह लाहं ताण जिणिंदाण पूयाइं ॥ ६५९८ ॥ वंदंति य गंतूणं निच्चं चिय तं गुहाए खवगमुणिं । एवं वटुंताणं ताणं चउम्मासयं पत्तं ॥ ६५९९ ॥ तो दोहि वि कंठसिणाणपुव्वपावरियधोयपोत्तेहिं । अट्ठप्पयारपूयापुव्वं जिणवंदणं विहियं ॥ ६६०० ॥ दाउं दुवालसावत्तवंदणं गुरुपुरो पवज्जंति । पच्चक्खाणमभत्तट्ठमसमसद्धा विसुद्धाइं ॥ ६६०१ ॥ बीयम्मि दिणे वंदियदेवे काउं च संघखामणयं । गहिउं परमन्नं दो वि पारणत्थं निविट्ठाइं ॥ ६६०२ ॥ अवलोयंति दुवारं जइ कोइ समेइ संपयं अतिही । ता से दाउं जुज्जइ भुत्तं अम्हं ति चिंताए ॥ ६६०३ ॥ एत्थंतरम्मि सो गिरिगुहामुणी गुणमणी नईनाहो ।। कयमासचउक्काहारचायसंजायकिसकाओ ॥ ६६०४ ॥ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा जुगमेत्तखेत्तनिक्खित्तनेत्तसंरक्खियाखिलसरीरी । अतुलियचवलं गोयरचरियत्थं गाममणुपत्तो ॥ ६६०५ ॥ मा महनिमित्तमीसरघरेसु होही अणेसणा विहिया । ता जामि दरिद्दिकुलेसु इय विचिंतिय कुणतो तं ॥ ६६०६ ॥ गामप्पवेसनियडे कुडीरए दुत्थियस्स थिमियगई । पविसियउ दुवारे रवितावुत्तत्तमुत्ती सो ॥ ६६०७ ॥ दिट्ठो य तेहिं असमप्पमोयपब्भारपुलईयंगेहिं ।। भत्तिब्भरप्पवत्तपवित्तअंसुजलसित्तगत्तेहिं ॥ ६६०८ ॥ घयसक्करावि मिस्सियमणुन्नपरमन्नपुन्नपत्ताई ।। उक्खिविय बिंति दोन्नि वि पुहु ! गिण्हसु सुद्धमन्नं ति ॥ ६६०९ ।। तो दव्वाइविसुद्धिचउव्विहं पि हु विभाविऊण मुणी । गिण्हइं तं जमकप्पं छुहिया वि न लिंति तं मुणिणो ॥ ६६१० ॥ तप्पत्तदुग्गाओ वि थोव-थोवमंगीकयं खवगमुणिणो । गिण्हंति सावसेसियदव्वं मुणिणो त्ति समयुत्ती ॥ ६६११ ॥ दहें चउमासखवगसाहुपरमन्नपारणयदाणं । जिणपवयणभत्तसुरेहिं सहरिसं भत्तिभरिएहिं ॥ ६६१२ ॥ उग्घुटुं गयणम्मि “अहो सुदाणं अहो सुदाणं" ति । गंधोदएण वुड्ठं च वाईया दुंदुहीओ य ॥ ६६१३ ॥ चेलुक्खेवो विहिओ सद्धदुवालससुवन्नकोडीओ । खित्ताओ पिंजरपहाभरअहरियविज्जुपुंजाओ ॥ ६६१४ ॥ सव्वुत्तमपत्तनिउत्तदाणपरिओसपोससुहिएहिं । तेहिं उ संतोसो गामारामे मुणी पत्तो ॥ ६६१५ ॥ इरियावहिया पडिक्कमणपुव्वमालोइऊणमाहारं । कयसज्झाओ वंदियजिणेसरो तयणु सो भुत्तो ॥ ६६१६ ॥ सव्वुत्तमपत्तनिउत्तदाणभावेणमज्जियं तेहिं । सुहजोगफलं कम्मं भवो परित्तीकओ तह य ॥ ६६१७ ॥ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ सिरिअणंतजिणचरियं दठ्ठे सुवन्नवुठि गामाहिवई गहेउमारद्धो । सगडाई पउणिऊणं गहिच्छिउं उत्थियं झति ॥ ६६९८ ॥ तयणु सुवन्नट्ठाणे संजाओ मुक्कपेक्कपुक्कारो । उड्ढीकयसुंडादंडचंडगलगज्जिदुद्धरिसो ॥ ६६१९ ॥ मसिणियसुवन्नचुन्नच्छडाकडारोरुकेसरपहाहिं । परिविरयंतो दूरं विज्जुभरा पिंजरं च जयं ॥ ६६२० ॥ दीहरनंगूलदढप्पहारकंपावियावणीवीढो । वज्जंकुससरिसक्कनहरचवेडुब्भडायारो ॥ ६६२१ ॥ उद्दंडपंडुदंतो सरहो उद्धाईओ गुरुरणं । तो तब्भयभरविहुरो सप्परियरो ठक्कुरो नट्ठो ॥ ६६२२ || (कुलयं ) एत्थंतरंमि विष्फुरियफारतणुतेयपसरदुनिरिक्खा । पयडीहूया अमरप्पलयुब्भवसहसकिरण व्व ॥ ६६२३ ॥ जंपंति साहुदाणाणंदियचित्तेहिं दाउमम्हेहिं । सहस त्ति कणयकोडीओ दुत्थिओ सत्थिओ विहिओ || ६६२४ ॥ तत्तो जो लवमेत्तं पि गिण्हही एय संतियं कणयं । अम्ह पभावओ सो मरिही सहसा सिरं फुडिउं ॥ ६६२५ ॥ जस्स पुणो सयमेसो वियरइ वद्धंतनेहभरपसरो । सो विलसिउं सच्छंदं न भणामो किं पि तत्थ वयं ॥ ६६२६ ॥ इय जंपिऊण तिअसा तिरोहिया झ त्ति गयणगब्भम्मि । सरहट्ठाणे पुणरवि जच्चं चामीयरं जायं ॥ ६६२७ ॥ संगहियदुत्थिएणं कारवियं तत्थ तयणुधवलहरं । थिरथोरथंभठियसालिहंजियं विलसिरगवक्खं ॥ ६६२८ ॥ उत्तमलक्खणलंछियगत्ता पुत्ता वि ताणमुप्पन्ना । सिरिधर - सिरिदत्त - सिरप्पभाभिहा रम्मरूधरा ॥ ६६२९ ॥ परिपाढिऊण परिणाविया य ईसरसुयाओ रम्माओ । जयसिरि- सिरीजया नामियाओ कुवलयदलच्छीओ ॥ ६६३० ॥ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१७ रयणसुंदरकहा कुव्वंति ववहारेण जणया णाए विणीयविणया ते । तो निच्चितो जणओ सपिउसद्धम्ममायरइ ॥ ६६३१ ॥ गयणग्गलग्गसिहरालिसंगयं कणयकलससेणिसयं । कारवियं जिणभवणं बावन्नजिणालयं तेण ॥ ६६३२ ॥ तम्मि मणिकणयमयाई वन्नलंछणपमाणरम्माइं । जिणबिंबाई कराविय गणहरमंतेण ठवियाई ॥ ६६३३ ॥ हीरयमुत्ताभूसणविभूसिओ तुंग-तुरयमारूढो । माऊरछत्तअंतरियरविकरो पउरपाइक्को ॥ ६६३४ ॥ अणुगम्मतो रणझणिरकिंकिणीजालरहवरठियाए । दीणमुहाए सिंगारियाए वियसियमुहीए वि ॥ ६६३५ ॥ संझा तिगे वि गंतुं जिणभवणे निच्चमच्चइ जिणिंदे । दीणाईणं दाणाई देइ अवदाणदयरसिओ ॥ ६६३६ ॥ सम्मेयसेलसत्तुंजयाइतित्थेसु कुणइ जत्ताओ । इय सो जिणिंदतित्थप्पभावणाउज्जओ जाओ ॥ ६६३७ ॥ एवं पभूयकालं धम्माणुट्ठाणमायरेऊण । अच्चुयकप्पे सपिओ वि आऊअंते सुरो जाओ ॥ ६६३८ ॥ तत्थ बहुसूरकरदुरवलोयपरिविप्फुरंततणुतेया । दोन्नि वि अमरासुररायसरिसरिद्धीए रमणीया ॥ ६६३९ ॥ नंदीसरमंदरपव्वयाइठाणेसु सिद्धप्पडिमाओ । पूयंति निच्चं पणमइ जिणाण निसुणंति वक्खाणं ॥ ६६४० ॥ कुव्वंति जिणप्पवयणपरिपंथिजणाण सासणं सययं । माणतिय सुरलोओब्भवाई सोक्खाई असमाई ॥ ६६४१ ॥ बावीससागराणं पज्जते अच्चुयाओ चविऊण । दुत्थिय अमरो मणिमइपहुमणिसुंदरसुओ जाओ ॥ ६६४२ ॥ घणरयणाभरणालंकियंगओ रयणसुंदरो नाम । उद्दामजोव्वणुब्भासमाणमुत्ती विमलकित्ती ॥ ६६४३ ॥ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ सिरिअणंतजिणचरियं दीणमुही पुण चविऊणमेस्थलच्छीविलासनरवइणो । तणया जाया नामेण रयणमाला इमा बाला ॥ ६६४४ ॥ नियपरिवारसमेया भमिरी पुरपरिसरम्मि इह पत्ता । पुव्वभवदिट्ठिमुणिवेसधारिणा इह तयं दिट्ठा ॥ ६६४५ ॥ कत्थइ एरिस वेसो मज्झ मुणी दिठ्ठपुव्वओ मन्ने । ईय ईहाईहिं इमाए जाइसरणं समुप्पन्नं ॥ ६६४६ ॥ तो मुच्छियं इमं पेच्छिऊण मुच्छाए कारणं अम्हे । तुब्भेहि पुच्छिया तं पि साहियं तुम्ह सव्वं पि ॥ ६६४७ ॥ जाणंतीए वि न इमाए तुम्ह जं पुव्वभवदुगं कहियं । तं गुरुपुरओ न कहा कहियव्वा ईय कया नीई ॥ ६६४८ ॥ तं सोउं सा बाला पुव्वभवुब्भवपियम्मि अणुरत्ता । वंदिय गुरुमारुहिउं सुहासणे भवणमणुपत्ता || ६६४९ ॥ सद्धम्मसईयनियपुव्वदईयसरणुब्भवंतसंतावा । सुहलवमवि न वि पावइ सा कत्थइ दाहजरिय व्व ॥ ६६५० ॥ सिसिरविमिस्सियचंदणरससिंचियतालयंटपवणेण । सा दज्झइ परिपज्जलिरभाडनिज्झामएणेव ॥ ६६५१ ॥ विरहानलउक्तत्ते गत्ते चंदणरसच्छडा सारो । सत्थं कारंतीए डझंतो मुयइ सोरब्भं ॥ ६६५२ ॥ तल्लोवेल्लिपराए तणुतावविसुक्ककमलसत्थरओ । मुंचइ गिम्ह व्व खुडियसक्कदमुम्मुरारावे ॥ ६६५३ ॥ पिइवणगिहाण वसिमुव्वसाण वुड्ढिक्खयाण न विसेसं । पियविरहविहुरियहरियमाणसा जायए बाला ।। ६६५४ ॥ न मुणइ छुहं न याणइ तिसं पि निदं पि न लहइ निसाए । मुंचई य केवलं सा मुत्ताहलथूलअंसूणि ॥ ६६५५ ॥ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा वामकरगयकवोला पियलाहस्सरणवग्गया विगमे । थरहरियथूलथणं मुंचइ सरलुन्हसासेसा ॥ ६६५६ ॥ न सुहं सयणे न रयं घरम्मि दिट्ठी न ठाइ दट्ठव्वे | पियविरहियाए तीए जायमसेसं पि असुहयरं ॥ ६६५७ ॥ एवमवत्थं दट्ठूण निवसुयं तो सहीयणो झति । गंतुं निवस्स साहेइ सुयाए मुच्छाए वृत्तंतं ॥ ६६५८ ॥ दईयलोहसमुब्भववेयल्लुल्लावमवि पयासेइ । ६६६१ ॥ जंपइ य सामि ! कुमरी अपहू नियपाणधरणे वि ॥ ६६५९ || जइ देव ! लहइ सा थोवदिवसमज्झमि पुव्वभवदईयं । जायइ तोन्नयमुहा न अन्नहा कुणह ता जत्तं ॥ ६६६० || आयन्निऊण कुमरी वयंसिया बंदिविहियविन्नत्तिं । रायाह तह जइस्सं दुहिया सुहिया जहा होही ॥ एवं पयंपिऊणं देवीसहिओ गओ सुया पासे । जंपइ वच्छे ! ता धरसु धीरिमं जा वरेमि तयं ॥ ६६६२ ॥ जुत्तं चिय पुत्ति ! इमं जं पुव्वभत्तुब्भवेपि पराओ । अवराणुरायरत्ताओ हुंति न सईउ नाए जं ॥ ६६६३ ॥ एवं परिजंपंतस्स राइणो नहयलेण हं पत्तो । अब्भुट्ठिओ य तेणं विणयपरा पियगुरुसु गरूया || ६६६४ ॥ सीहासणे निवेसिय पणओ हं तेण परियणजुएण । नाऊण मए विमणो त्ति कारणं पुच्छिओ कहइ ॥ ६६६५ ॥ जह जाइस्सरणाणं विन्नाए पुव्वभवपिए रत्ता । बाला खणं पि ठाउं न तरइ सो पुण वरो दूरे ॥ ६६६६ ॥ तव्वरणाय विसिट्ठा जा गंतुं ईति ता धुवमिमीए । विहिदुव्विलासवसओ जायइ अच्चाहियत्तं पि ॥ ६६६७ ॥ किं कायव्व विमूढाणमम्ह रिसिराय ! कहसु जं किच्चं । अच्चतमसुहियाणं हिओवरसेणमिहिं ति ॥ ६६६८ ॥ ५१९ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउमसाहारणकरणापूरिज्जमाणमणवित्ती । खणमेत्तजोगमुद्दाए सुमरियगयणगइविज्जं ॥ ६६६९ ॥ वरमवलोइय इहि पि राय ! तुह पासमागमिस्सामि । इय कहिय तस्स पुरओ निव ! अहमिह तुहमहं पत्तो ॥ ६६७० ॥ निक्कारणा पवित्ती न होइ गुरुयाण इय तए जमहं । आगमणकारणं पुच्छिओ य तयं साहियं तुज्झ ॥ ६६७१ ॥ तो झ त्ति नियकुमारं सव्वुत्तमरूवरेहजियमारं ।। पउणं करेसु परिणयणकारणे तीए बालाए ॥ ६६७२ ॥ अहयं तु तत्थ गंतुं कहेमि जह होइ निव्वुया वरई । तह सुयलहेंति पयंपिउं रिसी मोणमल्लीणो ॥ ६६७३ ॥ एत्थंतरम्मि नियपुव्वभवदुग्गयं नणुब्भवा जाया । मुच्छा जाईसरणस्स सूयगा रायतणस्स ॥ ६६७४ ॥ तयण ससंभमधाविरदासा सीओदयच्छडासारो ।। खित्तो कुमरसरीरे तो पत्ता चेयणा तेण ॥ ६६७५ ॥ भणियं च ताय ! रिसिराय कहणु अणुसारओ मए दो वि । दिट्ठा निय पुव्वभवा इण्हि सिविणाणुभूय व्व ॥ ६६७६ ॥ तं सोउं अवणिवई पयंपए पुत्त । जुत्तमेयाए । परिणयणं पुव्वभवुब्भवाए दइया सह तुज्झ ॥ ६६७७ ॥ इय जंपिऊण नारयरिसिणो वइओ पभूयपभाए । समाणो इमिस्स समं तियस्स व अइवत्थूहिं ॥ ६६७८ ॥ तो सपरिअरे नरवई कुमारनयपायसयदलो सहसा । नारयरिसीतमसमालिसामलं गयणमुप्पईओ ॥ ६६७९ ॥ अद्दिस्सते दिट्ठिप्पहाओ तम्मिं रिसिम्मि रायसुओ । पिइपयपणओ पत्तो नियपासाए सपरिवारो ॥ ६६८० ॥ आजम्मापुव्वेणं सिविणे वि अनायतस्सरूवे वि । विलविउमारद्धो विरहदुहेण सपरिगरेणं सो ॥ ६६८१ ॥ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ५२१ तो कल्लिमाए कलिओ भंगेण लिंगिओ समग्गंगं । आयरिओ अरईए रणरणएण य अलंकरिओ ॥ ६६८२ ॥ आलस्सेण हिलणेण उव्वएणं पडिच्छिओ हत्थं । अणुसरिओ असुहेणं विणिद्दयाए य अभिसरिओ ॥ ६६८३ ।। दुव्विलसियं व हसियं विसयग्गामं पि विसहरकुलं व । आहारमसिप्पहरं व कलइ कुमरिं सरंतो सो ॥ ६६८४ ॥ सिसिरजलं गरलं पिव चंदमणिं सरयसमयतरणिं व । सिंगारसारं पिव मन्नइ तव्विरहे विहुरो सो ॥ ६६८५ ॥ उव्विज्जइ उज्जाणे झिज्झइ भवणे वि डज्झइ दहे वि । तल्लाहभावणुज्जयभूरिसंतावनुत्तंगो ॥ ६६८६ ॥ सव्वप्पणापरायत्तमाणसं पेच्छिऊणमत्ताणं । अणुसरिय धीरिमो सो अप्पसंठवियसमारद्धो ॥ ६६८७ ॥ अत्था वि अदिट्ठाए वि अस्सुयपुव्वस्सराए विसुईहिं । सिद्धीए विनिक्कमो निज्जइ मह माणसं तीए ॥ ६६८८ ॥ हे हियय ! समुद्धरिडं अप्पसयासाओ नट्टभल्लिओ । उज्झसु तमन्नहा सा सल्लंती न हु सुहं दाही ॥ ६६८९ ।। हे हियय ! अनलहलनिम्मियस्स नियवल्लहस्स परिहारो । जुत्तो अह न तमुज्झसि ता दज्झसि झिज्जसि य दूरं ।। ६६९० ॥ हे हिययवल्लहं विसविमिस्सभुत्तं व विहियसंमोहं । होइ अणत्था य जओ ता तच्चाए समुज्जमसु ॥ ६६९१ ॥ हे हिययवल्लहे ! सायरे व्व सुरसेलसंतलायन्ने । पडियस्स तुहुत्तारो कत्तो ता तं परिच्चयसु ? || ६६९२ ॥ हे हिययवल्लहं लिहियविन्भमं पित्तमिव कयुत्तावं । पसमेसु विवेयविसुद्धभावपीऊसपाणाण ॥ ६६९३ ॥ परिभाविरस्स एयं दढया ईसीसि तस्स संजाया । तव्विरहविणोयत्थं हरिकरिकीलं कुणंतस्स ॥ ६६९४ ।। Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ पुणरवि गयणुच्छंगेण नारओ दिणयरो व्व यस्सी । पत्तो सहाए तन्निवकुमारपणओ समुवविट्ठो ॥ ६६९५ ॥ तेण समं संपत्ता पुरिसा लच्छीविलासनरवइणो । नमिय निसन्ना निवदं विनयपरा विन्नवंति इमं ।। ६६९६ ॥ देव ! करिकुलविलासाभीहाणपुरपवरसामिसालेण । लच्छीविलासरन्ना कन्नं दाउं तुह सुयस्स ॥ ६६९७ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं नारयरिसिणो विज्जाबलेण गयणेण पेसिया अम्हे । ता पहु ! पेससु कुमरं निवकन्ना पाणिगहणत्थं ॥ ६६९८ ॥ (जुयलं) जेणासन्नं लग्गं कुमरी वि कुमारविरहविहुरंगी । नारयरिसिप्पसाया गमिही गयणेण कुमरो वि ॥ ६६९९ ॥ तो नरवइणा करि - हरि-रह - उब्भडसुहड-मंडलियकलिओ । सामंत-मंतिजुत्तो पेसिओ हरिसएण सुओ ॥ ६७०० || एत्थंतरम्मि नारयरिसिसुमरियगयणगमणविज्जाए । चउरंगचमूचक्कं चालियमदूरेण गयणेण ॥ ६७०१ ॥ वित्थिरियप्पउरपाउसमुव्वगयरायपव्वयसमूहो । । विलसंतरायहंसो जणभूसणफुरियघणरयणो ॥ ६७०२ ।। अनिलचलालंबद्धयचिंधसमुल्लसियलोलकल्लोलो माऊरमेहडंबरसियछत्तविराइअंबुरुहो ॥ ६७०३ ॥ अमुक्कखग्गचक्काइसत्थगुरुमयरनक्कलल्लक्को पसरंतपउरवडवामुहजालसमुज्जलप्फेणो ॥ ६७०४ ॥ । करिकयपुक्कारफुरियसिक्कारसारमोत्तियप्पयरो । वज्जिरढक्कालुक्कानीसाण - निनायगज्जिररवो ॥ ६७०५ ॥ उल्लसियसंखसद्दो रमणीअरुणाहरप्पवालधरो । खंधावारसमुद्दो पसरइ गयाण कुमारस्स || ६७०६ ॥ (कुलयं) नारयरिसिविज्जाविहियविविहपेच्छणयपेच्छणखित्तो । पत्तो कमेण कुमरो नयरे करिकुलविलासम्मि ॥ ६७०७ ॥ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२३ रयणसुंदरकहा कुमरागमणप्पहरिसियनरेसराएसउ महो विहिओ । पउरेहिं पुरे रत्थाओ सोहिया समग्गाओ ॥ ६७०८ ॥ . गंधजलासारेणं सित्ते कुसुमुक्करो पुरो खित्तो । तिय-चच्चराइसु कया मंचा रणज्झणिरकिंकिणिया ॥ ६७०९ ॥ चिंधालं बद्धयछत्तसिक्किरीतोरणेहिं सव्वो वि ।। सालो सगोउरो वि हु चउपासमलंकिओ तत्थ ॥ ६७१० ॥ पत्तो पच्चोणीए राया कुमरस्स गरुयरिद्धीए । कुमरो वि तम्मि तं पेच्छिऊण राइणा समुवइन्नो ॥ ६७११ ॥ रन्नो पुण उ भूपुट्ठपुट्ठभालयलसहनिवेणा वि । आलिंगिओ पुरद्दारअग्गला दीहबाहाहिं ॥ ६७१२ ॥ आपुच्छिओ य कुसलं पयासए विहियविणयपडिवत्ती । तो गुरुरिद्धीए निवेण कारिओ पुरपवेसो से || ६७१३ ॥ नाडयलउडारसमल्लजुज्झपेच्छणयरासयसयाई । तियचच्चराइं मंचेसु पेच्छिरो विसयविवणीए ॥ ६७१४ ॥ इय रिद्धिवित्थरेणं पत्तो नरवइसमप्पिए परमे । पासाए कंचणकलसतोरणस्सेणिधरदारे ॥ ६७१५ ॥ आवासिया य तप्परिसरम्मि मंडलियमंतिसामंता ।। पउणीकया सुमंदिरमालासु विचित्तचित्तासु ॥ ६७१६ ॥ रन्ना चउरंगचमूचयसंजुत्तस्स रायपुत्तस्स । भोगुवभोगंगाई सघास-जवसाइपट्ठवियं ॥ ६७१७ ॥ नारयरिसी कुमारं निवमवि मोयाविऊण तप्पणओ । उप्पईय नहयलेणं गओ ससिक्खोभिमयट्ठाणं ॥ ६७१८ ॥ रईए संदम्मि विवाहमंडवे कणय-कलस-कलिएहिं । अनिलचलद्धयखलहलिरग्घग्घरा रणिरकिंकिणिए ॥ ६७१९ ॥ पउणीकिज्जंते उत्तमम्मि परिणयणजोग्गवत्थुगणे । उत्तालं भमिरे कज्जकारिनरनारिनियरम्मि ॥ ६७२० ॥ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२३ ॥ ५२४ सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो विवाहदिवसो सिग्घं पि मणोरहागरिसिओ व्व । तो वाहरिओ कुमरो परिणयणत्थं अमच्चेण ॥ ६७२१ ॥ काउं न्हाणं विरईय विलेवणं रईय रम्मसिंगारं । आरुहियं रयणभूसियगिरिंदरुंदं करि चलिओ ॥ ६७२२ ॥ छत्तालंकरियसिरो पणंगणापाणिचलिरचमरचओ । गयतुरयरहट्ठिय मंडलीय-सामंत-मंतिजुओ ॥ ६७२३ ॥ वज्जिर निरवज्जाउज्जमंजुलारावभरियबंभंडो । वीणावेणुसरुम्मिस्सकामिणीगीयमाणगुणो || ६७२४ ॥ परिपेच्छंतो हट्टं पेच्छणयाई पहे मयच्छीणं । पत्तो कमेण कुमरो विवाहमंडवदुवारम्मि ॥ ६७२५ ॥ बंदीहिं पढिज्जंतो य पेच्छिज्जंतो य पेच्छयच्छीहिं । सलहिज्जंतो सुयणेहिं थेरिआसीहिं थुव्वंतो ॥ ६७२६ ॥ उत्तिन्नो गयखंधाओ कणयमणिजणियमालगणियाए । अणुभविय मंगलायारमुत्तमं भिउडिभंगाइं ॥ ६७२७ ॥ वामकमेण पहणियपिसुणं च सरावसंपुडं ससिहिं । संनिसुयसुयालग्गो विवाहमंडवमणुपविट्ठो ॥ ६७२८ ॥ माइहरयम्मि पत्तो सो कुमरि जत्थ चंदधवलेण । पुन्नेण व वत्थेणं आवरिया चिट्ठइ निविट्ठा ॥ ६७२९ ॥ अप्पाणं छाएउं उवविट्ठो सो वि संमुहो तीए । अहवा तं वसियरणं पराणुवित्तिप्पवित्ती जा ॥ ६७३० ॥ इटें से विप्पेणं कुमारकुमरीण मेलिया हत्था । पुन्नाहं पुन्नाहं ति भणिय सह ताण वित्तेहिं ॥ ६७३१ ॥ तं मुहमुग्घाडावइ सहीण दाऊण मग्गियं कुमरो ।। जीए कए सव्वस्सं पि दिज्जए तीए किमदेयं ॥ ६७३२ ॥ मिलिया दिट्ठी दिट्ठीए ताण मन्नोन्नरूवविम्हियओ । विम्हरियनिमेसाण व तारा मेलावयावसरे ॥ ६७३३ ॥ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरका मज्झमि वेइगाणं मंडलयचउक्कगेण अग्गिस्स । दिति प्पयाहिणाओ केण न सेविज्जइ पयावी ॥ ६७३४ ॥ बद्धो दुन्ह वि तेसिं गंठी उत्तरियपल्लवं तेहिं । अभिदंसिउं व पेम्मप्पबंधबंधो व्व लोयस्स ॥ ६७३५ ॥ कुमरी जुओ कुमारो उवविट्ठो आसणम्मि एक्कम । जेण विणा न तरिज्जइ ठाउं तं को कुणइ दूरे || ६७३६ ॥ अगणिय सगुणावगुणं अकलियसपरं नरिंदकुमरेहिं । सव्वत्तमेहिं वत्थाभरणेहिमलंकिओ लोगो ॥ ६७३७ ॥ एइ स अक्खयवत्तो जाइसमं कुंकुममुहो जुवइवग्गो । परिहाविउं निवं परिहिउं व तद्दिन्नवत्थाई ॥ ६७३८ ॥ मंगलमउ व्व सुहरसमउ व्व आणंदसारमईउ व्व । वीवाहमहो जाओ विलासकीला रसमउ व्व ॥ ६७३९ ॥ वित्ते वीवाहमहूसवम्मि सिंगारगारवग्घविओ । दिवसदसगावसाणे सुसरं मोयावियं कुमरो ।। ६७४० ॥ चलिओ चउरंगचमूचक्कसमक्कंतभूरिभूवढो । नवजोव्वणुव्वणंगीए संगओ कंतकंताए । ६७४१ ॥ लच्छी विलासराया पयाणयत्ति गमणुव्वइयकुमरं । वलिओ चलिओ य पुरो रायसुओ गुरुपयाणेहिं ॥ ६७४२ ।। गच्छंतो संपत्तो विउलाचलनामियं महाअडविं । सद्दूल - सीह-संबर-तरच्छ-भल्लुंकिभयजणयं ।। ६७४३ || गय-गवय-ससय-महिसय - तुरय - वराहय - मयप्पवयजुत्ता । जा कीर - हंस - सारस - भारुंड - सिंहंडि - सउणसिया ॥ ६७४४ ॥ जंबीर- निंब- अंबय-कयंब - कोसंब - उंबर - जंबुघणा । वाणंजणकरणासण-धव - धम्मणाछन्नगयणा जा ।। ६७४५ ॥ जा नागवेल्लि - कंकेल्लि - विल्ल - अंकुल्ल - सल्लई कलिया । अज्जुण - अरंज-वंजुल - करंज - खज्जूरि- सज्जजुया || ६७४६ ॥ - ५२५ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ सिरिअणंतजिणचरियं उल्लसिय मयणसरगणअस्सत्था कमलविसरकयवासा ।। उव्वेय जुत्तचित्ता विरहिणि रमणिव्व जा सहइ ॥ ६७४७ ॥ तं मज्झे गच्छंतो पेच्छइ पालिट्ठमालिआवरियं । धूलिप्पायारोवरिमरगयसालंबकमलसरं ॥ ६७४८ ॥ जलनरकुलीरमयरअच्छं जत्थुच्छलंति अणुवेलं । आगच्छंतनरेसरसुयबलअवलोयणत्थं च ॥ ६७४९ ॥ चालियकमलवणरया कल्लोलुच्छलियजलकणप्पवहा । । मंदानिला कुमारं सेविउमिव पेसिया जेण ॥ ६७५० ॥ जं हंस-कुरर-सारस-सरेहिं मग्गस्समावणयणत्थं । वाहरइ व्व कुमारं जलकीलाकरणवित्तीए ॥ ६७५१ ॥ महुलालसभमिरब्भमरकमलदललोयणेहिं सकडक्खे । निक्खिवइ व कमलसिरी जम्मि कुमारं पई काउं ॥ ६७५२ ॥ (कुलयं) तं रिउपुरं व परिवेढिणमावासिओ नरिंदसुओ । दंडाहिनाह-मंडलिय-मंति-सामंतसंजुत्तो ॥ ६७५३ ॥ गुरुगुड्डरचउखंडयपडमंडवगुणिणिया विमाणेसु । आवासिओ समग्गो वि कडयलोगो जहाजोगं ॥ ६७५४ ॥ अग्गलिया मत्तगया सल्लइ-वड-कडह-कुडयसाहीसु । वल्लीसु विरइयाओ तुरियाणं आवलीओ य ॥ ६७५५ ॥ चरणत्थं परिमुक्का वसहा करहा खरा य महिसा य । दुव्वासु अरिद्धेसुं वि सुक्कपत्तेसु जवसेसु ॥ ६७५६ ॥ काऊण भोयणं सरनिरिक्खणुच्छलियकोउउक्करिसा । आरुहिय सारपत्तो गुरुवेगुत्तुंगहयरयणं ॥ ६७५७ ॥ तुरयाणीयट्ठिय मंडलीय-सामंत-मंतिसुंजुत्तो । अणुगम्मतो साउहपक्कलपाइक्कचक्केण ॥ ६७५८ ॥ कुमरो पालिपरिट्ठिय कुसुमियवणसेणिनिद्धछायासु । संचरमाणो सरसोहमिक्खए थिमियदिट्ठीए ॥ ६७५९ ॥ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२७ रयणसुंदरकहा कत्थइ पेच्छइ मउमियकुसुमेहिं निबद्धपाणिकोसंबं । भमरारवेहिं भूरि थुईउ भणिरिंबकेरविणिं ॥ ६७६० ।। अवरत्थ नियइ डिंडीर-पिंडसेणीओ जलतरंगेहिं । अंदोलिज्जंतीओ सद्धिं कलहंसमालाहिं ॥ ६७६१ ॥ अवरत्थ जलगयुमुक्कफारफुक्कारपडिरजलपवहं । विजयद्धयवडउन्भियमवरगइंदाणमिक्खेई ॥ ६७६२ ॥ चलिरकलहंसतरलियकमलुड्डियभमिरभमरमंडलयं । नवमेहडंबरछत्तम्मि पाउससिरीए पलोएइ ॥ ६७६३ ॥ दक्खामंडवनवकयलिसंडअंबयवणेसु भमिऊण । अवयरिओ कुमरो जायकोउओ कमलसरसलिले ॥ ६७६४ ॥ समवयवयस्स लीलावईहिं सह सलिलकेलिमणुहविउं । कयपंकयावयंसो उत्तरियसराओ तीरम्मि || ६७६५ ॥ मुत्तुं जलाविलाई परिहइ वत्थाई सो विसिट्ठाई । जडजुत्ताण गुणीण वि जुत्तो च्चिय अहव परिहारो ॥ ६७६६ ॥ तो तम्मि तुरंगम्मि चडिउं अडई निरिक्खिउं लग्गो । अवरावररमणीयदुमप्पएसे पलोयंतो ॥ ६७६७ ॥ पत्तो दूरतरम्मि तुरियतुरंगेहिं अणुसरिज्जंतो । कोऊहलउक्कलिया कलिओ नवलइनिसिद्धो वि ॥ ६७६८ ॥ एत्थंतरम्मि अइबहलपत्तलद्दुमसमूहमज्झाओ । हयखुरपुडदडवडरवपडिबुद्धो उठ्ठिओ सीहो ॥ ६७६९ ॥ गुंजापुंजारुणनयणकिरणजालेण पाटलं गयणं । कुव्वंतो परिपसरिय अरुणारुणकिरणकलियं व ॥ ६७७० ॥ थोरयरघुरुहुरारावपडिसद्दियसेलकंदलसरेहिं । उप्पायंतो गुंजतो सीहसंघायसंकं व ॥ ६७७१ ॥ परिविहुयकेसरसडाकडारपहपसरपूरियदियंतो । देहे अमायंतमहाकोवो अनलजालजडिलो व ॥ ६७७२ ॥ | ६७६८ ॥ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ अइनिठुरगुरुनंगुलदंडिय तोडियं महीवडं । सगिरिवणं पिहु कंपावंतो गुरुघायभीयं व ॥ ६७७३ ॥ तुरयाणीय पुरट्ठिय कुमारतुरयाओ वामपासम्म । बद्धक्कमंतमिक्खिय सव्वे वि पलाईया तुरया || ६७७४ || कुमरंगरक्खया विहु रएण नट्ठा पुरो कयप्पाणा । विहुरे पत्ते पायं रक्खइ सव्वो वि अप्पाणं ॥ ६७७५ ॥ सह अंगलग्गवत्थाभरणेहिं जेहिं मंडला भुत्ता । चइय पहुं ते वि गया का वत्ता तुच्छवित्तीए ? || ६७७६ ॥ वट्टेति सहायत्ते सुत्थावत्थाए सयणपरिवारा । विसमदसावडियाणं वियरइ संभीसमवि विरलो ।। ६७७७ ॥ जं तस्स गुरुरएणं कुमरपहं न परिहरइ सीहो । अणुरत्तसेवओ इव तुरियतरं कयपयक्खेवो ॥ ६७७८ ॥ अंगीकयसुविवेया धम्मियपुरिस व्व कुमरहय - हरिणो । मग्गं अपरिहरंता संपत्ता दूरदेसम्मि ॥ ६७७९ ॥ संतम्मि ममालोए सीहो न वि मं विही कुमरमज्झं । तो जामि अत्थमिय चिंतिउं व अत्थंगओ सूरो ॥ ६७८० ॥ निवसुयपहमसुयं तं सीहं पसरंतथूलभरतारा । खलिउमसत्ता रत्ता रोसेण व अवगया संझा ।। ६७८१ ॥ वित्थारेमि तममहं कुमरं न निरिक्खए जहा सीहो । इय भाविउं च भुवणे वियंभियं झत्ति रयणीए ॥ ६७८२ ॥ तमभरविरोहियम्मिं कुमरहरी निन्नउन्नयम्मि पहे । मा पडउत्ति पहं से दंसिउमिव उग्गओ चंदो ॥ ६७८३ ॥ उग्गच्छंतकलावइकिरणा पसरंति तमधरे गयणे । जओ णाए जन्हवीए पविसंति सेय- पवह व्व ॥ ६७८४ ॥ पोढत्तपत्तससहरजोण्हाभरपयडिएऽडई मग्गे । तह चेव दो वि हरिणा मण - नयणगईए गच्छंति ॥ ६७८५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९ रयणसुंदरकहा मह नामहरो एसो त्ति पसरिया सरिसमच्छरेणेव । हेलापहउ हरिणा कुमरहरीकरचवेडाए ॥ ६७८६ ॥ खरनहरकरचवेडा पडंततुरयाओ उत्तरिय सहसा । कुमरो कयकरणो उभयहा वि वडविडविमारूढो ॥ ६७८७ ॥ मयतुरयमंसरुहिरासायणपाणेहिं तडछुहतन्हो । । तरुणो तस्सेव तले सुत्तो सोक्खेण सो सीहो ॥ ६७८८ ॥ वडसाहाए निसन्नो रायंगरुहो वि चिंतिउं लग्गो । अहह , महबालिसत्तं अपरिक्खयकारियत्तं च ॥ ६७८९ ॥ अहह अहो तरुणत्तणविमूढया ! अहह निव्विवेयत्तं ! । सच्छंदचारियाहह ! इंदियवसगत्तणं अहह ! ॥ ६७९० ॥ जमहं अणप्पवसओ होउं पडिओ महाअणत्थम्मि । एयम्मि सुयणसंतावकारए पिसुणहासकरो ॥ ६७९१ ॥ सुररायरिद्धिवित्थरविडंबगाडंबराप्पहाणाए । चुक्को हं नियदुव्विलसिएण पउरायलच्छीए ॥ ६७९२ ॥ कत्थाहं छत्तद्धयसिक्किरिसयचारुचक्ककयवेढो । कत्थेगागी जूहब्भट्ठो चिट्ठामि हरिणो व्व ॥ ६७९३ ॥ मंडलिया सामंता सेणावइणो अमच्च-मित्ता य । किच्छेण पाणधरणपहुणो होहि त्ति मह विरहे ॥ ६७९४ ॥ विप्फुरियकिरणमणिभूसणाई वरवत्थ-कोसकोट्ठारा । मह संजाया सिविणयरज्जालंकारकरणिधरा || ६७९५ ॥ नवनेहनिब्भरब्भूयविरहवेयालवियलया कलिया । मरिही धुवं रायपियापायोगेण केणावि ॥ ६७९६ ॥ जइ कह वि हु मह विरहे मरिही अच्चन्नियं पिययमाए सो । ता तस्स वीरमवभासभूसिओ अहमवि मरिस्सं ॥ ६७९७ ॥ जं जीवियाओ मरणं विरहीण वरं न जीवियं नृणं । दुहदाइ जमाजपि वल्लहं अद्धसल्लं व ॥ ६७९८ ॥ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० सिरिअणंतजिणचरियं एवं असरिसचिंताए सत्तिजुत्तस्स रायउत्तस्स । ईसालुयत्तनिद्दा न दिट्ठिमग्गे वि संपत्ता ॥ ६७९९ ॥ राएण वि अवहरिउं तरियं तमए कुमरहरणदुहं । इय चिंता विच्छाउ व्व होउमत्थंगओ चंदो ॥ ६८०० ॥ संतीए मए न कुमरकडयजणो पेच्छिही तमे कुमरं । ता जामि त्ति विभाविउमिव अवसरिया तमिस्सामि ॥ ६८०१ ।। रायसुयतुरयरयणं हरिणाहणियं ति जायसंकप्पो । रोसेण व आरत्तो मित्तो उदयद्दिमणुपत्तो ॥ ६८०२ ॥ गोसावसरे तस्सेयबिंदुसंदंतसाहिकलियाहिं । कुमरा सुह-दुहियाडइ दुमा वि अंणि व मुयंति ॥ ६८०३ ॥ तम्मि समयम्मि सीहो निद्दाविगमालसंगभंगेण । ताडेउं पिव मज्झं खामं पि हु खामयं नितो ॥ ६८०४ ॥ जिंभारंभवियारियमुहदढदाढा कडप्पकंतीए । नियदेहं अमायंतं नियतेयं वण्हिमिव खिवंतो ॥ ६८०५ ॥ दठूण वियडवडनिबिडविवडियं नरेसरं गरुहं । उक्खित्तकरचवेडो सीहो घुरुहुरिउमारद्धो ॥ ६८०६ ॥ तं दटुं चिंतइ रायनंदणो नूण पुव्वभववेरी । सीहसरूवो एसो को वि हु न मुयइ पहं मज्झ ॥ ६८०७ ॥ तो मारेमि दुरायारमेयमियचिंतिऊण कुमरेण । गहिया कट्ठीतट्ठाओ असिधेणू तिव्वतरधारा ॥ ६८०८ ॥ तो तीए छेत्तूणं वडयाओ दीहरो करे गहीओ । छुरियाए घडियाओ खित्तं विहिओ तिक्खग्गो कुंत अंतं वा ॥ ६८०९ रे रे तिरियाहमदुट्ठ ! सम्मुहो होसु संपयं मज्झ । जिणिम्हि धिट्ठ ! धुवं मरिसि त्ति पयंपइ कुमरो ॥ ६८१० ॥ तं सोउं दढदाढाविडिंबियाणणभयाणओ सीहो । विहियतलप्फोडं कुमराभिमुहं रोसेणमुच्छलिओ || ६८११ ॥ Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ रयणसुंदरकहा तो तव्वयणे तिव्वो वडगओ निवसुएण तह खित्तो । जह गईए सद्धिं पकीलिउं सो कओ अचले ॥ ६८१२ ॥ हरिणाहिवम्मि हणिए परितुट्ठो नियमणे नरिंदसुओ । जा वीसत्थो होउं तडतरुमवलोइडं लग्गो ॥ ६८१३ ॥ तो पेच्छइ फारफणभरघणकिरणावलीहिं चडरक्खं । दवजालाजटिलं पिव कुव्वंतो कइकयुत्तासं ॥ ६८१४ ॥ अच्चंतकालनियकायकंतिपब्भारपसरछउमेण । विमच्छरेण रयणीतमं व दिवसे परिवंसंतं ॥ ६८१५ ॥ पुक्कारविडुरिल्लं उग्गविसं विसहरं समुहमिंतं ।। तो मुच्छे धरिऊणं उब्भामिय खिवइ तं दूरे ॥ ६८१६ ॥ (कुलयं) जाए परमालोए जयम्मि उम्मीलमाणदिसिचक्के । वडविडविणो कुमारो झपाए झड ति उत्तिन्नो ॥ ६८१७ ॥ चलिओ हयपयविमणुसरमाणो पयप्पयारेण । आयन्नंतो बहुसीहचिट्ठियाई चउप्पासं ॥ ६८१८ ॥ . निसुणतो करिकुलसज्जमाणवडविडविकडयडारावं । कन्नं दितो नासंतकोलपयदडवडरवस्स ॥ ६८१९ ।। अवलोयंतो उत्तसिरहरिणकुलस्स अच्छिविच्छोहो । रायसुओ उत्तालो कोडयकए अडइ अडईए ॥ ६८२० ॥ एत्थंतरम्मि एगेण कालभिल्लेण जमभडेणेव । छन्नागएण गहिया कुमरकडीतडगया छुरिया ॥ ६८२१ ॥ तो कीकी कित्तिनियस्सरसन्नानायनिययवाहरणा । उब्भडभिउडिनिडाला सबरा धेणुसरकरा पत्ता ॥ ६८२२ ॥ कुसुमक्करो व्व मालागारेहिं मलयदेसमज्झाओ । अत्थत्थीहिं मुत्तासुत्तीपुडा मोत्तियभरु व्व ॥ ६८२३ ॥ .......... तेहिं आभरणपन्भारो ॥ ६८२४ ॥ (जुयल) वस्थाई वि गहियाई विसहरनिम्मोयमउयफासाइं । Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमरणु ......... . . . . . . . . . ५३२ सिरिअणंतजिणचरियं परिहाविउं कुमारं कच्छोट्टयमेत्तकोवीणं ॥ ६८२५ ॥ एगे भणंति मारह एयं अन्ने उ बिंति मुयह त्ति । जंपति के वि बंदिवरह जहा देइ दव्वं ति ॥ ६८२६ ॥ कुमरेणु ................ या तुब्भेहिं मह तणया ॥ ६८२७ ॥ तो चउपासट्ठियकालनाहलावेढीओ कणयगोरो । मेरु व असियगिरीहिं सेविज्जंतो सहइ कुमरो ॥ ६८२८ ॥ विघडदुरारोहमहासेलग्गठियाए अट्ठिसालाए । पंचाणणो व्व नेउं पल्लीए गुहागिहे धरिओ ॥ ६८२९ ॥ परिभावइ एत्तिय वच्छराइं जह सुहपरंपरा जाया । तं मच्छरिणि व्व तहा दुहरिंछोली वि मह होही ॥ ६८३० ॥ कहमन्नहासमसिरिन्भंसो हरिपरिभवो हयविणासो । सप्पागमणं नाहलकयत्थणं समगमवि पत्तं ॥ ६८३१ ॥ नूणं न पुव्वजम्मे निरंतराओ कओ मए धम्मो । उवरुवरि जेण उल्लसइ मह महणत्थपत्थारी ॥ ६८३२ ॥ जं किंचि पावमिममुदयमागयं तद्दुहं इमं कुसुमं । होही नूणं मह नरयनिवडणुक्कडदुहेण फलं ॥ ६८३३ ॥ जे न समज्जियसुकया ते नूण न भोयभायणं हुंति । संपत्तजयुत्तमरिद्धिवित्थरा वि हु जओ भणियं ॥ ६८३४ ॥ “उवभुंजिउं न पावइ रिद्धिं पत्तं पि पुन्नपरिहीणो । विउलं पि जलं तिसिओ वि मंडलो लिहइ जीहाए ॥ ६८३५ ॥ "जेत्तियमेत्ते जेणं लब्भंसो लहइ तित्तियं चेव ।। लच्छी पडहत्थे वि हु भुवणम्मि सया जमुत्तं च ॥ ६८३६ ॥ “जो जत्तियस्स अत्थस्स भायणं सो वि हु तत्तियं लहइ । वुढे वि दोणमेहे न डुंगरे पाणियं ठाइ " || ६८३७ ॥ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरका इय चिंतासंतत्तस्स रायपुत्तस्स दिणमइक्कतं । विप्फुरियतिमिरपसरा संपत्ता दुस्सहा रयणी ॥ ६८३८ ॥ एत्थंतरे महामुल्लरयणमणिभूसणाण पल्लिवई । लुद्धो न देइ भागं भिल्लभडाणं ति ते कुविया ॥ ६८३९ ॥ पहरेउं पारद्धा एगीहोउं झड त्ति सह पहुणा । निप्पसरकत्तरी कत्तिया सरुक्केरघाएहिं ॥ ६८४० ॥ जाणिय जुज्झा रयणा कुमरगुहद्दारदेसपाहरिया | हण हण हण त्ति भणिरा संपत्ता ते वि रणरंगे ॥ ६८४१ ॥ सुन्नं दुवारदेसं दट्ठं सहस त्ति उट्ठिओ कुमरो । पासाइं पलोयंतो निक्खंतो झत्ति पल्लीओ ॥ ६८४२ ॥ रणरंगाओ वेगेणेगो सुहडो रएण गच्छंतो । पोट्टलयकरो कुमरेण हक्किओ कक्कससरेण ॥ ६८४३ ॥ रे दृट्ठ ! मुयसु पोट्टलयमेयमह नो वि मुंचसि तुमं ता । इण्हि पि मरसि इय सो तब्भीओ चइय तं नट्ठो ॥ ६८४४ ॥ गहिऊणं पोट्टलयं सणियं सणियं समुत्तरिय गिरिणा । ससिकरदंसियमग्गो कुमरो वेगेण जाइ पहे ॥ ६८४५ ।। ससहरकिरणुज्जोएण जोयए जाव पोट्टलयमज्झं । तो नियइ नियं सो तत्थ वत्थुछुरियाभरणजायं ॥ ६८४६ ॥ तं दट्ठूण पहिट्ठो चिंतइ मह पुन्न परिणई वलिया । जमहं छुट्टो भिल्लाण तह य वत्थाइमह मिलियं ।। ६८४७ || संभाविज्जइ मिलणं कडयस्स वि मह पणट्ठलाभेण । जेण मं कल्लाणकडक्खियाण न हवइ सुहं किं पि ॥ ६८४८ ॥ मन्ने भिल्लभडाणं समरवग्गाण तक्करो कोइ । घेत्तुमिमं नासंतो मज्झ भया उज्झिऊण गओ ॥ ६८४९ ॥ इय निच्छिऊण रइओ वत्थाभरणेहिं सारसिंगारं । कडितडनिबद्धछुरिओ संचलिओ सम्मुहदिसाए ।। ६८५० ।। ५३३ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ सिरिअणंतजिणचरियं जा केत्तियं पि भूमिं चउद्दिसिं पेच्छिरो पुरो जाइ । ता वासंगे कीयविरुइयरवं सुणइ रमणीए ॥ ६८५१ ॥ फुरियं च दाहिणेणं भुएण तह दाहिणच्छिणा तस्स । तो चिंतइ सुनिमित्तढुगं पि मह कहइ पियं जोगं ॥ ६८५२ ॥ नवरं का वि सकरुणं रुइरी रमणी जणेइ कारुन्न । अच्चंतं मह हियए ताई समवयरिउमिच्छामि ॥ ६८५३ ॥ ईय चिंतिय तस्संमुहो जंतो आयन्नए पलावे सो । हा नाह नाह ! कहसु तं गओ कत्थ मं मुत्तुं ? || ६८५४ ।। हा सइ सम्माणियमित्तवग्ग ! हा हा समग्ग सोहग्ग ! । जा न फुडइ मह हिययं ता पहु ! नियदंसणं देसु ॥ ६८५५ ॥ किं नाह ! अडइ अडणं विणा न पज्जत्तमासि तुह कहसु । जं नासविओ अप्पा सीहसयासा सतुरओ वि ॥ ६८५६ ॥ दुत्थियभवसंभूओ पवढिओ अच्चुयामरत्तम्मि । भग्गो नेहतरू इह भवफलकाले विहिगएण ॥ ६८५७ ॥ हे लोगपाल अमरा ! वणदेवीओ य मज्झ दईयस्स । तुह भज्जा तुह विरहे मय त्ति कत्थइ कहेज्जाह ॥ ६८५८ ॥ नवरं नेयम्मि भवे होज्ज दइउ भवंतरम्मि वि एसो । च्चिय सुहओ सिरिरयणसुंदरो रयणसेहरओ ॥ ६८५९ ॥ एवं परिदेवंति तं सोउं जाइ नियपियासंको ।। तुरियतरं संचलिओ कुमरो रुईयाणुसारेण ॥ ६८६० ॥ पेच्छंतो ससहरकिरणनियरपयडीकयतयं रमणिं । सुमरियदेवगुरूणं परियत्तिय पंच परमेट्ठि ॥ ६८६१ ॥ तरुसाहाबद्धनियुत्तरीयपरिविहियगाढगलपासं । विगयाहारं अत्ताणमुभयहा नियइ मुंचंति ॥ ६८६२ ॥ (कुलयं) तं झंपावडणचलंतसाहिणो उड्डिङ सउणविंदं । इन्थीवहसन्नेज्झे ठंति न अन्ने वि किमु सउणा ? ॥ ६८६३ ॥ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३५ रयणसुंदरकहा मा साहसं ति मा साहसं ति भणिरो गओ समीवे से । लंबंतदेहठियनिबिडपासओ णमियवयणाए ॥ ६८६४ ॥ करणक्कमेण वामेण बाहुणालिंगिज्जंतयं धरिउं । दाहिणकरछुरियाए छिंदिय पासं महिं पत्तो ॥ ६८६५ ॥ तं धरिडं उच्छंगे संबाहिय कंठकंदलं तीए । वत्थंचलानिलेणं सा तेण कया सचेयन्ना ॥ ६८६६ ॥ उम्मीलियाई तो तीए झ त्ति कन्नंतपत्तनयणाई । कुमुयाई पिव कोमलरायंगयकरपयारेण ॥ ६८६७ ॥ ससि-जोण्हाए दोन्ह वि परियाणंताण विहियमन्नोन्नं । असरिससिणेहजणगं कामीणं दूइयाइ व्व ॥ ६८६८ ॥ सुत्ता एवमवन्नं मा कुणसु पियस्स चयसु अंकं ति । भणिया वयंसियाए व लज्जाए उठ्ठिया अंका ॥ ६८६९ ॥ कुमरेणुत्तं किं सुयणु ! साहसं एरिसं तए विहियं । कल्लाणओ जमप्पा खित्तोऽणत्थंमि विच्छिन्ने ॥ ६८७० ॥ सो आह नाह ! मह तुह विरहे पाणा खणं पि मा हुंतु । तुमए समगं ते चेव कोडिकप्पाउया संतु ॥ ६८७१ ॥ जं मए पुव्वम्मि भवम्मि सामि ! सुकयं जमज्जियं तेण । एवंविहम्मि समए जाओ जोगो इहम्हाण ॥ ६८७२ ॥ ईय जंपिय तीयुत्तं पहु ! गमणागमणसुहदुहाई । कहसु त्ति कुमारो वि हु तो से साहइ नियं चरियं ॥ ६८७३ ॥ भणियं च पिए ! मह विरहियस्स सेणाजणस्स जं जायं । सुहमसुहं वा तं कहसु जाव अम्हेत्थ मिलियाई ॥ ६८७४ ॥ तीयुत्तं पहु ! तुब्भे तलायमवलोइडं अडइमडिया । तो तुम्ह सव्वहरिणो हरिणो हरिणा इव पलाणा ॥ ६८७५ ॥ तुम्हंगरक्खणत्थं पेरिज्जंता वि कडयसामीहिं । जमिह सीहपहं पि हु न नियंति हया भयाभिहया ॥ ६८७६ ॥ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ सिरिअणंतजिणचरियं तो मुत्तूण तुरंगे पहु ! तुह मग्गेण रईय गरुयरुया । सुकुमाला वि हु भमिया कमेहिं मंडलिय-सामंता ॥ ६८७७ ॥ सुन्नासणा तुरंगा भडेहिं कडयम्मि आणिउं बद्धा । अमुणिय मयरायभया अवरहया तेहिं पक्खरिया || ६८७८ ॥ नेउं पहूण भमिराणमप्पिया तेहिं तेसुं ते चडिउं । तुह हय-पयपयचिंपइ वेगेणुद्धाइया सव्वे ॥ ६८७९ ॥ रयणीए वि करयलकलियदीवियाभिहयतिमिरपन्भारं । पसरंति तुरयचडिया सामंतामच्चमंडलिया ॥ ६८८० ॥ तरुगहणासु पविट्ठा चडिया वियडग्गसिहरिसिहरेसु । भमिया सरिया कुहरेसु तह वि तुब्भे न संपत्ता ॥ ६८८१ ॥ अब्भुग्गयम्मि सूरे भमंति खीणा वि ते अखीण व्व । अगणिय छुहा-पिवासा मग्गस्स समाचलस्सासा ।। ६८८२ ॥ निउणं निरिक्खमाणेहिं तेहिं नहमज्झमागए सूरे । दूराओ च्चिय दिट्ठो गिद्धसमूहो नहे भमिरो || ६८८३ ॥ नूणमिह किं पि मडयं भवहि त्ति धसक्कियामाण जवे । ते पत्ता तस्संते नियंति ता करिकरंकिदुगं ॥ ६८८४ ॥ फेरंडमंडलीगिद्धपक्खिभक्खिज्जमाणसव्वंगं । अमुगं ति न निच्छेउं सक्कं कीलालकद्दमिलं ॥ ६८८५ ॥ नवरं पल्लाणखलीण भूसणाईहिं निच्छिउं तुरयं । तुम्ह तणयं तिउप्पं न संतु णो बिंति अन्नोन्नं ॥ ६८८६ ॥ एसो कुमारतुरओ पल्लाणो ईहिं निच्छिओ नूणं ।। एयं पुणो करकं कस्सइ तिरियस्स न मुणेमो ॥ ६८८७ ॥ दीसइ न सामिसालो जोइज्जंतो वि इह पएसे जं । तं मन्निज्जइ भारुडपमुहपक्खीहिं नीओ त्ति ॥ ६८८८ ॥ जं पल्लाण जुओ च्चिय हओ मणो तं कुओ कुमारस्स । संभाविज्जइ जीवियमइदुट्ठमइंदनिहयस्स ॥ ६८८९ ॥ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा इय ते तुम्ह अमंगलकलणसमुच्छलियसोयसंभारो । काऊण बहुपलावे चलिया हयभूसणं गहिउं ॥ ६८९० ॥ संझावसरे सिविरे समागया कंदिरा गुरुसरेण । उवविट्ठा महिवट्ठे तुम्ह सहामंडवे मिलिउं ॥ ६८९१ ।। सीहुत्तड्ढतुरंगमवग्गा णायगनरेहिं नाऊण । जलमवि गए न पीयं तंबोलाईण का वत्ता ? ।। ६८९२ ।। नरयाओ वि दुहजणयं जलणाओ वि जणियतिव्वसंतावं । पावाओ वि उव्वेवयमहमच्चंतं दसं पत्ता ।। ६८९३ || दासीमुहआयन्निय हरिहयहयरयणभूसणाणयणं तो । अवणीए निवडिया मुच्छा पच्छाईयच्छिजुया ।। ६८९४ ॥ दासीविरईयसिसिरोवयारसंपत्तचेयणा सामि ! | काऊण बहुपलावे परिभाविउमेवमारद्धा ।। ६८९५ ॥ इहि किं जीवंती काहं नाहं विणाहमइदीणा । कत्थइ दूरे गंतुं झड त्ति मरणं अणुसरामि ॥ ६८९६ ॥ पलवंते मंतियणे परिदेवतेसु मंडलीएसु । सामंतेसु रुयंतेसु सो विदल्लंमि सोयंते ॥ ६८९७ ॥ होऊण कज्जसारा परिवारं वंचिउं विणिक्खंता । इह अवलंबियमरणा पहुणा जीवाविया अहुणा ॥ ६८९८ || ता सामिसाल जामो इन्हं चिय तत्थ जेण रविउदए । तुह विरहे बहुलोओ जलजलणपवेसमायरिही ॥ ६८९९ ॥ एवं ति भणिय कुमरो तीए जुओ जाव जाइ मग्गम्मि | ता नियइ पुरो करकयदीवियनियरं जणं भमिरं ॥ ६९०० ॥ तयणु कुमरेण को वि हु करे धरेऊण पुच्छिओ पुरिसो । किं भो ! तरुगहणाइसु भमइ जणो दीविया हत्थो ? || ६९०१ ॥ तेत्तं रायसुयस्स जायमच्चाहियं हरिसयासा । तव्विरहे भूरिजणो गोसे चडिही चिया चक्के ॥ ६९०२ ॥ ५३७ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ सामंतमंडलेसरमंतीहिं पयंपियं निसाए इमं । जह गोसे पहु विरहे चियचडणं आयरिस्सामो ॥ ६९०३ ॥ जं दंसिस्सामो कहमम्हे नियवयणमवणिनाहस्स । जं रक्खिउं निउत्ता तेण विउत्ता पुरे गंतुं ।। ६९०४ ॥ ईय ताण तणलहूकयनिययसरीराणं मंतयंताण । पुक्करियकंचुइणा कुमरपिया कत्थइ मय त्ति ॥ ६९०५ ॥ तो मंतिपमुहलोगो काउं करदीविएवडियबाहिं । तीए अवलोयणत्थं गिरिसिरगहणेसु परियडइ ॥ ६९०६ ॥ कुमरेणुत्तं तीए निरिक्खणे हयपियाए किं कज्जं ? | सो आह तयं पेसियजणयस्स जणो चियं चडिही ।। ६९०७ ॥ कुमरेणुत्तं गंतुं वद्भावसु मंति - पमुहलोयंतं । जेणाहं सो कुमरो कुसली भज्जा य सा एसा ।। ६९०८ ॥ तो सो गुरुवेगेणं गंतुं मंडलिय - मंति - सामंते । वद्धावयं कुसलागयसकलत्तं कुमारकहणेण ॥ ६९०९ ॥ तो सुय - सपियकुमरो आगमणा अमयाभिसित्तगं व्व । ते सुहिणो संजाया सासयसुहसिद्धिपत्त व्व ॥ ६९१० ॥ कंचणमयजीहाए सह रयणाभरणवत्थदाणेण । सम्माणो तस्स कओ अमच्चपमुहेण लोएण ।। ६९९९ ।। तो तन्निदंसियपहा अमच्चमंडलियसव्वसामंता । सपियं नियंति कुमरं सोदयसंझं दिणमणिं व ॥ ६९१२ ॥ राहुग्गहणविमुक्कं च ससहरं हरिसमहावयुच्चरियं । दठ्ठे कुमरं पणमंति ते महीमिलियभालयला ॥। ६९१३ ।। घोरंसुबिंदुदंतुरियलोयणा गग्गयस्सरं बिंति । पहु ! कुसलं तुम्हाणं उत्तिन्ना णावयसमुद्दे ॥ ६९१४ ॥ जइ एत्तियवेलाए तुब्भेहिं ता न ता धुवं इहि । हुंतो पहुभत्ताणं ता वहलोयाण संहारो ॥ ६९१५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३९ रयणसुंदरकहा जय उवयारकरा च्चिय हुंति पवित्तीओ उत्तमाण सया । तुब्भेहिं घणेहिं व तेण सुहरसो वियरिओ अम्ह ॥ ६९१६ ॥ समुवज्जियसुकयाणं अम्हे च्चिय सामिसालपढमयरा । तुम्ह गुरूण व जायं मरणं ते दंसणं जेसिं ॥ ६९१७ ॥ देवी ! देवि च्चिय देवि नूण गंतूण कत्थई जीए । अक्खयदेहा तुब्भे अतक्किया झ त्ति आणीया ॥ ६९१८ ॥ एवं गुणत्थुइपरा कुमरेण जहोच्चिएण ते सव्वे । कुसलोदंताउच्छणपरेणं सम्माणिया दूरं ॥ ६९१९ ॥ तो कुमरागमहरिसीयकडयजणारद्धहट्टसोहम्मि । तियचच्चराइं ठाणा संठियमंचाइमंचम्मि ॥ ६९२० ॥ विजयकडयम्मि कुमरो सिंगारियगुरुकरेणुखंधम्मि । चडिओ कलत्तकलिओ पविसइ रिद्धि-पबंधेण ॥ ६९२१ ॥ (जुयल) पेच्छंतो नाडयपेडयाइं विलसिरपयट्टनट्टाई । अवलोयंतो सेन्नियनियरारद्धे बहुविणोए ॥ ६९२२ ॥ आणंदंतो नियदसणूसुयं लोयमवेण पहम्मि । जद्दरपडकयअत्थाणमंडवे गंतुमुवविट्ठो ॥ ६९२३ ॥ नमिय निविट्ठस्स अमच्चए सुहलोयस्स भत्तिसंतुट्ठो । वत्थाभरणाईहिं सम्माणं कुणइ अ-पमाणं ॥ ६९२४ ॥ तो मंतिप्पमुहेहिं कुमरो परिपुच्छिओ पणमिऊणं । पहु ! कहह सीहतासाइ आगमं तं सवुत्तंतं ॥ ६९२५ ॥ तयणु कुमरेण कहीओ सव्वो वि वइयरो निओ तेसिं । सुय कुमरवसणपरंपरा दुहं ते वि संपत्ता ॥ ६९२६ ॥ जंपंति य कळं पाविऊण पहुणा पुणो सिरी पत्ता । तिव्वतवेणं अहवा लब्भंति नरामरसुहाई ॥ ६९२७ ॥ आह नरनाहपुत्तो जं जेण जया सुहं व दुक्खं वा । पावेयव्वमवस्सं तं सो पावइ भवे तईया ॥ ६९२८ ॥ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० एवं परुप्परकहं काउं कुमरो वि सज्जियत्थाणो । न्हाण - विलेवण - भोयण - सयणेहिं महो ति संगमिउं ॥ ६९२९ ॥ दावियपयाणढक्को चलिओ चउरंगचक्ककयवेढो । अणवरयपयाणेहिं नियपुरिपरिसरवरं पत्तो ॥ ६९३० ॥ विन्नाय नियसुयागमणजायपरितोसपूरियंगेण । काराविया पुरिसोहा रन्ना रोमंचनिव्विएण ॥ ६९३१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं माऊरछत्तधवलायवत्ततोरणअलंबचिंधेहिं । सयलो वि अलंकरिओ मालो कलिओ पउलीहिं ॥ ६९३२ ॥ ।। ६९३३ || चच्चरचउक्कचउमुहतियाइठाणेसु संठिया मंचा । मंदानिलरिंछोलियधयालिझणहणिरकिंकिणिया नम्मपडिमेहडंबरजद्दरवीणाइवीणनेत्तेहिं । मुत्तारयणालीहिय पयििट्टया हट्टसोहा वि ॥ ६९३४ ॥ सत्तच्छयकुसुमामोयसरिसमयवारिभमिरभमरभरे । आरूढो सकलत्तो करेणुराए नरिंदसुओ ॥ ६९३५ ॥ छणरयणीयररमणीयछत्तअंतरियतिव्वरवितावो । वीइज्जतो कमणीयकामिणीचलिरचमरेहिं ॥। ६९३६ ॥ गयघडकयपरिवेढा खणहणिखलीण तुरयराइजुओ । चलचक्कारयखलहलिरकंसिया रहवरुव्वूहो ॥ ६९३७ ॥ रणनिव्वडियभडावलिकलियो चलिओ नरेसरं गरुहो । माणिक्कमयाभरणप्फुरियकरो सरयतरणि व्व ॥ ६९३८ ॥ ठाणट्ठाणसमारब्भमाणपेच्छयजणच्छिसुहयाणि । पेच्छणयाइं नियंतो कुमरो अत्थाणमणुपत्तो ॥ ६९३९ ।। सीहासणठियजणयं दट्ठूण महीलुलंतनियदेहो । गंतुं पिउणो पासे पणमइ तप्पायसयवत्तं ॥ ६९४० ॥ उक्खिवियनियंगरुहो गाढं आलिंगिओ महीवइणो । पिउ - पुत्ता संजाया सुहिणो पुच्छिय कुसलवत्ता ।। ६९४१ ॥ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा जणणीपयपंकयमिलियभालतलनमिय कहिय नियकुसलो । उवविट्ठो आसणमुज्झिऊण भूमीए उ पुरओ ।। ६९४२ ।। एत्थंतरम्मि बहिरियदियंतरा कणयनेउररवेण । कुमरं बहूसहिदासीविसरजुया रइयनीरंगी ।। ६९४३ ॥ ससुरयपयसयवत्तं नमइ महीवट्ठपुट्ठभालयला । दिन्ना तेणासीसे तं पुत्तवई भवेज्जति ॥ ६९४४ || (जुयलं) तो सासुयाए पाए पणमिय तीसे वि आसियं सोउं । परितुट्ठा उवविट्ठा तव्वामसमीवदेसम्मि ॥ ६९४५ ॥ तयणुप्पणमंतिनिवं मंडलिया मंतिणो य सामंता । पडिहारप्पमुहा विहु निवेण सम्माणिया सव्वे ।। ६९४६ ।। वत्तावसरप्पत्ता सीहाइउवद्दवो कुमारस्स । कहीओ सचिवेण नरेसरस्स नियकडयमिलणंतो ॥ ६९४७ ॥ तं सोऊणं राया भाविय सुयभूरि असुहसंभारो । खणमेत्तणुभूय हो पुत्तं पइ जंपए एवं ॥ ६९४८ ॥ निययप्पासार विव अडई मज्झे वि जाय ! संजायं । सीहुत्तासाइभयं महादुहं असरिसं तुझं ॥ ६९४९ ॥ पुव्वकयसुकयखणविग्घभावओ जायमसुहमइतिव्वं । अचिरेण वि अवसरियं गहवइणो राहुबिंबं व ॥ ६९५० ॥ इय काउं कडयुब्भववत्ताओ निवेण विहियसम्माणो । मंतिप्पमुहो लोगो सव्वो वि गओ सठाणेसु ।। ६९५१ ॥ सम्माणिउं सुउं वि हु बहुया सहिओ विसज्जिओ संतो । नयपिउपयसयवत्तो पत्तो निययम्मि आवासे ॥ ६९५२ ॥ तत्थ ट्ठिओ पियाए सुवियड्ढाए समं कुणइ कीलं । पहोत्तरबिंदुमई पहेलिया पमुहगोट्ठीहिं ॥ ६९५३ ॥ निच्चं पि मित्तमंडलकलिओ सो रायवाडियं कुणइ । पणमइ य जणयपाए सहाए गंतुं तिसंझं पि ॥ ६९५४ ॥ ५४१ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ सिरिअणंतजिणचरियं अह अन्नया नरेसरनियडनिविढे कुमारपमुहम्मि । मंडलिय-मंति-सामंत-दूयसेणाहिवाइजणे ॥ ६९५५ ॥ पविसिय सहाए मणि-कणय-दंडमंडियकरेण नमिय निवो । पडिहारेण सविणयं कयकरकोसेण विन्नत्तो ॥ ६९५६ ॥ (जुयलं) देव ! दुवारे उज्जाणपालओ कुसुमसुंदरो नाम । पहुदंसणं समीहइ ता करणिज्जं समाइसह || ६९५७ ॥ मुंचसु तमियनिवुत्तो सो मुक्को पविसिउं निवं नमिउं । विन्नवइ देव ! अलिकुलउलउज्जाणे केवली पत्तो || ६९५८ ।। सुररईयकणयकमले उवविट्ठो धवलछत्तसच्छाओ । जो संतयाए नज्जइ आरायरोसो अकहिओ वि ॥ ६९५९ ॥ सद्देसणं कुणंतस्स जस्स वयणाओ दसणकिरणाली । मेहाओ अमयवुट्ठि व्व निग्गया समइ भवभावं ॥ ६९६० ॥ सो सामीणब्भुदएक्ककारणं तेण विन्नवेमि अहं ।। तं सोऊण नरिंदेण तुट्ठिदाणं विइन्नं से ॥ ६९६१ ॥ तो आरूढो दाणावगाढसिंगारियंगकरिराए । अवहरियतरणितावोपरिविलसिरपुंडरीएण ॥ ६९६२ ॥ करडिघडाहिं तुरयावलीहिं घणघंटरव-रहालीहिं । मंडलिय-मंति-सामंतलंकियाहिं कयावेढो ॥ ६९६३ ॥ बंदीहिं पढिज्जंतो विलसिरवज्जंतमंजुलाउज्जो । संतेउरो सपउरो ससुओ पत्तो तमुज्जाणं ॥ ६९६४ ॥ नवघणगहीरगज्जियपरिभवकरदेसणासरं सोउं ।। सहकरिवरेण परिहरिय पंचवररायककुहाइं ॥ ६९६५ ॥ पविसिय सहाए कयतिप्पयाहिणो केवलिक्कमे नमिउं । परिवारजुओ राया उचियट्ठाणे समुवविट्ठो ॥ ६९६६ ॥ पहुणा पारद्धा पारभवअवारतरणेक्कतरी । सद्देसणा महामोहमूढभव्वावबोहत्थं ॥ ६९६७ ॥ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ५४३ तहाहि - भो भो भव्वा ! भावह धुवं अणिच्चो इमो भवविलासो । तं नत्थि वत्थुमिह थोवमवि थिरं जं भुवब्भूयं ॥ ६९६८ ॥ जेण पडणस्सहावो देहो लच्छी वि नस्सरसरूवा । भूरि वायं आउं चलाणुरायाओ रमणीओ ॥ ६९६९ ॥ सुलहो अणिट्ठजोगो दुलहाओ विसिट्ठइट्ठगोट्ठीओ । तरलतरं तारुन्नं विसया विरसावसाणाय ॥ ६९७० ॥ विहुरइ जरा सरीरं रोया पसरति इंति विवईओ । सयणा सकज्जनिट्ठा निच्चं मुहपेच्छओ मच्चू ॥ ६९७१ ॥ तो निव ! किं सच्चवियं तुमए थिरमेरिसे भवसरूवे । जेणज्जवि न पवज्जसि पवज्जं वज्जियावज्जं ॥ ६९७२ ॥ तं सोउं भूमिवई संवेगावेगवग्गुवयणेहिं । पव्वज्जायरणुज्जमजुत्तो विन्नवइ गुरुमेवं ॥ ६९७३ ॥ पहु ! मह महापसाओ विहिओ धम्मोवएसदाणेण । कयरज्जकज्जचित्तो पवज्जं संपवज्जिस्सं ॥ ६९७४ ॥ नवरं पुच्छामि इमं किं मह तणयस्स दुक्खरिंछोली । असमाउल्लसिऊणं अवसरिया पावभीय व्व ॥ ६९७५ ॥ गुरुणा भणियं दुत्थियभवम्मि मुणिदाणलद्धलच्छीए । कारवियं जिणभवणं कंचणमणिरयणरमणीयं ॥ ६९७६ ॥ बिंबपइट्ठावियं जिणेसराण भत्तीए तम्मि कारविया । अट्ठाहिया महम्मि वि दिन्नं अच्चब्भुयं दाणं ॥ ६९७७ ॥ तेणेसो असमसिरीसहिए तुह मंदिरे समुप्पन्नो । सिवसुहमवि पाविस्सइ एय भवम्मि वि सुओ तुज्झ ॥ ६९७८ ॥ | नवरं एगम्मि दिणे रयणिविरामम्मि विगयनिद्दस्स । संजाया पावकरी चिंता दुत्थियनरस्स इमो ॥ ६९७९ ॥ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ सिरिअणंतजिणचरियं धम्मे धणवओ जं मए कओ अइबहू अजुत्तं तं । इय चिंतिऊण पच्छा पच्छायावो कओ एवं ॥ ६९८० ॥ हा हा पावेण मए सुट्ठाणे निजुंजियम्मि दव्वम्मि । अप्पहिए मोक्खफले विचिंतियं तं जमइपावं ॥ ६९८१ ॥ अहमेव पुन्नपत्तं जेण अच्चतदुत्थिएणावि । पत्ता असरिसरिद्धी समज्जिया तीए सिद्धी वि ॥ ६९८२ ॥ ता जं कुविकप्पवसेण किं पि समुवज्जियं मए पावं । मिच्छामिदुक्कडं मह मणवइकाएहिं से होउ ॥ ६९८३ ॥ इय पच्छायावेणं पुणरवि पुन्नाणुसंधणं विहियं । आलोईयं न जं तं गुरुणो तप्फलमिमं असुहं ॥ ६९८४ ॥ संजायं तुह तणयस्स सीहसंतासपमुहमइदुसहं । तप्पच्छायावेणं पुणरवि नियबलसिरी पत्ता ॥ ६९८५ ॥ सद्धम्माणुट्ठाणम्मि राइकइयाइभावपरियत्ती । थेवा वि रक्खियव्वा जं सा दारुणविवागफला ॥ ६९८६ ॥ एयं नरनाह ! तुह पयासियं पुत्तयस्स दुहसहणं । ईय जंपिऊण मोणे परिट्ठिओऽणंतनाणधरो ॥ ६९८७ ॥ तो केवलिपयसयदलमभिवंदिय नरवई कुमरकलिओ । सहिओ परिवारेण य निययप्पासायमणुपत्तो ॥ ६९८८ ॥ काऊण न्हाण-भोयणपमुहं करणिज्जमुत्तमे लग्गे ।। कुमरो अणिच्छमाणो वि राइणा ठाविओ रज्जे ॥ ६९८९ ॥ सकलत्तो वि हु कइवयरायाइजुओ समारुहियसिबियं । तित्थं पभावयतो रिद्धीए गओ गुरुसयासे ॥ ६९९० ॥ मुत्तुं सिबियं कय तिप्पयाहिणो पणमिउं गुरुं भणइ । पहु ! वियरह मह दिक्खं ति तयणु सो दिक्खिओ गुरुणो ॥ ६९९१ सिक्खाविय दुव्विहसिक्खस्स तस्स पाए नमित्तु नवनिवई । पणयगुरूपओ विरहुव्विग्गो पत्तो निए भवणे ॥ ६९९२ ॥ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा नवरायरिसीसमहीयसव्वसिद्धंतपत्तसंवेगो । कयतिव्वतवो संजायकेवलो सिवपयं पत्तो ॥ ६९९३ ॥ सिरिरयण सुंदरी वि हु राया तिव्वप्पयावजियसत्तू । सो रज्जं रंजियजणं परिपालइ रज्जमणवज्जं ॥ ६९९४ ॥ तो सेट्ठिधणद्धयरयणसुंदरो जह सुही वि पत्तदुहो । होउं पुणरवि सुहिओ जाओ तह होइ अन्नो वि ॥ ६९९५ ॥ तो पुव्वभवभवाणं कम्माणं परिणई धुवं सेट्ठि ! । पवियंभइ पाणीणं ता सुहकम्मज्जणे जयह ॥ ६९९६ ॥ तो भव्वजणो जाओ सव्वो वि कुकम्मकरणविरयमणो । जह जोग्गं अंगीकयधम्मो पत्तो सठाणेसु ॥ ६९९७ ॥ सिंगारमउडकुमरो वि नमिय गुरुणो गिहत्थजणजोग्गं । धम्मं सम्मत्तप्पमुहमुत्तमं गिन्हइ पहिट्ठो ॥। ६९९८ ।। वंदिय गुरुणो पभणइ पहु ! मह तुम्ह पसायओ जायं । सद्धम्ममहारयणं इहपरभवसुहयमियभणिओ ॥। ६९९९ ॥ नयरनिरिक्खणकज्जे जा चलिओ रईयरम्भसिंगारं । ता सुणइ नहे घणकणयकिंकिणीगणरणक्कारं ॥ ७००० || तं दछं निहियच्छी पेच्छइ मणिकिरणजालदुन्निरिक्खं । आगच्छंतं गयणे रविरहरयणं पिव विमाणं ॥ ७००१ ॥ तम्मज्झाओ रुंदवणमालिया वरवत्था अलंकरिओ । एगो खेयरतरुणो विणिग्गओ रूवरइरमणो ॥ ७००२ ॥ पत्तो कुमारपासे काउं पडिवत्तिमाह विणयपरो । कुमरारुहसु विमाणे गच्छामो जेण वेयड्ढे ॥ ७००३ || किं तत्थ कज्जमिय कुमरजंपिए भणइ खेयरो एवं । तुह उदयत्थं ति तओ कुमरो चडिओ विमाणम्मि ॥ ७००४ ॥ उवविट्ठो घणमणि - किरण - जालसंजणियसक्कचावचए । माणिक्कमत्तवारणयठाविए आसणे रुंदे ॥ ७००५ ॥ ५४५ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ सिरिअणंतजिणचरिर विज्जाहरो वि चडिओ तो उप्पइयं नहे मणिविमाणं । पुट्ठो कुमरेण नियुत्तमुदयहेडं मह कहेसु ॥ ७००६ ॥ तेणुत्तं ता नरनाह ! पुत्तमूलाओ सुणसु वुत्तंतं । जेणप्पओयणेणं तत्थाह नेमि तं इण्हि ॥ ७००७ ॥ अवगाहियपुव्वावरजलहीजलकेलिलोलपुरिसो व्व । अस्थि गिरी वेयड्ढो सुपडं बंभो व्व तुरओ व्व ॥ ७००८ ॥ पडिबिंबियानिलचला तमालतरुसंडमंडली जम्मि । रविकर-कयत्थणभया कंपइ सरणासिय व्व निसा ॥ ७००९ ॥ रुप्पयमयासु सेणीसु जस्स नयरेसु रयणभवणाई । घणउयहीसुं सग्गेसु मणिविमाणाई व सहति ॥ ७०१० ॥ तम्मि पुरनियरपवरं रहनेउरचक्कवालपुरमत्थि ।। तं चोज्जं जम्मणिमयमवि न चइयं दाहिणासं जं ॥ ७०११ ॥ सच्छप्फलिहसालग्गसग्गिकविसीसयोहसेणीहिं । एगंतरट्ठियाहिं कंचणकलहोयरइयाहिं ॥ ७०१२ ॥ नयरस्सिरी निरिक्खणदीवंतरआगयाहिं जं सहइ । घंटायरेहि वायरससहरबिंबावलीहिं व ॥ ७०१३ ॥ (जुयल) तं परिपालइ घणरयणकुंडलो रयणकुंडलो नाम । खेयरचक्की सक्कीसाणसुरेसरसरिसरिद्धी ॥ ७०१४ ॥ सायरपयमज्झट्ठिओ वेयड्ढमहीहरस्सिओ सइ जो । जंबुद्दीवो इव भद्दसालनयरईओ व सहइ ॥ ७०१५ ॥ निग्गयगुरुप्पयावो जो विमयगुरुप्पयावलसिओ वि । सच्चावहारजुत्तो असच्चपरिहारचित्ता वि ॥ ७०१६ ॥ तस्संतेउरकमणीयकामिणीसामिणी सुगयगमणो । रमणीरयणं कंता समत्थि रयणावली नाम ॥ ७०१७ ॥ सज्जेट्ठा परमासा सुहालया सुपवित्तवयणा य । सव्वत्था वि दुहत्था सया दुहत्था वि हु सुहत्था ॥ ७०१८ ॥ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४७ रयणसुंदरकहा लायन्नसलिलसरिया जस-ससहर-जोण्ह-पुन्निमा रयणी । सीलमरालयनलिणीलीलालईया मलयवसुहा ॥ ७०१९ ॥ तीए सह विविहविसयव्वामोहपरस्स नीइचित्तस्स । वच्चइ कालो खयराहिराइणो गुरुपयावस्स ॥ ७०२० ॥ तीए सयासं न निवो खणं पि मुंचइ न सा वि निवपासं । “जोन्हा न चयइ चंदं चंदो वि हु चयइ किं जोन्हं ?" ॥ ७०२१ ॥ अन्नोन्नदरिसिणो च्चिय तेसिं उप्पज्जए महासोक्खं । तव्विरहे बहुदुक्खं रहंगमिहुणाण वसया वि ॥ ७०२२ ॥ सिविणम्मि वि उप्पज्जइ न ताण कईया वि पणयकलहो वि । एगस्स सुहेण सुहं दोन्ह वि दुक्खेण दुक्खं जं ॥ ७०२३ ॥ अच्चंतपिआ पेम्मप्पयरिसविसएण खेयरिदेण । समभमणमणुन्नायं निच्चं पि कयप्पसाएण || ७०२४ ॥ तो उवविसइ सहाए समगं चिय चडइ रायवाडीए । न चयइ खणं पि पासं पइणो छाय व्व सत्ताण ॥ ७०२५ ॥ जइ वि न निवइनिरोहो जइ वि पसाओ पईव से जइ वि । देवी तहा वि दूरं महासई गव्वमुव्वहइ ॥ ७०२६ ॥ कईया वि कीलिउं सह पिएण सुत्ता निसावसाणम्मि । देवीदेवयमेगं सिविणे सिंगारियं नियइ ॥ ७०२७ ॥ उच्छंगसंगयं दलृ निदं विहाय पडिबुद्धा । मंजुस्सरेणमवणिद्दमवणिनाहं विहेऊण ॥ ७०२८ ॥ विन्नवइ देव ! देवयमेगं सिंगारियंगमुच्छंगे । पासियपडिबुद्धा हं ता किं फलओ इमो सिविणो ? ॥ ७०२९ ॥ रायाह देवि ! देवीसिविणेणं सूईओ सुया. जम्मो । किं तु पवित्ती भव्वासओ वि कईया वि जं होही ॥ ७०३० ॥ देवीए जंपियं पुहु ! एयंपि हु होउ तुह पसाएण । बंधइ य सउणगंठिं तुट्ठमणो उत्तरीयंतो || ७०३१ ॥ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ एत्थंतरम्मि पहयप्पहायजयतूरनायनिसिविरमे । कयपाहाउयकिच्चो राया अइवाहए दिवस || ७०३२ || उव्वहइ गब्भपब्भारमसमसंपज्जमाणमणवंछा । कारिज्जंती देवी गब्भसमुब्भवकिरियनियरं ॥ ७०३३ ॥ अह सुहतिहिं तारयवारकरणजोगुब्भवम्मि लग्गंमि । सिय बीय व्व ससिकलं देवीदुहियं पसूया सा || ७०३४ ॥ वद्धाविओ सुयाए दासीए पियमुहीए खयरवई । तेण वि तीए विइन्नं पीइपयाणे पभूयधणं ॥ ७०३५ ॥ कारावियं च नयरे वद्धावणयं महाविभूईए । पविसिरअक्खयवत्तं परिवज्जिरमंगलाउज्जं ॥ ७०३६ ॥ ससि - रवि-दरिसण- छट्ठी- जागरणपमुहे कयम्मि करणिज्जे । सिविणसमं नामं से दिन्नं सिंगारदेवी त्ति ॥ ७०३७ ॥ परिवद्धिउं पवत्ता बाला बीया मयंकलेह व्व । परिपाढिया य इत्थीजणजोग्गकलाकलावं सा ॥ ७०३८ ॥ रयणि व्व ससहरेणं सरसि व्व वियासिकमलसंडेण । नवजोव्वणेण तरुणायणमणहरेणं अलंकरिया || ७०३९ ॥ तद्देहाओ वियसंतकंतिकलियाओ ससहराओ व्व । करधरियाई व न चलंति खयरतरुणयणनयणा ॥ ७०४० ॥ अप्पुव्व च्चिय मइरा बाला दिट्ठा वि तरुणलोयाण । जणयंती उम्मायं दिंती नयणाण राई च ।। ७०४१ ॥ उज्जाणाइसु निच्चं कीलाकरणाइं जत्थ अल्लियइ । तं ठाणमिंति तरुणा मयणाणाणलणत्थं व ॥ ७०४२ ॥ वीणा - वायणकलगीन्य-करणसनद्धविरयणाईहिं । कालं अइवाहइ सा सुवियड्ढसहीयणसमेया ॥ ७०४३ ॥ दट्ठूण नवजोव्वणमणोहरं कन्नयं खयरचक्की | चिंतइ को नाम वरो वरो भविस्सइ मह सुयाए ? || ७०४४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४९ रयणसुंदरकहा को वि गुणी वि कुरूवो को वि सुरूवो वि विमलगुणहीणो । को वि गुणरूवरहिओ को वि सरूवो गुणी किविणो || ७०४५ ॥ को वि पुणो रूवगुणच्चायपरो वि हु परक्कमविहीणो । ता सव्वगुणो जुयलं जा होइ तं सुयाए वरेमि वरं ॥ ७०४६ ॥ अहवा सव्वगुणो वि हु न होइ कन्नाए जुइ मणे इट्ठो । ता जा जीवं पि विडंबिया मए जायइ वराई ॥ ७०४७ ॥ अहवा किं चिंताए पुच्छामि अणंतनाणिणं कमवि । नियकन्ना जोग्गवरं जं सो णाणेण मह कहिही ॥ ७०४८ ॥ इय चिंतिउं गओ खयरनरवईणंतनाणनामस्स । पासे केवलिणो नमिय तक्कामसुणियवक्खाणं ॥ ७०४९ ॥ पत्तावसरं पणमित्तु पुच्छिओ सो सुया वरं रन्ना । तो केवलिणा सययोवओगिणा साहियं एवं ॥ ७०५० ॥ एयद्दिणाओ तीसइमवासरे सूरपुरपुरासन्ने । उज्जाणम्मि सिरधरणिभूसणा कुसुमफलकलिए ॥ ७०५१ ॥ देवंगवत्थदिव्वाभरणेहिं रईयचारुसिंगारो । नवजोव्वणो कुमारो तुह कन्नाए वरो होही ॥ ७०५२ ॥ इय सोउं सो नहयरनरेसरो नमिय केवलिं पत्तो । नियनयरे रज्जसिरं उवभुंजइ पहरिसप्पसरो || ७०५३ ॥ अन्नम्मि दिणे राया विन्नत्तो चेत्तधरनरेणेवं । देव ! दूवारे दूओ हारप्पहराइणो पत्तो ॥ ७०५४ ॥ मुच्चउ सो पुहु ! किं वा नव त्ति ? रायाह मुंच सिग्घं पि । तो सो पवेसिउं दंडिणा सहं रायआणाए ॥ ७०५५ ॥ नमिय नरिंदं उचियासणट्ठिओ विन्नवेउमारद्धो । देवुत्तराए सेणीए गयणवल्लहपुरं अत्थि ॥ ७०५६ ॥ पसरियविमाणसोहा समस्सिया सासया मुणिस्सेणी । परमेरावणजुत्ता जम्मि विरायइ सुरपुरि व्व ॥ ७०५७ ॥ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० तं परिपालइ नहयरनरेसरो फुरियगुरुतरपयावो । साहिय अणेगविज्जो बलवं हारप्पहो नाम ॥ ७०५८ ॥ जो पाउसो व्व घणमंडलग्गअवहरियरायहंसो वि । तं चित्तं जं सियरायहंसकमलोदओ सहइ || ७०५९ ॥ भूगोयराण मज्झमि खेयरा उत्तमा भुवणगब्भे । तेसिं पि गयणवल्लहपुरसामी उत्तमो नूणं ॥ ७०६० ॥ ता जेण समो भुवणे वि नत्थि को वि हु दुज्जओ राय ! । चाएण विक्कमेणं पहुपयवीए जसेणं च ॥ ७०६१ ॥ निय भुयबलाबले वावगणियकीणासविक्कमेणाहं । तिणगणियसेसराएण पेसिओ तेण तुह पासे ॥ ७०६२ || तुह अस्थि हत्थिगइगामिणीसुया कामिणी सिरोरयणं । सिंगारदेवि नामा कामावासो मयंकमुही ॥ ७०६३ ॥ तेणप्पणो निमित्तं तियसा मग्गविया विवाहेउं । ता वियरसु तस्सब्भत्थणं कुणंतस्स तं कन्नं ॥ ७०६४ || इयरो वि समीहिज्जइ सयणो हुंतो सयाण पुरिसेहिं । किं पुण भुवणच्चब्भुयपरक्कमक्कंतसत्तू सो ॥ ७०६५ ॥ जयवासि रायचूडामणी वि दुद्देतदुट्ठदमणो वि । वंछियवत्थुग्गहणाहिणिवेसप्पत्तकित्ती वि ॥ ७०६६ || विणयप्पणओ पत्थइ तुह तणयं ता तमेव पुन्नपयं । कन्ना उवायणेणं अणुकूलसु ता तमहिमाणिं ॥ ७०६७ || (जुयलं) ससुरो त्ति तुज्झ दाही सो धणकणं किं न देस - नयराइं । तारिसओ जामाऊ लब्भइ बहुपुन्नपसरेहिं ॥ ७०६८ ॥ रूवस्सिणी व सोहग्गिणी वि अइवल्लहा वि तणुतणया । जायइ परोवभोगाय ता इमं होउ देसु सुयं । ७०६९ ।। अह न पयच्छिसि तणयं तस्स तुमं ताहिमाणवसओ सो । करवालबलेण सुयासहियं रज्जं पि तुह हरिही ॥ ७०७० || सिरिअणंतजिणचरियं Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदर कहा तं सोउं खेयरचक्किणी माणकोवजलणजालेली । अह माणरत्तनयणप्पहाछलेण समुच्छलिया ॥ ७०७१ ॥ उभडभड भिउडीघडणभंगभावेण सामलं भालं । जायं से अब्भुल्लसियकोवदवधूमकलुषं चं ॥ ७०७२ || मंदरमंथाण महिज्जमाणरवीरोयघोससरिसेण । सद्देण बहिरयंतो भुवणं पभणइ खयरचक्की | ७०७३ || रे दूयाहम ! महुरं भणिरो वि पयंपसे जमइव निवं । तं अणुहरसि ससक्करसमिरिय पीऊससायस्स || ७०७४ | निन्नामस्स वि दाहं कन्नमहं नियरुइए कस्सा वि । दूय ! नियमने दाहं तुह पहुणो उत्तमस्सावि ॥ ७०७५ ॥ एयं अवलोइस्सं जह सो मह कन्नयं सरज्जं पि । गहिऊण परमकोडिं आरोवइ निययमहिमाणं ।। ७०७६ ॥ जइ सपयन्नापालो जइ सच्चं उभयकुलविसुद्धो य । ता सो महकरवालानिहत्तमणुसरउ समरम्मि ॥ ७०७७ || दूएणुत्तं पुव्वं सुव्वंता जे नरिंदघणसूरा । तम्मज्झाओ एक्को पढमयरो तमिह सच्चविओ || ७०७८ ॥ निव्वडइ पुरिसयारो जह नियमहिलाण अग्गओ राय ! । तम्हारिसाण तह जइ रणे वि ता किन्न पज्जुनं ? || ७०७९ ॥ रायाह न कस्सइ जंपिएहिं सूरत्तकायरत्ताइं । हुति जओ ता निय पहुमाणसु तं समरखेत्तम्मि || ७०८० ॥ इय जंपिय सम्माणियविसज्जिओ नियपुरे गओ दूओ । तह तेण कहियमहियं निय पहुणो से जहा कुविओ ॥ ७०८१ ॥ जंपर मइ जीवंते कन्ना अन्नाणुसारिणी जइ सा । संपज्जइ ता मह पुरिसयारचत्ता वि हु पउत्था || ७०८२ ॥ नियजणएण न जाओ अहं न जइ तं रणंगणे हणिउं । जयलच्छि पिव गिन्हा किमन्नयं चारुतरवन्नं ॥ ७०८३ ॥ , ५५१ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ इय जंपिउं पयाणयभेरिं दाऊण झ त्ति संचलिओ । सामंत - मंति- मंडलिय - मंडलावेढदुद्धरिसो ॥ ७०८४ ॥ रुपयवित्थुरियगुडागुडियाकरिणो नहेण संचलिया । सारयसमयसमुब्भवं ससिकिरणनियर व्व रेहंति ॥ ७०८५ || पसरंति तुरयासणीओ सयपक्खरविरायमाणाओ । गयणंगणगंगाजललसिरतरंगावलीओ व्व ॥ ७०८६ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं चलिरद्धयालिखलहलिरघग्घरारणिरकिंकिणिकलावा | गच्छंति रहा जे उवमणिविमाणगुरुवेगं ॥ ७०८७ ॥ घणकसिणकसियकंकडरोमं विज्जंतजंतसुहडाण । तुट्टंत लोहकडया तडयडरावो समुल्लसइ ॥ ७०८८ ॥ इय चउरंगचमूचयवित्थारनिरुद्धरविकरप्पसरो । वेगेण वयइ राया तावं पुहईए हरिउं व ॥ ७०८९ ॥ वरनरनायारिनरिंदआगमो रयणकुंडलो वि निवो । करिहरिरहजोहविमाणवेढिओ झत्ति संचलिओ ॥ ७०९० ॥ सीमाए ताण दुन्ह वि बलाई जयलच्छिलालसमणाई । घडियाइं मच्छरुच्छाहसाहसा सत्तसुहडाई || ७०९१ || करिहरिरहचडिएहिं करिहरिरहसंठिया पडिक्खलिया । समपहरणसुहडेहिं समपहरणपडिभंडारुद्धा ॥ ७०९२ ॥ तो भल्ल - भल्लि - वावल्ल - सेल्ल - तीरी - तिसूल - सूलेहिं । अग्गिमबलाई पहरिउमारद्धाई असीहिं च ॥ ७०९३ ॥ चलगयघडघणमाले निवडिरसरधोरणीजलासारे । तरलियतरवारिपहा विप्फुरियतडिच्छडाडोए ॥ ७०९४ ॥ सियचिंधालंबद्धयभमिरवलायावलिकलीयसोहे | सत्थाहयनरपसरियरुहिरच्छडा इंदगोवगणे ॥ ७०९५ ॥ भूरितरवारिधारा कायरनासंतरायहंसोहे । वज्जिरढक्काबुक्का नीसाणाउज्झगज्जिरवे ॥ ७०९६ ॥ Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणसुंदरकहा ५५३ खग्गाहयनरकरिहरिपवत्तकीलालपसरियपवाहे । असिदारियगयकुंभयडगलियमुत्तोहवुग्घुयए ॥ ७०९७ ॥ अनिलुक्कलिया तरलियसिक्किरिसिहिं निव्वविहियनदृमि । कमलावली सुदूरं विद्धसं गच्छमाणेसु ॥ ७०९८ ॥ अद्धिंदुनिवाडिय-धवलछत्तवियसियसिलिं व संदोहे । अवहरियसूरराए पसरिय घणमंडलग्गेहिं ॥ ७०९९ ॥ भडसीहनायहक्काहुंकारब्भूयदद्दुरारावे । अन्नोन्नलग्गनिवमणिभूसणकररईयहरिचावे || ७१०० ॥ दिसि-दिसिरोदरसप्पसरमाणअपमाणवाहिणीविंदे । एवं रूवम्मि समरपाउसे उल्लसंतम्मि ॥ ७१०१ ॥ गुडियगयरायचडिया सच्छत्ताचलिरचारुचमरचया । गिज्जंता तरुणविलासिणीहिं बंदीहिं थुव्वंता ॥ ७१०२ ॥ परितुलयंता अनन्नपहरणव्वूहसमसमच्छरिणो । खयरवइरयणकुंडलहारप्पहराइणो भिडिया ॥ ७१०३ ॥ परिमिलियदंतिदंता हक्काहुंकारमुहरियदियंता । हण हण हण त्ति भणिरा मुचंति सरोसणिं दो वि ॥ ७१०४ ॥ नियलद्धलक्खयाए खलिउं हारप्पहस्स सरविसरं ।। सिरिरयणकुंडलेणं मुक्को मुग्गरपहारो से || ७१०५ ॥ तेणावि भिंदमालाए भंजिउं मोग्गरंतरो रोसा ।। भणियं रे ! रे ! तं पि हु एवं हणिउं निवाडिस्सं ॥ ७१०६ ॥ तो रयणकुंडलेणं निवेण करणेण पयप्पहारेण । तुह मुहदोसो त्ति पयंपिरेण सपाडिया दंता ॥ ७१०७ ॥ बलिरो वेगेण कमेसु धरियहारप्पहेण नरवइणा ।। खित्तो नहे पडतेण तेण असिणा रिऊ हणिओ ॥ ७१०८ ॥ अहिए हए कुऊहलउक्कलियाकलियमिलियअमरेहिं । निवरयणकुंडलसिरे पमुक्का कुसुमभरवुट्ठि ॥ ७१०९ ॥ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ सिरिअणंतजिणचरियं जय जय जय त्ति परिजंपिरेहिं नियसन्निएहिं जयतूरं । वद्धावणयच्छंदेण वाईयं दिट्ठहियएहिं ॥ ७११० ॥ तो सत्तुरायतणया नरिंदमंडलियमंति-सामंता । कंठट्ठवियकुढारा अल्लीणा अम्ह नरनाहं ॥ ७१११ ॥ अप्पायत्तं काउं तक्कडयसिरिं करेणु-हरिपमुहं । सिरिंगयणवल्लहपुरे पत्तो विहिऊसवे सबलो ॥ ७११२ ॥ उवविट्ठो दिसिपसरियमाणिक्कमऊहमणहरसहाए । पणओ तन्नयरमहायणीयविदेण विणएण ॥ ७११३ ॥ कोसा कोट्ठायारा करिणो हरिणो रहा य देसा य । तन्नोन्नन्निउइएहिं उवणीया तस्स सव्वे वि ॥ ७११४ ॥ सट्ठाण वि देसवईणं रायलच्छि समग्गमवि गहिउं । परियत्तिऊण दिन्ना तेसिं देसा समग्गेण ॥ ७११५ ॥ सम्माणिया य सव्वे वि तेण ते तह महायणीया वि । विलसंतरयणभूसणसव्वुत्तमवत्थदाणेण ॥ ७११६ ॥ जस्सोभयसेणिपहुत्तपत्तसियकित्तिनिब्भरं भुवणं । आभाइजुगक्खयखुहियखीरसिंधुदयभरियं व ॥ ७११७ ॥ सो रज्जरंजियाओ एयाओ निच्चं पि पमुईयमणाओ । आसीवाए वियरंति राइणो जणहियपरस्स ॥ ७११८ ॥ इय तत्थ रज्जरिद्धिं कईवयदिवसाणि माणिउं राया । तद्देसरक्खणक्खमसामंते मुत्तमुग्गबले ॥ ७११९ ॥ तो तस्सेणीसामंत-मंति-मंडलिय-मंडलावरिओ । चलिओ विमाणविंदच्छाइयगयणंगणाभोगो ॥ ७१२० ॥ विरईयचंदणमाले निव्वत्तियहट्टसोहसिंगारे ।। राया पुरे पविट्ठो नियम्मि अइवाहए कालं ॥ ७१२१ ॥ उभयस्सेणिपहुत्तं पालइ पोढप्पयावजियसत्तू । पूएइ पूयणिज्जे सम्माणियं सयणसुहिविंदं ॥ ७१२२ ॥ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५५ सिंगारमउडकहा इय रज्जकज्जकरणुज्जुयम्मि कइया वि खयरनरनाहे । संतावयरो गिम्हो जलणो व्व वियंभिओ भुवणे ॥ ७१२३ ॥ अग्गिज्जालाजोओ व्व जम्मि जावड्ढरत्तमइदुसहो । लूयावाओ दूरं देहे निद्दहइ देहीणं ॥ ७१२४ ॥ दाहज्जरभिभूओच्छगेहअब्भंतरट्ठिओ लोओ । अच्चंतउन्हजलं पियइ पइखणमवि स-तन्हो ॥ ७१२५ ॥ जत्थानिलउच्छालियरयच्छला भमइ सव्वओ वि मही । रवितावमसहमाणा सिसिरच्छायं नियंति व्व ॥ ७१२६ ।। गुरुतावभरक्कंत व्व जंति रविरहतुरंगमामंदं । नूणं हवंति गिम्हमिं तेण अइदीहरा दियहा ॥ ७१२७ ॥ गिम्हेण दुज्जणेण व जम्मि संताविओ जणो नूणं । निव्वाविज्जइ जइ परे सुयणेण व चंदणरसेण ॥ ७१२८ ॥ एवंविहम्मि गिम्हे उम्हाभिहओ निवो सह पियाए । परिवारजुओ पत्तो रम्मारामम्मि उज्जाणे ॥ ७१२९ ॥ जं चउपासवहता रहट्टघडिपडिरजलकणवहेहिं । वाएहिं कयुकंपं नज्जइ दुग्गं व सिसिरस्स ॥ ७१३० ॥ तस्संतो मुत्ताहलहारुज्जलजलपडंतधारोहं । धाराहरं विरायइ वासारत्तस्स बीयं व ॥ ७१३१ ॥ मणिसालहिंजियाओ जम्मिं नह-नयण-वयण-सिहिणेहिं । मुंचती च जलभरं सहति जलदेवयाओ व्व ॥ ७१३२ ॥ तम्मज्झे उवरिट्ठियसहस्सदलपज्झरंतधारोहे । फलिहसिलायामयपंजरि व्व पत्तो निवो सपिओ ॥ ७१३३ ॥ तम्मज्झे मुत्तावलिवज्जाली जुयपिसंडिदंडम्मि । दोलापल्लंके मिउतूलीकलिए समुवविट्ठो ॥ ७१३४ ॥ अनिलुक्कलिया चालिय जललवसंपक्कसंतगिम्हुम्हो । कंताए समं माणइ तत्थ वि निद्दासुहं राया ॥ ७१३५ ॥ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ सिरिअणंतजिणचरियं जायम्मि तिजामाए जामजुगे जाव जग्गिओ देवी । चलिया सरीरचिंता कज्जे धाराहरदुवारे ॥ ७१३६ ॥ तो धाराहरजलसेयसिसिरसोवाणभूमिसुत्तस्स । तीए विदिन्नो पाओ उवरिं गुरुदप्पसप्पस्स ॥ ७१३७ ॥ तो तेण कामदड्ढा दड्ढा दड्ढाहिण त्ति जंपंती । निच्चेट्ठा होऊणं दड त्ति पडिया महीवढे ॥ ७१३८ ॥ निठुरमणि-कुट्टिमतलपडणपहारुत्थपीडभीय व्व ।। निवपट्टमहादेवीए झत्ति पाणा वइक्कंता || ७१३९ ॥ दट्ठा दड त्ति सरं सोउं निवसो विदल्लपडिहारो । दासंगरक्खया वि य वेगेण तयं समल्लीणो || ७१४० ॥ तं दटुं निच्चेठें दड त्ति मुच्छाए निवडिओ राया । विरहं सहिउमसत्तो कंताए कयाणुगमणो व्व ॥ ७१४१ ॥ तयणुससंभमचेडीचक्काहियसिसिरकिरियकरणाहिं । भूवइणा संपत्तं चेयन्नं नेव देवीए ॥ ७१४२ ॥ मणि-मंत-जंत-तंतोसहीहि विहिया पभूय उवयारा । दुज्जणउवयारा इव सव्वे वि हु विहलयं पत्ता ॥ ७१४३ ॥ संतम्मि जीवियव्वे उवयारो होइ नो असंतम्मि । कहमन्नहा निवइणो चलिया मुच्छा न देवीए ॥ ७१४४ ॥ नाऊण तीए परभवपवासमुम्मुक्कपेक्कपुक्करवं । कारुन्नं जणयंतो रुयइ रुयाविय जणो राया ॥ ७१४५ ॥ हा देवि ! वियासिसिरी सकुसुममालाइरित्तमिउदेहे । महिनिविडणप्पहारो कह सहिओ सुयणख ! मह. कहसु ॥ ७१४६ ॥ हा छणससिसरिसाण णिहा-पट्ट-पउत्तमाणणि मयच्छि ! । दच्छीहं कत्थ तुमं सविलासुल्लासरमणीयं ॥ ७१४७ ॥ निक्कित्तिमो सिणेहो मयंकमुहि ! नत्थि नूण कस्सा वि । जं मह पाणा चलिया तं अब्भडवंचिउं व पिए ॥ ७१४८ ॥ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा सुन्ना सेज्जा नयरं निरुव्वसं मंदिरं मसाणसमं । गयगमणि तुज्झ विरहे नयणालंबणं पि गयं ॥ ७१४९ ॥ वल्लहपिया विउत्तो हत्थं मुच्छिज्जए अणुकलं पि । सिसिरकिरियाहिं वारं वारं कीरइ सचेयन्नो ॥ ७१५० ॥ तो सोयविहुरिएहिं अमच्च-सामंतमंडलीएहिं । चंदण-दारूहिं कओ देवीए सरीरसक्कारो || ७१५१ ॥ काऊणं मयकिच्चं पयचारेणेव नरवई चलिओ । निस्सद्दबंदिविंदो चत्तछत्ताइनिवचिंधो ॥ ७१५२ ॥ परिहरियालंकारो दूरपरिचत्तगीयझंकारो । भूमितलपत्तनयणो कयमोणो भवणमणुपत्तो ॥ ७१५३ ॥ अत्थाणं पमयवणं कीलासेलो सकमलपुक्खरिणी । दईया महापवासे दिति दुहं से जओ भणियं ॥ ७१५४ ॥ एत्थ ट्ठिया इह भमिया एत्थ य कुविया पसाइया एत्थ । रमियट्ठाणाई विणा पियाए जायाई दुसहाई ॥ ७१५५ ॥ रयणावलिं सरंतं नाउं ईसालुयउवमई त्ति । निद्दा-छुहा-रई-चिइ-बुद्धी व खणं पि नरनाहं ॥ ७१५६ ॥ अणुदिणमवि सो झिज्जइ सामलपक्खुब्भवो मयंको व्व । सुपयासाए पियाए रहिओ पुन्निमनिसाए व्व ॥ ७१५७ ॥ दढयरहियओ होउं संधारिउमप्पमप्पणा लग्गो । नूणं भवुब्भवाणं वत्थूण मण्णिज्जया जेण ॥ ७१५८ ॥ "किर कस्स थिरा लच्छी, कस्स जए सासयं पिए पेम्मं । कस्स व निच्चं आउं भण को व न खंडिओ विहिणा ?" || ७१५९ । इय नायभवसहावा तणं व परिहरिय सव्व वासंगा । उसहाइणो जिणिंदा करिंसु तिव्वं तवच्चरणं ॥ ७१६० ॥ नंदंतु चिरं ते चेव बालकालाओ चित्तसामन्ना । न कयाइ जेहिं नायं ससिणेहपिया विओयदुहं ॥ ७१६१ ॥ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ सिरिअणंतजिणचरियं नेहेण विसेणं पिव मुच्छं गच्छंति पाणिणो हच्छं । नेहेण कलेणं पिव कलिया न तरंति निग्गंतुं ॥ ७१६२ ॥ दाहज्जरो व्व नेहो संतावयरो पिया विओगम्मि । गिम्हसमओ व्व नेहो दूरं परिवद्धए तण्हं ॥ ७१६३ ॥ पावंति परेऽवस्सं सत्ता नेहाओ आसवाओ व्व । नेहेण सुन्नहियया हवंति भूयाभिभूय व्व ॥ ७१६४ ॥ रोगेण व नेहेणं नासइ सत्ताण सव्वहा वि छुहा ।। अवहरइ विच्छएणं नेहे निदं असरिसो व्व ॥ ७१६५ ॥ नूणं निरंतराओ न तवे ते वि उ मए भवे पुव्वो । तेणप्पिया विवत्ती अकालपत्ता वि संवुत्ता ॥ ७१६६ ॥ ता इण्हि तवचरणं करेमि संसारवासअवहरणं । जह न विरसावसाणा विडंबणा होइ कईया वि ॥ ७१६७ ॥ नवरं केवलिकहियं कुमरं परिणाविऊण कन्नमिमं । दाऊण तस्स रज्जं पव्वज्जमहं करेमि लहुं ॥ ७१६८ ॥ ईय परिभाविय खयराहिराइणा तेण हं पडीहारो । आइट्ठो कुमर ! तुहाणयणयनिमित्तं विमाणेण ॥ ७१६९ ॥ केवलिकहियुज्जाणे पत्तो तं तुज्झ पुच्छमाणस्स ।। कहिओऽऽनयणे हेउ त्ति जंपिउं सो ठिओ मोणे ॥ ७१७० ॥ गुरुवेगविमाणेणं पत्तो वेयड्ढमिक्खए कुमरो । नियतारपहाधवलियदियंतरं सेयदीवं व ॥ ७१७१ ॥ तम्मि रहनेउरचक्कवालनयरम्मि रयणभवणम्मि । संपत्तो सुरलोए जीवो व विमाणरमणीए ॥ ७१७२ ॥ तस्संतो माणिक्कप्पासाए पेच्छिरो दुरवलोए । दीवंतररविणो विव राहुभया दुग्गमल्लीणो ॥ ७१७३ ॥ संपत्तो अत्थाणे पसरियमणिकिरणहरिधणुगणम्मि । नीलमहानीलपहा मेहब्भमनच्चिरमऊरे ॥ ७१७४ ॥ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५९ सिंगारमउडकहा तस्संतो विज्जाहरनरेसरारद्धमुद्धपयसेवं । पेच्छइ सुरेसरं पिव खयरवई अमरपरियायं ॥ ७१७५ ॥ दलं नहयरनिवई उत्तिन्नो निवसुओ विमाणाओ । पडिहारभुयालग्गो संपत्तो रायपायंतं ॥ ७१७६ ॥ पणओ महिमंडलमिलियभालवढे नरिंदपयपउमे । रन्ना वि समुक्खिविऊण गाढमालिंगिओ कुमरो ॥ ७१७७ ॥ परिपुच्छियाओ खयराहिरायकुमरेहिं कुसलवत्ताओ । रईयामरसिंगारं तं दट्टुं विम्हिया खयरा ॥ ७१७८ ॥ तो गणयगणियसव्वग्गहबलकलियम्मि लग्गसमयम्मि । कुमरकुमरीण पाणिग्गहणं कारावियं रन्ना ॥ ७१७९ ॥ वित्ते विवाहमहूसवम्मि सिंगारगारवमए व्व । तरुणियणनट्टनिव्वित्तिए व्व अणुरायरइए व्व ॥ ७१८० ॥ तयणु पसत्थतिहीए वारम्मि वारसुहम्मि नक्खत्ते । उभयस्सेणी रज्जे रन्ना रईओभिसेओ सो ॥ ७१८१ ॥ नरनाहमंडलेसर-सामंता मंतिणो य ईय भणिया । तुब्भेहिं नवनरिंदो अहमिव आराहणिज्जो त्ति ॥ ७१८२ ॥ ते बिंति देव ! अम्हं तुम्हाएसो सया वि हु पमाणं । किं पुण सद्धम्मसमुज्जयाण सिवबद्धबुद्धीण ॥ ७१८३ ॥ गोरी-पन्नत्ती-गयणगामीणी-नयणमोहणी-जाला । बहुरूविणिपमुहाओ रन्ना विज्जाओ सिक्खविओ ॥ ७१८४ ॥ तो खयरिंदो मणिकणय-घडिय-सिबियासणे समारूढो । रमणीयरमणिकरचलिरचमरवीइज्जमाणतणू ॥ ७१८५ ॥ असरिसरिद्धीए असोयसोहियाभिहमहंतमुज्जाणं । पत्तो पेच्छइ सूरि गुणरयणमहोयही नामं ॥ ७१८६ ॥ पणमिय तस्स सयासे कइवयमंडलीयकलिएण । पडिवन्नं सामंती सामन्नं पि नरवइणा ॥ ७१८७ ॥ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० ससरीरनिरावेक्खं अइतिक्खं सोक्खबद्धलक्खेण । विक्खेववज्जिएणं तेण तवच्चरणमायरियं ॥ ७९८८ ।। अंगाइ ओवंगाई पयन्नयाई च पगरणाई च । तह तेण अहीयाइं जह सो गीयत्थयं पत्तो ।। ७१८९ ॥ नव खयरिंदो रज्जं निरवज्जं पालए पयत्तेण । सेणीदुगे वि गच्छइ आवज्जंतो समग्गजणं ।। ७१९० ।। तह कह वि नीईपालणपरेण पवियंभियं ननिवेण । जह न सरइ सिविणे वि हु पुव्वनिवे को वि कइया वि ॥ ७१९१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं विहरइ खयरिंदरिसी वसीकयासेसइंदियचमूहो । गुरुणा सद्धिं विद्धिं नितो नाणाइगुणचक्कं ॥ ७९९२ ॥ छत्तीससूरिगुणसंगओ त्ति गणहरपए कओ गुरुणा । वेयड्ढोभयसेढीसु विहरए भूपुरेसुं च ।। ७९९३ ।। कइया वि तस्स सुक्कज्झाणानलदड्ढघाइकम्मस्स । जायं केवलनाणं लोयालोयप्पयासयरं ॥ ७१९४ ॥ तो भूय - भवंत-भविस्स - भावउब्भावणेण भव्वाण । पुच्छंताणुवयारे कुव्वंतो सोहमिह पत्तो ॥ ७९९५ ॥ पत्तो य एस सिंगारमउडखेयरेसरो सुओ तुज्झ । मह वंदणकज्जे सो हरिओ बालत्तणे करिणा ।। ७१९६ ॥ मज्झदिक्खयग्गहणाओ जायाइं अज्जं अट्ठवरिसाई । पायं एस निवो मं वंदइ निच्चं पि आगंतुं ॥ ७९९७ ॥ ता राय ! तए पुत्तावहारचरियं जमासि पुट्ठो हं । तं तुह कहियं ति पयंपिऊण नाणी ठिओ मोणे ॥ ७९९८ ॥ केवलिवयणेण वियाणिऊण सिंगारमउडखयरवई । रायाह जाय तुह विरहजायसंतावतावहव्ववहो । तुह दंसणनवघणपडलअमयवुट्ठीए संतो मे ॥ ७१९९ ॥ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडका नूणं जीवंताणं कयाइ कल्लाणमेइ पुरिसेण । बहुएहिं वि वरिसेहिं कहमन्नहा मह तुमं मिलिओ ॥ ७२०० ॥ जं वच्छ ! कए सुकयं किं पि कयं तं तए समं भमियं । जेण जणणि व्व तुह विंझवासिणी हियकरी जाया ॥ ७२०१ ॥ तेणेव सूरपुरवरनयरवणे तुज्झ दंसिओ सुगुरू । तेणेव रयणकुंडलराया तुह दाविओ रज्जं ॥ ७२०२ ॥ ता पुत्त ! उत्तरोत्तरकल्लाणाई कयाई सुकएणं । तुह मह मिलणं ताइं नन्नोहेऊण इहत्थम्मि || ७२०३ || खयरवइणा भणियं ताय ! तह च्चिय जहा समाइसह । न हि निप्पुत्ताण जए एक्का वि हु फलइ सुहकिरिया ॥ ७२०४ ॥ इय जंपिऊण जणणीए देइ वंदणयमसमनेहेण । उल्लसियनेहपन्हुयपयोहरा तयणु सा भाइ ॥ ७२०५ ।। आचंदक्कं नंदसु अक्खय अजरामरत्तगुणजुत्तो | अविउत्तोहो य सया वि पुत्त ! अम्मा-पिऊणम्ह ॥ ७२०६ ॥ जं जाय जायमिह तुह विओगओ अम्ह दुस्सहं असुहं । मा होउ तल्लवो वि हु तुह वेरीणा चेव रायाण ।। ७२०७ || इच्चाए घणसिणेहाए निययजणणीए जंपियं सोउं । खयरवई निविट्ठो नियपिओ वामंगदेसम्म ॥ ७२०८ ॥ एत्थंतरम्मि सिंगारसायरो नरवई नमियनाणिं । पुच्छर किमम्ह जाओ पहु ! बहुवरिसाई सुयविरहो ।। ७२०९ ॥ तो केवलिणा भणियं न राय ! निक्कारणं हवइ किंपि । ता आयन्नसु कम्मेण जेण पुत्तो विउत्तो ते ।। ७२१० ॥ इह आसी कासी देसवसुमईभूसणं पुरप्पवरं । कमलाकलियं नामेण गुरुपुरं सुरपुरसमिद्धं ॥ ७२११ ॥ जंति मुहचउम्मुहछमुहदसमुहे उ मिच्छमाणं च । सोहइ सव्वत्तो च्चिय बहुसुहलोहप्पयारपरं ॥ ७२१२ ॥ ५६१ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ तत्थासि सुनयरेहाविराइओ रायहंसकयसेवो । सल्लक्खणासिय पुरो सचक्कचंकमणकयसोहो ॥ ७२१३ सिरिअणंतजिणचरि बहुसंखसुत्तिगाहासुपवित्तवियाररायमाणो य । कमलायरो व्व कमलायराभिहो नरवई सुहओ || ७२१४ ॥ (जुयलं) तस्सासिसिरिनिवासा सहंसया परमपयपइट्ठा य । कमलावलि व्व विब्भमरसिया कमलावली कंता ॥ ७२१५ ॥ जीए तिव्वतरग्गे कामंकुसे धरंति करा । समओ वि नरिंदकरी कहन्नहा तव्वसे जाओ ।। ७२१६ ॥ तीए समविविहकीलारसप्पसत्तस्स तस्स भूवइणो । वच्चंति वासरासरयतरणितिव्वपयावस्स ।। ७२१७ ।। कइया वि महीनाहो मणिमंदिरमत्तवारणासीणो । नयरनिरिक्खिणनिक्खित्तनिययगुरुनेत्तसयवत्तो ॥ ७२१८ ॥ पेच्छइ समीवभवणे सिंगारविरायमाणनरमेगं । नवकमलकोमलंगं सुरूवदेहं समुवविद्धं ॥ ७२१९ ॥ उच्छंगगयं बालं नवरंभाखंभगब्भसुकुमालं । मोत्तियरयणाभरणालंकरियं वरिसदेसीयं ॥ ७२२० ॥ वारं वारं आलिंगिउं तयं महुरमम्मणुल्लावं । धुव्वंतं सरलवलच्छिजोन्हपरिसरे मुहमयंके ॥ ७२२१ ॥ अइबहुविसिट्ठकीलाहिं कीलयंतं तयं पलोएडं । नियडासणोवविट्ठा रन्ना कंता इमं वुत्ता ॥ ७२२२ ॥ पाणेहिं तो वि पिओ कस्सइ एयस्स पुत्तओ देवि ! जइ न नियइ पयमिमो ता मन्ने चयइ पाणे वि ॥ ७२२३ ॥ देवीए जंपियं होइ देव ! गाढो सया पिया नेहो । तग्गाढयरो पुण वल्लहप्पियावच्चसंभूओ ॥ ७२२५ ॥ रायाह देवि ! अवहरिय बालयं कोउयं पलोएमो । पुत्तं अपेच्छमाणो कमवत्थं पावइ इमो त्ति ॥ ७२२५ ॥ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा ५६३ कुणह इमं ति पउत्ते पियाए राएण कंचुई पुट्ठो । को एस नरो बालो य होइ किमिमस्स कहसु ॥ ७२२६ ॥ सो आह नाह ! एसो धणेसरो उब्भग्गहा विसिट्ठवणी । आसी इमस्स कंता धणावली नाम रूववई ॥ ७२२७ ॥ हरिणाण व एयाणं हुंतो असमो सिणेहसंबंधो । नवरं सुयम्मि छम्मासिए मया देव ! एय पिया ॥ ७२२८ ॥ वल्लहकता पुत्तो त्ति जणणिरहिओ त्ति रूववंतो त्ति । अच्चंतवल्लहो एस बालओ तेणमेयस्स ॥ ७२२९ ॥ तं सोउमवणिवइणा कज्जेण गए धणेसरो गेहा । परिहरिय नायमग्गं अवगणिय विवेयसंसग्गं ॥ ७२३० ॥ उज्झित्तु कुलायारं अंगीकाउं अकित्तिपब्भारं । अणुसरिय पावकम्मं पविक्खिज्जिय सव्वहा धम्मं ॥ ७२३१ ॥ पयडीकाऊणं बालविलसियं गंजिकाऊणगरुयत्तं ।। पच्छन्न निउत्तनरेण झ त्ति आणाविओ बाला ॥ ७२३२ ॥ तव्वेयल्लनिरिक्खणकज्जे कंता जुओविओ राया । जावागओ धणेसरसेट्ठी न नियइ सुयं ताव ॥ ७२३३ ॥ आउच्चिओ धणरयणो न कहइ को वि हु सुयप्पउत्तिं पि । तो अनियंतो पुत्तं मुच्छाए महीयले पडिओ ॥ ७२३४ ॥ तयणु ससंभमधावियपरियणसिसिरोवयारकिरियाहिं । पाविय चेयन्नो मन्नुपूरिओ रुयइ अइकरुणं ॥ ७२३५ ॥ ताडइ सीसं तोडइ सिरोरुहे तह उवालंभइ देव्वं । वारं वारं निवडइ दड त्ति मुच्छाए महिवढे || ७२३६ ॥ जह जह मुच्छावत्थं पावइ सो सोयभरपरायत्तो । तह तह सकलत्तो वि हु रंजिज्जइ नरवई दूरं ॥ ७२३७ ॥ तो तं नरिंददुव्विलसियं ति हासाउ जाणिउं मंती । करुणाऊरियहियओ हियं निवं पइ पयंपेइ ॥ ७२३८ ॥ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ सिरिअणंतजिणचरियं तुम्हारिसा वि जइ सामिसाल कुव्वंति एरिसमकज्जं । ता नूण पउत्थ च्चिय खत्तायारस्स वत्ता वि ॥ ७२३९ ॥ जणओ वि देव ! जइया वेरि व्व विणासिही सुए नियए । तइया इयरजणाणं कत्तो किर जीवियासा वि ? ॥ ७२४० ॥ पहु ! जस्सुच्छंगम्मि सिरकमलं निहिय सुप्पइ सुहेण । सो वि हु जइ तं छिंदइ ता कीरउ कम्मि विस्सासो ? || ७२४१ ॥ जे पालया पयाणं विस्ससणीयाय सव्वया जे उं । ते वी सत्थद्दोह कुणंति जइ ता हया नीई ॥ ७२४२ ॥ जे रक्खणेक्क आसा ठाणं सत्ताण सत्तुभीयाण । जइ ते वि ताण वहया ता निस्सरणा धुवं पुहवी ॥ ७२४३ ॥ ता किं गुरुवएसो एसो अह तुह कुलक्कमो देव ।। किं वा वि नीइमग्गो जमिमस्स सओ तए हरिओ ॥ ७२४४ ॥ अनयपराणं अन्नेसि सामि ! तं देसि सव्वया सिक्खं । को वट्टाणम्मि पहू ! तुज्झ अनायं कुणंतस्स ॥ ७२४५ ॥ तुम्हारिसा वि जइ पहु ! जयजणयसमा वि अनीइणो हुंति । ता जलणज्जालोलीजलाओ समहेलमुच्छलिया ॥ ७२४६ ॥ दीणम्मि दयादुत्थे उदारया भीसयम्मि संभीसा ! । जइ तुन्भेहवि चत्ता ता पलओ च्चिय धुवं पत्तो ॥ ७२४७ ॥ ता देव ! जाव हिययं सहस्सहा फुडियसुयविओगम्मि । न विज्जए वराओ ता अप्पसु पुत्तयमिमस्सा ॥ ७२४८ ॥ सोउं अमच्चउच्चरियचारुसिक्खाविराइवयणाई । संजायगुरुविसाओ राया एवं विचिंतेइ ॥ ७२४९ ॥ अहह अहो ! अविवेओ अहह अहो मह विमूढया महई ! । अहह अहो अच्चंतं, अवियारियकारिया मज्झ ॥ ७२५० ॥ जमिमस्स वरायस्स पियावियोगग्गिजलिरदेहस्स । पुत्तयमवि हरिऊणं खयम्मि खारो मए खित्तो ॥ ७२५१ ॥ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा ५६५ निय जीवियं पि दाउं एगे जणयंति दुक्खियाण सुहं । अवरे उ निद्दयहमिव दिति सुहियाण वि दुहयाई ॥ ७२५२ ॥ मिच्चाण वि जमकज्जं कज्जमणज्जेण मायरेउं तं । हा हा कहं दुरूत्तरनरए निहिओ मए अप्पा ॥ ७२५३ ॥ नंदंतु उत्तमा ते जे आजम्मं पि हुँति जसपत्तं । मह सरिसाणं तु अकित्तिकलुसियाणं वरमजणणी ॥ ७२५४ ॥ दुल्लहपत्तनरत्ता एगे अज्जिति सुरसिवसुहाई ।। अवरे उ महापावा अहं व नरयुब्मवदुहाई ॥ ७२५५ ॥ धन्ना हु बालमुणिणो जावज्जीवं पि पावविरया जे । जे उ निरत्थयपावेक्कमंदिरं ताण पढमो हं ॥ ७२५६ ॥ नूणमहं अकुलीणो तेण मए एरिसं कयमकज्जं । न कुलीणाण वि किरियाउ हुंति जेणेरिसं भणियं ॥ ७२५७ ॥ *न हि य कुलीणाण सिरे सिंगं चिन्हं च होइ भालयले । किं तु मुणिज्जइ पायं वटुंतो सो वि किरियासु ॥ ७२५८ ॥ इय कयनियदुव्विलसियसंभरणाहियमहाणुभावेण ।। रन्ना तव्वेलं चिय पुत्तो अप्पाविओ तस्स ॥ ७२५९ ॥ तो सो दठूण सुयं जाओ सुहिओ सुहाभिसित्तो व्व । पत्तमहाणंदो इव पाविय अक्खयनिहाणो व्व ॥ ७२६० ॥ निव्वत्तियं निवइणा तप्पुत्तवहारपच्चयं कम्मं ।। अइदुक्खवेयणिज्ज सपिएण वि कोउयवसेण ॥ ७२६१ ॥ विद्दविय चोरचरडं उवसामिय सपरपक्खसंतावं । निन्नासियरिउचक्कं रज्जं परिपालए राया ॥ ७२६२ ॥ कईया वि करिणतुरंगरहवरारूढमंतिमंडलिओ । भडचडयरपरियरिओ विणिग्गओ रायवाडीए ॥ ७२६३ ॥ करिणो कोलावेउं वाहेडं तुंगउत्तमतुरंगे । समअवणयणनिमित्तं अलिकलियुज्जाणमाविसइ ॥ ७२६४ ॥ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं भमराण पाणगोट्ठी संकेओ सव्वकुसुमजाईणं । कलकंठीण कुलभरं जं रंगो मोरनट्टाणं ॥ ७२६५ ॥ तम्मि पविसंतो नियइ नरवई साहुमंडलीकलियं । नामेण मयणदमणं सूरिं दूरी कयमयारिं ॥ ७२६६ ॥ सामासन्नं पि सया आजम्मं बंभचेरधरणपरं । निच्चं पि अमयवयणं अंगीकय समयवयणं पि ॥ ७२६७ ॥ जलभरिय जलहरसंवलिगज्जियउद्दामदेसणासरेण । . धम्मं वागरमाणं सनरामरखयरपरिसाए ॥ ७२६८ ॥ तो भत्तिब्भरभिज्झंतविहुरनहरंतरालरोमंचो । परिहरियकरिखंधो राया पत्तो पुहुपयंतं ॥ ७२६९ ॥ नमइ प्पयाहिणाओ दाऊण मुणिंदपायसयवत्तं । गुरुपत्तधम्मलाहो समुचियठाणे समुवविट्ठो ॥ ७२७० ॥ मुहुरस्सरेण गुरुणा वि साहियं तस्स भवभवं असुहं । जह पावभरक्कंता सत्ता नरए सहति दुहं ॥ .७२७१ ॥ पावंति य तिरियत्ते कयत्थणाओ बहुप्पयाराओ । विसहति य मणुयत्ते पराभवे ईसराइकए ॥ ७२७२ ॥ किब्बिसियाइसुरेसु वि लहंति पेसत्तणाई दुक्खोहे । तो नत्थि चउविहम्मि वि न वे सुहं धम्मरहियाण ॥ ७२७३ ॥ धम्मो वि देव-गुरु-तत्त-सुद्धसम्मत्तभावओ होइ । तम्मि अरागद्दोसो देवो सुगुरू वि निग्गंथो ॥ ७२७४ ॥ तत्ताई वि जीवाईणि विमलनाणिप्पयासियाइं नवं । देव-गुरु-तत्ताणं सद्दहणे होइ सम्मत्तं ॥ ७२७५ ॥ तेण सुदेवत्तसुमणे सत्तस्सेक्खाई जुंजिउं भव्वा । सव्वा बाहविउत्तं परमाणंदं सिवमुर्विति ॥ ७२७६ ॥ तं सोउं चित्तब्भवंतभूरिसंवेगरंगिओ राया । जंपइ तुह पयपासे पव्वयं पहु ! गहिस्समहं ॥ ७२७७ ॥ Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६७ सिंगारमउडकहा मा पडिबंधं काहिसि देवाण पिय त्ति जंपिओ गुरुणा । इच्छंति भणिय पुहुपयपणओ पत्तो सपासाए ॥ ७२७८ ॥ सुमुहुत्ते अहिसिंचिय सो रज्जे कमलपरिमलं कुमरं । मुत्तुं गोत्तिं पूईय जिणेसरे दिन्नदीणधणो ॥ ७२७९ ॥ सिवियारूढो कइवि निवेहिं जुत्तो कलत्तकलिओ य । रिद्धीए गुरुसयासे पत्तो तो दिक्खिओ तेहिं ॥ ७२८० ॥ जाणिय गहणासेवणसिक्खो तिव्वं तवं समायरइ । मुणिचक्कवालकिरियकलावकरणुज्जुओ संतो || ७२८१ ॥ किं तु न आलोयंतेण तेण सपिएण निययअइयारे । सरियं धणेसरसुयावहारपावं गुरूण पुरो ॥ ७२८२ ॥ पज्जंताराहणवससमुवज्जियपरमपुन्नपब्भारो । संपत्तो सपिओ वि हु विजयविमाणम्मि रायरिसी ॥ ७२८३ ॥ तेत्तीससागराइं तत्थुवभोत्तुं अणुत्तरं सोक्खं । कमलायररायसुरो तो चविओ तब्विमाणाओ ॥ ७२८४ ॥ जाओ तुमं नरेसरपोढप्पयावप्पणासियारिगणो । कमलावली सुरो वि हु संजग्गो तुह पिया एसा ॥ ७२८५ ॥ मरिउं धणेसरो वि हु भमिउं तिरि-नरय-नर-सुरभवेसु । बालतवच्चरणज्जियवंतरभावेणमुप्पन्नो ॥ ७२८६ ॥ नग-नगर-काणणाइसु कीलंतो भमइ तिरियलोगम्मि । तुह कुमरकलागहणूसवम्मि पत्तो पुरे तुज्झ ॥ ७२८७ ॥ एत्थंतरे धणेसरसुयावहारुब्भवं कुकम्मं ते ।। उदए समागयं जं कम्मफलं भुंजइ भवत्थो ॥ ७२८८ ॥ तो तेण वंतरेण दिट्ठो तं रज्जसिरिअलंकरिओ । जाओ य महाकोवो तव्वेलं चेव तो तस्स || ७२८९ ॥ किं कारणमप्पुव्वे वि मह निवे कोवकलुसया जाया । इय चिंतिउं विभंगेण जाणियं तेण सुयहरणं ॥ ७२९० ॥ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ एएण मज्झ तणओ हरिओ अहमवि हरामि एय सुयं । “ अवयारयम्मि कज्जे अवयारो सत्तिमंतेहिं" ।। ७२९१ ।। एवं विभाविऊणं अहिट्ठिओ वंतरेण कुमरकरी । कुमरकलिओ वि तोसो नीओ विंझाडई मज्झे ॥ ७२९२ ॥ मुत्तं तत्थ गयं सो सट्ठाणे वंतरो समणुपत्तो । किं कज्जमए तेणं सकज्जसिद्धीए जायाए || ७२९३ || जे जोव्वणसयमत्ता असरिसअविवेयगुरुगहायत्ता । नियरिद्धिगरुयगव्वा पहुत्तअहिमाणमूढमणा ॥ ७२९४ ॥ हासेण वि तं कम्मं अज्जिति नरिंद ! पाणिणो जस्स । रोयंता वि न अंतं पावंति विवागमणुभविरा ।। ७२९५ ।। (जुयलं ) सिरिअणंतजिणचरियं जं पुण तिव्वरसुक्करिसभावउ अज्जिज्जए असुहकम्मं । तस्स विवागो जायइ सत्ताणमणंतभवहेऊ ।। ७२९६ ॥ तुम धणेसरसुओ जं हरिओ निवमुहुत्तबारसगं । तं तुह पुत्तविओगो जाओ चउवीसवरिसाई ।। ७२९७ ।। ता परपीडाजणगं कज्जं कज्जं नरिंद ! न कयाइं । अह कह वि कयं ता तं आलोइज्जइ गुरुसयासे ॥ ७२९८ एवं केवलिकहियं सोउं नियपुव्व-भवदुगं राया ! | देवीए संगओ विहु जाइस्सरणेण दट्ठूण ॥ ७२९९ ॥ पणमिय सपिओ वि हु केवलिक्कमे कहइ भयवमम्हेहिं । जाइस्सराण न जहा कहियं तुब्भेहिं तह दिट्ठ || ७३०० ॥ ता पहु ! कल्लाणकरा तुब्भे च्चिय नूण मह संजाया । जेहिं सुओ मेलविओ कहिओ धम्मो वि सिवफलओ ॥ ७३०१ ॥ ता भयवं ! रज्जं खयरसामिणो नियसुयस्स दाऊण । तुम्ह पयपउमसेवं भमर व्व वयं करिस्सामो || ७३०२ | मा होज्जह घरवासव्वासंगपरत्ति जंपिए गुरुणा । इच्छंति भणिय पुणरवि पुच्छर केवलिमिमं राया ॥ ७३०३ ॥ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा पहु ! कहह मज्झ किं विंझवासिणी देवयाडई मज्झे । कयसन्नेज्झा जाया आयरपुव्वं कुमारस्स ॥ ७३०४ ॥ भणियं केवलिणा राय ! तं पि निसुणेसु सा तुह सुयस्स । आसी पुव्विल्लभवे जणणी अइवससिणेहपरा ।। ७३०५ ।। तो तीए नियाययणे समागयं पेच्छिऊण तुह तणयं । नाऊण विभंगेणइ सुओत्ति से दूरमुवयरियं ॥ ७३०६ || जा निय चवणंता देवयाए पयंपिरा य तुह कहियं । तं सोऊण सखयरो राया नयकेवली चलिओ || ७३०७ ॥ सिंगारमउडखेरपहुणो कारवइ पुरपवेसमहं । ठाणट्ठाणसमारद्धसुद्धपेच्छणयरमणीयं ॥ ७३०८ ॥ गंतुं पासाए खयरराइणा न्हाण - भोयणप्पमुहा । पडिवत्ती कारविया रन्ना सुयमिलणअनुद्धेण || ७३०९ ॥ भुत्तुत्तरम्मि उत्तमवत्थाभरणेहिं सुयमलंकरिउं । भणियं तं मह पुन्नेहिं संपयं पुत्त ! इह पत्तो ॥ ७३१० ॥ ता नियकुलक्क मागयरज्जसिरिं वच्छ ! इममलंकरसु । तुह साहेज्जेण जहा करेमि सपिओ वि पव्वज्जं ।। ७३११ ॥ विज्जाहरचक्कवई कयप्पणामो निबद्धकर - कोसो | विन्नवइ ताय ! तुब्भे अवहारह मज्झ विन्नत्तिं ॥ ७३१२ ॥ उप्पत्ती दुपुत्तस्स होइ असुहा य नूण जणयाण । जम्मसमए वि विहिओ संणिणाणत्थो न किरविणो ॥ ७३१३ ॥ कस्स वि य सुओ भवणं जसेण पूरइ करेइ पिउतोसं । भरइ जयं जोन्हाए चंदो उल्लासइ समुद्दं ॥ ७३१४ ॥ ता ता ! कुपुत्तो हं जेणासुहिणो मए कया तुब्भे । जेणेगं पि हु दिवसं नेव कया तुम्ह सुस्सूसा ॥ ७३१५ ॥ ता मह कयप्पसाया भुंजइ खयरस्सिरिं कइ वि वरिसे । सुस्सूसाए तुम्हें जह जससुकयाइं पावेमि ॥ ७३१६ ॥ ५६९ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० सिरिअणंतजिणचरियं रायाह जायसच्चोवयारमूलम्मि धम्मकरणिज्जे । साहिज्ज कुव्वंतो किन्न तुमं पुत्त ! उवयारी ॥ ७३१७ ॥ जाव तुमं सुपुत्तो नीओ निच्चं सयं रिउगणो वि । अब्भुद्धरिया मित्ता सयणा सम्माणिया सययं ॥ ७३१८ ॥ भरिय भवणंतरालो समज्जिओ जसहरो गुरू पत्तो । किमुज्जअणुववन्नं न देसि जं वयभरं चरिओ ॥ ७३१९ ॥ सव्वविरइव्वयायरणमिच्छणो कुणसि जाय जइ विग्धं । ता तुह मह पयआणा न कुलीणो खलइ पिउवयणं ॥ ७३२० ॥ जणयाणाभंगभयातो खयरिंदो समस्सिओ मोणं । तो कारविओ पिउणो अहिसेओवक्कमो रन्ना ॥ ७३२१ ॥ गुरुरिद्धिवित्थरेणं अहिसिंचिय नियपए खयरचक्कि । कयकायव्वो त्ति निवो दिक्खागहणुज्जुओ जाओ ॥ ७३२२ ॥ न्हाओ दहि-दुव्व-क्खय-सरसव-गोरोयणा विराइसिरो । रयणाभरणविलेवणवरवत्थालंकियसरीरो ॥ ७३२३ ॥ रणझणिरकणयकिंकिणि-विरायमाणाए रयणसिबियाए । आरुहियसमुवविट्ठो मणिमयसीहासणुच्छंगे || ७३२४ ॥ चलिओ वज्जिरनिरवज्जमंजुलाउज्जसरभरियभुवणो । वंदियणुघुट्ठजओ पारद्धातुच्छपेच्छणओ ॥ ७३२५ ॥ पूरंतो गयणयलं खेयरवइमणिविमाणविंदेणं । नहयरनियंबिणीजणपयट्टनट्ट पलोयंतो || ७३२६ ॥ दितो दाणं बहिरंध-दीण-दुत्थीय-जणाणमणवरयं । कुव्वंतो बहुमाणं चउविहस्सावि संघस्स ॥ ७३२७ ॥ सम्माणंतो सयणे पूयंतो जिणवरिंदबिंबाई । गुरुरिद्धीए मयरंदसुंदरुज्जाणमणुपत्तो ॥ ७३२८ ॥ सिबियाए समं मुत्तूण पंचछत्ताइरायचिंधाई । गंतुं केवलिपासे तं नमइ पयाहिणे पुव्वं ॥ ७३२९ ।। Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७१ सिंगारमउडकहा नियपिययमा समेओ कइवयनिव-मंति-मंडलियकलिओ । दिक्खं मग्गइ केवलिपासे संसारनिम्महणिं ॥ ७३३० ॥ केवलबलावलोईयलग्गे परिवारपरिगओ वि निवो । भत्तिब्भरनिब्भरंगो विहिणा पव्वाविओ गुरुणा ॥ ७३३१ ॥ विहिओ गहणासेवणसिक्खासु वियक्खणो मुणिंदेण । अज्जाओ अज्जियाणं समप्पियाओ सुसीलाणं ॥ ७३३२ ॥ जणयवयग्गहणुव्विग्गमाणसो खयरनरवई नमिउं ।। केवलिचरणे अम्मा-पिउणो वि हु भवणमणुपत्तो ॥ ७३३३ ॥ नवरायरिसी उवहाणकरणपुव्वं अहिज्जिउं समयं । गीयत्थो संजाओ सुस्सूसं कुणइ गच्छस्स ॥ ७३३४ ॥ तिव्वयरतवच्चरणायरणप्पक्खीण घाइकम्मगणो । रायरिसी सपिओ वि हु सिवं गओ केवली होउं ॥ ७३३५ ॥ सिंगारमउडखेयरनरेसरो नयपरो धरणिवीढं । वेयड्ढोभयसेढी रज्जं पि हु पालइ सुहेण ॥ ७३३६ ॥ चमढइ चोरे चरडे य ताडए दमइ दुद्दमे दुढे । नीइपरे परिपालइ धम्मपवित्ति सया कुणइ ॥ ७३३७ ॥ जे पिउणो वि न सिद्धा रायाणो ते वि कारिया आणं । तेण घयाहुहुहुयहव्ववाहदुसहप्पयावेण ॥ ७३३८ ॥ लीलाए वि चलिरे जम्मि सव्वओ धवलछत्तपंतीहिं । समलंकिज्जइ गयणं दिणे वि चंदावलीहिं च ॥ ७३३९ ॥ निच्चं पि तस्स भूगोयरा वि खयरेसरा वि नरवइणा । सेसं व देवयाणं सिरेण आणं पडिच्छंति ॥ ७३४० । एवमणवज्जरज्जत्तिगस्सिरिविलसिरस्स नरवइणो । वच्चंति वासरा वासवस्सिरी सरिसरिद्धिस्स ॥ ७३४१ ॥ कईया वि रयणतिलयस्सिविणयसंसूईओ सुओ तस्स । पट्टमहादेवीए जाओ सिंगारदेवीए ॥ ७३४२ ॥ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ सिरिअणंतजिणचरियं वद्धावणयं बंधुररिद्धीए काराविऊण नरवइणा । सिविणयसमं कयं से नाम सिंगारतिलओ ति ॥ ७३४३ ॥ पालिज्जंतो पंचहिं धाईहिं पविद्धिउं समारद्धो । उवणीओ अज्झावयविंदस्स कलागहणकज्जो ॥ ७३४४ ॥ ताराओ व मयरहरे रूवसिरीओ व्व सम्मुहा य रसे । संकंताओ कलाओ सव्वाओ वि कुमरहिययम्मि ॥ ७३४५ ॥ नाऊण कलाकुसलं कुमरं अज्झावया महीवइणा । सम्माणिया विभूसण-सुवत्थ-धण-गाम-दाणेहिं ॥ ७३४६ ॥ कुमरस्स विइन्नाओ गोरी-पन्नत्तिपमुहविज्जाओ । तेणप्पसाहियाओ तस्साएसेण वटुंति ॥ ७३४७ ॥ दिवसो व्व दिणयरेणं निसिनहमग्गो व्व रयणिरमणेण । तरुणियणमणहरेणं वएण कुमरो अलंकरिओ ॥ ७३४८ ॥ परिणाविओ य निस्सीमरूवरम्माओ कणयवन्नाओ । विलसिरतारुन्नाओ नरिंदसामंतकन्नाओ ॥ ७३४९ ॥ ताहिं सह विविहकिलारसप्पसत्तस्स तस्स कुमरस्स । वच्चइ कालो पिउ-पाय-पंकयाराहणपरस्स ॥ ७३५० ॥ जोगो त्ति सुहे दियहे जुवरायपयम्मि ठाविओ पिउणा । दिन्ना कुमारभुत्तीए वेजयंती पुरी तस्स ॥ ७३५१ ॥ मंतिमहामइतणओ तणओ मइबंधुरो त्ति नामेण । कुमरस्स खयरवइणा विहिओ घरचिंतगत्तम्मि ॥ ७३५२ ॥ निय अंगलग्गवत्थाभरणेहिं अलंकिऊण नरवइणा । संसवणत्थं नयरीए वेजयंतीए आइट्ठो ॥ ७३५३ ॥ नमिय नहयरनरिंदं संचलिओ पहरिसप्पसक्खलिओ । उद्धट्ठियस्स सहस ति आगया सूलवेयणा से ॥ ७३५४ ॥ तो तप्पीडाभरविहुरियस्स वि गया झड त्ति पाणा से । पडिओ दड त्ति मणिकुट्टिमम्मि चेयन्नहीणो सो ॥ ७३५५ ॥ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा ५७३ चलिया नरस्स पाणे उवयरियस्सा वि सीयकिरियाहिं । जीवंताणुवयारा फलंति न कया वि हु मयाण ॥ ७३५६ ॥ ठविउं सुहासणम्मि तो सो नीओ सासाय जणएण । खित्तो य चारुचंदणचारुज्जलिरे चिया चक्को ॥ ७३५७ ॥ दटुं नीरोयस्स वि मरणमकम्हा वि मंतिपुत्तस्स । नहयरवई वि चिंतइ हिययंतो जाव वेरग्गे ॥ ७३५८ ॥ पाहाणपइयस्स वि चिंतिज्जंतो न जस्सिह विणासो । एमेव सो विणट्ठो झड त्ति हद्धी भवविलासो ॥ ७३५९ ॥ जं सच्चविय अइविमलकेवलालोयलोयणजिणेहिं । वत्थूणमणिच्चयमेयमरणं उ तं फुडं जायं ॥ ७३६० ॥ आसारिवारिधारावरिसुट्ठियछुच्छुओ व संणेम्मं । अनिलचलचवललयाइदलचवलं जीवियव्वं पि || ७३६१ ॥ नवजोव्वणरमणीनयणतरलयं तुलइ सिरिपरिप्फुरियं । सारयसमयुब्मवअब्भविब्भमा जोव्वणस्स सिरी ॥ ७३६२ ॥ पिच्छणयं पेच्छणओ जह पेच्छामंडवे जणो मिलइ । अवरावरठाणाणं जाइ सठाणेसु तब्विरमे ॥ ७३६३ ॥ अन्नन्नगईहिंतो एगकुडंबम्मि इंति तह जीवा । ठाऊण कम वि कालं ते जंति निययज्जियगईसु ॥ ७३६४ ॥ अच्चन्मुयरूवा वि हु हवंति रोएहिं निस्सिरीयंगा । विउसा वि हुंति मुक्खा सोहग्गधरा वि दोहग्गा ॥ ७३६५ ॥ एवं अणिच्चया जइ भव-भववत्थुब्भवा भवइ चित्ते । ता न हवइ पडिबंधो वरवत्थुम्मि वि विवेईण ॥ ७३६६ ॥ उम्मत्तगयघडाओ तुरंगघट्टाई साउहायरहा । वावल्ल-भल्ल-सेल्लाइपहरणुड्डमरसुहडा वि ॥ ७३६७ ॥ तित्थयराणिंदाणं चक्कीण हरीण तह बलाणं पि । चमढिज्जंताण जमेवेण होइ सरणं न को वि धुवं ॥ ७३६८ ॥ (जुयलं) Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ सिरिअणंतजिणचरियं जे दढपहारदारियरिउहरिकरि-राय-पत्तकित्तिभरा । निस्सरणा ते वि करालकालपरिकवलणं जंति ॥ ७३६९ ॥ किं बहुणा ? भवरासे जम्म-जरा-मरण-दुहभरत्ताण । सत्ताण रोगसोगायककायच्छिज्जमाणाण ॥ ७३७० ॥ जणओ जणणी सयणो ससा य लच्छी य पुरिसया रोया । मच्चुम्मि सविहिपत्ते न सरणमेयाणमेक्को वि ॥ ७३७१ ॥ ता बज्झ परियरं परिहरिउं जो उत्तमं जिणप्पणीयं । धम्मं सरणं गच्छइ इच्छिइ तं चिय वरसिद्धी ॥ ७३७२ ॥ इह चउगइसंसारे भमिरो जीवो सकीयकम्मेहिं । राया वि होइ रंको रंको वि हु जायए राया ॥ ७३७३ ॥ पावइ मुक्खत्तं पंडिओ वि पंडिच्चमेइ मुक्खो वि । रूवधरो वि विरूवो होइ विरूवो वि स्वधरो ॥ ७३७४ ॥ सामित्तं दासस्स वि दासत्तं होइ सामियस्सा वि । दोहग्गी सोहग्गं पावइ सुहओ वि दोहग्गं ॥ ७३७५ ॥ तह अन्नभवे जायइ माया वि पिया पिया वि पुण माया । पुत्तो वि होइ जणओ जणओ पुण जायए पुत्तो ॥ ७३७६ ।। देवो वि होइ तिरिओ तिरिओ वि हु होइ इह भवे देवो । चंडालो वि हु विप्पो जायइ विप्पो वि चंडालो ॥ ७३७७ ॥ जह घणसलिलं आसयवसेण अणुसरइ भूरिरसभावं । कम्मेहिं तहा जीवो बहुयरूवाई अणुसरइ ॥ ७३७८ ॥ जइ किर एसा संसारभावणा फुरइ सव्वया चित्ते । अहमुत्तमोहमोहे एस न हवए ता अहंकारो ॥ ७३७९ ॥ इह भववासे जीवो चउप्पयारे वि एक्कगो भमइ । गब्भम्मि वसइ एक्को एक्को जायइ मरइ एक्को ॥ ७३८० ॥ एक्को सुहाई भुंजइ भागी दुक्खाण जायए एक्को । एक्को पावइ रोए एक्को वि य सोयमणुभवइ ॥ ७३८१ ॥ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७५ सिंगारमउडकहा पावेइ पावमेक्को एक्को च्चिय पुत्तप्पसरमुवचिणइ । किं बहुणा एक्को चिय गच्छइ पंचमगईए वि ॥ ७३८२ ॥ सयणा सुहिणो करिणो हरिणो सुहडा सिरी सरीरं पि । जीवेण समं न पयं पि चलइ एयाणमेगं पि ॥ ७३८३ ॥ ता बज्झवत्थुविसए जुत्तो ममत्तपरिहारो । जुत्तं समत्तकरणधम्मो जा सहचरो सययं ॥ ७३८४ ॥ एगत्तभवेणुब्भावणम्मि जइ माणसं हवइ लीणं । पाणीण ता न जायइ मोहो घरघरणिपमुहेसु ॥ ७३८५ ॥ भावेयव्वं अन्नत्तमत्तणो बज्झवत्तिवत्थणं । सयणाईणं भिन्नो जीवो जीवाओ ते भिन्ना ॥ ७३८६ ॥ धण-धन्नपमुहमन्नं जीवा जीवो वि ताण धुवमन्नो । सोहग्गाइ वि अन्नं तत्तो तह सो वि अन्नयरो ॥ ७३८७ ॥ जत्थ निया देह-जीवाण सव्वया अन्नया जयपसिद्धा । तत्थस्सहावभिन्नेसु बज्झवत्थूसु का गणणा ? ॥ ७३८८ ॥ ता जइ एसा अन्नन्नभावणावठ्ठिया भवइ हियए । ता निम्ममत्तय च्चिय होइ तणुए वि किमन्नत्था ॥ ७३८९ ॥ असुइत्तभावणाए गव्वो अवसरइ देहविसयम्मि । जेणोरालियदेहो सोणिय-सुक्केहिं संभवइ ॥ ७३९० ॥ असुइवसामंसजंबालकललकीलालकलियकायम्मि । सत्ताण किमु सुइत्तं गब्भाहाणाओ मरणं तं ॥ ७३९१ ॥ मयणाहि-कुसुम-कुंकुम-कप्पूराईणि सुरहिवत्थूणि । असुइसरीरविलग्गाई हुंति दुग्गंधरूवाइं ॥ ७३९२ ॥ जद्दरचीणंसुयदेवदूसपडिनेत्तपमुहवत्थाई । पस्सेय-मलविलीणाई झ त्ति कीरंति देहेण ॥ ७३९३ ॥ न्हाणुव्वट्टणएहि वि न मुयइ देहो कया वि असुइत्तं । किमसुइभरिओ कुंभो दुवारधोओ हवइ सुरही ? || ७३९४ ॥ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ असुइत्तभावणालीणमाणसा हुंति जे सया सत्ता । तेउ व्व हुंति न कयाइ रूवगव्वं सविसयम्मि मिच्छत्ताविरइपमायदुट्ठजोगेहिं असुहपयडीओ । आसवइ सया पाणी अणिजंतिय आसवदुवारे || ७३९६ ।। पाणिवहपवित्तीए तह कोह - माण - माया - लोहप्फल - पयगुणणं च । उप्पहपवित्तमण - वयण - कायवावरविरयणाए य । एएहिं असेसेहिं वि पाणी पावाई आसवइ || ७३९७ || उग्घाडगोउरे जह पुरम्मि संझाए पविसए लोगो । तह एएहिं अणिजंतिएहिं जीवे विसइ पावं ॥ ७३९८ || अणवरुद्धासवदारा पावप्पईओ लहुयठिईओ । विरयंति गुरुठिईओ मंदरसा तिव्वरसयाओ || ७३९९ || तह अप्पपएसाओ बहुप्पएसाओ निम्मिउं सत्ता । परियति अनंतं दुरंतसंसारकंतारं ॥ ७४०० ॥ सो आसव - भावण- पडिवक्खा जे संवर त्ति वागरिया | जीए जीव- वहाईण विरमणं कीरए सययं ॥ ७४०१ || जह पिहियगोयरम्मि पुरम्मि न य कोइ पविसिउं तरइ । संवरियासवदारे तह जीवे पावपडलाई || ७४०२ || उवसमभावियचित्ता मिच्छत्ताईण विहियनिम्महणा । पइसमयसमुल्लसमाणसुद्धपरिणामपरिकलिया ।। ७४०३ ।। सुहकम्मप्पयईओ हुस्साओ कुणंति दीहरठिईओ । मंदरसा तिव्वरसा थोवपएसा बहुपएसा ।। ७४०४ ॥ जे जाणिऊण आसवदाराई निग्गहंति मुणिवसभा । ते जाय संवरा सासयं सुहं झत्ति पावंति ॥ ७४०५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं एसा हु निज्जरा भावणा भवुब्भूय-पावपब्भारो । जीए विणिज्जइ सुह - भावुल्लासवसएहिं ॥ ७४०६ ॥ ७३९५ || Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७७ सिंगारमउडकहा तह छट्ठ-अट्ठमप्पमुहअट्ठमासंततिव्वतवचरणा । भूसयण-लोय-करणासिणाण आयावणाईहिं ॥ ७४०७ ॥ मुणिचक्कवालसामायारी करणक्कमप्पसत्तीए । बहुभवसमुब्भवं पि हु जीवो निज्जरइ दुकम्मं ॥ ७४०८ ॥ अह लोगभावणाए दव्वाइचउव्विहो हवइ लोगो । दब्वे जीवाईया अत्थिक्काया तहिं पंच ॥ ७४०९ ॥ खेत्ते सत्तमनरयाहो भागा सिद्धि उवरिमंतं जा । चउदसरज्जूलोगो सव्वत्थ अलोगकयवेढो ॥ ७४१० ॥ सत्तमपुढवीए तले विक्खंभे तस्स सत्तरज्जूओ । वित्थरओ रयणप्पहपुढवीए उवरिमा एक्का ॥ ७४११ ॥ लोगस्स रज्जुपणगं वित्थारो बंभलोयकप्पम्मि । सिद्धिसिला सन्नेज्झे वित्थरओ सा पुणो एक्का ॥ ७४१२ ॥ सो हेट्ठाहो मुहपल्लवठिई संठिओ तदुवरम्मि । अणुहरइ मल्लयाणं दोन्हं संपुडपरिठियाणं ॥ ७४१३ ॥ तत्थाहोलोगम्मि हवंति सत्तेव नरयपुढवीओ । पावक्कंता सत्ता कयत्थणं जासु वि सहति ॥ ७४१४ ॥ तिरिए असंखदीवंबुरासि-गिरि-सरिय-चंद-रवि-तारा । उड्डंमि अमरलोया गेवेज्जाणुत्तरा सिद्धी ॥ ७४१५ ॥ काले अणाइनिहिणो भावे उप्पाय-विगम-धूवरूवो । ईय लोगचिंतणेणं धम्मं झाणं थिरं होइ || १४१६ ॥ एसा हु दुल्लहबोहि त्ति भावणा जमिह मोहवसवत्ती । कालमणंताणंतं अणंतकाए वसइ जीवो ॥ ७४१७ ॥ तत्तो पत्तेगेसुं पुढवी-दग-अग्गि-वाउ-भूएसु ।। वसिउमसंखं कालं कमेण सो जंगमो होइ ॥ ७४१८ ॥ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदि-पणिंदियत्तजाईण । जीवस्स उत्तरोत्तरमेक्केक्का होइ सुकएण ॥ ७४१९ ॥ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ सिरिअणंतजिणचरियं तत्थ वि य माणुसत्तं दुलहं तम्मि वि य आरियं खित्तं । तत्थ वि सुकुलुपत्ती तीए वि हु धम्मजिन्नासा ॥ ७४२० ॥ तीए वि थिरत्तगुणत्तियाए धम्मोवएसओ दुलहो । सो तित्थयरो तग्गणहरो व संघाओ वा को वि ॥ ७४२१ ॥ दुप्पप्पं पि हु पत्तं के वि हु बोहिपमायमयमत्ता । रायंधा मोहवसा कामायत्ताय हारिति ॥ ७४२२ ॥ अइदुल्लहत्तमवगच्छिऊण बोहीए भव्वसत्तेहिं । तह जइयव्वं जह सा लद्धा नो सरइ कइया वि ॥ ७४२३ ॥ एसा उ सुगुरुदुलहत्तभावणा पत्तं दुलहबोहिस्स । सलहत्तं संपज्जइ धम्माणुट्ठाणकरणेणं ॥ ७४२४ ॥ धम्माणुट्ठाणं पुण नज्जइ सिद्धंतसारसवणेण ।। सिद्धंतसारसवणं कज्जं सुविहियगुरुसयासे || ७४२५ ॥ सुगुरूवि पुणो ससमय-परसमय-विसारओ सरलहियो । इंदियविणिग्गहपरो कोहाइचउक्कनिम्महणो ॥ ७४२६ ॥ अनिययवित्तिविहारी अप्पमाई निम्ममो पसंतप्पा । कुसलो तत्तवियारे पयासओ पवयणत्थस्स ॥ ७४२७ ॥ सज्झाय-ज्झाणरओ समुज्जुओ सत्तहियपवित्तीए । संतोसपरो सपरोवयारकरणुज्जुओ मइमं ॥ ७४२८ ॥ सव्वमहव्वयजुत्तो निग्गंथो णीहओ फुरियकरुणो । पंच समिओ तिगुत्तो थिरो सुसीलो विमलकित्ती ॥ ७४२९ ॥ एवं गुरुगुणनिलओ तिलओ निस्सेससमणसंघस्स । सो तित्थयरो अहवा गणहारी अहव सूरिवरो ॥ ७४३० ॥ एरिस गुणरूवो जो सो भवसिंधुवइतारणतरंडो । पुव्वावरबाहयवयणभासओ नो गुरु गज्झो ॥ ७४३१ ॥ भवकोडिसयदुलंभं पावेउमविप्पयारयं सुगुरुं । पत्ता अणंतसत्ता तस्साणाए सिवपुरम्मि ॥ ७४३२ ॥ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७९ सिंगारमउडकहा तच्चिय पुन्नेक्कपयं पसंसणिज्जा य सयलभुवणाणं । जे उव्वहंति सीमेण पमुईया परमगुरु आणं ।। ७४३३ ॥ इय बारसविहभावणभावियचित्ता सया वि उवसंता । मन्नेमि चंदपहुनिम्मलम्मि सत्ता सिवे पत्ता ॥ ७४३४ ॥ अम्हे उ महारंभा अच्चंतमहापरिग्गहधरा य । चउरंगचमूचंकमणहणियबहुपाणसंघाया ॥ ७४३५ ॥ इंदियवसया विसयाभिसंगिणो मोहमूढमणपसरा । मुहपेच्छयं पि मन्नइ अनियं ता सासयंग व्व ॥ ७४३६ ॥ विसरारुसरीरकए काउं पावाई भूरितरयाई । वि सहिस्सामो नूणं अणेगसो नरयवियणाओ ॥ ७४३७ ॥ (जुयल) ते च्चिय धन्ना आबालकालपरिकलियचारुचारित्ता । जे सिद्धिपुरंधीए निबद्धराया तवंति तवं ॥ ७४३८ ॥ इय नव नव संवेगावेगसज्झिज्जमाणकम्मस्स । अज्झवसायविसुद्धिं खणे खणे आरुहंतस्स ॥ ७४३९ ॥ विहियर वगस्सेढिस्स दव्वओ से गिहत्थरूवस्स । भावेण गुण अहाक्खायचरणपरिणामजुत्तस्स || ७४४० ॥ जायं केवलनाणं लोयालोयप्पयासयंतस्स । खेयरवइणा झाणग्गिदड्ढदुक्कम्मचउगस्स ॥ ७४४१ ॥ तो पंचहिं मुट्ठिहिं केसुप्पाडो कओ सिरे तेण । .. किं किं एवं सामि त्ति जंपिराणं निवाईण ॥ ७४४२ ॥ तो सासणदेवीए मुणिवेसो अप्पिओ खयररिसिणो । सुरनिम्मियम्मि कंचणमयम्मि कमले निविट्ठो सो ॥ ७४४३ ॥ कहइ य रायाईणं मइबंधुरमंतिपुत्तमरणेण । मह वेरग्गोवगयस्स केवलं नाणमुप्पन्नं ॥ ७४४४ ॥ इय जंपिरस्स खेयरनरिंदरिसिणोह चउव्विहा देवा । पत्ता कंचणकिंकिणिझणहणिरवरविमाणेहिं ॥ ७४४५ ॥ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० सिरिअणंतजिणचरियं गंधोदयवरिसासित्तमहियले विकिरिया कुसुमवुट्ठी । अमरेहिं वाइयाओ गहीरसरदुंदुहीओ य ॥ ७४४६ ॥ तो अमरासुरनहयरनरेसरा पणयणंतपाणिकमा । उवविट्ठा पहुमुहकमलपत्तनियनेत्तभमरउला ॥ ७४४७ ॥ जणयवयग्गहणुव्वेयजायघोरंसुदंतुरियनयणो । सिंगारतिलयकुमरो पणमइ केवलिकमंबुरुहं ॥ ७४४८ ॥ रत्तुप्पलदलसच्छहमरुयणायंबायसरलनयणेहिं । केवलिमवलोयंतो उवविट्ठो नहयरोह पुरो ॥ ७४४९ ।। केवलिणा पारद्धा अपारभवजलहितारणेक्कतरी । सद्धम्मदेसणासमयसमुचिया मुहुरवयणेहिं ॥ ७४५० ॥ पच्चक्खं चिय परिपेच्छिरा वि भवसंभवत्थवित्थारं । अच्चंतमणिच्चमहो मइबंधुर-मंति-मरणेण ॥ ७४५१ ॥ जं न कुणह अप्पहियं काऊणं अप्पकालियं कठें । तिव्वतवच्चरणब्भवं तुब्भे तं सव्वहा मूढा ॥ ७४५२ ॥ जीवाण विसयवंछा वद्धइ कच्छु व्व कुंडुईज्जंती । “पीयजलाण विहाहव्वरियाणवेसरइ किं तन्ह ? || ७४५३ ॥ 'जणओ जणणी-भइणी-भज्जा-सुहिणो य बंधवा पुत्ता । सव्वे वि सकज्जपरा परकज्जत्थी न को वि धुवं ॥ ७४५४ ॥ ताव इमे अणुकूला पूरिज्जइ जा मणोमयं निच्चं ।। तम्मि अपूरिज्जते हवंति पच्चत्थिणो ते वि ॥ ७४५५ ॥ ता भव्वा भव्ववासे परमत्थहिउं समत्थि नेवन्नो । मुत्तं सासयसोक्खस्स दायगं धम्ममेवेक्कं ॥ ७४५६ ॥ सो जइ गिहिभेएहिं दसबारसभेय-भावओ दुविहो । सम्मत्तपुव्वओ भावविरईओ देइ सिवसोक्खं ॥ ७४५७ ॥ ता कुणह जमभिरुईयं तुम्हाण हियं पयासियं एयं । ईय जंपिऊण खेयररायमुणी मोणमल्लीणो ॥ ७४५८ ॥ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंगारमउडकहा तो के वि खयरपहुणो संविग्गमणा कुमारजणणी वि । मंती वि सव्वविरहं गिण्हंति इमाई सव्वाई || ७४५९ ॥ अवरेहिं वि कुमाराईहिं राय - सामंत - मंडलीएहिं । सम्मत्तालंकरिउं सावयधम्मो परिग्गहिओ ॥ ७४६० || अमरेहिं उभयसेणी रज्जपहुत्तम्मि जणयरज्जे य । जुवराओ अहिसित्तो महरिह - रिद्धिप्पबंधेण ॥ ७४६१ ॥ गंतुं नयरुज्जाणे दिवसाई कइ वि केवलीरहिओ । पुत्ताए नरिंदाणं देतो तत्तपरमत्थं ॥ ७४६२ ॥ तत्तो य उभयसेणी पुरेसु काउं विहारमणवज्जं । पडिबोहिउं नरिंदाइयाण दाऊण दिक्खाओ || ७४६३ || आरुहियसिद्धकूडं मासियसंलेहणाए पज्जंते । खविय भवोवग्गाहयकम्मचउक्को सिवं पत्तो ॥ ७४६४ ॥ सिंगारमउडरन्नो जह जाया भावणा सिवेक्कफला । तह जायइ अवरस्स वि ता भव्वा तीए उज्जमह || ७४६५ ॥ दाणं उत्तमपत्तदिन्नमविनो सग्गापवग्गावहं । सीलं सव्वकलंकहीणमविनो संसारनिन्नासणं ॥ ७४६६ || नो तिव्वो वि तवो विणासइ महादुट्ठं पि कम्मट्ठगं । भावेणं जइ वज्जियं कुणह ता सव्वत्थसब्भावणं ॥ ७४६७ ॥ भावणा भीमसंसारनिन्नासणी भावणादृट्ठकम्मट्ठउत्तासणी । भावणा चक्किसक्कत्तलच्छीकरा भावणा चेव सिद्धिस्सिरी कारणं ॥ ७४६८ ॥ ता भोगणेहरज्जे दाण - सीलतवभावणासु दिट्ठता । पुट्ठा तुमए उवरोविते मए साहिया तुज्झ ॥ ७४६९ ॥ इय सोऊणं सद्धम्मदेसणं भुवणगुरुअणंतस्स । भवभयउव्विग्गमणा जाया सव्वा वि भव्वसहा ।। ७४७० 11 एत्थंतरम्मि उग्घाडपोरिसी समयसाहओ तत्थ । चंददलनिम्मिओ इव तिछडिय - सियकमल - सालिमओ ।। ७४७१ ॥ ५८१ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७४७२ ॥ ५८२ सिरिअणंतजिणचरियं कप्पूरचारुचंदणमयणाहिरसच्छडाहियसुयंधो । विप्फुरियरयणकिरणे परिट्ठिओ कणयथालम्मि ॥ ७४७२ ॥ सायरमुक्खित्तो अणंतबलमहाराय-मंति-तिलएण । अच्चिज्जतो सुरअसुरखेयर-क्खित्तकुसुमेहिं ॥ ७४७३ ॥ गिज्जंतो रयणाभरणभासुरंगीहिं रायरमणीहिं । पेच्छिज्जंतो सुरदुंदुहीसरप्पत्तपउरेहिं ॥ ७४७४ ॥ आढयमाणो पत्तो पुव्वपओलीए मंगलीयबली । तो तव्वेलं सद्धम्मदेसणा उवरया पहुणो ॥ ७४७५ ॥ (कुलयं) करयलकयबलिथालो मंती दाउं पयाहिणाण तिगं । ठाऊण सामिपुरओ उच्छालइ फुरियबहुमाणो || ७४७६ ॥ तस्सद्धं गयणाओ वि गहियं अमरेहिं सेस अद्धं तु । गिण्हंति निवा सेसं तुलिंति पागयनरा सव्वे ॥ ७४७७ ॥ तम्मि भवणट्ठियम्मि रोगा. पुव्वुब्भवा उवसमंति । अवराण पुणुप्पत्ती न होइ छम्मासकालं जा ॥ ७४७८ ॥ एत्थंतरम्मि सीहासणाओ सामी अणंतजिणराओ । उज्जइ पणमिज्जंतो समकालुट्ठियनरसुरेहिं ॥ ७४७९ ॥ कमकणयपंकयक्कमगमणो गुरुहत्थिमंथरं सामी । निग्गंतुमंतराए मणितोरणजुयपओलीए ॥ ७४८० ॥ माणिक्ककणयनिम्मियपायारदुगंतरालदेसम्मि । ईसाणकोणरइए माणिक्कमए सिलापट्टे ॥ ७४८१ ॥ नवणीयमिउप्फासे अल्लीणो देवछंदए सामी । उल्लसिय भत्तिभरकयतिहुयणजणजयारावो || ७४८२ ॥ उवविसियपायवीढे जसाभिहो पढमगणहरो सुजसो । सजलजलयब्भणीए पारद्धा देसणं काउं ॥ ७४८३ ॥ अमरासुरनहयरनरनरिंदपरिसाए मुच्छियजणस्स । साहइ निस्संखे वि हु भवे मणोगयवियप्पे वि ॥ ७४८४ ॥ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८३ सिंगारमउडकहा मइ-सुय-ओही-मणपज्जेवेहिं विमलेहिं नत्थि तिजए वि । तं किं पि जं न पेच्छइ समहप्पा नाणनयणेहिं ॥ ७४८५ ॥ भक्खाभक्खं पेयापेयं गम्मं तहा अगम्मं च ।। हेयमुवाएयं पि हु साहइ सव्वं पि भव्वाण ॥ ७४८६ ॥ पढमाए पोरिसीए साहइ धम्मं जिणो तदियराए । तस्साएसणं कहइ गणहरो जेण भणियं च ॥ ७४८७ ॥ . राओवणीयसीहासणोवविट्ठो य पायवीढम्मि । जेट्ठो अन्नयरो वा गणहारी कहइ बीयाए ॥ ७४८८ ॥ खेयविणोओ सीसगुणदीवणा पच्चओ उभयओ वि । सीसायरियकमो वि य गणहरकहणे गुणा हुंति ॥ ७४८९ ॥ इय वागरिउं विरयम्मि गणहरेऽणंतबलनरिंदाई । लोगो पणयजिणिंदो संपत्तो निययठाणेसु ॥ ७४९० ॥ देविंदामर-असुरापुहुपयसयवत्तयं नमिय पत्ता ।। नंदीसरम्मि अट्ठाहियाओ काउं गया सग्गे ॥ ७४९१ ॥ सिरि अम्मएव मुणिवइ विणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । रइए अणंतचरिए समुत्थिओ तुरियपत्थावो || ७४९२ ॥ (चउत्थपत्थावो) अह तिजयगुरूतिजयोवयारकरणुज्जुओ अओज्झाए । ठाऊण कइ वि दिवसे विहरे करणाय निक्खंतो || ७४९३ ॥ कंचणमयपंकयकयकमगमणो धणुसयद्धउच्चतणू । अच्चंतचारुचामीयरच्छविच्छायपहपसरो ॥ ७४९४ ॥ जसगणेहरपमुहसुसाहुसाहुणीसंघविहियपरिवारो । सक्काइचउव्विहसुर-निकायकय-पउरपरिवेढो ॥ ७४९५ ॥ अणुगम्मंतो य अणंतबलनरिंदा य रायविंदेहिं । थुव्वंतो सुर-खेयर-नरचरणजयजयरवेण ॥ ७४९६ ॥ Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ सिरिअणंतजिणचरियं चलचरणरणज्झणमाणमंजुमंजीरकंकणकराहिं । पहरईयरासयाहिं गिज्जतो रायरमणीहिं ॥ ७४९७ ॥ नहचलमुत्ताहलहारलसिरछत्तत्तएण विलसंतो । वीइज्जंतो सियचामरेहिं सयमेव ढलिरेहिं ॥ ७४९८ ॥ नहचलमणिजणियसपायवीढसीहासणेण सोहंतो । जुत्तो पुरो पगच्छंतरयणमयधम्मचक्केण ॥ ७४९९ ॥ मंदानिलचलिरं चलरणंतमणिकिंकिणीकलावेण । मणिदंडेणं धम्मद्धएण पुरओ विरायंतो ॥ ७५०० ॥ हत्थिहयरहसुहासणपमुहेहिं महिं नरिंदजाणेहिं । पूरंतो गयणं पि हु अमरिंदविमाणविंदोह ॥ ७५०१ ॥ अवहरमाणा चउदिसि पणवीसइ जोयणाणि लोयाण । दुभिक्ख-डमर-दुम्मारिसमररोगाइउप्पाए ॥ ७५०२ ॥ पणमिज्जंतो मग्गटुप्पासआरामदुमसमूहेहिं । नहपहसंपत्तेहिं पक्खीहिं पयाहिणिज्जंतो || ७५०३ ॥ पुरनयरग्गामागरपमुहट्ठाणेसु समवसरणठिओ । पडिबोहंतो करुणाए तिरि-सुरासुर-नरवूहं ॥ ७५०४ ॥ सुर-नर-किंकरताडियदुंदुहि-नीसाण-ढक्कपमुहेहिं । बहिरंतो बंभंडं वज्जिरआउज्जसद्देहिं ॥ ७५०५ ॥ मेहकुमारामरगंधवारिवरिसावहरियरयपरारं । रिउ-सुरविकिन्नकुसुमं समक्कमंतो महीवीढं ॥ ७५०६ ॥ संपत्तोऽणंतजिणो सुरट्ठदेसावयंससंकासं । सिरिविमलगिरिगिरिंदं समुन्नयं तित्थनाहं व ॥ ७५०७ ॥ (कुलयं) पन्नासजोयणाई विच्छिन्नो अट्ठजोयणुच्चो जो । दसजोयणाई सिहरे रम्मारम्मम्मि वित्थिन्नो || ७५०८ ॥ सहइ वसंते कुसुमियदुमावली धवलिओ समंतो जो । हिमगिरिवरो व्व अहवा वेयड्ढाणीयकूडो व्व ॥ ७५०९ ॥ Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८५ सामिसमवसरणवण्णणं गिम्हे कुसुमियबंधूयवणलयारयभरारुणत्थाओ । बालायवकलिओ विव विभाइ जो घुसिणरसओ व्व ॥ ७५१० ॥ अच्चंतसामलो नीयपत्तनवमेहमिलणदुल्लक्खो । अप्पं तिरोहयंतोण्हवणुज्जए पाउसम्मिं जो ॥ ७५११ ॥ सुरयम्मि सुन्भअब्भयमालावलईयनियंबदेसो जो । सोहइ विलसिरजद्दरअंबरपरिहाणसहिओ व्व ॥ ७५१२ ॥ वेढिज्जंतो उच्छलियधूमरीमंडलेण हेमंतो । जो सहइ सामलसिलासहस्स पसरंतकंति व्व ॥ ७५१३ ॥ वायाहयवंसीघंसजायआसन्नवणदवज्जलणो । सिसिरे रेहइ जो सीयनासणुज्जालियग्गि व्व ॥ ७५१४ ॥ इय सव्वरिउसमाजोयजायअनन्नरूवसंपाओ । जो तह वि अक्खंडियसव्वरूवसोहं समुव्वहइ ॥ ७५१५ ॥ जा पुंडरीयगणहरनिव्वाणपयाणविहियपत्थाणो । विमलगिरिम्मिं तम्मिं सत्तुंजयअवरनामम्मि ॥ ७५१६ ॥ तिहुयणजणियाणंदो ईदुत्तपहावलोयपरसद्दो । लीलाए समारूढो भुवणगुरुतिजयजणजुत्तो ।। ७५१७ ॥ तो तेरसतित्थेसरपुव्वकयसमवसरणधरणीए । वाउकुमारेहिं पमज्जियाए मंडलियवाएहिं ॥ ७५१८ ॥ रईऊण नहुच्छंगम्मि अब्भवद्दलमइरमइरम्मं । मेहकुमारेहिं सुगंधवारिवरिसेण सित्ताए ॥ ७५१९ ॥ रिउसुरकुमारकयजाणुमाणकुसुमोवहारकलियाए । रईयं पायारतियं सुरेहिं मणि-कणय-रुप्पमयं || ७५२० ॥ मणिपीटिंठ दब्भयधम्मचक्कपुक्खरिणितोरणाईयं । निययाहिगाररूवं कुणंति अमरा चउविहा वि ॥ ७५२१ ॥ रणझणिरकिंकिणीगणचिंधालं बद्धयालिकलियम्मि ।। पविसिय पुव्वदुवारेण समवसरणे ठिओ सामी ॥ ७५२२ ॥ Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ तो वंतरेहिं विहिए पहुपडिरूवत्तिगम्मि रमणीए । उवविट्ठे य दुवालसभेयविभिन्ने सहालोगो ।। ७५२३ ॥ पहुपयपणामपुव्वं मणि-कंचणसाल अंतरालम्मि । उज्झियसासयवेरे तिरियगणे लीयमाणम्मि ।। ७५२४ ॥ पत्तो कयंबयाभिहगिरिनिवडाओ कयंबपुरनयरा । राया कयंबपरिमलनामो जाणिय जिणागमणो ॥ ७५२५ ॥ करि-तुरय- रहवरारूढराया सामंतमंति-मंडलिओ । वज्जिजय आउज्जो आरूढो विमलगिरिसिहरे ।। ७५२६ ॥ अवलोयंतो भूमंडलम्मि इंताई रायचक्काई । पेच्छंतो य नहयले कणंतकिंकिणिविमाणाइं ।। ७५२७ ॥ वावी - जलस्सिणाओ निम्मलनवधोय-पोत्तिपावरणे । पविसंतो पहुमिक्खय जंपर "जिण " जय जय जयति ॥ ७५२८ ॥ सामि समीवे गंतुं विरइय ति पयाहिणो पणमिऊण । कयपाणिकमलकोसो एवं थोउं समाढत्तो ।। ७५२९ ।। जय निम्मलनाणाणंत तुह अणंतत्थयं करिस्सामि । जिणराय ! निययनालग्गलग्गकरकमलकयकोसो || ७५३० ॥ सिरिअणंतजिणचरियं तिहुअणपहुणो न पुरंदरो वि उवमाणठाणमणुसरइ । जम्मि दिणाओ वि जो तुज्झ किंकरत्तं समणुपत्तो ॥ ७५३१ ॥ पर- नियखित्तुज्जोएण भाणुणा कह करेमि उवमंते । पसरइ नाणालोओ लोयालोएसु जं तुज्झ ॥ ७५३२ ॥ कलइ कलाए वि तुलं कलावई न तुह जं तमेणं सो । सामि ! गमिज्जइ तं पुण लीलाए वि पहणियं तुमए ॥ ७५३३ ॥ का उवमा जगगुरुणो तुह सुरगिरिणा वि जं तए नीओ । जम्मसिणाणे सोआसणत्तमच्चंतगुरूओ वि ।। ७५३४ ॥ पहु ! तुह कह उवमिज्जइ निस्सीमजडासओ समुद्दो वि । तिजयुब्भववत्थवियाणणखमाणंतनाणस्स ॥ ७५३५ ॥ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामिसमवसरणवण्णणं महईए वि पुहईए नाहं नाहं उवेमि उवमाए । नीयाणवि साहेट्ठा निवससि तमुवरि गुरूण वि जं ॥ ७५३६ ॥ इय निरुमाणगुणपत्ततुह अणंतप्पसायओ होहं । मन्नेमि चंदवरिअच्चुयट्ठाणम्मि सिवसुहस्सति ॥ ७५३७ || इय थोऊण जिणिदं भत्तिवसुपुन्नपुलयकलियतणू । पणयमुणी नरनाहो निविसइ इंदासणसमीवे ॥ ७५३८ ॥ एत्यंतरे भगवया नवनीरयगज्जिविजइसद्देण । सद्देसणाजणेणं पडिबोहत्थं समारा || ७५३९ ।। तीए चारुमहव्वयसारो संसारसायरुत्तारो । दसभेयसमणधम्मो रम्मो पयडीकओ पहुणो ॥ ७५४० ॥ जम्मिमणुव्वयपणगं सिक्खावयसत्तगं च से धम्मो । कहिओ सुसावयाण वि बारसहा कमविइन्नसिवो ॥ ७५४१ ॥ सिरिवीयरायदेवो देवो सुगुरु वि जत्थ निग्गंथो । तत्तं जिणणाहोत्तं तं सम्मत्तं समक्खायं ।। ७५४२ ॥ सम्मत्तविसुद्धसुसाहुसावयाणं दुगं पि धम्माणं । अमियाण कीरतं चिय वियरइ सिद्धिस्सिरी संगं ॥ ७५४३ ॥ इय विमलनाणजिणनाहअनंतसद्देसणं सुणेऊण । । राया कयंबपरिमलनामो पणमिय पहुं पभणइ ।। ७५४४ ॥ पहु ! बहुसत्तसहेज्जा पव्वज्जा नेव तीरए काउं तह नेव देव सव्वाविय अविरई वि अम्हेहिं ॥ ७५४५ ॥ ता देव ! देह सम्मत्तमुत्तमं ईसिदेसविरइं पि । बहुबीय महाविगई अनंतकायाइचायपरं ॥ ७५४६ ॥ सम्मत्तनिच्चत्तं किरियाए जीए होइ तं कहह । जह निच्चं पि हु पहु ! सिद्धिसाहयं तं करेमि अहं ॥ ७५४७ तो आह तिजयनाहो नरिंद ! निसुणेसु तस्स निच्चलया । जायइ जिणपूयाए भत्तीए तिसंझविहियाए । ७५४८ ॥ ५८७ || Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ सिरिअणंतजिणचरियं जिणपूया पावहरी जिणपूया जायए भवंतकरी । . जिणपूया सव्वाण वि कल्लाणमणीण भंडारो ॥ ७५५४९ ॥ अवहरइ दरिदत्तं पणामए तिजयलच्छिविच्छड् । जिणपूया कीरंती पणासए सव्वदुरियाई ॥ ७५५० ॥ (कुसुमपूयाफलम्मि सिरिकुसुमसेहरकहा) कुसुमक्खय-फल-जल-धूव-दीव-नेवज्ज-वास-निम्माया । पूया जिणेसराणं सा अट्ठविहा विणिद्दिट्ठा ॥ ७५५१ ॥ वरपरिमलेहिं कुसुमेहिं पूयए जो जिणे सबहुमाणं । पूयापत्तं जायइ जिणप्पसाया गुरूण वि सो ॥ ७५५२ ॥ जो जिणपयपउमपुरो पूयत्थं खिवइ अक्खए खिप्पं । सासयसोक्खे मोक्खम्मि अक्खओ होइ सो पत्तो ॥ ७५५३ ॥ एक्केणा वि फलेणं जिणरन्नो जो उवायणं कुणइ । तो तप्पसायओ लहइ सो धुवं सव्वसिद्धिसिरिं ॥ ७५५४ ॥ पत्तगएण जिणिंदं जो सच्छस्साउसीयलजलेण । पूयइ सो तेणेव य पक्खालइ नियमलं नियमा ॥ ७५५५ ॥ जो घणसारं अगुरुं च दहइ जिणअंगधूवणनिमित्तं । सो घणसारो जायइ अगुरू धणओ वि जस्स पुरो ॥ ७५५६ ॥ जो मंगलप्पईवेण पूयए सामिसालजिणचंदं ।। सो दीवसिहाउज्जलमुत्तीसग्गसिरिं रमइ ॥ ७५५७ ॥ जे निरवज्जं भोज्जं नेवज्जे जिणवरस्स जच्छंति । भोत्तूण ते अणवज्जाइं भवसुहाई सिवं जंति ॥ ७५५८ ॥ जो सुहवासेहिं जिणेसरस्स पूएइ पायसयवत्तं । सो सुहवासम्मि सया सिवालए सासओ वसइ ॥ ७५५९ ॥ एयाओ अट्ठ वि कुणइ जो सया भत्तिनिब्भरो भव्यो । सो अट्ठकम्ममुक्को संपज्जइ सासओ सिद्धो ॥ ७५६० ॥ Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमसेहरकहा सव्वाहिं वि असमत्थो एक्काए वि पूयए ज‍ जिणं जो । ता सो वि भावसुद्धीए पावए सिद्धिसंबंधं ।। ७५६१ ।। एयाउ रायकहियाउ तुज्झ पूयाउ ईय जिणुत्तम्मि । भाइ निवो पणयपहू सीमंतयरईयकरकोसो ।। ७५६२ ॥ जइ नाह ! साहसु महं महंतकोऊहलाउलमणस्स । दिट्ठते अट्ठाण वि पूयाणिहि कयपसाया || ७५६३ || जंपइ जिणेसरो सुणसु राय ! कयअप्पमत्तमणवित्ती । संपइ साहिज्जंते दिट्ठते अट्ठ पूयासु ॥ ७५६४ ॥ इह दुग्गदेव दुग्गयपडाय वानरय चंदतेयक्खा । साहससार अकिंचन रणसूर धणावहा पुरिसा ॥ ७५६५ ॥ होउं कमेण एक्केक्कपूयकरणेण गरुयरायाणो । सिरिकुसम सेहराक्खयकित्तिफलसारजलसारा ॥ ७५६६ ॥ सिरिधूवसुंदरी तह भुवणपईवो पईवसिहवत्तो । भुवणप्पमोयगो गंधबुंधरो सिवपुरिं पत्ता ।। ७५६७ ।। (कुलयं) कुसुमेहिं जेण पूईयजिणेसरं पाविया महारिद्धी । तं कुसुमसेहरकहं कहिज्जमाणं निसामेह ॥ ७५६८ ॥ पुरमत्थि प्फुरियमहापहाविरायंतरयणपायारं । रयणप्पायारं नाम गुरुविमाणं सुरपुरं व ॥ ७५६९ ॥ रयणीसु जत्थ ससिरयणचंदसालागलंतसलिलेण । भवणाइं नीरयाइं भवंति मुणिमाणसाई व ॥ ७५७० ॥ तत्थत्थि हत्थि-हय-रह - जोहोहपसाहियाहियसमूहो । विलसिररयणाभरणो रयणाभरणो त्ति नरनाहो ।। ७५७१ ॥ आयड्ढियासिपडिप्फलियतरणिकिरणावलीकलियकाओ । पयडपयावप्पसरो व्व जो रणे रीण - दुनिरिक्खो ।। ७५७२ ॥ सव्वंते डरतरुणीपहुत्तपयवीपइट्ठिया जाया । तस्सत्थि हत्थिमंथरगईगमणारयणमाल त्ति ॥ ७५७३ ॥ ५८९ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० सिरिअणंतजिणचरियं चित्त व्व चित्तवासा अमुक्कपासा सकीयछाय व्व । निययप्पयइ व्व सया जा दुम्मोया मणायं पि ॥ ७५७४ ॥ ताणत्थि तारतारुन्नललियलायन्नपुन्नसव्वंगी । अंगीकयसयलकला कन्ना रयणावली नाम ॥ ७५७५ ॥ पीयाए सूराए इव भूदिट्ठाए वि जीए होइ उम्माओ । तरूणाण विवेईण वि अविवेईणं तु का गणणा ? || ७५७६ ॥ . सा जत्थ जत्थ कीलाकरणकए जाइ रूवविजियरई । गच्छंति तत्थ तत्थ य परव्वसा सेवय व्व नरा ॥ ७५७७ ॥ कईया वि मयंकमुही सहीजुया सा सुहासणासीणा । सियछत्तचलिरचमरालंकरिया निग्गया नयरा ॥ ७५७८ ॥ पत्ता य मत्तमहुयरनामे सिसिरडुमम्मि आरामे । दठूण मयणभवणं उत्तिन्ना जा विसइ तत्थ ॥ ७५७९ ॥ ता निययरंगमंडवगवक्खभद्दासणट्ठियं एक्कं । रायकुमारं मयणं व निग्गयं भवणगब्भाओ ॥ ७५८० ॥ करकलियकेलिकमलं नियरूवनियंबिणी जणियमयणं । सुसिणिद्धमुद्धदीहच्छिजोण्हधवलीकयग्गनहं ॥ ७५८१ ॥ तं पेच्छिउं मयच्छी चिंतइ को एस दीसइ महप्पा । अच्चब्भुयरूवधरो सिंगारी चारुतारुन्नो ॥ ७५८२ ॥ नूणं पच्चक्खो च्चिय एसो धम्मो इमाओ संजायं । जं मज्झ अणिमिसत्तं सहस त्ति निरंतरायसुहं ॥ ७५८३ ॥ पुव्वभवुप्पन्नमहापुन्नारामेण तीए फलियव्वं । तूलि व्व अंगसंगं इमस्स जा पाविही बाला ॥ ७५८४ ॥ स च्चिय जयप्पवित्ता विलसंतसुवन्नरयणरमणीया । जा मुद्दिय व्व लिहिही करगहणमिमस्स सुहयस्स ॥ ७५८५ ॥ स च्चिय उत्तमगमणा विब्भमरहिए सुपत्तरसजाए । रमिही इमस्स जा माणसे सया रायहंसि व्व ॥ ७५८६ ॥ Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९१ कुसुमसेहरकहा इय चिंतंती जाया ससज्झससेयपकंपकलियंगी । पक्खलियपया पविसइ अवियन्हं तं पलोयंती ॥ ७५८७ ॥ वरदाणपरं पि ममं मुत्तुमिमा नियइ अन्नमइनेहा । इय चिंतिय कुविएण व कामेण सरेहिं पहया सा ॥ ७५८८ ॥ मयणेण नडिज्जंती थिरसरलसिणिद्धबंधुरच्छीहिं ।। सच्चविया असरिसरुवहरियहियएण कुमरेण ॥ ७५८९ ॥ एयाए अहो रूवं मोहइ मणिमवि पसंतमोहाण । गुरुरायाइत्ताणं मह सरिसाणं तु का वत्ता ? || ७५९० ॥ सो च्चिय गुरुरायधरो सो च्चिय सरसो इमाए बालाए । सव्वंगसंगमं जो लहिही घुसिणंगरागो व्व ॥ ७५९१ ।। सो चेय चारुवन्नो पवित्तगुरुमुत्तसियगुणमहग्यो । एयाए मयच्छीए हियए हारो व्व जो वसिही ॥ ७५९२ ॥ इय चिंतंतो संतो मयणायत्तो ठिओ कुमारो वि । सूरचरिओ वि कायरनरनियरनिदरिसणं जाओ ॥ ७५९३ ॥ धवलइ कुमरं बाला नियच्छिजोन्हाए सो विरायसुयं । पच्चुवयरं ति सिग्घं गरुया रईओवयारम्मि ॥ ७५९४ ॥ तं पेच्छिरी कुमारी पत्ता पासम्मि कामपडिमाए । सविणयपणामपुव्वं पूर्व काउं समारद्धा ॥ ७५९५ ॥ परिपूयंती मयणं पुणो पुणो पेच्छिरी कुमरवयणं । दंसइ मयणस्स व तं दईयमिमं देहि मज्झ त्ति ॥ ७५९६ ॥ पूयाए जाइ मयणे तद्दिट्ठी निवसुएणुराएण । रूवंतरं व दटुं पइक्खणं कामकुमराण ॥ ७५९७ ॥ पुच्छई य मयणियं नाम नियसहिं को वयंसि ! एस जुवा ? | तीए कुमारथइयावहाऊ नाऊण कहियं से ॥ ७५९८ ॥ सहि ! सुणसु कुसुमसुंदरनयरे निययप्पयावजियतरणी । कुसुमावयंसयनिवो भज्जा कुसुमस्सिरी तस्स ॥ ७५९९ ॥ Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ 11 पउरगुणपउरनयरं ताण सुओ कुसुमसेहरो नाम । सयलकलाकलियतणू नियजुव्वणरमणिमणहरणो ॥ ७६०० भत्तस्स विणीयस्स वि नीइपरस्सा वि तस्स नरवइणा । केणा वि कारणेणं पराभवो विरईओ दूरं ॥ ७६०१ ॥ तं अवमाणं काऊण माणसे अद्धरत्तसमयम्मि | परिमियपरिवारजुओ चलिओ देसंतरे कुमरो ॥ ७६०२ || इह पत्तो विन्नाओ तुह जणएणं अणिच्छमाणो वि । गंतुं पच्चोणीए रिद्धीए पवेसिउं एत्थ ॥ ७६०३ ॥ सम्माणिऊण भणिओ मा गच्छसु वच्छ ! अच्छसु इव । जं मज्झ तुज्झ जणओ मित्तो अच्चंतगोरव्वो । ७६०४ ॥ ठाउमणिच्छंतो वि हु निवोवरोहा इहट्ठिओ स इमो । अणभिमयं पिन गरुया दक्खिन्नपरा परिहरति ॥ ७६०५ ॥ तं सोउं रायसुया चिंतइ जुत्तो इमम्मि अणुराओ । नवरं एसो रत्तो नो वा संपइ न याणामि ॥ ७६०६ ॥ कुमरेणुत्तो थाइयावहो अरे, मंतियं किमेयाए ? | तेत्तं निवकन्नासहीए तुह पुच्छियं चरियं ॥ ७६०७ । कुमरनिरक्खणलुद्धा निव्वत्तियकामपडिमपूया वि । तब्भवणपेच्छणछला महइं वेलं ठिया बाला || ७६०८ ॥ वारं वारं चलसु त्ति सो विदल्लीहिं विन्नविज्जंती । पक्खलियकमं तं पेच्छिरी गया जाणमारुहिउं ॥ ७६०९ ॥ गच्छंती कुमरेणं पलोइया सो वि तीए सच्चविओ । अणुरते जंताई धरिउं को तरइ नेत्ताइं ? ॥ ७६१० ॥ नयणपहमइक्कंताए तीए अरई कुमारमणुपत्ता । लहइ च्चिय अवयासं कइयावि अणिट्ठभज्जा वि ॥ ७६११ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .५९३ कुसुमसेहरकहा रम्म पि तव्विओए उज्जाणं पिइवणं व दुक्खकरं । कलयंतो कुमरो तुरियं तुरयमारुहियसंचलिओ ॥ ७६१२ ॥ नयरपओलिं पविट्ठो सुणइ समाउलियलोयहलबोलं । नियई य गुरुतरघरपुरसालारूढं सभयलोयं ॥ ७६१३ ॥ किमिमं ति कयवियक्को पेच्छइ सुन्नासणं गयाहिवई । पाडतं पासाए मारतं तुरय-नरकरहे ॥ ७६१४ ॥ उरणागरिसियसंकलसरेण नियडयखडक्खडाए य । लगज्जीएण य जणं जो जाणावंतो व धावेइ ॥ ७६१५ ॥ । मह भारक्कंता भूमीमुत्थिज्जउ त्ति कलिउं व । संचंतो गुरुफुक्कारसिक्करासारसलिलेण ॥ ७६१६ ॥ बलकन्नतालचालियससहरुसियचारुचमरजुयलेण । जो वीयइ दंतसुहासणट्ठियं रायलच्छि व्व ॥ ७६१७ ॥ स्टुं सुहासणट्ठियनिवतणयं धाविओ करी तो सा । संपाए समुत्तिन्ना नियडेणत्थे थिरो को वा ? ॥ ७६१८ ॥ पीणपओहरगुरुतरनियंबभरमंथरक्कमगईए ।। नासिउमतरंती सा गहिया करिणा कुरंगच्छी ॥ ७६१९ ॥ दूरुक्खित्ताए पवणपसारिओ तीए कुंतलकलावो । समयगयकडतडुड्डीणभमरनियरो व्व रेहेइ ॥ ७६२० ॥ . वियसियसिरीसकुसुमोहसमहियप्फासलालसेणं व ।। गाढं गएण नियकरदंडेणालिंगिया बाला ॥ ७६२१ ॥ करिणा हरिणकमुही सुमुही विहिया विहाइ गयणयले । नियकुंभतत्थणाण व पीणत्तं दठुकामेण ॥ ७६२२ ॥ मा मह भएण एसा मुच्छिज्जउ इय विभाविऊण करी । तं वीइय व्व चलकन्नतालजयतालयंटेहिं ॥ ७६२३ ॥ तं दटुं रायसुओ झड त्ति मुत्तुं तुरंगमं वेगा । उद्घाईओ गयं पइ हक्कंतो कक्कस-सरेण ॥ ७६२४ ॥ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिअणंतजिणचरियं रे रे ! दुट्ठ ! गयाहम ! मोत्तुं नारिं वलेसु मह समुहं । जइ सत्तमत्थि इय सुयकुमरालावो भणइ कुमरी ॥ ७६२५ ॥ मह कीडियकप्पाए कज्जे भुवणोवयारकरणखमं । नररयण ! मा विणाससु अत्ताणं करिकयंताओ || ७६२६ ॥ सुयकुमरीविन्नवणो सो जंपइ तम्मि भुवणगब्भम्मि | वससि तओ रक्खिस्सं चइउं पाणे वि तं नियमा ॥ ७६२७ ॥ मह करा व चाडूणि करेइ कुमरस्स इय विभावेउं । कुविएण व करिणा सा खित्ता दूरं गयणमज्झे ॥ ७६२८ ॥ विज्जाहरिं व गयणे गच्छंतिं तं पलोइरो कुमरो । जाओ पमत्तचित्तो तो संगहिओ गइंदेण ॥ ७६२९ ॥ मिलसु नियवल्लहाए तुमं पि इय चिंतिउं च कुविएण | करिणा कुमरो वि नहे खित्तो तीए पडंतीए ॥ ७६३० ॥ मरिही एसा एद्दहदूरा रयनिवडिय त्ति कलिऊण । परिसित्ता करुणा नेहेण व तेण सा गाढं || ७६३१ ।। आलिंगियाए तीए पडइ अहो निवसुओ निराहारो । थीफासलालसाणं अहोगईए न संदेहो ॥ ७६३२ || एत्थंतरम्मि वेगागएण नहयरनरेण एक्केण । तद्दुगमवि अवरुंडिय नरनयणा गोयरे नीयं ॥ ७६३३ || तो पलवंतो लोगो अतरंतो लग्गिउं खयरमग्गे । गंतूण कहइ रन्नो कुमारकुमरीणमवहरणं ॥ ७६३४ || तं सोउं आउलिओ चलिओ राया निरिक्खणे ताणं । पेरियतरलतुरंगो परियडर पुरस्स चउपासं ॥ ७६३५ अप्पत्ततप्पउत्ती दूरयरमहिं पलोइउं वलिओ । रुयइ रुयावियलोगो सहमागंतुं गुरुसरेण ॥ ७६३६ || हा वच्छे ! हा सच्छे ! हहा अतुच्छे ! हहा विणयदच्छे ! । हा सुकुमाले बाले ! अवहरिया केण तं कहसु ? ॥ ७६३७ ॥ ५९४ Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९५ कुसुमसेहरकहा हे देव्व ! निद्दओ तं बालं पुत्तं तया हरेऊण । कन्नं पि अवहरंतो खयम्मि खारं खिवसि खुद्द ! ॥ ७६३८ ।। हा मह सहा वि सुन्ना तुह विरहे कुसुमसेहरकुमार ! । एरिसदुहदंसणत्थं पवसंतो तं मए धरिउं ॥ ७६३९ ॥ अंतेउरपउरजणेणं राइणा तह तया तहिं रून्नं ।। जह नयणजलासारो वित्थरिओ वरिसयालो व्व ॥ ७६४० ॥ एवं पलवंताणं ताणं तइए दिणे तरणिउदए । खयरविमाणगणेणं पत्तो कुमरी जुओ कुमरो ॥ ७६४१ ॥ पणओ य महीवइणा सखेयरो निवसुया वि तं नमइ । आपुच्छिय कुसलाई ताई निविट्ठाई निवपुरओ ॥ ७६४२ ॥ रायाह कुमर ! साहसु हरणागमणाण निययवुत्तंतं । तो तं कुमराणाए कहिउं लग्गो खयरचक्की ॥ ७६४३ ॥ देवत्थि दियवरम्मि व वेयड्ढे गुरुगिरिम्मि मणिभवणं । नयरं रहनेउरचक्कवालनामं मणभिरामं ॥ ७६४४ ॥ तं परिपालइ विज्जाहराहिवो नयणवेगअभिहाणो ।। गहियव्वयसिरिकिरणवेगखयरिंदअंगरुहो ॥ ७६४५ ॥ दाहिणनंदीसरगरुयवेगवलिएण तेण सच्चवियं । अन्नोन्नं परिसत्तं पडंतमित्थीपुरिसजुयलं ॥ ७६४६ ॥ अच्चंतरूवरमणीरमणं पइरइयबुद्धिणा तेण । तदुगमवि अवहरिउं नीयं सेले विसालग्गे ॥ ७६४७ ॥ तो थंभणीए विज्जाए थंभिउं पुरिसमाह रमणिं सो । मं अणुरत्तं भत्तं भत्तारं सुब्भु मन्नेसु ॥ ७६४८ ॥ तीयुत्तं तं सुपुरिस ! भाया मह नियसहोयरसरिच्छो । ता उभयभवविरुद्धं तुमए नो किं पि वत्तव्वं ॥ ७६४९ ॥ अवरं च न सायत्ता अहं जओ जणयदिन्निया कन्ना । वीवाहिज्जइ सेच्छा जुत्ता न भवारिसाणं पि ॥ ७६५० ॥ Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ सिरिअणंतजिणचरियं तुम्हारिसा वि उत्तमकुलुब्भवा जइ मुयंति मज्जायं । ता बंधव ! अकुलीणाण पावकारीण का वत्ता ? || ७६५१ ॥ किं निय पियासरीराउ मह सरीरम्मि समहियं किं पि ? । दिळं जं भाय ! तुमं संपइ जंपसि अवत्तव्वं ॥ ७६५२ ॥ वित्थरइ जरा परिगलइ जोव्वणं जाइ जीवियव्वं पि । किं नाम सासयं तुह देहे जमकज्जसज्जो सि ॥ ७६५३ ॥ मुत्तंतपुरीसवसावासे दुग्गंधमलविलीणम्मि । मह देहे किं सारं जं रायरसे तुहुक्करिसो ॥ ७६५४ ॥ एत्थंतरम्मि चउनाणनायनियपुत्तपाववुत्तंतो । तब्बोहत्थं सिरिकिरणवेगसूरी तहिं पत्तो ॥ ७६५५ ॥ . तेणुत्तो भो सावय ! किं तुज्झ कुलक्कमो इमो जमिमं । पारद्धं तुमए निंदणिज्जमुत्तमनराण जओ ॥ ७६५६ ॥ लज्जिज्जइ जेण जणे मइलिज्जइ नियकुलक्कमो जेण । कंठट्ठिए वि जीए कुणंति न कयाइ तं सुयणा ॥ ७६५७ ॥ किं पुत्त ! पिइ-पियामह-पमुहेहि-वयं कयं हवइ जेसिं । ते ईय निम्मज्जाया तुमं व पावप्पिया हुंति ॥ ७६५८ ॥ अवरं च इमा भइणी सहोयरा तुह मुणेमि नाणेण । जं रयणपायाराहिवरयणाभरणभूवइणो || ७६५९ ॥ तं अंगरुहो जेट्ठो एसा वि सुया कणिट्ठिया तस्स । वच्छ ! मए तं हरिओ निवभवणा मासमेत्तवओ ॥ ७६६० ॥ कुमरीवयणविरत्ते चित्ते पिइसिक्खणेण संवेगो । लग्गो खेयरवइणो पासियवत्थम्मि रंगो व्व ॥ ७६६१ ॥ तो तेण पायजुयले लग्गेऊणं खमाविया भइणी । उत्थंभिउं कुमारं पणमिय सूरीण विन्नत्तं ॥ ७६६२ ॥ पहु ! मोहमहाकूवे अविवेयजले निमज्जिरो तुमए । नियवयणवरत्ताए उद्धरिओ हं दयानिहिणा || ७६६३ ॥ Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमसे हर कहा परिभोगो ईयराए वि पररमणीए पयच्छए नरयं । किं पुण नियभइणीए आजम्मं पूयणिज्जाए ? || ७६६४ || ता पहु ! कन्नाए समं नियरज्जं अप्पिऊण जणयस्स । संगहिय सव्वविरहं तुह चरणाराहओ होहं ॥ ७६६५ ॥ ठायव्वं तुब्भेहिं रहनेउरचक्कवालनयरम्मि | ईय जंपिय गुरु कुमरी कुमरजुओ सो गओ सपुरे ॥ ७६६६ ॥ दुगमवि सम्माणेउं वत्थाहरणेहिं खयरबलकलिओ । इह पत्तो तुम्ह सुओ सो हं इह साहियं तुम्ह || ७६६७ | ता ताय ! अहं जाओ दुप्पुत्तो तुम्ह जं मए दिन्नं । नियविरहेणं कुमरीहरणेण य दारुणं दुक्खं ॥ ७६६८ ॥ ईय जंपंतो भणिओ निवेण मा पुत्त ! खेयमुव्ह दोसो न अम्ह दोन्ह वि किं तु इमं दुकयकम्मफलं ॥ ७६६९ ॥ पुव्वभवे तवचरणं कयं मए किं तु संतरायं तं । । जं तुह सरिसो पुत्तो जाओ हरिओ य मिलिओ य ॥ ७६७० ॥ जायं कन्नाहरणं कन्नाहरणं व परमकल्लाणं । णु । जस्सप्पभावओ मे सुचिरेण वि पुत्तमिलिओ तं ॥ ७६७१ ॥ ईय जंपिऊण गाढं जणएणालिंगिउं सुओ जणणीए नओ तीय वि अवरुंडिय चुंबिओ भाले । ७६७२ ॥ खेरवणा वत्तो जणओ तं गिण्ह ताय ! मह रज्जं । परिवज्जिय सावज्जं पव्वज्जं पुण अहं काहं ॥ ७६७३ | तं भणइ पिया परिणयवयस्स मज्झ वि य जुज्जए दिक्खा । काहं नाहं विरहं इहि पि तए समं जायं ॥ ७६७४ ॥ दोन्हं पि सम्मएणं कुमरिं परिणाविऊण कुमरस्स । दिन्नं तं रज्जं तो पत्ता सव्वे वि वेयड्ढे ॥ ७६७५ ॥ तत्थ वि अहिसिंचिय कुसुमसेहरं खयररायरज्जम्मि । खेयरनरनाहेहिं गहिया दिक्खा गुरुसयासे ॥ ७६७६ ॥ ५९७ Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ पणमित्तु कुसुमसेहरराया पुच्छइ गुरुं कहह भयवं । I मह पुव्वजम्मसुकयं जं जाओ हं खयरचक्की ? || ७६७७ ॥ आह पहू आयन्नसु रयणवईए पुरीए तं राय कम्मयरो आसि अईवदुग्गओ दुग्गेदेवो ति ॥ ७६७८ ॥ कइया वि नाणनिउणाभिहाणसूरीहिं भव्वपरिसाए । साहिप्पंतं निसुयं जिणिंदपूयट्ठगं तेण ॥ ७६७९ ॥ तहाहि — सिरिअणंतजिणचरियं फल-कुसुम-क्ख़य- जल - धूव - दीव-नेवज्ज- वासनिम्माया । कीरइ एसा अट्ठप्पयारपूया जिनिंदाणं ॥ ७६८० ॥ सव्वाओ वि असत्तो काउं वरजाइपमुहसुमणेहिं । पूयइ जो जिणचंदे सो सामी हवइ सुमाण || ७६८१ ॥ माणुसभवे वि नूणं जिणपूया पुन्नपगरिसपभावा । अंगं पि कुसुमपरिमलमुग्गिरइ सया वि सत्ताण || ७६८२ ।। किं बहुणा ! भोत्तृणं असुर-नरामरा पहुत्तरिद्धीओ । सिद्धिं पि धुवं पावर पाणी जिणनाहपूयाए । ७६८३ || इय आयन्निय बावन्नदेवउलियाजुयम्मि पत्तो सो । कीरविहाराभिह जिणहरम्मि मणि - कणय - घडियम्मि ॥ ७६८४ ॥ जाईसरेण जं कीरपक्खिणा भणिय पुत्तजयसेणं । कारवियं नायज्जियधणेण बहुमाणसारेण ॥ ७६८५ ॥ जं चउदिसिपडिबिंबियपाडलकलियाहिं भमिरभमराहिं । नियइ व्व भावरिउणो कोवारुणनयणनियरेण || ७६८६ ॥ आभाइ निरब्भनिसिपडिबिंबियतारतारयप्पयरं । जं भत्तिनिब्भरामरविरईयसियकुसुमवरिसं व ॥ ७६८७ ॥ तम्मिं पविसिय नायज्जिएण दव्वेण गहियकुसुमाई । आणंदपुलईतणू पूयइ सो रिसहजिणनाहं ॥ ७६९८८ ।। तप्पुन्नप्पभावेणं रिद्धिं भोत्तुं बीयभवम्मि तओ । जाओ तं खयरवई ईय कहियं राय ! तुह चरियं ॥ ७६८९ ॥ 11 Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमसेहरकहा ५९९ तं सोउं जाईसरणनाणविन्नाय पुव्वभवचरिओ । रायाह जह पहूहिं कहियं दिळं मए वि तहा ॥ ७६९० ॥ तो रयणाभरणमुणी भणइ मुणिंदं कहेह मह भयवं ! । किं सुय-सुयाण विरहो बहुथोवदिणाणि जाओ मे ? || ७६९१ ॥ आह पहू आरामियपुत्तो कणकिन्ननामगामम्मि । आसी अंबयनामो कीरसुओ गोविओ तेण ॥ ७६९२ ॥ तो तं अनियंतं कीरजुयलमच्चंतदुक्खियं जायं । करुणं कूयइ अंसूणि मुयइ मुच्छिज्जएणुकलं ॥ ७६९३ ॥ जणएणुत्तं पुत्तय ! मुंचसु तणयं सुयाणमिण्हि पि । मा पुत्तविउत्ताणं इमाणमच्चाहियं होही ॥ ७६९४ ॥ तो तेण मइक्कंतेसु नवमुहुत्तेसु सुयसुओ मुक्को । तो संजाओ तोसो कीरीकलियस्स कीरस्स ॥ ७६९५ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि अवहरिया सारसीसुया तेण । तो तज्जणणिं दुहियं दटुं सहस त्ति सा मुक्का ॥ ७६९६ ।। कईया वि मासखमणे आरामे तम्मि संतियं साहुं । निच्चं पि पज्जुवासइ भत्तिब्भरनिब्भरो संतो ॥ ७६९७ ॥ भोयणकरणनिविद्रुण तेण तत्थेव मासपारणए । पडिलाहिओ मुणी सो सद्धासहिएण परमन्नं ॥ ७६९८ ॥ तप्पुन्नप्पभावा सो अमरो होउं तुमो निवो जाओ । कीरजुएण वि भमिउं भवम्मि समुवज्जियं सुकयं ॥ ७६९९ ॥ कीरो जाओ हं किरणवेगखयराहिवो सुई वि हु मे । . किरणावलि त्ति कन्ना जाया नवरं अपुत्तो हं ॥ ७७०० ॥ जा अंबएण हरिया सारसिया तीए सरतडे जणणी । बाणेण लोद्धएणं विद्धा खवगेण सच्चविया ॥ ७७०१ ॥ पंचपरमेट्ठिमंतो दिन्नो से तेण तयणु सा सग्गे । अमरत्तसिरिं भोत्तुं संजाओ तुह इमो पुत्तो ॥ ७७०२ ॥ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० सिरिअणंतजिणचरि नहयलचलिएण मए दिट्ठो सपिएण मासमेत्तवओ । कीरहरणुत्थपावोदएण तुह सो मए हरिओ ॥ ७७०३ ॥ पडिवन्नो पुत्तत्तेण नयणवेगो त्ति तयणु कयनामो । समयम्मि तस्स रज्जं दाउं दिक्खा मए गहिया ॥ ७७०४ ॥ नंदीसरवलिएण हरिया तुह कन्नया तओ तेण । अंबयभवसमुवज्जियसारसियाहरणपाववसा ॥ ७७०५ ॥ अट्ठारसघडियाहिं अट्ठार संवच्छराणि सुयविरहो । जाओ तह दिवसतिगं सुयाए सह अप्पपावेण ॥ ७७०६ ॥ ता सुमुणि ! कोउ उप्पाइयं पि इय दुक्खदायगं पावं । रागद्दोसवसकयं तं पुण वियरइ भवोहदुहं ॥ ७७०७ ॥ इय कहियं तुह चरियं तो रायरिसी वि जाइसरणेण । तं नाउमाह एवं जह पहु ! तुब्भेहिं कहियं ति ॥ ७७०८ ॥ नवदिक्खियमुणिजुत्तं नमिऊण गुरुं निवो कइ वि दिवसे । भोत्तुं खेयररज्जं रयणप्पायारमणुपत्तो ॥ ७७०९ ॥ नीईए तत्थ पालइ रज्जं भुंजइ पियाए सह भोए । निच्चं पि कुणइ तित्थप्पभावणं पूयइ जिणिंदे ॥ ७७१० ॥ दंडिप्पवेसिएणं कइया वि हु जणयमंतिणा राया । नमिउं विन्नत्तो देव ! तुह पिया गिण्हिही दिक्खं ॥ ७७११ ॥ रज्जारिहो त्ति केण इह णिज्जिही एस इय विभावेउं । पिउणावमाणिओ तं न चेव पहु ! रागदोसेहिं ॥ ७७१२ ॥ ता तुब्भे पिउरज्जस्सिरिमागंतुं अलंकरह पहुणो । कारणकयावमाणणविसए खेओ न जुत्तो जं ॥ ७७१३ ॥ तं निसुणिऊण सम्माणिऊण तं तेण संजुओ राया । तत्थ गओ पयपणओ पिउणा आलिंगिओ गाढं ॥ ७७१४ ॥ संभासिय ससिणेहं निवेसिओ नियपए तओ रन्ना । गीयत्थगुरुसयासे रिद्धीए कयं वयग्गहणं ॥ ७७१५ ॥ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमसे हरकहा पालइ सो रज्जतिगं नरखेयररायरइयपयसेवो । नंदीसराइठाणेसु जाइ सासयजिणे नमिउं ॥ ७७९६ ॥ उवभुंजिऊण रज्जेसु तिसु वि लच्छि पयकालं सो । रयणावलीसुयं कुसुमपरिमलं नाम ठविय पए ॥ ७७१७ ।। गुरुनयणवेगपासे घेत्तुं दिक्खं कलत्तकलिएण । उप्पन्नकेवलेणं पत्तं मोक्खम्मि नरवइणा ॥ ७७१८ ॥ कुसुमेहिं जहा रईया पूया एएण भूमिनाहेण । परमाणंदसुहत्थं कज्जा अन्नेण वि तहेव ॥ ७७१९ ॥ छ (अक्खयपूयम्मि अक्खयकित्तिनरवईकहा) एसो हु कुसुमपूयाफलम्मि सिरिकुसुमसेहरो कहिओ अक्खयपूयाए कहं अक्खयकित्तिस्स निसुणेह ॥ ७७२० ॥ मसिणियघुसिणरसेण व अरुणारुणरयणभवणकिरणेहिं । रंजंती दिसिवयणाई कित्तिकलिया पुरी अत्थि ॥ ७७२१ ॥ मणिकुट्टिमसंकंताहिं जीए निसिं गिहिरीओ मुद्धाओ । वलयाओ वेलविज्जंति मोत्तियाइं ति तारा ॥ ७७२२ ॥ ससहरजोन्हाभरसरिसकित्तिपब्भार भरियभुवणयलो । निम्मलकित्ती नामेण नरवई विलसए तत्थ || ७७२३ ॥ वामकरेणेक्केणं इयरेणुब्भामियासिजणिएण । करण व बिइएणं धरिएण रणम्मि जो सहइ ।। ७७२४ ॥ पट्टमहादेवीपयपहुत्तमुव्वहइ तस्स सियसीला । लीलायमाणदेहा कित्तिसिरी नामिया दईया || ७७२५ ॥ अच्चब्भुयस्सरूवं जीए रूवं पलोईडं दूरं । अरईए परिग्गहिया रई वि सह तरुणलोएण ॥ ७७२६ ॥ तीए समत्थि गुरुअत्थिसत्थपविइन्न अत्थवित्थारो । पुत्तो अक्खयकित्ती नामेणं कम्मणा वि सया || ७७२७ ॥ ६०१ Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ सिरिअणंतजिणचरियं तेयस्सी दित्तिपहु व्व ईसरसिरसेहरो ससहरो व्व । पसमरसियमई सव्वया सुसाहु व्व जो सहइ ॥ ७७२८ ॥ निम्मलकलाकलावं परिकलयंतस्स तस्स पुणरुत्तं । जति दिणाई निरंतरपिउपयसेवापसत्तस्स ॥ ७७२९ ॥ सहिओ कयाइ समवयसिंगारियरायउत्तमित्तेहिं । आरुहिय तुरंगं तुरयवाहियालीए संपत्तो ॥ ७७३० ॥ पुलभमिरवारेक्काहिं वाहिय तुरयं निवारिठं मित्ते । दाऊण कसाघायं सो मुक्को तेण वेगेण ॥ ७७३१ ॥ विरईय गुरुतरवेओ हओ गओ जाव दूरदेसम्मि । मित्तेहिं तओ तुरया कुमरपहे पेरिया तुरयं ॥ ७७३२ ॥ महमग्गमि महिए इंति इमे नो नहे त्ति कलिउं व । सहस ति समुप्पईओ कुमरतुरंगो नहयलेण ॥ ७७३३ ॥ गुरुपवणनयणमणजवजइणा वेगेण जाइ गयणयले । कुमरतुरओ रएणं जेउं पिव रविरहतुरंगे ॥ ७७३४ ॥ उग्गीवाणं मं पेच्छिराण पीडा भडाण भविहि त्ति । परिभाविडं व तुरओ तन्नयणागोयरे पत्तो ॥ ७७३५ ॥ रायंगुरुहे हरिए हियहियओ इव समग्गपरिवारो । कायव्वविमुढमई पत्तो रायंतियं झत्ति ॥ ७७३६ ॥ साहइ कुमारहरणं तं सोउं मुच्छिओ महीनाहो । तव्वेलमेव जाओ निच्चेट्ठो चत्तपाणो व्व ॥ ७७३७ ॥ चंदणरसच्छडासेयवससमुवलद्धचेयणाहावो । रुयइ सकरुणं पागयनरो व्व अंतेउरेण जुओ ॥ ७७३८ ॥ हा हा कुमार ! हा भुवणसार ! हा रइयरम्मसिंगार ! । हा विहलियअब्भुद्धार ! हा हहा समरदुव्वार ! ॥ ७७३९ ॥ हा जाय जाय ! हा विहियनाय ! हा धरियरायमज्जाय ! । हा हा पररमणीभाय ! हा हहा भुवणविक्खाय ! ॥ ७७४० ॥ र ! हा भुवा हा समरदुबार रायमज्जाय ! । Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०३ अक्खयकित्तिनिवकहा को उच्छंगे धरिऊण मह कामकुमर ! कोमलकरहिं । संवाहतो काही आणंदमहूसवुक्करिसं ॥ ७७४१ ॥ कुंडलसरलुत्तरिया कंकण-केऊरमणिमयाभरणे । रंजिज्जतो दाही दाणे को बंदिविंदाण ? ॥ ७७४२ ॥ इय पलवंते संतेउरे निवे मंतिणा विमलमइणा । कुमरनिरक्खणकज्जे तुरयाणीयं समाइटें ॥ ७७४३ ॥ तं पि दुवालसजोयणमाणम्मि महीयले परिब्भमिउं । नवरं कुमारवत्तामित्तं पि न तेण संपत्तं ॥ ७७४४ ॥ तईयम्मि दिणे पसरंतसोयसंभारनिब्भरे नयरे । कुमरो खयरविमाणाऊरियगयणंगणो पत्तो ॥ ७७४५ ॥ नयणेहिं समं हरिसं वियासयंतो नरिंदलोयाण । पणओ जणणी-जणयाण तेहिं आलिंगिओ गाढं ॥ ७७४६ ॥ तो चेडीचक्कजुया कुमरगुरुणं नया कुमरवहूआ । आसीहिं ताण तुट्ठा सुद्धते संठिया गंतुं ॥ ७७४७ ॥ जंपइ जणओ तुमए दिन्नो किं अम्ह पुत्त ! दुक्खभरो । सो भणइ सुह-दुहाणं दाया देव्वो न चेव अहं ॥ ७७४८ ॥ रायाह सुह-दुहाणं जं अणुभूयं तए व हरिएण ।। तं साहसु त्ति तो कुमरसुमरिओ आगओ अमरो || ७७४९ ॥ तं दटुं मणि-कुंडल-किरीड-केउर-कंकणाहरणं । विम्हियमणो निवो पूईऊण तस्सासणं देइ ॥ ७७५० ॥ तत्थुवविसिउं सो कुमरपेरिओ कहइ हरणवुत्तंतं । पायालम्मि पुरी अत्थि चमरचंच त्ति मणिभवणा ॥ ७७५१ ॥ जीए सामारुणसियमणिभवणपहाहिं संवलिज्जंता ।। अमरा भमंति मयणाहिघुसिणचंदणविलित्त व्व ॥ ७७५२ ॥ तत्थावट्ठियजोव्वणसुरंगणागणविलासदुल्ललिओ । धुव्वंतचारुचामरचमरो नामेण अमरवई ॥ ७७५३ ॥ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ सिरिअणंतजिणचरिय निवसंति तत्थ रवितेय-चंदतेयाभिहा अमरकुमरा । रवि-चंदा इव भमिरा हरंति तेएण तिमिराई ॥ ७७५४ ॥ निद्दालस्साइसरीरलिंगनिच्छईयचवणसब्भावो । जंपइ रवितेओ मित्त । चवणसमओ इमो मज्झ ॥ ७७५५ ॥ ता मं पत्तनरत्तं पडिबोहिज्जसु तुमं अवसरम्मि । इय जंपिउं चुओ सो सुमरियजिणगुरुचरणकमलो ॥ ७७५६ ॥ नयरम्मि धरासारे मणिमंदिररईयधरणिसिंगारे । जाओ राया सिरिरयणसुंदरो नाम रम्मंगो ॥ ७७५७ ॥ विलसंतरूवजोव्वणअभग्गसोहग्गसंगयंगीहिं । दईयाहिं समं विसए उवभुजंतो गमइ कालं ॥ ७७५८ ॥ कइया वि चंदतेएण मित्तदेवेण तस्स रयणीए । कहिओ सुरभवरईओ नरत्तपडिबोहवुत्तंतो || ७७५९ ॥ तं सोउं जाईसरणनाणनयणेण दिट्ठपुव्वभवो । जंपइ राया तुमए पडिवन्नं पालियं किं तु ॥ ७७६० ॥ पहु ! जोव्वणं नवं मणहरा सिरी असमसुहयरा विसया । रत्ताओ कंताओ भत्ता मित्ता अपुत्तो हं ॥ ७७६१ ॥ ता अज्ज वि असमत्थो अप्पहियं काउमाह अमरो वि । परमत्थविमूढमईण राय ईय उत्तराई जओ ॥ ७७६२ ॥ रोय-जरा-जोवणविणस्सरस्स तरुणियणमणहरस्सावि । का राय ! सारया जोव्वणस्स मोत्तुं तवच्चरणं ॥ ७७६३ ॥ चोरानल-जलरायग्गहाइबहुविहअवायसज्झाए । धम्मट्ठाणव्वयमंतरेण न सिरीए अत्थि गुणो ॥ ७७६४ ॥ सरसवसमसोक्खकरा सुरगिरिगुरुदुक्खदाइणो दूरं । अच्चासत्तीए तणुक्खयं न किं दिति निव ! विसया ॥ ७७६५ ॥ अंतो निन्नेहाणं पओसरयाहिं रंजिअजणाणं । किं सारं कंतारं मरणं ताणत्थहेऊणं ॥ ७७६६ ॥ Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्खयकित्तिनिवकहा ६०५ परदईया दव्वग्गहविरईयमेत्ती कुसुद्धहियआणं । किं वन्नेसि नरेसर ! सकज्जसज्जाण मित्ताण ॥ ७७६७ ॥ परिपालिया वि परिपाढिया वि अप्पियधणा वि निव ! नूणं ।। पुत्ता न परित्ताणं कुणंति नरए पडताण ॥ ७७६८ ॥ भववासलालसाणं हवंति आलंबणाई एयाइं । अणुसरियसीहवित्तीण न उण आसन्नसिद्धीण ॥ ७७६९ ॥ थिरजोव्वणाहिं अणुराइणीहिं पयईए सुरहिगंधाहिं । विसए देवीहिं समं भुत्तूण चिरं न जई तित्तो ॥ ७७७० ॥ ता गलिरजोव्वणाओ कित्तिमरायाओ दुरहिगंधाओ । नारीओ असुइभरियाओ विलसिरो किमिह तिप्पिहिसि ? || ७७७१ ॥ वसिउं समग्गसुहवत्थुपरिमलुग्गारसुरहिसुरलोए । वसियस्स असुइगब्भे न विराओ तुह हहा मोहो ॥ ७७७२ ॥ नियपडिवण्णे निरिणो जाओ हं राय ! तुह हियं कहियं । ता कुणसु जमप्पहियं मा मज्जसु मूढ ! भवकूवे || ७७७३ ॥ ईय सुय उवसमरसअमयवरिससमअमरदेसणो राया । सिरविरईयकरकोसो संविग्गमणो भणइ अमरं ॥ ७७७४ ॥ पहु ! तुमए अमएण व मह मोहमहाविसं हरेऊण । उप्पाइओ पबोहो उवयारपरा हवा गुरुणो ॥ ७७७५ ॥ ता इण्हि गिण्हस्सं दिक्खं परिणाविउं दुहियमेगं । दाउं रज्जं पि वरस्स मित्त ! ता आणसु तयं ति ॥ ७७७६ ॥ एवं ति भणिय अमरो पत्तो नयरीए चमरचंचाए । अमरो विणोयपसत्तो रायवरं सरइ दसमदिणो ॥ ७७७७ ॥ अक्खयकित्तिकुमारं हरिऊणं रयणसुंदरनिवस्स । अप्पसु झड त्ति इय भणिय पेसएणुचरममरं सो ॥ ७७७८ ॥ इय पडिवज्जिय नयरीए कित्तिकलियाए झ त्ति संपत्तो । कुमरे तुरंगनिचयं आवाहतं पुरीए बहिं ॥ ७७७९ ॥ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ विहियममरेण निवसुयहयरूवं तम्मि निवसुओ चडिओ | तो गंतुं दूरपहे गयणेण गओ हओ सहसा ।। ७७८० ।। गरुयगिरि-सरिय-नयराई गयणमग्गेण अइक्कमंतेण । अमरतुरएण वेरी सच्चविओ दुज्जओ इंतो ॥ ७७८१ ॥ तं दठ्ठे सो नट्ठो मोत्तुमणावलंबणं नरिंदसुयं । अप्पम्म विणस्संते परोवयारी हवइ विरलो || ७७८२ ॥ निवडइ रायंगरुहो रएण गयणंगणा निराहारो । सट्ठाणब्भट्ठाणं गरुयाण वि होइ वा पडणं ॥ ७७८३ ॥ अवरुंडिऊण धरिओ निवपुत्तो वानरीए निवडतो । सुहपुन्नपरिणईए जंतो जीवो व्व नरयम्मि ॥ ७७८४ ॥ कोमलकिसलयनिचए निवेसिउं तं जलासया सलिलं । घेत्तूण पत्तपुडए धोयइ दासि व्व तच्चरणे ॥ ७७८५ ॥ खज्जूर- कयलि - फल - दाडिमाइभोयाविय पाइउं सलिलं । तीए मिउदलरइए सत्थरए सोविओ तयणु ।। ७७८६ ।। उल्लयपूग - प्फल- नागवेल्लि - दलदावदड्ढगिरिचुन्नं । आणित्तु तीए दिन्नं तंबोलं भुंजइ कुमारो ॥ ७७८७ ॥ उवविसिय सम्मुही सा करकयकयलीदलेण कुमरतणुं । वीयंती अवलोयइ रायसुयं साणुरायच्छी ॥ ७७८८ ॥ भंजइ अविरयमंगं समुव्वहंती समुच्च रोमंचं । परिकंपिरंगजट्ठी ससज्झसासेयमुव्वहइ ॥ ७७८९ ।। दट्ठूण वानरीविलसियं तयं सव्वमेव निवपुत्तो । असरिसविम्हयपरवसमणवित्ती चिंतउं लग्गो || ७७९० ॥ एद्दहदुरयरा निवडिरं न मं वानरी जइ धरती । ता नूण विवज्जंतो अहं वि भिन्नट्ठिसंठाणो ॥ ७७९१ ॥ आसण- पयसोहण - भोयणाई तंबोलदाणपज्जंतं । अणुरत्तपियाए इव इमीए मह सागयं विहियं ॥ ७७९२ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०७ अक्खयकित्तिनिवकहा एयं तु महच्छरियं जमिमा मं साणुरायनयणेहिं । मयणवियारविनडिया नियइ तिरिच्छी वि तरुणि व्व ॥ ७७९३ ॥ तह वानराण जाई सया चला होइ विज्जुलईय व्व । एसा उ थिरप्पयई दूरं लक्खिज्जइ महि व्व ॥ ७७९४ ॥ ता निच्छयमेयाए वानरित्तम्मि कारणं किं पि ।। इय चिंतिय निवपुत्तो सप्पणयं तं पयंपेइ ॥ ७७९५ ॥ मह पाणे दाऊणं उवयारपरंपरा कया तुमए । ता तुह साहामइ कं करेमि मह कहसु उवयारं ? ॥ ७७९६ ॥ रायसुओ वि हु उवयारकरणप्पवणो वि तुह तिरिच्छीए । किमहं काहं दिन्ना ता नियपाणा वि तुज्झ मए || ७७९७ ॥ तो कामवियारेहिं विनडिज्जंतीए तीए कुमरपुरो ।। गहिऊण गवलखंडं लिहिया गाहा महीए इमा ।। ७७९८ ॥ मह दाहिणं वियारिय उरूं कड्ढित्तु मूलियं नाह ! । नामेण कित्तिमालं मं निवकन्नं विवाहेसु ॥ ७७९९ ॥ तं वाइऊण उरू वियारिया निवसुएण छुरियाए । कड्ढिय मूलिं बद्धा वणम्मि संरोहिणी मूली ॥ ७८०० ॥ तो सा जाया रयणीयराणणा तह हरिणसमनयणी । कंचणगोरी घणपीवरत्थणी नववया रमणी ॥ ७८०१ ॥ दळूण तमच्छरियं उच्छलिय अतुच्छकोउओ कुमरो । भणइ मयच्छि ! असद्धेयमत्तणो कहसु वुत्तंतं ॥ ७८०२ ॥ सा आह नाह ! निसुणसु अत्थि जहत्थे पुरे धरासारे । सिरिरयणसुंदरनिवो तस्स अपुत्तस्स पुत्ती हं ॥ ७८०३ ॥ नामेण कित्तिमाला कोलंती सह सहीहिं भवणग्गे । खयराहमेण हरिऊणमेत्थ एक्केण आणीया ॥ ७८०४ ॥ भणिया य मह महातेयखयरचक्किस्स भारिया भवसु । अविरुद्धमिणं जं कन्नया तुमं हमवि तुह रत्तो || ७८०५ ॥ Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ इय भोगत्थं अब्भत्थिया बहुं साम-दाण- दंडेहिं । जीवियनिरवेक्खा एव मन्निओ सो मए दूरं ॥ ७८०६ ॥ तो तेण वियारिय ऊरुयाए खिविऊण मूलियं विहिया । वानरिया हं संरोहिणीए वणमविय रोहवियं || ७८०७ ॥ गंतूण नियट्ठाणे समेइ निच्चं पि पत्थिउं भणइ । जइ मं मन्नसि दईयं ता साहसु गवलवन्नेहिं ॥ ७८०८ ॥ इय कुव्वंतस्स गयं दिण - नवगं सामिसालखयरस्स । अज्जं तु सुकयकम्मेणमागया मज्झमिह तुब्भे ॥ ७८०९ ॥ उप्पाईय पेम्मं पि हु दाही मह तुम्ह दंसणं दुक्खं । जं सो खेयरराया मायावी दुज्जओ एही ॥ ७८१० ॥ दठ्ठे मह महिलत्तं मा काही किं पी तुम्ह सोऽणत्थं । ता पविसह तरुगुम्मे आगंतुं जाव सो जाइ ॥ ७८११ || आह नरनाहपुत्तोऽवहारिहो ईयरदव्व चोरो वि । माणुसचोरस्स पुणो लुणामि सीसं सहत्थेण ॥ ७८१२ ॥ किं होइ वराएणं तेण न बीहेमि हं जमस्सा वि । ईय जंपते कुमरे पत्तो सहस त्ति खयरो वि ॥ ७८१३ ॥ पिच्छेउं नियरूवं कुमरिं कुमरं पि तीए नियडठियं । कोवकयभीमभिउडी अवयरइ पयंपिरो एवं ॥ ७८१४ ॥ रे दुट्ठ ! को तुमं मह पियाए पासे समागओ कहसु ? । कुमरेणुत्तं रे रमणिचोर ! कह तुह पिया एसा ? || ७८१५ ॥ तेत्तं एसा जह महप्पिया तह कहेमि खग्गेण । इय भणिरो करवालं कड्ढेउं धाविओ कुमरो || ७८१६ ॥ हुंकारंतो कुमरो वि उट्ठिओ उक्खिवित्तु - दोन्नि वि दट्ठोट्ठा भिउडिउब्भडा जाव जुज्झति ॥ ७८१७ ॥ ता अणुचरामरेणं कहिओ कुमरावहारवृत्तं । रिउदंसणनियनासणपज्जंतो चंदतेयस्स ॥ ७८१८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०९ अक्खयकित्तिनिवकहा नूणमणवलंबो निवडिऊण रायंगओ मओ होही । ईय सविसओ पत्तो कुमरसमीवे सुरो सहसा ॥ ७८१९ ॥ दठूण कुमरमारणसज्जियघायं तयं खयरखेडं । बद्धो अमरेण अदिट्ठमोरबंधेहिं सो झ त्ति ॥ ७८२० ॥ सम्माणिऊण निवनंदणस्स अवहरणकारणं कहिउं । भणिओ खयरो जीवसि जइ होसि कुमारभिच्चो तं ॥ ७८२१ ॥ मरसि धुवमन्नहा तं सोउं सो भणइ देहि मे पाणे । पहु ! तुह आणं काहं तो सो मुक्को सुरवरेण ॥ ७८२२ ॥ अमरं कुमरं कुमरिं च पणमिउं खामिउं च तेणुत्तं । चलह जह रज्जमप्पिय कुमरस्स भवामि भिच्चो हं ॥ ७८२३ ॥ सो सव्वाण वि सुरकयविमाणमारुहिय झ त्ति पत्ताणि । वेयड्ढुत्तरसेढीए गयणवल्लहपुरे ताणि ॥ ७८२४ ॥ उववेसिउं सहाए कुमरं खयराहिवेण रज्जसिरी । उवणीया भणिरेणं तं सामी सेवगो हं ते ॥ ७८२५ ॥ कुमरेणुत्तं विलससु नियलच्छि जं मए वि तुह दिन्ना । नवरं मए समाणं अणुहवमाणो सिणेहभरं ॥ ७८२६ ।। तं सोउं खयरिदेण हिट्ठहियएण पूईडं अमरं । कुमरकुमरीण रईओ सम्माणो नियसिरीसरिसो ॥ ७८२७ ॥ तो अमरो कुमरी-कुमरखेयराहिवबलेहिं संजुत्तो । चलिओ पत्तो य धरासारे नयरे गुरुरएण ॥ ७८२८ ॥ कुमरीअवहरणससोयलोयपिहियावणं तमिक्खंतो । पत्तो विसन्नसिंगारहीणनिवलोयमत्थाणं ॥ ७८२९ ॥ दटुं अमरं कुमरीए संगयं नट्ठसोय-संतावो । राया पूइय अमरं आलिंगइ कन्नयं हिट्ठो ॥ ७८३० ॥ काउं कुमारखयरेसराण सम्माणममरमुल्लवइ । मित्तसुया वुत्तंत हरणागमणाण मह कहसु ॥ ७८३१ ॥ Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० तो अमरेण समग्गं कन्ना कुमराण हरणवुत्तंतं । कहिउं भणिउं राया परिणावसु कन्नयं कुमरं ।। ७८३२ || ठविउं रज्जम्मि इमं अप्पहियं कुणसु गहियपव्वज्जो । इय भणिए जा चिंतइ विवाहसामग्गियं राया || ७८३३ ॥ ता अमरेण ससत्तीए झ त्ति मणिथंभयावलीकलिओ । वीवाहमंडवो पंचवन्नधयमालिओ विहिओ || ७८३४ ॥ रइया य हट्टसोहा समंतओ देवदुसविसरेण । किं बहुणा ! निवचिंतियममरेण कयं समग्गं पि ॥ ७८३५ ।। गुरुरिद्धी कुमरी दिन्ना कुमरस्स तेण परिणीया । करमोयणम्मि दिन्नं रज्जं सत्तंगमवि तस्स || ७८३६ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ दंडिसूईओ पत्तो । पल्लवओ नामेणं नमिउं विन्नवइ नरनाहं ॥ ७८३७ ॥ देव्वज्जाणे कलकोइलाभिहे केवली समोसरिओ । सोऊण तयं वियरइ राया पीइप्पयाणं से || ७८३८ ॥ गुरुरिद्धीए सुरखेयरिंदनवनिवइपरिंगओ तुरियं । पत्तो उज्जाणे नमिय केवलिं तत्थ उवविट्ठो ॥ ७८३९ ॥ दट्ठूण केवलिं नवनिवई मुच्छाए महियले पडिओ | सिसिरकिरियासमुवलद्धचेयणो पुच्छिओ रन्ना ।। ७८४० ।। किं राय ! मुच्छिओ तं सो जंपइ केवलिं पलोएउं । मह जाइसरणसंसूयगा इमा आगया मुच्छा ॥ ७८४१ ॥ दिट्ठो नियपुव्वभवो हुंतो कासीभिहाणदेसे हं । दुग्गयपडागनामो आजम्मदरिद्दिओ विप्पो ॥ ७८४२ ॥ देसेसु परियडंतो कयाइ उववासतिगसुसियदेहो । पत्तो मज्झहे कणयसालपुरतिलयउज्जाणे ॥ ७८४३ ॥ दट्ठूण तत्थ नवसालितंदुले विक्किणंतए वणिए । आह अहं पहसंतो तिलंघणो देह ता किं पि ॥ ७८४४ ॥ · सिरिअणंतजिणचरियं Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६११ अक्खयकित्तिनिवकहा तो तेसिं सालितंदुलपसइदुगं गुरुदयाए दिन्नं से । तं घेत्तूण पविट्ठो उज्जाणभंतरे जाव || ७८४५ ॥ ता नियइ केवलिमुणिं जिणपूयफलं जणाण साहंतं । जो कुणइ जिणस्सट्ठ वि पूया तो लहइ सो सिद्धिं ॥ ७८४६ ॥ ताओ फल-जल-नेवज्ज-दीव-धूव-क्खएहिं परमेहिं । वासेहिं कुसुमेहिं य भणियाओ समयसत्थेसु ॥ ७८४७ ॥ सव्वाओ वि असत्तो तं कुणइ जिणस्स अक्खएहिं वि जो । भोत्तुं सयलसिरीओ सो अक्खयसोक्खमवि लहइ ॥ ७८४८ ।। तं सोउं सो चिंतइ न पुव्वजम्मे मए कओ धम्मो । तेण न संपज्जइ मे भमिरस्स वि भिक्खमित्तं पि ॥ ७८४९ ॥ ता जिणपूयं सालीए काउमज्जेमि सुकयसंभारं । जं भिक्खाभमणेण वि भविही मह छुहपरित्ताणं ॥ ७८५० ॥ इय चिंतिय भत्तीए नमिय मुणिं भणइ कहह कत्थ जिणो ? । पूएमि जहा तो सावएण सो जिणहरे नीओ ॥ ७८५१ ॥ जं कणयमयं मणिकिरणाकिन्नवणराइविलसिरउवंतं । कंचणगिरिं व कप्पडुमावली वेढियं सहइ ॥ ७८५२ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतरूवं जिणेसरं रिसहं । आणंदअंसुजलकलियलोयणो भत्तिकंटईओ ॥ ७८५३ ॥ मणिमयकुट्टिममिलमाणभालमभिनमिय सामिणो तेण । अक्खयढोयणपूया विहिया बहुमाणसारेण ॥ ७८५४ ॥ दठूण तस्स भत्तिं नियगेहे सावएण से दिन्नं । निद्भुन्हभोयणं तद्दिणाओ सो सुत्थिओ जाओ ॥ ७८५५ ॥ तो कालगओ समभावसंगओ निवसुओ हमुप्पन्नो । दठूण केवलिमिमं तो जाईसरणमुप्पन्नं ॥ ७८५६ ॥ निब्भग्गस्स वि मज्झं रिद्धी सुगुरूवएसनायाए । जिणपूयाए कयाए जाया ईय साहियं तुम्ह ॥ ७८५७ ॥ Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं संजाओ जणस्स जिणपूयणम्मि बहुमाणो । राया वि सावरोहो दिक्खं गिण्हड् गुरुसयासे ॥ ७८५८ ॥ . पणमिय गुरुणो नवदिक्खिए य संभासिऊण नवनिवई । खेयरवई च अमरो गओ सठाणम्मि कयकच्चो ॥ ७८५९ ॥ नवदिक्खियमुणिजुयकेवलिक्कमे नमिय नहयरिंदजुओ । फ्तो पासाए तत्थ सुत्थयं रईय रज्जस्स ॥ ७८६० ॥ खेयरविमाणसेणाए तुम्ह चरणतियं समणुपत्तो । नमिय निविट्ठो पुट्ठो नियहरणं कहसु वच्छ ! ति ॥ ७८६१ ॥ तो एय सुमरिओ चंदतेयअमरो समागओ सो हं । कहिओ य हरणहेऊ जुत्तं तुम्हं पि हियकरणं ॥ ७८६२ ॥ तं सोउं नरनाहो जंपइ भो अमरसुयणसिररयण ! । निक्कित्तिमोवयारी तमेव जए वसुवयंससि ॥ ७८६३ ॥ नियमेण वयं काहं रज्जं दाउं सुयस्स इन्हिं पि । ईय जंपिरे नरिदे सहस ति तिरोहिओ अमरो ॥ ७८६४ ॥ तो रन्ना नवनिवई अणिच्छमाणो वि ठाविओ रज्जे । गीयत्थगुरुसयासे सयं तु अंगीकया दिक्खा ॥ ७८६५ ॥ कईया वि हु सम्माणिय विसज्जिओ राइणा खयरचक्की । कज्जेसु ममाएसो देउ ति पयंपिय गओ सो ॥ ७८६६ ॥ पइदियहं पि पवुड्ढप्पयावपब्मारदुस्सहो दूरं । रिउमंडलाई राया परितावइ गिम्हतरणि व्व ॥ ७८६७ ॥ कइया वि हु वेयड्ढे विलसइ विज्जाहरिंदवाहरिओ । कइया वि घरासारे रज्जसिरिं चिंतए गंतुं ॥ ७८६८ ॥ पयडइ नीई पालइ पयाओ पूयइ जिणे गुरुं नमइ । साहइ देसे एवं वच्चंति निवस्स दिवसाई ॥ ७८६९ ॥ कालेण कित्तिमाला देवीए उदारकित्तिनामसुओ । जाओ संगहियकलो विवाहिओ रायकन्नाओ ॥ ७८७० ॥ Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा ६१३ तं रज्जे अहिसिंचिय गिण्हइ सपिओ वयं जणयपासे । कयतवचरणो उप्पन्नकेवलो सिद्धिमणुपत्तो ॥ ७८७१ ॥ जह अक्खएहिं विहिया जिणिंदपूया इमेण नरवइणा । सिद्धिसुहकंखिणा तह कज्जा अन्नेण वि नरेण ॥ ७८७२ ॥ भणिओ अक्खयकित्ती अक्खयपूयाए संपयं तुब्भे । फलपूयाए निसामह फलसारं वागरिज्नं तं ॥ ७८७३ ।। (फलपूयोवरि फलसारकहा) विप्फुरिय-भूरिकरदुरवलोयमणिमंदिरावली कलियं । सूरोहकयावासं व अत्थि सूरप्पहं नयरं ॥ ७८७४ ॥ अन्नोन्न मिलियमणिगिहकरकिन्ननहम्मि पक्खिणो नूणं । वित्थारिय जालम्मि व न जम्मि पविसंति बंधभया ॥ ७८७५ ॥ सारयरविकरसरियपयावसंतावियाहिओ तत्थ । अस्थि प्पयावसारो नामेण निवो रणव्वसणी ॥ ७८७६ ॥ सव्वंगचंगनियरूवगव्वनिज्जिणियअच्छरा विसरा । तस्सत्थि हत्थिकुंभत्थलत्थणी जयसिरी जाया ॥ ७८७७ ॥ तन्नयणब्भमरगणं आणंदइ सुमणपत्तभरपरमो । फलसारो नामेणं दुमो व्व दूरन्नओ कुमरो ॥ ७८७८ ॥ कइया वि सहासीणे निवम्मि कुमराइरायमंतिजुए । झणहणिरकिंकिणिगणं विमाणमेगं समणुफ्तं ॥ ७८७९ ॥ तम्मज्झाओ पसरंतमणिमयाभरणकिरणदुनिरिक्खो ।। रविरहरयणाओ रवि व्व खेयरो झ त्ति नीहरिओ ॥ ७८८० ॥ पडिहारकयपवेसस्स तस्स सम्माणपुव्वमवणिवई । खयराहिराय ! साहसु आगमणत्थं ति जंपेसु ॥ ७८८१ ॥ सो आह-ससहरसिओ वेयड्ढो नाम वामदेवो व्व । गंगासिंधुपरिंगओ अत्थिगिरी य गरुयनयरसिओ ॥ ७८८२ ॥ Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ . सिरिअणंतजिणचरियं नय-नायरगुणनिज्जिय समग्गपुरपत्तवेजयंति व्व । तत्थत्थि वेजयंती नयरी मणिभवणकमणीया || ७८८३ ॥ गोरी-पन्नत्तीपमुहसिद्धविज्जापभावदुज्जेओ । विज्जाहरराया तत्थ अत्थि सिंगारसारो त्ति ॥ ७८८४ ॥ निम्मलनहकयसोहा पवित्तसब्भावभासियदिसोहा । तारावलि व्व जाया जाया तारावली तस्स ॥ ७८८५ ॥ तीसे असेसभुवणेक्कभूसणं रूवरेहविजियरइं । जाया मणुन्नकन्ना सिंगारतरंगिणी नाम ॥ ७८८६ ॥ सद्धिं सुहवण्णेणं कलाकलावेण तारतारून्नं । जायं तीसे सिंगारगारवुग्गारपरिकलियं ॥ ७८८७ ॥ कइया वि सा सहीयणसहिया मणिमत्तवारणासीणा ।। गयणे जंते चारणमुणिंदमिक्खिय गया मुच्छं ॥ ७८८८ ॥ चंदणरसच्छडासेयसिसिरकिरिओवलद्धचेयन्ना । संसुसहीहिं सा पुच्छिया तुमं मुच्छिया किमिह ? || ७८८९ ॥ आयन्नह त्ति जंपिय सा मुच्छाकारणं कहइ तासिं । संसारसरूवं पिव अत्थि अरन्नं अदिळेंतं ॥ ७८९० ॥ गुरुभूरिसाहिसाहासहस्स अंतरियअंतरिक्खम्मि । सावयभीउ व्व जहिं पक्खिवइ करे न सूरो वि ॥ ७८९१ ॥ पेच्छिज्जंतकुरंगं दरिद्दगामीण देवहरयं व । जं विगयरायचित्तं विरायए केवलिकुलं व ॥ ७८९२ ॥ तरुणो व्व विलसिरवओ विसालओ सरसकमलनियरो व्व । तत्थप्पसरियसालो अत्थि वडो पुरनिवेसो व्व ॥ ७८९३ ॥ बालायवदलनिम्मवियं व सव्वंगपिंगपहरोमं । अच्चंतचंचलं जं तरुणी अणुरायरईयं व ॥ ७८९४ ॥ धरमाणमरुणणयणं मसिणियघणघुसिणरसविमिस्सं व । वानरजुयलं परिवसइ पायवे तम्मि घणनेहं ॥ ७८९५ ॥ (जुयलं) Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा ६१५ कईया वि करह-खर-वसह-सगडसेरहसहस्ससंजुत्तो । संपत्तो सत्थाहो नामेण धणावहो तत्थ ॥ ७८९६ ॥ · आवासिओ य वडविडवितडकए गुड्डुरे गहीरम्मि । . गुणिणीविमाणयाइसु जहजोग्गं सेसलोगो वि ॥ ७८९७ ॥ एत्थंतरम्मि तवतेयभासुरो रईयउत्तरासंगो । गिम्हतरणि व्व चारणसमणमुणिंदो हयतमोहो ॥ ७८९८ ॥ अंगीकयविरइवओ अनिरुद्धसुओ अविग्गहो सययं । जयजणमणकयवासो सोहंतो कामदेवो व्व ॥ ७८९९ ॥ गयणंगणेण पत्तो तत्तो सत्थाहिवो सबहुमाणं । तन्नमिय निसीयावइ पट्टम्मि निसीयइ सयं पि ॥ ७९०० ॥ दटुं तं नवजोव्वणमन्भुयरूवं भणेइ सत्थाहो । किं पहु ! तुह वेरग्गं जं लहुएण वि वयं गहियं ? || ७९०१ ॥ आह पहू सत्थाहिव ! आयन्नसु अत्थि उड्ढलोगम्मि । बहुपुन्नपावणिज्जो सोहम्मो नाम सुरलोओ ॥ ७९०२ ॥ जम्मि बहुरविकरदुरवलोयमणिमयविमाणहयतिमिरे । लज्जंतो व्व न पविसइ कायरपुरिसो व्व सूरो वि || ७९०३ ॥ पुन्नप्पयरिसवसही निरूवमरूवो असीमइस्सरिओ । तं परिपालइ सक्को कयरिउगणमाणसं धसक्को ॥ ७९०४ ॥ तस्सत्थि परममित्तो समस्सिरीओ समाणसिंगारो । नामेण सरीरेण य विक्खावो अमियतेओ त्ति ॥ ७९०५ ॥ विलसिरतणुकंतिमई कंतिमई नाम सहयरी तस्स । दइयवियोगं सा विसयलालसा न सहइ खणं पि ॥ ७९०६ ॥ भणई य मं मोत्तुं तं मा गच्छसु सामि ! सक्कपासम्मि । जं तुह विरहुक्करिसो दूरं विहुरइ सरीरं मे ॥ ७९०७ ॥ पत्तमहाणंदा इव अमयद्दहसंगसुहियदेह व्व । तुह संगसंगया सामिसाल ! हं होमि नियमेण ॥ ७९०८ ॥ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ इय तव्वयणस्सवणा नियदेहाओ वि नियधणाओ वि । अब्भहियं तं मन्नइ दइयं सो जीवियाओ वि ।। ७९०९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं सुरलोयसंभवासमविसयरसासंगसत्तविचित्तस्स । अन्नाओ च्चिय गच्छइ कालो से चत्तधम्मस्स ॥ ७९१० ॥ समयंतरम्मि महइं वेलं ठाउं सुरिंदपासम्म । जा गच्छइ ता पेच्छइ न भारियं नियविमाणम्मि ॥ ७९११ ॥ कत्थ गया मे कंता ? कंतिमई इय विभाविउं जाव । तव्विरहविहरिओ तं नाणेण पलोइउं लग्गो ।। ७९१२ ॥ तो अंबरसिहरगिरिंदसंदवणदक्खमंडवतलम्मि | विसयासत्तं अवरामरेण सद्धिं तमिक्खेइ ।। ७९१३ ।। गुरुरोसावेगारत्तनेत्तपहभरपिसंगियग्गनहो । तद्दुगदहणनिमित्तं निसट्ठगुरुतेउलेसो व्व ॥ ७९१४ ॥ तो ताण मारणत्थं काउं वेगं गओ गिरिसिरे सो । नट्ठाई दुयं दोन्नि वि को ठाइ पुरो दुजयरिउणो ॥ ७९१५ ।। नट्ठे दुगे वि वेरग्गवासणावासिओ विचिंतेइ । पेच्छ अहं वेलविओ विवेयकलिओ वि पावाए ॥ ७९१६ ॥ तुह विरहविहुरियाहं ठाउं चिट्ठामि नो निमेसं पि । ताण भणियाण जायं अवसाणं एरिसमिमीए ।। ७९१७ ।। धिद्धी धिरत्थु इत्थीण ताण जाहिं विमोहिया संता । मइरामत्त व्व विवेइणो वि मूढत्तणं जंति ॥ ७९९८ ॥ जिणचवण - जम्म - दिक्खा - केवल - निव्वाण - पव्व - पूणओ I सुकयं समज्जियं नो मए पियामोहमूढेण ॥ ७९१९ ॥ जाण कए पाणा वि हु तणगणणाए सया गणिज्जंति । तासि इमं सरूवं ता धिद्धी थीसिणेहस्स ॥ ७९२० ॥ घेप्पंति रूव - जोव्वण - विज्जा - विन्नाण-नाण-दविणेहिं । नो पावप्पयईओ ता धिद्धी थीसिणेहस्स ।। ७९२१ ।। Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा विस्सासिऊण वाहंति दासवित्तीए मह समं मूढं । अप्पंति पुण न अप्पं ता थीसिणेहस्स ॥ ७९२२ ॥ वच्चंतु खयं विसया पज्जत्तं मज्झ सव्वभज्जाहिं । जो हं अणप्पवसओ विडंबणं एवमणुपत्तो ॥ ७९२३ ॥ वेरग्गसंगओ विहु न सव्वविरइव्वयस्स जोग्गो हं । ता इहलोयसुहस्स व चुक्को परलोयसोक्खस्स || ७९२४ ॥ ता इह भज्जा दुच्चरियसुमरणत्थं करेमि किं पि अहं । जं दठ्ठे परलोए उप्पज्जइ मज्टा पडिबोहो । ७९२५ ईय चिंतिऊण तेणामरेण विप्फुरियकिरणरयणेहिं । रोहणगिरिसिहरं पिव रुंदं जिणमंदिरं रईयं ॥ ७९२६ ॥ गीयत्थसूरिमंतप्पइट्ठियं तत्थ कारियं तेण । सिरिरिसहनाहबिंबं जाणं व भवन्नवुत्तरणे ॥ ७९२७ सो सक्केण सयं तत्थ अट्ठदिवसाइं ऊसवो विहिओ । इय अणुदिणजिणपूयणसज्जियसुकओ चुओ अमरो ॥ ७९२८ ॥ उप्पन्नो वेयड्ढे दाहिणसेणीए अयलनामाए । नयरीए विजयप्पहरायपियाए जयाए सुओ ॥ ७९२९ ॥ विज्जुप्पो त्ति विज्जावियक्खणो मित्तमंडलीकलिओ । चलिओ नहेण कईया वि कीलिउं तं गिरिं पत्तो ॥ ७९३० ॥ दट्ठूण जिणहरं जायजाइसरणो पयासइ सहीण | कुमरो अमरत्ते नियपिया कुसीलत्तवेरग्गं ॥ ७९३१ ॥ निंदइ दुस्सीलाओ महिलाओ कहइ धम्मसव्वस्स । भणइ य भव्वं जायं जमज्जमिह कीलिउं पत्ता ॥ ७९३२ ॥ भज्जा दुचरियस्सरणकारणविरईयं जिणाययणं । जायइ जेण विराया भवंतरे सव्वविरई मे ॥ ७९३३ ॥ ता गिहिय ईय सामन्नं निस्सामन्नं तवं चरिस्सामि । ता मित्ता खमियव्वं जं तुम्ह मए कयमजुत्तं ॥ ७९३४ ॥ ६१७ Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ तो संविग्गा ते बिंति तुम्ह मग्गं वयं पि अणुसरिमो । तो सव्वो मोयाविय जणया दिक्खं पवज्जंति ।। ७९३५ ॥ कयबालकालबंभव्वया वि संजायबहुसुया सव्वे । तो गुरुणा विज्जुपहो ठविओ जोगो त्ति सूरिप || ७९३६ ॥ सो सव्वत्थ वि भव्वे पडिबोहंतो विहारमायरइ । अज्जं पुण नंदीसरजिणबिंबे वंदिउं चलिओ || ७९३७ ।। इह पत्तो सत्थाहिव ! तुम वेरग्गकारणं जमहे । पुट्ठो तं तुह कहियं तं सोउं भणइ सत्थाहो || ७९३८ ॥ पेच्छंति मयच्छीणं पहु ! सव्वे विहु पभूयविलियाई । नवरं कस्स वि जायइ तप्पडिबोहो जहा तुम्ह || ७९३९ ॥ एयाओ च्चिय भवसुहसव्वस्समवस्समेव मूढाण । रायरहियाण दूरं दुक्खपयं न उणमन्नयरं ॥ ७९४० ॥ नूणं पहु ! बहुकल्लाणठाणमत्ताणमित्थमन्नामि । रन्ने वि जेण पत्ता तुब्भे ता कहह सुहहेउं ।। ७९४१ ।। आह पहू भववासो आवासो तिक्खदुक्खलक्खाण । तापत्तं मणुयत्तं मा हारह करह अप्पहियं ॥ ७९४२ ॥ तं पुण सुदेव - गुरु- धम्मतत्तजोएण जायए नियमा । ता रोगद्दोस असियम्मि देवे मई कुणह ॥ ७९४३ ॥ आराहह निग्गंथं अणीहयं धम्मियं सुसीलगुरुं । जम्मि चराचरजीवाण रक्खणं कुणह तं धम्मं ।। ७९४४ ॥ जं वीयरायदोसेहिं दंसियं मुणह तं सया तत्तं । जं चत्तारि वि चउगइहराइं एयाइं भव्वाण ॥ ७९४५ ॥ जइ वि हु गुरुप्पमाया गिहिणो न कुणंति सव्वगिहिधम्मं । तह विहु एक्का वि कया जिणपूया हरइ संसारं ॥ ७९४६ ॥ जइ वि अणेगविहा सा तह वि हु सुमहुरे रसुत्तमफलेहिं । अंबयबिज्जउराईहिं विरईया वियरइ सुहाई || ७९४७ || सिरिअणंतजिणचरियं Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा सुनरामरत्त - सिवसुह-फलाई भत्तीए विरईया नूणं । फलपूया पूयकराण वियरए जेणिमं भणियं ।। ७९४८ ॥ एक्कं पि फलं पुरओ जो ठवइ जिणस्स परमभत्तीए । तस्स फलंति अवस्सं नरस्स सयलाओ वि दिसाओ ।। ७९४९ ।। तं सोउं सत्थवई भत्तिब्भरघणयगुरूकमंबुरूहो । अंगीकरइ सया विहु जिणपूयाभिग्गहं विणई ॥ ७९५० ॥ साहागएण साहामएण इय देसणं सुणेऊण । भणिया भज्जा दइए ! सुकरो धम्मो इमो अम्ह || ७९५१ ॥ जेणेह फलाहारो विहिणा अम्हाण निम्मिओ पायं । संति च्चिय सुरसफला इह रन्ने भूरि तरुणो वि ।। ७९५२ ॥ नूणं न किं पि सुकयं कयमम्हेहिं भवंतरम्मि पिए ! । जायाइं तेण दोन्नि वि निंदियतेरिच्छजाईए ॥ ७९५३ || एत्तो वि हु नियचावल्लदोससंजायपायवपोसाण । अम्हाणं उप्पत्ती कत्थइ भविही ? न याणामो || ७९५४ ॥ ता सुलहफलेहिं व पूइत्तुं जिणं भवन्नवं तरिमो । साहामई पयंपइ कुणह इमं चलह पउणम्हि ॥ ७९५५ ॥ एत्थंतरम्मि भणिओ गुरुणा सत्थाहिवो वयं जामो । अंबरसिहरगिरिम्मिं जिणिंदपयवंदणनिमित्तं ।। ७९५६ ।। तो आह सत्थनाहो पहु ! सो केत्तियप गिरी कहह । भइ गुरु एसो च्चिय आसन्नो गयणगयसिंगो || ७९५७ ॥ सत्थाहिवो पयंपइ अहं पि पहु ! तत्थ आगमिस्सामि । तो संचलिया गुरूणो सपरियणो सत्थवाहो वि ॥ ७९५८ ॥ उत्तरिय दुमाओ दुयं कइदुगमवि सूरिणोणुमग्गेण । गच्छइ तरच्छ-करि- हरिण -संबरसंचरजुए रन्ने ।। ७९५९ ॥ तम्मज्झे तरणिभया पिंडीहूओ व्व तमभरो तेहिं । अंबरसिहरो नामेण सामलो सो गिरी दिट्ठो ॥ ७९६० ॥ ६१९ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० सिरिअणंतजिणचरियं सामलसिहरानिलचलंततमालदलअंतरुल्लसिरधाऊ । जा नवघणोवईविप्फुरंततडिसंजुओ सहइ ॥ ७९६१ ॥ तम्मिं निवडिरनिज्झरणनीरसिक्करसमूहवहवाए । आरूढा गुरुसत्थवाह-वानरा रम्मआरामे ॥ ७९६२ ॥ तस्सग्गे पिंगमणिप्पहापिसंगियसमग्गदिसियक्कं । रविरहरयणं व नियंति उदयसेलम्मि जिणभवणं ॥ ७९६३ ॥ रयणीसु जं विरायइ पडिबिंबियभूरितारयप्पयरं । केवलमुत्ताजालयविरइयसिंगारचंगं व ॥ ७९६४ ॥ पेच्छंति तत्थ उवसंतकंतमुत्तिजिणेसरं रिसहं । जह जोग्गं न्हवणच्चण-थवणे काउं निविट्ठा ते ॥ ७९६५ ॥ दठूण जिणवरं वानराई बहुमाणजायपुलयाई । आणंदवसपवत्तं सुपुन्ननयणाई पणमंति ॥ ७९६६ ॥ तो तेहिं पक्कपीवरअंबय-नारंगबीजपूरेहिं । कयलीफल-दक्खा-दाडिमेहिं गंतुं जिणिंदपुरे ॥ ७९६७ ॥ पसरिय भत्तिब्भरुत्तिज्जमाणरोमंचअंचियंगेहिं । रइय बलिं मुक्कं बीजपूरयं सामिकरकमले ॥ ७९६८ ॥ (जुयलं) तत्तो अंतो उल्लसियअसमआणंदसंदिरच्छीणि । भूपुट्ठभालवर्ल्ड नमंति तिहुयणपहुं ताई ॥ ७९६९ ॥ तो भत्तीए गुरूणं नमिउं जंपति निययभासाए । पहु ! तुम्ह पसाएणं अम्हेहिं समज्जिओ धम्मो ॥ ७९७० ॥ भणइ गुरू धम्माओ नन्नं भुवणे वि अत्थि सारतरं । ता तिरियाई वि तुब्भे धन्नाई जेसिमियबुद्धी ॥ ७९७१ ॥ इय अणुसासिय वानरजुयलं आपुच्छिऊण सत्थाहं । नमिय जिणं अन्नत्तो गयणेणं विहरिया गुरुणो ॥ ७९७२ ॥ उत्तरिडं सत्थाहो गओ जहाभिमयदेसमसढमई । पावित्तु आउयंतं वानरजुयलं पि कईया वि ॥ ७९७३ ॥ Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा ६२१ मज्झिमपरिणामज्जियनरत्तभावाहमेत्थ वेयड्ढे । उप्पन्नो सो कत्थइ मज्झ पिओ तं न याणामि ॥ ७९७४ ॥ मह पुव्वजम्मसद्धम्मदायगो एस चारणमुणिंदो । जं दट्टुं संजायं मह जाईसरणनाणमिणं ॥ ७९७५ ॥ मोत्तुं परभवदईयं सद्धम्मुच्छाहयं पवंगं मे । न नरंतरपरिणयणे मणो मणोरहमवि करेइ ॥ ७९७६ ॥ तं सोऊणं सहीहिं सव्वं पि हु साहियं खयरपहुणो । तेण वि वाहरिय सुयं वुत्तं जुत्तं इमं पुत्ति ! || ७९७७ ॥ किं तु न नज्जइ चउगइभवगहणे सो कहिं पि उप्पन्नो । ता मोत्तुमसमग्गाहं अवरवरं वरसु तं वच्छे ! ॥ ७९७८ ॥ सा साह मज्झ अंगे लग्गइ सो सुहयरो अहव अग्गी । तं सोऊणं जणओ जाओ चिंताउरो दूरं ॥ ७९७९ ॥ एत्थंतरम्मि सुयदुंदुहिस्सरो दारवालमवणिवई । किमिमं ति पुच्छए सो वि तस्स तइ मुणिय विन्नवइ ॥ ७९८० ॥ पहु ! इण्हि चिय पत्तस्स सूरिणो णंतनाणमुप्पन्नं । तो केवलिमहिममिणं कुणंति अमरा सबहुमाणं ॥ ७९८१ ॥ तं सोउं भत्तीए खयरवई कन्नया जुओ सबलो । केवलिपासे पत्तो पणमिय तं देसणं सुणइ ॥ ७९८२ ॥ आह पहू संसारो धुवं असारो विणस्सरा रिद्धी । खणराइणीओ रमणीओ गत्तरं जीवियव्वं पि ॥ ७९८३ ॥ ईय देसणावसाणे खयरिंदो नमिय केवलिं भणइ । पहु ! मह सुया भवंतरपई कई कत्थ उप्पन्नो ? || ७९८४ ॥ तो कहइ विमलनाणी फलपूयाकरणपत्तपुन्नभरो । मरिठं सो सूरप्पहपुररायपयावसारस्स ॥ ७९८५ ॥ पुत्तो जाओ फलसारनामओ अत्थि चारुतारुन्नो । तं सोउं खयरवई पणयपहू मंदिरे पत्तो ॥ ७९८६ ॥ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ सिरिअणंतजिणचरियं तो हं आलोवेउं सह भज्जा सव्वमंडलीएहिं । तुज्झ सयासे पत्तो नियतणयाए वरनिमित्तं ॥ ७९८७ ।। ता राय ! भणसु नियपुत्तं जं जहा मह सुयं विवाहेइ । तं सोउं नरनाहो जपइ खेयरवई एवं ॥ ७९८८ ॥ पाविज्जइ खयराहिव ! अणप्पपुन्नेहिं तुह समो सयणो । चिंतामणिसंजोगो जायइ किं मंदभग्गाण ? ॥ ७९८९ ॥ इयरं पि खयरकुमरिं कल्लाणसिरिं च को न ईहेइ । किं पुण भवंतरस्सरणजायनेहं तुहंगरुहं ॥ ७९९० ॥ एत्थंतरे कुमारो जाइस्सरणेण नायपुव्वभवो । जंपइ तह ताय ! तयं जह कहियमिमेण तुम्ह पुरो ॥ ७९९१ ॥ तं सोउं गुरुपरिओसपूरिओ कुमरमाह नरनाहो । गंतुं खेयरकन्नं विवाहिउं वच्छ ! आगच्छ ॥ ७९९२ ॥ इय जंपिय सम्माणिय खयरवई वत्थभूसणगणेण । पेसइ सह तेण सयं राया चउरंगबलकलियं ॥ ७९९३ ॥ विज्जाहरिंदविज्जाबलेण पत्तो नहेण वेयड्ढे । विहिओ तस्स पवेसे महूसवो खेयरजणेण ॥ ७९९४ ॥ सव्वुत्तमम्मि लग्गे घणाणुराया महाणुराएण । परिणीया कुमरेणं सिंगारतरंगिणी कुमरी ॥ ७९९५ ॥ गुरुगोरवप्पहिलो दिणदसगं तत्थ संठिओ कुमरो । पच्छा ससुरमणुन्नविय आगओ नियपुरे सपिओ ॥ ७९९६ ॥ पिउणा पुरप्पवेसे सुयस्स असमो महूसवो विहिओ । अत्थाणठियं जणयं नमिय निविट्ठो तयाणाए ॥ ७९९७ ॥ नवरंगयनीरंगीअवगुंठियवयणपंकया बहुया । नयससुरा तस्सासी तुट्ठा अंतेउरे पत्ता ॥ ७९९८ ॥ अत्थाणट्ठियं जणयं सेवइ गोसप्पओससमएसु । न मुयइ कयाइ कुमरो कलाणपुणरुत्तमब्भासं ॥ ७९९९ ॥ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलसारकहा ६२३ काउं कयाइरज्जाहिसेयपरमूसवं कुमारस्स । गहियव्वओ निवो पत्तकेवलो मोक्खमणुपत्तो || ८००० ॥ नवनिवई वि नएणं पालेइ पयाओ दंडए दुढे । मन्नइ महायणीए पूयइ पुज्जे खले चयइ ॥ ८००१ ॥ पुव्वभवोवज्जियसुकययकम्मसंभारभावओ सव्वे । खोणीवइणो तं देवयं व आराहयंति सया ॥ ८००२ ॥ एगाहिवत्तधरणीवइत्तसंपत्तउत्तमजसस्स । तस्सुप्पन्नो कईया वि पुत्तओ पट्टदेवीए ॥ ८००३ ॥ विहिउं वद्धावणयं नामं कुमरस्स कित्तिसारो त्ति । दिन्नं रन्ना सम्माणिऊण निस्सेस पुरलोयं ॥ ८००४ ॥ परिवड्ढिउमारद्धो कमेण मज्झा वयाणमुवणीओ | . समहियकलो जाओ समलंकियजुव्वणो कुमरो ॥ ८००५ ॥ परिणाविओ य उव्वणजोव्वणकमणीयरायकुमरीओ । समयम्मि तमभिसिंचिय रज्जे राया गुरुविराया ॥ ८००६ ॥ नाणधरसूरिपासे गहिडं दिक्खं तवं तविय तिक्खं । उप्पन्नणंतनाणो पत्तो सो सिद्धिसंबंधं ॥ ८००७ ॥ जह विहिया फलपूया फलसारेणं महामहीवइणा । अन्नेण वि सिवसुहमिच्छुणा तह च्चेव कायव्वा ॥ ८००८ ॥ फलपूयं अणुसरिउं फलसारो भूवई इमो भणिओ । इण्हिं जलपूयाए जलसारकहं निसामेह ॥ ८००९ ।। (जलपूयाए जलसारकहा) भूरिहिमनिम्मिओ इव पुंजियकप्पूरदलसमूहो व्व । रुप्पयमओ विसालो वेयड्ढो नाम अस्थि गिरी ॥ ८०१० ॥ रुप्पयमयम्मि जम्मिं तमालकंकेल्लिकयलिसंडाइं । रिट्ठारुणमरगयं मणिसिहराई पिव विरायंति ॥ ८०११ ॥ Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ सिरिअणंतजिणचरियं तम्मि रहनेउरचक्कवालनामं समत्थि गुरुनयरं । जम्मि तिमिराण भिन्नो लोओ मणिगिहपहा लोए ॥ ८०१२ ॥ जत्थ गुरुमुत्तियाओ हरिसहियाओ य सुपयचक्काओ । सउणासियसयवत्ता सईओ सरसीउ व सहति ॥ ८०१३ ॥ पणमंतखयरनरवइसिरिपिंगमणिप्पहा पिसंगपओ । जलहरसारो नामेण तत्थ खेयरवई अत्थि ॥ ८०१४ ॥ नियदाणवुड्ढिजियजलहरावली जलहरावली नामं ।। तस्सत्थि हत्थिमंथरसंचारा सहयरी सारा ॥ ८०१५ ॥ तीसे समत्थि जलरासिसिविणसूइयगहीरयावासो । जलसच्छप्पयई वि य कुमरो नामेण जलसारो || ८०१६ ॥ मयणो व्व अतणुरूवो समग्गजणविहियहिययवासो जो । कमलायरो व्व गुरुमित्तदंसणुल्लसियसुवियासो ॥ ८०१७ ॥ उत्तमकुलावयंसो वयंसजणगओ वि रायसुओ। कीलाकए कयाई वि पत्तो सायरगयगिरिम्मि ॥ ८०१८ ॥ वेलाजलचलणविग्घुट्टफुट्टगुरुसुत्तिमोत्तियप्पयरो । सामे जम्मि दिणम्मि वि विभाइ तारयसमूहो व्व ॥ ८०१९ ॥ तम्मि समित्तो कुमरो आरामपरं परं परिब्भमिरो । आयन्नइ पेक्काओ हक्काओ भिडंतसुहडाण ॥ ८०२० ॥ के नाम इमे जुझंति किं च वेरस्स कारणमिमेसिं । . पेच्छामो पुच्छामो त्ति जंपिरो सो गओ तत्थ ॥ ८०२१ ॥ तो तेण झ त्ति दिट्ठा दोन्नि भडा दंतदट्ठनियउट्ठा । कयभामभिउडिभाले रोसारुणलोयणकराला ।। ८०२२ ॥ समरारंभस्समवसगलंतपस्सेयबिंदुजालेण । रेणुप्पसमणकज्जे रणरंगं सिंचयंत व्व ॥ ८०२३ ॥ जुयलं ॥ मा जुज्झह मा जुज्झह ता मह नियवेरकारणं कहह । इय कुमरवारिया वि हु जुझंति समच्छरा दो वि ॥ ८०२४ ॥ Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलसारकहा ६२५ पसरति अवसरंति य घडंति विहडंति दिति करणाई । उम्मुक्कसीहनाया वग्गंति य खग्गवग्गकरा ॥ ८०२५ ॥ अन्नोन्नछलप्पहरप्पवंचअन्नायखग्गघाएहिं । दोन्हिं वि पडियाई महीयलम्मि सहस त्ति सीसाइं ॥ ८०२६ ॥ तो तेसिं सीसाई पमुक्कहुंकारपेक्कहक्काई । अन्नोन्नं उच्छलिउं दंतेहिं डसंति अणुवेलं ॥ ८०२७ ॥ अवरोप्परासिदंडप्पहारजज्जरियअंगुवंगाई । जुज्झति कबंधाई वियच्छरियकराई कुमरस्स ॥ ८०२८ ॥ कुमरेणुत्तं मित्ता सीसकबंधाण रणसुक्करिसं । पेच्छह अतुच्छअच्छरियकारयं रोसवसयाण ॥ ८०२९ ॥ ते बिंति देवसिविणे वि नेव जं तं पि एत्थ सच्चवियं । इय जंपिराण पडियं धडदुगमवि पहरजज्जरियं ॥ ८०३० ॥ सियदंतकोडितोडियअवरोप्परवयणगंडखंडाइं । निच्चेट्ठाई होउं तस्सीसाई पि पडियाइं ॥ ८०३१ ॥ तो झ त्ति पिंगकेसरसडाकडारियसमग्गदिसियक्कं । तडिपुंजपिंजरियकयतयं व जायं सरहजुयलं ॥ ८०३२ ॥ उक्खित्तकरप्पमुक्कफारफुक्कारसिक्करासारो । वित्थारिज्जइ जेहिं दिणे वि तारयभरो व्व नहे ॥ ८०३३ ॥ अइघोरगज्जियारवरोइं तं पेच्छिउँ नरिंदसुओ । विम्हियहियओ जाओ भएण नट्ठो पुण वयस्सो ॥ ८०३४ ॥ तो भेरवभयजणयं सरहदुगं पि हु तिरोहियं सहसा । पेच्छइ य पुरो बहुसूरकिरणभरसमहियं तेयं ॥ ८०३५ ॥ तं पेच्छिय विम्हयओ चिंतइ कुमरो किमिंदयालमिमं । मइमोहधाउखोहणमहव मह किं पि अन्नयरं ॥ ८०३६ ॥ इय चिंतंतो कुमरो जा थिरकयलोयणो तयं नियइ । ता तेयअंतरट्ठियनरसरिसं पेच्छए किं पि ॥ ८०३७ ॥ Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ नयणाणिमिसत्तप्पमुहलिंगविन्नाय अमरसब्भावं । रईयकरकमलकोसो तं नमिय पयंपइ कुमरो ॥ ८०३८ ॥ को पहु ! तुमं किमेवं भीसणरूवो ठिओ कहसु मज्झ । इय तेणुत्तो अमरो कुमरं पइ भणइ सुणसुति ॥ ८०३९ ॥ अस्थि असमत्थसुहडं समत्थसुहडोहपत्तविजयं पि । जयसारं नाम पुरं विजयावहरायलंकरियं ॥ ८०४० ॥ तत्थत्थि वित्तसियकरवियरणसंजणियजणमणपमोओ । सम्मयसहिओ चंदो व्व चंदतेओ त्ति अत्थवई ॥ ८०४१ ॥ चंदप्पहाभिहाणा मणोहरा तस्स पिययमा अस्थि । चंदप्पहमारा इव सरूवकयजणमणुम्माया ।। ८०४२ ॥ बहुधणवई वि दव्वज्जणाय सो कुणइ भूरिववहारे । कयकिच्चेहिं वि महिओ जलहीरयणत्थि अमरेहिं काउं कयाणयाइं कयाइं पउणाई पवहणे चडिओ | चलिओ य मलयसिंघल - कडाहकेसाइदीवेसु ॥ ८०४४ ॥ गच्छइ पोओ दूरा नीरभरं मत्थए तरंगे य । फाडतो तासंतो भंजतो भूरिवेगेण ॥ ८०४५ ॥ अणुकूलवायविहिमणवियंभणप्पेरियं च जलजाणं । थेवेहिं वि दिवसेहिं वंछियदीवेसु संपत्तं ॥ ८०४६ ॥ तत्थ मणवंछियब्भहियजायबहुलाहपत्तपरिओसो । गहिओ सदेसजोग्गे कयाणए तयणु पाहुडिओ ॥ ८०४७ ॥ ८०४३ ॥ सिरिअणंतजिणचरि पवणप्पसराऊरिज्जमाणसियवडपयंडवेएण | थोवदिहिं वि पत्तो पोओ जलरासिमज्झम्मि || ८०४८ ॥ एत्यंतरे अकालियघणपडलेहिं समग्गनहमग्गो । जीवो व्व अकज्जब्भवपावेहिं कलुसिओ दूरं ॥ ८०४९ ॥ नहदपणे समुद्दो संकंतो अह घणो जलहिसलिले । जयंति विब्भमं दो वि सामला पेच्छिरनराण ।। ८०५० ॥ Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलसारकहा झंपाए समुल्लसिरो सिंधुजले निवडिऊण तडिपुंजो । वडवानलो व्व रेहेइ नहमंडलजंतजालोहो || ८०५१ ॥ अच्चंतथूलामलजलधारा सारसलिलसंभारं । मुंचइ मेहो मोयाविडं व जलहिसमज्जायं ॥ ८०५२ ॥ सामयघणाली गयणे सामुक्कलियावली समुद्दम्मि । गज्जंती उ पसरंति दो वि गुरुगयघडाओ व्व ॥ ८०५३ || नीओ होइ घणो जलभरेण उल्लसइ तेण य समुद्दो । दोन्नि वि मिलणनिमित्तं परोप्परं संचरंति व्व ॥ ८०५४ ॥ एवं अकालभवमेहमंडलाडंबरं पलोएउं । सव्वो वि पवहणजणो जाओ कायव्वमूढमणो ॥ ८०५५ ॥ सेरसमीरुक्कलिया तोडियतणियागणो सियवडो वि । पवहणवइहिययं पिव पडिओ सह कूवखंभेण ॥ ८०५६ ॥ गुरुकल्लोलारोहावरोहआवत्तात्तभमणाई । अणुभविऊणं अभिडियगिरितडे विहडिओ पोओ ॥ ८०५७ ॥ अंगीकयगुरुकट्ठा तरिया के वि हु भवं व नीरनिहिं । अवरे उ अगुरुकट्ठा भवे व्व मग्गा समुद्दम्मि || ८०५८ ॥ पवहणवई वि बहुधणविणासदंसणविसायविवसंगो । मग्गो अगाहसलिले भववासे को सया सुहिओ || ८०५९ ॥ तयणुजलमाणुसीए मयणायत्ताए निययदईओ त्ति । आलिंगिओ जहट्ठियवत्थं न नियंति रायंधा || ८०६० ।। आयड्ढिय सलिलाओ भोगत्थं तीए गिरितडे नीओ । सुहपरिणईए जीवो व्व कड्ढिओ नरयमज्झाओ ॥ ८०६१ ॥ सा तं दठ्ठे न इमो पिओ त्ति भीया गया जले झति । सावायपरट्ठाणे को चिट्ठइ नायपरमत्थो ॥ ८०६२ ॥ सेलतडसिलासीणो सो चिंतइ मज्झ चेव पडिकूलो । एस हयविहिविलासो पुव्वज्जियदुकयवसयस्स || ८०६३ || ६२७ Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ जं अच्चब्भुयधणकणभरियं पि पवहणं विहडियं मे । मरणंतव्वसणं सिंधुमज्झाणहमवि संपत्तो ॥ ८०६४ ॥ जं जस्स जया जायइ सुहमसुहं वा तयं तया तेण । धेज्जमवलंबिऊणं सहियव्वं जेणिमं भणियं ॥ ८०६५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं जं चिय विहिणा लिहियं तं चिय परिणमइ किं वियप्पेण । ईय जाणिऊण धीरा विहुरे वि न कायरा हुंति ॥ ८०६६ | एवं विभावणागयविसायवसजायमणअवट्ठेभो । अवलोईउं पवत्तो रमणीए पव्वयपएसो ॥ ८०६७ || गुरुसिहरगुहाकंदरनियंबनिज्झरसयाई पेच्छंतो । भक्तो य फलाई कइवयदिवसाइं तत्थ ठिओ || ८०६८ ॥ किच्छेणमवरदिवसे तग्गिरिसिहरम्मि दुग्गमे चडिओ । अवलोयइ अइबहलं वणसंडं मेहखंड व ॥ ८०६९ ॥ अनिलतरलाओ जुत्तो निवडतो नज्जए कुसुमनियरो । सुक्कोदयत्थभवघणपडलाओ व करयनिउरंबो ॥ ८०७० ॥ जं मज्झट्ठियकंचण - मणिमयजिणभवण - किरण - कब्बुरियं । कप्पहुमसंडं पिव सोहइ आभरणगणजुत्तं ॥ ८०७१ ॥ तम्मज्झे गयणंगणगयसिंगजिणहरं सुवन्नमयं । मेरुं पिव अवलोयइ तलसंठियभद्दसालवणं ॥ ८०७२ ॥ आभाइ जस्स सिहरे संकंतानिलचलासियधयाली । सुरगिरिजिणन्हाणपवत्तदुद्धजलपवहपंति व्व ॥ ८०७३ ॥ तम्मि पविट्ठो सो नियइ निरुवमं रिसहसामिणो बिंबं । उम्मीलियभत्तिवसुल्लसंतरोमंचकंचुईओ ॥ ८०७४ ॥ नमई तं भालतलग्गमिलियमहिमंडलो पहरिसेण । रईयकरजुयलकोसो नियई य नाहं अणिमिसच्छो || ८०७५ ॥ एत्थंतरम्मि एगो चारणसमणो नहेण संपत्तो । कयतिप्पयाहिणो रिसहसामियं थोउमाढत्तो ॥ ८०७६ ॥ Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलसारकहा तिहुयणगुरुणो सिरिरिसहसामिणो नमिय पायसयवत्तं । कयकरकोसो आणंद अंचिओ संथवं काहं ॥ ८०७७ ॥ कणयच्छविणो अंसावलंबिणो कसिणकुंतला तुज्झ । मंदरगिरिणो पंडगतमालतरुणो व्व रेहति ॥ ८०७८ ॥ जे सामिसाल तुह पयलीणा दीणा वि ते नरा नूणं । भवताववज्जियंगा विलसिरपउमालया हुंति ॥ ८०७९ ॥ मइ - सुय - ओही - मणपज्जवाणि तुह केवलम्मि मग्गाणि । तारय-नक्खत्तग्गह- ससिणो व्व सहस्सकरतेए || ८०८० ॥ तं सामि ! समवसरणम्मि सोहसे रईयरम्मचउरूवो । नारय- तिरिय-नरामर - चउगइजणबोहणत्थं व ॥ ८०८१ ॥ रायाणं रंकाण य धम्मुवएसं तुमं समं देसि । किं जयमुज्जोयंतो मेच्छकुलाई चयइ सूरो ॥ ८०८२ ॥ तुह मिलणे मह जाओ बहुमाणवसेण रम्मरोमंचो । घणसमयम्मि कयंबस्स सव्वओ कुसुमनियरो व्व ॥ ८०८३ ॥ इय तीइ वक्केसिरि-नेमिचंद - मुणिनाह - नमियपयपउम ! । जह जाया तुह सिद्धी तं तुह मज्झ वि पहु ! पयच्छ ॥ ८०८४ ॥ इय थोडं रिसहजिणं उवविट्ठो तयणु चंदतेओ से । पणमिय कयंजलिउडो उवविसिउं भणइ मुणिमेवं ॥ ८०८५ ॥ भयवं ! नरत्तनियजम्मजीवियव्वाण वसणठाणाण । देव - गुरुदंसणेणं मन्ने अज्जेव सहलत्तं ॥ ८०८६ ॥ ता पहु ! मह कहसु अवत्थसमुचियं धम्मं अह कहइ साहू । पूइज्जइ एस पहू अट्ठ पगाराहि पूयाहिं ॥ ८०८७ ॥ तहाहि - नेवज्ज-गंध-अक्खय - दीवय - फल-सलिल - कुसुम - धूवेहिं । जिणपूया भत्तीए रईया वियरइ सिवसुहाई ॥ ८०८८ ॥ ६२९ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० दूरे धणक्कयुब्भववासप्पमुहाओ सत्त पूयाओ । एक्का वि मुहा लब्भा जलपूया हरइ संसारं ।। ८०८९ ॥ जओ - सिरिअणंतजिणचरियं जलभरियपत्तमित्तो संसारमहोयही फुंडतस्स । । जो ठवइ जिणस्स पुरो सीयलजलपुरियं पत्तं ॥ ८०९० ॥ फलिहेण व सच्छेणं अमएण व साउणा जिणवरिंदं । सीएणं सिसिरेण व जलेण अच्चंति कयपुन्ना ॥ ८०९१ ॥ जेण जिणाओ न अन्नं पूयापत्तं समत्थि ति-जए ता पूइऊणमेयं सहलं मणुयत्तणं कुणसु ॥ ८०९२ ॥ तं सोउं सो जंपइ नमिऊण मुणिं निबद्धकरकोसो । भयवमणुग्गहिओ हं समयोचियधम्मकहणेण ॥ ८०९३ || ईय जंपिउं गओ गिरिनिज्झरणनिवायसंदकुंडम्मि । कयकमलपत्तपुडए गहिय जलं जिणहरं पत्तो ॥ ८०९४ ॥ दट्ठूणं भुवणगुरुं सुमरियपुव्विल्लनियसिरिप्फुरणो । चिंतइ तइया नाहो जिणनाहो मज्झ जइ हुंतो ॥। ८०९५ ॥ ता हं नियसिरिवित्थरसमवत्थुगणेण नूणमच्चं । एहि एयावत्थो करेमि एयं पि जलपूयं ॥ ८०९६ ॥ इय चिंतिय असमुल्लसियभत्तिपब्भारपुलईयसरीरो । पसरंतभूरिआणंदअंसुदंतुरियपम्हच्छो । ८०९७ ॥ मुंचइ पहुणो पुरओ जलपुडयं अत्तणो परिकलंतो । नरजम्मजीवियव्वाण सहलयं भुवणपणयस्स ।। ८०९८ ।। भणइ मुणी धन्नो ते पयडइ पुलओ तुहंतरं भक्तिं । इंति न दुद्धे पीए उग्गारा आरनालस्स ॥ ८०९९ ॥ सिवलच्छिपेच्छियाणं उच्छाहो होइ एरिसोवस्सं । न हि सुकयसंगयाणं धम्मम्मि अणायरो होइ ।। ८१०० ॥ Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलसारकहा तेत्तं भयवं ! मे भवंतरे वि हु भवेज्ज तं चेव । देव - गुरु- धम्मतत्ताण देसओ विरईयपसाओ || ८१०१ ॥ इय जंपिय तेण नओ गओ मुणी नहयलं अलंकरिउं । सो वि गुरुविरहविहुरो खणमेत्तमचेयणो व्व ठिओ ॥ ८१०२ ॥ नमिउं बहुमाणपुरस्सरं जिणं निग्गओ जिणाययणा । नियपुरगमणोवायं चिंतंतो गमइ दिणसेसं ॥ ८१०३ ॥ एत्थंतरम्मि नहमग्गसंगिनग्गोहसाहिसिहरम्मि । अल्लीणा आगंतूण पक्खिणो झत्ति भारुंडा ॥ ८१०४ ॥ ते माणुसभासाए नियवुत्तंते कहंति पुत्ताणं । एक्केण जंपियमहं जयसारपुराओ संपत्तो ॥ ८१०५ ॥ तप्पुरसमग्गवणिवग्गअग्गणी चंदतेयनामो जो । संभिन्नपवहणो सो मओ अपुत्तो त्ति जणवाओ ॥ ८१०६ ॥ निसुओ निवेण तो से गहिओ निल्लुडिऊण घरसारो । जे जोयंति असंतं पि ते न किं संतिमिह छिद्दं ? ॥ ८१०७ ॥ गुत्तंपि धणं कहियं कयत्थणाकंपिराए कंताए । अप्पम्म विणस्संते कज्जं किं सयणदविणेहिं ? ।। ८९०८ ॥ एयं आरामियजणकहिज्जमाणं मए सुयं वच्छ ! । इय भारुंडपयंपियसवणा सो चिंतइ ससोओ ॥ ८१०९ ।। पेच्छ जहा मह लच्छी पसरंतसुवन्नतारसारा वि । सिग्घं पि खयं पत्ता गिम्हसमुब्भूयरयणि व्व ॥ ८११० ॥ अत्थज्जणदुबुद्धी दिन्ना देव्वेण मज्झ रुट्ठेण । किं देइ करचवेडं कयाइ कुविओ विहिविलासो ॥ ८१११ ॥ किविणाण चक्कवट्टी जाओ हं सव्वहा जओ न मए । दव्वव्वओ विरईओ सुपत्ततित्थेसु धणिणा वि ॥ ८११२ ॥ किं सायरतरणधणज्जणं विणा मज्झमासि न वहतं । जं मे गया सिरी जीवियं पि संदेहमणुपत्तं ॥ ८११३ ॥ ६३१ Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ६३२ सिरिअणंतजिणचरियं पत्ता वि पलइ च्चिय अपुन्नवंताण निच्छियं लच्छी । किमभग्गगिहल्लीणा होइ थिरा कामदुहधेणू ॥ ८११४ ॥ सुकुमालतणू पेम्मेक्कमंदिरं विमलसीलकलियंगी । कह सहिही मह कंता कयत्थणं रायभडजणियं ॥ ८११५ ॥ नूणं न मए रम्मो धम्मो विहिओ भवम्मि पुव्विल्ले । जमहं विडबणाडंबरं इमं इह भवे पत्तो ॥ ८११६ ॥ तत्थ गमणुस्सुओ वि हु गच्छामि कहं उवायहीणो हं । कहमक्कमचंकमणो पंगू वंछियपुरं जाइ || ८११७ । जइ जामि तत्थ लच्छि ता निवघत्थं पि नूण वालेमि । गुरुविसवेगविलुत्तं पि चेयणं मंतवाइ व्व ॥ ८११८ ॥ इय तस्स धणविणासा सुहियस्स निसा ठिया पहरसेसा । पुत्ताण गमणठाणाणि कहिय गच्छंति भारुंडा ॥ ८११९ ॥ जो चलिओ तन्नयरे पाए सो तस्स दढयरं लग्गो । उड्डीणो भारुंडो मणनयणजवेण जाइ नहे || ८१२० ॥ नवरं सो विहिविलसियवसेण विलुड्डिऊण तप्पाया । पडिओ समुद्दसलिले विमुहविही कुणइ नो किं वा ? || ८१२१ ॥ मज्जंतेणं तेणं जिणगुरुचरणाण सुमरियं सहसा । तस्साणुभावओ मरियमच्चुए सो सुरो जाओ ॥ ८१२२ ॥ कालेण चारणस्समणतग्गुरु तम्मि चेव कप्पम्मि । जाओ सुरो तहा पुव्वभवभवो ताण नेहो वि ॥ ८१२३ ॥ नाऊणं नियचवणं तेणुत्तो गुरुसुरो सुही एवं ।। पत्ते मणुयत्ते में पडिबोहेज्जसु तुमं मित्त ! || ८१२४ ॥ पडिवन्नं तेण तयं सो चविऊणमेत्थ वेयड्ढे । खयरिंदसुओ जाओ चलिओ य पकीलिओ एत्थ ॥ ८१२५ ॥ एत्थंतरे मए सुरसुहसंगविमोहओ बहुदिणेहिं । सरिया पुव्वभवदुगपडिबोहब्भत्थणा तुज्झ ॥ ८१२६ ॥ Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलसारकहा तो भडधडसिररणसरहरूवपभिईय विरईयं पच्छा । नियसाहावियरूवं तुह विब्भमकारणे कुमरे ! ।। ८१२७ ।। ता वच्छ ! अपत्थं पिव नराण रज्जं पि होइ असुहाय । गिम्हनईनीरं पिव झिज्जर अणुदिवसमवि आउं ॥ ८१२८ ॥ नरनयणाणिमिसत्तं व जोव्वणं नो कयाइ ठाइ थिरं । कलुससहावाओ सया बहुलनिसाओ व मयच्छीओ ॥ ८९२९ ॥ किं बहुणा ! सव्वं पि हु विणस्सरं भवसमुब्भवं वत्युं । सारयघणो व्व सोयामणि व्व जलबुब्बुओहो व्व ॥ ८१३० || ता वीयरायदेवं पडिवज्जसु तं सरायमुज्झित्ता । पाविय वंछियफलयं कप्पतरुं सरइ को निंबं ॥ ८१३१ ॥ निग्गंथम्म गुरुम्मि गुरुबुद्धिं कुणसु मा पुण सगंथे । पत्तम्मि सुयणसंगे मग्गइ किं कोइ खलगोठि ? ॥। ८१३२ ॥ मुत्तुमतत्ते अंगीकरेसु जीवाइयाइं तत्ताइं । को गुंजाओ गिण्es चइऊणमणग्घरयणनिहिं ॥ ८१३३ ॥ पडिबोहिउं तुममहं जाओ निरिणो नियम्मि पडिवन्ने । तं सुणिय जाइसरणेण नियभवे पेच्छिंय कुमारो ॥। ८१३४ ॥ जंपइ पणामपव्वं पडिवन्नं पावियं तए सामि ! । तं मोत्तुं नन्नो तिहुयणे वि परमोवयारी मे ॥ ८१३५ ।। इहि गिहिधम्ममहं काहमसत्तो म्हि सव्वविरईए । किं मयमुहगयमज्जं कज्जं काउं तरइ कलहो ? || ८१३६ ॥ इय तेणुत्ते तियसे सहस त्ति तिरोहिए गओ तेओ । अब्भंतरीए तरणिम्मि दुरवलोओ पयावो व्व ॥ ८१३७ ॥ संपत्तमित्तत्तो पत्तो नयरे गुरुक्कमे नमिउं । गिण्हइ गिहत्थधम्मं कल्लाणे को पमायपरो ? || ८१३८ ॥ रंकेण व रयणनिही वरवेज्जो वाहिण व्व संपत्तो । सद्धम्मो तेणं सो कयकिच्चं कलइ अप्पाणं ।। ८१३९ ॥ ६३३ Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ सिरिअणंतजिणचरियं उम्मत्तजोव्वणुद्दामकामकमणीयकायकंतीओ । नहयरनियंबिणीओ पुत्तो परिणाविओ पिउणा ॥ ८१४० ॥ तं अहिसिंचिय रज्जे पव्वज्जं गिण्हए खयरराया । इहलोइयपरलोइयसुहकज्जे उज्जया गरुया ॥ ८१४१ ॥ जलसारखयरचक्कीपरचक्कक्कमणकयमणुक्करिसो । पासइ पसरंतपहो नियरज्जसिरिं सुरिंदो व्व ॥ ८१४२ ॥ लीलाए वि परिचलिरम्मि जम्मि माणिक्कमयविमाणेहिं । गयणयलमलंकिज्जइ सया वि किंकिणिकलरवेहिं ॥ ८१४३ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे कुणइ संघबहुमाणं । जिणजत्ताओ पवत्तइ मंदरनंदीसराईसु ॥ ८१४४ ॥ इय सद्धम्मं रज्जस्सिरिं च परिपालिऊण बहुकालं । नामेण रयणसारं कुमरं रज्जे ठवेऊण ॥ ८१४५ ॥ नियजणयचरणमूले दिक्खं गहिऊण कयतवच्चरणो । पावियकेवलनाणो पिउणा सह सिद्धिमणुपत्तो ॥ ८१४६ ॥ विहिया जह जलपूया सिवसुहहेऊ इमस्स संजाया । तह जायइ अन्नस्स वि भत्तीए तीए ता जयह ॥ ८१४७ ॥ भणिओ जलपूयाए जलसारो संपयं पयंपेमि ।। निवधूवसुंदरकहं आयन्नह धूवपूयाए || ८१४८ ॥ (धूवपूयाए धूवसुंदरनिवकहा) अत्थि प्फुरियमहानीलमणिसिलासालफलिहकविसीसं । सिरकुसुमियवणपरिवेढियं व नयरं महासालं ॥ ८१४९ ॥ पडिमंदिरमणिभित्तिप्पडिबिंबियतरणिभासुरत्तेण ।। जं पेच्छिउं पि तीरइ न तस्स कत्तोरिपरिभूई ॥ ८१५० ॥ थिरमइपयावजियगुरुअहिमयरो जलनिहि व्व गंभीरो । चंदो व्व पवित्तकरो राया नयसुंदरोत्थि तहिं ॥ ८१५१ ॥ बहुसंखमंडलयग्गप्पहारपरजयपवित्तया कलिओ । जो एक्कमंडलयप्पहारपरजयपवित्तो वि ॥ ८१५२ ॥ Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३५ धूवसुंदरनिवकहा तस्संतेउरतरुणीपहुत्तपयमस्सिया पिया अस्थि ।। नामेण कम्मणा वि हु विजयवई सीलकुलभवणं ॥ ८१५३ ॥ डझंतागरुनवधूवसुंदरो धूवसुंदरो नाम । तीए स्थि हत्थिमंथरगई रईसोवमसरीरो ॥ ८१५४ ॥ समराईओ सुसाहु व्व समणधम्मो व्व जो सुहयमित्ती । सक्कसमलच्छिविलासो गयकरबाहो महुमहो व्व ॥ ८१५५ ॥ कुमरो कयाइ आरुहिय खंधरं गुरुकरेणुरायस्स ।। छत्ततिरोहियतरणीतरुणीकरचलिरसियचमरो ॥ ८१५६ ॥ पुरओ पयट्टहयघट्टचडियनियमित्तपत्तिसंजुत्तो । पविसिय सहाए पणमिय पिउणो पुरओ समुवविट्ठो ॥ ८१५७ ॥ , एत्थंतरम्मि रणवीरराइणो दारवालविन्नत्तं । दूओ दुयं नरिंदं नमिउं विन्नविउमारद्धो ॥ ८१५८ ॥ पहु ! पिहुपयावपावयपुलुट्ठपरिपंथिरसत्थसलहेण । गयउरपहुरणवीरेण पेसिओ तुह सयासे हं ॥ ८१५९ ॥ मह पहुणा तुह आणा पट्ठविया जह पयच्छ पइवरिसं । मह कर मह न पयच्छसि धरियधणू होसु ता समुहो ॥ ८१६० ॥ असरिससामत्थेण वि तेण तुमं नीइपुव्वयं भणिओ । को मुहुरोसहसज्झे रोए कडुओसहं देइ ? || ८१६१ ॥ ता हरिही रज्जं पि हु जइ न धरसि तस्स सासणं सीसे । हरिणाहिवम्मि हरिणावमाणणा नणु अणत्था य ॥ ८१६२ ॥ कहियं हियं तुह मए तं कुणसु नरिंद ! जं मणोभिमयं । सप्पुरिसपयडियं पि हु गिन्हति हियं न देव्वया ॥ ८१६३ ॥ छन्नो वि रायरोसो दूऊत्तस्सवणओ ठिओ पयडो । किं उद्धहिओ अग्गी जालिज्जंतो न पज्जलइ ? |॥ ८१६४ ॥ भिउडिघडणा निवइणो समं पि विसमत्तमुवगयं भालं । विजयद्धयस्स वत्थं व मंदपवमाणतरलणउ ।। ८१६५ ॥ Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ सिरिअणंतजिणचरियं भणियं निवेण रे दूय ! तुह पहू मह करं गहिउकामो । अहयं तु नियकरेणं रणे गहिस्सं सिरं तस्स ॥ ८१६६ ॥ तं पेसिय तुह पहुणा वि रोहिओ हं धुवं सनासाय । निद्दायत्तमइंदप्पडिबोहो किं सुहं देइ ? ॥ ८१६७ ॥ आणसु तं नियनाहं नाहं जं से सहिस्समवराहं । साहूणं सिंगारो अविणयसहणे न निवईणं ॥ ८१६८ ॥ दूएणुत्तं निव ! नियघरट्ठिओ जह वहसि भडवायं । तह जइ समरुच्छंगे वि ता तुमं चेव वीरवई ॥ ८१६९ ॥ रायाह जाहि आणेहि नियनिवं दूयदेससीमाए । जह रणनिहसो दंसइ पोरुसकणयुब्भवं वनं ॥ ८१७० ॥ इय जंपिय सम्माणिय विसज्जिओ राइणा गओ दूओ । अच्चंतं कुविया वि हु उज्झंति नरेसरा न नयं ॥ ८१७१ ॥ ताडाविया निवइणा रणभेरी भीरुभूरिभयजणणी । तो नयनिवेण कुमरेण पत्थिया समरगमणाणा ॥ ८१७२ ॥ नाऊण निबंधममच्चमंडली जंपिएण दिन्ना से । रणगमणाणा तो सो चलिओ चउरंगबलकलिओ ॥ ८१७३ ॥ गुरुगयघडासु तुरयावलीसु रणझणिरकिंकिणिरहेसु ।। रायाणो सामंता मंडलिया चडिय संचलिया ॥ ८१७४ ॥ परिकलयंता बहुआउहाई आउहणा य जोहोहा । कुमरं परिचारंता जंति पहे समरनिव्वहिया ॥ ८१७५ ॥ विरईय बहुप्पयाणयसयलंघियनिययदेससीमाए । पत्तो कुमरो रिउनरवई वि सबलो सदेसंतो ॥ ८१७६ ॥ उवभुत्तसपहुगरुयप्पसायनिक्कयुकयुज्जमा सुहडा । अन्भिडिया असमुच्छलियमच्छरुच्छाहसंजुत्ता ॥ ८१७७ ॥ हरिकरिरहचडिएहिं हयगयसंदणठिया पडिक्खलिया । पयचारिणो वि रुद्धा समच्छरं पायचारीहिं ॥ ८१७८ ॥ Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३७ धूवसुंदरनिवकहा वावल्ल-सेल्ल-भल्लय-भल्ली-नाराय-भरपहारेहिं । भिज्जता गुरुगयघडभडतुरया जंति जमगेहं ॥ ८१७९ ॥ अन्नोन्नं दंतेहिं तोडंति सिराई मुक्कहक्काई । निप्पसरअसिप्पहरे वियरंति य वग्गिरघडाइं ॥ ८१८० ॥ नवरंगमेहडंबरसियछत्तेहिं मही जहिं सहइ । रत्तुप्पलइंदीवरपुंडरियकयोवहार व्व ॥ ८१८१ ॥ खग्गाहयगयकुंभग्गनिग्गयाओ पडंतमुत्ताओ । रेहति खग्गपाणीय गहिरगुरुबिंदुणो व जहिं ॥ ८१८२ ॥ असिघायुच्छलियठियं गयस्स जस्स तिगे मुहं करिणो । सो सहइ तेण दुकरो व सचउकुंभो व्व दुमुहो व्व ॥ ८१८३ ॥ एयारिसे रउद्दे रणम्मि रणवीररायकुमरेहिं । पारद्धं पहरेउं परोप्परं करडिचडिएहिं ॥ ८१८४ ॥ लल्लक्कमुक्कहक्का छलप्पहारेहिं दो वि पहरंति । भिंदंति य अन्नोन्नं दंतप्पहरेहिं करिणो वि ॥ ८१८५ ॥ रिउकरिणा कुमरकरी निवाडिओ दसणपहरजज्जरिओ । पडिओ कुमरो गहिओ य वेरिकरिणा करग्गेण ॥ ८१८६ ॥ उच्छालिओ य गयणे निवडते निवसुए रिउनिवेण । धरिओ खग्गो उड्ढे जह भिज्जइ निवडिरो कुमरो ॥ ८१८७ ॥ निवडतेणं तेणं रिउखग्गं वंचिउं तओ झ त्ति । पयघाएणं पट्ठीए पहणिउं पाडिओ वेरी ॥ ८१८८ ॥ पडिओ सो करिपुरओ कोवमयंधेण तयणु तेणावि । दिन्नो पाओ सीसे दलियकवालो मओ राया ॥ ८१८९ ॥ दटुं वेरिविणासं असुरामरखेयरेहिं परिमुक्का । कुमरसिरम्मि निवडिया अलिउलमुहला कुसुमवुट्ठी ॥ ८१९० ॥ अहियम्मि हए गहिया कुमरेणमनग्घसिरी सयला । “को वा कुणइ पमायं लाहे अच्चब्भुयत्थस्स ?” ॥ ८१९१ ॥ Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ सिरिअणंतजिणचरियं मोत्तुं नियपहुपुत्तं रिउसामंता कुमारमणुसरिया । “लज्जंति जियंताणं सव्वे विरल च्चिय मयाणं” ॥ ८१९२ ॥ तो झत्ति समरवीरो रिउपुत्तो कुमरमस्सिओ सरणं । “समयाणुवत्तणं सइय नीई किं पुण ईयावाए” ॥ ८१९३ ॥ कुमरेणावि विइन्नो तप्पिट्ठीए निओ अभयहत्थो । “इयरम्मि वि निरणुसया किं पुण सरणागए गरुया ॥ ८१९४ ॥ काराविय निययाणं दिन्नं तस्सेव तज्जणयरज्जं । “असमाण च्चिय निच्चं कोवपसाया महंताण" || ८१९५ ॥ तेण वि सिंगारसिरिं भइणिं परिणाविओ नरिंदसुओ । “पच्चुवयरियव्वे नो कालविलंबं कुणइ गरुओं ॥ ८१९६ ॥ चलिओ सदेससमुहो रायंगरुहो जयज्जियजसोहो । “सिद्ध कज्जे को वा वसइ सयन्नो विएसम्मि ?” ॥ ८१९७ ॥ कुमरेण समं नवनरवई वि चलिओ सकीयबलकलिओ । “निय पहुपयसेव च्चिय मूलं लच्छीए नियमाओं ॥ ८१९८ ॥ आगच्छंतो कुमरो पत्तो वियडाडईए एक्काए । हिंताल-ताल-ताली-तमाल-वडसालकलियाए ॥ ८१९९ ॥ जा उत्तमसोहंजणविसालदक्खा मणोहरपवाला । पाडल-अहरा-पव्वय-पओहरा सहइ रमणि व्व ॥ ८२०० ॥ विलसंतसरलचित्ता गुरुहयमारा व साहुसेणि व्व । भव्वावलि व्व संजायपत्तहोही असोया जा || ८२०१ ॥ मज्झम्मि तीए वणसंडवेढियं गयणलग्गगुरुसिहरं । सप्पायारं पि भयावहारयं नियइ जिणभवणं ॥ ८२०२ ॥ रेहतरूवदारं नरिंदमिव पत्तमूलरेहं जं । संपूरियसुयणासं लसिरामलसालसहियं च ॥ ८२०३ ॥ सव्वत्तो अनिलचला तमाल-कंकेल्लिसाहिणो जस्स । जिणरायभयुब्भंता रागद्दोस व्व कंपंति ॥ ८२०४ ॥ Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूवसुंदरनिवकहा ६३९ दण देवमंदिरमावासइ तत्थ निवसुओ सबलो । तम्मि पविट्ठो च्चिय झ त्ति मुच्छिओ पेच्छिऊण जिणं ॥ ८२०५ ॥ सिसिरकिरिया विरयणा संपाविय चेयणो ठिओ सत्थो । आपुच्छिओ य मुच्छाए कारणं मंतिवग्गेण ॥ ८२०६ ॥ जपइ कुमरो मह देवदंसणा जाइसरणमुप्पन्नं । सच्चवियं तेण भवदुगमायन्नह तयं तुब्भे ॥ ८२०७ ॥ पत्तहरराइयम्मि सार व्व आरामरम्मगामम्मि । साहससारो नामेण आसि एगो तुरयचोरो ॥ ८२०८ ॥ गंतूण दूरदेसे अत्थत्थी हरइ गुरुरयतुरंगे । विक्किणइ य दूरतरे को वा लुद्धाण मज्जाया" ॥ ८२०९ ॥ निय भोगम्मि निमुंजइ दविणं वियरई य दीणबंदीणं । "मोत्तूण चागभोगे नन्नं लच्छिफलं अहवा ?” ॥ ८२१० ॥ कइया वि कडीतडबद्धखग्गधेणू तुरंगहरणत्थं । पत्तो सुवासनामे गामे दिणपच्छिमे जामे ॥ ८२११ ॥ मणपवणजवे विलसंतलक्खणे तेयतरलया कलिए ।। पेच्छइ अतुच्छदुव्वादलाई चरमाणए तुरए ॥ ८२१२ ॥ तो सो चिंतइ एयाण मज्झओ जइ हरामि एक्कं पि । दालिद्दस्साजम्मं ता देमि जलंजलिं नूणं ॥ ८२१३ ॥ इय चिंतियप्पओसे लग्गो मग्गम्मि सो तुरंगाण । "जो अक्कज्जे पत्तो सपमायं कुणइ किं तम्मि ?” ॥ ८२१४ ॥ गामाहिवस्स गेहे गया हया सूरतेयनामस्स ।। दारे च्चिय सो रहिओ “परघरमाविसइ को सहसा ?" || ८२१५ ॥ पविसंतगोउलुच्छलियरयभरादिस्स देहजट्ठी सो । तम्मि पविट्ठो “अप्पं न चोरजारा पयासंति” ॥ ८२१६ ॥ मं पेच्छिही महीए को वि त्ति विचिंतिउं वडे चडिओ । "जह होइ अप्परक्खा दक्खा तह संपयट्टति ॥ ८२१७ ॥ Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० सिरिअणंतजिणचरियं विण संठिएण दिट्ठी पक्खित्ता तेण गेहमज्झम्मि । दिट्ठा य दीवयुज्जोयपयडिया अंगणा एगा ॥ ८२१८ ॥ हरिणिंदखाममज्झा हरिणकमुही य हरिणसमनयणी । विद्दुमअहरा पीवरपओहरा कणयवन्नधरा ॥ ८२१९ ॥ तं पेच्छिऊणमस्सावहारओ चिंतए कयत्थो सो । नियरूवसिरीअहरीकयस्सिरी जस्सिमा भज्जा ॥ ८२२० ॥ एत्थंतरम्मि दुद्धासु सयलसुरहीसु सेरहीसुं च । बद्धेसु तुरंगेसुं जणपयारे ठिए विरले ॥ ८२२१ ॥ परिवालंते अस्सावहारिपुरिसम्मि हयहरणसमयं । मंदं मंदं गेहाओ निग्गया सा मयंकमुही ॥ ८२२२ ॥ तं दटुं संचरिओ सो झ त्ति वरंडयोवरिमसाहं । आगच्छंतिं ता नियइ वडतले दारमग्गेण ॥ ८२२३ ॥ संपत्ता वडतलवियडनियडविडभडसपासे । तीए अवलोईओ सो नववयदिढदेहसंठाणो ॥ ८२२४ ॥ मयणाहिमासलामोयमणहरो रईयरम्मसिंगारो । पडिपीडियतूणीरो करकलियपयंडकोदंडो ॥ ८२२५ ॥ दठूण तयं उक्कंठियाए तक्कंठठवियबाहाए । आलिंगिऊण भणियं किं सुहय ! तुब्भेत्तिया वेला || ८२२६ ॥ सो जंपइ सुयणु ! जणप्पयारपसमं ठिओम्हि पालंतो । “अह वेरिसकज्जरओ पयडइ किं को वि अत्ताणं ?” ॥ ८२२७ ॥ तुह मोहमोहियमई मयच्छि ! अहमागओ गुरुरएण ।। “लीलावईविलासावहियमणाणं कुओ थिरया ॥ ८२२८ ॥ गयगमणि ! तुझं कज्जे मुत्तुं कंतं सिरिं च इह पत्तो । “अहवा तं सव्वस्सं जम्मि मणो निव्वुई वहइ ॥ ८२२९ ॥ सा आह कहं तुमए नाओ अपयासिओ वि संकेओ । तेणुत्तं बिंबाहरि ! आयन्नसु तुज्झ साहेमि ॥ ८२३० ॥ Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूवसुंदरनिवकहा गुरुरयतुरयं आरुहिय आग ओहमिह अज्ज कज्जेण । सच्चविओ तुमए वि हु वियसियकुवलयदलच्छीए ॥। ८२३१ ॥ हयकीलणच्छलेणं मयच्छि ! तं पेच्छिया मए सुइरं । “ तुह स्वस्स न तित्ती पत्ता जा पिएण व जलस्स" ॥ ८२३२ ॥ असमस्सिणेह सव्वस्स रसवसुप्फुल्लनयणकमलेहिं । अवलोईओ तए वि हु अहमणिमिसविब्भमधराए || ८२३३ ॥ नाओ तुहाणुराओ मए तए वि हु ममाणुराओ वि । “नयणेहिं चिय नज्जइ अहवा हिययट्ठिओ भावों" ॥ ८२३४ ॥ एत्थंतरम्मि तुमए धम्मिल्लो छोडिऊण कुसुमाई । खित्ताइं अह पएसे अमिलाणाइं पि तव्वेलं ॥ ८२३५ ॥ मं पेच्छिरीए उव्वेल्लिऊण केसेहिं विरइया वेणी । आमीलियनयणाइं मं पेच्छिय तं गया स हिं ॥। ८२३६ ॥ नाओ मए वि भावो जह मह दिन्नो इमाए संकेओ । कह मन्नह अमिलाणाई एत्थ कुसुमाई खित्ताई || ८२३७ ॥ केसेहिं निसितमम्मि तह नयणनिमीलणेण सुत्तजणे । अहमाहूओ त्ति वियड्ढयाए नायं मए जेण ॥ ८२३८ ॥ "वंकभणियाई कत्तो ? कत्तो अद्धच्छिपेच्छियाइं च ? ऊससियं पि मुणिज्जइ छइल्लजणसंकुले गामे ।। ८२३९ ।। ता रंभोरु ! तुहत्थे एत्थ अहं आगओ तुह विओगा । पज्जलियजलणजालाजलिरंगो इव दिणं गमिउं ॥ ८२४० ॥ सा जंपइ चउजामो वि सामि ! मह वासरो सहस जामो । तुह विरहविहुरयुम्मायजायतावाए संजाओ ॥ ८२४१ ॥ अमयमओ पिय तं जं तुह मिलणो मे गओ विरहतावो । “किं सिसिरकिरणजोन्हाजोगो घम्मं न पसमेइ" ? || ८२४२ ॥ इय रम्मपेम्मसव्वस्समुव्वहंतेहिं तेहिं तत्थेव । रइया रइकीलाओल्लसंतमयमयणमत्तेहिं ॥ ८२४३ ॥ ६४१ Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪૨ सिरिअणंतजिणचरियं तव्विरइयरयविन्नाणविरयणाहरियहिययवावारा । सा आह कुणसु तह नाह ! जह सया होइ णे जोगो ॥ ८२४४ ॥ फुट्टइ हिययं दज्झइ सरीरयं जाइ जीवियव्वं पि । मह तुह विरहे ताहमवि सहतए आगमिस्सामि ॥ ८२४५ ॥ तन्नेहमोहिओ सो जंपइ ता चलसु तयणु तीयुत्तं । गहिउँ निययाभरणं इन्हिं पि समागमिस्सामि ॥ ८२४६ ॥ ता अप्पसु नियरियं जह पेडयं दारिठं तस्साणेमि । जायइ खडक्खडा तालयस्स उग्घाडणे जेण ॥ ८२४७ ॥ तेणावि खग्गधेणू समप्पिया गहिय तं गया सा वि । नवरं महईए वेलाए आगया तस्स पासम्मि ॥ ८२४८ ॥ कूवयकंठनिविट्ठस्स झ त्ति समप्पिया छुरिया । “सिद्धे कज्जे को वा परवत्थु धरइ सकरम्मि ॥ ८२४९ ॥ सह अप्पणा इमं पि पहु दिन्नं तुह समग्गमाभरणं । इय जंपिरी तमप्पइ “किमदेयं वा सिणेहस्स ॥ ८२५० ॥ संगोवियं समग्गं तेण वि तं बंधिऊण परिहाणे । "इयरं पि सुग्गहीयं कुणंति दक्खा किमु न दव्वं ॥ ८२५१ ॥ भणियं च तीए पिययम ! तुह कज्जे मारिऊण दइयं पि । इह पत्त त्ति पयासइ पयई तुच्छत्तमित्थीणं ॥ ८२५२ ॥ तं सोउं सो सुहडो जंपइ एयं तए कयमजुतं । जं सो हओ " न गरुया पावपवत्ता वि निक्करुणा" || ८२५३ ॥ “पररमणीपरिभोगो एक्कं बीयं तु तीए अवहरणं । तईयं धणावहारो तुरीयमविणासिनरहणणं ॥ ८२५४ ॥ जइ हं नागच्छंतो ता हुतं एक्कमवि न पावं मे । आगंतुं चत्तारि वि पावाई मए कयाई पिए ! ॥ ८२५५ ॥ एक्केक्कं पि समत्थं दाणे नेरईयदारुणदुहस्स । चउपावभरक्कंतो कहिं हयासो गमिस्समहं ? ॥ ८२५६ ॥ Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४३ पप सा । धूवसुंदरनिवकहा नंदंतु नरा ते च्चिय चिरं न चिंता वि जाण संजाया । पररमणिविसयविसया सीलालंकारकलियाण ॥ ८२५७ ॥. हा हा हयविहिविहिओ हमिह महापावमंदिरं तुमए । कहमहमत्तं पत्ता एवंविहिपावरिंछोली ॥ ८२५८ ॥ गब्भाओ किन्न गलिओ ! गिलिओ बालो न किं बिडालीए ? । जमहमकज्जपरंपरपत्तं जाओ अणज्जमई ॥ ८२५९ ॥ एवं वेरग्गवसा वागरमाणं निसामिय तयं सा । चिंतइ नूण विरत्तो एसो एरिससमुल्लावा ॥ ८२६० ॥ ता मह सवित्तिपुत्ताण गोसमयम्मि साहिही नूणं । ते मं कयत्थिऊणं दुम्मरणेणं हणिस्संति ॥ ८२६१ ॥ ता किं इम्मिणा मह रक्खिएण निय वेरिण त्ति चिंतेइ । खणरायविरायंतं पायं पयई महिलियाण” ॥ ८२६२ ॥ पहु ! मह खमसु त्ति पयंपिऊण खामणमिसेण तप्पाए । उप्पाडिऊण अयडे झडत्ति सुहडं खिवइ पावा ॥ ८२६३ ॥ तिव्वाणुराइणी विय संझ व्व विराइणी दुयं जाया । खणरायविरायत्ते महिलाणऽहवा किमच्छरियं ?” ॥ ८२६४ ॥ दठूण भडं अयडे पक्खित्तं हयहरो वि चिंतेइ । धिद्धी धिरत्थु इत्थीणऽणत्थसत्थेक्कमूलाण ॥ ८२६५ ॥ उम्मीलिओ वि दूरं इमम्मि सुहडे इमाए अणुराओ । सहस च्चिय प्पणट्ठो पवणाहयसरयजलओ व्व ॥ ८२६६ ॥ जस्संग अप्पिज्जइ दिज्जइ दुद्देयसव्वदव्वं पि । सो वि हु एवं हम्मइ "अहो महेलाण मूढत्तं ॥ ८२६७ ॥ पंचविहं विसयसुहं उवभुत्तं जेण सह सिणेहेण । तव्वेलं चिय सो वि हु खित्तो पावाए कूवम्मि ॥ ८२६८ ॥ दठूण कूडकवडाइं नूण महिलाण पुव्वरायाणो । मुत्तं तणं व ताओ झ त्ति तवच्चरणमकरिंसु ॥ ८२६९ ॥ Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ सिरिअणंतजिणचरियं पवंगि व्व चलसहावा महिला लूय व्व जलियसंतावा । उप्पाइयवसणसया कुविंदसाल व्व पडिहाइ ॥ ८२७० ॥ सुंदरवन्ना आमोयमणहरा सुहरसाय भुज्जंती ।। महिला किंपागफलावलि व्व उप्पायइ अणत्थं ॥ ८२७१ ।। 'सूरो वि कयत्थिज्जइ खंडिज्जइ सव्वया वि राया वि । राहुसिरीए इव महिलियाए कलुसस्सहावाए ॥ ८२७२ ॥ अंतोहुत्तम्मीलियपकामरसपूरिया परिब्भमिरी । गयणं व कुलं मइलइ महिला नव मेहमाल व्व ॥ ८२७३ ॥ “दुईता कुडिलगई परमपयविवज्जिया सुइविहूणा । कस्स न भयमुप्पायइ नियंबिणी सप्पिणि व्व सया ॥ ८२७४ ॥ कज्जम्मि जाण कीरइ धणज्जणं चोरियाई काऊण । ताणेरिसं सरूवं ता “पज्जतं ममित्थीहि ॥ ८२७५ ॥ असरिसवेरग्गविभावणावसुल्लसियगुरुतरविवेए । अस्सावहारपुरिसे एवं परिभावयतम्मि ॥ ८२७६ ॥ पविसिय गिहम्मि गहिऊण हलकुसिं पइगिहे खणइ खत्तं । “किमकज्जं वा वज्जियमज्जायाणं महिलियाण ॥ ८२७७ ॥ गंतुं मज्जे धाहावए जहा धाह धाह धाह ति । पविसिय चोरेणं ठक्कुरो हओ नीययमाभरणं ॥ ८२७८ ॥ एतं सोऊण सहसा ससंभमासाउहा सपाइक्का । ठक्कुरपुत्ता परिवेढयंति गिहमुग्गहक्करवा ॥ ८२७९ ॥ तुरयकुडप्पमुहाई ठाणाई नियंति के वि दीवकरा । अन्ने उ य निसंतिय चोरपयं एइयनिउणनरा ॥ ८२८० ॥ दळूण गिहावेढं हयावहारी वि चिंतए एवं । मह संकडमावडियं छुट्टिस्सं ता कहं इण्हि ? ॥ ८२८१ ॥ न तरेमि वि णिग्गंतुं भडपडलावेढियाओ भवणाओ । दुक्कम्मभरावरिओ नरयठाणाओ जीवो व्व ॥ ८२८२ ॥ Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४५ धूवसुंदरनिवकहा जइ देमि गिहाबाहिं निग्गयसाहाए झ त्ति झंपमहं । ता वियडे अयडम्मि पडामि सुहडो व्व निमंतं ॥ ८२८३ ॥ नूणं मह हयहरणप्पवेसभवपावपडलविडविस्स । इह मरणेणं कुसुमं फलं तु होही नरयपडणं ॥ ८२८४ ॥ मं दट्ठमिमे गोसो चोरो त्ति विचिंतिउं हणिस्संति । ता तमतिरोहिओ वडठिओ वि अप्पं पयासेमि ॥ ८२८५ ॥ इय चिंतिय तेणुत्ता ते तुम्हाणं कहेमि सव् पि ।। वुत्तंतं मं पच्छा मुंचिज्जह वा हणेज्जाह ॥ ८२८६ ॥ तं सोउं तो हुत्तं इह ट्ठिओ वि हु कहेसु तो तेण । कहिओ आमूलाओ नियओ तीए य वुत्तंतो || ८२८७ ॥ भणियं च जइ न पत्तियह मज्झ ता नियह कुवयस्संतो । सुहडं धणुतूणीराभरणजुयं संपयं चेव ॥ ८२८८ ॥ तं सोउं पक्खित्तो तेहिं वरित्ताए दीवओ कूवे ।। सच्चविओ य तरंतो जह कहियगुणो मओ सुहडो ॥ ८२८९ ॥ कूवाओ तमायड्ढिय गहिऊणाभरणमुज्झयं मडयं । “निज्जीवेण वि कज्जं जेण तयं धिप्पए नन्नं ॥ ८२९० ॥ एय विरहं न सत्ता सहिउं न विचिंतिउं च पुत्तेहिं । लहुमाया वि हु बद्धा सद्धिं मडएण कुविएहिं ॥ ८२९१ ॥ तं पि विणिग्गहणिज्जो चोरो त्ति पयंपिओ हयहरो वि । पावंति चोरजारा जइ वा किं कत्थई पूयं ॥ ८२९२ ॥ नवरं तुमए सव्वं पि साहियं तेणं तं विमुक्को सि । उवयारओ सदोसो वि मुच्चए जेणिमा नीई ॥ ८२९३ ॥ मडयं चडावियं सूलियाए निद्धाडिया य लहुजणणी । रोसो न मयरिउम्मि वि गच्छइ किं पुण जियंतम्मि ?” ॥ ८२९४ ॥ धरिऊण सबहुमाणं दिणत्तिगं अस्सहरयं पुरिसं पि । पिउमयकिच्चं काउं सम्माणेउं विसज्जंति ॥ ८२९५ ॥ Jah Education International Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ सिरिअणंतजिणचरियं अप्पं संपइ जायं व जममुहा निग्गयं व मन्नंतो । वच्चंतो नियगामे पत्तो सो इह अरन्नम्मि ॥ ८२९६ ॥ पेच्छइ उस्सग्गठियं मुणिमेगमुत्तिमंतमिव धम्मं । पच्चक्खं पसमं पिव संकेयम्मि व मुणिगुणाण ॥ ८२९७ ॥ पुव्वुप्पन्नविराओ अवलोइय सो मुणिं ठिओ हिट्ठो । दारिद्दभरक्कंतनरो व्व संपत्तरयणनिही ॥ ८२९८ ॥ तो तं पणमइ तच्चलणकमलमिलमाणभालफलओ सो । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ८२९९ ॥ आबद्धपाणिपउमो पुरओ उवविसिय जंपए एवं । रन्ने अमाणुसे पहु ! किं तवह तवं ति मह कहह ? ॥ ८३०० ।। पारिओ काउस्सग्गो उवविसिउं तस्स साहए साहू । . खेयरमुणी महायस ! अहमिह आयाविउं पत्तो ॥ ८३०१ ॥ जेणमिह तिरयविरईय कयत्थणा हणइ मज्झ दुक्कम्मं । वेज्जोवइट्ठपरमोसहं व रोयं समग्गं पि ॥ ८३०२ ॥ तेणुत्तं पुहु ! मह कहह किं पि धम्मं गिहत्थजणजोग्गं । 'तीरइ निव्वाहेउं जो सो उक्खिप्पए भारों ॥ ८३०३ ॥ आह मुणी गिहिणो वि हु जायइ धम्मो जिणिंदपूयाए । सा होइ अट्ठभेया अट्ठमयट्ठाणनिम्महणी ॥ ८३०४ ॥ नेवज्ज-धूव-दीवय-अक्खय-फल-सलिल-वासकुसुमेहिं । पूयंति जे जिणं ते पुज्जा तिजयस्स वि हवंति ॥ ८३०५ ॥ कीरंती एक्केक्का वि हरइ गुरुरोग-सोगदोगच्चे । किं पुण सव्वाओ वि हु विरइज्जती उ भत्तीए ॥ ८३०६ ॥ सव्वाओ वि असत्तो काउं जइ कुणइ धूवपूयं पि । ता धूवेण समं सो धुवं नियं महइ दुक्कम्मं ॥ ८३०७ ॥ डझंतधूवभवधूमधूविओ इव सुयंधसव्वंगो । जायइ भवंतस्स वि हु जीवो उक्खिविय जिणधूवो ॥ ८३०८ ॥ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूवसुंदरनिवकहा तं सोउं सो जंपइ पहु ! नूण महं कयत्थ मरणंतव्वसणविणिग्गएण तं जेण संपत्तो ॥ ८३०९ ॥ । इय भणिय पणमिय मुणी लग्गो सो निययगाममग्गम्मि | गच्छंतो संपत्तो गामे सिरिसारनामम्मि ॥ ८३१० ॥ तम्मि तवणीयकलसं नहग्गलग्गं जिणालयं नियइ । सिंगग्गसंगिनवतरणिमंडलं उदयसेलं व ॥ ८३११|| तं दठ्ठे सो चिंतइ दिणदुगसंबलयदविणकीण | धूवेण जिणं पूइय पुन्नप्पसरं समज्जेमि ॥। ८३१२ ।। इय परिभाविय गहिउं कप्पूरागरुविमिस्सियं धूवं । पत्तो जिणालए पेच्छिउं जिणं हरसिओ दूरं ॥ ८३१३ || उल्लसिरमणो संदंतलोयणो वित्थरंतरोमंचो । पसरंतभत्तिभावो धूवं उक्खिवइ जगगुरुणो ॥ ८३१४ ॥ तयणु मणुयत्तनियजम्मजीवियव्वाण सहलयं कलिउं । वारं वारं भूमिलियभालमभिनमइ जिणनाहं ॥। ८३१५ ।। संचलिओ नियगामे पत्तो य तहिं पमुक्कअन्नाओ । तम्मि वि भवम्मि रिद्धी जाया से धम्ममाहप्पा || ८३१६ ॥ संपत्तआउअंतो जाओ अमरो सणकुमारे सो । नायं च धूवपूयाए अत्तणो तेण अमरत्तं ॥ ८३१७ ॥ परिभावई य जहा हं करेमि जिणमंदिरं जमिक्खेडं । जायइ भवंतरे मे बोहि त्ति विचिंतिउं तेण ॥ ८३१८ ॥ रइयं जुगाइजिणजुयमुत्तंगं जिणहरं कणयकलसं । दुट्ठदमयाभिहसुरो आइट्ठो तस्स रक्खत्थं ॥ ८३१९ ॥ जिणचवण - जम्म - दिक्खा - केवल - निव्वाणगमणदिवसेसु । समगममरेसरेणं भत्तीए महूसवे कुणइ || ८३२० ॥ इयसमुवज्जियसुकओ भुत्तं सुरलोयसंभवसुहाई । चविय तओ इह जाओ एसो हं तुम्ह पच्चक्खो || ८३२१ ॥ ६४७ Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ - सिरिअणंतजिणचरियं ता एयं जिणमंदिरमवलोईयसुमरिया मए जाई ।। जह जिणधूवक्खेवो जाओ कल्लाणहेऊ मे || ८३२२ ॥ तं सोऊणं मंडलियमंतिणो बिंति जयइ जिणधम्मो । अप्पस्स वि जस्स कयस्स हुंति महईओ रिद्धीउ ॥ ८३२३ ॥ तयणु कुमरेण रिसहस्स सामिणो भत्तिपुलयकलिएण । पणमिय विहिओ अट्ठाहियामहो गरुयरिद्धीए ॥ ८३२४ ॥ ता चउरंगचमूयसंचाराउरियक्खमावीढो । अब्भंलिहधवलहरे संपत्तो नियपुरे कुमरो || ८३२५ ॥ उसियसियद्धयोहे निम्मियमंचाइमंचकयसोहे । पविसइ पुरम्मि कुमरो विलसिए सिंगारजियअमरो ॥ ८३२६ ॥ गंतुं सहाए पणओ पिउणो पयसयदलं तओ तेण । आलिंगिऊण कुसलप्पउत्तिमापुच्छिओ पुत्तो ॥ ८३२७ ॥ सो आह ताय ! मह तुह पसायसुहियस्स सव्वया कुसलं । इय जंपिय उवणीया पिओ पुरओ तेण सत्तुसिरी || ८३२८ ॥ पणओ सत्तुसुओ वि हु तस्स कओ राइणा वि सम्माणो । “पणयम्मि वच्छल च्चिय पहुणो सत्तुम्मि वि निए व्व ॥ ८३२९ ॥ पणयाए बहुयाए भवपुन्नवइ त्ति जंपियं रन्ना ।। “भणइ परे वि हियं चिय गुरुओ किं माणुसे न निए" ॥ ८३३० ॥ कइवयदिणावसाणे रज्जम्मि निवेसिओं सुओ रन्ना । “पुत्तं मुत्तुं नन्नस्स होइ सव्वस्स सामित्तं ॥ ८३३१ ॥ सुविहियसूरिसयासे गहिया दिक्खा निवेण रिद्धीए । "इहलोईयं जहा तह परभवकज्जं पि कुणइ गुरू" ॥ ८३३२ ॥ चरिय तवं उप्पाडिय केवलनाणं निवो सिवं पत्तो । "किमसज्झं वा दुक्करतवस्स भावेण विहियस्स” || ८३३३ ॥ नवनिवई वि नयपरो पयाओ पालइ अभिद्दवइ दुढे । वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे मन्नए मित्ते ॥ ८३३४ ॥ Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूवसुंदरनिवकहा ६४९ साहम्मियवच्छल्लं कुणइ पयट्टावए अमारीओ । किं बहुणा तित्थसमुन्नइकरं आगंतुमवणिवइणो तं ॥ ८३३५ ॥ तप्पुन्नपगरिसागरिसिय व्व आगंतुमवणिवइणो तं । सेवंति सव्वदेसुब्भवा वि गुरुभत्तिराएण ॥ ८३३६ ॥ तेणावलोईओ जो मन्नइ सो अप्पममयसित्तं व । आभासिओ पुणो तिहुयणेक्करज्जाहिसित्तं व ॥ ८३३७ ॥ एवं बहुकालं पालिऊणमकलंकरज्जमवणिवई । कुमरं पयावसाराभिहं ठवेऊण रज्जम्मि ॥ ८३३८ ॥ निग्गंथगुरुसमीवे दिक्खं घेत्तुं कयुग्गतवचरणो । उप्पन्नविमलनाणो संपत्तो मोक्खमक्खेवा || ८३३९ ॥ जह धूवब्भवपूया जाया एयस्स मोक्खसोक्खकए । तह अन्नस्स वि जायइ ता भव्वा तीए उज्जमह ॥ ८३४० ॥ एसो हु धूवपूयाए साहिओ धूवसुंदरो इन्हेिं । भुवणप्पईवनिवई दीवयपूयाए निसुणेह ॥ ८३४१ ॥ (दीवयपूयाए भुवणप्पईवनिवकहा) उल्लसिय रायसिरिकरणसुंदरं ललियविलयपरिकलियं । अत्थि सुरग्गामजुयं गीयं पिव भुवणविजयपुरं ॥ ८३४२ ॥ कलहसियरायभवणं कलहसिय विरायमाणसुयणं जं । कलहरियरहियसलिलं कलहरियतत्तप्पहीणजणं ॥ ८३४३ ॥ पूरिय पउरपयासो सव्वुत्तमनिद्धपत्तआहारो । दीवो व्व महीनाहो कुलप्पईवो त्ति तत्थत्थि ॥ ८३४४ ॥ सरहो वि विउलवच्छो वि दीहवाहो वि विलसिरगओ वि । सारंगो वि न तिरिओ उत्तमपुरिसो च्चिय सया जो ॥ ८३४५ ॥ गोरी विअ भीमपिया साएयतणया वि अजडसयणसिया । तस्सत्थि धारिणिपिया सइ वि जाणिंदपियभोया ॥ ८३४६ ॥ Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० तीए समत्थि परिपंथिहत्थिकुलदलणकेसरिकिसोरो । भुवणप्पईवनामो कुमरो गिरिसो व्व गुरुकित्ती ॥ ८३४७ ॥ अप्पुव्वउदयजुत्तो अब्भसियकलोयबीयचंदो व्व । जो नवरवि व्व पुव्वाभासीजणजयसुहकरो य ॥ ८३४८ ॥ समवयवेसालंकारसारसामंतमंतिपुत्तेहिं । सद्धिं बंधुरकीलं कुव्वंतो गमइ कालं सो || ८३४९ ॥ कईया वि कसिणअट्ठमिनिसीहसमयम्मि जग्गए जाव । ता आयन्नइ आउज्ज - तालगीयस्सरं कुमरो ।। ८३५० ॥ तस्सरमणुसरमाणं दिठि पक्खिवर मुक्कपल्लंको । नियई य दुवालसभुयं पेच्छणयपरं नरं तिसिरं ।। ८३५१ । दोहिं करेहिं पडहं दोहिं मुइंगं च दोहिं तालाउं । वीणं दोहिं वंसं च दोहिं हत्थेहिं वायंतं ॥ ८३५२ ॥ नट्टवसुवेल्लिरभुयकरजुयविन्नाससंचरं तत्थ । घणमणिकुंडलमंडियमहिलाएक्काणणसणाहं ॥ ८३५३ ॥ बीएण मणोमयरायवासणावसविमुक्कफुक्केण । रमणीमुहेण वंसं वायंतेणं विलसमाणं ॥ ८३५४ ॥ तइएण महुरसरगाममुच्छणाजणियसवणजयसोक्खं । उग्गायंतं गीयं मज्झट्ठियपुरिसवयणेण ॥। ८३५५ ॥ ( कुलयं ) इय अच्चब्भुयअद्दिट्ठपुव्वपेच्छणयपेच्छणुत्तालो । वंचित्तु पत्ते अंगरक्खभडचेडपमुहनरे ॥ ८३५६ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं नवमेहडंबरं वरपावरणा लक्खियंगसंठाणो । करयलकयकरवालो वासहरा निग्गओ कुमरो ।। ८३५७ ।। (जुयलं) तं पेच्छंतो गच्छइ उच्छलियअतुच्छकोउउक्करिसो । चिंतइ य अहो एयं भुवणत्तयवहिभवं किंपि ॥ ८३५८ ॥ जं कुच्चकलियमेगं नरस्स मुहमित्थियाण पुण दोन्नि । गेवेज्जयमणिकुंडलनालट्ठियतिलयकलियाई ।। ८३५९ ।। Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५१ भुवनपईवनिवकहा सुव्वंति इह भविस्सा सत्थेसु दसाणण त्ति मुंडा दो । नवरं ते पुरिस च्चिय एसो नरनारिरूवो उ ॥ ८३६० ॥ इय चिंतंतो पत्तो रायंगरुहो वि तस्समीवम्मि । सो वि हु पच्छाहुत्तं गच्छइ करणक्कमच्छउमा ॥ ८३६१ ॥ थोवप्पसरप्पउमावसरणकरणक्कमे कुणंतेण । तेणाहियहियहियओ दूरं नीओ नरिंदसुओ ॥ ८३६२ ॥ तइंसिय अवरावरविन्नाणालोयवियलियविवेओ । न मुणइ नयरं दूरे न गणइ मग्गस्समलवं पि ॥ ८३६३ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा सो नट्टनरो सरूवमुझेउं । उक्खायनिसायअसी जमो व्व जाओ भडो कुद्धो ॥ ८३६४ ॥ जंपइ रे दुट्ठाहम कुमार ! तं सरसु देवयं इठें । मा भणसु पमत्तो हं विणासिओ केणइ छलेण॥ ८३६५ ॥ तं निसुणिउं कुमारो चिंतइ सुरअसुरनहयरन्नयरो । को वि इमो मह वेरीछलेण जेणाणिओ हमिह ॥ ८३६६ ॥ वीसासिऊणमेवं जो जायइ घायगो न मोत्तव्वो ।। हंतव्वो चिय भन्नइ सो नूणं नीइसत्थेसु ॥ ८३६७ ॥ इय चिंतिय आयड्ढियखग्गो तं हक्कए निवसुओ वि । “निक्किरिओ इयरो वि हु रूसइ किं खत्तिओ नेव ॥ ८३६८ ॥ दोन्नि वि वग्गणकरणक्कमन्भमणुब्भामियासिदुद्धरिसा । निप्पसरपहरपरा जुज्झंति समच्छरुक्करिसा || ८३६९ ॥ दंसेउं सिरघायं मोत्तुं पाएसु दिति मुनईओ ।। निवसिय उच्छलियावसरिडं च दोन्नि वि य वंचंति ॥ ८३७० ॥ नेगोवि जयं पावइ दोन्ह वि सत्थस्समप्पवीणत्ता । न समिज्जंति य जंते निच्चं चिय विजियसत्थसमा || ८३७१ ॥ अन्नोन्नखग्गसंघट्टभग्गधारंगखुडियअसिफलया । करकयतिक्खग्गखग्गधेणुणो ते पुणो भिडिया ॥ ८३७२ ॥ Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ सिरिअणंतजिणचरियं मुक्कासिधेणुघायं वंचइ करणक्कमेण कुमरो सो । रोसेण कुमरछुरियापहारलक्खं हरइ सो वि ॥ ८३७३ ॥ अवरोप्परवामकरप्पहारपडियासिधेणुणो दो वि । जुझंति निजुज्झेणं केसग्गहबाहुबंधेहिं ॥ ८३७४ ॥ निद्दयकेसग्गहबाहुबंधकरघायजज्जरिज्जंता । निवडंति दड त्ति झड त्ति उट्ठिउं पुणरवि भिडंति ॥ ८३७५ ॥ निठुरकुमारपायप्पहारवच्छयलताडिओ सुहडो । पडिओ धस त्ति घुम्मंतनेत्तओ भूमिवट्ठम्मि ॥ ८३७६ ॥ तो तब्भुयजुओवरिं दाउं नियपयदुगं धरियकेसो । घेत्तुं धराए छुरियं जा तस्स सिरं लुणइ कुमरो ॥ ८३७७ ॥ ता तेण नमो अरिहंताणं इच्चाई पंच परमेट्ठी । सरिया असारसंसारसायरुत्तारणतरि व्व ॥ ८३७८ ॥ तं सोउं हा हा हा ! साहिम्मियमारणे महापावं । काऊण नूण नरए उप्पज्जतो दुहोहे हं ॥ ८३७९ ॥ इय जंपिरेण खामिय मुक्को सहस त्ति निवसुएण भडो । “अइकुवियाण वि करुणा जायइ जइ वा कुलीणाण ॥ ८३८० ॥ सो चिंतइ नररयणं एसो जमणेण मारणपरो वि । मुक्को वेरी वि अहं गुरूण गणणा न रिउकीडे ॥ ८३८१ ॥ होइ न सिरम्मि सिंगं अहमाणं उत्तमाण य नराण । किं तु अकज्जे कज्जे य ते मुणिज्जंति वटुंता ॥ ८३८२ ॥ एएण जीवियव्वं दाउं दिन्नं समग्गमवि मग्गं । जायइ रज्जाईणं जं जीवंताणमुवओगो || ८३८३ ॥ भुवणम्मि वि उवयारो न पाणदाणाओ समहिओ अस्थि । पच्चुवयरिउमसत्तेहिं निन्हविज्जइ न सो जेण ॥ ८३८४ ॥ थेवं पि हु उवयारं मन्नइ पुरिसो गिरिंदगरुययरं । निन्हवइ खलप्पयइं पुरिसो उवयारलक्खं पि ॥ ८३८५ ॥ इय जंपिरेण वि का जमणेषणा न Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५३ भुवनपईवनिवकहा ता आराहेयव्वो एस मए देवय व्व सुगुरु व्व । जणओ व्व जावजीवं परोवयारप्पसत्तमणो ॥ ८३८६ ॥ इय चिंतिओ य उट्ठेउं पणमिय तं पायपउमजुयलग्गो । जंपइ मह अवराहं खमसु महायस ! कयपसाओ ॥ ८३८७ ॥ जइ न तुम मुंचंतो संपइ मं पुरिसरयण ! हुंतो हं । ता मंसगिद्धगिद्धाइयाण भक्खं छुहत्ताण ॥ ८३८८ ॥ इण्हि तं चिय सरणं आमरणं तं पि मज्झ बज्झा वि । जमहं न हओ तुमए करुणारसपूरियमणेण ॥ ८३८९ ॥ दहें तं खामंतं जंपइ कुमरो अहो महासत्त ! । तुमए विवेइणा वि हु किमि मम वेरे वि पारद्धं ॥ ८३९० ॥ जो जिणमए थिरमणो सुमरइ मरणम्मि पंच परमेट्छि । तस्सेयारिसनिग्घिणकम्मं जायइ अहो चोज्जं ॥ ८३९१ ॥ जइ मह कहणिज्जमिणं सुपुरिस ! उवविसिय कहसु ता एत्थ । अहव अकहणिज्जं ता अच्छउ हियइच्छियं कुणसु ॥ ८३९२ ॥ सो भणइ जस्स तणया पाणा वि हु तस्स किं न कहणिज्जं ? । इय जंपिय उवविसिउं सो कहइ निविट्ठकुमरस्स ॥ ८३९३ ॥ गुरुनयपत्तच्छाओ घणकसिण सुतारसारसरलक्खो । सुयणो व्व भरहखेत्ते वेयड्ढो नाम अत्थि गिरि || ८३९४ ॥ तम्मि फुरंतमणिगणरहनेउरचक्कवालरमणियणं । रयणमयं अत्थि पुरं रहनेउरचक्कवालं ति ॥ ८३९५ ॥ दरियरिउवारवारणगणकुंभवियारणिक्कखरनहरो । तं परिपालइ सिरिरयणसेहरो नहयराहिवई ॥ ८३९६ ॥ तस्सत्थि सव्वसुद्धंतकंतकंताहिवत्तअहिसित्ता । हारसिरि व्व हारस्सिरी पिया वित्तमुत्तगुणा ॥ ८३९७ ॥ अन्नोन्नरम्मपेम्माणुबंधवद्धतमणपमोयाण । पंचविहविसयसत्ताण ताण कालो अइक्कमइ || ८३९८ ॥ Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ सिरिअणंतजिणचरियं कइया वि हु रयणविमाणसेणिसिंगारियंबरो चलिओ । नंदीसरम्मि सिद्धप्पडिमा नमणा य खयरिंदो ॥ ८३९९ ॥ दाहिणदिसिगयणेणं गच्छंतो नियइ सम्मुहमहीए । मणिमंदिरपुरबाहिं निग्गच्छंतं जणसमूहं ॥ ८४०० ॥ तस्संतोऽनिलतरलद्धयालिझणहणिरकिंकिणिगणाए । सिबियाए समारूढं अवलोयइ तरुणनररयणं ॥ ८४०१ ।। दितं किविण-वणीमग-जायग-हीणंध-दुत्थलोयाण । वंछा विच्छकरं दाणे मणिकणयवस्थाई ॥ ८४०२ ॥ अवलोयंतं पुरओ लउडारसरासए सपेच्छणए । उववूहिज्जंतं "जय जीव चिरं" इय जणासीहिं ॥ ८४०३ ॥ दाहिणपासमहसणनिविट्ठजणएण संसुवयणेण । समलंकियमप्पंतेण दाणकज्जम्मि कणयाई ॥ ८४०४ ॥ वामट्ठाणपरिट्ठियगरिट्ठविट्ठरनिविट्ठजणणीए । कयलवणुत्तारणयं सोयंसुयतंबिरच्छीए ॥ ८४०५ ॥ वज्जंतढक्कढुक्काभेरी-भंकारभरियभुवणयलं । रम्मारामुज्जाणम्मि गुरुयरिद्धीए संपत्तं ॥ ८४०६ ॥ (कुलय) को एस किं करिस्सइ ? इह इय बुद्धीए नहयरवई वि । तत्थुत्तिन्नो कंचणकमलगयं केवलिं नियइ ॥ ८४०७ ॥ पालियसमग्गसत्तं विरइयछज्जीवकायरक्खं पि । सोमं पि मित्तरूवं सुरयपुरं बंभयारिं पि ॥ ८४०८ ॥ दठूण केवलिं नहयरेसरो भत्तिनिन्भरो नमइ । "धम्मत्थं पवित्तीओ जइ वा धम्मीण होंति सया ॥ ८४०९ ॥ सिबियाए समुत्तिन्नो पणयपहू माइ-पिइअणुन्नाओ । परिहरियालंकारो संवेगुल्लसियरोमंचो ॥ ८४१० ॥ . सो विज्जाहरवइणो अवलोयंतस्स भत्तिभरियमणो । समयविहिणा मुणिंदेण दिक्खिओ विहिय सिरलोयं ॥ ८४११ ॥ Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपईवनिवकहा गहणासेवणसिक्खाकहणंते नहयरेसरो नमिठं । पुच्छइ किं वेरग्गं जमिमो मुणिनाह ! पव्वईओ ? ॥ ८४१२ ॥ आह पहू आयन्नसु खयराहिव ! अत्थि एत्थ नयरम्मि । असमप्पयावसारो पयावसारो त्ति नरनाहो || ८४१३ || अवरं च एत्थ निवसंति दुन्नि दुन्नयपराओ महिलाओ । एक्काए पवंचमई नामं बीयाए पुण कुमई ॥ ८४१४ ॥ भज्जावईण विहडिय पिम्माण कुणंति पेम्मसंधाणं । अच्चतसुघडियाण वि तं विहडावंति अन्नेसिं ॥ ८४१५ ॥ उच्चाडण - विद्देसण - थंभण- वसियरण - मारणाईसु । पावकिरियासु सययं वट्टंति पमोयपुव्वाओ ॥ ८४१६ ॥ कईया वि दो वि दुन्नयजायत्थारूढगरुयगव्वाओ । रिउसेणा उवसज्जियसराओ विवणीए मिलियाओ ।। ८४१७ ॥ अन्नोन्ननिन्हुवुप्पन्नमंतवसविहियगुरुविवायाणं । ताण सयासे मिलिओ बहुओ लोगो कुऊहलओ || ८४१८ ॥ मह फाडिअं न सक्को विसंधिउं तरइ य कुमई भणिए । इयराह तहा सीवेमि जह न से होइ संधी वि ॥ ८४१९ ॥ इय विवयंतीओ जणेण ताओ नीयाओ मंतिसन्निज्झे । विन्नाय वइयरेणं तेण वि नरवइसमीवम्मि ॥ ८४२० ॥ नाऊण तप्पइन्नं राया विम्हियमणो पयंपेइ । कुणह इममिक्कवारं एयत्थे तुम्हमभओ ति ॥ ८४२१ ॥ कुमई जंपर दिणपंचगस्स मज्झम्मि फाडेइस्सामि । सीवीस्सामि तमियराह पहु ! अहोरत्तमज्झे वि ॥ ८४२२ ॥ इय विरईयप्पइन्नाओ ताओ नमिठं नियं दुयंगे वि । कयजण अच्छरियाओ पत्ताओ नियनियगिहेसु ॥ ८४२३ ॥ कुमईए चिंतियं एत्थ अत्थि सुपसत्थरित्थवित्थारो । नामेण अत्थसारो गरिट्ठसेट्ठी सरलदिट्ठी ॥ ८४२४ ॥ ६५५ Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ सिरिअणंतजिणचरियं नायपरो बहुलाहो वि कित्तिसारो त्ति अस्थि तस्स सुओ । उज्जलमाणसमुत्ती अपत्तसंतावलेसो वि ॥ ८४२५ ॥ नवजोव्वणुल्लणाए अभग्गसोहग्गसंगयंगीए । कंतिमई पियाए सह विलसइ सो सया सुहिओ ॥ ८४२६ ॥ नवरं कंतिमईए सरूवसिंगारगरुयगव्वाए । आलवियाए वि अहं ननया संभासियावियनो ॥ ८४२७ ॥ ता तप्पइणो कीएवि कुरंगनयणी सह विहियघडणं । साहेमि निवस्स जहा तीए महंतं दुहं होइ ॥ ८४२८ ॥ तप्पइणो पुण अयसो संतोसो मज्झ निवइणो दविणं । “अहव कयावन्नाणं अणत्थउप्पायणस्सं वा ॥ ८४२९ ॥ ता एत्थ धणिधणेसरतणया तरुणी धणावली नामा । असई सई पि ता तम्घडणं सह तेण काहामि ॥ ८४३० ॥ इय चिंतिय तव्वेलं पत्ता सा कित्तिसारसन्नेज्झे । काऊण तमेगंते जंपइ मुहुरक्ख गराए ॥ ८४३१ ॥ सुहय ! तुमं पड़ जंपेमि किं पि मा कुणसु पत्थणं विहलं । सो जंपइ ता संपइ साहसु सा भणइ निसुणेसु ॥ ८४३२ ॥ इह अत्थि धणेसरसेट्ठिणो सुया कमलकोमलोरु-जुया । नियरूवनिज्जयरई नामेण धणावली बाला ॥ ८४३३ ।। नियभवणमत्तवारणगयाए तीए कयाइ सच्चविओ । आगच्छंतो तं रम्मरूवजियरइवइविलाओ ॥ ८४३४ ॥ सिंगारसस्स समवयवयस्स संदोहसोहियओवंतो । उत्तमउत्तंगतुरंगवग्गणक्खणियमणवित्ती ॥ ८४३५ ॥ अनिलंदोलणविलसिरसिहिपिच्छच्छत्तजायछायसुहो । हेलाए कीलयंतो टंपा-झंपाहिं हयरयणं ॥ ८४३६ ॥ चलसरलधवललीलासलोयणजुयलबहलजोन्हाए । परमामयवुटिंट्ठ पिव विकिरंतो समणहरं तुरए ॥ ८४३७ ॥ Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५७ भुवनपईवनिवकहा सियसोणसाममणिमयभूसणसयभूरियकिरणनियरेहिं ।। रयणाभरणेहिं पिव अलंकरंतो तुरंगं पि ॥ ८४३८ ॥ दठूण तुमं उम्मीलमाणनवनेहनिद्धनयणेहिं । आदिट्ठिपहं अवलोईओ बहुं तीए अवियण्हं ॥ ८४३९ ॥ सोहग्गरयणरोहणसंमोहणमयणबाणसमतुमए । दिट्ठिप्पहाइक्कंते वियंभिओ तीए विरहभरो ॥ ८४४० ॥ चत्तम्मि तुमं चित्ते तुहागिई तुज्झ नाममालवणे । सेविणे समागमो ते सा बाला तम्मई जाया ॥ ८४४१ ॥ वरहानलजालावलिजलिरसरीराए तीए पारद्धो । संसुवयंसीहिं सयं सययं सिसिरोवयारभरो || ८४४२ ॥ तडक्कारं हारे तणुतावेणं फुडंति मुत्तीओ । समिसिमिय सुसंति च्चिय नवकुवलयनालमालाओ || ८४४३ ॥ यणचंदणागुरूसच्छडाओ छंकारपुव्वगं तीसे । उत्तंगसंगमेणं लग्गंतीओ वि परिसुसंति ॥ ८४४४ ॥ गोसावस्सायस्संदिसाहिसेणि व्व मुयइ अंसूणि । मंजइ देहं जिंभाओ भयइ परिभमइ एमेव ॥ ८४४५ ॥ एवमवत्था सा तस्सहीहिं सह देसिया तओ तीए । तं साहियं समग्गं पि तो अहं एत्थ संपत्ता ॥ ८४४६ ॥ ता सुयह ! तुज्झ संगमआस च्चिय धरइ जीवियं तीए । अवहीरियाए तुमए मरणं चिय जेणिमं भणियं ॥ ८४४७ ॥ 'दूरयरदेसपरिसंठियस्स पियसंगम वहंतस्स । आसाबंधो च्चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं ॥ ८४४८ ॥ ता मह उवरोहेणं अहवा तज्जीविय व्व करुणाए । तं रमसु एक्कवारं दक्खिन्नदयाओ जं गरुए ॥ ८४४९ ॥ इय जंपंती दंतग्गधरियपंचंगुलं नमिय तस्स ।। तच्चरणमिलियभालं ठिया चिरं चिंतइ तओ सो ॥ ८४५० ॥ Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ सिरिअणंतजिणचरियं अकलंकं मज्झ कुलं सा वि पुणो पोढराइणी बाला । एसा वि विणयपणया किं काउं जुज्झए ता मे ॥ ८४५१ ॥ एगत्थ अकज्जभयं अन्नत्तो मरइ सा मए मुक्का । पासढुगे वि लग्गइ डमरुयगंठि व्व मज्झ मणं ॥ ८४५२ ।। जं होयव्वं तं होउ ताणुरत्ताए विरहविहुराए । काहं समीहियमहं इय चिंतेउं तओ तेण ॥ ८४५३ ॥ वज्जेउं मज्जायं मइलेडं निम्मलं जसप्पसरं । मुत्तं कुलाहिमाणं अणुसरिऊणं कुसीलत्तं ॥ ८४५४ ॥ चइऊणं सच्चरियं अंगीकाऊण नरयगइगमणं । उज्झेउं सद्धम्मं भणियं जं भणिसि तं काहं ॥ ८४५५ ॥ (जुयल) तं सोउं तीयुत्तं एसो विहिओ महापसाओ मे । इय जंपिऊण पत्ता पासम्मि धणावली एसा ॥ ८४५६ ॥ तं पइरिक्के काउं पयंपए सुयणु ! सुणसु वयणं मे । सा आह अंब ! जं किं पि जंपियव्वं तयं भणसु ॥ ८४५७ ॥ तीयुत्तमत्थि इह अत्थि सत्थपविइन्नअत्थवित्थारो । नामेण कित्तिसारो पुत्तो वणिअत्थसारस्स ॥ ८४५८ ।। रूवेण मयणमुत्तिं कंतीए कलावई मईए गुरुं । सक्कं सिंगारेणं जो जिणइ धणेण धणयं पि ॥ ८४५९ ॥ तेण तुमं सच्चविया नियमंदिरमत्तवारणासीणा । लीलालोयणलोयणजोन्हाभरपूरियदियंता ॥ ८४६० ॥ दिट्ठाए वि सुयणु ! तए मयणसरप्पयरपहरजज्जरिओ । भवणम्मि कहं कहमवि संपत्तो सो अणप्पवसो ॥ ८४६१ ॥ तं विरहज्जरविहुरं दहइ जलद्दावि जलणजाल व्व । संताविंति ससिकरा खइरंगार व्व तस्स तणुं ॥ ८४६२ ॥ एमेव हसइ बालो व्व नियइ सुन्नं पिसायगहिओ व्व । नच्चइ गायइ पलवइ मइरामयमत्तमुत्ति व्व ॥ ८४६३ ॥ Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५९ ८४६४ ॥ भुवनपईवनिवकहा सव्वप्पणा परायत्तमाणसो दंसिओ वयस्सेण । मह कहिऊणं तुह दंसणाणुरायाओ वियलत्तं ॥ ८४६४ ॥ तो तं संठावेउं तुह पासे हं समागया सुहयर ! । ता नररयणस्स तुम समीहियं कुणसु पसिऊणं ॥ ८४६५ ॥ तं सोउं सा असई नियणयणउम्मीलमाणउम्माया । जंपइ तुहोवरोहा अंबं ! अकज्जं पि हु करिस्सं ॥ ८४६६ ॥ तो तीए जंपियं पुव्वगोउरद्दारदेसदेवउले ।। आगंतुं मिलियव्वं निसाए पत्तस्स तस्स तए ॥ ८४६७ ॥ एवं निसुय तदुत्तीए तीए गंतूण कित्तिसारते । नीओ देवउले सो धणावली विय समणुपत्ता ॥ ८४६८ ॥ कुमईए जंपियं इह पविसिय मज्झम्मि रमह सच्छंदं । लोयागमणालोयणपरादुवारे हमच्छिस्सं ॥ ८४६९ ॥ तो मज्झ पविठेसुं तेसुक्कंठा विसंठुलंगेसु । तीए कहियं आरक्खियस्स गंतूण तं झ त्ति ॥ ८४७० ।। तो संनद्धधणुद्धरअसिखेडयकरभडेहिं चउपासं । परिवेढियदेवउलं स आह गोसे धरिस्समिमे ॥ ८४७१ ॥ तो निग्गमप्पवेसा न कस्सइ देया इह त्ति भणिय भडे । तूण मंति-निवईण कहियं तव्वइयरं सुत्तो ॥ ८४७२ ॥ ठूणं सेट्ठिसुओ देवउलं घडिय भडदढावेढं । उब्भूयभूरिभयवेविरंगजट्ठी विचिंतेइ ॥ ८४७३ ॥ पेच्छ जहा मज्झ महावसणमिणं दुस्सहं समणुपत्तं । जीवियमरणसरूवे संदेहे जेण पडिओ हं ॥ ८४७४ ॥ 'पुव्विल्लब्भवसमुन्भवपावपब्भारभावओवस्सं । सुनयाणं पि अवाया इंति न किं कयअनीईणं ॥ ८४७५ ॥ गोसे बंधेउं मं नेही आरक्खिओ विवणिवीहिं । जणयाइजणसमक्खं विडंबिही विविहवयणाहिं ॥ ८४७६ ॥ Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० सिरिअणंतजिणचरियं तुच्छतरविसयलालसमणस्स मह कित्तियं इमं दुक्खं । पररमणिरमणपावा नरए तमणंतसो होही ॥ ८४७७ ॥ न कयाइ कओ अनओ मए न अनईहिं सह पसंगो वि । एयं चिय गोत्तक्खयहेऊ पढमं कयमकज्जं ॥ ८४७८ ॥ अप्पविणासाय महापावुल्लासाय अयसपसराय । खलउक्करिसाय मए एयं दुव्विलसियं विहियं ॥ ८४७९ ॥ मरणं दारिदं वा विएसवासो व सयणविरहो वा । हुंतु वरं एयाई मा पुण एसो कुलकलंको ॥ ८४८० ॥ न कुणंति जे परिक्खियकज्जं ते दुक्खमंदिरं हुंति । पहु खिज्जति जणेणं मइलिज्जंति य अकित्तीए ॥ ८४८१ ॥ पंचिदियत्तमणुयत्त-आयरियखेत्तेसु सुकुलजम्माई । सव्वं पि मे निरत्थयमकज्जकरणुज्जमा जायं ॥ ८४८२ ॥ न कओ धम्मो न गुणा समज्जिया सज्जिया न सियकित्ती । चित्तालिहियनरस्स व मणुयत्तं मह मुहा जायं ॥ ८४८३ ॥ आबालकालओ बंभयारिणो जे कयव्वया जाया । ते पुन्नपयं न वयं विसएहिं विडंबियाए जे ॥ ८४८४ ॥ जइ देवगुरुपसाया एयव्वसणाओ कह वि छुट्टिस्सं । गिण्हिस्संता नियमेण सव्वविरइव्वयं सुहयं ॥ ८४८५ ॥ एवं महाणुभावो चिंतइ सद्धम्ममग्गमणुपत्तो । दूरं धणावली चिय पकंपए भडभयुब्भंता ॥ ८४८६ ॥ एत्तो य पवंचमई पहरिसउक्करसिया कहइ कुमई । इय फाडियं मए तं संधसु जइ संधिउं तरसि ! ॥ ८४८७ ॥ ईय भणिय गयाए तीए सेट्ठिणो कहइ तमागंतुं । तो सो सुयं तव्वसणो खणभया निच्चलो जाओ ॥ ८४८८ ॥ तियसो व्व निन्निमेसो निब्भरनिद्दो व्व नट्ठमणवित्ती । कयमोणो सज्झाणो व्व जायमुच्छो व्व निच्चेट्ठो || ८४८९ ॥ Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपईवनिवकहा किं कायव्वविमूढं दठं तं जंपए पवंचमई । किं सेट्ठि गरिट्ठमई वि नट्ठबुद्धि व्व लक्खियसि ? || ८४९० ॥ किं कायरो व्व कंपसि रणरसियभडो व्व धीरिमं धरसु । केत्तियमित्तं कज्जं इमं कुसग्गीयबुद्धीण ॥ ८४९१ ॥ ६६१ जइ वि कुमईए कहिए विहिओ राएण भडदढावेढो । तुह तणओ मरणंतव्वसणं पत्तो जइ वि इण्हि || ८४९२ ।। तह वि हु तहा जइस्सं न जहा दव्वक्खओ ल्हसइ न जसो । न विणस्सइ तुह तणओ जणाणुराओ न जह जाइ ॥। ८४९३ ॥ नवरं निय बहुयं मह अप्पसु तं देवमंदिरे खिविउं । जह वंचिय समईए सुहडे कड्ढेमि तं असई ॥ ८४९४ ॥ गोसे वाहरियनिवो जइ जंपइ किं पि ता भणेज्ज तुमं । सपिओ वि मह सुओ पहु निसाए रुसिउं कहिं पि गओ ।। ८४९५ एवं ति भणिय बहुयं सिंगारिय से समप्पए सेट्ठी । निय सम्मयमहिलाओ मेलइ गंतुं सगेहे सा ॥। ८४९६ ॥ वज्जिरवद्धावणयच्छंदपणच्चंततरुणिपरियरिया । अयसंकलसंदाणियं कमकंतिमईए संजुत्ता ॥ ८४९७ ॥ सह मियमंजुस्सरतूरिएहिं गायंतकामिणीकलिया । चलिया मंद मंद पत्ता य कमेण देवउले || ८४९८ ॥ सवणासन्ने ठाउं कंतिमई जंपए पवंचमई । अंतो गंतुं तुमए असईवेसो नियसियव्वो ॥ ८४९९ ॥ ठायव्वं पइपासे होइ अणत्थो जहा न से गोसे । अप्पिय नियनेवच्छं मह पासे पेसियव्वा सा ।। ८५०० ॥ ईय जंपिऊण चलिया खलिया य भडेहिं इय भणंतेहिं । लब्भइ न इह पवेसो रायाएसो जओ एसो ॥। ८५०१ | एत्थ पविट्ठो चिट्ठइ रुद्धो असईजुओ नरो कोई । ता पुइज्जह गोसे देवयमिहि पुणो वलह ।। ८५०२ ।। Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ सिरिअणंतजिणचरियं तो तेसिं पवंचई वियरइ सव्वेसिं कुसुमतंबोले । दूरे इयरे थद्धा वि हुंति दाणेणमणुकूला ॥ ८५०३ ॥ पुन्नं मह दुहियाए उवजाइयमेत्थ तो इमा पत्ता । "अवरावि पूयणिज्जा देवी सप्पच्चया किन्नों ? ॥ ८५०४ ॥ अज्ज इमाए तइज्जो उववासो आसि जं इमं भणियं । ता तुब्भे करुणाए एक्कमिमं चिय पवेसेह ॥ ८५०५ ॥ जइ अज्ज इमा अच्चइ न देवयं ता न भुंजए नूणं । ता मुत्तुमिमं एयाए जीवियव्वं पयच्छेह ॥ ८५०६ ॥ एत्थ ठियाओ वि अम्हे भत्तिं देवीए गीयनटेहिं । पयडिस्सामो पसिउं ता कुणह इमं ति तीयुत्तं ॥ ८५०७ ॥ तो ते दक्खिन्नदयाहिं पेरिया बिंति भइणि तं चेव । एक्का गंतुं पूइत्तु देवयं झ त्ति निग्गच्छ ॥ ८५०८ ॥ तं सोउं कंतिमई पूया पडलं करे कलेऊण । देवउलम्मि पविट्ठा ठिया अणुट्ठिय जुहुद्दिठं ॥ ८५०९ ॥ नच्चणगाणव्वग्गाण ताण रमणीण पासमणुपत्ता । कंतिमई नेवच्छप्पच्छाइयतणुलया असई ॥ ८५१० ॥ वज्जिरवद्धावणया वलिउं पत्ता पओलिदेसम्मि । रूवयअद्धं दाउं विसज्जिया तूरिया तुरयं ॥ ८५११ ॥ पहसंतीओ पविट्ठा पुट्ठाओ पउलिरक्खभडेहिं । किं नो वज्जइ तूरं पढइ इमं तो पवंचमई ॥ ८५१२ ॥ उट्टह तेत्तउ वज्जई जेत्तउं पोलिहिं बारु । "अइरुद्धोवि न रुद्धई स हुं परिणिए भत्तारु ॥ ८५१३ ॥ रायसमीवंगीकयपुन्नपइन्ना अईव सा तुट्ठा । थोवा वि कज्जसिद्धी तो सकए किं पुण न बहुया ? || ८५१४ ॥ पुरमज्झमागयाओ विसज्जए सा सहीओ सव्वाओ । "सिद्धप्पओयणाणिं किं कज्जं जणसमूहेण ? || ८५१५ ॥ Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपईवनिवकहा वद्धाविऊण सेट्ठि गंतूण निए गिहम्मि सुत्ता सा । "निच्चिताणं निद्दा जायइ जइ वा किमच्छरियं ? ॥ ८५१६ ॥ सूरग्गमसमयम्मि वि सन्नज्झं तम्मि तम्मि भडविंदे । सपिओ वि कित्तिसारो निग्गंतुं ते पयंपेइ ॥ ८५१७ ॥ किं तुब्भे सन्नज्झह पिउणा अवमाणिओ गहियभज्जं । इह वसिय निसिविगमे जाव विएसम्मि वच्चिस्सं ॥ ८५९८ ॥ ता इह पविट्ठमेत्तो वि वेदिओ कहह को विणासो मे । ते बिंति निवामच्चे पुच्छसु जे तं धराविंति ।। ८५१९ ।। तेणुत्तं मह ताण वि तणओ न भओ जओ विसुद्धो हं । किं काही भव्वो वि हु वेज्जो नीरोयदेहाए ।। ८५२० ।। इय भणिरे सेट्ठिए आरक्खियमंतिणो समणुपत्ता । दट्ठूण सेट्ठिपुत्तं सकलत्तं विम्हया दो वि ॥ ८५२१ ॥ सुहडाण वि तेसि पि हु कहियं सव्वं पि कित्तिसारेण । रायसयासे नीओ भज्जा जुत्तो वि सो तेहिं ॥ ८५२२ ।। रायडले निज्जंतं तणयं नाउं समागओ सेट्ठी । "इयरे वि सायर च्चिय सुयणा किं पुण न नियपुत्ते ? ॥। ८५२३ ॥ सुयसेट्ठिसुयनिवंतियनयणा पत्ता दुयं पवंचमई । “ का संका सक्खं रायवयणपत्ताभयाणहवा " ॥ ८५२४ ॥ असमाण पवंचमई मईए विजिय त्ति नागया कुमई । “ तत्थ न जंति सयन्ना पराजओ जायए जत्थ" ।। ८५२५ ।। गंतूणत्थाणत्थं सव्वे वि निवं नमित्तु उवविट्ठा । “विणयप्पणई सस्सा सव्वत्थ वि किं न नमणिज्जे ? ॥ ८५२६ ॥ मंति सयासा सोउं भणइ निवो कित्तिसार ! किं एयं । सो आह जह पहू सुणइ तह इमं किं अलीएण ? ॥ ८५२७ ॥ "सयमेव देव ! विसयाहिलासिणो पाणिणो सया तम्मि । जो पुण परोवएसो घयाहुई सा हुयासम्मि ॥ ८५२८ ॥ ६६३ Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ सिरिअणंतजिणचरियं ईय जंपिय कुमई विप्पयारणुप्पन्नरायरसपमुहं । “कहियं रन्नो भन्नइ पमाणभूमीए नो अलीयं ॥ ८५२९ ॥ जेण सरीरेण कयं सहउ तयं देव ! निग्गहदुहाई ।। "देए पच्छा वि रिणे सइ दव्वे दिज्जइ न किं तं ॥ ८५३० ॥ आह निवो मा बीहसु जमेक्कवारं इमाण महिलाणं ।। अभओ मए विइन्नो फाडण-संधाणकोउयओ ॥ ८५३१ ॥ नामाणुसारिणि च्चिय कुमईए मई महाअणत्थयरी ।। “अहवा परिपज्जलिरो दहणो दहणो च्चिय जहत्थों ॥ ८५३२ ॥ पेच्छ पवंचमईए भज्जं पक्खिविय कड्ढिया असई । नो विन्नायं केणइ बुद्धीए अगोयरो नत्थिं ॥ ८५३३ ॥ सेट्ठिसुय ! नो कयाइ वि विस्ससियव्वं तए कुमहिलाण । जं संपइ विस्ससियस्स आगओ आसि तुह मच्चू ॥ ८५३४ ॥ विन्नवइ कित्तिसारो देवपसाएण जीवियव्वस्स । पत्तस्स चरियचरणं भवहरणं सहलयं काहं ॥ ८५३५ ॥ जइ नो देवो दितो पाणे मह नूण ता अहं इन्हि । उभयभवसंभवाण वि चुक्कंतो चेव सोक्खाणं ॥ ८५३६ ॥ रायाह वच्छ ! कस्सइ कयाइ भववासमहिवसंतस्स । दुक्कम्मेण अवाया हवंति ता मा समुच्चियसु ॥ ८५३७ ॥ मा कुणसु वयकिलेसं, धम्मो संतस्स होइ गिहिणो वि । "को नाम कुणइ कळं सईकज्जे सोक्खमज्झम्मि ॥ ८५३८ ॥ सो भणइ सामि ! एवं विडंबणा होइ जाण कज्जम्मि । मह होउ तेहिं विसएहिं वयमहं संपइ गहिस्सं ॥ ८५३९ ॥ जंपइ सेट्ठी बुज्झवह देव ! एसेव जं सुओ मज्झ । करह पडियं व भंडयमिमं विणा फुडइ हिययं मे ॥ ८५४० ॥ पुत्तेणुत्तं जइ अज्ज पहु ! तए हं विणासिओ हुँतो । हुंता केत्तियमित्ता ता पुत्ता मज्झ जणयस्स ॥ ८५४१ ॥ Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपईवनिवकहा जणया जणणीओ पियाओ पुत्तया बंधुणो य संसारे । मुक्का भुरिभवेसुं ता मोहो कहह को तेसु ? || ८५४२ ॥ “परमत्थेणं न कया वि वल्लहो अत्थि कोइ कस्सावि । सोयइ सव्वो वि जणो नियकज्जं चेव सीयंतं" ।। ८५४३ ॥ ता अहमवि नियकज्जप्पसाहणे उज्जओ इयाणि पि । ता मा भवह भवंतो सव्वे धम्मंतरायपरा ॥ ८५४४ ॥ गहिऊण वयं अज्जं भुंजिस्सं अन्नहा महाणसणं । तो नायनिबंधेणं निवेण मोयाविओ सेट्ठी ।। ८५४५ ॥ जणणी वि तत्थ पत्ता पुत्तेण कमे नमित्तु विणयपरं । पाएसु लग्गिऊणं बला वि मोयाविया अप्पं ॥ ८५४६ ॥ सम्माणिउं विसज्जइ वत्थाईहिं सपियं सुयं सेट्ठि । राया पवंचमईयं पि भणियं नायुज्जया होज्ज ।। ८५४७ ॥ कुमई पि भणइ वाहरिय मा पुणो इय करेज्ज अन्नायं । पुणरुत्तं न खमिस्सं ति भणिय तं पि हु विसज्जेइ ॥ ८५४८ ॥ न्हाणाई सव्वसिंगारसुंदरी सिबियमारुहिय पत्तो । इह एसो सेट्ठिसुओ पव्वईओ तुज्झ पच्चक्खं ॥ ८५४९ ॥ खयराहिरायवेरग्गकारणं पुच्छियं जमेयस्स । तं कहियं ता मोत्तुं कुसंगमायरह गुणिसंगं ॥ ८५५० ॥ "पायं विणस्स च्चिय पत्तकुसंगो जणो सुवित्तो वि । उरगओ असुइत्ते जुज्जइ परमो वि आहारो" ।। ८५५१ ॥ सगुणम्मि गुणाहाणं पावइ पत्तो जणो अत्तो वि । रमणी नयणे कसं पि कज्जलं सोहमुव्वहइ" ॥ ८५५२ ॥ काव्वो गुणिसंगो तम्हा पुरिसेण उज्झिय कुसंगं । पत्ते सिणिद्धदुद्धे मुद्धा वि किमंबिलं पियइ ?" ।। ८५५३ ॥ खयरवई पयंपइ पहू सिद्धिवद्दू वरो इमो होही । जो एक्कम्मि वि एवं पडिबद्धो आवयाए भवे ॥ ८५५४ ॥ ६६५ Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ सिरिअणंतजिणचरियं पहु ! अम्हे वि हु पुन्नेक्कमंदिरं जेहिं थावरे तित्थे । चलिएहिं जंगमं तित्थमुत्तमं तमिह संपत्तो ॥ ८५५५ ॥ एत्थंतरे करेणुक्खंधगओ छत्तअंतरियतरणी । राया चउरंगबलो पत्तो केवलिकमे नमइ ॥ ८५५६ ॥ वंदिय सेसे मुणिणो सलाहिउं पणमिउं च नव साहुं । उवविट्ठो तो वंदइ तस्संतेउरमवि समग्गं ॥ ८५५७ ॥ तम्मज्झे निवकन्ना नियरूवजियामरी कणयवन्ना ।। पत्ता मत्तामरहत्थिमंथरक्कमगया गमणा ॥ ८५५८ ॥ लीलाचलच्छिविच्छोहखोहियासेसतरुणनरनियरा । दीवपहा नामेणं सारसुहासारसियहासा || ८५५९ ॥ दठूण केवलिं सा हच्छं मुच्छं गया मयंकमुही । सीओवयारसंपत्तचेयणा पुच्छिया पिउणा ॥ ८५६० ॥ किं वच्छे ! मच्छागमणकारणं तुह पयंपए सा वि । पुच्छसु गुरुणो ईय भणिय केवलिं नमिय उवविट्ठा ॥ ८५६१ ॥ कयकरकोसो नमिऊण केवलिं पुच्छए निवो भयवं ! । किं मुच्छिया मह सुया भणइ पहू निसुणसु नरिंद ! || ८५६२ ॥ सरसाहिट्ठिय पहियं सरसाहियसत्तुसुहडसंदोहं । सरसाहिलसियवासं पुरमत्थि विसालसालं ति ॥ ८५६३ ॥ रविउदयारद्धदिणंतमुक्कवणिभवणकयकुकम्मेण । पत्तारसआहारो अकिंचणो तत्थ अत्थि नरो ॥ ८५६४ ॥ निम्मंसमुही नित्तेयकालदुब्बलकरालकाया से । मुत्तिमई चामुंड व्व भारिया आसि विगयासा ॥ ८५६५ ॥ खंडण-रंधण-पीसण-जलवहण-गिहप्पमज्जणाईहिं । पत्तघरपत्तकुभोयणकयाट्ठिई गमइ दियहे सा ॥ ८५६६ ॥ सिसिरे सहति सीयाइं गिम्हसमयम्मि तिव्वरवितावं । मलकलियकुचेलाई दोन्नि वि मुणिमंडलाइं व ॥ ८५६७ ॥ Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६७ भुवनपईवनिवकहा जुन्नकुडीरयछायणकज्जे कइया वि दो वि दब्भत्थं । भमिराई गुरुअरन्ने नियंति आयावयंतं मं ॥ ८५६८ ॥ भणिया अकिंचणेणं भज्जा नमिमो इमस्स पयपउमं । जेणज्जेमो अम्हे सव्वुत्तमपुन्नपब्भारं ॥ ८५६९ ॥ तो दोन्नि वि भत्तिवसप्पसरियरोमंचअंचियंगाणि । भूमियलमिलियभालयलमणहरं मज्झ पणमंति ॥ ८५७० ॥ दहें विसुद्धभावं तेसिं मए तयणु उवविसेऊण । उवविट्ठाणं दिन्नो दोन्ह वि सद्धम्मउवएसो ॥ ८५७१ ॥ आयन्नह भो तुब्भे पंचिंदियजाइपमुहसामग्गि । पावेउं नायव्वाई देव-गुरु-धम्म-तत्ताई ॥ ८५७२ ॥ रागद्दोसाईहिं दोसेहिं अदूसियं मुणह देवं । निग्गंथं गीयत्थं तत्तरयं जाणह गुरुं पि ॥ ८५७३ ।। जइ गिहिभेएहिं दुहा बुज्झह धम्मं जिणेहिं पन्नत्तं । पढमं दसप्पयारं बारसभेयं पुणो बीयं ॥ ८५७४ ॥ जीवाऽजीवा पुन्नं पावासवसंवरा य निज्जरणा । बंधो मोक्खो य इमं आयन्नह तत्तनवगं पि ॥ ८५७५ ॥ देव-गुरु-धम्म-तत्तसद्दहणेण होइ सम्मत्तं । मूलं सव्वुत्तममोक्खकप्परुक्खस्स इममेव ॥ ८५७६ ॥ फल-सलिल-धूव-दीवय-अक्खय-नेवज्ज-गंधकुसुमेहिं ।। पूयइ सम्मद्दिट्ठी इय जिणमट्ठहिं वि पूयाइं ॥ ८५७७ ।। सव्वाओ वि अतरंतो पईवपूयं करेइ जइ भव्वो । तो सा एक्का वि हरेइ तस्स पावाई भणियं च ॥ ८५७८ ॥ 'जो देइ दीवयं जिणवरस्स पुरओ पराए भत्तीए । तेणेव तस्स डज्झइ पावपयंगो न संदेहों ॥ ८५७९ ।। मणुयत्तं संपत्तं मा नेह मुहा करेह सद्धम्मं । तुम्हाण हियं कहियं जुत्तमिमं चिय गुरूणहवा ॥ ८५८० ॥ Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ सिरिअणंतजिणचरियं जंपति दोवि नियजोग्गयाणुमाणेण तुम्हमाएसं । काहामो भयवं ! जं सुकएणम्हेहिं तं पत्तो ॥ ८५८१ ॥ इय जंपिय भत्तीए मं नमिउं दब्भभारए गहिउं । दोन्नि वि गयाई गेहे भद्दगभावेण वटंति ॥ ८५८२ ॥ नयरप्पहाणजिणदत्तसेट्ठिणो मंदिरम्मि कम्माइं । कुव्वंताणं ताणं दोन्ह वि दीवूसवो पत्तो ॥ ८५८३ ॥ दाऊण सेट्ठिणा सालि-सूअ-घय-पमुहमेवसुत्ताई । सगिहे भुंजह जह जाइ तुम्ह वरिसो वि सोक्खेण ॥ ८५८४ ॥ ते बिंति अम्ह दंससु जिणेसरं सेठिं जेण तस्स पुरो । काऊणं घएणं दीवयं वयं सुकयमज्जेमो ॥ ८५८५ ॥ दठूण धम्मबुद्धिं जाओ तेसिं कयायरो सेट्ठी । "गरुयाई परम्मि वि पक्खवाइणो किं न धम्मपरं ॥ ८५८६ ॥ इण्हि पि चलह इय भणिय तेहिं सह जिणहरम्मि संचलिओ । "अवरं पि पत्थियं कुणइ सज्जणो किं न पुण धम्मपरे ॥ ८५८७ ॥ तिन्नि वि पत्ताई नियंति रुंदं जिणमंदिरं गयणयलं । भूयतरुपत्तपंतित्तियतोरणसियदुवारग्गं ॥ ८५८८ ॥ अनिलचलिरद्धयावलिकिंकिणिगणथणरणज्झणारावो । घग्घरयं खलहलस्सरमिस्सो मुहरइ नहं जत्थ ॥ ८५८९ ॥ मणिजणियदेवउलिया मंडलविप्फुरियकिरणनियरूंबो । रोहणगिरि व्व रेहइ जणपुन्नागरसिओ व्व जहिं ॥ ८५९० ॥ केवलणाणालोओ व्व जत्थ लंबंतमोत्तिउज्जोओ । फलिहमऊहसमूहो भव्वविवेओ विव विहाइ ॥ ८५९१ ॥ डज्झिरकप्पूरागरुपरिमलमांसलियसुमणसामोओ । वित्थरइ जत्थ दूरं धम्मियजणपुन्नपसरो व्व ॥ ८५९२ ॥ सेट्ठी तेहिं समेओ पविसंतो तम्मि नियइ अजियजिणं । जय जय जय त्ति भणइ य सीमंतयसंगिकरकोसो ॥ ८५९३ ॥ Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपईवनिवकहा उवसंतकंतरूवं तेसिं तं दंसणं अजियदेवं । बहिरंगअंतरंगारिवग्गनिग्गहणपत्तजसं ॥ ८५९४ ॥ एसो समग्गसग्गापवग्गसुहसंगदायगो दूरं । ता एवं पूएउं अप्पहियं कुणह ईय भणइ ॥ ८५९५ ॥ तं सोउं ताई मणप्फुरंतगुरुभत्तिभरधरंगाई । पसरियपरिओसवसुल्लसंतरोमंचनिचियाइं ॥ ८५९६ ॥ उल्लसिय अमंदाणंदजायथोरंसुपूरियच्छीणि ।। परिकलयंताई सजम्मजीवियव्वाण सहलत्तं ॥ ८५९७ ॥ सुरहिघएणं काऊण दीवए ताई दोन्नि वि मुयंति । जिणपुरओ पणमंति य पहुं महिमिलियभालाई ॥ ८५९८ ॥ (कुलयं) तयणंतरं पयाहिणपुरस्सरं नमिय रईयकरकोसो । सेट्ठी अजियजिणिंदं भत्तिभरो थोउमारद्धो ॥ ८५९९ ॥ जस्सा नमंति सिरसोणमणिपहापयडभत्तिराय व्व । अमरेसरा थुणिस्सामि तं पहुं अजियनाहमहं ॥ ८६०० ॥ मणवयणनयणहत्था ते धन्नाणं सुहा अजिय ! तुज्झ । सुमरणथवणालोयणपूयणकज्जेसु जे सज्जा ॥ ८६०१ ॥ वइसाहसेयतेरसितिहिए तं चत्तविजयवासो वि । पहु विजयोयरवास अलंकरंतो कुणसि चोज्जं ॥ ८६०२ ॥ जायं तिजयुज्जोयं तं माहसियट्ठमी निसीहम्मि ।। दठूण ससंको लज्जिओ व्व तव्वेलमत्थमिओ || ८६०३ ॥ चईय तए चललच्छि वयं कयं माहसेयनवमीए । इयरो वि अस्थिराए न रज्जए किं पुण तिनाणी ॥ ८६०४ ॥ पोसे सियाए एक्कारसीए जेउं चलहुं पहुं चंदं । लोयालोयपयासं संजायमणंतनाणं ते ॥ ८६०५ ॥ चेत्तसियपंचमीए तं सिद्धिवहू य संगमल्लीणो । इयरं पि मोहिउममलं रमणी किं केवलविरायं ॥ ८६०६ ॥ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० सिरिअणंतजिणचरियं इय जायपंच कल्लाणमवि पहुं थुणियचत्तकल्लाणं । मन्नेमि चंदपहु ! नयभवसायरतिन्नमत्ताणं ॥ ८६०७ ॥ सेट्ठिस्स पक्खवाओ जिणिंदभत्तीए तेसु संजाओ । "अहवायरो गुरूणं सगुणे विगुणे पुण उवेहा" ।। ८६०८ ॥ पुणरुत्तं पणयजिणो अकिंचणो सेट्ठिणा सभज्जो वि । नेउं नियभवणे दिन्नबहुघओ पेसिओ सगिहो ॥ ८६०९ ॥ तम्मि वि भवम्मि जिणभत्तिभावओ अकिंचणो धणी जाओ । “अहव न तं कल्लाणं जिणपूयाए न जं होई ॥ ८६१० ॥ कइया वि आउअंते मज्झिमपरिणामओ मरिय जाओ । भुवणप्पईवनामो पुत्तो निवकुलपईवस्स ॥ ८६११ ॥ तेणेव य भावेणं तब्भज्जा मरिउमेत्थ उप्पन्ना । एसेव य तुह तणया जिणदीवयपूयपुन्नेण ॥ ८६१२ ॥ इह पत्ता मं पेच्छिय जाईसरणेण मुच्छिया एसा । निवपुच्छियं तए जं तं मुच्छाकारणं कहियं ॥ ८६१३ ॥ नमिय गुरुं भणइ सुयारिद्धी पहु ! तुह पसायओ एसा । मह सपियस्स वि जाया "किं वा न हवइ गुरुपसाया" ॥ ८६१४ ॥ सोऊण कुमरिचरियं जिणपूयाकयमई जणो सव्वो । रायाईओ गुरूणं नमिय नियट्ठाणमणुपत्तो || ८६१५ ॥ नयकेवलिक्कमो नहयरेसरो मणिविमाणविंदेण । नंदीसरम्मि पत्तो चलिओ अभिवंदिय जिणिंदे ॥ ८६१६ ॥ नवरं रायसुया दंसणाइअणुरायभरपरायत्तो । निवपासे संपत्तो पणयपरो पत्थए कन्नं ॥ ८६१७ ॥ रायाह नहयरेसर ! जुत्तमिणं किं तु पुच्छिमो कन्नं । "जावज्जीवियकज्जे काउं जुत्तो न उवरोहो” ॥ ८६१८ ॥ तो वाहरिया पत्ता निवंतियं रइयरम्मसिंगारा । बाला लीलालससरललोयणुल्लासलसिरमुही ॥ ८६१९ ॥ Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७१ भुवनपईवनिवकहा काउं पसायमाइसह ताय ! ईय भणइ पिउकमे नमिउं । तो से सायरखयरिंदपत्थणं साहए राया ॥ ८६२० ॥ सा आह ताय ! लग्गइ अंगे सोहग्गसंगओ सो मे । पुव्वभवुब्भवभत्ता अग्गी वा इह भवे नन्नो ॥ ८६२१ ॥ नायसुया अणुबंधो सम्माणियनहयरं विसज्जेइ । सो वि गओ वेयड्ढे निक्कज्जं किं विएसेण ॥ ८६२२ ॥ चिंतइ नहयरनाहो हिययगया दूमए मयच्छी मं । विरहजरजलणजालाजलिरंगं तट्ठभल्लि व्व ॥ ८६२३ ॥ सा मं तमन्नइ च्चिय ठाउमसत्तो न तं विणाहमवि । ता हरणमेवजुत्तं मह निवतणयाए इन्हिं पि ॥ ८६२४ ॥ अहवा किं हरणेणं सइ कुमरे तम्मि मह न सा होही । ता तं पच्छन्नं चिय हणेमि ईय चिंतिउं झ त्ति ॥ ८६२५ ॥ एगो च्चिय निसिनिग्गंतुमुवगओ कुमरवासभवणंते । “मारणमईए अहवा इत्थीलुद्धाण किमकज्जं ? || ८६२६ ॥ तिसिरदुवालसभुयएक्कतणुलयारद्धपेच्छणयछउमा । तमिहाणीओ तेणं मंतेणुग्घाडियपओलिं ॥ ८६२७ ।। तो सहसा संजाओ सुहडो आयड्ढियासि दुद्धरिसो ।। साहिक्खेवं रइयम्मि रणभरे सो जिओ तुमए ॥ ८६२८ ॥ "जे ससत्थपडिकूला जे वा वीसत्थघाइणो कुडिला । नियमेण पडंति च्चिय ते पुरिसा पावपहरया ॥ ८६२९ ॥ ता कुमर ! सो अहं नियदयाए हणणारिहो वि जो तुमए । मुक्को त्ति मए कहिओ तुह पुरओ निययवुत्तंतो || ८६३० ॥ इय जह खयराओ सुयं तह कुमरेणावि जाइसरणेण । सव्वं चिय सच्चवियं सिविणयदिह्र व तव्वेलं ॥ ८६३१ ॥ भणियं च खयर ! तुमए जह कहिओ तह मए वि पुव्वभवो । दिट्ठो जाइस्सरणेण तयणु तयं खेयरो भणइ ॥ ८६३२ ॥ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૭ર सिरिअणंतजिणचरियं ता चलसु तुमं मुत्तूण मंदिरे हमवि जामि सट्ठाणे । ईय जंपिय तमणुट्ठिय नहयरनाहो गओ सपुरे ॥ ८६३३ ॥ परिभाविय पुव्वभवप्पियाणुरायप्पइन्नकरणस्स । उम्मीलिओ महंतो अणुराओ रायतणयस्स || ८६३४ ॥ चिंतइ ते च्चिय धन्ना जेसिं नियवल्लहेहिं जुत्ताण । विविहविलासेहिं मुहुत्तमित्तमिव जंति दिवसाइं ॥ ८६३५ ॥ जह जाइ वल्लहजणे मणो तहा जइ तणू वि वच्चंती । ता नूण न हुंतं चिय कस्सइ तब्विरहविहुरत्तं ॥ ८६३६ ॥ नूणं जागरणाओ विरहीण वरं समेइ जइ निद्दा । जा दूइय व्व वल्लहसंजोगं कुणइ सहस त्ति ॥ ८६३७ ॥ कामुक्कलियाउ मणे नयणेसु अलद्धलक्खया जाया । दाहो देहे वल्लहअलाहओ तस्स चिंताए ॥ ८६३८ ॥ वल्लहविरहविणोयपारद्धहयाइकीलकिरियस्स । गच्छंति वासरा विरहियस्स कुमरस्स किच्छेण ॥ ८६३९ ॥ एत्थंतरम्मि पत्तो कुमरी पिउ पेसिओ महामंती । अत्थाणत्थं निवई नमिउं विन्नवइ विणएण ॥ ८६४० ॥ पहु ! मणिमंदिरनयरे पयावसारो त्ति नरवई अस्थि । दीवपहामलदेहा दीवपहाभिहसुया तस्स ॥ ८६४१ ॥ पत्ता केवलिपासं जाईसरणेण मुच्छिया बाला । निवपुच्छिएण कहिओ केवलिणा तीए पुव्वभवो ॥ ८६४२ ॥ ईय भणिय तेण सव्वं सवित्थरं साहियं नरिंदस्स ।। ता जा पुव्वभवुब्भवपिए कुमारेऽणुरत्ता सा ॥ ८६४३ ॥ भणियं च खयरवइणा विवाहिउँ पत्थियाए वि न तीए । पडिवन्नं तव्वयणं कुमरं पइ जायरायाए ॥ ८६४४ ॥ तुह तणयअलाहविओयदाहदझंतमणवणा बाला । लहइ न सुहलवमविजलिरजलणजालोलिकलिय व्व ॥ ८६४५ ॥ Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७३ भुवनपईवनिवकहा धाईए वि अरईए असुहत्थीए वयंसियाए व । दासीहिं व संगहिया कामुक्कलियाहिं सा दूरं || ८६४६ ॥ ता पहु ! पेससु कुमरं परिणयणकए कुरंगनयणीए । जह होइ जीवियं से गुरूण दुहिए न जमुवेहा ॥ ८६४७ ।। रायाह सा सइ च्चिय जो पुव्वब्भवप्पियम्मि अणुरत्ता । सिविणे वि जं सईणं रमइ मणो नन्न रमणम्मि ॥ ८६४८ ॥ इय भणिय समाइट्ठो कुमरो वीवाहिउं नरिंदसुयं । वच्छा ! गच्छसु तो सो नमिय निवाणं सिरे धरइ ॥ ८६४९ ॥ ' सम्माणिऊण मंतिं संवाहियनियसुओ समंतेण । चउरंगचमूचक्को पट्ठविओ हिट्ठहियएण ॥ ८६५० ॥ अणवरयकयपयाणो सो मणिमंदिरपुरम्मि संपत्तो । 'ठाणं चलिरो मंदो वि पावए किं न सिग्घगई" ॥ ८६५१ ॥ पत्तओ य वत्थकयहट्टसोहगुरुमंचतोरणधयम्मि । रायंगरुहो रन्ना रिद्धीए पवेसिओ नयरे ॥ ८६५२ ॥ आवासिओ समप्पियपासाए कणयकलसकमणीए । नरवइकारावियभोयणाइगुरुगोरवमहाघो ॥ ८६५३ ।। लग्गदिणे हयगयठियसामंता वेढिओ गयारूढो । छत्तद्धयचामरचयरायालंकारकमणीओ ॥ ८६५४ ॥ वज्जिरजयआउज्जो पत्तो वीवाहमंदिरवारे । रइयायारो पविसिय उवविट्ठो कन्नया पासे ॥ ८६५५ ॥ पठं से तीए करं करेण गहिडं पयाहिणिय जलणो । उवविसिय रायकुमरेहिं तयणु सम्माणिओ लोओ || ८६५६ ॥ तो नियकलत्तकलिओ चलिओ घडिउं करेणुरायम्मि । रिद्धीए नियावासे पत्तो कीलइ सह पियाए ॥ ८६५७ ॥ ससुरयसम्माणुम्मीलमाणतोसो दिणाण दसगं सौ । तत्थच्छिय नमिय निवं सकलत्तो नियपुरे पत्तो || ८६५८ ॥ Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ सिरिअणंतजिणचरियं रन्ना रिद्धीए पुरे सहट्टसोहे पवेसिओ कुमरो । नवपरणीयं पुत्तं मुत्तुं को गोरवट्ठाणं ॥ ८६५९ ॥ पणओ पिउणो पयसयदलम्मि सपिओ वि पत्तआसीसो । नमिउं जणणी चलिओ सुद्धते च्चिय ठिया बहुया ॥ ८६६० ॥ पिउपयसेवासत्तस्स तस्स कुमरस्स जंति दिवसाइं । तं अहिसिंचइ राया रज्जे रिद्धीए कईया वि ॥ ८६६१ ॥ गीयत्थगुरुसयासे पत्तवओ कयतवो पहयपावो । उप्पन्नविमलनाणो रायरिसी सिवपुरं पत्तो ॥ ८६६२ ॥ नवराया निरवज्जं रज्जं पालइ पयासए नीई । ताडइ चरडे मन्नइ महायणं अज्जइ जसं सो ॥ ८६६३ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरं संघमच्चए निच्चं । कारवइ विभूईए रहजत्ताओ जिणिंदाणं ॥ ८६६४ ॥ इय वच्चंते काले कयाइ दीवयपहाए उप्पन्नो । पुत्तो उत्तमलक्खणगणलंछियहत्थपायतले ॥ ८६६५ ॥ विरईय वद्धावणओ रयणपईवो त्ति कुणइ पुत्तस्स । नामं सम्माणेउं सव्वजणं नरवई हिट्ठो || ८६६६ ॥ वरिसाइं पंच पालित्तु पाढिओ तयणु जोव्वणं पत्तो । वीवाहिओ य उम्मत्तजोव्वणाओ निवसुयाओ ॥ ८६६७ ।। समयंतरम्मि कम्मि वि राया रयणीए तुरीयपहरम्मि । जागरमाणो सद्धम्ममग्गमणुचिंतिउं लग्गो ॥ ८६६८ ॥ दीवयमित्ताए वि मे पूयाए असरिसा सिरी जाया । "सुहुमाओ वि वडबीयाओ जायए नहलिहो साही ॥ ८६६९ ॥ "थोवा वि धम्मकिरिया भावेण कया महाफला होइ । लहुया वि दीवयसिहा उज्जोयइ गरुयमवि गेहं ॥ ८६७० ॥ जे पुण कुव्वंति वयं ते सिद्धिवहूवरा धुवं हुंति । "अच्चब्भुयकल्लाणे अप्पायत्ते पमाओ को ? ॥ ८६७१ ॥ Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवनपवनिवका दाउ रज्जसिरिं कुमरस्स वयस्सिरिं गहिस्सामि । य चिंतिय सुहलग्गे रज्जे अहिसिंचइ कुमारं ॥ ८६७२ ॥ आरुहिय रयणसिबियं दितो दाणाई वज्जिराउज्जो । दरीण चरणसाराभिहाण पासे समणुपत्तो ॥ ८६७३ ।। कलत्तो कइवयरायसंगओ तेहिं दिक्खिओ राया । जाओ य साहुसिक्खा वियक्खणो तक्खणे दक्खो || ८६७४ ॥ उक्किट्ठे अट्ठमासंततवविसेसट्ठियट्ठिसन्नाणे । डिबोहि भव्वो जायकेवलो सोक्खमणुपत्तो ॥ ८६७५ ॥ वयपूया भुवणपईवरन्नो जहा महाफलया । या तह अन्नस्स वि संपज्जइ तीए ता जयह ॥ ८६७६ ॥ छ ॥ नेवज्जपुयाए भुवनप्पमोयगनिवकहा ) वणप्पईव राया दीवपूयाए साहिओ तुम्ह । सुवणप्पमोयगनिवं निसुणह नेवज्जपूयाए ॥ ८६७७ ॥ उत्तमेक्करायं समत्थि बहुलसिररायरयणं पि । मुवणतिलयाभिहपुरं कुरंगसमनयणरमणियणं ॥ ८६७८ ॥ जम्मिं मणिभवणपरंपरापहापहयरयणितिमिरम्मि । त्रासहरडज्झिरागरुधूमो उप्पायइ निसं व ॥ ८६७९ ॥ महिओ सुहयगओ सचंदहासो दुहा वि सव्वत्थ । भुवणाणंदो नामेण नरवई अत्थि तत्थ थिरो || ८६८० ॥ तस्सत्थि सव्वसुद्धंतसारपयसंठिया सलीलगई । कमलमुही भुवणसिरि त्ति रायहंसि व्व पियभज्जा | ८६८१ ॥ तीए मणं आणंद पुत्तो भुवणप्पमोयओ दूरं । भुवणप्पमोयओ नाम कामसमरूवरम्मतणू || ८६८२ ॥ सद्धम्मसरुच्छेइयकुकम्मपरपत्तकोमलसिरीओ । अणुसरियसासयसुहो जइ व्व जो सहइ समरसिओ || ८६८३ ॥ ६७५ Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ कइया वि सो करेणुक्खंधगओ छत्तअंतरियतरणी । तरुणीकरसंचालियसियचमरविइज्जमाणतणू || ८६८४ ॥ नाणा जाणट्ठियमित्तमंडली मंडली य कयवेढो । चलिओ कुमरो आराममुत्तमं पेच्छिउं सबलो ॥। ८६८५ ।। भूरिकविंजलकलियं दुहा वि जं ठिओ व सपामरकुलं च । सहइ सुवन्नासणसंगयं सया रायभवणं च ॥ ८६८६ ।। पत्तो य तम्मि पविसर तालीहिं तालसालतलकलिए । कुवलीकयलीलवलीलवंगनारंगचंगम्मि || ८६८७ ॥ अवरावररमणीयारामपरंपरपरिब्भमणखित्तो । सिरिअणंतजिणचरियं मुत्तुं गयनमल्लीणो अंबयवणदक्खमंडव ॥ ८६८८ ॥ अंबयसाहाकयवज्जकिरणभरकिन्नकणयदंडम्मि । दोलोपल्लंके तूलियाए आरुहिय उवविट्ठो ॥ ८६८९ ॥ फारक्कधणुद्धरकुंतकरनराकुमरपिट्ठिमणुसरिया । पुरओ उवविट्ठा मंडलीय - सामंत - मंति- सुया । ८६९० ।। पडुपडहमंजुमद्दल आलवणी वेणुसद्दसम्मिस्सं । पारद्धं गाएउं चरिडं कुमरस्स रमणीहिं ॥ ८६९१ ॥ कुमरो वि मणोगयरायवासणावसअलद्धलक्खत्थो । इसिपकंपिरसिरो वीणं वायइ नियकरेहिं ॥ ८६९२ ॥ एत्थंतरम्मि गयणाओ मणियाभरणभूसियसरीरो । अवयरिडं संपत्तो कुमरपुरो किंनरी नियरो || ८६९३ ॥ तम्मज्झाओ उत्तमरूवाए किंनरीए एक्काए । नमिय सविणयं पेच्छणयपेच्छमब्भत्थिओ कुमरो ॥। ८६९४ ॥ संपत्ताएसाए महापसाओ त्ति जंपिडं तीए । पारद्धं पेच्छणयं कुमरपुरो परियणजयाए । ८६९५ ॥ वज्र्ज्जतवेणुवीणासराणुविद्धेण दिव्वराएण । हुफिय कंपिय कुरलिय मुद्दिय कागलियरूवेण ॥। ८६९६ ॥ Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ভত भुवनपईवनिवकहा गुंजंतमद्दलुद्दामपडहुडुक्काणसरियतालरवं । गाएउं पारद्धं कुमारचरियं मिउसरेण ॥ ८६९७ ॥ नच्चेउमुवकंतं तं मज्झा किन्नरीए पवराए । मणिमयरसणारणज्झणिरकणयकिंकिणिकलावाए || ८६९८ ॥ पसरावसरणभमिभमुहभंगकरणक्कमंगहारेहिं । नच्चइ सा करविन्नासवसवसप्पंतनयणेहिं ॥ ८६९९ ॥ निब्भच्छियमिउकलकंठकूईयं रायमालवेऊण । नच्चंती सा गायइ कुमरगुणे चंदकरधवले ॥ ८७०० ॥ तन्नट्टगीयदिन्नावहाणिया कुमरपमुहसव्वसहा । जाया तदेक्कदिट्ठी अचलंगी चित्तलिहिय व्व ।। ८७०१ ॥ पसरंतीए पसरंति उच्छलंतीए उच्छलंति समं । तीए जणनयणाई सययं सेवयकुलाई व ॥ ८७०२ ॥ अवहियहियओ जाओ रायसुओ तीए गीयनदे॒हिं । दाउमणो नियहारं तमच्छिसन्नाए वाहरइ ॥ ८७०३ ॥ ता सा चलिया रणज्झणिरकिंकिणी किं चि कंपमाणथणी । नवनेहरसभरालसनयणेहिं पलोइरी कुमरं ॥ ८७०४ ॥ सो वि हु नियहत्थेहिं थणत्थले जाव ठावए हारं । ता तीए झ त्ति आलिंगिऊण नीओ नहयलेण ॥ ८७०५ ॥ सहस च्चिय सेसो वि हु तिरोहिओ किन्नरी जणो सयलो । कुमरंगरक्खसरंभभवभयुब्भंतनयणो व्व ॥ ८७०६ ॥ जावारोवियधणुहा धणुद्धरा तमणुपक्खिवंति सरे । जावुच्छलंति तं पइ फारक्का खग्गवग्गकरा ॥ ८७०७ ॥ तीए ता रायसुओ नरनयणअगोयरे नहे नीओ । जाओ य गयच्छाओ परिवारो कुमरहरणम्मि ॥ ८७०८ ॥ गंतुं सहाए कहियं रन्नो मित्तेहिं कुमरअवहरणं । तं सोउं सो जाओ मुच्छाए अचेयणो सपिओ ॥ ८७०९ ॥ Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ सिरिअणंतजिणचरियं सिसिरकिरियासमुवलद्धचेयणो रुयइ दुहभरक्कंतो । पागयनरो व्व सह पिययमाए सुयविरहविहुराए ॥ ८७१० ॥ हा कुमर कुमर ! हा धवलचमरवीइयसरीर ! हा धीर ! । वुड्ढावत्थं मुत्तूण मं गओ कत्थ तं कहसु ? ॥ ८७११ ॥ हा कुंददसण ! हा विगयवसण हा ईसिहसण परिलसण । । हा कोमलकेस ! ह हा सुवेस ! हा रंजियसदेस ! ॥ ८७१२ ॥ हा जणयभत्त हा सारसत्त ! हा नायदेव-गुरु-तत्त । । हा पुरिसरयण ! हा गरिमगयण ! हा अमियसमवयण ! || ८७१३ ॥ को जाय ! तुम मुत्तुं पहायसमए वि मे कमे नमिही । को वा रयणाभरणे दाही बंदीण परितुट्ठो ॥ ८७१४ ॥ सिंगारसुंदरंगो अप्फालिंतो करेण को कुंभं ? । आणंदिस्सइ पउरे करेणुकीलारसपसत्तो ।। ८७१५ ॥ मंडलिय-मंति-सामंत-मित्तदासंग-रक्खपडिहारा । कुमरावहारगुरुसोयसल्लिया तत्थ कंदंति ॥ ८७१६ ॥ एत्थंतरम्मि अत्थाण कणयथंभाओ रयणपुत्तलिया । उत्तरिया मणिमंजीरमंजुझंकाररमणीया ॥ ८७१७ ॥ लीलाए चंकमंती पत्ता रायंतियं भणइ एवं । आयन्नसु निवसुयहरणकारणं चयसु सोयभरं ॥ ८७१८ ॥ दळूण सालिहंजियपुत्तलियं विम्हिओ सपरिवारो । भणइ निवो भद्दासणमलंकिउं कहसु मह देवि ! ॥ ८७१९ ॥ तो सालिहंजिया सा उवविट्ठा तम्मि आसणे अहवा । 'कीरइ अन्नस्सं वि विणयपत्थियं किं न नरवइणो ? ॥ ८७२० ।। अच्चंतविम्हियमणो सपरियणो सो निसामिउं लग्गो । कलकंठविलसिरसरा रन्नो सा साहिउं लग्गा ॥ ८७२१ ॥ बहुसामो वि सुतारो सुपत्तनयसुंदरो वि नयरहिओ । अचलो वि सव्वया वि हु वेयड्ढो अत्थि गिरिराया ॥ ८७२२ ॥ Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७९ भुवनपईवनिवकहा तत्थत्थिभूरिभूमिगभवणेहिं एक्कभूमिगविमाणं । सग्गं पि निज्जिणतं रहनेउरचक्कवालपुरं ॥ ८७२३ ॥ नियतणुतेयविणिज्जियकणयपहो तत्थ अस्थि कणयपहो । खयरवई बहुविज्जाबलदुल्ललिओ ललियदेहो ॥ ८७२४ ॥ चाईकयकणयसिरी कणयसिरी नाम अत्थि से कंता । देवगुरूणं पणया पणयावज्जियसयलसयणा || ८७२५ ॥ सोहग्गेणं गोरिं रूवेण रई सई पहुत्तेणं । अणुकुव्वंती कन्ना समत्थि से भुवणलच्छी त्ति ॥ ८७२६ ॥ उव्वणयजोव्वणजुत्ता विलसिरलायन्नपुन्नगत्ता वि । असईदासी सहिया वि छेयनिस्सेससहिया वि ॥ ८७२७ ॥ कयउब्भडंगभोगा विनट्ठनिस्सेसरोगसोगा वि । विन्नाणगुणवियड्ढा वि थीकलाविसयपोढा वि ॥ ८७२८ ॥ जणयजणणीवयंसी-दासीहिं सया भणिज्जमाणा वि । न कुणइ मयणं पि मणो पुरिसं पइ वीयमोह व्व ॥ ८७२९ ॥ (कुलय) सिंगारियं पि पुरिसं दठूणं कुट्ठियं व नियदिदि । मउलिज्जति वालइ उव्वेयवसेण सहस त्ति ॥ ८७३० ॥ चित्तट्ठियं पि दटुं रुट्ठ व्व नरं परम्मुही होई । सिविणयसच्चवियं पि हु न नियइ पुरिसं ससुरयं व ॥ ८७३१ ॥ पावकहं च निवारइ कहिज्जमाणं पि पुरिसचरियकहं । कज्जे वि नरं नालवइ विहियाण, बज्झमिव बाला ॥ ८७३२ ॥ एवं रूवं दुहियं दठूण वि चिंतए खयरराया । कस्सेसा दायव्वा मए नरवेसिणी कन्ना ॥ ८७३३ ॥ दंसिज्जए इमाए जो जो सो सो वरो न पडिहाइ । आहारो व्व अरोयगरोगक्कंतस्स सत्तस्स ॥ ८७३४ ॥ देव्ववसा जइ जायइ सीलब्भंसो इमाए ता होइ । गोत्तंमि गुरुकलंको पावमिमाए अकित्ती मे ॥ ८७३५ ॥ Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० सिरिअणंतजिणचरियं ईय चिंतासंतत्तो वुत्तो कंताए नरवई एवं ।। "मा तम्मसु पियपुच्छसु वरमइसयनाणिणमिमीए ॥ ८७३६ ॥ बहुमन्नियपियवयणो तणयं गहिउं गओ विदेहं सो । माणिक्कपुरारामे दठूणं केवलिं नमइ ॥ ८७३७ ॥ उवविसिऊणं सोऊण देसणं पत्तअंतरो नमिउं । पुच्छइ किं मह दुहिया पहु ! पुरिसव्वेसिणी जाया ॥ ८७३८ ॥ तो भणइ विमलनाणी आयन्नसु राय ! कारणमिमीए । जेणेसा संजाया विद्देसपरा पुरिसविसए ॥ ८७३९ ॥ (नेवज्जपूयाए भुवणपमोयकहा) सालीण जणावासे रइरूवकुलंगणे जणियसोहे । हसियसरो व सरोहे सालिपुराभिहपुरे रम्मे || ८७४० ॥ अत्थि नयज्जियबहधणदाणकयत्थी कयत्थिसंघाओ । सालिप्पियाभिहाणो धणिप्पहाणो धणी विणई ॥ ८७४१ ॥ अवरो वि खत्तिओ तत्थ अस्थि रणसूरनामओ चाई । नवरं तणुविहवो नो पायं चाइम्मि वसइ सिरी" ॥ ८७४२ ॥ चाईयणकरपरंपरपरियत्तणजायगुरुयखेय व्व । अत्था किविणघरत्था सत्थावत्थासुयंति व्व ॥ ८७४३ । तस्सोभयहा वि पिया विणयवई नयपरा सुसीला य । ईसीसि साहिमाणा अहव न दोसं विणा कोई ॥ ८७४४ ॥ भत्ता पियमणुवत्तइ पिया वि पइणोणुवत्तए चित्तं ।। वद्धइ दुन्ह वि पणओ जइ वा नेहो न थट्टाण ॥ ८७४५ ॥ सालिप्पियस्स कज्जाई साहए सो वि देइ दविणं से । न निओ वि कुणइ कज्ज सुहियाए किं पुणन्नजणो ॥ ८७४६ ।। जं किंपि लहइ कत्थइ तमप्पए आणिउं पियाए सो । पाणा वि जम्मि देया तत्थ अदेयं किमवि नत्थि ॥ ८७४७ ॥ Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८१ भुवणपमोयनिवकहा सालिप्पिएण कईया वि पेसिओ सो बहूए आणयणे । चलिओ दंसणपुरनयरमग्गमणुसरियसन्नद्धो ॥ ८७४८ ॥ पत्तो अडईए बहुमयसत्ताए वि अमयसत्ताए । जीए सचित्तकाया अमाणसंगावि तिरियोहा ॥ ८७४९ ॥ तीए सो नियइ वडाइवियडविडवीहिं संकडिल्लाए । खरतरणिनिहियनयणं आयावंतं मुणिं एगं ॥ ८७५० ॥ दिट्ठो य तेण उप्पाडियासिरोद्दो भडो तमभिहणिउं । जंतो भित्तीए इव खलिओ मुणिउग्गहमहीए ॥ ८७५१ ॥ उग्गहमइक्कमेउं अतरंतो चउद्दिसिं परिब्भमिरो ।। दितो व्व भत्तिजुत्तो पयाहिणाओ सुसाहुस्स ॥ ८७५२ ॥ रे मुंड तुंडभंग काउं तं निच्छएण मारिस्सं । ईय जंपिरो मुणिं पणमिउं व पडिओ अहो वयणो ॥ ८७५३ ॥ पडियं झड त्ति खग्गं मुक्कं व करेण दूरतरयम्मि । मुणिमारणअज्झवसायजायगुरुपावभीएण ॥ ८७५४ ।। पच्छाहुत्तं वलिउं बाहुजुयं साहुवहनिमित्तं च । गंतुमणीहंता इव पत्ता पाया सिरे तस्स ॥ ८७५५ ॥ जाओ गीवाभंगो रुहिरं नीहरइ तस्स वयणाओ । अहवा जं चिंतिज्जइ परस्स तं अत्तणो एउ ॥ ८७५६ ॥ उद्धट्ठियम्मि खग्गे उच्छलिउं सो तयग्गमारूढो । परिभमइ गुरुरएणं वंसारूढो नडनरो व्व ॥ ८७५७ ॥ एत्थंतरे अणब्भाविज्जु व्व नहाओ झ त्ति अवइन्ना । एक्का अमरी पिंजरियदिसिमुहा देहदित्तीए ॥ ८७५८ ॥ कुंडलकिरीडकेऊरकडयहारोहसोहधरदेहा । तिपयाहिणिउं नमिउं च सा ठिया साहुणो पुरओ ॥ ८७५९ ॥ दह्रण तमच्छरियं रणसूरो मुणिसमीवमल्लीणो । । पणमिय कयंजलीउडो उवविट्ठो समुचियट्ठाणे ॥ ८७६० ॥ Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८२ सिरिअणंतजिणचरियं एत्थंतरे निसन्नो उस्सग्गं पारिऊण साहू वि । भणियं च देवयाए पुणरुत्तं पणमिणमिमं ॥ ८७६१ ॥ पहु ! अहमिमाए अडईए सामिणी इह समागएण तए । नूण कया पवित्ता असमप्पसमेक्करसिएण ॥ ८७६२ ।। एसो हु पच्चणीओ पावप्पा कोइ तुम्ह हणणत्थं ।। इंतो एवं विहिओ मए अदिस्साए खलिऊण ॥ ८७६३ ॥ भणइ मुणीकयकरुणा देवि ! इमं मुयसु जाव नो मरइ । उवसग्गसहणकज्जे आगच्छामो वयं जमिहं ॥ ८७६४ ॥ साहुण अलंकारो खंति च्चिय देवि ! नो पुणो कोवो । उवसग्गपरे नूणं तीए विसओ जओ भणियं ॥ ८७६५ । जं खमसि दोसवंते सो तुह खंतीए होइ अवयासो । अह न खमसि को तुह अविसयाए खंतीए वावारो ? || ८७६६ ॥ मुत्तुं मुणिमज्जायं कोवं थोवं पि जइ जई कुणइ । ता सुतवाइसव्वं निरत्थय तस्स जेणुत्तं ॥ ८७६७ ॥ पढउ सुयं धरउ वयं कुणउ तवं चरउ बंभचेराई । तह वि तयं सव्वं पि हु निरत्थयं कोववसयस्स ।। ८७६८ ॥ अम्हाण देवि ! एयं वयसव्वस्सं रिउम्मि कुविए वि । अक्कोसाइं कुणंते लाहो त्ति विभावणं जेण ॥ ८७६९ ॥ अक्कोसहणणमारण-धम्मभंसाण बालसुलभाण । लाभं मन्नइ धीरो जहोत्तराणं अभावम्मि ॥ ८७७० ॥ अम्हाण मोक्खपुरत्थियाणमेएण काउमारद्धं । साहेज्ज मओ एसो उवयारी मुंच ता एयं ॥ ८७७१ ॥ सोऊण साहुदेसणमसमप्पसमामयपवहसरिसं । रंजियहियया देवी पयंपिउं एवमारद्धा ॥ ८७७२ ।। धन्नो सि तुम मुणिरयणतिव्वतवतेयलद्धिजुत्तो वि । काउं खम्ममियमवयारयं पि मित्तं व मोइंतो ॥ ८७७३ ॥ Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८३ भुवणपमोयनिवकहा एवं पसंसिय मुणिं अदिट्ठबंधाओ तं भडं मुत्तं । धम्ममई संजाया देवी सहस त्ति मुणिवयणा ॥ ८७७४ ॥ सो वि भडो पयलग्गो अवराह खामए नियं मुणिणो । 'दूरम्मि पाणदाया पुज्जो अवरो वि उवयारी ॥ ८७७५ ॥ भणइ य तइ सोमे वि हु सच्चविए कलुसियं मणो मज्झ । अमयकरे वि हु दिढे कमलं संकुयइ जमजोरगं ॥ ८७७६ ॥ मारणपरे रिउम्मि वि तुह पहु ! हियए पवद्धिओ पसमो । दाहकरे वि निदाहे सीयं वि य होइ हिमसेले ॥ ८७७७ ॥ ता मज्झ देहि दिक्खं पावाओ इमाओ नन्नहा मोक्खो । “वेरग्गे जं न कयं नृणं तं दुक्करं पच्छा” ॥ ८७७८ ॥ तो से दिन्ना दिक्खा मुणिणा देवीए अप्पिओ वेसो । धम्मुज्जयम्मि जइ वा मूलं सोक्खस्स साहेज्जं ॥ ८७७९ ॥ नवदिक्खयं पसंसिय सट्ठाणे देवया गया झ त्ति । दठूण तमच्छरियं भणइ मुणिं नमिय रणसूरो ॥ ८७८० ॥ दुक्करदिक्खा एते मज्झे समत्तस्स कहसु गिहिधम्म । “दिज्जइ न जओ दुद्धं रोयम्मि रसाहिए अहवा” ॥ ८७८१ ।। भणइ मुणी गयरायं देवं आयरसु उज्झिय सरायं । मुत्तूण कामधेनुं किं गिण्हइ गद्दहिं को वि ॥ ८७८२ ॥ नाणालोए गुरुणा गिण्हसु रविणो व्व जयपवित्तकरे । पविसिऊण गुरुणो बहलनिसीहे व्व तमबहुले ॥ ८७८३ ।। अंगोकरेसु धम्म सुक्खकरं दुहयरं चइयपावं । मुत्तुमजरामरममयं को मच्चुक्करं गरं गिलइ ॥ ८७८४ ॥ कप्पद्रुमं व वंछियफलयं आयरसु उत्तमं तत्तं । किंपागं पिव संमोहकारयं मा पुण अतत्तं ॥ ८७८५ ॥ चत्तारि वि एयाई सुदेव-गुरु-धम्मतत्तरूवाई । नारयतिरियनरामरगईओ चउरो अवहरंति ॥ ८७८६ ॥ Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ सिरिअणंतजिणचरियं एयं पवयणसारं काउमसत्तो समग्गमवि भव्यो । एक्कं चिय जिणपूयं कुणमाणो लहइ सिवसोक्खं ॥ ८७८७ ॥ वासक्खय-जल-फल-दीव-धूव-नेवज्ज-कुसुमभेएहिं । अट्ठप्पयारपूर्य कुणंति भव्वा जिणिंदाणं ॥ ८७८८ ॥ सव्वाओ वि असत्तो काउं नेवज्जपूयमेक्कं पि । कुव्वंतो दुक्कम्मं पाणी पडिहणइ सव्वं पि ॥ ८७८९ ॥ भुज्जइ जं वा तं वा रविउदयत्थमणमज्झयारम्मि । दिज्ज्जइ जिणस्स ता भो कयाइ थोवं पि पुन्नकए ॥ ८७९० ॥ पाविज्जइ परलोए अणंतमप्पं पि इह भवे दिन्नं । धन्नं ववियं थोवं पि फलइ तं नूण बहुगुणियं ॥ ८७९१ ॥ नियविहयसमुचिएहिं महुराहारेहिं मोयगाईहिं । जिणमच्चंता सासयतित्तिं पावंति भणियं च ॥ ८७९२ ॥ "खणतित्तिएण लब्भइ नेवज्जेणं जमक्खया तित्ती । तं सासयसिवसुहतित्तिं तित्थनाहस्स माहप्पं ॥ ८७९३ ॥ ता जइ सासयसिवसुहतित्तिं वंछसि अहो महासत्त ! । ता कुणसु देवपूयं दाउं भत्तीए नेवजं ॥ ८७९४ ॥ सो आह अज्ज पत्ता चिंतामणिकामधेणुकप्पडुमा । रन्नम्मि वि जं जायं मह पहु तुह दंसणममोहं ॥ ८७९५ ॥ ता इहपरलोयहियं कहियं तुब्भेहिं जं तयं काहं । को नाम सिरिमुर्विति पहणइ पायप्पहारेण ॥ ८७९६ ॥ इय जंपिय नमिय मुणिं चलिओ संदणपुरम्मि संपत्तो । मोयाविय सालिप्पिय बहुयं गहिउं तयं वलिओ ॥ ८७९७ ॥ गुरुवेयवाहणेहिं थेवदिणेहिं पि नियपुरे पत्तो । पणमित्तु मोयगा सासुयाए बहुयाए उवणीया ॥ ८७९८ ।। तीए वि सयणभवणेसु पेसिया समुचियक्कमेणंते । अहवा उचियायरणं कुलंगणाणं कुलायारो ॥ ८७९९ ॥ Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८५ भुवणपमोयनिवकहा बहुदक्खेला-नालियर-खंड-कप्पूरमिस्सिओ एगो । दिन्नो रणसूरस्सा वि मोयगो माणयपमाणो ॥ ८८०० ॥ बंधुरगंधं तं गिहिऊण लग्गो सगेहमग्गे सो । अंतो रमंतसद्धम्मपरिणई चिंतए एवं ॥ ८८०१ ॥ एएण भक्खिएणं जावज्जीवं न होहिही तित्ती । जाव मुहे ता सुरसो एसो पोट्टगओ असुई ॥ ८८०२ ॥ ता इमिणा सुरसेणं भक्खेण करेमि देवनेवज्जं । जं मह पच्छा दुलहो एवंविहउत्तमाहारो ॥ ८८०३ ॥ इय चिंतिऊण वलिउं चलिओ मग्गे जिणिंदभवणस्स । अहव पमाओ काउं किं जुज्जइ धम्मकम्मंमि" || ८८०४ ॥ गच्छंतो संपत्तो जिणालयं नियइ सुरविमाणं च । अनिलचलद्धयरणज्झणिरकिंकिणीनियररमणीयं ॥ ८८०५ ॥ जम्मि जिणसम्मुहानिलचालियबलिनिहियसेयकुसुमाइं । पूएउं च जिणिदं जंताई जवेण सोहति ॥ ८८०६ ॥ पुप्फोवहारचुंबणपराई बहुचंचरीय चक्काई । जम्मि जिणवंदियतुट्टकम्मनियलाई व सहति ॥ ८८०७ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतकंतं जिणेसरं रिसहं । जय जय जय त्ति जय पहु त्ति जंपिरो नमइ भत्तीए || ८८०८ ॥ चित्तभंतरसमुल्लसंतबहुमाणजायरोमंचो । आणंदवसपवत्तं सुविसरजलधोयगंडयलो ॥ ८८०९ ॥ तं पावमोयगं मोयगं सयं मुयइ सामिकरकमले । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ८८१० ॥ पुणरवि पणमित्तु पहुं खोणीमंडलमिलंतभालयलं । पत्तो निययावासे सो उक्कंठिय पिया पासे ॥ ८८११ ॥ अन्नोन्नं मिलियाणं ताणुप्पन्नो महासुहक्करिसो । "अवरे वि निए मिलिए होउ सुहं किं न कंताएं" ॥ ८८१२ ॥ Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ सिरिअणंतजिणचरियं कईया वि तस्स कंता वुत्ता सालिप्पिय पिययमाए । किं स्वरसेण तुह पियस्स जो मोयगो दिन्नो ॥ ८८१३ ॥ तं सोउं सा चिंतइ किमहं न पिएण दिन्नमद्धं पि । "जइ वा न वल्लहे वि हु लोहपराणं हवइ नेहो ॥ ८८१४ ॥ नियघरजुत्ताजत्ता वत्ता नन्नस्स साहिउं जत्ता । इय चिंतिय तीयुत्तं अच्चंतं तम्मि रसवत्ता || ८८१५ ॥ धणरहियाण वि गेहे लोओ पेसइ जमुत्तमं वत्थु । किं पुण ससुरकुलम्मिं विसेसओ तम्मि वि धणड्ढे ॥ ८८१६ ॥ इय जंपिय नियगेहे पत्ता पियविसयजायअवमाणा । विप्फुरियफारअरई उवविट्ठा दूरमुव्विग्गा ॥ ८८१७ ॥ वामकरखित्तमुही सरलस्सासा अलद्धलद्धच्छी । पियगयअणप्पकुवियप्पकप्पणुप्पन्नसंतावा || ८८१८ ॥ चिंतइ पिएणमविभइय मज्झ न कयाइ अत्तणा भुत्तं । अज्जं तु सुयमिमं नो दीसइ किं जीवमाणेहिं ॥ ८८१९ ॥ तं चिय निवससि मह माणसम्मि न तरामि तं विणा ठाउं । इय मायावयणेहिं अहमप्पवसा कया तेण ॥ ८८२० ॥ धुत्तपउत्तीहिं नरा एवं रमणीओ वेलवेऊण । निम्मल्लमालियाओ व कयकज्जा झ त्ति उज्झंति ॥ ८८२१ ॥ मंदमईओ अविवेइणीओ तुच्छाओ अपढियसुयाओ । “विरईओ विप्पयारिय विडा विडंबंति विलयाओ" ॥ ८८२२ ॥ जेत्तिय मित्ता विज्जा हुंति पवंचा वि तेत्तिया नूणं । तो पुरिसेहिं सवसयाओ मुद्धमहिलाओ कोरंति ॥ ८८२३ ॥ दुव्विलसियाई काउं कुवियपियाए तमुत्तरं दिति । नियसच्छयाए सच्चा इमे त्ति मन्नंति तो ताओ ॥ ८८२४ ॥ इय चिंतावसअच्चंतजायवरविसयविसयविद्देसा । तं चेव गरुयवेरग्गकारणं धरइ हिययम्मि ॥ ८८२५ ।। Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८७ भुवणपमोयनिवकहा पइविद्देसवसाए वि तीए मुक्कं न विणयकरणिज्जं । लंघंति न रुट्ठाओ वि कुलबहुयाओ कुलायारं ॥ ८८२६ ॥ तेणेव य वेरग्गेण भत्तुणो मोईऊणमत्ताणं । पडिवन्ना बालतवं नवरं न मुयइ पिएणुसयं ॥ ८८२७ ॥ रणसूरो पुण सरलस्सहावओ सरइ नियगुरुकमेणं । दीणाइयाण दाणाई देइ न करेइ अन्नायं ॥ ८८२८ ॥ एवं मज्झिमपरिणामवससमज्जियनराओ निवरिद्धी । मरिऊण भुवणतिलयाभिहपुरनिवनंदणो जाओ ॥ ८८२९ ॥ तब्भज्जा विनयावज्जियविज्जाहररिद्धिभोयसंभारा । मरियसुया तुह जाया रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ८८३० ॥ पुव्विल्ल भवम्मि सया पुरिसवेसेण संगया जमिमा । इह जम्मे वि तमुव्वहइ तुह सुया निव ! नरविद्देसं ॥ ८८३१ ॥ भणियं केवलिणा नहयरिंद ! तुह कन्नयाए पुरिसम्मि । विद्देसकारणमिमं पयासियं पुच्छमाणस्स ॥ ८८३२ ॥ तं सोउं जाईसरणनाणविन्नाय नियभवा भणइ । पहु ! तं तहेव सच्चं तुन्भेहिं जहा समक्खायं ॥ ८८३३ ॥ तो सो ससुओ नयकेवली गओ नियपुरे खयरराया । जाया य निव्वियप्पा पियाभिमाणे भुवणलच्छी ॥ ८८३४ ॥ चिंतइ महाणुभावेण तेण तईया न विरईयमजुत्तं । जं मोयगेण विहिया पूया देवाहिदेवस्स ॥ ८८३५ ॥ तईया दईए सरले वि दुब्वियप्पं पकप्पमाणीए । महिलाण मए पयडीकयं धुवं तुच्छपयइत्तं ॥ ८८३६ ॥ जइ हं तं पुच्छंती ता सो तईया वि मह पयासंतो । जं पुच्छिएण तेणं कयाइ वडुत्तरं न कयं ॥ ८८३७ ।। इय चिंतंती जाया पियम्मि पोढाणुराइणी बाला । निय दुव्विलसियसुमरणउव्विरविहुरियरणरणया ॥ ८८३८ ॥ Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૮૮ सिरिअणंतजिणचरियं चत्तो रत्तो वि पिओ भवम्मि पुव्वे इमाए कुवियप्पा । इय चिंतिय कुविएण व कामेण सरेहिं पहिया सा ॥ ८८३९ ॥ दाहो वाहो कंपो हियए नयणेसु देहजट्ठीए । तव्वेलं चिय तीए संजाया सत्तिया भावा ॥ ८८४० ॥ अरईसयगसिक्कारवसविणिक्खंतरत्तदंतपहं । हिययम्मि अमायंतं उव्वणमइ पियाणुरायं व ॥ ८८४१ ॥ असुहपसरप्पकंपिरकडजुयनहसुत्तिकंतिपसरेण । धवलंती चंदणरसपंकेण व ताविलं देहं ॥ ८८४२ ॥ ईय पसरियनियपियविरहतावदावग्गिदज्झमाणतणू । उव्वेया वेयवसा बाला कळं दसं पत्ता | ८८४३ ॥ गरुयाणुणयपुरस्सरपुच्छंतसहीणसाहिओ तीए । पुव्वप्पियम्मि भुवणप्पमोयगे निवसुए नेहो ॥ ८८४४ ॥ भणई य जइ तमहं पुव्वभवपियं हे सहीओ न लहेमि । देमि धुवं ता जलणस्स आहुई नियसरीरेण ॥ ८८४५ ॥ नहयरनाहस्स सहीहिं साहिओ तीए निय सुए राओ । तो से तोसो जाओ सुयाए कुमराणुरत्ताए ॥ ८८४६ ॥ जंपइ पन्नत्तिं देवयं निवो देवि ! आणसु कुमारं । अच्चाहियं न जायइ जा मह जीवियसमसुयाए ॥ ८८४७ ॥ तो इह देवी पत्ता पत्ते कुमरम्मि रम्ममुज्जाणं ।। काऊण किन्नरीपेच्छणच्छलंतीए हरिओ सो ॥ ८८४८ ॥ नेउं रहनेउरचक्कवालनयरम्मि नहयरिंदस्स ।। सो उवणीओ तीए सह कुमरीए पमोएण ॥ ८८४९ ॥ कयगोरवेण कुमरस्स राइणा कहिय कन्नया चरियं । भणियं पुव्वभवपियं परिणसु तं वच्छ ! मह दुहियं ॥ ८८५० ॥ तं सोउं जाईसरणनायनियपुव्वजम्मवुत्तो । जंपइ तए जमुत्तं काहं सव्वं पि तं किंतु ॥ ८८५१ ॥ Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८९ भुवणपमोयनिवकहा हरिए मए ममंबा पिऊण जायं भविस्सइ दुहंतं । जेण न होहिंति पहूणि ताणि नियपाणधरणस्स ॥ ८८५२ ॥ तयणु नहयरनिवेणं कुमारकुसलप्पउत्तिकहणकए । तुम्हतियम्मि पन्नत्तिदेवया पेसिया एत्थ ॥ ८८५३ ॥ एयं समहिट्ठियसालिभंजियं कणयथंभयग्गाओ । अवयरिय मए कहिओ तुह सुयअवहरणवुत्तंतो || ८८५४ ॥ इय भणिऊणुच्छलिउं सट्ठाणे सालिहंजिया पत्ता । . अत्थाण जणा सव्वो वि विम्हिओ नरवइप्पमुहो ॥ ८८५५ ॥ जपति सव्वसामंतमंतिणो देव ! पेच्छ अच्छरियं । जं जंपंती सजीवारमणीओ व रयणपडिमाओ ॥ ८८५६ ॥ देवो च्चिय पुन्नपयं जस्स सयं खेयरी ठिया बहुया । किं कामदुहा घेणू अभद्दनरगेहमल्लियइ ? ॥ ८८५७ ॥ एवं जंपंताणं ताणं सो वासरो वइक्कंतो । माणियसुहनिद्दाणं झड त्ति रयणी वि अवसरिया ॥ ८८५८ ॥ काऊण दिणयरोदयकरणिज्जं रइयरम्मसिंगारो । उवविसइ सहाए निवो नमंतसामंतमंतियणो ॥ ८८५९ ॥ एत्थंतरे अनिलचलद्धयावली रणज्झणंतकिंकिणियं । मणिकिरणभरियभुवणं विमाणविंदं समणुपत्तं ॥ ८८६० ॥ गयणंगणमुक्कविमाणचक्कनीहरियनहयरनिवेहिं । अणुगम्मतो सालयभुयलग्गो आगओ कुमरो ॥ ८८६१ ॥ अत्थाण सन्निविट्ठ जणयं पणमइ महिमिलियमउली । तेणावि गाढमालिंगिऊणमापुच्छिओ कुसलं ॥ ८८६२ ॥ पुणरुत्तं पणमिय भणइ ताय । कुसलं तुहप्पसाएण । कयजणणिपयप्पणई उवविट्ठो पिउ पयासन्ने ॥ ८८६३ ॥ सह नहयराहिवइणा रन्ना काऊण उचियपडिवत्तिं । उववेसिओ निए सो मणिमयसीहासणद्धम्मि ॥ ८८६४ ॥ Jai Education International Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९० सिरिअणंतजिणचरियं सेसा वि खयरपहुणो पणमिय दिन्नासणेसु उवविट्ठा । पणयाए बहुयाए भव पुत्तवइ त्ति भणइ निवो ॥ ८८६५ ॥ तो सा पणमित्तु कुमारमायरं वामपासमुवविट्ठा । सुयहरणा विणयं खमसु राय ! इय भणइ खयरवई ॥ ८८६६ ॥ जइ न हरावंतो हं तुह तणयं ता सुया मरंती मे । विहिओ मए अनाओ इमो सुया जीवणनिमित्तं ॥ ८८६७ ॥ रायाह एस अनओ न होउ खयरिंद ! नणु इमा नीई ।। *समयाणुवत्तणं बहुगुणं च जं सो नरिंदनओ ॥ ८८६८ ॥ खयराहिव ! बहुसुहमिच्छिरेहिं कटुं सहिज्जए थोवं । किमणंतसिवसुहत्थे कलै न कुणंति मुणिवसहाँ ? || ८८६९ ॥ विणओ च्चिय एसो अविणओ वि अहियं नरिंद ! तुह मन्ने । कन्ना तए विइन्ना जं मह भूगोयरसुयस्स ॥ ८८७० ॥ इय जंपिय सम्माणो तस्स कओ राइणा खयरपहुणो । परिवारजुयस्स जहा सविम्हओ सो ठिओ दूरं ॥ ८८७१ ॥ एवं नरवरसम्माणकरणसंजायसमहियसिणेहा । ठाऊणं दिवसदुगं सट्ठाणे खेयरा पत्ता ।। ८८७२ ॥ नवकंता संजुत्तो विविहविणोएहिं कीलइ कुमारो । उवविसइ य अत्थाणे पिउपासे उभयसंझं पि ॥ ८८७३ ।। कइया वि परभवो चिय सुकज्जकरणुज्जुएण नरवइणा । गुरुरिद्धिवित्थरेणं कुमरो अहिसिंचिओ रज्जे ॥ ८८७४ ।। तो मोहमल्लनामस्स सूरिणो पायपउममणुसरिउं । गहिया दिक्खा रन्ना तवियतवं सो सिवं पत्तो ॥ ८८७५ ॥ नवनिवई वि नएणं पालेइ पयं विणिग्गहइ दुढे । समुवज्जइ विमलजसं कुणइ य सद्धम्मकिरियाओ ॥ ८८७६ ॥ कइया वि रणज्झणमाणकिंकिणीगणविमाणमारुहिउं । गंतुं मंदरनंदीसरेसु सासयजिणे थुणइ ॥ ८८७७ ॥ Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९१ गंधबंधुरकहा सुहसिविणसुईयसुयं कइया वि पसविया भुवणलच्छी । भुवणाभरणो त्ति कयं नामं सम्माणियजणं से ॥ ८८७८ ॥ बालत्तमइक्कंतो गाहियबावत्तरी कलो कुमरे । अच्चब्भुयरूवाओ विवाहिओ रायकन्नाओ ॥ ८८७९ ॥ समयंतरम्मि रज्जे भुवणाभरणं निवेसिउं राया । विहिय चउवरनाणी होउं पत्तो महाणंदं ॥ ८८८० ॥ नेवज्जेणं पूया जहा कया राइणा इमेण तहा । सासयसिवसुहकज्जे कज्जा अवरेण वि जणेण ॥ ८८८१ ॥ (वासपूयाए गंधबंधुरकहा) भुवणप्पमोयगनिवो कहिओ नेवज्जपूयमभिसरिउं ।। इण्हि तु वासपूयाए गंधबंधुरकहं भणिमो ॥ ८८८२ ॥ रम्मारामसरोवरपुक्खरिणिविरायमाणचउपासं । वसुहासारं नयरं समत्थिवित्थिन्नपायारं ॥ ८८८३ ॥ नहसन्निहफालिहगयणलग्गजिणहरसिरग्गमग्गठिओ । खणमेत्तं लक्खिज्जइ जम्मि रवीरयणकलसो व्व ॥ ८८८४ ॥ रयणियरकिरणसियकित्तिबंधुरो कित्तिबंधुरो नाम । फुरियप्पयावपसरो पयावई अत्थि तत्थ पुरे ॥ ८८८५ ॥ धरणिधररइयसेवो जो विणयाणंदकारओ दूरं । अहिजाइकयविणासो विरायए गरुडपक्खि व्व ॥ ८८८६ ॥ सव्वुत्तमपत्ताहियछाया परमालिया सुहप्पसवा । लइय व्व कित्तिलइया समत्थि रन्नो महादेवी ॥ ८८८७ ॥ तीयत्थि तणुत्थसुगंधबंधुरो गंधबंधुरो नाम । कुमरो अमरोवमरूवरम्मया रमणिमणहरणो ॥ ८८८८ ॥ सुकयासियवन्नधरं सिरं व उव्वहइ जो नियसरीरं । परमहसियगुणजुत्तं सुहमिवरयणाभरणजायं ॥ ८८८९ ॥ नरनाहमंडलेसरसामंतमहंतमंतिपुत्तेहिं । सययं सेविज्जतो कालं अइवाहइ कुमारो ॥ ८८९० ॥ Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९२ सिरिअणंतजिणचरियं कईया वि नियप्पासायचंदसालागवक्खमल्लीणो । विविहविणोयक्खित्तो जा चिट्ठइ सह वयंसेहिं ॥ ८८९१ ।। ताव सहस त्ति एगो कीरो नियपक्खनीलकंतीए । हरियाली कलियं पिव नहं कुणंतो समणुपत्तो ॥ ८८९२ ॥ अच्छरियं जणयंतो जणस्स कुमरक्कमे नमेउं सो । मुहुरगिरं पयडक्खरमेवं विन्नविउमारद्धो ॥ ८८९३ ॥ आरामाहियवासो रायसुओ रत्तवयणविन्नासो । तुममिव कुमर ! अहं पि हु तेणाहं तं समल्लीणो ॥ ८८९४ ॥ ता आयन्नसु कज्जेणमागओ जेण विन्नवेमि तयं । निक्कज्जाओ पवित्तीओ हुंति जइ वा न सउणाण ॥ ८८९५ ॥ तं सोऊण पयंपइ कुमरो कीराहिराय ! उवविसिउं । रयणासणम्मि साहसु तो सो उवविसिय साहेइ ॥ ८८९६ ॥ अत्थिरयाहियतुरयं अत्थिरयाहियसुवन्नवरदाणं । अत्थिरया रहियजणं उदयाणंदाभिहं नयरं ॥ ८८९७ ॥ तम्मि नमिरनरेसरसिरिसेणा मणिप्पहासिसंगपओ । उदियप्पयावराया समत्थि वित्थरियजसपसरो ॥ ८८९८ ।। सच्छप्पयई कालुस्सहारिणी सारसोहसंजुत्ता । उदयावलि व्व उदयावली पिया अत्थि नरवइणो ॥ ८८९९ ॥ विलसंतविमलसंखा कयसयवत्तालिचक्कसंखोहा । उदयस्सिरि त्ति उदयस्सिरि व्व तीए समत्थि सुया ॥ ८९०० ॥ सरलसहावा नियनासिय व्व सिहणस्सिहि व्व सुपवित्ता । दूरं रत्तं अहरं व धरइ जा वयणविन्नासं ॥ ८९०१ ॥ निरूवमरूवं कमणीयजोव्वणं तं समग्गसोहग्गं । अवलोइउं जुवाणा वहंति दूरं मणुम्मायं ॥ ८९०२ ॥ दळूणतठें हरिणच्छिपेच्छियं तीए नीइनिउणा वि । मुणिणो वि अणप्पवसा हवंति किं निव्विवेयाओ ॥ ८९०३ ॥ Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९३ गंधबंधुरकहा कइया वि सा सहियणसहिया सिंगारगारवग्घविया । आरुहिय कणयमणिमयसुहासणं चलिरसियचमरा ॥ ८९०४ ॥ मुत्तावचूलविलसंतछत्तअंतरियतरणिकरपसरा । सहयारसारमुज्जाणमागया कीलिङ बाला ॥ ८९०५ ॥ परिपक्कफुट्टदाडिमबीयावलिनिद्धदंतपंतीहिं ।। हसइ व्व जं नरेसरसुया समागमणतोसेण ॥ ८९०६ ॥ विलसंतकुसुमलईया सियकलिया चक्कवालकलियं जं । कुमरी संगवसुल्लसियपुलयपब्भारभरियं वा ॥ ८९०७ ॥ अंबयवणकयलीहरदक्खमंडवमणोभिरामम्मि । तम्मि पविट्ठा बहुकुसुमपरिमलब्भमिरभमरम्मि ॥ ८९०८ ॥ पेच्छइ अतुच्छअच्छरियकारयं नरमुहं मऊरं सा । विलसिरसुतारचंदयविरायमाणं नहयलं व ॥ ८९०९ ॥ मुत्तावलईयमरगयकुंडलकरछुरियनिम्मलकवोलं । चंदणमयणाहीरे हरई य बहुभंगिपत्तं व ॥ ८९१० ॥ भमरउलकालकुंतलधम्मिल्लुल्लसियसियकुसुममालं । सामचउद्दसिनिसिदिस्सविमलरयणीयरकलं व ॥ ८९११ ॥ दटुं कुमरिं नियचरणचारुसंचाररणिरघग्घरिओ । गंतूण संमुहो भणइ कुमरि तुह सागयं एत्थ ॥ ८९१२ ॥ एहिं इहं च वणंतो कयलीहरए सदक्खमंडवए । उवविसिउं आयन्नसु जं किं पि अहं तुह कहेमि ॥ ८९१३ ॥ तं अवलोइय अच्चब्भुएक्कहेउं सहीओ सा भणइ । कोऊहलमवलोयह जमिमो दीसइ नरमऊरो ॥ ८९१४ ॥ तह वाहरइ सविणयं जं किं पि हु मज्झ कहिउमिच्छंतो । ता तं आयन्नेमो उवविसिउं साहए जमिमो ॥ ८९१५ ॥ जंपति ताउ सामिणि, तुम्हाण च्चिय पमाणमम्हाण । कज्जेसु समग्गेसु वि किं पुण एवंविहच्छरिए ॥ ८९१६ ॥ Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९४ सिरिअणंतजिणचरियं तं सोउं मुक्कसुहासणा वि कुमरी सुहासणे ठाइ । उवविट्ठासु सहीसु कहिउं लग्गो नरमऊरो || ८९१७ ॥ अत्थि गरिट्ठसुरट्ठा विसिट्ठवसुहा वयंससंकासं । वसुहा वयंसयं नाम नयरमइरम्मरमणियणं ॥ ८९१८ ॥ रयणावयंसयनिवो तं पालइ जो रणागयं पि रिउं । अस्सत्थमुभयहा वि हु मुंचइ अस्सत्थमवि सदओ ।। ८९१९ ।। तत्थ निवमाणणिज्जो पुज्जो पउराण पउरगुणभवणं ।। दीहरदिट्ठी सेट्ठी निवसइ नयवद्धणो नाम || ८९२० ॥ तस्सत्थि भाइपुत्तो सुरूववंतो धणावहो नाम । उवरयजणओ त्ति करेइ तस्स गुरुगोरवं सेट्ठी ॥ ८९२१ ॥ मुत्तूण नियंगरुहे वियरई वत्थाई तस्स परमंसो । अहव गरूयासयाणं अप्पपरवियारणा नत्थि ॥ ८९२२ ॥ परिणाविओ य उम्मीलमाणनवजोव्वणाभिरामतणु । धणसेट्ठिसुयं नामेण धणवई सीलकुलभवणं ॥ ८९२३ ॥ कइया वि हु असुहोदयवसओ सो सेट्ठिमाह मह ताय ! । वियरसु घरस्सिरीए अद्धं भिन्नो भविस्समहं ॥ ८९२४ ॥ तं सोऊण पयंपइ सेट्ठी किं वच्छ ! एवमुल्लवसि ? । तं मुत्तुं को अन्नो घरस्सिरी सामिओ कहसु ॥ ८९२५ ॥ अच्चब्भुयभोयअमाणदाणकज्जे धणव्वयं कुणसु । अणुकूलम्मि मए वच्छ ! तुज्झ को नाम पडिकूलो ॥ ८९२६ ।। अवरं च तमेगागी पडिवालसु जाव पुत्तउप्पत्तिं । नूणं जं न मुणेमो वियंभियं विहिविलासस्स ॥ ८९२७ ॥ ईय जंपिओ वि न मुयइ तग्गाहं तयणु ससुरयस्सावि । न कुणइ भणियमजोग्गाणऽहवा कत्तो गुणाहाणं ? || ८९२८ ॥ तो एगंते कंताए नीइजुत्ताए जंपिओ नाह ! । मा पेच्छसु अच्छीहिं हियएण सुदीहमिक्खेसु ॥ ८९२९ ॥ Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंधबंधु कहा तच्चितं संपज्जइ सव्वं पि ठियाण गुरुसमीवम्मि । लवणं पि संचिताए भविही भिन्नट्ठियाण पुणो ॥ ८९३० ॥ कस्सइ पुन्नेण इमा लच्छी उल्लसइ नज्जइ न एयं । ता का नाम कुबुद्धी तुम्हाणं भवह जं भिन्ना ॥। ८९३१ ॥ इय तीयुक्तो जंपइ तुच्छमई तं न पेच्छसि किमेयं । अहमेगागी एयं गरुयकुंडंबं सिरी जाइ ॥ ८९३२ ।। ईय जंपिय सेट्ठिसयासओ सिरिं विभइउं ठिओ भिन्नो । कारावियं च गरुयं ति भूमियं तेण धवलहरं ।। ८९३३ || पारद्धो ववहरिडं जलथलमग्गेसु भूरिदविणेण । वुड्ढि निमित्तं दितो दव्वं पडयाइ वि न लेइ ॥ ८९३४ ॥ तुरयारूढो माऊरछत्तअंतरियतरणिसंतावो । हिंडइ वणिउत्तव्वूहवेढिओ रम्मसिंगारो ॥। ८९३५ ॥ नो सयणाण न मित्ताण नेव लिंगीण जायगाण वि नो । वियरइ कस्सइ किं पि हु दिंति दईयं पि वारेइ ।। ८९३६ ॥ कूडव्ववहारेहिं हत्थं चिय वच्छ ! गच्छिही लच्छी । इय सेट्ठिए उत्तो भाइ ताय ! सगिहं विचिंतेसु || ८९३७ ॥ गहिय धणाओ लोगो वि किंपि से देइ सेट्ठिलज्जाए । "दूरे गुरुण आणा तेसिं लज्जा वि सिरिजणणी" ।। ८९३८ ॥ देव्ववसेणं कालक्कमेण पंचत्तमुवगओ सेट्ठी । पच्छा सो निस्संको अहिययरे कुणइ ववहारे ॥। ८९३९ ॥ अह तस्स असुहवसओ सिरी समग्गा वि नासिउं लग्गा । मग्गिज्जंतो लोगो दुव्वयणे देइ नो दव्वं ॥ ८९४० ॥ देसंतरेसु विठिया वणिउत्ता जायभूरिधणलाहा । दिट्ठा विलोहिउमलं लच्छी किं नो सहत्थगया ।। ८९४१ ॥ सो निक्खिणिही नूणं दाहिइ न कयाइ इमं सुता । इय भीय व्व सिरी भिन्नपवहणा सायरे मग्गा || ८९४२ ॥ ६९५ Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९६ सिरिअणंतजिणचरियं देइ न कणं पि कस्सइ एसो बहु धन्नसंगहपरो वि । इय भावियकुविएण व दड्ढा जलणेण कोट्ठारा ॥ ८९४३ ॥ न वि चाओ न य भोगो किमस्स ता निरुवयारिदविणेण । इय चिंतिऊण व तयं नीयं खत्तेण चोरेहिं ॥ ८९४४ ॥ इंगाल च्चिय जाया धणे निहाणीकए कुकम्मवसा । अवरदविणज्जणासा कुओ करत्थे विणस्संतो ॥ ८९४५ ॥ सयमवि दिन्नं न लहइ जणाओ कत्तो कलंतरधणं से । . उयरट्ठिय तणयासा का अंगुलिलग्गसुयमरणे ? || ८९४६ ॥ मग्गियजणनीयाई न मग्गमाणो वि लहइ रित्थाई । नियवत्थु पि न लहई जत्थ कहिं तत्थ पर वत्थु ॥ ८९४७ ॥ ससुरेणा वि विइन्नं बहुवाराओ धणं तयं पि गयं । पत्ता वि सिरी झिज्जइ नूणमकल्लाणकलियाण ॥ ८९४८ ॥ किं बहुणा संजायं दव्वं सव्वं पि से कहासेसं । तो दटुं सीयंत कंतं कंता विहियविणया ॥ ८९४९ ।। उल्लवइ दईयतइया न कयं कस्सा वि जंपियं तुमए । जइ वा दइवाभिहयाण होइ एवंविहकुबुद्धी ॥ ८९५० ॥ इय जंपिऊण तीए ववहारकए समप्पियं पइणो । निययाभरणं अहवा पइभत्ता होइ कुलकंता" ॥ ८९५१ ॥ तं पि हु कइहिं वि दिवसेहिं पेसियं तेण पुव्वधणमग्गे । अहवा जं जं खिप्पइ हुयासणो दहइ तं तं पि ॥ ८९५२ ॥ पच्छा रत्थाई वि विक्किऊण भुत्ताई तेण सव्वाइं । आयविहूणे वित्ते वइज्जमाणे कुओ रिद्धी ? ॥ ८९५३ ॥ घरहट्ठोवरि गहिऊण कंचणे भक्खियम्मि तेसि पि । चुक्को अहव अभग्गाण जाइ पिउदिन्नमवि रज्जं ॥ ८९५४ ॥ जेसिं देयं दव्वं न तेसिं पासाओ लहइ अवरत्थ । गंतुं तो तत्थेवय निवसइ अच्चंतदोगच्चो ॥ ८९५५ ॥ Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९॥ गंधबंधुरकहा जो वसिओ धवलहरे विचित्तचित्ते ति-भूमिए सययं । सो वसइ ताव जलसीयदूमिओ जरकुडीरम्मि ॥ ८९५६ ॥ जो मंदपवणपरितरलसिक्किरिच्छायमस्सिओ भमिओ । विक्कयकज्जे सो भमइ कट्ठहरे य कयच्छाओ ॥ ८९५७ ॥ जा संसुत्तो दोलाचलंतपल्लंकतूलियासु सया । सो सुयइ दब्भसत्थरयमुवगओ बाहुउवहाणो ॥ ८९५८ ॥ पडिजद्दरंबरेहिं सिंगारा जेण सव्वया विहिओ । बहुछिड्डदंडियाहिं परिहइ सो मलिणवत्थाई ॥ ८९५९ ॥ जो गरुयतुरंगसुहासणेसु आरुहिय सव्वया भमिओ ।। परियडइ फुडणखंतपयजुओ सोणुवाहणओ ॥ ८९६० ॥ नवरं इस्सरियम्मि व दारिद्दे वि हु पिया न तं मुयइ । उदयक्खएसु दइए समचित्ताओ सईओ सया ॥ ८९६१ ॥ अइसुहिओ होउं सो अच्चंतं दुहभरं समणुहवइ । पाविय संपन्नसिरी किं खंडिज्जइ न य मयंको ॥ ८९६२ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि वीवाहे सिट्ठिपुत्तकन्नाए । पारद्धे नयरजणो निमंतिओ भोयणनिमित्तं ॥ ८९६३ ॥ सो चिंतइ अज्जनिमंतणं इहागच्छिही अओ मज्झ । वन्नणकज्जे जुज्जइ खडाई आहरणगमणंतो ॥ ८९६४ ॥ गेहे च्चिय अत्थिस्सं जमिहं निमंतयनरो खडप्फडिही । इय चिंतंतो तत्थ ट्ठिओ दिणप्पहरजुयलं जा ॥ ८९६५ ॥ मज्झं दिणे वि जाए जा को वि न से निमंतओ पत्तो । ता परिभावइ एवं नाहं नाओ गिह ठिउ त्ति ॥ ८९६६ ॥ ता जामि तत्थ सयमवि नियघरगमणम्मि मज्झ का लज्जा ? | अगयस्स पुणो सयणा लहु रूसिस्संति जा जीवं ॥ ८९६७ ॥ इय कहियं कंताए सा जंपइ नाह ! मोहमढो सि ।। धणिणो सहोयरेण व दरिद्दिणा किं न लज्जंति ॥ ८९६८ ॥ Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ सिरिअणंतजिणचरियं नाह ! कुचेलो त्ति दरिद्दिओ त्ति ववहारकरणअक्खमो त्ति । न निमंतिओ धुवं कुणसु नियमणे मा तुमं भंतिं ॥ ८९६९ ॥ न कयाइ मज्झ भणियं तए कयं कुणसु संपयं पि तुमं । जं पडिहाइ मणे तं इय जंपिय सा ठिया मोणे ॥ ८९७० ॥ इय संगयं पि भणिरि अवगन्निय तं गओ सवीवाहे । अहव हियाहियविसए कुओ विवेओ जडमईण ? ॥ ८९७१ ॥ अब्भक्खणभद्दासणउववेसणपायसोहणप्पमुहं । विरइज्जतिं पेच्छइ पडिवत्तिं ईसरजणस्स ॥ ८९७२ ॥ तंबोलकरे विरईय विलेवणे पत्तपट्टओ य वत्थे । भुत्तुत्तरे पलोयइ निग्गच्छंते धणड्ढनरे ॥ ८९७३ ॥ अब्भुक्खणंपि न लहइ आसण-पय-सोयणाई कत्तो से । तो तंबकडाहिजलेण अब्भुक्खिया धोयए पाए ॥ ८९७४ ॥ उवविट्ठो पडिवालइ आमंतणमत्तणो निरक्खई य । वाहरियगोरवेणं भोइज्जतं परजणं पि ॥ ८९७५ ॥ विहिय अदिस्सीकरणे व्व तम्मि दिट्ठि पि न खिवए को वि । दूरे चिट्ठ पक्कव्वंजणप्पमुहभोज्जं से ॥ ८९७६ ॥ तस्स तह संठियस्स वि दिणमद्धप्पहरसेसयं जायं । भोज्जत्थे न विसंति पेच्छइ पज्जंतपतिं सो ॥ ८९७७ ।। चिंतइ य कि अवन्ना इमाणमहवाउलत्तमच्चंतं । जं मह नियडाभोयणकज्जे नीया न चेव अहं ॥ ८९७८ ॥ ता जामि सममिमेहिं भुंजामि निए गिहम्मि का लज्जा ? | एवं परिभावंतो पत्तो नरपंतिमज्झम्मि ॥ ८९७९ ॥ दोपाससंदभद्दासणोवविट्ठाण ईसरनराणं । मज्झे उवविट्ठो गहियभायणो विट्ठरे नीए ॥ ८९८० ॥ पित्तलपडिग्गहट्ठियगुरुपरियलजुयलमिलणअंतरियं । भूमिगयभायणं से नयणाण सगोयरं जायं ॥ ८९८१ ॥ Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंधबंधुरकहा ६९९ खजूर-दक्ख-दाडिम-अंबय-खारक्क-सक्कराईयं । दिन्नं अन्नाण न दायगेण से भायणं दिळें ॥ ८९८२ ॥ तह सालि-सूय-सालणय-सप्पिपक्कन्नपेयपमुहाण । किं पि न खित्तं अद्दिस्सभूमितलसुक्कथाले से ॥ ८९८३ ॥ दठूण दहिविमिस्सं भुजंतो फुरियगरुयअवमाणो । सिररइयभायणो तेसिमग्गओ नच्चिरो पढइ ॥ ८९८४ ॥ हे दारिद्र ! नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रसादतः । जगत् पश्यामि येनाहं न मां पश्यति कश्चन” ॥ ८९८५ ॥ एए मह जणयसहोयरस्स पुत्त त्ति भायरो मज्झ । भाउज्जायाओ इमाओ भाइणिज्जा इमे सव्वे ॥ ८९८६ ॥ जह मंततंतविज्जाइएहिं सिद्धा हवंति अद्दिस्सा । जाणह तहा ममं पि हु नूणं दारिद्दसिद्धो त्ति ॥ ८९८७ ॥ जइ होमि न सिद्धो हं ता दिट्ठो किं निएहिं वि इमेहिं । सयणेहिं न सव्वेहिं वि भोयणकरणोवविट्ठो वि ॥ ८९८८ ॥ सोजन्नं सुहिभावं सयणत्तं परिचयं च दक्खिन्नं । कुणइ धणड्ढेण समं दरिद्दिणा नेव सव्वजणो || ८९८९ ॥ जो भोयणवत्थाई ववहारे काउमक्खमा नूणं । जह मह तह अन्नाण वि न कीरए कावि पडिवत्ती ॥ ८९९० ॥ सुद्धा जाई सव्वुत्तमं कुलं निम्मला कलाओ वि । धणरहियाण न किंचि वि सया वि जेणेरिसं भणियं ॥ ८९९१ ॥ जाई कुलं कलाओ तिन्नि वि पविसंतु कंदरे विवरे । अत्थो च्चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा हुंति” ॥ ८९९२ ।। केणावि कारणेणं न इमेहिं पलोईओ इय भणंतो । नीहरिओ सो अवमाणदूमिओ नियगिहं पत्तो ॥ ८९९३ ॥ पियमइवारंतीए वि न ठिओ ता एत्तियस्स जोग्गो तं । इय जंपिरीए भज्जाए भोइओ सीयरब्बाइं ॥ ८९९४ ॥ Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० सिरिअणंतजिणचरियं दारिद्देणं दूरं दूमिज्जंतस्स तस्स वच्चंति । दिवसा विसायवसयस्स अन्नया सो गओ रन्ने ॥ ८९९५ ॥ पेच्छइ य तरुच्छायाए संनिविढे मुणीसरे संते ।। सिद्धंतसुंदरक्खे दिक्खे सिक्खाए साहूण ॥ ८९९६ ॥ जे समयग्गंथा इव सहति आयारवाणसमवाया । विन्नाया धम्मकहा पहव्वायरणपरमा य ॥ ८९९७ ॥ धणनाससयणपरिहवदुस्सहदोगच्चदूमियमणो सो । ते दठूण सुहोदयवसओ तेसिं गओ पासं ॥ ८९९८ ॥ भत्तिब्भरनिब्भरंगो पणमियपयकमलमिलियभालयलो । उवविट्ठो जंपइ पहु ! गिहिजोग्गं कहह मह धम्मं ॥ ८९९९ ॥ आह पहू आयन्नसु नारय-तेरिच्छ-नर-सुरविभेया । भवइ भवो चउभेओ दुहमेव य चउसु वि गईसु ॥ ९००० ॥ पाणिवहप्पमुहमहापावा निवडंति पाणिणोणेगे । नरएसु तेसु वि सहति वेयणं विरसरसा रसिरा ॥ ९००१ ॥ तिरियनरभवंतरिया पुणरुत्तणुभूयसव्वनरयदुहा ।। बहुसो वि तिरिच्छत्ते सहति समुवज्जिऊण दुहं ॥ ९००२ ॥ सासयविरोहदुहवाहदोहमंसासिमारणाईणि । असुहाई समणुहविऊण के वि अज्जिति मणुयत्तं ॥ ९००३ ॥ तम्मि वि धम्मविरहिया दीणा दारिद्ददुहभरक्कंता । विहलीहूय मणोरहमाला परिभवपयं हुंति ॥ ९००४ ॥ देवा वि परप्पेसत्तदुस्सहईसा-विसायवियलंगा । अत्ताणमकयसुकयं निंदंता दुहमणुहवंति ॥ ९००५ ॥ एवं पावंति सुहं न गइचउक्के वि धम्मपरिहीणा । धणवज्जिय व्व विवणीए नियमणोभिमयवरवत्थु ॥ २००६ ॥ ता धम्मो च्चिय कज्जो दुव्विहो साहु-गिहिविभेएहिं । पढमे दसेव भेया नेया बीयम्मि बारसओ || ९००७ ॥ Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०१ गंधबंधुरकहा सम्मत्तजुया दोन्नि वि दिति सिवं तं पि मुणसु सम्मत्तं । गयरायदेव-निग्गंथसुगुरुनवतत्तसद्दहणा || ९००८ ॥ एगयरं पि असत्तो धम्म काउं करेइ भावेण । अट्ठप्पयारपूयं जिणाण जं सा वि सिवजणणी ॥ ९००९ ॥ नेवज्ज-कुसुम-अक्खय-दीवय-फल-सलिल-धूव-वासेहिं । इय अट्ठविहा पूया कया जिणिंदाण भवहरणी ॥ ९०१० ॥ अट्ठ वि काउमसत्तो सत्तो जइ कुणइ वासपूयं पि । तित्थेसरस्स ता जाइ तस्स पावं जओ भणियं ॥ ९०११ ॥ घणसारहरिणनाहीसुयंधवरवासखेवपूयमिसा । जिणपवणसंगमेण व पावरयं दूरमुड्डेइ ॥ ९०१२ ॥ ता धम्मसीलपत्तं मणुयत्तं मा मुहा तुमं नेसु । समुवज्जसु वासेहिं वि पूइत्तु जिणं परमपुन्नं ॥ ९०१३ ॥ इय सोउं सो धम्मदेसणं सूरिणो नमिय भणइ । पहु ! मह महापसाओ कओ इमं साहिओ धम्मं ॥ ९०१४ ॥ नूण निरीहा तुब्भे परोवयारेक्कबद्धवावारा । जं मह दरिद्दियस्स वि एयं धम्मं समाइसह ॥ ९०१५ ॥ इय जंपिय पणयगुरू गहियतणाई गओ गिहे नियए । कहिओ य भारियाए पूयाफलसवणवुत्तंतो || ९०१६ ॥ तीयुत्तमहम्मफलं पिय ! तुह सव्वं पि कुणसु ता धम्मं । जेण न भवंतरे वि हु विडंबणा एरिसी होइ ॥ ९०१७ ॥ तेणुत्तमिमं काहं ति जंपिउं गंधियावणम्मि गओ । तणभारयमुल्लेणं गहिया सव्वुत्तमा वासा ॥ ९०१८ ॥ तत्तो हिययम्भंतरवियंभिउद्दामभत्तिपन्भारो ।। जिणमंदिरम्मि चलिओ रयणमए तम्मि पत्तो य ॥ ९०१९ ॥ सच्छप्फालिहदीहरदंडेऽनिलपसरिया सियवडाया । जम्मि सुरेहिं वि नज्जइ सविम्हयं गयणगंग व्व ॥ ९०२० ॥ Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ सिरिअणंतजिणचरियं कंकेल्लितमालवणेसु जस्स पविसंति रयणकरदंडा ।। रागद्दोसावरणारयमुक्कजिणरायबाण व्व ॥ ९०२१ ॥ तो सो पहिट्ठचित्तो तम्मि पविट्ठो विसिट्ठजिणभवणे । उवसंतकंतरूवं अवलोइओ उसहजिणनाहं ॥ ९०२२ ॥ ता विप्फुरंतबहुमाणपसरवसपुलयकलियतणुजट्ठी । आणंदअंसुजलभरपक्खालियवयणवच्छयलो ॥ ९०२३ ॥ उल्लसियमणो वियसंतलोयणो कुणइ सुरहिवासेहिं । पूयं पहुणो नियजम्मसहलयं मन्नमाणो सो ॥ ९०२४ ॥ असरिसबहुमाणवसो पुणरुत्तं भूमितलमिलियभालो । पणमिय पलोईय चिरं जिणेसरं आगओ सगिहे ॥ ९०२५ ॥ कहियं पियाए वासेहिं जिणवरो पूइओ त्ति तो सा वि । बंधइ अणुवमपुन्नं पसंसमाणी इमं अट्ठ ॥ ९०२६ ॥ कईया वि दो वि निययाउअंतमणुसरियमरियजायाइं । अमरत्तेणं आरणकप्पे सुररायसरिसाइं ॥ ९०२७ ॥ एगवीस सागराई भुत्तुं सुरलोयलच्छिविच्छड्डे । सिद्धाययणजिणच्चणकरणज्जियसुकयसंभारा ॥ ९०२८ ॥ चविय तओ वसुहासारपट्टणे कित्तिबंधुरनिवस्स । जाओ धणावहसुरो पुत्तो असमाणगुणजुत्तो || ९०२९ ॥ धणवइ अमरो वि पुणो उदयाशंदे पुरम्मि उप्पन्ना । उदियप्पयावरन्नो कन्ना उदयस्सिरी नाम ॥ ९०३० ॥ हुँतो हं पुव्वभवे तुह जणओ मरिय बारसमकप्पे । बावीस सायराऊ संजाओ भासुरो अमरो ॥ ९०३१ ॥ तं जोव्वणमणुपत्ता पत्ता कीला कए इहुज्जाणे । पुव्वविदेहा चलिओ वंदिय जंगमजिणिंदेहिं ॥ ९०३२ ॥ मह दिट्ठिपहे पत्ता उल्लसिओ पुव्वभवभवो नेहो । नाया य ओहिणा पुव्वभवसुया तं तओ झ त्ति ॥ ९०३३ ॥ Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०३ गंधबंधुरकहा कयनरमऊररूवेण एत्थ उववेसिङ मए कुमरिं ।। तुह पुव्वभवा दुन्नि वि कहिया नियभवदुगेण समं ॥ ९०३४ ॥ तं सोउं कुमरी जाइसरणसच्चवियपुव्वभवचरिया ।। सिरिगंधबंधुरम्मिं अणुरत्ता पुव्वभवदईए ॥ ९०३५ ॥ तो झ त्ति नरमऊरो चलकुंडलहारकडयकलसोहो । जाओ अमरो बहुरविपयावपन्भारदुनिरिक्खो ॥ ९०३६ ॥ तो सा कयप्पणामा पूयइ तं सुरहिपरमवत्थूहिं ।। 'इयरम्मि वि कुलबाला विणयवई किं न जणयम्मि” ॥ ९०३७ ।। जंपई य ताय तुमए जह कहियं तह मए वि सच्चवियं । पुव्वभवदुगचरियं सिविणे दिवसाणुभूयं व ॥ ९०३८ ।। ता तुमए मह कहिओ जो पुव्वभवुब्भवो पिओ कुमरो । इण्हि पि तं वरिस्सं सईओ न नरंतरमईओं ॥ ९०३९ ॥ आह सुरो रिद्धिकरी पूया अणुमोइया वि तुह जाया । फलइ बहु थेवं पि हु बीयं ववियं सुभूमीए ॥ ९०४० ॥ ता दिट्ठपच्चया तं करेज्ज धम्मुज्जमं सया वच्छे ! । निच्छइए कल्लाणे न पमाओ जुज्जए जइ वा ॥ ९०४१ ।। एवं धम्मुवएसं दाउं सहसा तिरोहिओ तियसो । कुमरी वि गंधबंधुरकुमरे रत्ता गया सगिहे ॥ ९०४२ ।। न मुणइ छुहं न पावइ निदं न वियाणए तिसं बाला । जलणज्जालाजलियं व विरहविहुरा वहइ देहं ॥ ९०४३ ।। मन्नइ चियं व सा चित्तसालियं मुम्मुरं पिव मुणालं । आभरणं दुम्मरणं व पावपूरं व कप्पूरं ॥ ९०४४ ॥ एवमवत्थं कुमरिं दठूण सहीओ तीए नरवइणो । साहति पुव्वभवभवदइए रत्ता तुह सुय त्ति ॥ ९०४५ ॥ नाऊण निवेण वि सहिमुहेण दुहियाए पुव्वभवदइयं । कन्नं पि जाणिउं पियविओयसहणासहं दूरं ॥ ९०४६ ॥ Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ৩০৪ सिरिअणंतजिणचरियं तव्वेलं चिय मंडलिय-मंति-सामंत-धाइसंजुत्ता ।। बलकलिया पट्ठविया सयंवरा कन्नया तुज्झ ॥ ९०४७ ॥ तीए अहं सत्थकहा कव्वविणोएसु सव्वया सचिवो । तो तं मोयावेउं तं बद्धाविउमहं पत्तो || ९०४८ ॥ चउ पंच दिवसमज्झे सा वि हु तुह पुव्वभवपिया एही । इय विन्नविउं कुमरं कीरो मोणं समल्लीणो ॥ ९०४९ ॥ तं सोउं जाईसरेण नायनियपुव्वभवदुगो कुमरो ।। कुमरिं पइ जायदढाणुरायवसपरवसो जाओ ॥ ९०५० ॥ चिंतइ तईया दइया निच्चं पि हियं पयंपमाणी वि । न मए तिणं व गणिया अहो अहंकारमूढेण ॥ ९०५१ ॥ दुईतो वि दरिद्दो वि दुम्मुहो वि हु सइ हीए तीए अहं । ईसरसेट्ठिसुयाए वि पुव्वभवे नेव परिहरिओ || ९०५२ ॥ ताहमवि पुव्वभवो भव कंतं मोत्तुमकाहमन्नपियं । रंज्जिज्जइ इह भविए वि किं न परभवे भवे रत्ते ॥ ९०५३ ॥ इय परिभाविय विज्जावणद्धनियमुद्दीयाओ कीरस्स । निक्खिवइ चरणजुयले कंठम्मि पुणो रयणकडयं ॥ ९०५४ ॥ भणई य कीर ! तुम उभयहा वि सउणो कहेसि कल्लाणं । न हि निग्गुणाण एवं रूवपवित्ती हवइ नियमा ॥ ९०५५ ॥ ता तं गंतुं कुमरीए कहसु कीरेस ! ईय मह पइन्नं । तीए जहा संपज्जइ मह विसए मणसमाहाणं ॥ ९०५६ ॥ आएसो त्ति भणित्ता तयणु सुओ उड्डिऊण संपत्तो । कुमरीपासे सोऊण तं ठिया सा वि संतुट्ठा || ९०५७ ॥ कुमरवयंसेहिं इमं सव्वं पि हु साहियं नरिंदस्स । तं सोउं तेणुत्तं किमजुत्तमिमम्मि कल्लाणे || ९०५८ ॥ जं गरुयरायकुमरी सयंवरा एइ गुरुनिवसुयस्स ।। इहभवभवा वि किं पुण भवंतरुप्पन्नअणुराया ॥ ९०५९ ॥ Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०५ गंधबंधुरकहा इय जंपिय कारविया पुरसोहा राइणा पहिडेण । मोत्तुं वीवाहमहं गिहीण परमूसवो नन्नो ॥ ९०६० ॥ पच्चोणीए तीए पेसइ सामंत-मंति-मंडलिए । गोरवमियरे वि गुरूविरइय किं नाणुरायपरे ॥ ९०६१ ।। पत्ताए तीए विहिओ रिद्धीए महामहो महीवइणा । इय उच्छाहे गच्छइ लच्छी जा सच्चिय न अन्ना ॥ ९०६२ ॥ आवासदाणसम्माणकरणपमुहं पि सागयंतीए । विहियमियरो वि पुज्जो अतिही किं पुण नरिंदसुया ? || ९०६३ ॥ उत्तमलग्गे कुमरो कुमरि वीवाहिओ नरिंदेण । कुलवुड्ढिकरे कज्जे किं कोइ पमायमायरइ ? ॥ ९०६४ ॥ तीए सह विसयसोक्खं माणइ कुणइ य सुधम्मकम्मं सो । इहलोईय परलोईयकज्जेसु समुज्जया गरुया ॥ ९०६५ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि कुमरं रज्जम्मि ठवियनरनाहो । कयपव्वज्जो संजायकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ ९०६६ ॥ नवनिवई नीइए पालइ रज्जं अभिद्दवइ दुढे । सिढे पूयइ मन्नइ महायणं गुणिगुणे थुणइ ॥ ९०६७ ॥ एवं निरवज्जसरज्जकज्जकरणुज्जयस्स नरवइणो । जंति दिणाई दिणमणिकरभरसरिसप्पयावस्स ॥ ९०६८ ॥ जाओ कयाइ देवीए तीए सुहलक्खणो सुओ तस्स । काउं वद्धावणयं नाम गुणबंधुरो त्ति कयं ॥ ९०६९ ॥ लालिज्जतो धाईहिं वद्धिओ जाव पंच वरिसाइं । परिपाढिओ य अज्झावएहिं सव्वाओ वि कलाओ ॥ ९०७० ॥ पत्तो य जोव्वणं तरुणकामिणीनयणमणहरं रन्ना । परिणाविओ नरिंदाणं रम्मरूवाओ कन्नाओ ॥ ९०७१ ॥ दटुं तं रज्जमहाभरधरणसमत्थमुत्तमे लग्गे । अहिसिंचइ नियरज्जे राया रिद्धिप्पबंधेण ॥ ९०७२ ॥ Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ सिरिअणंतजिणचरियं काराविऊण जिणइंदमंदिराई गिरिंदरुंदाई । सूरीहिं पइट्ठावियमणिमयतित्थेसरे तेसु ॥ ९०७३ ॥ सिद्धंतपोत्थयाइं लिहाविउं पूईडं च सिरिसंघं । घोसाविउं अमारिं मोयाविय सव्वगुत्तिनरे ॥ ९०७४ ॥ आरुहिय रयणसिबियं दितो दाणाई दीणदुत्थाण । गुरुरिद्धीए गंतूण सुगुरुपासम्मि पव्वईओ ॥ ९०७५ ॥ अहिगयसुयसब्भावा पाउब्भूयपभूयसंवेगो । निम्मूलं उम्मूलिय घाइकम्मवसपत्तवरनाणो ॥ ९०७६ ॥ मुहुरस्सरसद्देसणपडिबोहियभूरिभव्वसंघाओ । संपत्तो सो सासयसोक्खसमिद्धीए सिद्धीए ॥ ९०७७ ॥ एयस्स वासपूया जह जाया सिद्धिसुक्खसंजणणी । तह अन्नस्स वि जायइ जइयव्वं ता सया तीए ॥ ९०७८ ॥ इय तिहुयणसामिअणंतनाहकहियम्मि अट्ठपूयफले । गुरुभत्तिपुलयकलिओ कयंबपरिमलमहीनाहो ॥ ९०७९ ॥ उल्लसियभत्तिपाउब्भवंतरोमंचअंचियसरीरो । मुत्ताहलथूलाणंदअंसुपव्वालियकवोलो ॥ ९०८० ॥ आबद्धपाणिपंकयकोसमविरायंतभालफलयग्गो । विन्नवइ नमिय नाहं पहु ! पूयट्ठगमहं काहं ॥ ९०८१ ॥ काउं कंठसिणाणं परिविरइयधोयपोत्तिपावरणो । मयपावरणो होहं पहु ! तं पूयइ तिसंझं पि ॥ ९०८२ ॥ इय अंगीकयअट्ठप्पयारजिणरायपूयणविहाणो । मन्नइ राया नियजम्मजीवियव्वाण सहलत्तं ॥ ९१८३ ॥ अवरो वि अमरनहयरनरनियरो वीयरायपूयाए । अंगीकरेइ नियमं सद्धापरिवद्धियाणंदो ॥ ९०८४ ॥ इत्थंतरम्मि उग्घाडपोरिसीसूयगो बली पत्तो । तो मुक्कदेसणो देवच्छंदए आगओ देवो || ९०८५ ॥ Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०७ गंधबंधुरकहा पणयपहुपायपउमा इंद-नरिंदाइणो समग्गा वि । नाणाजाणारूढा निय निय ठाणेसु संपत्ता ॥ ९०८६ ॥ कइ वि दिणे ठाउं विमलगिरिसिरे भवियविहियपडिबोहो । अवयरइ हत्थिमंतरगईए गिरिणो जिणाहिवई ॥ ९०८७ ॥ गणहरगण-मुणिसमणी-नरिंद-खयरिंद-इंदविंदेहिं । भत्तिभरनिब्भरेहिं सयावि सममणुसरिज्जंतो ॥ ९०८८ ॥ नहयलचलछत्तत्तयधम्मद्धयधम्मचक्कचमरेहिं । सोहंतो मणिमयं पायवीढसीहासणेणं च ॥ ९०८९ ॥ विहरंतो गामागर-मंडव--दोणमुह-सन्निवेसेसु । कब्बड-ठाणासमपयनयरेसु य निययमपमत्तो ॥ ९०९० ॥ चारणवक्कुच्चारिय जय जय सरमिस्सवज्जिराउज्जो । संपत्तो भुवणपहु पुरीए वारवइनामाए ॥ ९०९१ ।। निच्चं पि जीए जलहीवेलाजलगहियसालरयणेहिं । रयणायरो त्ति भुवणे संपत्तो गुरुतरपसिद्धिं ॥ ९०९२ ॥ अइसीए वि दिणम्मि सेवइ जलणं जणो न धूमभया । जत्थ रविरयणवलहिच्छाया विहरंति सीयाइं ॥ ९०९३ । चंदमुणिचंदसालाओ व चंदउदयम्मि नीरधाराओ । जलजंतमंदिराई च किरंति जं तुम्ह समणत्थं ॥ ९०९४ ॥ तो तीए पुव्वोत्तरदिसंतरालट्ठिए महारामे ।। सहयारसोहनामो मणोभिरामदुमसमूहो || ९०९५ ॥ पत्ताणं उप्पत्ती संकेओ सव्वकुसुमजाईण ।। महुपाणपाणभूमी जो सउणाणं सहाठाणं ॥ ९०९६ ॥ वाउकुमारेहिं पमज्जियम्मि मेहामरेहिं जलसित्ते । मरगयरयणकुट्टिमे तम्मि रिउसुरक्खित्तकुसुमम्मि ॥ ९०९७ ॥ चउभेयअमरनिम्मियमणिकंचणतारसालनियगम्मि । समवसरणे निविट्ठो चउरूवो तिहुयणेक्कगुरु ॥ ९०९८ ॥ Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ सिरिअणंतजिणचरियं जगगुरुकमकमलजओ विउसठाणे दुवालस विहो वि ।। तिहुयणलोगो सव्वो वि तह तिरिच्छा वि संपत्ता ॥ ९०९९ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ भमरसुंदरो नाम । पत्तो भरहद्धाहिवपुरिसुत्तमवासुदेवगिहे || ९१०० ॥ पडिहाराणुन्नाओ माणिक्कमयाए पविसइ सहाए । नियई य अच्चब्भुयपुन्नपयरिसावासमवणिवई ॥ ९१०१ ॥ सेविज्जंतं तणुतेयपसरभरदुरवलोयमुत्तीहिं । विरईय करकोसेहिं जक्खाणट्ठहिं सहस्सेहिं ॥ ९१०२ ।। तह मउडबद्धसोलससहस्सनिवईहिं भत्तिजुत्तेहिं । आराहिज्जंतं नियपहुत्तनिज्जियसुरिंदेहिं ॥ ९१०३ ॥ वीइज्जंतं कमणीयकामिणीकरचलंतचमरेहिं । आयन्नंतं करकलियकेलिकमलालिकुलरोलं ॥ ९१०४ ॥ आमलयथूलमुत्ताभरणालंकरियसामलंगेण । सारयनिरन्मतारयदंतुरियनहं विडंबतं ॥ ९१०५ ॥ भिन्दिनीलसामं पीयं वरजुयलरइयपावरणं । अरुणारुणप्पहाभरसंवलियं अंजणगिरि व्व ॥ ९१०६ ॥ सन्नंदयं दुहा वि हु दुहा वि सारंगविलसिरसिरीयं । वरसंखमुभयहा वि हु दुहा वि गुरुसुओ ण रायसियं ॥ ९१०७ ॥ दाहिणपासमहासणनिविट्ठगुरुभाइसुप्पहनिवेण । समलंकरियं नियसियपहनिज्जियचंदजोन्हेण ॥ ९१०८ ॥ करकलियचक्करयणुच्छलंतरुइभरपिसंगतणुजठिं । सव्वंगीणाभरणफुरियपहाभरदुरवलोयं ॥ ९१०९ ॥ (कुलयं) तं दटुं मणिकुट्टिममिलंतभालयमणहरं पणओ । उज्जाणपालओ विन्नवेइ सिररईयकरकोसो ॥ ९११० ॥ तुब्भे वद्धाविज्जह पहुणो तिजयाहिवो जिणोऽणंतो । सहयारसारनामे उज्जाणे अज्ज संपत्तो ॥ ९१११ ॥ Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०९ गंधबंधुरकहा ता देव ! तस्स भत्तीए किंकरी हूय तिजयरायस्स । अवलोयणं पि अब्भुदयकारणं किं पुणो नमणं ॥ ९११२ ॥ तिहुयणजणच्चणीओ सो लीलाए वि जमल्लियइ ठाणं । तं चिय निस्सेसाण वि कल्लाणाणं धुवं पत्तं ॥ ९११३ ॥ विन्नत्ती कायव्वाणुजीविणा सामिसालसव्वा वि । किं पुण उभयभवहिया ? ता जं जुत्तं तमायरह || ९११४ ॥ इय विणयपरं आरामियम्मि विन्नविय मोणमल्लीणे । भरहद्धवई जाओ भत्तिब्भरुब्भूयरोमंचो || ९११५ ॥ अद्धत्तेरसरुप्पयकोडीओ देइ पीइदाणे सो । मुक्कासणो जिणिंदं पणमइ य महीमिलियभाले ॥ ९११६ ॥ न्हाओ दहि-दुव्वादल-अक्खय-निक्खेवलसिरसिरकमलो । विप्फुरियकिरणहीरयमुत्तालंकारकमणीओ ॥ ९११७ ।। आरूढो मुत्ताहरणकिरणधवले करेणुरायम्मि । पीयंबरो हिमधरे गेरुयकूडो व्व रेहंतो ॥ ९११८ ॥ सिरधरियधवलछत्तंतलंबिमुत्तावचूलजोन्हाए । धवलिज्जंतो हंसो व्व हसियसियपंकयरएण || ९११९ ॥ नवजोव्वणपणरमणीकरचलसियचारुचमरपंतीए । दूरमलंकिज्जंतो ससिजोन्हाए नहपहो व्व ॥ ९१२० ॥ सिंगारियंगकरिरायखंधरारूढसुप्पहनिवेण । धवलंगेण हरेण व सुनायराएण संजुत्तो ॥ ९१२१ ॥ असमाणरयणभूसणविरायमाणेहिं विहियपरिवारो । रयणविमाणगएहिं जक्खाणट्ठहिं सहस्सेहिं ॥ ९१२२ ॥ सयारोहविरायंतगयघडाघडियवियडपरिवेढो । मंडलियमंडलासियसंदणगणसंपरिक्खित्तो ॥ ९१२३ ॥ सामंतसणाहतुरंगवग्गसंजणियसारसिंगारो । अणुगम्मतो नाणा जाणट्ठियसचिवसेट्ठीहिं ॥ ९१२४ ॥ Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० सिरिअणंतजिणचरियं मणिमयसुहासणासीणजद्दरावरियनीलछत्ताहिं । अंतेउरीहिं छत्तीससहससंखाहिं परियरिओ ॥ ९१२५ ॥ माकरमेहडंबरनवरंगयधवलछत्तपंतीहिं । धयचिंधालंबेहिं य अलंकरंतो नहुच्छंगं || ९१२६ ॥ आयन्नंतो मागहमंडलउच्चरियभूरियथुइपाढे । बहिरंतो बंभंडं वज्जिरआउज्जसद्देहिं ॥ ९१२७ ॥ चलिओ तिलोयनायगनमणत्थं असरिसाए रिद्धीए । पत्तो य कमेण समोसरणं भरहद्धभूमिवई ॥ ९१२८ ॥ जगगुरुदेसणसरसवणसमयपम्मुक्कसगयनिवचिंधो । उत्तरपउलिदारेण पविसए समवसरणम्मि || ९१२९ ॥ दठूण भुवणनाहं जय जय जय जय पहु त्ति जंपतो । पविसिय सहाए कयतिप्पयाहिणो नमिय संथुणइ ॥ ९१३० ।। जय सयलतिजयनायग दायग सग्गापवग्गसोक्खाण । निस्सेसदुरियवारण वारणलीलाविहियगमण ॥ ९१३१ ॥ हिमहारहंससियजसधवलिय निस्सेसतिहुयणाभोग ।। भोगोवभोगवज्जिय निज्जियमयरद्धय नमो ते ॥ ९१३२ ।। इय थोउं भुवणपहुं अभिवंदिय गणहराइए मुणिणो । हरिपिट्ठीए निविट्ठो हरी वि सुपहाइरायजुओ || ९१३३ ॥ एत्थंतरम्मि मोणट्ठियासु सामी समग्गपरिसासु । पारद्धो वागरिउं धम्म सम्मत्तसंजुत्तं ॥ ९१३४ ॥ तहाहि - तिहुयणगब्भे जं किं पि वत्थुसव्वुत्तमं सिवसुहंतं । तं सव्वं पि हु भव्वाण भवइ धम्मप्पभावेण || ९१३५ ॥ जं पुण असुहसमुत्थं दुक्खं सत्ताण भवनिवासम्मि । तं सव्वमवि हरिज्जइ हेलाए विसुद्धधम्मेण ॥ ९१३६ ॥ Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७११ धम्मदेसणा सो पुण दुविहो पढमो खंतिप्पमुहो जईण दसभेओ । बीओ उ सावयाणं थूलो भन्नइ दुवालसहा ॥ ९१३७ ॥ जेउं ठंति महासत्ता काउं ते पढममेव जंति सिवं । कट्ठा सहाओ बीयं कमदिन्नसिवअणुट्ठति ॥ ९१३८ । ते दोवि सिवेक्कफला हवंति सम्मत्तपुव्वया तं पि । गयरायदेवनिग्गंथसुगुरुनवतत्तसद्दहणा ॥ ९१३९ ॥ तं निसुणिऊण भरहद्धसामिजेद्रुण भाउणा सामी । सुप्पहनिवेण नमिऊण पुच्छिओ सव्वगिहिधम्मं ॥ ९१४० ॥ आह पहू ता निसुणसु सुप्पहनिवदंसणस्स अईयारे । जेहिं विसद्धं जायइ सम्मत्तं मोक्खतरुमूलं || ९१४१ ॥ संका कंखा य तहा वितिगिच्छा अन्नतित्थियपसंसा । परतित्थियाण सवणमइयारो पंच सम्मत्ते ॥ ९१४२ ॥ सामन्नेणं एए कहिया तुह संपयं तु एक्केक्कं । एयाणं आयन्नसु साहिप्पंतं पयत्तेण ॥ ९१४३ ॥ जो जिणपणीयतत्तेसु संसओ सा कहिज्जए संका । कंखा पुण अवरावरकुतित्थिगहणम्मि संभवइ ॥ ९१४४ ॥ सा विचिगिच्छा भन्नइ संदेहो हवइ जीए फलविसए । पारद्धो एस मए अत्थो सिज्जेज्झ अह नो वा ? || ९१४५ ॥ विज्जा-मंताइकयं-दटुं परतित्थियुन्नई मूढो । तेसिं पसंसमाणो सम्मत्तं दूसए विमलं ॥ ९१४६ ॥ अणुमोयणसंवासालवणे परतित्थिएहिं सह कुव्वं । कलुसइ सम्मत्तं इय अइयारा पंच एयम्मि ॥ ९१४७ ॥ एयं विसुद्धं एयं देइ सुदेवत्तमाणुसत्ताइ । तत्तो सासयरूवं भव्वाणं सिद्धि-सोक्खं पि ॥ ९१४८ ॥ सद्धम्मधणनिहाणं करुणासुरसरिपवाहतुहिणसिरी । चारित्तकुसुममलओ नाणनई निवहनइनाहो ॥ ९१४९ ॥ Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ सुहभावकलासंकलसेयपरकुत्थरोहिणीरमणो । कल्लाणकणयमेरू विसुद्धसम्मत्तमक्खायं ॥ ९१५० ॥ अंगीकयसम्मत्तस्स कस्सई भवइ भाविभद्दस्स । जिणदिक्खाए असत्तस्स परिणई देसविरईए ।। ९१५१ ।। पंचेवऽणुव्वयाई हवंति सिक्खावयाई सत्तेव । एयाण देसविरई थूलाणणुपालणा होइ ।। ९१९५२ ॥ सिं पढमं भन्नइ थूलगपाणायवायवेरमणं । तम्मि न संकप्पेणं कायव्वो थूलजीववहो ।। ९१५३ ।। सयमेव किलिस्ते जीवे जो हणइ सो महापावो । नूणमभव्वो अहवा विन्नेओ दूरयरभव्वो ।। ९१५४ ॥ जइ जीवाण न तीरइ काउं उवयारमुत्तमं ता किं । अवयारो कायव्वो ? ताण वरायाण पावकरो ।। ९९५५ ॥ तन्नियमपरो सड्ढो वज्जइ बंधवहच्छविच्छेयं । अइभारारोवणं भत्तपाणवोच्छेयणं च तहा ।। ९९५६ ।। एए पंचइयारा पढमम्मि अणुव्वए चएयव्वा । तुम्हावबोहणट्ठा भणिमो एक्केक्कगमियाणि ॥ ९१५७ ॥ जेणागच्छइ मुच्छा पीडा उप्पज्जए नरपसूणं । कोवेण न कायव्वो सो बंधो दामणाइहिं ।। ९१५८ ॥ नो रोसरयवसेहिं निद्दयलउडय - कसाइएहिं वहो । कज्जो नरतिरियाईण पावपब्भारसंजणओ ॥ ९९५९ ॥ कन्नवियारणदंभणं कंबलई विकड्ढणाइ छविछेओ । नडुलीचउप्पयाणं कायव्वो पावसंजणओ ।। ९१६० ।। नर-करह-वसह- सेरह - खराणमुट्टियाउ समहिउ भारो । न समारोवेयव्वो पावकरो सावएहिं सया ।। ९१६१ ।। रागद्दोसवसेहिं न दासिदासाईयाण कायव्वो । वसहाइतिरिच्छाण य वोच्छेओ भत्तपाणाण ।। ९१६२ ।। सिरिअणंतजिणचरियं Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मदेसणा ७१३ एयव्वयं गहेडं कज्जो जल-धन्न-इंधणाईण । तसजीववज्जियाणं परिभोगो भव्वसत्तेहिं ॥ ९१६३ ॥ जीवदय च्चिय जायइ जीवाणं कप्पियत्थकप्पलया । दीहाउयत्तहेऊ नीरोगत्तस्स उप्पत्ती ॥ ९१६४ ॥ सग्गसुहसिरिनिहाणं सव्वुत्तमपुन्नपायवंकूरो । सिवसुहयसंगदूई एक्कच्चिय होइ जीवदया || ९१६५ ॥ पाणीवहपवित्तीए हवंति दोसा तओ न सा कज्जा । इण्हि तु मुसावायस्सरूवमायन्नसु कहेमि ॥ ९१६६ ॥ अलियं न भासियव्वं जओ मुसा भासए जणे नूणं । सच्चं पि जंपमाणे न को वि कइया वि पत्तियइ ॥ ९१६७ ॥ अवसरइ साहुवाओ जायइ अजसे समुल्लसइ पावं । इहपरलोयविरुद्धं अलीयवयणं भणंतस्स ॥ ९१६८ ॥ दूसइ कन्ना गावीओ भूमिमज्जायमवहरइ छन्नो । नासं निन्हवइ पराण वियरए कूडसंखेज्जं ॥ ९१६९ ॥ सव्वं पि इममलीयस्स विसयमेयम्मि पंच अईयारा । जाणेऊणं सम्म परिहरियव्वा इमे ते य ॥ ९१७० ॥ सहसा कलंकणं रहसदूसणं दारमंतभेयं च । मोसोवएसणं कूडलेहकरणं च पंचमयं ॥ ९१७१ ॥ भणिया सामत्तेणं इमिणा एक्केकयं विसेसेण । तुज्झप्पबोहणट्ठा पयडिज्जइ ता निसामेसु || ९१७२ ॥ सम्मं वियाणिऊणं सड्ढो पाणंतपीडसंजणयं । सहसा अब्भक्खाणं न देइ चोरो तमिच्चाइ ॥ ९१७३ ॥ तुन्भेहिं कओ मंतो रायविरुद्धो सए वि विन्नाओ । इयरहसब्भक्खाणं सम्ममनाए न दायव्वं ॥ ९१७४ ॥ रइरसपसत्तसकलत्तगरुयविस्संभमंतियं नेव । हासेण वि मित्तस्स वि सुसावएणं न कहेयव्वं ॥ ९१७५ ॥ Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ पमुगप्प ओयणम्मि अमुगं तुमए पयंपियव्वं ति । देउ न कसायवसा मुसोवएसो अणत्थकरो ।। ९१७६ ।। भूरिदविणज्जणासाए विनडिओ नप्पवंचचउरमई । कुज्जा सुसावओ कूडलेहकरणं जणविरुद्धं ॥ ९१७७ ॥ जोऽलीयवयणविरओ मुसावाओ होइ तेणमईयारा । वज्जेयव्वा पंच वि पंचगमइगमणपवणेण ।। ९१७८ ॥ जमुभयभवहियजणयं सव्वं पि सया तमेवभणियव्वं । जेण य परस्स पीडा न भवइ थेवा वि भणियं च ॥ ९१७९ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं अलियं न भासियव्वं अस्थि हु सव्वं पिजं न वत्तव्वं । सव्वं पितं न सच्चं जं परपीडाकरं वयणं ।। ९९८० ॥ लोयप्पयईइ जणयं वयणालंकरणममलकित्तिकरं । उप्पाइयप्पइट्ठं इट्ठं सव्वस्स वि जयस्स ।। ९९८१ ।। सयलजणमुक्खभूयं विस्सासकरं नरेसराणं पि । सद्धम्मवुड्ढऊ वत्तव्वं सव्वया सव्वं ॥ ९१८२ ॥ (जुयलं ) भणियं बीयमणुव्वयमिन्हिं तइयं कहिज्जए तुज्झ । थूलादिन्ना दाणच्चाओ तम्मिं विहेयव्वो ॥ ९९८३ ॥ सच्चित्तं अच्चित्तं मीसं वा परधणावहरणं जं । परिहरमाणस्स भयं अणुव्वयं जायए तइयं तेनाहडियं तक्करपओगजं कूडमाणतुलकरणं । रिउरज्जव्ववहरणं तप्पडिरूवंगयाकरणं ।। ९९८५ ॥ संखेवेणं कहियं तुज्झमईयारपंचयं एयं । एक्केक्कस्स सवं इहि आयन्नसु कहेमो ॥ ९१८६ ॥ जं अवहरंति चोरा मोसं तेनाहडंति तं भणियं । पच्छन्नं वियरंताणं ताण तं नेव घेत्तव्वं ॥ ९९८७ ॥ जं पुण राय - महायणव्वहारसमागयं भवइ मोसं । चोरावहरियमवि तं विन्नायं पि हु गहेयव्वं ॥ ९९८८ ॥ ९१८४ ॥ Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मदेसणा चोरेऊणं धणधन्नकंसदूसाइदच्छमाणेह । चोरो गिहिस्समहं ति पण्णई तक्करपओगं ।। ९९८९ ॥ धणधन्नाई न गेज्झाइं कूडमाणयतुलाइएहिं जओ । एगं लोगविरुद्धं परलोगविबाहयं बिइयं ।। ९९९० ॥ ववहरियव्वं अइलाहलोहओ नो विरुद्धरज्जम्मि । जन्नाउं नियराया कुविओ सव्वस्समवि हरइ ॥ ९१९१ ।। पलवंचियसाईयं वीहिययाईसु न निक्खिवेयव्वं । तप्पडिरूवक्खेवो जमुभयभवबाहओ होइ ॥ ९१९२ ॥ जं सकला कोसल्लावट्ठियं लोयऽविरुद्धलाहकरं । गिण्हेयव्वं तं चिय मोत्तव्वं सेसपरदव्वं ॥ ९१९३ ॥ अवसरइ साहुवाओ अयसो उल्लसइ ल्हसइ गरुयत्तं । उप्पज्जइ बहुपावं ओसरइ जणाणुराओ वि ।। ९९९४ ॥ पलयं पयाइ पुन्नं पावइ गोत्तं पि गरुयवयणिज्जं । विस्ससइ न सयणो वि हु परधणहरणप्पसत्ताण ।। ९९९५ ॥ (जुयलं) भणियं तईयमणुव्वयमेयमईआरवज्जियं सुहयं । इहि पुणो चउत्थव्वयस्सरूवं निसामेसु || ९१९६ ॥ मेहुणवयविसए सावएहिं कज्जो सदारसंतोसो । परदारवज्जएणं च होयव्वं सुद्धसीलेण ॥ ९१९७ ।। इत्तिरियपरिग्गहिया अपरिग्गहिया य थी चएयव्वा । कामे तिव्वहिलासो अणंगकीला परविवाहो ।। ९९९८ ॥ सामन्नेणऽइयरा एए पंचेव साहिया तुज्झ । एक्केक्कं पि विसेसेणमिहिमायन्नसु कहेमि ।। ९९९९ ।। परिमियकालं मुल्लेण वा वि केणावि जा परिग्गहिया । सो उभयभवविरुद्धा मोत्तव्वा इत्तरियवेसा ।। ९२०० ।। अपरिग्गहिया भन्नइ पडिबद्धा होइ जा न कस्सा वि । उच्छन्नकुला असई विहवा वा नेव भईयव्वा ।। ९२०९ || ७१५ Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ सिरिअणंतजिणचरियं गुरुरायरसियहियएण दूरपरिहरियधम्मकज्जेण । न निरंतरं विहेओ कामे तिव्वाहिलासो वि ॥ ९२०२ ।। तह कामसत्थभणिओवगरणकरणेहिं नेव कायव्वा । सद्देहअणंगकीला थीधणकारकारुवयणेसु ॥ ९२०३ ॥ वज्जेयव्वं सुस्सावएहिं संसारवेल्लिवुड्ढिकरं । परजणविवाहकरणं कन्नाहललोहलुद्धेहिं ॥ ९२०४ ॥ एए पंच अइयारा एय वयपालणुज्जयमणेहिं । सम्मं वियाणियव्वा नाऊण परिच्चएयव्वं ॥ ९२०५ ॥ परदारवज्जिएहिं जाणिय इहलोयपरभवभएहिं । अच्चब्भुयरूवधरा निरिक्खियव्वा न पररमणी ॥ ९२०६ ॥ नियजणणीए वि समं नेगते मंतणं विहेयव्वं । दूरे पररमणीए जम्हा एयारिसं भणियं ॥ ९२०७ ॥ मात्रा स्वना दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामः पण्डितोऽप्यत्र मुह्यति ॥ ९२०८ ॥ परदारवज्जयनरो होइ पवित्तो जणे जसं लहइ । निव्वत्तइ असुहकम्मं समुवज्जइ सिद्धिसोक्खं च ॥ ९२०९ ॥ कहियं इमं चउत्थं अणुव्वयं तुज्झमप्पभेयं पि । इण्हि तु पंचम-व्वय-विसए किं पि हु पयंपेमि ॥ ९२१० ॥ खित्ताइहिं रन्नाई-धणाइदुपयाइ-कुप्परूवं च । पंचप्पयारमेयं परिग्गहं मुणसु नरनाह ! ॥ ९२११ ॥ एयम्मि मुच्छिया जं भमति संसारगुविलकंतारे । कज्जं तेण परिग्गहपरिमाणं भव्वसत्तेहिं ॥ ९२१२ ॥ खेत्तं तिविहं सेउं केउं उभयं च आइसद्दाओ । वत्थु पि तिहा खायं ऊसियमुभयं च विन्नेउं ॥ ९११३ ॥ एगाइणा विहेयं परिमाणमिमाण सावएण सया । जेण रसायलदारणमच्चंतं पावसंजणयं ॥ ९२१४ ॥ Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मदेसणा ७१७ तह जं कणयाईयं घडियं तं भन्नए हिरन्नं ति । आईसद्देण पुणो कंचणरुप्पाइं घिप्पंति ॥ ९२१५ ॥ तेसिं संखा कज्जा सुणसु धणं संपयं कहिज्जंतं । गणिमं धरिमं मेयं पारिच्छिज्जं ति चउभेयं ॥ ९२१६ ॥ गणणा पुव्वं कीरंति कस्स कय-विक्कया तयं गणिमं । जाउफलपूयप्फलहरडइनालियरफलपमुहं ॥ ९२१७ ॥ तुलिएण ववहरिज्जइ तज्जुतुलाईहिं जेण तं धरिमं । मंजिट्ठा गुलकप्पास-खंडघणसारघुसिणाई ॥ ९२१८ ॥ जं सेइयाइएहिं माणेहिं मविज्जए तयं मेयं । जीरय-अजमय-घय-तेल्ल-राइया-मेत्थियाईयं ॥ ९२१९ ॥ तं चिय पारिच्छिज्जं परिक्खिउं घिप्पए जमच्छीहिं । मणि-हीरय-पट्टउलअवडवुयकंबलयवत्थाई ॥ ९२२० ॥ एयं चउहा वि धणं भणियं इण्हि तु आइसद्दाओ । चउवीस भेयभिन्नं भन्नइ धनं जमुत्तं च ॥ ९२२१ ॥ धन्नाइं चउवीसं जव-गोहुम-सालिवीहि-सट्ठीया । कोद्दव-अणुया-कंगू-रालग-तिल-मुग्ग-मासा य ॥ ९२२२ ॥ अयसिहरमिच्छतिउडगनिप्फावसिलंदरायमासा य । इक्खू-मसूर-तुयरी-कुलत्थ तह धन्नयकलायं ॥ ९२२३ ॥ कायव्वं परिमाणं इमाण दुपयम्मि पुरिसहंसाई । गो-महिसि-हयाई वि आइसघाउ परिमियं कज्जं ॥ ९२२४ ॥ पित्तल-तंबय-कंसय-सुवन्न-अयदारु-मट्टिया जणिए । कुवियम्मि विय विहेयं परिमाणं मोक्खकंखीहिं ॥ ९२२५ ॥ खेत्ताईण अइक्कमरूवा पल्लाधिपंच अइयारा । संजोयणं पयाणं च बंधणं कारणं भावो ॥ ९२२६ ॥ सामन्नेणं कहिया एए तुह राय ! बोहणत्थं जे । ताणिक्केक्कं कहिमो जाणेउं तो परिवइज्जा ॥ ९२२७ ॥ Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ खेत्ताणं वत्थूण य गहियाभिग्गहपमाणइक्कमणं । तो नियडखेत्त - घरजोयणेण सड्ढेहिं कायव्वं ॥ ९२२८ ॥ नियमावहिकालं जानंतस्स सुसावएण दायव्वं । अहियहिरन्नसुवन्नयपमुहं अंगीकयवएण ।। ९२२९ ॥ नियमं ते गिन्हस्सं धणधन्नाई निजंपिउं गिहिणा । मोत्तव्वाइं न बंधेय कयाहिनाणेण परगेहो ॥ ९२३० || ता नियपरिग्गहे कुणसु दासवसहाइवयसमत्तीए । गिहिस्सं ति न कारवइ दुपय- चउपय- अइक्कमणं ।। ९२३१ ॥ अन्नस्स न दायव्वं गिण्हेयव्वं मए वयं ते ते । कुवियं ति न भावेणं कायव्वं वयअइक्कमणं ॥ ९२३२ ॥ एए पंच अइयारा एयव्वयपालणुज्जमपरेहिं । सम्मं वियाणियव्वा नाऊण परिच्चएयव्वा ।। ९२३३ || नो होइ वाउलत्तं उप्पज्जइ न बहुपावपब्भारो । संजायइ संतोसो नराण इच्छानिरोहेण ॥ ९२३४ ॥ एवं पंचाणुव्वयमूलगुणग्गहणजायसुहभावो । गिण्हइ सिक्खावयं सत्तगं गिही उत्तरगुणत्थी ॥ ९२३५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं पंचममणुव्वयमिणं भणियं इन्हि गुणव्वए तुज्झ । कहिमो तेसिं पढमं दिसिव्वयं सुणसु इक्कमणो ॥ ९२३६ ॥ उड्ढाहो तिरियदिसासु गमणपरिमाणकरणभेएहिं । तिविहं दिसिव्वयमिणं जह होइ तहा निसामेसु ॥ ९२३७ ॥ परचक्कभया अह कोऊआइणा सेलमारुहंतेण । सद्देणुड्ढदिसाए जोयणसंखा विहेयव्वा ॥ ९२३८ ॥ न विवरसरिकूवाइप्पवेससंखाइरित्तगमणाई । कायव्वाइं अहोदिसिगुणवयड्ढेण सड्ढेण ॥ ९२३९ || पुव्वाइदिसासु कयं गमणे जं जोयणाण परिमाणं । तमइक्कमइ न सड्ढो तिरियदिसि गुणव्वएक्करई ।। ९२४० ॥ Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मदेसणा ७१९ इह वज्जइ उड्ढाहो तिरियदिसा-तिग-पमाणाइक्कमणं । तह खित्तवुड्ढिमहसइअंतद्धाणं च पंचमयं ॥ ९२४१ ॥ एए पंचइयारा कहिया संखेवओ इयाणिं तु ।। एक्केक्कं आयन्नसु साहिप्पंतं विसेसेण || ९२४२ ।। कज्जेण वि गंतव्वं उद्धदिसिनिसिद्धखेत्तबाहिं नो । आणयणपेसणोभयपओगकरणं पि चइयव्वं ॥ ९२४३ ॥ एमेव अहो तिरियं च दिसिद्दुगं नो अइक्कमेयव्वं । अंगीकयनिययव्वयभंगभयसोवएहिं सया ।। ९२४४ ॥ अन्नदिसि जोयणाइं निक्खिविउं अन्नदिसिपमाणं पि । कायव्वा कज्जेण वि न खेत्तवुड्ढी सुसड्ढेहिं ॥ ९२४५ ॥ न पमापपरायत्तेहिं सावएहिं कयाइ कायव्वो । दिसिमाणसइब्भंसो अवयासो पावपसरस्स ॥ ९२४६ ।। एयमइयारपंचगमभिवज्जंतो समज्जए पुन्नं ।। सव्वेसि पि हु सत्ताण देइ अभयप्पयाणं च ॥ ९२४७ ॥ कहियं दिसिपरिमाणं तुह राय ! इमं गुणव्वयं पढमं । उवभोगपरीभोगाभिहमिहि बीयमक्खेमो ॥ ९२४८ ॥ कुसुमाहारविलेवणतंबोलप्पमुहविविहभेएण । सह भोज्जेणं भन्नइ उवभोगो वत्थुजाएण ॥ ९२४९ ॥ जो उवओगं गच्छइ पुणो पुणो मुणह परिभोगं । सो सयण--जाण-मंदिरवत्थाहरणं गणाईओ || ९२५० ॥ एयव्वयं तु दुविहं भोयणओ कम्मओ य होइ जहा । सयलाइयारसुद्धं तह आयन्नसु कहिज्जतं ॥ ९२५१ ॥ भोयणओ उस्सग्गेण ताव सुस्सावएण भोत्तव्वो || ९२५२ ॥ फासुयआहारो तदभावे अप्फासुयमचित्तं ॥ ९२५३ ॥ तं पि हु अपावमाणो भुंजइ असणाइयं सचित्तं पि ॥ नवरं भोयणओ चयइ सावओ एय वत्थूणि ॥ ९२५४ ॥ Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० सिरिअणंतजिणचरियं असणे अणंतकायं किसलयकंदाइतिविहमंसं च ।। पाणेसु राइयं खाइमे य पंचुंबरिफलाई ॥ ९२५५ ॥ तह साइमम्मि महुपमुहमज्जए भणियमेत्थ भोयणओ । परिहरइ कम्मओ वि हु खरकम्माई पि कूराइं ॥ ९२५६ ॥ उप्पाइज्जइ पीडा पभूयसत्ताण जम्मि अणवरयं । तं खरकम्मं सड्ढो न कुणइ आरक्खियाईयं ॥ ९२५७ ॥ सड्ढेण जीवियव्वं कम्मममाऊण एस उस्सग्गो । अह न तरइ तो कज्जं जमप्पसावज्जमविरुद्धं ॥ ९२५८ ॥ सच्चित्तं पडिबद्धं अपउलदुप्पउलतुच्छभक्खणयं । एयव्वयाईयारा पंच इमे सुणसु एक्केक्कं || ९२५९ ॥ भन्नइ सचित्तमणंतकायदलबीयपुढविजलपमुहं । भोयणओ मोत्तव्वं सड्ढेणेयव्वयपरेण ॥ ९२६० ॥ अट्ठियगजुत्तपरिपक्कफलतरुट्ठाइगुंद पमुहं जं । सच्चित्तप्पडिबद्धं तं पि हु परिवज्जियव्वं ति ॥ ९२६१ ॥ जमपक्कप्पायं हुयवहम्मि मुग्ग-चणग-गोहुमाईयं । तमपउलियंतिग्गीयं चईयव्वं सावयजणेण ॥ ९२६२ ॥ अग्गिज्जाला जोया झलक्कियं होइ अद्धपक्कं जं । तंबाईगुणपमुहं दुप्पक्कं नेव भोत्तव्वं ॥ ९२६३ ॥ नवकिसलय-कुहराई अबद्धबीयाओ तह फलीओ य । तुच्छोसहीओ एयाओ सावओ चयइ वयधारी ॥ ९२६४ ॥ इय अइयारविसुद्धं भोयणओ वयमिमं विहेयव्वं । तह इंगालाईए अइयारे चयसु भणियं च ॥ ९२६५ ॥ इंगाली १ वण २ साडी ३ भाडी ४ फोडी य ५ वज्जए कम्मं । वाणिज्जं चेव य दंत ६ लक्ख ७ रस ८ केस ९ विस १० विसयं ॥ ९२६६ ॥ Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मदेसणा ७२१ एवं खु जंतपीलणकम्मं ११ निल्लंछणं च १२ दवदाणं १३ । सरदहतलायसोसं १४ असईपोसं च वज्जेज्जा ॥ ९२६७ ॥ तत्थ बहुफुल्लफलदलकलियं छेत्तूण रुंदवणसंडं जीवणकज्जे न कुणइ सड्ढो इंगालकम्ममिह ॥ ९२६८ ॥ जं कट्ठकंदफलफुल्लमूलदलकारणेहिं कीरंति । छेया वणप्फईणं तं वणकम्मं चएयव्वं ॥ ९२६९ ॥ वित्तिनिमित्तं सगडपमुहजंताण घडणमइपावं । तं साडीकम्मसावएहिं परिवज्जियव्वं ति ॥ ९२७० ॥ नियवसह-करह-खर-सेरहेसु आरोविऊण परभारं । कज्जं न भाडियत्तं पावकरं सावएहिं सया ॥ ९२७१ ॥ फोडीकम्मे वज्जइ सुसावओ उड्ढकम्ममइपावं । सिलफोडणं च तह धरणिदारणं सीरए मुहेहिं ॥ ९२७२ ॥ करिकुंभदारणुज्जुयपुलिंदयाणं सयासओ नेय ।। घेत्तूण हत्थिदंते वणिज्जियव्वं सुसड्ढेहिं ॥ ९२७३ ॥ परिभोगे गहणे वा जायइ लक्खाए भूरिजीववहो । वज्जइ तव्वाणिज्जं सुसावओ तेण धम्ममई ॥ ९२७४ ॥ महुमज्जमंसपमुहं रसवाणिज्जं च पइ तेण गिही । तज्जोणियसंपाइमजीववहो जं हवइ तम्मि ॥ ९२७५ ॥ नववसह-करह-तुरयाइयाण कयविक्कया न कज्जा जं । लहइ च्चिय दासत्तं कुव्वंतो केसवाणिज्जं ॥ ९२७६ ॥ निस्सेससत्तसंताणपाणअवहरणकारणं गिहिणा । आजम्मं पि न कज्जं विसवाणिज्जं दयामइणा ॥ ९२७७ ॥ वज्जेयव्वं सुस्सावएहिं बहुपावपसरसंजणयं । घाणयघरट्टअरहट्टपमुहजंताण वाहणयं ॥ ९२७८ ॥ वसहाइवसणगालणअंकणकन्नाइफाडणसरुवं । निल्लंछणकम्मं सव्वहा वि सड्ढेण चईयव्वं ॥ ९२७९ ॥ Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ सिरिअणंतजिणचरियं एगिदियाइपंचिदियंतसत्तोहविहियसंहारं । दवदाणं नरयकरं पयत्तओ परिहरेयव्वं ॥ ९२८० ॥ नो जणधणगाईणं धन्नाणं वावणत्थमायरइ । सरहदहतलायसोसं सड्ढो जलयरकयविणासं ॥ ९२८१ ॥ कुक्कुर-वानर-मज्जार-सारिया-कीर-कुक्कुडाईणं । परिपालणं मुयंतो असइपोसं च पइसड्ढे ॥ ९२८२ ॥ उवभोगपरीभोगच्चयमेयं तुज्झ साहियं इण्हि । आयन्नसु अक्खेमो अणत्थदंडव्वयं तइयं ॥ ९२८३ ॥ चउहा अणत्थदंडो अवज्झाणं तह पमायआयरियं । हिंसप्पयाणमहपावरूवउवएसदाणं च ॥ ९२८४ ॥ एगिदियाइ सत्ताण रक्खणं जत्थ तं भवे झाणं । सेसं तु अवज्झाणं विचिंतणं अट्टरोद्दाणं ॥ ९२८५ ॥ मज्जाइपंचभेयप्पमायवसयस्स जमिह पुरिसस्स ।। जायइ विवेगट्ठियं तं पमाय आयरियमिइ भणियं ॥ ९२८६ ॥ मुसलुक्खलक्खग्गहलग्गिकुसयविसकुंटिपमुहवत्थूण । दाणं हिंसपयाणं ति भणिएणत्थहेऊण ॥ ९२८७ ॥ किं चिट्ठह उवविट्ठा न दमह वसहे न खेडह हलाई । ईय परउच्छाहणओ गीओ पावोवएसो त्ति ॥ ९२८८ ॥ एवमवज्झाणपमुहचउविहस्स वि अणत्थदंडस्स ।। विरईए होइ तइयं गुणव्वयं भव्वसड्ढाण ॥ ९२८९ ॥ कंदप्पं कुक्कुईयमोहरियं संजुयाहिगरणं च । उवभोगपरीभोगाइरेगमवि वज्जए सड्ढो || ९२९० ॥ एए पंचइयारा सामन्नेणं पयासिया तुज्झ । साहिप्पंतं इण्हि आयन्नसु ताणमेक्केक्कं ॥ ९२९१ ॥ गुरुरायरसियहियएण मयणउद्दीवणेहिं वयणेहिं । सह रमणीहिं न कज्जो परिहासो सावयजणेण ॥ ९२९२ ॥ Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२३ धम्मदेसणा वयणनयणस्सवणकंपणाईहिं तो विहेयव्वं । कुक्कुईयं सद्देहिं तरुणीजणकयमणुम्मायं ॥ ९२९३ ॥ जं किं पि आलजालप्पायमसंबद्धभायणं तमिह । भन्नइ मोहरियं उभयभवविरुद्धं चएयव्वं ॥ ९२९४ ॥ वसह-सगडाण मुसलुक्खलाण मेलियघरट्टपुडयाण । न कुणइ जोगवज्जियसंजुयअहिगरणओ सड्ढो || ९२९५ ॥ जं निय सरीरउवओगकारयं तस्स समहियं सययं । उवभोगपरीभोगाइरेगमवि सावओ चयइ ॥ ९२९६ ॥ भणियं अणत्थदंडव्वयमसंपयं पवक्खामि । सिक्खावयाण पढमं सामाईयनामयं इन्हिं ॥ ९२९७ ॥ गिहिणो सावज्जवज्जणरूववावारचायसेवाहिं । सामाईयव्वयं इह पंच इमे हुति अइयारे ॥ ९२९८ ॥ मण-वयण-काय-दुप्पणिहाणं परिहरइ सइ अकरणं च । तह अणवट्ठियकरणं भणिमो एक्केक्कयं इन्हेिं ॥ ९२९९ ॥ कह सयणे पोसिस्सं कह धणमज्जिस्समरिवि हणिस्सं । इयमणदुप्पणिहाणं कज्जं न जओ इमं भणियं ॥ ९३०० ॥ सामाइयं ति काउं घरचिंतं जो उ चिंतए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामईयं ॥ ९३०१ ॥ नो वयणमसंबद्धं भासेयव्वं न कक्कसं नवरं । वयदुप्पणिहाण-विवज्जएण सड्ढेण भणियं च ॥ ९३०२ ॥ कयसामईओ पुव्वि बुद्धीए पेहिऊण भासेज्जा । सइनिरवज्जं वयणं अन्नह सामाईयं न भवे ॥ ९३०३ ॥ करचरणाईणंगाण ठवेणं जमनिरिक्खए ठाणे । दुप्पणिहाणं कयस्स तं चइयव्वमुत्तमजणं च ॥ ९३०४ ॥ अनिरिक्खिय अपमज्जिय थंडिल्ले ठाणमाइसेवंतो । हिंसा भावे वि न सो कयसामईओ पमायाउ ॥ ९३०५ ॥ Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ सिरिअणंतजिणचरियं वावारवाउलो जं कयाइसामाइयं सए कज्जं । न सरइ कयमकयं वा एयमकरणं इहुत्तं च ॥ ९३०६ ॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामाईयं कयाओ कायव्वं । कयमकयं वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥ ९३०७ ॥ जं काउं सामईयं तव्वेलं चेव पारए सड्ढो । तं अणवट्ठियकरणं परिहरियव्वं जओ भणियं ॥ ९३०८ ॥ काऊण तक्खणे च्चिय पारेइ करेइ वा जहिच्छाए । अणवट्ठिय सामईयं अणायराओ न सुद्धं ति ॥ ९३०९ ॥ सामाईयव्वयमिमं भणियं देसावगासियं निव ! तं । आयन्नसु एक्कमणो साहिप्पंतं पयत्तेण ॥ ९३१० ॥ निच्चं पि जत्थ कीरइ संखेवो दिसिठियप्पमाणस्स । देसावगासियं तं भणियं सिक्खावयं बीयं ॥ ९३११ ॥ चयइ गिही आणयणपेसवणप्पओगदुगजुत्ते । सद्दाणुवाइरूवाणुवाइबहिपुग्गलक्खेवे || ९३१२ || छ । एयव्वयम्मि एए पंचइयारा पयासिया इण्हि । एयाणं एक्केक्कं तु ममायन्नसु निव ! कहेमो || ९३१३ ॥ न करेइ तिरियदिसिपहसंखाइक्कमभएणमिहसड्ढो । संदिसिऊणाणयणप्पओगमवरेण वत्थुस्स ॥ ९३१४ ॥ कज्जेण वि नो वा तिरियदिसिकयं संखमइक्कमनियकज्जो । नियनरपेसप्पओगो भव्वेणेयव्वयपरेण ॥ ९३१५ ॥ अंगीकयखित्तब्भंतरट्ठिओ तस्साइक्कमणभएण । अप्पपयडणकज्जे न कुणइ सद्दाणुवायं पि ॥ ९३१६ ॥ नियमिय खित्तठिएणं सकज्जसाहण कए न सड्ढेण । ठाऊणुच्चे कज्जो नियाणरूवाणुवाओ वि ॥ ९३१७ ॥ पोसहसालाइट्ठाणगेसु परिविहियपोसहो न गिही । बाहिं पुग्गलखेवेण कुणइ सयणाण सन्नाओ || ९३१८ ॥ छ | Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२५ धम्मदेसणा देसावगासियव्वयमेयं संसाहियं इयाणिं तु । तईयं अक्खिज्जइ पोसहोववासो ॥ ९३१९ ॥ तइयं सिक्खावयं चउब्भेयं (........) । आहारदेहभूसाबंभसावज्जव्वावारभेएहिं । ९३२० ॥ अट्ठमि व चउद्दसिपमुहतिहिपरिचत्तचउव्विहाहारो । गेहव्वावाररओ वि होइ आहारपोसहिओ ॥ ९३२१ ॥ न्हाणंगरागतंबोलपुप्फपमुहाई पव्वदिवसेसु । मुंचंतो होइ गिही सरीरसक्कारपोसहिओ ॥ ९३२२ ॥ जो पव्वतिहीसुकलत्तभोगमुज्झियविसुद्धपरिमाणो । निग्गहयनिययकरणाई मुणह तं बंभपोसहियं ॥ ९३२३ ॥ जो धम्मज्झाणपरो विमुक्कभवहेऊ सव्ववावारो । सुन्नहराइसु चिट्ठइ सो अव्वावारपोसहिओ ॥ ९३२४ ॥ अप्पडिदुप्पडिलेहियमपमज्जियदुपमज्जियं च तहा । सेज्जाइ चयइ सड्ढो सम्ममणणुपालणं चेव ॥ ९३२५ ॥ एए पंचइयारा पोसहविहिपालणत्थमिह भणिया । तुज्झावबोहणत्थं भणिमो एक्केक्कयमियाणि ॥ ९३२६ ॥ नयणानिरिक्खियं जं सेज्जासंथारयासणाईयं ।। तं वत्थु अप्पडिलेहियं ति परिहरइ पोसहिओ ॥ ९३२७ ॥ वावरंतरवक्खित्तमाणसो तयं ण पेक्खियं पि गिही । दुप्पडिलेहियमेयं ति चयइ कयपोसहो मइमं ॥ ९३२८ ॥ वत्थंचलेण सेज्जसंथारुच्चारभूमिपट्टाई । अपमज्जियं न सेवइ पोसहिओ पाणरक्खट्ठा ॥ ९३२९ ॥ जमजयणाए दलृ पमज्जियं अहव गुरुपमायाओ । सेज्जाइं तं पि दुपमज्जियं ति वज्जेइ पोसहिओ ॥ ९३३० ॥ जं काओ अब्भतठें भोयणमहिलसइ पोसहियसड्ढो । मोत्तुं तणुसक्कारं बंधइ राढाइ जं केसे ॥ ९३३१ ॥ Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ काऊण बंभचेरं जं पत्थइ उभयभवभवे भोए । जमवावारो होउं चिंतइ सावज्जवावारे ॥ ९३३२ ॥ आहाराईणं पोसहाण तं अणणुपालणं सव्वं । परिहरइ सावओ आगमुत्तविहिणा गयपमाओ || ९३३३ || एयं पयंपियं पोसहव्वयं संपयं पयासेमो । वयमतिहिसंविभागाभिहमिहसिक्खावयं तुरियं ।। ९३३४ ।। साहूण नाण- दंसण - चरित्तजुत्ताण गेहपत्ताण । असणाइदाणओ अतिहिसंविभागं विणिज्जिह ।। ९३३५ ।। सच्चित्ते निक्खिवणयं सह सचित्तेण पिहणयं बीयं । कालाइक्कमदाणं अन्नव्ववएसयं च तहा ९३३६ ॥ मच्छरिययं च एए पंचइयारा वयम्मि एयम्मि । एयाणं एक्केक्कं साहिप्पंतं निसामेसु ॥ ९३३७ ॥ धन्न-फल-सलिल-कुंभाइएस ठाणेसु मोत्तुमसणाई । वाहरिऊण न गिहिणा दायव्वं साहुवयणेण ॥ ९३३८ || फलसलिलधण्णाईएहिं पिहिऊणं नेव आहारो । वियरिज्जइ साहूणं कयाइ सुविवेयसड्ढेण ॥ ९३३९ ॥ निय नियमसंगभीओ आमंतइ विहियभोयणे मुपिणो । सुस्सावओ न जं तं कालाइक्कंतदाणं ति ॥ २३४० ॥ साहूहिं जाइएणं दाउमकामेण नेव वत्तव्वं । अन्नव्ववएसेणं सड्ढेणं निययवत्थं पि ॥ ९३४१ ।। रोरा वि दिंति दाणं तुच्छं कहमवि अहं न जच्छामि । इय बुद्धीए न देयं दाणं मच्छरियरूवेण ॥ ९३४२ ॥ छ ॥ एसा हु देसविरई सम्मत्तपुरस्सरा तुह नरिंद ! । कहिया कमेण भावेण कीरमाणसिवेक्कफला ।। ९३४३ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं सोउं पहुप्पउत्तं सुप्पहराया पुणो वि पणयोि । जंपइ गिहिव्वयाई सव्वाइं वि सामि ! नायाई ॥ ९३४४ ॥ Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसपडिमा ७२७ न सव्वमिह देसविरईए समहियं सव्वं विरइऊणयरं । किं पहु ! किं पि अणुट्ठाणमत्थि सड्ढाणमुचियं जं ॥ ९३४५ ॥ जंपइ जइ उ सामी ! अत्थि रायगुरुसत्तसेवणिज्जाओ । एक्कारस पडिमाओ सड्ढाणं वयअसत्ताण ॥ ९३४६ ॥ तहाहि - दंसण१ वय २ सामाईय ३ पोसह ४ पडिमा ५ अबंभ ६ सच्चित्ते ७ । आरंभ ८ पेस ९ उद्दिट्ठवज्जए १० समणुभूए य ११ ॥ ९३४७ ॥ दंसणमिह सम्मत्तं भंगहियाभिग्गहस्स सड्ढस्स । संकाइएइयारे पयत्तओ परिहरंतस्स ॥ ९३४८ ॥ मिच्छत्तपरिच्चाया कुग्गाहविवज्जियस्स सस्थस्स । दूरमणाभोगेण वि अविवज्जत्थस्सहावस्स ॥ ९३४९ ॥ अत्थिक्कायगुणालंकियस्स सुहकम्मबंधनिरयस्स । रायाभिओगपमुहं छिंडियछक्कं चयंतस्स ॥ ९३५० ।। दाणाइकुतित्थेणं चइरस्स कुदेवयाण पूयथयाइं । कंठस्सिणाण पुव्वं परिहेउं नवंगवत्थाई ॥ ९३५१ ।। संझा तिगे जिणच्चणपरस्स मुणिवंदणं कुणंतस्स । एसा मासपमाणा दंसणपडिमा हवइ पढमा ॥ ९३५२ ॥ अह अवरा तस्सेव य पढमप्पडिसुत्तकिरियनिरयस्स । थूलाणुव्वयपंचगपालणपडिवत्तिजुत्तस्स ॥ ९३५३ ॥ बंध-वहप्पमुहवयाइयारसंदोहवज्जणपरस्स ।। अइदुहियसत्तसंताणजणयगरूयाणुकंपस्स || ९३५४ ॥ सविसेससुद्धधम्मस्सवणाइमुणेह अज्जणुज्जमिणो । मासे दुगप्पमाणे वुच्चइ एसा वयप्पडिमा ॥ ९३५५ ॥ अह अवरा तस्सेव य पुव्वदुपडिमा विहिं कुणंतस्स । सावज्जकज्जवज्जणपरमा निरवज्जकयकम्मा ॥ ९३५६ ॥ Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ सिरिअणंतजिणचरियं होइ जहन्नेण मुहुत्तमेत्तकालं दुगे वि संझाण । मणिदुप्पणिहाणप्पमुहपंचअईयाररक्खणओ || ९३५७ ॥ गिन्हंतस्स विसुद्धं सामाईयमसमपुन्नसंजणयं । मासत्तिगप्पमाणा तइया सामाइयप्पडिमा ॥ ९३५८ ॥ अहवा सावयसड्ढस्स पुव्वपडिमानिगुत्तनिरयस्स । पव्वदिणेसु चउव्विहपोसहपरिपालणपरस्स ॥ ९३५९ ॥ अप्पडिलेहियसंथारपमुहअईयारपणगवियरस्स । . होइ चउत्थी पोसहपडिमा चउमासपरिमाणो ॥ ९३६० ।। अह अन्ना तस्सेव य सड्ढस्स विय हियाहियचिंतयंतस्स । दंसणवयमासाईयपोसहपडिसुत्तजुत्तस्स ! ९३६१ ॥ रयणीए सुरयपरिमाणकारिणो दिवसबंभयारिस्स । किच्चाकिच्चन्नुस्सय उवसग्गसहस्ससुथिरस्स ॥ ९३६२ ॥ पडिमावज्जदिणेसुं अबद्धकच्छस्स य अस्सिणाणस्स । रयणीए सलिलपाणं परिच्चयंतस्स निच्चं पि ॥ ९३६३ ॥ अट्ठमि चउद्दसीसुं कुणमाणस्सेगराईयं पडिमं । काउस्सग्गे धम्म सव्वनिसं झायमाणस्स ॥ ९३६४ ॥ अहवा सदोसपच्चयमवरं वा किं पि चिंतयंतस्स । पडिमा नामप्पडिमा पंचहिं मासेहिं होइ इमा ॥ ९३६५ ।। अह अवरा पुव्वो इयगुणस्स सड्ढस्स विजियमोहस्स । रयणीए वि हु उज्झियविसयस्स थिरयरमणस्स ॥ ९३६६ ॥ उक्कोस वि हु सावज्जवज्जयस्स सिंगारकहविरत्तस्स । एगंतट्ठियनारीवत्ताओ वि परिहरंतस्स ॥ ९३६७ ॥ संवेगवासणावसपवद्धमाणेक्कसुद्धभावस्स । छम्मासकालमाणा अबंभपडिमा हवइ छट्ठी ॥ ९३६८ ॥ अह अवरा पुव्वा पडिमछक्कणुट्ठाणकारिणो गिहिणो । परिचत्तसचित्तचउप्पयारआहारजायस्स ॥ ९३६९ ॥ Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२९ एक्कारसपडिमा निज्जीवं भुजंतस्स भोयणं धम्मसोहणनिमित्तं । सचित्तचागपडिमासत्तमिया सत्तमासा य ॥ ९३७० ॥ अह अवरा तस्सेव य सत्तप्पडिमुत्तकिरियनिरयस्स । सयमकुणंतस्स घरारंभं सावज्जसब्भावं ॥ ९३७१ ॥ घरनिव्वाहनिमित्तं वावारिंतस्स तम्मि कम्मयरे । नवरमुरलयरब्भावुब्भावियगरुयाणुकंपस्स ॥ ९३७२ ॥ अवरद्धे विय मियमहुरभासिणो अणुसयरहियहिययस्स । आरंभचागपडिमा भन्नइ मासट्ठगपमाणा ॥ ९३७३ ॥ अह अवरा तस्सेव य तुट्ठप्पडिमुत्तजुत्तसड्ढस्स । कम्मयरेहिं वि कज्जं सावज्जमकारयंतस्स ॥ ९३७४ ॥ पुत्ते मित्ते वा बंधवे वा विणिहियकुडंबभारस्स । तुच्छममत्तस्स महासयस्स संतोसजुत्तस्स ॥ ९३७५ ॥ संवेगवग्गमइणो लोगववहारवज्जयंतस्स इमा । पेसपरिहारपडिमा नवमासेहिं भवइ नवमी ॥ ९३७६ ॥ अह अवरा तस्सेव य चउपडिमा किरियकारिणो गिहिणो । उद्दिट्ठकडाहारं परिच्चयंतस्स निच्चं पि ॥ ९३७७ ॥ छुरमुंडियस्स जइ जणविलक्खणत्तेण धरियचूलस्स । निच्चंपि साहुजणपज्जुवासाणायरणनिरयस्स ॥ ९३७८ ॥ पुच्छंताण सुयाईण निहिगयं दव्वमत्थि अह नो वा । इय तेसि पच्चुत्तरदाणाणुन्नाए जुत्तस्स ॥ ९३७९ ॥ तस्सुहुमजीवपुग्गलदव्वाइपरिमाणपरस्स होइ इमा । उद्दिट्ठवज्जयाभिहपडिमादसमासिया दसमी ॥ ९३८० ॥ अह अवरा दस पडिमाणुट्ठाणवियस्स तस्स सड्ढस्स । छुरमुंडियस्स अहवा परिविरइयलोयकम्मस्स ॥ ९३८१ ॥ रयणहरणपडिग्गहधारणेण काएण समणभूयस्स । ममकारा वुच्छेया सयणग्गामेसु जंतस्स ॥ ९३८२ ॥ Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० तत्थ वि सुस्समणस्स व परिगिण्हंतस्स सुद्धमाहारं । कज्जेसु समग्गेसु वि सया वि उवउत्तचित्तस्स ॥ ९३८३ ॥ एसा एक्कारसमी पडिमा नामेण समणभूयति । एक्कारससंखेहिं होइज्जणूणमासेहिं ॥ ९३८४ ॥ इय एक्कारसमासप्पडिमा किरियाए तुलियनियसत्ती । पव्वज्जं पडिवज्जर सिवरमणिकडक्खिओ होइ ।। ९३८५ ॥ अवरे पुणरवि घरवासमिति पुत्ताइनेहनिद्धमणा । पालंति समविरुद्धव्ववसायो वज्जियजसोहा ।। ९३८६ ॥ एयाओ पडिमाओ अणुट्ठियं जे चरंति चारितं । न परीसहोवसग्गेहिं ताण उप्पज्जए पीडा ॥ ९३८७ ।। जेसिं एरिसकिरियासु उज्जमो होइ ते जए धन्ना । धन्नच्चिय सव्वाण वि पडिमाणं जंति पज्जंतं ॥ ९३८८ ॥ ठाणं कल्लाणाणं ते च्चिय जयगब्भसंभवाण धुवं । पारं नीओ अणंतेहिं चिय भवसमुद्दस्स ॥ ९३८९ ॥ तेहिं चिय संपत्ता विजयपडाया भवारिरणरंगे । भावेण जेहिं विहियं सावयपडिमाणणुट्ठाणं ॥ ९३९० ॥ सुप्पहनरिंदकहिया तुह एसा सावयप्पडिमकिरिया । गिहिधम्मप्पासायालंकरणी सियपडाय व्व ॥ ९३९१ ।। एत्थंतरम्मि भरहद्धसामिणा नमिय सामिओ पुट्ठो । पहु ! दंसणम्मि वियरह दिट्ठतं हियकरप्पसाया || ९३९२ | आह पहू सम्मत्तं जायं सोक्खा य सीलसारस्स । असुहा य धम्मसारस्स राय ! ता सुणसु ताण कहं ॥ ९३९३ ॥ छ (दंसणे पयावसुंदरकहा) सिरिअणंतजिणचरियं जंबुद्दीवस्स मज्झम्मि भारहद्धम्मि दक्खिणे । कालिंगे नामगे देसे अत्थि हेमपुरं पुरं ॥ ९३९४ ।। Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३१ पयावसुंदरनिवकहा तिव्वप्पयावपन्भारनयसव्वरिवूनिवो । पयावसुंदरो नाम कामिणी मणमोहणो ॥ ९३९५ ॥ पिया मणप्पिया तस्स अस्थि उव्वणजुव्वणा । सोहग्गसुंदरी नाम सीलसिंगारहारिणी ॥ ९३९६ ॥ तत्थेव य नयावासा संति संतोससुंदरा । गरिट्ठा सेट्ठिणो दुन्नि माणणीया निवस्स वि ॥ ९३९७ ॥ सीलसारो त्ति ताणेक्को धम्मसारो दुइज्जओ । सीलदेवि जसोदेवि नामं तेसिं पिया दुगं ॥ ९३९८ ॥ तिसंझं वीयरायस्स पूयं कुव्वंति सेट्ठिणो । वंदंति गुरुणो गंतुं सव्वया वि उवस्सए ॥ ९३९९ ॥ जम्मणं जीवियव्वं च नरत्ताइगुणन्नियं ।। कयत्थं मन्नमाणा ते धम्मं कुव्वंति सायरं ॥ ९४०० ॥ सम्मत्ते निच्चलं चित्तमुव्वहंताण दोन्ह वि ।। गच्छंति वासरा तेसिं कयत्था तत्तजोगओ || ९४०१ ॥ अन्नया य नहुच्छंगे दुंदुही झुणिमुत्तमं । वीणावेणुरवुम्मिस्सं गीयं पि हु सुणंति ते ॥ ९४०२ ॥ तो कोऊएण नेत्ताई निक्खिवंति नहं पइ । पेच्छंति य सियछत्ततिरोहियरविप्पहं ॥ ९४०३ ॥ सयमेव ढलंतेहिं चामरेहिं विराईयं । सुरासुरेहिं सव्वत्तो सायरं सेवियक्कम ॥ ९४०४ ॥ अईए पडुपन्ने य भविस्से य मणोगए । संसए सव्वलोयाणं छिंदंतं हत्थमेव य ॥ ९४०५ ॥ सुवन्नकमलासीणं नियसिस्ससमन्नियं । आगच्छंतं नहुच्छंगे वुड्ढं ससगिहट्ठिया || ९४०६ ॥ (कुलयं) पुरलोयाण सव्वेसिं उप्पायंतो कुऊहलं । आवासिओ सउज्जाणे नमिज्जंतो दुमेहि वि ॥ ९४०७ ॥ Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ दठ्ठे अच्चुब्भुयं तस्स माहप्पं सयलो जणो । गओ नमित्तु तस्संते संदेहे पुच्छए निए || ९४०८ ॥ नहं सुरविमाणेहिं महिरायबलेहि य । आगच्छंतेहिं जंतेहिं छाइज्जइ पइक्खणं ॥ ९४०९ ॥ सोउं तस्सेरिसिं रिद्धिं सीलसारं नियं गओ । धम्मसारो पयंपेइ पेच्छ बुद्धप्पभावणं ॥ ९४१० ॥ ता गंतुं तस्समीवम्मि पुच्छामो धम्ममुत्तमं । तेणुत्तमा अजुत्तं तं महाभाग ! पयंपसु ॥ ९४११ ॥ जेणुत्तो जिणधम्माओ धम्मो अत्थि न कत्थइ । तत्तो देवो जिणिंदाओ निग्गंथाओ य तो गुरू ।। ९४९२ ॥ एएणं पाविएणं भो किन्न जं पावियं तए । किमिदयालनिट्ठम्मि धेड्ढबुद्धम्मि रज्जसे ॥ ९४१३ || तं सोउं जंपियं तेण मित्त ! मे गुरुकोऊयं । ता जामो एक्कगं वारं गच्छिस्सामो पुणो वि नो ।। ९४१४ ॥ सीलसारेण संलत्तमजुत्तं तस्स दंसणं । दूसए सुद्धसम्मत्तं तेणागच्छामि नो अहं ॥ ९४१५ ॥ कुतित्थसेवणं मित्त ! काउं जुत्तं न तुज्झ वि । तत्थ गंतूण धम्मस्स मा पयच्छ जलंजलिं ॥ ९४९६ ॥ तहा धम्मो वि बुद्धाणमिहलोयसुहावहे । धरिज्जए सुहेणप्पा जेण गोसे वि भुज्जए || ९४१७ || जओ मणुन्नं भोयणं भुच्चा मणुन्नं सयणासणं । मणुन्नंसि अगारंसि मणुन्नं ज्झायए मुणी ॥ ९४९८ ॥ जत्थ एवंविहं सोक्खं मोक्खो तत्थ कुओ भवे ? | कट्ठाणुट्ठाणसाहीणो जं से तो सो खओ कहं ।। ९४१९ ॥ - सिरिअणंतजिणचरियं Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३३ पयावसुंदरनिवकहा जइ सोक्खेण निव्वाणं हुतं ता किं जिणाइणो । अकरिंसु तवं तिव्वं सदेहनिरवेक्खयं ॥ ९४२० ॥ ताण एवं सो निसिद्धो वि गुरुकम्माणुभावओ । तहा भव्वत्तभावेण संपत्तो बुद्धसंनिहिं ॥ ९४२१ ॥ दटुं बुद्धमुणिं सेट्ठी नमित्ता पायपंकयं । सोउं पच्चक्खसोक्खस्स कारणिं तस्स देसणं ॥ ९४२२ ॥ हेउदिळंतजुत्तीहिं भाविओ तम्मओ ठिओ । मोक्खरुक्खफलप्पायं सम्मत्तं परिवज्जए ॥ ९४२३ ॥ मोत्तूण वीयरायाणं पव्वन्नो बुद्धसासणं । किं वा पन्नं पि कल्लाणमजोग्गा हारयति नो || ९४२४ ॥ पुणो वि तेणं गंतूण सीलसारो पयंपिओ । मित्त ! एसुत्तमो धम्मो सव्वया सुहकारणं ॥ ९४२५ ॥ ता काऊण पसायं मे समागच्छसु संपयं । गओ न बुद्धपासे सो तेणाहूओ वि सायरं ॥ ९४२६ ॥ एवं पालेइ सम्मत्तं अईयारविवज्जियं । अन्नया धम्मवंतस्स तस्स पत्ता चउद्दसी ॥ ९४२७ ॥ धोयपुत्तिं नियंसेउं कंठन्हाणपुरस्सरं । काउं सव्वजिणिंदाणं इयमट्ठप्पयारयं ॥ ९४२८ ॥ गुरूण देइ गंतूण वंदणं बारसावयं । पच्चक्खित्ता अब्मतठं पोसहं पडिवज्जए ॥ ९४२९ ॥ सोउं सिद्धंतवक्खाणं रोमं विज्जंतगत्तओ । कुव्वंतो सार धम्मं च वासरं अइवाहए ॥ ९४३० ॥ गुरुक्कमे नमेऊण पत्तो उज्जाणसन्निहिं । ता पक्खियं पडिक्कंतो पओसे दोसवज्जियं ॥ ९४३१ ॥ दुक्कम्मनिज्जराकज्जे उस्सग्गे ठाइ जाव सो । ता जाओ गुरुनिग्घाओ फुट्टा तस्सातुरो मही || ९४३२ ॥ Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ तम्मज्झाओ महाधूमो दीहसप्पो व्व निग्गओ । तओ तुट्टंतजालोली ठिओ पलयानलो ॥ ९४३३ ॥ पवत्तो मंडलीवाओ उक्खाया तेण पायवा । पणट्ठा पक्खिणा ठाणं को न सा वायमुज्जए || ९४३४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं फुट्टेति सतडक्कारं सुक्कवंसा समंतओ । निवडंति असाहारा दड्ढमूला महीरुहा ॥ ९४३५ ॥ कारुन्नसीलसारस्स अद्धद्धसरीरिणो । उप्पायंति पणस्संता पसुणो विस्सरारवा ॥ ९४३६ ॥ जत्तो जत्तो पलोएइ पेच्छए तत्थ तत्थ सो । पंजरे खित्तमत्ताणमग्गिजालावली कए || ९४३७ ॥ अग्गितावेण डज्झतो महासत्तो विचितए । एस सोवसरो पत्तो सीहवित्तीए संपयं ॥ ९४३८ ॥ जाव नो जलणज्जाला भासी कुव्वंति मे तनुं । तावप्पणो हियं काहं एवं चिंतिए जंप ॥ ९४३९ ॥ नमो सव्वजिणिंदाणं सव्वसोक्खाण दाइणं । नमो समग्गसिद्धाणं निट्ठियट्ठाणसव्वया ॥ ९४४० ॥ नमो परोवयारीण सव्वसूरीण भावओ । आगमं नूण भत्तीए नमो अज्झावयाण य ।। ९४४१ ।। पसंतचित्तवित्तीण नमो साहूण सायरं । एवं संथुणए जाव सीलसारसुसावओ ।। ९४४२ ।। ता किंकिणीरणक्करसारं पत्तं विमाणयं । सिंगारी खेय एगो तम्मज्झाओ विणिग्गओ || ९४४३ ॥ आगंतुं सीलसारंते आह भो ! कट्ठमागयं । अवस्सं भाविभावम्मि कट्ठे किं सो पयंप ।। ९४४४ ।। जंपए खेय भद्द ! ठाणे आवायवज्जिए । संपयं तं विमुंचामि ममुत्तम्मि अणुट्ठिए ।। ९४४५ ॥ Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३५ पयावसुंदरनिवकहा किं न वुत्तं ति संलत्ते सीलसारेण खेयरो । जंपए बुद्धपायाण पणओ भवभावओ ॥ ९४४६ ॥ तेणुत्तं वीयरायाण निग्गंथाण गुरूण य । नमामि भावेण निच्चं न अन्नस्स कयाइ वि ॥ ९४४७ ॥ जेणासारं सरीरं मे सारं सम्मत्तमुत्तमं । जाही मए समं भद्द ! संमत्तं न सरीरयं ॥ ९४४८ ॥ सम्मत्तम्मि ममत्तं मे परलोयसुहावहे । नेवोवयारहीणम्मि सरीरम्मि विणस्सरे ॥ ९४४९ ॥ कल्लाणकंदलीकंदो जिणधम्मजयद्धओ । सुहभावडुमारामो माणमाणिक्करोहणे ॥ ९४५० ॥ समामयनईनाहो पुन्ननीरपओहरो । दयाकप्पलयामेरू सम्मत्तं परिकित्तियं ॥ ९४५१ ॥ पडिही निच्छियं देहो पच्छा वा संपयं पि वा । ता खेयर ! न मे मोहो देहकज्जम्मि निज्जए ॥ ९४५२ ॥ एवं पयंपमाणस्स तस्स पासं समागओ । अग्गीलग्गो य पाएसु भत्तचित्तो व्व सावओ ॥ ९४५३ ॥ दुज्जणो इव पारद्धो दहेउं तस्सरीरयं । सामीकुव्वं सधूमेण अयसो व्व समंतओ ॥ ९४५४ ॥ दूरदेसीयबंधु व्व गाढमालिंगए तयं । एवं डझंतदेहे सो एसमामयभाविओ ॥ ९४५५ ॥ पंचप्पहुनमोक्कारं उच्चरंतो पुणो पुणो । जंपिओ खेयरेणेवं मुहा मूढ ! मरेसु मा ॥ ९४५६ ॥ भगवं ! तस्स बुद्धस्स पाए सरसु अज्ज वि ।। तेणाहं तुज्झ रक्खत्थं पेसिओ त्ति भणामि तं ॥ ९४५७ ॥ भणियं सीलसारेण मा मे धम्मंतराइयं । करेसु जीवियव्वम्मि तुच्छे सुंदरसंपयं ॥ ९४५८ ॥ Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३६ सिरिअणंतजिणचरियं एवं पयंपिओ लग्गो धम्मज्झाणो पुणो वि सो । तणं पि मन्नए नेव जावदावुच्छवेयणं ॥ ९४५९ ॥ ताव नो पेच्छए अग्गि न धूमं नेव खेयरं । न भूरंधं न वायं च न जालोलिं सरीरगं ॥ ९४६० ॥ केवलं भासुरच्छायं तणुतेयविराईयं । किरीडहारकेऊरकुंडलेहिमलंकियं ॥ ९४६१ ॥ भालपुडमहीवळं न चिरं सुरमिक्खए । जंपए उठ्ठिओ देवो सिरे काउं करंजलिं ॥ ९४६२ ॥ धन्नो तुमं महासत्त जस्स ते निच्चलं मणं । सव्वया सुद्धसम्मत्ते मोक्खसोक्खेक्ककारणे ॥ ९४६३ ॥ खामेयव्वं तए सव्वं जं तुहुप्पाईयं दुहं । मए असद्दहंतेण सुररायपसंसणं ॥ ९४६४ ॥ पुच्छए सीलसारो तं को तुमं किं पसंसणं ? । अमरो जंपए से मे आयन्नसु कहेमि ते ॥ ९४६५ ॥ कप्पे सोहम्मनामम्मि सुरकोडिनयक्कमो । पुन्नप्पयरिसावासो सक्को अत्थाणसंठिओ ॥ ९४६६ ॥ सव्ववावारनिउत्तेहिं सुरेहिं सह संकहं । काऊणं विम्हया तेण धुणियं निययं सिरं ॥ ९४६७ ॥ जंपियं च जहा सीलसारो सम्मत्तमुत्तमं । पालए न तदा नूणं को वि अन्नो नरो जए ॥ ९४६८ ॥ सइंदेहिं पि देविहिं वालेउं ने व तीरए । सम्मत्ताओ महासत्तो पाणच्चाए वि सव्वहा ॥ ९४६९ ॥ एवं सक्कं पसंसंतमसत्तोहं निसामिउं । चालणत्थं समायाओ तुज्झ पावेक्कभायणं ॥ ९४७० ॥ मए विउव्विओ बुद्धो कया भूरिप्पभावणा । पत्तो तस्स समीवम्मि सव्वो रायाईओ जणो ॥ ९४७१ ॥ Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३७ पयावसुंदरनिवकहा अणेगहासमाहूओ परं नेवागओ तुमं । गहित्ता पोसहं अज्ज एत्थ पत्तं तमिक्खउं ॥ ९४७२ ॥ चालेलं माणसं तुज्झ विहियं विड्डरं मए । तिव्वग्गिडज्झमाणो वि मणागमवि नो तुमं ॥ ९४७३ ॥ सम्मत्ताओऽचलो जाओ वाउ चालंति किं गिरिं ? । निच्चलं चेव तं तुज्झ जमिदेण पसंसियं ॥ ९४७४ ॥ ताहं गच्छामि सट्ठाणं दाउं तुह मणोमयं । देवाणं दंसणं भद्द ! अमोहं जायए जओ ॥ ९४७५ ॥ ता जायसु जमिठं ति दुल्लहं पि हु संपयं । सो जंपए महाभाव ! वीयराओ पहू मए || ९४७६ ॥ पत्तो गुरू वि निग्गंथो ता मग्गेमि न किंचि वि । एवं वुत्तो सुरो तस्स काऊणं गुणसंथवं ॥ ९४७७ ॥ पणामपुव्वमद्दिस्सो होउं पत्तो सुरालए । सीलसारो वि चिंतेउं खणं सुरवियंभियं ॥ ९४७८ ॥ काउसग्गे ठिओ पच्छा जाओ जा अरुणोदओ । तओ नमो अरहंताणं भणित्ता पारिडं तयं ॥ ९४७९ ॥ राईयं च पडिक्कंतो संपत्तो गुरुसंनिहिं । पोसहं पारिउं काउं पच्चक्खाणं जहामयं ॥ ९४८० ॥ गुरुण साहए रत्तिवुत्तंतं सो सुरब्भवं । पसंसिओ तओ तेहिं संपत्तो मंदिरे निए ॥ ९४८१ ॥ एवं धम्मप्पवत्तस्स तस्स वच्चंति वासरा । अन्नयनो उ मायस्स पत्तं पज्जंतमत्तणो ॥ ९४८२ ॥ कयंताराहणो सम्म पत्तो कप्पम्मि अच्चुए । संजाओ भासुरो देवो बावीससायरजीविओ ॥ ९४८३ ॥ तत्तो चुओ विदेहम्मि निच्चो होउं कयव्वओ । पाविही सासयं सोक्खं मोक्खं विक्खेवविवज्जियं ॥ ९४८४ ॥ Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ सिरिअणंतजिणचरियं धम्मसारो विबुद्धाण मए तं निट्ठमाणसो । चत्तसम्मत्ततत्तो सो पत्तो पंचत्तमन्नया ॥ ९४८५ ॥ सोहम्मे देवलोगम्मि संजाओ किब्बिसो सुरो । तओ चुओ भमेऊण भवे मोक्खो भविस्सइ ॥ ९४८६ ॥ जह गुणदोसो जाया पालणभंगेहिं दंसणस्सेसिं । अन्नेसि पि तहा हुंति राय ! ता चयह तद्दोसे ॥ ९४८७ ॥ एयं तयक्खरं चिय कहाणयं धम्मसामिचरियाओ । लिहियमिह जहा नज्जइ गंथदुगम्मि वि कई एगो || ९४८८ ॥ इय जगगुरूणाणतेण साहिए दंसणस्स दिट्ठते । भरहद्धवई तग्गहणपरिणईपरिगओ जाओ ॥ ९४८९ ॥ न य पहुपयसयवत्तो कयंजली जंपए विणयपुव्वं । पहु ! सव्वदेसविरईण पालणे नत्थि मह सत्ती ॥ ९४९० ॥ ता दाऊणं दंसणरयणं मं पहु ! करेह सुकयत्थं । तो आरोवइ सामी तस्स सहत्थेण सम्मत्तं ॥ ९४९१ ॥ सुप्पहनिवेण पुण दंसणेण सह सव्वसावयवयाइं । गहियाई भत्तिपाउब्भवंतरोमंचनिचिएण ॥ ९४९२ ।। गिण्हंति सव्वविरई के वि निवो देसविरइमन्नेउं । के वि हु अविरयसम्मद्दिट्ठित्तं लिंति पहुपासे ॥ ९४९३ ॥ बहुबीयणंतकायाइचाइणो के वि पहु पुरो जाया । एए च्चिय तिरिएहिं वि गहिया नियमा न जिणदिक्खा ॥ ९४९४ ॥ तम्मि समयम्मि उग्घाडपोरिसी सूयगो वली पत्तो । वीसामत्थं सामी वि देवच्छंदं समल्लीणो ॥ ९४९५ ॥ तो वंदिऊण सामिं भरहद्धपहू ससुप्पहाइनिवो । चउविहदेवनिकाओ वि निय-नियट्ठाणमणुपत्तो ॥ ९४९६ ॥ तत्थच्छिऊण सामी कइवयदिवसाई भव्वपाणीहिं । पूइज्जंतो भरहद्धरायपमुहेहिं भत्तीए ॥ ९४९७ ॥ Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३९ जिणनिव्वाणवण्णणं पुहईए कणयपंकयगमणो गंगाए रायहंसो व्व ।। विहरेउं पारद्धो लीलाए सउणगणसारो ॥ ९४९८ ॥ अणुगम्मतो जसगणहराइं पन्नाससंखसूरीहिं । चउद्दसपुव्वधराण य नवहिं सएहिं अणूणेहिं ॥ ९४९९ ॥ ओहिन्नाणिमुणीणं तेयालीसइसएहिं संजुत्तो । मणपज्जवनाणिजईण संगओ पंचसहसेहिं ॥ ९५०० ॥ तहेव केवलनाणीण पंचसहसेहिं समणवसहाण । वेउब्वियलद्धीणं अट्ठहिं सहसेहिं अणुसरिओ ॥ ९५०१ ।। बत्तीससएहिं वाईयाण साहूण जायपरिवारो । छासट्ठिसहससंखेहिं सव्वसमणेहिं कयसेवो ॥ ९५०२ ॥ पउमा पवत्तिणिप्पमुहसाहुणीणं बिसट्ठिसहसेहिं । जुज्जतो सड्ढेहि य दुलक्खछसहस्ससंखेहिं ॥ ९५०३ ॥ लक्खेहिं चउहिं चउदससहसेहि य सावियाण परिकलिओ । कयपरिवेढो इंदाइचउव्विहामरसमूहेहिं ॥ ९५०४ ॥ पायालाभिहजक्खेण तह वि जिंभिणियजक्खिणीयाए । रक्खिज्जमाणपवयणउद्दवो निययसत्तीए ॥ ९५०५ ॥ मगहंग-वंग-कुंतल-केरल-कन्ना-तु लाड-दविडेसु । वयराड-चोड-मेवाड-मलय-पंचालपमुहेसु ॥ ९५०६ ॥ देसेसु समवसरणागयाण सुर-मणुय-तिरिय-नियराण । दितो सम्मदसणसामन्न-गिहिव्वयं वूहं ॥ ९५०७ ॥ जंपतो परितित्थियनियरं तरणि व्व तारयुक्केरें । निम्महिय समग्गमओ वियंभमाणो मइंदो व्व ॥ ९५०८ ॥ अवहरमाणो जड्ड सेवयलोयस्स जलिरजलणो व्व । संतावमवहरंतो लोयाणं सिसिरकिरणो व्व ॥ ९५०९ ॥ सत्ताणमवणयंतो पीऊसरसो व्व रोय-आयंके । परमूसवो व्व आणंदकारओ विहरिय महीए ॥ ९५१० ॥ Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० सिरिअणंतजिणचरियं निम्मलनाणवियाणिय नियाओ अंतो जिणेसरो अणंतो । सम्मेयसेलनामे रुंदगिरिंदम्मि संपत्तो ॥ ९५११ ॥ सिवगयअजियाइजिणिंदरुंदमणिकिरणविच्छुरिओ । रोहणगिरि व्व अत्थीण जणइ जो सव्वया सद्धं ॥ ९५१२ ॥ जस्स सिहरग्गभूमीए भासए संठियं तमालवणं । सिवगयजिणमुक्कभवोवग्गाहयकम्मपडलं व ॥ ९५१३ ॥ जो चउपासवियासिढुमसियकुसुमोहधवलिओ सहइ । निव्वाणजाइ जिणनाहकेवलुज्जोयजुत्तो व्व ॥ ९५१४ ॥ तम्मि रविबिंबखलणक्खमसिंगग्गे पहू समारूढो । विरईय पत्थाणो विव विहाइ सिवनयरगमणत्थं ॥ ९५१५ ॥ कणयप्पहपहुतणुतेयपिंजरायव्व कंचणमयाए । सिहरसिलाए सामी परिट्ठिओलंकिओ मज्झ || ९५१६ ॥ तत्तो तक्कालो च्चिय हिओवएसेहिं फुरियकारुन्नो । संघमणुसासिऊणं गणहरपमुहं सुरोहं च ॥ ९५१७ ॥ तो तीए सिलाए च्चिय चउब्विहाहारकयपरिच्चाओ । आजाणुलंबिबाहू काउस्सग्गे ठिओ सामी ॥ ९५१८ ॥ तयणुकयाणसणम्मि तिहुयणतिलए अणंतजिणराए । संघे चउव्विहम्मि वि परिदेवंते सउव्वेयं ॥ ९५१९ ॥ वामकरगयकवोले सोयगलंतंसु तंबिरच्छिदले । सक्कप्पमुहसुरासुरविसरे दूरं दुहं पत्तो ॥ ९५२० ॥ अद्धट्ठमलक्खाई वरिसाणइवाहिउं कुमारत्ते । तो रज्जसिरिं पन्नरसवरिसलक्खाई उवभुत्तुं ॥ ९५२१ ॥ परिपालियपव्वज्जं वरिसाणद्धट्ठमाई लक्खाई । एवमणुभवियवरिसाण तीस लक्खाइं सव्वाउं ॥ ९५२२ ॥ चेत्तसियपंचमीए रेवइनक्खत्तमुवगए चंदे । तीसइमे उववासे संजाए अणसणग्गहणो ॥ ९५२३ ॥ Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४१ जिणनिव्वाणवण्णणं सेलेसीकरणहुयासणेण निद्दहिय भवनिवासकरं । वेयणियनामगोत्ताओ लक्खणं कम्मवणगहणं ॥ ९५२४ ॥ सामी अणंतनाहो जिणेसरो सत्तसहससंखेहिं । पत्तो अणंतनाणीहिं सह मुणीहिं महाणंदं ॥ ९५२५ ॥ एत्थंतरम्मि निय निय सह निविट्ठाण सव्वइंदाण । सीहासणाण जाओ कंपो मणिकिरणकलियाण ॥ ९५२६ ॥ तो ते झड त्ति नियनाणनायजिणरायसिद्धिगइगमणो । जाया परिवारजुया वि सोयसंभारसाममुहा || ९५२७ ॥ निस्सिंगारा आरुहिय मणिविमाणाई अच्छरा सहिया । पत्ता अणुब्भडट्ठियं च अंसुधाराहिं विरयंता ॥ ९५२८ ॥ (जुयलं) परिदेवंते बहुसो य दीणवयणम्मि सयलसंघम्मि । अक्कंदंते संकंदणाइए सुरसमूहम्मि ॥ ९५२९ ॥ पणमित्तु पहुं अक्कंदिउं बहुं गग्गयस्सरं सव्वे । जगगुरुविओयविहुरा एवं परिदेविडं लग्गा ॥ ९५३० ॥ वयणं व नयणहीणं जायं ति जयं पि निग्गया लोयं ।। तिहुयणपहुम्मि जाए जसावसेसे जिणेणंते ॥ ९५३१ ॥ इन्हिं कस्स सयासे निसुणिस्सामो नवा वि तत्ताई । पुच्छिस्सामो य तहा विगयगए निययसंदेहे ॥ ९५३२ ।। दाही करावलंबं को नरयपडंतजंतुजायस्स ।। निस्साहारणकरुणारसपत्तं सामियं मुत्तुं ॥ ९५३३ ॥ एवं परिदेवंतेहिं तत्थ अणंतसामिणो देहो । गंधसलिलेण ण्हविऊण लिंपिओ चंदणरसेण ॥ ९५३४ ॥ सव्वंगमलंकरिओ सुरवत्थाभरणकुसुमनियरेण । ठविओ मणिसिबियाए धयालिरणज्झणिरघंटाए || ९५३५ ॥ सुरकयताडियदुंदुहिरवपडिसद्देहिं सह नरसुरेहिं । अक्कंदए गिरिंदो कयजिणसिवगमणसोओ व्व ॥ ९५३६ ॥ Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ सिरिअणंतजिणचरियं देवीसु नच्चिरीसुं गिज्जते भुवणगुरुगुणग्गामे । इंदेहि समुक्खित्ता सिबिया कुसुमब्भमिरभमरा ॥ ९५३७ ॥ कप्पूरागरुचंदणदारुचियाए चियाए ठविया सा ।। अग्गी अग्गिकुमारेहिं तीए वयणेहिं निक्खित्तो ॥ ९५३८ । पज्जालिओ य वायवाउकुमारेहिं रइय यउपासं । तय-सोणिय-मंसेसुं दह्रसु जिणिंददेहम्मि ॥ ९५३९ ॥ सो मेहकुमारेहिं वरिसिय गंधोदएण विज्झविओ । गिहिति तओ इंदा मंगलकज्जे जिणिंदअट्ठिणि ॥ ९५४० ॥ सक्कीसाणा उवरिमदाहिणवासाओ लिंति दाढाओ । गिहिति चमरबलिणो हेठिल्लाओ पुणो ताओ || ९५४१ ॥ अवरे इंदा दंताइअवयवे गहिय वट्टसमुग्गेसु । ठविउं अब्भुदयत्थं पूयंति सया वि भत्तीए ॥ ९५४२ ॥ पहुणो चियाए ठाणे मणिथूभं विरईयं सुरिंदेहिं । चवलद्धयालिखलहलिरघग्घरं कणिरकिंकिणियं ॥ ९५४३ ॥ जे पत्ता सिद्धीए सद्धिं जयबंधवेण केवलिणो । काउं तेसिं पि हु पूयपुव्वगं अग्गिसक्कारं ॥ ९५४४ ॥ एवं काऊणमणंतसामिणो सिद्धिगमणकरणिज्जं । ससुरासुरासुरिंदा नंदीसरदीवमणुपत्ता ॥ ९५४५ ॥ काऊण तत्थ सासयजिणाण अट्ठाहिया महामहिमा । ता निय-नियठाणेहिं लद्धा विलसंति सुरलच्छि ॥ ९५४६ ॥ सिरिअम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । भणिओ अणंतचरिए पंचमओ एस पत्थावो ॥ ९५४७ ॥ (गंथकारपसत्थि) अस्थि समुन्नयसाहो सव्वुत्तमपत्तविरईयच्छाओ । सुकइजुओ बहुसउणो सिरिवडगच्छो वडतरु व्व ॥ ९५४८ ॥ Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४३ ग्रंथकारपसत्थि सुमणसमुणिंदसंसेवियक्कमो नायनिहियमणवित्ती ।। तम्मि पहू उप्पन्नो गुरु व्व सिरिदेवसूरि त्ति ॥ ९५४९ ॥ तस्सऽन्नयम्मि जाओ निग्गंथसिरोमणीसुवित्तो वि । सिरिअजियदेवसूरी कयंतबुद्धी वि कारुणिओ ॥ ९५५० ॥ तो संजाया आणंदसूरिणो जणिय जणमणाणंदा ।। तत्तो य तिन्नि जाया मुणीसरा भुवणविक्खाया ॥ ९५५१ ॥ सिरिनेमिचंदसूरी पढमो तेसिं न केवलाणं पि । अवराण वि समयरहस्सदेसयाणं मुणिंदाणं ॥ ९५५२ ॥ जेण लहुवीरचरियं रइयं तह उत्तरज्झयणवित्ती । अक्खाणयमणिकोसो य रयणचूडो य ललियपओ ॥ ९५५३ ॥ बीओ बीयसमुग्गयचंदकलानिक्कलंकतणुजट्ठी । सिरिपज्जोयणसूरी तिव्वतवच्चरणकरणरओ || ९५५४ ॥ तइया य अमयरसवरिससरिससद्देसणाजणाणंदा । जिणचंदसूरिपहुणो ससहरकरसरिसजसपसरा || ९५५५ ॥ सच्छत्तगुरुत्तगहीरयाहिं लीलाए जेहिं निज्जिणिया । फलिहमणिगयणवित्थरदुद्धोदहिणो गुरुतरा वि ॥ ९५५६ ॥ तो तेहिं दुन्नि विहिया निययपए सूरिणो भुवणमहिया । सरला विलसिरचित्ता समुन्नया दंतिदंत व्व ॥ ९५५७ ॥ सिरिअम्मएवसूरी पढमो तेसिं समस्सिरी भवणं । गुरुरयणरोहणगिरी सरस्सईवासवरकमलं ॥ ९५५८ ॥ जो अक्खाणयमणिकोसवित्तिविवरणकयत्थकयलोओ । सव्वोदारजणाणं चूडारयणत्तमुव्वहइ ॥ ९५५९ ॥ तह बीओ सिरिसिरिचंदसूरिनामो मुणीसरो संतो । संतोसपरो सपरोवयारकरणेक्कमणवित्ती ॥ ९५६० ॥ सिरिअम्मएवसूरीहिं नियपए सूरिणो कया चउरो । हरिभद्दसूरिनामो सिग्घकई पढमओ तेसिं ॥ ९५६१ ॥ Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ सिरिविजयसेणसूरी बीओ ससिसेयकित्तिभरभूरी । एगंतरोववासी तक्कालंकारसमयन्नू ।। ९५६२ ।। उद्दामदेसणज्झणिपडिबोहियसव्वभव्वविसरस्स । तस्स कणिट्ठो सिरिनेमिचंदसूरी वि मंदमई ॥ ९५६३ ॥ ताण तुरीओ जसदेवसूरिनामो मुणीसरो मइमं । लक्खणछंदालंकारतक्कसाहित्तसमयन्नू ॥ ९५६४ ॥ सिरिविजयसेणमुणिवइपयम्मि सिरिनेमिचंदसूरीहिं । ठविओ समंतभद्दाभिहाणसूरी गुणावासो ॥ ९५६५ ॥ पत्तो य जिणहरालंकियम्मि कुडकच्छले पुरे आसि । गुज्जरवंसुप्पन्नो सेट्ठी नामेण संवहरी ॥ ९५६६ ॥ लोओवयारकरणप्पवणो पवणो अनायरयहरणे | पवरमणिपरीहारा हारामलसीलकलिओ जो ।। ९५६७ ॥ उवसंता पर भत्ता जिणदेवी नामिया पिया तस्स । चत्तारि तीए जाया पुत्ता हरिबाहुदंड व्व ॥ ९५६८ ॥ पढमो कुमारनामो कलावियड्ढो सुओ कुमारो व्व । बीओ साओ य सिट्ठी तस्स कणिट्ठो गुणगरिट्ठो ॥ ९५६९ ॥ तइओ य सव्वदेवो जेउय नामो चउत्थओ तेसिं । सीलसमलंकियंगी भइणी वि हु मल्हुया नाम ।। ९५७० ॥ भज्जा गुणसंपन्ना संपुन्ना नामिया कुमारस्स । ठक्कुर-वोसरिसब्भुयनामाणो नंदणा तीए ।। ९५७९ ।। कंता जिणदेवमई देवमई साउयस्स विक्खाया । तीए नय व्व जाया पुत्ता चत्तारि सिरिभवणं ॥ ९५७२ ॥ पढमो नेमिकुमारो समुवज्जियचारुकित्तिपब्भारो । बीओ य वीरनामो गुणरयणाभरणअभिरामो || ९५७३ || तईओ य अप्पमत्तो मत्तो नामेण जिणमयासत्तो । धम्मत्थव्वईयणो चउत्थओ वद्धणो तेसिं ॥ ९५७४ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४५ ग्रंथकारपसत्थि जो सव्वदेवसेट्ठी संजाया तस्स सुंदरी भज्जा । जसणागसड्ढयाभिहपुत्ता तीसे समुप्पन्ना || ९५७५ ॥ जे पुण जेउय नामो तस्स सिरी भारिया नयनिहाणं । नंदिकुमारो संभीयपुत्तया (तीसे) णीइपरा || ९५७६ ।। नेमिकुमारो ईहंगसद्धिं आलोचियं कुमारेण । रिसहजिणबिंबजुत्तं कारवियं जिणहरं तत्थ ॥ ९५७७ ॥ नामेण जसोदेवी (नेमिकुमारस्स) सेट्ठिणो भज्जा । (पउमसिरि) देवी अभयसिरी वि य सुया दोन्नि ॥ ९५७८ ॥ सीलसमलंकियंगी धणस्सिरी नाम तस्स बीयपिया । (महुरस्सरा) उदारा परोवयारे पसत्तमणा ॥ ९५७९ ॥ (तीए समुत्थि) पुत्तो नयवंतो देवपूयणासत्तो । नामेण उसहदत्तो सेट्ठी निच्चं पि गुरुभत्तो ॥ ९५८० ॥ जिणबिंबजुयाओ जेण देवउलियाओ रिसहभवणम्मि । कारावियाओ तह लेहियाइं सुमहत्थपोत्थाई ॥ ९५८१ ॥ भइणीओ संति चत्तारि तस्स पढमाए जेईया नाम । बीया सिवदेवी विमलसीलकलहंसगुरुसरसी ॥ ९५८२ ॥ तईया जिणदेवी वीयरायगुरुचरणकमलवणभमरी । दक्खिन्नविणयजुत्ता चउत्थीया रुप्पिणी नाम ॥ ९५८३ ॥ जायाओ विणीयाओ जायाओ वीरसेट्ठिणो दुन्नि । विमलसिरी देवसिरी नामाओ गुणभिरामाओ ॥ ९५८४ ॥ निरवच्चा विमलसिरी देवसिरीए सुयदुगं जायं । पढमो (कवड्डि) पुत्तो (पिई-) भत्तो जिणगुरूणं च || ९५८५ ॥ बीओ य पुंडरीओ विन्नाण वियक्खणो नयनिहाणं । देवमई नामेणं भइणी तेसिं सुधम्ममई ॥ ९५८६ ॥ सिरिउसहसेट्ठिभज्जा अइहवदेवी विणीय विणयनया । चत्तारि सुया तीए पढमो तेसिं सिरिकुमारो ॥ ९५८७ ॥ Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ सिरिअणंतजिणचरियं बीओ देवकुमारो कुमारपालो तइज्ज (महामइम) ।। लहूओ उ जसकुमारो सज्जणिराणीओ तणयाओ ॥ ९५८८ ॥ आमिणि पदमी नामा भज्जाओ कवड्डिपुंडरीयाण । पढमस्स तिन्नि तणया पदुमकुमारो त्ति तप्पढमो || ९५८९ ॥ बीओ माइकुमारो सामिकुमारो तइज्जओ तेसिं । सीलुयनामा पुत्ती संजाया पुंडरीयस्स ॥ ९५९० ॥ देवकुमारस्स पिया जसमइनामा समुत्थि तीए सुया । जइतलदेवी नामा पासकुमारो य पुत्तो ति ॥ ९५९१ ॥ भज्जा कुमारपालस्स जयसिरी जयसिरि व्व सीलस्स । तह जाया संजाया जयदेवी जसकुमारस्स ॥ ९५९२ ॥ सिरि कवड्डिसेट्ठिणा तह देवकुमाराइएहिं भत्तीए । भणिएहिं विणयपुव्वं अणंतजिणचरियकरणत्थं ॥ ९५९३ ॥ तो अम्मएवमुणिवइविणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । अब्भुदयंकररइयं चरियमिणं अणंतजिणरन्नो ॥ ९५९४ ॥ संसोहियं च ससमयपरसमयन्नूहिं विउसतिलएहिं । जसदेवसूरिमुणिवइसमंतभद्दाभिहाणेहिं ॥ ९५९५ ॥ पढमायरसे लिहियं मेहकुमाराभिहाण विउसेण । तह पुत्थयम्मि गुज्जरवंसुब्भवचंदुएणमिमं ॥ ९५९६ ॥ रसचंदसूरसंखेवरिसे विक्कमनिवाओ वड्ढंते । वइसाहसामबारसि तिहीए वारम्मि सोमस्स ॥ ९५९७ ॥ रिक्क्खम्मि पुव्वभद्दवयनामगे इंदजोगजुत्तम्मि । पालते रज्जसिरिं कुमारपाले महीनाहे ॥ ९५९८ ॥ सिरिवद्धमाणपुरट्ठिय विसिट्ठवरणगवसहि पारंभा । धवलक्कयम्मि देवयघरम्मि वरिसेण निप्फन्नं ॥ ९५९९ ॥ पहु पासपसाएणं तह सूरिक्कमाणुभावेण । अंबासन्नेज्झेणयकयमेयमणंतजिणचरियं ॥ ९६०० ॥ Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४७ ग्रंथकारपसत्थि पच्चक्खरगणणाए सिलोयमाणेण बारससहस्सा । संपुन्नु च्चिय जाया चरियम्मि अणंतजिणरन्नो ॥ ९६०१ ॥ मंदमइत्तेण मए रइयं ता जमिहं किं पि उस्सुत्तं । तं नाउं कयकरुणा गीइत्था इह विसोहंतु ॥ ९६०२ ॥ जा वि जइ रयणायररविससिधरणीसु मेरु तह विंदं । ता वक्खाणिज्जंतं नंदउ चरियं अणंतस्स ॥ ९६०३ ॥ ग्रंथाग्रं १२००० ॥ छ । श्री अनंतजिनचरितं समाप्तमिति ॥ छ ॥ संवत् १६०४ ॥ वर्षे कार्तिक शुदि ८ रवौ मंत्रिकुंपालेखि ॥ छ । शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्री ॥ कर्णावतीवरपुरीवासी दारिद्यदूरवित्रासी । श्रीमालिज्ञातिमणिर्बभूव नाथाभिधः साधुः ॥ ९६०५ ॥ ज्यायो गोधावर्द्धनबान्धवसहितस्य धर्मनिरतस्य । तस्य जयन्ति विनीता नायकदेवीभवाः पुत्राः ॥ ९६०६ ॥ केशव-लाइअ-मूंमण-नामानः पुण्यपुण्यधामानः ।। तेषु च केशवनामाऽजिह्मब्रह्मादिगुणगरिमा ॥ ९६०७ ॥ बालादिपुण्यकरनिजनिजकुटुंबसहितो हितोपदेशगिरः । आकर्ण्य तपागच्छेशानां श्रीसोमसुंदरगुरूणाम् ॥ ९६०८ ॥ आराधयितुं ज्ञानं लक्षग्रंथं च लक्षपुण्ययशाः । न्याय्येन लेखयन् निजधनेन चित्कोशयोग्यं सः ॥ ९६०९ ॥ साह्लादमलीलिखदमलीमसमुच्चैरनन्तजिनचरितम् । शशिवेदनिधिहयाब्दे १४९७ सुचिरमिदं वाचयन्तु बुधाः ॥ ९६१० ॥ प्रशस्तिरियं ॥ कल्याणमभितो भूयात् श्रीश्रमणसंघस्य ॥ श्री ॥ Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For poater Ponsel we