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________________ ५६० ससरीरनिरावेक्खं अइतिक्खं सोक्खबद्धलक्खेण । विक्खेववज्जिएणं तेण तवच्चरणमायरियं ॥ ७९८८ ।। अंगाइ ओवंगाई पयन्नयाई च पगरणाई च । तह तेण अहीयाइं जह सो गीयत्थयं पत्तो ।। ७१८९ ॥ नव खयरिंदो रज्जं निरवज्जं पालए पयत्तेण । सेणीदुगे वि गच्छइ आवज्जंतो समग्गजणं ।। ७१९० ।। तह कह वि नीईपालणपरेण पवियंभियं ननिवेण । जह न सरइ सिविणे वि हु पुव्वनिवे को वि कइया वि ॥ ७१९१ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं विहरइ खयरिंदरिसी वसीकयासेसइंदियचमूहो । गुरुणा सद्धिं विद्धिं नितो नाणाइगुणचक्कं ॥ ७९९२ ॥ छत्तीससूरिगुणसंगओ त्ति गणहरपए कओ गुरुणा । वेयड्ढोभयसेढीसु विहरए भूपुरेसुं च ।। ७९९३ ।। कइया वि तस्स सुक्कज्झाणानलदड्ढघाइकम्मस्स । जायं केवलनाणं लोयालोयप्पयासयरं ॥ ७१९४ ॥ तो भूय - भवंत-भविस्स - भावउब्भावणेण भव्वाण । पुच्छंताणुवयारे कुव्वंतो सोहमिह पत्तो ॥ ७९९५ ॥ पत्तो य एस सिंगारमउडखेयरेसरो सुओ तुज्झ । मह वंदणकज्जे सो हरिओ बालत्तणे करिणा ।। ७१९६ ॥ मज्झदिक्खयग्गहणाओ जायाइं अज्जं अट्ठवरिसाई । पायं एस निवो मं वंदइ निच्चं पि आगंतुं ॥ ७९९७ ॥ ता राय ! तए पुत्तावहारचरियं जमासि पुट्ठो हं । तं तुह कहियं ति पयंपिऊण नाणी ठिओ मोणे ॥ ७९९८ ॥ केवलिवयणेण वियाणिऊण सिंगारमउडखयरवई । रायाह जाय तुह विरहजायसंतावतावहव्ववहो । तुह दंसणनवघणपडलअमयवुट्ठीए संतो मे ॥ ७१९९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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