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________________ सिंगारमउडका नूणं जीवंताणं कयाइ कल्लाणमेइ पुरिसेण । बहुएहिं वि वरिसेहिं कहमन्नहा मह तुमं मिलिओ ॥ ७२०० ॥ जं वच्छ ! कए सुकयं किं पि कयं तं तए समं भमियं । जेण जणणि व्व तुह विंझवासिणी हियकरी जाया ॥ ७२०१ ॥ तेणेव सूरपुरवरनयरवणे तुज्झ दंसिओ सुगुरू । तेणेव रयणकुंडलराया तुह दाविओ रज्जं ॥ ७२०२ ॥ ता पुत्त ! उत्तरोत्तरकल्लाणाई कयाई सुकएणं । तुह मह मिलणं ताइं नन्नोहेऊण इहत्थम्मि || ७२०३ || खयरवइणा भणियं ताय ! तह च्चिय जहा समाइसह । न हि निप्पुत्ताण जए एक्का वि हु फलइ सुहकिरिया ॥ ७२०४ ॥ इय जंपिऊण जणणीए देइ वंदणयमसमनेहेण । उल्लसियनेहपन्हुयपयोहरा तयणु सा भाइ ॥ ७२०५ ।। आचंदक्कं नंदसु अक्खय अजरामरत्तगुणजुत्तो | अविउत्तोहो य सया वि पुत्त ! अम्मा-पिऊणम्ह ॥ ७२०६ ॥ जं जाय जायमिह तुह विओगओ अम्ह दुस्सहं असुहं । मा होउ तल्लवो वि हु तुह वेरीणा चेव रायाण ।। ७२०७ || इच्चाए घणसिणेहाए निययजणणीए जंपियं सोउं । खयरवई निविट्ठो नियपिओ वामंगदेसम्म ॥ ७२०८ ॥ एत्थंतरम्मि सिंगारसायरो नरवई नमियनाणिं । पुच्छर किमम्ह जाओ पहु ! बहुवरिसाई सुयविरहो ।। ७२०९ ॥ तो केवलिणा भणियं न राय ! निक्कारणं हवइ किंपि । ता आयन्नसु कम्मेण जेण पुत्तो विउत्तो ते ।। ७२१० ॥ इह आसी कासी देसवसुमईभूसणं पुरप्पवरं । कमलाकलियं नामेण गुरुपुरं सुरपुरसमिद्धं ॥ ७२११ ॥ जंति मुहचउम्मुहछमुहदसमुहे उ मिच्छमाणं च । सोहइ सव्वत्तो च्चिय बहुसुहलोहप्पयारपरं ॥ ७२१२ ॥ Jain Education International ५६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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