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तवोवरिचंदकंतकहा वल्लहपिया विउत्तस्स, तस्स जामो वि जुगसमो जाइ । चणयस्स व भाडुब्भवसंतावुत्तत्तगत्तस्स ॥ ५११० ॥ कइया वि असमउम्मायदूमिओ तत्थ ठाउमतरंतो । एक्कदिसाए निसाए, धणुबाणकरो विणिक्खंतो ॥ ५१११ ॥ रयणिविरामे जाए जणणी जा पुत्तयं नियइ न नियं । ता पुत्तगमणसंकाए कंपरी जाइ पइ-पासे ॥ ५११२ ॥ जंपइ जं गुणजुत्तो न दीमए अज्जउत्त ! तुह पुत्तो । तं कत्थ वि य पउत्थो मने दाऊण दुहमम्ह ॥ ५११३ ॥ तो झ ति सयण-वणिउत्त-मित्त-कम्मयर-मंदिरेसु सयं । भमिओ नवरं न सुयस्स पावियं वत्तमेत्तं पि ॥ ५११४ ॥ तो आगंतुं उम्मुक्कपेक्कपोक्कारवं पिया जुत्तो ।। रुयइ रुयाविय नियसयण-मित्त-वणिउत्त-परियरिओ ॥ ५११५ ॥ हा जाय जाय ! नो जाइ जाव जरजज्जरस्स हिययं मे । विहडिय तुह विरहासणिघायाहयमेहि ता सिग्धं ॥ ५११६ ॥ हा पुत्त ! जुत्तमेयं किं तुह उत्तमकुलप्पसूयस्स । जं पालणजोग्गाई, गओ तमम्हे परिच्चइउं ॥ ५११७ ॥ हा पुत्त ! तए समुवज्जिएण, सिरिवित्थरेण किं कज्जं ?। जो जाही उवओगं, न चायभोएहिं तुह सययं ॥ ५११८ ॥ रुइरी जंपइ जणणी हा पुत्तय ! निजजणम्मि वि न हुंति । गुरुणो निद्दयहियया अहं तु जणणी वि परिचत्ता || ५११९ ॥ अन्नोन्नसिणेहाणं विच्छोहे विरईए मुहत्तं पि । बहुकालिओ विवागो, भवंतरे होइ ईय समओ ॥ ५१२० ॥ ताहं सुयबहुयाणं घणस्सिणेहाण मेत्तियं कालं । . काऊण विप्पओगं स भवंतरे किं लहिस्सामि ॥ ५१२१ ॥ गन्मभरनीसहाए, जइ से अच्चाहियं कह वि होही । ता कत्थ नित्थरिस्सं, थीवह-भूणवहपावदुगं ? || ५१२२ ॥
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