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सिरिअणंतजिणचरियं एवं परिदेवंती, मुच्छाए पइक्खणं पडइ झ त्ति । उवलद्धचेयणा, ताडए सिरं तोडए केसे ॥ ५१२३ ॥ सयणाइएहिं भणिओ, सिट्ठी सपिओ वि न हि रुयंतस्स । एही इह सो ता तन्निरिक्खणे उज्जमं कुणसु ॥ ५१२४ ॥ तो पच्चइए पुरिसे, पेसइ गुरुयर-तुरंगमारूढो । गच्छइ सयं स सिट्ठी, नवरं न नियइ कहिं पि तयं ॥ ५१२५ ॥ ता हियपविट्ठसल्लं व नियसुयं हिययं च. झायंतो । अइवाहइ दिवसाइं सो आगंतुं गिहम्मि ठिओ ॥ ५१२६ ॥ एत्तो य चंदकंतो विउत्तकंतासु दुस्सहदुहत्तो । .. निग्गंतूण निसीहे, पत्तो पुरपरिसरुद्देसे ॥ ५१२७ ॥ चिंतइ जीए दिसाए, मह जायइ वल्लहप्पिया लाहो । तीए हुंतु सुसउण त्ति चिंतउं विहियपणिहाणो || ५१२८ ॥ चलिओ पुव्वदिसाए तो तं गमणाय पेरयंतो व्व । घूओ वामे पासे घुग्घुय झ त्ति संलग्गो ॥ ५१२९ ॥ अह दाहिणकन्नासन्नखीरसिहरम्मि भयरवा दूरं । किलि किलि रवेण मग्गे, जं तस्स कहेइ कुसलं सो ॥ ५१३० ॥ वेगेण विलग्गंतो, पट्ठीए पेरइ व्व पवणो तं । गंतूण सिग्घमेव य वल्लहभज्जाए मिलसु त्ति ॥ ५१३१ ॥ इय जायचारुतरसउणदंसणाणुमियपिययमा लाहो । वच्चइ अतुच्छ-उच्छाहवस-विसप्पंत-गुरुवेगो ॥ ५१३२ ॥ भोयण-ठाणे न सुयइ, सयणठाणम्मि भुंजए नेय । इय अक्खंडपयाणयकयप्पवित्ती पहे जाइ ॥ ५१३३ ॥ गाम-पुरागर-नगराइन्नमइक्कमिय वसुमई वीढं । पत्तो रन्नम्मि भमिरसरह-परिसप्पि-रुरु-वराहम्मि ॥ ५१३४ ॥ धवधम्मेण सोहं, जणवाणंजण-असण-गहणदुपवेसं । कंकेल्लि-बिल्ल-अंकेल्लि-सल्लई-वेल्लि-दुल्लंघं ॥ ५१३५ ॥
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