________________
५७५
सिंगारमउडकहा पावेइ पावमेक्को एक्को च्चिय पुत्तप्पसरमुवचिणइ । किं बहुणा एक्को चिय गच्छइ पंचमगईए वि ॥ ७३८२ ॥ सयणा सुहिणो करिणो हरिणो सुहडा सिरी सरीरं पि । जीवेण समं न पयं पि चलइ एयाणमेगं पि ॥ ७३८३ ॥ ता बज्झवत्थुविसए जुत्तो ममत्तपरिहारो । जुत्तं समत्तकरणधम्मो जा सहचरो सययं ॥ ७३८४ ॥ एगत्तभवेणुब्भावणम्मि जइ माणसं हवइ लीणं । पाणीण ता न जायइ मोहो घरघरणिपमुहेसु ॥ ७३८५ ॥ भावेयव्वं अन्नत्तमत्तणो बज्झवत्तिवत्थणं । सयणाईणं भिन्नो जीवो जीवाओ ते भिन्ना ॥ ७३८६ ॥ धण-धन्नपमुहमन्नं जीवा जीवो वि ताण धुवमन्नो । सोहग्गाइ वि अन्नं तत्तो तह सो वि अन्नयरो ॥ ७३८७ ॥ जत्थ निया देह-जीवाण सव्वया अन्नया जयपसिद्धा । तत्थस्सहावभिन्नेसु बज्झवत्थूसु का गणणा ? ॥ ७३८८ ॥ ता जइ एसा अन्नन्नभावणावठ्ठिया भवइ हियए । ता निम्ममत्तय च्चिय होइ तणुए वि किमन्नत्था ॥ ७३८९ ॥ असुइत्तभावणाए गव्वो अवसरइ देहविसयम्मि । जेणोरालियदेहो सोणिय-सुक्केहिं संभवइ ॥ ७३९० ॥ असुइवसामंसजंबालकललकीलालकलियकायम्मि । सत्ताण किमु सुइत्तं गब्भाहाणाओ मरणं तं ॥ ७३९१ ॥ मयणाहि-कुसुम-कुंकुम-कप्पूराईणि सुरहिवत्थूणि । असुइसरीरविलग्गाई हुंति दुग्गंधरूवाइं ॥ ७३९२ ॥ जद्दरचीणंसुयदेवदूसपडिनेत्तपमुहवत्थाई । पस्सेय-मलविलीणाई झ त्ति कीरंति देहेण ॥ ७३९३ ॥ न्हाणुव्वट्टणएहि वि न मुयइ देहो कया वि असुइत्तं । किमसुइभरिओ कुंभो दुवारधोओ हवइ सुरही ? || ७३९४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org