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सिरिअणंतजिणचरियं जे दढपहारदारियरिउहरिकरि-राय-पत्तकित्तिभरा । निस्सरणा ते वि करालकालपरिकवलणं जंति ॥ ७३६९ ॥ किं बहुणा ? भवरासे जम्म-जरा-मरण-दुहभरत्ताण । सत्ताण रोगसोगायककायच्छिज्जमाणाण ॥ ७३७० ॥ जणओ जणणी सयणो ससा य लच्छी य पुरिसया रोया । मच्चुम्मि सविहिपत्ते न सरणमेयाणमेक्को वि ॥ ७३७१ ॥ ता बज्झ परियरं परिहरिउं जो उत्तमं जिणप्पणीयं । धम्मं सरणं गच्छइ इच्छिइ तं चिय वरसिद्धी ॥ ७३७२ ॥ इह चउगइसंसारे भमिरो जीवो सकीयकम्मेहिं । राया वि होइ रंको रंको वि हु जायए राया ॥ ७३७३ ॥ पावइ मुक्खत्तं पंडिओ वि पंडिच्चमेइ मुक्खो वि । रूवधरो वि विरूवो होइ विरूवो वि स्वधरो ॥ ७३७४ ॥ सामित्तं दासस्स वि दासत्तं होइ सामियस्सा वि । दोहग्गी सोहग्गं पावइ सुहओ वि दोहग्गं ॥ ७३७५ ॥ तह अन्नभवे जायइ माया वि पिया पिया वि पुण माया । पुत्तो वि होइ जणओ जणओ पुण जायए पुत्तो ॥ ७३७६ ।। देवो वि होइ तिरिओ तिरिओ वि हु होइ इह भवे देवो । चंडालो वि हु विप्पो जायइ विप्पो वि चंडालो ॥ ७३७७ ॥ जह घणसलिलं आसयवसेण अणुसरइ भूरिरसभावं । कम्मेहिं तहा जीवो बहुयरूवाई अणुसरइ ॥ ७३७८ ॥ जइ किर एसा संसारभावणा फुरइ सव्वया चित्ते । अहमुत्तमोहमोहे एस न हवए ता अहंकारो ॥ ७३७९ ॥ इह भववासे जीवो चउप्पयारे वि एक्कगो भमइ । गब्भम्मि वसइ एक्को एक्को जायइ मरइ एक्को ॥ ७३८० ॥ एक्को सुहाई भुंजइ भागी दुक्खाण जायए एक्को । एक्को पावइ रोए एक्को वि य सोयमणुभवइ ॥ ७३८१ ॥
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