SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७६ असुइत्तभावणालीणमाणसा हुंति जे सया सत्ता । तेउ व्व हुंति न कयाइ रूवगव्वं सविसयम्मि मिच्छत्ताविरइपमायदुट्ठजोगेहिं असुहपयडीओ । आसवइ सया पाणी अणिजंतिय आसवदुवारे || ७३९६ ।। पाणिवहपवित्तीए तह कोह - माण - माया - लोहप्फल - पयगुणणं च । उप्पहपवित्तमण - वयण - कायवावरविरयणाए य । एएहिं असेसेहिं वि पाणी पावाई आसवइ || ७३९७ || उग्घाडगोउरे जह पुरम्मि संझाए पविसए लोगो । तह एएहिं अणिजंतिएहिं जीवे विसइ पावं ॥ ७३९८ || अणवरुद्धासवदारा पावप्पईओ लहुयठिईओ । विरयंति गुरुठिईओ मंदरसा तिव्वरसयाओ || ७३९९ || तह अप्पपएसाओ बहुप्पएसाओ निम्मिउं सत्ता । परियति अनंतं दुरंतसंसारकंतारं ॥ ७४०० ॥ सो आसव - भावण- पडिवक्खा जे संवर त्ति वागरिया | जीए जीव- वहाईण विरमणं कीरए सययं ॥ ७४०१ || जह पिहियगोयरम्मि पुरम्मि न य कोइ पविसिउं तरइ । संवरियासवदारे तह जीवे पावपडलाई || ७४०२ || उवसमभावियचित्ता मिच्छत्ताईण विहियनिम्महणा । पइसमयसमुल्लसमाणसुद्धपरिणामपरिकलिया ।। ७४०३ ।। सुहकम्मप्पयईओ हुस्साओ कुणंति दीहरठिईओ । मंदरसा तिव्वरसा थोवपएसा बहुपएसा ।। ७४०४ ॥ जे जाणिऊण आसवदाराई निग्गहंति मुणिवसभा । ते जाय संवरा सासयं सुहं झत्ति पावंति ॥ ७४०५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं Jain Education International एसा हु निज्जरा भावणा भवुब्भूय-पावपब्भारो । जीए विणिज्जइ सुह - भावुल्लासवसएहिं ॥ ७४०६ ॥ For Private & Personal Use Only ७३९५ || www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy