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सिंगारमउडकहा तह छट्ठ-अट्ठमप्पमुहअट्ठमासंततिव्वतवचरणा । भूसयण-लोय-करणासिणाण आयावणाईहिं ॥ ७४०७ ॥ मुणिचक्कवालसामायारी करणक्कमप्पसत्तीए । बहुभवसमुब्भवं पि हु जीवो निज्जरइ दुकम्मं ॥ ७४०८ ॥ अह लोगभावणाए दव्वाइचउव्विहो हवइ लोगो । दब्वे जीवाईया अत्थिक्काया तहिं पंच ॥ ७४०९ ॥ खेत्ते सत्तमनरयाहो भागा सिद्धि उवरिमंतं जा । चउदसरज्जूलोगो सव्वत्थ अलोगकयवेढो ॥ ७४१० ॥ सत्तमपुढवीए तले विक्खंभे तस्स सत्तरज्जूओ । वित्थरओ रयणप्पहपुढवीए उवरिमा एक्का ॥ ७४११ ॥ लोगस्स रज्जुपणगं वित्थारो बंभलोयकप्पम्मि । सिद्धिसिला सन्नेज्झे वित्थरओ सा पुणो एक्का ॥ ७४१२ ॥ सो हेट्ठाहो मुहपल्लवठिई संठिओ तदुवरम्मि । अणुहरइ मल्लयाणं दोन्हं संपुडपरिठियाणं ॥ ७४१३ ॥ तत्थाहोलोगम्मि हवंति सत्तेव नरयपुढवीओ । पावक्कंता सत्ता कयत्थणं जासु वि सहति ॥ ७४१४ ॥ तिरिए असंखदीवंबुरासि-गिरि-सरिय-चंद-रवि-तारा । उड्डंमि अमरलोया गेवेज्जाणुत्तरा सिद्धी ॥ ७४१५ ॥ काले अणाइनिहिणो भावे उप्पाय-विगम-धूवरूवो । ईय लोगचिंतणेणं धम्मं झाणं थिरं होइ || १४१६ ॥ एसा हु दुल्लहबोहि त्ति भावणा जमिह मोहवसवत्ती । कालमणंताणंतं अणंतकाए वसइ जीवो ॥ ७४१७ ॥ तत्तो पत्तेगेसुं पुढवी-दग-अग्गि-वाउ-भूएसु ।। वसिउमसंखं कालं कमेण सो जंगमो होइ ॥ ७४१८ ॥ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदि-पणिंदियत्तजाईण । जीवस्स उत्तरोत्तरमेक्केक्का होइ सुकएण ॥ ७४१९ ॥
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