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________________ ६८५ भुवणपमोयनिवकहा बहुदक्खेला-नालियर-खंड-कप्पूरमिस्सिओ एगो । दिन्नो रणसूरस्सा वि मोयगो माणयपमाणो ॥ ८८०० ॥ बंधुरगंधं तं गिहिऊण लग्गो सगेहमग्गे सो । अंतो रमंतसद्धम्मपरिणई चिंतए एवं ॥ ८८०१ ॥ एएण भक्खिएणं जावज्जीवं न होहिही तित्ती । जाव मुहे ता सुरसो एसो पोट्टगओ असुई ॥ ८८०२ ॥ ता इमिणा सुरसेणं भक्खेण करेमि देवनेवज्जं । जं मह पच्छा दुलहो एवंविहउत्तमाहारो ॥ ८८०३ ॥ इय चिंतिऊण वलिउं चलिओ मग्गे जिणिंदभवणस्स । अहव पमाओ काउं किं जुज्जइ धम्मकम्मंमि" || ८८०४ ॥ गच्छंतो संपत्तो जिणालयं नियइ सुरविमाणं च । अनिलचलद्धयरणज्झणिरकिंकिणीनियररमणीयं ॥ ८८०५ ॥ जम्मि जिणसम्मुहानिलचालियबलिनिहियसेयकुसुमाइं । पूएउं च जिणिदं जंताई जवेण सोहति ॥ ८८०६ ॥ पुप्फोवहारचुंबणपराई बहुचंचरीय चक्काई । जम्मि जिणवंदियतुट्टकम्मनियलाई व सहति ॥ ८८०७ ॥ तम्मि पविट्ठो पेच्छइ पसंतकंतं जिणेसरं रिसहं । जय जय जय त्ति जय पहु त्ति जंपिरो नमइ भत्तीए || ८८०८ ॥ चित्तभंतरसमुल्लसंतबहुमाणजायरोमंचो । आणंदवसपवत्तं सुविसरजलधोयगंडयलो ॥ ८८०९ ॥ तं पावमोयगं मोयगं सयं मुयइ सामिकरकमले । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ८८१० ॥ पुणरवि पणमित्तु पहुं खोणीमंडलमिलंतभालयलं । पत्तो निययावासे सो उक्कंठिय पिया पासे ॥ ८८११ ॥ अन्नोन्नं मिलियाणं ताणुप्पन्नो महासुहक्करिसो । "अवरे वि निए मिलिए होउ सुहं किं न कंताएं" ॥ ८८१२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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