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सिरिअणंतजिणचरियं कईया वि तस्स कंता वुत्ता सालिप्पिय पिययमाए । किं स्वरसेण तुह पियस्स जो मोयगो दिन्नो ॥ ८८१३ ॥ तं सोउं सा चिंतइ किमहं न पिएण दिन्नमद्धं पि । "जइ वा न वल्लहे वि हु लोहपराणं हवइ नेहो ॥ ८८१४ ॥ नियघरजुत्ताजत्ता वत्ता नन्नस्स साहिउं जत्ता । इय चिंतिय तीयुत्तं अच्चंतं तम्मि रसवत्ता || ८८१५ ॥ धणरहियाण वि गेहे लोओ पेसइ जमुत्तमं वत्थु । किं पुण ससुरकुलम्मिं विसेसओ तम्मि वि धणड्ढे ॥ ८८१६ ॥ इय जंपिय नियगेहे पत्ता पियविसयजायअवमाणा । विप्फुरियफारअरई उवविट्ठा दूरमुव्विग्गा ॥ ८८१७ ॥ वामकरखित्तमुही सरलस्सासा अलद्धलद्धच्छी । पियगयअणप्पकुवियप्पकप्पणुप्पन्नसंतावा || ८८१८ ॥ चिंतइ पिएणमविभइय मज्झ न कयाइ अत्तणा भुत्तं । अज्जं तु सुयमिमं नो दीसइ किं जीवमाणेहिं ॥ ८८१९ ॥ तं चिय निवससि मह माणसम्मि न तरामि तं विणा ठाउं । इय मायावयणेहिं अहमप्पवसा कया तेण ॥ ८८२० ॥ धुत्तपउत्तीहिं नरा एवं रमणीओ वेलवेऊण । निम्मल्लमालियाओ व कयकज्जा झ त्ति उज्झंति ॥ ८८२१ ॥ मंदमईओ अविवेइणीओ तुच्छाओ अपढियसुयाओ । “विरईओ विप्पयारिय विडा विडंबंति विलयाओ" ॥ ८८२२ ॥ जेत्तिय मित्ता विज्जा हुंति पवंचा वि तेत्तिया नूणं । तो पुरिसेहिं सवसयाओ मुद्धमहिलाओ कोरंति ॥ ८८२३ ॥ दुव्विलसियाई काउं कुवियपियाए तमुत्तरं दिति । नियसच्छयाए सच्चा इमे त्ति मन्नंति तो ताओ ॥ ८८२४ ॥ इय चिंतावसअच्चंतजायवरविसयविसयविद्देसा । तं चेव गरुयवेरग्गकारणं धरइ हिययम्मि ॥ ८८२५ ।।
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