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________________ ६४३ पप सा । धूवसुंदरनिवकहा नंदंतु नरा ते च्चिय चिरं न चिंता वि जाण संजाया । पररमणिविसयविसया सीलालंकारकलियाण ॥ ८२५७ ॥. हा हा हयविहिविहिओ हमिह महापावमंदिरं तुमए । कहमहमत्तं पत्ता एवंविहिपावरिंछोली ॥ ८२५८ ॥ गब्भाओ किन्न गलिओ ! गिलिओ बालो न किं बिडालीए ? । जमहमकज्जपरंपरपत्तं जाओ अणज्जमई ॥ ८२५९ ॥ एवं वेरग्गवसा वागरमाणं निसामिय तयं सा । चिंतइ नूण विरत्तो एसो एरिससमुल्लावा ॥ ८२६० ॥ ता मह सवित्तिपुत्ताण गोसमयम्मि साहिही नूणं । ते मं कयत्थिऊणं दुम्मरणेणं हणिस्संति ॥ ८२६१ ॥ ता किं इम्मिणा मह रक्खिएण निय वेरिण त्ति चिंतेइ । खणरायविरायंतं पायं पयई महिलियाण” ॥ ८२६२ ॥ पहु ! मह खमसु त्ति पयंपिऊण खामणमिसेण तप्पाए । उप्पाडिऊण अयडे झडत्ति सुहडं खिवइ पावा ॥ ८२६३ ॥ तिव्वाणुराइणी विय संझ व्व विराइणी दुयं जाया । खणरायविरायत्ते महिलाणऽहवा किमच्छरियं ?” ॥ ८२६४ ॥ दठूण भडं अयडे पक्खित्तं हयहरो वि चिंतेइ । धिद्धी धिरत्थु इत्थीणऽणत्थसत्थेक्कमूलाण ॥ ८२६५ ॥ उम्मीलिओ वि दूरं इमम्मि सुहडे इमाए अणुराओ । सहस च्चिय प्पणट्ठो पवणाहयसरयजलओ व्व ॥ ८२६६ ॥ जस्संग अप्पिज्जइ दिज्जइ दुद्देयसव्वदव्वं पि । सो वि हु एवं हम्मइ "अहो महेलाण मूढत्तं ॥ ८२६७ ॥ पंचविहं विसयसुहं उवभुत्तं जेण सह सिणेहेण । तव्वेलं चिय सो वि हु खित्तो पावाए कूवम्मि ॥ ८२६८ ॥ दठूण कूडकवडाइं नूण महिलाण पुव्वरायाणो । मुत्तं तणं व ताओ झ त्ति तवच्चरणमकरिंसु ॥ ८२६९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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