SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 671
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૬૪૨ सिरिअणंतजिणचरियं तव्विरइयरयविन्नाणविरयणाहरियहिययवावारा । सा आह कुणसु तह नाह ! जह सया होइ णे जोगो ॥ ८२४४ ॥ फुट्टइ हिययं दज्झइ सरीरयं जाइ जीवियव्वं पि । मह तुह विरहे ताहमवि सहतए आगमिस्सामि ॥ ८२४५ ॥ तन्नेहमोहिओ सो जंपइ ता चलसु तयणु तीयुत्तं । गहिउँ निययाभरणं इन्हिं पि समागमिस्सामि ॥ ८२४६ ॥ ता अप्पसु नियरियं जह पेडयं दारिठं तस्साणेमि । जायइ खडक्खडा तालयस्स उग्घाडणे जेण ॥ ८२४७ ॥ तेणावि खग्गधेणू समप्पिया गहिय तं गया सा वि । नवरं महईए वेलाए आगया तस्स पासम्मि ॥ ८२४८ ॥ कूवयकंठनिविट्ठस्स झ त्ति समप्पिया छुरिया । “सिद्धे कज्जे को वा परवत्थु धरइ सकरम्मि ॥ ८२४९ ॥ सह अप्पणा इमं पि पहु दिन्नं तुह समग्गमाभरणं । इय जंपिरी तमप्पइ “किमदेयं वा सिणेहस्स ॥ ८२५० ॥ संगोवियं समग्गं तेण वि तं बंधिऊण परिहाणे । "इयरं पि सुग्गहीयं कुणंति दक्खा किमु न दव्वं ॥ ८२५१ ॥ भणियं च तीए पिययम ! तुह कज्जे मारिऊण दइयं पि । इह पत्त त्ति पयासइ पयई तुच्छत्तमित्थीणं ॥ ८२५२ ॥ तं सोउं सो सुहडो जंपइ एयं तए कयमजुतं । जं सो हओ " न गरुया पावपवत्ता वि निक्करुणा" || ८२५३ ॥ “पररमणीपरिभोगो एक्कं बीयं तु तीए अवहरणं । तईयं धणावहारो तुरीयमविणासिनरहणणं ॥ ८२५४ ॥ जइ हं नागच्छंतो ता हुतं एक्कमवि न पावं मे । आगंतुं चत्तारि वि पावाई मए कयाई पिए ! ॥ ८२५५ ॥ एक्केक्कं पि समत्थं दाणे नेरईयदारुणदुहस्स । चउपावभरक्कंतो कहिं हयासो गमिस्समहं ? ॥ ८२५६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy