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________________ ६४४ सिरिअणंतजिणचरियं पवंगि व्व चलसहावा महिला लूय व्व जलियसंतावा । उप्पाइयवसणसया कुविंदसाल व्व पडिहाइ ॥ ८२७० ॥ सुंदरवन्ना आमोयमणहरा सुहरसाय भुज्जंती ।। महिला किंपागफलावलि व्व उप्पायइ अणत्थं ॥ ८२७१ ।। 'सूरो वि कयत्थिज्जइ खंडिज्जइ सव्वया वि राया वि । राहुसिरीए इव महिलियाए कलुसस्सहावाए ॥ ८२७२ ॥ अंतोहुत्तम्मीलियपकामरसपूरिया परिब्भमिरी । गयणं व कुलं मइलइ महिला नव मेहमाल व्व ॥ ८२७३ ॥ “दुईता कुडिलगई परमपयविवज्जिया सुइविहूणा । कस्स न भयमुप्पायइ नियंबिणी सप्पिणि व्व सया ॥ ८२७४ ॥ कज्जम्मि जाण कीरइ धणज्जणं चोरियाई काऊण । ताणेरिसं सरूवं ता “पज्जतं ममित्थीहि ॥ ८२७५ ॥ असरिसवेरग्गविभावणावसुल्लसियगुरुतरविवेए । अस्सावहारपुरिसे एवं परिभावयतम्मि ॥ ८२७६ ॥ पविसिय गिहम्मि गहिऊण हलकुसिं पइगिहे खणइ खत्तं । “किमकज्जं वा वज्जियमज्जायाणं महिलियाण ॥ ८२७७ ॥ गंतुं मज्जे धाहावए जहा धाह धाह धाह ति । पविसिय चोरेणं ठक्कुरो हओ नीययमाभरणं ॥ ८२७८ ॥ एतं सोऊण सहसा ससंभमासाउहा सपाइक्का । ठक्कुरपुत्ता परिवेढयंति गिहमुग्गहक्करवा ॥ ८२७९ ॥ तुरयकुडप्पमुहाई ठाणाई नियंति के वि दीवकरा । अन्ने उ य निसंतिय चोरपयं एइयनिउणनरा ॥ ८२८० ॥ दळूण गिहावेढं हयावहारी वि चिंतए एवं । मह संकडमावडियं छुट्टिस्सं ता कहं इण्हि ? ॥ ८२८१ ॥ न तरेमि वि णिग्गंतुं भडपडलावेढियाओ भवणाओ । दुक्कम्मभरावरिओ नरयठाणाओ जीवो व्व ॥ ८२८२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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