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________________ ५१४ सिरिअणंतजिणचरियं ता देह देसविरई न सव्वविरई रुई जओ अम्ह । पत्थं पि हु अरुईए भत्तमणुत्थाय होइ सुवं ॥ ६५९२ ॥ तो खवगेण विइन्नो तेसिं धम्मो दुवालसविहो वि । सम्मत्ताई तेहिं वि गहिओ भोज्जं व छुहिएहिं ॥ ६५९३ ॥ तो पणमिऊण खवगं जलधारा निवडणम्मि विरयम्मि । घूणावलहरणाई गहियगिहे दो वि पत्ताई ॥ ६५९४ ॥ काऊण तणकुडीरयमावसमाणाई अणुदिणं तम्मि । वंदंति तिसंझं चिय जिणचंदममंदभत्तीए ॥ ६५९५ ॥ कलयंति य सहलत्तं सधम्मुवओगओ नरत्तस्स । नंदंति य पावकरं कयं कुकम्मं जमा जस्सं ॥ ६५९६ ॥ धम्माणुभावओवसंतअंतरायाण ताणमीसीमि । जायई सया वि लाहो भोयण-वत्थज्जणाईओ ॥ ६५९७ ॥ तो दिट्ठपच्चयाणं तेसिं धम्मम्मि आयरो जाओ । कुव्वंति य जह लाहं ताण जिणिंदाण पूयाइं ॥ ६५९८ ॥ वंदंति य गंतूणं निच्चं चिय तं गुहाए खवगमुणिं । एवं वटुंताणं ताणं चउम्मासयं पत्तं ॥ ६५९९ ॥ तो दोहि वि कंठसिणाणपुव्वपावरियधोयपोत्तेहिं । अट्ठप्पयारपूयापुव्वं जिणवंदणं विहियं ॥ ६६०० ॥ दाउं दुवालसावत्तवंदणं गुरुपुरो पवज्जंति । पच्चक्खाणमभत्तट्ठमसमसद्धा विसुद्धाइं ॥ ६६०१ ॥ बीयम्मि दिणे वंदियदेवे काउं च संघखामणयं । गहिउं परमन्नं दो वि पारणत्थं निविट्ठाइं ॥ ६६०२ ॥ अवलोयंति दुवारं जइ कोइ समेइ संपयं अतिही । ता से दाउं जुज्जइ भुत्तं अम्हं ति चिंताए ॥ ६६०३ ॥ एत्थंतरम्मि सो गिरिगुहामुणी गुणमणी नईनाहो ।। कयमासचउक्काहारचायसंजायकिसकाओ ॥ ६६०४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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