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________________ ७०३ गंधबंधुरकहा कयनरमऊररूवेण एत्थ उववेसिङ मए कुमरिं ।। तुह पुव्वभवा दुन्नि वि कहिया नियभवदुगेण समं ॥ ९०३४ ॥ तं सोउं कुमरी जाइसरणसच्चवियपुव्वभवचरिया ।। सिरिगंधबंधुरम्मिं अणुरत्ता पुव्वभवदईए ॥ ९०३५ ॥ तो झ त्ति नरमऊरो चलकुंडलहारकडयकलसोहो । जाओ अमरो बहुरविपयावपन्भारदुनिरिक्खो ॥ ९०३६ ॥ तो सा कयप्पणामा पूयइ तं सुरहिपरमवत्थूहिं ।। 'इयरम्मि वि कुलबाला विणयवई किं न जणयम्मि” ॥ ९०३७ ।। जंपई य ताय तुमए जह कहियं तह मए वि सच्चवियं । पुव्वभवदुगचरियं सिविणे दिवसाणुभूयं व ॥ ९०३८ ।। ता तुमए मह कहिओ जो पुव्वभवुब्भवो पिओ कुमरो । इण्हि पि तं वरिस्सं सईओ न नरंतरमईओं ॥ ९०३९ ॥ आह सुरो रिद्धिकरी पूया अणुमोइया वि तुह जाया । फलइ बहु थेवं पि हु बीयं ववियं सुभूमीए ॥ ९०४० ॥ ता दिट्ठपच्चया तं करेज्ज धम्मुज्जमं सया वच्छे ! । निच्छइए कल्लाणे न पमाओ जुज्जए जइ वा ॥ ९०४१ ।। एवं धम्मुवएसं दाउं सहसा तिरोहिओ तियसो । कुमरी वि गंधबंधुरकुमरे रत्ता गया सगिहे ॥ ९०४२ ।। न मुणइ छुहं न पावइ निदं न वियाणए तिसं बाला । जलणज्जालाजलियं व विरहविहुरा वहइ देहं ॥ ९०४३ ।। मन्नइ चियं व सा चित्तसालियं मुम्मुरं पिव मुणालं । आभरणं दुम्मरणं व पावपूरं व कप्पूरं ॥ ९०४४ ॥ एवमवत्थं कुमरिं दठूण सहीओ तीए नरवइणो । साहति पुव्वभवभवदइए रत्ता तुह सुय त्ति ॥ ९०४५ ॥ नाऊण निवेण वि सहिमुहेण दुहियाए पुव्वभवदइयं । कन्नं पि जाणिउं पियविओयसहणासहं दूरं ॥ ९०४६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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