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सिरिअणंतजिणचरियं
पहु ! अम्हे वि हु पुन्नेक्कमंदिरं जेहिं थावरे तित्थे । चलिएहिं जंगमं तित्थमुत्तमं तमिह संपत्तो ॥ ८५५५ ॥ एत्थंतरे करेणुक्खंधगओ छत्तअंतरियतरणी । राया चउरंगबलो पत्तो केवलिकमे नमइ ॥ ८५५६ ॥ वंदिय सेसे मुणिणो सलाहिउं पणमिउं च नव साहुं । उवविट्ठो तो वंदइ तस्संतेउरमवि समग्गं ॥ ८५५७ ॥ तम्मज्झे निवकन्ना नियरूवजियामरी कणयवन्ना ।। पत्ता मत्तामरहत्थिमंथरक्कमगया गमणा ॥ ८५५८ ॥ लीलाचलच्छिविच्छोहखोहियासेसतरुणनरनियरा । दीवपहा नामेणं सारसुहासारसियहासा || ८५५९ ॥ दठूण केवलिं सा हच्छं मुच्छं गया मयंकमुही । सीओवयारसंपत्तचेयणा पुच्छिया पिउणा ॥ ८५६० ॥ किं वच्छे ! मच्छागमणकारणं तुह पयंपए सा वि । पुच्छसु गुरुणो ईय भणिय केवलिं नमिय उवविट्ठा ॥ ८५६१ ॥ कयकरकोसो नमिऊण केवलिं पुच्छए निवो भयवं ! । किं मुच्छिया मह सुया भणइ पहू निसुणसु नरिंद ! || ८५६२ ॥ सरसाहिट्ठिय पहियं सरसाहियसत्तुसुहडसंदोहं । सरसाहिलसियवासं पुरमत्थि विसालसालं ति ॥ ८५६३ ॥ रविउदयारद्धदिणंतमुक्कवणिभवणकयकुकम्मेण । पत्तारसआहारो अकिंचणो तत्थ अत्थि नरो ॥ ८५६४ ॥ निम्मंसमुही नित्तेयकालदुब्बलकरालकाया से । मुत्तिमई चामुंड व्व भारिया आसि विगयासा ॥ ८५६५ ॥ खंडण-रंधण-पीसण-जलवहण-गिहप्पमज्जणाईहिं । पत्तघरपत्तकुभोयणकयाट्ठिई गमइ दियहे सा ॥ ८५६६ ॥ सिसिरे सहति सीयाइं गिम्हसमयम्मि तिव्वरवितावं । मलकलियकुचेलाई दोन्नि वि मुणिमंडलाइं व ॥ ८५६७ ॥
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