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भुवनपईवनिवकहा जुन्नकुडीरयछायणकज्जे कइया वि दो वि दब्भत्थं । भमिराई गुरुअरन्ने नियंति आयावयंतं मं ॥ ८५६८ ॥ भणिया अकिंचणेणं भज्जा नमिमो इमस्स पयपउमं । जेणज्जेमो अम्हे सव्वुत्तमपुन्नपब्भारं ॥ ८५६९ ॥ तो दोन्नि वि भत्तिवसप्पसरियरोमंचअंचियंगाणि । भूमियलमिलियभालयलमणहरं मज्झ पणमंति ॥ ८५७० ॥ दहें विसुद्धभावं तेसिं मए तयणु उवविसेऊण । उवविट्ठाणं दिन्नो दोन्ह वि सद्धम्मउवएसो ॥ ८५७१ ॥ आयन्नह भो तुब्भे पंचिंदियजाइपमुहसामग्गि । पावेउं नायव्वाई देव-गुरु-धम्म-तत्ताई ॥ ८५७२ ॥ रागद्दोसाईहिं दोसेहिं अदूसियं मुणह देवं । निग्गंथं गीयत्थं तत्तरयं जाणह गुरुं पि ॥ ८५७३ ।। जइ गिहिभेएहिं दुहा बुज्झह धम्मं जिणेहिं पन्नत्तं । पढमं दसप्पयारं बारसभेयं पुणो बीयं ॥ ८५७४ ॥ जीवाऽजीवा पुन्नं पावासवसंवरा य निज्जरणा । बंधो मोक्खो य इमं आयन्नह तत्तनवगं पि ॥ ८५७५ ॥ देव-गुरु-धम्म-तत्तसद्दहणेण होइ सम्मत्तं । मूलं सव्वुत्तममोक्खकप्परुक्खस्स इममेव ॥ ८५७६ ॥ फल-सलिल-धूव-दीवय-अक्खय-नेवज्ज-गंधकुसुमेहिं ।। पूयइ सम्मद्दिट्ठी इय जिणमट्ठहिं वि पूयाइं ॥ ८५७७ ।। सव्वाओ वि अतरंतो पईवपूयं करेइ जइ भव्वो । तो सा एक्का वि हरेइ तस्स पावाई भणियं च ॥ ८५७८ ॥ 'जो देइ दीवयं जिणवरस्स पुरओ पराए भत्तीए । तेणेव तस्स डज्झइ पावपयंगो न संदेहों ॥ ८५७९ ।। मणुयत्तं संपत्तं मा नेह मुहा करेह सद्धम्मं । तुम्हाण हियं कहियं जुत्तमिमं चिय गुरूणहवा ॥ ८५८० ॥
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