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________________ २१० सिरिअणंतजिणचरियं इय जंपिऊण जणणी, एसो तओ अंसुपुन्ननयणाए । आलिंगिऊणमाभासिउं च भाइपमुहहलोयं ॥ २६६७ ॥ सीहासणे निविट्ठो, तो निवजणयं नमित्तु खयरिंदा । निवपासउचियरयणासणेसु ते वि हु समुवविट्ठा ॥ २६६८ ॥ एत्थंतरम्मि सिंगारिनहयरीनियररइयअणुगमणा । सियछत्तालंकरिया चलचामरचारुसोहधरा || २६६९ ॥ अच्चब्भुयरिद्धिभरा हरियसिरीरूवविजियरइरमणी । रायपिया नहयरी पत्ता आणंदसिरि नामा ॥ २६७० ॥ अंगुट्ठीअवगुंठियवयणा पणमित्तु नियपइगुरुणं । ताणासीसं तुट्ठा उवविट्ठा सासुयसमीवे ॥ २६७१ ॥ तयणुनरिंदाइट्ठो, खयरो नहसेयरो वि य गुरुणं । साहइ जलहत्थिनिमज्जणाइय राइणो चरियं ॥ २६७२ ॥ इह अत्थि महत्थिसयत्थदाणसंजणियमग्गणाणंदं । आणंदपुरं नामेण गुरुवरं परमपायारं ॥ २६७३ ॥ उल्लोयविहियसोहा सुनायदंता पयासियपयत्था । रयहरणसोहिया संति जम्मि जइणो व्व पासाया ॥ २६७४ ॥ तत्थत्थि हथिहयरहजोहचमूचक्कअक्कमियसत्तू । आणंदसुंदरो नाम नरवई जणमणाणंदो ॥ २६७५ ॥ जस्सुल्लसियपयावो रिउणो निद्दहइ सुहयए सुहिणो । दहणो दहइ जयं पि हु सुहयइ अंगारभक्खजिए ॥ २६७६ ॥ तस्सावसोहघणरयणाभरणरइयसिंगारा । आणंदमई नामेण पणइणी राइणो अस्थि ॥ २६७७ ॥ जा कंकेल्लिलया इव पवालसुमणो विराईया सहइ । सारंगसंगसहया य सम्मयद्धासियसमीवा ॥ २६७८ ॥ तीए समं पंचविहं विसयसुहं सेवियस्स नरवइणो । वच्चइ कालो तो सो कयाइ अत्थाणमणुपत्तो || २६७९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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