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पढमपत्थावो जे एयगुणविहीणा नूण कुगुरुणो भवोयहिम्मिं ते । लोहतरंड व्व समस्सिए वि के लिंति बुडुंता ? || २१६ ॥ नवतत्ताई जीवाऽजीवा पुन्नं च तह य पावं च । आसव-संवर-बंधा, मोक्खो तह निज्जरा चेव ॥ २१७ ॥ इग-बि-ति-चउर-पणिंदियरूवा चित्ताइलक्खणा जीवा । हुंति अजीवा धम्माऽधम्माऽऽगासाइबहुभेया ॥ २१८ ॥ सुहकम्मपोग्गलेहिं पुन्नं पावं तु तेहिं असुहेहिं । पुन्नं जोगविसुद्धी पावं आसवइ तदसुद्धी ॥ २१९ ॥ मण-वय-कायनिरोहो निरासवो संवरो समक्खाओ । बंधो कम्माण समज्जणम्मि तम्मोयणे मुक्खो ॥ २२० ॥ निज्जरणं कम्माणं तवकिरियाकरणसुद्धिसब्भावे । इय तत्तं तुम्हाणं नवहा सिवसाहयं कहियं ॥ २२१ ॥ ता एय परिक्खाए देव य गुरु-तत्तसंगहे विहिए । उप्पज्जइ सद्धम्मो अविसंवाई सिवेक्कफलो ॥ २२२ ॥ सम्मं जीवदया जम्मि कीरए मुच्चए मुसावयणं । घिप्पइ य दंतसोहणमेत्तं पि तणं पि नऽन्नेसिं ॥ २२३ ॥ पालिज्जइ बंभं बंभचेरगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । बज्झऽब्भंतरगंथच्चाया कीरइ अगंथत्तं ॥ २२४ ॥ पुव्वावराविरुद्धो एसो धम्मो न विहडइ कयाइ । कुगइगमणं निवारइ पणामए मोक्खमक्खेवा ॥ २२५ ॥ पुव्वं दयाए कहिउं जीववहेण वि कहति जे धम्मं । ते विप्पयारया तो तद्धम्मो नेव कायव्वो ॥ २२६ ॥ . सो सद्धम्मो दुविहो जइ-सावयभेयओ जिणक्खाओ । पढमो जइधम्मो दसप्पयारो बारसभेओ भवइ बीओ ॥ २२७ ॥
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