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सिरिअणंतजिणचरियं (जइधम्मो) खंती य मद्दवऽज्जवमुत्ती-तव-संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ २२८ ॥ कज्जम्मि अकज्जम्मि व रोसस्स विणिग्गहे हवइ खंती । विणयम्मि कीरमाणम्मि मद्दवो होइ माणजया ॥ २२९ ॥
सो अज्जवो त्ति मायाजयम्मि परवंचणाइपरिहारो । सिलियाए वि निरीहस्स होइ मुत्ती गए लोहे ॥ २३० ॥ अणसणपमुहो बज्झऽब्भंतरभेओ तवो दुवालसहा । तह संजममवगच्छह सतरसविह-आसवनिरोहे ॥ २३१ ॥ अविसंवायणजोगप्पमुहं चउहा पयंपियं सच्चं । सोयं तु सुद्धभत्ताइएहिं देहोवगारित्ता ॥ २३२ ॥ आकिंचन्नं इंदिय-धण-सयण-सुहाण चायओ होइ । बंभं नव नव भेयं कज्जं दिव्वं उरालं च ॥ २३३ ॥ काउं दसप्पयारं पि समणधम्म इमं महासत्ता । पावंति सिद्धिसोक्खं इण्हि गिहिधम्ममक्खेमो ॥ २३४ ॥ (गिहिधम्मो) पाणिवह-मुसावाए-अदत्त-मेहुण-परिग्गहो पंचेव ।। दिसि-भोग-दंड-समइय-देसे-तह पोसह-विभागे ॥ २३५ ॥ जाजीवं थूलाणं जीवाणं रक्खणे हवइ पढमं । बीयव्वयं तु जायइ थूलं अलियं अभणिरस्स ॥ २३६ ॥ तइए अणुव्वए चयइ खत्तखणणाइ थूलधणहरणं । दिव्वोरालियपररमणिवज्जणे थूलं बंभवयं ॥ २३७ ॥ संखेवियम्मि नवविहपरिग्गहे होइ तप्परीमाणं । जोयणसंखा अह-उड्ढ-तिरियदिसिमंडले कज्जा ॥ २३८ ॥ परिमाणं उवभोगे परिभोगे चिय सया विहेयव्वं । मोत्तूणं धरणाई निसाए न कयाइ भोत्तव्वं ॥ २३९ ॥
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