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पढमपत्थावो चइयव्वो चउहा अणत्थदंडो सया अणत्थकरो । साहूहिं व होयव्वं घेत्तुं सामाइयं बहुहा ॥ २४० ॥ निच्चंपि नियमसंखेवणेण देसावगासियं कज्जं ।। आहाराइच्चाएण चउब्विहं पोसहं बिंति ॥ २४१ ॥ साहूण सुद्धदाणेण भन्नए अतिहिसंविभागो त्ति ।
बारसविहो वि सावयधम्मो तुम्हाण परिकहिओ ॥ २४२ ॥ । एसो वि देइ मोक्खं भवंतरे नेव तम्मि चेव भवे । कहिया दुन्नि वि एए धम्मा तुम्हाण भवहरणा ॥ २४३ ॥ देव-गुरु-तत्तविसए जा निच्चलया तमेव सम्मत्तं । संकाइयाइयारा तम्मि सया परिहरेयव्वा ॥ २४४ ॥ विसलहरीउ जहा अवसरंति अमयाभिसित्तसत्तस्स । तह पावप्पयईओ सम्मत्तजुयस्स भव्वस्स ॥ २४५ ॥ एक्कं पि हु सम्मत्तं नारय-तेरिच्छगइदुगं हरइ । . वियरइ य सुदेवत्तं सुमाणुसत्तं च सिद्धिं च ॥ २४६ ॥ किं पुण विसुद्धसम्मत्तपुव्वया साहु-सावयजणस्स ? । धम्मा सम्मं विहिया भवभयभीरूहिं भव्वेहिं ॥ २४७ ॥ इय चित्तरक्खगम्मि मुणिराए देसणं कुणंतम्मि । धम्माभिमुही जाया परिसा सनराऽमरा दूरं ॥ २४८ ॥ गिहिति सव्वविरई के वि हु अवरे उ देसविरई पि । अन्ने पुण सम्मत्तं के वि नरा भद्दया जाया ॥ २४९ ॥ तयणु मणुम्मीलियअप्पमाणबहुमाणजायरोमंचो । आणंदवसपवन्नंसुधोरणीधोयगंडयलो ॥ २५० ॥ उन्भूयभत्तिपब्भारभावपाउब्भवंतपरिओसो । कयकरकोसो नमिउं नरेसरो विन्नवेइ गुरुं ॥ २५१ ॥ (जुयलं) पहु ! तुम्ह देसणावयणमंदरुम्महियहिययजलनिहिणो । उल्लसिओ अमयकरो अमयकरो विव मह विवेओ ॥ २५२ ॥
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