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सिरिअणंतजिणचरियं के वि पुणो सुकयोदयसमस्सिया इंति उत्तमनरत्ते । आरियखिक्तुत्तमगोत्तपमुहसामग्गिसहियम्मि ॥ २०४ ॥ एवं चउव्विहम्मि वि भवे न पायं समत्थिसत्ताण । सोक्खं सद्धम्मविवज्जियाण गुरुकम्मकलियाण ॥ २०५ ॥ (धम्मे देव-गुरु-धम्मतत्तपरिक्खा य) धम्मो भुवणत्तयविवरवत्तिवंछियपयाणकप्पतरू । धम्मो समग्गकल्लाणवणवियासेक्कमहुसमओ || २०६ ॥ धम्मो दुग्गइमग्गदुवारपरिरुंभणग्गलादंडो । धम्मो दुग्गमसग्गापवग्गसम्मग्गसत्थाहो ॥ २०७ ॥ निययं निययं निययं तं सिवदं बिंति लिंगिणो सव्वे । ता गज्झो धम्मत्थीहिं सो परिक्खिय सुवन्नं व ॥ २०८ ॥ जह कस-ताव-च्छेएहिं सुद्धकणयं न विहडइ कयाइ । तह विहडइ न कयाइ वि धम्मो वि परिक्खिउं महिओ ॥ २०९ ॥ जं कित्तिमं सुवन्नं पभूयकाले वि विहडइ जहा तं । तह कीरंतो धम्मो वि विहडए जस्स न परिक्खा ॥ २१० ॥ ता आयन्नह तह भो ! जहा परिक्खा विहिज्जए तस्स ।। देवो गुरू य तत्ताई जाणियव्वाइं सम्ममिहं ॥ २११ ॥ नीरागो निद्दोसो अणंतनाणावलोइयतिजओ । उवसंतो उवयारी पवज्जियव्वो जिणो देवो ॥ २१२ ॥ जे पुण रागद्दोसाइएहिं दोसेहिं दूसिया दूरं । ते भवकूवनिवडिया अन्नं कहमुद्धरिस्संति ? ॥ २१३ ॥ निग्गंथो गीयत्थो पंचविहायारपालणुज्जुत्तो । पंचसमिओ तिगुत्तो संतो दंतो गुरू गज्झो ॥ २१४ ॥ नाणी जाणइ सयमवि जाणावइ अवरमवि गुरू कहिउं । पावइ न वंछिय पुरं अंधो अंधेण निज्जंतो ॥ २१५ ॥
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