________________
३१५
रयणावलिकहा . तुह तारिस जयचित्तफुरंतअसमाणपेम्मपसरस्स । जह लज्जियं अमच्चेण पेच्छ तुच्छयरचित्तेण ॥ ४०२२ ॥ नूणं न कोइ नेहो नराण नियकज्जनिट्ठचित्ताण ।। वज्जियमज्जायाणं निल्लज्जाणं अणज्जाणं ॥ ४०२३ ॥ जइ अत्थि अमरिसो तुह ता तं पि हु कुणसु जं कयं तेण । हम्मइ वेहे वंकम्मि कीलिया वंकिया अहवा ॥ ४०२४ ॥ जो निरभिमाणचित्तो वाहिज्जइ सो सदा सवित्तीए । खडभारवहो कीरइ किं न करी तेयपरिहीणो ॥ ४०२५ ॥ नित्तेयसतेयाणं पयर्ड चिय अंतरं जए नियह । पूइज्जइ जलिरग्गी पाएण वि छिप्पइ न छारो ॥ ४०२६ ॥ ता सरसु पइ निवई तुह सवसे तम्मि जयजणो सवसो । चंदबले वि जयंते बलिणो सेसग्गहा अहवा ॥ ४०२७ ॥ . संति पभूया पुरिसा परमिह तुल्लो न कोइ नरवइणो । अहवा सव्वे वि रसा पीयूस-रसस्स सरिसा किं ?॥ ४०२८ ॥ निवसत्ताए जायाए सेवओ जयजणो वि तुह होही । तह माणमद्दणा वि हु होइ कया परिहवकरस्स ॥ ४०२९ ॥ दूरं जस्सालवणं पाविज्जइ दंसणं पि पुन्नेहिं । सो पुहइवई सयमवि तं पत्थइ ता कयत्थासि ॥ ४०३० ॥ इय जंपिरं निसामिय दूई नयसुंदरी पयंपेइ । किमिह मुहेव किलम्मसि दुहा वि अन्नायपरचित्ता ॥ ४०३१ ॥ जंतेहिं वि पाणेहिं नाहमकज्जं कयाइ वि करिस्सं । एमेव महापावं अज्जइ जइ अज्जओ निवो ता ॥ ४०३२ ॥ रुट्ठस्स जमस्स वि नो बीहेमि निवस्स का पुणो वत्ता । काहामि न तमकज्जं सुयं मए नियकुले वि न जं ॥ ४०३३ ॥ दारिदं पि हु रज्जं व मज्झ अइविमलसीलकलियाए । रोरत्ताओ वि अहियं चक्कित्तं पि हु सीले नठे ॥ ४०३४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org