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. सिरिअणंतजिणचरियं मायाविणो असच्चा परकज्जपरम्मुहा सकज्जपरा । नूणं हवंति पुरिसा तो को किर तेसु पडिबंधो ? ॥ ४००९ ॥ इह चिठेंतो मं चेव देवयं पिव सया वि मन्नंतो । तत्थ गओ कीय वि केरलिए वामोहिओ दूरं ॥ ४०१० ॥ महचित्तरक्खणत्थं पेसिय पुरिसे करावए सारं । अवरा संतो जं सो तं महइ नेहेण पन्भट्ठो ॥ ४०११ ॥ . एवं पयट्टअट्टज्झाणपरिखिज्जमाणसव्वंगी । पुरिसं पइ विद्देसं पत्ता नयसुंदरी दूरं ॥ ४०१२ ॥ तप्पासट्ठियपरिवारपुच्छणा जाणिउं नरिंदेण । नयसुंदरी विराओ सचिवे कहिओ जणसहाए ॥ ४०१३ ॥ भणियं च अहो सा एगचित्तया मंति-मंतिपत्तीण । कत्थ गया जा तुब्भेहिं वन्निआ आसि मह पुरओ ॥ ४०१४ ॥ भणियं मए पुणो जं आमरणंतो न कस्सई नेहो । अह होइ कह वि कत्थइ सो विरलो तं इमं मिलियं ॥ ४०१५ ॥ तो अत्थाणजणेणं भणियं देवस्स मिसियं वयणं । सच्चं चिय संजायं पहुवयणं किंचि संवयइ ॥ ४०१६ ॥ अहह पवंचो पहुणो अगोयरो नूण अमरगुरुणो वि । अहवा सुहुममईणं अन्नायं नत्थि भुवणो वि ॥ ४०१७ ॥ एत्थंतरम्मि राया अस्थाणजणं विसज्जिङ झत्ति । कयभोयणाइकिरिओ निसाए सुत्तो विचिंतेइ ॥ ४०१८ ॥ संपय चंपयवनं अप्पायत्तं करेमि मंति-पियं । जं तीए रूवरेहं न लहइ मह सहयरी का वि || ४०१९ ॥ ईय चिंतिऊण रन्ना दुई संपेसिउं पउत्ता सा । साणुणयं सप्पणयं च सोवलोहं पगब्भगिरं ॥ ४०२० ॥ अच्चंतदुही राया सोउं दुव्विलसिअं अमच्चस्स । जं तेण तुज्झ हियए सवत्तिसल्लं विणिक्खित्तं ॥ ४०२१ ॥
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