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________________ ३१६ सिरिअणंतजिणचरियं लच्छी गच्छउ पाणा वि जंतु सयणा वि वेरिणो हुंतु । जइ मह विमलं सीलं न विणस्सइ किं पि न गयं ता ॥ ४०३५ ॥ जो होइ पयापालो न तस्स चिंता वि एरिसी जुत्ता । किं पुण घडणारंभं काउं दूईण पट्ठवणं ॥ ४०३६ ॥ वीसत्थघायगाणं पढमो राया जओऽहमेयस्स । पासे मुक्का ता पेसइय कुणंतो कहं तम्मइ ॥ ४०३७ ॥ ता तं गंतुं साहसु जह किंचि न मन्नए अमच्चपिया । तं सोउं माह दुई बला वि समयं निवो काही ॥ ४०३८ ॥ जंपइ सई न सरिसा दूइ अहं नूणं पवरमहिलाण । जं नियहिययाभिमयं काही निवईबलेणावि ॥ ४०३९ ॥ इय सव्वमहेलाणं अवण्णवायं पजंपिउं तीए । दुस्सीलयाकलंको समज्जिओ दारुणविवागो ॥ ४०४० ।। इय सुणिय तीए गंतुं निवस्स कहिओ सईए वुत्तंतो । तमपावंतो राया अहिययरं असुहमणुपत्तो ॥ ४०४१ ॥ मंतिप्पिया वि चिंतइ पडिकूलो मज्झ कम्मपरिणामो । जमिमो जाओ रोगो पियविरहो तह सवक्किदुहं ॥ ४०४२ ॥ इह दुहपरंपराए तूसइ नज्जइ विही तओ एयं । पारद्धं नरवइसीलखंडणाहियतरं असुहं ॥ ४०४३ ॥ सव्वाइं वि एयाइं सहेमि इह जम्मदिन्नदुक्खाइं । नो आभवपावकरं सक्कमि कुसीलयं सहिउं ४०४४ ॥ तो जावज्जवि राया राहु व्व न चंदमंडलं सीलं । कलुसं करेइ मह ता मरणं सरणं नवरमेक्कं ॥ ४०४५ ॥ होहि त्ति नूण पाणा पाणीण सुहासुहाभवावत्ते । जं निक्कलंकसीलं तं पुण दुलहं चएमि न ता ॥ ४०४६ ॥ इय चिंतिऊण उब्बंधेऊण अत्ताणयं अमच्चपिया । नियसिलभंगभीया पंचत्तं झत्ति संपत्ता ॥ ४०४७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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