________________
२४९
रणविक्कमकहा विहरंतो गामपुरागराइठाणेसु गोससमयम्मि । अज्जेव आगओ इह तुमए अभिवंदिउं राया ॥ ३१७२ ॥ परियाणिओ मए तं तुह पुच्छंतस्स नियवयग्गहणं । सव्वं पि साहियं इय तं मह जाओ वए हेऊ ॥ ३१७३ ॥ सह तुह सिक्खा थेवा वि राय ! बहुधम्मकारणं जाया ।। थोवं पि सुखेत्तोत्तं किं न हवइ भूरिफलमहवा ॥ ३१७४ ॥ भणइ निवो सव्वाई वि पहु ! कल्लाणाई हुंति पुन्नेहिं । अकयसुकयस्स जायइ न चेव चिंतामणीजोगो ॥ ३१७५ ॥ पहु ! अत्थि तन्न भुवणे वि जन्न तुम्हाण नाणनयणाण । मग्गम्मि समागच्छइ ता पुच्छं किं पि काहामि ॥ ३१७६ ॥ परिपुच्छसु त्ति गुरुणा भणिए वज्जरइ नरवई भयवं । । किं मह सुकयं जमहं जाओ राया दरिदो वि ॥ ३१७७ ॥ अह आह साहुनाहो महीस ! साहेमि तुह. अहं सुणसु । अत्थि सुसीमा नयरी नयरीण जणासिया य दुहा ॥ ३१७८ ॥ भोइनरलसिरगेहा अमरपुरि उव्वसीकया वासं । सियकविसीसयमिसदिस्सदंतपंति व्व जह मज्झ ॥ ३१७९ ॥ तीए पुरीए चत्तारि संति तारुन्नदिढयरा पुरिसा । अन्नोन्नं मेत्तीभावसंगया तुच्छलच्छीया ॥ ३१८० ॥ पढमो तेसिं लच्छीहरो त्ति लच्छीहरो व्व चारुगओ । पुहईधरो त्ति पुहइधरो व्व उत्तइनिही बीओ ॥ ३१८१ ॥ पन्नाधरो त्ति पन्नाधरो व्व परमक्खराईओ तईओ । विज्जाहरो त्ति विज्जाहरो व्व नहपहवहो तुरिओ ॥ ३१८२ ॥ लच्छीहरस्स जयलच्छि-लच्छि-महलच्छि नाम-भज्जाओ । ताहिं सह विसयसोक्खं भुंजतो गमइ कालं सो ॥ ३१८३ ॥ कुव्वंति किसीओ चडंति पवहणे वाहयंति सगडीओ । चउरो वि ववसाए कुणंति अत्थत्थमच्चत्थं ॥ ३१८४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org