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________________ रणविक्कमकहा बहुमयगयकयकीलं विलसंतरहं गरिट्ठविहयसरं । सरहसवररमणीयं रेहइ जं गुरु अरत्तं व ॥ २८३६ ॥ तत्थत्थि सयलविज्जाठाणट्ठावियमईसु नीइरई । वेयवियखणनामा परवामावज्जिओ विप्पो ॥ २८३७ ॥ कुसलवसुहओ भामंडलासिओ निक्कलंककयवेढो । अवराई हिययहरो जो रेहइ रामदेवो व्व ॥ २८३८ ॥ सोमो थिरो गहीरो परोवयारी कयव्वओ वीरो । निमच्छरो उदारो मुणी पसंतो पियालावो ॥ २८३९ ॥ नवजोव्वणुव्वणंगो कयाइ कमणीयजणियसिंगारो । आरूढो सव्वुत्तमलक्खणधरगुरुतुरंगम्मि || २८४० ॥ मंदानिलतरलसिहंडिचंदयछत्तहरियरवितावो । समवयतुरयट्ठियमित्तमंडलीकलीयचउपासो ॥ २८४१ ॥ रह-तुरय-सुहासण-सिबिय-लंघिणी-वहिल-सेज्जवालेहिं । सज्जीकएहिं सिंगारिएहिं समणुसरिज्जंतो ॥ २८४२ ॥ वग्गणवरेक्कपुला-टपा-झंपा-भमीहिं हयरयणं । लीलाए कीलंतो, संपत्तो विवणिवीहीए ॥ २८४३ ॥ तयणु पुरो सच्चविया तेणुत्तमरूवरम्मतणुजट्ठी । चंदकलासियमुत्ती, सप्पाभरणा हरतणु व्व ॥ २८४४ ॥ चलसरलधवलपम्हलसिणिद्धमुद्धच्छिपेच्छिएहिं लहुं । विकिरती वियसियसियसयवत्तप्पयरमिव नयरे ॥ २८४५ ॥ सव्वंगसमुल्लसमाणललियलायन्नरसभरुक्करिसा ।। ससिसंगतरंगिज्जंतखीरजलरासिवेल व्व ॥ २८४६ ॥ सिरसंठियपयघडया कोमलपावरियपट्टए उ पडया । नवजोव्वणरमणीया रमणी एगा समुहमिंती ॥ २८४७ ॥ (कुलयं) तं दटुं सो चिंतइ पेच्छ दुरज्जवसियं इमं विहिणो । जं एरिस-थी-रयणं विडंबियं एरिसायरणो ? || २८४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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