SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ सिरिअणंतजिणचरियं जेणेरिसपत्ताणं वासोजुत्तो नरिंदभवणेसु ।। कप्पलयाणं ठाणं नूणं नंदणवणो चेव ॥ २८४९ ॥ आभवमवि निव्वत्तिय समुचियसट्ठी वि एत्थ परमेट्ठी । चुल्लो जइ वा सुविवेययणो वि चुल्लंति जेणुत्तं ॥ २८५० ॥ अच्चंतविवेएण वि गुरुयाण विसंवयंति बुद्धीओ । विज्जुज्जोओ अइवहलिमाए अंधेइ अच्छीणि ॥ २८५१ ॥ इय तग्गए वियप्पे संकप्पंतस्स तस्स सहस त्ति । नासंतहयाणुपहं संपत्तो रायमत्तकरी ॥ २८५२ ॥ वेढिज्जंतो मयग्गंधलुद्धरुणझुणिरभमिरभमरेहिं । दाणपवित्तिसंगयमग्गणनियरेहिं दाणि व्व ॥ २८५३ ॥ जो बहुपुक्करहिं रयसु सुवइ महिं निएउं च । सज्जावजज्जरावा सहिही नो वा मह भरो त्ति ॥ २८५४ ॥ अणवरयं चालंतो तरलतरं कन्नतालजुयलं जो । रयपसरमिवोसारइ संतबलावलोयणत्थं ॥ २८५५ ॥ पाडतो पडिकारे भिंदंतो चोइए हए हणिरो । भंजंतो जाणाई गओ गओ गुरूयवेगेण ॥ २८५६ ॥ तत्तासवसासा वि हु पणस्समाणे जणे सघयघडया । जलवाहिणीए कीय वि अन्भिडिया दो वि पडियाओ ॥ २८५७ ॥ दोण्ह वि घयजलघडया झड त्ति पडिया दड त्ति फुडिया य । पाहाणमयं पि हु फुडइ निवडियं मिम्मयं किं नो ? || २८५८ ॥ घयहाणीए वि सहस त्ति उठ्ठिया अभिन्नमुहराया । वज्जइ अहव विसेसो, गुरुयाण महाणिवुट्ठिसु ॥ २८५९ ॥ रुयइ सकरुणं जलवाहिणी पुणो गुरुसरेण तं दर्छ । जंपइ विप्पो जलघडयमित्तभंगे वि किं रुयसि ? ॥ २८६० ॥ सा आह सासुया मं ताडेही भोयणं पि हु न दाही । कुविया भणिही तुह भोयणेण घडयं गहिस्सं ति ॥ २८६१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy